अनाथालय और अन्य पूर्त आश्रम (पर्यवेक्षण और
नियंत्रण) अधिनियम, 1960
(1960 का अधिनियम संख्यांक 10)
झ्र्9 अप्रैल, 1960ट
अनाथालयों, उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए आश्रमों और ऐसी ही अन्य संस्थाओं के पर्यवेक्षण और नियंत्रण और उनसे
सम्बन्धित विषयों का उपबन्ध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के ग्यारहवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :द्भद्भ
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भद्भद्भ(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनाथालय और अन्य पूर्त आश्रम (पर्यवेक्षण और नियंत्रण) अधिनियम, 1960 है ।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है ।
(3) यह किसी राज्य में उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।
2. परिभाषाएंद्भद्भइस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,द्भद्भ
(क) बोर्डञ्ज् से धारा 5 के अधीन स्थापित नियंत्रण बोर्ड अभिप्रेत है;
(ख) प्रमाणपत्रञ्ज् से धारा 15 के अधीन अनुदत्त मान्यता प्रमाणपत्र अभिप्रेत है;
(ग) बालकञ्ज् से ऐसा लड़का या लड़की अभिप्रेत है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है;
(घ) आश्रमञ्ज् से वह संस्था अभिप्रेत है जो स्त्रियों या बालकों के ग्रहण, देखभाल, संरक्षण और कल्याण के लिए चलाई जाती है या इनके लिए जिसका चलाया जाना आशयित है, चाहे वह अनाथालय, उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए आश्रम, विधवा आश्रम या किसी अन्य नाम से ज्ञात हो;
(ङ) प्रबन्धकञ्ज् से प्रबन्ध समिति का कोई सदस्य अभिप्रेत है जो धारा 20 के अधीन समिति द्वारा इस रूप में नियुक्त किया गया है;
(च) प्रबन्ध समितिञ्ज् से धारा 20 में निर्दिष्ट प्रबन्ध समिति अभिप्रेत है;
(छ) मान्यताप्राप्त आश्रमञ्ज् से ऐसा आश्रम अभिप्रेत है जिसके संबंध में प्रमाणपत्र अनुदत्त कर दिया गया है;
(ज) विहितञ्ज् से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(झ) स्त्रीञ्ज् से ऐसी महिला अभिप्रेत है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है ।
3. अधिनियम का कतिपय संस्थाओं को लागू न होनाद्भद्भइस अधिनियम की कोई भी बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी :द्भद्भ
(क) किसी शैक्षणिक संस्था से संबद्ध या उसके द्वारा नियन्त्रित या मान्यताप्राप्त छात्रावास या बोर्डिंग हाऊस; या
(ख) स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम, 1956 (1956 का 104) के अधीन स्थापित संरक्षा गृह; या
(ग) तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति द्वारा शासित सुधारालय, प्रमाणित या अन्य स्कूल या आश्रम या कार्यगृह ।
4. अधिनियम का मान्यताप्राप्त आश्रमों को शासित करने वाली लिखतों पर प्रभावद्भद्भइस अधिनियम के उपबन्ध किसी मान्यताप्राप्त आश्रम को शासित करने वाली किसी भी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।
अध्याय 2
नियंत्रण बोर्ड और उसकी शक्तियां और कृत्य
5. नियंत्रण बोर्ड, उसका गठन आदिद्भद्भ(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य में आश्रमों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए नियंत्रण बोर्ड स्थापित कर सकती है ।
(2) बोर्ड का गठन निम्नलिखित सदस्यों से होगा, अर्थात् :द्भद्भ
(क) राज्य विधान-मंडल के तीन सदस्य जिनका निर्वाचन उसके सदस्यों द्वारा होगा; परन्तु जहां राज्य विधान-मंडल दो सदनों से मिलकर बनता है वहां विधान-सभा के सदस्य अपने में से दो सदस्यों को निर्वाचित करेंगे और विधान परिषद् के सदस्य अपने में से एक सदस्य निर्वाचित करेंगे;
(ख) राज्य में प्रबन्ध समितियों के पांच संदस्य, जिनका निर्वाचन ऐसी समितियों द्वारा अपने में से ही होगा, हर एक ऐसी समिति का इस प्रयोजन के लिए एक मत होगा ;
(ग) राज्य में समाज कल्याण कार्य का भारसाधक अधिकारी, जो राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;
(घ) राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट छह सदस्य जिनमें से एक से अधिक व्यक्ति उस राज्य से संसद् का सदस्य नहीं होगा और कम से कम तीन स्त्रियां होंगी ।
(3) यदि उपधारा (2) के खण्ड (ग) में निर्दिष्ट अधिकारी बोर्ड के अधिवेशन में किसी कारणवश उपस्थित होने में असमर्थ है तो वह अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी को ऐसे अधिवेशन में उपस्थित होने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकेगा ।
(4) बोर्ड का अध्यक्ष बोर्ड के सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किया जाएगा :
परन्तु राज्य सरकार बोर्ड के प्रथम गठन के समय बोर्ड के एक सदस्य को उसका अध्यक्ष होने के लिए नामनिर्दिष्ट करेगी ।
6. पदावधि और आकस्मिक रिक्तियांद्भद्भ(1) इस धारा में जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय, बोर्ड के सदस्य की पदावधि उसके निर्वाचन या नामनिर्देशन की तारीख से पांच वर्ष या तब तक होगी जब उसका उत्तरवर्ती सम्यक् रूप से निर्वाचित या नामनिर्देशित कर दिया जाए, इनमें से जो भी अधिक हो :
परन्तु धारा 5 की उपधारा (2) के खण्ड (क) या खण्ड (ख) के अधीन निर्वाचित सदस्य या धारा 5 की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के अधीन नामनिर्दिष्ट संसद् सदस्य की पदावधि जैसे ही वह, यथास्थिति, उस राज्य विधान-मंडल के सदन का, जिसने उसको निर्वाचित किया है, उस प्रबन्ध समिति या संसद् का सदस्य नहीं रहता है, वैसे ही समाप्त हो जाएगी ।
(2) कोई सदस्य किसी भी समय राज्य सरकार को लिखित सूचना देकर अपना पद त्याग कर सकता है और राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में ऐसा त्यागपत्र अधिसूचित किए जाने पर, ऐसे सदस्य का स्थान रिक्त हो जाएगा ।
(3) बोर्ड में आकस्मिक रिक्ति को, यथास्थिति, नव निर्वाचन या नामनिर्देशन द्वारा भरा जाएगा; और ऐसी रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित या नामनिर्दिष्ट सदस्य की पदावधि उस सदस्य की शेष अवधि होगी जिसके स्थान पर उसे निर्वाचित या नामानिर्दिष्ट किया गया है ।
(4) बोर्ड के सदस्य पुनः निर्वाचन या पुनः नामनिर्देशन के पात्र होंगे ।
(5) बोर्ड द्वारा किया गया कोई भी कार्य या की गई कार्यवाही केवल बोर्ड में किसी रिक्ति के या उसके गठन में त्रुटि विद्यमान होने के आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी ।
7. बोर्ड के कृत्यद्भद्भ(1) बोर्ड का कर्तव्य होगा कि वह इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार आश्रमों के प्रबंध से संबंधित सभी विषयों का साधारणतः पर्यवेक्षण और नियंत्रण करे, और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करे तथा ऐसे अन्य कृत्य करे जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन विहित किए जाएं ।
(2) इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करते समय, बोर्ड ऐसे निदेशों से आबद्ध होगा जो राज्य सरकार उसको दे ।
8. मान्यताप्राप्त आश्रम के प्रबन्धक को निदेश देने की बोर्ड की शक्तिद्भद्भधारा 7 की उपधारा (2) के अधीन दिए गए निदेशों के, यदि कोई हों अधीन रहते हुए बोर्ड समय-समय पर मान्यताप्राप्त आश्रम के प्रबन्धक को ऐसे साधारण या विशेष निदेश दे सकता है, जो वह आश्रम के दक्षतापूर्ण प्रबन्ध के लिए ठीक समझे, और प्रबन्धक ऐसे निदेशों का पालन करेगा ।
9. निरीक्षण की शक्तिद्भद्भबोर्ड का कोई सदस्य इस निमित्त साधारण या विशेष आदेश द्वारा लिखित रूप से प्राधिकृत बोर्ड का कोई अधिकारी किसी भी आश्रम में यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या इस अधिनियम के उपबन्धों या तद्धीन किन्हीं नियमों, विनियमों, निदेशों या आदेशों का पालन किया जा रहा है, युक्तियुक्त समय पर प्रवेश कर सकता है और उसमें रखी किसी भी दस्तावेज, बही, रजिस्टर या अभिलेख को अपने निरीक्षण के लिए पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकता है और आश्रम के कार्यकरण से संबंधित किसी भी जानकारी की मांग कर सकता है :
परन्तु ऐसा कोई भी सदस्य या अधिकारी किसी ऐसे आश्रम या उसके किसी भाग में जहां महिलाएं हैं, उस परिक्षेत्र की दो प्रतिष्ठित स्त्रियों की उपस्थिति के बिना प्रवेश नहीं करेगा ।
10. बोर्ड की निधियांद्भद्भबोर्ड की निधियां,द्भद्भ
(क) किसी व्यक्ति द्वारा उसको दिए गए अभिदाय, चन्दे, संदान या की गई वसीयत; और
(ख) राज्य सरकार या किसी स्थानीय या अन्य लोक निकाय द्वारा उसको दिए गए अनुदान,
से मिलकर बनेंगी ।
11. बोर्ड के कर्मचारिवृन्दद्भद्भऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनए जाएं, बोर्ड स्वतः को इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने या शक्तियों का प्रयोग करने के लिए समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए, ऐसे अधिकारी या अन्य कर्मचारियों को, जिन्हें वह ठीक समझे, नियुक्त कर सकता है और उनके कृत्य और सेवा की शर्तें अवधारित कर सकता है ।
12. शक्तियों का प्रत्यायोजनद्भद्भराज्य सरकार के नियन्त्रण के अधीन रहते हुए, बोर्ड साधारण या विशेष लिखित आदेश द्वारा, और ऐसी शर्तों और मर्यादाओं के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं, अध्यक्ष या उसके किसी अन्य सदस्य या किसी अधिकारी को इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियां या कृत्य, जो वह अपने प्रशासन के दक्षतापूर्ण संचालन के लिए आवश्यक समझे, प्रत्यायोजित कर सकता है ।
अध्याय 3
आश्रमों को मान्यता
13. प्रमाणपत्र के बिना आश्रमों का न चलाया जानाद्भद्भइस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात्, इस अधिनियम के अधीन अनुदत्त मान्यता प्रमाणपत्र की शर्तों के अधीन और उनके अनुसार के सिवाय, कोई व्यक्ति कोई आश्रम नहीं रखेगा या संचालित करेगा ।
14. प्रमाणपत्र के लिए आवेदनद्भद्भप्रत्येक व्यक्ति, जो आश्रम रखना या संचालित करना चाहता है, बोर्ड को मान्यता प्रमाणपत्र के लिए ऐसे प्ररूप में और ऐसी विशिष्टियां अन्तर्विष्ट करते हुए, जो विहित की जाएं, आवेदन करेगा :
परन्तु इस अधिनियम के प्रारम्भ पर आश्रम रखने या संचालित करने वाले व्यक्ति को, ऐसे प्रमाणपत्र के लिए आवदेन करने के लिए ऐसे प्रारम्भ से तीन मास की कालावधि अनुज्ञात की जाएगी ।
15. प्रमाणपत्र का अनुदान या इंकारद्भद्भ(1) धारा 14 के अधीन, आवेदन की प्राप्ति पर, बोर्ड ऐसी जांच करने के पश्चात् जैसी वह आवश्यक समझे, लिखित आदेश द्वारा, या तो प्रमाणपत्र अनुदत्त कर देगा या अनुदान करने से इंकार कर देगा ।
(2) प्रमाणपत्र के अनुदान से इन्कार करने का आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि मामले में आवेदक को सुनवाई का अवसर न दिया गया हो और जहां प्रमाणपत्र के अनुदान से इन्कार किया गया है, वहां ऐसे इन्कार करने के आधार आवेदक को विहित रीति में संसूचित किए जाएंगे ।
(3) प्रमाणपत्र के अनुदान के लिए कोई शुल्क प्रभारित नहीं किया जाएगा ।
(4) प्रमाणपत्र अंतरणीय नहीं होगा ।
16. प्रमाणपत्र की अन्तर्वस्तुद्भद्भ(1) प्रमाणपत्र में निम्नलिखित विनिर्दिष्ट होंगे :द्भद्भ
(क) मान्यताप्राप्त आश्रम का नाम और उसका अवस्थान;
(ख) उसके प्रबन्धक का नाम;
(ग) आश्रम की प्रकृति, क्या वह साधारणतः स्त्रियों के लिए या विधवाओं के लिए या साधारणतः बालकों के लिए या अनाथों के लिए या इनमें से एक या अधिक वर्गों के लिए है;
(घ) आश्रम द्वारा लिए जाने वाले वासियों की संख्या;
(ङ) भोजन, वाससुविधा, कपड़े, स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्वस्थवृत्त के विषय में न्यूनतम मानक जिनका उस परिक्षेत्र की, जिसमें मान्यताप्राप्त आश्रम स्थित है, दशाओं का और साधनों का ध्यान रखते हुए; उस आश्रम में अनुपालन किया जाना चाहिए;
(च) आश्रम के वासियों को दी जाने वाली शिक्षा या प्रशिक्षण का मानक यदि उसके वासियों की शिक्षा या प्रशिक्षण का भार लिया गया है; और
(छ) ऐसी अन्य शर्तें और विशिष्टियां जो विहित की जाएं :
परन्तु महिलाओं के लिए आश्रम के सम्बन्ध में अनुदत्त प्रमाणपत्र में इस प्रभाव की एक शर्त सम्मिलित की हुई समझी जाएगी कि उसका भारसाधक व्यक्ति, चाहे उसका नाम अधीक्षक या अन्य कोई हो, सामान्यतः स्त्री होगी ।
(2) बोर्ड, किसी मान्यताप्राप्त आश्रम में स्त्री पुरुष दोनों को एक साथ आश्रम के वासियों के रूप में ग्रहण करने की अनुज्ञा सामान्यतः नहीं देगा किन्तु किन्हीं कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएंगे और ऐसी शर्तों या मर्यादाओं के अधीन रहते हुए, जो उसे लोकहित में प्रतीत हो, ऐसा कर सकता है ।
(3) बोर्ड की लिखित पूर्वानुमति के बिना, कोई भी मान्यताप्राप्त आश्रमद्भद्भ
(क) अपने सम्बन्ध में प्रमाणपत्र में यथाविनिर्दिष्ट अपना नाम या अवस्थान नहीं बदलेगा; या
(ख) उसमें विनिर्दिष्ट किसी सेवा के प्रयोजन में परिवर्तन नहीं करेगा ।
17. प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरणद्भद्भ(1) किसी अन्य शास्ति पर, जिसके लिए वह व्यक्ति जिसे प्रमाणपत्र अनुदत्त कर दिया गया है, इस अधिनियम के अधीन दायी हो प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बोर्ड प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरण कर सकता हैद्भद्भ
(क) यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि आश्रम का संचालन प्रमाणपत्र में अधिकथित शर्तों के अनुसार नहीं किया जा रहा है; या
(ख) आश्रम का प्रबन्ध बराबर असमाधानप्रद रीति से चल रहा है या इस रीति से चलाया जा रहा है कि आश्रम के वासियों की नैतिक और शारीरिक भलाई पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है; या
(ग) बोर्ड की राय में आश्रम उस प्रयोजन के लिए अन्यथा अनुपयुक्त हो गया है :
परन्तु प्रतिसंहरण का कोई भी आदेश इस उपधारा के अधीन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को यह हेतुक दर्शित करने के लिए अवसर न दिया गया हो कि क्यों न प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरण किया जाए,
और प्रतिसंहरण के हर मामले में, उसके आधार उस व्यक्ति को विहित रीति में संसूचित किए जाएंगे ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन आश्रम के सम्बन्ध में प्रमाणपत्र प्रतिसंहृत कर दिया गया है वहां ऐसा आश्रमद्भद्भ
(क) जहां प्रतिसंहरण के आदेश के विरुद्ध धारा 18 के अधीन अपील नहीं की गई है वहां, ऐसी अपील के लिए विहित कालावधि के अवसान पर तुरन्त; या
(ख) जहां ऐसी अपील की गई है, किन्तु प्रतिसंहरण के आदेश की पुष्टि की गई है वहां, अपीली आदेश की तारीख से,
काम करना समाप्त कर देगा ।
(3) उपधारा (2) के अधीन जहां कोई आश्रम काम करना समाप्त कर देता है वहां बोर्ड निदेश दे सकता है कि कोई भी स्त्री या बालक जो ऐसे आश्रम का वासी हैद्भद्भ
(क) यथास्थिति, अपने माता-पिता, पति या विधिपूर्ण संरक्षक की अभिरक्षा में वापस दिया जाएगा; या
(ख) किसी अन्य मान्यताप्राप्त आश्रम को अन्तरित किया जाएगा; या
(ग) किसी अन्य योग्य व्यक्ति की देखरेख में सौंप दिया जाएगा :
परन्तु कोई भी स्त्री, स्त्री से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति की देखरेख में नहीं सौंपी जाएगी ।
18. अपीलेंद्भद्भप्रमाणपत्र के अनुदान से इंकार या प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरण करने वाले बोर्ड के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसी रीति में और ऐसी कालावधि के अन्दर, जो विहित की जाए, राज्य सरकार या ऐसे प्राधिकारी से, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, ऐसे इन्कार या प्रतिसंहरण के विरुद्ध अपील कर सकेगा :
परन्तु यदि, यथास्थिति, राज्य सरकार या इस प्रकार विनिर्दिष्ट प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी पर्याप्त कारणवश समय से अपील करने से निवारित रहा था तो वह इस प्रकार विहित कालावधि के अवसान पर अपील ग्रहण कर सकता है ।
19. प्रमाणपत्र का अभ्यर्पण और उसका प्रभावद्भद्भ(1) यदि किसी आश्रम का प्रबन्धक प्रबन्ध समिति के प्रस्ताव द्वारा इस निमित्त विशेषतः प्राधिकृत है तो वह, बोर्ड को ऐसा करने के अपने आशय की छह मास की लिखित सूचना देकर, उस आश्रम के संबंध में अनुदत्त प्रमाणपत्र को वापस लेने के लिए आवेदन कर सकता है और सूचना की तारीख से उक्त कालावधि के अवसान पर प्रमाणपत्र, यदि उस समय से पूर्व सूचना वापस नहीं ली जाती है तो प्रभावी नहीं रहेगा और आश्रम काम करना समाप्त कर देगा ।
(2) कोई भी स्त्री या बालक ऐसी सूचना की तारीख के पश्चात् किसी ऐसे आश्रम में ग्रहण नहीं किए जाएंगे; किन्तु जब तक प्रमाणपत्र उपधारा (1) के अधीन प्रभावहीन नहीं हो जाता है इस धारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम और तद्धीन नियमों, विनियमों, निदेशों और आदेशों की सभी अपेक्षाओं का पालन करने की प्रबन्धक की बाध्यता पर प्रभाव डालती है ।
अध्याय 4
मान्यताप्राप्त आश्रमों का प्रबन्ध
20. प्रबन्ध समितिद्भद्भ(1) प्रत्येक मान्यताप्राप्त आश्रम के प्रबन्ध की भारसाधक एक प्रबन्ध समिति होगी और प्रबन्ध समिति के सदस्य ऐसी समिति के एक सदस्य को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसे आश्रम का प्रबन्धक नियुक्त करेंगे ।
(2) प्रबन्ध समिति का गठन, शक्तियां और कृत्य और उसके सदस्यों की पदावधि ऐसी होगी जो ऐसे आश्रम के संविधान में उपबंधित की जाएं ।
21. प्रबन्धक का कर्तव्यद्भद्भप्रबन्धक का यह कर्तव्य होगा कि वह मान्यताप्राप्त आश्रम में गृहीत प्रत्येक स्त्री या बालक के संबंध में इस अधिनियम या तद्धीन नियमों, विनियमों, निदेशों और आदेशों की सभी अपेक्षाओं का तब तक पालन करे, जब तक स्त्री पुनर्वासित नहीं हो जाती है या बालक अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेता है या जब तक प्रमाणपत्र प्रभावहीन नहीं हो जाता है ।
22. आश्रम के वासियों का उन्मोचनद्भद्भ(1) बोर्ड द्वारा बनाए गए विनियमों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए यदि किसी आश्रम की प्रबन्ध समिति का समाधान हो जाता है कि आश्रम का कोई वासी अपनी जीविकोपार्जन करने के लिए योग्य हो गया है या अन्यथा आश्रम से उन्मोचन के लिए उपयुक्त है तो प्रबंधक ऐसे वासी को उन्मोचित कर सकेगा ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, आश्रम की कोई भी महिला वासी तब तक उन्मोचित नहीं की जाएगी या विवाह में नहीं दी जाएगी या किसी अन्य व्यक्ति की देखरेख में सौंपी नहीं जाएगी जब तक ऐसी महिला ने बोर्ड या इस निमित्त उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी के समक्ष घोषणा नहीं कर दी है कि वह, यथास्थिति, ऐसे उन्मोचन, विवाह या सौंपने की सम्मति देती है और यदि विवाह में दी जाने वाली वासी अप्राप्तव्य है तो, यथास्थिति, बोर्ड या अधिकारी ने, कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात्, उसके लिए अपना अनुमोदन नहीं दे दिया है ।
23. वासियों की मृत्यु के बारे में रिपोर्टद्भद्भप्रबन्धक, आश्रम के वासियों में से किसी की मृत्यु हो जाने के तुरन्त पश्चात् अपनी सर्वोत्तम जानकारी के आधार पर मृत्यु का कारण स्पष्ट करते हुए बोर्ड को उसकी एक लिखित रिपोर्ट भेजेगा ।
अध्याय 5
प्रकीर्ण
24. शास्तियांद्भद्भकोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के या तद्धीन किसी नियम, विनियम, निदेश या आदेश के किसी उपबन्ध या प्रमाणपत्र की किसी शर्त का पालन करने में असफल रहेगा, प्रथम अपराध की दशा में कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ पचास रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।
25. अभियोजन के लिए मंजूरीद्भद्भइस अधिनियम के अधीन कोई अभियोजन, यथास्थिति, जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना, संस्थित नहीं किया जाएगा ।
26. अधिनियम के अधीन कृत्य का पालन करने वाले व्यक्तियों का लोक सेवक होनाद्भद्भबोर्ड के सदस्य और इस अधिनियम के अधीन बोर्ड द्वारा उसकी शक्तियों में से किसी शक्ति का प्रयोग करने के लिए सशक्त प्रत्येक व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा ।
27. सद्भावपूर्वक किए गए कार्यों का संरक्षणद्भद्भकोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में, जो इस अधिनियम या तद्धीन किसी नियम, विनियम, निदेश या आदेश के अधीन सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशयित हो, इस अधिनियम के अधीन कृत्य करने वाले किसी व्यक्ति के विरुद्ध न होगी ।
28. आश्रमों को राज्य सरकार की छूट देने की शक्तिद्भद्भ(1) यदि बोर्ड से परामर्श के पश्चात्, राज्य सरकार का समाधान हो जाता है कि किसी आश्रम या आश्रमों के वर्ग के संबंध में परिस्थितियां ऐसी है कि ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और उसमें विनिर्दिष्ट कारणों से, ऐसी शर्तों, निर्बन्धनों या मर्यादाओं के अधीन, यदि कोई हों, जिन्हें अधिरोपित करना वह ठीक समझे, यथास्थिति, ऐसे आश्रम या आश्रमों के वर्ग को, इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम या विनियम के उपबंधों में सभी या किसी के प्रवर्तन से छूट दे सकती है ।
(2) इस धारा के अधीन जारी कि गई छूट अनुदत्त करने वाली प्रत्येक अधिसूचना का पुनर्विलोकन दो वर्ष से अनधिक के अन्तरालों पर बोर्ड के परामर्श से किया जाएगा, किन्तु इसमें अन्तर्विष्ट किसी बात का प्रभाव राज्य सरकार की किसी भी समय बोर्ड के परामर्श से ऐसी अधिसूचना में संशोधन करने, फेरफार करने या उसका विखंडन करने की शक्ति पर नहीं पड़ेगा ।
29. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्तिद्भद्भ(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किसी बात के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :द्भद्भ
(क) धारा 5 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) के अधीन बोर्ड के निर्वाचन संबंधी या उससे संसक्त सभी विषय और अध्यक्ष का निर्वाचन;
(ख) बोर्ड की सदस्यता के लिए निरर्हताएं और ऐसे सदस्य को, जो किसी निर्रहता से ग्रस्त है या हो जाता है, हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया;
(ग) बोर्ड की निधियां;
(घ) बोर्ड के सदस्यों द्वारा लिए जाने वाले यात्रा तथा अन्य भत्ते;
(ङ) इस अधिनियम के अधीन बोर्ड को अपने कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए समर्थ बनाने के लिए कर्मचारिवृन्द की नियुक्ति और उनकी भर्ती और सेवा की शर्तें;
(च) राज्य सरकार द्वारा बोर्ड या प्रबन्ध समितियों से विवरणियों तथा अन्य जानकारी की मांग;
(छ) वह प्ररूप जिसमें मान्यता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया जा सकता है, ऐसे आवेदन में अन्तर्विष्ट की जाने वाली विशिष्टियां और वह प्ररूप जिसमें और वे शर्तें जिनके अधीन ऐसा प्रमाणपत्र अनुदत्त किया जा सकता है;
(ज) बोर्ड द्वारा रजिस्टरों और लेखाओं का रखा जाना और उसके लेखाओं की संपरीक्षा;
(झ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाता है या किया जाए ।
(3) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए सभी नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्त शीघ्र राज्य विधान-मण्डल के समक्ष रखे जाएंगे ।
30. बोर्ड की विनियम बनाने की शक्तिद्भद्भ(1) बोर्ड, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के लिए अपने को समर्थ बनाने के लिए ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम तथा तद्धीन बनाए गए नियमों से असंगत न हों ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखित सभी या किसी बात के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात् :द्भद्भ
(क) बोर्ड के अधिवेशनों का समय और स्थान, ऐसे अधिवेशनों में कार्य करने के संबंध में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और ऐसे अधिवेशनों में कार्य के संव्यवहार के लिए आवश्यक गणपूर्ति;
(ख) बोर्ड के अधिवेशनों का कार्यवृत्त रखना और राज्य सरकार को उसकी प्रतियों का पारेषण;
(ग) बोर्ड को इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने में सहायता करने के प्रयोजन से बोर्ड द्वारा उपसमितियों और स्थानीय समितियों और व्यक्तियों की नियुक्ति;
(घ) मान्यताप्राप्त आश्रम के प्रबन्ध का पर्यवेक्षण और नियन्त्रण;
(ङ) आश्रमों का निरीक्षण;
(च) बोर्ड द्वारा प्रबन्ध समितियों से विवरणियों और अन्य जानकारी की मांग;
(छ) मान्यताप्राप्त आश्रमों में वासियों का ग्रहण, देखरेख, उपचार, भरणपोषण, संरक्षण, प्रशिक्षण, कल्याण, शिक्षण, नियंत्रण और अनुशासन;
(ज) मान्यताप्राप्त आश्रमों के वासियों से भेंट और उनके साथ सम्पर्क और आश्रमों के ऐसे वासियों को अल्प कालावधि के लिए अनुपस्थित रहने की अनुज्ञा देना;
(झ) मान्यताप्राप्त आश्रमों से वासियों का उन्मोचन, उनका एक मान्यताप्राप्त आश्रम से दूसरे मान्यताप्राप्त आश्रम को अन्तरण और प्रबन्धक द्वारा बोर्ड को भेजी जाने वाली रिपोर्ट;
(ञ) कोई अन्य विषय जिसके संबंध में बोर्ड की राय में आश्रमों के दक्षतापूर्ण पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए उपबन्ध आवश्यक है ।
(3) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसे विनियम में जिसका उसने अनुमोदन किया है, संशोधन, फरेफार अथवा विखण्डन कर सकती है, और तब वह विनियम तद्नुसार प्रभावी होगा किन्तु उपधारा (1) के अधीन बोर्ड की शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
31. निरसन और व्यावृत्तिद्भद्भ(1) किसी भी राज्य में इस अधिनियम के प्रवृत्त होने की तारीख से, स्त्री और बालक संस्था (अनुज्ञापन) अधिनियम, 1956 (1956 का 105) या उस राज्य में ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रवृत्त कोई तत्स्थानी अधिनियम निरसित हो जाएगा ।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन की गई कोई बात या कार्यवाही (जिसके अन्तर्गत दिया गया कोई निदेश, बनाया गया कोई रजिस्टर या नियम या किया गया कोई आदेश अथवा अधिरोपित कोई निर्बन्धन भी है) जहां तक ऐसी बात या कार्यवाही इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत नहीं है, पूर्वोक्त उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी मानो वे उपबन्ध तब प्रवृत्त थे जब ऐसी बात या ऐसी कार्रवाई की गई थी तद्नुसार तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या कार्यवाही से अतिष्ठित नहीं हो जाती है ।