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राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 ( National Security Act, 1980 )


 

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980

(1980 का अधिनियम संख्यांक 65)

[27 दिसम्बर, 1980]

कुछ मामलों में निवारक निरोध का और

उससे सम्बद्ध विषयों का उपबन्ध

करने के लिए

अधिनियम

                भारत गणराज्य के इकतीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम और विस्तार-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 है । 

(2) इसका विस्तार, जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय, सम्पूर्ण भारत पर है । 

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा किए गए निरोध-आदेश या ऐसे आदेश के अधीन निरुद्ध व्यक्ति के संबंध में, समुचित सरकार" से केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है, तथा किसी राज्य सरकार द्वारा या किसी राज्य सरकार के अधीनस्थ किसी अधिकारी द्वारा किए गए निरोध-आदेश के संबंध में या ऐसे आदेश के अधीन निरुद्ध व्यक्ति के संबंध में, ऐसी राज्य सरकार अभिप्रेत है;

(ख) निरोध-आदेश" से धारा 3 के अधीन किया गया कोई आदेश अभिप्रेत है; 

(ग) विदेशी" का वही अर्थ है जो विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 (1946 का 31) में है; 

(घ) व्यक्ति" के अन्तर्गत कोई विदेशी भी है;  

(ङ) संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में राज्य सरकार" से, उसका प्रशासक अभिप्रेत है ।

3. कुछ व्यक्तियों को निरुद्ध करने का आदेश करने की शक्ति-(1) यदि केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार का,-

(क) किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह समाधान हो जाता है कि उसे भारत की सुरक्षा पर, भारत के विदेशी सरकारों से सम्बधों पर या भारत की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करने से रोकने की दृष्टि से ऐसा करना आवश्यक है, अथवा 

(ख) किसी विदेशी के सम्बन्ध में यह समाधान हो जाता है कि भारत में उसके उपस्थित बने रहने का विनियमन करने की दृष्टि से या उसे भारत से बाहर निकालने का इंतजाम करने की दृष्टि से ऐसा करना आवश्यक है,

तो वह यह निदेश देते हुए, आदेश कर सकेगी कि उस व्यक्ति को निरुद्ध कर लिया जाए ।  

(2) यदि केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार का किसी व्यक्ति के संबंध में यह समाधान हो जाता है कि उसे राज्य की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करने से या लोक व्यवस्था बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करने से या समुदाय के लिए आवश्यक प्रदायों और सेवाओं को बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करने से निवारित करने की दृष्टि से ऐसा करना आवश्यक है तो वह यह निदेश देते हुए आदेश कर सकेगी कि उस व्यक्ति को निरुद्ध कर लिया जाए ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, समुदाय के लिए आवश्यक प्रदायों और सेवाओं को बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करना" पद के अन्तर्गत चोरबाजारी निवारण और आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम, 1980 (1980 का 7) की धारा 3  की उपधारा (1)  के स्पष्टीकरण में यथा परिभाषित, समुदाय के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली किसी रीति से कार्य करना" पद नहीं है और तद्नुसार इस अधिनियम के अधीन कोई भी निरोध-आदेश उस आधार पर नहीं किया जाएगा जिस पर उस अधिनियम के अधीन कोई निरोध-आदेश किया जा सकता है । 

(3) यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस आयुक्त की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी क्षेत्र में विद्यमान या विद्यमान हो सकने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है तो वह लिखित आदेश द्वारा निदेश दे सकेगी कि ऐसी अवधि के दौरान, जो ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसा जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त भी, यदि उसका उपधारा (2) में उपबन्धित रूप में समाधान हो जाता है तो, उक्त उपधारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा : 

परन्तु इस उपधारा के अधीन राज्य सरकार द्वारा किए गए किसी आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि, प्रथम बार में तीन मास से अधिक की नहीं होगी, किन्तु राज्य सरकार, यदि उसका पूर्वोक्त रूप में यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है तो, ऐसे आदेश को, समय-समय पर संशोधित करके ऐसी अवधि को, एक बार में अधिक से अधिक तीन मास तक के लिए, बढ़ा सकेगी ।

(4) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश उपधारा (3) में वर्णित किसी अधिकारी द्वारा किया जाता है तो वह उस तथ्य की रिपोर्ट उस राज्य सरकार को तुरन्त भेजेगा जिसके वह अधीनस्थ है और साथ ही वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है और ऐसी अन्य विशिष्टियां, जो उसकी राय में मामले से संबंधित हैं, भी, भेजेगा और ऐसा कोई आदेश, उसके किए जाने की तारीख से, बारह दिन से अधिक तभी प्रवृत्त रहेगा जबकि इस बीच राज्य सरकार ने उसका अनुमोदन कर दिया है, अन्यथा नहीं :

परन्तु जहां निरोध के आधार, आदेश करने वाले अधिकारी द्वारा निरोध की तारीख से पांच दिन के पश्चात् किन्तु [पंद्रह दिन] के भीतर, धारा 8 के अधीन संसूचित किए जाते हैं, वहां यह उपधारा इस उपान्तर के साथ लागू होगी कि बारह दिन" शब्दों के स्थान पर  1[बीस दिन] शब्द रखे जाएंगे । 

(5) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार द्वारा किया जाता है या अनुमोदित किया जाता है तो राज्य सरकार उस तथ्य की रिपोर्ट, केन्द्रीय सरकार को, सात दिन के भीतर भेजेगी और साथ ही वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है और ऐसी अन्य विशिष्टियां, जो राज्य सरकार की राय में उस आदेश की आवश्यकता से संबंधित हैं, भी भेजेगी ।

4. निरोध-आदेशों का निष्पादन-निरोध-आदेश का निष्पादन भारत में किसी भी स्थान पर उस रीति से किया जा सकेगा जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में गिरफ्तारी के वारण्टों के निष्पादन के लिए उपबन्धित है । 

5. निरोध का स्थान तथा दशाओं का विनियमन करने की शक्ति-प्रत्येक व्यक्ति, जिसके विरुद्ध निरोध-आदेश किया गया है, -

() ऐसे स्थान पर और ऐसी दशाओं में, जिनके अन्तर्गत भरण-पोषण, अनुशासन तथा अनुशासन भंग करने के लिए दण्ड भी है, निरुद्ध किया जा सकेगा जो समुचित सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे; और  

(ख) निरोध के एक स्थान से निरोध के दूसरे स्थान को, चाहे वह उसी राज्य में हो या दूसरे राज्य में, समुचित सरकार के आदेश द्वारा हटाया जा सकेगा : 

परन्तु राज्य सरकार किसी व्यक्ति को एक राज्य से दूसरे राज्य को हटाने का खण्ड (ख) के अधीन आदेश उस अन्य राज्य की सरकार की सम्मति के बिना नहीं करेगी । 

 [5क. निरोध के आधारों का पृथक् किया जाना-जहां कोई व्यक्ति धारा 3 के अधीन ऐसे निरोध-आदेश के [चाहे वह राष्ट्रीय सुरक्षा (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1984 के प्रारम्भ के पूर्व या उसके पश्चात् किया गया होट अनुसरण में, जो दो या अधिक आधारों पर किया गया है, निरुद्ध किया गया है वहां ऐसे निरोध-आदेश के बारे में यह समझा जाएगा कि वह ऐसे आधारों में से प्रत्येक आधार पर अलग-अलग किया गया है और तद्नुसार :-

(क) ऐसे आदेश के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह केवल इस कारण अविधिमान्य या अप्रवर्तनीय है कि ऐसे आधारों में से एक या कुछ आधार :-

(i) स्पष्ट नहीं हैं ;

(ii) विद्यमान नहीं हैं;

(iii) सुसंगत नहीं हैं;

(iv) उस व्यक्ति से संबद्ध नहीं हैं या उससे निकटतः संबद्ध नहीं हैं; या

(v)  किसी भी अन्य कारण से अविधिमान्य हैं,

और इस कारण यह अभिनिर्धारित करना संभव नहीं है कि ऐसा आदेश करने वाली सरकार या अधिकारी का वैसा समाधान हो गया था जैसा कि शेष आधार या आधारों के प्रति धारा 3 में उपबंधित है और उसने निरोध-आदेश किया था

(ख) निरोध-आदेश करने वाली सरकार या अधिकारी के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने उक्त धारा के अधीन निरोध आदेश अपना वैसा समाधान हो जाने के पश्चात् किया था जैसा कि शेष आधार या आधारों के प्रति उस उपधारा में उपबंधित है ।]

6. निरोध-आदेशों का कुछ आधारों पर अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील होना-कोई निरोध-आदेश केवल इस कारण अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील नहीं होगा कि-

(क) उसके अधीन निरुद्ध किया जाने वाला व्यक्ति आदेश करने वाली सरकार या अधिकारी की क्षेत्रीय अधिकारिता की सीमाओं के बाहर है, अथवा

(ख) ऐसे व्यक्ति के निरोध का स्थान उक्त सीमाओं के बाहर है ।

7. फरार व्यक्तियों के संबंध में शक्तियां-(1) यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या धारा 3 की उपधारा (3) में वर्णित अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि जिस व्यक्ति के संबंध में निरोध-आदेश किया गया है वह फरार हो गया है या अपने को छिपा रहा है जिससे उस आदेश का निष्पादन नहीं हो सकता तो वह सरकार या अधिकारी- 

(क) उस तथ्य की लिखित रिपोर्ट उस महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगा जो उस स्थान पर अधिकारिता रखता है जहां उक्त व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है; 

(ख) राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा उक्त व्यक्ति को निदेश दे सकेगा कि वह ऐसे अधिकारी के समक्ष ऐसे स्थान पर और ऐसी अवधि के भीतर, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, हाजिर हो । 

(2) उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई रिपोर्ट कर दिए जाने पर, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 82, 83, 84, और 85 के उपबन्ध ऐसे व्यक्ति और उसकी सम्पत्ति के सम्बन्ध में इस प्रकार लागू होंगे मानो उसे निरुद्ध करने का आदेश, मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया वारण्ट हो । 

(3) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन जारी किए गए किसी आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है तो, जब तक कि वह यह साबित नहीं कर देता है कि उसका अनुपालन करना उसके लिए सम्भव नहीं था और उसने आदेश में वर्णित अधिकारी को आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर उस कारण की, जिससे उसका अनुपालन असम्भव था, तथा अपने पते-ठिकाने की सूचना दे दी थी, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा । 

(4) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (3) के अधीन प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा  

8. आदेश से प्रभावित व्यक्ति को निरोध-आदेश के आधारों का प्रकट किया जाना-(1) जब कोई व्यक्ति किसी निरोध-आदेश के अनुसरण में निरुद्ध है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी, यथाशक्य शीघ्र, किन्तु निरोध की तारीख से मामूली तौर पर पांच दिन के भीतर तथा असाधारण परिस्थितियों में और ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे,  [पन्द्रह दिनट के भीतर, उसे वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है और उसे समुचित सरकार से उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का शीघ्रतम अवसर देगा । 

(2) उपधारा (1) की कोई बात प्राधिकारी से यह अपेक्षा न करेगी कि वह ऐसे तथ्य प्रकट करे जिन्हें प्रकट करना वह लोक हित के विरुद्ध समझता है । 

9. सलाहकार बोर्डों का गठन-(1) जब भी आवश्यकता हो, केंद्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक सलाहकार बोर्डों का गठन करेगी ।

(2) ऐसा प्रत्येक बोर्ड ऐसे तीन व्यक्तियों से मिलकर गठित होगा जो किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या रह चुके हैं या नियुक्त किए जाने के लिए अर्हित हैं और ऐसे व्यक्ति समुचित सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे । 

(3) समुचित सरकार सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से एक ऐसे सदस्य को उक्त बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त करेगी जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रह चुका है और किसी संघ राज्यक्षेत्र के मामले में सलाहकार बोर्ड में किसी व्यक्ति की नियुक्ति, जो किसी ऐसे राज्य के उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, सम्बन्धित राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से की जाएगी ।

10. सलाहकार बोर्डों को निर्देश-इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, ऐसे प्रत्येक मामले में, जिसमें इस अधिनियम के अधीन निरोध का आदेश किया गया है, उस आदेश के अधीन किसी व्यक्ति के निरोध की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर समुचित सरकार, धारा 9 के अधीन अपने द्वारा गठित सलाहकार बोर्ड के समक्ष वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है, और यदि आदेश से प्रभावित व्यक्ति ने कोई अभ्यावेदन किया है तो वह अभ्यावेदन और जब आदेश धारा 3 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट किसी अधिकारी द्वारा किया गया है तब उस अधिकारी द्वारा उस धारा की उपधारा (4) के अधीन दी गई रिपोर्ट भी, रखेगी । 

11. सलाहकार बोर्डों की प्रक्रिया-(1) सलाहकार बोर्ड, अपने समक्ष रखी गई सामग्री पर विचार करने के पश्चात् तथा समुचित सरकार से या समुचित सरकार के माध्यम से इस प्रयोजनार्थ बुलाए गए किसी व्यक्ति से या संबद्ध व्यक्ति से ऐसी अतिरिक्त जानकारी मांगने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे और यदि किसी विशिष्ट मामले में वह ऐसा करना आवश्यक समझता है अथवा यदि संबद्ध व्यक्ति चाहता है कि उसे सुना जाए तो स्वयं उसे सुनने के पश्चात्, समुचित सरकार को अपनी रिपोर्ट संबद्ध व्यक्ति के निरोध की तारीख से सात सप्ताह के भीतर देगा  

(2) सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट के एक अलग भाग में उसकी यह राय विनिर्दिष्ट की जाएगी कि संबद्ध व्यक्ति के निरोध के लिए पर्याप्त कारण है या नहीं ।

(3) जब सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में मतभेद हो तब ऐसे सदस्यों की बहुसंख्या की राय को बोर्ड की राय समझा जाएगा

(4) इस धारा की कोई बात उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध निरोध-आदेश किया गया है, इस बात का हकदार बनाएगी कि वह सलाहकार बोर्ड को निर्देश से संबंधित किसी मामले में विधि-व्यवसायी द्वारा हाजिर हो तथा सलाहकार बोर्ड की कार्यवाही और उसकी रिपोर्ट, उसके उस भाग के सिवाय जिसमें बोर्ड की राय विनिर्दिष्ट हो, गोपनीय होगी

12. सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट पर कार्रवाई-(1) किसी ऐसे मामले में, जिसमें सलाहकार बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि किसी व्यक्ति के निरोध के लिए उसकी राय में पर्याप्त कारण है, समुचित सरकार निरोध-आदेश को पुष्ट कर सकेगी तथा संबद्ध व्यक्ति को उतनी अवधि-पर्यन्त निरुद्ध रख सकेगी, जितनी वह ठीक समझे ।

(2) किसी ऐसे मामले में, जिसमें सलाहकार बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि किसी व्यक्ति के निरोध के लिए उसकी राय में पर्याप्त कारण नहीं है, समुचित सरकार निरोध-आदेश वापस ले लेगी तथा उस व्यक्ति को तुरन्तु छुड़वा देगी ।

13. निरोध की अधिकतम अवधि-धारा 12 के अधीन पुष्ट किए गए किसी निरोध-आदेश के अनुसरण में किसी व्यक्ति को जिस अधिकतम अवधि-पर्यन्त निरुद्ध रखा जा सकेगा वह निरोध की तारीख से बारह मास की होगी :

परन्तु इस धारा की कोई बात निरोध-आदेश को पहले ही किसी समय वापस लेने या उपांतरित करने की समुचित सरकार की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी । 

14. निरोध-आदेश वापस लेना-(1) साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 21 के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी निरोध-आदेश को किसी भी समय,-

(क) इस बात के होते हुए भी कि आदेश, धारा 3 की उपधारा (3) में वर्णित किसी अधिकारी द्वारा किया गया है, उस राज्य सरकार द्वारा, जिसके वह अधिकारी अधीनस्थ है या केन्द्रीय सरकार द्वारा वापस लिया जा सकेगा या उपांतरित किया जा सकेगा; 

(ख) इस बात के होते हुए भी कि आदेश किसी राज्य सरकार द्वारा किया गया है, केन्द्रीय सरकार द्वारा वापस लिया जा सकेगा या उपांतरित किया जा सकेगा । 

 [(2) किसी निरोध-आदेश के (जिसे इस उपधारा में इसके पश्चात् पूर्ववर्ती निरोध-आदेश कहा गया है) अवसान या वापस लिए जाने के कारण [चाहे ऐसा पूर्ववर्ती निरोध-आदेश राष्ट्रीय सुरक्षा (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1984 के प्रारम्भ के पूर्व या उसके पश्चात् किया गया होट उसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 3 के अधीन दूसरे निरोध-आदेश का (जिसे इस उपधारा में इसके पश्चात् पश्चात्वर्ती निरोध-आदेश कहा गया है) किया जाना वर्जित नहीं होगा :

परन्तु यदि ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध किए गए पूर्ववर्ती निरोध-आदेश के अवसान या वापस लिए जाने के पश्चात् कोई नए तथ्य उत्पन्न नहीं हुए हैं तो ऐसी अधिकतम अवधि, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति पश्चात्वर्ती निरोध-आदेश के अनुसरण में निरुद्ध किया जा सकेगा, किसी भी दशा में, पूर्ववर्ती निरोध-आदेश के अधीन निरोध की तारीख से बारह मास की अवधि के अवसान के परे नहीं बढ़ाई जाएगी ।]

 [14क. वे परिस्थितियां जिनमें व्यक्तियों को सलाहकार बोर्डों की राय प्राप्त किए बिना, तीन मास से अधिक अवधि के लिए निेरोध में रखा जा सकेगा-(1) इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबंधों में, या किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश में, किसी बात के होते हुए भी, उस व्यक्ति को, जिसके संबंध में  [8 जून, 1989] से पहले किसी समय इस अधिनियम के अधीन कोई निरोध आदेश किया गया है, सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना, उसके निरोध की तारीख से तीन मास से अधिक किन्तु छह मास से अनधिक की अवधि के लिए उस दशा में निरोध में रखा जा सकेगा जब ऐसे व्यक्ति की किसी विक्षुब्ध क्षेत्र में,-

(i) आतंकवादी और विध्वंसक क्रियाकलापों से निपटने में सरकार के प्रयासों में हस्तक्षेप करने से; और

(ii) (क) भारत की रक्षा; या 

(ख) भारत की सुरक्षा; या 

(ग) राज्य की सुरक्षा; या 

(घ) लोक व्यवस्था बनाए रखने; या

(ङ) समुदाय के लिए आवश्यक प्रदायों सेवाओं को बनाए रखने,

पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रीति से कार्य करने से निवारित करने की दृष्टि से निरुद्ध किया गया है । 

स्पष्टीकरण 1-धारा 3 की उपधारा (2) के स्पष्टीकरण के उपबंध इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उस उपधारा के प्रयोजनों के लिए लागू होते हैं । 

स्पष्टीकरण 2-इस उपधारा में, विक्षुब्ध क्षेत्र" से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो पंजाब विक्षुब्ध क्षेत्र अधिनियम, 1983(1983 का 32) की धारा 3 के अधीन या चंडीगढ़ विक्षुब्ध क्षेत्र अधिनियम, 1983 (1983 का 33) की धारा 3 के अधीन, अधिसूचना द्वारा, तत्समय विक्षुब्ध क्षेत्र घोषित किया जाता है । 

स्पष्टीकरण 3-इस उपधारा  में, आतंकवादी और विध्वंसक क्रियाकलाप" से आतंकवादी और विध्वंसक क्रियाकलाप (निवारण) अध्यादेश, 1987 (1987 का 2) के अर्थ में आतंकवादी कार्य" और विध्वंसक क्रियाकलाप" अभिप्रेत हैं  

(2) ऐसे किसी व्यक्ति की दशा में जिसे उपधारा (1) लागू होती है, धारा 3, धारा 8 और धारा 10 से धारा 14 तक, निम्नलिखित उपान्तरणों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होंगी, अर्थात् :-

(क) धारा 3 में,-

(i) उपधारा (4) के परंतुक में,-

(अ) दस दिन" शब्दों के स्थान पर, पन्द्रह दिन" शब्द रखे जाएंगे; 

(आ) पन्द्रह दिन" शब्दों के स्थान पर, बीस दिन" शब्द रखे जाएंगे;  

(ii) उपधारा (5) में, सात दिन" शब्दों के स्थान पर, पन्द्रह दिन" शब्द रखे जाएंगे; 

(ख) धारा 8 की उपधारा (1) में, दस दिन" शब्दों के स्थान पर, पन्द्रह दिन" शब्द रखे जाएंगे; 

(ग) धारा 10 में, तीन सप्ताह के भीतर" शब्दों के स्थान पर, चार मास और दो सप्ताह के भीतर" शब्द रखे जाएंगे; 

(घ) धारा 11 में,-

(i) उपधारा (1) में, सात सप्ताह के भीतर" शब्दों के स्थान पर, पांच मास और तीन सप्ताह" शब्द रखे जाएंगे;  

(ii) उपधारा (2) में, संबद्ध व्यक्ति के निरोध" शब्दों के स्थान पर, संबद्ध व्यक्ति के निरंतर निरोध" शब्द रखे जाएंगे;  

(ङ) धारा 12 में, निरोध के लिए" शब्दों के स्थान पर, उन दो स्थानों पर, जहां वे आते हैं, निरंतर निरोध के लिए" शब्द रखे जाएंगे; 

(च) धारा 13 में, बारह मास" शब्दों के स्थान पर, दो वर्ष" शब्द रखे जाएंगे; 

(छ) धारा 14 की उपधारा (2) के परंतुक में बारह मास" शब्दों के स्थान पर, दो वर्ष" शब्द रखे जाएंगे ।]

15. निरुद्ध व्यक्तियों का अस्थायी तौर पर छोड़ा जाना-(1) समुचित सरकार किसी भी समय निदेश दे सकेगी कि निरोध-आदेश के अनुसरण में निरुद्ध कोई व्यक्ति, या तो बिना शर्तों के या निदेश में विनिर्दिष्ट ऐसी शर्तों पर, जिन्हें वह व्यक्ति स्वीकार करे, किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए छोड़ दिया जाए और उसका छोड़ा जाना वह किसी भी समय रद्द कर सकेगी । 

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति के छोड़े जाने का निदेश देते समय, समुचित सरकार उससे अपेक्षा कर सकेगी कि वह निदेश में विनिर्दिष्ट शर्तों के उचित पालन के लिए प्रतिभुओं सहित या उनके बिना बंधपत्र निष्पादित करे  

(3) उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यक्ति अपने को उस समय और स्थान पर और उस प्राधिकारी के समक्ष अभ्यर्पित करेगा जो, यथास्थिति, उसके छोड़ जाने का निदेश देने वाले या उसका छोड़ा जाना रद्द करने वाले आदेश में विनिर्दिष्ट हो ।   

(4) यदि पर्याप्त कारण के बिना कोई व्यक्ति उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति से अपने को अभ्यर्पित करने में असफल रहेगा तो वह कारावास से, जिसको अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा  

(5) यदि उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यक्ति उस पर उक्त उपधारा के अधीन अधिरोपित शर्तों पर उसके द्वारा निष्पादित बन्धपत्र की शर्तों में से किसी को पूरा करने में असफल रहेगा तो उन बन्धपत्र का समपह्त किया जाना घोषित कर दिया जाएगा और उसके द्वारा आबद्ध व्यक्ति उसमें दी गई शास्ति का देनदार होगा  

16. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के बारे में कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के विरुद्ध नहीं होगी और कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी व्यक्ति के विरुद्ध होगी

17. अधिनियम का राज्य विधियों के अधीन निरुद्ध व्यक्तियों के संबंध में प्रभावी होना-(1) इस अधिनियम की कोई बात, किसी राज्य विधि के अधीन किए गए ऐसे निरोध-आदेशों के संबंध में, जो राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश, 1980 (1980 का 11) के प्रारम्भ के ठीक पूर्व प्रवृत्त हैं, लागू या किसी प्रकार प्रभावी नहीं होगी और तदनुसार ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जिसके संबंध में किसी राज्य विधि के अधीन किया गया कोई निरोध-आदेश, ऐसे प्रारम्भ के ठीक पूर्व प्रवृत्त है, ऐसे निरोध के संबंध में ऐसी राज्य विधि के उपबन्धों द्वारा या जहां जिस राज्य विधि के अधीन ऐसा निरोध-आदेश किया गया है, वह उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित कोई अध्यादेश है (जिसे इसमें इसके पश्चात् राज्य अध्यादेश कहा गया है) और ऐसे राज्य अध्यादेश का स्थान,-

(i) ऐसे प्रारम्भ के पूर्व, उस राज्य के विधान-मण्डल द्वारा पारित किसी अधिनियमिति ने ले लिया है, वहां ऐसी अधिनियमिति द्वारा, या 

(ii) ऐसे प्रारम्भ के पश्चात्, उस राज्य के विधान-मण्डल द्वारा पारित किसी ऐसी अधिनियमिति ने ले लिया है जिसका लागू होना ऐसे राज्य अध्यादेश के अधीन ऐसे प्रारम्भ के पूर्व किए गए निरोध-आदेशों तक सीमित है, वहां ऐसी अधिनियमिति द्वारा,

उसी प्रकार शासित होगा मानो यह अधिनियम अधिनियमित ही न किया गया हो । 

(2) इस धारा की किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति के विरुद्ध, धारा 3 के अधीन किसी निरोध-आदेश के किए जाने का उस दशा में वर्जन करती है जब ऐसे व्यक्ति के संबंध में राष्ट्रीय-सुरक्षा अध्यादेश, 1980 (1980 का 11) के प्रारम्भ के ठीक पूर्व यथापूर्वोक्त प्रवृत्त निरोध-आदेश किसी भी कारणवश, प्रवृत्त नहीं रह जाता है । 

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, राज्य विधि" से कोई ऐसी विधि अभिप्रेत है जो, उन सभी या उनमें से किसी आधार पर, जिन पर धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन कोई निरोध-आदेश किया जा सकता है, निवारक निरोध के लिए उपबन्ध करती है और जो उक्त अध्यादेश के प्रारम्भ के ठीक पूर्व किसी राज्य में प्रवृत्त है ।

18. निरसन और व्यावृत्ति-राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश, 1980 (1980 का 11) इसके द्वारा निरसित किया जाता है । 

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन इस प्रकार की गई समझी जाएगी मानो यह अधिनियम 23 सितम्बर, 1980 को प्रवृत्त हो गया हो और विशिष्टतः उक्त अध्यादेश की धारा 10 के अधीन किए गए किसी निर्देश में, जो उस तारीख से, जिसको इस अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, ठीक पूर्व किसी सलाहकार बोर्ड के समक्ष लम्बित है, उस तारीख के पश्चात् उस बोर्ड द्वारा कार्रवाई इस प्रकार चालू रखी जा सकेगी मानो ऐसा बोर्ड इस अधिनियम की धारा 9 के अधीन गठित किया गया हो ।

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