सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर नाराजगी जताई कि न्यायिक अधिकारियों की भर्ती के लिए समय सीमा निर्धारित करने के बावजूद 25 में से केवल नौ राज्यों ने निर्धारित समय के भीतर दीवानी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की। सुप्रीम कोर्ट ने जिला और अधीनस्थ अदालतों में रिक्तियों को भरने के लिए एक समय सीमा का पालन करना अनिवार्य किया था। यह प्रक्रिया 31 मार्च को शुरू होनी थी और उसी वर्ष 31 अक्टूबर तक समाप्त होनी थी। हालांकि, कई उच्च न्यायालयों के अनुरोध पर कार्यक्रम को संशोधित किया गया।

 

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘‘भर्ती प्रक्रिया को समय सीमा का पालन करना चाहिए, लेकिन यदि कोई विशेष और अपरिहार्य आवश्यकता है, तो हितधारकों को तत्परता के साथ सूचित किया जाना चाहिए।’’

 

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में ये टिप्पणियां कीं, जिसके द्वारा उसने बिहार और गुजरात में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए चयन मानदंड के तहत मौखिक परीक्षा में न्यूनतम योग्यता अंक निर्धारित करने वाले नियमों को बरकरार रखा।

 

बेंच ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मलिक मजहर (सुप्रा) के मामले में भर्ती के लिए समयसीमा निर्धारित करने के फैसले के बावजूद, 25 में से केवल नौ राज्यों ने दीवानी न्यायाधीश (न्यायाधीश प्रभाग) की भर्ती निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार राज्य को विज्ञापन की तारीख (9 मार्च, 2020) से अंतिम परिणाम की तारीख (10 अक्टूबर, 2022) तक भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने में 945 दिन लगे।’’

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न्यायिक सेवा परीक्षाओं के आयोजन के लिए एक समय-सारिणी के महत्व पर जोर दिया था। कई दिशा-निर्देश जारी करते हुए बेंच ने यह भी कहा कि विश्वास बहाली के उपाय के रूप में साक्षात्कार पैनल में शामिल लोगों के पदनाम भी संबंधित नियमों में उचित रूप से प्रदान किए जा सकते हैं।

बेंच ने कहा कि प्रस्तावित परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम की एक बुनियादी रूपरेखा प्रदान करने का एक और सुझाव है, जो विभिन्न पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को परीक्षा की योजना बनाने और इसकी अधिसूचना जारी होने से पहले ही तैयारी करने में मदद करेगा।

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