नए-नए नियुक्त हुए चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की जांच के घेरे में आ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल के चयन से संबंधित मूल फाइल को अदालत में पेश करने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि वह जानना चाहता है कि उनकी नियुक्ति नियुक्ति में कोई गड़बड़झाला तो नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर ही नियुक्ति की गई है। नियुक्ति प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज कराते हुए अर्जी दाखिल करने के बाद ये नियुक्ति की गई है।

बेंच ने कहा कि हम तो बस ये जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई? अगर ये नियुक्ति कानूनी तौर से सही है तो फिर घबराने की क्या जरूरत है? उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए एक उदाहरण के साथ सरकार से पूछा कि क्या कभी किसी प्रधान मंत्री पर आरोप लगे तो क्या आयोग ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है? बेंच ने सरकार से कहा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया हमें समझाएं। हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है। अभी तो आपको सब याद होगा। किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?

जस्टिस के. एम जोसफ (Justice K. M Joseph) के बाद  जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) ने भी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आपने इसकी न्यायपालिका से तुलना की है। न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आए। मौजूदा सिस्टम में अगर खामी हो तो उसमें सुधार और बदलाव लाजिमी है। सरकार जो जज और CJI की नियुक्ति करती थी तब भी महान न्यायाधीश बने। लेकिन प्रक्रिया पर सवालिया निशान थे। प्रक्रिया बदल गई।

नौकरशाहों तक ही सीमित क्यों? कोर्ट ने किया सवाल
जस्टिस अजय रस्तोगी ने सरकार से दोटूक पूछा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करते समय सिर्फ नौकरशाहों तक ही सीमित क्यों रहते हैं? अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ये तो एक अलग बहस हो जाएगी। अगर किसी मामले में कोई घोषणापत्र है तो हम उसका पालन कैसे नहीं करेंगे?

इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार मनपसंद अफसर को उठा कर ही नियुक्त कर देती है ऐसा नहीं है। संविधान बेंच में जस्टिस जोसफ ने टिप्पणी की कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे CEC (Chief Election Commission) की आवश्यकता है जो प्रधान मंत्री के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर एक्शन ले सके।

मान लीजिए कि किसी प्रधान मंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगे हों और निर्वाचन आयोग यानी CEC को कार्रवाई करनी हो। लेकिन आयोग और CEC अगर 'कमजोर घुटने और कंधे वाले हों तो क्या ये मुमकिन होगा? यानी वो उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेता है। क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है?

बेंच ने आगे कहा कि संविधान और जनविश्वास के मुताबिक CEC को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है। उसे स्वायत्त और स्वतंत्र होना चाहिए। आयुक्तों के चयन के लिए भी एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए। सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी ही काफी नहीं है। नियुक्ति कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है। राजनेता भी ऊपर से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता।

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