​इस्लाम में आस्था नहीं रखने वाली एक महिला सफिया पीएम की उस अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट विचार के लिए तैयार हो गया है जिसमें उसने अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी शरिया के मुताबिक नहीं बल्कि भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत किए जाने की गुहार लगाई है। महिला के पुरखे मुसलमान हो गए थे। इस हिसाब से वो मुस्लिम परिवार में जन्मी जरूर है लेकिन उसके पिता की पीढ़ी से उन्होंने इस्लाम में आस्था छोड़ दी। ऐसे में उसकी रिट अर्जी पर सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को न्यायमित्र यानी अमाइकस क्यूरे नियुक्त कर इस पेचीदा मसले के विभिन्न कानूनी, व्याहारिक और न्याय शास्त्रीय आयामों पर रोशनी डालने का आग्रह किया। अब पीठ ने इस मामले की सुनवाई जुलाई के दूसरे हफ्ते में यानी गर्मी की छुट्टियों के बाद किए जाने का निर्देश दिया है।

संपत्ति का बंटवारा हिन्दू पद्धति से चाहती है
इस याचिका में पेंच ये है कि मुस्लिम खानदान में जन्मे व्यक्ति को पैतृक संपदा में बंटवारे में हिस्सा मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक ही मिलेगा। यानी उसे धर्म निरपेक्ष कानून का लाभ नहीं मिलेगा। जबकि महिला भारतीय उत्तराधिकार कानून 1925 के मुताबिक बंटवारा और हिस्सेदारी चाहती है। महिला सफिया पीएम की अर्जी के मुताबिक वो अपने भाई के साथ संपत्ति का बंटवारा इस्लामिक पद्धति से नहीं बल्कि हिन्दू पद्धति से करना चाहती है। अदालत इसमें मदद करे। क्योंकि उसके पिता भी इस्लाम में आस्था नहीं रखते। उन्होंने इसकी घोषणा भी कर रखी है। पीठ को याचिकाकर्ता को इस दलील में दम दिखा। तीनों जजों ने विचार किया और अमाइकस की नियुक्ति कर दी।

सफिया को इस्लाम में नहीं है विश्वास
केरल के अलप्पुझा की रहने वाली ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ नामक संगठन की महासचिव सफिया पीएम ने अपनी जनहित याचिका यानी पीआईएल रिट में कहा कि हालांकि उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है। लेकिन वह इसमें विश्वास भी नहीं रखती है। संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग भी करना चाहती है। उन्होंने यह भी घोषित करने की मांग की है कि ‘जो व्यक्ति वसीयत और वसीयतनामा उत्तराधिकार के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होना चाहते हैं, उन्हें देश के धर्मनिरपेक्ष कानून यानी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए।

सफिया ने वकील प्रशांत पद्मनाभन ने कहा कि शरीयत कानूनों के तहत मुस्लिम महिलाएं संपत्ति में एक तिहाई हिस्सेदारी की हकदार हैं। शरीयत अधिनियम के एक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि वसीयत उत्तराधिकार का मुद्दा इसके तहत ही नियंत्रित होगा। यह एलान अदालत को करन चाहिए कि याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं है। वरना उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक नहीं दे पाएंगे। 

वकील ने कहा कि ‘मेरा भाई एक अनुवांशिक मानसिक बीमारी डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है। मेरी एक बेटी भी है। पर्सनल लॉ यानी इस्लामिक उत्तराधिकार कानून के तहत भाई को संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा और मुझे सिर्फ एक तिहाई। पीठ ने महिला फरियादी की दलीलें सुनीं। दलीलें सुनने के बाद याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किया।

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