सुप्रीम कोर्ट में 32 साल पहले एक याचिका दायर हुई थी, उसकी सुनवाई के लिए अब सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच बैठी है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने पुरानी और जर्जर असुरक्षित इमारतों को अधिग्रहित करने के लिए एक कानून बनाया है क्योंकि किरायेदार हट नहीं रहे और मकान मालिकों के पास मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए टिप्पणी की कि क्या निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र के कानून के खिलाफ भूस्वामियों द्वारा दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। वह 9 न्यायाधीशों वाली एक संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं, जो याचिकाओं से उत्पन्न होने वाले जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है।

मुंबई सघन आबादी वाला एक शहर है, जहां पुरानी एवं जीर्ण-शीर्ण इमारतें हैं जो मरम्मत के अभाव के कारण असुरक्षित हैं लेकिन इसके बावजूद वहां किरायेदार रहते हैं। इन इमारतों की मरम्मत के लिए महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) कानून, 1976 वहां रहने वालों पर उपकर लगाता है, जिसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (एमबीआरआरबी) को किया जाता है, जो इन इमारतों की मरम्मत करता है।

यह मुख्य याचिका 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी, 2002 को इसे नौ-न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया गया। उससे पहले इसे तीन बार पांच और सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठों के पास भेजा गया। प्रधान न्यायाधीश ने समुदाय में स्वामित्व और एक व्यक्ति के अंतर का उल्लेख किया। उन्होंने निजी खदानों का उदाहरण दिया और कहा, ‘वे निजी खदानें हो सकती हैं, लेकिन व्यापक अर्थ में, ये समुदाय के भौतिक संसाधन हैं।’

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मुंबई में इन इमारतों जैसे मामले को देखें। तकनीकी रूप से, आप सही हैं कि ये निजी स्वामित्व वाली इमारतें हैं, लेकिन कानून (म्हाडा अधिनियम) का कारण क्या था… हम कानून की वैधता पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं और इसका स्वतंत्र रूप से परीक्षण किया जाएगा।’ सुनवाई पूरी नहीं हुई और बुधवार को आगे की सुनवाई होगी।

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