मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महिला के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि एक बच्चे को फर्श पर फेंकना हत्या के प्रयास का अपराध है। आरोपी पर 2022 में हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था, जब उसने कथित तौर पर एक अदालत कक्ष में अपने बच्चे को फर्श पर फेंक दिया था। महिला का  रौद्र रूप देखकर जज भी सन्न रह गए थे। उस दौरान उसके पति से भरण-पोषण की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। आरोपी भारती पटेल पर 2022 में हत्या का प्रयास के तहत मामला दर्ज किया गया था।

न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि महिला को बच्चे को फर्श पर फेंकने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे को मारने का स्पष्ट इरादा था। कोर्ट ने कहा कि 13 महीने के बच्चे को फर्श पर फेंकना अपने आप में हत्या का प्रयास होगा। पटेल ने मामले को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उनके वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर एक पूर्व घटना के विरोध के रूप में एक वकील द्वारा दर्ज की गई थी।

न्यायालय ने शुरुआत में कहा कि मामले के तथ्यों से खेदजनक स्थिति का पता चलता है। इसमें कहा गया है कि महिला ने बच्चे को फर्श पर फेंक दिया था क्योंकि उसने अपनी परेशानियों के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया था। उसने यह कहकर अपने बच्चे की ओर पेपरवेट भी फेंका कि आज वह उसे मार डालेगी। हालांकि, पेपरवेट बच्चे के टेम्पोरल क्षेत्र के पास से गुजरते हुए फर्श पर गिर गया, परिणामस्वरूप वह बच गया। अन्यथा वह मर जाता।

न्यायालय ने यह भी पाया कि पटेल को मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष कार्यवाही के दौरान उनके आचरण के लिए न्यायालय अवमानना ​​अधिनियम की धारा 12 के तहत पहले ही नोटिस जारी किया गया था। उससे अपना साक्ष्य देने के लिए कहा गया था, लेकिन उसने कहा कि वह अपना बयान नहीं देना चाहती है और इस बात पर जोर दिया कि प्रतिवादी/उसके पति को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रखा जाना चाहिए। जब कोर्ट ने उसे समझाने की कोशिश की कि उसका पति कुछ दिन पहले ही जमानत पर जेल से बाहर आया है और बकाया भुगतान के लिए उसे एक और मौका दिया जाना चाहिए, लेकिन उसने कोर्ट में ही चिल्लाना शुरू कर दिया। उसने अपने 13 महीने के बच्चे को फर्श पर फेंक दिया।

अदालत ने यह भी कहा कि पीठासीन अधिकारी द्वारा बार-बार उसे बच्चे को उठाने के लिए कहने के बावजूद उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया और उसे रोने से रोकने की कोशिश भी नहीं की। इसमें कहा गया है कि अदालत द्वारा बार-बार दिए गए निर्देशों के बावजूद पटेल ने अपने आचरण में सुधार नहीं किया और कार्यवाही बाधित की। उसने अपने ही बच्चे को मारने का प्रयास किया। यदि आवेदक अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश से संतुष्ट नहीं है, तो उसके पास उच्च न्यायालय के समक्ष इसे चुनौती देने का अवसर था, लेकिन वह अदालत पर अपने पक्ष में आदेश पारित करने के लिए दबाव नहीं डाल सकती।

इन परिस्थितियों पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि पटेल के खिलाफ एफआईआर बाद में सोची गई और झूठी थी। पीठ ने आदेश दिया कि इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में कोई सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता है। याचिका खारिज की जाती है।

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