रोड रेज मामले में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu Road rage case) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सिद्धू को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि सिद्धू की ओर से 1988 के रोड रेज मामले में समीक्षा याचिकाओं के समय पर सवाल उठाना उचित नहीं था। जबकि वह इस मामले में चार साल तक पेश नहीं हुए थे। सितंबर 2018 में पीड़ितों की ओर से दायर की गई समीक्षा याचिका पर पहली बार नोटिस जारी की गई थी।

सिद्धू ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 1988 के रोड रेज मामले में उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका ‘प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है। मामले में शीर्ष अदालत ने मई 2018 में सिद्धू को 65 वर्षीय बुजुर्ग को ‘स्वेच्छा से चोट पहुंचाने’ के अपराध का दोषी ठहराया था। हालांकि, उसने सिद्धू को जेल की सजा नहीं सुनाई थी और उन पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।

कोर्ट ने मांगा सिद्धू से जवाब
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने पहले सिद्धू से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था, जिसमें कहा गया है कि मामले में उनकी सजा केवल स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए नहीं होनी चाहिए थी।

सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा, 'यह नकारात्मक अर्थों में एक असाधारण मामला है, जो आपके विचार करने लायक नहीं है, क्योंकि इसके आपराधिक न्याय की बुनियादी नींव को नुकसान पहुंचाने की क्षमता है और इसलिए यह प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है।'

सिद्धू ने दिया 2018 के फैसले का हवाला
सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के मई 2018 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण के बारे में चिकित्सा साक्ष्य बिल्कुल अस्पष्ट थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने भी सुप्रीम कोर्ट के साल 2018 के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मृतक को लगी चोट के बारे में बताती है।

लूथरा ने शीर्ष अदालत के दो पुराने फैसलों का हवाला दिया और कहा कि मामले पर पुनर्विचार की जरूरत है। याचिकाकर्ताओं और सिद्धू की ओर से पेश अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

कोर्ट से सिद्धू को फटकार
फैसला सुरक्षित रखते हुए न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, 'इस मामले का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। जब आप नोटिस जारी होने के बावजूद हाजिर नहीं होते हैं तो आपकी ओर से टिप्पणी करना उचित नहीं है।'

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