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प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 ( Competition Act, 2002 )


 

प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002

(2003 का अधिनियम संख्यांक 12)

[13 जनवरी, 2003]

देश के आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यवहारों का, जिनका

प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, निवारण करने, बाजारों में

प्रतिस्पर्धा का संवर्धन करने और उसे बनाए रखने, उपभोक्ताओं

के हितों का संरक्षण करने और बाजारों में अन्य सहभागियों

द्वारा किए जाने वाले व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित

करने के लिए भारत में आयोग की स्थापना का

और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक

विषयों का उपबंध

करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के तिरपनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित होः-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 है ।

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे:

परंतु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबंध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबंध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) अर्जन" से-

(i) किसी उद्यम के शेयरों, मतदान अधिकारों या आस्तियों का, या

(ii) किसी उद्यम के प्रबंध पर नियंत्रण या आस्तियों पर नियंत्रण का, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्जन करना या अर्जन के लिए सहमत होना अभिप्रेत है;

(ख) करार" के अंतर्गत, कोई ठहराव या समझौता या कार्रवाई सम्मिलित है, -

(i) चाहे ऐसा ठहराव, समझौता या कार्रवाई औपचारिक या लिखित में हो, या न हो; अथवा

(ii) चाहे ऐसा ठहराव, समझौता या कार्रवाई विधिक कार्यवाहियों द्वारा प्रवर्तन के लिए आशयित हो या न हो;

 [(खक) अपील अधिकरण" से धारा 53 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित प्रतिस्पर्धा अपील अधिकरण अभिप्रेत है;]       

(ग) व्यापार संघ" के अंतर्गत ऐसे उत्पादकों, विक्रेताओं, वितरकों, व्यापारियों या सेवा प्रदाताओं का संगम है जो, उनके बीच हुए करार के द्वारा, माल के उत्पादन, वितरण, विक्रय या उसकी कीमत या उसके व्यापार अथवा सेवा प्रदान करने को परिसीमित, नियंत्रित करता है या नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है;

(घ) अध्यक्ष" से धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त आयोग का अध्यक्ष अभिप्रेत है;

(ङ) आयोग" से धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग अभिप्रेत है;

(च) उपभोक्ता" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो-

(i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से, जो ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है या भागतः वचन दिया गया है या आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन ऐसे माल का क्रय करता है, भिन्न ऐसे माल का कोई उपयोक्ता भी है, जब ऐसा उपयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है चाहे माल का उक्त क्रय पुनः विक्रय के लिए या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए या वैयक्तिक उपयोग के लिए हो;

(ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए, जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या प्राप्त करता है और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से, जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए, जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है या भागतः वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या प्राप्त करता है, भिन्न ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है, जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, चाहे ऐसी सेवाओं को भाड़े पर लेना या प्राप्त करना किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए या वैयक्तिक उपयोग के लिए हो;

(छ) महानिदेशक" से धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त महानिदेशक अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत उक्त धारा के अधीन नियुक्त अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक भी हैं;

(ज) उद्यम" से ऐसा कोई व्यक्ति या सरकार का विभाग अभिप्रेत है जो वस्तुओं या मालों के उत्पादन, भंडारण, प्रदाय, वितरण, अर्जन या नियंत्रण या किसी प्रकार की सेवाओं की व्यवस्था करने से संबंधित किसी क्रियाकलाप में, या किसी अन्य निगमित निकाय के शेयरों, डिबेंचरों या अन्य प्रतिभूतियों के अर्जन, धारण, हामीदारी या संव्यहार के कारबार में या तो प्रत्यक्ष रूप से या उसकी एक या अधिक इकाइयों या प्रभागों या समनुषंगियों के माध्यम से लगा हुआ है, या लगा रहा है, चाहे ऐसी इकाई या प्रभाग या समनुषंगी उसी स्थान पर स्थित हो जहां उद्यम स्थित है या किसी भिन्न स्थान या भिन्न-भिन्न स्थानों पर स्थित हो, किंतु इसके अंतर्गत सरकार का कोई ऐसा क्रियाकलाप नहीं आता है जो सरकार के संप्रभु कृत्यों जिनके अंतर्गत केन्द्रीय सरकार के परमाणु ऊर्जा, करेंसी, रक्षा तथा अंतरिक्ष से संबंधित विभागों द्वारा किए जाने वाले सभी क्रियाकलाप भी हैं, से संबंधित हैं ।

स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, -

(क) क्रियाकलाप" के अन्तर्गत कोई वृत्ति या उपजीविका भी है;

(ख) वस्तु" के अन्तर्गत कोई नई वस्तु और सेवा" के अन्तर्गत कोई नई सेवा भी है;

(ग) किसी उद्यम के संबंध में इकाई" या प्रभाग" के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं-

(i) किसी वस्तु या माल के उत्पादन, भंडारण, प्रदाय, वितरण, अर्जन या नियंत्रण के लिए स्थापित कोई संयंत्र या कारखाना;

(ii) किसी सेवा की व्यवस्था के लिए स्थापित कोई शाखा या कार्यालय है;

() माल" से माल विक्रय अधिनियम, 1930 (1930 का 3) में यथापरिभाषित माल अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित हैः-

(अ) विनिर्मित, संसाधित या खान से प्राप्त उत्पाद;

(आ) आबंटन के पश्चात् डिबेंचर, स्टाक और शेयर;

(इ) भारत में प्रदत्त, वितरित या नियंत्रित माल के संबंध में भारत में आयात किया गया माल;

() सदस्य" से धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त आयोग का कोई सदस्य अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत अध्यक्ष भी है;

(ट) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित कोई अधिसूचना अभिप्रेत है;

(ठ) व्यक्ति" के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं-

(i) कोई व्यष्टि;

(ii) कोई हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब;

(iii) कोई कंपनी;

(iv) कोई फर्म;

(v) भारत में या भारत से बाहर, व्यक्तियों का कोई संगम या व्यष्टियों का कोई निकाय, चाहे निगमित हो या हो;

(vi) किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रान्तीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित कोई निगम या कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथापरिभाषित कोई सरकारी कंपनी;

(vii) भारत से बाहर किसी देश की विधियों द्वारा या उनके अधीन निगमित कोई निगमित निकाय;

(viii) सहकारी सोसाइटियों से संबंधित किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई सहकारी सोसाइटी;

(ix) कोई स्थानीय प्राधिकरण;

(x) प्रत्येक कृत्रिम विधिक व्यक्ति जो पूर्ववर्ती उपखंडों में से किसी के अधीन न आता हो;

() पद्धति" के अंतर्गत किसी व्यक्ति या किसी उद्यम द्वारा किए जाने वाले किसी व्यापार के संबंध में कोई पद्धति है;

(ढ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(ण) किन्हीं माल के विक्रय या किन्हीं सेवाओं के निष्पादन के संबंध में कीमत" के अन्तर्गत प्रत्येक मूल्यवान प्रतिफल है, चाहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो या आस्थगित हो और कोई ऐसा प्रतिफल भी है जो सारतः किसी माल के विक्रय या किसी सेवा के करने के संबंध में हो यद्यपि वह दृश्यतः किसी अन्य विषय या वस्तु से संबंधित हो;

(त) लोक वित्तीय संस्था" से कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क में विनिर्दिष्ट कोई लोक वित्तीय संस्था अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कोई राज्य वित्तीय, औद्योगिक या विनिधान निगम भी है;

(थ) विनियम" से धारा 64 के अधीन आयोग द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं;

(द) सुसंगत बाजार" से ऐसा बाजार अभिप्रेत है जिसका अवधारण आयोग द्वारा सुसंगत उत्पाद बाजार या सुसंगत भौगोलिक बाजार के प्रतिनिर्देश से या दोनों बाजारों के प्रतिनिर्देश से किया जाए;

(ध) सुसंगत भौगोलिक बाजार" से ऐसा बाजार अभिप्रेत है जिसमें ऐसा क्षेत्र समाविष्ट है जिसमें माल के प्रदाय या सेवाओं की व्यवस्था या माल या सेवाओं की मांग के लिए प्रतिस्पर्धा की स्थितियां सुस्पष्ट रूप से समान हैं और उन्हें पड़ोसी क्षेत्रों में व्याप्त स्थितियों से सुभिन्न किया जा सकता है;

(न) सुसंगत उत्पाद बाजार" से ऐसा बाजार अभिप्रेत है जो ऐसे सभी उत्पादों या सेवाओं से मिलकर बना है जो उत्पादों और सेवाओं की विशिष्टताओं, उनकी कीमत और आशयित उपयोग के कारण उपभोक्ता द्वारा अन्तर्निमेय या प्रतिस्थापनीय मानी जाती हैं;

() सेवा" से किसी वर्णन की ऐसी सेवा अभिप्रेत है जो संभावित उपयोक्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है और इसके अंतर्गत कोई औद्योगिक या वाणिज्यिक विषय, जैसे बैंककारी, संचार, शिक्षा, वित्तपोषण, बीमा, चिट फंड, स्थावर संपदा, परिवहन, भंडारण, सामग्री, उपचार प्रसंस्करण, विद्युत या अन्य ऊर्जा का प्रदाय, बोर्डिंग, निवास, मनोरंजन, आमोद, सन्निर्माण, मरम्मत, समाचार या सूचना का प्रसार और विज्ञापन के कारबार से संबंधित सेवाओं की व्यवस्था भी है;

() शेयर" से मतदान अधिकारों के साथ किसी कंपनी की शेयर पूंजी में शेयर अभिप्रेत हैं और इसके अंतर्गत निम्नलिखित हैं-

(i) कोई ऐसी प्रतिभूति, जो धारक को मतदान अधिकारों के साथ शेयर प्राप्त करने का हकदार बनाती है,

(ii) स्टाक, उसके सिवाय जहां स्टाक और शेयर के बीच विभेद स्पष्ट या विवक्षित हो;

() कानूनी प्राधिकरण" से कोई प्राधिकरण, बोर्ड, निगम, परिषद्, संस्था, विश्वविद्यालय या कोई अन्य निगमित निकाय अभिप्रेत है जो केन्द्रीय, राज्य या प्रान्तीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन माल का उत्पादन या प्रदाय या उसके लिए किसी सेवा या बाजार की व्यवस्था को विनियमित करने के प्रयोजनों के लिए स्थापित किया गया हो;

(भ) व्यापार" से माल के उत्पादन, प्रदाय, वितरण, भंडारण या नियंत्रण से संबंधित कोई व्यापार, कारबार, उद्योग, वृत्ति या उपजीविका अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत किसी सेवा की व्यवस्था भी है;

(म) व्यापारावर्त" के अन्तर्गत माल के विक्रय या सेवाओं का मूल्य है;

(य) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं और कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उस अधिनियम में हैं ।

अध्याय 2

कतिपय करारों, प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध और समुच्चयों का विनियमन

करारों का प्रतिषेध

3. प्रतिस्पर्धारोधी करार-(1) कोई उद्यम या उद्यमों का संगम या व्यक्ति या व्यक्तियों का संगम, ऐसे माल के उत्पादन, प्रदाय, वितरण, भंडारण, अर्जन या नियंत्रण या सेवाओं की व्यवस्था के संबंध में कोई ऐसा करार नहीं करेगा जिससे भारत के भीतर प्रतिस्पर्धा पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या पड़ने की संभावना हो ।

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों के उल्लघंन में किया गया कोई करार शून्य होगा ।

(3) ऐसे उद्यमों या उद्यमों के संगमों या व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों के संगमों के बीच या किसी व्यक्ति या उद्यम के बीच किया गया कोई ऐसा करार या किन्हीं उद्यमों के संगम या व्यक्तियों के संगम, जिसमें उत्पादक-संघ भी है, जो तद्रूप या समरूप माल के व्यापार या सेवाओं की व्यवस्था में लगे हुए हैं, द्वारा किया गया कोई ऐसा व्यवहार या विनिश्चय, जो, -

(क) प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः क्रय या विक्रय की कीमतों को अवधारित करता है;

() उत्पादन, प्रदाय, बाजार, तकनीकी विकास, विनिधान या सेवाओं की व्यवस्था को परिसीमित या नियंत्रित करता है;

(ग) बाजार का भौगोलिक क्षेत्र या माल सेवाओं का प्रकार या बाजार में ग्राहकों की संख्या या इसी प्रकार से अन्य आबंटन द्वारा बाजार या उत्पादन स्रोतों या सेवा की व्यवस्था में हिस्सेदारी करता है;

(घ) प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः जिसका परिणाम बोली में धांधली करना या बोली में दुरभिसंधि करना है, तो यह उपधारणा की जाएगी कि इसका प्रतिस्पर्धा पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा:

परंतु इस उपधारा की कोई बात संयुक्त उद्यमों के रूप में किए गए किसी करार को लागू नहीं होगी यदि ऐसे करार से किसी माल के उत्पादन, प्रदाय, वितरण, भंडारण, अर्जन या नियंत्रण या सेवाओं के प्रदान करने की दक्षता में वृद्धि होती है

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए बोली में भाव बढ़ाना" से उपधारा (3) में निर्दिष्ट ऐसे उद्यमों या व्यक्तियों के, जो तद्रूप या समरूप माल के उत्पादन या व्यापार में या सेवाओं की व्यवस्था में लगे हुए हैं, बीच ऐसा कोई करार अभिप्रेत है जिनका प्रभाव बोली के लिए प्रतिस्पर्धा को समाप्त करना या कम करना या बोली लगाने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालना या उसे प्रभावित करना हो ।

(4) माल के उत्पादन, प्रदाय, वितरण, भंडारण, विक्रय या कीमत के या उसके व्यवसाय के या सेवाओं की व्यवस्था के संबंध में, विभिन्न बाजारों में उत्पादन श्रृंखला के विभिन्न प्रक्रमों या स्तरों पर उद्यमों या व्यक्तियों के बीच कोई करार, जिसके अंतर्गत, -

(क) इंतजाम करने में सहबद्धता;

(ख) अनन्य प्रदाय करार;

(ग) अनन्य वितरण करार;

(घ) संव्यवहार करने से इंकार;

(ङ) पुनः विक्रय कीमत का अनुरक्षण; भी है, उपधारा (1) के उल्लंघन में करार तब होगा जब ऐसे करार से भारत में प्रतिस्पर्धा पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या पड़ने की संभावना हो ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए-

(क) इन्तजाम करने में सहबद्धता" के अंतर्गत कोई ऐसा करार भी है, जिसमें माल के किसी क्रेता से, ऐसे क्रय की शर्त के रूप में, कोई अन्य माल क्रय करने की अपेक्षा की गई हो;

(ख) अनन्य प्रदाय करार" के अंतर्गत कोई ऐसा करार है जो किसी अन्य रीति से क्रेता को, उसके व्यापार के अनुक्रम में, विक्रेता या किसी अन्य व्यक्ति के माल से भिन्न किसी माल का अर्जन करने या उसके साथ अन्यथा संव्यवहार करने से निर्बन्धित करता हो;

() अनन्य वितरण करार" के अंतर्गत, कोई ऐसा करार भी है, जो किसी माल के उत्पादन या प्रदाय को सीमित, निर्बन्धित या रोकने के लिए या माल के व्ययन अथवा विक्रय के लिए किसी क्षेत्र या बाजार का आबंटन करने के लिए हो;

(घ) संव्यवहार करने से इंकार" के अंतर्गत, कोई ऐसा करार भी है, जिसमें ऐसे व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग को, जिन्हें माल का विक्रय किया जाता है या जिनसे माल क्रय किया जाता है, किसी ढंग से निर्बन्धित किया जाता हो या निर्बन्धित करना संभाव्य हो;

(ङ) पुनः विक्रय की कीमत का अनुरक्षण" के अंतर्गत इस शर्त पर माल विक्रय करने का कोई करार भी है कि पुनः विक्रय पर क्रेता से प्रभारित की जाने वाली कीमत विक्रेता द्वारा अनुबद्ध कीमत होगी, जब तक कि स्पष्ट रूप से यह कथित न किया गया हो कि उन कीमतों से कम कीमत प्रभारित की जा सकेगी ।

(5) इस धारा की कोई बात, -

(i) किसी व्यक्ति के किसी अतिलंघन को, जो हुआ है या हो सकता है, अवरुद्ध करने या ऐसी युक्तियुक्त शर्तें अधिरोपित करने के जो, -

(क) प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 (1957 का 14);

(ख) पेटेन्ट अधिनियम, 1970 (1970 का 39);

() व्यापार और पण्य वस्तु चिह्न अधिनियम, 1958 (1958 का 43) या व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 (1999 का 47); 

(घ) माल के भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 (1999 का 48);

(ङ) डिजाइन अधिनियम, 2000 (2000 का 16);

(च) अर्धचालक एकीकृत परिपथ अभिन्यास डिजाइन अधिनियम, 2000 (2000 का 37) के अधीन प्रदत्त किसी अपने अधिकार के संरक्षण के लिए आवश्यक हो, अधिकार को;

(ii) भारत से माल निर्यात करने के लिए किसी भी व्यक्ति के अधिकार को, उस सीमा तक जहां तक करार ऐसे निर्यात के लिए माल के उत्पादन, प्रदाय, वितरण या नियंत्रण या सेवाओं की व्यवस्था करने से अनन्य रूप से संबंधित है, निर्बन्धित नहीं करेगी

प्रधानस्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध

4. प्रधानस्थिति का दुरुपयोग- [(1) कोई उद्यम या समूह अपनी प्रधानस्थिति का दुरुपयोग नहीं करेगा ।]

(2) 1[उपधारा (1) के अधीन, प्रधानस्थिति का दुरुपयोग होगा, यदि कोई उद्यम या कोई समूह-]

(क) (i) माल के क्रय या विक्रय में या सेवा की व्यवस्था में; या

(ii) माल या सेवाओं की क्निर्बन्धित करता है; अथवा

(ग) ऐसे व्यवहार या व्यवहारों को करता है जिनसे बाजार तक पहुंच [किसी रीति में] नहीं मिलती है, अथवा

(घ) संविदाओं के निष्पादन को ऐसी अनुपूरक बाध्यताओं के अन्य पक्षकारों द्वारा स्वीकृति के अधीन बनाता है जिनका अपनी प्रकृति से या वाणिज्यिक प्रथाओं के अनुसार ऐसी संविदाओं के विषय से कोई संबंध नहीं है; अथवा

() एक सुसंगत बाजार में अपनी प्रधानता को अन्य सुसंगत बाजारों में प्रवेश के लिए या उन्हें संरक्षित करने के लिए प्रयोग करता है

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए पद-

() प्रधानस्थिति" से किसी उद्यम द्वारा, भारत में सुसंगत बाजार में प्राप्त ऐसी शक्ति की स्थिति अभिप्रेत है, जो उसे-

(i) सुसंगत बाजार में विद्यमान प्रतिस्पर्धा ताकतों पर स्वतंत्र रूप से नियंत्रण करने; या

(ii) प्रतिस्पर्धियों या उपभोक्ताओं या सुसंगत बाजार को अपने पक्ष में प्रभावित करने में समर्थ बनाती है;

(ख) स्वार्थचालित कीमत" से उस कीमत पर माल का विक्रय या सेवाओं की व्यवस्था करना अभिप्रेत है, जो प्रतिस्पर्धा को कम करने या प्रतिस्पर्धियों को समाप्त करने की दृष्टि से माल के उत्पादन या सेवा की व्यवस्था की उस कीमत से कम हो, जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाए;

 [(ग) समूह" का वही अर्थ है जो धारा 5 के स्पष्टीकरण के खंड (ख) में है ।]

समुच्चयों का विनियमन

5. समुच्चय-एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा एक या अधिक उद्यमों का अर्जन अथवा उद्यमों का विलयन या समामेलन ऐसे उद्यमों और व्यक्तियों का समुच्चय होगा, यदि-

(क) कोई अर्जन, जहां, -

(i) ऐसे अर्जन के पक्षकार की, जो अर्जनकर्ता और ऐसा उद्यम है, जिसका नियंत्रण, शेयर, मत देने का अधिकार या आस्तियां अर्जित की गई हैं या की जा रही हैं, संयुक्त रूप से, -

() या तो भारत में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं; या

 [() भारत में या भारत के बाहर कुल मिलाकर पांच सौ मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं, जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या पंद्रह सौ मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पन्द्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं; या]

(ii) किसी ऐसे समूह की, जिसका यह उद्यम, जिसका नियंत्रण, शेयर, आस्तियां या मताधिकार अर्जित किए गए हैं या अर्जित किए जा रहे हैं, अर्जन के पश्चात् होगा, संयुक्त रूप से, -

(अ) या तो भारत में, चार हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या बारह हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं; या होंगे; या

2[(आ) भारत में या भारत के बारह कुल मिलाकर दो बिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं, जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या छह बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पन्द्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं; या]

() किसी व्यक्ति द्वारा किसी उद्यम पर नियंत्रण का अर्जन करने के लिए, जब ऐसे व्यक्ति का पहले से ही किसी अन्य ऐसे उद्यम मामले पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण है, जो किसी समरूप या तद्रूप या अनुकल्पी माल के उत्पादन, वितरण या व्यापार में लगा हुआ है या किसी समरूप या तद्रूप या अनुकल्पी सेवा की व्यवस्था कर रहा है, यदि-

(i) ऐसे उद्यम का, जिस पर नियंत्रण का अर्जन किया गया है, उस उद्यम के साथ, जिस पर अर्जनकर्ता का पहले से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण है, संयुक्त रूप से, -

() या तो भारत में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं; या

2[() भारत में, या भारत के बारह कुल मिलाकर पांच सौ मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या पंद्रह सौ मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पन्द्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं; या]

(ii) ऐसे समूह की, जिसका वह उद्यम, जिसका नियंत्रण अर्जित किया गया है या अर्जित किया जा रहा है, अर्जन के पश्चात् संयुक्त रूप से, -

(अ) या तो भारत में चार हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या बारह हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं या होंगे; या

 [(आ) भारत में, या भारत के बाहर कुल मिलाकर दो बिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या छह बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिसके अंतर्गत भारत में कम से कम पन्द्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं; या]

(ग) कोई विलयन या समामेलन, जिसमें, -

(i) यथास्थिति, विलयन के पश्चात् बना रहा उद्यम या समामेलन के परिणामस्वरूप सृजित उद्यम की-

() या तो भारत में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं; या

1[() भारत में, या भारत के बाहर कुल मिलाकर पांच सौ मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या पंद्रह सौ मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिसके अंतर्गत भारत में कम से कम पन्द्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं;]

(ii) उस समूह की, जिसका विलयन के पश्चात् बचा उद्यम या समामेलन के परिणामस्वरूप सृजित उद्यम, यथास्थिति, विलयन या समामेलन के पश्चात् होगा, संयुक्त रूप में-

(अ) या तो भारत में चार हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आस्तियां या बारह हजार करोड़ रुपए से अधिक के आवर्त हैं या होंगे; या

[(आ) भारत में, या भारत के बाहर कुल मिलाकर दो बिलियन अमेरिकी डालर मूल्य से अधिक की आस्तियां हैं जिनके अंतर्गत भारत में कम से कम पांच सौ करोड़ रुपए मूल्य की आस्तियां हैं या छह बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के आवर्त हैं, जिसके अंतर्गत भारत में कम से कम पंद्रह सौ करोड़ रुपए मूल्य के आवर्त हैं ।]

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -

(क)         नियंत्रण" के अन्तर्गत-

(i) एक या अधिक उद्यम द्वारा, संयुक्त रूप से या एकल रूप से, किसी अन्य उद्यम या समूह के;

(ii) एक या अधिक समूह द्वारा, संयुक्त रूप से या एकल रूप से, किसी अन्य समूह या उद्यम के, कार्यों या प्रबंध का नियंत्रण करना भी है;

(ख)        समूह" से दो या अधिक ऐसे उद्यम अभिप्रेत हैं जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः-

(i) किसी अन्य उद्यम में छब्बीस प्रतिशत या अधिक मत देने के अधिकारों का प्रयोग करने की; या

(ii) किसी अन्य उद्यम में निदेशक बोर्ड के पचास प्रतिशत से अधिक सदस्यों की नियुक्ति करने की; या

(iii) किसी अन्य उद्यम के प्रबंध या कार्यों का नियंत्रण करने की, स्थिति में है;

() आस्तियों के मूल्य का अवधारण उस वित्तीय वर्ष के, जिसमें प्रस्तावित विलयन की तारीख आती है, ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में उद्यम की संपरीक्षित लेखा बहियों में दर्शित आस्तियों का बही मूल्य लेकर, जिसमें से कोई अवक्षयण घटा दिया जाएगा, किया जाएगा और आस्तियों के मूल्य के अन्तर्गत ब्रांड मूल्य, गुडविल का मूल्य या धारा 3 की उपधारा (5) में निर्दिष्ट प्रतिलिप्यधिकार, पेटेंट, अनुज्ञात उपयोग, सामूहिक चिह्न, रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी, रजिस्ट्रीकृत व्यापार चिह्न, रजिस्ट्रीकृत उपयोक्ता, श्रुतिसम भौगोलिक उपदर्शन, भौगोलिक उपदर्शन, डिजाइन सा अभिन्यास डिजाइन या समरूप अन्य वाणिज्यिक अधिकारों, यदि कोई हों, का मूल्य भी है

6. समुच्चयों का विनियमन-(1) कोई भी व्यक्ति या उद्यम, किसी ऐसे समुच्चय में सम्मिलित नहीं होगा, जिससे भारत में सुसंगत बाजार के भीतर प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या पड़ने की संभावना है, और ऐसा कोई समुच्चय शून्य होगा ।

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई ऐसा व्यक्ति या उद्यम, जो किसी समुच्चय में सम्मिलित होने का प्रस्ताव करता है, । । । आयोग को, ऐसे प्ररूप में जो विहित किया जाए, और ऐसी फीस के साथ जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाए-

(क) ऐसे उद्यमों के निदेशक बोर्ड द्वारा, जो, यथास्थिति, ऐसे विलयन या समामेलन से संबद्ध है, धारा 5 के खंड (ग) में निर्दिष्ट ऐसे विलयन या समामेलन से संबंधित प्रस्ताव के अनुमोदन के;

(ख) धारा 5 के खंड (क) में निर्दिष्ट अर्जन या उस धारा के खंड (ख) में निर्दिष्ट नियंत्रण का अर्जन प्राप्त करने के लिए किसी करार या अन्य दस्तावेज के निष्पादन के,

 [तीस दिन के भीतर सूचना देगा] जिसमें प्रस्तावित समुच्चय के ब्यौरे प्रकट होंगे ।

 [(2क) कोई भी समुच्चय तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि उस तारीख से, जिसको उपधारा (2) के अधीन आयोग को सूचना दी गई है, दो सौ दस दिन बीत न गए हों या आयोग ने धारा 31 के अधीन आदेश पारित न कर दिया हो, इनमें से जो भी पूर्वतर हो ।]

(3) आयोग, उपधारा (2) के अधीन सूचना प्राप्त करने के पश्चात् ऐसी सूचना का निपटान धारा 29, धारा 30 और धारा 31 के उपबंधों के अनुसार करेगा ।

(4) इस धारा के उपबंध किसी ऋण करार या विनिधान करार की किसी प्रसंविदा के अनुसरण में शेयर अभिधान या वित्तपोषण प्रसुविधा या किसी लोक वित्तीय संस्था, विदेशी संस्थागत विनिधानकर्ता, बैंक या जोखिम पूंजी निधि द्वारा किसी अर्जन को लागू नहीं होंगे ।

(5) उपधारा (4) में निर्दिष्ट लोक वित्तीय संस्था, विदेशी संस्थागत विनिधानकर्ता, बैंक या जोखिम पूंजी निधि, अर्जन की तारीख से सात दिन के भीतर, उस प्ररूप में, जो विनियमों द्वारा विहित किया जाए, अर्जन के ब्यौरे, जिनके अंतर्गत नियंत्रण के ब्यौरे, ऐसा नियंत्रण करने की परिस्थितियां और, यथास्थिति, ऐसे ऋण करार या विनिधान करार से उद्भूत व्यतिक्रम के परिणामों से संबंधित ब्यौरे भी हैं, आयोग को फाइल करेगी ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(क) विदेशी संस्थागत विनिधानकर्ता" पद का वही अर्थ है जो आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 115कघ के स्पष्टीकरण के खंड (क) में है;

(ख) जोखिम पूंजी निधि" का वही अर्थ है जो आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 10 के खंड (23चख) के स्पष्टीकरण के खंड (ख) में है ।

अध्याय 3

भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग

7. आयोग की स्थापना-(1) ऐसी तारीख से, जो केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए एक आयोग की स्थापना की जाएगी जिसका नाम भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग" होगा ।

(2) आयोग, पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा जिसका शाश्वत उत्तराधिकार होगा और जिसकी एक सामान्य मुद्रा होगी और जिसे, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जंगम और स्थावर दोनों संपत्ति अर्जित, धारित और व्ययनित करने की और संविदा करने की शक्ति होगी तथा वह उक्त नाम से वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा

(3) आयोग का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा, जो केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर विनिश्चित करे ।

(4) आयोग भारत में अन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित कर सकेगा ।

 [8. आयोग की संरचना-(1) आयोग एक अध्यक्ष और दो से अन्यून तथा छह से अनधिक ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।

(2) अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाला ऐसा व्यक्ति होगा जिसके पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखाकर्म, प्रबंध, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्धा संबंधी विषयों में, जिनके अंतर्गत प्रतिस्पर्धा विधि और नीति भी हैं, जो केन्द्रीय सरकार की राय में आयोग के लिए उपयोगी हों, कम से कम पन्द्रह वर्ष का विशेष ज्ञान और वृत्तिक अनुभव है ।

(3) अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होंगे ।]

 [9. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के लिए चयन समिति-(1) आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसी चयन समिति द्वारा सिफारिश किए गए नामों के पैनल से की जाएगी, जो निम्नलिखित से मिल कर बनेगीः-

(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या उसका नामनिर्देशिती-अध्यक्ष;

(ख) सचिव, कार्पोरेट कार्य मंत्रालय-सदस्य;

(ग) सचिव, विधि और न्याय मंत्रालय-सदस्य;

(घ) दो ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ, जिनके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखाकर्म, प्रबंध, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्धा संबंधी विषयों में, जिनके अंतर्गत प्रतिस्पर्धा विधि और नीति भी हैं, विशेष ज्ञान और वृत्तिक अनुभव है-सदस्य ।

(2) चयन समिति की अवधि और नामों के पैनल के चयन की रीति वह होगी जो विहित की जाए ।]

10. अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की पदावधि-(1) अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य, उस तारीख से, जिसको वे अपना पद ग्रहण करते हैं, पांच वर्ष की कार्याविधि के लिए उस रूप में पद धारण करेंगे और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होंगे:

 [परन्तु अध्यक्ष या अन्य सदस्य उस रूप में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् पद धारण नहीं करेगा ।]

(2) धारा 11 के अधीन अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के त्यागपत्र या उसके हटाए जाने के कारण या उसकी मृत्यु या अन्य कारण से हुई किसी रिक्ति को धारा 8 और धारा 9 के उपबंधों के अनुसार नई नियुक्ति करके भरा जाएगा

(3) अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य अपना पद ग्रहण करने से पूर्व ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से और ऐसे प्राधिकारी के समक्ष, जो विहित किया जाए, पद और गोपनीयता की शपथ लेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा

(4) अध्यक्ष की मृत्यु, त्यागपत्र या अन्य कारण से उसका पद रिक्त होने की दशा में, ज्येष्ठतम सदस्य अध्यक्ष के रूप में उस तारीख तक कार्य करेगा जिसको कि इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार नया अध्यक्ष ऐसी रिक्ति को भरने लिए अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है ।

(5) जब अध्यक्ष, अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तो ज्येष्ठतम सदस्य, अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन उस तारीख तक करेगा, जिसको अध्यक्ष अपने कृत्यों का भार पुनः ग्रहण नहीं कर लेता है

11. अध्यक्ष और अन्य सदस्यों का त्यागपत्र, उनका हटाया जाना और निलंबन-(1) अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य केन्द्रीय सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा:

परंतु अध्यक्ष या कोई सदस्य, जब तक कि उसे अपना पद उससे पहले छोड़ने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुज्ञात न किया गया हो, ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीन मास की समाप्ति तक या जब तक उसके उत्तराधिकारी के रूप में सम्यक् रूप से नियुक्त कोई व्यक्ति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता या उसकी पदावधि की समाप्ति तक इनमें जो पूर्वतर हो, अपना पद धारण करता रहेगा ।

(2) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी आदेश द्वारा, यथास्थिति, अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को उसके पद से हटा सकेगी, यदि-

(क) ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को दिवालिया अधिनिर्णीत किया गया हो या वह किसी समय दिवालिया रहा हो; या

(ख) ऐसा अध्यक्ष या सदस्य अपनी पदावधि के दौरान किसी समय किसी सवैतनिक नियोजन में लगा हो; या

(ग) ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया हो जिसमें, केन्द्रीय सरकार की राय में, नैतिक अधमता अन्तर्वलित हो; या

(घ) ऐसे अध्यक्ष या सदस्य ने ऐसा वित्तीय या अन्य हित अर्जित किया है जिससे सदस्य के रूप में कृत्यों के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की संभावना हो; या

(ङ) ऐसे अध्यक्ष या सदस्य ने अपने पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है जिसके कारण उसका पद पर बने रहना लोकहित के प्रतिकूल हो; या

(च) ऐसा अध्यक्ष या सदस्य, शारीरिक या मानसिक रूप से सदस्य के रूप में कार्य करने में असमर्थ हो गया है ।

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, उस उपधारा के खंड (घ) या खंड (ङ) में विनिर्दिष्ट आधार पर किसी सदस्य को उसके पद से तभी हटाया जाएगा जब उच्चतम न्यायालय ने, केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त निर्देश किए जाने पर, उच्चतम न्यायालय द्वारा इस निमित्त यथाविहित ऐसी प्रक्रिया के अनुसार उसके द्वारा की गई जांच पर यह रिपोर्ट दी है कि सदस्य को किसी ऐसे आधार या आधारों पर हटाया जाना चाहिए ।

12. कतिपय मामलों में अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नियोजन पर निर्बंधन-अध्यक्ष और अन्य सदस्य उस तारीख से जिसको उसका पद धारण करना समाप्त हो जाता है, [दो वर्षों] की अवधि तक ऐसे किसी उद्यम के, जो इस अधिनियम के अधीन आयोग के समक्ष कार्यवाही में कोई पक्षकार रहा है, प्रबंध य प्रशासन में या उससे संबंधित कोई नियोजन स्वीकार नहीं करेगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के अधीन या किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी कानूनी प्राधिकरण या किसी निगम में या कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथापरिभाषित किसी सरकारी कंपनी में किसी नियोजन को लागू नहीं होगी ।

 [13. अध्यक्ष की प्रशासनिक शक्तियां-अध्यक्ष को आयोग के सभी प्रशासनिक मामलों के संबंध में साधारण अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण की शक्तियां होंगी:

परन्तु अध्यक्ष आयोग के प्रशासनिक मामलों से संबंधित अपनी शक्तियों में से ऐसी शक्तियां जिन्हें वह ठीक समझे किसी अन्य सदस्य या आयोग के अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगा ।]

14. अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें-(1) अध्यक्ष और अन्य सदस्यों का वेतन और यात्रा व्यय, मकान किराया भत्ता और वाहन सुविधा, सत्कार भत्ता तथा चिकित्सा सुविधा सहित सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।

(2) अध्यक्ष या किसी सदस्य के वेतन, भत्तों और सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसको अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।

15. रिक्ति, आदि से कार्यवाहियों का अविधिमान्य होना-आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि-

(क) आयोग में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या

(ख) अध्यक्ष या सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या

(ग) आयोग की प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता है जो मामले के गुणागुण पर प्रभाव नहीं डालती है ।

16. महानिदेशक आदि की नियुक्ति- [(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के किसी भी उपबन्ध के उल्लंघन की जांच करने में आयोग की सहायता करने के प्रयोजन के लिए और ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करने के लिए, जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित किए गए हैं या उपबंधित किए जाएं, महानिदेशक नियुक्त कर सकेगी ।

(1क) महानिदेशक के कार्यालय में अन्य अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशकों या अन्य ऐसे अधिकारियों या कर्मचारियों की संख्या और ऐसे अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशकों या ऐसे अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति की रीति वह होगी, जो विहित की जाए ।]

(2) प्रत्येक अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक या [ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी] महानिदेशक के साधारण नियंत्रण, पर्यवेक्षण और निदेशन के अधीन रहते हुए अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का निर्वहन करेगा

(3) महानिदेशक और किसी अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक या [ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी] के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।

(4) महानिदेशक और अपर, संयुक्त, उप और सहायक महानिदेशक या 3[ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारी] ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाएंगे जो सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट योग्यता वाले व्यक्ति हैं और जो अन्वेषण का अनुभव तथा लेखाकर्म, प्रबंध, कारबार, लोक प्रशासन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विधि या अर्थशास्त्र का ज्ञान रखते हैं और ऐसी अन्य अर्हताएं रखते हैं जो विहित की जाएं ।

 [17. आयोग के सचिव, विशेषज्ञों, वृत्तिकों और अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति-(1) आयोग एक सचिव और ऐसे अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जो वह इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के दक्षतापूर्ण पालन के लिए आवश्यक समझे ।

(2) आयोग के सचिव और अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें और ऐसे अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या वे होंगी जो विहित की जाएं ।

(3) आयोग, विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार उतनी संख्या में सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट योग्यता वाले ऐसे विशेषज्ञों और वृत्तिकों को, जो अर्थशास्त्र, विधि, कारबार या प्रतिस्पर्धा से संबंधित ऐसी अन्य विद्या विधाओं में विशेष ज्ञान और अनुभव रखते हैं, नियुक्त कर सकेगा जो आयोग अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में आयोग की सहायता करने के लिए आवश्यक समझे ।]

अध्याय 4

आयोग के कर्तव्य, शक्तियां और कृत्य

18. आयोग के कर्तव्य-इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे व्यवहारों को समाप्त करे जो प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, प्रतिस्पर्धा का संवर्धन करे और उसे बनाए रखे, उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करे और भारत के बाजारों में अन्य भागीदारों द्वारा किए गए व्यापार की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करे:

परंतु आयोग, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन या अपने कर्तव्यों के पालन के प्रयोजनों के लिए केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, किसी विदेशी अभिकरण के साथ कोई ज्ञापन या करार कर सकेगा ।

19. कतिपय करारों और उद्यम की प्रधान स्थिति की जांच-(1) आयोग, धारा 3 की उपधारा (1) या धारा 4 की उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों के किसी अभिकथित उल्लंघन के लिए या तो स्वप्रेरणा से या-

(क) किसी व्यक्ति, उपभोक्ता या उनके संगम या व्यापार संगम से [ऐसी रीति में और ऐसी फीस के साथ, जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाए, प्राप्त किसी जानकारी पर]; या

() केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी कानूनी प्राधिकारी द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर, जांच कर सकेगा

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, आयोग की शक्तियों और कृत्यों में उपधारा (3) से उपधारा (7) में विनिर्दिष्ट शक्तियां और कृत्य सम्मिलित होंगे ।

(3) आयोग, यह अवधारित करते समय कि क्या कोई करार धारा 3 के अधीन प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालता है, निम्नलिखित बातों में से सभी या किसी पर सम्यक् विचार करेगा, अर्थात्ः-

(क) बाजार में नए प्रवेशकों के लिए अवरोधों का सृजन;

(ख) विद्यमान प्रतिस्पर्धियों को बाजार से बाहर करना;

(ग) बाजार में प्रवेश को प्रतिबंधित करके प्रतिस्पर्धा का पुरोबंध;

(घ) उपभोक्ताओं के लिए फायदों का प्रोद्भवन;

(ङ) माल के उत्पादन या वितरण या सेवाओं की व्यवस्था में सुधार;

() माल के उत्पादन या वितरण या सेवाओं की व्यवस्था के माध्यम से तकनीकी, वैज्ञानिक या आर्थिक विकास का संवर्धन

(4) आयोग, यह जांच करते समय कि क्या कोई उद्यम धारा 4 के अधीन प्रधानस्थिति का उपभोग करता है या नहीं, निम्नलिखित बातों में से सभी या किसी पर सम्यक् विचार करेगा, अर्थात्ः-

(क) उद्यम का बाजार शेयर;

(ख) उद्यम का आकार और संसाधन;

(ग) प्रतिस्पर्धियों की संख्या और उनका महत्व;

(घ) उद्यम की आर्थिक शक्ति जिसके अंतर्गत प्रतिस्पर्धियों से अधिक वाणिज्यिक फायदे भी हैं;

(ङ) उद्यमों की ऊर्ध्वस्तर एकीकरण या ऐसे उद्यमों का विक्रय या सेवा नेटवर्क;

(च) उद्यम पर उपभोक्ताओं की आश्रितता;

(छ) एकाधिकार या प्रधानस्थिति चाहे वह किसी कानून के परिणामस्वरूप अर्जित की गई हो या सरकारी कंपनी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम होने के कारण या अन्यथा हो;

() प्रवेश के अवरोध जिसके अंतर्गत विनियामक अवरोध, वित्तीय जोखिम, प्रवेश की उच्च पूंजी लागत, विपणन प्रवेश अवरोध, तकनीकी प्रवेश रोध, माप की अर्थव्यवस्था, उपभोक्ता के लिए अनुकल्पी माल या सेवाओं की ऊंची लागत भी है;

(झ) प्रतिरोधी क्रय शक्ति;

(ञ) बाजार की संरचना और बाजार का आकार;

(ट) सामाजिक बाध्यताएं और सामाजिक लागत;

(ठ) प्रधान स्थिति वाले उद्यम द्वारा, जिसका प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव है या ऐसा होने की संभावना है, आर्थिक विकास को अभिदाय के माध्यम से सापेक्ष फायदा;

(ड) कोई अन्य बात जिसे आयोग जांच के लिए सुसंगत समझे ।

(5) आयोग, यह अवधारित करने के लिए कि क्या कोई बाजार इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए सुसंगत बाजार" का गठन करता है, सुसंगत भौगोलिक बाजार" और सुसंगत उत्पाद बाजार" का सम्यक् ध्यान रखेगा ।

(6) आयोग, सुसंगत भौगोलिक बाजार" का अवधारण करते समय निम्नलिखित सभी या किन्हीं बातों का सम्यक् ध्यान रखेगा, अर्थात्ः-

(क) विनियामक व्यापार अवरोध;

(ख) स्थानीय विनिर्देश अपेक्षाएं;

(ग) राष्ट्रीय उपापन नीतियां;

(घ) पर्याप्त वितरण सुविधाएं;

(ङ) परिवहन लागत;

(च) भाषा;

(छ) उपभोक्ता अधिमान;

(ज) नियमित आपूर्ति या विक्रयोपरांत त्वरित सेवाओं को सुनिश्चित करने की आवश्यकता ।

(7) आयोग, सुसंगत उत्पाद बाजार" का अवधारण करते समय, निम्नलिखित सभी या किन्हीं बातों का सम्यक् ध्यान रखेगा, अर्थात्ः-

(क) माल की भौतिक विशेषाएं या उसका अंतिम उपयोग;

(ख) माल या सेवाओं की कीमत;

(ग) उपभोक्ता अधिमान;

(घ) आंतरिक उत्पाद का अपवर्जन;

(ङ) विशिष्ट उत्पादकों की विद्यमानता;

(च) औद्योगिक उत्पादों का वर्गीकरण ।

20. आयोग द्वारा समुच्चय की जांच-(1) आयोग अपनी स्वयं की जानकारी या धारा 5 के खंड (क) में निर्दिष्ट अर्जन या धारा 5 के खंड (ख) में निर्दिष्ट नियंत्रण अर्जित करने के लिए या उस धारा के खंड (ग) में निर्दिष्ट विलयन या समामेलन के संबंध में सूचना पर यह जांच कर सकेगा कि क्या ऐसे समुच्चय से भारत में प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या पड़ने की संभावना है:

परन्तु आयोग इस उपधारा के अधीन उस तारीख से जिससे ऐसा समुच्चय प्रभाव में आया है, एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् कोई जांच प्रारंभ नहीं करेगा ।

(2) आयोग धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन सूचना की प्राप्ति पर । । । यह जांच करेगा कि क्या उस सूचना में या निर्देश में निर्दिष्ट कोई समुच्चय भारत में प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालता है या उससे ऐसा प्रभाव पड़ने की संभावना है ।

(3) धारा 5 में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से दो वर्ष की अवधि के समाप्त होने पर और तत्पश्चात् प्रत्येक दो वर्ष में आयोग के परामर्श से, अधिसूचना द्वारा, थोक मूल्य सूचकांक या रुपए या विदेशी करेंसी की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के आधार पर उस धारा के प्रयोजनों के लिए आस्तियों के मूल्य या व्यापारावर्त के मूल्य में वृद्धि या कमी करेगी ।

(4) आयोग यह अवधारणा करने के प्रयोजन के लिए कि क्या सुसंगत बाजार में प्रतिस्पर्धा पर कोई समुच्चय पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव रखेगा या उसके ऐसा प्रभाव रखने की संभावना है, निम्नलिखित सभी या किन्हीं बातों का सम्यक् ध्यान रखेगा, अर्थात्ः-

(क) बाजार में आयातों के माध्यम से प्रतिस्पर्धा का वास्तविक और संभावी स्तर;

(ख) बाजार में प्रवेश के लिए अवरोधों का विस्तार;

(ग) बाजार में समुच्चय का स्तर;

(घ) बाजार में प्रतिरोधी शक्ति की मात्रा;

(ङ) यह संभाव्यता कि समुच्चय के परिणाम से समुच्चय के पक्षकार कीमतों या लाभ मार्जिनों में महत्वपूर्ण और कायम रहने वाली वृद्धि करने में सक्षम होंगे;

(च) बाजार में कायम रहने के लिए संभावित प्रभावी प्रतिस्पर्धा का विस्तार;

(छ) वह विस्तार जिस तक अनुकल्पी बाजार में उपलब्ध हैं या उनके बाजार में उपलब्ध होने की संभावना है;

() किसी समुच्चय में व्यक्तियों या उद्यम का, वैयक्तिक रूप से और समुच्चय के रूप से, सुसंगत बाजार में बाजार शेयर;

() यह संभाव्यता कि समुच्चय से बाजार से कर्मठ और प्रभावी प्रतिस्पर्धी या प्रतिस्पर्धियों को हटा दिया जाएगा;

(ञ) बाजार में ऊर्ध्वाधर एकीकरण की प्रकृति और विस्तार;

(ट) असफल कारबार से संभाव्यता;

(ठ) नवीनता की प्रकृति और विस्तार;

(ड) किसी ऐसे समुच्चय द्वारा, जिसका प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव है या होने की संभावना है आर्थिक विकास को अभिदाय के माध्यम से सापेक्ष फायदा;

(ढ) क्या समुच्चय के फायदे समुच्चय के प्रतिकूल प्रभाव से, यदि कोई है, महत्वपूर्ण हैं ।

21. कानूनी प्राधिकारी द्वारा निर्देश-(1) जहां किसी कानूनी प्राधिकारी के समक्ष किसी कार्यवाही के दौरान किसी पक्षकार द्वारा यह विवाद्यक उठाया गया है कि ऐसा कोई विनिश्चय, जो किसी कानूनी प्राधिकारी द्वारा किया गया हो या किए जाने के लिए प्रस्थापित हो, वह इस अधिनियम के किसी उपबंध के प्रतिकूल है या होगा वहां ऐसा कानूनी प्राधिकारी ऐसे विवाद्यक की बाबत आयोग को निर्देश कर सकेगा:

 [परन्तु कोई कानूनी प्राधिकारी स्वप्रेरणा से आयोग को ऐसा निर्देश कर सकेगा ।]

 [(2) आयोग, उपधारा (1) के अधीन निर्देश की प्राप्ति पर, ऐसे निर्देश की प्राप्ति से साठ दिन के भीतर ऐसे कानूनी प्राधिकारी को अपनी राय देगा जो आयोग की राय पर विचार करेगा और तत्पश्चात् उक्त राय में निर्दिष्ट विवाद्यकों पर अपने निष्कर्ष, उनके लिए जो कारण हैं उन्हें लेखबद्ध करते हुए, देगा ।]

 [21क. आयोग द्वारा निर्देश-(1) जहां आयोग के समक्ष किसी कार्यवाही के दौरान किसी पक्षकार द्वारा यह विवाद्यक उठाया जाता है कि ऐसा कोई विनिश्चय, जो आयोग ने ऐसी कार्यवाही के दौरान लिया है या विनिश्चय लेने का प्रस्ताव करता है, इस अधिनियम के किसी उपबंध के प्रतिकूल है या होगा जिसका कार्यान्वयन किसी कानूनी प्राधिकारी को सौंपा जाता है वहां आयोग ऐसे विवाद्यक के संबंध में कानूनी प्राधिकारी को निर्देश कर सकेगा:  

परंतु आयोग स्वःप्रेरणा से कानूनी प्राधिकारी को ऐसा निर्देश कर सकेगा ।

(2) कानूनी प्राधिकारी, उपधारा (1) के अधीन निर्देश की प्राप्ति पर, ऐसे निर्देश की प्राप्ति से साठ दिन के भीतर आयोग को अपनी राय देगा, जो कानूनी प्राधिकारी की राय पर विचार करेगा और तत्पश्चात् उक्त राय में निर्दिष्ट विवाद्यकों पर अपने निष्कर्ष, उनके लिए जो कारण हैं उन्हें लेखबद्ध करते हुए, अपना निष्कर्ष देगा ।]

 [22. आयोग की बैठकें-(1) आयोग ऐसे समयों और ऐसे स्थानों पर बैठक करेगा और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार के संबंध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा जो विनियमों द्वारा उपबन्धित किए जाएं ।

(2) यदि अध्यक्ष, किसी कारण से, आयोग की बैठक में उपस्थित होने में असमर्थ है तो, बैठक में उपस्थित ज्येष्ठतम सदस्य, बैठक की अध्यक्षता करेगा ।

(3) ऐसे सभी प्रश्नों का, जो आयोग की किसी बैठक के समक्ष आते हैं, विनिश्चय उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाएगा और मतों के बराबर होने की दशा में अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में अध्यक्षता करने वाले सदस्य का द्वितीय या निर्णायक मत होगा:

परन्तु ऐसी बैठक के लिए गणपूर्ति तीन सदस्यों से होगी ।]

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

 [26. धारा 19 के अधीन जांच के लिए प्रक्रिया-(1) धारा 19 के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी कानूनी प्राधिकारी से निर्देश की प्राप्ति पर, या स्वयं की जानकारी पर या प्राप्त सूचना पर, यदि आयोग की यह राय है कि प्रथमदृष्ट्या मामला बनता है, तो वह महानिदेशक को निदेश देगा कि मामले में अन्वेषण करवाए:

परंतु यदि प्राप्त जानकारी की विषयवस्तु, आयोग की राय में, सारवान् रूप से वही है, जो किसी पूर्व प्राप्त जानकारी की थी या उसके अंतर्गत आती है तो नई जानकारी को पूर्व जानकारी के साथ सम्मिलित किया जा सकेगा

(2) जहां धारा 19 के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी कानूनी प्राधिकारी से किसी निर्देश की प्राप्ति पर या जानकारी के प्राप्त होने पर आयोग की यह राय हो कि प्रथमदृष्ट्या मामला नहीं बनता है तो वह तुरन्त मामले को बंद करेगा और ऐसा आदेश पारित करेगा जो वह ठीक समझे और अपने आदेश की एक प्रति, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कानूनी प्राधिकरण या संबद्ध पक्षकारों को भेजेगा ।

(3) महानिदेशक, उपधारा (1) के अधीन निदेश की प्राप्ति पर, अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट ऐसी अवधि के भीतर प्रस्तुत करेगा जो आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ।

(4) आयोग उपधारा (3) में निर्दिष्ट रिपोर्ट की एक प्रति संबद्ध पक्षकारों को भेज सकेगा:

परंतु यदि अन्वेषण केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कानूनी प्राधिकारी से प्राप्त निर्देश के आधार पर कराया जाता है तो आयोग उपधारा (3) में निर्दिष्ट रिपोर्ट की एक प्रति, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कानूनी प्राधिकारी को भेजेगा ।

(5) यदि, उपधारा (3) में निर्दिष्ट महानिदेशक की रिपोर्ट यह सिफारिश करती है कि इस अधिनियम के उपबन्धों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है तो आयोग, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कानूनी प्राधिकारी या सम्बद्ध पक्षकारों से महानिदेशक की ऐसी रिपोर्ट पर आक्षेप या सुझाव आमंत्रित करेगा ।

(6) यदि, उपधारा (5) में निर्दिष्ट आक्षेपों या सुझावों, यदि कोई हों, पर विचार करने के पश्चात्, आयोग महानिदेशक की सिफारिशों से सहमत होता है तो वह तुरन्त मामले को बंद करेगा और ऐसे आदेश पारित करेगा जो वह ठीक समझे और अपने आदेश को, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कानूनी प्राधिकारी या संबद्ध पक्षकारों को संसूचित करेगा ।

(7) यदि, उपधारा (5) में निर्दिष्ट आक्षेपों या सुझावों, यदि कोई हों, पर विचार करने के पश्चात् आयोग की यह राय है कि आगे और अन्वेषण कराया जाना चाहिए तो वह उस मामले में महानिदेशक द्वारा और अन्वेषण कराने के लिए निर्देश दे सकेगा या उस मामले में और जांच करा सकेगा या स्वयं इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार उस मामले में और जांच कर सकेगा ।

(8) यदि उपधारा (3) में निर्दिष्ट महानिदेशक की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि इस अधिनियम के किन्हीं उपबन्धों का उल्लंघन हुआ है और आयोग की यह राय है कि और जांच कराई जानी चाहिए तो वह इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार ऐसे उल्लंघन की जांच करेगा ।]

27. करारों या प्रधानस्थिति के दुरुपयोग के संबंध में जांच के पश्चात् आयोग द्वारा आदेश-जहां जांच के पश्चात् आयोग यह पाता है कि धारा 3 में निर्दिष्ट कोई करार अथवा किसी प्रधानस्थिति वाले उद्यम का कार्य, यथास्थिति, धारा 3 या धारा 4 के उल्लंघन में है तो वह निम्नलिखित सभी या कोई आदेश पारित कर सकेगा-

(क) ऐसे करार या प्रधानस्थिति के दुरुपयोग में अंतर्वलित, यथास्थिति, उद्यम या उद्यम-संगम या व्यक्ति अथवा व्यक्ति-संगम को, यथास्थिति, ऐसे करार को बंद करने और पुनः न करने या ऐसी प्रधानस्थिति के दुरुपयोग को रोकने का निदेश देना;

() प्रत्येक ऐसे व्यक्ति या उद्यमों पर, जो ऐसे करारों या दुरुपयोग के पक्षकार हैं, ऐसी शास्ति अधिरोपित करना, जो वह उचित समझे किंतु वह गत तीन पूर्ववर्ती वित्तीय वर्षों के औसत व्यापारावर्त के दस प्रतिशत से अधिक नहीं होगी:

 [परंतु किसी उत्पादक संघ के साथ धारा 3 में निर्दिष्ट कोई करार किए जाने की दशा में, आयोग, उस उत्पादक संघ में सम्मिलित प्रत्येक उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता पर ऐसे करार के जारी रहने के प्रत्येक वर्ष के लिए उसके लाभ के तीन गुणा तक या ऐसे करार के जारी रहने के प्रत्येक वर्ष के लिए उसके आवर्त के दस प्रतिशत तक की इनमें से जो भी अधिक हो, शास्ति अधिरोपित कर सकेगा];

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(घ) यह निदेश देना कि करार उस सीमा तक और ऐसी रीति में उपांतरित हो जाएंगे जो आयोग द्वारा आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए;

(ङ) संबंधित उद्यमों को ऐसे अन्य आदेशों के अनुपालन करने का निदेश देना जो आयोग द्वारा पारित किए जाएं और ऐसे निदेशों का अनुपालन करना, जिसके अन्तर्गत खर्चों का संदाय, यदि कोई हो, भी हैं;

।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।             

(छ) ऐसा अन्य 1[आदेश पारित करना या ऐसे निदेश जारी करनाट जिसे वह उचित समझे:

 [परंतु इस धारा के अधीन आदेश पारित करते समय, यदि आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कोई उद्यम अधिनियम की धारा 3 या धारा 4 के उल्लंघन में अधिनियम की धारा 5 के स्पष्टीकरण के खंड () में यथापरिभाषित समूह का सदस्य है और ऐसे समूह के अन्य सदस्य भी ऐसे उल्लंघन के लिए उत्तरदायी हैं या उन्होंने ऐसे उल्लंघन में सहयोग किया है तो वह, इस धारा के अधीन, समूह के ऐसे सदस्यों के विरुद्ध आदेश पारित कर सकेगा ]

28. प्रधानस्थिति रखने वाले उद्यम का प्रभाजन-(1) [आयोगट] तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, लिखित रूप में आदेश द्वारा प्रधानस्थिति रखने वाले किसी ऐसे उद्यम के प्रभाजन का निदेश यह सुनिश्चित करने के लिए दे सकेगा कि ऐसा उद्यम अपनी प्रधानस्थिति का दुरुपयोग न करे ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उपधारा (1) में निर्दिष्ट आदेश निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-

(क)         संपत्ति, अधिकारों, उत्तरदायित्वों या बाध्यताओं का अंतरण या निहित होना;

() संविदाओं का समायोजन चाहे वह किसी उत्तरदायित्व या बाध्यता या अन्यथा के उन्मोचन द्वारा या कमी द्वारा हो;

(ग) किन्हीं शेयरों, स्टाकों या प्रतिभूतियों का सृजन, आबंटन, अभ्यर्पण या रद्दकरण;

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(ङ) किसी उद्यम का गठन या समापन अथवा किसी उद्यम के संगम-ज्ञापन या संगम-अनुच्छेद या उसके कारबार को विनियमित करने वाली किसी अन्य लिखत का संशोधन;

(च) वह विस्तार जहां तक और वे परिस्थितियां जिनमें आदेश के ऐसे उपबंध, जो उद्यम को प्रभावित करते हैं, उद्यम द्वारा परिवर्तित किए जा सकेंगे और उसका रजिस्ट्रीकरण;

(छ) कोई अन्य विषय जो उद्यम के प्रभाजन को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों ।

(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में या किसी संविदा में या किसी संगम-ज्ञापन या संगम-अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, कंपनी का ऐसा अधिकारी जो किसी उद्यम के प्रभाजन के परिणामस्वरूप उस रूप में पद पर नहीं रह जाता है ऐसे नहीं रह जाने के लिए किसी प्रतिकर का दावा करने का हकदार नहीं होगा ।

29. समुच्चयों के अन्वेषण के लिए प्रक्रिया-(1) जहां आयोग की [प्रथमदृष्ट्या] यह राय है कि किसी समुच्चय से भारत में सुसंगत बाजार के भीतर प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है या ऐसा प्रभाव पड़ा है, वहां वह समुच्चयों के पक्षकारों को कारण बताने के लिए कि ऐसे समुच्चय के संबंध में अन्वेषण क्यों नहीं किया जाना चाहिए, इस सूचना की प्राप्ति के तीस दिनों के भीतर, उत्तर देने के लिए जारी करेगा ।

[(1) आयोग, उपधारा (1) के अधीन समुच्चय के पक्षकारों के उत्तर प्राप्त होने के पश्चात् महानिदेशक से रिपोर्ट मांग सकेगा, और ऐसी रिपोर्ट महानिदेशक द्वारा ऐसे समय के भीतर, जो आयोग निदेशित करे, प्रस्तुत की जाएगी ]

(2) आयोग, यदि प्रथमदृष्ट्या उसकी यह राय है कि समुच्चय से प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या ऐसा प्रभाव पड़ने की संभावना है तो समुच्चय के पक्षकारों के उत्तर की प्राप्ति की तारीख से सात कार्य दिवस के भीतर [या महानिदेशक से उपधारा (1) के अधीन मांगी गई रिपोर्ट की प्राप्ति, इनमें से जो भी बाद में हो] उक्त समुच्चय के पक्षकारों को ऐसे निदेश से दस कार्य दिवसों के भीतर समुच्चय के ब्यौरे ऐसी रीति से, जो वह समुचित समझे, प्रकाशित करने का निदेश देगा जिससे समुच्चय को जनता की और ऐसे समुच्चयों से प्रभावित व्यक्तियों की या ऐसे व्यक्तियों की जिनके उनसे प्रभावित होने की संभावना है, जानकारी और सूचना में लाया जा सके

(3) आयोग, ऐसे किसी व्यक्ति या जनता के सदस्य को, जो उक्त समुच्चय से प्रभावित है या जिसके प्रभावित होने की संभावना है, उस तारीख से, जिसको समुच्चय के ब्यौरे उपधारा (2) के अधीन प्रकाशित किए गए थे, पन्द्रह कार्य दिवसों के भीतर आयोग के समक्ष अपना लिखित आक्षेप फाइल करने के लिए आमंत्रित कर सकेगा ।

(4) आयोग, उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पन्द्रह कार्य दिवसों के भीतर उक्त समुच्चय के पक्षकारों से ऐसी अतिरिक्त या अन्य सूचना, जो वह उचित समझे, मांग सकेगा ।

(5) आयोग द्वारा मांगी गई अतिरिक्त या अन्य सूचना उपधारा (4) में निर्दिष्ट पक्षकारों द्वारा उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पन्द्रह दिनों के भीतर दी जाएगी ।

(6) आयोग, सभी सूचनाओं की प्राप्ति के पश्चात् और उपधारा (5) में विहित अवधि की समाप्ति से पैंतालीस कार्य दिवसों की अवधि के भीतर धारा 31 में अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार मामले में कार्यवाही करने के लिए अग्रसर होगा

 [30. धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन सूचना की दशा में प्रक्रिया-जहां किसी व्यक्ति या उद्यम ने धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन सूचना दी है वहां आयोग ऐसी सूचना की जांच करेगा और धारा 29 की उपधारा (1) के अधीन उपबंधित रूप में अपनी प्रथमदृष्ट्या राय बनाएगा और उस धारा के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा ]

31. कतिपय समुच्चयों के संबंध में आयोग के आदेश-(1) जहां आयोग की यह राय है कि किसी समुच्चय से प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है या ऐसा होने की संभावना नहीं है वहां, वह, आदेश द्वारा समुच्चय का, ऐसे समुच्चय सहित जिसके संबंध में धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन सूचना दी गई है, अनुमोदन करेगा

(2) जहां आयोग की यह राय है कि समुच्चय से प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या ऐसा प्रभाव पड़ने की संभावना है वहां वह यह निदेश देगा कि उक्त समुच्चय प्रभाव में नहीं आएगा ।

(3) जहां आयोग की यह राय है कि समुच्चय से प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या ऐसा प्रभाव पड़ने की संभावना है किन्तु ऐसे प्रतिकूल प्रभाव से ऐसे समुच्चय में उपयुक्त उपांतरण करके बचा जा सकता है वहां वह ऐसे समुच्चय के पक्षकारों को समुच्चय में समुचित उपांतरण प्रस्थापित कर सकेगा ।

(4) ऐसे पक्षकार, जो उपधारा (3) के अधीन आयोग द्वारा प्रस्थापित उपांतरणों को स्वीकार करते हैं, आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर ऐसे उपांतरण को लागू करेंगे ।

(5) यदि समुच्चय के पक्षकार जिन्होंने उपधारा (4) के अधीन उपांतरण को स्वीकार किया है, आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर उपांतरण को लागू करने में असफल रहते हैं तो ऐसा समुच्चय प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला समझा जाएगा और आयोग ऐसे समुच्चय के संबंध में इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा

(6) यदि समुच्चय के पक्षकार उपधारा (3) के अधीन आयोग द्वारा प्रस्थापित उपांतरण को स्वीकार नहीं करते हैं तो ऐसे पक्षकार, आयोग द्वारा प्रस्थापित उपांतरण के तीस कार्य दिवसों के भीतर आयोग द्वारा उस उपधारा के अधीन प्रस्थापित उपांतरणों में संशोधन प्रस्तुत कर सकेंगे ।

(7) यदि आयोग, उपधारा (6) के अधीन पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए संशोधन से सहमत है तो वह आदेश द्वारा समुच्चय का अनुमोदन करेगा ।

(8) यदि आयोग, उपधारा (6) के अधीन प्रस्तुत संशोधनों को स्वीकार नहीं करता है तो पक्षकारों को अतिरिक्त तीस कार्य दिवसों की ऐसी और अवधि अनुज्ञात की जाएगी जिसके भीतर पक्षकार आयोग द्वारा उपधारा (3) के अधीन प्रस्थापित उपांतरणों को स्वीकार करेंगे ।

(9) यदि पक्षकार, आयोग द्वारा प्रस्थापित उपांतरण को स्वीकार करने में असफल रहते हैं तो उपधारा (6) में निर्दिष्ट तीस कार्य दिवसों के भीतर या उपधारा (8) में निर्दिष्ट अतिरिक्त तीस कार्य दिवसों के भीतर उक्त समुच्चय को पर्याप्त रूप से प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला समझा जाएगा और उस पर इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही की जाएगी । 

(10) जहां आयोग ने उपधारा (2) के अधीन यह निदेश दिया है कि समुच्चय प्रभावी नहीं होगा या समुच्चय को उपधारा (9) के अधीन पर्याप्त रूप से प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला समझा गया है वहां आयोग, ऐसी शास्ति पर, जो अधिरोपित की जाए या ऐसे अभियोजन पर, जो इस अधिनियम के अधीन आरंभ किया जाए, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, आदेश कर सकेगा कि, -

(क) धारा 5 के खंड (क) में निर्दिष्ट अर्जन; या

(ख) धारा 5 के खंड (ख) में निर्दिष्ट नियंत्रण अर्जित करना; या

(ग) धारा 5 के खण्ड (ग) में निर्दिष्ट विलयन या समामेलन, प्रभावी नहीं किया जाएगा:

परन्तु आयोग, यदि उपयुक्त समझता है तो, इस उपधारा के अधीन अपने आदेश को प्रभावी बनाने के लिए स्कीम बना सकेगा ।

(11) यदि आयोग, [धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन आयोग को दी गई सूचना की तारीख से दो सौ दस दिवसों] की अवधि की समाप्ति पर उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (7) के उपबंधों के अनुसार कोई आदेश पारित नहीं करता है या निदेश जारी नहीं करता है तो ऐसा समुच्चय आयोग द्वारा अनुमोदित किया गया समझा जाएगा

स्पष्टीकरण-इस उपधारा में विनिर्दिष्ट नब्बे कार्य दिवसों की अवधि अवधारित करने के प्रयोजन के लिए, उपधारा (6) में विनिर्दिष्ट तीस कार्य दिवसों की अवधि और उपधारा (8) में विनिर्दिष्ट 1[दो सौ दस कार्य दिवसों] की अतिरिक्त अवधि को अपवर्जित किया जाएगा ।

(12) जब समुच्चय के पक्षकारों द्वारा समय के किसी विस्तार की मांग की गई है तब नब्बे कार्य दिवसों की अवधि की गणना पक्षकारों के निवेदन पर मंजूर की गई विस्तारित अवधि को घटाने के पश्चात् की जाएगी ।

(13) जहां आयोग ने किसी समुच्चय के शून्य होने का आदेश दिया है वहां धारा 5 में निर्दिष्ट अर्जन या नियंत्रण अर्जित करना अथवा विलयन या समामेलन के संबंध में प्राधिकारियों द्वारा तत्समय प्रवृत्त अन्य विधि के अधीन इस प्रकार कार्यवाही की जाएगी मानो ऐसा अर्जन या नियंत्रण अर्जित करना अथवा विलयन या समामेलन हुआ ही न हो और समुच्चय के पक्षकारों के साथ तद्नुसार कार्यवाही की जाएगी ।

(14) इस अध्याय में की कोई बात ऐसी किसी कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी जो तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन आरम्भ की गई है या जो आरम्भ की जाए ।

32. भारत से बाहर किए गए ऐसे कार्य जिनका भारत में प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव पड़ता है-आयोग को, इस बात के होते हुए भी कि, -

(क) धारा 3 में निर्दिष्ट कोई करार भारत से बाहर किया गया है; या

(ख) ऐसे करार का कोई पक्षकार भारत से बाहर है; या

(ग) प्रधानस्थिति का दुरुपयोग करने वाला कोई उद्यम भारत से बाहर है; या

(घ) कोई समुच्चय भारत के बाहर अस्तित्व में आया है; या

(ङ) समुच्चय का कोई पक्षकार भारत से बाहर है; या

(च) ऐसे करार या प्रधानस्थिति या समुच्चय से उद्भूत कोई अन्य विषय या व्यवहार या कार्य भारत से बाहर है,

ऐसे करारों या प्रधानस्थिति के दुरुपयोग या समुच्चय की [अधिनियम की धारा 19, धारा 20, धारा 26, धारा 29 और धारा 30 के उपबंधों के अनुसार जांच करने की शक्तियां होंगी] यदि ऐसे करार, प्रधानस्थिति या समुच्चय से भारत में सुसंगत बाजार में प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है या पड़ने की संभावना है [और इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार ऐसे आदेश पारित करने की जिन्हें वह ठीक समझे, शक्तियां होंगी ।]

 [33. अन्तरिम आदेश जारी करने की शक्ति-जहां जांच के दौरान आयोग का यह समाधान हो जाता है कि धारा 3 की उपधारा (1) या धारा 4 की उपधारा (1) या धारा 6 के उल्लंघन में कोई कार्य किया गया है और उसका किया जाना जारी है या ऐसा कार्य किया जाने वाला है, वहां आयोग, आदेश द्वारा किसी पक्षकार को ऐसा कोई कार्य करने से, जहां वह इसे आवश्यक समझे, ऐसे पक्षकार को सूचना दिए बिना, ऐसी जांच के पूरा होने तक या आगे आदेशों तक, अस्थायी रूप से रोक सकेगा ।]

।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

35. आयोग के समक्ष उपसंजात होना-कोई [व्यक्ति या उद्यम] या महानिदेशक आयोग के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए या तो स्वयं उपसंजात हो सकेगा या एक या अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंटों या कंपनी सचिवों या लागत लेखापालों या विधि व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारी को प्राधिकृत कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजन के लिए-

(क) चार्टर्ड अकाउंटेंट" से चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 (1949 का 38) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ख) में यथापरिभाषित चार्टर्ड अकाउंटेंट अभिप्रेत है, जिसने उस अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन व्यवसाय प्रमाणपत्र अभिप्राप्त कर लिया है;

(ख) कंपनी सचिव" से कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 (1980 का 56) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ग) में यथापरिभाषित कंपनी सचिव अभिप्रेत है, जिसने उस अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन व्यवसाय प्रमाणपत्र अभिप्राप्त कर लिया है;

(ग) लागत लेखापाल" से लागत और संकर्म लेखापाल अधिनियम, 1959 (1959 का 23) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ख) में यथापरिभाषित लागत लेखापाल अभिप्रेत है, जिसने उस अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन व्यवसाय प्रमाणपत्र अभिप्राप्त कर लिया है; 

(घ) विधि व्यवसायी" से कोई अधिवक्ता, वकील या किसी उच्च न्यायालय का कोई अटर्नी अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत व्यवसायरत प्लीडर भी है ।

 [36. आयोग की अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति-(1) आयोग अपने कृत्यों के निर्वहन में, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत से मार्गदर्शित होगा और इस अधिनियम के अन्य उपबंधों और केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, आयोग को अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्तियां होंगी ।

(2) आयोग को, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजनों के लिए, वही शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों की बाबत किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्: -

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसको हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

(ख) दस्तावेजों की खोज और उनको प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना;

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य लेना;

(घ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

(ङ) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी कार्यालय से कोई लोक अभिलेख या दस्तावेज या ऐसे अभिलेख या दस्तावेज की प्रति अध्यपेक्षित करना ।

(3) आयोग, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, लेखाकर्म, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र से या किसी अन्य विद्या से ऐसे विशेषज्ञ बुला सकेगा, जो उसके द्वारा किसी जांच के संचालन में आयोग की सहायता के लिए वह आवश्यक समझे ।

(4) आयोग किसी व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह-

(क) इस प्रकार निदेशित ऐसे किसी व्यक्ति की अभिरक्षा में की या उसके नियंत्रण के अधीन की ऐसी बहियां या अन्य दस्तावेज, जो निदेश में विनिर्दिष्ट या वर्णित हों और जो किसी व्यापार से संबंधित दस्तावेज हों जिनका परीक्षण इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अपेक्षित हो, महानिदेशक या सचिव या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी के समक्ष पेश करे;

() महानिदेशक या सचिव या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी को व्यापार के संबंध में या ऐसे व्यक्ति द्वारा किए जा रहे व्यापार के संबंध में उसके कब्जे में की ऐसी जानकारी दे जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अपेक्षित हो ]

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

38. आदेशों की परिशुद्धि-(1) आयोग, अभिलेख से प्रकट किसी त्रुटि की परिशुद्धि करने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन उसके द्वारा पारित किसी आदेश में संशोधन कर सकेगा ।

(2) आयोग, इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए-

(क) स्वप्रेरणा से उपधारा (1) के अधीन संशोधन कर सकेगा;

() ऐसी किसी त्रुटि की जो आदेश के किसी पक्षकार द्वारा उसके ध्यान में लाई जाए, परिशुद्धि के लिए संशोधन कर सकेगा

स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि आयोग, अभिलेख से प्रकट किसी भूल को परिशोधित करते समय, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन पारित अपने आदेश के किसी सारवान् भाग का संशोधन नहीं करेगा

 [39. धनीय शास्ति अधिरोपित करने वाले आयोग के आदेशों का निष्पादन-(1) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन उस पर अधिरोपित किसी धनीय शास्ति का संदाय करने में असफल रहता है तो आयोग ऐसी शास्ति की वसूली करने के लिए ऐसी रीति में जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, कार्यवाही करेगा ।

(2) उस दशा में जहां आयोग की यह राय है कि यह समीचीन होगा कि इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित शास्ति की वसूली आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के उपबंधों के अनुसार की जाए, वहां वह उक्त अधिनियम के अधीन देय कर के रूप में शास्ति की वसूली के लिए उस अधिनियम के अधीन संबद्ध आय-कर प्राधिकारी को इस आशय का निर्देश कर सकेगा ।

(3) जहां शास्ति की वसूली के लिए उपधारा (2) के अधीन आयोग द्वारा कोई निर्देश किया गया है वहां वह व्यक्ति, जिस पर शास्ति अधिरोपित की गई है, आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के अधीन व्यतिक्रमी निर्धारिती समझा जाएगा, और उक्त अधिनियम की धारा 221 से धारा 227, धारा 228क, धारा 229, धारा 231 और धारा 232 और उस अधिनियम की दूसरी अनुसूची तथा उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों में अंतर्विष्ट उपबंध जहां तक हो सके वे इस प्रकार लागू होंगे मानो उक्त उपबंध इस अधिनियम के उपबंध हों और आय-कर अधिनियम के स्थान पर इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित शास्ति के रूप में राशियों और आय-कर अधिनियम, 1961 के अधीन शास्ति, जुर्माने और ब्याज के रूप में अधिरोपित राशियों तथा निर्धारण अधिकारी के स्थान पर आयोग के प्रतिनिर्देश किया गया हो ।             

स्पष्टीकरण-उस अधिनियम के उक्त उपबंधों में या उसके अधीन बनाए गए नियमों में आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 220 की उपधारा (2) या उपधारा (6) के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम की धारा 43 से धारा 45 के प्रतिनिर्देश है ।

स्पष्टीकरण 2-आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) में निर्दिष्ट कर वसूली आयुक्त और कर वसूली अधिकारी इस अधिनियम के अधीन शास्ति के रूप में अधिरोपित राशियों की वसूली के प्रयोजनों के लिए कर वसूली आयुक्त और कर वसूली अधिकारी समझे जाएंगे और उपधारा (2) के अधीन आयोग द्वारा किया गया निर्देश जहां तक इस अधिनियम के अधीन शास्ति से संबंधित मांग का संबंध है, कर वसूली अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र तैयार करने की कोटि में आएगा ।

स्पष्टीकरण 3-आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के अध्याय 17घ और दूसरी अनुसूची में अपील के प्रति किसी निर्देश का, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम की धारा 53ख के अधीन प्रतिस्पर्धा अपील अधिकरण के समक्ष अपील के प्रतिनिर्देश है ।]

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

अध्याय 5

महानिदेशक के कर्तव्य

41. महानिदेशक द्वारा उल्लंघनों का अन्वेषण किया जाना-(1) महानिदेशक, जब आयोग द्वारा इस प्रकार निदेश दिया जाए, इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों या विनियमों के उपबंधों के किसी उल्लंघन के अन्वेषण में आयोग की सहायता करेगा ।

(2) महानिदेशक को वे शक्तियां होंगी जो धारा 36 की उपधारा (2) के अधीन आयोग को प्रदत्त की गई हैं ।

(3) उपधारा (2) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 240 और धारा 240, जहां तक हो सके, महानिदेशक या उसके प्राधिकार के अधीन अन्वेषण कर रहे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए अन्वेषण को उसी प्रकार लागू होंगी जैसे वे उस अधिनियम के अधीन नियुक्ति किसी निरीक्षक को लागू होती है

 [स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -

(क) कंपनी अधिनियम, 1956 1956 (1956 का 1) की धारा 240 के अधीन केंद्रीय सरकार" शब्दों का अर्थ आयोग" के रूप में लगाया जाएगा;

(ख) कंपनी अधिनियम, 1956 1956 (1956 का 1) की धारा 240क के अधीन मजिस्ट्रेट" शब्द का अर्थ मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट दिल्ली" के रूप में लगाया जाएगा ।]

अध्याय 6

शास्तियां

 [42. आयोग के आदेशों का उल्लंघन-(1) आयोग, अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए किए गए अपने आदेशों या निदेशों के अनुपालन की जांच करा सकेगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना, अधिनियम की धारा 27, धारा 28, धारा 31, धारा 32, धारा 33, धारा 42 और धारा 43 के अधीन निकाले गए आयोग के आदेशों या निदेशों का अनुपालन करने में असफल रहेगा तो वह जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान ऐसा अननुपालन होता है, दस करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए जैसा आयोग अवधारित करे, एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा

(3) यदि कोई व्यक्ति निकाले गए आदेशों या निदेशों का अनुपालन नहीं करेगा या उपधारा (2) के अधीन अधिरोपित जुर्माने का संदाय करने में असफल रहेगा तो वह धारा 30 के अधीन किसी कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो 25 करोड़ रुपए तक हो सकेगा या दोनों से, जैसा मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, दिल्ली, उपयुक्त समझे, दंडनीय होगा:

परन्तु मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, दिल्ली, आयोग या उसके द्वारा प्राधिकृत उसके किसी अधिकारी द्वारा फाइल किए गए किसी परिवाद पर के सिवाय, इस धारा के अधीन किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा ।]

 [42क. आयोग के आदेशों के उल्लंघन की दशा में प्रतिकर-इस अधिनियम के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कोई व्यक्ति, आयोग द्वारा जारी किए गए निदेशों का उक्त उद्यम द्वारा अतिक्रमण किए जाने या धारा 27, धारा 28, धारा 31, धारा 32 और धारा 33 के अधीन निकाले गए आयोग के किसी विनिश्चय या आदेश का या किसी शर्त या निर्बंधन का जिसके अध्यधीन इस अधिनियम के अधीन किसी विषय के संबंध में कोई अनुमोदन किया गया है, मंजूरी दी गई है, निदेश किया गया है या छूट अनुदत्त की गई है, किसी युक्तियुक्त आधार के बिना, उल्लंघन किए जाने या आयोग के ऐसे आदेशों या निदेशों को कार्यान्वित करने में विलंब किए जाने के फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति को हुई किसी दर्शित हानि या नुकसान के लिए उक्त उद्यम से प्रतिकर की वसूली के लिए किसी आदेश के लिए अपील अधिकरण को आवेदन कर सकेगा ।]

 [43. आयोग और महानिदेशक के निदेशों का अनुपालन करने में असफलता के लिए शास्ति-यदि कोई व्यक्ति-

(क) धारा 36 की उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन आयोग द्वारा; या

(ख) महानिदेशक द्वारा, जब वह धारा 41 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो,

दिए गए निदेश का किसी युक्तियुक्त कारण के बिना पालन करने में असफल रहता है तो ऐसा व्यक्ति जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान असफलता जारी रहती है, एक करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए, जैसा आयोग द्वारा अवधारित किया जाए, एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।]

 [43क. समुच्चयों के संबंध में जानकारी देने के लिए शास्ति अधिरोपित करने की शक्ति-यदि कोई व्यक्ति या उद्यम, धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन आयोग को सूचना देने में असफल रहता है, तो आयोग ऐसे व्यक्ति या उद्यम पर, ऐसी शास्ति, जो ऐसे समुच्चय के कुल आवर्त या उसकी आस्तियों के, इनमें से जो भी अधिक हो, एक प्रतिशत तक की हो सकेगी, अधिरोपित करेगा ।]

44. मिथ्या कथन करने या तात्त्विक सूचना प्रस्तुत करने में लोप के लिए शास्ति-यदि ऐसा कोई व्यक्ति जो किसी समुच्चय का पक्षकार है, -

(क) किसी तात्त्विक विशिष्टि में कोई मिथ्या कथन करता है या यह जानते हुए करता है कि वह मिथ्या है; या

(ख) किसी तात्त्विक विशिष्टि का, यह जानते हुए कि वह तात्त्विक है, कथन करने में लोप करता है,

तो ऐसा व्यक्ति ऐसी शास्ति के लिए दायी होगा जो पचास लाख रुपए से कम नहीं होगी किन्तु जो एक करोड़ रुपए तक हो सकेगी जैसा आयोग द्वारा अवधारित किया जाए ।

 [45. जानकारी के प्रस्तुतीकरण से संबंधित अपराधों के लिए शास्ति-(1) धारा 44 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन किन्हीं विशिष्टियों, दस्तावेजों या किसी जानकारी को प्रस्तुत करता है; या प्रस्तुत किए जाने की जिससे अपेक्षा की जाती है, -

(क) कोई ऐसा कथन करता है, या कोई ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत करता है जिसको वह जानता है या उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि किन्हीं तात्त्विक विशिष्टियों में वह मिथ्या है; या

(ख) किसी तात्त्विक तथ्य का, यह जानते हुए कि वह तात्त्विक है, कथन करने में लोप करता है; या

(ग) किसी दस्तावेज में जिसको पूर्वोक्त के अनुसार प्रस्तुत करना अपेक्षित है जानबूझकर फेरबदल करता है, छिपाता है या उसे नष्ट करता है,

तो ऐसा व्यक्ति, जुर्माने से जो एक करोड़ रुपए तक का हो सकेगा, जैसा आयोग द्वारा अवधारित किया जाए, दंडनीय होगा ]

(2) उपधारा (1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, आयोग, ऐसा अन्य आदेश भी पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे

46. कम शास्ति अधिरोपित करने की शक्ति-आयोग, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि उक्त व्यापार संघ में सम्मिलित किसी उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता ने, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने धारा 3 का अतिक्रमण किया है, अभिकथित अतिक्रमण की बाबत पूर्ण सत्य प्रकटन किया है, और ऐसा प्रकटन महत्वपूर्ण है, ऐसे उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता पर इस अधिनियम या नियमों या विनियमों के अधीन उद्ग्रहणीय शास्ति से कम ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा जिसे वह ठीक समझे :

 [परंतु आयोग द्वारा ऐसे मामलों में कम शास्ति अधिरोपित नहीं की जाएगी जिनमें ऐसा प्रकटन करने से पूर्व धारा 26 के अधीन निदेशित अन्वेषण की रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है:]

परंतु यह और कि आयोग द्वारा व्यापार संघ में सम्मिलित ऐसे किसी उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता की बाबत 3[जिसने] इस धारा के अधीन पूर्ण, सत्य और महत्वपूर्ण प्रकटन 3[किया है], कम शास्ति अधिरोपित की जाएगी:

 [परंतु यह भी कि आयोग द्वारा कम शास्ति अधिरोपित नहीं की जाएगी यदि प्रकटन करने वाला व्यक्ति आयोग के समक्ष कार्यवाहियों के पूरा होने तक आयोग का सहयोग करना जारी नहीं रखता है:]

परंतु यह भी कि आयोग, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि व्यापार संघ में सम्मिलित ऐसे उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता ने, -

() कार्यवाहियों के दौरान उस शर्त का पालन नहीं किया था, जिस पर आयोग द्वारा कम शास्ति अधिरोपित की गई थी; या

(ख) उसने मिथ्या साक्ष्य दिया था; या

(ग) किया गया प्रकटन महत्वपूर्ण नहीं है,

और तदुपरांत ऐसे उत्पापक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता का ऐसे अपराध के लिए विचारण किया जा सकेगा, जिसकी बाबत कम शास्ति अधिरोपित की गई थी और वह ऐसी शास्ति अधिरोपित किए जाने का भी दायी होगा जिसके लिए, यदि कम शास्ति अधिरोपित नहीं की गई होती, तो वह दायी होता ।

47. शास्तियों के रूप में वसूल की गई धनराशि का भारत की संचित निधि में जमा किया जाना-इस अधिनियम के अधीन शास्तियों के रूप में वसूल की गई सभी धनराशियां भारत की संचित निधि में जमा की जाएंगी ।

48. कंपनियों द्वारा उल्लंघन-(1) जहां, इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम, विनियम, आदेश या जारी किए गए निदेश के किसी उपबंध का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति कंपनी है, वहां ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो उल्लंघन किए जाने के समय कंपनी के कारबार के संचालन के लिए कंपनी का, भारसाधाक था और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी, ऐसे उल्लंघन के लिए दोषी माने जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के दायी होंगे:

परंतु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को किसी दण्ड का दायी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि उल्लंघन उसकी जानकारी के बिना हुआ था या उसने ऐसे उल्लंघन को रोकने के लिए सभी सम्यक् सावधानी बरती थी

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम, विनियम, आदेश या जारी किए गए निदेश के किसी उपबंध का कोई उल्लंघन किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो गया है कि ऐसा उल्लंघन कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या किसी अन्य अधिकारी की सहमति से या मौनानुकूलता से हुआ है या उनकी ओर से जानबूझकर की गई किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस उल्लंघन का दोषी समझा जाएगा और वह तद्नुसार उसके विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

() कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कोई फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; और

(ख) फर्म के संबंध में निदेशक" से फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

अध्याय 7

प्रतिस्पर्धा समर्थन

49. प्रतिस्पर्धा समर्थन- [(1) केंद्रीय सरकार, प्रतिस्पर्धा (प्रतिस्पर्धा से संबंधित विधियों के पुनर्विलोकन सहित) या किसी अन्य विषय के संबंध में कोई नीति विरचित करते समय और राज्य सरकार, यथास्थिति, प्रतिस्पर्धा संबंधी या किसी अन्य विषय संबंधी कोई नीति विरचित करते समय, प्रतिस्पर्धा संबंधी ऐसी नीति के संभावित प्रभाव के संबंध में आयोग को उसकी राय लेने के लिए निर्देश कर सकेगी और ऐसे निर्देश की प्राप्ति पर, आयोग ऐसा निर्देश करने के साठ दिन के भीतर, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार को अपनी राय देगा, जो तत्पश्चात् आगे ऐसी कार्यवाई कर सकेगी, जो वह ठीक समझे ।]

(2) आयोग द्वारा उपधारा (1) के अधीन दी गई राय, ऐसी नीति विरचित करते समय 1[यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार] पर आबद्धकर नहीं होगी ।

(3) आयोग, प्रतिस्पर्धा समर्थन के संप्रवर्तन, प्रतिस्पर्धा के मुद्दों के प्रति जागरुकता पैदा करने और प्रशिक्षण देने के लिए सृजित किए जाने वाले उपयुक्त उपाय करेगा ।

अध्याय 8

वित्त, लेखा और लेखापरीक्षा

50. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान-केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, ऐसी धनराशियों का आयोग को अनुदान कर सकेगी, जो सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए उचित समझे ।

51. निधि का गठन-(1) एक निधि गठित की जाएगी जिसे प्रतिस्पर्धा निधि" कहा जाएगा और उसमें निम्नलिखित रकमें जमा की जाएंगी-

(क) आयोग द्वारा प्राप्त सभी सरकारी अनुदान;

।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।             

(ग) इस अधिनियम के अधीन प्राप्त फीस;

(घ) [खंड (क) और (ग)] में निर्दिष्ट रकमों पर प्रोद्भूत ब्याज ।

(2) निधि निम्नलिखित के लिए उपयोजित की जाएगी-

() अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा प्रशासनिक व्यय जिसके अंतर्गत महानिदेशक, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, रजिस्ट्रार तथा आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं;

(ख) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए और आयोग के कृत्यों के निर्वहन से संबंधित अन्य व्यय ।

(3) निधि का प्रशासन, आयोग के ऐसे सदस्यों की समिति द्वारा किया जाएगा जिसका अवधारण अध्यक्ष द्वारा किया जाए

(4) उपधारा (3) के अधीन नियुक्त समिति निधि में से उन उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए, जिनके लिए निधि का गठन किया गया है, धन खर्च करेगी ।

52. लेखा और लेखापरीक्षा-(1) आयोग उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा तथा लेखाओं का वार्षिक विवरण ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाए

(2) आयोग के लेखाओं की भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर लेखापरीक्षा कराई जाएगी जैसा उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए और ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय आयोग द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।

स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि आयोग के आदेश, जो [अपील अधिकरण या उच्चतम न्यायालय] को अपीलीय विषय होंगे, इस धारा के अधीन लेखापरीक्षा के अध्यधीन नहीं होंगे ।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और उनके द्वारा आयोग के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में वही अधिकार, विशेषाधिकार तथा प्राधिकार प्राप्त होंगे जो साधारणतया भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के सरकार के लेखाओं की लेखापरीक्ष के संबंध में हैं और विशेषतया पुस्तकों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागजपत्रों को पेश किए जाने की मांग करने का तथा आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।

(4) आयोग के लेखे जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उनके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रमाणित किए जाएं, उन पर लेखापरीक्षा रिपोर्ट के साथ प्रतिवर्ष केंद्रीय सरकार को भेजे जाएंगे और सरकार उसे संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

53. केन्द्रीय सरकार को विवरणियां, आदि प्रस्तुत किया जाना-(1) आयोग, केन्द्रीय सरकार को ऐसे समय पर और ऐसे प्ररूप और रीति में, जो विहित की जाए या जैसा केन्द्रीय सरकार निदेश दे, ऐसी विवरणियां और विवरण तथा प्रतिस्पर्धा समर्थन के संवर्धन, प्रतिस्पर्धा संबंधी विषयों के बारे में जागरुकता पैदा करने और प्रशिक्षण देने के लिए किन्हीं प्रस्तावित या विद्यमान उपायों के संबंध में ऐसी विशिष्टियां पेश करेगा जिसकी केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, अपेक्षा करे

(2) आयोग प्रत्येक वर्ष में एक बार, पूर्ववर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का सही और पूर्ण लेखा देते हुए वार्षिक रिपोर्ट ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय में तैयार करेगा जो विहित किए जाएं और ऐसी रिपोर्ट की प्रतियां केन्द्रीय सरकार को भेजी जाएंगी ।

(3) उपधारा (2) के अधीन प्राप्त की गई रिपोर्ट की प्रति उसकी प्राप्ति के तुरंत बाद संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।

[अध्याय 8

प्रतिस्पर्धा अपील अधिकरण

53क. अपील अधिकरण की स्थापना-(1) केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित के लिए अधिसूचना द्वारा प्रतिस्पर्धा अपील अधिकरण के नाम से ज्ञात एक अपील अधिकरण की स्थापना करेगी-

() आयोग द्वारा इस अधिनियम की धारा 26 की उपधारा (2) और उपधारा (6), धारा 27, धारा 28, धारा 31, धारा 32, धारा 33, धारा 38, धारा 39 धारा 43, धारा 43, धारा 44, धारा 45 या धारा 46 के अधीन जारी किए गए किसी निदेश या किए गए विनिश्चय या पारित किए गए आदेश के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करना और उनका निपटारा करना;

() प्रतिकर के लिए उन दावों के संबंध में न्यायनिर्णयन करना, जो आयोग के निष्कर्षों से या आयोग के किसी निष्कर्ष के विरुद्ध किसी अपील में अपील अधिकरण के आदेशों से या इस अधिनियम की धारा 42 के अधीन या धारा 53 की उपधारा (2) के अधीन उद्भूत हो, और इस अधिनियम की धारा 53 के अधीन प्रतिकर की वसूली के लिए आदेश पारित करना

(2) अपील अधिकरण का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे

53ख. अपील अधिकरण को अपील-(1) धारा 53क के खंड (क) में निर्दिष्ट किसी निदेश, विनिश्चय या आदेश से व्यथित केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या कोई स्थानीय प्राधिकारी या उद्यम या कोई व्यक्ति अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अपील उस तारीख से, जिसको आयोग द्वारा दिए गए निदेश या किए गए विनिश्चय या पारित आदेश की प्रति केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या उद्यम या उस उपधारा में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को प्राप्त होती है, साठ दिन की अवधि के भीतर फाइल की जाएगी और वह ऐसे प्ररूप में होगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी, जो विहित की जाए:

परंतु अपील अधिकरण साठ दिन की उक्त अवधि के अवसान के पश्चात् भी किसी अपील को ग्रहण कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि उस अवधि के भीतर उसके फाइल न किए जाने के पर्याप्त कारण थे ।

(3) अपील अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन किसी अपील के प्राप्त होने पर अपील के पक्षकारों को सुने जाने का अवसर दिए जाने के पश्चात्, उस पर ऐसे निदेश, विनिश्चय या आदेश जिसके विरुद्ध अपील की गई है, की पुष्टि करते हुए, उस उपांतरित करते हुए या अपास्त करते हुए ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो वह ठीक समझे ।

(4) अपील अधिकरण उसके द्वारा किए गए प्रत्येक आदेश की प्रति आयोग और अपील के पक्षकारों को भेजेगा ।

(5) अपील अधिकरण के समक्ष उपधारा (1) के अधीन फाइल की गई अपील पर उसके द्वारा यथासंभव शीघ्रता से कार्रवाई की जाएगी और उसके द्वारा अपील की प्राप्ति की तारीख से छह मास के भीतर अपील का निपटारा किए जाने का प्रयास किया जाएगा ।

53अपील अधिकरण की संरचना-अपील अधिकरण एक अध्यक्ष और दो से अनधिक ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।

53अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हताएं-(1) अपील अधिकरण का अध्यक्ष वह व्यक्ति होगा, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति है या रहा है ।

(2) अपील अधिकरण का सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाला ऐसा व्यक्ति होगा जिसके पास प्रतिस्पर्धा संबंधी विषयों का, जिनके अंतर्गत प्रतिस्पर्धा विधि और नीति, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखाकर्म, प्रबंध, उद्योग, लोक कार्य, प्रशासन भी हैं या किसी ऐसे अन्य विषय का जो केन्द्रीय सरकार की राय में अपील अधिकरण के लिए उपयोगी हो, कम-से-कम पच्चीस वर्ष का विशेष ज्ञान और उनमें वृत्तिक अनुभव है

53चयन समिति-(1) अपील अधिकरण का अध्यक्ष और सदस्य, केंद्रीय सरकार द्वारा, ऐसी चयन समिति द्वारा सिफारिश किए गए नामों के पैनल से नियुक्त किए जाएंगे, जो निम्नलिखित से मिल कर बनेगी, -

(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या उसका नामनिर्देशिती-अध्यक्ष;

(ख) सचिव, कार्पोरेट कार्य मंत्रालय-सदस्य;

(ग) सचिव, विधि और न्याय मंत्रालय-सदस्य ।

(2) चयन समिति की अवधि और नामों के पैनल के चयन की रीति वह होगी जो विहित की जाए ।

53च. अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि-अपील अधिकरण का अध्यक्ष या सदस्य उस तारीख से जिसको वह पद भार ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि तक उस रूप में पद धारण करेगा और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होगा:

परंतु अपील अधिकरण का कोई अध्यक्ष या अन्य सदस्य, -

(क)         अध्यक्ष की दशा में, अड़सठ वर्ष की आयु;

(ख)        अपील अधिकरण के किसी अन्य सदस्य की दशा में, पैंसठ वर्ष की आयु, प्राप्त करने के पश्चात् उस रूप में पद धारण नहीं करेगा ।

53छ. अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें-(1) अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएं ।

(2) अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् उनके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किए जाएंगे ।

53ज. रिक्तियां-यदि, अस्थायी अनुपस्थिति से भिन्न किसी कारण से, अपील अधिकरण के अध्यक्ष या किसी सदस्य के पद में कोई रिक्ति उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार रिक्ति को भरने के लिए इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करेगी और अपील अधिकरण के समक्ष कार्यवाहियां उस प्रक्रम से जिस पर रिक्ति भरी गई हैं, जारी रखी जा सकेगी ।

53झ. अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का पदत्याग-अपील अधिकरण का अध्यक्ष या सदस्य, केन्द्रीय सरकार को संबोधित स्वहस्ताक्षरित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा:

परंतु अपील अधिकरण का अध्यक्ष या कोई सदस्य, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा अपना पद उससे पहले छोड़ने की अनुज्ञा न दे दी गई हो, ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीन मास की समाप्ति तक या उसके पद उत्तरवर्ती के रूप में सम्यक् रूप से नियुक्त व्यक्ति द्वारा पद ग्रहण करने तक या उसकी पदावधि समाप्त होने तक इनमें से जो भी पूर्वतम हो, पद धारण करता रहेगा ।

53ञ. कतिपय मामलों में सदस्य का अपील अधिकरण के अध्यक्ष के रूप में कार्य करना-(1) अपील अधिकरण के अध्यक्ष का पद, उसकी मृत्यु या पद त्याग के कारण, रिक्त होने की दशा में, अपील अधिकरण का ज्येष्ठतम सदस्य अपील अधिकरण के अध्यक्ष के रूप में उस तारीख तक कार्य करेगा, जिसको ऐसी रिक्ति को भरने के लिए अधिनियम के उपबंधों के अनुसार नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया जाता और वह अपना पद भार ग्रहण कर लेता है

(2) जब अपील अधिकरण का अध्यक्ष अनुपस्थिति, रुग्णता या किसी अन्य कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब, यथास्थिति, ज्येष्ठतम सदस्य या अपील अधिकरण का ऐसा कोई सदस्य जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत करे, अध्यक्ष के कृत्यों का उस तारीख तक निर्वहन करेगा जिसको अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता है ।

53ट. अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का हटाया जाना और निलंबन-(1) केन्द्रीय सरकार, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, अपील अधिकरण के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को पद से हटा सकेगी जो, -

(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया गया है; या

(ख) अपनी पदावधि के दौरान किसी समय किसी संवेतन नियोजन में रहा है; या

() किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसमें, केन्द्रीय सरकार की राय में, नैतिक अधमता अन्तर्वलित है; या

(घ) अपील अधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में कार्य करने में शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से असमर्थ हो गया है; या

(ङ) जिसने ऐसा वित्तीय या अन्य हित अर्जित कर लिया है जिससे अपील अधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है; या

() जिसने अपने पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है जिससे उसके पद पर बने रहने से लोकहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा

(2) उपधारा (1) में, किसी बात के होते हुए भी, अपील अधिकरण का अध्यक्ष या कोई सदस्य, उपधारा (1) के खण्ड (ङ) या खण्ड (च) में विनिर्दिष्ट आधार पर अपने पद से, सिवाय केन्द्रीय सरकार के किसी ऐसे आदेश से जो इस निमित्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की गई किसी जांच के पश्चात् किया गया हो, जिसमें ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को उसके विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई हो और उन आरोपों की बाबत उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया गया हो, नहीं हटाया जाएगा ।

53ठ. कतिपय मामलों में अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नियोजन पर निर्बन्धन-अपील अधिकरण का अध्यक्ष और अन्य सदस्य, उस तारीख से जिसको वे पद पर नहीं रहते हैं, दो वर्ष की अवधि के लिए ऐसे किसी उद्यम में जो इस अधिनियम के अधीन अपील अधिकरण के समक्ष कार्यवाही में पक्षकार रहा है या उसके प्रबन्ध या प्रशासन से संबंधित कोई नियोजन स्वीकार नहीं करेंगे:

परन्तु इस धारा की कोई बात केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन या किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रादेशिक अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित स्थानीय प्राधिकारी या किसी कानूनी प्राधिकारी या किसी निगम या कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथापरिभाषित किसी सरकारी कम्पनी में किसी नियोजन को लागू नहीं होगी

53ड. अपील अधिकरण के कर्मचारिवृन्द-(1) केन्द्रीय सरकार, अपील अधिकरण को उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जो वह ठीक समझे ।

(2) अपील अधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी अपने कृत्यों का निर्वहन अपील अधिकरण के अध्यक्ष के साधारण अधीक्षण और नियंत्रण के अधीन करेंगे ।

(3) अपील अधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।

53ढ. प्रतिकर का दिया जाना-(1) इस अधिनियम के किन्हीं अन्य उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या कोई उद्यम या कोई व्यक्ति अपील अधिकरण को ऐसे प्रतिकर के दावे का न्यायनिर्णयन करने के लिए, जो आयोग के निष्कर्षों या आयोग के किसी निष्कर्ष के विरुद्ध किसी अपील में अपील अधिकरण के आदेशों या अधिनियम की धारा 42 के अधीन या धारा 53 की उपधारा (2) के अधीन उद्भूत होता है, और किसी उद्यम द्वारा किए गए अध्याय 2 के उपबंधों के किसी उल्लंघन के परिणामस्वरूप केन्द्रीय सरकार, या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या किसी उद्यम या किसी व्यक्ति को हुई किसी हानि या नुकसानी के लिए उस उद्यम से प्रतिकर की वसूली के लिए आदेश पारित करने के लिए आवेदन कर सकेगा

(2) उपधारा (1) के अधीन किए गए प्रत्येक आवेदन के साथ आयोग के निष्कर्ष, यदि कोई हों, होंगे और ऐसी फीस भी होगी जो विहित की जाए ।

(3) अपील अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन किए गए आवेदन में वर्णित अभिकथनों की, जांच करने के पश्चात्, ऐसे उद्यम द्वारा किए गए अध्याय 2 के उपबंधों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप आवेदक को हुई हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर के रूप में उद्यम से वसूलनीय उसके द्वारा अवधारित रकम का आवेदक को संदाय करने के लिए उद्यम को निदेश देते हुए आदेश पारित कर सकेगा:

परंतु अपील अधिकरण प्रतिकर का कोई आदेश पारित करने से पूर्व आयोग की सिफारिश अभिप्राप्त कर सकेगा

(4) जहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई हानि या नुकसान वैसा ही हित रखने वाले अनेक व्यक्तियों को होता है वहां ऐसे व्यक्तियों में से एक या अधिक व्यक्ति, अपील अधिकरण की अनुज्ञा से उस उपधारा के अधीन इस प्रकार हितबद्ध व्यक्तियों के लिए और उनकी ओर से या उनके लाभ के लिए आवेदन कर सकेंगे और तदुपरि पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5)की पहली अनुसूची के आदेश 1 के नियम 8 के उपबंध इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होंगे कि उनमें किसी वाद या डिक्री के प्रति प्रत्येक निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह अपील अधिकरण के समक्ष आवेदन और उस अपील अधिकरण के आदेश के प्रति निर्देश है ।

स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए, यह घोषित किया जाता है कि, -

(क) अपील अधिकरण के समक्ष प्रतिकर के लिए आवेदन केवल अधिनियम की धारा 53क की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन या तो आयोग या अपील अधिकरण द्वारा उसके समक्ष कार्यवाही में यह अवधारित किए जाने के पश्चात् ही किया जा सकेगा कि अधिनियम के उपबंधों का अतिक्रमण हुआ है या यदि धारा 42क या धारा 53थ की उपधारा (2) के उपबंध लागू होते हैं;

() उपधारा (3) के अधीन की जाने वाली जांच, प्रतिकर के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति की पात्रता और उसको शोध्य प्रतिकर की मात्रा का अवधारण करने के प्रयोजनों के लिए होगी और कि आयोग या अपील अधिकरण के निष्कर्षों की इस बारे में नए सिरे से जांच करने के लिए कि क्या अधिनियम का कोई अतिक्रमण हुआ है

53ण. अपील अधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियां-(1) अपील अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) में अधिकथित प्रक्रिया से आबद्ध नहीं होगा, किन्तु नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगा और इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों और केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, अपील अधिकरण को, अपनी प्रक्रिया को जिसके अंतर्गत वे स्थान भी हैं जहां वह अपनी बैठकें करेगा, विनियमित करने की शक्ति होगी

(2) अपील अधिकरण को इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजनों के लिए वही शक्तियां होंगी जो, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों की बाबत सिविल न्यायलय में निहित होती हैं, अर्थात्ः-

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसको हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

(ख) दस्तावेजों की खोज और उनको प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना;

(ग) शपथ पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;

() भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी कार्यालय से कोई लोक अभिलेख या दस्तावेज या ऐसे अभिलेख या दस्तावेज की प्रति की अध्यपेक्षा करना

(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

(च) अपने विनिश्चयों का पुनर्विलोकन करना;

(छ) व्यतिक्रम के कारण किसी अभ्यावेदन को खारिज करना या उसका एक पक्षीय रूप में विनिश्चय करना;

(ज) व्यतिक्रम के कारण किसी अभ्यावेदन को खारिज करने के किसी आदेश या उसके द्वारा एक पक्षीय रूप से किसी आदेश को अपास्त करना;

(झ) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए ।

(3) अपील अधिकरण के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थान्तर्गत तथा धारा 196 के प्रयोजनों के लिए न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी और अपील अधिकरण दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा

53त. अपील अधिकरण के आदेशों का निष्पादन-(1) अपील अधिकरण द्वारा किया गया प्रत्येक आदेश उसके द्वारा उसी रीति में प्रवृत्त किया जाएगा मानो वह न्यायालय द्वारा उसके समक्ष लंबित वाद में दी गई कोई डिक्री हो, और अपील अधिकरण के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि यदि वह ऐसे आदेश का निष्पादन करने में असमर्थ है, तो वह उसे उस न्यायालय को भेजे, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर, -

(क) किसी कंपनी के विरुद्ध किसी आदेश की दशा में, कंपनी का रजिस्ट्रीकृत कार्यालय अवस्थित है; या

(ख) किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किसी आदेश की दशा में, वह स्थान जहां संबंधित व्यक्ति स्वैच्छिक रूप से निवास करता है या कारबार करता है या लाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है; स्थित है ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, अपील अधिकरण उसके द्वारा किए गए किसी आदेश को स्थानीय अधिकारिता रखने वाले सिविल न्यायालय को प्रेषित कर सकेगा और ऐसा सिविल न्यायालय आदेश का इस प्रकार निष्पादन करेगा मानो वह उस न्यायालय द्वारा दी गई डिक्री हो ।

53थ. अपील अधिकरण के आदेशों का उल्लंघन-(1) इस अधिनियम के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई व्यक्ति किसी युक्तियुक्त आधार के बिना, अपील अधिकरण के किसी आदेश का उल्लंघन करेगा तो वह शास्ति से, जो एक करोड़ रुपए से अधिक की नहीं होगी या कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या दोनों का, जैसा मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट दिल्ली, ठीक समझे, भागी होगा:

परंतु मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, दिल्ली, इस उपधारा के अधीन दंडनीय किसी अपराध का संज्ञान, अपील अधिकरण द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा किए गए परिवाद के सिवाय, नहीं करेगा ।

(2) इस अधिनियम के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कोई व्यक्ति अपील अधिकरण के किसी आदेश का उक्त उद्यम द्वारा युक्तियुक्त आधार के बिना, उल्लंघन किए जाने या अपील अधिकरण के ऐसे आदेशों को कार्यान्वित करने में विलंब किए जाने के परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्ति को हुई दर्शित किसी हानि या नुकसानी के लिए उक्त उद्यम से प्रतिकर की वसूली के आदेश के लिए अपील अधिकरण को आवेदन कर सकेगा ।

53द. अपील अधिकरण में रिक्ति से कार्यों या कार्यवाहियों का अविधिमान्य होना-अपील अधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होगी कि अपील अधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ।

53ध. विधिक प्रतिनिधित्व का अधिकार-(1) अपील अधिकरण को अपील करने वाला व्यक्ति अपील अधिकरण के समक्ष अपना पक्षकथन प्रस्तुत करने के लिए या तो वह व्यक्तिगत रूप से उपसंजात हो सकेगा या एक या अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंटों या कंपनी सचिवों या लागत लेखापालों या विधि व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारी को प्राधिकृत कर सकेगा

(2) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या अपील अधिकरण को अपील करने वाला कोई उद्यम एक या अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंटों या कंपनी सचिवों या लागत लेखापालों या विधिक व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारी को प्रस्तुत करने वाले अधिकारी के रूप में कृत्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और इस प्रकार प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति अपील अधिकरण के समक्ष किसी अपील के संबंध में पक्षकथन प्रस्तुत कर सकेगा

(3) आयोग, एक या अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंटों या कंपनी सचिवों या लागत लेखापालों या विधि व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारी को प्रस्तुत करने वाले अधिकारी के रूप में प्राधिकृत कर सकेगा और इस प्रकार प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति अपील अधिकरण के समक्ष किसी अपील के संबंध में पक्षकथन प्रस्तुत कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-चार्टर्ड अकाउंटेंट" या कंपनी सचिव" या लागत लेखापाल" या विधि व्यवसायी" पदों के वही अर्थ हैं, जो धारा 35 के स्पष्टीकरण में हैं ।

53न. उच्चतम न्यायालय को अपील-अपील अधिकरण के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित केन्द्रीय सरकार या कोई राज्य सरकार या आयोग या कोई कानूनी प्राधिकारी या कोई स्थानीय प्राधिकारी अथवा कोई उद्यम या कोई व्यक्ति अपील अधिकरण के उस विनिश्चय या आदेश की उन्हें संसूचना प्राप्त होने की तारीख से साठ दिन के भीतर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा:

परंतु उच्चतम न्यायालय, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक उक्त अवधि के भीतर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारणों से निवारित हुआ था उक्त साठ दिन की अवधि के अवसान के पश्चात् अपील फाइल करने के लिए उसे अनुज्ञात कर सकेगा ।

53प. अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति-अपील अधिकरण को स्वयं की अवमानना के संबंध में वही अधिकारिता शक्तियां और प्राधिकार होंगे और वह उनका प्रयोग करेगा जो किसी उच्च न्यायालय को है और वह उनका प्रयोग कर सकेगा तथा इस प्रयोजन के लिए न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 (1971 का 70) के उपबंध निम्नलिखित उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे, अर्थात्ः-

(क) उनमें उच्च न्यायालय के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत अपील अधिकरण को निर्देश भी है;

(ख) उक्त अधिनियम की धारा 15 में महाधिवक्ता के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह ऐसे विधि अधिकारी के प्रतिनिर्देश हैं जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ।]

अध्याय 9

प्रकीर्ण

54. छूट देने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा-

(क) उद्यमों के किसी वर्ग को, यदि ऐसी छूट राज्य की सुरक्षा के हित में या लोकहित में आवश्यक हो;

(ख) किसी अन्य देश या देशों के साथ किसी संधि या करार या अभिसमय के अधीन भारत द्वारा ली गई किसी बाध्यता के अनुसार और उससे उद्भूत किसी प्रथा या करार को;

() ऐसे किसी उद्यम को, जो केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के निमित्त कोई प्रभुत्वसंपन्न कृत्य निष्पादित करता है,

इस अधिनियम या उसके किसी उपबंध के लागू किए जाने से और उतनी अवधि के लिए जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, छूट दे सकेगी:

परंतु उस दशा में जिसमें कोई उद्यम सरकार के प्रभुत्वसंपन्न कृत्यों से संबंधित किसी कार्यकलाप सहित किसी कार्यकलाप में लगा हुआ है, केन्द्रीय सरकार केवल प्रभुत्वसंपन्न कृत्यों को ही संबंधित कृत्य की बाबत छूट प्रदान कर सकेगी

55. केन्द्रीय सरकार की निदेश जारी करने की शक्ति-(1) आयोग, इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए या अपने कृत्यों के निष्पादन में, तकनीकी और प्रशासनिक विषयों से संबंधित से भिन्न नीति के प्रश्नों पर ऐसे निदेशों से आबद्ध होगा जो केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, उसे लिखित में दे:

परन्तु आयोग को, जहां तक व्यवहार्य हो, इस उपधारा के अधीन दिए जाने वाले किसी निदेश से पूर्व अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा ।

(2) कोई प्रश्न नीति से संबंधित है या नहीं, इस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

56. केन्द्रीय सरकार की आयोग को अधिक्रान्त करने की शक्ति-(1) यदि किसी समय केन्द्रीय सरकार की यह राय हो,

(क) कि आयोग के नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण, वह इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या उनके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों का निर्वहन या कर्तव्यों का निष्पादन करने में असमर्थ है; या

(ख) कि आयोग ने केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन दिए गए किसी निदेश के अनुपालन या इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या उनके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों के निर्वहन या कर्तव्यों के निष्पादन में बार-बार व्यतिक्रम किया है और ऐसे व्यतिक्रम के परिणामस्वरूप आयोग की वित्तीय स्थिति या आयोग के प्रशासन को क्षति पहुंची है; या

(ग) कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण लोकहित में ऐसा करना आवश्यक हो गया है,

तब केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा और उसमें विनिर्दिष्ट किए जाने वाले कारणों से आयोग को छह मास से अनधिक उतनी अवधि के लिए जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए अधिक्रान्त कर सकेगी:

परन्तु केन्द्रीय सरकार, ऐसी कोई अधिसूचना जारी करने से पूर्व, आयोग को, प्रस्थापित अधिक्रमण के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का युक्तियुक्त अवसर देगी और आयोग के अभ्यावेदनों, यदि कोई हों, पर विचार करेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन आयोग के अधिक्रमण से संबंधित अधिसूचना के प्रकाशन पर-

(क) अध्यक्ष और अन्य सदस्य, अधिक्रमण की तारीख से ही अपने पद रिक्त कर देंगे;

(ख) वे सभी शक्तियां, कृत्य और कर्तव्य जो इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या के अधीन आयोग द्वारा या उसके निमित्त प्रयोग की जा रही थीं या निर्वहन किए जा रहे थे, उपधारा (3) के अधीन आयोग के पुनर्गठन तक केन्द्रीय सरकार द्वारा या ऐसे प्राधिकारी द्वारा जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, प्रयोग की जाएंगी और निर्वहन किए जाएंगे;

(ग) आयोग के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन सभी संपत्तियां, उपधारा (3) के अधीन आयोग का पुनर्गठन किए जाने तक केन्द्रीय सरकार में निहित होंगी ।

(3) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अधिक्रमण की अवधि की समाप्ति पर या उससे पूर्व उसके अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नई नियुक्ति द्वारा आयोग का पुनर्गठन करेगी और ऐसी दशा में ऐसा व्यक्ति, जिसने उपधारा (2) के खंड () के अधीन अपना पद रिक्त किया था, पुनर्नियुक्ति के लिए निरर्हित नहीं समझा जाएगा

(4) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी करवाएगी और इस धारा के अधीन की गई किसी कार्यवाही की पूर्ण रिपोर्ट और ऐसी परिस्थितियां जिनके कारण वह कार्रवाई की गई, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

57. जानकारी के प्रकटन पर निर्बंन्धन-किसी उद्यम के संबंध में कोई जानकारी जो ऐसी जानकारी है जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए [आयोग या अपील अधिकरण] द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त की गई है, उद्यम की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना, इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुपालन में या उसके प्रयोजनों से अन्यथा, प्रकट नहीं की जाएगी ।

 [58. अध्यक्ष, सदस्यों, महानिदेशक, सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों, आदि का लोक सेवक होना-आयोग का अध्यक्ष और अन्य सदस्य तथा महानिदेशक, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक और सचित तथा अधिकारी और अन्य कर्मचारी और अपील अधिकरण का अध्यक्ष, सदस्यों, अधिकारी और अन्य कर्मचारी, जब वे इस अधिनियम के किन्ही उपबन्धों के अनुसरण में कार्य कर रहे हैं या उसका कार्य करना तात्पर्यित है, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जाएंगे ।]

59. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों या विनियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या किए जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए, कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या आयोग या केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी या आयोग के अध्यक्ष या किसी सदस्य या महानिदेशक, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, [सचिव या अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों या अपील अधिकरण के अध्यक्ष, सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों] के विरुद्ध होगी

60. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव होना-इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

61. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता का अपवर्जन-किसी सिविल न्यायालय को किसी ऐसे मामले की बाबत, जिसे [आयोग या अपील अधिकरण] को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अवधारण करने के लिए सशक्त किया गया है, कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई की बाबत किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा कोई व्यादेश मंजूर नहीं किया जाएगा ।

62. अन्य विधियों का लागू होना वर्जित नहीं-इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में ।

63. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-

[(क) चयन समिति की अवधि और धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन नामों के पैनल के चयन की रीति;]

(ख) वह प्ररूप और रीति, जिसमें और वह प्राधिकारी जिसके समक्ष धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन पद और गोपनीयता की शपथ ली जाएगी और प्रतिज्ञान किया जाएगा;

।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।             

(घ) अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन दिए जाने वाला वेतन और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें, जिनके अन्तर्गत यात्रा व्यय, मकान किराया भत्ता और वाहन सुविधाएं, सत्कार भत्ता और चिकित्सा सुविधाएं भी हैं;

 [(घक) महानिदेशक कार्यालय में अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशकों या ऐसे अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों की संख्या और वह रीति जिसमें, ऐसे अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशकों या ऐसे अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों की धारा 16 की उपधारा (1क) के अधीन नियुक्ति की जा सकेगी;

(ङ) धारा 16 की उपधारा (3) के अधीन महानिदेशक, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक या 1[ऐसे अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों] के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;

(च) धारा 16 की उपधारा (4) के अधीन महानिदेशक और अपर, संयुक्त उप या सहायक महानिदेशक या 1[ऐसे अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों] की नियुक्ति के लिए अर्हताएं;

(छ) धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन 1[सचिवट और अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें तथा ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या;

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।             

(ट) धारा 52 की उपधारा (1) के अधीन तैयार किए जाने वाले वार्षिक लेखा विवरण का प्ररूप;

(ठ) वह समय जिसके भीतर और वह प्ररूप तथा रीति जिसमें आयोग, विवरणियों, विवरण तथा ऐसी विशिष्टियां, जिनकी धारा 53 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार अपेक्षा करे प्रस्तुत करेगा;

() वह प्ररूप जिसमें और समय जिसके भीतर धारा 53 की उपधारा (2) के अधीन वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी;

1[(डक) वह प्ररूप जिसमें धारा 53ख की उपधारा (2) के अधीन अपील अधिकरण के समक्ष अपील फाइल की जा सकेगी और ऐसी अपील के संबंध में संदेय फीस;

(डख) चयन समिति की अवधि और धारा 53ङ की उपधारा (2) के अधीन नामों के पैनल के चयन की रीति;

(डग) धारा 53छ की उपधारा (1) के अधीन अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;

(डघ) धारा 53ड की उपधारा (3) के अधीन अपील अधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;

(डङ) धारा 53ढ की उपधारा (2) के अधीन किए जाने वाले प्रत्येक आवेदन के साथ दी जाने वाली फीस;

(डच) धारा 53ण की उपधारा (2) के खंड (i) के अधीन वे अन्य विषय जिनकी बाबत अपील अधिकरण को वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन शक्तियां होंगी;]

1[() वह रीति, जिसमें भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण को अंतरित धनराशि के संबंध में धारा 66 की उपधारा (2) के चौथे परंतुक के अधीन, यथास्थिति, आयोग या अपील अधिकरण द्वारा कार्रवाई की जाएगी;]

(ण) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित है या विहित किया जाए, या जिसकी बाबत नियमों द्वारा उपबंध किया जाना है या किया जाए ।

(3) केंद्रीय सरकार द्वारा धारा 20 की उपधारा (3) और धारा 54 के अधीन जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना और इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, जारी किए जाने या बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो, जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस अधिसूचना या नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं या दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएं कि वह अधिसूचना जारी नहीं की जानी चाहिए या नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसी अधिसूचना या नियम तत्पश्चात्, यथास्थिति, केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा; तथापि, यथास्थिति, अधिसूचना या नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

64. विनियम बनाने की शक्ति-(1) आयोग, अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों से संगत विनियम बना सकेगा ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखित सभी या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-

(क) धारा 4 के स्पष्टीकरण के खण्ड (ख) के अधीन अवधारित की जाने वाली उत्पादन की लागत;

() धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट किया जाने वाला सूचना का प्ररूप और अवधारित की जाने वाली फीस;

(ग) वह प्ररूप जिसमें धारा 6 की उपधारा (5) के अधीन अर्जन के ब्यौरे दाखिल किए जाएंगे;

 [() धारा 17 की उपधारा (3) के अधीन विशेषज्ञों और वृत्तिकों को नियुक्त करने के लिए अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(ङ) वह फीस जो धारा 19 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन अवधारित की जाए;

(च) धारा 22 की उपधारा (1) के अधीन आयोग की बैठकों में कारबार संव्यवहार के संबंध में प्रक्रिया के नियम;

(छ) वह रीति जिसमें धारा 39 की उपधारा (1) के अधीन शास्ति वसूल की जाएगी;

(ज) कोई अन्य विषय जिसकी बाबत विनियमों द्वारा उपबंध किया जाना है या किया जाए ।]

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो, जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं या दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएं कि वह विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसा विनियम तत्पश्चात्, यथास्थिति, केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा तथापि, उस विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा

65. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होते हों:

परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारम्भ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा

66. निरसन और व्यावृत्ति- [(1) एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) इसके द्वारा निरसित किया जाता है और उक्त अधिनियम की (जिसे इसमें इसके पश्चात् निरसित अधिनियम कहा गया है) धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग, विघटित हो जाएगा:

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

(1क) एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) के निरसन का, निम्नलिखित पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, -

(क) इस प्रकार निरसित इस अधिनियम का पूर्व प्रवर्तन या तद्धीन सम्यक् रूप से की गई या हुई कोई बात; या

() इस प्रकार निरसित अधिनियम के अधीन अर्जित, उद्भूत या उपगत कोई अधिकार, विशेषाधिकार, बाध्यता या दायित्व; या

() इस प्रकार निरसित अधिनियम के अधीन किसी उल्लंघन के संबंध में उपगत कोई शास्ति, अधिहरण या दंड; या

(घ) यथा पूर्वोक्त ऐसे किसी अधिकार, विशेषाधिकार, बाध्यता, दायित्व, शास्ति, अधिहरण या दंड के संबंध में कोई कार्यवाही या उपचार और ऐसी कोई कार्यवाही या उपचार संस्थित किया जा सकेगा, जारी रखा सकेगा या प्रवृत्त किया जा सकेगा तथा ऐसी कोई शास्ति, अधिहरण या दंड इस प्रकार अधिरोपित किया जा सकेगा या दिया जा सकेगा मानो वह अधिनियम निरसित न हुआ हो ।]

(2) उक्त एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के विघटन पर, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त व्यक्ति और सदस्य के रूप में नियुक्त प्रत्येक अन्य व्यक्ति तथा महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप, सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण और उक्त आयोग का कोई अधिकारी और अन्य कर्मचारी जो ऐसे विघटन के ठीक पूर्व उस रूप में पद धारण किए हुए हैं, अपने-अपने पद रिक्त कर देंगे तथा ऐसा अध्यक्ष और अन्य सदस्य अपनी पदावधि या सेवा की किसी संविदा की समय-पूर्व समाप्ति के लिए तीन मास से अनधिक के लिए वेतन और भत्तों के प्रतिकर का दावा करने का हकदार होगा :

परंतु यह कि महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण या कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी जिसे एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के विघटन के ठीक पूर्व, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग में प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्त किया गया था, यथास्थिति, अपने मूल काडर, मंत्रालय या विभाग को प्रतिवर्तित हो जाएगा:

1[परंतु यह और कि महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण या ऐसा अधिकारी या अन्य कर्मचारी, जो एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के विघटन के ठीक पूर्व एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग द्वारा नियमित आधार पर नियोजित किया गया है, ऐसे विघटन से ही, क्रमशः भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण का अधिकारी या कर्मचारी ऐसी रीति में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए पेंशन, उपदान और अन्य ऐसे ही मामलों से संबंधित अधिकारों और विशेषाधिकारों सहित हो जाएगा और उसे अधिकार और विशेषाधिकार तब अनुज्ञेय होते जब एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के संबंध में अधिकार, यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण को अंतरित और निहित न हुए होते और ऐसा तब तक जारी रहेगा जब तक, यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण में उसका नियोजन सम्यक् रूप से समाप्त नहीं हो जाता या नियोजन में उसकी परिलब्धियां, निबंधन और शर्तें, यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण द्वारा सम्यक् रूप से परिवर्तित नहीं कर दी जाती :]

परन्तु यह और भी कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग में नियोजित महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण या किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी की सेवाओं के  [यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण] को अंतरण से ऐसा महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण या कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी प्रतिकर का हकदार नहीं होगा और ऐसे किसी दावे पर किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकरण द्वारा विचार नहीं किया जाएगा :

परन्तु यह और भी कि जहां एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग में नियोजित महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण, अपर, संयुक्त, उप या सहायक महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण या अधिकारियों और कर्मचारियों के फायदे के लिए कोई भविष्य-निधि, अधिवर्षिता, कल्याण या अन्य निधि स्थापित करता है वहां ऐसे अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों से संबंधित धन जिनकी सेवाएं इस अधिनियम के द्वारा या उसके अधीन 1[यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण] को अंतरित हो गई हैं, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के विघटन पर उसमें बकाया धन में से ऐसी भविष्य-निधि, अधिवर्षिता, कल्याण या अन्य निधि में जमा हो जाएगा और 1[यथास्थिति, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या अपील अधिकरण को अंतरित और उसमें निहित होगा तथा ऐसे धन का, जो इस प्रकार अंतरित हो गया है, ऐसी रीति में, यथास्थिति, उक्त आयोग या अधिकरण द्वारा व्ययन किया जाएगा, जो विहित की जाए ।]

1[(3) एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के समक्ष लंबित एकाधिकार व्यापारिक व्यवहार या अवरोधक व्यापारिक व्यवहार से संबंधित सभी मामले, (जिनके अंतर्गत ऐसे मामले भी हैं जिनमें किसी अनुचित व्यापारिक व्यवहार का भी अभिकथन किया गया है [प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2009 के प्रारंभ परट अपील अधिकरण को अंतरित हो जाएंगे और अपील अधिकरण द्वारा निरसित अधिनियम के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार न्यायनिर्णीत किए जाएंगे मानो वह अधिनियम निरसित न हुआ हो ।]

 [स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस उपधारा, उपधारा (4) और उपधारा (5) में निर्दिष्ट सभी मामलों में एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54), जैसा वह उसके निरसन के पूर्व विद्यमान था, की धारा 12ख के अधीन हानियों या नुकसानियों के लिए किए गए सभी आवेदनों को सम्मिलित समझा जाएगा ।]

(4) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, 2[प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2009 के प्रारंभ से ठीक पूर्व एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के समक्ष लंबित अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित ऐसे सभी मामले, जो एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) की धारा 36 की उपधारा (1) के खंड (x) में निर्दिष्ट मामलों से भिन्न है, ऐसे प्रारंभ परट  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (1986 का 68) के अधीन गठित राष्ट्रीय आयोग को अंतरित हो जाएंगे और उक्त राष्ट्रीय आयोग ऐसे मामलों का इस प्रकार निपटान करेगा मानो वे उस अधिनियम के अधीन फाइल किए गए थे :

परंतु राष्ट्रीय आयोग, यदि वह उचित समझे, इस उपधारा के अधीन उसे अंतरित किसी मामले को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (1986 का 68) की धारा 9 के अधीन स्थापित संबद्ध राज्य आयोग को अंतरित कर सकेगा और वह राज्य आयोग, ऐसे मामले का निपटारा ऐसे करेगा मानो वह मामला उस अधिनियम के अधीन फाइल किया गया था:

 [परंतु यह और कि उस तारीख को या उससे पूर्व, जिसको प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक, 2009 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, इस उपधारा के अधीन राष्ट्रीय आयोग के समक्ष लंबित अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित सभी मामले उस तारीख से ही अपील अधिकरण को अंतरित हो जाएंगे और निरसित अधिनियम के उपबंधों के अनुसार अपील अधिकरण द्वारा इस प्रकार न्यायनिर्णीत किए जाएंगे मानो वह अधिनियम निरसित नहीं किया गया हो ]

 [(5) एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) की धारा 36क की उपधारा (1) के खंड (भ) में निर्दिष्ट अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित और एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के समक्ष लंबित सभी मामले, [प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2009 के प्रारंभ पर] अपील अधिकरण को अंतरित हो जाएंगे और अपील अधिकरण ऐसे मामलों का इस प्रकार निपटारा करेगा मानो वे मामले इस अधिनियम के अधीन फाइल किए गए थे ।]

(6) इस अधिनियम के प्रारंभ पर या उससे पूर्व महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण के समक्ष लंबित अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित अन्वेषण या कार्यवाहियों से भिन्न सभी अन्वेषण या कार्यवाहियां ऐसे प्रारंभ पर भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को अंतरित हो जाएंगी और भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग उक्त अन्वेषण या कार्यवाहियां ऐसी रीति से कर सकेगा या किए जाने का आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

(7) इस अधिनियम के प्रारंभ पर या उससे पूर्व महानिदेशक अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण के समक्ष लंबित एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) की धारा 36 की उपधारा (1) के खंड (x) में निर्दिष्ट से भिन्न अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित सभी अन्वेषण या कार्यवाहियां, ऐसे प्रारंभ पर, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (1986 का 68) के अधीन गठित राष्ट्रीय आयोग को अंतरित हो जाएंगी और उक्त राष्ट्रीय आयोग इस प्रकार अन्वेषण या कार्यवाहियां कर सकेगा या किए जाने का आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे :

1[परंतु उस तारीख को या उसके पूर्व जिसको प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक, 2009 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, राष्ट्रीय आयोग के समक्ष लंबित अनुचित व्यापारिक व्यवहारों से संबंधित सभी अन्वेषण या कार्यवाहियां, उस तारीख से ही अपील अधिकरण को अंतरित हो जाएंगी और अपील अधिकरण ऐसी रीति में, जो वह ठीक समझे, ऐसा अन्वेषण या कार्यवाहियां करा सकेगा या कराने का आदेश दे सकेगा ।]

(8) इस अधिनियम के प्रारम्भ पर या उससे पूर्व महानिदेशक, अन्वेषण और रजिस्ट्रीकरण के समक्ष लंबित एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 (1969 का 54) की धारा 36क की उपधारा (1) के खंड (x) में निर्दिष्ट अनुचित व्यापारिक व्यवहार से संबंधित सभी अन्वेषण या कार्यवाहियां, ऐसे प्रारंभ पर भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को अन्तरित हो जाएंगी और भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग ऐसा अन्वेषण ऐसी रीति में जिसे वह ठीक समझे, कर सकेगा या करने का आदेश दे सकेगा ।

(9) उपधारा (3) से उपधारा (8) के अधीन जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार आयोग के समक्ष लंबित सभी मामलों और कार्यवाहियों का उपशमन हो जाएगा ।

(10) उपधारा (3) से उपधारा (8) में निर्दिष्ट विशिष्ट विषयों के उल्लेख का, निरसन के प्रभाव की बाबत साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के साधारण लागू होने पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

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