छावनी (गृह-आवास) अधिनियम, 1923
(1923 का अधिनियम संख्यांक 6)
[5 मार्च, 1923]
छावनियों में सैनिक आफिसरों के लिए गृह-आवास की व्यवस्था
करने से संबंधित विधि को और संशोधित
तथा समेकित करने के लिए
अधिनियम
छावनियों में सैनिक आफिसरों के लिए गृह-आवास की व्यवस्था करने से सम्बन्धित विधि को और संशोधित तथा समेकित करना समीचीन है; अतः एतद्द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है :-
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम छावनी (गृह-आवास) अधिनियम, 1923 है ।
(2) इसका विस्तार *** संपूर्ण भारत पर *** *** है ।
(3) यह 1923 के अप्रैल के प्रथम दिन को प्रवृत्त हो जाएगा, किन्तु जब तक धारा 3 द्वारा इसमें इसके पश्चात् उपबन्धित अधिसूचना न जारी कर दी जाए, अथवा ऐसी अधिसूचना के अनुसरण से अन्यथा, किसी छावनी या उसके किसी भाग में प्रवर्तन में नहीं आएगा :
परन्तु कन्टूनमेन्टस (हाउस-एकामोडेशन) ऐक्ट, 1902 (1902 का 2) की धारा 3 के अधीन निकाली गई किसी अधिसूचना के बारे में, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ पर प्रवर्तन में हो, यह समझा जाएगा कि वह अधिसूचना इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन निकाली गई है ।
2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि कोई बात विषय या संदर्भ में विरुद्ध न हो,-
(क) "ब्रिगेड क्षेत्र" से उन ब्रिगेड क्षेत्रों में से ऐसा कोई क्षेत्र, चाहे वह ब्रिगेड द्वारा अधिभोग में हो या न हो, अभिप्रेत है, जिनमें भारत सैनिक प्रयोजनों के लिए तत्समय विभाजित है, और इसके अन्तर्गत ऐसा क्षेत्र भी है जिसे केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के सभी या किन्हीं भी प्रयोजनों के लिए ब्रिगेड क्षेत्र, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, घोषित करे ।
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[(ख) "छावनी बोर्ड" से छावनी अधिनियम, 1924 (1924 का 2) के अधीन गठित छावनी बोर्ड अभिप्रेत है;]
(ग) "कमांड" से उन कमांडों में से एक अभिप्रेत है जिनमें भारत सैनिक प्रयोजनों के लिए तत्समय विभाजित है, और इसके अंतर्गत ऐसा क्षेत्र भी है, जिसे केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के सभी या किन्हीं भी प्रयोजनों के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, कमांड घोषित करे;
(घ) [स्टेशन कमांड आफिसर"] से अभिप्रेत है ऐसा आफिसर, जिसके तत्समय समादेशन में किसी छावनी में कोई बल हो, [या यदि वह आफिसर जिला कमांड आफिसर है तो ऐसा सैनिक आफिसर, जिसके समादेशन में वे बल जिला कमांड आफिसर की अनुपस्थिति में होंगे];
(ङ) "जिला" से उन जिलों में से एक अभिप्रेत है जिनमें भारत, सैनिक प्रयोजनों के लिए, तत्समय विभाजित है, इसके अन्तर्गत ऐसा ब्रिगेड क्षेत्र, जो ऐसे किसी जिले का भाग नहीं है और ऐसा क्षेत्र भी है, जिसे केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के सभी या किन्हीं भी प्रयोजनों के लिए, जिला घोषित करे;
(च) "मकान" से किसी सैनिक आफिसर या सैनिक मैस द्वारा अधिभोग के लिए उपयुक्त मकान अभिप्रेत है, और इसके अन्तर्गत किसी मकान से अनुलग्न भूमि और भवन भी है;
(छ) "सैनिक आफिसर" से भारतीय थल सेना या वायु सेना का ऐसा आयुक्त आफिसर या वारण्ट आफिसर, जो किसी छावनी में ***, थल सेना या वायु सेना संबंधी ड्यूटी पर हो, और [छावनी विभाग का आफिसर] और सेना के विभागीय नियोजन का ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे जिला कमांड आफिसर, लिखित आदेश द्वारा, किसी भी समय, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, सैनिक आफिसर के समकक्ष स्थान दें;
(ज) "स्वामी" के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है, जो किसी मकान का किराया अपने प्रयोजनार्थ या अपनी एवं दूसरों की ओर से या अभिकर्ता या न्यासी के रूप में, प्राप्त कर रहा है या प्राप्त करने का हकदार है, या, यदि वह मकान किसी किराएदार को किराए पर दिया गया होता तो किराया इस प्रकार प्राप्त करता या प्राप्त करने का हकदार होता;
(झ) किसी मकान को उचित मरम्मत की दशा में तब कहा जाता है जब-
(त्) सभी फर्श, दीवारें, खम्भे और महराबे दुरुस्त हों और सभी छतें पक्की और जलरोधी हों;
(त्त्) सभी दरवाजे और खिड़कियां ठीक-ठाक हों, समुचित रूप से रोगन की हुई हों या उन पर तेल लगा हुआ हो और उनमें समुचित ताले या सिटकनी या अन्य ऐसी चीजें लगी हों जो उन्हें कस कर बन्द रखें; और
(त्त्त्) सभी कमरें, बाह्य-गृह तथा अन्य अनुलग्न भवन समुचित रूप से रंग किए हों या सफेदी किए हों ।
(2) यदि ऐसा कोई प्रश्न उठता है कि कोई भूमि या भवन किसी मकान से अनुलग्न है या नहीं तो उसका विनिश्चय [स्टेशन कमांड आफिसर] द्वारा किया जाएगा, जिसका तत्संबंधी विनिश्चय, [कलेक्टर] के पुनरीक्षण के अध्यधीन रहते हुए, अन्तिम होगा ।
[(3) इस अधिनियम के, [उन राज्यक्षेत्रों को, जो 1 नवम्बर, 1956 के ठीक पहले किसी भाग ख राज्य में समाविष्ट थे,] लागू होने में किसी ऐसी अधिनियमिति के प्रति, जो [उस राज्यक्षेत्र] में प्रवृत्त नहीं है, निर्देश का अर्थ [उस राज्यक्षेत्र] में प्रवृत्त किसी तत्सम विधि के प्रति निर्देश के रूप में किया जाएगा ।]
अध्याय 2
अधिनियम का लागू होना
3. छावनियां या छावनियों के भाग जहां अधिनियम को प्रवर्तनशील होना है-(1) [केंद्रीय सरकार,] *** राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम को किसी प्रेसिडेंसी नगर की सीमाओं के भीतर स्थित छावनी से भिन्न किसी छावनी में अथवा उसके किसी भाग में, *** प्रवृत्त घोषित कर सकेगी ।
(2) किसी छावनी या उसके किसी भाग की बाबत उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी करने से पूर्व, [केंद्रीय सरकार] यह अवधारित करने की दृष्टि से स्थानीय जांच कराएगी कि ऐसी सूचना जारी करना समीचीन है या नहीं, और जिस क्षेत्र को उसमें सम्मिलित करने का प्रस्ताव है उसका कौन सा भाग (यदि कोई हो) अधिसूचना से अपवर्जित किया जाना चाहिए ।
[4. लिखित संविदाओं की व्यावृत्ति - इस अधिनियम की कोई भी बात [सर्कार के साथ हुई] किसी लिखित [संविदा] के उपबन्धों पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी जब तक उस संविदा के सभी पक्षकार इस अधिनियम के निबंधनों से आबद्ध होने के लिए लिखित रूप में सहमत न हों ।]
अध्याय 3
मकानों का विनियोजन
5. किन मकानों का विनियोजन किया जा सकेगा - किसी ऐसी छावनी या उसके किसी भाग में स्थित प्रत्येक मकान, जिसकी बाबत धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन कोई अधिसूचना प्रवृत्त है, ऐसी रीति से और उन शर्तों के अधीन रहते हुए, जिनका उपबन्ध इसमें इसके पश्चात् किया गया है, [केंद्रीय सर्कार] द्वारा पट्टे पर विनियोजित किया जा सकेगा ।
[6. मकानों का किन शर्तों पर विनियोजन किया जा सकेगा-(1) जहां कि,-
(क) कोई सैनिक आफिसर, जो छावनी में ठहराया गया है या तैनात किया गया है, या छावनी में किसी सैनिक मैस का प्रेसिडेंट, स्टेशन कमांड आफिसर को लिखित रूप में यह व्यक्त करते हुए आवेदन करता है कि वह अपने लिए या मैस के लिए प्राइवेट करार के आधार पर उचित निबन्धनों पर कोई उपयुक्त आवास प्राप्त करने में असमर्थ है और [सर्कार का] कोई भी उपयुक्त मकान या क्वार्टर उसके अधिभोग के लिए या मैस के अधिभोग के लिए उपलब्ध नहीं है और स्टेशन कमांड आफिसर का, जांच करने पर समाधान हो जाता है कि इस प्रकार बताए गए तथ्य सच हैं; अथवा
(ख) स्टेशन कमांड आफिसर का, जांच करने पर, यह समाधान हो जाता है कि सैनिक आफिसरों और सैनिक मैसों की, जिनका छावनी में रहना उसकी राय में आवश्यक या समीचीन है, अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए, प्राइवेट करार से किराए की उचित दरों पर पर्याप्त और सुनिश्चित रूप से मकान उपलब्ध नहीं हैं,
वहां स्टेशन कमांड आफिसर, धारा 5 के अधीन के दायित्व को प्रवृत्त करने की दृष्टि से, यथास्थिति, छावनी के भीतर, अथवा यदि यह अधिनियम छावनी के किसी भाग के भीतर प्रवृत्त है तो उस भाग के भीतर, किसी ऐसे मकान के, जो किसी सैनिक अधिकारी या सैनिक मैस द्वारा अधिभोग के लिए उपयुक्त प्रतीत होता है, स्वामी पर एक सूचना तामील कर सकेगा, जिसमें उससे अपेक्षा की जाएगी कि वह ऐसे व्यक्ति को, ऐसी तारीख को, जो सूचना की तामील से पूरे-पूरे तीन दिन से पहले की न होगी, और सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ऐसे समय, जो सूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, मकान का निरीक्षण, नाप-जोख और सर्वेक्षण करने दे ।
(2) इस प्रकार विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वामी सूचना में विनिर्दिष्ट व्यक्ति को उस मकान के निरीक्षण, नाप-जोख और सर्वेक्षण के प्रयोजनों के लिए सभी उचित सुविधाएं देने के लिए आबद्ध होगा और यदि वह ऐसा करने से इंकार करता है या ऐसा करने की उपेक्षा करता है तो वह व्यक्ति, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए, परिसरों में प्रवेश कर सकेगा और ऐसी सभी बातें कर सकेगा जो उक्त प्रयोजनों के लिए युक्तियुक्त रूप से आवश्यक हों ।]
7. मकान पट्टे पर लेने की प्रक्रिया - (1) यदि पूर्वोक्त किसी व्यक्ति की रिपोर्ट पर [स्टेशन कमांड आफिसर] का समाधान हो गया है कि मकान किसी सैनिक आफिसर या सैनिक मैस द्वारा अधिभोग में लिए जाने के लिए उपयुक्त है तो वह *** सूचना द्वारा,-
(क) स्वामी से अपेक्षा कर सकेगा कि वह किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए जो पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, उस मकान का पट्टा [केंद्रीय सर्कार] को निष्पादित करें;
(ख) वर्तमान अधिभोगी से, यदि कोई हो, मकान को खाली करने की अपेक्षा कर सकेगा; और
(ग) स्वामी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह सूचना में विनिर्दिष्ट समय के भीतर ऐसी मरम्मत करवा दे, जो मकान को मरम्मत की उचित दशा में रखने के प्रयोजनार्थ [स्टेशन कमांड अफसर] की राय में आवश्यक हो ।
(2) उपधारा (1) के अधीन जारी की गई प्रत्येक सूचना में मकान के लिए उचित प्रस्तावित वार्षिक किराए की रकम उल्लिखित की जाएगी, जिसका परिकलन इस आधार पर किया जाएगा कि स्वामी अपेक्षित मरम्मतें, यदि कोई हों, करवा देगा । सूचना में ऐसी मरम्मतों के खर्च का प्राक्कलन भी दिया जाएगा ।
(3) उपधारा (1) के अधीन निष्पादित प्रत्येक पट्टे की शर्तें निम्नलिखित समझी जाएंगी, अर्थात्,-
(क) पट्टे की समाप्ति पर मकान का कब्जा उचित मरम्मत की दशा में स्वामी को फिर से दे दिया जाएगा, और
(ख) मकान से लगी हुई भूमि और बाग का, यदि कोई हो, रखरखाव इस प्रकार किया जाएगा कि वे उसी दशा में बने रहें जिस दशा में वे उस समय थे जब पट्टा निष्पादित किया गया था :
[परन्तु उस उपधारा की किसी भी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह ऐसी किसी स्थिति में, जो सम्पत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (1882 का 4) की धारा 108 के खंड (ङ) में विनिर्दिष्ट है, पट्टे से परिवर्जित होने के [केंद्रीय सरकार] के अधिकार को प्रभावित करती है ।]
8. [माकन को पट्टे पर लिए जाने से पहले की जाने वाली प्रक्रिया]-1930 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया ।
9. किसी मकान को अस्पताल, आदि के रूप में अधिभोग में लेने से पूर्व मंजूरी का प्राप्त किया जाना-किसी ऐसी छावनी या उसके भाग में, जिसमें यह अधिनियम प्रवृत्त है, कोई भी मकान, किसी अस्पताल, स्कूल, स्कूल-छात्रावास, बैंक, होटल, या दुकान के प्रयोजनों के लिए या रेल प्रशासन द्वारा, या व्यापार या रोजगार में लगी हुई किसी कंपनी या फर्म द्वारा, या क्लब द्वारा, आयुक्त की सहमति से या किसी ऐसे राज्य में जहां आयुक्त नहीं है कलेक्टर की सहमति से, जिला कमांड आफिसर द्वारा दी गई पूर्व मंजूरी के बिना, अधिभोग में नहीं लिया जाएगा, जब तक वह ऐसी अधिसूचना जारी किए जाने की तारीख को इस प्रकार अधिभोग में न रहा हो, जिसमें, यथास्थिति, इस अधिनियम या कन्टून्मेन्ट्स (हाउस-एकामोडेशन) ऐक्ट, 1902 (1902 का 2) को प्रवृत्त हुआ घोषित किया गया था ।
10. कतिपय दशाओं में मकानों का विनियोजन न किया जाना-धारा 7 के अधीन कोई भी सूचना जारी नहीं की जाएगी, यदि मकान-
(क) यथास्थिति, इस अधिनियम अथवा कन्टून्मेंट्स (हाउस-एकामोडेशन) ऐक्ट, 1902 (1902 का 2) को छावनी या उसके किसी भाग में प्रवृत्त हुआ घोषित करने वाली अधिसूचना जारी किए जाने की तारीख को अस्पताल, स्कूल, स्कूल-छात्रावास, बैंक, होटल या दुकान के रूप में अधिभोग में था, या ऐसी मंजूरी से, जो धारा 9 द्वारा अपेक्षित है, ऐसे अधिभोग में है, और उस समय से, जब सूचना जारी करने का अवसर उद्भूत होता है, ठीक पूर्व के तीन वर्षों के दौरान बराबर इस प्रकार अधिभोग में रहा है, अथवा
(ख) खंड (क) में निर्दिष्ट अधिसूचना की तारीख को, रेल प्रशासन द्वारा अथवा व्यापार या कारबार में लगी हुई किसी कंपनी या फर्म द्वारा, या किसी क्लब द्वारा, अधिभोग में था, या यथापूर्वोक्त मंजूरी से अधिभोग में है, अथवा
(ग) स्वामी द्वारा अधिभोग में है, अथवा
(घ) लोक कार्यालय के रूप में अथवा किसी अन्य प्रयोजन के लिए उपयोग के निमित्त, जिला कमांड आफिसर की सहमति से राज्य सरकार द्वारा, या केन्द्रीय सरकार द्वारा विनियोजित कर लिया गया है ।
11. मकान का कब्जा देने के लिए अनुज्ञात किया जाने वाला समय-(1) यदि कोई मकान अधिभोग में नहीं है तो धारा 7 के अधीन जारी की गई सूचना में स्वामी से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह सूचना की तामील से इक्कीस दिन के भीतर उसका कब्जा [स्टेशन कमांड आफिसर] को दे दे ।
(2) यदि कोई मकान अधिभोग में है तो धारा 7 के अधीन जारी की गई सूचना में, उस सूचना की तामील से तीस दिन से कम समय में, उसके खाली कर दिए जाने की अपेक्षा नहीं की जाएगी ।
(3) जहां कि धारा 7 के अधीन कोई सूचना जारी की गई है और उसके अनुसरण में मकान खाली कर दिया गया है वहां पट्टा उस तारीख को प्रारम्भ हुआ समझा जाएगा जिसको मकान इस प्रकार खाली किया गया था ।
12. मकान का अभ्यर्पण कब परिवर्तित किया जाना है-यदि धारा 7 के अधीन जारी की गई सूचना के अनुसरण में स्वामी मकान का कब्जा [स्टेशन कमांड आफिसर] को देने में असफल रहता है, या यदि वर्तमान अधिभोगी ऐसी सूचना के अनुसरण में मकान खाली करने में असफल रहता है तो, जिला मजिस्ट्रेट स्वयं या ऐसे अन्य व्यक्ति के माध्यम से, जिसे उसने इस निमित्त साधारणतया या विशेष रूप से प्राधिकृत किया है, परिसर में प्रवेश करेगा और मकान के अभ्यर्पण को प्रवर्तित करेगा ।
13. जिस स्वामी को धारा 7 के अधीन सूचना जारी की गई है उसे मकान की खरीद की सरकार से अपेक्षा करने का कतिपय दशाओं में विकल्प-(1) यदि किसी ऐसे मकान के बारे में, जिसकी बाबत धारा 7 के अधीन सूचना जारी की गई है, [केंद्रीय सरकार] के समाधानप्रद रूप में यह दर्शित किया जाता है, या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश द्वारा यह साबित कर दिया जाता है कि वह,-
(क) किन्हीं ऐसी शर्तों, नियमों, विनियमों या आदेशों के अधीन, जो 1864 के दिसम्बर के आठवें दिन से पूर्व बंगाल में प्रवृत्त थे, निर्मित किया गया था और स्वामी को यह विकल्प दिया गया था कि वह उस मकान को किसी ऐसे सैनिक आफिसर को, जो अपने अधिभोग के लिए मकान के विनियोजन के लिए आवेदन करता है, या ईस्ट इंडिया कंपनी या [सरकार को बिक्री के लिए] प्रस्थापित करे, अथवा
(ख) ऐसी शर्तों, नियमों, विनियमों या आदेशों के अधीन, जो 1875 के जून के प्रथम दिन से पूर्व मुम्बई में प्रवृत्त थे, निर्मित किया गया था और उसे खंड (क) में वर्णित विकल्प भी दिया गया था,
तो स्वामी को यह विकल्प प्राप्त होगा कि या तो वह सूचना का अनुपालन करे या मकान बिक्री के लिए केन्द्रीय सरकार को प्रस्थापित करे ।
(2) यदि स्वामी मकान को बेचने का विकल्प अपनाता है और [केंद्रीय सरकार] उसे खरीदने के लिए राजी है तो दिए जाने वाले क्रय-धन की रकम का प्रश्न, असहमति की दशा में, [अध्याय 4 के उपबंधों के अनुसार सिविल न्यायालयट को निर्दिष्ट कर दिया जाएगा ।
14. जहां मकान किराएदार द्वारा लम्बी अवधि के लिए पट्टे पर लिया गया है वहां उपबंध-(1) यदि कोई मकान, जिसकी बाबत धारा 7 के अधीन कोई सूचना जारी की गई है, किसी किराएदार के अधिभोग में है जो सद्भावपूर्वक और मूल्यवान प्रतिफलस्वरूप उसमें एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए किसी रजिस्ट्रीकृत पट्टे के अधीन रह रहा है तो केन्द्रीय सरकार उस तारीख से, जिसको मकान सूचना के अनुसार खाली किया गया है, एक वर्ष की अवधि के लिए, अथवा पट्टे की अनवसित अवधि के लिए इनमें से जो भी कम हो, स्वामी को, इस अधिनियम के अधीन संदेय किराए की बजाय रजिस्ट्रीकृत पट्टे द्वारा नियत किराया देने के लिए दायी होगी यदि इस प्रकार नियत किराया संदेय किराए से अधिक हो ।
(2) यदि कोई मकान, जिसकी बाबत धारा 7 के अधीन सूचना जारी की गई है, किसी किराएदार के अधिभोग में है जो सद्भावपूर्वक और मूल्यवान प्रतिफलस्वरूप वर्षानुवर्षी रजिस्ट्रीकृत पट्टे के अधीन उसमें रह रहा है तो कन्द्रीय सरकार उस तारीख से, जिसको वह मकान सूचना के अनुसार खाली किया गया है, छह मास की अवधि के लिए यथापूर्वोक्त दायी होगी ।
(3) इस धारा की किसी भी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह,-
(क) केन्द्रीय सरकार को इस प्रकार दायी बनाएगी जब तक कि स्वामी ने इस निमित्त लिखित रूप में आवेदन [स्टेशन कमांड आफिसर] को, सूचना की तामील से पन्द्रह दिन के भीतर, न दे दिया हो, अथवा
(ख) सरकार और स्वामी के बीच किसी भी करार को सीमित अथवा अन्यथा प्रभावित करती है ।
15. किराए के प्रश्न पर सिविल न्यायालय को निर्देश करने की स्वामी की शक्ति-(1) यदि स्वामी यह समझता है कि धारा 7 के अधीन जारी की गई सूचना में उल्लिखित किराया उचित नहीं है तो वह, ऐसी सूचना की तामील से [तीस] दिन के भीतर उस मामले को [अध्याय 4 के उपबंधों के अनुसार सिविल न्यायालय को निर्दिष्ट] कर सकेगा :
[परंतु जहां कि धारा 30 के अधीन जिला कमांड आफिसर को कोई अपील की गई है वहां तीस दिन की अवधि की उस तारीख से गणना की जाएगी जिसकी स्वामी ने धारा 32 की उपधारा (2) के अधीन अपील के परिणाम की सूचना प्राप्त की हो ।]
(2) यदि स्वामी उक्त अवधि के भीतर [निर्देश] नहीं करता है तो यह समझा जाएगा कि उसने इस प्रकार प्रस्थापित किराया स्वीकार कर लिया है ।
16. मरम्मत के प्रश्न पर सिविल न्यायालय को निर्देश करने की स्वामी की शक्ति-(1) यदि स्वामी मकान की, धारा 7 के अधीन उसे जारी की गई सूचना द्वारा यथापेक्षित मरम्मत करवाने में असफल रहता है तो, [स्टेशन कमांड आफिसर] सूचना द्वारा उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह [तीस] दिन से अन्यून की ऐसी अवधि के भीतर, जो सूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, वह मरम्मत करवा दे ।
(2) यदि स्वामी उपधारा (1) के अधीन जारी की गई सूचना में की गई अपेक्षा पर आपत्ति करता है तो वह सूचना की तामील से [तीस] दिन के भीतर उस मामले को [अद्याय 4 के उपबन्धों के अनुसार सिविल न्यायालय को निर्दिष्ट] कर सकेगा :
[परन्तु जहां कि धारा 30 के अधीन जिला कमांड आफिसर को कोई अपील की गई है वहां तीस दिन की अवधि की गणना उस तारीख से की जाएगी जिसको स्वामी ने धारा 32 की उपधारा (2) के अधीन अपील के परिणाम की सूचना प्राप्त की है ।]
[(3) उपधारा (2) के अधीन प्रत्येक निर्देश के साथ ऐसी मरम्मतों के लिए, यदि कोई हों, एक प्राक्कलन भी दिया जाएगा जिन्हें स्वामी मकान को उचित मरम्मत की दशा में रखने के लिए आवश्यक समझे ।]
[17. मरम्मत करवाने और उसका खर्च वसूल करने की शक्ति - यदि स्वामी धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन जारी की गई सूचना का अनुपालन करने में असफल रहता है तो सैनिक इंजीनियरी सेवाएं या लोक निर्माण विभाग, स्टेशन कमांड आफिसर की पूर्व मंजूरी से और उस धारा द्वारा प्रदत्त किसी निर्देश-अधिकार के होते हुए भी, सूचना में विनिर्दिष्ट मरम्मत [केंद्रीय सरकार] के खर्च पर करवा सकेगा और उसका खर्च, अथवा जहां कोई निर्देश दिया गया है वहां सिविल न्यायालय द्वारा अन्तिम रूप से अवधारित रकम स्वामी को संदेय किराए में से काटी जा सकेगी ।]
18. छावनी में किसी मकान में हित न्यागमन की सूचना का दिया जाना-प्रत्येक व्यक्ति, जिसे किसी ऐसी छावनी या उसके किसी भाग में, जिसकी बाबत धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन कोई अधिसूचना तत्समय प्रवृत्त है, स्थित किसी मकान या उसके भाग में स्वामी का हित अन्तरण, उत्तराधिकार, या विधि के प्रवर्तन द्वारा न्यागमित होता है, ऐसे न्यागमन की तारीख से एक मास के भीतर, उस तथ्य की सूचना [स्टेशन कमांड आफिसर] को देने के लिए आबद्ध होगा और यदि वह उचित कारण के बिना ऐसा करने में असफल रहेगा तो वह जुर्माने से, जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।
[अध्याय 4
निर्देशों के सम्बन्ध में प्रक्रिया
19. निर्देशों के सम्बन्ध में अधिकारिता- इस अधिनियम के अधीन सभी निर्देश आवेदन द्वारा जिला न्यायाधीश के न्यायालय को किए जाएंगे और वही न्यायालय उनका विचारण करेगा ।
20. न्यायालय की प्रक्रिया और उसकी शक्तियां- इसअधिनियम के अधीन निर्देश सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 141 के अर्थ में कार्यवाहियां समझे जाएंगे और उनका विचारण करने में वह न्यायालय उस संहिता के अधीन अपनी किन्हीं भी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा ।
21. जांच के कार्यक्षेत्र का निर्बन्धन- इस अधिनियम के अधीन किसी निर्देश में जांच का कार्यक्षेत्र इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार न्यायालय को निर्दिष्ट विषयों के विचारण तक ही निर्बन्धित रहेगा ।]
अध्याय 5
अपीलें
[29. उच्च न्यायालय को अपील-(1) ऐसे निर्देश पर, जिस पर जिला न्यायाधीश के न्यायालय ने विचारण किया है, उस न्यायालय के विनिश्चय के विरुद्ध उच्च न्यायालय को अपील हो सकेगी ।
(2) इस धारा के अधीन कोई भी अपील तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक वह उस विनिश्चय की तारीख से, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, तीस दिन के भीतर न की गई हो ।
(3) इस धारा के अधीन की गई अपील, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 108 के अर्थ में, आदेश से की गई अपील समझी जाएगी ।]
[30. जिला कमांड आफिसर को अपील - किसी ऐसे मकान का स्वामी या किराएदार, जिसकी बाबत धारा 7 के अधीन सूचना जारी की गई है, सूचना की तामील की तारीख से [दस दिन] के भीतर, जिला कमांड आफिसर को, मकान विनियोजित करने के स्टेशन कमांड आफिसर के विनिश्चय के विरुद्ध अपील कर सकेगा ।]
31. अपील के लिए अर्जी-(1) धारा 30 के अधीन अपील की प्रत्येक अर्जी लिखित रूप में होगी और उसके साथ उस सूचना की एक प्रति भी होगी जिसके विरुद्ध अपील की गई है ।
(2) ऐसी कोई भी अर्जी [स्टेशन कमांड आफिसर] को प्रस्तुत की जा सकती है और वह आफिसर उसे धारा 30 के अधीन अपील सुनने के लिए सशक्त प्राधिकारी को भेजने के लिए आबद्ध होगा और उसके साथ ऐसी रिपोर्ट भी संलग्न कर सकेगा जो वह उस सूचना के स्पष्टीकरण के रूप में देना चाहे जिसके विरुद्ध अपील की गई है ।
(3) यदि ऐसी कोई अर्जी सीधे जिला कमांड आफिसर को प्रस्तुत की जाती है और उस अर्जी पर तुरन्त आदेश की आवश्यकता नहीं है तो जिला कमांड आफिसर वह अर्जी [स्टेशन कमांड आफिसर] को रिपोर्ट भेजने के लिए निर्दिष्ट कर सकेगा ।
32. अपील पर किए गए आदेश का अन्तिम होना- [(1)] ऐसी किसी अपील पर जिला कमांड आफिसर *** का निर्णय अन्तिम होगा और उसे किसी भी न्यायालय में, इस आधार से भिन्न किसी आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा कि मकान किसी ऐसी छावनी या छावनी के भाग में स्थित है जिसमें यह अधिनियम प्रवृत्त नहीं है :
परन्तु किसी भी अपील का निर्णय तब तक नहीं किया जाएगा जब तक अपीलार्थी की सुनवाई न कर ली गई हो या उसे स्वयं या किसी विधि-व्यवसायी की मार्फत सुने जाने का उचित अवसर न मिल गया हो, [और निर्णय देने में जिला कमांड आफिसर उसके कारणों को संक्षेप में अभिलिखित करेगा ।]
[(2) अपील के परिणाम की सूचना अपीलार्थी को यथाशक्य शीघ्र दी जाएगी और जहां अपीलार्थी मकान का किराएदार है वहां उस मकान के स्वामी को भी दी जाएगी ।]
33. अपील के विचाराधीन रहने तक कार्रवाई का निलम्बन- जहा कि धारा 30 के अधीन कोई अपील [उसमे] विहित अवधि के भीतर प्रस्तुत की गई है वहां सूचना पर सभी कार्रवाई, अपीलार्थी के आवेदन पर, अपील का विनिश्चय किए जाने तक प्रास्थगित रखी जाएगी ।
अध्याय 6
अनुपूरक उपबन्ध
34. सूचना और अपेक्षाओं की तामील- इस अधिनियम द्वारा विहित प्रत्येक सूचना या अपेक्षा लिखित रूप में होगी जिस पर वह व्यक्ति, जिसके द्वारा वह दी जाती है, या उसका सम्यक् रूप से नियुक्त अभिकर्ता हस्ताक्षर करेगा, और उसे उस व्यक्ति को, जिसे वह सम्बोधित की गई है अथवा ऐसे स्वामी की दशा में, जो उस छावनी में या उसके निकट निवास नहीं करता है, उसके उस अभिकर्ता को, जो [छावनी अधिनियम, 1924 (1924 का 2) की धारा 282 के खंड (29) के अधीन बनाई गई उपविधि के अनुसार] नियुक्त किया गया है, डाक द्वारा भेजा जा सकता है ।
[34क. परिसीमा काल की संगणना-इस अधिनियम के अधीन कोई निर्देश अथवा अपील करने के लिए विहित अवधि [भारतीय परिसीमा अधिनियम, 1908 (1908 का 9)] के उपबन्धों के अनुसार संगणित की जाएगी ।]
35. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों और उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ये नियम-
। । । । ।
(ख) प्रवेश, निरीक्षण, नापजोख या सर्वेक्षण की उन शक्तियों को परिनिश्चित कर सकेंगे जिनका प्रयोग इस अधिनियम के अथवा इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के प्रयोजनों और उद्देश्यों के कार्यान्वित करने में किया जा सकता है ।
[(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
36. नियमों के बारे में अतिरिक्त उपबन्ध-(1) धारा 35 के अधीन नियम बनाने की शक्ति इस शर्त के अधीन होगी कि नियम पूर्व-प्रकाशन के पश्चात् बनाए जाएंगे और तब तक प्रभावी न होंगे जब तक उन्हें राजपत्र में और ऐसी अन्य रीति से (यदि कोई हो), जिसका निर्देश केन्द्रीय सरकार करे, प्रकाशित नहीं किया जाता ।
(2) धारा 35 के अधीन कोई भी नियम उन सभी छावनियों या *** छावनियों के भाग के लिए, जिनमें यह अधिनियम तत्समय प्रवृत्त है; सामान्यतया, या ऐसी छावनियों या उनके भागों में से किन्हीं के लिए विशेषतया, जैसा भी केन्द्रीय सरकार निर्देश दे, हो सकता है ।
(3) धारा 35 के अधीन उन नियमों की एक प्रति, जो छावनी में तत्समय प्रवृत्त हों, छावनी [बोर्ड] के कार्यालय में सभी उचित समयों पर निःशुल्क निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहेगी ।
(4) धारा 35 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) के अधीन नियम बनाते समय केन्द्रीय सरकार यह निदेश दे सकेगी कि जो कोई, किसी ऐसे व्यक्ति के, जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक नहीं है, प्रवेश, निरीक्षण, नापजोख या सर्वेक्षण करने में बाधा डालेगा, वह जुर्माने से जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, और चालू रहने वाले अपराध की दशा में यथापूर्वोक्त जुर्माने के अतिरिक्त ऐसे जुर्माने से, जो उस प्रथम दिन के पश्चात् प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान ऐसा अपराध चालू रहता है, पांच रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।
37. दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 556 का अपराधों के विचारण को लागू न होना- दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 556 के अर्थ में कोई भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन गठित किसी अपराध के लिए अभियोजन में केवल इसीलिए पक्षकार या व्यक्तिगत रूप से हितबद्ध नहीं समझा जाएगा कि वह छावनी [बोर्ड] का सदस्य है या उसने अभियोजन का आदेश दिया है या अनुमोदित किया है ।
38. इस अधिनियम के अधीन काम करने वाले व्यक्तियों का संरक्षण - कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में जो इस अधिनियम के अधीन या इस अधिनियम के अधीन जारी की गई किसी विधिपूर्ण सूचना या आदेश के अनुसरण में, सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशयित हो, किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध न हो सकेगी ।
39. [निरसन ।]- निरसन अधिनियम 1927 (1927 का 12) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित ।
अनुसूची-[अधिनियमितियाँ निरसित ।]-संशोधन अधिनियम, 1927 (1927 का 12) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित ।
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