बीमांकक अधिनियम, 2006
(2006 का अधिनियम संख्यांक 35)
[27 अगस्त, 2006]
बीमांककों के व्यवसाय का विनियमन और विकास करने तथा उससे संबंधित
या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के सतावनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित होः-
अध्याय 1
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम बीमांकक अधिनियम, 2006 है ।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे:
परन्तु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है ।
2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -
(क) बीमांकक" से भावी आकस्मिक घटनाओं के वर्तमान प्रभावों का अवधारण करने में या बीमा के विभिन्न क्षेत्रों में वित्त आदर्श रूपण और जोखिम विश्लेषण में या जीवन हितों और बीमा जोखिमों के मूल्य की संगणना करने में, या पालिसियों का डिजाइन और मूल्य निर्धारण करने, फायदों के निकाले जाने, मूल्यानुपाती आधारित सारणियों के आधार पर बीमा कारबार, वार्षिकी, बीमा से संबंधित दरों और पेंशन दरों की सिफारिश करने में कुशल कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत ऐसी प्रौद्योगिकी, कराधान, कर्मचारियों के फायदे और ऐसे अन्य जोखिम प्रबंध तंत्र और विनिधान में लगा हुआ सांख्यिकीविद् भी है और जो संस्थान का अध्येता सदस्य है; तथा बीमांकक विज्ञान" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;
(ख) बीमांकिक सोसाइटी" से सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) और बोम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स ऐक्ट, 1950 (1950 का बम्बई अधिनियम सं० 39) के अधीन रजिस्ट्रीकृत भारतीय बीमांकिक सोसाइटी अभिप्रेत है;
(ग) नियत दिन" से वह तारीख अभिप्रेत है जिसको धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन संस्थान का गठन किया जाता है;
(घ) प्राधिकरण" से धारा 32 में निर्दिष्ट अपील प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ङ) बोर्ड" से धारा 43 की उपधारा (1) के अधीन गठित क्वालिटी पुनर्विलोकन बोर्ड अभिप्रेत है;
(च) परिषद्" से धारा 12 में निर्दिष्ट संस्थान की परिषद् अभिप्रेत है;
(छ) अध्येता" से संस्थान का अध्येता सदस्य अभिप्रेत है;
(ज) संस्थान" से धारा 3 के अधीन गठित भारतीय बीमांकक संस्थान अभिप्रेत है;
(झ) सदस्य" से ऐसा व्यष्टि अभिप्रेत है जिसका नाम संस्थान द्वारा रखे गए सदस्यों के रजिस्टर में अंकित है;
(ञ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ट) अध्यक्ष" से परिषद् का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ठ) रजिस्टर" से इस अधिनियम के अधीन संस्थान द्वारा रखा गया सदस्यों का रजिस्टर अभिप्रेत है;
(ड) विनिर्दिष्ट" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट अभिप्रेत है;
(ढ) अधिकरण" से धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित अधिकरण अभिप्रेत है;
(ण) उपाध्यक्ष" से परिषद् का उपाध्यक्ष अभिप्रेत है;
(त) वर्ष" से किसी वर्ष की पहली अप्रैल को प्रारंभ होने वाली और उत्तरवर्ती वर्ष के 31 मार्च को समाप्त होने वाली कालावधि अभिप्रेत है;
(2) इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, संस्थान का कोई सदस्य व्यवसायरत" तब माना जाएगा जब वह वैयक्तिक रूप से या व्यवसायरत बीमांककों के साथ भागीदारी में कम्पनी के सदस्य या कर्मचारी के रूप में, चाहे उसे प्राप्त या प्राप्त होने वाले पारिश्रमिक के लिए या उसके बिना, -
(i) अपने को बीमांकिक व्यवसाय में लगाता है; या
(ii) ऐसी सेवाएं करने की प्रस्थापना करता है या सेवाएं करता है जिनमें बीमा, पेंशन, विनिधान, वित्त और प्रबंध के क्षेत्र में बीमांकिक तकनीकों का उपयोजन अंतर्वलित है; या
(iii) ऐसी अन्य सेवाएं करता है, जो परिषद् की राय में व्यवसायरत किसी बीमांकक द्वारा की जाती हैं या की जा सकेंगी; या
(iv) ऐसे किसी व्यक्ति के नियोजन में है जो उपरोक्त (i), (ii) और (iii) में वर्णित एक या अधिक क्रियाकलापों में लगा हुआ है,
तथा व्यवसायरत" शब्द का उसके व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए कंपनी" पद के अंतर्गत कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क में यथापरिभाषित लोक वित्तीय संस्था भी है ।
अध्याय 2
भारतीय बीमांकक संस्थान
3. संस्थान का निगमन-(1) उस तारीख से जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे, वे सभी व्यक्ति, जिनके नाम इस अधिनियम के प्रारंभ पर बीमांकिक सोसाइटी के रजिस्टर में प्रविष्ट हैं और वे सभी व्यक्ति, जिन्होंने उसके पश्चात् अपने नाम इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रखे गए रजिस्टर में प्रविष्ट करवा लिए हैं, एक निगमित निकाय का गठन करते हैं, जब तक वे अपने नाम उक्त रजिस्टर में बनाए रखते हैं, एतद्द्वारा भारतीय बीमांकक संस्थान के नाम से और ऐसे सभी व्यक्ति संस्थान के सदस्यों के रूप में जाने जाएंगे ।
(2) संस्थान का शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा होगी और उसे जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की शक्ति होगी और वह अपने नाम से वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा ।
(3) संस्थान का मुख्यालय ऐसे स्थान पर स्थित होगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किया जाए ।
4. बीमांकिक सोसाइटी की आस्तियों, दायित्वों, आदि का अंतरण-नियत दिन से, -
(क) बीमांकिक सोसाइटी की सभी आस्तियां और दायित्व संस्थान को अंतरित और उसमें निहित हो जाएंगे ।
स्पष्टीकरण-बीमांकिक सोसाइटी की आस्तियों में सभी अधिकार और शक्तियां तथा सभी संपत्तियां, चाहे जंगम या स्थावर हों, सम्मिलित समझे जाएंगे जिनके अंतर्गत विशिष्टतया नकद अतिशेष, निक्षेप और ऐसी परिसंपत्तियों में जो उक्त सोसाइटी के कब्जे में हों, या उनसे उद्भूत सभी अन्य हित और अधिकार और उनसे संबंधित सभी लेखा बहियां और दस्तावेज भी हैं; तथा दायित्वों के अंतर्गत किसी भी किस्म के सभी ऋण, दायित्व और बाध्यताएं सम्मिलित समझी जाएंगी;
(ख) खंड (क) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बीमांकिक सोसाइटी के प्रयोजन के लिए या उसके संबंध में, उस तारीख से ठीक पहले उक्त सोसाइटी द्वारा उपगत सभी ऋण, बाध्यताएं और दायित्व, उसके साथ या उसके लिए की गई सभी संविदाएं और किए जाने के लिए रखे गए सभी मामले और बातें, संस्थान द्वारा, उसके साथ या उसके लिए उपगत किए गए, की गई या किए जाने के लिए समझी जाएंगी;
(ग) उक्त तारीख से ठीक पहले बीमांकिक सोसाइटी को शोध्य सभी धनराशियां संस्थान को शोध्य समझी जाएंगी; और
(घ) ऐसे सभी वाद और विधिक कार्यवाहियां जो उस तारीख से ठीक पहले बीमांकिक सोसाइटी द्वारा या उसके विरुद्ध संस्थित की गई थीं या संस्थित की जा सकती थीं, संस्थान द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रखी जा सकेंगी या संस्थित की जा सकेंगी ।
5. संस्थान के उद्देश्य-संस्थान के उद्देश्य निम्नलिखित होंगे,-
(क) बीमांककों के बीच वृत्तिक शिक्षा, प्रशिक्षण, ज्ञान, व्यवसाय और आचरण के मानकों का संवर्द्धन, उनकी पुष्टि और विकास करना;
(ख) बीमांकिक व्ययसाय की प्रास्थिति का संवर्द्धन करना;
(ग) बीमांकक व्यवसाय के सदस्यों द्वारा व्यवसाय का विनियमन करना;
(घ) लोकहित में बीमांकिक विज्ञान और उसके उपयोजन से सुसंगत सभी विषयों में ज्ञान और अनुसंधान का संवर्द्धन करना; और
(ङ) ऐसी सभी अन्य बातें करना, जो उपरोक्त उद्देश्यों या उनमें से किसी के आनुषंगिक या सहायक हों ।
6. रजिस्टर में नामों की प्रविष्टि-(1) निम्नलिखित व्यक्तियों में से कोई भी रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवाने का हकदार होगा, अर्थात्ः-
(क) ऐसा कोई व्यक्ति, जो नियत दिन के ठीक पहले बीमांकिक सोसाइटी का सहयुक्त या अध्येता (इसके अंतर्गत अवैतनिक अध्येता भी है) था;
(ख) कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने बीमांकिक सोसाइटी द्वारा संचालित परीक्षा उत्तीर्ण की है और या तो उक्त सोसाइटी द्वारा यथाविनिर्दिष्ट या परिषद् द्वारा यथाविहित प्रशिक्षण पूरा कर लिया है, सिवाय ऐसे व्यक्ति के जो भारत का स्थायी निवासी नहीं है;
(ग) ऐसा कोई व्यक्ति, जिसने ऐसी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और ऐसा प्रशिक्षण पूरा कर लिया है जो संस्थान की सदस्यता के लिए विनिर्दिष्ट किया जाए;
(घ) कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने भारत के बाहर ऐसी अन्य परीक्षा उत्तीर्ण की है और ऐसा अन्य प्रशिक्षण पूरा किया है जिसे संस्थान की सदस्यता के लिए इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट परीक्षा और प्रशिक्षण के समतुल्य मान्यता दी है:
परंतु इस उपधारा में वर्णित वर्गों के किसी वर्ग के किसी ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो भारत में स्थायी रूप से निवासी नहीं है वहां केन्द्रीय सरकार या परिषद्, ऐसी अतिरिक्त शर्तें अधिरोपित कर सकेगी जो वह लोकहित में आवश्यक या समीचीन समझे ।
(2) उपधारा (1) के खंड (क) में वर्णित प्रत्येक व्यक्ति, कोई प्रवेश फीस संदाय किए बिना रजिस्टर में अपना नाम प्रविष्ट करवा सकेगा ।
(3) उपधारा (1) के खंड (ख), खंड (ग) और खंड (घ) में वर्णित वर्गों में से किसी वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपना नाम, विनिर्दिष्ट रीति से आवेदन किए जाने पर और उसके अनुज्ञात होने और ऐसी फीस, जो विनिर्दिष्ट की जाए, का संदाय करने पर रजिस्टर में प्रविष्ट कराएगा ।
(4) परिषद्, नियत दिन से पूर्व उपधारा (1) के खंड (क) में वर्णित वर्ग के सभी व्यक्तियों के नामों को रजिस्टर में प्रविष्ट करवाने के प्रयोजन लिए ऐसी कार्रवाई करेगी जो आवश्यक हो ।
(5) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, परिषद्, किसी व्यक्ति को मानद अध्येता सदस्यता प्रदान कर सकेगी यदि परिषद् की यह राय है कि ऐसे व्यक्ति ने बीमांकक के व्यवसाय को महत्वपूर्ण योगदान दिया है और तदुपरि परिषद्, रजिस्टर में ऐसे व्यक्ति का नाम प्रविष्ट करेगी, किन्तु ऐसे व्यक्ति को संस्थान के किसी निर्वाचन या अधिवेशन में मत देने का कोई अधिकार नहीं होगा और उससे संस्थान को किसी फीस के संदाय की अपेक्षा भी नहीं की जाएगी ।
7. सहयुक्त और अध्येता-(1) संस्थान के सदस्यों को दो वर्गों में विभाजित किया जाएगा जिनको क्रमशः सहयुक्त और अध्येता अभिहित किया गया है ।
(2) ऐसे व्यक्ति से भिन्न कोई व्यक्ति, जिसे उपधारा (3) के उपबंध लागू होते हैं, रजिस्टर में उसका नाम प्रविष्ट किए जाने पर तब तक सहयुक्त हुआ समझा जाएगा जब तक उसका नाम इस प्रकार प्रविष्ट रहता है और यह उपदर्शित करने के लिए कि वह एक सहयुक्त है अपने नाम के पश्चात् ए०आई०ए०आई०" अक्षरों का उपयोग करने का हकदार होगा ।
(3) ऐसा कोई व्यक्ति, जो बीमांकिक सोसाइटी का अध्येता था और जो धारा 6 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन रजिस्टर में अपना नाम प्रविष्ट कराने का हकदार है, अध्येता के रूप में रजिस्टर में प्रविष्ट किया जाएगा ।
(4) कोई व्यक्ति, जिसका रजिस्टर में अध्येता के रूप में नाम प्रविष्ट है, जब तक उसका नाम इस रूप में प्रविष्ट रहता है, यह उपदर्शित करने के लिए कि वह एक अध्येता है अपने नाम के पश्चात् एफ०आई०ए०आई०" अक्षरों का उपयोग करने का हकदार होगा ।
8. अवैतनिक, संबद्ध और विद्यार्थी सदस्य-(1) परिषद्, ऐसी रीति में, जो विनिर्दिष्ट की जाए, बीमांकिक के व्ययवसाय से संबंधित और उसके हित के विषयों में विख्यात किसी व्यक्ति को संस्थान के अवैतनिक सदस्य के रूप में चयन कर सकेगी, परंतु यह तब जब कि वह बीमांकक के रूप में व्यवसायरत न हो ।
(2) कोई व्यक्ति, जो अध्येता सदस्य है या भारत में अथवा भारत के बाहर संस्थान के समान किसी अन्य संस्थान की सदस्यता का धारक है, जो संस्थान के अध्येता सदस्यता के समतुल्य समझी जाती हो ऐसी अवधि के लिए और ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो विनिर्दिष्ट की जाएं, संबद्ध सदस्य के रूप में भर्ती किया जा सकेगा ।
(3) कोई व्यक्ति, जो स्वयं को संस्थान की परीक्षा के लिए नामांकित कराता है और ऐसी शैक्षणिक अर्हताएं रखता है जो विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो विनिर्दिष्ट की जाएं, संस्थान के विद्यार्थी सदस्य के रूप में भर्ती किया जा सकेगा ।
(4) किसी अवैतनिक सदस्य या संबद्ध सदस्य या विद्यार्थी सदस्य को संस्थान के किसी अधिवेशन में किसी विषय या संकल्प पर मत देने का अधिकार नहीं होगा ।
9. व्यवसाय प्रमाणपत्र-(1) संस्थान का कोई भी सदस्य तब तक व्यवसाय करने का हकदार नहीं होगा जब तक कि वह यथाविनिर्दिष्ट अर्हताएं पूरी नहीं कर देता है और परिषद् से व्यवसाय प्रमाणपत्र अभिप्राप्त नहीं कर लेता है ।
(2) कोई सदस्य, जो व्यवसाय करने का हकदार होने की वांछा करता है, व्यवसाय प्रमाणपत्र के लिए ऐसे प्ररूप में आवेदन करेगा और ऐसी वार्षिक फीस का संदाय करेगा जो विनिर्दिष्ट की जाए, और ऐसी फीस प्रत्येक वर्ष में पहली अप्रैल को या उसके पूर्व संदेय होगी ।
(3) उपधारा (1) के अधीन अभिप्राप्त व्यवसाय प्रमाणपत्र परिषद् द्वारा ऐसी परिस्थितियों में रद्द किया जा सकेगा, जो विनिर्दिष्ट की जाएं ।
10. सदस्यों का बीमांकक के नाम से ज्ञात होना-संस्थान का हर व्यवसायरत सदस्य, बीमांकक पदनाम का प्रयोग करेगा और अन्य कोई सदस्य, इस पदनाम का प्रयोग कर सकेगा और ऐसे पदनाम का प्रयोग करने वाला कोई सदस्य अन्य किसी अभिवर्णन का प्रयोग नहीं करेगा, भले ही वह उसके अतिरिक्त हो या उसके बदले में हो :
परन्तु इस धारा की किसी बात की बाबत यह नहीं समझा जाएगा कि वह ऐसे किसी सदस्य को, ऐसे अन्य संस्थान की, चाहे वह भारत में हो या अन्यत्र हो, जो कि परिषद् द्वारा इस निमित्त मान्यताप्राप्त हो, सदस्यता या अन्य कोई अर्हता जो उसके पास हो, उपदर्शित करने के लिए अपने नाम के साथ किसी अन्य अभिवर्णन या अक्षर जोड़ने से, यदि वह उसका हकदार है प्रतिषिद्ध करती है, या किसी फर्म को, जिसके सभी भागीदार संस्थान के सदस्य हैं और व्यवसाय कर रहें हैं, बीमांकक फर्म के नाम से ज्ञात होने से प्रतिषिद्ध करती है ।
11. निरर्हताएं-धारा 6 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति रजिस्टर में अपना नाम प्रविष्ट कराने या बनाए रखने का हकदार नहीं होगा, यदि-
(क) उसने रजिस्टर में अपने नाम के प्रविष्ट किए जाने के लिए दिए गए आवेदन के समय पर 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर ली है; या
(ख) वह विकृतचित है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार न्यायनिर्णीत किया हुआ है; या
(ग) वह अनुन्मोचित दिवालिया है; या
(घ) उसने उन्मोचित दिवालिया होने पर भी, न्यायालय से ऐसा कथन करने वाला प्रमाणपत्र अभिप्राप्त नहीं किया है कि उसका दिवाला दुर्भाग्य से और उसके किसी अवचार के बिना निकला था, या
(ङ) उसे, चाहे भारत में या भारत के बाहर के किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित है और जो कारावास से दण्डनीय है या ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जो तकनीकी प्रकृति का अपराध नहीं है, और जिसे उसने अपनी वृत्तिक हैसियत में किया है, जब तक कि किए गए अपराध की बाबत या तो उसे क्षमा दे दी गई है या इस निमित्त उसके द्वारा किए गए आवेदन पर सरकार ने लिखित आदेश द्वारा उस निरर्हता को दूर कर दिया है; या
(च) जांच पर यह पाए जाने पर कि वह वृत्तिक या अन्य अवचार का दोषी है, उसे संस्थान की सदस्यता से हटा दिया गया है:
परन्तु ऐसा व्यक्ति, जिसे किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के लिए सदस्यता से हटा दिया गया है, रजिस्टर में अपना नाम ऐसी अवधि के अवसान तक प्रविष्ट कराने का हकदार नहीं होगा ।
12. संस्थान की परिषद् की संरचना-(1) संस्थान के क्रियाकलापों के प्रबंध के लिए और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसे समनुदेशित कृत्यों का निर्वहन करने के लिए एक परिषद् होगी ।
(2) परिषद् की संरचना निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर होगी, अर्थात्ः-
(क) संस्था के अध्येता और सहयुक्त सदस्यों द्वारा अध्येता सदस्यों में से ऐसी रीति से जो विहित की जाए निर्वाचित किए जाने वाले न्यूनतम नौ और बारह से अनधिक व्यक्ति:
परन्तु संस्था का ऐसा अध्येता, जो किसी वृत्तिक या अन्य कदाचार का दोषी पाया गया है और जिसका नाम रजिस्टर से हटा दिया गया है या जुर्माने की शास्ति से अधिनिर्णीत किया गया है, यथास्थिति, रजिस्टर से अध्येता का नाम हटाए जाने की अवधि के पूरा होने के पश्चात् या जुर्माने का संदाय कर दिए जाने के पश्चात् निर्वाचन लड़ने का पात्र नहीं होगा, और-
(i) इस अधिनियम की अनुसूची [भाग 4(ख) के सिवायट के अधीन आने वाले किसी कदाचार की दशा में, तीन वर्ष की अवधि के लिए; या
(ii) इस अधिनियम की अनुसूची के भाग 4(ख) के अधीन आने वाले कदाचार की दशा में, छह वर्ष की अवधि के लिए;
(ख) (i) भारत सरकार के संयुक्त सचिव से अन्यून पंक्ति का कोई अधिकारी, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा वित्त मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्दिष्ट किया जाए;
(ii) बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (1999 का 41) के अधीन गठित बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण से एक व्यक्ति, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाए; और
(iii) तीन से अनधिक ऐसे व्यक्ति, जिन्हें जीवन बीमा, साधारण बीमा, वित्त, अर्थशास्त्र, विधि, लेखाकर्म या ऐसी किसी अन्य विद्या शाखा के क्षेत्र में ज्ञान हो, जो केन्द्रीय सरकार की राय में परिषद् के लिए उपयोगी होगा, ऐसी रीति में नामनिर्देशित किए जाएं जो विहित की जाए:
परन्तु उस समय तक जब तक इस अधिनियम के अधीन परिषद् का गठन नहीं कर दिया जाता, बीमांकिक सोसाइटी की कार्यकारी समिति, सभी कृत्यों का निर्वहन करेगी और उसे परिषद् की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी ।
(3) कोई व्यक्ति जो, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन पद धारण कर रहा है उपधारा (2) के खण्ड (क) के अधीन परिषद् के निर्वाचन के लिए पात्र नहीं होगा ।
(4) उपधारा (2) के खंड (क) में निर्दिष्ट परिषद् के एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के पश्चात् चक्रानुक्रम से निवृत्त होंगे किन्तु पुनर्निर्वाचन के पात्र होंगे ।
(5) उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन नामनिर्दिष्ट कोई व्यक्ति, नामनिर्देशन की तारीख से छह वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा जब तक कि केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे पहले हटा न दिया गया हो और पुनर्नामनिर्देशन के लिए पात्र होगा:
परन्तु इस प्रकार हटाए जाने से पूर्व उसे सुने जाने का अवसर दिया जाएगा ।
13. वार्षिक साधारण अधिवेशन-परिषद्, हर वर्ष धारा 12 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन अपने सदस्यों का निर्वाचन करने या ऐसे किसी विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए जो वह ठीक समझे, संस्थान का वार्षिक साधारण अधिवेशन करेगी और संस्थान के एक वार्षिक साधारण अधिवेशन की तारीख और उसके आगामी अधिवेशन की तारीख के बीच पन्द्रह मास से अधिक का समय व्यतीत नहीं होगा :
परन्तु संस्थान नियत दिन से अपना पहला वार्षिक साधारण अधिवेशन अठारह मास से अनधिक अवधि के भीतर कर सकेगी और यदि ऐसा अधिवेशन उक्त अवधि के भीतर किया जाता है तो संस्थान के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि वह उस वर्ष में कोई और साधारण अधिवेशन करे:
परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार, पर्याप्त कारणों से, ऐसे समय का विस्तार कर सकेगी जिसके भीतर कोई साधारण अधिवेशन किया जाएगा ।
14. परिषद् का पुनः निर्वाचन-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, धारा 12 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन निर्वाचित परिषद् का कोई सदस्य पुनः निर्वाचन के लिए पात्र होगा किन्तु दो आनुक्रमिक अवधियों से अधिक के लिए नहीं ।
(2) परिषद् का कोई सदस्य जो धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित है या हो गया है, परिषद् के सदस्य के रूप में निर्वाचन या नामनिर्देशन के लिए पात्र नहीं होगा ।
15. निर्वाचन से संबंधित विवादों का निपटारा-धारा 12 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन किसी निर्वाचन के संबंध में किसी विवाद की दशा में व्यथित व्यक्ति, परिषद् को, निर्वाचन के परिणाम की घोषणा की तारीख से तीस दिन के भीतर, आवेदन कर सकेगा जिसे तुरंत केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित किया जाएगा ।
16. अधिकरण की स्थापना-(1) केन्द्रीय सरकार, धारा 15 के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति पर ऐसे विवाद का विनिश्चय करने के लिए एक पीठासीन अधिकारी और दो अन्य सदस्यों से मिलकर बनने वाले अधिकरण की स्थापना, अधिसूचना द्वारा, करेगी और ऐसे अधिकरण का विनिश्चय अंतिम होगा ।
(2) कोई व्यक्ति-
(क) अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारतीय विधिक सेवा का सदस्य रहा हो और उसने उस सेवा के ग्रेड 1 का पद कम से कम तीन वर्ष के लिए धारण किया हो;
(ख) सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह कम से कम एक पूरी कालावधि के लिए परिषद् का सदस्य रहा हो; और परिषद् का आसीन सदस्य न हो या विवाद गत निर्वाचन में अभ्यर्थी न रहा हो; और
(ग) किसी सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब उसने भारत सरकार के संयुक्त सचिव का पद या केन्द्रीय सरकार के अधीन कोई अन्य पद जिसका वेतनमान भारत सरकार के संयुक्त सचिव के वेतनमान से कम नहीं है, धारण किया हो ।
(3) अधिकरण के पीठासीन अधिकारी और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें, उनके अधिवेशनों का स्थान, पारिश्रमिक और भत्ते वे होंगे जो विहित किए जाएं ।
(4) अधिकरण के व्यय परिषद् द्वारा वहन किए जाएंगे ।
17. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अवैतनिक सचिव-(1) परिषद् अपने पहले अधिवेशन में, धारा 12 की उपधारा (2) के खंड (क) में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से अपने तीन सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अवैतनिक सचिव निर्वाचित करेगी और जितनी भी बार अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अवैतनिक सचिव का पद रिक्त हो, तब परिषद् एक सदस्य को उसी रीति से चुनेगी:
परन्तु बीमांकिक सोसाइटी की परिषद् का अध्यक्ष इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् अध्यक्ष का ऐसा पद उस समय तक धारण करता रहेगा जब तक इस उपधारा के उपबंधों के अधीन अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हो जाता ।
(2) अध्यक्ष परिषद् का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा ।
(3) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अवैतनिक सचिव उस तारीख से, जिसको उसे चुना गया है, दो वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा परंतु यह तब जब वह परिषद् का सदस्य बना रहे ।
(4) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष अपनी पदावधि समाप्त होने पर भी, तब तक, पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तरवर्ती उसका पद नहीं संभाल लेता ।
(5) अध्यक्ष के पद पर कोई रिक्ति होने की दशा में, उपाध्यक्ष इस धारा के उपबंधों के अनुसार, ऐसी रिक्ति को भरने के लिए नए अध्यक्ष के निर्वाचित होने तक और उसके पद संभालने तक अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा ।
(6) जब अध्यक्ष अनुपस्थिति, बीमारी या किसी अन्य कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तो उपाध्यक्ष तब तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जब तक अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता ।
18. सदस्यता से त्यागपत्र और आकस्मिक रिक्तियों का भरा जाना-(1) परिषद् का कोई सदस्य अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपनी सदस्यता त्याग सकेगा, और ऐसे सदस्य का स्थान तब रिक्त हो जाएगा जब ऐसा त्यागपत्र परिषद् द्वारा स्वीकार कर लिया गया हो ।
(2) धारा 12 की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन नामनिर्दिष्ट सदस्य से भिन्न परिषद् के सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अपना स्थान रिक्त कर दिया है यदि परिषद् ने उसकी बाबत यह घोषणा कर दी हो कि वह पर्याप्त कारण के बिना परिषद् के तीन क्रमवर्ती अधिवेशनों से या परिषद् द्वारा गठित समितियों में से किसी से, जिसका वह सदस्य है, अनुपस्थित रहा है या वह किसी वृत्तिक या अन्य कदाचार का दोषी पाया जाता है और जुर्माने की शास्ति से अधिनिर्णीत किया गया है या उसका नाम धारा 24 और धारा 30 के उपबंधों के अधीन रजिस्टर से किसी हेतुक से हटा दिया गया है ।
(3) परिषद् के सदस्य के पद पर कोई आकस्मिक रिक्ति, यथास्थिति, नए निर्वाचन द्वारा या केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित या नामनिर्देशित व्यक्ति उस शेष अवधि के लिए ही पद धारण करेगा जिसके लिए वह सदस्य जिसके स्थान पर वह निर्वाचित या नामनिर्देशित किया गया है वह पद धारण करता:
परन्तु ऐसे सदस्य की पदावधि के अवसान की तारीख से पूर्व एक वर्ष के भीतर होने वाली आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए कोई निर्वाचन नहीं कराया जाएगा ।
(4) परिषद् द्वारा किया गया कोई कार्य परिषद् में कोई रिक्ति विद्यमान होने या उसके गठन में कोई त्रुटि होने के आधारमात्र पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।
19. परिषद् के कृत्य-(1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन कृत्यों को क्रियान्वित करने का कर्तव्य परिषद् में निहित होगा ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, परिषद् के कृत्यों में निम्नलिखित सम्मिलित होगा, -
(क) नामांकन के लिए अभ्यर्थियों की परीक्षा लेना और उसके लिए फीस विनिर्दिष्ट करना;
(ख) रजिस्टर में प्रविष्टि के लिए अर्हताएं विनिर्दिष्ट करना;
(ग) नामांकन के प्रयोजनों के लिए विदेशी अर्हताओं और प्रशिक्षण को मान्यता देना;
(घ) इस अधिनियम के अधीन व्यवसाय प्रमाणपत्र अनुदत्त करना या अनुदत्त करने से इन्कार करना;
(ङ) बीमांककों के रूप में व्यवसाय करने के लिए अर्हित व्यक्तियों के रजिस्टर का रखा जाना और प्रकाशन;
(च) सदस्यों, विद्यार्थियों, परीक्षार्थियों और अन्य व्यक्तियों से फीस का उद्ग्रहण और संग्रहण;
(छ) रजिस्टर में से नामों को काट देना और जिन नामों को काट दिया गया है उन्हें रजिस्टर में पुनः दर्ज करना;
(ज) संस्थान के सदस्यों की वृत्तिक अर्हताओं के स्तर और मानक को विनियमित करना और उन्हें बनाए रखना;
(झ) सदस्यों के, जिनके अंतर्गत विद्यार्थी सदस्य भी हैं, अनुपालन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत जारी करना;
(ञ) केंद्रीय या राज्य सरकारों से दान, अनुदान, संदान या उपकृतियां प्राप्त करना और, यथास्थिति, वसीयतकर्ताओं, दानदाताओं या अंतरणकर्ताओं से वसीयतें, संदान और जंगम या स्थावर संपत्तियों का अंतरण प्राप्त करना;
(ट) विश्व के किसी भाग में संस्थान के उद्देश्यों के पूर्णरूप से या भागरूप में समान उद्देश्यों वाली शैक्षणिक या अन्य संस्थाओं के साथ सदस्यों के आदान-प्रदान के द्वारा और सामान्य रूप से ऐसी रीति में, जो उनके सामान्य उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक हों, सहयोग करना;
(ठ) अध्येतावृत्तियां, छात्रवृत्तियां, पारितोषिक और पदक संस्थित करना और उन्हें देना;
(ड) संस्थान के उद्देश्यों के समान उद्देश्य वाली अन्य संस्थाओं या निकायों को दान, अनुदान, संदान या उपकृतियां देना;
(ढ) परिषद् के सदस्यों से भिन्न व्यक्तियों को वित्तीय सहायता देकर या किसी अन्य रीति से बीमांकिक विज्ञान में अनुसंधान कार्य करना;
(ण) बीमांकिक विज्ञान से संबंधित पुस्तकालय रखना और पुस्तकों, जर्नलों और नियत कालिक पत्रिकाओं का प्रकाशन;
(त) इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त अनुशासनिक शक्तियों का प्रयोग;
(थ) ऐसी प्रादेशिक परिषद् या परिषदें स्थापित करना जो समय-समय पर विनिश्चत की जाएं और उनके मुख्यालयों को नियत करना; और
(द) ऐसी सभी बातें करना जो संस्थान के सभी या किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक, आनुषंगिक या सहायक हों
20. कर्मचारिवृन्द, पारिश्रमिक और भत्ते-(1) परिषद् अपने कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए ऐसी रीति में जो विनिर्दिष्ट की जाए, -
(क) कार्यकारी निदेशक, कोषाध्यक्ष तथा ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर सकेगी जो वह आवश्यक समझे और उनके वेतन, फीसें, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें नियत कर सकेगी; और
(ख) परिषद् के तथा उसकी समितियों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, अवैतनिक सचिव और अन्य सदस्यों के भत्ते नियत कर सकेगी ।
(2) परिषद् का कार्यकारी निदेशक परिषद् के अधिवेशनों में भाग लेने का हकदार होगा किन्तु उसमें उसे मत देने का हकदार नहीं होगा ।
21. परिषद् की समितियां-(1) परिषद्, अपने सदस्यों में से ऐसी समितियों का गठन कर सकेगी, और उनमें से ऐसे व्यक्तियों को सहयोजित कर सकेगी, जो संस्थान के सदस्य नहीं हैं, जिन्हें वह इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक समझती है:
परंतु सहयोजित सदस्यों की संख्या समिति की कुल सदस्यता की एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी ।
(2) इस धारा के अधीन गठित प्रत्येक समिति अपना अध्यक्ष निर्वाचित करेगी:
परंतु, -
(i) जहां अध्यक्ष ऐसी समिति का सदस्य है वहां वह ऐसी समिति का सभापति होगा और उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, यदि वह ऐसी समिति का सदस्य है, उसका सभापति होगा; और
(ii) जहां अध्यक्ष ऐसी समिति का सदस्य नहीं है किंतु उपाध्यक्ष सदस्य है वहां वह उसका सभापति होगा ।
(3) समितियां ऐसे कृत्य करेंगी और ऐसी शर्तों के अध्यधीन होंगी, जो विनिर्दिष्ट की जाएं ।
22. परिषद् के वित्त-(1) परिषद् के प्रबंध और नियंत्रण के अधीन एक निधि स्थापित की जाएगी जिसमें परिषद् को प्राप्त वे सब धनराशियां (जिसमें संदान और अनुदान भी सम्मिलित हैं) संदत्त की जाएंगी और जिसमें से परिषद् द्वारा उपगत सभी व्यय और दायित्व चुकाए जाएंगे ।
(2) परिषद् ऐसी कोई धनराशि, जो तत्समय निधि के खाते में जमा है, किसी प्रतिभूति में, जिसे ऐसे विनिधानों की प्रतिभूति के प्रतिफलों से संगत उचित समझे और उस पर अधिकतम आमदनी हो, विनिहित कर सकेगी ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, प्रतिभूति" पद का वही अर्थ होगा जो समय-समय पर यथासंशोधित प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 में है ।
(3) परिषद् निधि का उचित लेखा रखेगी जिसमें राजस्व लेखा से पूंजी लेखा को पृथक् रखा जाएगा ।
(4) संस्थान के वार्षिक लेखाओं की संपरीक्षा चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट अधिनियम, 1949 (1949 का 38) के अर्थान्तर्गत परिषद् द्वारा वार्षिक रूप से नियुक्त किए जाने वाले व्यवसायरत किसी चार्टर्ड अकाउन्टेंट द्वारा की जाएगी:
परंतु परिषद् का कोई सदस्य, जो चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट है या ऐसा कोई व्यक्ति है जो ऐसे किसी सदस्य के साथ भागीदार है, इस उपधारा के अधीन संपरीक्षक के रूप में नियुक्ति का पात्र नहीं होगा ।
(5) प्रत्येक वर्ष के अंत में यथासाध्य शीघ्र किंतु अगले वर्ष के सितंबर के तीसवें दिन के अपश्चात् परिषद् संपरीक्षित लेखाओं की और उस वर्ष के बारे में परिषद् की रिपोर्ट की एक प्रति भारत के राजपत्र में प्रकाशित करवाएगी और उक्त लेखाओं तथा रिपोर्ट की प्रतियां सरकार और संस्थान के सभी सदस्यों को भेजी जाएंगी ।
(6) परिषद् भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) में यथा परिभाषित किसी अनुसूचित बैंक से या किसी लोक वित्तीय संस्था से, -
(क) पूंजी खाते वाले अपने दायित्वों को चुकाने के लिए अपेक्षित कोई धनराशि निधि की प्रतिभूति पर अथवा ऐसी किसी आस्ति की, जो तत्समय उसकी हैं, प्रतिभूति पर; या
(ख) आय की प्राप्ति होने तक चालू दायित्वों को चुकाने के प्रयोजन के लिए अस्थायी उधार या ओवरड्राफ्ट के तौर पर कोई धनराशि, उधार ले सकेगी ।
स्पष्टीकरण-लोक वित्तीय संस्था" पद से कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क में विनिर्दिष्ट वित्तीय संस्था अभिप्रेत है ।
अध्याय 3
सदस्यों का रजिस्टर
23. रजिस्टर-(1) परिषद् संस्थान के सदस्यों का रजिस्टर विनिर्दिष्ट रीति में रखेगी ।
(2) रजिस्टर में संस्थान के प्रत्येक सदस्य के बारे में निम्नलिखित विशिष्टियां सम्मिलित की जाएंगी, अर्थात्ः-
(क) उसका पूरा नाम, जन्म तिथि, अधिवास, निवास तथा वृत्तिक पते;
(ख) वह तारीख, जिसको उसका नाम रजिस्टर में प्रविष्ट किया गया;
(ग) उसकी अर्हताएं;
(घ) क्या उसके पास व्यवसाय प्रमाणपत्र है; और
(ङ) अन्य कोई विशिष्टियां जो विनिर्दिष्ट की जाएं ।
(3) परिषद् हर वर्ष की पहली अप्रैल को यथा विद्यमान सदस्यों की सूची, ऐसी रीति में प्रकाशित करवाएगी जो विनिर्दिष्ट की जाए और यदि ऐसे किसी सदस्य द्वारा उससे ऐसा करने का अनुरोध किया जाता है तो वह ऐसी सूची की एक प्रति ऐसी फीस का संदाय करने पर, जो विनिर्दिष्ट की जाए, उसको भेजेगी ।
(4) संस्थान का प्रत्येक सदस्य रजिस्टर में अपना नाम प्रविष्ट किए जाने पर, उतनी वार्षिक सदस्यता फीस का, जो परिषद् द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, संदाय करेगा ।
24. रजिस्टर से नाम का हटाया जाना-परिषद्, आदेश द्वारा, रजिस्टर से संस्थान के किसी ऐसे सदस्य का नाम हटा सकेगी, -
(क) जिसकी मृत्यु हो गई है; या
(ख) जिससे इस आशय का अनुरोध प्राप्त हुआ है; या
(ग) जिसने ऐसी विनिर्दिष्ट फीस का संदाय नहीं किया है, जिसका उससे संदाय किए जाने की अपेक्षा है; या
(घ) जो उस समय, जब उसका नाम रजिस्टर में प्रविष्ट किया गया था या जो उसके पश्चात् किसी समय धारा 11 में वर्णित निरर्हताओं में से, किसी के अध्यधीन हो गया है; या
(ङ) जो किसी अन्य कारण से अपना नाम रजिस्टर में बनाए रखने का हकदार नहीं रह गया है ।
25. रजिस्टर में पुनः प्रविष्टि-परिषद् किसी ऐसे सदस्य का नाम, जिसका नाम धारा 24 के खंड (ख), खंड (ग), खंड (घ) और खंड (ङ) में वर्णित कारणों से रजिस्टर से हटा दिया गया है, आदेश द्वारा और ऐसी फीस का संदाय किए जाने पर तथा ऐसी शर्तों और अपेक्षाओं का, जो विनिर्दिष्ट की जाएं, समाधान कर दिए जाने के पश्चात् पुनः प्रविष्ट कर सकेगी ।
अध्याय 4
अवचार
26. अनुशासन समिति-(1) परिषद्, एक अनुशासन समिति का गठन करेगी जो पीठासीन अधिकारी के रूप में परिषद् के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, और परिषद् द्वारा निर्वाचित परिषद् के दो सदस्यों और विधि, शिक्षा, अर्थशास्त्र, कारबार, वित्त, लेखाकर्म या लोक प्रशासन के क्षेत्र में अनुभव रखने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से केंद्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाले दो सदस्यों से मिलकर बनेगी:
परंतु परिषद् जब भी वह ठीक समझे, और प्रादेशिक अनुशासन समितियों का गठन कर सकेगी ।
(2) अनुशासन समिति, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन जांच करने में ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगी और परिषद् को ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाए, रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी ।
27. अभियोजन निदेशक की नियुक्ति-(1) परिषद्, अधिसूचना द्वारा, अभियोजन निदेशक और इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन परिषद् को प्राप्त किसी सूचना या परिवाद की बाबत जांच करने में अनुशासन समिति की सहायता करने के लिए अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगी ।
(2) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन जांच करने के लिए, अभियोजन निदेशक ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगा जो विहित की जाए ।
28. प्राधिकरण, परिषद्, अनुशासन समिति और अभियोजन निदेशक को सिविल न्यायालय की शक्तियों का होना-इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन किसी जांच के प्रयोजनों के लिए, प्राधिकरण, अनुशासन समिति और अभियोजन निदेशक को वही शक्तियां होंगी जो निम्नलिखित विषयों की बाबत सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित होती हैंः-
(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) किसी दस्तावेज का पता लगाना तथा उसका पेश किया जाना; और
(ग) शपथपत्र पर साक्ष्य स्वीकार करना ।
29. अनुशासन समिति की रिपोर्ट पर परिषद् द्वारा कार्रवाई-(1) अनुशासन समिति से रिपोर्ट की प्राप्ति पर, यदि परिषद् का यह समाधान हो जाता है कि संस्थान का सदस्य किसी वृत्तिक या अन्य अवचार का दाषी है तो, यह तद्नुसार अपने निष्कर्षों को लेखबद्ध करेगी और धारा 30 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगी ।
(2) यदि अनुशासन समिति की रिपोर्ट से परिषद् का समाधान नहीं होता है और उसकी यह राय है कि इसकी और जांच अपेक्षित है तो यह रिपोर्ट को ऐसी और जांच के लिए अनुशासन समिति को पुनः भेज सकेगी जैसा परिषद् के आदेश द्वारा निदेशित किया जाए ।
(3) यदि परिषद् अनुशासन समिति के निष्कर्षों से असहमत है तो यह अभियोजन निदेशक को या स्वयं को प्राधिकरण को अपील करने के लिए निदेशित कर सकेगी ।
30. सदस्य को सुनवाई का अवसर प्रदान करना-जहां परिषद् का राय है कि कोई सदस्य किसी वृत्तिक या अनुसूची में वर्णित अन्य अवचार का दोषी है तो, वह उस सदस्य को उसके विरुद्ध कोई आदेश करने से पहले सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगी और तत्पश्चात् निम्नलिखित कार्रवाइयों में एक या अधिक को कर सकेगी, अर्थात्ः-
(क) सदस्य को धिग्दंड देना; या
(ख) सदस्य के नाम को रजिस्टर में से या तो स्थायी रूप से या ऐसी अवधि के लिए, जो वह ठीक समझे, हटाना;
(ग) ऐसा जुर्माना अधिरोपित करना जिसे वह ठीक समझे और जो पांच लाख रुपए तक हो सकेगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, संस्थान के सदस्य" के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जो अधिकथित अवचार की तारीख को संस्थान का सदस्य था यद्यपि जांच के समय वह संस्थान का सदस्य नहीं रहा है ।
31. वृत्तिक या अन्य अवचार की परिभाषा-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, वृत्तिक या अन्य अवचार" पद के बारे में यह समझा जाएगा कि उसमें अनुसूची में उपबंधित कोई कार्य या लोप सम्मिलित है, किन्तु इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी भी रीति में अनुशासन समिति या अभियोजन निदेशक पर किन्हीं अन्य परिस्थितियों में संस्थान के किसी सदस्य के अवचार के बारे में जांच करने की अधिरोपित शक्ति या कर्तव्य को सीमित या कम करती है ।
अध्याय 5
अपीलें
32. अपील प्राधिकरण का गठन-चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 (1949 का 38) की धारा 22क की उपधारा (1) के अधीन गठित अपील प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए इस उपान्तरण के अधीन रहते हुए अपील प्राधिकरण समझा जाएगा, कि उक्त उपधारा (1) के खण्ड (ख) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखा गया था, अर्थात्ः-
(ख) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, उन व्यक्तियों में से दो अंशकालिक सदस्यों की नियुक्ति करेगी, जो बीमांकक संस्थान परिषद् के कम से कम एक पूरी अवधि के लिए सदस्य रहे हैं और जो परिषद् का आसीन सदस्य नहीं है;" ।
33. प्राधिकरण के सदस्यों की पदावधि-सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति, ऐसी तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि तक अथवा सड़सठ वर्ष की आयु प्राप्त होने तक, जो भी पूर्वतर हो, अपना पद धारण करेगा ।
34. प्राधिकरण के सदस्यों के भत्ते, उनकी सेवा की शर्तें और उसकी प्रक्रिया आदि-चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 (1949 का 38) की धारा 22ग, धारा 22घ और धारा 22च के उपबंध प्राधिकरण को, उसके अध्यक्ष और सदस्यों के भत्तों और सेवा के निबंधनों और शर्तों के संबंध में तथा इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन में, इस प्रकार लागू होंगे जैसे वे चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन में उसे लागू होते हैं ।
35. प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृन्द-(1) परिषद् प्राधिकरण को उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृन्द उपलब्ध कराएगी, जितने प्राधिकरण को उसके कृत्यों के दक्षतापूर्वक निर्वहन के लिए आवश्यक हों ।
(2) प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारिवृन्द के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें ऐसी होंगी जो विनिर्दिष्ट की जाएं ।
36. प्राधिकरण को अपील-(1) संस्थान का ऐसा कोई सदस्य, जो परिषद् के किसी ऐसे आदेश से व्यथित है जिसमें धारा 30 में निर्दिष्ट शास्तियों में से कोई अधिरोपित की गई है, उस तारीख से जिसको आदेश की संसूचना उसे दी गई है, नब्बे दिन के भीतर प्राधिकरण को अपील कर सकेगा:
परन्तु प्राधिकरण कोई ऐसी अपील, नब्बे दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान कर दिया जाता है कि समय के भीतर अपील न करने का पर्याप्त कारण था ।
(2) प्राधिकरण किसी मामले के अभिलेख मंगाने के पश्चात् धारा 30 के अधीन परिषद् द्वारा किए गए किसी आदेश का पुनरीक्षण कर सकेगा और-
(क) आदेश को पुष्ट, उपान्तरित या अपास्त कर सकेगा;
(ख) कोई शास्ति अधिरोपित कर सकेगा या आदेश द्वारा अधिरोपित शास्ति को अपास्त, कम या उसमें वृद्धि कर सकेगा;
(ग) मामले को अनुशासन समिति को ऐसी और जांच के लिए प्रेषित कर सकेगा जिसे प्राधिकरण उस मामले की परिस्थितियों में उचित समझे; या
(घ) ऐसा अन्य आदेश पारित कर सकेगा, जो प्राधिकरण ठीक समझे:
परंतु प्राधिकरण कोई आदेश पारित करने से पहले संबद्ध पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देगा ।
अध्याय 6
शास्तियां
37. सदस्य आदि होने का मिथ्या दावा करने के लिए शास्ति-धारा 10 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति जो, -
(क) संस्थान का सदस्य नहीं है-
(i) यह व्यपदेशन करता है कि वह धारा 7 में वर्णित रीतियों में से किसी रीति में संस्थान का सदस्य है; या
(ii) बीमांकक" पदाभिधान का उपयोग करता है; या
(iii) अपने नाम के पश्चात् ए०आई०ए०आई०" या एफ०आई०ए०आई०" अक्षरों का उपयोग करता है; या
(iv) बीमांकक वृत्ति का व्यवसाय करता है; या
(ख) संस्थान का सदस्य है, किंतु उसके पास व्यवसाय प्रमाणपत्र नहीं है, यह व्यपदेशन करता है कि वह बीमांकक के रूप में व्यवसायरत या व्यवसाय करता है,
प्रथम दोषसिद्धि पर जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा और किसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।
38. बीमांकिक विज्ञान की उपाधियां देने वाली संस्था के नाम का उपयोग करने, आदि के लिए शास्ति-(1) कोई व्यक्ति, इस अधिनियम में अन्यथा जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, -
(क) ऐसे नाम या सामान्य मुद्रा का उपयोग नहीं करेगा, जो संस्थान के नाम या सामान्य मुद्रा के समान या उससे इतनी मिलती-जुलती है कि जिसमें जन साधारण प्रवंचित हो जाए या प्रवंचित होना संभाव्य है; या
(ख) ऐसी कोई उपाधि, डिप्लोमा या प्रमाणपत्र नहीं देगा या ऐसा पदाभिधान प्रदान नहीं करेगा जिससे यह उपदर्शित होता है या उपदर्शित होना तात्पर्यित है कि उसके पास बीमांकक में कोई ऐसी अर्हता या सक्षमता है या उसने प्राप्त कर ली है जो संस्थान के सदस्य की अर्हता या सक्षमता के सदृश है; या
(ग) किसी भी रीति से बीमांकिकों की वृत्ति को विनियमित करने का प्रयास नहीं करेगा ।
(2) उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति, किन्हीं अन्य कार्यवाहियों पर, जो उसके विरुद्ध की जा सकती हों, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जुर्माने से, जो प्रथम दोषसिद्धि पर पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा और पश्चात्वर्ती किसी दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।
(3) इस धारा की कोई बात विधि द्वारा स्थापित किसी विश्वविद्यालय या अन्य संस्था या संस्थान से संबद्ध किसी निकाय को लागू नहीं होगी ।
39. कंपनियों का बीमांकिक व्यवसाय में न लगना-(1) कोई भी कंपनी, चाहे वह भारत में निगमित हो या अन्यत्र, बीमांककों के रूप में व्यवसाय नहीं करेगी ।
(2) उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करने वाली कंपनी जुर्माने से, जो प्रथम दोषसिद्धि पर दस हजार रुपए तक का हो सकेगा और किसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर जुर्माने से, जो पच्चीस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।
40. अनर्हित व्यक्ति द्वारा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर न किया जाना-(1) संस्थान के अध्येता सदस्य से भिन्न कोई व्यक्ति व्यवसायरत किसी बीमांकक की ओर से या ऐसे बीमांककों की फर्म की ओर से अपनी या फर्म की वृत्तिक हैसियत में किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करेगा ।
(2) उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति किन्हीं अन्य कार्यवाहियों पर, जो उसके विरुद्ध की जा सकती हों, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जुर्माने से, जो प्रथम दोषसिद्धि पर पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा और किसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।
41. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने वाला व्यक्ति कंपनी है तो कंपनी और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे:
परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सभी सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध, कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना, उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -
(क) कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कोई फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; और
(ख) फर्म के संबंध में निदेशक" से फर्म का कोई भागीदार अभिप्रेत है ।
42. अभियोजन करने के लिए मंजूरी-इस अधिनियम के अधीन किसी व्यक्ति का अभियोजन परिषद् या केन्द्रीय सरकार द्वारा किए गए परिवाद या उसके आदेश के अधीन किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
अध्याय 7
क्वालिटी पुनर्विलोकन बोर्ड
43. क्वालिटी पुनर्विलोकन बोर्ड की स्थापना-(1) केन्द्रीय सरकार, क्वालिटी पुनर्विलोकन बोर्ड का गठन, अधिसूचना द्वारा करेगी जो अध्यक्ष और चार से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगा:
परन्तु यदि बोर्ड का गठन दो सदस्यों से किया जाता है तो उनमें से प्रत्येक क्रमशः परिषद् और केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा ।
(2) बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों को ऐसे प्रख्यात व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जिनके पास विधि, शिक्षा, अर्थशास्त्र, कारबार, वित्त, लेखाकर्म या लोक प्रशासन के क्षेत्र में अनुभव हो ।
(3) बोर्ड के दो सदस्य परिषद् द्वारा नामनिर्देशित होंगे और दो अन्य सदस्य केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित होंगे ।
44. बोर्ड के कृत्य-बोर्ड निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात्ः-
(क) संस्थान के सदस्यों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिए मानक नियत करना;
(ख) संस्थान के सदस्यों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं की क्वालिटी का पुनर्विलोकन करना जिसके अन्तर्गत बीमांकिक संपरीक्षा सेवा भी हैं; और
(ग) संस्थान के सदस्यों को सेवाओं की क्वालिटी में सुधार लाने और विभिन्न कानूनी और अन्य विनियामक अपेक्षाओं का अनुपालन करने में मार्गदर्शन करना ।
45. बोर्ड की प्रक्रिया-बोर्ड अपने अधिवेशन में और कृत्यों के निर्वहन में ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो विहित की जाए ।
46. बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें-बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें, उनके अधिवेशनों के स्थान, पारिश्रमिक और भत्ते ऐसे होंगे, जो विहित किए जाएं ।
47. बोर्ड के व्यय-बोर्ड के व्यय परिषद् द्वारा वहन किए जाएंगे ।
अध्याय 8
सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत भारत की बीमांकिक सोसाइटी का विघटन
48. भारत की बीमांकिक सोसाइटी का विघटन-नियत दिन से, -
(क) सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) और बोम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स ऐक्ट, 1950 (1950 का बोम्बे अधिनियम सं० 39) के अधीन रजिस्ट्रीकृत भारत की बीमांकिक सोसाइटी के नाम से ज्ञात सोसाइटी विघटित हो जाएगी और उसके पश्चात् कोई व्यक्ति विघटित सोसाइटी के विरुद्ध या ऐसे अधिकारी के रूप में उसकी हैसियत में उसके विरुद्ध, सिवाय तब जब कि इस अधिनियम के उपबन्धों का प्रवर्तन करना आवश्यक हो, कोई दावे नहीं लाएगा या मांगों का प्रख्यान नहीं करेगा या कार्यवाहियां नहीं करेगा;
(ख) विघटित सोसाइटी के विरुद्ध या उसकी बाबत प्रत्येक सदस्य का अधिकार निर्वापित हो जाएगा और उसके पश्चात् सोसाइटी का कोई सदस्य इस अधिनियम में उपबंधित के सिवाय उस सोसाइटी की बाबत कोई दावे नहीं करेगा या मांगे प्रख्यापित नहीं करेगा या कार्यवाहियां नहीं करेगा ।
49. विघटित सोसाइटी के कर्मचारियों की बाबत उपबंध-(1) विघटित सोसाइटी में नियोजित और इस अधिनियम के प्रारंभ से ठीक पूर्व उसके नियोजन में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति, ऐसे प्रारंभ से, संस्थान का कर्मचारी हो जाएगा और उसमें उसी पदावधि और उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर और सेवानिवृत्ति फायदों की बाबत उन्हीं अधिकारों और विशेषाधिकारों के साथ जिन्हें वह विघटित सोसाइटी के अधीन धारित करता यदि यह अधिनियम पारित नहीं हुआ होता, धारित करेगा और ऐसा तब तक बना रहेगा जब तक कि संस्थान में उसके नियोजन का पर्यवसान नहीं कर दिया जाता या जब तक संस्थान द्वारा उसका पारिश्रमिक, नियोजन के निबंधन और शर्तें सम्यक् रूप से परिवर्तित नहीं कर दी जाती ।
(2) औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, विघटित सोसाइटी के किसी कर्मचारी की सेवाओं का संस्थान को अंतरण किसी ऐसे कर्मचारी को उस अधिनियम या अन्य विधि के अधीन किसी प्रतिकर का हकदार नहीं बनाएगा और ऐसा कोई दावा किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकरण द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा ।
अध्याय 9
प्रकीर्ण
50. बीमांकक द्वारा एक से अधिक कार्यालयों का रखा जाना-(1) जहां किसी व्यवसायरत बीमांकक या ऐसे बीमांककों की किसी फर्म के भारत के भीतर या उससे बाहर एक से अधिक कार्यालय हैं, वहां ऐसे कार्यालयों में से प्रत्येक उक्त संस्थान के एक अध्येता सदस्य के पृथक् प्रभार में होगा:
परंतु परिषद्, उपयुक्त मामलों में, व्यवसायरत किसी बीमांकक या ऐसे बीमांककों की फर्म को इस उपधारा के प्रवर्तन से छूट प्रदान कर सकेगी ।
(2) एक से अधिक कार्यालय रखने वाला प्रत्येक व्यवसायरत बीमांकक या ऐसे बीमांककों की फर्म परिषद् को कार्यालयों और उनके प्रभारी व्यक्तियों की एक सूची भेजेगी तथा उनसे संबंधित किन्हीं परिवर्तनों की जानकारी परिषद् को देती रहेगी ।
51. पारस्परिकता-(1) जहां, केन्द्रीय सरकार द्वारा राजपत्र में इस निमित्त अधिसूचित कोई देश भारतीय अधिवासी व्यक्तियों को उक्त संस्थान के समतुल्य किसी संस्थान के सदस्य बनने से या बीमांककों की वृत्ति का व्यवसाय करने से निवारित करता है या उनके साथ उस देश में अनुचित भेदभाव करता है वहां ऐसे किसी देश का कोई नागरिक भारत में उक्त संस्था का सदस्य बनने या भारत में बीमांककों की वृत्ति का व्यवसाय करने का हकदार नहीं होगा ।
(2) परिषद्, उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ऐसी शर्तें, यदि कोई हों, विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिनके अधीन रहते हुए बीमांकिक विज्ञान से संबंधित विदेशी अर्हताओं को रजिस्टर में प्रविष्टि के प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाएगी ।
52. केन्द्रीय सरकार की निदेश जारी करने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, समय-समय पर, परिषद् को ऐसे साधारण और विशेष निदेश दे सकेगी, जो वह ठीक समझे, और परिषद् इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में ऐसे निदेशों का पालन करेगी ।
(2) यदि केन्द्रीय सरकार की राय में, परिषद् ने उपधारा (1) के अधीन जारी निदेशों को कार्यान्वित करने में निरंतर रूप से व्यतिक्रम किया है तो सरकार, परिषद् को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात्, अधिसूचना द्वारा परिषद् का विघटन कर सकेगी जिसके पश्चात् एक नई परिषद् का गठन इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार केन्द्रीय सरकार द्वारा यथा विनिश्चित तारीख से किया जाएगा ।
(3) जहां केन्द्रीय सरकार ने उपधारा (2) के अधीन परिषद् का विघटन करने की अधिसूचना जारी की है वहां वह, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार नई परिषद् का गठन होने तक, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के निकाय को परिषद् के कार्यों का प्रबंध ग्रहण करने और ऐसे कृत्यों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगी जो अधिसूचना में उल्लिखित किए जाएं ।
53. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम, विनियम, अधिसूचना, निदेश या आदेश के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या परिषद् या अनुशासन समिति या अधिकरण या प्राधिकरण या बोर्ड या अभियोजन निदेशक या उस सरकार, परिषद्, समिति, अधिकरण, प्राधिकरण या बोर्ड के किसी अधिकारी के विरुद्ध नहीं होगी ।
54. सदस्यों आदि का लोक सेवक होना-प्राधिकरण, अधिकरण और बोर्ड का अध्यक्ष, पीठासीन अधिकारी, सदस्य और अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी और अभियोजन निदेशक भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जाएंगे ।
55. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पू्र्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इन नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्ः-
(क) धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन परिषद् के सदस्यों की बाबत निर्वाचन और नामनिर्देशन की रीति;
(ख) धारा 16 की उपधारा (3) के अधीन अधिकरण के पीठासीन अधिकारियों और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें, उनकी बैठक का स्थान, उनको संदेय पारिश्रमिक और भत्ते;
(ग) धारा 26 की उपधारा (2) के अधीन अनुशासन समिति द्वारा जांच की प्रक्रिया और रिपोर्ट का प्रस्तुत किया जाना;
(घ) धारा 27 की उपधारा (2) के अधीन अभियोजन निदेशक द्वारा जांच की प्रक्रिया;
(ङ) कोई कार्य या लोप जो धारा 31 के अधीन व्यवसायिक अवचार के रूप में अवधारित किया जाए;
(च) धारा 45 के अधीन बोर्ड द्वारा अपने अधिवेशनों में और अपने कृत्यों का निर्वहन करने में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया; और
(छ) धारा 46 के अधीन बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें ।
56. विनियम बनाने की शक्ति-(1) परिषद्, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और पूर्व प्रकाशन के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, विनियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्ः-
(क) धारा 6 की उपधारा (1) के खंड (ख), खंड (ग) और खंड (घ) के प्रयोजनों के लिए परीक्षा और प्रशिक्षण;
(ख) धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन आवेदन करने की रीति;
(ग) धारा 6 की उपधारा (3), धारा 9 की उपधारा (2), धारा 19 की उपधारा (2) के खंड (क), धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन संदेय फीस;
(घ) वह रीति जिसमें धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन अवैतनिक सदस्यों का चयन किया जा सकेगा;
(ङ) वे निबंधन और शर्तें जिन पर धारा 8 की उपधारा (2) के अधीन संबद्ध सदस्य को प्रवेश दिया जा सकेगा;
(च) धारा 8 की उपधारा (3) के अधीन विद्यार्थी सदस्य के प्रवेश के लिए शैक्षिक अर्हताएं;
(छ) धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन व्यवसाय प्रमाणपत्र के लिए अपेक्षित अर्हताएं और वह प्ररूप जिसमें उपधारा (2) के अधीन आवेदन किया जा सकेगा;
(ज) धारा 19 की उपधारा (2) में वर्णित परिषद् द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए कारबार का संव्यवहार;
(झ) धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(ञ) धारा 21 की उपधारा (3) के अधीन समितियों के कृत्य और शर्तें;
(ट) वह रीति जिसमें धारा 23 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन संस्थान के सदस्यों के रजिस्टर और अन्य विशिष्टियां रखी जाएंगी;
(ठ) वह रीति जिसमें धारा 23 की उपधारा (3) के अधीन संस्थान के सदस्यों की वार्षिक सूची प्रकाशित की जा सकेगी;
(ड) धारा 25 के अधीन रजिस्टर में पुनः प्रविष्टि के लिए शर्तें और अपेक्षाएं तथा फीस का संदाय;
(ढ) धारा 35 की उपधारा (2) के अधीन प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारिवृंद, सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा सेवा की शर्तें;
(ण) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए धारा 51 की उपधारा (2) के अधीन विदेशी अर्हताओं को मान्यता दी जा सकेगी; और
(त) कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन विहित किए जाने के लिए अपेक्षित है या विहित किया जाए ।
57. केन्द्रीय सरकार की विनियम बनाने या संशोधन करने के लिए निदेश देने की शक्ति-(1) जहां केंद्रीय सरकरा ऐसा करना समीचीन समझती है वहां वह, लिखित आदेश द्वारा, परिषद् को ऐसी अवधि के भीतर, जो वह इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, कोई विनियम बनाने या पहले से बनाए गए किन्हीं विनियमों में संशोधन करने अथवा उनको प्रतिसंहृत करने का निदेश दे सकेगी ।
(2) यदि परिषद् विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर ऐसे आदेश का पालन करने में असफल रहती है या पालन करने की उपेक्षा करती है तो केंद्रीय सरकार स्वयं विनियम बना सकेगी या परिषद् द्वारा बनाए गए विनियमों में संशोधन कर सकेगी अथवा उन्हें प्रतिसंहृत कर सकेगी ।
58. नियमों तथा विनियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना-इस अधिनिमय के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह नियम या विनियम ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
59. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनिमय के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों तथा जो कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत होते हों:
परंतु इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात्, इस धारा के अधीन कोई आदेश नहीं किया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।
अनुसूची
(धारा 31 देखिए)
भाग 1
व्यवसायरत संस्थान के सदस्यों के संबंध में वृत्तिक अवचार
किसी व्यवसायरत बीमांकक को वृत्तिक अवचार का दोषी समझा जाएगा, यदि वह-
(1) किसी व्यक्ति को अपने नाम में बीमांकक के रूप में व्यवसाय करने के लिए अनुज्ञात करता है, जब तक कि ऐसा व्यक्ति व्यवसायरत बीमांकक न हो और वह उसके साथ भागीदारी में या स्वयं के द्वारा नियोजित न हो; या
(2) कर्मचारी को परिलब्धि के रूप में संदाय करता है, उस संस्थान के किसी सदस्य या भागीदार या निवृत्त भागीदार या मृत भागीदार के विधिक प्रतिनिधि से भिन्न किसी व्यक्ति को प्रत्यक्षतः या परोक्षतः अपने वृत्तिक कारबार की फीस या फायदे में कोई हिस्सा, कमीशन या दलाली का संदाय करता है या उसे अनुज्ञात करता है अथवा संदाय या अनुज्ञात करने के लिए सहमत होता है; या
(3) किसी व्यवसायरत बीमांकक से भिन्न किसी व्यक्ति या भारत से बाहर निवासी किसी व्यक्ति के साथ, जो विदेश में अपने निवास के कारण धारा 6 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन सदस्य के रूप में प्रवेश दिए जाने के लिए हकदार नहीं रहता है या ऐसी भागीदारी की अनुज्ञा देने के प्रयोजन के लिए सरकार या परिषद् द्वारा जिसकी अर्हताओं को मान्यता दी जाती है, कोई भागीदारी करता है, परंतु बीमांकक भारत के भीतर और भारत से बाहर दोनों ही स्थितियों में भागीदारी की फीस या फायदे में हिस्सा बंटाता हो; या
(4) या तो किसी ऐसे व्यक्ति की सेवाओं के माध्यम से जो ऐसे बीमांकक का कर्मचारी नहीं है या जो उसका भागीदार होने के लिए अर्हित नहीं है अथवा ऐसे साधनों द्वारा जो किसी बीमांकक के लिए खुले नहीं हैं, कोई वृत्तिक कारबार अभिप्राप्त करता है; या
(5) बीमांकक के रूप में, किसी और अन्य बीमांकक द्वारा पहले से धारित ऐसा कोई समनुदेशन उसको कोई पूर्व लिखित संसूचना दिए बिना स्वीकार करता है; या
(6) ऐसे किसी वृत्तिक नियोजन की बाबत कोई फीस प्रभारित करता है या प्रभारित करने की प्रस्थापना करता है, स्वीकार करता है या स्वीकार करने की प्रस्थापना करता है जो फायदे के प्रतिशत पर आधारित है या जो, जैसा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी विनियम के अधीन अनुज्ञात है, उसके सिवाय ऐसे नियोजन की समाप्ति पर या उसके परिणामस्वरूप आकस्मिक रूप से प्राप्त है; या
(7) बीमांककों की वृत्ति से भिन्न किसी कारबार या उपजीविका में लगता है जब तक कि उसे इस प्रकार के कार्य में लगने के लिए परिषद् द्वारा अनुमति न दे दी गई हो:
परंतु इसमें अंतर्विष्ट कोई बात किसी बीमांकक को किसी कंपनी का निदेशक बनने से निरर्हित नहीं करेगी; या
(8) कुछ अन्य व्यवसायरत बीमांककों द्वारा पूर्व में धारित किसी स्थिति को ऐसी दशाओं में एक बीमांकक के रूप में स्वीकार करता है जिससे उस स्थिति का अधोरदन होता है; या
(9) ऐसे व्यक्ति को, जो उक्त संस्थान का व्यवसायरत सदस्य नहीं है या किसी ऐसे सदस्य को, जो उसका भागीदार नहीं है, किसी मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण पर उसकी ओर से या उसकी फर्म की ओर से हस्ताक्षर करने के लिए अनुज्ञात करता है; या
(10) उसको बीमांकक के रूप में नियोजित करने वाले उसके मुवक्किल से भिन्न किसी व्यक्ति को अपने वृत्तिक नियोजन के अनुक्रम में अर्जित किसी सूचना को ऐसे मुवक्किल की सहमति के बिना या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अपेक्षित से भिन्न किसी सूचना को प्रकट करता है; या
(11) किसी मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण को अपने नाम से या अपनी फर्म के नाम से प्रमाणित करता है या प्रस्तुत करता है जब तक कि ऐसे विवरण और संबंधित अभिलेखों की परीक्षा उसके द्वारा या उसके किसी भागीदार या उसकी फर्म में किसी कर्मचारी द्वारा या किसी अन्य व्यवसायरत बीमांकक द्वारा न की गई हो; या
(12) ऐसे किसी कारबार या किसी उद्यम की मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण के बारे में अपनी राय व्यक्त करता है जिसमें उसका, उसकी फर्म का या उसकी फर्म के किसी भागीदार का सारवान् हित है, जब तक कि उसने अपनी रिपोर्ट में उस हित का प्रकटन न कर दिया हो; या
(13) मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण में उसे ज्ञात किसी महत्वपूर्ण तथ्य को प्रकट करने में असफल रहता है किंतु जिसका प्रकटन उक्त मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण को अभ्रामक बनाने के लिए आवश्यक है जहां उसका संबंध उसकी वृत्तिक हैसियत में ऐसी मू्ल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण से है; या
(14) ऐसे किसी महत्वपूर्ण गलत कथन की, जिसकी उसे जानकारी है कि वह मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय कथन में आ गया है, रिपोर्ट करने में असफल रहता है, जिसका उसकी वृत्तिक हैसियत में उससे संबंध है; या
(15) अपने वृत्तिक कर्तव्यों के पालन में अत्यधिक उपेक्षावान है; या
(16) उसके द्वारा या उसकी ओर से तैयार की गई किसी मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण में अंतर्विष्ट किसी विषय के संबंध में कोई राय बनाने के लिए आवश्यक पर्याप्त जानकारी अभिप्राप्त करने में असफल रहता है; या
(17) उसके द्वारा या उसकी ओर से तैयार की गई किसी मूल्यांकन रिपोर्ट या वित्तीय विवरण में, उन परिस्थितियों में लागू साधारणतया स्वीकार प्रक्रिया या वृत्तिक कार्य से तात्त्विक रूप से विचलन की ओर ध्यान आकर्षित करने में असफल रहता है ।
भाग 2
संस्थान के सेवारत सदस्यों के संबंध में वृत्तिक अवचार
संस्थान के किसी सदस्य को (व्यवसायरत सदस्य से भिन्न) वृत्तिक अवचार का दोषी समझा जाएगा यदि वह किसी कंपनी, फर्म या व्यक्ति का कर्मचारी होते हुए, -
(1) किसी व्यक्ति को प्रत्यक्षतः या परोक्षतः उसके द्वारा किए गए नियोजन की उपलब्धियों में से कोई हिस्सा संदत्त करता है या संदाय करने को अनुज्ञात करता है या संदाय करने की सहमति देता है; या
(2) कमीशन या परितोषण के रूप में फीस, फायदों या अभिलाभों का कोई भाग स्वीकार करता है या स्वीकार करने के लिए सहमति देता है; या
(3) अपने नियोजन के अनुक्रम में अर्जित गोपनीय सूचना, सिवाय वहां के और तब के प्रकट करता है जहां और जब विधि द्वारा ऐसा करना अपेक्षित हो या उसके नियोजक द्वारा अनुज्ञात किए जाने के सिवाय प्रकट करता हो ।
भाग 3
संस्थान के सदस्यों के संबंध में साधारणतया वृत्तिक अवचार
संस्थान के किसी सदस्य को, चाहे वह व्यवसायरत हो अथवा नहीं, वृत्तिक अवचार का दोषी समझा जाएगा, यदि वह, -
(1) परिषद् को प्रस्तुत किए जाने वाले किसी विवरण, विवरणी या प्ररूप में ऐसी विशिष्टियों को सम्मिलित करता है जिनके बारे में वह जानता है कि वे मिथ्या हैं; या
(2) संस्थान का अध्येता सदस्य न होते हुए भी स्वयं संस्थान के अध्येता सदस्य के रूप में कार्य करता है; या
(3) परिषद् या उसकी समितियों में से किसी के द्वारा मांगी गई सूचना प्रदाय नहीं करता है या उनके द्वारा मांग की गई अपेक्षाओं का पालन नहीं करता है; या
(4) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए विनियमों के उपबंधों में से किसी का या धारा 19 की उपधारा (2) के खंड (झ) के अधीन परिषद् द्वारा जारी किन्हीं मार्गदर्शनों का उल्लंघन करता है; या
(5) ऐसे किसी अन्य कार्य या लोप का दोषी है जो परिषद् द्वारा विहित किया जाए ।
भाग 4
संस्थान के सदस्य के संबंध में साधारणतः अन्य अवचार
संस्थान का सदस्य, चाहे वह व्यवसायरत हो अथवा नहीं, अन्य अवचार का दोषी समझा जाएगा, यदि-
(अ) (1) वह किसी सिविल या दंड न्यायालय द्वारा ऐसे किसी अपराध का, जो कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, दंडनीय है, दोषी अभिनिर्धारित किया गया है;
(2) परिषद् की राय में, उसने अपने कार्य के परिणामस्वरूप, चाहे वह कार्य उसके वृत्तिक कार्य से संबंधित है अथवा नहीं, उस वृत्ति या संस्थान की प्रतिष्ठा को गिराया है;
(आ) वह किसी सिविल या दंड न्यायालय द्वारा ऐसे किसी अपराध का, जो कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की होगी, दंडनीय है, दोषी अभिनिर्धारित किया गया है ।
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