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सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 ( Protection Of Civil Rights Act, 1955 )


 

सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955

(1955 का अधिनियम संख्यांक 22)

[8 मई, 1955]

[अस्पृश्यता का प्रचार और आचरण करने] और उससे उपजी किसी निर्योग्यता

को लागू करने और, उससे संबंधित बातों के लिए दंड

 विहित करने के लिए

अधिनियम

भारण गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: -

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) यह अधिनियम [सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम,] 1955 कहा जा सकेगा  

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है  

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे  

2. परिभाषाए-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित हो, -

 [() सिविल अधिकार" से कोई ऐसा अधिकार अभिप्रेत है, जो संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता" का अन्त कर दिए जाने के कारण किसी व्यक्ति को प्रोद्भूत होता है;]

 [(कक)] होटल" के अन्तर्गत जलपान-गृह, भोजनालय, बासा, कॉफी हाउस और केफे भी हैं;

 [() स्थान" के अन्तर्गत गृह, भवन और अन्य संरचना तथा परिसर हैं और उसके अन्तर्गत तम्बू, यान और जलयान भी हैं;] 

() लोक मनोरंजन-स्थान" के अन्तर्गत कोई भी ऐसा स्थान है जिसमें जनता को प्रवेश करने दिया जाता है और जिसमें मनोरंजन की व्यवस्था की जाती है या मनोरंजन किया जाता है  

स्पष्टीकरण-मनोरंजन" के अन्तर्गत कोई प्रदर्शनी, तमाशा, खेलकूद, क्रीड़ा और किसी अन्य प्रकार का आमोद   भी है;

() लोक पूजा-स्थान" से, चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, ऐसा स्थान अभिप्रेत है, जो धार्मिक-पूजा के सार्वजनिक स्थान के तौर पर उपयोग में लाया जाता है या जो वहां कोई धार्मिक सेवा या प्रार्थना करने के लिए, किसी धर्म को मानने वाले या किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी विभाग के व्यक्तियों को साधारणतः समर्पित किया गया है या उनके द्वारा साधारणतः उपयोग में लाया जाता है, [और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित हैं

(I) ऐसे किसी स्थान के साथ अनुलग्न या संलग्न सब भूमि और गौण पवित्र स्थान

(II) निजी स्वामित्व का कोई पूजा-स्थान जिसका स्वामी वस्तुतः उसे लोक पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है; और 

(III) ऐसे निजी स्वामित्व वाले पूजा-स्थान से अनुलग्न ऐसी भूमि या गौण पवित्र स्थान जिसके स्वामी उसे लोक धार्मिक पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है;]

5[(घक) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(घख) अनुसूचित जाति" का वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (24) में उसे दिया गया है;]

() दुकान" से कोई ऐसा परिसर अभिप्रेत है, जहां वस्तुओं का या तो थोक या फुटकर या थोक और फुटकर दोनों प्रकार का विक्रय किया जाता है 8[और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित हैं: -

(I) कोई ऐसा स्थान जहां फेरी वाले या विक्रेता द्वारा या चलते-फिरते यान या गाड़ी से माल का विक्रय किया जाता है

(II) लांड्री और बाल काटने का सैलून

(III) कोई अन्य स्थान जहां ग्राहकों की सेवा की जाती है

3. धार्मिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड-जो कोई किसी व्यक्ति को, -

() किसी ऐसे लोक-पूजा स्थान में प्रवेश करने से, जो उसी धर्म को मामने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए खुला हो, जिसका वह व्यक्ति हो, अथवा 

() किसी लोक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा, किसी पुनीत तालाब, कुएं, जलस्रोत या [जल-सरणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान] उसी रीति से और उसी विस्तार तक करने से, जिस रीति से और जिस विस्तार तक ऐसा करना उसी धर्म को मानने वाले 1 या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए अनुज्ञेय हो, जिसका वह व्यक्ति हो,

अस्पृश्यता" के आधार पर निवारित करेगा [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा]  

स्पष्टीकरण-इस धारा और धारा 4 के प्रयोजनों के लिए बौद्ध, सिक्ख या जैन धर्म को मामने वाले व्यक्ति या हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति, जिनके अंतर्गत वीरशैव, लिंगायत, आदिवासी, ब्राह्मो समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और स्वामी नारायण संप्रदाय के अनुयायी भी हैं, हिन्दू समझे जाएंगे

4. सामाजिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड-जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध निम्नलिखित के सम्बन्ध में कोई निर्योग्यता अस्पृश्यता" के आधार पर लागू करेगा वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के [कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा, -

(I) किसी दुकान, लोक उपाहार-गृह, होटल या लोक मनोरंजन-स्थान में प्रवेश करना; अथवा 

(II) किसी लोक उपाहार-गृह, होटल, धर्मशाला, सराय या मुसाफिरखाने में, जनसाधारण या 4[उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के, जिसका वह व्यक्ति हो, उपयोग के लिए रखे गए किन्हीं बर्तनों और अन्य वस्तुओं का उपयोग करना; अथवा 

(III) कोई वृत्ति करना या उपजीविका, [या किसी काम में नियोजन]; अथवा

(IV) ऐसी किसी नदी, जलधारा, जलस्रोत, कुएं, तालाब, हौज, पानी के नल या जल के अन्य स्थान का या किसी स्नान घाट, कब्रिस्तान या श्मशान, स्वच्छता सम्बन्धी सुविधा, सड़क, या रास्ते या लोक अभिगम के अन्य स्थान का जिसका उपयोग करने के लिए या जिसमें प्रवेश करने के जनता के अन्य सदस्य, या 4[उसके किसी विभाग के] व्यक्ति जिसका वह व्यक्ति हो, अधिकारवान हों, उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा 

(V) राज्य निधियों से पूर्णतः या अंशतः पोषित पूर्त या लोक प्रयोजन के लिए उपयोग में लाए जाने वाले या जनसाधारण के या 4[उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के, जिसका वह व्यक्ति हो, उपयोग के लिए समर्पित स्थान का, उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा 

(VI) जनसाधारण या 4[उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के, जिसका वह व्यक्ति हो, फायदे के लिए सृष्ट किसी पूर्त न्यास के अधीन किसी फायदे का उपभोग करना; अथवा 

(VII) किसी सार्वजनिक सवारी का उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा 

(VIII) किसी भी परिक्षेत्र में, किसी निवास-परिसर का सन्निर्माण, अर्जन या अधिभोग करना; अथवा

(IX) किसी ऐसी धर्मशाला, सराय या मुसाफिरखाने का, जो जनसाधारण या 4[उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के लिए, जिसका वह व्यक्ति हो, खुला हो उपयोग ऐसे व्यक्ति के रूप में करना; अथवा 

(X) किसी सामाजिक या धार्मिक रुढ़ि, प्रथा या कर्म का अनुपालन या [किसी धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक जलूस में भाग लेना या ऐसा जुलूस निकालना]; अथवा 

(XI) आभूषणों और अलंकारों का उपयोग करना  

 [स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, कोई निर्योग्यता लागू करना" के अन्तर्गत अस्पृश्यता" के आधार पर विभेद करना है ]

5. अस्पतालों, आदि में व्यक्तियों को प्रवेश करने देने से इन्कार करने के लिए दण्ड-जो कोई अस्पृश्यता" के आधार पर

() किसी व्यक्ति को किसी अस्पताल, शिक्षा-संस्था, या ॥। किसी छात्रवास में, यदि वह अस्पताल, औषधालय, शिक्षा-संस्था या छात्रावास जन-साधारण या उसके किसी विभाग के फायदे के लिए स्थापित हो या चलाया जाता हो, प्रवेश करने देने से इन्कार करेगा, अथवा

() पूर्वोक्त संस्थाओं में से किसी में प्रवेश के पश्चात् ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कोई विभेदपूर्ण कार्य करेगा

 [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ]

6. माल बेचने या सेवा करने से इन्कार के लिए दण्ड-जो कोई उसी समय और स्थान पर और वैसे ही निबन्धनों और शर्तों पर, जिन पर कारबार के साधारण अनुक्रम में अन्य व्यक्तियों को ऐसा माल बेचा जाता है या उनकी सेवा की जाती है किसी व्यक्ति को कोई माल बेचने या उसकी सेवा करने से अस्पृश्यता" के आधार पर इन्कार करेगा,  [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ]

7. अस्पृश्यता" उद्भूत अन्य अपराधों के लिए दण्ड-(1) जो कोई

() किसी व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 17 के अधीन अस्पृश्यता" के अन्त होने से उसको प्रोद्भूत होने वाले किसी अधिकार का प्रयोग करने से निवारित करेगा, अथवा 

() किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अधिकार के प्रयोग से उत्पीड़ित करेगा, क्षति पहुंचाएगा, क्षुब्ध करेगा, बाधा डालेगा या बाधा कारित करेगा या कारित करने का प्रयत्न करेगा या किसी व्यक्ति के, कोई ऐसा अधिकार प्रयोग करने के कारण उसे उत्पीड़ित करेगा, क्षति पहुंचाएगा, क्षुब्ध करेगा या उसका बहिष्कार करेगा, अथवा 

() किसी व्यक्ति या व्यक्ति-वर्ग या जनसाधारण को बोले गए या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा किसी भी रूप में अस्पृश्यता" का आचरण करने के लिए उद्दीप्त या प्रोत्साहित करेगा, [अथवा]

 5[() अनुसूचित जाति के सदस्य का अस्पृश्यता" के आधार पर अपमान करेगा, या अपमान करने का प्रयत्न करेगा,]

 [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा]

 [स्पष्टीकरण 1]-किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह अन्य व्यक्ति का बहिष्कार करता है, जब वह

() ऐसे अन्य व्यक्ति को कोई गृह भूमि पट्टे पर देने से इन्कार करता है या ऐसे अन्य व्यक्ति को किसी गृह या भूमि के उपयोग या अधिभोग के लिए अनुज्ञा देने से इन्कार करता है या ऐसे अन्य व्यक्ति के साथ व्यवहार करने से, उसके लिए भाड़े पर काम करने से, या उसके साथ कारबार करने से या उसको कोई रूढ़िगत सेवा करने से या उससे कोई रूढ़िगत सेवा लेने से इन्कार करता है या उक्त बातों में से किसी को ऐसे निबन्धनों पर करने से इन्कार करता है, जिन पर ऐसी बातें कारबार से साधारण अनुक्रम से सामान्यतः की जाती; अथवा 

() ऐसे सामाजिक, वृत्तिक या कारबारी सम्बन्धों से विरत रहता है, जैसे वह ऐसे अन्य व्यक्ति के साथ साधारणतया बनाए रखता  

5[स्पष्टीकरण 2-खण्ड () के प्रयोजनों के लिए यदि कोई व्यक्ति

(I) प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः अस्पृश्यता" का या किसी रूप में इसके आचरण का प्रचार करेगा; अथवा 

(II) किसी रूप में अस्पृश्यता" के आचरण को, चाहे ऐतिहासिक, दार्शनिक या धार्मिक आधारों पर या जाति व्यवस्था की किसी परम्परा के आधार पर या किसी अन्य आधार पर न्यायोचित ठहराएगा,

तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि वह अस्पृश्यता" के आचरण को उद्दीप्त या प्रोत्साहित करता है

 [(1) जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर या उसकी सम्पत्ति के विरुद्ध कोई अपराध उसके द्वारा किसी ऐसे अधिकार के, जो संविधान के अनुच्छेद 17 के अधीन अस्पृश्यता" का अन्त करने के कारण उसे प्रोद्भूत हुआ है, प्रयोग किए जाने के प्रतिशोध के रूप में या बदला लेने की भावना से करेगा, वह, जहां अपराध दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है, वहां, कम से कम दो वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा ]

(2) जो कोई इस आधार पर कि ऐसे व्यक्ति ने अस्पृश्यता" का आचारण करने से इन्कार किया है या ऐसे व्यक्ति ने इस अधिनियम के उद्देश्यों को अग्रसर करने में कोई कार्य किया है, -

(I) अपने समुदाय के या उसके किसी विभाग के किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अधिकार या विशोषाधिकार से वंचित करेगा जिसके लिए ऐसा व्यक्ति ऐसे समुदाय या विभाग के सदस्य के तौर पर हकदार हो, अथवा 

(II) ऐसे व्यक्ति को जातिच्युत करने में कोई भाग लेगा

 [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा]

[7. विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम कब अस्पृश्यता" का आचरण समझा जाएगा-(1) जो कोई किसी व्यक्ति को सफाई करने या बुहारने या कोई पशु शव हटाने या किसी पशु की खाल खींचने या नाल काटने या इसी प्रकार का कोई अन्य काम करने के लिए अस्पृश्यता" के आधार पर मजबूर करेगा, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अस्पृश्यता" से उद्भूत निर्योग्यता को लागू किया है  

(2) जिस किसी के बारे में उपधारा (1) के अधीन यह समझा जाता है कि उसने अस्पृश्यता" से उद्भूत निर्योग्यता को लागू किया है, वह कम से कम तीन मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कि कम से कम एक सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा  

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए मजबूर करने" के अन्तर्गत सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार करने की धमकी भी है

8. कुछ दशाओं में अनुज्ञप्तियों का रद्द या निलम्बित किया जाना-जबकि वह व्यक्ति, जो धाराके अधीन किसी अपराध का दोषसिद्ध हो, किसी ऐसी वृत्ति, व्यापार, आजीविका या नियोजन के बारे में जिसके सम्बन्ध में अपराध किया गया हो, कोई अनुज्ञप्ति किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रखता हो, तब उस अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय किसी अन्य ऐसी शास्ति पर, जिससे वह व्यक्ति उस धारा के अधीन दण्डनीय हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निदेश दे सकेगा कि वह अनुज्ञप्ति रद्द होगी या ऐसी कालावधि के लिए, जितनी न्यायालय ठीक समझे, निलम्बित रहेगी, और अनुज्ञप्ति को इस प्रकार रद्द या निलम्बित करने वाले न्यायालय का प्रत्येक आदेश ऐसे प्रभावी होगा, मानो वह आदेश उस प्राधिकारी द्वारा दिया गया हो; जो किसी ऐसी विधि के अधीन अनुज्ञप्ति को रद्द या निलम्बित करने के लिए सक्षम था

स्पष्टीकरण-इस धारा में अनुज्ञप्ति" के अन्तर्गत अनुज्ञापत्र या अनुज्ञा भी है  

9. सरकार द्वारा किए गए अनुदानों का पुनर्ग्रहण या निलम्बन-जहां कि किसी ऐसे लोक पूजा-स्थान  [या किसी शिक्षा संस्थान या छात्रावास] का प्रबन्धक या न्यासी जिसे सरकार से भूमि या धन का अनुदान प्राप्त हो, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ हो और ऐसी दोषसिद्धि किसी अपील या पुनरीक्षण में उलटी या अभिखण्डित की गई हो वहां, यदि सरकार की राय में उस मामले की परिस्थितियों में ऐसा करने के लिए, समुचित आधार हों तो वह ऐसे सारे अनुदान या उसके किसी भाग के निलम्बन या पुनर्ग्रहण के लिए निदेश दे सकेगी  

10. अपराध का दुष्प्रेरण-जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा

                 [स्पष्टीकरण-लोक सेवक के बारे में, जो इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के अन्वेषण में जानबूझकर उपेक्षा करता है, यह समझा जाएगा कि उसने इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण किया है ]

 [10. सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की राज्य सरकार की शक्ति-(1) यदि विहित रीति में जांच करने के पश्चात्, राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी क्षेत्र के निवासी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के किए जाने से सम्बन्धित हैं, या उसका दुष्प्रेरण कर रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने से सम्बन्धित व्यक्तियों को संश्रय दे रहे हैं, या अपराधी या अपराधियों का पता लगाने या पकड़वाने में अपनी शक्ति के अनुसार सभी प्रकार की सहायता नहीं दे रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने के महत्वपूर्ण साक्ष्य को दबा रहे हैं, तो राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे निवासियों पर सामूहिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगी और जुर्माने का ऐसे निवासियों के बीच प्रभाजन कर सकेगी जो सामूहिक रूप से ऐसा जुर्माना देने के लिए दायी हैं और यह कार्य राज्य सरकार वहां के निवासियों की व्यक्तिगत क्षमता के सम्बन्ध में अपने निर्णय के अनुसार करेगी और ऐसा प्रभाजन कराने में राज्य सरकार यह भी तय कर सकेगी कि एक हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब ऐसे जुर्माने के कितने भाग का संदाय करेगा

परन्तु किसी निवासी के बारे में प्रभाजित जुर्माना तब तक वसूल नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसके द्वारा उपधारा (3) के अधीन फाइल की गई अर्जी का निपटारा नहीं कर दिया जाता

(2) उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना की उद्घोषणा ऐसे क्षेत्र में ढोल पीट कर या ऐसी अन्य रीति से की जाएगी, जिसे राज्य सरकार उक्त क्षेत्र के निवासियों को सामूहिक जुर्माने का अधिरोपण सूचित करने के लिए उन परिस्थितियों में सर्वोत्तम समझे  

(3) () उपधारा (1) के अधीन सामूहिक जुर्माने के अधिरोपण से या प्रभाजन के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति विहित कालावधि के अन्दर राज्य सरकार के समक्ष या ऐसे अन्य प्राधिकारी के समक्ष जिसे वह सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, ऐसे जुर्माने से छूट पाने के लिए या प्रभाजन के आदेश में परिवर्तन के लिए अर्जी फाइल कर सकेगा:

 परन्तु ऐसी अर्जी फाइल करने के लिए कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी

() राज्य सरकार या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी अर्जीदार को सुनवाई के लिए युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के पश्चात् ऐसा आदेश पारित करेगा, जो वह ठीक समझे

परन्तु इस धारा के अधीन छूट दी गई या कम की गई जुर्माने की रकम किसी व्यक्ति से वसूलीय नहीं होगी और किसी क्षेत्र के निवासियों पर उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित कुल जुर्माना उस विस्तार तक कम किया गया समझा जाएगा  

(4) उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के शिकार व्यक्तियों को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसकी राय में उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट व्यक्तियों के वर्ग में नहीं आता है, उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित सामूहिक जुर्माने से या उसके किसी प्रभाग का संदाय करने के दायित्व से छूट दे सकेगी  

(5) किसी व्यक्ति द्वारा (जिसके अन्तर्गत हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब है) संदेय सामूहिक जुर्माने का प्रभाग, न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माने की वसूली के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) द्वारा उपबन्धित रीति में ऐसे वसूल किया जा सकेगा मानो ऐसा प्रभाग, मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो

11. पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर वर्धित शास्ति-जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का या ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण का पहले दोषसिद्ध हो चुकने पर किसी ऐसे अपराध या दुष्प्रेरण का पुनः दोषसिद्ध होगा, [वह दोषसिद्धि पर

() द्वितीय अपराध के लिए कम से कम छह मास और अधिक से अधिक एक वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम दो सौ रुपए और अधिक से अधिक पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा

() तृतीय अपराध के लिए या तृतीय अपराध के पश्चात्वर्ती किसी अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक दो वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम पांच सौ रुपए और अधिक से अधिक एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ]

12. कुछ मामलों में न्यायालयों द्वारा उपधारणा-जहां कि इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाला कोई कार्य ॥। अनुसूचित जाति के सदस्य के सम्बन्ध में किया जाए वहां, जब तक कि प्रतिकूल साबित किया जाए, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि वह कार्य अस्पृश्यता" के आधार पर किया गया है   

13.सिविल न्यायालयों की अधिकारिता की परिसीमा-(1) यदि सिविल न्यायालय के समक्ष के किसी वाद या कार्यवाही में अन्तर्ग्रस्त दावा या किसी डिक्री या आदेश का दिया जाना या किसी डिक्री या आदेश का पूर्णतः या भागतः निष्पादन इस अधिनियम के उपबन्धों के किसी प्रकार प्रतिकूल हो तो ऐसा न्यायालय ऐसा कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करेगा या चालू रखेगा और ऐसी कोई डिक्री या आदेश देगा या ऐसी डिक्री या आदेश का पूर्णतः या भागतः निष्पादन करेगा  

(2)  कोई न्यायालय किसी बात के न्याय निर्णयन में या किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, किसी व्यक्ति पर अस्पृश्यता" के आधार पर कोई निर्योग्यता अधिरोपित करने वाली किसी रूढ़ि या प्रथा को मान्यता नहीं देगा

14. कम्पनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कम्पनी हो तो हर ऐसा व्यक्ति, जो अपराध किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उस कम्पनी के प्रति उत्तरदायी था, उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा:

परन्तु इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी भी बात से कोई ऐसा व्यक्ति दण्ड का भागी होगा, यदि वह यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या ऐसे अपराध का किया जाना निवारित करने के लिए उसने सब सम्यक् तत्परता बरती थी

(2) उपधारा (1) में अन्तविष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी के किसी निदेशक या प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सम्मत्ति से किया गया हो, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा, और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए

() कम्पनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है, और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; तथा 

() फर्म के सम्बन्ध में निदेशक" से फर्म का भागीदार अभिप्रेत है

 [14. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-(1) कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में, जो इस अधिनियम के अधिन सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशयित हो, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध होगी  

(2) कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसे नुकसान के बारे में, जो इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के कारण हुआ हो, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध होगी ]

 [15. अपराध संज्ञेय और संक्षेपतः विचारणीय होंगे-(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय हर अपराध संज्ञेय होगा और ऐसे हर अपराध पर सिवाय उसके जो कम से कम तीन मास से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय है, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त संहिता में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार संक्षेपतः विचार किया जा सकेगा  

(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, जब किसी लोक सेवक के बारे में यह अभिकथित है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के दुष्प्रेरण का अपराध अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करते हुए या कार्य करना तात्पर्यित करते हुए, किया है तब कोई भी न्यायालय ऐसे दुष्प्रेरण के अपराध का संज्ञान, -

() संघ के कार्यों के सम्बन्ध में नियोजित व्यक्ति की दशा में, केन्द्रीय सरकार की; और 

() किसी राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में नियोजित व्यक्ति की दशा में उस राज्य सरकार की,

पूर्व मंजूरी के बिना नहीं करेगा  

15. अस्पृश्यता" का अन्त करने से प्रोद्भूत अधिकारों का सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाना सुनिश्चित करने का राज्य सरकार का कर्तव्य-(1) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए, राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हों, कि अस्पृश्यताका अन्त करने से उद्भूत होने वाले अधिकार अस्पृश्यता" से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीडित व्यक्तियों को उपलब्ध किए जाते हैं और वे उनका फायदा उठाते हैं

(2) विशिष्टतः और उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं, अर्थात्: -

(I) पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था जिसके अन्तर्गत अस्पृश्यता" से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीड़ित व्यक्तियों को विधिक सहायता देना है, जिससे कि वे ऐसे अधिकारों का फायदा उठा सकें;

(II) इस अधिनियम के उपबन्धों के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या ऐसे अभियोजनों का पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति

(III) इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना;

(IV) ऐसे समुचित स्तरों पर समितियों की स्थापना को राज्य सरकार ऐसे उपायों के निरूपण या उन्हें कार्यान्वित करने में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझे;

(V) इस अधिनियम के उपबन्धों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यकरण के सर्वेक्षण की समय-समय पर व्यवस्था करना

(VI) उन क्षेत्रों का अभिनिर्धारण जहां व्यक्ति अस्पृश्यता" से उद्भूत किसी निर्योग्यता से पीड़ित है, और ऐसे उपायों को अपनाना जिनसे ऐसे क्षेत्रों में ऐसी निर्योग्यता का दूर किया जाना सुनिश्चित हो सके

(3) केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों द्वारा उपधारा (1) के अधीन किए गए उपायों में समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसे कदम उठाएगी जो आवश्यक हों  

(4) केन्द्रीय सरकार हर वर्ष संसद् के प्रत्येक सदन के पटल पर ऐसे उपायों की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी जो उसने और राज्य सरकारों ने इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में किए हैं ]

16. अधिनियम अन्य विधियों का अध्यारोहण करेगा-इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, इस अधिनियम के उपबन्ध, किसी तत्समय प्रवृत्त विधि में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी या किसी रूढ़ि या प्रथा अथवा किसी ऐसी विधि अथवा किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी का किसी डिक्री या आदेश के आधार पर प्रभावी किसी लिखत के होते हुए भी प्रभावी होंगे  

 [16. अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 का चौदह वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को लागू होना-अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के उपबन्ध किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होंगे, जो चौदह वर्ष से अधिक आयु का है और इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने का दोषी पाया जाता है  

16. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबन्धों का पालन करने के लिए, नियम बना सकेगी  

(2) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रो में पूरी हो सकेगी यदि उस सत्र के, या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं, तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप से ही प्रभावी होगा यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए, तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा

17. निरसन-अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियां, जहां तक कि वे या उनमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों में से कोई इस अधिनियम या उसमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों में से किसी के समान है या उसके विरुद्ध है, एतद्द्वारा निरसित की जाती है

अनुसूची

(धारा 17 देखिए)

1. बिहार हरिजन (रिमूवल आफ सिविल डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1949 (1949 का बिहार अधिनियम संख्यांक 19)  

2. बाम्बे हरिजन (रिमूवल आफ सोशल डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1946 (1947 का मुंबई अधिनियम संख्यांक 1)  

3. बाम्बे हरिजन टैम्पल एन्ट्री ऐक्ट, 1947 (1947 का मुंबई अधिनियम संख्यांक 35)  

4. सैंट्रल प्रोविन्सेज एण्ड बरार शैड्यूल्ड कास्ट्स (रिमूवल आफ सिविल डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1947 (1947 का मध्य प्रान्त और बरार अधिनियम संख्यांक 24)

5. सैन्ट्रल प्रोविन्सेज एण्ड बरार टैम्पल एन्ट्री आथोराइजेशन ऐक्ट, 1947 (1947 का मध्य प्रान्त और बरार अधिनियम संख्यांक 41)

6. ईस्ट पंजाब (रिमूवल आफ रिलिजस एण्ड सोशल डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1948 (1948 का पूर्वी पंजाब अधिनियम संख्यांक 16)

7. मद्रास रिमूवल आफ सिविल डिसेबिलिटीज ऐक्ट, 1938 (1938 का मद्रास अधिनियम संख्यांक 21)  

8. उड़ीसा रिमूवल आफ सिविल डिसेबिलिटीज ऐक्ट, 1946 (1946 का उड़ीसा अधिनियम संख्यांक 11)  

9. उड़ीसा टैम्पल एन्ट्री आथोराइजेशन ऐक्ट, 1948 (1948 का उड़ीसा अधिनियम संख्यांक 11)  

10. यूनाइटेड प्रोविन्सेज रिमूवल आफ सोशल डिसेबिलिटीज ऐक्ट, 1947 (1947 का संयुक्त प्रांत अधिनियम संख्यांक 14)  

11. वेस्ट बंगाल हिन्दू सोशल डिसेबिलिटीज रिमूवल ऐक्ट, 1948 (1948 का पश्चिमी बंगाल अधिनियम संख्यांक 37)  

12. हैदराबाद हरिजन टैम्पल एन्ट्री रेग्यूलेशन, 1358 (1358 फसली का अधिनियम संख्यांक 55)  

13. हैदराबाद हरिजन (रिमूवल आफ सोशल डिसेबिलिटीज) रेग्यूलेशन, 1358 एफ० (1358 फसली का अधिनियम संख्यांक 56)  

14. मध्य भारत हरिजन अयोग्यता निवारण विधान, संवत् 2005 (1949 का मध्य भारत अधिनियम संख्यांक 15)

15. रिमूवल आफ सिविल डिसेबिलिटीज ऐक्ट, 1943 (1943 का मैसूर अधिनियम संख्यांक 42)  

16. मैसूर टैम्पल ऐंट्री आथोराइजेशन ऐक्ट, 1948 (1948 का मैसूर अधिनियम संख्यांक 14)

17. सौराष्ट्र हरिजन (रिमूवल आफ सोशल डिसेबिलिटीज) आर्डिनेन्स (1948 का संख्यांक 40)  

18. ट्रावनकोर-कोचीन रिमूवल आफ सोशल डिसेबिलिटीज ऐक्ट, 1125 के (1125 का ट्रावनकोर-कोचीन अधिनियम संख्यांक 3)

19. ट्रावनकोर-कोचीन टैम्पल एन्ट्री (रिमूवल आफ डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1950 (1950 का ट्रावनकोर-कोचीन अधिनियम संख्यांक 27)  

20. कुर्ग शेड्यूल्ड कास्ट्स (रिमूवल आफ सिविल एन्ड सोशल डिसेबिलिटीज) ऐक्ट, 1949 (1949 का कुर्ग अधिनियम संख्यांक 1)

21. कुर्ग टैम्पल ऐंट्री आथोराइजेशन ऐक्ट, 1949 (1949 का कुडुगू अधिनियम संख्यांक 2)

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