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शिक्षु अधिनियम, 1961 ( Apprentices Act, 1961 )


 

शिक्षु अधिनियम, 1961

(1961 का अधिनियम संख्यांक 52)

[12 दिसम्बर, 1961]

॥। शिक्षुओं के प्रशिक्षण के विनियमन और नियंत्रण

का तथा तत्संसक्त विषयों का

उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के बारहवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-(1) यह अधिनियम शिक्षु अधिनियम, 1961 कहा जा सकेगा ।

(2) इसका विस्तार ॥। सम्पूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे; और विभिन्न राज्यों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी ।

(4) इस अधिनियम के उपबन्ध निम्नलिखित को लागू नहीं होंगे-

(क) कोई क्षेत्र या किसी क्षेत्र में का कोई उद्योग, जब तक कि केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस क्षेत्र या उद्योग को ऐसे क्षेत्र या उद्योग के रूप में विनिर्दिष्ट न करे, जिसको उक्त उपबन्ध उस तारीख से, जो उस अधिसूचना में वर्णित हों, लागू होंगे;

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                              ।

 [(ग) शिक्षुओं को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी कोई विशेष शिक्षुता स्कीम, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित की जाए ।]

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

 [(क) अखिल भारतीय परिषद्" से भारत सरकार के पूर्ववर्ती शिक्षा मंत्रालय के तारीख 30 नवम्बर, 1945 के संकल्प संख्या एफ० 16-10/44-ई० ख्र्ख्र्ख्र् द्वारा स्थापित अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् अभिप्रेत है ;]

 [(कक)] शिक्षु" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी शिक्षुता संविदा के अनुसरण में  ॥। शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है ;

6[(ककक) शिक्षुता प्रशिक्षण" से किसी शिक्षुता संविदा के अनुसरण में और विहित निबंधनों और शर्तों के अधीन, जो विभिन्न प्रवर्गों के शिक्षुओं के लिए विभिन्न हो सकेंगी, किसी उद्योग या स्थापन में पूरा किया गया प्रशिक्षण क्रम अभिप्रेत है ;]

(ख) शिक्षुता सलाहकार" से धारा 26 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार या उस धारा की उपधारा (2) के अधीन नियुक्त किया गया राज्य शिक्षुता सलाहकार अभिप्रेत है ;

(ग) शिक्षुता परिषद्" से धारा 24 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् या राज्य शिक्षुता परिषद् अभिप्रेत है ;

(घ) समुचित सरकार" से-

(1) निम्नलिखित के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है-

                (क) केन्द्रीय शिक्षुता परिषद्, अथवा

 [(कक) प्रादेशिक बोर्ड, अथवा

(ककक) स्नातक या तकनीकी शिक्षुओं का या तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षुओं का व्यावहारिक प्रशिक्षण, अथवा]

(ख) किसी रेल, महापत्तन, खान या तेल-क्षेत्र का कोई स्थापन, अथवा

 [(खख) कोई स्थापन, जो चार या अधिक राज्यों में स्थित विभिन्न स्थानों से कारबार या व्यवसाय चलाता है, अथवा]

(ग) कोई स्थापन, जो निम्नलिखित के स्वामित्व, नियंत्रण या प्रबन्ध में है-

                (i) केन्द्रीय सरकार या केन्द्रीय सरकार का कोई विभाग ;

(ii) कोई कंपनी, जिसकी अंशपूंजी का 51 प्रतिशत से अन्यून केन्द्रीय सरकार द्वारा या भागतः उस सरकार द्वारा और भागतः एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा धारित है ;

(iii) केन्द्रीय अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित किया गया कोई निगम (जिसके अन्तर्गत सहकारी सोसाइटी आती है) जो केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या प्रबंध में है ।

(2) निम्नलिखित के सम्बन्ध में राज्य सरकार अभिप्रेत है-

                (क) राज्य शिक्षुता परिषद्, अथवा

(ख) इस खंड के उपखंड (1) में विनिर्दिष्ट स्थापनों से भिन्न कोई स्थापन ;

 [(घघ) राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड" से राज्य सरकार द्वारा स्थापित राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड अभिप्रेत है ;]

 [(ङ) अभिहित व्यवसाय" से ऐसा कोई व्यवसाय या उपजीविका अथवा इंजीनियरिंग या गैर-इंजीनियरिंग या प्रौद्योगिकी का कोई विषय-क्षेत्र या कोई व्यावसायिक पाठ्यक्रम अभिप्रेत है, जिसे केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् से परामर्श करने के पश्चात्, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अभिहित व्यवसाय के रूप में विनिर्दिष्ट करे ;]

(च) नियोजक" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी स्थापन में पारिश्रमिक पर कोई काम करने के लिए एक या अधिक अन्य व्यक्तियों को नियोजित करता है और इसके अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जिसे ऐसे स्थापन में के कर्मचारियों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण न्यस्त किया गया हो ;

(छ) स्थापन" के अन्तर्गत ऐसा कोई स्थापन आता है, जहां कोई उद्योग चलाया जाता है ;  [और जहां कोई स्थापन विभिन्न विभागों से मिलकर बना है या उसकी कई शाखाएं हैं, चाहे वे एक ही स्थान में या विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं, वहां ऐसे सभी विभागों या शाखाओं को उस स्थापन का भाग समझा जाएगा ;]

(ज) प्राइवेट सैक्टर में का स्थापन" से वह स्थापन अभिप्रेत है, जो पब्लिक सैक्टर में का स्थापन नहीं है-

(झ) पब्लिक सैक्टर में का स्थापन" से वह स्थापन अभिप्रेत है, जो निम्नलिखित के स्वामित्व, नियंत्रण का प्रबंध में है-

(1) सरकार या सरकार का कोई विभाग ;

(2) कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथापरिभाषित सरकारी कंपनी ;

(3) किसी केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित किया गया कोई निगम (जिसके अन्तर्गत सहकारी सोसाइटी आती है), जो सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या प्रबंध में है ;

(4) कोई स्थानीय प्राधिकारी ;

  [(ञ) स्नातक या तकनीकी शिक्षु" से ऐसा शिक्षु अभिप्रेत है, जिसके पास सरकार से मान्यताप्राप्त किसी संस्था द्वारा प्रदान की गई इंजीनियरिंग या गैर-इंजीनियरिंग या प्रौद्योगिकी या डिप्लोमा या समतुल्य अर्हता या जो उसे प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है और जो किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करता है ;]

(ट) उद्योग" से ऐसा उद्योग या कारोबार अभिप्रेत है, जिसमें कोई व्यवसाय, उपजीविका अथवा इंजीनियरिंग या गैर-इंजीनियरिंग या प्रौद्योगिकी का कोई विषय-क्षेत्र या कोई व्यावसायिक पाठ्यक्रम, अभिहित व्यवसाय या वैकल्पिक व्यवसाय या दोनों के रूप में विनिर्दिष्ट है ;]

(ठ) राष्ट्रीय परिषद्" से तारीख 12 अगस्त, 1956 के भारत सरकार के श्रम मंत्रालय (पुनर्वास और नियोजन महानिदेशक का कार्यालय) के संकल्प संख्या टी० आर०/ई०पी०-24/56 द्वारा स्थापित व्यावसायिक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय परिषद् अभिप्रेत है  [जो भारत सरकार के श्रम मंत्रालय (रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय) के तारीख 30, सितम्बर 1981 के संकल्प सं० डी०जी०ई०टी०12/21/80-टी०सी० द्वारा राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद् के रूप में पुनःनामित की गई है ;]

 [(ठठ) वैकल्पिक व्यवसाय" से कोई व्यवसाय या उपजीविका अथवा इंजीनियरिंग या गैर-इंजीनियरिंग या प्रौद्योगिकी या किसी व्यावसायिक पाठ्यक्रम में कोई ऐसा विषय-क्षेत्र अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए नियोजक द्वारा अवधारित किया जाए ;

(ठठठ) पोर्टल साइट" से केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन जानकारी के आदान-प्रदान के लिए वेबसाइट अभिप्रेत है ;]

(ड) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

 [(डड) प्रादेशिक बोर्ड" से ऐसा शिक्षुता प्रशिक्षण बोर्ड अभिप्रेत है, जो मुम्बई, कलकत्ता, मद्रास या कानपुर में सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत है ;]

(ढ) राज्य" के अन्तर्गत संघ राज्यक्षेत्र आता है ;

(ण) राज्य परिषद्" से राज्य सरकार द्वारा स्थापित व्यावसायिक प्रशिक्षण की परिषद् अभिप्रेत है ;

(त) राज्य सरकार" से संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, उसका प्रशासक अभिप्रेत है ;

2[(तत) तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु" से कोई ऐसा शिक्षु अभिप्रेत है, जिसके पास ऐसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम का, जिसके लिए अखिल भारतीय परिषद् द्वारा मान्यताप्राप्त स्कूल शिक्षा के माध्यमिक स्तर के पूरा करने के पश्चात् दो वर्ष का अध्ययन करना होता है, प्रमाणपत्र है या जो उसे प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है और जो  [अभिहित व्यावसायिक में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करता है ;]

5[(थ) व्यवसाय शिक्षु" से कोई शिक्षु अभिप्रेत है, जो किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करताहै ;

(द) कर्मकार" से नियोजक के परिसर में कार्यरत कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी प्रकार के काम में या तो प्रत्यक्ष रूप से या किसी अभिकरण के माध्यम से, जिसके अंतर्गत ठेकेदार आता है, मजदूरी पर नियोजित किया जाता है और जो अपनी मजदूरी प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से नियोजक से प्राप्त करता है, किन्तु इसके अंतर्गत खंड (कक) में निर्दिष्ट शिक्षु नहीं होगा ।]

अध्याय 2

शिक्षु और उनका प्रशिक्षण

3. शिक्षु के रूप में रखे जाने के लिए अर्हताएं-कोई व्यक्ति किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए शिक्षु के रूप में तब के सिवाय रखा नहीं जाएगा, जब कि वह-

 [(क) चौदह वर्ष से कम आयु का न हो, और परिसंकटमय उद्योगों से संबंधित अभिहित व्यवसायों के लिए अठारह वर्ष से कम आयु का न हो; और]

(ख) शिक्षा और शारीरिक योग्यता के ऐसे स्तरमानों की पुष्टि कर दे, जो विहित किए जाएं:

                परन्तु विभिन्न अभिहित व्यवसायों में शिक्षुता प्रशिक्षण के संबंध में [और विभिन्न प्रवर्गों के शिक्षुओं के लिए] विभिन्न स्तरमान विहित किए जा सकेंगे ।

 [3क. अभिहित व्यवसायों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रशिक्षण स्थानों का आरक्षण-(1) प्रत्येक अभिहित व्यवसाय में नियोजक द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रशिक्षण स्थान आरक्षित किए जाएंगे [और जहां किसी स्थापन में एक से अधिक अभिहित व्यवसाय है वहां ऐसे प्रशिक्षण स्थान भी, ऐसे स्थापन में सभी अभिहित व्यवसायों में शिक्षुओं की कुल संख्या के आधार पर आरक्षित किए जाएंगे] ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए जाने वाले प्रशिक्षण स्थानों की संख्या इतनी होगी, जितनी सम्बद्ध राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए विहित की जाए ।

स्पष्टीकरण-इस धारा में अनुसूचति जाति" और अनुसूचित जनजाति" पदों के वही अर्थ हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (24) और (25) में हैं ।]

 [3ख. अभिहित व्यवसायों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए प्रशिक्षण स्थानों का आरक्षण-(1) प्रत्येक अभिहित व्यवसाय में नियोजक द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए प्रशिक्षण स्थान आरक्षित किए जाएंगे और जहां किसी स्थापन में एक से अधिक अभिहित व्यवसाय हैं वहां ऐसे प्रशिक्षण स्थान भी, ऐसे स्थापन में सभी अभिहित व्यवसायों में शिक्षुओं की कुल संख्या के आधार पर आरक्षित किए जाएंगे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किए जाने वाले प्रशिक्षण स्थानों की संख्या उतनी होगी, जितनी संबद्ध राज्य में अन्य पिछड़े वर्गों की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए विहित की जाए ।]

 [4. शिक्षुता-संविदा-(1) कोई भी व्यक्ति किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए शिक्षु के रूप में तब तक नहीं रखा जाएगा जब तक उसने या यदि वह अवयस्क हो, तो उसके संरक्षक ने नियोजक से कोई शिक्षुता-संविदा न कर ली हो ।

(2) शिक्षुता प्रशिक्षण उस तारीख को प्रारम्भ हुआ समझा जाएगा, जिस तारीख को उपधारा (1) के अधीन शिक्षुता-संविदा की गई है ।

(3) हर शिक्षुता-संविदा में ऐसे निबंधन और शर्तें हो सकती हैं, जिन पर संविदा के पक्षकार सहमत हों:

परन्तु ऐसा कोई भी निबंधन या शर्त इस अधिनियम के या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के किसी उपबन्ध से असंगत नहीं होगी ।

 [(4) नियोजक द्वारा, उपधारा (1) के अधीन की गई प्रत्येक शिक्षुता संविदा, शिक्षुता सलाहकार को तब तक तीस दिन के भीतर भेजी जाएगी, जब तक केंद्रीय सरकार द्वारा पोर्टल वेबसाइट विकसित नहीं कर ली जाती है और इसके पश्चात् शिक्षुता संविदा के ब्यौरे सत्यापन और रजिस्ट्रीकरण के लिए सात दिन के भीतर पोर्टल साइट पर डाले जाएंगे ।

(4क) शिक्षुता सलाहकार, शिक्षुता संविदा में आक्षेप की दशा में, इसके प्राप्त होने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर नियोजक को आक्षेप संप्रेषित करेगा ।

(4ख) शिक्षुता सलाहकार, शिक्षुता संविदा के प्राप्त होने की तारीख से तीस दिन के भीतर इसको रजिस्ट्रीकृत करेगा ।]

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।

(6) जब केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् से परामर्श के पश्चात् किसी प्रवर्ग के शिक्षुओं की, जो ऐसा प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हों, शिक्षुता प्रशिक्षण के निबंधनों और शर्तों में परिवर्तन करने वाला कोई नियम बनाए, तब हर शिक्षुता-संविदा के, जो उस प्रवर्ग के शिक्षुओं से संबंधित हों और जो ऐसे नियम बनाए जाने से ठीक पूर्व विद्यमान हों, निबंधन और शर्तें तद्नुसार परिवर्तित हुई समझी जाएंगी ।]

5. शिक्षुता-संविदा का नवीयन-जहां कि कोई नियोजक, जिसके साथ शिक्षुता-संविदा की गई हो, उस संविदा के अधीन की अपनी बाध्यताओं को पूरा करने के लिए किसी कारणवश असमर्थ हो और शिक्षुता सलाहकार के अनुमोदन से नियोजक, शिक्षु या उसके संरक्षक, तथा किसी अन्य नियोजक के बीच यह करार हो जाए कि शिक्षु शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि के अनवसित भाग के लिए उस अन्य नियोजक के अधीन शिक्षु रूप में रखा जाएगा, वहां वह करार, शिक्षुता सलाहकार के यहां उसका रजिस्ट्रीकरण हो जाने पर, उस शिक्षु या उसके संरक्षक तथा उस अन्य नियोजक के बीच शिक्षुता-संविदा समझा जाएगा और ऐसे रजिस्ट्रीकरण की तारीख को और से प्रथम नियोजक से की गई शिक्षुता-संविदा पर्यवसित हो जाएगी और उस संविदा के अधीन की कोई भी बाध्यता संविदा के किसी पक्षकार की प्रेरणा पर उसके दूसरे पक्षकार के विरुद्ध प्रवर्तनीय नहीं होगी । 

 [5क. वैकल्पिक व्यवसाय का विनियमन-वैकल्पिक व्यवसाय में शिक्षु से संबंधित अर्हता, शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि, परीक्षण आयोजित करना, प्रमाणपत्र देना और अन्य शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं । 

5ख. अन्य राज्यों से शिक्षुओं को रखा जाना-नियोजक, शिक्षुओं को शिक्षुता प्रशिक्षण देने के प्रयोजन के लिए अन्य राज्यों से शिक्षु रख सकेगा ।]

6. शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि-शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि, जो शिक्षुता-संविदा में विनिर्दिष्ट की जाएगी, निम्नलिखित होगी: -

(क) ऐसे [व्यवसाय शिक्षुओं] की दशा में, जो राष्ट्रीय परिषद् से मान्यताप्राप्त किसी विद्यालय या अन्य संस्था से संस्थागत प्रशिक्षण प्राप्त करके [उस परिषद् या उस परिषद् से मान्यताप्राप्त किसी संस्था द्वारा संचालित व्यावसायिक परीक्षण या परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके हों, शिक्षुता परीक्षण की कालावधि उतनी होगी जितनी विहित की जाए;]

3[(कक) ऐसे व्यवसाय शिक्षुओं की दशा में, जो राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड से या किसी अन्य प्राधिकरण से या किसी स्कीम के अधीन अनुमोदित पाठ्यक्रम से, जिसे केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, संबद्ध या मान्यताप्राप्त किसी विद्यालय या अन्य संस्था में संस्थागत प्रशिक्षण प्राप्त करके उस बोर्ड या राज्य परिषद् या प्राधिकरण या केंद्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य अभिकरण द्वारा संचालित व्यावसायिक परीक्षण या परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके हों, शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि उतनी होगी, जितनी विहित की जाए ;]

(ख) अन्य 2[व्यवसाय शिक्षुओं] की दशा में शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि उतनी होगी, जितनी विहित की जाए;

 [(ग) स्नतक या तकनीकी शिक्षुओं [तकनीकी (व्यावसायिक शिक्षुओं] की दशा में शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि उतनी होगी, जितनी विहित की जाए ।] ।

7. शिक्षुता-संविदा का पर्यवसान-(1) शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि के अवसान पर शिक्षुता-संविदा पर्यवसित हो जाएगी ।

(2) शिक्षुता-संविदा का कोई पक्षकार शिक्षुता सलाहकार से उस संविदा के पर्यवसान के लिए आवेदन कर सकेगा और जब ऐसा आवेदन किया जाए, तो उसकी एक प्रतिलिपि संविदा के दूसरे पक्षकार को डाक से भेजेगा ।  

(3) आवेदन की अंतर्वस्तु और दूसरे पक्षकार द्वारा फाइल किए गए आक्षेपों पर, यदि कोई हों, विचार करने के पश्चात् शिक्षुता सलाहकार, यदि उसका समाधान हो जाए कि संविदा के पक्षकार या उनमें से कोई संविदा के निबन्धनों और शर्तों का पालन करने में असफल रहे हैं या रहा है और यह कि पक्षकारों के या उनमें से किसी के हित में यह वांछनीय है कि संविदा को पर्यवसित किया जाए, तो लिखित आदेश द्वारा संविदा को पर्यवसित कर सकेगा:

परन्तु जहां कि संविदा-

(क) संविदा के निबन्धनों और शर्तों का पालन करने में नियोजक की असफलता के कारण पर्यवसित की जाए, वहां नियोजक शिक्षुओं को ऐसा प्रतिकर देगा, जो विहित किया जाए; 

(ख) शिक्षु की ऐसी असफलता के कारण पर्यवसित की जाए, वहां शिक्षु या उसका संरक्षक प्रशिक्षण के खर्च के रूप में नियोजक को उतनी रकम वापस करेगा, जितनी शिक्षुता सलाहकार द्वारा अवधारित की जाए ।

 [(4) इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी शिक्षुता संविदा का शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि के अवसान के पूर्व शिक्षुता-सलाहकार द्वारा पर्यवसान कर दिया गया है और किसी नए नियोजक से कोई नई शिक्षुता-संविदा की जा रही है, वहां शिक्षुता सलाहकार, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि पूर्वतन नियोजन से की गई शिक्षुता-संविदा को पूर्वतन नियोजक की किसी चूक के कारण पूरा नहीं किया जा सका था । पूर्वतन नियोजक के शिक्षु द्वारा पहले ही प्राप्त किए गए शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि को नए नियोजक से लिए जाने वाले शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि में सम्मिलित किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा ।]

 [8. अभिहित व्यवसाय और वैकल्पिक व्यवसाय के लिए शिक्षुओं की संख्या-(1) केंद्रीय सरकार, अभिहित व्यवसाय और वैकल्पिक व्यवसाय के लिए नियोजक द्वारा लगाए जाने वाले शिक्षुओं की संख्या विहित करेगी ।

(2) कई नियोजक, उनके अधीन शिक्षुओं को शिक्षुता प्रशिक्षण देने के प्रयोजन के लिए इस निमित्त केंद्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार या तो स्वयं या शिक्षुता सलाहकार द्वारा अनुमोदित किसी अभिकरण के माध्यम से एक साथ कार्य कर सकेंगे ।]

9. शिक्षुओं का व्यावहारिक एवं बुनियादी प्रशिक्षण- [(1) प्रत्येक नियोजक अपने द्वारा रखे गए हर शिक्षु को व्यावहारिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अनुसरण कराने के लिए उपयुक्त इंतजाम अपने कार्य-स्थल में करेगा ।]

(2) [केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार को या केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार द्वारा इस निमित्त लिखित रूप में प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति को, जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो] ऐसे हर एक शिक्षु तक पहुंच की सब युक्तियुक्त सुविधाएं दी जाएंगी, जिससे कि वह उसके काम का परीक्षण कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि व्यावहारिक प्रशिक्षण अनुमोदित कार्यक्रम के अनुसार दिया जा रहा है:

परन्तु जिन स्थापनों के संबंध में समुचित सरकार राज्य सरकार है उनमें प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिक्षुओं के बारे में ऐसी सुविधाएं [राज्य शिक्षुता सलाहकार को या राज्य शिक्षुता सलाहकार द्वारा इस निमित्त लिखित रूप में प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति को, जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो] भी दी जाएगी ।

1[(3) वे व्यवसाय-शिक्षु, जिन्होंने राष्ट्रीय परिषद् से मान्यताप्राप्त विद्यालय या अन्य संस्था में अथवा राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड या किसी अन्य प्राधिकरण से, जिसे केंद्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, संबद्ध या मान्यताप्राप्त किसी अन्य संस्था में संस्थागत प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है, व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए कार्य-स्थल में प्रवेश के पूर्व एक बुनियादी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करेंगे और व्यवसाय शिक्षुओं के लिए बुनियादी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपयुक्त सुविधाओं वाले किसी संस्थान में कराया जाएगा ।] ।     

(4) जहां कि कोई नियोजक अपने स्थापन में पांच सौ या अधिक कर्मकारों को नियोजित करता है, वहां [व्यवसाय शिक्षुओं] को बुनियादी प्रशिक्षण या तो कर्मशाला-भवन में अलग-अलग भागों में दिया जाएगा या एक अलग भवन में दिया जाएगा, जो स्वयं नियोजक द्वारा स्थापित किया जाएगा; किन्तु समुचित सरकार ऐसे अलग भवन की भूमि, सन्निर्माण और उपस्कर के खर्च को पूरा करने के लिए नियोजक को सरल निबन्धनों पर और सरल किस्तों में प्रतिसंदेय उधार दे सकेगी । 

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।

1[(7) किसी स्नातक या तकनीकी शिक्षु या तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु से भिन्न शिक्षु की दशा में व्यावहारिक प्रशिक्षण का, जिसके अंतर्गत किसी अभिहित व्यवसाय में बुनियादी प्रशिक्षण भी है, पाठ्य-विवरण और उसके लिए उपयोग में लाए जाने वाले उपस्कर ऐसे होंगे, जैसे केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित किए जाएं ।

(7क) स्नातक या तकनीकी शिक्षुओं या तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षुओं की दशा में शिक्षु प्रशिक्षण कार्यक्रम और अभिहित व्यवसाय में ऐसे प्रशिक्षण के लिए अपेक्षित सुविधाएं ऐसी होंगी, जो केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित की जाएं ।]

(8) (क) धारा 6 के [खण्ड (क) और (कक)] में निर्दिष्ट व्यवसाय शिक्षुओं से भिन्न व्यवसाय शिक्षुओं को दिए गए [बुनियादी प्रशिक्षण के संबंध में] नियोजक द्वारा उपगत किए गए आवर्ती खर्च [जिनके अंतर्गत वृत्तिकाओं का खर्च आता है]-

(i) यदि ऐसा नियोजक, 7[दौ सौ पचास] या अधिक कर्मकारों को नियोजित करता है तो नियोजक द्वारा वहन किए जाएंगे,

(ii) यदि ऐसा नियोजक 7[दौ सौ पचास] से कम कर्मकारों को नियोजित करता है तो ऐसी सीमा तक, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत की जाए, नियोजक और सरकार द्वारा समान अंशों में वहन किए जाएंगे और उस सीमा के आगे केवल नियोजक द्वारा वहन किए जाएंगे; तथा

                (ख) धारा 6 के 6[खण्ड (क) और (कक) में निर्दिष्ट व्यवसाय शिक्षुओं को दिए गए व्यावहारिक प्रशिक्षण के सम्बन्ध में जिसके अन्तर्गत बुनियादी प्रशिक्षण भी है,] नियोजक द्वारा उपगत किए गए आवर्ती खर्चे (जिनके अन्तर्गत वृत्तिकाओं का खर्च आता है), यदि कोई हों, हर मामले में नियोजक द्वारा वहन किए जाएंगे । 

 

 [(ग) [ऐसे शिक्षुओं के सिवाय, जिनके पास गैर-इंजीनियरिंग में डिग्री या डिप्लोमा है] स्नातक या तकनीकी शिक्षुओं [तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु] को दिए गए व्यावहारिक प्रशिक्षण के सम्बन्ध में नियोजक द्वारा किए गए आवर्ती खर्चे (जिनके अन्तर्गत वृत्तिकाओं का खर्च नहीं है) नियोजक द्वारा उठाए जाएंगे और वृत्तिकाओं का खर्च, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत सीमा तक, केन्द्रीय सरकार और नियोजक द्वारा समान भागों में, और उक्त सीमा से आगे केवल नियोजक द्वारा उठाया जाएगा ।]

10. शिक्षुओं का संबंधित शिक्षण-(1)  [ऐसे व्यवसाय शिक्षु को,] जो किसी स्थापन में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है, इस दृष्टि से कि उसे ऐसा सैद्धांतिक ज्ञान दिया जाए जैसा कि कुशल शिल्पकार के रूप में पूर्णतः अर्हित होने के लिए 4[उस व्यवसाय शिक्षु के लिए आवश्यक है,] व्यावहारिक प्रशिक्षण की कालावधि के दौरान संबंधित शिक्षण के केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित एक पाठ्यक्रम का (जो वह होगा, जो उस व्यवसाय के लिए समुचित हो), अनुसरण कराया जाएगा ।

 [(2) संबंधित शिक्षण नियोजक के खर्च पर दिया जाएगा और नियोजक ऐसी अपेक्षा किए जाने पर, ऐसा शिक्षण देने के लिए सभी सुविधाएं देगा ।]

(3) संबंधित शिक्षण की कक्षाओं में हाजिर होने में 4[व्यवसाय शिक्षु] द्वारा व्यतीत किया गया समय उसके काम की उस कालावधि का भाग माना जाएगा, जिसके लिए उसे संदाय होता है ।

 [(4) उन व्यवसाय शिक्षुओं की दशा में, जो संस्थागत प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम पूरा करने के पश्चात् राष्ट्रीय परिषद् द्वारा संचालित व्यवसाय परीक्षण में उत्तीर्ण हुए हैं या जो राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड अथवा अन्य किसी ऐसे प्राधिकरण द्वारा, जिसे केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, संचालित व्यवसाय प्रशिक्षण और परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं, सम्बन्धित शिक्षण ऐसे घटाए गए या परिवर्तित मान पर दिया जा सकेगा, जो विहित किया जाए ।

(5) जहां कोई व्यक्ति, किसी तकनीकी संस्था में अपने पाठ्यक्रम के दौरान, स्नातक या 3[तकनीकी (व्यावसायिक) तकनीकी शिक्षु] बन जाता है और अपने शिक्षुता प्रशिक्षण के दौरान उसे सम्बन्धित शिक्षण लेना है, वहां नियोजक ऐसे व्यक्ति को उस संस्था में सम्बन्धित शिक्षण लेने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण से ऐसी कालावधि के लिए छोड़ देगा, जो केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार द्वारा या केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार द्वारा लिखित रूप में इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो, विनिर्दिष्ट की जाए ।]

11. नियोजकों की बाध्यताएं-इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि हर नियोजक की शिक्षु के संबंध में निम्नलिखित बाध्यताएं होंगी, अर्थात्: -

(क) शिक्षु के लिए उसके व्यवसाय में इस अधिनियम के और तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार प्रशिक्षण का उपबंध करना;

(ख) यदि नियोजक स्वयं उस व्यवसाय में अर्हित नहीं है तो यह सुनिश्चित करना कि [ऐसा व्यक्ति, जिसके पास विहित अर्हताएं हों] शिक्षु के प्रशिक्षण का भारसाधक बनाया जाए; ॥।

 [(खख) ऐसे पर्याप्त शिक्षण कर्मचारिवृन्द की, जिनके पास व्यावहारिक और सैद्धान्तिक प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी अर्हताएं हों, जो विहित की जाए और शिक्षुओं के व्यवसाय परीक्षण के लिए सुविधाओं की व्यवस्था करना; और] 

(ग) शिक्षुता संविदा के अधीन की अपनी बाध्यताओं को निभाना ।

12. शिक्षुओं की बाध्यताएं- [(1)] शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे [हर व्यवसाय शिक्षु] की निम्नलिखित बाध्यताएं होंगी, अर्थात्: -

(क) अपना व्यवसाय निष्ठापूर्वक और तत्परता से सीखना, तथा प्रशिक्षण की कालावधि के अवसान के पूर्व अपने को कुशल शिल्पकार के रूप में अर्हित बनाने का प्रयास करना;

(ख) व्यावहारिक और शैक्षणिक कक्षाओं में नियमित रूप से हाजिर होना;

(ग) अपने नियोजक के और स्थापन में के अपने वरिष्ठों के सब विधिपूर्ण आदेशों का पालन करना; तथा

(घ) शिक्षुता-संविदा के अधीन की अपनी बाध्यताओं को निभाना ।

 [(2) शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हर स्नातक या तकनीकी शिक्षु [तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु] की निम्नलिखित बाध्यताएं होंगी, अर्थात्: -

(क) अपने प्रशिक्षण स्थान पर इंजीनियरिंग या प्रौद्योगिकी के अपने विषय-क्षेत्र 2[या व्यावसायिक पाठ्यक्रम] को निष्ठापूर्वक और तत्परता से सीखना;

(ख) व्यावहारिक और शैक्षणिक कक्षाओं में नियमित रूप से हाजिर होना;

(ग) अपने नियोजक के और स्थापन में अपने वरिष्ठों के सब विधिपूर्ण आदेशों का पालन करना;

(घ) शिक्षुता-संविदा के अधीन अपनी बाध्यताओं को निभाना, जिनके अन्तर्गत अपने कार्य के ऐसे अभिलेख रखना भी है, जो विहित किए जाएं ।]

13. शिक्षुओं को संदाय-(1) नियोजक शिक्षुता प्रशिक्षण की कालावधि के दौरान हर शिक्षु को  [विहित न्यूनतम दर से या ऐसी दर से, जो नियोजक द्वारा ऐसे प्रवर्ग के शिक्षुओं के लिए, जिसके अधीन शिक्षु आता है, 1970 की पहली जनवरी को संदत्त की जा रही थी, इनमें से, जो भी अधिक हो, उससे अन्यून दर सेट ऐसी वृत्तिका का संदाय करेगा, जैसी शिक्षुता-संविदा में विनिर्दिष्ट हो और ऐसे विनिर्दिष्ट वृत्तिका ऐसे अन्तरालों पर और शर्तों के अध्यधीन संदत्त की जाएगी, जैसी विहित की जाएं ।

 [(2) शिक्षु को उसके नियोजक द्वारा न तो किसी मात्रानुपाती काम के आधार पर संदाय किया जाएगा और न किसी उत्पादन बोनस या अन्य प्रोत्साहन स्कीम में भाग लेने की उससे अपेक्षा की जाएगी ।]

14. शिक्षुओं का स्वास्थ्य, क्षेम और कल्याण-जहां कि कोई शिक्षु किसी कारखाने में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं वहां कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) के अध्यायों 3, 4 और 5 के उपबन्ध शिक्षुओं के स्वास्थ्य, क्षेम और कल्याण के सम्बन्ध में ऐसे लागू होंगे मानो वे उस अधिनियम के अर्थ के अंदर कर्मकार हों और जब कि कोई शिक्षु किसी खान में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हों तब खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) के अध्याय 5 के उपबन्ध शिक्षुओं के स्वास्थ्य और क्षेम के सम्बन्ध में ऐसे लागू होंगे मानो वे खान में नियोजित व्यक्ति हों ।

15. काम के घंटे, अतिकाल, छुट्टी, और अवकाश दिन- [(1) जब कोई शिक्षु किसी कर्मशाला में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है तो उसके साप्ताहिक और दैनिक काम के घंटे, प्रशिक्षण अवधि, विहित हो, की अनुपालना के अध्यधीन नियोजक द्वारा यथा अवधारित होंगे ।] 

(2) शिक्षुता सलाहकार के अनुमोदन के बिना अतिकालिक काम किसी भी शिक्षु से न तो अपेक्षित किया जाएगा और न उसे करने दिया जाएगा और शिक्षुता सलाहकार ऐसा अनुमोदन तब तक अनुदत्त न करेगा जब तक उसका यह समाधान न हो जाए कि ऐसा अतिकालिक काम शिक्षु के प्रशिक्षण के हित में है या लोक हित में है ।

5[(3) शिक्षु ऐसी छुट्टी और अवकाश दिनों का, जो उस स्थापन में, जिसमें वह काम कर रहा है, मनाए जाते हैं, हकदार होगा ।]

16. क्षति के प्रतिकर के लिए नियोजक का दायित्व-यदि शिक्षु के रूप में उसके प्रशिक्षण से और उसके अनुक्रम में उद्भूत होने वाली किसी दुर्घटना से किसी शिक्षु को कोई शारीरिक क्षति कारित हो जाती है, तो उसका नियोजक ऐसा प्रतिकर देने का दायी होगा, जिसका अवधारण और संदाय यावत्शक्य अनुसूची में विनिर्दिष्ट उपान्तरों के अध्यधीन रहते हुए कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) के उपबन्धों के अनुसार किया जाएगा ।

17. आचरण और अनुशासन-आचरण और अनुशासन के सब मामलों में शिक्षु उन नियमों और विनियमों से शासित होगा, जो उस स्थापन में, जिसमें शिक्षु प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हो [तत्समान प्रवर्ग के कर्मचारियों को लागू होते हैं] ।

18. शिक्षु प्रशिक्षणार्थी है, कि कर्मकार-उसके सिवाय जैसा कि इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित है-

(क) किसी स्थापन में किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा शिक्षु प्रशिक्षणार्थी होगा, न कि कर्मकार; तथा

(ख) श्रम विषयक किसी विधि में उपबन्ध ऐसे शिक्षु को या के संबंध में लागू न होंगे ।

19. अभिलेख और विवरणियां-(1) हर नियोजक हर एक ऐसे शिक्षु के, जो उसके स्थापन से शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है प्रशिक्षण की प्रगति के अभिलेख ऐसे प्ररूप में रखेगा, जैसा विहित किया जाए । 

 [(2) जब तक केन्द्रीय सरकार द्वारा पोर्टल साइट विकसित नहीं कर ली जाती है, हर नियोजक, ऐसी जानकारी और विवरणियां ऐसे प्ररूप में, ऐसे प्राधिकारियों को और ऐसे अंतरालों पर देगा जैसे विहित किए जाएं ।

(3) हर नियोजक, केन्द्रीय सरकार द्वारा इस बाबत विकसित की गई पोर्टल साइट पर शिक्षुता प्रशिक्षण की बाबत शिक्षुओं की व्यवसाय-वार आवश्यकता और शिक्षुओं को रखने के ब्यौरे भी देगा ।]

20. विवादों का निपटारा-(1) शिक्षुता-संविदा से पैदा होने वाला नियोजक और शिक्षु के बीच का कोई भी मतभेद या विवाद विनिश्चय के लिए शिक्षुता सलाहकार को निर्देशित किया जाएगा ।

(2) शिक्षुता सलाहकार के उपधारा (1) के अधीन के विनिश्चय से व्यथित कोई भी व्यक्ति ऐसा विनिश्चय अपने को संसूचित किए जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर शिक्षुता परिषद् को ऐसे विनिश्चय के विरुद्ध अपील कर सकेगा और ऐसी अपील उस परिषद् की इस प्रयोजनार्थ नियुक्त की गई एक समिति द्वारा सुनी और अवधारित की जाएगी ।

(3) उपधारा (2) के अधीन की समिति का विनिश्चय, और केवल ऐसे विनिश्चय के अध्यधीन रहते हुए शिक्षुता सलाहकार का उपधारा (1) के अधीन का विनिश्चय अंतिम होगा ।

21. परीक्षण का किया जाना और प्रमाणपत्र का अनुदान तथा प्रशिक्षण की समाप्ति- [(1) हर व्यवसाय शिक्षु, जिसने प्रशिक्षण की कालावधि पूरी कर ली है उस अभिहित व्यवसाय में, जिसमें उसने शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त किया है, उसकी प्रवीणता अवधारित करने के लिए राष्ट्रीय परिषद् या केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य अभिकरण द्वारा संचालित किए जाने वाले परीक्षण में बैठ सकेगा ।]

(2) हर [व्यवसाय शिक्षु] को, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट परीक्षण में उत्तीर्ण होगा, उस व्यवसाय में प्रवीणता का प्रमाणपत्र राष्ट्रीय परिषद् [या केंद्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य अभिकरण] द्वारा अनुदत्त किया जाएगा ।

 [(3) हर स्नातक या तकनीकी शिक्षु [तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु] की शिक्षुता प्रशिक्षण में प्रगति समय-समय पर नियोजक द्वारा आंकी जाएगी ।

 [(4) प्रत्येक स्नातक या तकनीकी शिक्षु या तकनीकी (व्यावसायिक) शिक्षु को जिसने अपना शिक्षुता प्रशिक्षण संबंधित प्रादेशिक बोर्ड के समाधानप्रद रूप में पूरा कर लिया है उस बोर्ड द्वारा एक प्रवीणता प्रमाणपत्र दिया जाएगा ।]

22. नियोजन की प्रस्थापना और प्रतिग्रहण- [(1) हर नियोजक, किसी ऐसे शिक्षु को, जिसने उसके स्थापन में शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि पूरी कर ली है, भर्ती करने के लिए अपनी स्वयं की नीति बनाएगा ।]

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुएभी, जहां शिक्षुता-संविदा में यह शर्त हो कि शिक्षु शिक्षुता प्रशिक्षण सफलतापूर्वक समाप्त कर लेने के पश्चात् नियोजक की सेवा करेगा, वहां ऐसी समाप्ति पर नियोजक शिक्षु को समुचित नियोजन देने की प्रस्थापना करने के लिए आबद्ध होगा और शिक्षु ऐसी कालावधि के लिए और ऐसे पारिश्रमिक पर, जो संविदा में विनिर्दिष्ट हो, उस हैसियत में नियोजन की सेवा करने के लिए आबद्ध होगा:

परन्तु जहां कि ऐसी कालावधि या पारिश्रमिक शिक्षुता सलाहकार की राय में युक्तियुक्त नहीं है, वहां वह ऐसी कालावधि या पारिश्रमिक को ऐसे पुनरीक्षित कर सकेगा कि उसे युक्तियुक्त बना दे और इस प्रकार पुनरीक्षित कालावधि या पारिश्रमिक शिक्षु और नियोजक के बीच में तय पाई गई कालावधि और पारिश्रमिक समझे जाएंगे ।

अध्याय 3

प्राधिकारी

23. प्राधिकारी-(1) सरकार के अतिरिक्त इस अधिनियम के अधीन निम्नलिखित प्राधिकारी होंगे, अर्थात्: -

(क) राष्ट्रीय परिषद्,

(ख) केन्द्रीय शिक्षुता परिषद्,

(ग) राज्य परिषद्,

(घ) राज्य शिक्षुता परिषद्,

 [(ङ) अखिल भारतीय परिषद्,

(च) प्रादेशिक बोर्ड,

(छ) राज्य तकनीकी शिक्षा परिषदें या बोर्ड,]

 [(ज) केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार, तथा

2[(झ)] राज्य शिक्षुता सलाहकार ।

(2) हर राज्य परिषद् राष्ट्रीय परिषद् से संबद्ध होगी और हर राज्य शिक्षुता परिषद् केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् से संबद्ध होगी ।

1[(2क) हर राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड और हर प्रादेशिक बोर्ड केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् से संबद्ध होगा ।]

(3) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्राधिकारियों में से हर एक इस अधिनियम के अधीन के शिक्षुता प्रशिक्षण के संबंध में उसे इस अधिनियम के द्वारा या अधीन या सरकार द्वारा समनुदिष्ट किए गए कृत्यों का पालन करेगा:

परन्तु राज्य परिषद् राष्ट्रीय द्वारा उसे समनुदिष्ट किए गए कृत्यों का भी पालन करेगी और 1[राज्य शिक्षुता परिषद् और राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् या बोर्ड केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् द्वारा उसे सौंपे गए कृत्यों का भी पालन करेगा] ।

24. परिषदों का गठन-(1) केन्द्रीय सरकार केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् की स्थापना शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा करेगी और राज्य सरकार शिक्षुता परिषद् की स्थापना शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा करेगी ।

(2) केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् [एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष] इतनी संख्या के, जितनी केन्द्रीय सरकार समीचीन समझे, अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी, जो निम्नलिखित कोटियों के व्यक्तियों में से उस सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त किए जाएंगे, अर्थात्: -

(क) पब्लिक और प्राइवेट सैक्टरों में के स्थापनों में के नियोजकों के प्रतिनिधि,

(ख) केन्द्रीय सरकार के और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, ॥।

(ग) [उद्योग, श्रम और तकनीकी शिक्षा] से संबंधित मामलों का विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति, 5[तथा]

 [(घ) अखिल भारतीय परिषद् के और प्रादेशिक बोर्डों के प्रतिनिधि ।]

(3) उन व्यक्तियों की संख्या, जो उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट हर एक कोटि में से केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् के सदस्य नियुक्त किए जाने हैं, परिषद् के सदस्य की पदावधि, वह प्रक्रिया, जिसका अनुसरण उनके द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में किया जाना है, और उनके पदों की रिक्तियों को भरने की रीति ऐसी होगी, जैसी विहित की जाए ।

(4) राज्य शिक्षुता परिषद् 3[एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्षट और इतनी संख्या के, जितनी राज्य सरकार समीचीन समझे, अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी, जो निम्नलिखित कोटियों के व्यक्तियों में से उस सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त किए जाएंगे, अर्थात्: - 

(क) पब्लिक और प्राइवेट सैक्टरों में के स्थापनों में के नियोजकों के प्रतिनिधि,

(ख) केन्द्रीय सरकार के उस और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, 4॥।

(ग) 5[उद्योग, श्रम और तकनीकी शिक्षा] से संबंधित मामलों का विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति, 5[तथा]

6[(घ) राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् के और बोर्ड के प्रतिनिधि ।]

(5) उन व्यक्तियों की संख्या, जो उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट हर एक कोटि में से राज्य शिक्षुता परिषद् के सदस्य नियुक्त किए जाने हैं, परिषद् के सदस्यों की पदावधि, वह प्रक्रिया, जिसका अनुसरण उनके द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में किया जाना है, और उनके पदों की रिक्तियों को भरने की रीति ऐसी होगी, जैसी राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अवधारित करे ।

(6) केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् के [अध्यक्ष और उपाध्यक्ष] और अन्य सदस्यों को संदत्त को जाने वाली फीसें और भत्ते, यदि कोई हों, ऐसे होंगे, जैसे केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित किए जाएं तथा राज्य शिक्षुता परिषद् के 1[अध्यक्ष और उपाध्यक्ष] और अन्य सदस्यों को दी जाने वाली फीसें और भत्ते, यदि कोई हों, ऐसे होंगे, जैसे राज्य सरकार द्वारा अवधारित किए जाएं ।

25. कार्यों और कार्यवाहियों को रिक्तियां अविधिमान्य नहीं बनाएंगी-राष्ट्रीय परिषद्, केन्द्रीय शिक्षुता परिषद्, राज्य परिषद् या राज्य शिक्षुता परिषद् द्वारा इस अधिनियम के अधीन किया गया कोई भी कार्य या की गई कोई कार्यवाही उस परिषद् में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रुटि होने के आधार पर ही प्रश्नगत न की जाएगी । 

26. शिक्षुता सलाहकार-(1) केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक उपयुक्त व्यक्ति को केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार नियुक्त करेगी ।

(2) राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक उपयुक्त व्यक्ति को राज्य शिक्षुता सलाहकार नियुक्त करेगी ।

(3) केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् का सचिव होगा और राज्य शिक्षुता सलाहकार राज्य शिक्षुता परिषद् का सचिव होगा ।

27. उप और सहायक शिक्षुता सलाहकार-(1) सरकार शिक्षुता सलाहकार की उसके कृत्यों के पालन में सहायता करने के लिए [उपयुक्त व्यक्तियों को अपर शिक्षुता सलाहकार, संयुक्त शिक्षुता सलाहकार, प्रादेशिक शिक्षुता सलाहकार, उप-शिक्षुता सलाहकार और सहायक शिक्षुता सलाहकार नियुक्त कर सकेगी] ।

(2) [हर अपर शिक्षुता सलाहकार, संयुक्त शिक्षुता सलाहकार, प्रादेशिक शिक्षुता सलाहकार, उप-शिक्षुता सलाहकार या सहायक शिक्षुता सलाहकार,] शिक्षुता सलाहकार के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए ऐसे कृत्यों का पालन करेगा, जो शिक्षुता सलाहकार द्वारा उसे समनुदिष्ट किए जाएं ।

28. शिक्षुता सलाहकारों का लोक सेवक होना-इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किया गया हर शिक्षुता सलाहकार और [अपर शिक्षुता सलाहकार, संयुक्त शिक्षुता सलाहकार, प्रादेशिक शिक्षुता सलाहकार, उप-शिक्षुता सलाहकार या सहायक शिक्षुता सलाहकार] भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ के अन्दर लोक सेवक समझा जाएगा ।

29. प्रवेश, निरीक्षण आदि की शक्तियां-(1) इस निमित्त बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए [केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार या केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार द्वारा लिखित रूप में इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो]-

(क) ऐसे सहायकों के साथ, यदि कोई हों, जिन्हें वह ठीक समझे, किसी भी युक्तियुक्त समय पर किसी भी स्थापन में या उसके भाग में प्रवेश कर सकेगा, उसका निरीक्षण कर सकेगा और उसकी परीक्षाकर सकेगा;

(ख) उसमें नियोजित किसी भी शिक्षु की परीक्षा कर सकेगा और इस अधिनियम के अनुसरण में रखे गए कोई रजिस्टर, अभिलेख या अन्य दस्तावेज पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकेगा और स्थल पर ही या अन्यथा किसी ऐसे व्यक्ति का ऐसा कथन ले सकेगा, जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक समझे;

(ग) ऐसी परीक्षा और जांच कर सकेगा जैसी वह इस बात का अभिनिश्चय करने के लिए ठीक समझे कि क्या इस अधिनियम के तथा तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का अनुपालन स्थापन में किया जा रहा है;

(घ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जैसी विहित की जाएं:

                परन्तु [राज्य शिक्षुता सलाहकार या राज्य शिक्षुता सलाहकार द्वारा लिखित रूप में इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो] इस उपधारा के खण्डों (क), (ख), (ग) या (घ) में विनिर्दिष्ट शक्तियों में से किसी का प्रयोग ऐसे स्थापनों के सम्बन्ध में कर सकेगा, जिनके लिए समुचित सरकार राज्य सरकार हैं ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिए या कोई ऐसा कथन करने के लिए, जिसी प्रवृत्ति उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध में फंसाने की हो, किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन विवश नहीं किया जाएगा ।

30. अपराध और शास्तियां- [(1) यदि कोई नियोजक, इस अधिनियम के उपबंधों को उल्लंघन शिक्षुओं की ऐसी संख्या के संबंध में करता है, जो उससे उन उपबंधों के अधीन रखने की अपेक्षा की है, तो उसे समुचित सरकार द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा ऐसे उल्लंघन के कारणों को स्पष्ट करने के लिए लिखित में एक मास की सूचना दी जाएगी ।

(1क) उस दशा में, जब नियोजक उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचनाका उत्तर देने में असफल रहता है या उसे सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् प्राधिकृत अधिकारी का नियोजक द्वारा दिए गए कारणों से समाधान नहीं होता है तो वह पहले तीन मास के लिए प्रत्येक शिक्षुता मास की कमी के लिए पांच सौ रुपए के जुर्माने से और उसके पश्चात् तब तक, जब तक ऐसे स्थानों की संख्या नहीं भर ली जाती, एक हजार रुपए प्रतिमास के जुर्माने से दण्डनीय होगा ।]

(2) यदि कोई नियोजक या कोई अन्य व्यक्ति-

                (क) जिससे कोई जानकारी या विवरणी का दिया जाना अपेक्षित हो-

(i) ऐसी जानकारी या विवरणी देने से इंकार करेगा या देने की उपेक्षा करेगा, अथवा

(ii) कोई ऐसी जानकारी या विवरणी देगा या दिलवाएगा जो मिथ्या है और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, अथवा

(iii) उसके द्वारा दी जाने के लिए, अपेक्षित जानकारी की अभिप्राप्ति के लिए आवश्यक किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा या उसका मिथ्या उत्तर देगा, अथवा

(ख) इस अधिनियम के द्वारा या अधीन प्राधिकृत कोई प्रवेश, निरीक्षण, परीक्षा या जांच करने के लिए युक्तियुक्त सुविधा [केन्द्रीय या राज्य शिक्षुता सलाहकार को या केन्द्रीय या राज्य शिक्षुता सलाहकार द्वारा लिखित रूप में इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति जो पंक्ति में सहायक शिक्षुता सलाहकार से कम न हो] देने से इन्कार करेगा या देने की जानबूझकर उपेक्षा करेगा, अथवा

(ग) किसी शिक्षु से अतिकालिक काम करने की अपेक्षा शिक्षुता सलाहकार के अनुमोदन के बिना करेगा, अथवा

(घ) शिक्षु को किसी ऐसे काम पर नियोजित करेगा जो उसके प्रशिक्षण से संसक्त नहीं है, अथवा

(ङ) शिक्षु को मात्रानुपाती काम के आधार पर कोई संदाय करेगा, अथवा

(च) शिक्षु से उत्पादन-बोनस या प्रोत्साहन स्कीम में भाग लेने की अपेक्षा करेगा,

 [(छ) किसी ऐसे व्यक्ति को शिक्षु रखेगा जो इस प्रकार रखे जाने के लिए अर्हित नहीं है; या

(ज) किसी शिक्षुता संविदा के निबंधनों और शर्तों का पालन करने में असफल रहेगा,]

तो वह [हर घटना के लिए एक हजार रुपए के जुर्माने, से] दंडनीय होगा ।

2[(2क) उपधारा (2) के उपबंध ऐसे स्थापन या उद्योग को लागू नहीं होंगे जो रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1985 (1986 का 1) के अधीन स्थापित औद्योगिक और वित्तीय पुननिर्माण बोर्ड के अधीन है ।]

31. जहां कि कोई विनिर्दिष्ट शास्ति उपबंधित नहीं है, वहां शास्ति-यदि नियोजक या कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का ऐसे उल्लंघन करेगा जिसके लिए धारा 30 में कोई दंड उपबंधित नहीं है, तो वह जुर्माने से [जो एक हजार रुपए से कम का नहीं होगा परन्तु तीन हजार रुपए तक का हो सकेगा] दंडनीय होगा ।

32. कम्पनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कम्पनी है तो हर व्यक्ति, जो अपराध के लिए जाने के समय कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उस कम्पनी के प्रति उत्तरदायी था और वह कम्पनी भी उस अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही की जाने और दंडित किए जाने के दायित्व के अधीन होंगे:

परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई भी बात ऐसे किसी व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबन्धित ऐसे दंड से दंडनीय न बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या ऐसे अपराध का किया जाना निवारित करने के लिए उसने सभी सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित कर दिया जाता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य आफिसर की सम्मति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी ओर से हुई किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य आफिसर भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही की जाने और दंडित किए जाने के दायित्व के अधीन होगा ।

 

 

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(क) कम्पनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम आता है; तथा

(ख) फर्म के संबंध में निदेशक" से फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

33. अपराधों का संज्ञान-कोई भी न्यायालय इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन के किसी अपराध का संज्ञान उसके ऐसे परिवाद पर, जो उस तारीख से, जिसको अपराध का किया जाना अभिकथित हो, छह मास के भीतर शिक्षुता [या उप शिक्षुता सलाहकार और उससे ऊपर की पंक्ति के अधिकारीट सलाहकार द्वारा लिखित रूप में किया गया हो, करने के सिवाय न करेगा ।

34. शक्तियों का प्रत्यायोजन- समुचित सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन उसके द्वारा प्रयोक्तव्य कोई शक्ति ऐसे विषयों के सम्बन्ध में और ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अध्यधीन, जिन्हें निदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, यथा निम्नलिखित भी, प्रयोक्तव्य होगी-

(क) जहां कि समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार हो, वहां केन्द्रीय सरकार के अधीनस्थ ऐसे आफिसर या प्राधिकारी द्वारा भी या राज्य सरकार द्वारा भी या राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसे आफिसर या प्राधिकारी द्वारा भी जैसा अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए; तथा  

(ख) जहां कि समुचित सरकार राज्य सरकार हो वहां राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसे आफिसर या प्राधिकारी द्वारा भी जैसा अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए ।

35. निर्देशों का अर्थान्वयन-(1) जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इस अधिनियम में या तद्धीन बनाए गए नियमों में, शिक्षुता परिषद् के प्रति निर्देश से, ऐसे स्थापन में के, जिसके सम्बन्ध में समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार है, किसी अभिहित व्यवसाय में, शिक्षुता-प्रशिक्षण के सम्बन्ध में, केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् अभिप्रेत होगी, और ऐसे स्थापन में के, जिसके सम्बन्ध में समुचित सरकार, राज्य सरकार है, किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता-प्रशिक्षण के सम्बन्ध में राज्य शिक्षुता परिषद् अभिप्रेत होगी ।

(2) जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इस अधिनियम में या तद्धीन बनाए गए नियमों में शिक्षुता सलाहकार के-

(क) प्रति निर्देश से ऐसे स्थापन में के, जिसके सम्बन्ध में समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार है, किसी अभिहित व्यवासय में शिक्षुता प्रशिक्षण के सम्बन्ध में केन्द्रीय शिक्षुता सलाहकार, और ऐसे स्थापन में के, जिसके सम्बन्ध में समुचित सरकार राज्य सरकार है, किसी अभिहित व्यवसाय में शिक्षुता-प्रशिक्षण के संबंध में राज्य शिक्षुता सलाहकार अभिप्रेत होगा;

(ख) प्रति निर्देश के अन्तर्गत [अपर शिक्षुता सलाहकार, संयुक्त शिक्षुता सलाहकार, प्रादेशिक शिक्षुता सलाहकार, उप शिक्षुता सलाहकार या सहायक शिक्षुता सलाहकार,] तब समझा जाएगा जब वह धारा 27 की उपधारा (2) के अधीन अपने को समनुदिष्ट शिक्षुता सलाहकार के कृत्यों का पालन कर रहा हो ।  

36. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए परित्राण-कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए किसी व्यक्ति के विरुद्ध न होगी । 

37. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, केन्द्रीय शिक्षुता परिषद् से परामर्श करने के पश्चात्, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।

 [(1क) इस धारा के अधीन नियम बनाने की शक्ति के अंतर्गत, उस तारीख से अपूर्व की तारीख को, जिसको इस अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, ऐसे नियमों या उनमें से किसी को भूतलक्षी रूप से बनाने की शक्ति भी है किन्तु किसी ऐसे नियम को, ऐसा भूतलक्षी प्रभाव किसी ऐसे व्यक्ति के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए नहीं दिया जाएगा जिसको ऐसा नियम लागू हो ।]

(2) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम यह उपबन्ध कर सकेंगे कि ऐसे किसी निगम का उल्लंघन जुर्माने से, जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा, यह अवधि एक सत्र में  [अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व] दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभावन हीं पडे़गा ।]

38. [निरसन।]-रिपीलिंग एंड अमेंडिंग ऐक्ट, 1964 (1964 का 52) की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा निरसित ।

अनुसूची- [शिक्षु अधिनियम 1961 के अधीन के शिक्षुओं को लागू होने में कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 में उपान्तरण]-मुद्रित नहीं किया गया ।

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