केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि किसी डॉक्टर या अस्पताल की फीस तय करने की जिम्मेदारी राज्यों के पास है। मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को 37 पेज के हलफनामे में जानकारी दी है कि क्षेत्रीय कारकों के आधार पर इलाज की राशि निर्धारित होनी चाहिए। एक मरीज को कितना भुगतान करना चाहिए? यह अस्पताल का प्रकार, शहर और डॉक्टर के अनुभव पर निर्धारित होता है। मंत्रालय ने यहां तक कहा है कि किसी भी मूल्य सीमा को तय करने से स्वास्थ्य देखभाल या रोगी उपचार की गुणवत्ता में गंभीर समझौता हो सकता है। इलाज की दरें तय करने से अस्पतालों को वित्तीय रूप से अव्यवहार्य बनाने जैसे गंभीर हालात पैदा हो सकते हैं।

यूपी सहित कई राज्यों का दिया हवाला
मध्य प्रदेश और गुजरात का हवाला देते हुए मंत्रालय ने बताया कि बीते मार्च माह में राज्यों के साथ इस विषय पर चर्चा हुई जिसमें इन दोनों राज्यों ने कहा कि किसी भी दर सीमा को तय करने से गुणवत्ता के साथ समझौता हो सकता है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने भी इसका समर्थन किया है। वहीं पश्चिम बंगाल ने बताया कि उनके यहां 95 फीसदी आबादी को किफायती स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। इसलिए उनके यहां दरें तय करने की आवश्यकता नहीं है।

जनहति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है जवाब...
दरअसल वेटरन्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ ने 2020 में जनहित याचिका दायर करते हुए देश में इलाज की दरें तय होने की अपील की जिसे लेकर बीते फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत निजी अस्पतालों में उपचार सेवाओं के लिए कीमतों की सीमा क्यों तय नहीं की गई है जिस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। फिलहाल कोर्ट ने इलाज की दरें तय होने को लेकर दाखिल याचिका को स्वीकार किया है। इसमें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और प्राइवेट अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया (AHPI) भी शामिल हैं।

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