हिन्दी साहित्य सम्मेलन अधिनियम, 1962
(1962 का अधिनियम संख्यांक 13)
झ्र्30 मार्च, 1962ट
हिन्दी साहित्य सम्मेलन नामक संस्था को, जिसका प्रधान
कार्यालय इलाहाबाद में है, राष्ट्रीय महत्व की
संस्था घोषित करने के लिए और उसके
निगमन का तथा तत्संसक्त
विषयों का उपबन्ध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के तेरहवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो : श्न्
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भश्न्(1) यह अधिनियम हिन्दी साहित्य सम्मेलन अधिनियम, 1962 कहा जा सकेगा ।
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे ।
2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया जानाश्न्यतः हिन्दी साहित्य सम्मेलन नामक संस्था के, जिसका प्रधान कार्यालय इलाहाबाद में है, उद्देश्य ऐसे हैं जो उसे राष्ट्रीय महत्व की संस्था बनाते हैं, अतः एतद्द्वारा घोषित किया जाता है कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन नामक संस्था राष्ट्रीय महत्व की संस्था है ।
3. परिभाषाएंश्न्इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षा न हो, श्न्
(क) नियत दिनञ्ज् से वह तारीख अभिप्रेत है जब यह अधिनियम प्रवृत्त हो ;
(ख) विहितञ्ज् से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(ग) सम्मेलनञ्ज् से हिन्दी साहित्य सम्मेलन नामक संस्था अभिप्रेत है, जो इस अधिनियम के अधीन निगमित है ;
(घ) सोसायटीञ्ज् से हिन्दी साहित्य सम्मेलन अभिप्रेत है, जिसका प्रधान कार्यालय इलाहाबाद में है और जो सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत है ।
4. निगमनश्न्(1) सम्मेलन के प्रथम सदस्य तथा वे सब व्यक्ति जो इस निमित्त बनाए गए नियमों के अनुसार आगे चलकर उसके सदस्य हों, जब तक वे उसके सदस्य बने रहें, एतद्द्वारा हिन्दी साहित्य सम्मेलन के नाम से निगमित निकाय के रूप में गठित किए जाते हैं ।
(2) सम्मेलन का शाश्वत उत्तराधिकार होगा, उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी तथा इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए उसे सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की तथा संविदा करने की शक्ति प्राप्त होगी, और उस नाम से वह वाद ला सकेगा और उसके विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा ।
(3) सम्मेलन का प्रधान कार्यालय इलाहाबाद में होगा ।
झ्र्(4) सम्मेलन के प्रथम सदस्य निम्नलिखित होंगे : श्न्
(क) वे सब व्यक्ति जो नियत दिन के ठीक पहले सोसायटी के सदस्य थे ;
(ख) वे सब व्यक्ति जो उस दिन के पहले सोसायटी के सभापति रहे हों, तथा
(ग) वे सब व्यक्ति जिन्हें उस दिन के पहले सोसायटी द्वारा मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया गया हो ।ट
5. सम्मेलन के निगमन का प्रभावश्न्नियत दिन को और उससे श्न्
(क) इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि में या किसी संविदा या अन्य लिखत में सोसायटी के प्रति निर्देश को सम्मेलन के प्रति निर्देश समझा जाएगा ;
झ्र्(ख) सोसायटी की सब जंगम या स्थावर सम्पत्ति सम्मेलन की सम्पत्ति होगी ;ट
(ग) सोसायटी के सब अधिकार और दायित्व ॥। सम्मेलन के अधिकार और दायित्व होंगे; तथा
(घ) हर व्यक्ति, जो नियत दिन के ठीक पहले सोसायटी द्वारा नियोजित था, सम्मेलन में अपना पद या सेवा उसी धृति पर, उसी पारिश्रमिक पर, उन्हीं निबन्धनों और शर्तों पर तथा पेंशन, छुट्टी, उपदान, भविष्य-निधि और अन्य विषयों के सम्बन्ध में उन्हीं अधिकारों और विशेषाधिकारों सहित धारण करेगा जिन पर वह धारण करता यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता, और वह ऐसा तब तक करता रहेगा जब तक उसकी नियुक्ति का पर्यवसान न हो जाए, या जब तक उसकी धृति या निबन्धन और शर्तें इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा सम्यक् रूप से परिवर्तित न कर दी जाएं :
परन्तु यदि इस प्रकार किया गया परिवर्तन ऐसे किसी कर्मचारी को प्रतिग्राह्य न हो तो उसका नियोजन उस कर्मचारी के साथ हुई संविदा के निबन्धनों के अनुसार, अथवा यदि उसमें इस निमित्त उपबन्ध न किया गया हो तो स्थायी कर्मचारी की दशा में तीन मास के पारिश्रमिक के और अन्य कर्मचारी की दशा में एक मास के पारिश्रमिक के बराबर प्रतिकर देकर, सम्मेलन द्वारा पर्यवसित किया जा सकेगा ।
6. सम्मेलन के कृत्यश्न्इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए सम्मेलन निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात् :श्न्
(क) संविधान के अनुच्छेद 351 में उपदर्शित रीति से हिन्दी भाषा के प्रसार की वृद्धि करना और उसका विकास करना तथा उसकी समृद्धि सुनिश्चित करना ;
(ख) भारत में तथा विदेशों में हिन्दी साहित्य की वृद्धि, विकास और उन्नति के लिए कार्य करना तथा ऐसे साहित्य को छापना और प्रकाशित करना ;
(ग) देवनागरी लिपि की अभिवृद्धि, विकास और उन्नति के लिए कार्य करना तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य को देवनागरी लिपि में छापना और प्रकाशित करना ;
(घ) हिन्दी भाषा के माध्यम से परीक्षाएं संचालित किए जाने के लिए व्यवस्था करना तथा उपाधियां, डिप्लोमे और अन्य विद्या-सम्बन्धी पदवियां प्रदान करना ;
(ङ) हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य में शिक्षण के लिए विद्यालय, महाविद्यालय और अन्य संस्थाएं स्थापित करना और उनका पोषण करना तथा विद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं को अपनी परीक्षाओं के लिए सम्बद्ध करना ;
(च) हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य की वृद्धि का उद्देश्य रखने वाली संस्थाओं को सम्बद्ध करना ;
(छ) सम्मानिक उपाधियां और अन्य विद्या-सम्बन्धी पदवियां उन व्यक्तियों को प्रदान करना जिन्होंने हिन्दी के हित में विशिष्ट सेवा की हो ;
(ज) हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वानों के लिए पारितोषिक संस्थित करना और प्रदान करना ;
(झ) हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य में अनुसंधान की अभिवृद्धि करना और उसके लिए प्रोत्साहन देना ;
(ञ) सम्मेलन के सदृश्य उद्देश्य रखने वाली अन्य संस्थाओं के साथ ऐसी रीति से सहयोग करना जो उनके सामान्य उद्देश्यों की साधक हो ;
(ट) सरकार से दान, अनुदान, संदान या उपकृतियां प्राप्त करना तथा वसीयतकर्ताओं, संदाताओं और अन्तरकों से जंगम और स्थावर सम्पत्तियों की, यथास्थिति, वसीयतें, संदान और अन्तरण प्राप्त करना ;
(ठ) सम्मेलन की या उसमें निहित किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में ऐसी रीति से संव्यवहार करना, जिसे सम्मेलन अपने उद्देश्यों को अग्रसर करने के लिए ठीक समझे ;
(ड) सम्मेलन के प्रयोजनों के लिए केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से सम्मेलन की संपत्ति की प्रतिभूति पर धन उधार लेना ;
(ढ) अन्य ऐसे कृत्य करना जिन्हें सम्मेलन हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के हित को अग्रसर करने के लिए आवश्यक समझे या जो उक्त सब कृत्यों के या उनमें से किसी के पालन के लिए आवश्यक या उसके आनुषंगिक या साधक हों ।
7. शासी निकायश्न्(1) सम्मेलन के कार्यकलाप का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबन्ध एक शासी निकाय में निहित होगा, वह चाहे जिस नाम से ज्ञात हो ।
(2) शासी निकाय पचपन से अनधिक उतने व्यक्तियों से गठित होगा जितने केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अवधारित करे और जिनमें से सात से अनधिक व्यक्ति ख्याति-प्राप्त शिक्षाविदों या हिन्दी के अग्रगण्य विद्वानों में से केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे तथा शेष सदस्य इस निमित्त बनाए गए नियमों के अनुसार चुने जाएंगे ।
(3) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि शासी निकाय की शक्तियां और कृत्य, उसके सदस्यों की पदावधि तथा उन्हें देय भत्ते, यदि कोई हों, अपने कारबार के संव्यवहार के लिए शासी निकाय द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया, उसके लिए आवश्यक गणपूर्ति, तथा उसके सदस्यों में होने वाली आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति ऐसी होगी जो विहित की जाए ।
8. प्रथम शासी निकाय और उसके कर्तव्यश्न्(1) धारा 7 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्रथम शासी निकाय गठित कर सकेगी, जिसमें एक अध्यक्ष, एक सचिव और तेरह अन्य सदस्य होंगे जो सब उस सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट तेरह सदस्य यथा निम्नलिखित चुने जाएंगे : श्न्
(त्) एक सदस्य केन्द्रीय सरकार के उस मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए जो शिक्षा के विषय में कार्य करता हो ;
(त्त्) एक सदस्य केन्द्रीय सरकार के उस मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए जो वित्त के विषय में कार्य करता हो ;
(त्त्त्) सोसायटी के भूतपूर्व सभापतियों में से तीन अनधिक सदस्य; तथा
(त्ध्) शेष सदस्य उन व्यक्तियों में से, जो केन्द्रीय सरकारकी राय में हिन्दी भाषा या हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अग्रगण्य हों ।
(3) सम्मेलन के प्रथम शासी निकाय के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे : श्न्
(क) जब तक धारा 7 के उपबन्धों के अनुसार शासी निकाय गठित न हो जाए तब तक सम्मेलन के सभी कृत्यों का पालन करना तथा सम्मेलन के कार्यकलाप का प्रशासन चलाना ;
(ख) केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से नियम बनाना ;
(ग) धारा 4 की उपधारा (4) के अर्थ में सम्मेलन के प्रथम सदस्य अवधारित करना ;
(घ) ऐसे नियमों के अनुसार शासी निकाय के गठन के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना ;
(ङ) अन्य ऐसे कृत्यों का पालन करना जिन्हें वह आवश्यक समझे ।
9. प्रथम शासी निकाय की पदावधि और प्रक्रिया तथा उसके सदस्यों को देय सम्बलम् और भत्तेश्न्(1) धारा 14 के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए प्रथम शासी निकाय के सदस्य केन्द्रीय सरकार के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे ।
(2) प्रथम शासी निकाय के अधिवेशनों में सभी प्रश्नों का विनिश्चय उसमें उपस्थित सदस्यों की बहुसंख्या द्वारा किया जाएगा, तथा मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष, या उसकी अनुपस्थिति में सभापतित्व करने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति का, द्वितीय या निर्णायक मत होगा ।
(3) प्रथम शासी निकाय का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति झ्र्पांचट सदस्यों से होगी ।
(4) सदस्यों को सम्मेलनकी निधि में से ऐसे झ्र्सम्बलम् या भत्ते या दोनोंट दिए जाएंगे जो विहित किए जाएं और जब तक ऐसे विहितन किए जाएं तब तक वे होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
10. सम्मेलन की सम्पत्तियों का प्रबन्ध प्रथम शासी निकाय द्वारा संभाल लिया जानाश्न्किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि या न्यायालय के किसी आदेश में कोई प्रतिकूल बात होते हुए भी यह है कि सम्मेलन में निहित सब सम्पत्तियों का प्रबन्ध, नियंत्रण और प्रशासन प्रथम शासी निकाय संभाल लेगा ।
11. प्रथम सदस्यों का अवधारणश्न्(1) प्रथम शासी निकाय, यथाशक्य शीघ्र, उन निदेशों के, यदि कोई हों, अध्यधीन रहते हुए जो उसे केन्द्रीय सरकार से प्राप्त हों, उन सब व्यक्तियों की सूची तैयार कराएगा जिन्हें धारा 4 की उपधारा (4) के अर्थ में सम्मेलन का प्रथम सदस्य माना जाना है ।
(2) सूची उस रीति से प्रकाशित की जाएगी जिसका केन्द्रीय सरकार निदेश दे ।
(3) यदि उपधारा (2) के अधीन प्रथम सदस्यों की सूची के प्रकाशन के पश्चात् किसी समय प्रथम शासी निकाय को यह प्रतीत हो कि किसी व्यक्ति का नाम उससे गलत तौर पर छूट गया है या उसमें गलत तौर पर प्रविष्ट किया गया है तो वह आदेश दे सकेगा कि वह नाम उस सूची में बढ़ा दिया जाए या उससे निकाल दिया जाए और सूची तदनुसार संशोधित की जाएगी :
परन्तु किसी सूची से किसी व्यक्ति के नाम के निकाले जाने का आदेश तब तक न दिया जाएगा जब तक उस व्यक्ति को ऐसे निकाले जाने के विरुद्ध कारण दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो ।
(4) इस धारा के अधीन तैयार की गई सूची में नामित व्यक्तियों से भिन्न कोई व्यक्ति धारा 4 की उपधारा (4) के अर्थ में सम्मेलन के प्रथम सदस्य न माने जाएंगे ।
12. प्रथम शासी निकाय द्वारा नियमों का बनाया जानाश्न्(1) प्रथम शासी निकाय निम्नलिखित विषयों के बारे में नियम, यथाशक्य शीघ्र, बनाएगा, अर्थात् : श्न्
(क) सम्मेलन की सदस्यता से सम्बन्धित विषय, जिनके अन्तर्गत ऐसी सदस्यता के लिए अर्हताएं और निरर्हताएं भी हैं ;
(ख) शासी निकाय की शक्तियां और कृत्य; उसके सदस्यों की पदावधि और उनको देय भत्ते, यदि कोई हों; अपने कारबार के संव्यवहार के लिए शासी निकाय द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया, उसके लिए आवश्यक गणपूर्ति तथा उसके सदस्यों में होने वाली आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति ;
(ग) शासी निकाय के गठन के लिए निर्वाचनों का संचालन और उक्त निर्वाचनों में या उनके सम्बन्ध में संदेहों और विवादों का विनिश्चय ;
(घ) शासी निकाय या सम्मेलन के कृत्यों को करने के लिए कार्यसमिति या किसी अन्य समिति की नियुक्ति; ऐसी समितियों का गठन, शक्तियां और कर्तव्य तथा उनके सदस्यों को देय भत्ते, यदि कोई हों ;
(ङ) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए लेखा-पुस्तकों और अन्य रजिस्टरों और विवरणों को रखने की प्रक्रिया और उनके प्ररूप ;
(च) सम्मेलन के कर्मचारियों की नियुक्ति, नियंत्रण तथा सेवा की अन्य शर्तें ;
(छ) सम्मेलन के लिए या उसकी ओर से पत्र-व्यवहार करना तथा दस्तावेजों और संविदाओं का निष्पादन ;
(ज) सम्मेलन द्वारा या उसके विरुद्ध वादों और कार्यवाहियों का संचालन और पैरवी ;
(झ) विद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं के सम्मेलन से सम्बद्ध किए जाने से सम्बन्धित विषय ;
(ञ) सम्मेलन द्वारा उपाधियां और विद्या-सम्बन्धी पदवियां प्रदान किए जाने से सम्बन्धित विषय ;
(ट) सम्मेलन द्वारा पारितोषिक प्रदान किए जाने से सम्बन्धित विषय ;
(ठ) नियमों के संशोधन के लिए प्रक्रिया ;
(ड) अन्य ऐसे विषय जो सम्मेलन के कृत्यों के पालन के लिए आवश्यक हों ।
(2) जिन नियमों को उपधारा (1) के अधीन बनाने का विचार हो उनका प्रारूप केन्द्रीय सरकार को अनुमोदनार्थ भेजा जाएगा और वह सरकार उन्हें उपान्तरों सहित या उनके बिना अनुमोदित कर सकेगी ।
(3) इस धारा के अधीन बनाए गए कोई नियम तब ही प्रभावी होंगे जब वे केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित हो जाएं तथा प्रथम शासी निकाय द्वारा उस रीति से प्रकाशित कर दिए जाएं जिसका केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा निदेश दे ।
(4) इस प्रकार बनाए गए नियमों की एक प्रति, उनके बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र संसद् के हर एक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।
13. शासी निकाय के लिए निर्वाचनश्न्प्रथम शासी निकाय अपने गठन से छह मास के भीतर, या ऐसी अतिरिक्त कालावधि के भीतर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, इस बात की व्यवस्था करेगा कि धारा 12 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों के अनुसार शासी निकाय का निर्वाचन कराया जाए और अन्य ऐसे कदम उठाएगा जो पूर्व विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर उसके सम्यक् गठन के लिए आवश्यक हो ।
14. प्रथम शासी निकाय का विघटनश्न्धारा 7 के अधीन शासी निकाय का गठन धारा 12 के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार हो जाने पर प्रथम शासी निकाय अस्तित्व में न रहेगा और विघटित हो जाएगा ।
15. सम्मेलन की निधिश्न्(1) सम्मेलन एक निधि रखेगा जिसमें निम्नलिखित जमा किए जाएंगे : श्न्
(क) सम्मेलन द्वारा प्राप्त की गई सब फीसें और अन्य प्रभार ;
(ख) अनुदानों, दानों, संदानों, उपकृतियों, वसीयतों या अन्तरणों के रूप में सम्मेलन द्वारा प्राप्त किया गया सब धन ; तथा
(ग) सम्मेलन द्वारा किसी अन्य रीति से या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया गया सब धन ।
(2) निधि का उपयोजन इस अधिनियम के अधीन सम्मेलन के कृत्यों के पालन में, उसके व्ययों को चुकाने के लिए किया जाएगा, जिन व्ययों के अन्तर्गत शासी निकाय या किसी समिति के सदस्यों को देय भत्ते, यदि कोई हों, तथा सम्मेलन के कर्मचारियों के सम्बलम् और भत्ते, यदि कोई हों, भी हैं ।
16. लेखा और संपरीक्षाश्न्(1) सम्मेलन उचित लेखा तथा अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और ऐसे प्ररूप में जो विहित किया जाए एक वार्षिक लेखा-विवरण, जिसके अन्तर्गत तुलनपत्र भी है, तैयार करेगा ।
(2) सभा के लेखे, हर वर्ष में कम से कम एक बार ऐसे चार्टर्ड अकाउन्टेण्ट द्वारा संपरीक्षित किए जाएंगे जो चार्टर्ड अकाउन्टेण्ट्स अधिनियम, 1949 (1949 का 38) के अर्थ में व्यवसायशील हो और जो सम्मेलन द्वारा प्रति वर्ष नियुक्त किया जाएगा :
परन्तु सम्मेलन का कोई भी ऐसा सदस्य, जो चार्टर्ड अकाउन्टेण्ट हो या कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो ऐसे सदस्य के साथ भागीदारी में हो, इस धारा के अधीन संपरीक्षक नियुक्त किए जाने का पात्र न होगा ।
(3) सम्मेलन की बहियां, लेखे और अन्य दस्तावेजें सभी युक्तियुक्त समयों में हर संपरीक्षक को उसके कर्तव्यों के पालन के लिए प्राप्य होंगी ।
(4) हर एक वर्ष के अन्त में, यथाशक्य शीघ्र, सम्मेलन के संपरीक्षित लेखे, संपरीक्षा रिपोर्ट के सहित, केन्द्रीय सरकार को भेजे जाएंगे ।
17. नियम बनाने की शक्तिश्न्(1) शासी निकाय इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम समय-समय पर बना सकेगा और ऐसे नियम धारा 12 के अधीन बनाए गए नियमों को संशोधित या निरसित कर सकेंगे ।
(2) इस धारा के अधीन बनाए गए कोई नियम तब ही प्रभावी होंगे जब वे केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित हो जाएं, और विहित रीति से शासी निकाय द्वारा प्रकाशित कर दिए जाएं ।
18. रिक्तियों के कारण कार्यों और कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होनाश्न्सम्मेलन का या शासी निकाय का, या इस निमित्त बनाए गए नियमों के अधीन स्थापित किसी अन्य निकाय का कोई कार्य केवल इस कारण अविधिमान्य न होगा किश्न्
(क) उसमें कोई रिक्ति थी या उसके गठन में कोई त्रुटि थी ; अथवा
(ख) उसके सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के निर्वाचन, नामनिर्देशन या नियुक्ति में कोई त्रुटि थी ; अथवा
(ग) उसकी प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता थी, जिससे मामले के गुणागुण पर प्रभाव न पड़ता हो ।
19. कठिनाइयां दूर करने की शक्तिश्न्यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न हो, तो केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसा उपबन्ध कर सकेगी या ऐसा निदेश दे सकेगी, जो इस अधिनियम के प्रयोजनों से असंगत न हो और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो ।