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बन्धित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976 ( Bonded Labour System (Abolition) Act, 1976 )


 

बन्धित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976

(1976 का अधिनियम संख्यांक 19)

[9 फरवरी, 1976]

जनता के दुर्बल वर्गों के आर्थिक और शारीरिक शोषण का निवारण

करने के उद्देश्य से बन्धित श्रम पद्धति के उत्सादन का और

उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का

उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के छब्बीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम बन्धित श्रम पद्धति (उत्सादन)अधिनियम, 1976 है ।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।

(3) यह 1975 के अक्तूबर के पच्चीसवें दिन को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित हो,-

() अग्रिम" से, चाहे नकद या वस्तु रूप में अथवा भागतः नकद या भागतः वस्तु रूप में, ऐसा अग्रिम अभिप्रेत है जो एक व्यक्ति द्वारा (जिसे इसमें इसके पश्चात् लेनदार कहा गया है) किसी दूसरे व्यक्ति को (जिसे इसमें इसके पश्चात् ऋणी कहा गया है) दिया जाता है ;

() करार" से ऋणी और लेनदार के बीच करार (चाहे वह लिखित रूप में हो या मौखिक अथवा भागतः लिखित रूप में हो और भागतः मौखिक) अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा करार भी है जिसमें ऐसे बलात्श्रम का उपबन्ध किया गया है जिसके अस्तित्व की उपधारणा सम्बन्धित परिक्षेत्र में प्रचलित किसी सामाजिक रूढ़ि के अधीन की जाती है

स्पष्टीकरण-ऋणी और लेनदार के बीच करार के अस्तित्व की उपधारणा सामाजिक रूढ़ि के अधीन निम्नलिखित प्रकार के बलात्श्रम के संबंध में की जाती है, अर्थात् :-

आदियामार, बारामासिया, बसहया, बेथू, भगेला, चेरूमार, गारूगल्लू, हाली, हारी, हरवई, होलया, जान, जीथा, कामिया, खुण्डित-मुंडित, कुथिया, लेखेरी, मुझी, मेट, मुनीश पद्धति, नित-मजूर, पलेरू, पड़ियाल, पनाईलाल, सागड़ी, संजी, संजावत, सेवक, सेवकिया, सेरी, वेट्टी ;

(ग) मातृप्रधान समाज के व्यक्ति के संबंध में पूर्वपुरुष" या वंशज" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो उस समाज में प्रवृत्त उत्तराधिकार की विधि के अनुसार ऐसी अभिव्यक्ति के समरूप है ;

() बन्धित ऋण" से ऐसा अग्रिम अभिप्रेत है जो बन्धित श्रम पद्धति के अधीन या उसके अनुसरण में बन्धित श्रमिक द्वारा अभिप्राप्त किया जाता है या जिसके बारे में यह उपधारणा की जाती है कि वह ऐसे अभिप्राप्त किया गया है ;

(ङ) बन्धित श्रम" से बन्धित श्रम पद्धति के अधीन किया गया कोई श्रम या की गई कोई सेवा अभिप्रेत है ;

(च) बन्धित श्रमिक" से ऐसा श्रमिक अभिप्रेत है जो बन्धित ऋण उपगत करता है या जिसने वह उपगत किया है या जिसके बारे में यह उपधारणा की जाती है कि उसने वह उपगत किया है ;

(छ) बन्धित श्रम पद्धति" से बलात्श्रम या भागतः बलात्श्रम की पद्धति अभिप्रेत है जिसके अधीन ऋणी लेनदार से इस आशय का करार करता है या जिसने ऐसा करार किया है या जिसके बारे में यह उपधारणा की जाती है कि उसने ऐसा करार किया है कि-

(i) उसके द्वारा या उसके पारम्परिक पूर्वपुरुषों या वंशजों में से किसी के द्वारा अभिप्राप्त उधार के प्रतिफल में (चाहे ऐसा अग्रिम किसी दस्तावेज द्वारा साक्षित है या नहीं) और ऐसे अग्रिम पर देय ब्याज के, यदि कोई हो, प्रतिफल में ; अथवा

(ii) किसी रूढ़िगत या सामाजिक बाध्यता के अनुसरण में ; अथवा

(iii) किसी ऐसी बाध्यता के अनुसरण में जो उत्तराधिकार द्वारा उसको न्यागत हुई है ; अथवा

(iv) उसके द्वारा या उसके पारम्परिक पूर्वपुरुषों या वंशजों में से किसी के द्वारा प्राप्त किसी आर्थिक प्रतिफल के लिए ; अथवा

(v)  किसी विशेष जाति या समुदाय में उसके जन्म लेने के कारण, वह-

(1) स्वयं या अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य के माध्यम से या अपने पर आश्रित किसी व्यक्ति के माध्यम से लेनदार का, या लेनदार के फायदे के लिए, श्रम या सेवा, विनिर्दिष्ट अवधि के लिए या अविनिर्दिष्ट अवधि के लिए या तो मजदूरी के बिना या नाममात्र की मजदूरी पर करेगा ; अथवा

(2) अपने नियोजन या अपनी जीविका के अन्य साधनों की स्वतन्त्रता विनिर्दिष्ट अवधि के लिए या अविनिर्दिष्ट अवधि के लिए खो देगा ; अथवा

(3) भारत राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अपना अधिकार खो देगा ; अथवा

(4) अपनी किसी सम्पत्ति या अपने श्रम के या अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य या अपने पर आश्रित किसी व्यक्ति के श्रम के उत्पाद को विनियोजित करने या उसे बाजार मूल्य पर विक्रय करने का अपना अधिकार खो देगा,

और इसके अन्तर्गत बालत्श्रम या भागतः बलात्श्रम की वह पद्धति भी है जिसके अधीन ऋणी का प्रतिभू लेनदार के साथ इस आशय का करार करता है या जिसने ऐसा करार किया है या जिसके बारे में यह उपधारणा की जाती है कि उसने करार किया है कि ऋणी द्वारा ऋण का प्रतिसंदाय करने में असफल रहने की दशा में वह ऋणी की और से बन्धितश्रम करेगा

 [स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि बलात्श्रम या भागतः बलात्श्रम की वह पद्धति, जिसके अधीन किसी ऐसे कर्मकार से, जो ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम, 1970 (1970 का 37) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड () में परिभाषित ठेका श्रमिक या अन्तरराज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा शर्त) अधिनियम, 1979 (1979 का 30) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड () में परिभाषित अन्तरराज्यिक प्रवासी कर्मकार है, इस खण्ड के उपखंड (1) में उल्लिखित परिस्थितियों में श्रम या सेवा करने की अपेक्षा की जाती है या वह उपखंड (2) से उपखंड (4) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं निर्योग्यताओं के अधीन है, इस खण्ड के अर्थ में बंधित श्रम पद्धति है ।ट

() किसी व्यक्ति के संबंध में कुटुम्ब" के अन्तर्गत उस व्यक्ति का पूर्वपुरुष और वंशज भी है ;

() किसी श्रम के संबंध में नाममात्र की मजदूरी" से वह मजदूरी अभिप्रेत है जो-

() तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन उसी श्रम या उसी प्रकृति के श्रम के संबंध में सरकार द्वारा नियत निम्नतम मजदूरी से कम है, और

(ख) जहां किसी प्रकार के श्रम के संबंध में ऐसी न्यूनतम मजदूरी नियत नहीं की गई है वहां, उसी परिक्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को उसी श्रम या उसी प्रकृति के श्रम के लिए प्रसामान्यतः संदत्त मजदूरी से कम है ;

                                (ञ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ।

3. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव-इस अधिनियम के उपबन्ध, इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति में या इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

अध्याय 2

बन्धित श्रम पद्धति का उत्सादन

4. बन्धित श्रम पद्धति का उत्सादन-(1) इस अधिनियम के प्रारम्भ पर बन्धित श्रम पद्धति का उत्सादन हो जाएगा और ऐसे प्रारम्भ पर प्रत्येक बन्धित श्रमिक, बन्धित श्रम करने की किसी बाध्यता से मुक्त और उन्मोचित हो जाएगा

                (2) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात्, कोई व्यक्ति-

(क) बन्धित श्रम पद्धति के अधीन या उसके अनुसरण में कोई अग्रिम नहीं देगा, अथवा

(ख) किसी व्यक्ति को कोई बन्धित श्रम या किसी अन्य प्रकार का बलात्श्रम करने के लिए विवश नहीं करेगा ।

5. करार, रूढ़ि, आदि का शून्य होना-इस अधिनियम के प्रारम्भ पर कोई ऐसी रूढ़ि या परम्परा या कोई संविदा, करार या अन्य लिखत (चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या उसके पश्चात् की गई हो या निष्पादित की गई हो) जिसके आधार पर किसी व्यक्ति से या उस व्यक्ति के कुटुम्ब के किसी सदस्य से या उस व्यक्ति के आश्रित से बन्धित श्रमिक के रूप में कोई काम करने या सेवा करने की अपेक्षा की जाती है, शून्य और अप्रवर्तनशील होगी

अध्याय 3

बन्धित ऋण का प्रतिसंदाय करने के दायित्व की समाप्ति

6. बन्धित ऋण का प्रतिसंदाय करने के दायित्व की समाप्ति-(1) इस अधिनियम के प्रारम्भ पर किसी बन्धित ऋण का प्रतिसंदाय करने या ऐसे प्रारम्भ के ठीक पूर्व चुकता किए गए किसी बन्धित ऋण के किसी भाग का प्रतिसंदाय करने के लिए बन्धित श्रमिक का प्रत्येक दायित्व समाप्त हुआ समझा जाएगा

                (2) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी बन्धित ऋण या उसके किसी भाग की वसूली के लिए कोई वाद या अन्य कार्यवाही किसी सिविल न्यायालय में या किसी अन्य प्राधिकारी के समक्ष नहीं होगी

                (3) बन्धित ऋण की वसूली के लिए प्रत्येक डिक्री या आदेश, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व पारित किया गया हो और ऐसे प्रारम्भ के पूर्व पूर्णतया चुकता किया गया हो, ऐसे प्रारम्भ पर पूर्णतया चुकता किया गया समझा जाएगा

                (4) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किसी बन्धित ऋण की वसूली के लिए की गई प्रत्येक कुर्की ऐसे प्रारम्भ पर समाप्त हो जाएगी और जहां ऐसी कुर्की के अनुसरण में बन्धित श्रमिक की कोई जंगम सम्पत्ति अभिगृहीत की गई थी और उसकी अभिरक्षा से हटा ली गई थी और उसके विक्रय के लम्बित रहने के दौरान किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी की अभिरक्षा में रखी गई थी वहां ऐसी जंगम सम्पत्ति का कब्जा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात्, यथासाध्य शीघ्रता से, बन्धित श्रमिक को वापस कर दिया जाएगा ।

                (5) जहां इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व बन्धित श्रमिक की या उसके कुटुम्ब के किसी सदस्य या अन्य आश्रित की किसी सम्पत्ति का कब्जा किसी बन्धित ऋण की वसूली के लिए किसी लेनदार द्वारा बलपूर्वक ले लिया गया था वहां ऐसी सम्पत्ति का कब्जा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात्, यथासाध्य शीघ्रता से, उस व्यक्ति को वापस कर दिया जाएगा जिससे वह अभिगृहीत की गई थी ।

                (6) यदि उपधारा (4) या उपधारा (5) में निर्दिष्ट किसी सम्पत्ति का कब्जा इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीस दिन के भीतर वापस नहीं किया जाता है तो व्यथित व्यक्ति ऐसी सम्पत्ति के कब्जे की वापसी के लिए विहित प्राधिकारी को ऐसे समय के भीतर जो विहित किया जाए, आवेदन कर सकेगा और विहित प्राधिकारी, लेनदार को सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात्, लेनदार को यह निदेश दे सकेगा कि वह आवेदक को संबंधित सम्पत्ति का कब्जा ऐसे समय के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, वापस कर दे ।

                (7) विहित प्राधिकारी द्वारा उपधारा (6) के अधीन किया गया आदेश सिविल न्यायालय द्वारा किया गया आदेश समझा जाएगा और धन-सम्बन्धी निम्नतम अधिकारिता वाले ऐसे न्यायालय द्वारा निष्पादित किया जा सकेगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर लेनदार स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार चलाता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है ।

                (8) शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां कुर्क की गई किसी सम्पत्ति का विक्रय किसी बन्धित ऋण की वसूली के लिए किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किया गया था वहां ऐसे विक्रय पर इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का प्रभाव नहीं पड़ेगा :

                परन्तु बन्धित श्रमिक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे प्रारम्भ से पांच वर्ष के भीतर किसी समय ऐसे विक्रय को अपास्त करने के लिए आवेदन तब कर सकेगा जब वह उस विक्रय की उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट उस रकम को जिसकी वसूली के लिए विक्रय का आदेश किया गया था, उसमें से उतनी रकम और अन्तःकालीन लाभ जो विक्रय की ऐसी उद्घोषणा की तारीख से डिक्रीदार द्वारा प्राप्त किए गए हों, कम करके डिक्रीदार को संदत्त करने के लिए न्यायालय में जमा कर दे ।

                (9) जहां बन्धित श्रम पद्धति के अधीन किसी बाध्यता के प्रवर्तन के लिए कोई वाद या कार्यवाही, जिसके अन्तर्गत बन्धित श्रमिक को दिए गए किसी उधार की वसूली के लिए वाद या कार्यवाही भी है, इस अधिनियम के प्रारम्भ पर लम्बित हो वहां ऐसा वाद या अन्य कार्यवाही ऐसे प्रारम्भ पर खारिज हो जाएगी ।

                (10) इस अधिनियम के प्रारम्भ पर प्रत्येक बन्धित श्रमिक, जो निर्णय के पूर्व या उसके पश्चात् सिविल कारागार में निरुद्ध किया गया है, ऐसे निरोध से तत्काल छोड़ दिया जाएगा ।

7. बन्धित श्रमिक की सम्पत्ति का बन्धक, आदि से मुक्त किया जाना-(1) बन्धित श्रमिक में निहित सभी सम्पत्ति जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व किसी बन्धित ऋण के संबंध में किसी बन्धक, भार, धारणाधिकार या अन्य विल्लंगमों के अधीन थी, जहां तक उसका संबंध बन्धित ऋण से है वहां तक ऐसे बन्धक, भार, धारणाधिकार या अन्य विल्लंगमों से मुक्त और उन्मोचित हो जाएगी और जहां ऐसी सम्पत्ति इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व बन्धकदार के कब्जे में थी या भार, धारणाधिकार या विल्लंगम के धारक के कब्जे में थी वहां ऐसी सम्पत्ति का कब्जा (उस दशा के सिवाय जब वह किसी अन्य भार के अधीन थी) ऐसे प्रारम्भ पर बन्धित श्रमिक को वापस कर दिया जाएगा ।

                (2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी सम्पत्ति का कब्जा बन्धित श्रमिक को वापस करने में कोई विलम्ब किया जाता है तो ऐसा श्रमिक ऐसे प्रारम्भ की तारीख से ही बन्धकदार से या भार, धारणाधिकार या विल्लंगम के धारक से ऐसे अन्तःकालीन लाभ वसूल करने का हकदार होगा जो धन-सम्बन्धी निम्नतम अधिकारिता वाले ऐसे सिविल न्यायालय द्वारा अवधारित किए जाएं जिसकी स्थानीय सीमाओं की अधिकारिता के भीतर ऐसी सम्पत्ति स्थित है ।

8. मुक्त किए गए बन्धित श्रमिक का वासस्थान, आदि से बेदखल किया जाना-(1) ऐसे किसी व्यक्ति को जो बन्धित श्रम करने के किसी दायित्व से इस अधिनियम के अधीन मुक्त और उन्मोचित किया गया है, किसी वासस्थान या अन्य निवास-परिसर से जिसका अधिभोग वह इस अधिनियम के प्रारम्भ से ठीक पूर्व बन्धित श्रम के प्रतिफल के भागरूप कर रहा था, बेदखल नहीं किया जाएगा ।

                (2) यदि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् ऐसा कोई व्यक्ति लेनदार द्वारा उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी वासस्थान या अन्य निवास-परिसर से बेदखल किया जाता है तो उस उपखण्ड का, जिसमें ऐसा वासस्थान या निवास-परिसर स्थित है, कार्यपालक मजिस्ट्रेट बंधित श्रमिक को ऐसे वासस्थान या अन्य निवास-परिसर का कब्जा, यथासाध्य शीघ्रता से, वापस करेगा ।

9. समाप्त ऋण के लिए लेनदार द्वारा संदाय का स्वीकार किया जाना-(1) कोई लेनदार किसी ऐसे बन्धित ऋण के लिए जो इस अधिनियम के उपबन्धों के आधार पर समाप्त हो गया है या समाप्त हुआ समझा गया है या पूर्णतया चुकता कर दिया गया समझा गया है, कोई संदाय स्वीकार नहीं करेगा ।

                (2) जो कोई उपधारा (1) के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा ।

                (3) उपधारा (2) के अधीन किसी व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराने वाला न्यायालय उस व्यक्ति को निदेश दे सकेगा कि वह ऐसी शास्तियों के अतिरिक्त जो उस उपधारा के अधीन अधिरोपित की जाएं, न्यायालय में वह रकम जो उपधारा (1) के उपबन्धों के उल्लंघन में स्वीकार की जाती है, ऐसी अवधि के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, बन्धित श्रमिक को वापस किए जाने के लिए जमा करे ।

अध्याय 4

कार्यान्वयन प्राधिकारी

10. वे प्राधिकारी जो इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिए विनिर्दिष्ट किए जाएं-राज्य सरकार जिला मजिस्ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकेगी और उस पर ऐसे कर्तव्य अधिरोपित कर सकेगी जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हों कि इस अधिनियम के उपबन्ध समुचित रूप से कार्यान्वित किए जा रहे हैं और जिला मजिस्ट्रेट अपना ऐसा अधीनस्थ अधिकारी विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो इस प्रकार प्रदत्त सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग और इस प्रकार अधिरोपित सभी या किन्हीं कर्तव्यों का पालन करेगा और उन स्थानीय सीमाओं को विनिर्दिष्ट करेगा जिनके भीतर ऐसी शक्तियों का प्रयोग या ऐसे कर्तव्यों का पालन इस प्रकार विनिर्दिष्ट अधिकारी द्वारा किया जाएगा ।

11. ऋण सुनिश्चित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों का कर्तव्य-धारा 10 के अधीन राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत जिला मजिस्ट्रेट और उस धारा के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी बन्धित श्रमिक के आर्थिक हितों को सुनिश्चित करके और संरक्षण देकर ऐसे बन्धित श्रमिक के कल्याण की अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करेगा जिससे कि उस बन्धित श्रमिक को कोई और बन्धित ऋण लेने के लिए संविदा करने का कोई अवसर या हेतुक न हो ।

12. जिला मजिस्ट्रेट का और उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारियों का कर्तव्य-प्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट का और धारा 10 के अधीन उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्रत्येक अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह यह जांच करे कि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी बन्धित श्रम पद्धति या किसी अन्य प्रकार के बलात्श्रम का उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवासी किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से प्रवर्तन किया जा रहा है या नहीं और यदि ऐसी जांच के परिणामस्वरूप कोई व्यक्ति बन्धित श्रम पद्धति या बलात्श्रम की किसी अन्य पद्धति का प्रवर्तन करते पाया जाता है तो वह तत्काल ऐसी कार्यवाही करेगा जो ऐसे बलात्श्रम के प्रवर्तन का उन्मूलन करने के लिए आवश्यक हो ।

अध्याय 5

सतर्कता समितियां

 13. सतर्कता समितियां-(1) प्रत्येक राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्रत्येक जिले और प्रत्येक उपखण्ड में उतनी सतर्कता समितियां गठित करेगी जितनी वह ठीक समझे ।

                (2) किसी जिले के लिए गठित प्रत्येक सतर्कता समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात् :-

(क) जिला मजिस्ट्रेट या उसके द्वारा नामनिर्देशित व्यक्ति, जो अध्यक्ष होगा ;

(ख) तीन व्यक्ति, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के हों और जिले में निवास करे रहे हों, जो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

(ग) दो सामाजिक कार्यकर्ता, जो जिले में निवासी हों, जो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

(घ) जिले में ग्रामीण विकास से सम्बन्धित शासकीय या अशासकीय अभिकरणों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिक से अधिक तीन व्यक्ति, जो राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

(ङ) जिले में वित्तीय और प्रत्यय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक व्यक्ति, जो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा ।

(3) किसी उपखण्ड के लिए गठित प्रत्येक सतर्कता समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात् :-

(क) उपखण्ड मजिस्ट्रेट या उसके द्वारा नामनिर्देशित व्यक्ति, जो अध्यक्ष होगा ;

(ख) तीन व्यक्ति, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के हों और उपखण्ड में निवास करे रहे हों, जो उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

() दो सामाजिक कार्यकर्ता, जो उपखण्ड में निवासी हों, जो उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

(घ) उपखण्ड में ग्रामीण विकास से सम्बन्धित शासकीय या अशासकीय अभिकरणों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिक से अधिक तीन व्यक्ति, जो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ;

(ङ) उपखण्ड में वित्तीय और प्रत्यय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक व्यक्ति, जो उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा ;

(च) एक अधिकारी, जो धारा 10 के अधीन विनिर्दिष्ट है और उपखण्ड में कार्य कर रहा है ।

                (4) प्रत्येक सतर्कता समिति अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगी और उसे-

(क) जिले के लिए गठित सतर्कता समिति की दशा में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा,

(ख) उपखण्ड के लिए गठित सतर्कता समिति की दशा में उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा,

ऐसी अनुसचिवीय सहायता दी जाएगी जो आवश्यक हो ।

(5) सतर्कता समिति की कोई कार्यवाही सतर्कता समिति के गठन या कार्यवाहियों में किसी त्रुटि के कारण ही अविधिमान्य नहीं होगी ।

14. सतर्कता समितियों के कृत्य-(1) प्रत्येक सतर्कता समिति के निम्नलिखित कृत्य होंगे, अर्थात् :-

(क) यह सुनिश्चित करने के लिए, कि इस अधिनियम के या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्धों का समुचित रूप से क्रियान्वयन हो, किए गए प्रयत्न और की गई कार्रवाई के बारे में जिला मजिस्ट्रेट या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी को सलाह देना ;

(ख) मुक्त किए गए बन्धित श्रमिकों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए व्यवस्था करना ;

(ग) मुक्त किए गए बन्धित श्रमिकों के लिए पर्याप्त प्रत्यय की व्यवस्था करने के उद्देश्य से ग्रामीण बैंकों और सहकारी सोसाइटियों के कृत्यों का समन्वय करना ;

(घ) उन अपराधों की संख्या पर नजर रखना जिनका संज्ञान इस अधिनियम के अधीन किया गया है ;

(ङ) यह सर्वेक्षण करना कि क्या कोई ऐसा अपराध किया गया है जिसका संज्ञान इस अधिनियम के अधीन किया जाना चाहिए था ;

(च) मुक्त किए गए बन्धित श्रमिक के या उसके कुटुम्ब के सदस्य के या उस पर आश्रित व्यक्ति के विरुद्ध संस्थित किसी ऐसे वाद की प्रतिरक्षा करना, जो किसी बन्धित ऋण या किसी ऐसे अन्य ऋण के सम्पूर्ण या उसके किसी भाग की वसूली के लिए हो जिसका दावा बन्धित ऋण के रूप में ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है ।

(2) सतर्कता समिति अपने सदस्यों में से किसी एक सदस्य को इस बात के लिए प्राधिकृत कर सकेगी कि वह मुक्त किए गए बन्धित श्रमिक के विरुद्ध वाद की प्रतिरक्षा करे और इस प्रकार प्राधिकृत सदस्य मुक्त किए गए बन्धित श्रमिक का, ऐसे वाद के प्रयोजन के लिए प्राधिकृत अभिकर्ता समझा जाएगा ।

15. सबूत का भार-जब कभी किसी बन्धित श्रमिक या सतर्कता समिति द्वारा किसी ऋण के बारे में यह दावा किया जाता है कि वह बन्धित ऋण है तो ऐसे ऋण के बन्धित ऋण न होने के सबूत का भार लेनदार पर होगा ।

अध्याय 6

अपराध और विचारण के लिए प्रक्रिया

16. बन्धित श्रम के प्रवर्तन के लिए दण्ड-जो कोई इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी व्यक्ति को कोई बन्धित श्रम करने के लिए विवश करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

17. बन्धित ऋण के दिए जाने के लिए दण्ड-जो कोई इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् कोई बन्धित ऋण देगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

18.  बन्धित श्रम पद्धति के अधीन बन्धित श्रम कराने के लिए दण्ड-जो कोई इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी ऐसी रूढ़ि, परम्परा, संविदा, करार या अन्य लिखत का प्रवर्तन करेगा, जिसके आधार पर किसी व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति के कुटुम्ब के किसी सदस्य या ऐसे व्यक्ति पर आश्रित किसी व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह बन्धित श्रम पद्धति के अधीन कोई सेवा करे तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा और यदि जुर्माना वसूल किया जाता है तो उसमें से बन्धित श्रमिक को ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिस दिन उससे बन्धित श्रम कराया गया था, पांच रुपए की दर से संदाय किया जाएगा ।

19. बन्धित श्रमिकों को सम्पत्ति का कब्जा वापस करने में लोप या असफलता के लिए दण्ड-ऐसा कोई व्यक्ति, जिससे इस अधिनियम द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि वह किसी सम्पत्ति का कब्जा किसी बन्धित श्रमिक को वापस करे, इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीन दिन की अवधि के भीतर ऐसा करने में लोप करेगा या असफल रहेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा और यदि जुर्माना वसूल किया जाता है तो उमसें से बन्धित श्रमिक को ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान सम्पत्ति का कब्जा उसे वापस नहीं किया गया था, पांच रुपए की दर से संदाय किया जाएगा

20. दुष्प्रेरण का एक अपराध होना-जो कोई इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध को दुष्प्रेरण करेगा, चाहे दुष्प्रेरित अपराध किया गया हो या नहीं, वह उसी दण्ड से दण्डनीय होगा जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है, जिसका दुष्प्रेरण किया गया है

स्पष्टीकरण-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, दुष्प्रेरण" का वही अर्थ है जो उसका भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) में है

21. अपराधों का कार्यपालक मजिस्ट्रेटों द्वारा विचारण किया जाना-(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान कर सकेगी और ऐसी शक्तियों के प्रदान किए जाने पर उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट को, जिसे इस प्रकार शक्तियां प्रदान की गई हैं, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति, प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या, द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट समझा जाएगा ।

                (2) इस अधिनियम के अधीन अपराध का विचारण मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षेपतः किया जाएगा ।

22. अपराधों का संज्ञान-इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक अपराध संज्ञेय और जमानतीय होगा ।

23. कम्पनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तो प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरादायी था और साथ ही वह कम्पनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने के भागी होंगे :

                (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तथा यह साबित होता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए,-

() कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है ; तथा

(ख) फर्म के सम्बन्ध में निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

अध्याय 7

प्रकीर्ण

24. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही राज्य सरकार के अथवा राज्य सरकार के किसी अधिकारी के या सतर्कता समिति के किसी सदस्य के विरुद्ध न होगी ।

25. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-किसी भी सिविल न्यायालय को किसी ऐसे विषय के बारे में अधिकारिता नहीं होगी जिसे इस अधिनियम का कोई उपबन्ध लागू होता है और किसी सिविल न्यायालय द्वारा किसी ऐसी बात के बारे में कोई व्यादेश नहीं दिया जाएगा जो इस अधिनियम के अधीन की गई या की जाने के लिए आशयित है

26. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :-

(क) वह प्राधिकारी जिसको धारा 6 की उपधारा (4) या उपधारा (5) में निर्दिष्ट सम्पत्ति के कब्जे की वापसी के लिए उस धारा की उपधारा (6) के अनुसरण में आवेदन दिया जाना है ;

(ख) वह समय जिसके भीतर सम्पत्ति के कब्जे की वापसी के लिए धारा 6 की उपधारा (6) के अधीन आवेदन विहित प्राधिकारी को किया जाना है ;

(ग) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्धों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता समितियों द्वारा धारा 14 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन उठाए जाने वाले कदम ;

(घ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जा सकता है ।

(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

27. निरसन और व्यावृत्ति-(1) बन्धित श्रम पद्धति (उत्सादन) अध्यादेश, 1975 (1975 का 17) इसके द्वारा निरसित किया जाता है ।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी यह है कि उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई (जिसके अन्तर्गत कोई प्रकाशित अधिसूचना, किया गया कोई निदेश या नामनिर्देशन, प्रदत्त शक्ति, अधिरोपित कर्तव्य या विनिर्दिष्ट अधिकारी भी है) इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी ।

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