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खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ( Food Safety and Standards Act, 2006 )


 

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006

(2006 का अधिनियम संख्यांक 34)

[23 अगस्त, 2006]

खाद्य से संबंधित विधियों को समेकित करने और खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान

आधारित मानक अधिकथित करने तथा उनके विनिर्माण, भंडारण, वितरण,

विक्रय और आयात को विनियमित करने के लिए, मानव उपभोग के

लिए सुरक्षित तथा स्वास्थ्यप्रद खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित

करने, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की

स्थापना करने, तथा उनसे संबंधित या उनके

आनुंषगिक विषयों का उपबंध

करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के सतावनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 है । 

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे, और इस अधिनियम के भिन्न उपबन्धों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबंध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबंध के प्रवर्तन में आने के प्रति निर्देश है ।

2. नियंत्रण की समीचीनता के संबंध में संघ द्वारा घोषणा-यह घोषणा की जाती है कि लोकहित में यह समीचीन है कि संघ को खाद्य उद्योग को अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए ।

3. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) अपद्रव्य" से ऐसी कोई सामग्री अभिप्रेत है, जिसका उपयोग खाद्य को असुरक्षित या अवमानक या मिथ्या छाप वाला बनाने के लिए किया जाता है या किया जा सकता है या जिसमें बाह्य पदार्थ अंतर्विष्ट हैं;

(ख) विज्ञापन" से कोई श्रव्य या दृश्य प्रचार, किसी प्रकाश, ध्वनि, धुएं, गैस, मुद्रण, इलैक्ट्रानिक मीडिया, इंटरनेट या वैब साईट द्वारा किया गया रूपण या उद्घोषणा अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत किसी सूचना, परिपत्र, लेबल, लपेटन, बीजक या अन्य दस्तावेजों के माध्यम से प्रचार भी है;

(ग) अध्यक्ष" से खाद्य प्राधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;

(घ) दावे" से ऐसा कोई अभ्यावेदन अभिप्रेत है, जिसमें यह कथन, सुझाव या विवक्षा की जाती है कि किसी खाद्य में उसके उ-व, पोषक तत्व, प्रकृति, प्रसंस्करण, सम्मिश्रण या अन्यथा से संबंधित विशिष्ट क्वालिटियां हैं;

(ङ) खाद्य सुरक्षा आयुक्त" से धारा 30 के अधीन नियुक्त खाद्य सुरक्षा आयुक्त अभिप्रेत है;

(च) उपभोक्ता" से ऐसे व्यक्ति और कुटुम्ब अभिप्रेत हैं जो अपनी वैयक्तिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खाद्य क्रय करते हैं या प्राप्त करते हैं;

(छ) संदूषक" से ऐसा कोई पदार्थ अभिप्रेत है, चाहे वह खाद्य में मिलाया गया हो या नहीं किन्तु वह ऐसे खाद्य में ऐसे खाद्य के उत्पादन (जिसके अन्तर्गत कृषि कर्म, पशुपालन या पशु चिकित्सा औषधि में की गई संक्रियाएं भी हैं), विनिर्माण, प्रसंस्करण, निर्माण, उपचार, पैकिंग, पैकेजिंग, परिवहन या धारण करने के परिणामस्वरूप या पर्यावरणीय संदूषण के परिणामस्वरूप विद्यमान है और इसके अन्तर्गत कीट अवशेष, कृतंक रोम और अन्य बाह्य पदार्थ नहीं हैं;

(ज) अभिहित अधिकारी" से धारा के 36 अधीन नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है;

(झ) बाह्य पदार्थ" से किसी खाद्य पदार्थ में अंतर्विष्ट कोई पदार्थ अभिप्रेत है, जो उसके विनिर्माण के लिए प्रयुक्त कच्ची सामग्री, पैकेजिंग सामग्री या प्रसंस्करण प्रणाली से आ सकता है या इसमें मिलाया जाता है, किन्तु ऐसा पदार्थ ऐसे खाद्य पदार्थ को असुरक्षित नहीं बनाता है;

(ञ) खाद्य" से ऐसा कोई पदार्थ अभिप्रेत है, चाहे वह प्रसंस्कृत है, या आंशिक रूप से प्रसंस्कृत है या अप्रसंस्कृत है, जो मानव उपभोग के लिए आशयित है और जिसके अन्तर्गत खंड (यट) में परिभाषित सीमा तक प्राथमिक खाद्य, आनुवंशिक रूप से उपांतरित या निर्मित खाद्य या ऐसे संघटकों से युक्त खाद्य, शिशु खाद्य, पैक किया गया पीने का जल, अल्कोहाली पेय, चिविंगम, तथा कोई अन्य पदार्थ हैं, जिसके  अन्तर्गत खाद्य के विनिर्माण, निर्माण या उपचार के दौरान प्रयुक्त किया गया जल भी है, किन्तु इसके अंतर्गत कोई पशु खाद्य, जीवित पशु तब तक, जब तक कि उन्हें मानव उपभोग के लिए बाजार में लाने हेतु तैयार या प्रसंस्कृत नहीं किया जाता, कटाई से पूर्व पौधे, औषधि और औषधीय उत्पाद, प्रसाधन सामग्री, स्वापक या मनःप्रभावी पदार्थ नहीं हैं :

परन्तु केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी अन्य वस्तु को, उसके उपयोग, प्रकृति, सार या क्वालिटी को ध्यान में रखते हुए, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए खाद्य घोषित कर सकेगी;

(ट) खाद्य योज्यक" से ऐसा कोई पदार्थ अभिप्रेत है, जिसका सामान्यतः स्वयं किसी खाद्य के रूप में उपभोग नहीं किया जाता है या जिसे खाद्य के विशिष्ट संघटक के रूप में उपयोग में लाया जाता है चाहे उसका पोषक मूल्य है या नहीं, ऐसे खाद्य के विनिर्माण, प्रसंस्करण, निर्माण, उपचार, पैकिंग, पैकेजिंग, परिवहन या धारण करने में प्रौद्योगिक (जिसके अन्तर्गत आर्गेनोलैप्टिक भी है) प्रयोजन के लिए खाद्य में जिसके साशय मिश्रण के परिणामस्वरूप प्रत्यक्षतः या परोक्षतः या युक्तियुक्त रूप से निर्माण की संभावना है या जिसका उपोत्पाद ऐसे खाद्य का संघटक बन जाता है, उसका निर्माण होता है या ऐसे खाद्य की विशेषताओं को अन्यथा प्रभावित करता है किन्तु इसके अन्तर्गत खाद्य में पोषक क्वालिटियों को बनाए रखने या उनमें सुधार करने के लिए मिलाए गए संदूषक" या पदार्थ सम्मिलित नहीं हैं;

(ठ) खाद्य विश्लेषक" से धारा 45 के अधीन नियुक्त विश्लेषक अभिप्रेत है;

(ड) खाद्य प्राधिकरण" से धारा 4 के अधीन स्थापित भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण अभिप्रेत है;

(ढ) खाद्य कारबार" से ऐसा कोई उपक्रम अभिप्रेत है, चाहे वह लाभ के लिए है या नहीं और चाहे वह सार्वजानिक है या प्राइवेट, जो खाद्य के विनिर्माण, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, भंडारण, परिवहन, वितरण, आयात के किसी प्रक्रम से संबंधित क्रियाकलापों में से कोई क्रियाकलाप कर रहा है और इसके अन्तर्गत खाद्य सेवाएं, जलपान सेवाएं, खाद्य या खाद्य संघटकों का विक्रय भी है;

(ण) खाद्य कारबार के संबंध में, खाद्य कारबार कर्ता" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसके द्वारा कारबार किया जाता है या जिसका वह स्वामी है तथा इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है;

(त) खाद्य प्रयोगशाला" से केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य अभिकरण द्वारा स्थापित कोई खाद्य प्रयोगशाला या संस्थान अभिप्रेत है और जो परीक्षण और मूल्यांकन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड या किसी समतुल्य प्रत्यायन अभिकरण द्वारा प्रत्यायित है तथा धारा 43 के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा मान्यताप्राप्त है;

(थ) खाद्य सुरक्षा" से यह आश्वासन अभिप्रेत है कि खाद्य उसके आशयित उपयोग के अनुसार मानव उपभोग के लिए स्वीकार्य है;

(द) खाद्य सुरक्षा संपरीक्षा" से यह अवधारित करने के लिए कि क्या ऐसे उपाय और संबंधित परिणाम खाद्य सुरक्षा और उस निमित्त किए गए दावों के उद्देश्यों को पूरा करते हैं विनिर्माण इकाइयों द्वारा अपनाए गए खाद्य सुरक्षा उपायों की क्रमबद्ध और क्रियात्मक रूप से स्वंतत्र जांच अभिप्रेत है;

(ध) खाद्य सुरक्षा प्रबन्ध प्रणाली" से अच्छी विनिर्माण पद्धतियों, अच्छी स्वास्थ्यकर पद्धतियों, परिसंकट विश्लेषण और संकटकालीन नियंत्रण केन्द्र तथा अन्य ऐसी पद्धतियों, जो खाद्य कारबार के लिए विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं, का अपनाया जाना अभिप्रेत है;

(न) खाद्य सुरक्षा अधिकारी" से धारा 37 के अधीन नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है;

(प) परिसंकट" से खाद्य में ऐसा कोई जैविक, रासायनिक या भौतिक कारक या खाद्य की अवस्था अभिप्रेत है, जो प्रभावी रूप से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव कारित करता है;

(फ) आयात" से किसी खाद्य पदार्थ को भारत में भूमि, समुद्र या वायु मार्ग द्वारा लाना अभिप्रेत है;

(ब) सुधार सूचना" से इस अधिनियम की धारा 32 के अधीन जारी की गई सूचना अभिप्रेत है;

(भ) शिशु-खाद्य" और शिशु दुग्ध अनुकल्प" के वही अर्थ हैं, जो उनके शिशु दुग्ध अनुकल्प, पोषण बोतल और शिशु-खाद्य (उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम, 1992 (1992 का 41) की धारा 2 की उपधारा (1) के क्रमशः खण्ड (च) और खण्ड (छ) में हैं;

(म) संघटक" से कोई पदार्थ अभिप्रेत है, जिसके अन्तर्गत खाद्य के विनिर्माण या निर्मिति में प्रयुक्त कोई खाद्य योज्यक भी है और जो अन्तिम उत्पाद में, संभवतः उपान्तरित रूप में, विद्यमान हैं;

(य) लेबल" से अभिप्रेत है किसी खाद्य पैकेज के आधान, कवर, डाट या ढक्कन पर लगा कोई टैग, ब्रांड, चिह्न, चित्रित या अन्य वर्णित सामग्री जो लिखित, मुद्रित, स्टैंसिलीकृत, चिन्हित, उत्कीर्णित, ग्राफिक, छिद्रित, स्टांपीकृत या छपी है और इसके अंतर्गत अंतःस्थापित उत्पाद भी है;

(यक) अनुज्ञप्ति" से धारा 31 के अधीन अनुदत्त अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है;

(यख) स्थानीय क्षेत्र" से ऐसा कोई नगरीय या ग्रामीण क्षेत्र अभिप्रेत है, जिसे इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए स्थानीय क्षेत्र के रूप में खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा अधिसूचित किया गया है;

(यग) विनिर्माण" से संघटकों के किसी खाद्य पदार्थ में संपरिवर्तन के लिए कोई प्रक्रिया या अंगीकरण या कोई उपचार अभिप्रेत है, जिसके अन्तर्गत किसी खाद्य पदार्थ के विनिर्माण की कोई आनुषंगिक या प्रासंगिक उप प्रक्रिया भी है;

(यघ) विनिर्माता" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो विक्रय के लिए किसी खाद्य पदार्थ के विनिर्माण के कारबार में लगा है और इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है, जो विक्रय के लिए ऐसे खाद्य को, किसी अन्य व्यक्ति से अभिप्राप्त करता है और पैक करता है तथा उस पर लेबल लगाता है या ऐसे प्रयोजनों के लिए केवल लेबल लगाता है;

 [(यङ) सदस्य" के अंतर्गत खाद्य प्राधिकरण का कोई अंशकालिक सदस्य और अध्यक्ष भी है;]

(यच) मिथ्या छाप वाला खाद्य" से कोई खाद्य पदार्थ अभिप्रेत है-

(अ) यदि वह-

(i) (क) पैकेज के लेबल के ऊपर; या

(ख) विज्ञापन के द्वारा, मिथ्या, भ्रामक या प्रबंधक दावे के साथ विक्रय के लिए प्रस्थापित किए जाने या संवर्धित किए जाने; या

(ii) ऐसे नाम से, जो किसी अन्य खाद्य पदार्थ का है, विक्रय किए जाने; या

(iii) पदार्थ के विनिर्माता या उत्पादक के रूप में किसी कल्पित व्यष्टि या कम्पनी के नाम से जो पदार्थ वाले पैकेज पर लिखा है या पैकेज पर लेबल लगा है, विक्रय के लिए प्रस्थापित या संवर्धित करने के लिए तात्पर्यित है या प्रस्तुत किया जाता है या प्रस्थापित या संवर्धित किया जा रहा है;

(आ) यदि पदार्थ ऐसे पैकेजों में विक्रय किया जाता है जो विनिर्माता या उत्पादक के द्वारा या उसके कहने पर मोहरबंद या तैयार किए गए हैं और जिन पर उसका नाम और पता है किन्तु-

(i) वह किसी अन्य खाद्य पदार्थ की, जिसके नाम से उसका विक्रय किया जाता है, नकल है, या उसके स्थान पर प्रतिस्थापित है या उससे इस प्रकार मिलता-जुलता है कि धोखा हो जाए और उस पर उसका असली रूप उपदर्शित करने के लिए स्पष्ट और सहजदृश्य रूप से लेबल नहीं लगाया गया है; या 

(ii) पदार्थ वाले पैकेज या पैकेज पर लेबल में उसमें अन्तर्विष्ट संघटकों या तत्त्वों के बारे में कोई ऐसा कथन, डिजाइन या अभिलक्षण है जो किसी सारवान् विशिष्टि में मिथ्या या भुलावा देने वाली है, या यदि पैकेज अपनी अन्तर्वस्तुओं के बारे में अन्यथा धोखा देने वाला है;

(iii) किसी स्थान या देश के उत्पाद के रूप में जिस पदार्थ की विक्रय के लिए प्रस्थापना की गई है, वह मिथ्या है; या 

(इ) यदि पैकेज में अन्तर्विष्ट पदार्थ-

(i) कोई कृत्रिम सुरुचिकारक, कृत्रिम रंजक या रासायनिक परिरक्षी से युक्त है और पैकेज पर उस तथ्य का कथन वाला घोषणात्मक लेबल नहीं लगा है या इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों की अपेक्षाओं के अनुसार उस पर लेबल नहीं लगाया गया है या उसके उल्लंघन में है; या

(ii) विशेष आहार उपयोगों के लिए विक्रय के लिए प्रस्थापित किया गया है जब तक कि उसके लेबल पर, उसके विटामिन, खनिज या अन्य आहार तत्वों के बारे में ऐसी जानकारी, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे उपयोग के लिए उसके गुणों के बारे में उसके क्रेता को पर्याप्त रूप से सूचित करने के लिए उसके लेबल में नहीं दी गई है; या

(iii) उसके बाहर उसके बारे में सहजदृश्य रूप से या सही रूप से कथित नहीं है कि वह इस अधिनियम के अधीन अधिकथित परिवर्तिता की सीमाओं के भीतर हैं; 

(यछ) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;

(यज) पैकेज" से ऐसा पूर्व पैक बाक्स, बोतल, संदूकची, टिन, बैरल, डिब्बा, पाऊच, पात्र, बोरी, थैला, रैपर या ऐसी कोई अन्य चीज अभिप्रेत है, जिसमें खाद्य पदार्थ पैक किया जाता है;

(यझ) परिसर" के अन्तर्गत कोई ऐसी दुकान, स्टाल, होटल, रेस्तरां, एयरलाइन सेवाएं और खाद्य कैंटीनें, स्थान या यान या जलयान भी हैं, जहां कोई खाद्य पदार्थ विक्रय किया जाता है या विक्रय के लिए विनिर्मित किया जाता है या भण्डार में रखा जाता है ;

(यञ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(यट) प्राथामिक खाद्य" से ऐसा खाद्य पदार्थ अभिप्रेत है जो कृषि, या बागवानी या पशुपालन और डेयरी या   जल-कृषि के अपने प्राकृतिक रूप में उत्पाद है, जो कृषक या मछुआरे से भिन्न व्यक्ति के हाथों से उगाए जाने, खड़े किए जाने, जुताई, चुनने, कटाई, संग्रहण या बीनने के परिणामस्वरूप उत्पादित होता है;

(यठ) प्रतिषेध आदेश" से इस अधिनियम की धारा 33 के अधीन जारी किया गया आदेश अभिप्रेत है;

(यड) किसी खाद्य पदार्थ के संबंध में जोखिम" से ऐसे खाद्य के उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर खाद्य परिसंकट के परिणामस्वरूप प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभाव्यता और उस प्रभाव की गंभीरता अभिप्रेत है;

(यढ) किसी खाद्य पदार्थ के संबंध में जोखिम विश्लेषण" से ऐसी प्रक्रिया अभिप्रेत है जिसमें तीन स्तर अर्थात् जोखिम निर्धारण, जोखिम प्रबन्ध और जोखिम संसूचना है;

(यण) जोखिम निर्धारण" से कोई वैज्ञानिक रूप से आधारित प्रक्रिया अभिप्रेत है, जिसमें निम्नलिखित कदम सम्मिलित हैं : (i) परिसंकट की पहचान, (ii) परिसंकट का लक्षण-वर्णन, (iii) उच्छन्न निर्धारण, और (iv) जोखिम का  लक्षण-वर्णन;

(यत) जोखिम संसूचना" से जोखिम निर्धारकों, जोखिम प्रबन्धकों, उपभोक्ताओं, उद्योग, शैक्षणिक समुदाय और अन्य हितबद्ध पक्षकारों के बीच जोखिम, जोखिम संबंधी कारकों और जोखिम अवधारणाओं से संबंधित जोखिम विश्लेषण प्रक्रिया के दौरान सूचना और रायों का पारस्परिक विनिमय अभिप्रेत है, जिसके अन्तर्गत जोखिम निर्धारण निष्कर्षों और जोखिम प्रबन्ध विनिश्चयों के आधार का स्पष्टीकरण भी है;

(यथ) जोखिम प्रबन्ध" से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए और उचित व्यापारिक व्यवहारों के संवर्धन के लिए, जोखिम निर्धारण और अन्य सुसंगत पहलुओं पर विचार करते हुए, सभी हितबद्ध पक्षकारों के परामर्श से मूल्यांकन जोखिम निर्धारण से भिन्न और यदि आवश्यक हो तो, उचित निवारण और नियंत्रण विकल्पों का चयन करने की प्रक्रिया अभिप्रेत है;

(यद) अपने व्याकरणिक रूपों और सजातीय पदों सहित विक्रय" से मानव उपभोग या उपयोग के लिए या विश्लेषण के लिए किसी खाद्य पदार्थ का विक्रय अभिप्रेत है, चाहे वह नकद हो या उधार पर हो या विनिमय के रूप में हो, और थोक में हो, या फुटकर में हो और किसी ऐसे पदार्थ के विक्रय के लिए करार करना या विक्रय के लिए प्रस्थापना करना या उसे विक्रय के लिए अभिदर्शित करना या विक्रय के लिए कब्जे में रखना इसके अन्तर्गत है और किसी ऐसे पदार्थ का विक्रय करने का प्रयत्न भी इसके अन्तर्गत आता है;

(यध) नमूने" से किसी खाद्य पदार्थ का नमूना अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों और विनियमों के उपबन्धों के अधीन लिया गया है;

(यन) विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट" से खाद्य प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट अभिप्रेत है;

(यप) किसी खाद्य पदार्थ के संबंध में, मानक" से खाद्य प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित मानक अभिप्रेत है;

(यफ) संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, राज्य सरकार" से संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है;

(यब) पदार्थ" के अन्तर्गत कोई प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ या अन्य वस्तु अभिप्रेत है, चाहे वह ठोस अवस्था में हो या द्रव रूप या गैस या वाष्प रूप में;

(यभ) अवमानक" से कोई खाद्य पदार्थ तब अवमानक समझा जाएगा यदि वह विनिर्दिष्ट मानकों को पूरा नहीं करता है किन्तु उससे खाद्य पदार्थ असुरक्षित नहीं होता है;

(यम) अधिकरण" से धारा 70 के अधीन स्थापित खाद्य सुरक्षा अपील अधिकरण अभिप्रेत है;

(यय) असुरक्षित खाद्य" से कोई ऐसा खाद्य पदार्थ अभिप्रेत है जिसकी प्रकृति, पदार्थ या क्वालिटी इस प्रकार प्रभावित है जो इसे निम्नलिखित कारण से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बना देती है,-

(i) स्वतः वस्तु या उसके पैकेज से, जो पूर्णतः या भागतः विषैले या हानिकारक पदार्थ से बना है; या

(ii) उस वस्तु से जो पूर्णतः या भागतः गंदे, दूषित, सड़े, गले या रुग्ण पशुजन्य पदार्थ या वनस्पतिजन्य पदार्थ से बनी है; या

(iii) उसके अस्वास्थ्यकर प्रसंस्करण के कारण या उस वस्तु में किसी हानिकारक पदार्थ की विद्यमानता से; या

(iv) किसी घटिया या सस्ते पदार्थ के अनुकल्प द्वारा चाहे वह पूर्णतः हो या भागतः;

(v) किसी पदार्थ को सीधे या किसी संघटक के रूप में, जो अनुज्ञेय नहीं है, मिलाकर; या

(vi) उसके किसी संघटक को पूर्णतः या भागतः निकालकर; या

(vii) पदार्थ को इस प्रकार रंजित, सुरुचिकारक या विलेपित, चूर्णीकृत या पालिशीकृत करके जिससे पदार्थ को नुकसान होता हो या वह इस प्रकार छिपाया जाता है या उस पदार्थ को उससे बेहतर या अधिक मूल्य का प्रकट करना जैसा कि वह वास्तव में है; या

(viii) किसी रंजक पदार्थ या परिरक्षी को, उससे भिन्न जो उसकी बाबत विनिर्दिष्ट किया गया है, उसमें मिलाकर; या

(ix) उन पदार्थों से जो कृमियों, घुन या कीटों से विसंक्रमित या ग्रसित हैं; या

(x) उनको तैयार किए जाने, पैक किए जाने या अस्वास्थकर दशाओं में रखे जाने से;

(xi) उसके मिथ्या छाप वाली या अवमानक होने या खाद्य में बाह्य पदार्थ होने से; या

(xii) विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट मात्राओं से अधिक नाशक जीवमार और अन्य संदूषक अंतर्विष्ट होने के कारण ।

(2) इस अधिनियम में ऐसी किसी विधि जो जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवर्तन में नहीं हैं, के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि, यदि कोई हो, के प्रति निर्देश है ।

अध्याय 2

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण

4. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की स्थापना-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और समनुदेशित कृत्यों का पालन करने के लिए, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के नाम से ज्ञात एक निकाय की, स्थापना करेगी ।

(2) खाद्य प्राधिकरण पूर्वोक्त नाम से एक निगमित निकाय होगा, जिसका जंगम और स्थावर संपत्ति को अर्जित करने, धारित करने और व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति के साथ शाश्वत उत्तराधिकार होगा और उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी और वह उस नाम से वाद ला सकेगा या उसके विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा ।

(3) खाद्य प्राधिकरण का प्रधान कार्यालय दिल्ली में होगा ।

(4) खाद्य प्राधिकरण भारत में किसी अन्य स्थान पर अपने कार्यालयों की स्थापना कर सकेगा ।

5. खाद्य प्राधिकरण की संरचना और उसके अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हताएं-(1) खाद्य प्राधिकरण, अध्यक्ष और निम्नलिखित बाईस सदस्यों से, जिनमें से एक-तिहाई स्त्रियां होंगी, मिलकर बनेगा, अर्थात्: -

(क) सात ऐसे सदस्य जो निम्नलिखित से संबंधित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों या विभागों का प्रतिनिधित्व करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे और वे भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से निम्न पंक्ति के नहीं होंगे: - 

(i) कृषि,

(ii) वाणिज्य,

(iii) उपभोक्ता मामले,

(iv) खाद्य प्रसंस्करण,

(v) स्वास्थ्य,

(vi) विधायी मामले,

(vii) लघु उद्योग,

जो पदेन सदस्य होंगे;

(ख) खाद्य उद्योग से दो प्रतिनिधि जिनमें से एक लघु उद्योग से होगा;

(ग) उपभोक्ता संगठनों से दो प्रतिनिधि;

(घ) तीन प्रख्यात खाद्य प्रौद्योगिकीविद् या वैज्ञानिक;

(ङ) राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए पहली अनुसूची में यथाविनिर्दिष्ट जोनों से एक-एक प्रत्येक तीन वर्ष में चक्रानुक्रम से नियुक्त किए जाने वाले पांच सदस्य;

(च) कृषक संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो व्यक्ति;

(छ) खुदरा विक्रेताओं के संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक व्यक्ति ।

(2) खाद्य प्राधिकरण का अध्यक्ष और अन्य सदस्य ऐसी रीति में नियुक्त किए जाएंगे जिससे कि क्षमता के उच्चतर मानक, सुसंगत विशेषज्ञता की बृहत्तर रेंज सुनिश्चित की जा सके और देश के भीतर अधिकतम संभव भौगोलिक वितरण की दृष्टि से प्रतिनिधित्व करेंगे ।

(3) केन्द्रीय सरकार द्वारा अध्यक्ष की नियुक्ति खाद्य विज्ञान के क्षेत्र में प्रख्यात व्यक्तियों में से या प्रशासन के ऐसे व्यक्तियों में से की जाएगी जो उस विषय से सहयोजित रहे हैं तथा जो भारत सरकार के सचिव से अन्यून पंक्ति का पद धारण किए हुए हैं या धारण किया है ।

[(4) खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्य, जिसके अंतर्गत पदेन सदस्यों से भिन्न आंशकालिक सदस्य भी हैं, केन्द्रीय सरकार द्वारा चयन समिति की सिफारिशों पर नियुक्त किए जाएंगे ।

(5) खाद्य प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई अन्य पद धारण नहीं करेगा ।]

6. खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिए चयन समिति-(1) केन्द्रीय सरकार, खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्यों के चयन के प्रयोजन के लिए एक चयन समिति का गठन करेगी, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, -

(क) मंत्रिमंडल सचिव-अध्यक्ष;

(ख) इस अधिनियम के प्रशासन के लिए उत्तरदायी मंत्रालय या विभाग का भारसाधक सचिव-संयोजक के रूप में-सदस्य;

(ग) स्वास्थ्य, विधायी और कार्मिक से संबंधित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों या विभागों के भारसाधक सचिव-सदस्य; 

(घ) लोक उद्यम चयन बोर्ड का अध्यक्ष-सदस्य;

(ङ) कोई प्रख्यात खाद्य प्रौद्योगिकीविद् जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा-सदस्य ।

स्पष्टीकरण-खण्ड (ङ) के प्रयोजनों के लिए, केन्द्रीय सरकार ऐसे व्यक्तियों में से जो किसी राष्ट्रीय अनुसंधान या तकनीकी संस्था के निदेशक या अध्यक्ष के पद जो किसी भी नाम से ज्ञात हो, धारण किए हुए है किसी व्यक्ति को नाम-निर्दिष्ट करेगी

(2) केन्द्रीय सरकार, खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष या किसी सदस्य की मृत्यु, उसके पद त्याग या हटाए जाने के कारण कोई रिक्ति होने की तारीख से दो मास के भीतर और उस प्राधिकरण के अध्यक्ष या किसी सदस्य की अधिवर्षिता या पदावधि के पूरा होने के तीन मास पूर्व, रिक्ति को भरने के लिए चयन समिति को निर्देश करेगी ।

(3) चयन समिति, खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन को उस तारीख से, जिसको उसे निर्देश किया गया है, दो मास के भीतर अंतिम रूप देगी ।

(4) चयन समिति उसे निर्दिष्ट की गई प्रत्येक रिक्ति के लिए दो नामों के पैनल की सिफारिश करेगी ।

(5) चयन समिति, खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति की सिफारिश करने से पूर्व अपना यह समाधान करेगी कि ऐसे व्यक्ति का कोई ऐसा वित्तीय या अन्य हित नहीं है, जिससे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो ।

(6) खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य की कोई नियुक्ति केवल इस कारण से अविधिमान्य नहीं होगी कि चयन समिति में कोई पद रिक्त है ।

7. खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें-(1) अध्यक्ष और पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्य, उनके पद ग्रहण करने की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे तथा तीन वर्ष की और अवधि के लिए पुनः नियुक्ति के लिए पात्र होंगे:

 [परन्तु अध्यक्ष पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् ऐसा पद धारण नहीं करेगा ।]

(2) अध्यक्ष और पदेन सदस्यों से भिन्य सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(3) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य अपना पद ग्रहण करने के पूर्व ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति में तथा ऐसे प्राधिकारी के समक्ष, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे ।

(4) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, अध्यक्ष या कोई सदस्य-

(क) केन्द्रीय सरकार को कम से कम तीन मास की लिखित में सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा; या

(ख) धारा 8 के उपबंधों के अनुसार उसके पद से हटाया जा सकेगा ।

(5) अध्यक्ष या कोई सदस्य इस प्रकार पद पर न रह जाने पर किसी रीति में खाद्य प्राधिकरण या किसी राज्य प्राधिकरण के समक्ष किसी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा ।

8. खाद्य प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का हटाया जाना-(1) धारा 7 की उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को पद से हटा सकेगी यदि, यथास्थिति, अध्यक्ष या ऐसा अन्य सदस्य, -

(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया गया है; या

(ख) किसी ऐसे अपराध का सिद्धदोष ठहरा दिया गया है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अंतर्वलित हो; या

(ग) सदस्य के रूप में कार्य करने के लिए शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हो गया है; या 

(घ) ऐसा वित्तीय या अन्य हित अर्जित कर लेता है जिससे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो; या

(ङ) अपनी स्थिति का इस प्रकार दुरुपयोग किया है जिससे कि उसके पद पर बने रहने से लोकहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा

(2) कोई सदस्य उपधारा (1) के खंड (घ) और खंड (ङ) के अधीन तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उस विषय में उसे सुने जाने का उचित अवसर नहीं दे दिया गया है ।

9. खाद्य प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी-(1) खाद्य प्राधिकरण का एक मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा जो भारत सरकार के अपर सचिव से नीचे की पंक्ति का नहीं होगा और जो प्राधिकरण का सदस्य सचिव होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(2) खाद्य प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, उसके कृत्यों के निर्वहन में खाद्य प्राधिकरण के लिए अपेक्षित अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या, प्रकृति और प्रवर्ग अवधारित कर सकेगा ।

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो खाद्य प्राधिकरण द्वारा केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं ।

10. मुख्य कार्यपालक अधिकारी के कृत्य-(1) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, खाद्य प्राधिकरण का विधिक प्रतिनिधि होगा और निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होगा-

(क) खाद्य प्राधिकरण का दिन-प्रतिदिन का प्रशासन;

(ख) केन्द्रीय सलाहकार समिति के परामर्श से खाद्य प्राधिकरण के कार्य संबंधी कार्यक्रमों के लिए प्रस्ताव तैयार करना;

(ग) खाद्य प्राधिकरण द्वारा अंगीकृत कार्यक्रमों और विनिश्चयों को कार्यान्वित करना;

(घ) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के लिए समुचित वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रशासनिक सहायता के उपबंध सुनिश्चित करना;

(ङ) यह सुनिश्चित करना कि खाद्य प्राधिकरण, अपने उपयोक्ताओं की अपेक्षाओं के अनुसार अपने कार्यों को, विशिष्टतः उपलब्ध कराई गई सेवाओं और लिए जाने वाले समय की पर्याप्तता के संबंध में, कार्यान्वित करना;

(च) राजस्व और व्यय का विवरण तैयार करना और खाद्य प्राधिकरण के बजट का निष्पादन करना; और

(छ) केन्द्रीय सरकार के साथ संपर्क विकसित करना और बनाए रखना और उसकी सुसंगत समितियों के साथ नियमित बातचीत सुनिश्चित करना ।

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी अनुमोदन के लिए प्रत्येक वर्ष खाद्य प्राधिकरण को निम्नलिखित प्रस्तुत करेगा-

(क) पूर्ववर्ष में खाद्य प्राधिकरण के सभी क्रियाकलापों को सम्मिलित करते हुए एक साधारण रिपोर्ट;

(ख) कार्य संबंधी कार्यक्रम;

(ग) पूर्ववर्ष के लिए वार्षिक लेखे; और

(घ) आगामी वर्ष के लिए बजट ।

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, खाद्य प्राधिकरण द्वारा अंगीकार के पश्चात् केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को साधारण रिपोर्ट और कार्यक्रम अग्रेषित करेगा और उन्हें प्रकाशित कराएगा ।

(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, खाद्य प्राधिकरण के सभी वित्तीय व्यय अनुमोदित करेगा और केन्द्रीय सरकार को प्राधिकरण के क्रियाकलापों के संबंध में रिपोर्ट देगा ।

(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, ऐसी वस्तुओं की खाद्य सुरक्षा से संबंधित विषयों पर कार्रवाई करते समय खाद्य सुरक्षा आयुक्त की शक्तियों का प्रयोग करेगा ।

(6) मुख्य कार्यपालक अधिकारी का खाद्य प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण होगा ।

11. केन्द्रीय सलाहकार समिति-(1) खाद्य प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा, केन्द्रीय सलाहकार समिति के नाम से ज्ञात एक समिति स्थापित करेगा ।

(2) केन्द्रीय सलाहकार समिति दो सदस्यों, जिनमें से प्रत्येक खाद्य उद्योग, कृषि, उपभोक्ताओं, सुसंगत अनुसंधान निकायों और खाद्य प्रयोगशालाओं के हितों का प्रतिनिधित्व करेगा और सभी खाद्य सुरक्षा आयुक्तों से मिलकर बनेगी तथा वैज्ञानिक समिति का अध्यक्ष पदेन सदस्य होगा ।

(3) केन्द्रीय सरकार के कृषि, पशुपालन और दुग्ध उत्पादन, जैव प्रौद्योगिकी, वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले, पर्यावरण और वन, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, स्वास्थ्य, पंचायती राज, लघु उद्योग तथा खाद्य और सार्वजनिक वितरण से संबंधित मंत्रालयों या विभागों के या सरकारी संस्थानों या संगठनों और सरकारी मान्यताप्राप्त कृषक संगठन के प्रतिनिधि केन्द्रीय सलाहकार समिति के साथ विचार-विमर्श में आमंत्रित किए जाएंगे ।

(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी केन्द्रीय सलाहकार समिति का पदेन अध्यक्ष होगा ।

(5) केन्द्रीय सलाहकार समिति अपने कारबार संव्यवहार सहित ऐसे नियमों या प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुसरण करेगी जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

12. केन्द्रीय सलाहकार समिति के कृत्य-(1) केन्द्रीय सलाहकार समिति, खाद्य प्राधिकरण और प्रवर्तन अभिकरणों तथा खाद्य के क्षेत्र में कार्यरत संगठनों के बीच निकट सहयोग सुनिश्चित करेगी ।

(2) केन्द्रीय सलाहकार समिति खाद्य प्राधिकरण को निम्नलिखित के संबंध में सलाह देगी-

(क) इस धारा के अधीन उसके कर्तव्यों का पालन और विशिष्टत या खाद्य प्राधिकरण के कार्य संबंधी कार्यक्रम के लिए कोई प्रस्ताव तैयार करना;

(ख) कार्य की प्राथमिकता;

(ग) संभाव्य जोखिमों की पहचान करना;

(घ) ज्ञान एकत्रित करना; और

(ङ) ऐसे अन्य कृत्य, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(3) केन्द्रीय सलाहकार समिति, केन्द्रीय सलाहकार समिति के अध्यक्ष के आमंत्रण पर या कम से कम उसके एक तिहाई सदस्यों के अनुरोध पर नियमित रूप से और एक वर्ष में कम से कम तीन बार बैठक करेगी ।

13. वैज्ञानिक पैनल-(1) खाद्य प्राधिकरण वैज्ञानिक पैनल स्थापित करेगा जो स्वंतत्र विज्ञान विशेषज्ञों से मिलकर बनेगा ।

(2) वैज्ञानिक पैनल अपने विचार-विमर्श के लिए सुसंगत उद्योग और उपभोक्ता प्रतिनिधियों को आमंत्रित करेगा ।

(3) उपधारा (1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, खाद्य प्राधिकरण निम्नलिखित के संबंध में उतने वैज्ञानिक पैनल स्थापित कर सकेगा जितने वह निम्नलिखित से संबंधित पैनलों के अतिरिक्त आवश्यक समझे-

(क) खाद्य योज्यकों, सुरुचिकारकों, प्रसंस्करण सहायकों और खाद्य संपर्क की सामग्री;

(ख) नाशकजीवमार और प्रतिजैविकी अवशिष्ट;

(ग) आनुवंशिक रूप से उपांतरित जीव और खाद्य;

(घ) कृत्यकारी खाद्य, न्यूट्रास्यूटिकल्स, आहार संबंधी उत्पाद और अन्य ऐसे ही उत्पाद;

(ङ) जैविक परिसंकट;

(च) खाद्य श्रृंखला में संदूषक;

(छ) लेबल लगाना; और

(ज) नमूना लेने और विश्लेषण का ढंग । 

(4) खाद्य प्राधिकरण समय-समय पर, यथास्थिति, नए सदस्य जोड़कर या विद्यमान सदस्यों को हटाकर या पैनल के नाम में परिवर्तन करके वैज्ञानिक पैनल पुनर्गठित कर सकेगा ।

14. वैज्ञानिक समिति-(1) खाद्य प्राधिकरण, वैज्ञानिक समिति गठित करेगा जो वैज्ञानिक पैनलों के अध्यक्षों और छह स्वतंत्र विज्ञान-विशेषज्ञों, जो किसी वैज्ञानिक पैनल से संबंधित या जुड़े नहीं होंगे, से मिलकर बनेगी ।

(2) वैज्ञानिक समिति, खाद्य प्राधिकरण को वैज्ञानिक राय उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी होगी और जहां आवश्यक हो, उसे लोक सुनवाई का आयोजन करने की शक्ति होगी ।

(3) वैज्ञानिक समिति वैज्ञानिक राय प्रक्रिया की संगतता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक साधारण समन्वय के लिए और विशिष्टतः वैज्ञानिक पैनलों के कार्यकरण की प्रक्रियाओं को अपनाने और कार्यकरण की पद्धतियों के सामंजस्य के संबंध में उत्तरदायी होगी ।

(4) वैज्ञानिक समिति एक से अधिक वैज्ञानिक पैनल की सक्षमता के अंतर्गत आने वाले बहुक्षेत्रीय मुद्दों पर और ऐसे मुद्दों पर, जो किसी भी वैज्ञानिक पैनल की सक्षमता के अंतर्गत नहीं आते हैं, राय देगी ।

(5) जहां भी आवश्यक हो, और विशिष्टतः ऐसे विषयों की दशा में, जो किसी भी वैज्ञानिक पैनल की सक्षमता के अंतर्गत नहीं आते हैं, वैज्ञानिक समिति कार्यकारी समूह स्थापित करेगी और ऐसे मामलों में यह वैज्ञानिक सलाह स्थापित करते समय उन कार्यकारी समूहों की विशेषज्ञ राय प्राप्त करेगी ।

15. वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के लिए प्रक्रिया-(1) वैज्ञानिक समिति के ऐसे सदस्य, जो वैज्ञानिक पैनल के सदस्य नहीं हैं और वैज्ञानिक पैनल के सदस्य खाद्य प्राधिकरण द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किए जाएंगे, जो ऐसी ही अवधि के लिए नवीकरणीय होगी और रिक्ति सूचना हित की अभिव्यक्तियों हेतु आमंत्रण के लिए सुसंगत प्रमुख वैज्ञानिक प्रकाशनों में और खाद्य प्राधिकरण की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी ।

(2) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल प्रत्येक अपने सदस्यों में से अध्यक्ष का चुनाव करेगी ।

(3) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल अपने सदस्यों के बहुमत से कार्य करेंगे और सदस्यों की रायों को लेखबद्ध किया जाएगा ।

(4) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के प्रचालन और सहयोग के लिए प्रक्रिया विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएगी

(5) ये प्रक्रियाएं विशिष्ट रूप से निम्नलिखित के संबंध में होंगी-

(क) जितनी बार कोई सदस्य किसी वैज्ञानिक समिति या वैज्ञानिक पैनल में निरंतर रूप से सेवा कर सकता है, उसकी संख्या;

(ख) प्रत्येक वैज्ञानिक पैनल में सदस्यों की संख्या;

(ग) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के सदस्यों के व्ययों की प्रतिपूर्ति करने के लिए प्रक्रिया;

(घ) वह रीति, जिसमें वैज्ञानिक राय के लिए कार्य और अनुरोध वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल को समनुदेशित किए जाते हैं;

(ङ) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के कार्यकारी समूहों का सृजन और आयोजन, और उन कार्यकारी समूहों में सम्मिलित किए जाने के लिए बाह्य विशेषज्ञों की संभाव्यता;

(च) वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल में संप्रेक्षकों को आमंत्रित किए जाने की संभावना;

(छ) लोक सुनवाई की व्यवस्था करने की संभावना; और

(ज) अधिवेशन का कोरम, अधिवेशन की सूचना, अधिवेशन का कार्यवृत्त और ऐसे अन्य विषय ।

16. खाद्य प्राधिकरण के कर्तव्य और कृत्य-(1) खाद्य प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह खाद्य के विनिर्माण, प्रसंस्करण, वितरण, विक्रय और आयात को विनियमित करे और उसकी मानीटरी करे जिससे कि सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद खाद्य सुनिश्चित किया जा सके ।

(2) उपधारा (1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, खाद्य प्राधिकरण विनियमों द्वारा निम्नलिखित विनिर्दिष्ट कर सकेगा-

(क) खाद्य पदार्थों के संबंध में मानक और मार्गदर्शक सिद्धांत और इस अधिनियम के अधीन अधिसूचित विभिन्न मानकों के प्रवर्तन के लिए समुचित प्रणाली विनिर्दिष्ट करना;

(ख) खाद्य योज्यकों, फसल संदूषकों, नाशकजीवमार अवशिष्टों, पशु चिकित्सा औषाधियों के अवशिष्ट, भारी धातुओं, प्रसंस्करण सहायकों, सूक्ष्म विषाणुओं, प्रतिजैविक और भेषजीय कारक पदार्थों और खाद्य प्रदीपकों के उपयोग की सीमाएं;

(ग) खाद्य कारबार के लिए खाद्य सुरक्षा प्रबंध प्रणाली के प्रमाणन में लगे प्रमाणन निकायों के प्रत्यायन के लिए तंत्र और मार्गदर्शक सिद्धांत;

(घ) भारत में आयातित किसी खाद्य पदार्थ के संबंध में क्वालिटी नियंत्रण की प्रक्रिया और प्रवर्तन;

(ङ) प्रयोगशालाओं के प्रत्यायन और प्रत्यायित प्रयोगशालाओं की अधिसूचना के लिए प्रक्रिया और मार्गदर्शक सिद्धांत;

(च) नमूने लेने, विश्लेषण और प्रवर्तन प्राधिकारियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान का ढंग;

(छ) देश में इस अधिनियम के प्रवर्तन और प्रशासन का सर्वेक्षण करना;

(ज) खाद्य लेबल लगाने संबंधी मानक जिसके अंतर्गत खाद्य के लिए स्वास्थ्य, पोषण, विशेष आहार उपयोगों और खाद्य प्रवर्ग प्रणालियों पर दावे भी हैं; और 

(झ) वह रीति जिसमें और वह प्रक्रिया जिसके अधीन रहते हुए जोखिम विश्लेषण, जोखिम निर्धारण, जोखिम संसूचना और जोखिम प्रबंध किया जाएगा ।

(3) खाद्य प्राधिकरण निम्नलिखित कार्य भी करेगा-

(क) उन क्षेत्रों में, जो खाद्य सुरक्षा और पोषण से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध रखते हैं, नीति और नियम बनाने के विषय में केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को वैज्ञानिक सलाह और तकनीकी समर्थन देना;

(ख) विशिष्टतः निम्नलिखित से संबंधित सुसंगत वैज्ञानिक और तकनीकी आंकड़ों को ढूंढना, उनका संग्रहण करना, उन्हें मिलाना, उनका विश्लेषण करना तथा उन्हें संक्षिप्त करना-

(i) खाद्य उपभोग और व्यष्टियों का खाद्य के उपभोग से संबंधित जोखिमों के प्रति उ-ासन;

(ii) जैविक जोखिम की घटना और उनकी विद्यमानता;

(iii) खाद्य में संदूषक;

(iv) विभिन्न संदूषकों के अवशिष्ट;

(v) सामने आने वाले जोखिमों की पहचान करना; और

(vi) द्रुत सतर्क प्रणाली आरंभ करना;

(ग) जोखिम निर्धारण पद्धतियों का संवर्धन, समन्वय और उनके विकास के लिए दिशा-निर्देश जारी करना तथा उनकी मानीटरी करना और उनका संचालन करना और केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारों और खाद्य सुरक्षा आयुक्तों को स्वास्थ्य और खाद्य के पोषण संबंधी जोखिमों पर संदेश अग्रेषित करना;

(घ) खाद्य सुरक्षा के संबंध में संकटकालीन प्रबंध प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन में केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को वैज्ञानिक और तकनीकी सलाह देना और उनकी सहायता करना और इस संबंध में केंद्रीय सरकार द्वारा स्थापित संकटकालीन एकक के साथ निकट सहयोग से संकटकालीन प्रबंध और कार्य के लिए साधारण योजना बनाना;

(ङ) खाद्य प्राधिकरण के उत्तरदायित्व के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कार्यकलापों के समन्वय, सूचना के आदान-प्रदान, संयुक्त परियोजनाओं के विकास और कार्यान्वयन, विशेषज्ञता का आदान-प्रदान और उन क्षेत्रों में सर्वोत्तम व्यवहारों द्वारा वैज्ञानिक सहयोग की रूपरेखा का सुकर बनाने के उद्देश्य से संगठन की नेटवर्क प्रणाली स्थापित करना;

(च) अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए केंद्रीय सरकार को और राज्य सरकारों को वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता देना;

(छ) यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सभी कदम उठाना कि जनता, उपभोक्ता, हितबद्ध पक्षकारों और पंचायती राज संस्थाओं के सभी स्तरों पर समुचित पद्धतियों और साधनों के माध्यम से द्रुत, विश्वसनीय, विषयपरक और व्यापक सूचना प्राप्त कर सके;

(ज) उनके क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले या ऐसे बाह्य व्यक्तियों को, जो खाद्य कारबार में अंतर्वलित हैं या होने के लिए आशयित हैं, चाहे वह खाद्य कारबारकर्ता या कमर्चारी के रूप में या अन्यथा कार्य करते हैं, खाद्य सुरक्षा और मानकों में प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराना;

(झ) इस अधिनियम के उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे समनुदेशित कोई अन्य कार्य करना;

(ञ) खाद्य, स्वच्छता और पादप स्वच्छता मानकों के लिए अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों के विकास में सहयोग करना;

(ट) विशिष्ट खाद्य संबंधी उपायों की समानता की मान्यता पर करार के विकास में, जहां सुसंगत और समुचित हो, सहयोग करना;

(ठ) अतंरराष्ट्रीय सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा आरंभ किए गए खाद्य मानक संबंधी कार्य के समन्वय का संवर्धन करना;

(ड) यह सुनिश्चित करते हुए कि देश में अंगीकृत संरक्षण का स्तर कम नहीं हुआ है, अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों और देशी खाद्य मानकों के बीच संगतता का संवर्धन करना; और

(ढ) खाद्य सुरक्षा और खाद्य मानकों के बारे में आम जागरुकता का संवर्धन करना ।

(4) खाद्य प्राधिकरण अनुचित विलंब किए बिना निम्नलिखित को सार्वजनिक करेगा-

(क) अंगीकार किए जाने के तुरंत पश्चात्, वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल की राय;

(ख) खाद्य प्राधिकरण के सदस्यों, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, सलाहकार समिति के सदस्यों और वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल के सदस्यों द्वारा की गई हित संबंधी वार्षिक घोषणाएं तथा साथ ही बैठकों की कार्यसूची की मदों के संबंध में की गई, हित संबंधी घोषणाएं यदि कोई हों;

(ग) इसके वैज्ञानिक अध्ययनों के परिणाम; और

(घ) इसके क्रियाकलापों की वार्षिक रिपोर्ट ।

(5) खाद्य प्राधिकरण, समय-समय पर खाद्य सुरक्षा आयुक्त को खाद्य सुरक्षा और मानकों से संबंधित विषय पर निदेश दे सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय ऐसे निदेशों से आबद्ध होगा ।

(6) खाद्य प्राधिकरण ऐसी गोपनीय सूचना को, जिसे वह प्राप्त करता है और जिसके लिए गोपनीय व्यवहार के लिए अनुरोध किया गया है और ऐसे अनुरोध को मान लिया गया है, सिवाय उस सूचना के, जिन्हें यदि परिस्थितियों में ऐसा अपेक्षित हो, जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करने की दृष्टि से सार्वजनिक किया जाना आवश्यक हो, पर पक्षकारों को न तो प्रकट करेगा और न ही प्रकट करवाएगा ।

17. खाद्य प्राधिकरण की कार्यवाहियां-(1) खाद्य प्राधिकरण की बैठक प्रधान कार्यालय या उसके किसी कार्यालय में ऐसे समय पर, जैसा अध्यक्ष निदेश करे, होगी और इसकी बैठकों में (उसकी बैठकों की गणपूर्ति सहित) कारबार के संव्यवहार के संबंध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन किया जाएगा जिन्हें विनियमों द्वारा अवधारित किया जाए ।

(2) यदि अध्यक्ष, खाद्य प्राधिकरण की बैठक में उपस्थित होने में असमर्थ है तो इस निमित्त अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई सदस्य और ऐसे नामनिर्देशन के अभाव में या जहां कोई अध्यक्ष नहीं है वहां उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना हुआ कोई सदस्य बैठक की अध्यक्षता करेगा ।

(3) ऐसे सभी प्रश्नों का, जो खाद्य प्राधिकरण की किसी बैठक के समक्ष आते हैं, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा विनिश्चय किया जाएगा, और मतों के बराबर होने की दशा में अध्यक्ष या बैठक की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा ।

(4) खाद्य प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे ।

(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी खाद्य प्राधिकरण की बैठकों में भाग लेगा किन्तु उसे मत देने का कोई अधिकार नहीं होगा ।

(6) खाद्य प्राधिकरण वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष को अपनी बैठकों में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित कर सकेगा किन्तु उसे भी मत देने का कोई अधिकार नहीं होगा ।

(7) खाद्य प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाहियां केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएंगी या अविधिमान्य नहीं होंगी कि खाद्य प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ।

अध्याय 3

खाद्य सुरक्षा के साधारण सिद्धांत

18. अधिनियम के प्रशासन में अनुसरित किए जाने वाले साधारण सिद्धांत-(1) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारें, खाद्य प्राधिकरण और अन्य अभिकरण, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करते समय, निम्नलिखित सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होंगे, अर्थात्: -

(क) मानव जीवन और स्वास्थ्य के संरक्षण और खाद्य सुरक्षा मानकों और पद्धतियों के संदर्भ में सभी किस्म के खाद्य व्यापार में उचित व्यवहारों सहित उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के समुचित स्तर को प्राप्त करने का प्रयास करना;

(ख) जोखिम प्रबंध करना जिसके अंतर्गत, विनियमों के साधारण उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से जोखिम निर्धारण के परिणामों और ऐसे अन्य कारकों को गणना में लेना भी है, जो खाद्य प्राधिकरण की राय में विचाराधीन विषय के लिए सुसंगत हैं और जहां परिस्थितियां सुसंगत हैं;

(ग) जहां किन्हीं विनिर्दिष्ट परिस्थितियों में, उपलब्ध सूचना के निर्धारण के आधार पर स्वास्थ्य पर हानिप्रद प्रभाव की अधिसंभाव्यता की पहचान की जाती है किन्तु वैज्ञानिक अनिश्चितता बनी रहती है, वहां अधिक व्यापक जोखिम निर्धारण के लिए अतिरिक्ति वैज्ञानिक जानकारी के प्राप्त होने तक स्वास्थ्य सुरक्षा के समुचित स्तर सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक जोखिम प्रबंधन उपाय अंगीकार किए जा सकेंगे ।

(घ) खंड (ग) के आधार पर अंगीकार किए गए उपाय आनुपातिक होंगे और स्वास्थ्य सुरक्षा के समुचित स्तर प्राप्त करने हेतु व्यापार के लिए जितना अपेक्षित है उससे अधिक अवरोधक नहीं होंगे, विचाराधीन विषय में तकनीकी और आर्थिक साध्यता को और अन्य युक्तियुक्त और उचित समझे गए कारकों को ध्यान में रखा जाएगा;

(ङ) अंगीकृत उपायों का उचित समय अवधि के भीतर पुनर्विलोकन किया जाएगा, जो पहचान की गई जीवन या स्वास्थ्य की जोखिम की प्रकृति और वैज्ञानिक अनिश्चितता को स्पष्ट करने के लिए और कोई अधिक व्यापक जोखिम निर्धारण करने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक प्रकार की जानकारी पर आधारित होगा;

(च) ऐसी दशाओं में, जहां यह संदेह करने के लिए युक्तियुक्त आधार हैं कि कोई खाद्य मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है, तब उस जोखिम की प्रकृति, गंभीरता और सीमा पर निर्भर करते हुए, खाद्य प्राधिकरण और खाद्य सुरक्षा आयुक्त, खाद्य की या ऐसे किस्म के खाद्य की संभावित पूरी सीमा तक पहचान करते हुए स्वास्थ्य के लिए जोखिम की प्रकृति, वह जोखिम जो उत्पन्न होता है और उस जोखिम को रोकने, कम करने या दूर करने के लिए किए गए या किए जाने वाले उपायों को साधारण जनता को सूचित करने के लिए समुचित कार्रवाई करेंगे;

(छ) जहां कोई खाद्य, जो खाद्य सुरक्षा की अपेक्षाओं का पालन करने में असफल रहता है, उसी वर्ग या विवरण के खाद्य के बैच, लॉट या पारेषण का भाग है, वहां जब तक कि उसके विपरीत साबित नहीं कर दिया जाता है, यह उपधारणा की जाएगी कि उस बैच, लॉट या पारेषण का संपूर्ण खाद्य उन अपेक्षाओं का पालन करने में असफल रहा है ।

(2) खाद्य प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन विनियम बनाते समय या मानक विनिर्दिष्ट करते समय-

(क) निम्नलिखित को ध्यान में रखेगा-

(i) देश में प्रचलित प्रथाएं और परिस्थितियां, जिनके अंतर्गत कृषि संबंधी व्यवहार तथा उठाई-धराई, भंडारण और परिवहन दशाएं भी हैं; और

(ii) अंतरराष्ट्रीय मानक और पद्धतियां जहां अंतरराष्ट्रीय मानक या पद्धतियां विद्यमान हैं या विरचित किए जाने की प्रक्रिया में हैं,

जब तक कि उसकी यह राय न हो कि ऐसी प्रचलित प्रथाओं और परिस्थितियों या अंतरराष्ट्रीय मानकों या पद्धतियों या उनके किसी विशिष्ट भाग को ध्यान में रखना प्रभावी नहीं होगा या ऐसे विनियमों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए समुचित साधन नहीं होगा या जहां कोई वैज्ञानिक न्यायोचित्य है या जहां उसके देश में समुचित रूप में अवधारित संरक्षण के स्तर से भिन्न परिणाम हैं; 

(ख) जोखिम विश्लेषण के आधार पर खाद्य मानक अवधारित करेगा, सिवाय वहां के जहां उसकी यह राय है कि उस मामले की परिस्थितियों या प्रकृति में ऐसा विश्लेषण उचित नहीं है;

(ग) उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित और किसी स्वतंत्र, वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी रीति से जोखिम का निर्धारण करेगा;

(घ) यह सुनिश्चित करेगा कि विनियमों को तैयार करने, उनके मूल्यांकन और पुनरीक्षण के दौरान प्रत्यक्षतः या पंचायतों के सभी स्तरों सहित प्रतिनिधि निकायों के माध्यम से खुला और पारदर्शी लोक परामर्श है, सिवाय वहां के जहां उसकी यह राय है कि खाद्य सुरक्षा या लोक स्वास्थ्य के संबंध में विनियम को बनाने या उनमें संशोधन करने की अत्यावश्यकता है और ऐसे मामले में ऐसे परामर्श से छूट दी जा सकेगी:

परन्तु ऐसे विनियम छह मास से अधिक के लिए प्रवृत्त नहीं रहेंगे;

(ङ) उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करेगा और वे उपभोक्ताओं को उन खाद्यों के संबंध में, जिनका वे उपभोग करते हैं, अवगत चयन करने के लिए आधार उपलब्ध करेगा;

 (च) निम्नलिखित का निवारण सुनिश्चित करेगा-

(i) कपटपूर्ण, प्रवंचक या अनुचित व्यापारिक व्यवहार जो उपभोक्ता को भ्रमित कर सके या हानि पहुंचा सके; और

(ii) असुरक्षित या संदूषित या अवमानक खाद्य ।

(3) इस अधिनियम के उपबंध किसी कृषक या मछुआरे या कृषि संक्रियाओं या फसलों या पशुधन या जलकृषि और कृषि में प्रयुक्त या उत्पादित प्रदायों या किसी कृषक फार्म या किसी मछुआरे द्वारा अपनी संक्रियाओं में उत्पादित उत्पादों को लागू नहीं होंगे । 

अध्याय 4

खाद्य पदार्थों के बारे में साधारण उपबंध

19. खाद्य योज्यक या प्रसंस्करण सहाय्य का उपयोग-किसी खाद्य पदार्थ में कोई खाद्य योज्यक या प्रसंस्करण सहाय्य तब तक अंतर्विष्ट नहीं होगा, जब तक कि वह इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए विनियमों के उपबंधों के अनुसार न हो ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, प्रसंस्करण सहाय्य" से ऐसा पदार्थ या सामग्री अभिप्रेत है किन्तु इसके अंतर्गत साधित्र या बर्तन नहीं है और जो स्वयं खाद्य संघटक के रूप में उपभोग में नहीं आता, उपचार या प्रसंस्करण के दौरान कतिपय प्रौद्योगिकी प्रयोजन को पूरा करने के लिए कच्ची सामग्री, खाद्य या उसके संघटकों के प्रसंस्करण में प्रयुक्त नहीं होता और जो अनाशयित किन्तु अंतिम उत्पाद में अवशिष्टों या व्युत्पन्नों की अपरिहार्य मौजूदगी के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है ।

20. संदूषक, प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ, भारी धातु आदि-किसी खाद्य पदार्थ में ऐसी मात्रा से, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए अधिक मात्रा में संदूषक प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ टाक्सिन्स या हार्मोन या भारी धातु नहीं होगी ।

21. नाशकजीवमार, पशु चिकित्सीय औषधि अवशिष्ट, प्रतिजैविक अवशिष्ट और सूक्ष्मजीव काउंट-(1) किसी खाद्य पदार्थ में उतनी सहाय्य सीमा से, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, अधिक कीटनाशक, नाशकजीवमार, पशु चिकित्सीय औषध अवशिष्ट, प्रतिजैविक अवशिष्ट, विलय अवशिष्ट, भेषजीय रूप से सक्रिय पदार्थ और सूक्ष्मजीव काउंट अतंर्विष्ट नहीं होंगे ।

(2) कीटनाशी अधिनियम, 1968 (1968 का 46) के अधीन रजिस्ट्रीकृत और अनुमोदित धूमकों को छोड़कर किसी कीटनाशी का प्रयोग किसी खाद्य पदार्थ पर प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाएगा ।

 स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(1) नाशकजीवमार अवशिष्ट" से खाद्य में ऐसा कोई विनिर्दिष्ट पदार्थ अभिप्रेत है जो किसी नाशकजीवमार के उपयोग के परिणामस्वरूप उस खाद्य में आ जाता है और इसके अंतर्गत नाशकजीवमार के व्युत्पन्न, जैसे कि संपरिवर्तन उत्पाद, उपापचयज, प्रतिक्रिया उत्पाद और ऐसी अशुद्धियां भी हैं, जिन्हें विष विज्ञान के महत्व का समझा जाता है और इसके अतंर्गत पर्यावरण से खाद्य में आने वाले अवशिष्ट भी हैं;

(2) पशु ओषधि के अवशिष्ट" के अंतर्गत किसी पशु उत्पाद के किसी खाने योग्य भाग में मूल मिश्रण या उनके उपापचयज या दोनों ही हैं और इसके अंतर्गत संबद्ध पशु ओषधि की सहयुक्त अशुद्धियों के अवशिष्ट भी हैं ।

22. आनुवंशिक रूप से उपांतरित खाद्य, कार्बनिक खाद्य, फलीय खाद्य, निजस्वमूलक खाद्य, आदि-इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए विनियमों में जैसा उपंबधित है उसके सिवाय, कोई व्यक्ति कोई आदर्श खाद्य, आनुवंशिक रूप से उपांतरित खाद्य पदार्थ, किरणित खाद्य, कार्बनिक खाद्य, विशेष आहार उपयोगों के खाद्य, फलीय कृतकारी खाद्य, पोषणीय, स्वास्थ्यपूरक तत्त्व, निजस्वमूलक खाद्य और इसी प्रकार के अन्य खाद्य पदार्थों का विनिर्माण, वितरण, विक्रय या आयात नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(1) विशेष आहार उपयोगों के खाद्य या फलीय खाद्य या पोषणीय या स्वास्थ्यपूरक खाद्य" से अभिप्रेत है,-

(क) ऐसे खाद्य जो विशिष्ट आहार संबंधी आवश्यकताओं को जो किसी विशिष्ट शारीरिक या मानसिक दशा या विनिर्दिष्ट रोग या विकार के कारण उत्पन्न होती हैं, पूरा करने के लिए विशेष रूप से प्रसंस्कृत या तैयार किए जाते हैं और ऐसे खाद्य उसी स्थिति में ही प्रस्तुत किए जाते हैं, जिसमें ऐसे खाद्य पदार्थों की संरचना उसी प्रकृति के सामान्य खाद्य की संरचना से काफी भिन्न होती है यदि ऐसा सामान्य खाद्य विद्यमान है और उसमें निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक संघटक अंतर्विष्ट हों, अर्थात्ः-

(i) जल, इथाइल अल्कोहल या हाइड्रोअल्कोहलिक सार में चूर्ण, सांद्र या सत के रूप में पौधों या वनस्पति या उनके भाग एकल रूप में या समुच्चय रूप में;

(ii) खनिज या विटामिन या प्रोटीन या धातु या उनके मिश्रण या अमीनो अम्ल (मात्रा में भारतीयों के लिए सिफारिश किए गए दैनिक अनुज्ञेय मात्रा से अनधिक) या एन्जाइम्स (अनुज्ञेय सीमाओं के भीतर);

(iii) पशु मूल से पदार्थ;

(iv) कुल आहार में वृद्धि करके आहार की पूर्ति के लिए मानव द्वारा उपयोग हेतु आहार संबंधी पदार्थ;

(ख) (i) ऐसा उत्पाद जिस पर विशेष आहार उपयोगों के लिए खाद्य या फलीय खाद्य या पोषक खाद्य या स्वास्थ्यवर्धक या ऐसे ही अन्य खाद्य" का लेबल लगाया गया है जो पारंपरिक खाद्य के रूप में उपयोग के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता है और जिसके द्वारा ऐसे उत्पाद चूर्ण, दानों, टिकियों, कैप्स्यों, द्रवों, जेली और अन्य खुराक के रूप में तैयार किए जाते हैं किन्तु वे मूल नहीं होते और वे मुंह से खाए जाते हैं;

(ii) ऐसे उत्पाद में ओषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23) की धारा 3 के खंड (ख) और उसके अधीन बनाए गए नियमों में यथापरिभाषित ओषधि और उस धारा के खंड (क) और खंड (ज) में यथापरिभाषित आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि सम्मिलित नहीं हैं;

(iii) किसी विनिर्दिष्ट रोग, विकार या दशा को ठीक करने या कम करने का दावा नहीं करता (कतिपय स्वास्थ्य संबंधी फायदे या ऐसे संवर्धन दावों के सिवाय) जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा अनुज्ञात हो;

(iv) इसके अतंर्गत स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (1985 का 61) और उसके अधीन बनाए गए नियमों में यथापरिभाषित स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ तथा ओषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची ङ और अनुसूची ङ-ख्र् में सूचीबद्ध पदार्थ नहीं हैं;

(2) आनुवंशिक रूप से निर्मित या उपान्तरित खाद्य" से ऐसे खाद्य और खाद्य संघटक जो आनुवंशिक रूप से ऐसे उपान्तरित या निर्मित अवयवों से बनाए गए हैं, जो आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से अभिप्राप्त किए जाते हैं या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से अभिप्राप्त किए गए आनुवंशिक रूप से उपान्तरित या निर्मित संघटकों से उत्पादित खाद्य और खाद्य संघटक अभिप्रेत हैं किन्तु जिनमें ये तत्व अन्तर्विष्ट नहीं हैं;

(3) कार्बनिक खाद्य" से ऐसे खाद्य उत्पाद अभिप्रेत हैं, जिन्हें विनिर्दिष्ट कार्बनिक उत्पादन मानकों के अनुसार उत्पादित किया गया है;

(4) निजस्वमूलक और आदर्श खाद्य" से ऐसा खाद्य पदार्थ अभिप्रेत है, जिसके लिए मानक विनिर्दिष्ट नहीं किए गए हैं किन्तु यह असुरक्षित नहीं हैंः

परन्तु ऐसे खाद्य में ऐसे खाद्य और संघटक अन्तर्विष्ट नहीं हैं, जो इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए विनियमों के अधीन प्रतिषिद्ध हैं ।

23. खाद्यों का पैकेजिंग और लेबल लगाना-(1) कोई व्यक्ति किन्हीं पैक किए गए खाद्य उत्पादों का, जिनको उस रीति में जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, चिह्नित नहीं किया गया है और उन पर लेबल नहीं लगाया गया है, विनिर्माण, वितरण, विक्रय नहीं करेगा या विक्रय के लिए अभिदर्शित या प्रेषित नहीं करेगा या विक्रय के प्रयोजन के लिए किसी अभिकर्ता या दलाल को परिदत्त नहीं करेगा:

परंतु लेबलों पर ऐसा कोई कथन, दावा, डिजाइन या युक्ति अंतर्विष्ट नहीं होगी जो पैकेज में अंतर्विष्ट खाद्य उत्पाद के संबंध में किसी विशिष्टि में मिथ्या या भ्रामक हो या मात्रा संबंधी ऐसे पोषक तत्व जो औषधीय हों या चिकित्सा संबंधी दावे के हों या उक्त खाद्य उत्पादों के मूल स्थान के संबंध में हों ।

(2) प्रत्येक खाद्य कारबारकर्ता यह सुनिश्चित करेगा कि खाद्य के लेबल और प्रस्तुतीकरण जिसके अंतर्गत उनके आकार, रूप या पैकेजिंग, प्रयुक्त पैकेजिंग सामग्री, वह रीति जिसमें वे व्यवस्थित हैं और उस सेटिंग में जिसमें वे प्रदर्शित किए जाते हैं और वह सूचना, जो किसी भी माध्यम से उनके बारे में उपलब्घ कराई जाती है, उपभोक्ताओं को मार्गभ्रष्ट नहीं करती है ।

24. विज्ञापन पर निर्बंधन और अनुचित व्यापार व्यवहारों के बारे में प्रतिषेध-(1) किसी ऐसे खाद्य का कोई ऐसा विज्ञापन नहीं दिया जाएगा जो भ्रामक या प्रवंचनापूर्ण हो या इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला हो ।

(2) कोई व्यक्ति स्वयं को खाद्य वस्तुओं के विक्रय, प्रदाय, उपयोग और उपभोग के संवर्धन के प्रयोजन के लिए किसी अनुचित व्यापार व्यवहार में नहीं लगाएगा या कोई ऐसा अनुचित व्यापार व्यवहार या प्रवंचक व्यवहार नहीं अपनाएगा, जिसके अंतर्गत कोई ऐसा कथन करने, चाहे वह मौखिक हों या लिखित हो, का व्यवहार भी है या किसी ऐसे दृश्यरूपण का उपयोग नहीं करेगा जो-

(क) मिथ्या रूप से यह प्रस्तुत करता हो कि खाद्य किसी विशिष्ट मानक, क्वालिटी, मात्रा या श्रेणी संरचना के हैं;

(ख) किसी खाद्य की आवश्यकता या उनकी उपयोगिता के संबंध में कोई मिथ्या या भ्रामक व्यपदेशन करता हो;

(ग) उसकी किसी प्रभावकारिता की गारंटी जनता को देता हो जो उसके पर्याप्त या वैज्ञानिक औचित्य पर आधारित न हो:

परंतु जहां इस आशय की कोई प्रतिरक्षा की जाती है कि ऐसी गांरटी पर्याप्त या वैज्ञानिक औचित्य पर आधारित है वहां ऐसी प्रतिरक्षा के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होगा जो ऐसी प्रतिरक्षा करता है ।

अध्याय 5

आयात से संबंधित उपबंध

25. खाद्य वस्तुओं के सभी आयातों का इस अधिनियम के अध्यधीन होना-(1) कोई भी व्यक्ति भारत में, -

(i) कोई असुरक्षित या मिथ्या छाप वाला या अवमानक खाद्य या बाह्य पदार्थ से युक्त खाद्य आयात नहीं करेगा;

(ii) कोई खाद्य वस्तु जिसके आयात के लिए किसी अधिनियम या नियमों या विनियमों के अधीन अनुज्ञप्ति अपेक्षित है, अनुज्ञप्ति की शर्तों के अनुसार के सिवाय आयात नहीं करेगा; और

(iii) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या विनियम अथवा किसी अन्य अधिनियम के किसी अन्य उपबंध के उल्लंघन में किसी खाद्य पदार्थ का आयात नहीं करेगा ।

(2) केन्द्रीय सरकार, विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 (1992 का 22) के अधीन खाद्य पदार्थों के आयात को प्रतिषिद्ध, निर्बंधित या अन्यथा विनियमित करते समय, इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा अधिकथित मानकों का अनुसरण करेगी । 

अध्याय 6

खाद्य सुरक्षा के संबंध में विशेष दायित्व

26. खाद्य कारबारकर्ता के दायित्व-(1) प्रत्येक खाद्य कारबारकर्ता यह सुनिश्चित करेगा कि खाद्य वस्तुएं इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों की अपेक्षाओं को अपने नियंत्रणाधीन कारबार के भीतर उत्पादन, प्रसंस्करण, आयात, वितरण और विक्रय के सभी प्रक्रमों पर पूरा करते हैं ।

(2) कोई भी खाद्य कारबारकर्ता ऐसी किसी खाद्य वस्तु का-

(i) जो असुरक्षित हैं; या

(ii) जो मिथ्या छाप वाली या अवमानक हैं या उसमें बाह्य पदार्थ मिले हैं; या

(iii) जिसके लिए अनुज्ञप्ति अपेक्षित है, अनुज्ञप्ति की शर्तों के अनुसार के सिवाय; या

(iv) जो तत्समय खाद्य प्राधिकरण या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा लोक स्वास्थ्य के हित में प्रतिषिद्ध   है; या 

(v) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या विनियम के किसी अन्य उपबंध के उल्लंघन में,

स्वंय या अपनी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा विनिर्माण, भंडारण, विक्रय या वितरण नहीं करेगा ।

(3) कोई खाद्य कारबारकर्ता ऐसे किसी व्यक्ति को नियोजित नहीं करेगा जो संक्रामक, सांसर्गिक या घृणित रोग से पीड़ित है

(4) कोई खाद्य कारबारकर्ता किसी विक्रेता को किसी खाद्य वस्तु का तब तक विक्रय नहीं करेगा या विक्रय के लिए प्रस्थापित नहीं करेगा जब तक कि वह विक्रेता को ऐसी वस्तु की प्रकृति और क्वालिटी के बारे में विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट प्ररूप में लिखित में गारंटी नहीं दे देता:

परंतु किसी खाद्य कारबारकर्ता द्वारा विक्रेता को दी गई किसी खाद्य वस्तु के विक्रय की बाबत कोई बिल, कैशमेमो या बीजक इस धारा के अधीन गारंटी समझा जाएगा भले ही बिल, कैशमेमो या बीजक में विनिर्दिष्ट प्ररूप में गारंटी सम्मिलित न हो ।

(5) जहां कोई खाद्य जो असुरक्षित है, किसी वर्ग या विवरण के खाद्य के बैच, लाट या पारेषण का भाग है वहां यह माना जाएगा कि उस बैच, लाट या पारेषण के सभी खाद्य भी असुरक्षित हैं जब तक कि विनिर्दिष्ट समय के भीतर विस्तृत निर्धारण के पश्चात् यह नहीं पाया जाता है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि उक्त बैच, लाट या पारेषण का शेष खाद्य असुरक्षित हैः

परंतु यह कि उस खाद्य को लागू विनिर्दिष्ट उपबंधों के साथ उस खाद्य की किसी अनुरूपता से सक्षम प्राधिकारी पर बाजार में लाए जाने वाले उस खाद्य पर निर्बंधन अधिरोपित करने के लिए समुचित उपाय किए जाने के संबंध में या जहां ऐसे प्राधिकारी को यह संदेह है कि उक्त खाद्य, अनुरूपता के बावजूद, असुरक्षित है वहां उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, बाजार से उस खाद्य को वापस लेने की अपेक्षा करने के संबंध में प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

27. विनिर्माताओं, पक्षकारों, थोक विक्रेताओं, वितरकों और विक्रेताओं का दायित्व-(1) किसी खाद्य पदार्थ का विनिर्माता या पैकर ऐसे खाद्य पदार्थ के लिए तब उत्तरदायी होगा जब वह इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता है ।

(2) थोक विक्रेता या वितरक इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे खाद्य पदार्थ के लिए उत्तरदायी होगा, जो-

(क) उसके अवसान की तारीख के पश्चात् प्रदाय की जाती है; या 

(ख) विनिर्माता के सुरक्षा अनुदेशों के उल्लंघन में भंडारित या प्रदाय की जाती है; या

(ग) असुरक्षित या मिथ्या छाप वाली है; या

(घ) उस विनिर्माता की पहचान न हो पाना जिससे खाद्य वस्तु प्राप्त की गई है; या

(ङ) इस अधिनियम, उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के उल्लंघन में भंडारित की जाती है या उठाई-धराई की जाती है या रखी जाती है; या

(च) यह जानते हुए प्राप्त की जाती है कि वह असुरक्षित है ।

(3) विक्रेता इस अधिनियम के अधीन ऐसे किसी खाद्य पदार्थ के लिए उत्तरदायी होगा, जो-

(क) उसके अवसान की तारीख के पश्चात् विक्रय किया जाता है; या

(ख) अस्वास्थ्यकर दशाओं में हथाला या रखा जाता है; या

(ग) मिथ्या छाप वाला है; या

(घ) उस विनिर्माता या वितरक की, पहचान बताने वाला नहीं है जिससे ऐसा खाद्य पदार्थ प्राप्त किया गया था; या

(ङ) यह जानते हुए प्राप्त किया जाता है कि वह असुरक्षित है । 

28. खाद्य को वापस लेने की प्रक्रियाएं-(1) यदि कोई खाद्य कारबारकर्ता यह समझता है या उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसा खाद्य जिसका उसने प्रसंस्करण, विनिर्माण या वितरण किया है, इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अनुरूप नहीं है तो वह तत्काल प्रश्नगत खाद्य को बाजार से या उपभोक्ताओं से, उसके वापस लिए जाने के कारणों को उपदर्शित करते हुए, वापस लेने की प्रक्रियाएं आरंभ करेगा और उसकी सक्षम प्राधिकारियों को सूचना देगा ।

(2) खाद्य कारबारकर्ता सक्षम प्राधिकारियों को तत्काल सूचना देगा और उनके साथ सहयोग करेगा यदि वह यह समझता है या उसके पास यह विश्वास करने के कारण हैं कि वह खाद्य जो उसने बाजार में भेजा है, उपभोक्ताओं के लिए असुरक्षित हो सकता है ।

(3) खाद्य कारबारकर्ता सक्षम प्राधिकारियों को उपभोक्ताओं की जोखिम को निवारित करने के लिए की गई कार्रवाई की सूचना देगा और किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अनुसार सक्षम प्राधिकारियों को सहयोग करने से निवारित या हतोत्साहित नहीं करेगा, जहां इस खाद्य से उत्पन्न होने वाली जोखिम को निवारित, कम या दूर किया जा सकता है ।

(4) प्रत्येक खाद्य कारबारकर्ता खाद्य को वापस लेने की प्रक्रियाओं से संबंधित ऐसी शर्तों और मार्गदर्शक सिद्धांतों का अनुसरण करेगा जिसे खाद्य प्राधिकरण विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।

अध्याय 7

अधिनियम का प्रवर्तन

29. अधिनियम के प्रर्वतन के लिए उत्तरदायी प्राधिकारी-(1) खाद्य प्राधिकरण और राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकारी इस अधिनियम के प्रवर्तन के लिए उत्तरदायी होंगे । 

(2) खाद्य प्राधिकारी और राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकारी इस बात की मानीटरी करेंगे और उसे सत्यापित करेंगे कि विधि की सुसंगत अपेक्षाओं का खाद्य कारबारकर्ताओं द्वारा खाद्य कारबार के सभी प्रक्रमों पर पूरा किया जाता है ।

(3) प्राधिकारी परिस्थितियों की उपयुक्त नियंत्रण प्रणाली और अन्य क्रियाकलापों को बनाए रखेंगे जिनके अंतर्गत खाद्य सुरक्षा और जोखिम पर लोक संसूचना, खाद्य सुरक्षा निगरानी और अन्य मानिटरी क्रियाकलाप सम्मिलित हैं जिनके अंतर्गत खाद्य कारबार के सभी प्रक्रम आते हैं ।

(4) खाद्य सुरक्षा अधिकारी अपने क्षेत्रों में इस अधिनियम के उन उपबंधों को प्रवर्तित और निष्पादित करेंगे जिनकी बाबत किसी अन्य प्राधिकारी पर अभिव्यक्त रूप से या आवश्यक विविक्षा द्वारा कर्तव्य अधिरोपित नहीं किया गया है ।

(5) इस अधिनियम के अधीन विनियमों में यह विनिर्दिष्ट होगा कि किन खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को साधारणतः या किसी विशिष्ट प्रकार के मामलों या किसी विशिष्ट क्षेत्र के संबंध में उन उपबंधों को प्रवर्तित या निष्पादित करना है और ऐसे किन्हीं विनियमों या आदेशों में या आदेश में उनके अधीन अपने-अपने कर्तव्यों के प्रयोजनों के लिए विनियमों या आदेशों या इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों के प्रशासन में संबद्ध किसी प्राधिकारी द्वारा इस प्रकार संबद्ध किसी अन्य प्राधिकारी को सहायता और सूचना देने के लिए ऐसे किन्हीं विनियमों या आदेशों में उपबंध किया जा सकेगा ।

(6) खाद्य सुरक्षा आयुक्त और अभिहित अधिकारी उन्हीं शक्तियों का प्रयोग करेंगे जो खाद्य सुरक्षा अधिकारी को प्रदत्त की जाती हैं और इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का भी पालन करेंगे ।

 30. राज्य का खाद्य सुरक्षा आयुक्त-(1) राज्य सरकार, खाद्य सुरक्षा और मानकों तथा इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन अधिकथित अन्य अपेक्षाओं के दक्ष कार्यान्वयन के लिए राज्य के लिए खाद्य सुरक्षा आयुक्त नियुक्त करेगी ।

(2) खाद्य सुरक्षा आयुक्त निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात्ः-

(क) लोक स्वास्थ्य के हित में किसी खाद्य वस्तु के संपूर्ण राज्य में या उसके किसी क्षेत्र या भाग में ऐसी अवधि के लिए, जो एक वर्ष से अधिक की नहीं होगी, जो राजपत्र में इस निमित्त अधिसूचित आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, विनिर्माण, भंडारण, वितरण या विक्रय को प्रतिषिद्ध करना;

(ख) राज्य में खाद्य विनिर्माण या प्रसंस्करण में लगी हुई औद्योगिक इकाइयों का सर्वेक्षण करना जिससे यह पता लगाया जा सके कि ऐसी इकाइयों द्वारा विभिन्न खाद्य वस्तुओं के लिए खाद्य प्राधिकारी द्वारा अधिसूचित मानकों का पालन किया जा रहा है अथवा नहीं;

(ग) खाद्य सुरक्षा आयुक्त के कार्यालय के कार्मिकों के लिए व्यापक पैमाने पर खाद्य सुरक्षा के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए खाद्य श्रृंखला के विभिन्न खंडों के संबंध में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना या आयोजित करना;

(घ) यथाविनिर्दिष्ट मानकों और अन्य अपेक्षाओं के प्रभावी और एकरूप कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना तथा वस्तविकता, जवाबदेही, व्यावहारिकता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता के उच्च मानकों को भी सुनिश्चित करना;

(ङ) इस अधिनियम के अधीन कारावास से दंडनीय अपराधों के लिए अभियोजन की मंजूरी देना;

(च) ऐसे अन्य कृत्य करना जिन्हें राज्य सरकार, खाद्य प्राधिकरण के परामर्श से, विहित करे ।

(3) खाद्य सुरक्षा आयुक्त आदेश द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी और खाद्य विश्लेषक को नियुक्त करने की शक्ति के सिवाय), जिन्हें वह आवश्यक या समीचीन समझे, अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी को आदेश में यथाविनिर्दिष्ट शर्तों और निबंधनों के अधीन रहते हुए प्रत्यायोजित कर सकेगा ।

31. खाद्य कारबार का अनुज्ञापन और रजिस्ट्रीकरण-(1) कोई भी व्यक्ति कोई खाद्य कारबार अनुज्ञप्ति के अधीन ही प्रारंभ करेगा या उसे चलाएगा अन्यथा नहीं ।

(2) उपधारा (1) की कोई बात, ऐसे किसी छोटे विनिर्माता को जो स्वयं किसी खाद्य पदार्थ का विनिर्माण करता है या विक्रय करता है या किसी छोटे फुटकर विक्रेता, हाकर, फेरी वाले किसी अस्थायी स्टाल धारक या खाद्य कारबार से संबंधित किसी लघु उद्योग या कुटीर उद्योग या ऐसे किसी अन्य उद्योग या छोटे खाद्य कारबारकर्ता को लागू नहीं होगी; किन्तु वे स्वयं को मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद खाद्य की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना या उपभोक्ताओं के हितों को प्रभावित किए बिना ऐसे प्राधिकारी के पास और ऐसी रीति में रजिस्टर कराएंगे जिसे विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए ।

(3) ऐसा कोई व्यक्ति, जो कोई खाद्य कारबार प्रारंभ करना चाहता है या चलाना चाहता है, अनुज्ञप्ति अनुदत्त किए जाने के लिए अभिहित अधिकारी को, ऐसी रीति में ऐसी विशिष्टियों और फीसों से युक्त आवेदन करेगा जो विनियमों द्वारा विहित की जाएं ।

(4) अभिहित अधिकारी, उपधारा (3) के अधीन आवेदन की प्राप्ति पर, या तो अनुज्ञप्ति प्रदान कर सकेगा या आवेदक को, सुनवाई का अवसर दिए जाने के पश्चात् उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, आवेदक को अनुज्ञप्ति देने से इंकार कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना लोक स्वास्थय के हित में है और आवेदक को उस आदेश की एक प्रति उपलब्ध कराएगा:

परंतु यदि आवेदन दिए जाने की तारीख से दो मास के भीतर अनुज्ञप्ति जारी नहीं की जाती है या उसका आवेदन खारिज नहीं किया जाता है तो आवेदक उक्त अवधि के अवसान के पश्चात्, अपना खाद्य कारबार प्रारंभ कर सकेगा और ऐसी दशा में अभिहित अधिकारी अनुज्ञप्ति जारी करने से इंकार नहीं करेगा किन्तु, यदि वह ऐसा आवश्यक समझता है तो धारा 32 के अधीन सुधार की सूचना जारी कर सकेगा और उस संबंध में प्रक्रियाओं का अनुसरण करेगा ।

(5) प्रत्येक अनुज्ञप्ति ऐसे प्ररूप में और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, होगी जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ।

(6) अभिहित अधिकारी द्वारा किसी एक या अधिक खाद्य वस्तुओं के लिए तथा एक ही क्षेत्र में विभिन्न स्थापनों या परिसरों के लिए भी एकल अनुज्ञप्ति जारी की जा सकेगी ।

(7) यदि खाद्य वस्तुओं का एक से अधिक क्षेत्रों में स्थित विभिन्न परिसरों में विनिर्माण, भंडारण, विक्रय या विक्रय के लिए प्रदर्शन किया जाता है तो एक ही क्षेत्र में न आने वाले ऐसे परिसरों की बाबत पृथक् आवेदन किए जाएंगे और पृथक् अनुज्ञप्ति दी जाएंगी ।

(8) अनुज्ञप्ति अनुदत्त किए जाने के लिए आवेदन की खारिजी आदेश के विरुद्ध अपील खाद्य सुरक्षा आयुक्त को होगी ।

(9) अनुज्ञप्ति जब तक कि उसे पहले निलंबित या रद्द न की गई हो, ऐसी अवधि के लिए प्रवर्तन में रहेगी जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए:

परंतु यदि अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिए कोई आवेदन अनुज्ञप्ति की विधिमान्यता की अवधि के अवसान से पूर्व किया जाता है तो अनुज्ञप्ति आवेदन पर आदेश पारित किए जाने तक प्रवर्तन में बनी रहेगी ।

(10) अनुज्ञप्ति निम्नलिखित अवधि की समाप्ति तक मृतक के निजी प्रतिनिधि या उसके कुटुम्ब के किसी अन्य सदस्य के फायदे के लिए बनी रहेगी-

(क) उसकी मृत्यु से प्रारंभ होने वाले तीन मास की अवधि;

(ख) ऐसी अधिक अवधि जो अभिहित अधिकारी द्वारा अनुज्ञात की जाए ।

32. सुधार सूचनाएं-(1) यदि अभिहित अधिकारी के पास यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त आधार है कि खाद्य कारबारकर्ता, ऐसे किन्हीं विनियमों का पालन करने में असफल रहा है जिन्हें यह धारा लागू होती है तो वह उस खाद्य कारबारकर्ता पर एक सूचना तामील कर सकेगा (जिसे इस अधिनियम में सुधार सूचना" कहा गया है)-

(क) यह विश्वास करने के कारणों का कथन कर सकेगा कि खाद्य कारबारकर्ता विनियमों का पालन करने में असफल रहा है;

(ख) ऐसे विषयों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो खाद्य कारबारकर्ता की इस प्रकार पालन करने में असफलता का गठन करते हैं;

(ग) उन उपायों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो उक्त प्राधिकारी की राय में खाद्य कारबारकर्ता को अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए करने चाहिएं; और

(घ) खाद्य कारबारकर्ता से युक्तियुक्त अवधि के भीतर (जो चौदह दिन से कम की नहीं होगी) उन उपायों को या ऐसे उपाय करने की अपेक्षा कर सकेगा जो कम से कम उन उपायों के समतुल्य हैं जो सूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(2) यदि खाद्य कारबारकर्ता सुधार सूचना का पालन करने में असफल रहता है तो उसकी अनुज्ञप्ति निलंबित की जा सकेगी

(3) यदि खाद्य कारबारकर्ता अब भी सुधार सूचना का पालन करने में असफल रहता है तो अभिहित अधिकारी अनुज्ञप्तिधारी को हेतुक दर्शित करने का अवसर देने के पश्चात्, उसे अनुदत्त अनुज्ञप्ति को रद्द कर सकेगाः

परंतु अभिहित अधिकारी उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, लोक स्वाथ्य्य के हित में किसी अनुज्ञप्ति को तत्काल निलम्बित कर सकेगा ।

(4) ऐसा कोई व्यक्ति जो-

(क) सुधार सूचना; या

(ख) सुधार के बारे में प्रमाणपत्र जारी करने से इंकार करने; या

(ग) इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति के रद्दकरण या निलंबन या प्रतिसंहरण,

से व्यथित है, खाद्य सुरक्षा आयुक्त को अपील कर सकेगा जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

(5) वह अवधि जिसके भीतर ऐसी अपील की जा सकेगी, -

(क) उस तारीख से जिसको विनिश्चय की सूचना अपील करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति पर तामील की गई थी, पंद्रह दिन की होगी; या

(ख) उपधारा (1) के अधीन अपील की दशा में, उक्त अवधि होगी या सुधार सूचना में विनिर्दिष्ट अवधि होगी, जो भी पहले समाप्त होती हो ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजन के लिए परिवाद करना अपील करना समझा जाएगा ।

33. प्रतिषेध आदेश-(1) यदि-

(क) कोई खाद्य कारबारकर्ता इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है; और

(ख) उस न्यायालय का जिसके द्वारा या जिसके समक्ष उसे इस प्रकार दोषसिद्ध किया जाता है यह समाधान हो जाता है कि उस खाद्य कारबार से स्वास्थ्य जोखिम विद्यमान है,

तो न्यायालय खाद्य कारबारकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् आदेश द्वारा निम्नलिखित प्रतिषेध अधिरोपित कर सकेगा, अर्थात्: -

(i) खाद्य कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रक्रिया या उपचार के उपयोग पर प्रतिषेध;

(ii) किसी खाद्य कारबार या उसी वर्ग के या विवरण के किसी अन्य खाद्य कारबार के प्रयोजनों के लिए परिसरों या उपस्कर के उपयोग पर प्रतिषेध;

(iii) किसी खाद्य कारबार के प्रयोजनों के लिए परिसरों या उपस्कर के उपयोग पर प्रतिषेध ।

(2) न्यायालय, यह समाधान हो जाने पर कि ऐसा करना आवश्यक है तो, आदेश द्वारा, किसी खाद्य कारबार या उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट किसी वर्ग या विवरण के किसी खाद्य कारबार के प्रबंध में भागीदारी लेने वाले खाद्य कारबारकर्ता पर प्रतिषेध अधिरोपित कर सकेगा ।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन आदेश करने के पश्चात् (जिसे इस अधिनियम में इसके पश्चात् प्रतिषेध आदेश" कहा गया है) संबद्ध खाद्य सुरक्षा अधिकारी यथाशक्यशीघ्र- 

(क) आदेश की एक प्रति खाद्य कारबारकर्ता पर तामील करेगा; और

(ख) उपधारा (1) के अधीन आदेश की दशा में, आदेश की एक प्रति खाद्य कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त परिसर पर किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाएगा,

और ऐसा कोई व्यक्ति जो जानबूझकर ऐसे किसी आदेश का उल्लंघन करता है, अपराध का दोषी होगा और जुर्माने से जो तीन लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

(4) संबद्ध खाद्य सुरक्षा अधिकारी, अभिहित अधिकारी के अनुमोदन से, इस आशय का कि खाद्य कारबारकर्ता ने प्रतिषेध आदेश के हटाए जाने को न्यायोचित ठहराने वाले पर्याप्त उपाय किए हैं, खाद्य कारबारकर्ता द्वारा ऐसे प्रमाणपत्र के लिए किए गए आवेदन पर अपना समाधान हो जाने के सात दिन के भीतर प्रमाणपत्र जारी करेगा या उक्त अधिकारी- 

(क) युक्तियुक्त रूप से यथाशक्यशीघ्र और किसी भी दशा में, चौदह दिन के भीतर अवधारण करेगा चाहे उसका समाधान हुआ है या नहीं; और 

(ख) यदि वह यह अवधारित करता है कि उसका इस प्रकार समाधान नहीं हुआ है तो खाद्य कारबारकर्ता को उस अवधारण के कारणों की सूचना देगा ।

(5) प्रतिषेध आदेश पारित किए जाने के कम से कम छह मास के पश्चात् खाद्य कारबारकर्ता द्वारा किए गए आवेदन पर न्यायालय का यह समाधान हो जाने पर कि खाद्य कारबारकर्ता ने प्रतिषेध आदेश के हटाए जाने को उचित ठहराने वाले पर्याप्त उपाय किए हैं, उक्त प्रतिषेध आदेश प्रवर्तन में नहीं रहेगा ।

(6) यदि न्यायालय मामले की सभी परिस्थितियों को, जिनमें कोई विशिष्ट परिस्थिति भी सम्मिलित है, आदेश किए जाने से लेकर खाद्य कारबारकर्ता के आचरण को ध्यान में रखते हुए ऐसा करना उचित समझता है तो न्यायालय खाद्य कारबारकर्ता द्वारा किए गए आवेदन पर निदेश देगा; किन्तु ऐसा कोई भी आवेदन ग्रहण नहीं किया जाएगा, यदि वह-

(क) प्रतिषेध आदेश किए जाने के पश्चात् छह मास के भीतर नहीं किया जाता है; या

(ख) खाद्य कारबारकर्ता द्वारा ऐसे निदेश के लिए पूर्व आवेदन किए जाने के पश्चात् तीन मास के भीतर नहीं किया जाता है ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजन के लिए, -

(i) उपरोक्त कोई निर्देश खाद्य कारबार के प्रबंधक के संबंध में उसी प्रकार लागू होगा जैसे वह खाद्य कारबारकर्ता के संबंध में लागू होता है; और कारबार के खाद्य कारबारकर्ता या खाद्य कारबारकर्ता के प्रति निर्देश का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ।

(ii) खाद्य कारबार के संबंध में प्रबंधक" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे खाद्य कारबारकर्ता द्वारा कारबार या कारबार के किसी भाग को दिन प्रति दिन चलाने का दायित्व सौंपा जाता है ।

34. आपात प्रतिषेध सूचनाएं और आदेश-(1) यदि अभिहित अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि किसी खाद्य कारबार की बाबत स्वास्थ्य जोखिम की स्थितियां विद्यमान हैं तो वह खाद्य कारबारकर्ता पर एक सूचना तामील करने के पश्चात् (जिसे इस अधिनियम में इसके पश्चात् आपात प्रतिषेध सूचना" कहा गया है) प्रतिषेध अधिरोपित करने के लिए खाद्य सुरक्षा आयुक्त को आवेदन कर सकेगा ।

(2) यदि खाद्य सुरक्षा आयुक्त का ऐसे किसी अधिकारी के आवेदन पर समाधान हो जाता है कि किसी खाद्य कारबार की बाबत स्वास्थ्य जोखिम की स्थिति विद्यमान है तो वह आदेश द्वारा प्रतिषेध अधिरोपित करेगा ।

(3) अभिहित अधिकारी आपात प्रतिषेध आदेश के लिए तब तक आवेदन नहीं करेगा जब तक कि आवेदन की तारीख से कम से कम एक दिन पूर्व उसने कारबार के खाद्य कारबारकर्ता पर आदेश के लिए आवेदन करने के अपने आशय की सूचना की तामील न कर दी हो ।

(4) आपात प्रतिषेध आदेश करने के यथाशक्यशीघ्र पश्चात् अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी से यह अपेक्षा करेगा कि वह-

(क) खाद्य कारबारकर्ता पर आदेश की प्रति तामील करे; और

(ख) उस कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त ऐसे परिसरों पर सहजदृश्य स्थान पर आदेश की एक प्रति लगाए,

और ऐसा व्यक्ति जो जानबूझकर ऐसे किसी आदेश का उल्लंघन करता है, अपराध का दोषी होगा और कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी तथा जुर्माने से जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

(5) आपात प्रतिषेध आदेश अभिहित अधिकारी द्वारा इस आशय का प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर प्रभाव में नहीं रहेगा कि उसका यह समाधान हो गया है कि खाद्य कारबारकर्ता ने ऐसे आदेश के हटाए जाने को न्यायोचित ठहराने के लिए पर्याप्त उपाय किए हैं ।

(6) अभिहित अधिकारी ऐसे प्रमाणपत्र के लिए खाद्य कारबारकर्ता द्वारा आवेदन के सात दिन के भीतर और अपना समाधान न होने पर उपधारा (5) के अधीन प्रमाणपत्र जारी करेगा और उक्त अधिकारी, खाद्य कारबारकर्ता को दस दिन की अवधि के भीतर सूचना देगा जिसमें ऐसे विनिश्चय के कारण उपदर्शित किए जाएंगे ।

35. खाद्य विषाक्तता की अधिसूचना-खाद्य प्राधिकारी, अधिसूचना द्वारा, अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किसी स्थानीय क्षेत्र में अपनी वृत्ति चलाने वाले रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायियों से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसे अधिकारी को जो विनिर्दिष्ट किया जाए, उनकी जानकारी में आने वाली खाद्य विषाक्तता की घटनाओं की रिपोर्ट करें ।

36. अभिहित अधिकारी-(1) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, आदेश द्वारा ऐसे क्षेत्र में जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, खाद्य सुरक्षा प्रशासन के भारसाधक के रूप में अभिहित अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो उपखंड अधिकारी की पंक्ति से नीचे का नहीं होगा ।

(2) प्रत्येक जिले के लिए एक अभिहित अधिकारी होगा ।

(3) अभिहित अधिकारी द्वारा किए जाने वाले कृत्य निम्नलिखित होंगे, अर्थात्ः-

(क) खाद्य कारबारकर्ताओं को अनुज्ञप्ति जारी करना या उन्हें रद्द करना;

(ख) ऐसी किसी खाद्य वस्तु के विक्रय को प्रतिषिद्ध करना जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के उल्लंघन में है;

(ग) अपनी अधिकारिता के भीतर खाद्य सुरक्षा अधिकारी से खाद्य वस्तुओं की रिपोर्ट और नमूने प्राप्त करना और उनका विश्लेषण कराना;

(घ) खाद्य सुरक्षा आयुक्त को कारावास से दंडनीय उल्लंघन के मामले में अभियोजन आरंभ करने की मंजूरी देने के लिए सिफारिशें करना;

(ङ) जुर्माने से दंडनीय उल्लंघनों के मामले में अभियोजन की मंजूरी देना या अभियोजन आरंभ करना;

(च) खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा किए गए सभी निरीक्षणों का और उनके द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में की गई कार्रवाई का अभिलेख रखना;

(छ) किसी परिवाद का, अन्वेषण कराना जो इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों में से किसी उल्लंघन की बाबत लिखित में किया जाए;

(ज) ऐसे किसी परिवाद का, अन्वेषण करना जो खाद्य सुरक्षा अधिकारी के विरुद्ध लिखित में किया जाए; और

(झ) ऐसे अन्य कर्तव्यों को पालन करना जो खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा सौंपे जाएं ।

37. खाद्य सुरक्षा अधिकारी-(1) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, अधिसूचना द्वारा, ऐसे स्थानीय क्षेत्रों के लिए खाद्य सुरक्षा अधिकारी के रूप में केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित अर्हताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त करेगा जिन्हें वह ठीक समझे तथा जिन्हें इस अधिनियम और इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन उसके कृत्यों का पालन करने के प्रयोजन के लिए उन्हें समनुदेशित करे ।

(2) राज्य सरकार, विनिर्दिष्ट अधिकारिता के भीतर खाद्य सुरक्षा अधिकारी के कृत्यों का पालन करने के लिए राज्य सरकार के ऐसे किसी अधिकारी को प्राधिकृत कर सकेगी जिसके पास उपधारा (1) के अधीन विहित अर्हताएं हों ।

38. खाद्य सुरक्षा अधिकारी की शक्तियां-(1) खाद्य सुरक्षा अधिकारी-

(क) (i) किसी ऐसे खाद्य या किसी पदार्थ का नमूना ले सकेगा जो उसे मानव उपभोग के लिए विक्रय के लिए आशयित प्रतीत होता है या विक्रय किया गया है; या 

(ii) ऐसी किसी खाद्य वस्तु या पदार्थ का नमूना ले सकेगा जो उसे किसी ऐसे परिसर पर या उसमें मिलता है,

जिसके बारे में उसके पास विश्वास करने का कारण है कि उसकी इस अधिनियम के किसी उपबंध या उसके अधीन बनाए गए विनियमों या किए गए आदेशों के अधीन कार्यवाहियों में साक्ष्य के रूप में आवश्यकता पड़ सकती है; या

(ख) ऐसी किसी खाद्य वस्तु को अभिगृहीत कर सकेगा जो खाद्य सुरक्षा अधिकारी को इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए विनियमों के उल्लंघन में प्रतीत होता है; और

(ग) उस खाद्य वस्तु को नमूना लेने के पश्चात् खाद्य कारबारकर्ता की सुरक्षित अभिरक्षा में रख सकेगा,

और दोनों ही दशाओं में उस नमूने को विश्लेषण के लिए उस स्थानीय क्षेत्र के खाद्य विश्लेषक को भेजेगा जिसमें ऐसा नमूना लिया गया है:

परंतु जहां खाद्य सुरक्षा अधिकारी ऐसी वस्तु को खाद्य कारबारकर्ता की सुरक्षित अभिरक्षा में रखता है, वहां वह खाद्य कारबारकर्ता से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसी वस्तु के मूल्य के बराबर धनराशि का एक या अधिक प्रतिभूतियों के साथ एक बंधपत्र निष्पादित करे जैसा खाद्य सुरक्षा अधिकारी ठीक समझे और खाद्य कारबारकर्ता, तदनुसार बंधपत्र निष्पादित करेगा ।

(2) खाद्य सुरक्षा अधिकारी ऐसे किसी स्थान में, जहां खाद्य वस्तु विनिर्मित की जाती है या विक्रय के लिए भंडारित की जाती है या किसी अन्य खाद्य वस्तु के विनिर्माण के लिए भंडारित की जाती है, या विक्रय के लिए रखी या प्रदर्शित की जाती है और जहां कोई अपद्रव्य विनिर्मित किया जाता है या रखा जाता है, में प्रवेश कर सकेगा और उसका निरीक्षण कर सकेगा तथा ऐसी खाद्य वस्तुओं या अपद्रव्य का विश्लेषण के लिए नमूने ले सकेगा ।

(3) जहां कोई नमूना लिया जाता है, वहां उस दर से संगणित उसकी कीमत, जिस पर उक्त वस्तु का प्रायः जनता को विक्रय किया जाता है, उस व्यक्ति को संदत्त की जाएगी जिससे वह नमूना लिया जाता है ।

(4) जहां उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन अभिगृहीत कोई खाद्य वस्तु विनश्वर प्रकृति की है और खाद्य सुरक्षा अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी खाद्य वस्तु का इस प्रकार क्षय हो गया है कि वह मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है, वहां खाद्य सुरक्षा अधिकारी, खाद्य कारबारकर्ता को लिखित में सूचना देने के पश्चात् उस वस्तु को नष्ट करवा देगा ।

(5) खाद्य सुरक्षा अधिकारी, इस धारा के अधीन किसी स्थान में प्रवेश करने और उसका निरीक्षण करने की शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यथासाध्य, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन जारी किए गए तलाशी वारंट का निष्पादन करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा किसी स्थान की तलाशी लेने या निरीक्षण करने से संबंधित उस संहिता के उपबंधों का अनुसरण करेगा ।

(6) किसी खाद्य वस्तु के विनिर्माता या वितरक या व्यौहारी के कब्जे में या उसके अधिभोग में के परिसर में पाया गया कोई अपद्रव्य जिसके कब्जे के लिए खाद्य सुरक्षा अधिकारी के समाधान के लिए कोई हिसाब देने में वह असमर्थ है और उसके कब्जे या नियंत्रण में पाई गई किसी लेखा बही या अन्य दस्तावेज जो इस अधिनियम के अधीन किसी अन्वेषण या कार्यवाही के लिए उपयोगी या उससे सुसंगत होगी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा अभिगृहीत किए जा सकेंगे और ऐसे अपद्रव्य का नमूना खाद्य विश्लेषक को विश्लेषण के लिए प्रस्तुत किया जाएगा:

परंतु ऐसी कोई लेखाबहियां या अन्य दस्तावेज खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा ऐसे प्राधिकारी के पूर्व अनुमोदन के सिवाय, जिसका वह अधीनस्थ्य है, अभिगृहीत नहीं किए जाएंगे ।

(7) जहां खाद्य सुरक्षा अधिकारी उपधारा (1) के खंड (क) या उपधारा (2) या उपधारा (4) या उपधारा (6) के अधीन कोई कार्रवाई करता है वहां वह उस समय जब ऐसी कार्रवाई की जाती है, एक या अधिक व्यक्तियों को उपस्थित रहने के लिए कहेगा और उसके या उनके हस्ताक्षर लेगा ।

(8) जहां कोई लेखाबही या अन्य दस्तावेज उपधारा (6) के अधीन अभिगृहीत किए जाते हैं वहां सुरक्षा अधिकारी, अभिग्रहण की तारीख से तीस दिन से अनधिक की अवधि के भीतर, उन्हें ऐसे व्यक्ति को जिससे वे अभिगृहीत किए गए थे, उसकी प्रतियां तैयार करने या उससे उद्धरण लेने के पश्चात्, जिन्हें उस व्यक्ति द्वारा ऐसी रीति से प्रमाणित किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, वापस करेगा:

परंतु जहां ऐसा व्यक्ति इस प्रकार प्रमाणित करने से इंकार करता है और इस अधिनियम के अधीन उसके विरुद्ध अभियोजन संस्थित कर दिया गया है, वहां ऐसी लेखाबही और अन्य दस्तावेज उसे उनकी प्रतियां तैयार करने के पश्चात् और उससे उद्धरण लेने के पश्चात् जिन्हें न्यायालय द्वारा प्रमाणित किया जाएगा, वापस किए जाएंगे ।

(9) जब कोई अपद्रव्य उपधारा (6) के अधीन अभिगृहीत किया जाता है, तब यह साबित करने का भार कि ऐसा अपद्रव्य अपमिश्रण के प्रयोजन के लिए आशयित नहीं है, उस व्यक्ति पर होगा जिसके कब्जे से ऐसा अपद्रव्य अभिगृहीत किया गया था ।

(10) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, खाद्य सुरक्षा अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करने के संबंध में समय-समय पर मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगा, जो आबद्धकर होंगेः

परंतु खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा, ऐसे खाद्य सुरक्षा अधिकारी की शक्तियों को किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए प्रतिसंहृत भी किया जा सकेगा ।

39. कतिपय मामलों में खाद्य सुरक्षा अधिकारी का दायित्व-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने वाला कोई खाद्य सुरक्षा अधिकारी जो-

(क) तंग करने की दृष्टि से और किसी युक्तियुक्त आधार के बिना किसी खाद्य वस्तु या अपद्रव्य का अभिग्रहण करता है; या

(ख) किसी व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के लिए यह विश्वास करने के कारण के बिना कि ऐसा कृत्य उसके कर्तव्य के निष्पादन के लिए आवश्यक है, कोई अन्य कृत्य करता है,

इस अधिनियम के अधीन अपराध का दोषी होगा और ऐसी शास्ति का जो एक लाख रुपए तक हो सकेगी, दायी होगाः

परन्तु यदि किसी खाद्य सुरक्षा अधिकारी के विरुद्ध कोई मिथ्या परिवाद किया जाता है और ऐसा साबित हो जाता है तो परिवादी इस अधिनियम के अधीन अपराध का दोषी होगा और वह जुर्माने से, जो पचास हजार रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

40. क्रेता द्वारा खाद्य का विश्लेषण कराया जा सकना-(1) इस अधिनियम की कोई बात खाद्य सुरक्षा अधिकारी से भिन्न, किसी खाद्य पदार्थ के क्रेता को, जो ऐसी फीस देकर ऐसे पदार्थ का विश्लेषण कराने और खाद्य विश्लेषक से उसके विश्लेषण की रिपोर्ट ऐसी अवधि के भीतर जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, प्राप्त करने से निवारित करने वाली अभिनिर्धारित नहीं की जाएगी:

परन्तु ऐसा क्रेता ऐसी वस्तु का इस प्रकार विश्लेषण कराने के अपने आशय की सूचना क्रय करते समय खाद्य कारबारकर्ता को देगा:

परंतु यह और कि यदि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट से यह दर्शित होता है कि खाद्य पदार्थ अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अनुपालन में नहीं है तो क्रेता इस धारा के अधीन उसके द्वारा दी गई फीसों का प्रतिदाय पाने का हकदार होगा ।

(2) यदि खाद्य विश्लेषक नमूने को इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के उल्लंघन में पाता है तो खाद्य विश्लेषक, अभियोजन के लिए धारा 42 में अधिकथित प्रक्रिया का पालन करने के लिए अभिहित अधिकारी को रिपोर्ट भेजेगा ।

41. तलाशी, अभिग्रहण, अन्वेषण, अभियोजन की शक्ति और उनकी प्रक्रिया-(1) धारा 31 की उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, यदि खाद्य से संबंधित किसी अपराध के किए जाने में उनके अंतर्वलित होने का कोई युक्तियुक्त संदेह है, किसी स्थान की तलाशी ले सकेगा, किसी खाद्य वस्तु या अपद्रव्य का अभिग्रहण कर सकेगा और तत्पश्चात् अभिहित अधिकारी को अपने द्वारा की गई कार्रवाई की लिखित सूचना देगाः

परंतु कोई तलाशी केवल इस तथ्य के कारण अनियमित नहीं समझी जाएगी कि तलाशी के लिए साझी उस परिक्षेत्र के निवासी नहीं हैं जिसमें वह तलाशी का स्थान स्थित है ।

(2) इस अधिनियम में जैसा अभिव्यक्त रूप से उपबंधित है, उसके सिवाय दंड प्रक्रिया संहिता, 1974 (1974 का 2) के तलाशी, अभिग्रहण, समन, अन्वेषण और अभियोजन से संबंधित उपबंध, यथासाध्य इस अधिनियम के अधीन खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा की गई सभी कार्रवाइयों को लागू होंगे ।

42. अभियोजन चलाने के लिए प्रक्रिया-(1) खाद्य सुरक्षा अधिकारी, खाद्य कारबार के निरीक्षण, नमूना लेने और उन्हें विश्लेषण के लिए खाद्य विश्लेषक को भेजने के लिए उत्तरदायी होगा ।

(2) खाद्य विश्लेषक, खाद्य सुरक्षा अधिकारी से नमूना प्राप्त होने के पश्चात् नमूने का विश्लेषण करेगा और अभिहित अधिकारी को चौदह दिन के भीतर विश्लेषण की रिपोर्ट नमूने लेने और विश्लेषण की निर्दिष्ट पद्धति को उल्लिखित करते हुए भेजेगा और उसकी एक प्रति खाद्य सुरक्षा आयुक्त को भेजेगा ।

(3) अभिहित अधिकारी, खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट की संवीक्षा करने के पश्चात् यह विनिश्चय करेगा कि क्या उल्लंघन, कारावास से या केवल जुर्माने से दंडनीय है और कारावास से दंडनीय उल्लंघन की दशा में, वह अभियोजन की मंजूरी के लिए अपनी सिफारिशें चौदह दिन के भीतर खाद्य सुरक्षा आयुक्त को भेजेगा ।

(4) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, यदि वह ऐसा ठीक समझता है तो अपराध की गंभीरता के अनुसार केन्द्रीय, सरकार द्वार विहित अवधि के भीतर यह विनिश्चय करेगा कि मामले को, -

(क) तीन वर्ष तक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय अपराध की दशा में, मामूली अधिकारिता के किसी न्यायालय को निर्दिष्ट किया जाए; या

(ख) तीन वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय अपराधों की दशा में, किसी विशेष न्यायालय को निर्दिष्ट किया जाए जहां ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित है और जहां ऐसा विशेष न्यायालय नहीं है वहां ऐसे मामले मामूली अधिकारिता के किसी न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे ।

(5) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, अपने विनिश्चय को अभिहित अधिकारी और संबद्ध खाद्य सुरक्षा अधिकारी को संसूचित करेगा, जो, यथास्थिति, मामूली अधिकारिता के न्यायालय या विशेष न्यायालय के समक्ष अभियोजन चलाएगा और यदि नमूना धारा 40 के अधीन लिया गया था तो ऐसी संसूचना क्रेता को भी भेजी जाएगी ।

अध्याय 8

खाद्य विश्लेषण

43. प्रयोगशालाओं, अनुसंधान संस्थाओं और परामर्श खाद्य प्रयोगशाला की मान्यता और प्रत्यायन-(1) खाद्य प्राधिकारी इस अधिनियम के अधीन खाद्य विश्लेषकों द्वारा नमूनों का विश्लेषण करने के प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय परीक्षण और अशंशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड द्वारा प्रत्यायित खाद्य प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संस्थाओं को या किसी अन्य प्रत्यायन अभिकरण को अधिसूचित कर सकेगा ।

(2) खाद्य प्राधिकारी, इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों और विनियमों द्वारा परामर्श खाद्य प्रयोगशाला को सौंपे गए कृत्यों को करने के लिए एक या अधिक परामर्श खाद्य प्रयोगशाला या प्रयोगशालाओं को, अधिसूचना द्वारा, स्थापित करेगा या मान्यता देगा ।

(3) खाद्य प्राधिकारी निम्नलिखित विनिर्दिष्ट करते हुए विनियम विरचित कर सकेगा-

(क) खाद्य प्रयोगशाला और परामर्श खाद्य प्रयोगशाला के कृत्य और वह या वे स्थानीय क्षेत्र जिसके या जिनके भीतर ऐसे कृत्य किए जा सकेंगे;

(ख) विश्लेषण या परीक्षणों के लिए खाद्य वस्तुओं के नमूनों को उक्त प्रयोगशाला को सौंपने की प्रक्रिया, उस पर प्रयोगशाला की रिपोर्टों के प्ररूप और ऐसी रिपोर्टों की बाबत संदेय फीसें; और

(ग) ऐसे अन्य विषय जो उक्त प्रयोगशाला को अपने कृत्यों को प्रभावी रूप से करने के लिए समर्थ बनाने के लिए आवश्यक या समीचीन हों ।

44. खाद्य सुरक्षा लेखापरीक्षा के लिए संगठन या अभिकरण की मान्यता-खाद्य प्राधिकारी, खाद्य सुरक्षा लेखापरीक्षा और इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन अपेक्षित खाद्य सुरक्षा प्रबंध प्रणालियों के अनुपालन की जांच के प्रयोजनों के लिए किसी संगठन या अभिकरण को मान्यता दे सकेगा ।

 45. खाद्य विश्लेषक-खाद्य सुरक्षा आयुक्त, अधिसूचना द्वारा, केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित अर्हताएं रखने वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझे, ऐसे स्थानीय क्षेत्रों के लिए जो उन्हें खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा सौंपे जाएं, खाद्य विश्लेषक नियुक्त कर सकेगा:

परंतु इस धारा के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति को खाद्य विश्लेषक नियुक्त नहीं किया जाएगा जिसका किसी खाद्य वस्तु के विनिर्माण या विक्रय में कोई वित्तीय हित है: परंतु यह और कि भिन्न-भिन्न खाद्य वस्तु के लिए भिन्न-भिन्न खाद्य विश्लेषक नियुक्त किए जा सकेंगे ।

46. खाद्य विश्लेषक के कृत्य-(1) खाद्य विश्लेषक, खाद्य सुरक्षा अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति से विश्लेषण के लिए किसी नमूने से युक्त पैकेज की प्राप्ति पर आधान और बाह्य आवरण पर मुहर की तुलना अलग से प्राप्त किए गए छाप के नमूनों से करेगा और उन पर मुहर की दशाओं को नोट करेगा:

परंतु खाद्य विश्लेषक द्वारा प्राप्त नमूना आधान टूटी हुई अवस्था में पाए जाने या विश्लेषण के लिए अनुपयुक्त पाए जाने की दशा में वह ऐसे नमूने की प्राप्ति की तारीख से सात दिन की अवधि के भीतर उसके बारे में अभिहित अधिकारी को सूचित करेगा और नमूने के दूसरे भाग को उसे भेजे जाने के लिए अध्यपेक्षा भेजेगा ।

(2) खाद्य विश्लेषक, खाद्य वस्तुओं के ऐसे नमूनों का, जो उसे खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा या इस अधिनियम के अधीन प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भेजे गए हों, विश्लेषण कराएगा ।

(3) खाद्य विश्लेषक, विश्लेषण के लिए किसी नमूने के प्राप्त होने की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर-

(i) जहां ऐसा नमूना धारा 38 या धारा 47 के अधीन प्राप्त होता है वहां अभिहित अधिकारी को ऐसे नमूने लेने और विश्लेषण की पद्धति को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट की चार प्रतियां भेजेगा; और

(ii) जहां नमूना धारा 40 के अधीन प्राप्त होता है, वहां नमूना लेने और विश्लेषण की पद्धति को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट की एक प्रति, अभिहित अधिकारी को एक प्रति के साथ उस व्यक्ति को भेजेगा जिसने उक्त खाद्य वस्तु क्रय की थी:

परंतु नमूने की प्राप्ति से चौदह दिन के भीतर उसका विश्लेषण न हो सकने की दशा में, खाद्य विश्लेषक, अभिहित अधिकारी और खाद्य सुरक्षा आयुक्त को कारण बताते हुए और विश्लेषण में लगने वाले समय को विनिर्दिष्ट करते हुए सूचना देगा ।

(4) खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के विरुद्ध अपील, अभिहित अधिकारी के समक्ष होगी, जो, यदि वह ऐसा विनिश्चय करता है, मामले को खाद्य प्राधिकारी द्वारा यथा अधिसूचित परामर्श खाद्य प्रयोगशाला की राय के लिए निर्देशित करेगा । 

47. नमूना लेना और विश्लेषण-(1) जब कोई खाद्य सुरक्षा अधिकारी विश्लेषण के लिए खाद्य का नमूना लेता है, तब वह-

(क) उसका ऐसे विश्लेषण कराने के अपने आशय की लिखित सूचना उस व्यक्ति को जिससे उसने वह नमूना लिया है और उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसका नाम, पता और अन्य विशिष्टियां प्रकट की गई हों, देगा;

(ख) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा उपबंधित किए जाने वाले विशेष मामलों के सिवाय, नमूने को चार भागों में विभाजित करेगा और प्रत्येक भाग को ऐसी रीति से, जो उसकी प्रकृति अनुज्ञात करे, चिन्हित और मुहरबंद करेगा या बांधेगा और उस व्यक्ति को, जिससे वह नमूना लिया गय है ऐसे स्थान पर और ऐसी रीति से हस्ताक्षर या उसके अंगूठे की छाप लेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए:

परंतु जहां ऐसा व्यक्ति हस्ताक्षर करने से या अंगूठे की छाप लगाने से इंकार करता है, वहां खाद्य सुरक्षा अधिकारी एक या अधिक साक्षियों को बुलाएगा और ऐसे व्यक्ति के हस्ताक्षर या अंगूठे की छाप के बदले उसके या उनके हस्ताक्षर या अंगूठे की छाप लेगा;

(ग) (i) एक भाग को अभिहित अधिकारी को संसूचित करते हुए, खाद्य विश्लेषक को विश्लेषण के लिए भेजेगा;

(ii) दो भागों को अभिहित अधिकारी को सुरक्षित अभिरक्षा में रखने के लिए भेजेगा; और

(iii) यदि खाद्य कारबारकर्ता द्वारा ऐसा अनुरोध किया जाता है, जो अभिहित अधिकारी को संसूचित करते हुए शेष भाग को विश्लेषण के लिए किसी प्रत्यायित प्रयोगशाला को भेजेगाः

परन्तु यदि उपखंड (i) और उपखंड (iii) के अधीन प्राप्त परीक्षण रिपोर्टों में भिन्नता पाई जाती है तो अभिहित अधिकारी, अपनी अभिरक्षा में रखे गए नमूने के एक भाग को विश्लेषण के लिए परामर्श प्रयोगशाला को भेजेगा, जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

(2) जब किसी खाद्य वस्तु या अपद्रव्य का नमूना लिया जाता है, तब खाद्य सुरक्षा अधिकारी ठीक अगले कार्य दिवस तक, नमूने को संबंधित क्षेत्र के खाद्य विश्लेषक को विश्लेषण और रिपोर्ट के लिए भेजेगा ।

(3) जहां खाद्य विश्लेषक को भेजे गए नमूने का भाग खो जाता है या नुकसानग्रस्त हो जाता है वहां अभिहित अधिकारी खाद्य विश्लेषक या खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा अध्यपेक्षा किए जाने पर उसे भेजे गए नमूने के भागों में से एक भाग को विश्लेषण के लिए खाद्य विश्लेषक को भेजेगा ।

(4) अभिगृहीत कोई खाद्य वस्तु या अपद्रव्य, यदि नष्ट नहीं किया गया है तो यथासंभवशीघ्र और हर हालत में खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट मिलने के पश्चात् सात दिन के भीतर अभिहित अधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा:

परंतु यदि उस व्यक्ति द्वारा, जिससे कोई खाद्य वस्तु अभिगृहीत की गई है, अभिहित अधिकारी को इस निमित्त आवेदन किया गया है तो अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी को लिखित आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगा कि वह ऐसी वस्तु को ऐसे समय के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, उसके समक्ष पेश करे ।

(5) आयातित खाद्य वस्तु की दशा में, खाद्य प्राधिकारी का प्राधिकृत अधिकारी उसका नमूना लेगा और अधिसूचित प्रयोगशाला के खाद्य विश्लेषक को विश्लेषण के लिए भेजेगा जो प्राधिकृत अधिकारी को पांच दिन की अवधि के भीतर रिपोर्ट भेजेगा ।

(6) अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, प्राधिकृत अधिकारी और खाद्य विश्लेषक विनियमों द्वारा यथाविनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करेगा ।

अध्याय 9

अपराध और शास्तियां

48. अपराधों से संबंधित साधारण उपबंध-(1) कोई व्यक्ति किसी खाद्य वस्तु को इस जानकारी के साथ कि वह मानव उपभोग के लिए विक्रय की जा सकेगी या विक्रय के लिए प्रस्थापित की जा सकेगी या वितारित की जा सकेगी, निम्नलिखित संक्रियाओं में से किसी एक या अधिक संक्रिया द्वारा स्वास्थ्य के लिए हानिकार बनाता है, अर्थात्: -

(क) खाद्य में कोई वस्तु या पदार्थ मिलाकर;

(ख) खाद्य की तैयारी में किसी अवयव के रूप में किसी वस्तु या पदार्थ का उपयोग करके;

(ग) खाद्य से किसी संघटक को निकालकर; या

(घ) खाद्य के साथ कोई अन्य प्रक्रिया या उपचार करके । 

(2) इस बारे में अवधारण करने में कि क्या कोई खाद्य असुरक्षित या स्वास्थ्य के लिए हानिकर है, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाएगा-

(क) (i) उपभोक्ताओं द्वारा खाद्य के उपयोग की सामान्य दशाएं और उसके उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण के प्रत्येक प्रक्रम पर रखरखाव;

(ii) उपभोक्ताओं की दी गई जानकारी जिसके अतंर्गत लेबल पर जानकारी भी सम्मिलित है या किसी विशिष्ट खाद्य या खाद्य के किसी प्रवर्ग से स्वास्थ्य पर विनिर्दिष्ट प्रतिकूल प्रभाव से बचाव के संबंध में और उसका उपभोग करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर उस खाद्य के संभावित, तात्कालिक या अल्पकालिक या दीर्घकालिक प्रभावों से बचाव के संबंध में उपभोक्ताओं को साधारणतया उपलब्ध अन्य जानकारी;

(iii) संभावित संचयी विषाणु प्रभाव;

(iv) जहां खाद्य उपभोक्ताओं के किसी प्रवर्ग के लिए आशयित है वहां उन उपभोक्ताओं के विनिर्दिष्ट प्रवर्ग की विशिष्ट स्वास्थ्य संवेदनशीलता पर; और

(v) उसकी सामान्य मात्रा में उपभोग करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर उसी संरचना के खाद्य की संचयी प्रभाव की भी संभावना;

(ख) यह तथ्य कि जहां किसी वस्तु की जो प्राथमिक खाद्य है, क्वालिटी या शुद्धता विनिर्दिष्ट मानकों से नीचे गिर गई है या उसके संघटक ऐसी मात्राओं में विद्यमान हैं जो भिन्नता की विनिर्दिष्ट सीमाओं के भीतर नहीं आते और दोनों ही मामलों में प्राकृतिक कारणों से हुई है तथा मानव अभिकरण के नियंत्रण से परे है तब ऐसी वस्तु असुरक्षित या अवमानक या बाह्य वस्तु से युक्त खाद्य नहीं माना जाएगा । 

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए क्षति" के अंतर्गत कोई ह्रास भी है चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी और स्वास्थ्य के लिए हानिकर" का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ।

49. शास्ति से संबंधित साधारण उपबंध-जब इस अध्याय के अधीन शास्ति की मात्रा का न्यायनिर्णयन करते समय, यथास्थिति, न्यायनिर्णायक, अधिकारी या अधिकरण, निम्नलिखित का सम्यक् ध्यान रखेगा: -

(क) उल्लंघन के परिणामस्वरूप हुए अभिलाभ या अनुचित लाभ की रकम, जहां भी निर्धारणीय हो;

(ख) उल्लंघन के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को कारित हानि या ऐसी हानि जिसके होने की संभावना है, की रकम;

(ग) उल्लंघन की पुनरावृत्ति की प्रकृति;

(घ) चाहे उल्लंघन उसकी जानकारी के बिना किया गया है; और

(ङ) कोई अन्य सुसंगत कारक ।

50. ऐसे खाद्य का विक्रय करने के लिए शास्ति जो मांगी गई प्रकृति या तत्व या क्वालिटी का नहीं है-कोई व्यक्ति जो क्रेता को प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले किसी खाद्य का विक्रय करता है जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए विनियमों के उपबंधों के अनुपालन में नहीं है या क्रेता द्वारा मांगी गई प्रकृति या तत्व या क्वालिटी का नहीं है, पांच लाख रुपए से अनधिक की शास्ति का दायी होगा:

परंतु धारा 31 की उपधारा (2) के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति, ऐसे अननुपालन के लिए पच्चीस हजार रुपए से अनधिक की शास्ति के दायी होंगे ।

51. अवमानक खाद्य के लिए शास्ति-कोई व्यक्ति जो चाहे वह स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे खाद्य पदार्थ का जो अवमानक है, मानव उपभोग के लिए, विक्रय के लिए विनिर्माण या भंडारण करता है या विक्रय या वितरण या आयात करता है शास्ति का, जो पांच लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

52. मिथ्या छाप वाले खाद्य के लिए शास्ति-(1) कोई व्यक्ति जो चाहे स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी ऐसी खाद्य वस्तु का जो मिथ्या छाप की है, मानव उपभोग के लिए विक्रय हेतु विनिर्माण या भंडारण करता है या विक्रय या वितरण या आयात करता है शास्ति का, जो तीन लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

(2) न्यायनिर्णायक अधिकारी इस धारा के अधीन किसी अपराध के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को त्रुटि के सुधारने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने या ऐसे खाद्य पदार्थ को नष्ट करने का निदेश जारी कर सकेगा ।

53. भ्रामक विज्ञापन के लिए शास्ति-(1) कोई व्यक्ति, जो ऐसे किसी विज्ञापन का प्रकाशन करता है या उस प्रकाशन का कोई पक्षकार है, जिसमें-

(क) किसी खाद्य का मिथ्या वर्णन है; या

(ख) किसी खाद्य की प्रकृति या तत्व या क्वालिटी के बारे में भ्रम पैदा होने की संभावना है या मिथ्या गारंटी देता है, शास्ति का, जो दस लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा । 

(2) किसी कार्यवाही में यह तथ्य कि किसी खाद्य वस्तु से संबंधित कोई लेबल या विज्ञापन जिसकी बाबत अभिकथित रूप से उल्लंघन किया गया है, खाद्य के संघटकों का यथार्थ कथन अंतर्विष्ट है, न्यायालय को इस निष्कर्ष पर पंहुचने से प्रवारित नहीं करेगा कि उल्लंघन किया गया था ।

54. ऐसे खाद्य के लिए शास्ति जिसमें बाह्य पदार्थ अंतर्विष्ट है-कोई व्यक्ति जो चाहे स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानव उपभोग के लिए ऐसी किसी खाद्य वस्तु का जिसमें बाह्य पदार्थ अंतर्विष्ट है, विक्रय के लिए विनिर्माण या भंडार या विक्रय या वितरण या आयात करता है, शास्ति का, जो एक लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

55. खाद्य सुरक्षा अधिकारी के निदेशों का अनुपालन करने में असफल रहने के लिए शास्ति-यदि कोई खाद्य कारबारकर्ता या आयातकर्ता बिना किसी युक्तियुक्त आधार के इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए विनियमों या जारी किए गए आदेशों के अधीन खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा यथा निदेशित अपेक्षाओं का अनुपालन करने में असफल रहता है, तो वह शास्ति का, जो दो लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

56. खाद्य के अस्वास्थ्यकर या अस्वच्छकर प्रसंस्करण या विनिर्माण के लिए शास्ति-कोई व्यक्ति जो चाहे स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानव उपभोग के लिए किसी खाद्य पदार्थ का अस्वास्थ्यकर या अस्वच्छकर दशाओं में विनिर्माण या प्रसंस्करण करता है, ऐसी शास्ति का, जो एक लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

57. अपद्रव्य रखने के लिए शास्ति-(1) इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यदि कोई व्यक्ति जो या तो स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी अपद्रव्य का विक्रय के लिए आयात या विनिर्माण करता है या भंडारण या विक्रय या वितरण करता है तो वह-

(i) जहां ऐसा अपद्रव्य स्वास्थ्य के लिए हानिकर नहीं है, वहां दो लाख रुपए से अनधिक की शास्ति का दायी होगा; और

 (ii) जहां ऐसा अपद्रव्य स्वास्थ्य के लिए हानिकर है, वहां दस लाख रुपए से अनधिक की शास्ति का दायी होगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी कार्रवाई में यह कोई प्रतिरक्षा नहीं होगी कि अभियुक्त ऐसे अपद्रव्य को किसी अन्य व्यक्ति की ओर से प्रतिधारित किए हुए था ।

58. ऐसे उल्लंघन के लिए शास्ति जिसके लिए कोई विनिर्दिष्ट शास्ति उपबंधित नहीं है-जो कोई इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के किन्हीं उपबंधों का उल्लंघन करता है जिसके उल्लंघन के लिए इस अध्याय में कोई पृथक् शास्ति उपबंधित नहीं है, तो वह शास्ति का, जो दो लाख रुपए तक की हो सकेगी, दायी होगा ।

59. असुरक्षित खाद्य के लिए दंड-कोई व्यक्ति जो, चाहे स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानव उपभोग के लिए किसी खाद्य वस्तु का, जो असुरक्षित है, विक्रय के लिए विनिर्माण करता है या भंडारण या विक्रय या वितरण या आयात करता है, -

(i) जहां ऐसी असफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप क्षति कारित नहीं होती है वहां वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा;

(ii) जहां ऐसी असफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप कोई घोर क्षति कारित नहीं होती है, वहां वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी जो तीन लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा;

(iii) जहां ऐसी असफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप कोई घोर क्षति होती है वहां वह कारावास से जिसकी अवधि छह वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी जो पांच लाख रुपए तक हो सकेगा, दंडनीय होगा;

(iv) जहां ऐसी असफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है, वहां वह कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी जो दस लाख रुपए से कम नहीं होगा, दंडनीय होगा ।

60. अभिगृहीत वस्तुओं के साथ छेड़छाड़ करने के लिए दंड-यदि कोई व्यक्ति खाद्य सुरक्षा अधिकारी की अनुज्ञा के बिना, इस अधिनियम के अधीन अभिगृहीत किसी खाद्य, यान, उपस्कर, पैकेज या लेबल या विज्ञापन सामग्री या अन्य चीज को रखता है, हटाता है या उसके साथ छेड़छाड़ करता है तो वह कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक हो सकेगी और जुर्माने से भी जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

61. मिथ्या सूचना के लिए दंड-यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के अधीन किसी अपेक्षा या निदेश के संबंध में यह जानते हुए कि यह मिथ्या या भ्रामक है, कोई सूचना या कोई दस्तावेज उपलब्ध कराता है, तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक हो सकेगी और जुर्माने से भी जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

62. किसी खाद्य सुरक्षा अधिकारी को बाधा पहुंचाने या प्रतिरूपण के लिए दंड-यदि कोई व्यक्ति खाद्य सुरक्षा अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन में किसी युक्तियुक्त कारण के बिना प्रतिरोध करता है, बाधा पहुंचाता है या बाधा पहुंचाने, प्रतिरूपण करने, धमकी देने, अभित्रास या हमला करने का प्रयत्न करता है तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक हो सकेगी और जुर्माने से भी जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

63. बिना अनुज्ञप्ति किसी कारबार को रोकने के लिए दंड-यदि कोई व्यक्ति या खाद्य कारबारकर्ता (इस अधिनियम की धारा 31 की उपधारा (2) के अधीन अनुज्ञापन से छूट प्राप्त व्यक्तियों को छोड़कर) स्वयं या अपनी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा जिससे अनुज्ञप्ति प्राप्त करने की अपेक्षा है, बिना अनुज्ञप्ति के किसी खाद्य वस्तु का विनिर्माण, विक्रय, भंडारण या वितरण या आयात करता है, तो वह कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक हो सकेगी और जुर्माने से भी जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय  होगा ।

64. पश्चात्वर्ती अपराधों के लिए दंड-(1) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए पूर्व में दोषसिद्ध ठहराए जाने के तत्पश्चात् वैसा ही कोई अपराध करता है और उस अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाता है, तो वह-

(i) उस दंड के जो, पहली दोषसिद्धि पर अधिरोपित किया जाता उसी अपराध के लिए उपबंधित अधिकतम दंड के अधीन रहते हुए दुगुने दंड के लिए दायी होगा; और 

(ii) दैनिक आधार पर अतिरिक्त जुर्माने का, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, जहां अपराध जारी रहने वाला अपराध है, वहां दायी होगा; और

(iii) उसकी अनुज्ञप्ति रद्द कर दी जाएगी ।

(2) न्यायालय, अपराधी का नाम और उसके निवास का स्थान, अपराध और अधिरोपित शास्ति को अपराधी के खर्चें पर ऐसे समाचारपत्रों में और ऐसी अन्य रीति से जो न्यायालय निदेशित करे, प्रकाशित करा सकेगा और ऐसे प्रकाशन के खर्चे दोषसिद्धि के खर्चे के भाग समझे जाएंगे और जुर्माने के रूप में उसी रीति से वसूलनीय होंगे ।

65. उपभोक्ता की क्षति या मृत्यु की दशा में प्रतिकर-(1) इस अध्याय के अन्य उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई व्यक्ति चाहे वह स्वयं या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसी किसी खाद्य वस्तु का विनिर्माण या विक्रय या आयात करता है जिससे किसी उपभोक्ता को क्षति पहुंचती है या उसकी मृत्यु हो जाती है तो, यथास्थिति, न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय के लिए विधिपूर्ण होगा कि वह उसको, पीड़ित या पीड़ित के विधिक प्रतिनिधि को निम्नलिखित प्रतिकर का संदाय करने का निदेश दे, -

(क) मृत्यु की दशा में कम से कम पांच लाख रुपए;

(ख) घोर क्षति की दशा में, तीन लाख रुपए से अनधिक की राशि; और

(ग) क्षति की अन्य सभी दशाओं में, एक लाख रुपए से अनधिक की राशि:

परंतु प्रतिकर का संदाय शीघ्रतम किया जाएगा और हर दशा में घटना के घटित होने की तारीख से छह मास के भीतर किया जाएगा:

परंतु यह और कि मृत्यु की दशा में, मृतक के निकटतम संबंधी को घटना के तीस दिन के भीतर अंतरिम अनुतोष का संदाय किया जाएगा ।

(2) जहां किसी व्यक्ति को घोर क्षति या मृत्यु कारित करने वाले अपराध का दोषी अभिनिर्धारित किया गया है, वहां न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय दोषी अभिनिर्धारित व्यक्ति के नाम और निवास स्थान, अपराध और अधिरोपित शास्ति को अपराधी के खर्चे पर, ऐसे समाचारपत्रों या ऐसी अन्य रीति से जो न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय निदेश दे, प्रकाशित कराएगा और ऐसे प्रकाशन के खर्चे दोषसिद्धि के खर्चे का भाग समझे जाएंगे और जुर्माने के रूप में उसी रीति से वसूलनीय होंगे । 

(3) न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय, -

(क) अनुज्ञप्ति के रद्दकरण, बाजार से खाद्य को वापस लेने, उपभोक्ता की घोर क्षति या उसकी मृत्यु की दशा में स्थापन और संपत्ति के समपहरण के लिए भी आदेश कर सकेगा;

(ख) अन्य मामलों में प्रतिषेध आदेश जारी कर सकेगा ।

66. कंपनी द्वारा अपराध-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध, किसी कंपनी द्वारा किया गया है, वहां ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे:

परंतु जहां किसी कंपनी के भिन्न-भिन्न स्थापन या शाखाएं हैं या किसी स्थापन या शाखा में भिन्न-भिन्न यूनिटें हैं वहां संबद्ध प्रमुख या कंपनी द्वारा खाद्य सुरक्षा के लिए उत्तरदायी व्यक्ति के रूप में नामनिर्देशित ऐसे स्थापन या शाखा या यूनिट का भारसाधक व्यक्ति ऐसे स्थापन, शाखा या यूनिट की बाबत उल्लंघन के लिए दायी होगा:

परन्तु यह और कि इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबंधित दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने के निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध, किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा । 

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -

(क) कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; और

(ख) फर्म के संबंध में, निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

67. खाद्य पदार्थों के आयात के मामले में इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के लिए शास्ति किसी अन्य अधिनियम में उपबंधित शास्तियों के अतिरिक्त होगी-(1) कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम, उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के उल्लंघन में किसी खाद्य वस्तु का आयात करेगा, ऐसी किसी शास्ति के अतिरिक्त जिसके लिए वह विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 (1992 का 22) और सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) के उपबंधों के अधीन भागी हो सकता है, इस अधिनियम के अधीन भी भागी होगा और तद्नुसार उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी ।

(2) ऐसी कोई खाद्य वस्तु, यदि, यथास्थिति, विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 (1992 का 22) या सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) या किसी अन्य अधिनियम के अधीन सक्षम पदाधिकारी द्वारा अनुज्ञाप्त है, नष्ट कर दी जाएगी या आयातकर्ता को वापस कर दी जाएगी ।

अध्याय 10

न्यायनिर्णयन और खाद्य सुरक्षा अपील अधिकरण

68. न्यायनिर्णयन-(1) इस अध्याय के अधीन न्यायनिर्णयन के प्रयोजनों के लिए, उस जिले के, जहां अभिकथित अपराध किया जाता है, अपर जिला मजिस्ट्रेट की पंक्ति से अन्यून के किसी अधिकारी को, न्यायनिर्णयन के लिए न्यायनिर्णायक अधिकारी के रूप में ऐसी रीति में जो केन्द्रीय सरकार विहित करे राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा । 

(2) न्यायनिर्णायक अधिकारी, मामले में अभ्यावेदन करने के लिए उस व्यक्ति को युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् और यदि, ऐसी जांच पर उसका यह समाधान हो जाता है कि उस व्यक्ति ने इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के उपबंधों का उल्लंघन किया है, तो ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा जो वह उस अपराध से संबंधित उपबंधों के अनुसार उचित समझे-

(3) न्यायनिर्णायक अधिकारी को सिविल न्यायालय की शक्तियां होंगी और-

(क) उसके समक्ष सभी कार्यवाहियां भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थांतर्गत न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी;

(ख) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 धारा के प्रयोजनों के लिए न्यायालय समझा जाएगा

(4) न्यायनिर्णायक अधिकारी इस अध्याय के अधीन शास्ति की मात्रा का न्यायनिर्णयन करते समय धारा 49 में विनिर्दिष्ट मार्गदशक सिद्धांतों का सम्यक् ध्यान रखेगा ।

69. अपराधों के शमन की शक्ति-(1) खाद्य सुरक्षा आयुक्त, आदेश द्वारा, अभिहित अधिकारी को ऐसे छोटे विनिर्माता से जो स्वयं किसी खाद्य वस्तु का विनिर्माण और विक्रय करता है, खुदरा व्यापारी, फेरीवाले, भ्रमण विक्रेता, अस्थायी स्टाल धारकों से जिसके विरुद्ध कोई युक्तियुक्त विश्वास हो कि उसने इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध या उल्लंघन किया है, उस अपराध के, जिसके किए जाने का उस व्यक्ति पर संदेह है, शमन के लिए धनराशि का संदाय स्वीकार करने के लिए सशक्त कर सकेगा ।

(2) ऐसे अधिकारी को ऐसी धनराशि के संदाय पर संदिग्ध व्यक्ति को, यदि वह अभिरक्षा में है, उन्मोचित किया जाएगा, और ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध अपराध के संबंध में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी ।

(3) उपधारा (1) के अधीन शमन के रूप में स्वीकार की गई या स्वीकार किए जाने के लिए तय की गई धनराशि एक लाख रुपए से अधिक नहीं होगी और धारा 49 में विनिर्दिष्ट मार्गदर्शक सिद्धांतों को सम्यक् रूप से ध्यान में रखा जाएगा:

परंतु ऐसा कोई अपराध जिसके लिए इस अधिनियम के अधीन कारावास का दंड विहित किया गया है, शमनीय नहीं होगा ।

70. खाद्य सुरक्षा अपील अधिकरण की स्थापना-(1) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, धारा 68 के अधीन न्यायनिर्णायक अधिकारी के विनिश्चयों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करने के लिए खाद्य सुरक्षा अपील अधिकरण के नाम से ज्ञात एक या अधिक अधिकरणों की स्थापना कर सकेगी ।

(2) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, ऐसे मामलों और क्षेत्रों को, जिनके संबंध में अधिकरण अधिकारिता का प्रयोग कर सकेगा, विहित करेगी ।

(3) अधिकरण में केवल एक सदस्य (जिसे इसमें इसके पश्चात् अधिकरण का पीठासीन अधिकारी कहा गया है) होगा, जो, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, नियुक्त किया जाएगाः

परंतु कोई भी व्यक्ति अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह जिला न्यायाधीश हो या रहा हो ।

(4) पीठासीन अधिकारी की अर्हताएं, नियुक्ति, पदावधि, वेतन और भत्ते या पद त्याग और हटाया जाना उस प्रकार होगा, जैसा केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए ।

(5) अपील की प्रक्रिया और अधिकरण की शक्तियां वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

71. अधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियां-(1) अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) द्वारा अधिकथित प्रक्रिया द्वारा आबद्ध नहीं होगा किन्तु नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगा और इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्य उपबंधों के अध्यधीन होगा, अधिकरण को अपनी प्रक्रिया को जिसके अन्तर्गत वह स्थान भी है जहां पर उसकी बैठकें होंगी, विनियमित करने की शक्तियां होंगी ।

(2) अधिकरण को, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजनों के लिए, निम्नलिखित मामलों के संबंध में वाद का विचारण करते समय वही शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन, सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्: -

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना; 

(ख) दस्तावेजों या अन्य इलेक्ट्रानिक अभिलेखों की खोज करना और उन्हें पेश करने की अपेक्षा करना;

(ग) शपथ पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;

(घ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

(ङ) अपने विनिश्चयों का पुनर्विलोकन करना;

(च) व्यतिक्रम के लिए आवेदन खारिज करना या एकपक्षीय विनिश्चय करना;

(छ) कोई अन्य विषय, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए ।

(3) अधिकरण के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थान्तर्गत और धारा 196 के प्रयोजनों के लिए न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी और अधिकरण दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के सभी प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा । 

(4) अपीलार्थी या तो स्वयं उपसंजात हो सकेगा या एक या अधिक विधि व्यवसायियों या अधिक विधि व्यवसायियों या अपने किसी अधिकारी को अपने मामले का अधिकरण के समक्ष प्रतिनिधित्व करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा ।

(5) परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963 का 36) के उपबंध, इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, अधिकरण को की गई अपील को लागू होंगे ।

(6) अधिकरण के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उसे अधिकरण के विनिश्चय या आदेश की संसूचना की तारीख से साठ दिन के भीतर उस आदेश से उ-ूत होने वाले किसी तथ्य या विधि के प्रश्न पर उच्च न्यायालय को अपील फाइल कर सकेगा:

परन्तु उच्च न्यायालय, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी किसी पर्याप्त कारण से उक्त अवधि के भीतर अपील फाइल करने से निवारित हुआ था, तो साठ दिन से अनधिक की और अवधि के भीतर फाइल करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।

72. सिविल न्यायालय की अधिकारिता का होना-किसी सिविल न्यायालय को, किसी ऐसे विषय के संबंध में वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी, जिसका अवधारण करने के लिए कोई न्यायनिर्णायक अधिकारी या अधिकरण इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन सशक्त है और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई के संबंध में कोई न्यायालय या अन्य प्राधिकारी कोई व्यादेश अनुदत्त नहीं करेगा ।

73. मामलों का संक्षिप्त विचारण करने की न्यायालय की शक्ति-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे सभी अपराधों का, जो विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं हैं, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जाएगा और ऐसे विचारण को, यथाशक्य, उक्त संहिता की धारा 262 से धारा 265 (इसमें दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) के उपबंध लागू होंगे:

परन्तु इस धारा के अधीन किसी संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि की दशा में, किसी मजिस्ट्रेट के लिए एक वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास का दंडादेश पारित करना विधिपूर्ण होगाः

परन्तु यह और कि जब इस धारा के अधीन किसी संक्षिप्त विचारण के प्रारम्भ पर या उसके दौरान मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामले की प्रकृति इस प्रकार की है कि उसमें एक वर्ष से अधिक अवधि के कारावास का दंडादेश पारित होना चाहिए या किसी अन्य कारण से मामले का संक्षिप्त विचारण अवांछनीय है, तो मजिस्ट्रेट, पक्षकारों की सुनवाई करने के पश्चात्, उस आशय का एक आदेश अभिलिखित करेगा और तत्पश्चात् ऐसे किसी साक्षी को बुलाएगा जिसकी परीक्षा की जानी चाहिए थी और उस मामले की उक्त संहिता द्वारा उपबंधित रीति में सुनवाई या पुनः सुनवाई करने के लिए कार्यवाही करेगा ।

74. विशेष न्यायालय और लोक अभियोजक-(1) इस अधिनियम या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार अपनी-अपनी अधिकारिता में, यदि वह ऐसा करना लोकहित में समीचीन और आवश्यक समझती है, तो उपभोक्ता की घोर क्षति या मृत्यु से संबंधित ऐसे अपराधों के विचारण के लिए, जिनके लिए इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष से अधिक के कारावास का दंड विहित किया गया है, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से उतने विशेष न्यायालयों का जितने ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए आवश्यक हों और ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए जिसे अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, गठन कर सकेगी ।

(2) कोई विशेष न्यायालय, स्वप्रेरणा से या लोक अभियोजक के आवेदन पर और यदि वह ऐसा करना समीचीन या वांछनीय समझता है तो अपनी किन्हीं कार्यवाहियों के लिए, अपने आसीन होने के सामान्य स्थान से भिन्न किसी स्थान पर आसीन हो सकेगा ।

(3) किसी विशेष न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के विचारण को, अभियुक्त के विरुद्ध किसी अन्य न्यायालय (जो कोई विशेष न्यायालय नहीं है) में किसी विचारण के मुकाबले अग्रता होगी और उसका ऐसे किसी अन्य मामले के विचारण पर अधिमानता देते हुए निर्णय किया जाएगा और तद्नुसार ऐसे अन्य मामले का विचारण प्रास्थगित रहेगा ।

(4) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए किसी व्यक्ति को लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी और वह एक से अधिक व्यक्तियों को अपर लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त कर सकेगी:

परन्तु, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी मामले या मामलों के किसी वर्ग अथवा समूह के लिए किसी विशेष लोक अभियोजक को भी नियुक्त कर सकेगी ।

(5) कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में व्यवसाय में रहा हो या उसने संघ या राज्य के अधीन कम से कम सात वर्ष की अवधि के लिए ऐसा पद धारण किया हो, जिसमें विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित हो ।

75. नियमित न्यायालयों को मामले अंतरित करने की शक्ति-जहां, किसी अपराध का संज्ञान करने के पश्चात्, किसी विशेष न्यायालय की यह राय है कि वह अपराध उसके द्वारा विचारणीय नहीं है तो, वह इस बात के होते हुए भी कि उसे ऐसे अपराध का विचारण करने की अधिकारिता नहीं है, वहां वह ऐसे अपराध के विचारण के लिए उस मामले को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन अधिकारिता रखने वाले किसी न्यायालय को अंतरित करेगा और वह न्यायालय, जिसे मामला अंतरित किया जाता है , उस अपराध का इस प्रकार विचारण कर सकेगा, मानो उसने ही अपराध का संज्ञान किया हो ।

76. अपील-(1) किसी विशेष न्यायालय के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसी फीस के संदाय पर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, और ऐसी रकम को, यदि कोई हो, जिसे इस अधिनियम के अधीन शास्ति, प्रतिकर या नुकसान के रूप में अधिरोपित किया गया है, जमा करने के पश्चात्, उस तारीख से, जिसको आदेश की तामील की गई थी, पैंतालीस दिन के भीतर उच्च न्यायालय को अपील कर सकेगाः

परन्तु उच्च न्यायाल, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी पर्याप्त कारण से उक्त अवधि के भीतर अपील करने से निवारित हुआ था, पैंतालीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् किसी अपील को ग्रहण कर सकेगा ।

(2) इस धारा के अधीन की गई अपील का निपटारा उच्च न्यायालय की किसी ऐसी न्यायपीठ द्वारा किया जाएगा, जिसमें कम से कम दो न्यायाधीश हों ।

77. अभियोजनों के लिए समय-सीमा-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के कारित होने की तारीख से एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् किसी अपराध का संज्ञान नहीं करेगाः

परन्तु खाद्य सुरक्षा आयुक्त, लेखबद्ध किए गए कारणों से तीन वर्ष तक की विस्तारित अवधि के भीतर अभियोजन का अनुमोदन कर सकेगा ।

78. विनिर्माता, आदि को पक्षकार बनाने की न्यायालय की शक्ति-जहां न्यायालय का, इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे अपराध के विचारण के दौरान, जो अभिकथित रूप से किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जो किसी खाद्य पदार्थ का आयातकर्ता, विनिर्माता, वितरक या व्यौहारी नहीं है, किसी समय, उसके समक्ष दिए गए साक्ष्य के आधार पर यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आयातकर्ता, विनिर्माता, वितरक या व्यौहारी का भी उस अपराध से संबंध है वहां वह न्यायालय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 319 की उपधारा (3) या इस अधिनियम की धारा 71 में किसी बात के होते हुए भी, उसके विरुद्ध इस प्रकार कार्यवाही करेगा, जैसे कि इस अधिनियम के अधीन कोई अभियोजन संस्थित किया गया हो ।

79. वर्धित दंड अधिरोपित करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 29 में किसी बात के होते हुए भी, मामूली अधिकारिता रखने वाले न्यायालय के लिए छह वर्ष से अनधिक के कारावास के सिवाय, इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई दंडादेश, उक्त धारा के अधीन अपनी शक्ति के आधिक्य में, पारित करना विधिपूर्ण होगा ।

80. प्रतिरक्षा, जो इस अधिनियम के अधीन अभियोजन में अनुज्ञात की जा सकेगी या नहीं की जा सकेगी-(अ) विज्ञापनों के प्रकाशन से संबंधित प्रतिरक्षा-

(1) इस अधिनियम के अधीन किसी विज्ञापन के प्रकाशन से संबंधित किसी अपराध के लिए किसी कार्यवाही में, किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना प्रतिरक्षा है कि वह व्यक्ति विज्ञापनों के प्रकाशन या प्रकाशन की व्यवस्था करने का कारबार करता है और यह कि उस व्यक्ति ने उस कारबार के सामान्य अनुक्रम में प्रश्नगत विज्ञापन का प्रकाशन किया है या प्रकाशन की व्यवस्था की है ।

(2) खंड (1) तब लागू नहीं होता है, जब-

(क) उस व्यक्ति को युक्तियुक्त रूप से यह पता होना चाहिए था कि विज्ञापन का प्रकाशन एक अपराध था; या 

(ख) उस व्यक्ति को सुसंगत प्राधिकारी द्वारा पूर्व में यह सूचना दे दी गई थी कि ऐसे किसी विज्ञापन का प्रकाशन एक अपराध है; या

(ग) वह व्यक्ति खाद्य कारबारकर्ता है या खाद्य कारबार के संचालन से अन्यथा संबंधित है, जिनके लिए संबंधित विज्ञापन का प्रकाशन किया गया था ।

(आ) सम्यक् तत्परता की प्रतिरक्षा-

(1) किसी अपराध के लिए किन्हीं कार्यवाहियों में यह एक प्रतिरक्षा है, यदि वह साबित हो जाता है कि उस व्यक्ति ने, ऐसे व्यक्ति द्वारा या उस व्यक्ति के नियंत्रणाधीन किसी व्यक्ति द्वारा अपराध कारित किए जाने से निवारित करने के लिए सभी युक्तियुक्त पूर्वावधानियां बरती थीं और सभी सम्यक् तत्परता का प्रयोग किया था ।

(2) किसी व्यक्ति द्वारा खंड (1) की अपेक्षाओं की पूर्ति किए जाने के तरीकों को सीमित किए बिना, कोई व्यक्ति उन अपेक्षाओं को पूरा कर देता है यदि यह साबित कर दिया जाता है कि: -

(क) अपराध-

(i) किसी अन्य व्यक्ति के किसी कार्य या व्यतिक्रम के कारण हुआ था;

(ii) किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई सूचना पर विश्वास करने के कारण हुआ था; और

(ख) यह कि- 

(i) उस व्यक्ति ने संबंधित खाद्य की ऐसी सभी जांच की थी, जो सभी परिस्थितयों में युक्तियुक्त थी; या

(ii) उस व्यक्ति द्वारा जिसने ऐसे खाद्य का प्रदाय उस व्यक्ति को किया था, की गई जांच पर विश्वास करना सभी परिस्थितियों में युक्तियुक्त था, और

(ग) यह कि उस व्यक्ति ने किसी अन्य देश से उसकी अधिकारिता के भीतर खाद्य का आयात नहीं किया था; और

(घ) ऐसे किसी अपराध की दशा में, जिसमें खाद्य का विक्रय अंतर्वलित है, -

(i) उस व्यक्ति ने खाद्य का उसी स्थिति में विक्रय किया था, जिसमें उस व्यक्ति ने उसका क्रय किया था; या

(ii) उस व्यक्ति ने खाद्य का उस स्थिति से, जिसमें उस व्यक्ति ने उसका क्रय किया था, भिन्न स्थिति में विक्रय किया था, किंतु ऐसे अंतर के परिणामस्वरूप इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है; और

(ङ) यह कि उस व्यक्ति को कथित अपराध के कारित किए जाने के समय यह जानकारी नहीं थी या उसके पास यह संदेह करने का कोई कारण नहीं था कि उस व्यक्ति का वह कार्य या लोप सुसंगत धारा के अधीन एक अपराध होगा ।

(3) खंड (2) के उपखंड (क) में, अन्य व्यक्ति के अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो-

(क) प्रतिवादी का कोई कर्मचारी या अभिकर्ता था; या

(ख) ऐसे प्रतिवादी की दशा में, जो एक कंपनी है, उस कंपनी का कोई निदेशक, कर्मचारी या अभिकर्ता था ।

(4) किसी व्यक्ति द्वारा खंड (1) और खंड (2) के उपखंड (ख) की मद (i) की अपेक्षाओं को पूरा किए जाने के तरीकों को सीमित किए बिना, कोई व्यक्ति यह साबित करके उन अपेक्षाओं को पूरा कर सकेगा कि-

(क) किसी ऐसे खाद्य कारबार से संबंधित किसी अपराध की दशा में, जिसके लिए विनियमों के अनुसार खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम तैयार किया जाना अपेक्षित है, व्यक्ति ने, खाद्य कारबार के लिए ऐसे खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का अनुपालन किया है जो विनियमों की अपेक्षाओं को पूरा करता है, या

(ख) किसी अन्य दशा में, व्यक्ति ने ऐसी स्कीम (उदाहरणार्थ, क्वालिटी आश्वासन कार्यक्रम या उद्योग की आचार संहिता) का अनुपालन किया है-

(i) जिसे खाद्य सुरक्षा के परिसंकटों से निपटने के लिए तैयार किया गया था और जो, उसके प्रयोजन के लिए तैयार राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय मानकों, संहिताओं या मार्गदर्शक सिद्धांतों पर, आधारित थी, और 

(ii) जिसका किसी रीति में प्रलेखीकरण किया गया था ।

(इ) भूल से किए गए और युक्तियुक्त विश्वास की प्रतिरक्षा का उपलब्ध न होना-

इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन किसी अपराध के लिए किन्हीं कार्यवाहियों में यह कोई प्रतिरक्षा नहीं है कि प्रतिवादी ने कोई भूल की थी किन्तु उसके पास उन तथ्यों के बारे में जो अपराध का गठन करते हैं, युक्तियुक्त विश्वास करने का कारण था ।

(ई) खाद्य की उठाई-धराई से संबंधित प्रतिरक्षा-

धारा 56 के अधीन किसी अपराध के लिए किन्हीं कार्यवाहियों में, यदि यह साबित हो जाता है कि खाद्य की ऐसी रीति में उठाई-धराई के, जिससे खाद्य के असुरक्षित होने की संभावना थी, तुरन्त पश्चात् उस खाद्य को, जिससे अपराध संबंधित है, नष्ट कराया था या अन्यथा व्ययन करा दिया था, तो यह एक प्रतिरक्षा है ।

(उ) खाद्य की प्रकृति, अंतर्वस्तु या क्वालिटी के महत्व की प्रतिरक्षाएं-

खाद्य की किसी असुरक्षित या मिथ्या छाप वाली वस्तु के विक्रय के अपराध के लिए किसी अभियोजन में केवल यह अभिकथन करना कोई प्रतिरक्षा नहीं होगी कि खाद्य कारबारकर्ता, उसके द्वारा विक्रय किए गए खाद्य की प्रकृति, अन्तर्वस्तु या क्वालिटी के संबंध में अनभिज्ञ था या यह कि क्रेता द्वारा कोई वस्तु विश्लेषण के लिए क्रय किए जाने के कारण, उस पर विक्रय द्वारा कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है ।

अध्याय 11

वित्त, लेखा, लेखापरीक्षा और रिपोर्टें

81. खाद्य प्राधिकरण का बजट-(1) खाद्य प्राधिकरण, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपना बजट तैयार करेगा, जिसमें खाद्य प्राधिकरण की प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय दर्शित होंगे और उसे केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित करेगा ।

(2) खाद्य प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, ऐसे वित्तीय विनियम को अपनाएगा, जो विशिष्ट रूप में प्राधिकरण के बजट को तैयार करने और उसके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को विनिर्दिष्ट करता है ।

82. खाद्य प्राधिकरण के वित्त-(1) केन्द्रीय सरकार, सम्यक् विनियोग के पश्चात् खाद्य प्राधिकरण को ऐसी राशियों का अनुदान दे सकेगी जिन्हें केन्द्रीय सरकार ठीक समझे ।

(2) खाद्य प्राधिकरण, केंद्रीय सलाहकार समिति की सिफारिश पर, अनुज्ञप्तिधारी खाद्य कारबारकर्ताओं, प्रत्यायित प्रयोगशालाओं या खाद्य सुरक्षा लेखा परीक्षकों से एक श्रेणीकृत फीस विनिर्दिष्ट करेगा, जिसे खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा प्रभारित किया जाएगा ।

83. खाद्य प्राधिकरण के लेखा और लेखापरीक्षा-(1) खाद्य प्राधिकरण, समुचित लेखा और सुसंगत अभिलेख रखेगा और ऐसे प्ररूप में वार्षिक लेखा विवरण तैयार करेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाए ।

(2) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन खाद्य प्राधिकरण के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में  वही अधिकार, विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे, जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के सरकार के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में साधारण रूप में होते हैं और उसे विशिष्ट रूप से लेखा-बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों और अन्य दस्तावेजों तथा कागज पत्रों को प्रस्तुत करने की मांग करने और खाद्य प्राधिकरण के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथा प्रमाणित खाद्य प्राधिकरण के लेखाओं को, उनकी लेखापरीक्षा रिपोर्ट के साथ, वार्षिक रूप से खाद्य प्राधिकरण द्वारा केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार उनकी प्राप्ति के पश्चात् यथासंभव शीघ्र उसे संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

84. खाद्य प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट-(1) खाद्य प्राधिकरण, प्रत्येक वर्ष में एक बार, ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, पूर्ववर्ती वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का संक्षेप में वर्णन करते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा और रिपोर्ट की प्रतियां केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को भेजी जाएंगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्राप्त रिपोर्ट की एक प्रति को, उसकी प्राप्ति के पश्चात् यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

अध्याय 12

प्रकीर्ण

85. खाद्य प्राधिकरण को निदेश जारी करने और रिपोर्ट तथा विवरणियां अभिप्राप्त करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, खाद्य प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए और अपने कृत्यों का पालन करते हुए, नीति के ऐसे प्रश्नों पर, जो तकनीकी और प्रशासनिक विषयों से संबंधित प्रश्नों से भिन्न हैं, ऐसे निदेशों द्वारा जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर लिखित रूप में दे, आबद्ध होगा:

परंतु इस उपधारा के अधीन कोई निदेश दिए जाने से पूर्व खाद्य प्राधिकरण को, यथासाध्य, अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा ।

(2) यदि केन्द्रीय सरकार और खाद्य प्राधिकरण के बीच इस संबंध में कोई विवाद उत्पन्न होता है कि कोई प्रश्न नीति से संबंधित है अथवा नहीं, तो इस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

(3) खाद्य प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार को, अपने क्रियाकलापों के संबंध में ऐसी विवरणियां या अन्य सूचना देगा, जिनकी केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे ।

86. राज्य सरकारों को निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के सभी या किन्हीं उपबंधों के क्रियान्वयन के लिए किसी राज्य सरकार को ऐसे निदेश दे सकेगी, जिन्हें वह आवश्यक समझे और राज्य सरकार ऐसे निदेशों का अनुपालन करेगी ।

87. खाद्य प्राधिकरण के सदस्यों, अधिकारियों तथा खाद्य सुरक्षा आयुक्त का लोक सेवक होना-खाद्य प्राधिकरण के सदस्यों, अधिकारियों और खाद्य सुरक्षा आयुक्तों और उनके अधिकारियों को, जब वे इस अधिनियम के किसी भी उपबंध के अनुसरण में कार्य कर रहे हैं या उनका कार्य करना तात्पर्यित है, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थांतर्गत लोक सेवक समझा जाएगा ।

88. स-ावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अधीन स-ावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, खाद्य प्राधिकरण और इस अधिनियम के अधीन गठित अन्य निकायों अथवा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या ऐसे प्राधिकरण और निकायों के किसी सदस्य, अधिकारी या अन्य कर्मचारी अथवा इस अधिनियम के अधीन कार्यरत किसी अन्य अधिकारी के विरुद्ध नहीं होगी ।

89. इस अधिनियम का अन्य सभी खाद्य संबंधी विधियों पर अध्यारोही प्रभाव होना-इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में या इस अधिनियम से भिन्न किसी अन्य विधि के फलस्वरूप प्रभावी किसी अन्य लिखत में इसके असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

90. विभिन्न खाद्य संबंधी अधिनियमों या आदेशों को शासित करने वाले केन्द्रीय सरकार के अभिकरणों के विद्यमान कर्मचारियों का खाद्य प्राधिकरण को अंतरण-खाद्य प्राधिकरण की स्थापना की तारीख से ही, खाद्य विधियों को प्रशासित करने वाले केन्द्रीय सरकार के अभिकरणों के अधीन उस तारीख से ठीक पूर्व पद धारण करने वाला प्रत्येक कर्मचारी, उसी पदावधि तक और सेवा की उन्हीं शर्तों और निबंधनों पर, जिनके अंतर्गत पारिश्रमिक, छुट्टी, भविष्य-निधि, सेवानिवृत्ति और अन्य सेवांत प्रसुविधाएं भी हैं, खाद्य प्राधिकरण में अपना पद उसी प्रकार धारण करेगा जैसा वह तब धारण करता यदि प्राधिकरण की स्थापना न हुई होती, और यदि ऐसा कर्मचारी खाद्य प्राधिकरण का कर्मचारी न होने का विकल्प नहीं देता है तो वह खाद्य प्राधिकरण के कर्मचारी के रूप में कार्य करता रहेगा या उस तारीख से छह मास की अवधि के अवसान तक ऐसा करता रहेगा ।

91. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्दीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अधिकार: -

(क) धारा 7 की उपधारा (2) के अधीन अध्यक्ष और पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्यों के वेतन, पदावधि और सेवा की शर्तें तथा उसकी उपधारा (3) के अधीन पद और गोपनीयता की शपथ की रीति;

(ख) धारा 37 की उपधारा (1) के अधीन खाद्य सुरक्षा अधिकारी की अर्हताएं;

(ग) धारा 38 की उपधारा (8) के अधीन अभिगृहीत दस्तावेजों से उद्धरण लेने की रीति;

(घ) धारा 42 की उपधारा (4) के अधीन समुचित न्यायालय को निर्देश करने के लिए मामलों का अवधारण और ऐसे अवधारण के लिए समय-सीमा;

(ङ) धारा 45 के अधीन खाद्य विश्लेषकों की अर्हताएं;

(च) धारा 47 की उपधारा (1) के अधीन विश्लेषण के लिए नमूने भेजने की रीति और इस संबंध में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया के ब्यौरे;

(छ) धारा 68 की उपधारा (1) के अधीन मामलों के न्यायनिर्णयन में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(ज) धारा 70 की उपधारा (4) के अधीन पीठासीन अधिकारी की अर्हताएं, पदावधि, त्यागपत्र और उसका हटाया जाना, अपील की प्रक्रिया और उपधारा (5) के अधीन अधिकरण की शक्तियां;

(झ) धारा 71 की उपधारा (2) के खंड (छ) के अधीन प्रक्रिया और अधिकरण की शक्तियों से संबंधित कोई अन्य विषय;

(ञ) धारा 76 की उपधारा (1) के अधीन उच्च न्यायालय को अपील करने के लिए संदत्त की जाने वाली फीस;

(ट) धारा 81 की उपधारा (1) के अधीन बजट प्ररूप और समय;

(ठ) धारा 83 की उपधारा (1) के अधीन लेखाओं का प्ररूप और विवरण;

(ड) धारा 84 की उपधारा (1) के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार किए जाने का प्ररूप और समय; और

(ढ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित है या विहित किया जाए या जिसकी बाबत केन्द्रीय सरकार द्वारा नियमों द्वारा उपबंध किया जाना है ।

92. खाद्य प्राधिकरण की विनियम बनाने की शक्ति-(1) खाद्य प्राधिकरण इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के संगत विनियम अधिसूचना द्वारा बना सकेगा ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे विनियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-

(क) धारा 9 की उपधारा (3) के अधीन खाद्य प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और सेवा की अन्य शर्तें; 

(ख) धारा 11 की उपधारा (5) के अधीन कारबार के संव्यवहार के लिए प्रक्रिया के नियम;

(ग) धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सलाहकार समिति के अन्य कृत्य;

(घ) धारा 15 की उपधारा (4) के अधीन वैज्ञानिक समिति और पैनलों की प्रक्रिया;

(ङ) धारा 16 की उपधारा (2) के अधीन मानव उपभोग के लिए आशयित खाद्य पदार्थों के संबंध में मानक और मार्गदर्शक सिद्धांत अधिसूचित करना;

(च) धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार के लिए अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(छ) धारा 18 की उपधारा (2) के खंड (घ) के अधीन खाद्य सुरक्षा या लोक स्वास्थ्य से संबधित अत्यावश्यकता की दृष्टि से विनियम बनाना या उनका संशोधन करना;

(ज) धारा 19 के अधीन योज्यकों की सीमाएं;

(झ) धारा 20 के अधीन संदूषकों, विषैले पदार्थों और भारी धातुओं आदि की मात्राओं की सीमाएं;

(ञ) धारा 21 के अधीन नाशकजीवमारों, पशु औषधि अवशिष्टों आदि की सहाय्य सीमा;

(ट) धारा 23 के अधीन खाद्यों को चिन्हांकित करने और लेबल लगाने की रीति;

(ठ) वह प्ररूप जिसमें धारा 26 की उपधारा (4) के अधीन गारंटी दी जाएगी;

(ड) धारा 28 की उपधारा (4) के अधीन खाद्य वापस लेने की प्रक्रिया से संबंधित शर्तें और मार्गदर्शक सिद्धांत;

(ढ) धारा 29 की उपधारा (5) के अधीन खाद्य सुरक्षा अधिकारी के कृत्यों से संबंधित विनियम;

(ण) रजिस्ट्रीकरण प्राधिकारी और रजिस्ट्रीकरण की रीति, अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त करने के लिए आवेदन करने की रीति, उसके लिए संदेय फीस तथा उन परिस्थितियों को, जिनके अधीन धारा 31 के अधीन ऐसी अनुज्ञप्ति रद्द या समपहृत की जा सकेगी, अधिसूचित करना;

(त) संबंधित क्षेत्र जिनके अभिहित अधिकारी धारा 36 की उपधारा (1) के अधीन खाद्य सुरक्षा प्रशासन के भारसाधक होंगे;

(थ) धारा 40 की उपधारा (1) के अधीन खाद्य का विश्लेषण कराने की प्रक्रिया, फीस के ब्यौरे आदि;

(द) धारा 43 की उपधारा (3) के अधीन खाद्य प्रयोगशालाओं के कृत्य और उनके द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(ध) धारा 47 की उपधारा (6) के अधीन पद्धारियों द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(न) धारा 81 की उपधारा (2) के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा अपना बजट तैयार करने में अनुसरित किए जाने वाले वित्तीय विनियम;

(प) कोडेक्स बैठकों में भाग लेने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत या निदेश जारी करना तथा कोडेक्स विषयों के उत्तर तैयार करना; और

(फ) कोई अन्य विषय जिनका विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाना अपेक्षित है या विनिर्दिष्ट किए जाएं या जिसकी बाबत विनियमों द्वारा उपबंध किया जाना है । 

93. नियमों और विनियमों का संसद के समक्ष रखा जाना-इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पचात् वह नियम या विनियम ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह नियम या विनियम निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम या विनियम के, यथास्थिति, ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

94. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार और खाद्य प्राधिकारी की क्रमशः नियम और विनियम बनाने की शक्ति के अधीन रहते हुए, पूर्व प्रकाशन के पश्चात् और खाद्य प्राधिकारी के पूर्व अनुमोदन से इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन राज्य सरकार और राज्य खाद्य सुरक्षा आयुक्त को समनुदेशित कृत्यों और कर्तव्यों के कार्यान्वयन के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-

(क) धारा 30 की उपधारा (2) के खंड (च) के अधीन खाद्य सुरक्षा आयुक्त के अन्य कृत्य;

(ख) निधि निश्चित करना और वह रीति जिसमें धारा 95 के अधीन अपराध का पता लगाने या अपराधी को पकड़ने में सहायता देने के लिए किसी व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाएगा; और

(ग) कोई अन्य विषय जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाना अपेक्षित है या विहित किया जाए या जिसकी बाबत नियमों द्वारा उपबंध किया जाना है ।

(3) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, जहां दो सदन हों, राज्य विधान-मंडल के प्रत्येक सदन के समक्ष, या जहां राज्य विधान-मंडल एक सदन वाला हो वहां उस सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

95. राज्य सरकार द्वारा पुरस्कार-राज्य सरकार, खाद्य सुरक्षा आयुक्त को किसी ऐसे व्यक्ति को जो अपराध का पता लगाने या अपराधी को पकड़वाने में सहायता करता है, ऐसी निधि से और ऐसी रीति में, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए, संदत्त किए जाने वाले पुरस्कार के संदाय का आदेश देने के लिए सशक्त कर सकेगी ।

96. शास्ति की वसूली-इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित कोई शास्ति, यदि उसका संदाय नहीं किया जाता है तो भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूल की जाएगी और शास्ति का संदाय होने तक व्यतिक्रमी की अनुज्ञप्ति निलंबित रहेगी ।

97. निरसन और व्यावृत्तियां-(1) ऐसी तारीख से जिसे केन्द्रीय सरकार इस निमित्त नियत करे, दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमिति और आदेश निरसित हो जाएंगे:

परन्तु ऐसा निरसन निम्नलिखित को प्रभावित नहीं करेगा-

(i) निरसन के अधीन अधिनियमिति और आदेशों का पूर्व प्रवर्तन या उनके अधीन सम्यक् रूप से की गई या सहन की गई कोई बात; या

(ii) निरसन के अधीन अधिनियमिति या आदेशों में से किसी के अधीन अर्जित, प्रो-ूत या उपगत कोई अधिकार, विशेषाधिकार, बाध्यता या दायित्व; या

(iii) निरसन के अधीन अधिनियमिति और आदेशों के विरुद्ध किए गए किन्हीं अपराधों की बाबत उपगत कोई शास्ति, समपहरण या दण्ड; या

(iv) किसी ऐसी शास्ति, समपहरण या दण्ड की बाबत कोई अन्वेषण या उपचार,

और कोई ऐसा अन्वेषण, विधिक कार्यवाहियां या उपचार संस्थित, जारी या प्रवृत्त रखी जा सकेंगी और कोई ऐसी शास्ति, समपहरण या दण्ड इस प्रकार अधिरोपित किया जा सकेगा, मानो यह अधिनियम पारित नहीं हुआ हो ।

(2) यदि किसी राज्य में तत्समय इस अधिनियम के तत्समान, कोई अन्य विधि प्रवृत्त है, तो वह इस अधिनियम के प्रारंभ से ही निरसित हो जाएगी और ऐसी दशा में साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो राज्य विधि के ऐसे उपबंध निरसित किए जा चुके हैं ।

(3) पूर्वोक्त अधिनियमिति और आदेशों के निरसन या आदेश के होते हुए भी, ऐसी किसी अधिनियमिति के अधीन जारी की गई अनुज्ञप्तियां जो इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख को प्रवृत्त हैं, सभी प्रयोजनों के लिए उनके अवसान की तारीख तक प्रवृत्त रहेंगी, मानो उन्हें इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियम के उपबंधों के अधीन जारी किया गया था ।

(4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई न्यायालय निरसित अधिनियम या आदेशों के अधीन किसी अपराध का संज्ञान इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं करेगा ।

98. खाद्य मानकों के लिए संक्रमणकालीन उपबंध-दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमिति और आदेशों के निरसन के होते हुए भी, मानक सुरक्षा अपेक्षाएं और इस अधिनियम तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों और उस अनुसूची में सूचीबद्ध आदेशों के अन्य उपबंध इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन नए मानकों को विनिर्दिष्ट किए जाने तक प्रवृत्त और प्रवर्तित रहेंगे:

परन्तु निरसन के अधीन अधिनियमिति और आदेशों के अधीन की गई कोई बात या की गई कोई कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी और तद्नुसार वह तब तक प्रभाव में बनी रहेगी जब तक कि इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या किसी कार्रवाई द्वारा उसे अधिक्रांत न कर दिया जाए ।

99. दुग्ध और दुग्ध उत्पाद आदेश, 1992 को इस अधिनियम के अधीन बनाया गया विनियम समझा जाएगा-(1) इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से ही आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) के अधीन जारी दुग्ध और दुग्ध उत्पाद आदेश, 1992 को इस अधिनियम के अधीन खाद्य प्राधिकरण द्वारा जारी दुग्ध और दुग्ध उत्पाद विनियम, 1992 समझा जाएगा ।

(2) खाद्य प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और पूर्व प्रकाशन के पश्चात्, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट विनियमों का संशोधन अधिसूचना द्वारा, कर सकेगा ।

100. शिशु दुग्ध अनुकल्प, पोषण बोतल और शिशु-खाद्य (उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम, 1992 का संशोधन-अधिसूचित तारीख से ही शिशु दुग्ध अनुकल्प, पोषण बोतल और शिशु-खाद्य (उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम, 1992 (1992 का 41) (जिसे इसमें इसके पश्चात् मूल अधिनियम कहा गया है) के उपबंध निम्नलिखित संशोधनों के अधीन रहते हुए लागू होंगे, अर्थात्: -

(क) मूल अधिनियम में, सर्वत्र खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954" (1954 का 37) के प्रति किसी निर्देश के स्थान पर, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006" के प्रतिनिर्देश रखा जाएगा;

(ख) मूल अधिनियम की धारा 12 में, खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (1954 का 37) की धारा 9 के अधीन नियुक्त खाद्य निरीक्षक" के प्रति किसी निर्देश के स्थान पर खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अधीन नियुक्त खाद्य सुरक्षा अधिकारी" के प्रतिनिर्देश रखा जाएगा;

(ग) मूल अधिनियम में, सर्वत्र खाद्य निरीक्षक" के प्रतिनिर्देश के स्थान पर, खाद्य सुरक्षा अधिकारी" पद रखा जाएगा; और 

(घ) मूल अधिनियम की धारा 21 की उपधारा (1) में खंड (क) के प्रतिनिर्देश के स्थान पर, निम्नलिखित रखा जाएगा, अर्थात्ः-

(क) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 42 की उपधारा (5) के अधीन निदेशित अभिहित अधिकारी या खाद्य सुरक्षा अधिकारी; या"

101. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम से अंसगत न हों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत होंः

परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश उसके किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

पहली अनुसूची

[धारा 5(1) (ङ) देखिए]

जोन - 1

1. आंध्र प्रदेश

                2. गोवा

                3. कर्नाटक

                4. केरल

                5. महाराष्ट्र

                6. उड़ीसा

                7. तमिलनाडु

जोन - 2

                1. हरियाणा

                2. हिमाचल प्रदेश

                3. जम्मू-कश्मीर

                4. पंजाब

                5. उत्तरांचल

                6. उत्तर प्रदेश

जोन - 3

1. बिहार

2. छत्तीसगढ़

3. गुजरात

4. झारखंड

5. मध्य प्रदेश

6. राजस्थान

7. पश्चिमी बंगाल

जोन - 4

                1. अरुणाचल प्रदेश

                2. असम

                3. मणिपुर

                4. मेघालय

                5. मिजोरम

                6. नागालैंड

                7. सिक्किम

                8. त्रिपुरा

जोन - 5

                1. अदंमान और निकोबार द्वीप समूह

                2. चंडीगढ़

                3. दादरा और नागर हवेली

                4. दमन और दीव

                5. दिल्ली

                6. लक्षद्वीप

                7. पांडिचेरी

 

दूसरी अनुसूची

(धारा 97 देखिए)

 

1. खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (1954 का 37) ।

2. फल उत्पाद आदेश, 1955 ।

3. मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973 ।

4. वनस्पति तेल उत्पाद (नियंत्रण) आदेश, 1947 ।

5. खाद्य तेल पैकेजिंग (विनियमन) आदेश, 1998 ।

6. विलायक निष्कर्षित तेल, वितैलित अवचूर्ण और खाद्य आटा (नियंत्रण) आदेश, 1967 ।

7. दुग्ध और दुग्ध उत्पाद आदेश, 1992 ।

8. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) के अधीन खाद्य से संबंधित जारी किया गया कोई अन्य आदेश ।

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