हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में दूसरे दिन भी मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों के मामले में सुनवाई हुई। राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अदालत को बताया कि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां संविधान के खिलाफ होती तो भाजपा ने अपनी सरकार रहते हुए कानून में बदलाव क्यों नहीं किया। याचिकाकर्ता खुद भाजपा सरकार में CPS रह चुके हैं। CPS की सारी सुविधाएं लेने के बाद अब वह नियुक्तियों को चुनौती दे रहे हैं।

मामले की सुनवाई न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ कर रही है। राज्य सरकार की ओर से नियुक्त सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मुख्य संसदीय सचिव के कानूनी दर्जे पर बहस की। उन्होंने तर्क दिया कि वे दूसरे राज्यों में बनाए गए CPS व मंत्रियों वाली सुविधाएं ले रहे हैं। हिमाचल में जो कानून बना है, उसमें उन्हें मंत्रियों वाली कोई भी सुविधाएं नहीं दी गई हैं। CPS का काम केवल कैबिनेट और मंत्रियों को उनके काम में सहायता करवाना है।

मुख्य संसदीय सचिव मंत्रिमंडल का भाग नहीं हैं। मुख्यमंत्री उन्हें गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं।  सांविधानिक पद की गोपनीयता की शपथ राज्यपाल दिलाते हैं। संविधान में CPS की नियुक्तियों के बारे में कोई प्रावधान नहीं है। संविधान में विधानसभा को अधिकार दिए गए हैं कि वह अपने काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए ऐसे कानून बना सकती है। शुक्रवार को दोपहर बाद भी इस मामले की सुनवाई होगी।

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