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कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम, 1952 ( Employees Provident Funds and Miscellaneous Provisions Act, 1952 )


 

कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबन्ध

अधिनियम, 1952

(1952 का अधिनियम संख्यांक 19)

[4 मार्च, 1952]

 कारखानों और अन्य स्थापनों के कर्मचारियों के लिए भविष्य-निधि,

[ [पेंशन निधि] और निक्षेप-सहबद्ध बीमा निधि]

की स्थापना का उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और लागू होना- [(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 है ।]

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है ।

 [(3) धारा 16 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यह निम्नलिखित को लागू होगा :-

                (क) हर ऐसे स्थापन को, जो अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट किसी उद्योग में लगा हुआ कारखाना है और जिसमें  [बीस] या अधिक व्यक्ति नियोजित हैं, तथा

                (ख) 6[बीस] या अधिक व्यक्ति नियोजित करने वाले किसी अन्य स्थापन को या ऐसे स्थापनों के वर्ग को जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे :

परन्तु केन्द्रीय सरकार, अपने ऐसा करने के आशय की दो मास से अन्यून की सूचना राजपत्र में अधिसूचना द्वारा देने के पश्चात्, इस अधिनियम के उपबंधों की 6[बीस] से कम संख्या में इतने व्यक्तियों को जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियोजित करने वाले किसी भी स्थापना को लागू कर सकेगी ।]

 [(4) इस धारा की उपधारा (3) में या धारा 16 की उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां केन्द्रीय सरकार भविष्य-निधि आयुक्त को, या तो इस निमित्त उसको आवेदन किए जाने पर या अन्यथा, यह प्रतीत होता है कि किसी स्थापन के संबंध में नियोजक और कर्मचारियों की बहुसंख्या के बीच यह करार हो गया है कि इस अधिनियम के उपबंध उस स्थापन को लागू किए जाने चाहिए तो वह ऐसे करार की तारीख से ही या ऐसे करार में विनिर्दिष्ट किसी पश्चात्वर्ती तारीख से उस स्थापन को इस अधिनियम के उपबंध, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, लागू कर सकेगा ।]

 [(5) वह स्थापन, जिसे यह अधिनियम लागू होता है, इस बात के होते हुए भी कि उसमें नियोजित व्यक्तियों की संख्या किसी समय बीस से कम हो जाती है, इस अधिनियम द्वारा शासित होता रहेगा ।

 ।                                             ।                                              ।                                              ।]

2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

                                 [(क) “समुचित सरकार" से-

(i) केन्द्रीय सरकार के या उसके नियंत्रण के अधीन किसी स्थापन के सम्बन्ध में या किसी रेल कम्पनी, महापत्तन, खान, तेल-क्षेत्र या नियंत्रित उद्योग से संसक्त स्थापन के सम्बन्ध में  [या एक से अधिक राज्यों में विभाग या शाखाओं वाले किसी स्थापन के सम्बन्ध में] केन्द्रीय सरकार ; और

(ii) किसी अन्य स्थापन के सम्बन्ध में राज्य सरकार,

अभिप्रेत है ।]

                                 [(कक) “प्राधिकृत अधिकारी" से केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, केन्द्रीय भविष्य-निधि अपर आयुक्त, भविष्य-निधि उपायुक्त, प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त या ऐसा अन्य अधिकारी अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्राधिकृत किया जाए ;]

(ख) “आधारिक मजदूरी" से ऐसी समस्त उपलब्धियां अभिप्रेत हैं जिन्हें काम पर रहने या  [मजदूरी सहित छुट्टी या अवकाश दोनों में से किसी भी दशा में रहने] के समय कर्मचारी नियोजन की संविदा के निबंधनों के अनुसार उपार्जित करता है और जो उसे नकद संदत्त की जाती है या संदेय हैं, किन्तु इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं हैं :-

(i) किसी खाद्य संबंधी रियायत का नकद मूल्य,

(ii) कोई मंहगाई भत्ता (अर्थात् निर्वाह व्यय में वृद्धि के कारण कर्मचारी को देय सब नकद संदाय, चाहे वे किसी भी नाम में ज्ञात हों, मकान किराया भत्ता, अतिकालिक भत्ता, बोनस, कमीशन या ऐसा ही कोई अन्य भत्ता जो कर्मचारी को उसके नियोजन या ऐसे नियोजन में किए गए काम के बारे में संदेय है),

(iii) नियोजक द्वारा दिए गए उपहार ;

(ग) “अभिदाय" से वह अभिदाय अभिप्रेत है जो किसी स्कीम के अधीन किसी सदस्य के बारे में संदेय है ;  [या जो किसी ऐसे कर्मचारी के बारे में संदेय है, जिसे जीवन बीमा स्कीम लागू होती है ;]

(घ) “नियंत्रित उद्योग" से वह उद्योग अभिप्रेत है जिसका संघ द्वारा नियंत्रण केन्द्रीय अधिनियम द्वारा लोकहित में समीचीन होना घोषित किया जा चुका है ;

                                 [(ङ) “नियोजक" से-

(i) किसी ऐसे स्थापन के सम्बन्ध में जो कारखाना है, कारखाने का स्वामी या अधिष्ठाता अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत ऐसे स्वामी या अधिष्ठाता का अभिकर्ता, मृत स्वामी या मृत अधिष्ठाता का विधिक प्रतिनिधि और जहां कोई व्यक्ति कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) की धारा 7 की उपधारा (1) के खंड (च) के अधीन कारखाने के प्रबन्धक के रूप में नामित है, वहां ऐसा नामित व्यक्ति आता है, तथा

(ii) किसी अन्य स्थापन के सम्बन्ध में वह व्यक्ति, या वह प्राधिकारी जिसका किसी स्थापन के कार्यकलाप पर अन्तिम नियंत्रण है, और जहां उक्त कार्यकलाप किसी प्रबन्धक, प्रबंध निदेशक या प्रबन्ध अभिकर्ता को सौंप दिए गए हैं वहां ऐसा प्रबंधक, प्रबन्ध निदेशक या प्रबंध अभिप्रेत है ;]

(च) “कर्मचारी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो  [स्थापन] में या उसके काम के सम्बन्ध में किसी प्रकार के कार्य में चाहे वह शारीरिक हो या अन्यथा, मजदूरी पर नियोजित किया गया है, और जो नियोजक से सीधे या परतः अपनी मजदूरी पाता है  [और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति है जो,-

(i) स्थापन में या उसके काम के संबंध में ठेकेदार द्वारा या उसके माध्यम से नियोजित किया गया ;

(ii) शिक्षा के रूप में, जो शिक्षुता अधिनियम, 1961 (1961 का 52)  के अधीन शिक्षु नहीं है या स्थापन के स्थायी आदेशों के अधीन लगाया गया है ;]

 [(चच) “छूट-प्राप्त कर्मचारी" से वह कर्मचारी अभिप्रेत है जिसे यदि धारा 17  *** के अधीन प्रदत्त छूट न मिली होती तो 3[यथास्थिति, स्कीम या बीमा स्कीम] लागू होती ;

(चचच) “छूट-प्राप्त  [स्थापन]" से वह  [स्थापन] अभिप्रेत है जिसके बारे में धारा 17 के अधीन 3[यथास्थिति, किसी स्कीम या बीमा स्कीम] के सभी या किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन से छूट अनुदत्त की गई है चाहे ऐसी छूट 9[स्थापन] को या उसमें नियोजित किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को अनुदत्त की गई हो ;]

(छ) “कारखाना" से अपनी प्रसीमाओं सहित कोई ऐसा परिसर अभिप्रेत है जिसके किसी भाग में शक्ति की सहायता से या उसके बिना विनिर्माण प्रक्रिया की जा रही है या आमतौर से इस तरह की जाती है ;

 ।                                             ।                                              ।                                              ।

(ज) “निधि" से स्कीम के अधीन स्थापित भविष्य-निधि अभिप्रेत है ;

(झ) “उद्योग" से अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट कोई उद्योग अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत धारा 4 के अधीन अधिसूचना द्वारा अनुसूची में जोड़ा गया कोई अन्य उद्योग है ;

 [(झक) “बीमा निधि" से धारा 6ग की उपधारा (2) के अधीन स्थापित निक्षेप-सहबद्ध बीमा निधि अभिप्रेत है ;

(झख) “बीमा स्कीम" से धारा 6ग की उपधारा (1) के अधीन विरचित कर्मचारी निक्षेप-सहबद्ध बीमा स्कीम अभिप्रेत है ;]

 [ [(झग)] “विनिर्माण" या “विनिर्माण प्रक्रिया" से किसी वस्तु या पदार्थ के प्रयोग, विक्रय, परिवहन, परिदान या व्ययन की दृष्टि से, उसका निर्माण, परिवर्तन, मरम्मत, अलंकरण, परिष्करण, पैंकिंग, स्नेहन, धुलाई, सफाई, उन्मूलन, विघटन या अन्यथा अभिक्रियान्वयन या अनुकूलन करने के लिए कोई प्रक्रिया अभिप्रेत है ;]

(ञ) “सदस्य" से निधि का सदस्य अभिप्रेत है ;

(ट) “कारखाने के अधिष्ठाता" से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे कारखाने के कामकाज पर अन्तिम नियंत्रण प्राप्त है और जहां उक्त कामकाज प्रबन्ध अभिकर्ता को सौंपे जाते हैं वहां ऐसा अभिकर्ता कारखाने का अधिष्ठाता समझा जाएगा ;

 [(टअ) “पेंशन निधि" से धारा 6क की उपधारा (2) के अधीन स्थापित कर्मचारी पेंशन निधि अभिप्रेत है;

(टआ) “पेंशन स्कीम" से धारा 6क की उपधारा (1) के अधीन विरचित कर्मचारी पेंशन स्कीम अभिप्रेत है;]

 [(टक) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(टख) “वसूली अधिकारी" से केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या धारा 5क के अधीन गठित न्यासी बोर्ड का कोई ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सराकर द्वारा इस अधिनियम के अधीन वसूली अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्राधिकृत किया जाए;]

 [(ठ) “स्कीम" से धारा 5 के अधीन विरचित कर्मचारी भविष्य-निधि स्कीम अभिप्रेत है ;]

5[(ठठ) किसी ऐसे कर्मचारी के सम्बन्ध में, जो पेंशन स्कीम का सदस्य है, “अधिवर्षिता" से उक्त कर्मचारी द्वारा अठावन वर्ष की आयु प्राप्त कर लेना अभिप्रेत है ;]

6[(ड) “अधिकरण" से धारा 7घ के अधीन गठित कर्मचारी भविष्य-निधि अपील अधिकरण अभिप्रेत है ।]

 [2क. सब विभागों और शाखाओं का स्थापन के अन्तर्गत होना-शंकाओं के निराकरण के लिए एतद्द्वारा यह घोषित किया जाता है कि जहां स्थापन विभिन्न विभागों से मिलकर बना है या जहां किसी स्थापन में शाखाएं हैं चाहे वे एक ही स्थान पर हों या विभिन्न स्थानों पर वहां ऐसे सभी विभागों या शाखाओं को उसी स्थापन का भाग माना जाएगा ।]

 [3. ऐसे स्थापन की जिसकी किसी अन्य स्थापन के साथ एक ही भविष्य-निधि है, अधिनियम लागू करने की शक्ति-जहां किसी स्थापन को इस अधिनियम के लागू होने के ठीक पूर्व ऐसी भविष्य-निधि अस्तित्व में है, जो इस स्थापन में नियोजित कर्मचारियों के लिए और किसी अन्य स्थापन के कर्मचारियों के लिए एक ही है, वहां केन्द्रीय सरकार राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के उपबन्ध उस अन्य स्थापन को भी लागू होंगे ।]

4. अनुसूची 1 में जोड़ने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा अनुसूची 1 में किसी ऐसे अन्य उद्योग को जोड़ सकेगी जिसके कर्चचारियों के बारे में उसकी यह राय है कि इस अधिनियम के अधीन भविष्य-निधि स्कीम की विरचना की जानी चाहिए और तदुपरि इस भांति जोड़े गए उद्योग के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट उद्योग हैं ।

(2) उपधारा (1) के अधीन की सब अधिसूचनाएं, निकाले जाने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र संसद् के समक्ष रखी जाएंगी ।

5. कर्मचारी भविष्य-निधि स्कीम- [(1)] केन्द्रीय सराकर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा कर्मचारियों के लिए अथवा कर्मचारियों के किसी वर्ग के लिए इस अधिनियम के अधीन भविष्य-निधियों की स्थापना के लिए कर्मचारी भविष्य-निधि स्कीम कहलाने वाली स्कीम विरचित कर सकेगी और उन  [स्थापनों] या 2[स्थापनों] के वर्ग को विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिनको उक्त स्कीम लागू होगी  [और स्कीम विरचित किए जाने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र इस अधिनियम और स्कीम के उपबन्धों के अनुसार निधि स्थापित की जाएगी] ।

 [(1क) निधि धारा 5क के अधीन गठित केन्द्रीय बोर्ड में निहित होगी और उसके द्वारा प्रशासित होगी ।

(1ख) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) के अधीन विरचित स्कीम अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट सब बातों के लिए या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेगी ।]

 [(2) उपधारा (1) के अधीन विरचित स्कीम यह उपबन्ध कर सकेगी कि उसके उपबंधों में से कोई उस तारीख को, जो इस निमित्त उस स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए, या तो भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप से प्रभावशील होगा ।]

 [5क. केन्द्रीय बोर्ड-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसी तारीख से, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए, उन राज्यक्षेत्रों के लिए जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है एस न्यासी बोर्ड (जिसे इस अधिनियम में इसके पश्चात् केन्द्रीय बोर्ड कहा गया है) गठित कर सकेगी जिसमें  [सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्तिट होंगे, अर्थात् :-

(क)  [एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे] ;

 [(कक) केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, जो पदेन होगा ;]

(ख) पांच से अनधिक व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अपने पदधारियों में से नियुक्त किए जाएंगे ;

(ग) उन राज्यों की सरकारों का जिन्हें केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे प्रतिनिधित्व करने वाले पन्द्रह से अनधिक व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ;

(घ) ऐसे स्थापनों के, जिन्हें स्कीम लागू होती है, नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले  [दस व्यक्ति] जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा नियोजकों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार इस निमित्त मान्यता दे, परामर्श करने के पश्चात् की जाएगी ; और

(ङ) ऐसे स्थापनों के, जिन्हें स्कीम लागू होती है, कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 10[दस व्यक्ति] जिनकी नियुक्ति कर्मचारियों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार, इस निमित्त मान्यता दे, परामर्श करने की पश्चात्              की जाएगी ।

(2) वे निबन्धन और शर्तें जिनके अधीन केन्द्रीय बोर्ड का कोई सदस्य नियुक्त किया जा सकेगा और केन्द्रीय बोर्ड की बैठकों का समय, स्थान और प्रक्रिया वह होगी जो स्कीम में उपबंधित की जाए ।

(3) केन्द्रीय बोर्ड अपने में निहित निधि का प्रशासन  [धारा 6क  [और धारा 6ग] के उपबंधों के अधीन रहते हुए] उस रीति से करेगा जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए ।

(4) केन्द्रीय बोर्ड ऐसे अन्य कृत्य करेगा जिनके करने की अपेक्षा स्कीम  [,  [पेंशन] स्कीम और बीमा स्कीम] के किन्हीं उपबंधों के द्वारा या अधीन उससे की जाए ।

 [(5) केन्द्रीय बोर्ड अपनी आय और व्यय के उचित लेखे ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में रखेगा जो केन्द्रीय सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से स्कीम में विनिर्दिष्ट करे ।]

(6) केन्द्रीय बोर्ड के लेखाओं की संपरीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा प्रतिवर्ष की जाएगी और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा उपगत कोई व्यय केन्द्रीय बोर्ड द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।

(7) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और केन्द्रीय बोर्ड की लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को, ऐसी संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकार के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में हैं और विशिष्टतया, बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों, दस्तावेजों और कागजपत्रों को प्रस्तुत किए जाने की मांग करने और केंद्रीय बोर्ड के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।

(8) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा केन्द्रीय बोर्ड के यथाप्रमाणित लेखे उन पर संपरीक्षा रिपोर्ट सहित, केन्द्रीय बोर्ड को अग्रेषित किए जाएंगे जो उन्हें नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणियों के साथ केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित करेगा ।

(9) केन्द्रीय बोर्ड का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने कार्य और कार्यकलापों की वार्षिक रिपोर्ट भी केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करे और केंद्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट, संपरीक्षित लेखाओं और भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट की एक प्रति और उन पर केन्द्रीय बोर्ड की टिप्पणियां संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।]

 [5कक. कार्यकारिणी समिति-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी तारीख से जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए, केंद्रीय बोर्ड को उसके कृत्यों के पालन में सहायता देने के लिए एक कार्यकारिणी समिति गठित कर सकेगी ।

(2) कार्यकारिणी समिति में सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्ति होंगे, अर्थात् :-

(क) केंद्रीय बोर्ड के सदस्यों में से एक अध्यक्ष जो केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ;

(ख) धारा 5क की उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से दो व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ;

(ग) धारा 5क की उपधारा (1) के खंड (ग) में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से तीन व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ;

(घ) धारा 5क की उपधारा (1) के खंड (घ) में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन व्यक्ति जिनका निर्वाचन केन्द्रीय बोर्ड द्वारा किया जाएगा ;

(ङ) धारा 5क की उपधारा (1) के खंड (ङ) में निर्दिष्ट व्यक्तियों में से कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन व्यक्ति जिनका निर्वाचन केन्द्रीय बोर्ड द्वारा किया जाएगा ;

(च) केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, जो पदेन होगा ।

(3) वे निबंधन और शर्तें जिनके अधीन केन्द्रीय बोर्ड का कोई सदस्य कार्यकारिणी समिति में नियुक्त या निर्वाचित किया जा सकेगा तथा कार्यकारिणी समिति की बैठकों का समय, स्थान और प्रक्रिया वह होगी जो स्कीम में उपबन्धित की जाए ।]

5ख. राज्य बोर्ड-(1) केन्द्रीय सरकार, किसी राज्य सरकार से परामर्श करने के पश्चात् उस राज्य के लिए न्यासी बोर्ड का (जिसे इसमें इसके आगे राज्य बोर्ड कहा गया है) गठन ऐसी रीति में जो कि स्कीम में उपबंधित की जाए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा कर सकेगी ।

(2) राज्य बोर्ड ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर                    उसे सौंपे ।

(3) वे निबन्धन और शर्तें जिनके अधीन राज्य बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया जा सकेगा और राज्य बोर्ड की बैठकों का समय, स्थान और प्रक्रिया वह होगी जो स्कीम में उपबंधित की जाए ।

5ग. न्यासी बोर्ड का निगमित निकाय होना-धारा 5क या धारा 5ख के अधीन गठित हर न्यासी बोर्ड अपने गठन की अधिसूचना में विनिर्दिष्ट नाम से शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा और उक्त नाम से वह वाद ला सकेगा और उसके विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा ।

5घ. अधिकारियों की नियुक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार एक केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त की नियुक्ति करेगी जो केन्द्रीय बोर्ड का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा और उस बोर्ड के साधारण नियंत्रण और अधीक्षण के अधीन होगा ।

(2) केन्द्रीय सरकार केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त को उसके कर्तव्यों के निर्वहन से सहायता देने के लिए  [एक वित्तीय सलाहकार और मुख्य लेखा अधिकारी] नियुक्त कर सकेगी ।

(3) केन्द्रीय बोर्ड  [ऐसे अधिकतम वेतनमान के अधीन रहते हुए, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट किया जाए, उतने केन्द्रीय                 भविष्य-निधि अपर आयुक्त, भविष्य-निधि उपायुक्त, प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त, भविष्य-निधि सहायक आयुक्त तथा] ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जितने वह स्कीम  [,  [पेंशन] स्कीम और बीमा स्कीम के दक्ष प्रशासन के लिए आवश्यक समझे] ।

(4)  [केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या केंद्रीय भविष्य-निधि अपर आयुक्त का वित्तीय सलाहकार और मुख्य लेखा अधिकारी के पद पर या केंद्रीय बोर्ड के अधीन किसी अन्य पद पर, जिसका वेतनमान केंद्रीय सरकार के अधीन किसी समूह स्त्र्कऱ् या समूह स्त्र्खऱ् पद के वेतनमान के समतुल्य है,] नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श के पश्चात् ही की जाएगी :

परन्तु ऐसा परामर्श किसी ऐसी नियुक्ति के बारे में आवश्यक नहीं होगा-

                (क) जो एक वर्ष से अनधिक कालावधि के लिए हो, या

                (ख) यदि नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति अपनी नियुक्ति के समय-

                                (i) भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य है, या

(ii) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या केन्द्रीय बोर्ड की सेवा में 4[समूह ‘क’ या समूह ‘ख’ के पदट                 पर है ।

(5) राज्य बोर्ड, सम्पृक्त राज्य सरकार के अनुमोदन से, ऐसे कर्मचारिवृन्द की नियुक्ति कर सकेगा जिन्हें वह आवश्यक समझे ।

(6) केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, 4[तथा वित्तीय सलाहकार और मुख्य लेखा अधिकारी] की भर्ती की रीति, वेतन और भत्ते, अनुशासन और सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं और ये वेतन और भत्ते निधि में से दिए जाएंगे ।

 [(7) (क) केंद्रीय भविष्य-निधि अपर आयुक्त, भविष्य-निधि उपायुक्त, प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त, भविष्य-निधि सहायक आयुक्त और केंद्रीय बोर्ड के अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों की भर्ती की रीति, वेतन और भत्ते, अनुशासन तथा सेवा की अन्य शर्तें, वे होंगी जो केंद्रीय बोर्ड द्वारा तत्स्थानी वेतनमान वाले केंद्रीय सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को लागू नियमों और आदेशों के अनुसार विनिर्दिष्ट की जाएं :

परंतु जहां केंद्रीय बोर्ड की यह राय है कि पूर्वोक्त किसी विषय की बाबत उक्त नियमों या आदेशों से विचलन आवश्यक है वहां वह केंद्रीय सरकार का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करेगा ।

(ख) केंद्रीय बोर्ड, खंड (क) के अधीन कर्मचारियों और अधिकारियों के तत्स्थानी वेतनमान अवधारित करते समय केंद्रीय सरकार के अधीन ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की शैक्षिक अर्हताओं, भर्ती की पद्धति, कर्तव्य और उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखेगा और किसी शंका की दशा में केंद्रीय बोर्ड उस विषय को केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट करेगा जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।]

(8) राज्य बोर्ड के अधिकारियों और कर्मचारियों भर्ती की रीति, वेतन और भत्ते, अनुशासन और सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो संपृक्त राज्य सरकार के अनुमोदन से वह बोर्ड विनिर्दिष्ट करे ।

 [5घघ. केंद्रीय बोर्ड या कार्यकारिणी समिति या राज्य बोर्ड के कार्य और कार्यवाही का कतिपय आधारों पर अविधिमान्य होना-केंद्रीय बोर्ड या धारा 5कक के अधीन गठित कार्यकारिणी समिति या राज्य बोर्ड द्वारा किए गए किसी कार्य या की गई किसी कार्यवाही को केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा कि, यथास्थिति, उस केंद्रीय बोर्ड या कार्यकारिणी समिति या राज्य बोर्ड के गठन में कोई रिक्ति या कोई त्रुटि है ।]

5ङ. प्रत्यायोजन- [केंद्रीय बोर्ड कार्यकारिणी समिति या बोर्ड के अध्यक्ष को या अपने किसी भी अधिकारी को और राज्य बोर्ज अपने अध्यक्ष को या अपने किसी भी अधिकारी को] इस अधिनियम के अधीन की अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को, जिन्हें वह स्कीम 2[, 3[पेंशन] स्कीम और बीमा स्कीम] के दक्ष प्रशासन के लिए आवश्यक समझे, ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के, यदि कोई हों, अधीन, जैसी वह विनिर्दिष्ट करे, प्रत्यायोजित कर सकेगा ।]

6. अभिदाय और वे विषय जो स्कीमों में उपबन्धित किए जा सकेंगे- *** वह अभिदाय जो नियोजक निधि में देगा कर्मचारियों में से हर एक को,  [चाहे वह उसके द्वारा सीधे या ठेकेदार के द्वारा या माध्यम से नियोजित हो], तत्समय संदेय आधारिक मजदूरी,  [महंगाई भत्ते और प्रतिधारण भत्ते का (यदि कोई हो)]  [दस प्रतिशत] होगा और कर्मचारी का अभिदाय उसके बारे में नियोजक द्वारा संदेय अभिदाय के बराबर होगा, और  [यदि कोई कर्माचारी ऐसी वांछा करता है, तो अभिदाय वह रकम हो सकेगा जो उसकी आधारिक मजदूरी, मंहगाई भत्ते और प्रतिधारण भत्ते (यदि कोई हो) के  [दस प्रतिशत] से अधिक न हो और यह दस शर्त के अधीन रहते हुए होगा कि नियोजक इस धारा के अधीन संदेय अपने अभिदाय से अधिक अभिदाय का संदाय करने की बाध्यता के अधीन नहीं होगा] :

1[परंतु किसी स्थापन या स्थापनों के वर्ग को, जिसे केंद्रीय सरकार ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, यह धारा इस उपांतरण के अधीन लागू रहते हुए होगी कि 2[दस प्रतिशतट शब्दों के स्थान पर, दोनों स्थानों पर जहां ये आते हैं, 2[बारह प्रतिशत] शब्द रखे जाएंगे :]

परन्तु यह और भी कि जहां इस अधिनियम के अधीन संदेय किसी अभिदाय की रकम में रुपए का कोई अंश आता है वहां स्कीम उस अंश को निकटतम रुपए, आधे रुपए या चौथाई रुपए में पूर्णांकित करने के लिए उपबंध कर सकेगी ।

 [स्पष्टीकरण 1]-इस  [धारा] के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि मंहगाई भत्ते के अन्तर्गत कर्मचारी को अनुज्ञात किसी खाद्य सम्बन्धी रियायत का नकद मूल्य भी है ।

 

 [स्पष्टीकरण 2-इस धारा के प्रयोजनों के लिए “प्रतिधारण भत्ते" से किसी कारखाने या अन्य स्थापन के किसी कर्मचारी को किसी ऐसी कालावधि के दौरान जबकि स्थापन में काम नहीं हो रहा है उसकी सेवाओं के प्रतिधारण के लिए तत्समय संदेय भत्ता अभिप्रेत है ।]

 *                                             *                                              *                                              *                                              *

 [6क. कर्मचारी पेंशन स्कीम-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निम्नलिखित का उपबंध करने के प्रयोजन के लिए एक स्कीम विरचित कर सकेगी, जो कर्मचारी पेंशन स्कीम कहलाएगी :-

(क) किसी ऐसे स्थापन या स्थापन-वर्ग के, जिसको यह अधिनियम लागू होता है, कर्मचारियों के लिए अधिवर्षिता पेंशन, निवृत्ति पेंशन या स्थायी पूर्ण निःशक्तता पेंशन ; और

(ख) ऐसे कर्मचारियों के हिताधिकारियों को संदेय विधवा या विधुर पेंशन, बालक पेंशन या अनाथ पेंशन ।

(2) धारा 6 में किसी बात के होते हुए भी, पेंशन स्कीम की विरचना करने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र एक पेंशन निधि स्थापित की जाएगी, जिसमें ऐसे प्रत्येक कर्मचारी के संबंध में, जो पेंशन स्कीम का सदस्य है, समय-समय पर,-

(क) धारा 6 के अधीन नियोजक के अभिदाय से ऐसी राशि, जो संबंधित कर्मचारियों की आधारिक मजदूरी, मंहगाई भत्ता और प्रतिधारण भत्ता, यदि कोई है, के आठ सही एक बटा तीन प्रतिशत से अधिक न हो, जो पेंशन स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए ;

(ख) ऐसी राशि, जो धारा 17 की उपधारा (6) के अधीन छूट प्राप्त स्थापनों के कर्मचारियों द्वारा संदेय है ;

(ग) कर्मचारी कुटुम्ब पेंशन निधि की शुद्ध आस्तियां, जो पेंशन निधि की स्थापना की तारीख को हों ;

(घ) ऐसी राशि, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त संसद् की विधि द्वारा सम्यक् विनियोग के पश्चात् विनिर्दिष्ट करे,

संदत्त की जाएंगी ।

(3) पेंशन निधि की स्थापना पर, कुटुम्ब पेंशन स्कीम (जिसे इसमें इसके पश्चात् समाप्त स्कीम कहा गया है) प्रवृत्त नहीं रह जाएगी और समाप्त स्कीम की सभी आस्तियां, पेंशन निधि में निहित और अंतरित हो जाएंगी तथा समाप्त स्कीम के अधीन सभी दायित्व पेंशन निधि के विरुद्ध प्रवर्तनीय होंगे और समाप्त स्कीम के अधीन हिताधिकारी पेंशन निधि से ऐसे फायदे प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो उन फायदों से कम नहीं होंगे, जिनके वे समाप्त स्कीम के अधीन हकदार थे ।

(4) पेंशन निधि, केन्द्रीय बोर्ड में निहित होगी और उसके द्वारा ऐसी रीति से प्रशासित की जाएगी, जो पेंशन स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए ।

(5) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, पेंशन स्कीम में, अनुसूची 3 में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा ।

(6) पेंशन स्कीम में यह उपबंध किया जा सकेगा कि उसे सभी उपबंध या उनमें से कोई उपबंध, भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप से ऐसी तारीख को प्रभावी होगा, जो उस स्कीम में उस निमित्त विनिर्दिष्ट की जाए ।

(7) उपधारा (1) के अधीन विरचित पेंशन स्कीम, विरचित किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक संदन के समक्ष जब वह सत्र में हो ; कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सेकगी ।

 यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस स्कीम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी । किन्तु स्कीम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]

 [6ग. कर्मचारी निक्षेप सहबद्ध बीमा स्कीम-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी स्थापन के या किसी वर्ग के स्थापनों के, जिसे यह अधिनियम लागू होता है, कर्मचारियों के लिए जीवन बीमा की प्रसुविधाओं की व्यवस्था करने के प्रयोजन के लिए कर्मचारी निक्षेप सहबद्ध बीमा स्कीम कही जाने वाली एक स्कीम विरचित करेगी ।

(2) बीमा स्कीम की विरचना के पश्चात्, यथाशीघ्र निक्षेप सहबद्ध बीमा निधि स्थापित की जाएगी जिसमें नियोजक द्वारा ऐसे प्रत्येक कर्मचारी के सम्बन्ध में जिसका वह नियोजक है, तत्समय उसको संदेय आधारिक मजदूरी, मंहगाई भत्ता और प्रतिधारण भत्ता (यदि कोई हो) के योग के एक प्रतिशत से अनधिक ऐसी रकम का संदाय समय-समय पर किया जाएगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मंहगाई भत्ता" और प्रतिधारण भत्ता" पदों के वही अर्थ हैं जो धारा 6               में हैं ।

 *                                             *                                              *                                              *                                              *

(4) (क) नियोजक बीमा स्कीम के प्रशासन के सम्बन्ध में ऐसे सभी व्यय की, जो उस स्कीम द्वारा या उसके अधीन उपबन्धित प्रसुविधाओं के खर्च हेतु व्यय न हों, पूर्ति के लिए बीमा निधि में ऐसी अतिरिक्त राशियों का संदाय करेगा जो उपधारा (2) के अधीन उससे अपेक्षित अभिदाय के एक चौथाई से अधिक न हों और जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अवधारित करे :

 *                                             *                                              *                                              *                                              *

(5) बीमा निधि बोर्ड में निहित होगी और बोर्ड उसका प्रशासन ऐसी रीति से करेगा जो बीमा स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए ।

(6) बीमा स्कीम अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट सभी विषयों या उनमें से किसी के लिए उपबन्ध कर सकेगी ।

(7) बीमा स्कीम में यह उपबन्ध किया जा सकेगा कि उसका कोई उपबन्ध ऐसी तारीख को, जो इस निमित्त उस स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए, भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप  से प्रभावी होगा ।]

 [6घ. नियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना-धारा 5, धारा 6क और धारा 6ग के अधीन बनाई गई प्रत्येक स्कीम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस स्कीम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि यह स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी । किंतु स्कीम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]

7. स्कीम का उपान्तरण-(1) केन्द्रीय सरकार,  [यथास्थिति, स्कीम या कुटुम्ब पेंशन स्कीम या बीमा स्कीम में भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप में परिवर्धन, संशोधन या फेरफार] राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, कर सकेगी ।

 [(2) उपधारा (1) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना, निकाले जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आमुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी । किंतु अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]

 [7क. नियोजकों द्वारा शोध्य धन का अवधारण- [(1) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, कोई भी केंद्रीय भविष्य-निधि अपर आयुक्त, कोई भी भविष्य-निधि उपायुक्त, कोई भी प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त या कोई भी भविष्य-निधि सहायक आयुक्त,   आदेश द्वारा-

(क) किसी ऐसे मामले में जहां कोई विवाद किसी स्थापन को इस अधिनियम के लागू किए जाने के संबंध में उठता है, ऐसे विवाद का विनिश्चय कर सकेगा ; और

(ख) यथास्थिति, इस अधिनियम, स्कीम या  [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम के किसी उपबंध के अधीन किसी नियोजक द्वारा शोध्य रकम का अवधारण कर सकेगा,

और किसी भी पूर्वोक्त प्रयोजन के लिए ऐसी जांच कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे ।]

(2) उपधारा (1) के अधीन जांच करने वाले अधिकारी को, ऐसी जांच के प्रयोजनों के लिए, वही शक्तियां होंगी जो निम्नलिखित विषयों के बारे में, अर्थात् :-

(क) किसी व्यक्ति को हाजिर कराने या शपथ पर उसकी परीक्षा करने ;

(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण तथा पेश करने की अपेक्षा करने ;

(ग) शपथपत्र पर साक्ष्य लेने ;

(घ) साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालने के बारे में,

वाद का विचारण करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन न्यायालय की हैं और ऐसी कोई भी जांच भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और 228 के अन्तर्गत और धारा 196 के प्रयोजनों के लिए न्यायिक कार्यवाही समझा जाएगी ।

                (3)  *** कोई आदेश उपधारा (1) के अधीन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि  [संबद्ध नियोजकट को अपना मामला अभ्यावेदित करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो ।

                 [(3क) जहां नियोजक, कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति जिसकी उपधारा (1) के अधीन जांच में उपस्थित होने की अपेक्षा की जाती है, कोई विधिमान्य कारण बताए बिना, ऐसी जांच में उपस्थित होने में असफल रहता है या कोई दस्तावेज पेश करने में या कोई रिपोर्ट या विवरणी फाइल करने में, जब ऐसा करने की उनसे अपेक्षा की जाए, असफल रहता है, वहां जांच करने वाला अधिकारी ऐसी जांच के दौरान पेश किए गए साक्ष्य और अभिलेख में उपलब्ध अन्य दस्तावेजों के आधार पर, यथास्थिति, अधिनियम के लागू होने के बारे में विनिश्चय कर सकेगा या किसी नियोजक द्वारा शोध्य रकम का अवधारण कर सकेगा ।]

                 [(4) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश किसी नियोजक के विरुद्ध एकपक्षीय रूप से पारित किया जाता है, वहां वह, ऐसे आदेश की संसूचना की तारीख से तीन मास के भीतर उसी अधिकारी को ऐसे आदेश को अपास्त करने के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि वह उस अधिकारी का यह समाधान कर देता है कि कारण बताओ सूचना की सम्यक् रूप से तामील नहीं की गई थी या यह कि वह उस समय जब जांच की गई थी उपस्थित होने से किसी पर्याप्त कारण से निवारित हुआ था, तो वह अधिकारी अपने पूर्वतर आदेश को अपास्त्र करने वाला आदेश कर सकेगा और जांच की कार्यवाही के लिए कोई तारीख नियत करेगा :

परन्तु कोई ऐसा आदेश केवल इस आधार पर अपास्त नहीं किया जाएगा कि कारण बताओ सूचना की तामील में कोई अनियमितता हुई है, यदि अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि नियोजक को सुनवाई की तारीख की सूचना थी और अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए पर्याप्त समय था ।

स्पष्टीकरण-जहां कोई अपील एक पक्षीय रूप से पारित आदेश के विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन की गई है और ऐसी अपील का निपटारा इस आधार से अन्यथा कि अपीलार्थी ने अपील वापस ले ली है, किसी आधार पर किया गया है वहां इस धारा के अधीन उस एक पक्षीय आदेश को अपास्त करने के लिए कोई आवेदन नहीं किया जाएगा ।

(5) इस धारा के अधीन पारित कोई आदेश, उपधारा (4) के अधीन किसी आवेदन पर तब तक अपास्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसकी सूचना की तामील विरोधी पक्ष पर न कर दी गई हो ।]

 [7ख. धारा 7के अधीन पारित आदेशों का पुनर्विलोकन-(1) धारा 7क की उपधारा (1) के अधीन किए गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, किन्तु जिससे कोई अपील इस अधिनियम के अधीन नहीं की गई है और जो ऐसी नई और महत्वपूर्ण बात या ऐसे साक्ष्य के पता चलने पर जो सम्यक् तत्परता बरतने के पश्चात् भी उसकी जानकारी में नहीं था या आदेश किए जाने के समय उसके द्वारा पेश नहीं किया जा सका था या अभिलेख के देखने से ही प्रकट किसी भूल या गलती के कारण या किसी अन्य पर्याप्त कारण से ऐसे आदेश का पुनर्विलोकन कराना चाहता है, उस अधिकारी को जिसने आदेश पारित किया था, उस आदेश के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकेगा :

परंतु यदि ऐसे अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि किसी ऐसे आधार पर ऐसा करना आवश्यक है तो वह स्वप्रेरणा से भी अपने आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन पुनर्विलोकन के लिए प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में तथा ऐसे समय के भीतर फाइल किया जाएगा जो स्कीम में विनिर्दिष्ट किया जाए ।

(3) जहां पुनर्विलोकन के लिए आवेदन प्राप्त करने वाले अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि पुनर्विलोकन के लिए पर्याप्त आधार नहीं है वहां वह आवेदन को नामंजूर कर देगा ।

(4) जहां अधिकारी की यह राय है कि पुनर्विलोकन के लिए आवेदन को मंजूर किया जाना चाहिए वहां वह उसे मंजूर                  कर लेगा :

परंतु,-

(क) कोई ऐसा आवेदन उसके समक्ष के सभी पक्षकारों को, उनके उपस्थित होने और उस आदेश के जिसकी बाबत पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किया गया है, समर्थन में उन्हें सुने जाने में समर्थ बनाने के लिए, पूर्व सूचना दिए बिना मंजूर नहीं किया जाएगा, और

(ख) कोई ऐसा आवेदन, ऐसी नई बात या साक्ष्य के पता चलने के आधार पर, जिसके बारे में आवेदक यह अभिकथन करता है कि वह उसकी जानकारी में नहीं था या उसके द्वारा उस समय पेश नहीं किया जा सका जब आदेश किया गया था, ऐसे अभिकथन के सबूत के बिना मंजूर नहीं किया जाएगा ।

(5) पुनर्विलोकन के लिए किए गए आवेदन को नामंजूर करने वाले अधिकारी के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं होगी किंतु इस अधिनियम के अधीन अपील पुनर्विलोकन के अधीन पारित आदेश के विरुद्ध होगी, मानो पुनर्विलोकन के अधीन पारित आदेश धारा 7क के अधीन उसके द्वारा पारित मूल आदेश है ।

7ग. छूट गई रकम का अवधारण-जहां नियोजक से धारा 7क या धारा 7ख के अधीन शोध्य रकम का अवधारण करने वाला आदेश पारित किया गया है वहां और यदि अधिकारी के पास जिसने आदेश पारित किया है,-

(क) यह विश्वास करने का कारण है कि किसी दस्तावेज या रिपोर्ट को उपलब्ध कराने में या नियोजक द्वारा शोध्य रकम का अवधारण करने के लिए आवश्यक सभी तात्त्विक तथ्य पूर्णतः और सही तौर पर प्रकट करने में नियोजक की ओर से हुए लोप या असफलता के कारण ऐसे नियोजक द्वारा किसी अवधि के लिए इस प्रकार शोध्य कोई रकम उस अधिकारी की नजर से छूट गई है,

(ख) ऐसा होते हुए भी कि नियोजक की ओर से खंड (क) में उल्लिखित कोई लोप या असफलता नहीं हुई है, उसके कब्जे की जानकारी के परिणामस्वरूप, यह विश्वास करने का कारण है कि धारा 7क या धारा 7ख के अधीन अवधारित की जाने वाली कोई रकम किसी अवधि के लिए उसके अवधारण से छूट गई है,

जो वह धारा 7क या धारा 7ख के अधीन पारित आदेश की संसूचना की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के भीतर मामले को पुनः खोल सकेगा और इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार नियोजक द्वारा शोध्य रकम को पुनः अवधारित करने वाले समुचित आदेश पारित कर सकेगा :

                परन्तु नियोजक से शोध्य रकम को पुनः अवधारित करने वाला आदेश इस धारा के अधीन तब तब पारित नहीं किया जाएगा जब तक नियोजक को अपना मामला अभ्यावेदित करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो ।

                7घ. कर्मचारी भविष्य-निधि अपील अधिकरण-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, कर्मचारी भविष्य निधि अपील अधिकरण नाम से ज्ञात एक या अधिक अधिकरण इस अधिनियम द्वारा ऐसे अधिकरण को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए गठित कर सकेगी, ऐसे और प्रत्येक अधिकरण को अधिकरण गठित करने वाली अधिसूचना में विनिर्दिष्ट क्षेत्र में स्थित स्थापनों की बाबत अधिकारिता होगी ।

                (2) अधिकरण में केवल एक व्यक्ति ऐसा होगा जो केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

                 [(3) कोई व्यक्ति किसी अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में (जिसे इसमें इसके पश्चात्, “पीठासीन अधिकारी" कहा गया है) नियुक्ति के लिए तब तक अर्हित नहीं होगा जब तक कि वह-

(i) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश ; या

(ii) जिला न्यायाधीश,

न हो या न रहा हो या उस रूप में अर्हित न हो ।]

7ङ. पदावधि-किसी अधिकरण का पीठासीन अधिकारी उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए या जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, पद धारण करेगा ।

7च. पदत्याग- [(1)] पीठासीन अधिकारी, केंद्रीय सरकार को अपने हस्ताक्षर से लिखित रूप में सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा :

परंतु पीठासीन अधिकारी, जब तक कि उसे केंद्रीय सरकार द्वारा अपना पद शीघ्र ही छोड़ने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाता, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक कि ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीन मास समाप्त नहीं हो जाते या जब तक उसके पदोत्तरवर्ती के रूप में सम्यक् रूप से नियुक्त व्यक्ति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता या जब तक उसकी पदावधि समाप्त नहीं हो जाती, इनमें से जो भी पूर्वतर हो ।

 [(2) पीठासीन अधिकारी को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश द्वारा ऐसी जांच किए जाने के पश्चात्, जिसमें ऐसे पीठासीन अधिकारी को उसके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की सूचना दे दी गई हो और उन आरोपों के सम्बन्ध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दे दिया गया हो, साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर राष्ट्रपति ने आदेश न किया हो ।

(3) केंद्रीय सरकार, पीठासीन अधिकारी के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण की प्रक्रिया का, नियमों द्वारा, विनियमन           कर सकेगी ।]

7छ. पीठासीन अधिकारी का वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें-पीठासीन अधिकारी को संदेय वेतन तथा भत्ते और उसकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें (जिसके अंतर्गत पेंशन, उपदान और अन्य सेवानिवृत्ति फायदे हैं) वे होंगी, जो विहित    की जाएं :

परन्तु पीठासीन अधिकारी के वेतन और भत्तों या उसकी सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में, उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अहितकर रूप में परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।

7ज. अधिकरण के कर्मचारिवृंद-(1) केंद्रीय सरकार अधिकरण को उसके कृत्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए अपेक्षित अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के स्वरूप और प्रवर्गों का अवधारण करेगी और अधिकरण को उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जितने वह ठीक समझे ।

(2) अधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी अपने कृत्यों का निर्वहन पीठासीन अधिकारी के साधारण अधीक्षण के                अधीन करेंगे ।

(3) अधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो विहित              की जाएं ।

7झ. अधिकरण को अपील-(1) केंद्रीय सरकार द्वारा निकाली गई किसी अधिसूचना या केंद्रीय सरकार या किसी प्राधिकारी द्वारा धारा 1 की उपधारा (3) के परंतुक या उपधारा (4), या धारा 3, या धारा 7क की उपधारा (1), या धारा 7ख [उसकी उपधारा (5) में निर्दिष्ट पुनर्विलोकन के लिए आवेदन नामंजूर करने वाले आदेश के सिवाय] या धारा 7ग, या धारा 14ख के अधीन पारित किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसे आदेश के विरुद्ध, अधिकरण को अपील कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अपील, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से, ऐसे समय के भीतर की जाएगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो विहित की जाए ।

7ञ. अधिकरण की प्रक्रिया-(1) अधिकरण को अपनी शक्ति के प्रयोग या अपने कृत्यों के निर्वहन से उद्भूत सभी विषयों में अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति होगी जिसके अंतर्गत वे स्थान भी हैं जहां अधिकरण अपनी बैठक करेगा ।

(2) अधिकरण को अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिए ऐसी सभी शक्तियां होंगी जो धारा 7क में निर्दिष्ट अधिकारियों में निहित हैं और अधिकरण के समक्ष किसी कर्यवाही को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ में और धारा 196 के प्रयोजन के लिए न्यायिक कार्यवाही समझा जाएगा और अधिकरण को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।

7ट. अपीलार्थी का विधि व्यवसायी की सहायता लेने का और सरकार, आदि का उपस्थापन अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार-(1) इस अधिनियम के अधीन किसी अधिकरण को अपील करने वाला व्यक्ति, अधिकरण के समक्ष स्वयं हाजिर हो सकेगा या अपना मामला उपस्थापित करने के लिए अपनी पसंद के किसी विधि व्यवसायी की सहायता ले सकेगा ।

(2) केंद्रीय सरकार या कोई राज्य सरकार या इस अधिनियम के अधीन कोई प्राधिकारी एक या अधिक विधि व्यवसायियों की या अपने अधिकारियों में से किसी को उपस्थापन अधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और उसके द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति अधिकरण के समक्ष किसी अपील की बाबत मामला उपस्थापित कर सकेगा ।

7ठ. अधिकरण के आदेश-(1) अधिकरण अपील के पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् उस आदेश को, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पुष्ट, उपांतरित या बातिल करते हुए, उस पर ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे अथवा मामले को उस प्राधिकारी के पास, जिसमें ऐसा आदेश किया है, ऐसे निदेशों के साथ, जो अधिकरण ठीक समझे, अतिरिक्त साक्ष्य, यदि आवश्यक हो, लेने के पश्चात्, यथास्थिति, नए सिरे से न्यायनिर्णयन या आदेश के लिए वापस निर्दिष्ट कर सकेगा ।

(2) अधिकरण, अपने आदेश की तारीख से पांच वर्ष के भीतर किसी भी समय, अभिलेख के देखने से ही प्रकट भूल को सुधारने की दृष्टि से उपधारा (1) के अधीन उसके द्वारा पारित किसी आदेश को संशोधित कर सकेगा और आदेश में ऐसा संशोधन करेगा यदि अपील के पक्षकारों द्वारा ऐसी भूल को उसकी जानकारी में लाया जाता है :

परंतु ऐसा कोई संशोधन, जिसका प्रभाव नियोजक द्वारा शोध्य रकम में वृद्धि करने या अन्यथा उसका दायित्व बढ़ाने में होता है, इस उपधारा के अधीन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि अधिकरण में उसको ऐसा करने के अपने आशय की सूचना न दी हो और उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर अनुज्ञात न किया हो ।

(3) अधिकरण इस धारा के अधीन पारित प्रत्येक आदेश की प्रति अपील के पक्षकारों को भेजेगा ।

(4) अधिकरण द्वारा अपील का अंतिम रूप से निपटारा करते हुए किया गया कोई आदेश किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।

 *                                             *                                              *                                              *                                              *

7ण. अपील फाइल करने पर शोध्य रकम का निक्षेप-नियोजक द्वारा की गई अपील अधिकरण द्वारा तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक कि उसने धारा 7क में निर्दिष्ट अधिकारी द्वारा अवधारित उसके द्वारा शोध्य रकम का पचहत्तर प्रतिशत अधिकरण के पास जमा न कर दिया हो :

परंतु अधिकरण, कारण लेखबद्ध करके, इस धारा के अधीन जमा की जाने वाली रकम का अधित्यजन कर सकेगा या उसे कम कर सकेगा ।

7त. कुछ आवेदनों का अधिकरण को अंतरण-ऐसे सभी आवेदन जो धारा 19क के निरसन से पूर्व उसके अधीन केंद्रीय सरकार के समक्ष लंबित हैं, ऐसे स्थापनों की बाबत जिनके संबंध में ऐसे आवेदन किए गए थे, अधिकारिता का प्रयोग करने वाले अधिकरण को अंतरित हो जाएंगे मानो ऐसे आवेदन अधिकरण को की गई अपील है ।

7थ. नियोजक द्वारा संदेय ब्याज-नियोजक, इस अधिनियम के अधीन शोध्य किसी रकम पर, उस तारीख से, जिसको रकम इस प्रकार शोध्य हो गई है, उसके वास्तविक संदाय की तारीख तक बारह प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज या ऐसा उच्चतर ब्याज, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट किया जाए, संदाय करने का दायी होगा :

परंतु स्कीम में विनिर्दिष्ट ब्याज की उच्चतर दर किसी अनुसूचित बैंक द्वारा ऋण पर प्रभारित ब्याज की दर से अधिक                नहीं होगी ।]

 [8. नियोजनों से शोध्य धनों की वसूली का ढंग-कोई भी रकम जो-

(क) नियोजक से उस  [स्थापन] के सम्बन्ध में जिसे कोई  [स्कीम या बीमा स्कीम] लागू होती है,  [यथास्थिति, निधि या बीमा निधि] को संदेय किसी अभिदाय की, धारा 14ख के अधीन वसूल की जा सकने वाली किसी नुकसानी के, धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन  [या धारा 17 की उपधारा (5) के अधीन] अन्तरित किए जाने के लिए अपेक्षित किन्हीं संचयों के बारे में या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के या 4[स्कीम या बीमा स्कीम] के किसी उपबन्ध के अधीन उसके द्वारा संदेय किन्हीं प्रभारों के बारे में ; अथवा

(ख) नियोजक से छूट प्राप्त  [स्थापन] के सम्बन्ध में, धारा 14ख के अधीन वसूल की जा सकने वाली किसी नुकसानी के बारे में या इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन या उन शर्तों में से जो  [धारा 17 के अधीन] विनिर्दिष्ट है किसी शर्त के अधीन उसके द्वारा समुचित सरकार को संदेय किन्हीं प्रभारों के बारे में 2[या उक्त धारा 17 के अधीन]  [पेंशन] स्कीम के लिए उसके द्वारा संदेय अभिदाय के बारे में],

शोध्य है, यदि वह रकम बकाया में है तो,  [ [केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त द्वारा या ऐसे किसी अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे वह, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे, उसी रीति से वसूल की जा सकेगीट जिसमें भू-राजस्व की बकाया वसूल की जाती है ।]

 [8क. नियोजकों और ठेकेदारों द्वारा धन की वसूली-(1) ठेकेदार के द्वारा या माध्यम से नियोजित कर्मचारी के बारे में नियोजक द्वारा संदत्त या संदेय  [अभिदाय की रकम (अर्थात् किसी स्कीम के अनुसरण में नियोजक अभिदाय और कर्मचारी अभिदाय और बीमा स्कीम के अनुसरण में नियोजक अभिदाय) और  *** कोई प्रभार जो निधि के प्रशासन के खर्चे की पूर्ति के लिए हों ऐसे नियोजक द्वारा ठेकेदार से या तो किसी संविदा के अधीन ठेकेदार को संदेय किसी रकम में से कटौती करके या ऐसा ऋण के रूप में जो ठेकेदार द्वारा चुकाया जाना है, वसूल किए जा सकेंगे ।

(2) वह ठेकेदार, जिससे उसके द्वारा या माध्यम से नियोजित किसी कर्मचारी के बारे में उपधारा (1) में वर्णित रकम वसूल की जा सकती है  [किसी स्कीम के अधीन] कर्मचारी अभिदाय को, ऐसे कर्मचारी को संदेय आधारिक मजदूरी में से, महंगाई भत्ते में से और प्रतिधारण भत्ते में से (यदि कोई हो) कटौती करके ऐसे कर्मचारी से वसूल कर सकेगा ।

(3) किसी प्रतिकूल संविदा के होते हुए भी कोई भी ठेकेदार नियोजक-अभिदाय की या उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रभारों की कटौती अपने द्वारा या माध्यम से नियोजित किसी कर्मचारी को संदेय आधारिक मजदूरी में से, महंगाई  भत्ते में से और प्रतिधारण भत्ते में से (यदि कोई हो) करने का या ऐसे अभिदाय या प्रभारों को ऐसे कर्मचारी से अन्यथा वसूल करने का हकदार नहीं होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा में “महंगाई भत्ते" और प्रतिधारण भत्ते" पदों के वही अर्थ होंगे जो धारा 6 में हैं ।

 [8ख. वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र का जारी किया जाना-(1) जहां धारा 8 के अधीन कोई रकम बकाया है वहां प्राधिकृत अधिकारी, वसूली अधिकारी को अपने हस्ताक्षर से एक प्रमाणपत्र जारी कर सकेगा जिसमें बकाया की रकम विनिर्दिष्ट होगी और वसूली अधिकारी ऐसे प्रमाणपत्र के प्राप्त होने पर, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को, यथास्थिति, स्थापन या नियोजक से वसूल करने के लिए नीचे उल्लिखित एक या अधिक रीतियों से कार्यवाही करेगा-

(क) यथास्थिति, स्थापन या नियोजक की जंगम या स्थावर संपत्ति की कुर्की और विक्रय ;

(ख) नियोजक की गिरफ्तारी और कारागार में उसका निरोध ;

(ग) यथास्थिति, स्थापन या नियोजक की जंगम या स्थावर संपत्तियों के प्रबंध के लिए रिसीवर                               नियुक्त करना :

परन्तु इस धारा के अधीन किसी संपत्ति की कुर्की और विक्रय प्रथमतः स्थापन की सम्पत्तियों के विरुद्ध किया जाएगा और जहां ऐसी कुर्की और विक्रय प्रमाणपत्र में विनिर्दिष्ट बकाया की संपूर्ण रकम को वसूल करने के लिए अपर्याप्त है वहां, वसूली अधिकारी ऐसे संपूर्ण बकाया या उसके किसी भाग की वसूली के लिए नियोजक की संपत्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही करेगा ।

(2) प्राधिकृत अधिकारी, इस बात के होते हुए भी कि किसी अन्य रीति से बकाया रकम की वसूली के लिए कार्यवाहियां की गई हैं, उपधारा (1) के अधीन प्रमाणपत्र जारी कर  सकेगा ।

8ग. वसूली अधिकारी जिसको प्रमाणपत्र भेजा जाएगा-(1) प्राधिकृत अधिकारी धारा 8ख में निर्दिष्ट प्रमाणपत्र उस वसूली अधिकारी को भेज सकेगा जिसकी अधिकारिता के भीतर-

(क) नियोजक अपना कारबार या वृत्ति करता है या जिसकी अधिकारिता के भीतर उसके स्थापन का मुख्य स्थान स्थित है ; या

(ख) नियोजक निवास करता है या स्थापन या नियोजक की कोई जंगम या स्थावर संपत्ति स्थित है ।

(2) जहां स्थापन या नियोजक की संपत्ति एक से अधिक वसूली अधिकारियों की अधिकारिता के भीतर है और वह वसूली अधिकारी जिसे प्राधिकृत अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र भेजा गया है-

(क) अपनी अधिकारिता के भीतर की जंगम या स्थावर संपत्ति के विक्रय द्वारा समस्त रकम वसूल करने में समर्थ नही है; या

(ख) उसकी यह राय है कि संपूर्ण रकम या उसके किसी भाग की वसूली शीघ्र पूरा करने या सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए ऐसा करना आवश्यक है,

वहां वह उस प्रमाणपत्र को या जहां रकम का केवल एक भाग वसूल करना है वहां, विहित रीति से प्रमाणित और उस वसूली अधिकारी द्वारा वसूल की जाने वाली रकम को विनिर्दिष्ट करते हुए, जिसकी अधिकारिता के भीतर स्थापन या नियोजक की संपत्ति है या नियोजक  निवास करता है, प्रमाणपत्र की एक प्रति भेज सकेगा और तदुपरि वह वसूली अधिकारी इस धारा के अधीन देय रकम को वसूल करने की कार्यवाही उसी प्रकार करेगा मानो प्रमाणपत्र या उसकी प्रति प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उसको भेजी गई है ।

8घ. प्रमाणपत्र की विधिमान्यता और उसका संशोधन-(1) जब प्राधिकृत अधिकारी धारा 8ख के अधीन किसी वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी करता है, तो नियोजक को यह हक नहीं होगा कि वह वसूली अधिकारी के समक्ष रकम की शुद्धता के बारे में विवाद करे और प्रमाणपत्र के बारे में किसी अन्य आधार पर भी कोई आक्षेप वसूली अधिकारी द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा ।

(2) इस बात के होते हुए भी कि किसी वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी किया गया है, प्राधिकृत अधिकारी को प्रमाणपत्र वापस लेने या वसूली अधिकारी को सूचना भेज कर प्रमाणपत्र में किसी लेखन या गणित संबंधी भूल को सुधारने की शक्ति होगी ।

(3) प्राधिकृत अधिकारी, वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र वापस लेने या रद्द करने वाले आदेशों या उपधारा (2) के अधीन उसके द्वारा सुधार करने या धारा 8ङ की उपधारा (4) के अधीन किए गए किसी संशोधन के बारे में सूचना देगा ।

8ङ. प्रमाणपत्र के अधीन कार्यवाहियों का रोका जाना और उसका संशोधन या उसे वापस लिया जाना-(1) इस बात के होते हुए भी कि प्रमाणपत्र वसूली अधिकारी को किसी रकम की वसूली के लिए जारी किया गया है, प्राधिकृत अधिकारी रकम के संदाय के लिए समय मंजूर कर सकेगा और तब वसूली अधिकारी इस प्रकार मंजूर किए गए समय के समाप्त होने तक कार्यवाहियों को                     रोक सकेगा ।

(2) जहां रकम की वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है, वहां प्राधिकृत अधिकारी, वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र  ऐसे जारी करने के पश्चात् संदत्त किसी रकम या संदाय के लिए मंजूर किए गए समय के बारे में सूचना देता रहेगा ।

(3) जहां उस रकम की मांग को उठाने वाले आदेश को, जिसकी वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया है, इस अधिनियम के अधीन अपील या अन्य कार्यवाही में उपांतरित किया गया है और उसके परिणामस्वरूप मांग कम हो गई है किंतु आदेश इस अधिनियम के अधीन आगे कार्यवाही करने की विषयवस्तु है, वहां प्राधिकृत अधिकारी प्रमाणपत्र की रकम के उतने भाग की वसूली को, जो कमी की जाने से संबंधित है, उस अवधि के लिए रोक देगा जिसके लिए अपील या अन्य कार्यवाही लंबित रहती है ।

(4) जहां रकम की वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया है और बाद में परादेय मांग की रकम इस अधिनियम के अधीन अपील या अन्य कार्यवाही के परिणामस्वरूप कम कर दी गई वहां प्राधिकृत अधिकारी जब वह आदेश, जो ऐसी अपील या अन्य कार्यवाही की विषयवस्तु था; अन्तिम और निश्चायक हो गया है तो, यथास्थिति, प्रमाणपत्र को संशोधित करेगा या उसे वापस ले लेगा ।

8च. वसूली की अन्य रीतियां-(1) इस बात के होते हुए भी कि धारा 8ख के अधीन वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी किया गया है, केंद्रीय भविष्य-निधि उपायुक्त या केंद्रीय बोर्ड द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी इस धारा में उपबंधित किसी एक या अधिक रीतियों से रकम वसूल कर सकेगा ।

(2) यदि कोई रकम किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे नियोजक को जिस पर बकाया है, शोध्य है, तो केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या केंद्रीय बोर्ड द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी, ऐसे व्यक्ति से उक्त रकम में से इस अधिनियम के अधीन ऐसे नियोजक द्वारा शोध्य बकाया की कटौती करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसा व्यक्ति किसी ऐसी अध्यपेक्षा का अनुपालन करेगा और इस प्रकार कटौती की गई राशि का संदाय, यथास्थिति, केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी के खाते में करेगा :

परंतु इस उपधारा की कोई बात सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 60 के अधीन सिविल न्यायालय की डिक्री के निष्पादन में कुर्की से छूट प्राप्त रकम के किसी भाग को लागू नहीं होगी ।

(3) (i) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, या केंद्रीय बोर्ड द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी किसी भी समय या समय-समय पर लिखित रूप में सूचना द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति से जिससे, यथास्थिति, नियोजक या स्थापन को धन शोध्य है या शोध्य हो जाएगा या किसी ऐसे व्यक्ति से जो बाद में, यथास्थिति, नियोजक या स्थापन के लिए या उसके मद्धे धन धारण करता है या धारण करेगा, अपेक्षा कर सकेगा कि वह केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त को धन शोध्य हो जाने या धारित किए जाने पर तुरंत या सूचना में विनिर्दिष्ट समय के भीतर (जो धन शोध्य होने या धारित होने के पहले नहीं होगा) उतने धन का संदाय करे जितना धन बकाया की बाबत नियोजक द्वारा शोध्य रकम का संदाय करने के लिए पर्याप्त है या समस्त धन का संदाय करे, जब वह उस रकम के बराबर या उससे कम है ।

(ii) इस उपधारा के अधीन कोई सूचना किसी ऐसे व्यक्ति को जारी की जा सकेगी जो किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से नियोजक के लिए या उसके मद्धे कोई धन धारण करता है या बाद में धारण करेगा और इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे खाते में संयुक्त धारकों के अंशों के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वे बराबर-बराबर हैं, जब तक कि इसको प्रतिकूल साबित नहीं कर                       दिया जाता ।

(iii) सूचना की एक प्रति नियोजक को, यथास्थिति, केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उसके अंतिम ज्ञात पते पर भेजी जाएगी और संयुक्त खाते की दशा में, सभी संयुक्त धारकों को केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उनके अंतिम ज्ञात पतों पर भेजी जाएगी ।

(iv) इस उपधारा में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसको इस उपधारा के अधीन सूचना जारी की गई है, ऐसी सूचना का अनुपालन करने के लिए आबद्ध होगा और विशिष्टतया, जहां कोई ऐसी सूचना किसी डाकघर, बैंक या किसी बीमाकर्ताओं को जारी की गई है, वहां कोई प्रतिकूल नियम, पद्धति या अपेक्षा होते हुए भी यह आवश्यक नहीं होगा कि कोई पास बुक, जमा रसीद, पालिसी या कोई अन्य दस्तावेज संदाय के पूर्व कोई प्रविष्टि, पृष्ठांकन करने या उसी प्रकार के प्रयोजन के लिए पेश           किया जाए ।

(v) किसी ऐसी संपत्ति की बाबत जिसके संबंध में इस उपधारा के अधीन सचूना जारी की गई है, सूचना की तारीख के पश्चात् उद्भूत होने वाला कोई दावा, सूचना में अंतर्विष्ट किसी मांग के मुकाबले, शून्य होगा ।

(vi) जहां ऐसा व्यक्ति, जिसको इस उपधारा के अधीन सूचना भेजी गई है, शपथ पर कथन करके उस पर यह आक्षेप करता है कि मांगी गई राशि या उसका कोई भाग नियोजक के प्रति, शोध्य नहीं है या वह नियोजक के लिए या उसके मद्धे कोई धन धारण नहीं करता है, वहां इस उपधारा की किसी बात से ऐसे व्यक्ति से, यथास्थिति, किसी ऐसी राशि या उसके भाग का संदाय करने की अपेक्षा नहीं की गई समझी जाएगी, किंतु यदि यह पता चलता है कि किसी तात्त्विक विशिष्टि में, ऐसा कथन मिथ्या था तो ऐसा व्यक्ति केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी के प्रति, सूचना की तारीख को नियोजक के प्रति उसके स्वयं के दायित्व के परिणाम तक या इस अधिनियम के अधीन शोध्य किसी राशि के लिए नियोजक के दायित्व के परिणाम तक, दोनों में से जो भी कम है, वैयक्तिक रूप से दायी होगा ।

(vii) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी किसी भी समय या समय-समय पर, इस उपधारा के अधीन जारी की गई किसी सूचना को संशोधित या प्रतिसंहृत कर सकेगा या ऐसी सूचना के अनुसरण में कोई संदाय करने के लिए समय बढ़ा सकेगा ।

(viii) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी इस उपधारा के अधीन जारी की गई सूचना के अनुपालन में संदत्त किसी रकम की रसीद देगा और इस प्रकार संदाय करने वाले व्यक्ति को इस प्रकार संदत्त रकम की मात्रा तक नियोजक के प्रति उसके दायित्व से पूर्णतः निर्मोचित किया जाएगा ।

(ix) इस उपधारा के अधीन सूचना की प्राप्ति के पश्चात् नियोजक के किसी दायित्व का निर्वहन करने वाला कोई व्यक्ति, केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी के प्रति अपने स्वयं के दायित्व की मात्रा तक या इस अधिनियम के अधीन शोध्य किसी राशि के लिए नियोजक के दायित्व की मात्रा तक, दोनों में से जो भी कम हो, वैयक्तिक रूप से दायी होगा ।

(x) यदि वह व्यक्ति, जिसको इस उपधारा के अधीन सूचना भेजी गई है, केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी को उसके अनुसरण में संदाय करने में असफल रहता है, तो उसे सूचना में विनिर्दिष्ट रकम की बाबत व्यतिक्रमी-नियोजक समझा जाएगा और रकम की वसूली के लिए धारा 8ख से धारा 8ङ, में उपबंधित रीति से आगे कार्यवाही उसके विरुद्ध उसी प्रकार की जाएगी मानों उसकी ओर से बकाया रकम शोध्य हो और सूचना का वैसा ही प्रभाव होगा जैसा वसूली अधिकारी द्वारा धारा 8ख के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए की गई किसी ऋण की कुर्की में होता है ।

(4) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या केंद्रीय बोर्ड द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी धन की समस्त रकम या यदि वह शोध्य रकम से अधिक है तो उस रकम के संबंध में जो शोध्य रकम चुकाने के लिए पर्याप्त हो, उस न्यायालय को आवेदन कर सकेगा जिसकी अभिरक्षा में उसको संदाय के लिए नियोजक का धन है ।

(5) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या कोई अधिकारी, जो सहायक भविष्य-निधि आयुक्त की पंक्ति से नीचे का न हो, यदि उसे केंद्रीय सरकार द्वारा, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस प्रकार प्राधिकृत किया गया है तो, यथास्थिति, नियोजक या स्थापन द्वारा शोध्य रकम की कोई बकाया, आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की दूसरी अनुसूची और तीसरी अनुसूची में अधिकथित रीति से उसकी जंगम सम्पत्ति के करस्थम् और विक्रय द्वारा वसूल कर सकेगा।]

8छ. आय-कर अधिनियम के कतिपय उपबंधों का लागू होना-आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की दूसरी अनुसूची और तीसरी अनुसूची के उपबंध और समय-समय पर यथाप्रवृत्त आय-कर (प्रमाणपत्र कार्यवाही) नियम, 1962, आवश्यक उपांतरणों सहित लागू उसी प्रकार होंगे मानो उक्त उपबंध और नियम, आय-कर के बजाय इस अधिनियम की धारा 8 में उल्लिखित रकम के बकाया के प्रति निर्दिष्ट हैं :

परंतु “निर्धारिती" के प्रति उक्त उपबंधों और नियमों में किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम में परिभाषित नियोजक के प्रति निर्देश है ।]

9. निधि को 1922 के अधिनियम 11 के अधीन मान्यता का दिया जाना-भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि निधि उस अधिनियम के अध्याय 9क के अर्थान्तर्गत मान्यताप्राप्त भविष्य-निधि है :

 [परन्तु उक्त अध्याय की कोई बात इस प्रकार प्रभावशील न होगी कि वह उस स्कीम के (जिसके अधीन निधि स्थापित की गई है) किसी ऐसे उपबंध को, जो उस अध्याय के या तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों में से किसी के विरुद्ध हो, प्रभावहीन                बना दे ।]

10. कुर्की के विरुद्ध संरक्षण-(1) वह रकम जो किसी सदस्य के नाम निधि में  [या किसी छूट-प्राप्त कर्मचारी के नाम भविष्य-निधि में] जमा है किसी प्रकार से समनुदिष्ट या भारित किए जाने योग्य न होगी और उस सदस्य 2[या छूट-प्राप्त कर्मचारी] द्वारा उपगत किसी ऋण या दायित्व के बारे में किसी न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश के अधीन कुर्क नहीं की जा सकेगी और न तो प्रेसिडेंसी नगर दिवाला अधिनियम, 1909 (1909 का 3) के अधीन नियुक्त शासकीय समनुदेशिती और न प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) के अधीन नियुक्त कोई रिसीवर ऐसी किसी रकम का हकदार होगा या उस पर कोई दावा रखेगा ।

 [(2) कोई रकम जो किसी सदस्य के नाम निधि में या किसी छूट-प्राप्त कर्मचारी के नाम भविष्य-निधि में उसकी मृत्यु के समय जमा है और उस स्कीम के अधीन या उस भविष्य-निधि के नियमों के अधीन उसके नामनिर्देशिती को देय है और उक्त स्कीम या नियमों द्वारा प्राधिकृत किसी कटौती के अधीन रहते हुए, नामनिर्देशिती में निहित होगी और मृतक द्वारा उपगत या उस सदस्य या छूट-प्राप्त कर्मचारी की मृत्यु के पूर्व उसके नामनिर्देशिती द्वारा उपगत किसी ऋण या अन्य दायित्व से मुक्त होगी  [और किसी न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश के अधीन कुर्की के दायित्वाधीन भी नहीं होगी ।]

 [(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबन्ध,  [पेंशन] स्कीम के अधीन संदेय 6[पेंशन] या किसी अन्य रकम के सम्बन्ध में  [और बीमा स्कीम के अधीन संदेय किसी रकम के सम्बन्ध में भी] जहां तक हो सके, वैसे ही लागू होंगे जैसे वे निधि में से संदेय किसी रकम के सम्बन्ध में लागू होते हैं ।]

11. अभिदायों के संदाय की अन्य ऋणों पर पूर्विकता- [(1)]  [जहां कोई नियोजक दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जाता है, या यदि वह कम्पनी है तो उसे परिसमापन के लिए आदेश दिया जाता है वहां किसी ऐसी रकम के बारे में जो-

(क)  [यथास्थिति, निधि या बीमा निधि] को देय किसी अभिदाय की बाबत धारा 14ख के अधीन वसूल की जा सकने वाली नुकसानी की बाबत, धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन अन्तरित किए जाने के लिए अपेक्षित संचयों की बाबत या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के या  [स्कीम या बीमा स्कीम] के किसी उपबन्ध के अधीन उसके द्वारा देय किन्हीं प्रभारों की बाबत उस  [स्थापन] के सम्बन्ध में, जिसे कोई 10[स्कीम या बीमा स्कीम] लागू है, नियोजक द्वारा शोध्य है ; या

(ख)  [भविष्य-निधि या कोई बीमा निधि] के नियमों के अधीन 13[भविष्य-निधि या कोई बीमा निधि] को कोई अभिदाय (जहां तक वह छूट-प्राप्त कर्मचारियों से सम्बन्धित है),  [धारा 17 की उपधारा (6) के अधीन 6[पेंशन] निधि को उसके द्वारा संदेय कोई अभिदाय] धारा 14ख के अधीन वसूल की जा सकने वाली नुकसानी की बाबत या इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन या धारा 17 के अधीन विनिर्दिष्ट शर्तों में से किसी के अधीन समुचित सरकार को उसके द्वारा देय किन्हीं प्रभारों के बारे में छूट-प्राप्त  [स्थापन] के सम्बन्ध में नियोजक द्वारा शोध्य है,

यदि उसके लिए दायित्व न्यायनिर्णयन या परिसमापन के आदेश के किए जाने से पूर्व प्रोद्भूत हुआ है तो यह समझा जाएगा कि वह, उन ऋणों के अन्तर्गत आती है जिन्हें प्रेसिडेन्सी नगर दिवाला अधिनियम, 1909 (1909 का 3) की धारा 49 के अधीन या प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) की धारा 61 के अधीन या  [कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 530ट के अधीन, यथास्थिति, दिवालिए की सम्पत्ति के या उस कम्पनी की आस्तियों के जिसका परिसमापन हो रहा है वितरण में अन्य सभी ऋणों पर पूर्विकता देकर चुकाया जाना है ।

 [स्पष्टीकरण-इस धारा में और धारा 17 में “बीमा निधि" से कर्मचारियों को जीवन बीमा के रूप में प्रसुविधाओं का उपबन्ध करने के लिए किसी स्कीम के अधीन किसी नियोजक द्वारा स्थापित कोई निधि, चाहे वह भविष्य-निधि में उनके निक्षेपों से सहबद्ध हो या नहीं अभिप्रेत है, जिसमें कर्मचारियों से उस निमित्त किसी पृथक् अभिदाय या प्रीमियम का संदाय न किया हो ।]

 [(2) उपधारा (1) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि  [कोई रकम, चाहे वह कर्मचारी के अभिदाय (कर्मचारियों की मजदूरी से कटौती किए गए), या नियोजक के अभिदाय के बारे में हो,] नियोजक द्वारा शोध्य है तो इस प्रकार शोध्य रकम स्थापन की आस्तियों पर प्रथम भार समझी जाएगी और तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, अन्य सभी ऋणों पर पूर्विकता देकर चुकाई जाएगी ।

 [12. नियोजक का मजदूरी आदि कम नहीं करना-कोई भी नियोजक किसी ऐसे  [स्थापन] के सम्बन्ध में जिसे कोई  [स्कीम या बीमा स्कीम] लागू है इस अधिनियम के या 7[स्कीम या बीमा स्कीम] के अधीन  [निधि या बीमा निधि] में किसी अभिदाय का या किन्हीं प्रभारों का संदाय करने के अपने दायित्व के कारण ही उस कर्मचारी की, जिसे 7[स्कीम या बीमा स्कीम] लागू है मजदूरी को, या वार्धक्य पेंशन, उपदान या  [भविष्य-निधि या जीवन बीमा] की प्रकृति वाली प्रसुविधाओं की, जिनके लिए कर्मचारी अपने नियोजन के अभिव्यक्त या विवक्षित निबन्धनों के अधीन हकदार है, कुल मात्रा को प्रत्यक्षतः या परोक्षतः कम नहीं करेगा ।]

13. निरीक्षक-(1) समूचित सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझती है  [इस अधिनियम, स्कीम]  [,  [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] के प्रयोजनों के लिए निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी, और उनकी अधिकारिता को परिनिश्चित कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया कोई भी निरीक्षक इस अधिनियम के या किसी  [स्कीम का बीमा स्कीम] के सम्बन्ध में दी गई किसी जानकारी के सही होने की जांच करने के प्रयोजन के लिए या यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या  [उस  [स्थापन] के बारे में, जिसे कोई 13[स्कीम या बीमा स्कीम] लागू है इस अधिनियम के या किसी 13[स्कीम या बीमा स्कीम] के उपबन्धों में से किन्हीं का अनुपालन हुआ है या यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या इस अधिनियम या किसी 13[स्कीम या बीमा स्कीम] के उपबन्ध किसी ऐसे 15[स्थापन] को लागू है जिसे 13[स्कीम या बीमा स्कीम] लागू नहीं की गई है या यह अवधारण करने के प्रयोजन के लिए कि क्या उन शर्तों का जिनके अधीन धारा 17 के अधीन छूट अनुदत्त की गई थी, छूट-प्राप्त 6[स्थापन] के सम्बन्ध में नियोजक द्वारा अनुपालन किया जा रहा है ]]-

(क) नियोजक से  [या किसी ऐसे ठेकेदार से जिससे कोई रकम धारा 8क के अधीन वसूल की जा सकती है] ऐसी जानकारी देने की अपेक्षा कर सकेगा जैसी वह  *** आवश्यक समझे :

(ख) किसी युक्तियुक्त समय पर  [और ऐसी सहायता के साथ, यदि कोई हो, जो वह ठीक समझे] किसी भी 6[स्थापन] में या उससे संसक्त परिसरों में 18[प्रवेश कर सकेगा और उनकी तलाशी ले सकेगा] और उनके भारसाधक पाए गए व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उस 6[स्थापन] में व्यक्तियों के नियोजन से या मजदूरियों के संदाय से सम्बन्धित किन्हीं लेखाओं, बहियों, रजिस्टरों और अन्य दस्तावेजों को परीक्षा के लिए उसके समक्ष पेश करे :

(ग)  पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी से सुसंगत किसी बात के बारे में नियोजक की  [या किसी ऐसे ठेकेदार की, जिससे कोई रकम धारा 8क के अधीन वसूल की जा सकती है] उसके अभिकर्ता या सेवक की या 6[स्थापन] या उससे संसक्त किसी परिसर का भारसाधक पाए गए किसी अन्य व्यक्ति की या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति की, जिसके बारे में निरीक्षक के पास यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त हेतुक है कि वह व्यक्ति उस   [स्थापन] में नियोजित है या रहा है, परीक्षा कर सकेगा :

 [(घ) स्थापन के सम्बन्ध में रखी गई किसी बही, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज की प्रतिलिपियां कर सकेगा या उनसे उद्धरण ले सकेगा, और जहां उसे यह विश्वास करने का कारण है कि नियोजक द्वारा इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है वहां ऐसी बही, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज या उसके प्रभागों का जिसे या जिन्हें वह उस अपराध के बारे में सुसंगत समझे ऐसी सहायता से जैसी वह ठीक समझे अधिग्रहण कर सकेगा :]

(ङ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो  [स्कीम या बीमा स्कीमट उपबन्धित करे ।

 [(2क) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया कोई भी निरीक्षक,  [पेंशन] स्कीम के सम्बन्ध में दी गई जानकारी की शुद्धता की जांच करने के प्रयोजनार्थ या यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ के कि क्या किसी ऐसे स्थापन के सम्बन्ध में, जिसकों 5[पेंशन] स्कीम लागू होती है, इस अधिनियम या कुटुम्ब पेंशन स्कीम के किन्हीं उपबंधों का अनुपालन किया गया है, उपधारा (2) के खण्ड (क), खण्ड (ग) या खण्ड (घ) के अधीन उसे प्रदत्त सभी शक्तियों का या उनमें से किसी का प्रयोग कर सकेगा ।]

  [ [(2ख)] दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबन्ध यावत्शक्य 7[यथास्थिति, उपधारा (2) के अधीन या उपधारा (2क) के अधीनट की तलाशी या अधिग्रहण को उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उक्त संहिता की धारा 98 के अधीन निकाले गए वारण्ट के प्राधिकार के अधीन की गई तलाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं ।]

 ।                                             ।                                              ।                                              ।

14. शास्तियां-(1) जो कोई किसी ऐसे संदाय से जो  [इस अधिनियम, स्कीम  [5[पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम]] के अधीन उसके द्वारा किया जाना है, बचने के लिए या ऐसे संदाय से बचने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को समर्थ करने के प्रयोजनों से जानते हुए मिथ्या कथन या मिथ्या व्यपदेशन करेगा या कराएगा वह कारावास से, जिसकी अवधि  [एक वर्ष तक की हो सकेगी, या पांच हजार रुपए के जुर्माने से, या दोनों से] दण्डनीय होगा ।

 [(1क) जो नियोजक, धारा 6 के उपबन्धों का या धारा 17 की उपधारा (3) के खण्ड (क) का, जहां तक उसका सम्बन्ध निरीक्षण प्रभारों के संदाय से है या स्कीम के पैरा 38 का, जहां तक उसका सम्बन्ध प्रशासन प्रभारों के संदाय से है, उल्लंघन करेगा या उनके अनुपालन में व्यतिक्रम करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि 11[तीस वर्ष] तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा, किन्तु जो-

(क) नियोजक द्वारा कर्मचारी की मजदूरी में से काटे गए कर्मचारी अभिदाय के संदाय में व्यतिक्रम करने पर 12[एक वर्ष से कम का नहीं होगा और दस हजार रुपए के जुर्माने से दण्डनीय होगा ;]

 [(ख) किसी अन्य दशा में, छह मास से कम का नहीं होगा, और पांच हजार रुपए के जुर्माने से दण्डनीय होगा ।]

 *                                             *                                              *                                              *

परन्तु न्यायालय किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों के आधार पर, जो निर्णय में अभिलिखित किए जाएंगे कम अवधि के कारावास का दण्डादेश 14*** अधिरोपित कर सकेगा ।

 [(1ख) कोई नियोजक, जो धारा 6ग या धारा 17 की उपधारा (3क) के खण्ड (क) के उपबन्धों का, जहां तक वह निरीक्षण प्रभारों के संदाय से सम्बन्धित है, उल्लंघन करेगा या उनका अनुपालन करने में व्यतिक्रम करेगा, कारावास से, जिसकी अवधि 11[एक वर्ष] तक की हो सकेगी, किन्तु जो  [छह मास] से कम की नहीं होगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने का भी, जो 16[पांच हजार रुपए] तक का हो सकेगा, दायी होगा :

परन्तु न्यायालय किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों के आधार पर, जो निर्णय में अभिलिखित किए जाएंगे, कम अवधि के कारावास का दण्डादेश  *** अधिरोपित कर सकेगा ।

(2)  [इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, स्कीमट 1[ [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] यह उपबन्ध कर सकेगी कि कोई भी व्यक्ति जो उसके उपबन्धों में से किसी का उल्लंघन करेगा या इसके अनुपालन में व्यतिक्रम करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि  [एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो चार हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,] दण्डनीय होगा ।

 [(2क) जो कोई इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का या किसी ऐसी शर्त का, जिसके अधीन रहते हुए धारा 17 के अधीन छूट अनुदत्त की गई थी, उल्लंघन करेगा या उसके अनुपालन में व्यतिक्रम करेगा, वह यदि ऐसे उल्लंघन या अनुपालन के लिए इस अधिनियम के द्वारा या अधीन कोई अन्य शास्ति अन्यत्र उपबन्धित नहीं की गई है तो कारावास से, जो 4[छह मास तक हो सकेगा, किंतु जो एक मास से कम का नहीं होगा और जुर्माने का भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दायी होगा ।]

 *                                             *                                              *                                              *                                              *

 [14क. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) यदि  [इस अधिनियम, स्कीम  [ [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम]] के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कम्पनी हो तो प्रत्येक व्यक्ति जो उस उल्लंघन के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने के भागी होंगे :

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते भी जहां 9[इस अधिनियम, स्कीम 9[10[पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम]] के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया हो तथा वह साबित हो कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सम्मत्ति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(क) “कम्पनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम                     भी है ; तथा

(ख) फर्म के सम्बन्ध में निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।]

 [14कक. कुछ मामलों में पूर्व दोषसिद्धि के बाद वर्धित दण्ड-जो कोई इस अधिनियम, स्कीम [[पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] के अधीन दण्डनीय अपराध के लिए न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराए जाने पर भी वही अपराध करेगा वह ऐसे प्रत्येक पश्चात्वर्ती अपराध के लिए ऐसी अवधि के कारावास से, जो  [पांच वर्ष तक की हो सकेगी किंतु जो दो वर्ष से कम की नहीं होगी, दंडनीय होगा और जुर्माने से भी जो पच्चीस हजार रुपए तक का हो सकेगा, भागी होगा] ।

14कख. कुछ अपराध संज्ञेय होंगे-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय ऐसा अपराध, जो नियोजक द्वारा अभिदाय का संदाय करने में व्यतिक्रम से सम्बन्धित है, संज्ञेय होगा ।

14कग. अपराधों का संज्ञान और विचारण-(1) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम, स्कीम [[पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] के अधीन दण्डनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध को गठित करने वाले तथ्यों की ऐसी लिखित रिपोर्ट के सिवाय नहीं करेगा जो धारा 13 के अधीन नियुक्त निरीक्षक द्वारा केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त की या ऐसे अन्य अधिकारी की, जिसे केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे, पूर्व मंजूरी से की गई है ।

(2) प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम या स्कीम या  [ [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।]

14ख. नुकसानी वसूल करने की शक्ति-जहां नियोजक निधि  [[पेंशन] निधि या बीमा निधि] में किसी अभिदाय के संदाय में या उन संचयों के अन्तरण में, जो धारा 15 की उपधारा (2) के  [या धारा 17 की उपधारा (5) के] अधीन उसके द्वारा अन्तरित किए जाने के लिए अपेक्षित है या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के अधीन या  [किसी स्कीम या बीमा स्कीम] के किसी उपबन्ध के अधीन या धारा 17 में विनिर्दिष्ट शर्तों में से किसी के अधीन देय किन्हीं प्रभारों के संदाय में व्यतिक्रम करता है,  [केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त या ऐसे अन्य अधिकारी, जिसे केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे], बकाया  [शास्ति के रूप में बकाया की रकम से अनधिक ऐसी नुकसानी जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए] की रकम से  *** अनधिक इतनी नुकसानी, जितनी वह अधिरोपित करना ठीक समझे] नियोजक से वसूल कर सकेगा :]

 [परन्तु ऐसी नुकसानी उद्गृहीत करने और वसूल करने के पूर्व नियोजक को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान किया जाएगा :]

 [परन्तु यह और कि केंद्रीय बोर्ड ऐसे स्थापन के संबंध में, जो एक रुग्ण औद्योगिक कंपनी है और जिसकी बाबत रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1985 (1986 का 1) की धारा 4 के अधीन स्थापित औद्योगिक और वित्तीय पुनर्गठन बोर्ड द्वारा एक पुनर्वास स्कीम मंजूर की गई है, इस धारा के अधीन उद्गृहीत नुकसानी को ऐसे निबंधनों और शर्तों के अधीन रहते हुए, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए, कम कर सकेगा, या उसका अधित्यजन कर सकेगा ।]

 [14ग. न्यायालय की आदेश देने की शक्ति-(1) जहां कोई नियोजक निधि में  [ [पेंशन निधि या बीमा निधि]] में किसी अभिदाय का संदाय करने में या धारा 17 की उपधारा (5) या धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन उसके द्वारा अन्तरित किए जाने के लिए अपेक्षित संचयों के अन्तरण में व्यतिक्रम करने के अपराध के लिए, सिद्धदोष ठहराया जाता है वहां न्यायालय उसे कोई दण्ड देने के अतिरिक्त, लिखित आदेश द्वारा उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह आदेश में विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर (जिसे, यदि न्यायालय ठीक समझे तो और उस निमित्त आवेदन किए जाने पर, समय-समय पर बढ़ा सकेगा) यथास्थिति, उस अभिदाय की रकम का संदाय करे या उन संचयों का अन्तरण करे जिनके सम्बन्ध में अपराध किया गया था ।

(2) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश किया जाता है वहां नियोजक, न्यायालय द्वारा अनुज्ञात कालावधि या बढ़ाई गई कालावधि के, यदि कोई हो, दौरान अपराध के जारी रहने की बाबत इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय नहीं होगा, किन्तु यदि, यथास्थिति, ऐसी कालावधि या बढ़ाई गई कालावधि की समाप्ति पर न्यायालय के आदेश का पूर्णतः अनुपालन नहीं किया जाता है तो नियोजक के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने और अपराध किया है और उसे उसके लिए धारा 14 के अधीन कारावास से दण्डित किया जाएगा और वह जुर्माने से भी, जो ऐसी समाप्ति के पश्चात् ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब आदेश का पालन नहीं किया गया है, एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किए जाने का भागी होगा ।]

15. वर्तमान भविष्य निधियों से सम्बन्धित विशेष उपबंध-(1)  [धारा 17 उपबन्धों के अधीन रहते हुए, हर ऐसा कर्मचारी, जो उस  [स्थापन] की, जिसे यह अधिनियम लागू है, किसी भविष्य-निधि का योगदाता है जब तक उस [स्थापन] को, जिसमें वह नियोजित है,  [स्कीम लागू नहीं हो जाती] भविष्य-निधि के अधीन अपने को प्रोद्भूत होने वाली प्रसुविधाओं का हकदार बना रहेगा, और भविष्य-निधि उसी रीति में और उन्हीं शर्तों के अधीन रखी जाएगी जिसमें और जिनके अधीन वह रखी जाती यदि अधिनियम पारित न होता ।

(2) [[किसी स्थापन] को किसी स्कीम के लागू होने पर उस [स्थापन] की किसी भविष्य-निधि के वे संचय, जो उन कर्मचारियों के नाम जमा हैं जो स्कीम के अधीन स्थापित निधि के सदस्य बना जाते हैंट, किसी तत्समय प्रवृत्त विधि में या भविष्य-निधि को स्थापित करने वाले किसी विलेख या अन्य लिखत में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी किन्तु, स्कीम के उपबन्धों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए, स्कीम के अधीन स्थापित निधि को अन्तरित कर दिए जाएंगे और उनके हकदार कर्मचारियों के खातों में निधि में जमा कर दिए जाएंगे ।

16. अधिनियम का कतिपय स्थापनों को लागू होना- [(1) यह अधिनियम-

(क) सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) के अधीन किसी राज्य में सहकारी सोसाइटी से सम्बन्धित किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी ऐसे स्थापन को, जिसमें पचास से कम व्यक्ति नियोजित किए जाते हैं और जो शक्ति की सहायता के बिना काम करता है, लागू नहीं होगा ; या

 [(ख) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के या उसके अधीन के स्थापन को लागू नहीं होगा और जिसके कर्मचारी केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा बनाई गई ऐसे फायदों को शासित करने वाली किसी स्कीम या नियम के अनुसार अभिदायी भविष्य-निधि या वार्धक्य पेंशन के फायदे के हकदार हैं ; या

(ग) केन्द्रीय, प्रांतीय या राज्य के किसी अधिनियम के अधीन गठित किसी अन्य स्थापन को लागू नहीं होगा, जिसके कर्मचारी, ऐसे फायदों को शासित करने वाली उस अधिनियम के अधीन बनाई गई किसी स्कीम या नियम के अनुसार अभिदायी भविष्य-निधि या वार्धक्य पेंशन के फायदों के हकदार हैं ;  ***

*                                              *                                              *                                              *

 [(2) यदि केंद्रीय सरकार की यह राय हो कि  [स्थापनों] के किसी वर्ग की वित्तीय स्थिति का और मामले की अन्य परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए, ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, और ऐसी शर्तों के अधीन, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, स्थापनों के उस वर्ग को इस अधिनियम के प्रवर्तन से ऐसी कालावधि के लिए छूट दे सकेगी  [चाहे वह भविष्यलक्षी रूप से हो या भूतलक्षी रूप से] जो अधिसचूना में विनिर्दिष्ट की जाए ।]

 [16क. कतिपय नियोजकों को भविष्य-निधि खाते रखने के लिए प्राधिकृत करना-(1) केन्द्रीय सरकार एक सौ या अधिक व्यक्तियों को नियोजित करने वाले स्थापन के संबंध में नियोजक और कर्मचारियों की बहुसंख्या द्वारा इस निमित्त उसको किए गए आवेदन पर, लिखित आदेश द्वारा नियजोक को स्थापन के संबंध में भविष्य-निधि खाता ऐसे निबंधनों और शर्तों के अधीनरहते हुए, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाएं, रखने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा :

परंतु यदि ऐसे स्थापन के नियोजक ने, भविष्य निधि अभिदाय के संदाय में कोई व्यतिक्रम किया था या ऐसे प्राधिकरण की तारीख से ठीक पूर्व तीन वर्ष के दौरान इस अधिनियम के अधीन कोई अन्य अपराध किया था तो ऐसा प्राधिकरण इस उपधारा के अधीन नहीं किया जाएगा ।

(2) जहां किसी स्थापन को उपधारा (1) के अधीन भविष्य-निधि खाता रखने के लिए प्राधिकृत किया गया है वहां ऐसे स्थापन के संबंध में नियोजक ऐसा खाता रखेगा, ऐसी विवरणी देगा, ऐसी रीति से अभिदाय निक्षिप्त करेगा निरीक्षण के लिए ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराएगा, ऐसे प्रशासनिक प्रभार संदत्त करेगा और ऐसे अन्य निबंधनों और शर्तों का पालन करेगा जो स्कीम में विनिर्दिष्ट           किए जाएं ।

(3) इस धारा के अधीन किया गया कोई प्राधिकरण, केंद्रीय सरकार द्वारा लिखित आदेश द्वारा उस दशा में, रद्द किया जा सकेगा यदि नियोजक प्राधिकरण के निबंधनों और शर्तों में से किसी का अनुपालन करने में असफल हो जाता है या जहां वह इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन कोई अपराध करता है :

परंतु प्राधिकरण रद्द करने के पूर्व, केंद्रीय सरकार नियोजक को सुने जाने का उचित अवसर देगी ।]

 [17. छूट देने की शक्ति-(1) समुचित सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और ऐसी शर्तों के अधीन, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए,  [किसी स्कीम के सभी या उनमें से किसी के प्रवर्तन में, भविष्यलक्षी रूप से या भूतलक्षी रूप से],-

(क) किसी ऐसे  [स्थापन] को, जिसे यह अधिनियम लागू है, छूट दे सकेगी यदि उसकी यह राय हो कि अभिदाय की दर की बाबत उसकी भविष्य-निधि के नियम धारा 6 में विनिर्दिष्ट नियमों की अपेक्षा कम अनुकूल नहीं हैं और कर्मचारी अन्य भविष्य-निधि प्रसुविधाओं का भी उपभोग कर रहे हैं जो सब बातों को ध्यान में रखते हुए, कर्मचारियों के लिए उन प्रसुविधाओं की अपेक्षा कम अनुकूल नहीं हैं, जो इस अधिनियम या किसी स्कीम के अधीन उसी प्रकार के किसी अन्य  [स्थापन] के कर्मचारियों के सम्बन्ध में उपबन्धित हैं, या

(ख) किसी भी 1[स्थापन] को छूट दे सकेगी यदि ऐसे [स्थापन] के कर्मचारी भविष्य-निधि, पेंशन या उपदान की प्रकृति की प्रसुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं और समुचित सरकार की यह राय हो कि पृथक्तः या संयुक्ततः ये प्रसुविधाएं सब बातों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों के लिए उन प्रसुविधाओं की अपेक्षा कम अनुकूल नहीं हैं जो इस अधिनियम या किसी स्कीम के अधीन उसी प्रकार के किसी अन्य [स्थापन] के कर्मचारियों के संबंध में उपबन्धित हैं :

 [पंरतु ऐसी कोई छूट, केन्द्रीय बोर्ड के परामर्श से ही दी जाएगी जो ऐसे परामर्श पर छूट के संबंध में अपने विचार समुचित सरकार को ऐसी समय सीमा के भीतर, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए, भेजेगा ।]

*                                              *                                              *                                              *

 [(1क) जहां उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन किसी स्थापन को छूट दी गई है, वहां,-

(क) धारा 6, धारा 7क, धारा 8 और धारा 14ख के उपबंध, जहां तक हो सकें, ऐसी छूट देने वाली अधिसूचना में विनिर्दिष्ट ऐसी अन्य शर्तों के अतिरिक्त, छूट प्राप्त स्थापन के नियोजक को लागू होंगे, और जहां ऐसा नियोजक उक्त उपबंधों या शर्तों में से किसी का या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध का उल्लंघन करता है, या उसका पालन करने में व्यतिक्रम करता है वहां वह धारा 14 के अधीन ऐसे दंडनीय होगा मानो उक्त स्थापन को उक्त खंड (क) के अधीन छूट नहीं दी गई थी ;

(ख) नियोजक, भविष्य-निधि के प्रशासन के लिए एक न्यासी बोर्ड स्थापित करेगा जिसमें उतने सदस्य होंगे जितने स्कीम में विनिर्दिष्ट किए जाएं ;

(ग) न्यासी बोर्ड के सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें ऐसी होंगी जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाएं ;

(घ) खंड (ख) के अधीन गठित न्यासी-बोर्ड,-

(i) प्रत्येक कर्मचारी की बाबत जमा किए गए अभिदाय, की गई निकासी और प्रोद्भूत ब्याज दर्शित करते हुए, ब्यौरेवार लेखा रखेगा ;

(ii) प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त या किसी अन्य अधिकारी को ऐसी विवरणियां प्रस्तुत करेगा जो केंद्रीय सरकार समय-समय पर, निदेश दे ;

(iii) केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निदेशों के अनुसार, भविष्य-निधि धन को विनिहित करेगा ;

(iv) जहां आवश्यक हो, किसी कर्मचारी के भविष्य-निधि खाते का अंतरण करेगा ; और

(v) ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगा जो स्कीम में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(1ख) जहां उपधारा (1क) के खंड (क) के अधीन स्थापित न्यासी-बोर्ड उस उपधारा के खंड (घ) के किन्हीं उपबंधों का उल्लंघन करता है या उनका अनुपालन करने में व्यतिक्रम करता है, वहां उक्त न्यासी-बोर्ड द्वारा धारा 14 की उपधारा (2क) के अधीन अपराध किया गया समझा जाएगा और वह उस उपधारा में उपबंधित शास्तियों से दंडनीय होगा ।

 [(1ग) समुचित सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और पेंशन निधि की विनिधान-पद्धति संबंधी शर्त और ऐसी अन्य शर्तों के अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी स्थापन या स्थापनों के किसी वर्ग को पेंशन स्कीम के प्रवर्तन से छूट दे सकेगी यदि ऐसे स्थापन या स्थापनों के वर्ग के कर्मचारी, किसी अन्य पेंशन स्कीम के सदस्य हैं या ऐसी पेंशन स्कीम के सदस्य होने की प्रस्थापना करते हैं जहा पेंशनिक फायदे समरूप हैं या इस अधिनियम के अधीन पेंशन स्कीम की अपेक्षा अधिक अनुकूल हैं ।]]

(2) यदि ऐसे किसी [स्थापन] में, जिसे कोई स्कीम लागू है, नियोजित व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग भविष्य-निधि, उपदान या वार्धक्य पेंशन की प्रकृति की प्रसुविधाओं का हकदार है और ऐसी प्रसुविधाएं पृथक्तः या संयुक्ततः सब बातों को ध्यान में रखते हुए, इस अधिनियम के या स्कीम के अधीन उपबन्धित प्रसुविधाओं की अपेक्षा साधारणतया कम अनुकूल नहीं हैं तो वह ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को स्कीम के सब या किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन से छूट देने के लिए उपबन्ध कर सकेगी :

परन्तु ऐसी कोई भी छूट व्यक्तियों के किसी वर्ग की बाबत तब तक न दी जाएगी जब तक कि समुचित सरकार की यह राय न हो कि ऐसे वर्ग में आने वाले व्यक्तियों की बहुसंख्या ऐसी प्रसुविधाओं का हकदार बने रहने की वांछा रखती है ।

 [(2क)  [यदि नियोजक ऐसा किए जाने के लिए अनुरोध करता है तो केन्द्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए, भविष्यलक्षी रूप से या भूतलक्षी रूप से, किसी स्थापन की बीमा रकम के सभी या किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन से छूट दे सकेगा, यदि] उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसी कोयला खान के कर्मचारी कोई पृथक् अभिदाय या प्रीमियम का संदाय किए बिना जीवन बीमा के रूप में प्रसुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं, चाहे वे भविष्य-निधि में उनके निक्षेपों से सहबद्ध हैं या नहीं और ऐसी प्रसुविधाएं बीमा स्कीम के अधीन अनुज्ञेय प्रसुविधाओं की अपेक्षा ऐसे कर्मचारियों के लिए अधिक अनूकूल हैं ।

(2ख) उपधारा (2क) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बीमा स्कीम किसी कोयला खान में नियोजित और उस स्कीम के अन्तर्गत आने वाले किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी वर्ग को उसके सभी उपबन्धों या उनमें से किसी के प्रवर्तन से छूट देने के लिए तभी उपबन्ध कर सकेगी जब ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के ऐसे वर्ग को अनुज्ञेय जीवन बीमा के रूप में प्रसुविधाएं बीमा स्कीम के अधीन उन प्रसुविधाओं से अधिक अनुकूल हैं जिनका उपबन्ध किया गया है ।]

 [(3) जहां स्थापन में नियोजित किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग के बारे में किसी स्कीम के सब या किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन से इस धारा के अधीन छूट दी गई है (चाहे ऐसी छूट उस स्थापन को दी गई हो जिसमें ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग नियोजित है या उस व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को उस रूप में दी गई हो) वहां ऐसे स्थापन के सम्बन्ध में नियोजक-

(क) उस भविष्य-निधि, पेंशन और उपदान के सम्बन्ध में, जिसका ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग हकदार है, ऐसे लेखे रखेगा, ऐसी विवरणियां देगा और ऐसे विनिधान करेगा, निरीक्षणार्थ ऐसी सुविधाओं के लिए उपबन्ध करेगा और ऐसे निरीक्षण प्रभार देगा जो केन्द्रीय सरकार निदेश करे ;

(ख) पेंशन, उपदान या भविष्य-निधि की प्रकृति की, जिन प्रसुविधाओं का ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग छूट के समय हकदार था, उनकी कुल मात्रा को छूट के पश्चात् किसी भी समय केन्द्रीय सरकार की इजाजत के बिना नहीं                 घटाएगा; और

(ग) जहां  ऐसा कोई व्यक्ति अपना नियोजन छोड़ देता है और किसी अन्य स्थापन में, जिसको यह अधिनियम लागू है, पुनर्नियोजन अभिप्राप्त कर लेता है वहां उस व्यक्ति द्वारा छोड़ गए स्थापन की भविष्य-निधि में संचयों की जो रकम उस व्यक्ति के खाते में जमा है उस रकम को उस स्थापन की, जिसमें वह व्यक्ति पुनर्नियोजित होता है, भविष्य-निधि में या, यथास्थिति, उस स्थापन को लागू होने वाली स्कीम के अधीन स्थापित निधि में उस व्यक्ति के जमा खाते में इतने समय के भीतर, जितना केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, अन्तरित कर देगा ।]

1[(3क) जहां किसी स्थापन में नियोजित किसी व्यक्ति का या व्यक्तियों के किसी वर्ग के सम्बन्ध में किसी बीमा स्कीम के सभी उपबन्धों या उनमें से किसी के प्रवर्तन से उपधारा (2क) या उपधारा (2ख) के अधीन छूट दी जाती है (चाहे ऐसी छूट उस स्थापन को दी गई हो जिसमें ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग नियोजित है अथवा उस व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को उस रूप में दी गई हो) वहां ऐसे स्थापन के सम्बन्ध में नियोजक-

(क) जीवन बीमा के रूप में प्रसुविधाओं के सम्बन्ध में, जिनके लिए ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का ऐसा वर्ग हकदार है या किसी बीमा निधि के सम्बन्ध में ऐसे लेखे रखेगा, ऐसी विवरणियां देगा और ऐसा विनिधान करेगा, के लिए ऐसी सुविधाओं का उपबन्ध करेगा और ऐसे निरीक्षण प्रभार का संदाय करेगा, जो केन्द्रीय सरकार निदेश करे ;

(ख) जीवन बीमा के रूप में की जिन प्रसुविधाओं के लिए ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का ऐसा वर्ग छूट की तारीख के ठीक पूर्व हकदार था, उनकी कुल मात्रा को छूट के पश्चात् किसी भी समय केन्द्रीय सरकार की इजाजत के बिना, नहीं घटाएगा;  ***

*                                              *                                              *                                              *

(4) यदि नियोजक-

(क) उपधारा (1) के अधीन अनुदत्त छूट की दशा में उस उपधारा  [या उपधारा (1क)] के अधीन अधिरोपित शर्तों में से किसी शर्त का या उपधारा (3) के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध का,  ***

 [(कक) उपधारा  [(1ग)] के अधीन दी गई छूट की दशा में, उस उपधारा के अधीन अधिपोपित किसी शर्त                   का; औरट

(ख) उपधारा (2) के अधीन अनुदत्त छूट की दशा में, उपधारा (3) के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध का ;

 [(ग) उपधारा (2क) के अधीन अनुदत्त छूट की दशा में, उस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी शर्त का या उपधारा (3क) के उपबन्धों में से किसी का ;

(घ) उपधारा (2ख) के अधीन अनुदत्त छूट की दशा में उपधारा (3क) के उपबन्धों में से किसी का,]

अनुपालन करने में असफल रहता है, तो इस धारा के अधीन अनुदत्त छूट उस प्राधिकारी द्वारा, जिसने उसे अनुदत्त किया था, लिखित आदेश द्वारा रद्द की जा सकेगी ।

                 [(5) जहां उपधारा (1), उपधारा  [(1ग)]  [, उपधारा (2), उपधारा (2क) या उपधारा (2ख)ट के अधीन दी गई कोई छूट रद्द की जाती है वहां प्रत्येक कर्मचारी के जिसको ऐसी छूट लागू होती है उस स्थापन की जिसमें वह नियोजित है भविष्य-निधि में 5[पेंशन] निधि  [या बीमा निधि] में खाते में संचित राशि, 4[ऐसे कर्मचारी, जो सेवा की पूर्ण अवधि के पूरा होने के पूर्व नियोजन छोड़ देता है, के जमाखाते में कर्मचारी के अंश के अभिदाय से समपहृत किसी रकम सहित,] यथास्थिति, निधि या 5[पेंशन] निधि 5[या बीमा निधि] में उसके खाते में ऐसे समय के अन्दर और ऐसी रीति में अन्तरित की जाएगी जो स्कीम या 5[पेंशन] स्कीम 5[या बीमा स्कीम] में विनिर्दिष्ट की जाए ।

                (6) उपधारा 3[(1ग)] के उपबन्धों के अधीन किसी छूट-प्राप्त स्थापन का या किसी ऐसे स्थापन के जिसको 5[पेंशन] स्कीम के उपबन्ध लागू होते हैं, किसी छूट-प्राप्त कर्मचारी का नियोजक, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन छूट दिए जाने पर भी, किसी 5[पेंशन] निधि को नियोजक के अभिदाय का ऐसा भाग  *** ऐसे समय के अन्दर और ऐसी रीति में संदाय करेगा जो 5[पेंशन] स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए ।]

 [17क. खातों का अन्तरण-(1) जहां किसी ऐसे स्थापन में, जिसे यह अधिनियम लागू है, नियोजित कर्मचारी अपना नियोजन छोड़ देता है और किसी ऐसे अन्य स्थापन में जिसे यह अधिनियम लागू नहीं है पुनर्नियोजन अभिप्राप्त कर लेता है वहां, उसके द्वारा छोड़े गए स्थापन की, यथास्थिति, निधि में या भविष्य-निधि में ऐसे कर्मचारी के नाम जमा संचयों की रकम उस स्थापन की जिसमें वह पुनर्नियोजित होता है, भविष्य-निधि में उसके खाते में इतने समय के भीतर जितना कि केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, अन्तरित कर दी जाएगी यदि कर्मचारी ऐसी वांछा करे और उस भविष्य-निधि से सम्बन्धित नियम ऐसे अन्तरण को अनुज्ञात करें ।

(2) जहां किसी ऐसे स्थापन में जिसे यह अधिनियम लागू नहीं है नियोजित कर्मचारी अपना नियोजन छोड़ देता है और किसी ऐसे अन्य स्थापन में जिसे यह अधिनियम लागू है पुनर्नियोजन अभिप्राप्त कर लेता है वहां उसके द्वारा छोड़े गए स्थापन की भविष्य-निधि में ऐसे कर्मचारी के नाम जमा संचयों की रकम उस स्थापन की, जिसमें वह पुनर्नियोजित होता है, यथास्थिति, निधि या भविष्य-निधि में उसके खाते में अन्तरित की जा सकेगी यदि कर्मचारी ऐसी वांछा करे और ऐसी भविष्य-निधि से सम्बन्धित नियम यह अनुज्ञात करे ।]

 [17कक. 1956 के अधिनियम 31 में किसी बात के होते हुए भी अधिनियम का प्रभावी होना-इस अधिनियम के उपबन्ध, जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे ।]

 [17ख. स्थापन के अन्तरण की दशा में दायित्व-जहां किसी स्थापन के सम्बन्ध में कोई नियोजक विक्रय, दान, पट्टा या अनुज्ञापत्र द्वारा या किसी भी अन्य रीति से उस स्थापन का पूर्णतः या भागतः अन्तरण कर देता है वहां नियोजक और वह व्यक्ति, जिसे इस प्रकार स्थापन अन्तरित किया गया है, ऐसे अन्तरण की तारीख तक नियोजक द्वारा, यथास्थिति, इस अधिनियम या स्कीम या  [[पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम] के किसी उपबन्ध के अधीन शोध्य अभिदाय और अन्य राशियों का संदाय करने के लिए संयुक्ततः और पृथक्तः दायी होंगे :

परन्तु अन्तरिती का दायित्व उसके द्वारा ऐसे अन्तरण से अभिप्राप्त आस्तियों के मूल्य तक ही सीमित होगा ।

 [18. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम, स्कीम, [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी ऐसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, केंद्रीय सरकार, किसी राज्य सरकार, अधिकरण के पीठासीन अधिकारी, धारा 7 में निर्दिष्ट किसी प्राधिकारी, निरीक्षक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी ।

18क. पीठासीन अधिकारी और अन्य अधिकारियों का लोक सेवक होना-अधिकरण के पीठासीन अधिकारी, उसके अधिकारी और अन्य कर्मचारी, धारा 7क में निर्दिष्ट प्राधिकारी और प्रत्येक निरीक्षक भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक होंगे ।]

 [19. शक्तियों का प्रत्यायोजन-समुचित सरकार यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम  [, स्कीम  [,  [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम]] के अधीन जो शक्ति, या प्राधिकार या अधिकारिता उसके द्वारा प्रयोक्तव्य हैं वे ऐसे विषयों के सम्बन्ध में और ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जिन्हें निदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए-

(क) जहां समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार है वहां केन्द्रीय सरकार के अधीनस्थ ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा या राज्य सरकार द्वारा या राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा, जैसा उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए; तथा

(ख) जहां समुचित सरकार राज्य सरकार है वहां राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा जैसा उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए,

भी प्रयोक्तव्य होगी ।]

 [20. केंद्रीय सरकार की निदेश देने की शक्ति-केंद्रीय सरकार समय-समय पर केंद्रीय बोर्ड को ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह इस अधिनियम के दक्ष प्रशासन के लिए ठीक समझे और जब कोई ऐसा निदेश दिया जाता है तो केंद्रीय बोर्ड ऐसे निदेश का                       पालन करेगा ।

21. नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

(क) अधिकरण के पीठासीन अधिकारी और कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें ;

(ख) वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिससे तथा वह समय जिसके भीतर अधिकरण के समक्ष अपील फाइल की जाएगी और ऐसी अपील फाइल करने के लिए संदेय फीस ;

(ग) धारा 8ग की उपधारा (2) के अधीन वसूली अधिकारी को अग्रेषित की जाने वाली प्रमाणपत्र की प्रति को प्रमाणित करने की रीति; और

(घ) कोई अन्य विषय, जिसे इस अधिनियम के अधीन नियमों द्वारा विहित किया जाना है या किया जाए ।]

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव होगा । किंतु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

22. कठिनाइयां दूर करने की शक्ति-(1) यदि कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध (संशोधन) अधिनियम, 1988 द्वारा यथा संशोधित इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावशील करने में कोई कठिनाई होती है, तो केंद्रीय सरकार राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, और जो उसे कठिनाई दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों :

पंरतु ऐसा कोई आदेश उस तारीख से जिसको उक्त संशोधन अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, तीन वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।] 

अनुसूची 1

[धाराएं 2() और 4 देखिए]

निम्नलिखित में से किसी के विनिर्माण  *** में लगा हुआ कोई उद्योग, अर्थात् :-

सीमेंट ।

सिगरेट ।

वैद्युत, यांत्रिक या साधारण इंजीनियरी उत्पाद ।

लोहा तथा इस्पात ।

कागज ।

तान्तव (जो पूर्णतः या अंशतः रुई या ऊन या जूट या प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रेशम से बने हैं) ।

 [1. दियासलाई ।

2. खाद्य तेल और वसा ।

3. चीनी ।

4. रबड़ और रबड़ उत्पाद ।

5. विद्युत जिसके अन्तर्गत उसका उत्पादन, संचरण और वितरण आता है ।

6. चाय ।

7. मुद्रण [जो श्रमजीवी पत्रकार (सेवा की शर्तें) तथा प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम, 1955 (1955 का 45) में यथापरिभाषित समाचारपत्रीय स्थापनों से सम्बन्धित मुद्रण उद्योग से भिन्न हैं] और जिसके अन्तर्गत मुद्रण के लिए टाइप कम्पोज करने की प्रक्रिया, लेटर प्रेस द्वारा मुद्रण, लिथोग्राफी, फोटोग्रेब्यूर या अन्य ऐसी ही प्रक्रिया या जिल्दबन्दी आती है ।]

8. कांच ।

9. पत्थर चीनी के पाइप ।

10. सेनिटरी वेआर्स (स्वच्छता भाण्ड) ।

11. उच्च और निम्न विभव के चीनी मिट्टी के विद्युत रोधक ।

12. उच्चतापसह द्रव्य ।

13. टाइल ।]

 [1. भारी और परिष्कृत रसायन जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित आते हैं :-

(i) उवर्रक,

(ii) तारपीन,

(iii) रोजिन,

(iv) चिकित्सीय और भैषजिक निर्मितियां,

(v) प्रसाधन निर्मितियां,

(vi) साबुन,

(vii) स्याही,

(viii) मध्यक रंजक, वर्ण लेंक और टोनर,

(ix) वसा, अम्ल; और

 [(x) आक्सीजन, एसेटिलीन, और कार्बन डाइआक्साइड, गैस का उद्योग ।]

2. नील ।

3. लाख जिसके अन्तर्गत चपड़ा भी आता है ।

4. अखाद्य वनस्पति तेल और जान्तव तेल तथा वसा ।]

 [खनिज तेल परिशोधन उद्योग ।]

                 [(i) औद्योगिक और पावर एलकोहल उद्योग, और

(ii) एस्बेस्टस सीमेंट चादर उद्योग ।]

 [बिस्कुट बनाने का उद्योग जिसके अन्तर्गत ऐसे संयुक्त एकक आते हैं जो बिस्कुट, डबल रोटी, कन्फेक्शनरी और दूध और दूध पाउडर जैसे उत्पाद बनाते हैं ।]

 [अभ्रक उद्योग ।]

 [प्लाईवुड उद्योग ।]

 [मोटरगाड़ी की मरम्मत और सर्विसिंग उद्योग ।]

 [1. धान कुटाई ।

2. आटा पिसाई ।

3. दाल दलाई ।]

 [स्टार्च उद्योग ।]

 [1. पैट्रोलियम या प्राकृतिक गैस के लिए खोज, पूर्वेक्षण, वेधन या उसका उत्पादन ।

2. पैट्रोलियम या प्राकृतिक गैस का परिशोधन ।]

 [चर्म तथा चर्म उत्पाद उद्योग ।]

 [1. पत्थर चीनी के मर्तबान ।

2. चीनी मिट्टी के बर्तन ।]

 [फलों और सब्जियों के परिरक्षण का उद्योग अथवा कोई भी उद्योग जो निम्नलिखित वस्तुओं में किसी की तैयारी या उत्पादन में लगा हुआ है, अर्थात् :-

(i) डिब्बा बन्द और बोतल बन्द फल, रस और गूदा,

(ii) डिब्बा बन्द और बोतल बन्द सब्जी,

(iii) हिमित फल और सब्जी,

(iv) जैम, जैली और मार्मलेड,

(v) टमाटर उत्पाद, केचप और सॉस,

(vi) स्क्वैश, क्रश, कार्डियल और सेवन के लिए तैयार पेय या फल के रस या गूदे वाला कोई अन्य पेय,

(vii) परिरक्षित, कंदित और क्रिस्टलित फल तथा छिलके,

(viii) चटनी,

(ix) फलों और सब्जियों के परिरक्षण या डिब्बा बन्दी से सम्बन्धित कोई अन्य पदार्थ जो विनिर्दिष्ट न किया                   गया हो ।]

 [काजू उद्योग ।]

 [कन्फेक्शनरी उद्योग ।]

 [1. बटन ।

2. ब्रुश ।

3. प्लास्टिक और प्लास्टिक उत्पाद ।

4. स्टेशनरी उत्पाद ।]

 [वातित जल उद्योग, अर्थात् वातित जल मृदुपेय या कार्बोनेटित जल के विनिर्माण में लगा हुआ उद्योग ।]

 [औद्योगिक और पावर अलकोहल के अधीन न आने वालीट स्पिरिटों का आसवन और परिशोधन और स्पिरिटों का                    सम्मिश्रण उद्योग ।]

 [पेन्ट और वार्निश उद्योग ।]

 [हड्डी पीसने का उद्योग ।]

 [पिकर्स उद्योग ।]

 [दूध और दूध के उत्पादों के उद्योग ।]

 [सिल के रूप में, अलौह धातु और अलौह मिश्र धातु का उद्योग ।]

 [डबल रोटी उद्योग ।]

 [तम्बाकू के पत्ते को डंठल से अलग करने या पुनः सुखाने का उद्योग, अर्थात् तम्बाकू के पत्ते का डंठल अलग करने, पुनः सुखाने, संभालने, छांटने, श्रेणीकरण या पैक करने का कोई उद्योग ।]

 [अगरबत्ती उद्योग (जिसके अन्तर्गत धूप और धूपबत्ती उद्योग आता है) ।]

 [कयर उद्योग (जिसमें कताई का क्षेत्र नहीं आता है) ।]

 [तम्बाकू उद्योग, अर्थात् कोई उद्योग जो कि सिगार, जरदा, नसवार, किवाम और गुडाकू वाला तम्बाकू बनाने में लागू                 हुआ है ।]

 [कागज उत्पाद उद्योग ।]

 [नमक उद्योग अर्थात् कोई उद्योग जो ऐसा नमक बनाने में लगा हुआ है जिसके लिए अनुज्ञप्ति आवश्यक है और जिसके पास की भूमि  [4.05 हैक्टर] से कम नहीं है ।]

 [लिनोलियम उद्योग और इंडोलियम उद्योग ।]

 [विस्फोटक उद्योग ।]

 [जूट की गांठ बनाना या सम्पीड़न उद्योग ।]

 [आतिशबाजी और आघात टोपी बनाने का उद्योग ।]

 [तम्बू बनाने का उद्योग ।]

 [फैरो-मैंगनीज उद्योग ।]

 [बर्फ और आइसक्रीम उद्योग ।]

 [सूत लपेटन और धागा रीलन उद्योग ।]

 [कपास औटाई, गांठ बनाना और सम्पीड़न उद्योग ।]

 [कत्था बनाने का उद्योग ।]

 [बियर विनिर्माण उद्योग, अर्थात् कोई भी उद्योग जो माल्टमिश्रित (यवरस) जौ और हाँप के पेय जल में किसी मैश के ऐल्कोहाली किण्वन के विनिर्माण में या अन्य माल्टमिश्रित या अमाल्टमिश्रित धान्य या अन्य कार्बोहाइड्रेट निर्मितियों के योग सहित या उनके योग के बिना सांद्रित हाँप के, उत्पाद के विनिर्माण में लगा है ।]

 [बीड़ी उद्योग ।]

 [फैरो क्रोम उद्योग ।]

 [हीरक कर्तन उद्योग ।]

 [हरीतकी निष्कर्ष शक्ति, हरीतकी निष्कर्ष ठोस और वनस्पति टेनिन सम्मिश्रित निष्कर्ष में लगे उद्योग ।]

 [ईंट उद्योग ।]

 

 [प्रमुख कच्ची सामग्री के रूप में ऐस्बेस्टास पर आधारित उद्योग ।]

 [स्पष्टीकरण-इस अनुसूची में प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना-

(क) “वैद्युत यांत्रिक या साधारण इंजीनियरी उत्पाद" पद के अन्तर्गत निम्नलिखित आते हैं-

(1) विद्युत ऊर्जा के उत्पादन, संचरण, वितरण या मापने के लिए मशीनरी और उपस्कर तथा मोटर जिनके अन्तर्गत केबिल और तार आते हैं ।

(2) टैलीफोन, टेलिग्राफ और बेतार संचार साधित्र ।]

(3) बिजली के लैम्प (जिनके अन्तर्गत कांच के बल्ब नहीं आते) ।

(4) बिजली पंखे और बिजली के घरेलू साधित्र ।

(5) संचायक तथा शुष्क बैटरियां ।

(6) रेडियो रिसीवर तथा ध्वनि प्रत्युत्पादक उपकरण ।

(7) उद्योग में काम में आने वाली (टैक्साटाईल मशीनरी सहित) मशीनरी जो वैद्युत मशीनरी तथा मशीनरी औजारों से भिन्न है ।

(8) बायलर तथा प्राइम मूवर जिनके अन्तर्गत अन्तर्दहन इंजिन, समुद्री इंजिन और चलित्र आते हैं ।

                (9) मशीनी औजार अर्थात् धातु तथा लकड़ी का काम करने वाली मशीनरी ।

                (10) घिसाई चक्र ।

(11) पोत ।

(12) मोटर गाड़ी और ट्रैक्टर ।

(13) बोल्ट, ढिबरी और रिब्ट ।

(14) शक्तिचालित पम्प ।

(15) बाइसिकल ।

(16) हरीकेन लालटेन ।

(17) सिलाई और बुनाई की मशीन ।

(18) गणित सम्बन्धी उपकरण तथा वैज्ञानिक उपकरण ।

(19) धातु बेलन और पुनर्बेलन उत्पाद ।

(20) तार, पाइप, नल और फिटिंग ।

(21) ढली हुई लौह या अलौह वस्तुएं ।

(22) लौह या इस्पात या इस्पात मिश्रधातु से निर्मित तिजोरी, तहखाना या फर्नीचर ।

(23) कटलरी तथा शल्य उपकरण ।

(24) ड्रम तथा पात्र ।

(25) मद 1 से लेकर 24 तक में विनिर्दिष्ट उत्पादों के पुर्जे और उपांग ।

 (ख)  “लोहा तथा इस्पात" पद के अन्तर्गत कच्चा लोहा, सिल, ब्लम, बिलेट, आधारिक प्ररूपों में वेलित या पुनर्वेलित उत्पाद और औजारी तथा मिश्र इस्पात आते हैं ।

(ग) “कागज" पद के अन्तर्गत लुगदी पेपरबोर्ड और स्ट्राबोर्ड आते हैं ।

(घ) “तान्तव" पद के अन्तर्गत धुनाई, कताई, बुनाई के सूत और कपड़े के परिरूपण और रंगाई, छपाई, बुनाई तथा कसीदाकारी के उत्पाद आते हैं ।

 

अनुसूची 2

[धारा 5(1) देखिए]

वे बातें जिनके लिए स्कीम में उपबन्ध किए जा सकेंगे

1. वे कर्मचारी या उन कर्मचारियों का वर्ग जो निधि में सम्मिलित होंगे और वे शर्ते जिनके अधीन कर्मचारियों को निधि में सम्मिलित होने से या कोई अभिदाय करने से छूट दी जा सकेगी ।

2. वह समय और रीति जिसमें नियोजकों द्वारा और कर्मचारियों द्वारा  [(चाहे वे उसके द्वारा सीधे या ठेकेदार के द्वारा या माध्यम से नियोजित किए गए हों)ट या उनकी ओर से निधि में अभिदाय किए जाएंगे और वे अभिदाय जो कर्मचारी, यदि वह ऐसा करने की वांछा करे, धारा 6  *** के अधीन कर सकेगा और वह रीति जिसमें ऐसे अभिदाय वसूल किए जा सकेंगे ।

2[2क. वह रीति जिसमें कर्मचारियों का अभिदाय ठेकेदारों द्वारा उन कर्मचारियों से जो ऐसे ठेकेदारों के द्वारा या माध्यम से नियोजित हैं, वसूल किए जा सकेंगे ।]

3. नियोजक द्वारा ऐसी धनराशियों का संदाय जो निधि के प्रशासन के खर्च की पूर्ति के लिए आवश्यक हों और वह दर जिससे और वह रीति जिसमें संदाय किया जाएगा ।

 [4. किसी न्यासी बोर्ड की सहायता के लिए किसी समिति का गठन ।

5. किसी न्यासी बोर्ड के प्रादेशिक तथा अन्य कार्यालयों का खोला जाना ।]

6. वह रीति जिसमें लेखे रखे जाएंगे, केन्द्रीय सरकार द्वारा निकाले गए किन्हीं निदेशों या विनिर्दिष्ट की गई किन्हीं शर्तों के अनुसार निधि के धनों का विनिधान, बजट की तैयारी, लेखाओं की संपरीक्षा और केन्द्रीय सरकार को या किसी विनिर्दिष्ट राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।

7. वे शर्तें जिनके अधीन निधि में से रकम का निकाला जाना अनुज्ञात किया जा सकेगा और कोई कटौती या समपहरण किया जा सकेगा और ऐसी कटौती या समपहरण की अधिकतम रकम ।

8. केन्द्रीय सरकार द्वारा सम्पृक्त न्यासी बोर्ड से परामर्श करके सदस्यों को देय ब्याज की दर नियत करना ।

9. वह प्ररूप जिसमें कर्मचारी अपने और अपने कुटुम्ब के बारे में, जब कभी उससे अपेक्षा की जाए, विशिष्टियां देगा ।

10. सदस्य की मृत्यु के पश्चात् उसके नाम में जमा रकम को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का नामनिर्देशन और ऐसे नामनिर्देशन को रद्द करना या बदलना ।

11. वे रजिस्टर और अभिलेख जो कर्मचारियों के बारे में रखे जाने हैं और विवरणियां जो नियोजकों 2[या ठेकेदारोंट द्वारा दी जानी हैं ।

12. किसी कर्मचारी की पहचान के प्रयोजन के लिए पहचान-पत्र, टोकन या डिस्क का प्ररूप या डिजाइन और उसका दिया जाना, अभिरक्षा और प्रतिस्थापन ।

13. वे फीसें जो इस अनुसूची में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों में से किसी के लिए उद्गृहीत की जानी हैं ।

14. वे उल्लंघन या व्यतिक्रम जो धारा 14 की उपधारा (2) के अधीन दंडनीय होंगे ।

15. वे अतिरिक्त शक्तियां, यदि कोई हों, जिनका प्रयोग निरीक्षकों द्वारा किया जा सकेगा ।

16. वह रीति जिसमें किसी वर्तमान भविष्य-निधि में संचय धारा 15 के अधीन निधि को अन्तरित की जाए ।

17. वे शर्तें जिनके अधीन निधि में से जीवन बीमा की बाबत प्रीमियम चुकाने के लिए सदस्य को अनुज्ञात किया जाए ।

18. कोई अन्य बात 2[जिसका उपबन्ध स्कीम में किया जाना है या] जो स्कीम को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक या     उचित हो ।

 

[अनुसूची 3

धारा 6 (5) देखिए]

वे विषय जिनके लिए पेंशन स्कीम में उपबंध किया जा सकेगा

1. वे कर्मचारी, या कर्मचारियों का वर्ग जिनको पेंशन स्कीम लागू होगी ।

2. वह समय, जिसके भीतर वे कर्मचारी, जो धारा 6क के, जैसी कि वह कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध (संशोधन) अधिनियम, 1966 के (जिसे इस अनुसूची में इसके पश्चात् संशोधनकारी अधिनियम कहा गया हैं, प्रारंभ के पूर्व विद्यमान थी, अधीन कुटुम्ब पेंशन स्कीम के सदस्य नहीं हैं, इस पेंशन स्कीम के लिए विकल्प देंगे ।

3. भविष्य-निधि में नियोजक के अभिदाय का वह प्रभाग, जो पेंशन निधि में जमा किया जाएगा और वह रीति, जिससे वह जमा किया जाता है ।

4. पेंशन के लिए पात्र होने के लिए न्यूनतम अर्हक सेवा और वह रीति, जिससे कर्मचारियों को धारा 6क के, जैसी कि वह संशोधनकारी अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व विद्यमान थी, अधीन उनकी पिछली सेवा की प्रसुविधाएं प्रदान की जा सकेंगी ।

5. उस रीति का, जिससे और सेवा की उस अवधि का, जिसके लिए कोई अभिदाय प्राप्त नहीं होता है, विनियमन ।

6. वह रीति, जिससे नियोजक द्वारा अभिदाय के संदाय में व्यतिक्रम के विरुद्ध कर्मचारियों के हित का संरक्षण किया जाएगा ।

7. वह रीति, जिससे पेंशन निधि के लेखे रखे जाएंगे और पेंशन निधि के धन का विनिधान, विनिधान की ऐसी पद्धति के अधीन रहते हुए किया जाएगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित की जाए ।

8. वह प्ररूप, जिसमें कर्मचारी, जब भी अपेक्षा की जाए, अपने और अपने कुटुम्ब के सदस्यों के बारे में विशिष्टियां देगा ।

9. पेंशन स्कीम के प्रशासन के लिए अपेक्षित वे प्ररूप, रजिस्टर और अभिलेख, जो कर्मचारियों के बारे में रखे जाएंगे ।

10. पेंशन और पेंशनिक फायदों का मापमान तथा कर्मचारी को ऐसी प्रसुविधाएं प्रदान करने से संबंधित शर्तें ।

11. वह रीति, जिससे छूटप्राप्त स्थापनों को पेंशन स्कीम मद्दे अभिदाय का संदाय करना है और उससे संबंधित विवरणियों का प्रस्तुत किया जाना ।

12. पेंशन के संवितरण का ढंग और ऐसे संवितरण करने वाले अभिकरणों से, जो इस प्रयोजन के लिए विनिर्दिष्ट किए जाएं, किए जाने वाले ठहराव ।

13. वह रीति, जिससे पेंशन स्कीम के प्रशासन के लिए व्यय, पेंशन निधि की आय में से पूरे किए जाएंगे ।

14. कोई अन्य बात, जिसके लिए पेंशन स्कीम में उपबंध किया जाना हो या जो पेंशन स्कीम को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक या उचित हो ।]

[अनुसूची 4

[धारा 6(ग) देखिए]

वे बातें जिनके लिए कर्मचारी निक्षेप-सहबद्ध बीमा स्कीम में उपबन्ध किया जाना है

1. वे कर्मचारी या उन कर्मचारियों का वर्ग जो बीमा स्कीम के अन्तर्गत आएंगे ।

2. वह रीति जिससे बीमा निधि के लेखे रखे जाएंगे और बीमा निधि के धन का विनिधान, विनिधान की ऐसी पद्धति के अध्यधीन किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा अवधारित करे ।

3. वह प्ररूप जिसमें कर्मचारी, जब भी अपेक्षा की जाए तब, अपने और अपने कुटुम्ब के सदस्यों के बारे में, विशिष्टियां देगा ।

4. कर्मचारी को शोध्य बीमा की रकम उसकी मृत्यु के पश्चात् प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति का नामनिर्देशन और ऐसे नामनिर्देशन को रद्द करना या बदलना ।

5. वे रजिस्टर और अभिलेख, जो कर्मचारियों के बारे में रखे जाने हैं, किसी कर्मचारी या उसके नामनिर्देशिती या बीमा की रकम प्राप्त करने के हकदार उसके कुटुम्ब के किसी सदस्य की पहचान करने के प्रयोजन के लिए किसी पहचान-पत्र, टोकन या डिस्क का प्ररूप या डिजाइन ।

 

 [6. बीमा फायदों के मापमान और कर्मचारियों को ऐसे फायदे दिए जाने से संबंधित शर्ते ।]

8. वह रीति जिससे कर्मचारी के नामनिर्देशिती या कुटुम्ब के सदस्य को स्कीम के अधीन शोध्य रकम का संदाय किया जाना है, जिसके अन्तर्गत यह उपबन्ध भी है कि इस रकम का संदाय बैंककारी कम्पनी (उपक्रमों का अर्जन और अन्तरण) अधिनियम, 1970 (1970 का 5) की प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी तत्स्थानी नए बैंक में से ऐसे नामनिर्देशिती या कुटुम्ब के किसी सदस्य के नाम में, किसी बचत बैंक खाते में जमा के रूप में ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

9. कोई अन्य विषय जिसके लिए कर्मचारी निक्षेप-सहबद्ध बीमा स्कीम में उपबन्ध किया जाना है या जो उस स्कीम को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक या उचित हो ।]

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