सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक मामले में एक पंक्ति का आदेश सुनाने और सेवानिवृत्त होने के पांच महीने बाद विस्तृत निर्णय जारी करने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के एक पूर्व जज की आलोचना की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पद छोड़ने के बाद पांच महीने तक मामले की फाइल को अपने पास रखना घोर अनुचित कार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। जस्टिस टी मतिवनन ने 26 मई, 2017 को कार्यालय छोड़ दिया और मामले में विस्तृत निर्णय उसी वर्ष 23 अक्तूबर को उपलब्ध कराया गया।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्ल भुइयां की बेंच ने कहा कि आदेश का ऑपरेटिव हिस्सा 17 अप्रैल, 2017 को सुनाया गया था। सेवानिवृत्त होने से पहले जज के पास पांच हफ्ते का समय था विस्तृत निर्णय जारी करने के लिए।

हालांकि, 250 से अधिक पृष्ठों का विस्तृत निर्णय जज के पद छोड़ने की तारीख से पांच महीने के बाद आया है। इससे यह स्पष्ट है कि काबिल जज के पद छोड़ने के बाद भी उन्होंने कारण बताए और निर्णय तैयार किया।

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