पश्चिम बंगाल के संदेशखाली की घटना को लेकर खूब हंगामा हुआ था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अत्याचार और जमीन कब्जाने के आरोपों की जांच CBI को सौंप दी थी। अब CBI ने जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंप दी, जिस पर अदालत ने संतोष व्यक्त किया है।

NHRC को पक्षकार बनाने की अनुमति
प्रधान न्यायाधीश टी एस शिवागन्नम ने न्यायमूर्ति हिरणमय भट्टाचार्य के साथ CBI की रिपोर्ट की समीक्षा की। इस दौरान अदालत ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को इस मामले में एक पक्ष के रूप में शामिल करने की अनुमति दे दी। वहीं, जानकारी को गोपनीय रखने की एजेंसी के अनुरोध को भी स्वीकार कर लिया।

10 अप्रैल को दिए थे निर्देश
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल को कोर्ट की निगरानी में संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध, जमीन कब्जाने जैसे आरोपों की CBI जांच का आदेश दिया था। साथ ही दो मई को प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।  इससे पहले, हाईकोर्ट ने संदेशखाली की घटनाओं को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई थी। कहा था कि यह मामला बेहद शर्मनाक है। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हर नागरिक को सुरक्षा प्रदान करे। कोर्ट ने कहा था कि संदेशखाली मामले में जिला प्रशासन और पश्चिम बंगाल सरकार दोनों को नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

इसके साथ ही कोर्ट ने CBI को मछली पालन के लिए कृषि भूमि को अवैध रूप से बदलने के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा, पीठ ने NHRC को मामले में पक्ष के रूप में शामिल होने की अनुमति दी। अदालत संदेशखाली में हुई घटनाओं के संबंध में स्वत: संज्ञान याचिका और अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

CBI ने यह मांग की
वहीं, CBI के वकील ने कहा कि केंद्रीय एजेंसी को अपने समर्पित पोर्टल के माध्यम से संदेशखाली में अवैध भूमि कब्जाने से संबंधित लगभग 900 शिकायतें मिली हैं। उन्होंने तर्क दिया कि मूल भूमि रिपोर्ट तक पहुंचने में राज्य सरकार के सहयोग के बिना मामले में जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। उन्होंने अदालत से राज्य के अधिकारियों को सहयोग के लिए निर्देश देने की मांग की।

CBI के वकील की दलील सुनने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह CBI को सभी आवश्यक सहयोग दें ताकि वह मामले में अपनी जांच को आगे बढ़ा सकें। अदालत ने कहा कि अगर कर्मचारियों की कमी है तो सक्षम प्राधिकार इस उद्देश्य के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती करेंगे और वे CBI के साथ मिलकर काम करेंगे। वहीं, राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर CBI अधिकारियों द्वारा मांगे सभी दस्तावेज सरकार को सौंप दे।

अगली सुनवाई इस दिन
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 13 जून तय की है। साथ ही CBI को आगे की प्रगति रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। यह देखते हुए कि राज्य ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, खंडपीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा है कि अपील के लंबित रहने को चल रही जांच में किसी भी विराम के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। पीठ ने निर्देश दिया कि इस अदालत द्वारा जारी आदेशों का ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं ने रखी यह दलील
याचिकाकर्ता और वकील प्रियंका टिबरेवाल ने दलील दी कि यौन उत्पीड़न की कुछ पीड़िताएं डर के कारण सच बोलने में संकोच कर रही थीं। इससे पहले उन्होंने कई सारी शिकायतें अदालत के सामने रखी थीं, जिनमें यौन हिंसा, भूमि हड़पने, हमले और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप शामिल थे।

अदालत ने CBI से उन मामलों को भी देखने को कहा, जहां शिकायतकर्ताओं ने पर्याप्त सुरक्षा मांगी है। अदालत ने कहा, 'एक प्रमुख जांच एजेंसी होने के नाते उनके पास पीड़ितों का सही बयान दर्ज करने के लिए सभी संसाधन उपलब्ध हैं।'

एक अन्य याचिकाकर्ता और वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि संदेशखाली मामले में महिला CBI अधिकारियों को तैनात करने से कथित पीड़ितों को अधिक सहज महसूस करने और सच्चाई का खुलासा करने में मदद मिल सकती है। पीठ ने इसका फैसला CBI पर छोड़ दिया।

खंडपीठ ने इस साल 10 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट के पहले के आदेश का भी हवाला दिया, जहां राज्य सरकार को 15 दिनों के भीतर संदेशखाली सड़कों पर आवश्यक प्रकाश व्यवस्था करने के लिए कहा गया था।

इस शिकायत के आधार पर कि आवश्यक प्रकाश व्यवस्था के इस आदेश को राज्य सरकार द्वारा अभी तक लागू नहीं किया गया है, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आदेश के इस हिस्से का पालन नहीं करना अदालत की अवमानना होगा। मामले पर अगली सुनवाई 13 जून को होगी। 

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