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कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 ( Workmen’s Compensation Act, 1923 )


 

कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923

(1923 का अधिनियम संख्यांक 8)1

[5 मार्च, 1923]

नियोजन के कतिपय वर्गों द्वारा अपने 2[कर्मचारियों] को दुर्घटना द्वारा हुई

क्षति के निमित्त प्रतिकर का संदाय किए जाने

का उपबंध करने के लिए

अधिनियम

अतः यह समीचीन है कि नियोजकों के कतिपय वर्गों द्वारा अपने 3[कर्मचारियों] को दुर्घटना द्वारा हुई क्षति के निमित्त प्रतिकर का संदाय किए जाने का उपबंध किया जाए;

अतः एत्दद्वारा निम्नलिखित रूप से यह अधिनियमित किया जाता हैः-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ - (1) यह अधिनियम 4[कर्मचारी] प्रतिकर अधिनियम, 1923 कहा जा सकेगा ।

 5[(2) इसका विस्तार ॥। सम्पूर्ण भारत पर है ।]

(3) यह 1924 की जुलाई के प्रथम दिन को प्रवृत्त होगा ।

2. परिभाषाएं - (1) इस अधिनियम में, जब तक कि विषय या संदर्भ में कोई बात विरुद्ध न हो, -

             7।                                             ।                                               ।                                   ।

            (ख) “आयुक्त” से धारा 20 के अधीन नियुक्त कर्मकार प्रतिकर आयुक्त अभिप्रेत है; -

            (ग) “प्रतिकर” से इस अधिनियम द्वारा यथा उपबंधित प्रतिकर अभिप्रेत है;

            8[(घ) “आश्रित” से मृत कर्मकार के निम्नलिखित नातेदारों में से कोई अभिप्रेत है, अर्थात्ः-

  1. विधवा, अप्राप्तवय धर्मज या दत्तक पुत्र, और अविवाहिता ९ धर्मज या दत्तक पुत्री, या विधवा                 माता; तथा
  1. पुत्र या पुत्री जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है और जो शिथिलांग है, यदि वह कर्मकार की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूर्णतः आश्रित था या थी;
  1. इस अधिनियम का गोवा, दमण और दीव पर 1962 के विनियम सं० 12 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा; दादरा और नागर हवेली पर 1963 के विनियम सं० 6 की धारा                 2 और अनुसूची 1 द्वारा तथा पांडिचेरी में 1963 के विनियम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 1 द्वारा तथा लक्कादीव, मिनिकोय और अमीनदीवी द्वीप पर 1965 के     विनियम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा, विस्तार किया गया है ।
      1. शिक्षु अधिनियम, 1961 (1961 का 52) के अधीन शिक्षुओं को लागू होने के संबंध में इस अधिनियम को उस अधिनियम की धारा 16 और अनुसूची द्वारा        उपान्तरित किया गया है ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1970 के अधिनियम सं० 51 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा (1-9-1971 से) जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय शब्दों का लोप किया गया ।
  7. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 2 द्वारा (1-6-1959 से) खंड (क) का लोप किया गया ।
  8. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 2 द्वारा (1-6-1959 से) पूर्ववर्ती खंड के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  9. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 2 द्वारा (15-9-1995 से) धर्मज के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

  1.  (क) विधुर;

(ख) माता-पिता जिसके अन्तर्गत विधवा माता नहीं आती है;

(ग) अप्राप्तवय अधर्मज पुत्र, अविवाहिता अधर्मज पुत्री, या यदि विवाहिता है और अप्राप्तवय है या यदि विधवा है और अप्राप्तवय है तो पुत्री चाहे वह 1[धर्मज हो या अधर्मज या दत्तक;]

(घ) अप्राप्तवय भाई, या अविवाहिता बहन, या विधवा बहन यदि वह अप्राप्तवय है;

(ङ) विधवा पुत्र-वधु;

(च) पूर्वमृत पुत्र की अप्राप्तवय संतान;

(छ) पूर्वमृत पुत्री की अप्राप्तवय संतान, यदि उस संतान के माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं है;

(ज) जहां 2[कर्मचारी] के माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं है वहां पितामह और पितामही;

यदि वह 1[कर्मचारी] की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूर्णतः या भागतः आश्रित था या थी;]

             3[स्पस्टीकरण - उपखण्ड (त्त्) और उपखंड (त्त्त्) की मद (च) और मद (छ) के प्रयोजनों के लिए, पुत्र, पुत्री या संतान के प्रति निर्देशों के अंतर्गत क्रमशः दत्तक पुत्र, पुत्री या संतान है;]

                        4[(घघ) “कर्मचारी” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो-

  1. रेल अधिनियम, 1989 (1989 का 24) की धारा 2 के खंड (34) में यथापरिभाषित ऐसा रेल कर्मचारी है, जो किसी रेल के किसी प्रशासनिक जिला या उपखंड कार्यालय में स्थायी रूप से नियोजित नहीं है और किसी ऐसी हैसियत में नियोजित नहीं है, जो अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट है; अथवा
  2. (क) किसी पोत का मास्टर, नाविक या कर्मीदल का अन्य सदस्य है;

(ख) किसी वायुयान का केप्टन या कर्मीदल का अन्य सदस्य है;

(ग) किसी मोटर यान के संबंध में ड्राईवर, हेल्पर, मैकनिक, क्लीनर के रूप में या किसी अन्य हैसियत में भर्ती किया गया व्यक्ति है;

(घ) ऐसा कोई व्यक्ति है जो किसी कंपनी द्वारा विदेश में काम करने के लिए भर्ती किया जाता है,

और जो भारत के बाहर किसी ऐसी हैसियत में जो अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट है नियोजित है, और, यथास्थिति, ऐसा पोत, वायुयान या मोटर यान अथवा कंपनी भारत में रजिस्ट्रीकृत है, अथवा

(iii) किसी ऐसी हैसियत में नियोजित है, जो अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट है, चाहे नियोजन की संविदा इस अधिनियम के पारित किए जाने से पहले या उसके पश्चात् की गई थी और चाहे ऐसी संविदा अभिव्यक्त या विवक्षित हो, मौखिक या लिखित में हो; किंतु इसमें ऐसा कोई व्यक्ति सम्मिलित नहीं है, जो संघ के सशस्त्र बलों के सदस्य की हैसियत में कार्य कर रहा है और किसी कर्मचारी के प्रति निर्देश में, जो आहत हो गया हो, जहां कर्मचारी की मृत्यु हो गई है, उसके आश्रितों या उनमें से किसी के प्रति निर्देश सम्मिलित है;]

(ङ) “नियोजक” के अन्तर्गत कोई व्यक्ति-निकाय, चाहे वह निगमित हो या नहीं, और नियोजक का कोई प्रबंध अभिकर्ता और मृत नियोजक का विधिक प्रतिनिधि आता है, और जब कि कर्मकार की सेवाएं उस व्यक्ति द्वारा, जिसके साथ 1[कर्मचारी] ने सेवा या शिक्षुता की कोई संविदा की है, अन्य व्यक्ति को

 

  1. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 2 द्वारा (15-9-1995 से) धर्मज या अधर्मज के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 2 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 6 द्वारा अंतःस्थापित ।

 

अस्थायी तौर पर उधार दे दी गई हैं या भाड़े पर दी गई हैं वहां “नियोजक” से जब तक वह 1[कर्मचारी] उसके लिए काम करता रहता है, वह अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है;

(च) “प्रबंध अभिकर्ता” से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी अन्य व्यक्ति का व्यवसाय या कारबार चलाने के प्रयोजन के लिए ऐसे अन्य व्यक्ति के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त है या कार्य कर रहा है, किन्तु इसके अन्तर्गत नियोजक के अधीनस्थ व्यष्टिक प्रबंधक नहीं आता;

2[(चच) अप्राप्तवय से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने अट्ठारह वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है;]

(छ) आंशिक निःशक्तता से जहां वह, निःशक्तता अस्थायी प्रकार की है वहां ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है जिससे कर्मकार की उस नियोजन में उपार्जन सामर्थ्य कम हो जाती है, जिसमें वह उस दुर्घटना के समय जिसके परिणामस्वरूप निःशक्तता हुई, लगा हुआ था, और जहां कि निःशक्तता स्थायी प्रकार की है वहां ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे हर ऐसे नियोजन में उसकी उपार्जन-सामर्थ्य कम हो जाती है जिसे ग्रहण करने के लिए वह उस समय समर्थ थाः परन्तु  3[अनुसूची 1 भाग 2 में] विनिर्दिष्ट हर क्षति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसके परिणामस्वरूप स्थायी आंशिक निःशक्तता होती है;

(ज) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(झ) “अर्हित चिकित्सा व्यवसायी” से अभिप्रेत है किसी ऐसे 4[केन्द्रीय अधिनियम, प्रान्तीय अधिनियम या किसी 5[राज्य] के विधान-मंडल के अधिनियम] के अधीन, जो चिकित्सा-व्यवसायियों का रजिस्टर रखे जाने के लिए उपबंध करता है,  6॥। रजिस्ट्रीकृत कोई व्यक्ति, या किसी ऐसे क्षेत्र में, जहां ऐसा अन्तिम वर्णित कोई भी अधिनियम प्रवृत्त नहीं है, कोई ऐसा व्यक्ति, जिसके बारे में राज्य सरकार ने शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित किया है कि वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अर्हित चिकित्सा व्यवसायी है;

(ट) “नाविक” से किसी 8॥। 9[पोत] के कर्मीदल का कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, किन्तु इसके अन्तर्गत 5॥। 6[पोत] का मास्टर नहीं आता;

(ठ) “पूर्ण निःशक्तता” से ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, चाहे वह अस्थायी प्रकार की हो या स्थायी प्रकार की, जो किसी कर्मकार को ऐसे सब काम के लिए असमर्थ कर देती है, जिसे वह उस दुर्घटना के समय, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी निःशक्तता हुई थी, करने में समर्थ थाः

10[परन्तु अनुसूची 1 के भाग 1 में विनिर्दिष्ट हर क्षति के या उसके भाग 2 में विनिर्दिष्ट क्षतियों के समुच्चय के बारे में वहां जहां उपार्जन-सामर्थ्य की हानि का संकलित प्रतिशत, जैसा उक्त भाग 2 में उन क्षतियों के सामने विनिर्दिष्ट है, सौ या उसके अधिक होता है, यह समझा जाएगा, कि उसके परिणामस्वरूप स्थायी पूर्ण निःशक्तता हुई है;]

  1. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 2 द्वारा (1-6-1959 से) अंतःस्थापित ।
  2. इस अधिनियम का बंगाल को लागू होने के लिए कर्मकार प्रतिकर (बंगाल संशोधन) अधिनियम, 1942 (1942 का 6) की धारा 3 द्वारा नया खंड (चच) अंतःस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 2 द्वारा (1-2-1963 से) अनुसूची 1 में के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा केन्द्रीय विधान-मंडल के या भारत के किसी प्रान्त में किसी विधान-मंडल के अधिनियम शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. विधि अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 द्वारा भाग क या भाग ख राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 2 द्वारा (1-6-1959 से) चिकित्सा अधिनियम, 1858 के अधीन या इसे संशोधन करने वाला कोई अधिनियम, या शब्दों का लोप                 किया गया ।
  7. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 2 द्वारा खंड (ञ) का लोप किया गया ।
  8. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 2 द्वारा रजिस्ट्रीकृत शब्द का लोप किया गया ।
  9. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 2 द्वारा किसी ऐसे पोत शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  10. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 2 द्वारा (1-2-1963 से) परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ड) मजदूरी के अन्तर्गत, किसी यात्रा भत्ते से या किसी यात्रा सम्बन्धी के मूल्य से, या कर्मकार के नियोजक द्वारा किसी पेंशन या भविष्य-निधि में दिए गए अभिदाय से, या कर्मकार के नियोजन की प्रकृति के कारण उस पर हुए किन्हीं विशेष व्ययों को पूरा करने के लिए उसे दी गई किसी राशि से भिन्न ऐसा विशेषाधिकार या फायदा आता है, जो धन के रूप में प्राक्कलित किया जा सकता है;

            1।                                 ।                                   ।                                   ।                      

(2) किसी स्थानीय प्राधिकारी की या 2[सरकार की ओर से] कार्य करने वाले किसी विभाग की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और पालन के बारे में, जब तक कि प्रतिकूल आशय प्रतीत न होता हो, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि वह ऐसे प्राधिकारी या विभाग का व्यवसाय या कारबार है ।

 3[(3) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन मास की सूचना, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, देने के पश्चात्, किसी ऐसी उपजीविका में नियोजित व्यक्तियों के किसी वर्ग को, जिसके बारे में उसका समाधान हो गया है कि वह परिसंकटमय उपजीविका है, वैसी ही अधिसूचना द्वारा, अनुसूची 2 में जोड़ सकेगी और तदुपरि इस अधिनियम के उपबंध, केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना की दशा में, उन राज्यक्षेत्रों के भीतर जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, या राज्य सरकार द्वारा किसी अधिसूचना की दशा में, व्यक्तियों के ऐसे वर्गों को राज्य के भीतर, लागू होंगेः

परन्तु ऐसे जोड़ते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के उपबंध व्यक्तियों के ऐसे वर्गों को केवल विनिर्दिष्ट क्षतियों के बारे में ही लागू होंगे ।]

अध्याय 2

4[कर्मचारियों] के लिए प्रतिकर

            3. प्रतिकर के लिए नियोजक का दायित्व - (1) यदि 5[कर्मचारी] को अपने नियोजन से और उनके अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना द्वारा वैयक्तिक क्षति कारित होती है तो उसका नियोजक इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार प्रतिकर का देनदार होगाः

            परन्तु नियोजक

(क) किसी ऐसी क्षति के बारे में जिसके परिणामस्वरूप कर्मकार को 6[तीन] दिन से अधिक की कालावधि के लिए पूर्ण या आंशिक निःशक्तता नहीं रहती;

(ख) दुर्घटना द्वारा हुई किसी क्षति के बारे में, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु 8[या स्थायी पूर्ण निःशक्तता] नहीं हुई है], और जो प्रत्यक्षतः इस कारण से हुई मानी जा सकती है कि-

        1. उसके होने के समय 9[कर्मचारी] पर मदिरा या औषधियों का असर था, अथवा
    1. 3[कर्मचारी] का क्षेम सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए अभिव्यक्त रूप से दिए गए किसी आदेश या अभिव्यक्त रूप से बनाए गए किसी नियम की अवज्ञा 3[कर्मचारी] द्वारा जान-बूझकर की गई थी, अथवा
  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 6 द्वारा लोप किया गया ।
  2. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 2 द्वारा (15-9-1995 से) उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  6. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 3 द्वारा (1-6-1959 से) सात के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 3 द्वारा से होने वाली किसी कर्मकार को क्षति के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 3 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।
  9. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।

(त्त्त्) कोई ऐसा रक्षोपाय या अन्य युक्ति, जिसके बारे में वह जानता था कि वह 3[कर्मचारी] का क्षेम सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए उपबन्धित की गई है, 3[कर्मचारी] द्वारा जानबूझकर हटाई गई थी या उसकी अवहेलना की गई थी, ॥।

 ।                                                             ।                                                              ।                                              ।

इस प्रकार देनदार नहीं होगा ।

(2) यदि अनुसूची 3 के भाग क में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में नियोजित 3[कर्मचारी] को कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग के रूप में उस भाग में विनिर्दिष्ट है, या जिस नियोजक की सेवा में 3[कर्मचारी] अनुसूची 3 के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में छह मास से अन्यून की निरन्तर कालावधि के लिए (जिस कालावधि में किसी अन्य नियोजक के अधीन उसी ढंग के नियोजन में सेवा की कालावधि सम्मिलित नहीं होगी) नियोजित रहा है उस नियोजक की सेवा में रहने के समय यदि उसे कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग के रूप में उस भाग में विनिर्दिष्ट है, या अनुसूची 3 के भाग ग में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में 3[कर्मचारी] को एक या अधिक नियोजनों की सेवा में ऐसी निरन्तर कालावधि के लिए जैसी ऐसे हर एक नियोजन के बारे में केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे, रहने के समय यदि कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग के रूप में उस भाग में विनिर्दिष्ट है तो उस रोग के लगने के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस धारा के अर्थ के अन्दर दुर्घटना द्वारा हुई क्षति है और ज़ब तक कि तत्प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता तब तक दुर्घटना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उस नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत हुई हैः

4[परन्तु यदि यह साबित हो जाता है कि

(क) किसी 3[कर्मचारी] को अनुसूची 3 के भाग ग में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में एक या अधिक नियोजकों की सेवा में रहने के समय कोई ऐसा रोग, जो उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग के रूप में उस भाग में विनिर्दिष्ट है, ऐसी निरन्तर कालावधि के दौरान लग गया है जो उस नियोजन के लिए इस उपधारा के अधीन विनिर्दिष्ट कालावधि से कम है, तथा

(ख) वह रोग उस नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत हुआ है,

तो ऐसे रोग के लगने के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस धारा के अर्थ के अन्दर दुर्घटना द्वारा हुई क्षति हैः

परन्तु यह भी कि यदि यह साबित हो जाता है कि कोई 3[कर्मचारी], जिसने अनुसूची 3 के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में किसी नियोजक के अधीन या उस अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में एक या अधिक नियोजकों के अधीन, उस नियोजन के लिए इस उपधारा के अधीन विनिर्दिष्ट निरन्तर कालावधि के लिए सेवा की है और उसे ऐसी सेवा की समाप्ति के पश्चात् कोई ऐसा रोग लग गया है जो उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग के रूप में, यथास्थिति, उक्त भाग ख या उक्त भाग ग में विनिर्दिष्ट है और यह कि ऐसा रोग उस नियोजन से उद्भूत हुआ था तो उस रोग के लगने के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस धारा के अर्थ के अन्दर दुर्घटना द्वारा हुई क्षति है ।

 5[(2क) यदि अनुसूची 3 के भाग ग में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में नियोजित किसी 3[कर्मचारी] को उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाला कोई ऐसा उपजीविकाजन्य रोग लग जाता है, जिसके लगने के बारे में यह समझा जाता है कि वह इस धारा के अर्थ के अन्दर दुर्घटना द्वारा हुई क्षति है और ऐसा नियोजन एक से अधिक नियोजकों के अधीन था तो, ऐसे सब नियोजक प्रतिकर का ऐसे अनुपात में संदाय करने के दायी होंगे जैसा आयुक्त उन परिस्थितियों में न्यायसंगत समझे ।]

 

  1. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 2 द्वारा अथवा शब्द का लोप किया गया ।
  2. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 2 द्वारा खंड (ग) का लोप किया गया ।
  3. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 3 द्वारा (1-6-1959 से) उपधारा (2) और (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 3 द्वारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थापित ।
  5. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 3 द्वारा (1-2-1963 से) उपधारा (2क) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

(3)  1[केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी भी वर्णन के नियोजन को, ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन मास की सूचना, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, देने के पश्चात् अनुसूची 3 में विनिर्दिष्ट नियोजनों में वैसी ही अधिसूचना द्वारा, जोड़ सकेगी और इस प्रकार जोड़े गए नियोजनों के बारे में उन रोगों को विनिर्दिष्ट करेगी, जिनके बारे में इस धारा के प्रयोजनों के लिए समझा जाएगा कि वे क्रमशः उन नियोजनों में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग हैं और तदुपरि उपधारा (2) के उपबन्ध, 2[केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना की दशा में, उन राज्यक्षेत्रों के भीतर जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना की दशा में, राज्य के भीतर]  3॥। ऐसे लागू होंगे मानो इस अधिनियम द्वारा यह घोषित किया गया था कि वे रोग उन नियोजनों में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग हैं ।]

(4) उपधाराओं 4[(2), (2क)] और (3) द्वारा यथा उपबन्धित के सिवाय किसी रोग के लिए कोई भी प्रतिकर 5[कर्मचारी] को तब तक संदेय न होगा जब तक कि रोग उसके नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना द्वारा हुई किसी विनिर्दिष्ट क्षति के कारण से 6॥। प्रत्यक्षतः हुआ नहीं माना जा सकता ।

(5) यदि 4[कर्मचारी] ने नियोजक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किसी सिविल न्यायालय में किसी क्षति के लिए नुकसानी का कोई वाद संस्थित कर दिया है तो इसमें की किसी भी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह 4[कर्मचारी] को उस क्षति के लिए प्रतिकर पाने का कोई अधिकार प्रदान करती है, और किसी क्षति के लिए 4[कर्मचारी] द्वारा किसी विधि-न्यायालय में नुकसानी के लिए कोई भी वाद न चल सकेगा,

            (क) यदि उसने उस क्षति के बारे में प्रतिकर का कोई दावा आयुक्त के समक्ष संस्थित कर दिया है, अथवा

            (ख) यदि उस क्षति के लिए प्रतिकर के संदाय का उपबन्ध करने वाला कोई करार 4[कर्मचारी] और उसके नियोजन के बीच इस अधिनियम के उपबन्ध के अनुसार हो चुका है ।

7[4. प्रतिकर की रकम - (1) इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि प्रतिकर की रकम निम्नलिखित होगी, अर्थात्ः-

(क) जहां कि क्षति के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है

मृत 4[कर्मचारी] की मासिक मजदूरी को सुसंगत गुणक से गुणा करके प्राप्त रकम से [पचास प्रतिशत] के बराबर रकम; या

 

9[एक लाख बीस हजार] की रकम, इनमें से जो भी अधिक हो;

(ख) जहां कि क्षति के परिणामस्वरूप स्थायी पूर्ण निःशक्तता हो जाती है ।

मतृ 4[कर्मचारी] की मासिक मजदूरी को सुसंगत गुणक से गुणा करके प्राप्त रकम के 10[साठ प्रतिशत] के बराबर रकम; या

8[एक लाख चालीस हजार रुपए] की रकम, इनमें से जो भी अधिक हो:

 

 

 

  1. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 3 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 3 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।
  3. 1970 के अधिनियम सं० 51 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा (1-9-1971 से) कतिपय शब्दों का लोप किया गया ।
  4. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 3 द्वारा (1-6-1959 से) उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  6. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 3 द्वारा पूर्णतः और शब्दों का लोप किया गया ।
  7. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 3 द्वारा (1-7-1984 से) धारा 4 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 4 द्वारा (15-9-1995 से) चालीस प्रतिशत के स्थान पर प्रतिस्थापित
  9. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  10. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 4 द्वारा (15-9-1995 से) पचास प्रतिशत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

1[परंतु केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर, खंड (क) और खंड (ख) में उल्लिखित प्रतिकर की रकम में वृद्धि कर सकेगी ।]

स्पष्टीकरण 1- खण्ड (क) और खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए, किसी 4[कर्मचारी] के संबंध में, सुसंगत गुणक से अनुसूची 4 के पहले स्तंभ में की प्रविष्ट के सामने उस अनुसूची के दूसरे स्तंभ में विनिर्दिष्ट गुणक अभिप्रेत है, जो वर्षों की उस संख्या को विनिर्दिष्ट करता है, जो 4[कर्मचारी] के, प्रतिकर देय होने की तारीख के ठीक पूर्ववर्ती, अंतिम जन्म दिवस को पूर्ण हुए वर्षों की संख्या के बराबर है ।

 ।          ।           ।           ।                                   ।

(ग) जहां कि क्षति के परिणामस्वरूप स्थायी आंशिक निःशक्तता हो जाती है

  1. ऐसी क्षति की दशा में, जो अनुसूची 1 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट है, उस प्रतिकर का, जो स्थायी पूर्ण निःशक्तता की दशा में संदेय होता, ऐसा प्रतिशत, जो उस क्षति द्वारा कारित उपार्जन-सामर्थ्य की हानि के प्रतिशत के रूप में उस भाग में विनिर्दिष्ट है, तथा
  2. ऐसी क्षति की दशा में, जो अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट नहीं है, उस प्रतिकर का, जो स्थायी पूर्ण निःशक्तता की दशा में संदेय होता, ऐसा प्रतिशत, जो उस क्षति द्वारा स्थायी रूप से कारित उपार्जन-सामर्थ्य की (जैसे अर्हित चिकित्सा व्यवसायी द्वारा निर्धारित किया जाए) हानि का आनुपातिक हो ।

 

स्पष्टीकरण 1 - जहा कि एक ही दुर्घटना से हक से अधिक क्षतियां होती हैं, वहां इस शीर्षक के अधीन संदेय प्रतिकर की रकम संकलित कर ली जाएगी किन्तु किसी भी दशा में ऐसी नहीं होगी कि वह उस रकम से बढ़ जाए, जो उन क्षतियों के परिणामस्वरूप स्थायी पूर्ण निःशक्तता होने की दशा में संदेय होती ।

स्पष्टीकरण 2 - उपखंड (ii) के प्रयोजनों के लिए उपार्जन-सामर्थ्य का निर्धारण करने में, अर्हित चिकित्सा व्यवसायी, अनुसूची 1 विनिर्दिष्ट विभिन्न क्षतियों के संबंध में उपार्जन-सामर्थ्य की हानि के प्रतिशत का सम्यक् ध्यान रखेगा;

(घ) जहां कि क्षति के परिणामस्वरूप, चाहे        पूर्ण चाहे आंशिक, अस्थायी निःशक्तता हो जाती है ।

3[कर्मचारी] की मासिक मजदूरी के पच्चीस प्रतिशत के समतुल्य रकम का अर्ध-मासिक संदाय उपधारा (2) के उपबन्धों के अनुसार किया जाएगा ।

 4[(1क) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, आयुक्त, भारत के बाहर हुई किसी दुर्घटना के संबंध में किसी 1कर्मचारी को संदेय प्रतिकर की रकम नियत करते समय उस देश की विधि के अनुसार, जिसमें दुर्घटना हुई थी, ऐसे 1कर्मचारी को अधिनिर्णीत की गई प्रतिकर की रकम को, यदि कोई हो, ध्यान में रखेगा और अपने द्वारा नियत की गई रकम में से उस देश की विधि के अनुसार 1कर्मचारी को अधिनिर्णीत की गई प्रतिकर की रकम को घटा देगा;]

5[(1ख) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए किसी कर्मचारी के संबंध में ऐसी मासिक मजदूरी विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जो वह आवश्यक समझे ।]

(2) उपधारा (1) के खंड (घ) में निर्दिष्ट अर्ध-मासिक संदाय, जो उस दशा में,-

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा लोप किया गया ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 4 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।
  5. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।

 

 

 

(1) जिसमें कि ऐसी निःशक्तता अट्ठाईस दिन या उससे अधिक रहती है, निःशक्तता की तारीख से; अथवा

            (2) जिसमें कि ऐसी निःशक्तता अट्ठाईस दिन से कम रहती है, निःशक्तता की तारीख से तीन दिन की प्रतीक्षा कालावधि के अवसान के पश्चात् सौलहवें दिन को और तत्पश्चात् निःशक्तता के दौरान या पांच वर्ष की कालावधि के दौरान इनसे से जो भी कालावधि लघुतर हो, आधे-आधे मास पर संदेय होगाः

परन्तु

(क) किसी ऐसी एकमुश्त रकम या अर्ध-मासिक संदायों में से, जिनका 1[कर्मचारी] हकदार है, किसी संदाय या भत्ते की वह रकम काट ली जाएगी, जो 1[कर्मचारी] ने, यथास्थिति, ऐसी एकमुश्त रकम की या प्रथम अर्ध-मासिक संदाय की प्राप्ति से पूर्व, निःशक्तता की कालावधि के दौरान प्रतिकर के रूप में नियोजक से प्राप्त की है; तथा

            (ख) कोई भी अर्ध-मासिक संदाय किसी भी दशा में इतनी रकम से, यदि कोई हो, अधिक नहीं होगा, जितनी से दुर्घटना के पहले 1कर्मचारी की मासिक मजदूरी की आधी रकम उस मजदूरी की आधी रकम से अधिक है, जिसे वह दुर्घटना के पश्चात् उपार्जित कर रहा है ।

स्पष्टीकरण - ऐसा कोई संदाय या भत्ता, जो 1[कर्मचारी] ने चिकित्सा लेखे नियोजक से प्राप्त किया है, परन्तुक के खंड (क) के अर्थ के अन्दर प्रतिकर के रूप में उसके द्वारा प्राप्त संदाय या भत्ता नहीं समझा जाएगा ।

3[(2क) कर्मचारी को नियोजन के दौरान कारित क्षतियों के उपचार के लिए उसके द्वारा उपगत वास्तविक चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति की जाएगी ।

(3) उस तारीख से पहले, जिसको कोई अर्ध-मासिक संदाय शोध्य होता है, निःशक्तता के दूर हो जाने पर, उस अर्ध-मास के लिए ऐसी राशि संदेय होगी जो उस अर्ध-मास में निःशक्तता की अस्तित्वावधि की आनुपातिक हो ।

2[(4) यदि 1[कर्मचारी] को हुई क्षति के परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है, तो नियोजक, उपधारा (1) के अधीन प्रतिकर के अतिरिक्त, आयुक्त के पास ऐसे 1[कर्मचारी] की अंत्येष्टि के व्यय के लिए 1कर्मचारी के सबसे बड़े उत्तरजीवी आश्रित को, अथवा जहां 1[कर्मचारी] का कोई आश्रित नहीं है या वह अपनी मृत्यु के समय अपने आश्रितों के साथ नहीं रह रहा था वहां उस व्यक्ति को, जिसने वास्तव में ऐसा व्यय उपगत किया है, संदाय के लिए पांच हजार रुपए से अन्यूनट की राशि जमा करेगा

परन्तु केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर इस उपधारा में विनिर्दिष्ट रकम में वृद्धि कर सकेगी

3[4. शोध्य हो जाने पर प्रतिकर का दिया जाना और व्यतिक्रम के लिए शास्ति - (1) धारा 4 के अधीन प्रतिकर शोध्य होते ही दे दिया जाएगा ।

(2) जिन दशाओं में नियोजक प्रतिकर के लिए दायित्व दावाकृत विस्तार तक प्रतिगृहीत नहीं करता उनमें जिस प्रकार विस्तार तक का दायित्व वह प्रतिगृहीत करता है उस पर आधृत अनन्तिम संदाय करने के लिए वह आबद्ध होगा और ऐसा संदाय, कोई अतिरिक्त दावा करने के सम्बन्ध में 4[कर्मचारी] के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यथास्थिति, आयुक्त के पास निक्षिप्त कर दिया जाएगा या 3[कर्मचारी] को दे दिया जाएगा]

5[(3) जहां कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन शोध्य प्रतिकर को उसके शोध्य हो जाने की तारीख से एक मास के भीतर देने में व्यतिक्रम करता है, वहां आयुक्त-

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।
  3. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 5 द्वारा (1-6-1959 से) अंतःस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 5 द्वारा (15-9-1995 से) उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

(क) यह निदेश देगा कि नियोजक, बकाया रकम के अतिरिक्त, उस पर बारह प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से या किसी अनुसूचित बैंक की उधार देने की अधिकतम दरों से अनधिक ऐसी उच्चतर दर से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी शोध्य रकम पर विनिर्दिष्ट की जाए, साधारण ब्याज का संदाय करेगा;

(ख) यदि उसकी यह राय है कि विलम्ब के लिए कोई न्यायोचित्य नहीं है तो, यह निदेश देगा कि नियोजक, बकाया रकम और उस पर ब्याज के अतिरिक्त ऐसी रकम के पचास प्रतिशत से अनधिक अतिरिक्त राशि का शास्ति के रूप में संदाय करेगाः

परन्तु शास्ति के संदाय के लिए कोई आदेश, खंड (ख) के अधीन नियोजक को यह हेतुक दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर दिए बिना पारित नहीं किया जाएगा कि उसे क्यों न पारित किया जाए ।

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, “अनुसूचित बैंक” से ऐसा बैंक अभिप्रेत है जो तत्समय भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित हैं ।

1[(3क) उपधारा (3) के अधीन संदेय ब्याज और शास्ति, यथास्थिति, 3कर्मचारी या उसके आश्रित को संदत्त की जाएगी ]

[5. मजदूरी का हिसाब करने की पद्धति -2॥। 3[“मासिक मजदूरी” पद से इस अधिनियम में और इसके प्रयोजनों के लिए एक मास की सेवा के लिए संदेय समझी जाने वाली मजदूरी की रकम (चाहे वह मजदूरी मास के हिसाब से या किसी भी अन्य कालावधि के हिसाब से या मात्रानुपाती दरों से संदेय हो) अभिप्रेत है, और जिसका हिसाब निम्नलिखित रूप में किया जाएगा], अर्थात्

(क) जहां कि 3[कर्मचारी] उस नियोजक की, जो प्रतिकर का देनदार है, सेवा में दुर्घटना से ठीक पहले के बाहर मास से अन्यून की निरन्तर कालावधि के दौरान रहा है, वहां 3[कर्मचारी] की मासिक मजदूरी उस कुल मजदूरी का बारहवां भाग होगी, जो उस कालावधि के अन्तिम बारह मासों में नियोजक द्वारा उसे संदाय के लिए शोध्य हो गई है;

4[(ख) जहां कि दुर्घटना से ठीक पहले की उस सेवा की सम्पूर्ण निरन्तर कालावधि, जिसके दौरान 3[कर्मचारी] उस नियोजक की सेवा में था, जो प्रतिकर का देनदार है, एक मास से कम थी वहां, 3[कर्मचारी] की मासिक मजदूरी वह औसत मासिक रकम ॥। होगी जिसे उसी नियोजक द्वारा उसी काम में नियोजित कोई 3[कर्मचारी], या यदि कोई 3कर्मचारी इस प्रकार नियोजित नहीं था, तो उसी परिक्षेत्र में किसी वैसे ही काम में नियोजित कोई 3[कर्मचारी] दुर्घटना से ठीक पहले के बारह मास के दौरान उपार्जित कर रहा था;]

6[(ग)7[अन्य दशाओं में (जिनके अन्तर्गत वे दशाएं आती हैं, जिनमें कि आवश्यक जानकारी के अभाव में खण्ड (ख) के अधीन मासिक मजदूरी का हिसाब करना सम्भव नहीं है)] मासिक मजदूरी उस नियोजक से, जो प्रतिकर का देनदार है, दुर्घटना से ठीक पहले की सेवा की अन्तिम निरन्तर कालावधि के लिए उपार्जित कुल मजदूरी को ऐसी कालावधि में समाविष्ट दिनों की संख्या से विभाजित करने पर प्राप्त भजनफल की तीस गुनी होगी ।

 ।                                              ।                                               ।                                   ।

स्पष्टीकरण - सेवा की ऐसी कालावधि, जिसमें काम पर से चौदह दिन से अधिक की अनुपस्थिति-कालावधि के लिए विच्छेद नहीं हुआ है, 1[इस2[धारा]] के प्रयोजनों के लिए निरन्तर कालावधि समझी जाएगी ।

  1. 2000 के अधिनियम सं० 46 की धारा 4 द्वारा (8-12-2000 से) प्रतिस्थापित ।
  2. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 3 द्वारा मूल धारा 5 को उसकी उपधारा (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया और 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 4 द्वारा                 (1) कोष्ठकों और अंक का लोप किया गया ।
  3. 1939 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (30-6-1934 से) इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए कर्मकार की मासिक मजदूरी की गणना की जाएगी के स्थान पर                 प्रतिस्थापित । मोटे अक्षरों में शब्द 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 5 द्वारा धारा 4 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 1939 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (30-6-1934 से) समझी जाएगी शब्दों का लोप किया गया ।
  6. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 5 द्वारा मूल खण्ड (ख) को (ग) के रूप में पुनः अक्षरांकित किया गया ।
  7. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 6 द्वारा (1-6-1959 से) अन्य दशाओं में के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 5 द्वारा परन्तुक का लोप किया गया ।

 

 

 

 

।                                               ।                                               ।                                               ।

6. पुनर्विलोकन (1) पक्षकारों की बीच हुए किसी करार के अधीन के या आयुक्त के आदेश के अधीन के ऐसे अर्धमासिक संदाय का पुनर्विलोकन, जो इस अधिनियम के अधीन संदेय है, आयुक्त द्वारा, या तो नियोजक के या 4[कर्मचारी] के आवेदन पर, जिसके साथ अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी का यह प्रमाणपत्र होगा कि 4[कर्मचारी] की दशा में तब्दीली हो गई है, या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए, ऐसे प्रमाणपत्र के बिना किए गए आवेदन पर किया जा सकेगा ।

(2) कोई भी अर्धमासिक संदाय इस धारा के अधीन पुनर्विलोकन पर, इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, चालू रखा जा सकेगा, बढ़ाया जा सकेगा, घटाया जा सकेगा या समाप्त किया जा सकेगा, या यदि यह पाया जाए कि दुर्घटना के परिणामस्वरूप स्थायी निःशक्तता हो गई है तो, उसे ऐसी एकमुश्त राशि में संपरिवर्तित किया जा सकेगा । जिसका 4[कर्मचारी] हकदार है, किन्तु उस राशि में से ऐसी रकम कम कर दी जाएगी जो उसे अर्धमासिक संदायों के रूप में पहले ही प्राप्त हो चुकी है ।

7. अर्धमासिक संदायों का संराशीकरण - अर्धमासिक संदाय प्राप्त करने के किसी अधिकार का मोचन, पक्षकारों के बीच के करार द्वारा, या यदि पक्षकारों में करार नहीं हो पाता और संदाय कम से कम छह मास तक किए जाते रहे हैं तो दोनों पक्षकारों में से किसी के द्वारा आयुक्त को किए गए आवेदन पर, ऐसी एकमुश्त रकम के संदाय द्वारा किया जा सकेगा, जो, यथास्थिति, पक्षकारों द्वारा करार पाई जाए या आयुक्त द्वारा अवधारित की जाए ।

8. प्रतिकर का वितरण5[(1) किसी ऐसे 4[कर्मचारी] के बारे में, जिसकी मृत्यु क्षति के परिणामस्वरूप हो गई है, प्रतिकर का कोई भी संदाय और किसी स्त्री को या विधिक निर्योग्यता के अधीन व्यक्ति को प्रतिकर के रूप में एकमुश्त राशि का कोई भी संदाय आयुक्त के पास निक्षेप करने से अन्यथा नहीं किया जाएगा, और सीधे नियोजक द्वारा कर दिए गए किसी ऐसे संदाय के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह प्रतिकर का संदाय हैः

6[परन्तु मृत 4[कर्मचारी] की दशा में नियोजक किसी भी आश्रित को 7[ऐसे 4[कर्मचारी]  की तीन मास की मजदूरी के बराबर रकम का अभिदाय प्रतिकर मद्धे कर सकेगा और उतनी रकम], जितनी उस आश्रित को संदेय प्रतिकर से अधिक न हो, ऐसे प्रतिकर में से आयुक्त द्वारा काट ली जाएगी और नियोजक को प्रतिसंदत्त कर दी जाएगी]

(2) दस रुपए से अन्यून कोई अन्य ऐसी राशि, जो प्रतिकर के रूप में संदेय है, उस व्यक्ति के निमित्त, जो उसका हकदार है, आयुक्त के पास निक्षिप्त की जा सकेगी ।

(3) आयुक्त के पास निक्षिप्त किसी प्रतिकर के सम्बन्ध में आयुक्त की रसीद पर्याप्त उन्मोचन होगी ।

(4) आयुक्त 8[किसी मृत 4[कर्मचारी] के बारे में प्रतिकर के रूप में] उपधारा (1) के अधीन किसी धन के निक्षेप पर,  ॥। यदि वह आवश्यक समझे तो आश्रितों को ऐसी तारीख को, जिसे वह प्रतिकर का वितरण अवधारित करने के लिए नियत करे, अपने समक्ष उपसंजात होने के लिए अपेक्षित करने वाली सूचना का प्रकाशन या हर एक आश्रित पर उसकी तामील ऐसी रीति से कराएगा जैसी वह उचित समझे । यदि आयुक्त का समाधान किसी ऐसी जांच के पश्चात्, जिसे वह आवश्यक समझे हो जाता है कि कोई भी आश्रित विद्यमान नहीं है तो वह उस धन का अतिशेष उस नियोजक को, जिसके द्वारा वह संदत्त किया गया था, प्रतिसंदत्त कर देगा । आयुक्त किए गए सभी संवितरणों को विस्तारपू्र्वक दर्शित करते हुए एक विवरण नियोजक के आवेदन पर देगा ।

  1. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 3 द्वारा इस धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 4 द्वारा उपधारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 3 द्वारा जोड़ी गई उपधारा (2) का 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 4 द्वारा मूल उपधारा (1) से (3) तक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 6 द्वारा परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 6 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित ।
  9. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 6 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों का लोप किया गया ।

 

 

1[(5) किसी मृत 4[कर्मचारी] के बारे में निक्षिप्त प्रतिकर, उपधारा (4) के अधीन की गई किसी कटौती के अध्यधीन रहते हुए, मृत 4[कर्मचारी] के आश्रितों में या उनमें से किन्हीं में ऐसे अनुपात में, जिसे आयुक्त ठीक समझे, प्रभाजित कर दिया जाएगा या आयुक्त के स्वविवेकानुसार किसी एक आश्रित को आबंटित किया जा सकेगा ।

(6) जहां कि आयुक्त के पास निक्षिप्त किया गया कोई प्रतिकर किसी व्यक्ति संदेय है वहां आयुक्त वह धन उसके हकदार व्यक्ति को उस दशा में जिसमें कि वह व्यक्ति जिससे प्रतिकर संदेय है स्त्री या विधिक निर्योग्यता के अधीन व्यक्ति नहीं है, देगा और अन्य दशाओं में दे सकेगा ।

(7) जहां कि आयुक्त के पास निक्षिप्त कोई एकमुश्त राशि किसी स्त्री या विधिक निर्योग्यता के अधीन व्यक्ति को संदेय है वहां, ऐसी राशि उस स्त्री के या ऐसे व्यक्ति की निर्योग्यता के दौरान उस व्यक्ति के फायदे के लिए ऐसी रीति से, जैसी आयुक्त द्वारा निर्दिष्ट की जाए, विनिहित की जा सकेगी, उपयोजित की जा सकेगी या अन्यथा बरती जा सकेगी, और जहां कि विधिक निर्योग्यता के अधीन व्यक्ति को कोई अर्धमासिक संदाय संदेय है वहां, आयुक्त स्वप्रेरणा से या इस निमित्त अपने को किए गए किसी आवेदन पर, यह आदेश दे सकेगा कि संदाय उस निर्योग्यता के दौरान 2[कर्मचारी] के किसी आश्रित को या किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को, जिसे आयुक्त 1[कर्मचारी] के कल्याणार्थ उपबन्ध करने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त समझे, किया जाए ]

3[(8)] जहां कि इस निमित्त अपने को किए गए किसी आवेदन पर या अन्यथा आयुक्त का समाधान हो जाता है कि प्रतिकर के रूप में दी गई किसी राशि के वितरण के सम्बन्ध में, या उस रीति के सम्बन्ध में, जिसमें ऐसे किसी आश्रित को संदेय कोई राशि विनिहित की जानी, उपयोजित की जानी या अन्यथा बरती जानी है, आयुक्त के आदेश में फेरफार, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो माता या पिता है संतान की उपेक्षा के कारण, या किसी आश्रित की परिस्थितियों में फेरफार के कारण, या किसी अन्य पर्याप्त हेतुक से किया जाना चाहिए वहां, आयुक्त पूर्ववर्ती आदेश में फेरफार के लिए ऐसे आदेश कर सकेगा, जैसे वह मामले की परिस्थितियों में न्यायसंगत समझे :

परन्तु किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला ऐसा कोई भी आदेश तब तक न किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को इस बात का हेतुक दर्शित करने के लिए अवसर न दे दिया गया हो कि ऐसा आदेश क्यों न किया जाए, और न वह किसी ऐसी दशा में किया जाएगा, जिसमें कि उस आदेश में आश्रित द्वारा किसी ऐसी राशि का प्रतिसंदाय अन्तर्वलित होता हो जो उस आश्रित को पहले ही संदत्त की जा चुकी हैं ।

4[(9) जहां कि आयुक्त किसी आदेश में उपधारा (8) के अधीन इस तथ्य के कारण फेरफार करता है कि व्यक्ति को प्रतिकर का संदाय कपट, प्रतिरूपण या अन्य अनुचित साधनों द्वारा अभिप्राप्त किया गया है, वहां ऐसे व्यक्ति को या उसके निमित्त इस प्रकार दी गई कोई रकम आगे धारा 31 में उपबन्धित रीति से वसूल की जा सकेगी]

9. प्रतिकर का समनुदिष्ट, कुर्क या भारित किया जाना - इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई भी एकमुश्त राशि या अर्धमासिक संदाय, इस अधिनियम द्वारा तथा उपबन्धित के सिवाय, किसी भी प्रकार समनुदिष्ट या भारित किए जाने के योग्य या कुर्की के दायित्व के अधीन नहीं होगा, और न 1[कर्मचारी] से भिन्न किसी व्यक्ति को विधि की क्रिया द्वारा संक्रान्त होगा और न कोई दावा उसके विरुद्ध मुजरा किया जाएगा ।

10. सूचना और दावा - (1) 5[प्रतिकर के लिए कोई भी दावा तब तक आयुक्त द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा जब तक कि दुर्घटना की सूचना उसके घटित होने के पश्चात् यथासाध्य शीघ्र उस रीति से, जो इसमें पश्चात् उपबन्धित की गई है, न दे दी गई हो और जब तक कि दावा दुर्घटना होने के 6[दो वर्ष] के भीतर, या मृत्यु हो जाने की दशा में, मृत्यु की तारीख से 5[दो वर्ष] के भीतर, उसके समक्ष कर न दिया गया होः]

  1. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 4 द्वारा मूल उपधारा (5) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 4 द्वारा उपधारा (6) को उपधारा (8) के रूप में पुनः संख्यांकित किया गया ।
  4. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा मूल शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 8 द्वारा (1-6-1959 से) एक वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

परन्तु जहां कि दुर्घटना ऐसे रोग का लगना है, जिसके सम्बन्ध में धारा 3 की उपधारा (2) के उपबन्ध लागू होते हैं वहां, दुर्घटना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उन दिनों में से पहले दिन को हुई थी, जिनके दौरान 1[कर्मचारी] उस रोग द्वारा कारित निःशक्तता के परिणामस्वरूप काम पर से निरन्तर अनुपस्थित रहा थाः

1[परन्तु यह भी कि ऐसा कोई रोग लगने के कारण हुई ऐसी आंशिक निःशक्तता की दशा में, जो 1[कर्मचारी] को काम से अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर नहीं करती, दो वर्ष की कालावधि की गणना उस दिन से की जाएगी जिसको 1[कर्मचारी] निःशक्तता की सूचना अपने नियोजक को देता हैः

परन्तु यह भी कि यदि कोई 1[कर्मचारी], जो किसी नियोजन में, धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन उस नियोजन के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट निरन्तर कालावधि के लिए नियोजित किए जा चुकने पर, इस प्रकार नियोजित नहीं रह जाता और उस नियोजन में विशिष्टतः होने वाले किसी उपजीविकाजन्य रोग के लक्षण नियोजन की समाप्ति के दो वर्ष के भीतर उसमें विकसित हो जाते हैं, दुर्घटना उस दिन हुई समझी जाएगी जिस दिन उन लक्षणों का पता पहले पहल चला थाः]

2[परन्तु यह भी कि

(क) यदि दावा 1[कर्मचारी] की ऐसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप हुई मृत्यु के बारे में 3[किया] गया है जो नियोजन के परिसर में या किसी ऐसे स्थान में हुई थी, जहां 1[कर्मचारी] दुर्घटना के समय नियोजक या उसके द्वारा नियोजित किसी व्यक्ति के नियंत्रण के अधीन काम कर रहा था और 1[कर्मचारी] ऐसे परिसर में, या ऐसे स्थान में, या नियोजक के किसी परिसर में मरा था, या उस परिसर या स्थान का, जहां दुर्घटना हुई थी, सामीप्य छोड़े बिना मरा था, अथवा

(ख) यदि नियोजक को 4[या कई नियोजकों में से किसी एक को, व्यवसाय या कारबार की किसी ऐसी शाखा के प्रबन्ध के लिए जिसमें क्षत 5[कर्मचारी] नियोजित था, नियोजक के प्रति उत्तरदायी किसी व्यक्ति को] दुर्घटना का ज्ञान किसी अन्य स्त्रोत से, उस समय या उस समय के आसपास हो गया था, जब वह दुर्घटना हुई थी,

तो सूचना का अभाव या उसमें कोई त्रुटि या अनियमितता 6[दावे के ग्रहण] किए जाने के लिए वर्जन न होगीः

            परन्तु यह भी कि इस बात के होते हुए भी कि इस उपधारा में यथाउपबन्धित सम्यक् समय के भीतर सूचना नहीं दी गई है या दावा नहीं 7[किया] गया है, आयुक्त किसी भी मामले में प्रतिकर के किसी भी दावे को उस दशा में 8[ग्रहण] और विनिश्चित कर सकेगा, जिसमें उसका समाधान हो जाए कि, यथास्थिति, वैसे सूचना देने या दावा 9[करने] में असफलता पर्याप्त हेतुक से हुई थी ।

            (2) ऐसी हर सूचना में क्षत व्यक्ति का नाम और पता दिया होगा और सरल भाषा में क्षति का कारण और वह तारीख जिसको दुर्घटना हुई, कथित होगी और उसकी तामील नियोजक पर या कई नियोजकों में से 10[किसी एक] पर, या व्यवसाय या कारबार की किसी ऐसी शाखा के, जिसमें क्षत 2[कर्मचारी] नियोजित था, प्रबन्ध के लिए नियोजक के प्रति 11॥। उत्तरदायी किसी व्यक्ति पर की जाएगी ।

  1. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 5 द्वारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।
  3. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  6. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा कार्यवाहियों का किया जाना के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा संस्थित किया के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा स्वीकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  9. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा संस्थित करने के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  10. 1924 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा और अनुसूची 1 द्वारा किसी एक या के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  11. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 5 द्वारा प्रत्यक्षतःशब्द का लोप किया गया ।

1[(3) राज्य सरकार यह अपेक्षा कर सकेगी कि विहित वर्ग के नियोजक अपने परिसर में, जिसमें 2[कर्मचारी] नियोजित हैं, विहित प्ररूप में एक सूचना-पुस्तक रखेंगे जिस तक परिसर में नियोजित किसी भी क्षत 2[कर्मचारी] की या सद्भावपूर्वक उसकी ओर से कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति की सभी युक्तियुक्त समयों पर आसानी से पहुंच हो सकेगी ।

(4) इस धारा के अधीन सूचना की तामील, उस व्यक्ति के, जिस पर उसकी तामील की जानी है, निवास-स्थान या किसी कार्यालय या कारबार के स्थान में परिदत्त करके या उस पते पर रजिस्ट्रीकृत डाक से भेजकर, या जहां कि सूचना-पुस्तक रखी जाती है वहां सूचना-पुस्तक में प्रविष्टि करके, की जा सकेगी

2[10. प्राणान्तक दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में विवरणों की नियोजकों से अपेक्षा करने की शक्ति - (1) जहां कि आयुक्त को किसी स्त्रोत से यह इत्तिला प्राप्त होती है कि कोई 2[कर्मचारी] अपने नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना के परिणामस्वरूप मर गया है वहां वह उस 2[कर्मचारी] के नियोजक को उससे यह अपेक्षा करने वाली सूचना रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेज सकेगा कि वह विहित प्ररूप में ऐसा विवरण, जिसमें वे परिस्थितियां जिनमें 2[कर्मचारी] की मृत्यु हुई बताई गई हो और यह उपदर्शित किया गया हो कि नियोजक की राय में वह उस मृत्यु के कारण प्रतिकर निक्षिप्त करने का दायी है या नहीं, उस सूचना की तामील से तीस दिन के भीतर निवेदित करे ।

(2) यदि नियोजक की राय हो कि वह प्रतिकर निक्षिप्त करने का दायी है तो वह सूचना की तामील से तीस दिन के भीतर ऐसा निक्षेप करेगा ।

(3) यदि नियोजक की राय हो कि वह प्रतिकर निक्षिप्त करने का दायी नहीं है, तो वह अपने विवरण में उन आधारों को उपदर्शित करेगा जिन पर वह दायित्व से इन्कार करता है ।

(4) जहां कि नियोजक ने दायित्व से इस प्रकार इन्कार किया है, वहां आयुक्त ऐसी जांच के पश्चात् जैसी वह ठीक समझे मृत 2[कर्मचारी] के आश्रितों में से किसी को भी, इत्तिला दे सकेगा कि आश्रित प्रतिकर का दावा करने के लिए स्वतंत्र है और उन्हें ऐसी अन्य अतिरिक्त इत्तिला, जैसी वह ठीक समझे, दे सकेगा ।

10. प्राणान्तक दुर्घटनाओं और गम्भीर शारीरिक क्षतियों की रिपोर्टें - (1) जहां कि किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा यह अपेक्षित है कि नियोजक के परिसर में घटित किसी ऐसी दुर्घटना की, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु या गम्भीर शारीरिक क्षतिट हो गई हो, सूचना किसी प्राधिकारी को नियोजक द्वारा या उसकी ओर से दी जाए, वहां, वह व्यक्ति, जो सूचना देने के लिए अपेक्षित है, मृत्यु 11[या गम्भीर शारीरिक क्षति] के सात दिन के भीतर आयुक्त को एक रिपोर्ट भेजेगा जिसमें वे परिस्थितियां बताई जाएंगी जिनमें मृत्यु 11[या गम्भीर शारीरिक क्षति] हुई है :

परन्तु जहां कि राज्य सरकार ने ऐसा विहित किया हो वहां सूचना देने के लिए अपेक्षित व्यक्ति ऐसी रिपोर्ट आयुक्त को भेजने के बजाय उस प्राधिकारी को भेज सकेगा जिसे सूचना देने के लिए वह व्यक्ति अपेक्षित है ।

11[स्पष्टीकरण - गंभीर शारीरिक क्षति से ऐसी क्षति अभिप्रेत है जिसमें किसी अंग के उपयोग की स्थायी हानि या किसी अंग की स्थायी क्षति अथवा दृष्टि या श्रवण शक्ति की स्थायी हानि या उसे स्थायी क्षति अथवा किसी अंग में अस्थिभंग अथवा क्षत व्यक्ति की अपने काम से बीस दिन से अधिक की कालावधि के लिए मजबूरी के कारण अनुपस्थिति अन्तर्वलित है या अन्तर्वलित होना पूर्णतः अधिसंभाव्य है]

(2) राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपधारा (1) के उपबन्धों का विस्तार, उस उपधारा की परिधि में आने वाले परिसरों से भिन्न परिसरों के किसी वर्ग पर कर सकेगी, और ऐसी अधिसूचना द्वारा उन व्यक्तियों को विनिर्दिष्ट कर सकेगी जो आयुक्त को रिपोर्ट भेजेंगे ।

4[(3) इस धारा में की कोई भी बात उन कारखानों को लागू न होगी जिनको 1[कर्मचारी] राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) लागू होता है]

  1. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 7 द्वारा उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 8 द्वारा अंतःस्थापित ।
  3. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 9 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 9 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।

 

 

 

11. चिकित्सीय परीक्षा - (1) जहां कि 2[कर्मचारी] ने दुर्घटना की सूचना दी है वहां, यदि नियोजक उस समय से, जब सूचना की तामील हुई थी, तीन दिन का अवसान होने के पहले उससे यह प्रस्थापना करता है कि किसी अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा उसकी परीक्षा मुफ्त कराई जाएगी, तो, वह अपने को ऐसी परीक्षा के लिए प्रस्तुत करेगा और कोई भी 2[कर्मचारी], जो इस अधिनियम के अधीन अर्धमासिक संदाय पाता है, यदि उससे ऐसी अपेक्षा की जाए, तो समय-समय पर अपने को ऐसी परीक्षा के लिए प्रस्तुत करेगाः

परन्तु 2[कर्मचारी] इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार से अन्यथा, या उन अन्तरालों से, जो विहित किए जाएं, लघुतर अन्तरालों पर चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा परीक्षा कराने के लिए अपने को प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित नहीं किया जाएगा ।

(2) यदि 2[कर्मचारी] नियोजक द्वारा उपधारा (1) के अधीन या आयुक्त द्वारा किसी भी समय ऐसा करने के लिए अपेक्षित किए जाने पर, अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा अपनी परीक्षा कराने के लिए अपने को प्रस्तुत करने से इन्कार करता है या उसमें किसी प्रकार से बाधा डालता है तो ऐसे इन्कार या ऐसी बाधा के बने रहने के दौरान उसका प्रतिकर का अधिकार उस दशा के सिवाय निलम्बित रहेगा जिसमें इन्कार की दशा में वह इस प्रकार अपने को प्रस्तुत करने से किसी पर्याप्त कारण द्वारा निवारित हुआ था ।

(3) यदि 2[कर्मचारी] उस कालावधि के अवसान से पूर्व, जिसके भीतर वह चिकित्सीय परीक्षा के लिए अपने को प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित किए जाने के लिए उपधारा (1) के अधीन दायित्वाधीन है, इस प्रकार परीक्षित हुए बिना उस स्थान के, जिसमें वह नियोजित था, सामीप्य से स्वेच्छापूर्वक चला जाता है तो उसका प्रतिकर का अधिकार तब तक के लिए निलम्बित रहेगा जब तक वह लौट नहीं आता और ऐसी परीक्षा कराने के लिए अपने को पेश नहीं कर देता ।

(4) जहां कि ऐसा 2[कर्मचारी], जिसका प्रतिकर का अधिकार उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन निलम्बित हो गया है, चिकित्सीय परीक्षा के लिए अपने को वैसे प्रस्तुत किए बिना, जैसा उन उपधाराओं में से किसी के द्वारा अपेक्षित है, मर जाता है वहां, यदि आयुक्त ठीक समझे तो वह मृत 2[कर्मचारी] के आश्रितों को प्रतिकर का संदाय निर्दिष्ट कर सकेगा ।

(5) जहां कि प्रतिकर का अधिकार उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन निलम्बित है वहां निलम्बन की कालावधि के लिए कोई भी प्रतिकर संदेय नहीं होगा और यदि निलम्बित की कालावधि धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) में निर्दिष्ट प्रतीक्षा-कालावधि के अवसान के पूर्व प्रारम्भ होती है तो प्रतीक्षा-कालावधि में उतनी कालावधि बढ़ा दी जाएगी जिसके दौरान निलम्बन बना रहता है ।

(6) जहां कि क्षत 2[कर्मचारी] ने उस अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा अपनी परिचर्या कराने से इन्कार कर दिया है, जिसकी मुफ्त सेवाएं उसे नियोजक द्वारा प्रस्थापित की गई हैं, या ऐसी प्रस्थापना प्रतिगृहीत कर चुकने के पश्चात् ऐसे चिकित्सा-व्यवसायी के अनुदेशों की जानबूझकर अवहेलना की है वहां यदि यह साबित कर दिया जाता है कि 2[कर्मचारी] की परिचर्या किसी अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा तत्पश्चात् नियमित रूप से नहीं हुई है या उसकी ऐसी परिचर्या तो हुई है पर वह अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी के अनुदेशों का अनुसरण करने में जानबूझकर असफल रहा है और ऐसा इन्कार, अवहेलना या असफलता उस मामले की परिस्थितियों में अयुक्तियुक्त थी और उससे क्षति गुरूतर हो गई है तो क्षति और उसके परिणामस्वरूप हुई निःशक्तता के बारे में यह समझा जाएगा कि वे उसी प्रकार की और उसी अस्तित्वावधि की है, जिस प्रकार की और जिस अस्तित्वावधि की उनके होने की प्रत्याशा उस दशा में युक्तियुक्त रूप में की जा सकती थी जिसमें कि 2[कर्मचारी] की परिचर्या किसी अर्हित चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा नियमित रूप से की गई होती 3[और उसके अनुदेशों का अनुसरण 2[कर्मचारी] ने किया होता], और यदि कोई प्रतिकर संदेय है तो वह तदनुसार संदेय होगा ।

12. संविदा करना - (1) जहां कि कोई व्यक्ति (जिसे इसके पश्चात् इस धारा में मालिक कहा गया है), अपने व्यवसाय या कारबार के अनुक्रम में या उसके प्रयोजनों के लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ (जिसे इसके पश्चात् इस धारा में ठेकेदार कहा गया है)

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 6 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 6 द्वारा अन्तःस्थापित ।

 

किसी ऐसे पूरे काम या उसके किसी भाग को, जो मालिक के व्यवसाय या कारबार का मामूली तौर से भाग है, ठेकेदार द्वारा या उसके अधीन निष्पादन करने के लिए संविदा करता है वहां, उस काम के निष्पादन में नियोजित 2[कर्मचारी] को मालिक ऐसे प्रतिकर का देनदार होगा जिसका देनदार वह होता यदि वह 2[कर्मचारी] उसके द्वारा अव्यवहित रूप से नियोजित किया गया होता; और जहां कि मालिक से प्रतिकर के लिए दावा किया जाता है वहां यह अधिनियम, इसके सिवाय कि प्रतिकर की रकम का हिसाब 2[कर्मचारी] की उस नियोजक के अधीन मजदूरी के प्रति निर्देश से किया जाएगा जिसके द्वारा वह अव्यवहित रूप से नियोजित है, इस प्रकार लागू होगा मानो नियोजक के प्रति निर्देशों के लिए मालिक के प्रति निर्देश प्रतिस्थापित कर दिए गए हों ।

(2) जहां कि मालिक इस धारा के अधीन प्रतिकर का देनदार है वहां वह ठेकेदार से या किसी अन्य व्यक्ति से, जिससे  2[कर्मचारी] प्रतिकर वसूल कर सकता था, अपनी क्षतिपूर्ति कराने का हकदार होगा, और जहां कि ठेकेदार, जो स्वयं मालिक है, इस धारा के अधीन प्रतिकर का या किसी मालिक की क्षतिपूर्ति करने का दायी है वहां वह अपनी क्षतिपूर्ति अपने साथ ठेकेदार का सम्बन्ध रखने वाले किसी ऐसे व्यक्ति से जिससे 2[कर्मचारी] प्रतिकर वसूल कर सकता था, कराने का हकदार होगा] और किसी ऐसी क्षतिपूर्ति के अधिकार और रकम विषयक सभी प्रश्न करार के अभाव में आयुक्त द्वारा तय किए जाएंगे ।

(3) इस धारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी 2[कर्मचारी] को मालिक के बजाय ठेकेदार से प्रतिकर वसूल करने से निवारित करती है ।

(4) यह धारा किसी ऐसी दशा में लागू नहीं होगी जिसमें कि दुर्घटना उस परिसर पर, में या के आसपास न होकर अन्यत्र हुई है, जिस पर मालिक ने, यथास्थिति, काम के निष्पादन का उपक्रम किया है या प्रायिकतः करता है या जो अन्यथा उसके नियंत्रण या प्रबंध के अधीन है ।

13. पर-व्यक्ति के विरुद्ध नियोजक के उपचार - जहां कि 2[कर्मचारी] ने किसी ऐसी क्षति के लिए प्रतिकर वसूल किया है जो ऐसी परिस्थितियों में कारित हुई थी जिनमें उसके लिए नुकसानी के लिए संदाय करने का किसी ऐसे व्यक्ति पर विधिक दायित्व सृष्ट हुआ था जो उस व्यक्ति से भिन्न है जिसने प्रतिकर दिया है वहां वह व्यक्ति जिसने प्रतिकर दिया है और कोई ऐसा व्यक्ति, जिससे धारा 12 के अधीन क्षतिपूर्ति करने की अपेक्षा की गई है उस व्यक्ति से अपनी क्षतिपूर्ति कराने का हकदार होगा जो नुकसानों के लिए संदाय करने का यथापूर्वोक्त रूप में दायी है ।

14. नियोजक का दिवाला - (1) जहां कि नियोजक ने किसी 2[कर्मचारी] के प्रति इस अधिनियम के अधीन अपने किसी दायित्व के बारे में किन्हीं बीमाकर्ताओं से संविदा की है, वहां नियोजक के दिवालिया हो जाने की, या अपने लेनदारों के साथ प्रशमन करने की, या ठहराव करने की कोई स्कीम बनाने की दशा में, या यदि नियोजक कोई कम्पनी है तो कम्पनी का परिसमापन प्रारम्भ होने की दशा में, उस दायित्व के बारे में बीमाकर्ताओं के विरुद्ध नियोजक के अधिकार 2[कर्मचारी] को, दिवाले या कम्पनियों के परिसमापन से सम्बद्ध किसी तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी बात के होते हुए भी, अंतरित और उसमें निहित हो जाएंगे, और ऐसे किसी अंतरण पर बीमाकर्ताओं के वे ही अधिकार और उपचार होंगे, और वे उन्हीं दायित्वों के अध्यधीन ऐसे होंगे, मानो वे नियोजक हों, किन्तु ऐसे कि बीमाकर्ता 2[कर्मचारी] के प्रति उस दायित्व से अधिक दायित्व के अधीन न होंगे जिसके अधीन वे नियोजक के प्रति होते ।

(2) यदि 2[कर्मचारी] के प्रति बीमाकर्ताओं का दायित्व 2[कर्मचारी] के प्रति नियोजक के दायित्व से कम है तो 2कर्मचारी दिवाला सम्बन्धी कार्यवाहियों में या समापन में अतिशेष को साबित कर सकेगा ।

(3) जहां कि ऐसे किसी मामले में, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, बीमाकर्ताओं के साथ नियोजक की (प्रीमियमों के संदाय के लिए अनुबंध से भिन्न) संविदा, उसके किन्हीं निबन्धनों या शर्तों का अननुपालन नियोजक द्वारा किए जाने के कारण शून्य या शून्यकरणीय है वहां, उस उपधारा के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो वह संविदा शून्य या शून्यकरणीय न हो, और 2[कर्मचारी] को दी गई रकम को बीमाकर्ता दिवाले की कार्यवाहियों में या समापन में साबित करने के हकदार होंगेः

  1. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 9 द्वारा अन्तःस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।

 

परन्तु इस उपधारा के उपबन्ध किसी ऐसी दशा में लागू नहीं होंगे जिसमें 2[कर्मचारी] दुर्घटना होने और उसके परिणामस्वरूप हुई निःशक्ता की सूचना दिवाले या समापन की कार्यवाहियों के संस्थित किए जाने की जानकारी पाने के पश्चात् यथासाध्य शीघ्र बीमाकर्ताओं को देने में असफल रहता है ।

(4) यह समझा जाएगा कि उन ऋणों के अन्तर्गत, जो किसी दिवालिए की सम्पत्ति के वितरण में या परिसमापनाधीन किसी कम्पनी की आस्तियों के वितरण में प्रसिडेंसी नगर दिवाला अधिनियम, 1909 (1909 से 3) की धारा 49 के अधीन या प्रान्तीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) की धारा 61 के अधीन या 1[कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 530] के अधीन अन्य सब ऋणों पर पूर्विकता देकर दिए जाने हैं, किसी ऐसे प्रतिकर मद्धे शोध्य रकम आती है जिसके लिए दायित्व, यथास्थिति, दिवालिए के न्यायनिर्णयन के आदेश की तारीख से पहले या परिसमापन के प्रारम्भ की तारीख से पहले प्रोद्भूत हो गया था और वे अधिनियम तदनुसार प्रभावी होंगे ।

(5) जहां कि प्रतिकर अर्धमासिक संदाय है वहां उस मद्धे शोध्य रकम इस धारा के प्रयोजनों के लिए उतनी एकमुश्त राशि की रकम मानी जाएगी जितनी के लिए अर्धमासिक संदाय का, यदि यह मोचनीय होता, उस दशा में मोचन किया जा सकता जिसमें कि धारा 7 के अधीन उस प्रयोजन के लिए कोई आवेदन किया गया होता और ऐसी रकम के विषय में आयुक्त का प्रमाणपत्र उसका निश्चायक सबूत होगा ।

(6) उपधारा (4) के उपबन्ध ऐसी रकम की दशा में लागू होंगे जिसे बीमाकर्ता उपधारा (3) के अधीन साबित करने का हकदार है, किन्तु अन्यथा वे उपबन्ध वहां लागू नहीं होंगे जहां कि दिवालिए ने या परिसमापनाधीन कम्पनी ने बीमाकर्ताओं के साथ उपधारा (1) में यथानिर्दिष्ट संविदा कर ली है ।

(7) यह धारा वहां लागू नहीं होगी जहां कि कम्पनी का परिसमापन केवल पुनर्गठन या किसी दूसरी कम्पनी से समामेलन के प्रयोजनों के लिए स्वेच्छया किया जाता है ।

2[14. प्रतिकर नियोजक द्वारा अन्तरित आस्तियों पर प्रथम भार होगा - जहां कि नियोजक अपनी आस्तियों का अन्तरण किसी ऐसे प्रतिकर मद्धे शोध्य किसी रकम के संदाय से पूर्व कर देता है जिसके लिए दायित्व अन्तरण की तारीख से पूर्व प्रोद्भूत हो गया था वहां ऐसी रकम का इस प्रकार अन्तरित आस्तियों के उस भाग पर, जो स्थावर सम्पत्ति से मिलकर बना है, किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रथम भार होगी

15. मास्टरों और नाविकों से सम्बद्ध विशेष उपबन्ध - यह अधिनियम उन 3[कर्मचारियों] की दशा में, जो 4॥। पोतों के मास्टर या नाविक हैं, निम्नलिखित उपान्तरों के अध्यधीन रहते हुए, लागू होगा, अर्थात्

(1) दुर्घटना की और प्रतिकर के दावे की सूचना की तामील वहां के सिवाय जहां कि क्षत व्यक्ति पोत का मास्टर है, पोत के मास्टर पर ऐसे की जाएगी, मानो वह नियोजक हो, किन्तु जहां कि पोत पर ही दुर्घटना हुई है और निःशक्तता प्रारम्भ हुई है वहां किसी नाविक के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि वह दुर्घटना की कोई सूचना दे ।

(2) मास्टर या नाविक की मृत्यु हो जाने की दशा में प्रतिकर के लिए दावा दावेदार को मृत्यु का समाचार मिलने के पश्चात् 5[एक वर्ष] के भीतर, या जहां कि पोत सब जनों के साथ नष्ट हो गया है या नष्ट हो गया समझा जाता है वहां उस तारीख से, जिस तारीख को पोत ऐसे नष्ट हुआ या ऐसे नष्ट हुआ समझा जाता है, अट्ठारह मास के भीतर किया जाएगाः

6[परन्तु इस बात के होते हुए भी कि कोई दावा इस उपधारा में यथाउपबन्धित सम्यक् समय के भीतर नहीं किया गया है आयुक्त किसी भी मामले में प्रतिकर के किसी दावे को उस दशा में ग्रहण कर सकेगा जिसमें उसका समाधान हो जाए कि दावा वैसे करने में असफलता पर्याप्त हेतुक से हुई थी]

  1. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 7 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 10 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 10 द्वारा रजिस्ट्रीकृत शब्द का लोप किया गया ।
  5. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 11 द्वारा (1-6-1959 से) छह मास के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 11 द्वारा (1-6-1959 से) जोड़ा गया ।

 

 

 

 

(3) जहां कि क्षत मास्टर या नाविक 1[भारत के किसी भाग में या] 2[किसी विदेश में] उन्मोचित कर दिया जाता है या पीछे छोड़ दिया जाता है वहां, उस भाग में के किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा या उस विदेश में के किसी कौन्सलीय आफ़िसर द्वारा लिए गए और उस व्यक्ति द्वारा, जिसके द्वारा वे लिए जाते हैं, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार को पारेषित कोई भी अभिसाक्ष्य, दावा प्रवर्तित कराने की किन्हीं भी कार्यवाहियों में साक्ष्य में ग्राह्य होंगे-

(क) यदि अभिसाक्ष्य उस न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या कौन्सलीय आफिसर के हस्ताक्षर द्वारा अधिप्रमाणीकृत हो जिसके सामने वह दिया गया है;

(ख) यदि, यथास्थिति, प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को स्वयं या अपने अभिकर्ता द्वारा साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल गया था; तथा

(ग) यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही के दौरान दिया गया था तो यह साबित होने पर कि अभिसाक्ष्य अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था,

और किसी भी मामले में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर या पदीय हैसियत को साबित करना आवश्यक नहीं होगा जिसके द्वारा ऐसा कोई अभिसाक्ष्य हस्ताक्षरित किया गया प्रतीत होता है और ऐसे व्यक्ति द्वारा यह प्रमाणपत्र कि प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिला था और यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही में दिया गया था तो यह कि वह अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था, तब के सिवाय जब कि तत्प्रतिकूल साबित कर दिया जाता है, इस बात का पर्याप्त साक्ष्य होगा कि उसे वह अवसर मिला था और अभिसाक्ष्य इस प्रकार दिया गया था ।

 3।                                 ।                                               ।                                               ।

4[(4)] उस कालावधि के लिए कोई 5[अर्धमासिक संदाय] संदेय नहीं होगा जिसके दौरान पोत का स्वामी, क्षत मास्टर या नाविक के भरण-पोषण के व्ययों को वाणिज्यिक पोत परिवहन सम्बन्धी 6॥। किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन चुकाने का दायी है ।

7[(5) कोई भी प्रतिकर किसी ऐसी क्षति के लिए इस अधिनियम के अधीन संदेय न होगा, जिसके लिए उपदान, भत्ते या पेंशन के संदाय के लिए उपबन्ध पेंशन्स (नेवी, आर्मी, एयर फोर्स ऐण्ड मर्केन्टाइल मैरीन), ऐक्ट, 1939 (2 और 3, जार्ज 6, अ० 83) के अधीन बनाई गई वार पेंशन्स ऐण्ड डिटेन्शन अलाउन्सेज़ (मर्केन्टाइल मैरीन, एट्सेट्रा) स्कीम, 1939 या वार पेन्शन्स ऐण्ड डिटेंशन अलाउन्सेज़ (इण्डियन सीमेन, एट्सेट्रा) स्कीम, 1941 के अधीन या केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाई गई युद्ध पेंशन और निरोध भत्ते (भारतीय नाविक) स्कीम, 1942 के अधीन किया गया है ।

(6) इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित समय के भीतर सूचना देने या दावा करने या कार्यवाही प्रारम्भ करने में असफलता किसी वैयक्तिक क्षति की बाबत इस अधिनियम के अधीन कार्यवाही के चलने के लिए वर्जन न होगी, यदि

(क) उस क्षति की बाबत संदाय करने के लिए कोई आवेदन पूर्ववर्ती खंड में निर्दिष्ट स्कीमों में से किसी के अधीन कर दिया गया है, तथा

  1. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 4 द्वारा (1-7-1984 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 7 द्वारा खण्ड (4) का लोप किया गया ।
  4. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 7 द्वारा खण्ड (5) को खण्ड (4) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।
  5. 1924 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा मासिक संदाय के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा भाग क राज्यों और भाग ग राज्यों में शब्दों का लोप किया गया ।
  7. 1942 के अधिनियम सं० 1 की धारा 2 द्वारा (3 सितम्बर, 1939 से) पूर्ववर्ती खण्ड के स्थान पर प्रतिस्थापित । जिसे 1939 के अधिनियम सं० 42 की धारा 2 द्वारा उसी तारीख से अन्तःस्थापित किया गया था ।

 

 

 

 

(ख) राज्य सरकार प्रमाणित कर दे कि उक्त आवेदन इस युक्तियुक्त विश्वास में किया गया था, कि क्षति ऐसी थी जिसके लिए वह स्कीम, जिसके अधीन आवेदन किया गया था, संदायों के लिए उपबन्ध करती है, और यह कि इस आधार पर कि वह क्षति ऐसी क्षति नहीं थी वह आवेदन नामंजूर कर दिया गया था या उस आवेदन के अनुसरण में किए जाने वाले संदाय बन्द कर दिए गए थे, तथा

(ग) उस तारीख से जिस तारीख को राज्य सरकार का उक्त प्रमाणपत्र कार्यवाही प्रारम्भ करने वाले व्यक्ति को दिया गया था, एक मास के भीतर इस अधिनियम के अधीन कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जाती

1[15. वायुयानों के कैप्टनों और कर्मीदल के अन्य सदस्यों से संबंधित विशेष उपबंध - यह अधिनियम उन 2[कर्मचारियों] की दशा में, जो वायुयानों के कैप्टन या कर्मीदल के अन्य सदस्य हैं, निम्नलिखित उपान्तरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा, अर्थात्ः-

(1) दुर्घटना की और प्रतिकर के दावे की सूचना की तामील, यहां के सिवाय जहां क्षत व्यक्ति वायुयान का कैप्टन है, वायुयान के कैप्टन पर ऐसे की जाएगी, मानो वह नियोजक हो, किन्तु जहां वायुयान पर ही दुर्घटना हुई है और निःशक्तता प्रारम्भ हुई है वहां कर्मीदल के किसी सदस्य के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि वह दुर्घटना की कोई सूचना दे ।

(2) कैप्टन या कर्मीदल के अन्य सदस्य की मृत्यु हो जाने की दशा में, प्रतिकर के लिए दावा, दावेदार को मृत्यु का समाचार मिलने के पश्चात् एक वर्ष के भीतर, या जहां वायुयान समोजनों के साथ नष्ट हो गया है या नष्ट हुआ समझा जाता है । वहां उस तारीख से, जिस तारीख को वायुयान ऐसे नष्ट हुआ था या ऐसे नष्ट हुआ समझा जाता है, अठारह मास के भीतर किया जाएगाः

परन्तु इस बात के होते हुए भी कि कोई दावा इस उपधारा में उपबंधित सम्यक् समय के भीतर नहीं किया गया है, आयुक्त किसी भी मामले में प्रतिकर के किसी दावे को उस दशा में ग्रहण कर सकेगा जिसमें उसका यह समाधान हो जाता है कि दावा इस प्रकार करने में असफलता पर्याप्त हेतुक से हुई थी ।

(3) जहां वायुयान का क्षत कैप्टन या कर्मीदल का अन्य सदस्य भारत के किसी भाग में अथवा किसी अन्य देश में निर्मुक्त कर दिया जाता है या पीछे छोड़ दिया जाता है वहां उस भाग में के किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा अथवा उस विदेश में के किसी कौन्सलीय आफिसर द्वारा लिए गए और उस व्यक्ति द्वारा, जिसके द्वारा वे लिए जाते हैं, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार को पारेषित कोई भी अभिसाक्ष्य, दावा प्रवर्तित कराने की किन्हीं भी कार्यवाहियों में साक्ष्य में उस दशा में ग्राह्य होंगे जिसमें,

(क) अभिसाक्ष्य उस न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या कौन्सलीय आफिसर के हस्ताक्षर द्वारा अधिप्रमाणीकृत किया जाता है जिसके समक्ष वह दिया गया है;

(ख) यथास्थिति, प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को स्वयं अथवा अपने अभिकर्ता द्वारा साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल गया था;

(ग) यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही के दौरान दिया गया था तो, यह साबित हो जाने पर कि अभिसाक्ष्य अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था,

और किसी भी मामले में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर या पदीय हैसियत को साबित करना आवश्यक नहीं होगा जिसके द्वारा ऐसा कोई अभिसाक्ष्य हस्ताक्षरित किया गया प्रतीत होता है और ऐसे व्यक्ति द्वारा यह प्रमाणपत्र कि प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिला था, और यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही में दिया गया था तो यह कि वह अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था, तब के सिवाय जब कि तत्प्रतिकूल साबित कर दिया जाता है, इस बात का पर्याप्त साक्ष्य होगा कि उसे वह अवसर मिला था और ऐसा अभिसाक्ष्य इस प्रकार दिया गया था ।

  1. 1995 अधिनियम सं० 30 की धारा 8 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

15. कंपनियों और मोटरयानों के विदेश में के 1[कर्मचारियों] से संबंधित विशेष उपबंध - यह अधिनियम,

(त्) उन 1[कर्मचारियों] की दशा में, जो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत में रजिस्ट्रीकृत कंपनियों द्वारा भर्ती किया गया है और उस रूप में, विदेश में कार्य कर रहे हैं, और

            (त्त्) उन व्यक्तियों की दशा में जो मोटरयान अधिनियम, 1988 (1988 का 59) के अधीन रजिस्ट्रीकृत मोटरयानों के साथ ड्राइवर, हेल्पर, मैकेनिक, क्लीनर या अन्य 1कर्मचारी के रूप में कार्य के लिए विदेश भेजे गए हैं; निम्नलिखित उपान्तरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा, अर्थात् :

            (1) दुर्घटना की और प्रतिकर के दावे की सूचना की तामील, दुर्घटना के देश में, यथास्थिति, कम्पनी के स्थानीय अभिकर्ता या मोटरयान के स्वामी के स्थानीय अभिकर्ता पर की जा सकेगी ।

(2) उस कर्मचारी की मृत्यु हो जाने की दशा में, जिसकी बाबत इस धारा के उपबंध लागू होंगे, प्रतिकर के लिए दावा, दावेदार को मृत्यु का समाचार मिलने के पश्चात् एक वर्ष के भीतर किया जाएगाः

परन्तु इस बात के होते हुए भी कि कोई दावा इस उपधारा में उपबंधित सम्यक् समय के भीतर नहीं किया गया है, आयुक्त किसी भी मामले में प्रतिकर के किसी दावे को उस दशा में ग्रहण कर सकेगा जिसमें उसका यह समाधान हो जाता है कि दावा इस प्रकार करने में असफलता पर्याप्त हेतुक से हुई थी ।

(3) जहां क्षत 2[कर्मचारी] भारत के किसी भाग में अथवा किसी अन्य देश में निर्मुक्त कर दिया जाता है या पीछे छोड़ दिया जाता है वहां उस भाग में के किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा अथवा उस विदेश में के किसी कौन्सलीय आफिसर द्वारा लिए गए और उस व्यक्ति द्वारा, जिसके द्वारा वे लिए जाते हैं केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार को पारेषित कोई भी अभिसाक्ष्य दावा प्रवर्तित कराने की किन्हीं भी कार्यवाहियों में साक्ष्य में उस दशा में ग्राह्य होंगे जिसमें

(क) अभिसाक्ष्य उस न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या कौन्सलीय आफिसर के हस्ताक्षर द्वारा अधिप्रमाणीकृत किया जाता है जिसके समक्ष वह दिया गया है;

(ख) यदि, यथास्थिति, प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को स्वयं अथवा अपने अभिकर्ता द्वारा साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल गया था;

(ग) यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही के दौरान दिया गया था तो, यह साबित हो जाने पर कि अभिसाक्ष्य अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था,

और किसी भी मामले में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर या पदीय हैसियत को साबित करना आवश्यक नहीं होगा जिसके द्वारा ऐसा कोई अभिसाक्ष्य हस्ताक्षरित किया गया प्रतीत होता है और ऐसे व्यक्ति द्वारा यह प्रमाणपत्र कि प्रतिवादी या अभियुक्त व्यक्ति को साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिला था और यदि अभिसाक्ष्य किसी दांडिक कार्यवाही में दिया गया था तो यह कि वह अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में दिया गया था, तब के सिवाय जब कि तत्प्रतिकूल साबित कर दिया जाता है, इस बात का पर्याप्त साक्ष्य होगा कि उसे वह अवसर मिला था और ऐसा अभिसाक्ष्य इस प्रकार दिया गया था ]

16. प्रतिकर के बारे में विवरणियां3[राज्य सरकार] शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि 1कर्मचारी को नियोजित करने वाला हर व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों का कोई विनिर्दिष्ट वर्ग ऐसे समय और ऐसे प्ररूप में और ऐसे प्राधिकारी को, जैसे अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, एक शुद्ध विवरणी भेजेगा जिसमें उन क्षतियों की संख्या, जिनके लिए नियोजक द्वारा पूर्वतन वर्ष के दौरान प्रतिकर दे दिया गया है, और ऐसे प्रतिकर की रकम और प्रतिकर के बारे में ऐसी अन्य विशिष्टियां विनिर्दिष्ट होंगी, जैसी 3[राज्य सरकार] निर्दिष्ट करे ।

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा सपरिषद् गवर्नर जनरल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

 

 

17. संविदा द्वारा त्याग - इस अधिनियम के प्रारम्भ के चाहे पूर्व, चाहे पश्चात् की गई संविदा या करार, जिसके द्वारा कोई 2[कर्मचारी] नियोजन से या उसके अनुक्रम में उद्भूत वैयक्तिक क्षति के लिए नियोजक से प्रतिकर पाने के किसी अधिकार का त्याग कर देता है वहां तक बातिल और शून्य होगा जहां तक वह इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर देने के किसी व्यक्ति के दायित्व को हटाने या कम करने के लिए तात्पर्यित है ।

1[17. नियोजक का कर्मचारी को उसके अधिकारों की जानकारी देने का कर्तव्य - प्रत्येक नियोजक, किसी कर्मचारी के नियोजन के समय तत्काल, कर्मचारी को इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर संबंधी उसके अधिकारों की लिखित में और इलैक्ट्रानिक साधनों के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या नियोजन के क्षेत्र की राजभाषा में, जो कर्मचारी समझता हो, जानकारी देगा ]

18.[आयु का सबूत] कर्मकार प्रतिकर (संशोधन) अधिनियम, 1959 (1959 का 8) की धारा 12 द्वारा (1-6-1959 से) निरसित ।

2[18. शास्तियां - (1) जो कोई

(क) वह सूचना-पुस्तक रखने में असफल रहेगा जिसे रखने के लिए वह धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन अपेक्षित है, अथवा

(ख) आयुक्त को वह विवरण भेजने में असफल रहेगा जिसे भेजने के लिए वह धारा 10क की उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित है, अथवा

(ग) वह रिपोर्ट भेजने में असफल रहेगा जिसे भेजने के लिए वह धारा 10ख के अधीन अपेक्षित है, अथवा

(घ) वह विवरणी देने में असफल रहेगा जिसे देने के लिए वह धारा 16 3[के अधीन अपेक्षित है, या;]

4[(ङ) कर्मचारी को ऐसे प्रतिकर संबंधी उसके अधिकारों की जानकारी देने असफल रहेगा जो धारा 17क के अधीन अपेक्षित है,]

वह जुर्माने से, जो 2[जो पचास हजार रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा] दण्डनीय होगा ।

            (2) इस धारा के अधीन कोई भी अभियोजन, आयुक्त के द्वारा या उसकी पूर्व मंजूरी से संस्थित किए जाने के सिवाय, संस्थित नहीं किया जाएगा, और कोई भी न्यायालय इस धारा के अधीन किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक कि अपराध के लिए परिवाद 5[उस तारीख से छह मास के भीतर नहीं किया जाता जिस तारीख को अभिकथित अपराध का किया जाना, आयुक्त को ज्ञात हुआ था ।

अध्याय 3

आयुक्त

19. आयुक्तों को निदेश - (1) यदि प्रतिकर देने के किसी व्यक्ति के दायित्व के विषय में कोई प्रश्न के अन्तर्गत यह प्रश्न आता है कि क्षत व्यक्ति 6[कर्मचारी] है या नहीं), या प्रतिकर की रकम या अस्तित्वावधि के विषय में कोई प्रश्न (जिसके अन्तर्गत निःशक्तता के प्रकार या विस्तार विषयक प्रश्न आता है) इस अधिनियम के अधीन की किन्हीं कार्यवाहियों में उठता है तो वह प्रश्न करार के अभाव में 7[आयुक्त] द्वारा तय किया जाएगा ।

  1. 2017 के अधिनियम सं० 11 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 11 द्वारा अन्तःस्थापित ।
  3. 2017 के अधिनियम सं० 11 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 2017 के अधिनियम सं० 11 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 1962 अधिनियम सं० 64 की धारा 6 द्वारा (1-2-1963 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  7. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 12 द्वारा आयुक्त के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

(2) किसी भी सिविल न्यायालय को किसी ऐसे प्रश्न जिसके लिए इस अधिनियम के द्वारा या अधीन यह अपेक्षित है कि वह आयुक्त द्वारा तय किया जाए या विनिश्चित किया जाए या उसके बारे में कार्रवाई आयुक्त द्वारा की जाए तय करने, विनिश्चित करने या उसके बारे में कार्रवाई करने की या इस अधिनियम के अधीन उपगत किसी दायित्व को प्रवर्तित कराने की अधिकारिता न होगी ।

20. आयुक्तों की नियुक्ति - (1) राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को जो राज्य न्यायिक सेवा का पांच वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए सदस्य है या रहा है या पांच वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए अधिवक्ता या प्लीडर है या रहा है या पांच वर्ष से अन्यून अवधि के लिए ऐसा राजपत्रित अधिकारी है या रहा है, जो कार्मिक प्रबंध, मानव संसाधन विकास और औद्योगिक संबंधों में शैक्षिक अर्हताएं और अनुभव रखता हो,ट शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे  2॥। क्षेत्र के लिए 5[कर्मचारी] प्रतिकर आयुक्त नियुक्त कर सकेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए ।

3[(2) जहां कि किसी 8॥। क्षेत्र के लिए एक से अधिक आयुक्त नियुक्त किए गए हैं वहां राज्य सरकार उनके बीच कारबार के वितरण का विनियमन साधारण या विशेष आदेश द्वारा कर सकेगी ]

4[(3)] कोई भी आयुक्त इस अधिनियम के अधीन विनिश्चय के लिए अपने को निर्देशित किसी विषय को विनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए ऐसे एक या अधिक व्यक्तियों को, जो जांचाधीन विषय से सुसंगत किसी विषय का विशेष ज्ञान रखते हों, जांच करने में अपनी सहायता के लिए चुन सकेगा ।

10[(4)] हर आयुक्त भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अर्थ के अन्दर लोक सेवक समझा जाएगा ।

21. कार्यवाहियों का स्थान और अन्तरण5[(1)] जहां इस अधिनियम के अधीन कोई बात आयुक्त द्वारा या उसके समक्ष की जानी है वहां इस अधिनियम के उपबंधों और उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, उस क्षेत्र के आयुक्त द्वारा या उसके समक्ष की जाएगी जिसमें

(क) वह दुर्घटना हुई थी जिसके परिणामस्वरूप क्षति हुई; या

(ख) 6[कर्मचारी] या उसकी मृत्यु की दशा में प्रतिकर के लिए दावा करने वाला आश्रित साधारणतया निवास करता है; या

(ग) नियोजक का रजिस्ट्रीकृत कार्यालय हैः

परन्तु किसी भी मामले में ऐसे किसी आयुक्त के समक्ष या उसके द्वारा, जो उस क्षेत्र पर जिसमें दुर्घटना हुई है, अधिकारिता रखने वाले आयुक्त से भिन्न है, केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित रीति से उसके द्वारा उस क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले आयुक्त और संबंधित राज्य सरकार को सूचना दिए बिना, कार्यवाही नहीं की जाएगीः

परन्तु यह और कि जहां 1[कर्मचारी], किसी पोत का मास्टर या नाविक है अथवा किसी वायुयान का कैप्टन या कर्मीदल का कोई सदस्य है अथवा किसी मोटर यान या कंपनी का 1[कर्मचारी] है, भारत से बाहर दुर्घटना का शिकार होता है वहां ऐसी कोई बात उस क्षेत्र के आयुक्त द्वारा या उसके समक्ष की जा सकेगी, जिसमें, यथास्थिति, पोत, वायुयान या मोटर यान का स्वामी या अभिकर्ता निवास करता है या कारबार चलाता है अथवा कंपनी का रजिस्ट्रीकृत कार्यालय स्थित है ।

(1क) यदि उस आयुक्त से जिसके पास धारा 8 के अधीन कोई धन जमा किया गया है, भिन्न कोई आयुक्त, इस अधिनियम के अधीन किसी मामले में कार्यवाही करता है तो पश्चात्वर्ती आयुक्त ऐसे मामले के उचित निपटारे के लिए किसी अभिलेख के या पूर्ववर्ती आयुक्त के पास शेष रहे धन के अंतरण की मांग कर सकेगा और ऐसा अनुरोध प्राप्त होने पर वह आयुक्त उसका अनुपालन करेगा]

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 8 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 1962 अधिनियम सं० 64 की धारा 7 द्वारा (1-2-1963 से) स्थानीय शब्द का लोप किया गया ।
  3. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 13 द्वारा अंतःस्थापित ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 3 द्वारा उपधारा (2) और (3) उस धारा की उपधारा (3) और (4) के रूप में पुनःसंख्यांकित ।
  5. 1995 अधिनियम सं० 30 की धारा 10 द्वारा (15-9-1995 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

(2) यदि आयुक्त का 1[समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लम्बित किन्हीं कार्यवाहियों से उद्भूत किसी विषय में] कार्रवाई किसी अन्य आयुक्त द्वारा चाहे वह उसी राज्य में हो या नहीं, अधिक सुविधानुसार की जा सकती है, तो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए वह यह आदेश दे सकेगा कि ऐसा विषय या तो रिपोर्ट के लिए या निपटाए जाने के लिए ऐसे अन्य आयुक्त को अन्तरित कर दिया जाए और यदि वह ऐसा करता है तो ऐसे विषय के विनिश्चय के लिए सुसंगत सभी दस्तावेजें ऐसे अन्य आयुक्त को अन्तरित कर दिए जाएं और यदि वह ऐसा करता है तो ऐसे विषय के विनिश्चय के लिए सुसंगत सभी दस्तावेजें ऐसे अन्य आयुक्त को तत्क्षण पारेषित करेगा, और जहां कि विषय निपटाए जाने के लिए अन्तरित किया जाता है वहां वह किसी ऐसे धन को भी विहित रीति से पारेषित करेगा जो उसके पास शेष रहा है या जो उसने कार्यवाहियों में के किसी पक्षकार के फायदे के लिए विनिहित किया हैः

2[परन्तु जहां कि कार्यवाहियों में का कोई पक्षकार आयुक्त के समक्ष हाजिर हुआ है वहां आयुक्त आश्रितों के बीच किसी एकमुश्त राशि के वितरण से सम्बद्ध अन्तरण का कोई आदेश, ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिए बिना, नहीं करेगाः]

 3।                                             ।                                               ।                                   ।

(3) वह आयुक्त, जिसे कोई विषय इस प्रकार अन्तरित किया जाता है, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए उसकी जांच करेगा और यदि वह विषय रिपोर्ट के लिए अन्तरित किया गया था तो उस पर अपनी रिपोर्ट देगा या यदि वह विषय निपटाए जाने के लिए अन्तरित किया गया था तो कार्यवाहियों को ऐसे चालू रखेगा मानो वे मूलतः उसके ही समक्ष प्रारम्भ हुई थीं ।

(4) उस आयुक्त से जिसे कोई विषय उपधारा (2) के अधीन रिपोर्ट के लिए अन्तरित किया गया है रिपोर्ट मिलने पर वह आयुक्त, जिसके द्वारा वह निर्देशित किया गया था, निर्देशित विषय को ऐसी रिपोर्ट के अनुरूप विनिश्चय करेगा ।

4[(5) राज्य सरकार किसी भी मामले को अपने द्वारा नियुक्त किसी आयुक्त से अपने द्वारा नियुक्त किसी अन्य आयुक्त को अन्तरित कर सकेगी

22. आवेदन का प्ररूप5[(1) जहां कोई ऐसी दुर्घटना हो जाती है जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर का संदाय करने का दायित्व उद्भूत होता है वहां ऐसे प्रतिकर के लिए कोई दावा इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, आयुक्त के समक्ष किया जा सकेगा ।

(1क) उपधारा (1) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी विषय के आयुक्त द्वारा तय किए जाने के लिए कोई भी आवेदन] 6[जो आश्रित या आश्रितों द्वारा प्रतिकर के लिए किए गए आवेदन से भिन्न हों] न किया जाएगा यदि और जब तक उसके संबंध में पक्षकारों के बीच ऐसा कोई प्रश्न न उठा हो जिसे वे करार द्वारा तय करने में असमर्थ रहे हों ।

(2) 7[आयुक्त को आवेदन] ऐसे प्ररूप में, जैसा विहित किया जाए, किया जा सकेगा और उसके साथ ऐसी फीस होगी, यदि कोई हो, जैसी विहित की जाए, और उसमें किन्हीं ऐसी विशिष्टियों के अतिरिक्त, जैसी विहित की जाएं, निम्नलिखित विशिष्टियां अन्तर्विष्ट होंगी, अर्थात्

(क) उन परिस्थितियों का संक्षिप्त कथन जिनमें आवेदन किया गया है और वह अनुतोष या आदेश, जिसका आवेदक दावा करता है;

  1. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 9 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 9 द्वारा अंतःस्थापित ।
  3. 1995 अधिनियम सं० 30 की धारा 10 द्वारा (15-9-1995 से) दूसरे परन्तुक का लोप किया गया ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 14 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 1995 अधिनियम सं० 30 की धारा 11 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 15 द्वारा अंतःस्थापित ।
  7. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 15 द्वारा जहां ऐसा कोई प्रश्न उत्पन्न हो वहां आवेदन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

(ख) नियोजक के विरुद्ध प्रतिकर के लिए दावे की दशा में वह तारीख जिसकी दुर्घटना की सूचना की नियोजक पर तामील हुई थी, और, यदि ऐसी सूचना की तामील नहीं हुई या सम्यक् समय में नहीं हुई तो ऐसे लोप का कारण;

            (ग) पक्षकारों के नाम और पते; या

            (घ) 1[आश्रितों द्वारा प्रतिकर के लिए आवेदन की दशा के सिवाय] उन मामलों का, जिनके बारे में करार हो चुका है और उन मामलों 2[का] जिनके बारे में करार नहीं हुआ है, संक्षिप्त कथन ।

(3) यदि आवेदक निरक्षर है या किसी अन्य कारण से अपेक्षित जानकारी लिखित रूप में देने में असमर्थ है तो, यदि आवेदक ऐसा करना चाहे तो, आवेदन आयुक्त के निदेशाधीन तैयार किया जाएगा ।

3[22. प्राणान्तक दुर्घटना की दशाओं में अतिरिक्त निक्षेप अपेक्षित करने की आयुक्त की शक्ति(1) जहां कि ऐसे  4[कर्मचारी] के बारे में, जिसकी मृत्यु क्षति के परिणामस्वरूप हो गई है, संदेय प्रतिकर के रूप में कोई राशि नियोजक द्वारा निक्षिप्त की गई है और आयुक्त की राय में ऐसी राशि अपर्याप्त है वहां आयुक्त अपने कारणों को कथित करते हुए लिखित सूचना द्वारा नियोजक को इस बात का हेतुक दर्शित करने के लिए अपेक्षित कर सकेगा कि वह इतने समय के भीतर, जितना सूचना में कथित किया जाए, अतिरिक्त निक्षेप क्यों न करे ।

(2) यदि नियोजक आयुक्त को समाधानप्रद रूप में हेतुक दर्शित करने में असफल रहता है तो आयुक्त कुल संदेय रकम को अवधारित करने वाला और नियोजक से यह अपेक्षा करने वाला अधिनिर्णय दे सकेगा कि वह उतनी राशि निक्षिप्त कर दे जितनी कम है]

23. आयुक्तों की शक्तियां और प्रक्रिया - आयुक्त को, ऐसी शपथ पर (जिसे अधिरोपित करने के लिए आयुक्त एतद्द्वारा सशक्त किया जाता है) साक्ष्य लेने और साक्षियों को हाजिर कराने और दस्तावेजों और भौतिक पदार्थों को पेश करने के लिए विवश करने के प्रयोजन के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन की सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी 5[और आयुक्त 6[दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 के और अध्याय 26] के सभी प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा

24. पक्षकारों की हाजिरी - किसी पक्षकार की साक्षी के रूप में उसकी परीक्षा के प्रयोजन के लिए अपेक्षित हाजिरी से भिन्न कोई हाजिरी, आवेदन या कार्य जो किसी व्यक्ति द्वारा आयुक्त के समक्ष या आयुक्त से किए जाने के लिए अपेक्षित है, ऐसे व्यक्ति की ओर से किसी विधि व्यवसायी द्वारा या बीमा कम्पनी या रजिस्ट्रीकृत व्यवसाय संघ के पदधारी द्वारा, या कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) की धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन या खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) की धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त निरीक्षक द्वारा, या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किसी अन्य आफिसर द्वारा जो ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखित रूप में प्राधिकृत हो, या आयुक्त की अनुज्ञा से, इस प्रकार प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, किया जा सकेगा]8 

25. साक्ष्य अभिलिखित करने का ढंग - जैसे-जैसे हर साक्षी की परीक्षा होती जाएगी वैसे-वैसे आयुक्त उस साक्षी के साक्ष्य के सार का संक्षिप्त ज्ञापन बनाता जाएगा और ऐसा ज्ञापन आयुक्त द्वारा अपने हाथ से लिखा और हस्ताक्षरित किया जाएगा और अभिलेख का भाग होगाः

  1. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 15 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 1925 के अधिनियम सं० 37 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा पर के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 16 द्वारा अंतःस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित ।
  6. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 12 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 14 द्वारा (1-6-1959 से) धारा 24 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1942 के बंगाल अधिनियम सं० 6 की धारा 4 द्वारा नई धारा 24क और 24ख को इस अधिनियम को बंगाल में लागू करने के लिए अन्तःस्थापित किया गया ।

 

 

 

परन्तु यदि आयुक्त ऐसा ज्ञापन बनाने से निवारित हो जाता है तो वह ऐसा करने की अपनी असमर्थता का कारण अभिलिखित करेगा और स्वयं बोल कर ऐसा ज्ञापन लिखित रूप में तैयार कराएगा और उसे हस्ताक्षरित करेगा और ऐसा ज्ञापन अभिलेख का भाग होगाः

परन्तु यह और कि किसी चिकित्सीय साक्षी का साक्ष्य यावत्शक्य शब्दशः लिखा जाएगा ।

1[25. प्रतिकर से संबंधित विषयों के निपटान के लिए समय सीमा - आयुक्त, निर्देश की तारीख से, तीन मास की अवधि के भीतर इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर से संबंधित मामले का निपटान करेगा और कर्मचारी को उक्त अवधि के भीतर उसके संबंध में विनिश्चय के बारे में सूचित करेगा]

26. खर्चे - आयुक्त के समक्ष की कार्यवाहियों के आनुषंगिक सभी खर्चे इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए आयुक्त के विवेकाधीन होंगे ।

27. मामलों को निवेदित करने की शक्ति - यदि आयुक्त उचित समझे तो वह विधि का प्रश्न विनिश्चय के लिए उच्च न्यायालय को निवेदित कर सकेगा और यदि वह ऐसा करता है तो वह उस प्रश्न को ऐसे विनिश्चय के अनुरूप विनिश्चित करेगा ।

28. करारों का रजिस्ट्रीकरण - (1) जहां कि प्रतिकर के रूप में संदेय कोई एकमुश्त राशि की रकम, करार द्वारा, चाहे अर्धमासिक संदायों से मोचन के तौर पर या अन्यथा, तय हो गई है या जहां कि कोई प्रतिकर इसी प्रकार तय हो गई है कि वह 2[किसी स्त्री को या विधिक निर्योग्यता के अधीन किसी व्यक्ति को]  3॥। संदेय है, वहां उसका एक ज्ञापन नियोजक द्वारा आयुक्त को भेजा जाएगा, जो उसके असली होने के विषय में अपना समाधान हो जाने पर ज्ञापन को रजिस्टर में विहित रूप में अभिलिखित करेगाः

परन्तु

(क) ऐसा कोई ज्ञापन आयुक्त द्वारा संबद्ध पक्षकारों को सूचना के संसूचित किए जाने के पश्चात् सात दिन से पहले अभिलिखित नहीं किया जाएगा;

             4।                                             ।                                               ।                                   ।

            (ग) आयुक्त किसी भी समय रजिस्टर को परिशुद्ध कर सकेगाः

            (घ) जहां कि आयुक्त को प्रतीत हो कि किसी एकमुश्त राशि के संदाय के बारे में कोई करार, वह चाहे अर्धमासिक संदाय से मोचन के तौर पर हो या अन्यथा हो, या 2[किसी स्त्री को या विधिक निर्योग्यता के अधीन किसी व्यक्ति को]  5॥। संदेय प्रतिकर की रकम के बारे में कोई करार, राशि या रकम की अपर्याप्तता के कारण या कपट या असम्यक् असर या अन्य अनुचित साधनों द्वारा उस करार के अभिप्राप्त किए जाने के कारण रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाना चाहिए वहां वह करार के ज्ञापन को अभिलिखित करने से इन्कार कर सकेगा 6[और ऐसा आदेश जिसके अन्तर्गत करार के अधीन पहले दी गई किसी राशि के बारे में कोई आदेश आता है, कर सकेगा] जैसा वह परिस्थितियों में न्यायसंगत समझे ।

(2) प्रतिकर के संदाय के लिए जो करार उपधारा (1) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किया जा चुका है, वह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) में या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन प्रवर्तनीय होगा ।

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 9 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 6 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1924 के अधिनियम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 2 द्वारा या आश्रित को शब्दों का लोप किया गया ।
  4. 1929 के अधिनियम सं० 5 की धारा 6 द्वारा खण्ड (ख) का लोप किया गया ।
  5. 1924 के अधिनियम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 2 द्वारा या किसी आश्रित को शब्दों का लोप किया गया ।
  6. 1924 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा या ऐसा आदेश कर सकेगा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

 

29. करार को रजिस्ट्रीकृत कराने में असफल रहने का प्रभाव - जहां कि ऐसे किसी करार का ज्ञापन, जिसका रजिस्ट्रीकरण धारा 28 द्वारा अपेक्षित है, उस धारा की अपेक्षानुसार आयुक्त को नहीं भेजा गया है वहां, नियोजक उस प्रतिकर की कुल रकम देने का दायी होगा जिसे वह इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन देने का दायी है और, जब तक कि आयुक्त अन्यथा, निर्दिष्ट न करे, वह किसी रकम की, जो प्रतिकर के तौर पर चाहे उसे करार के अधीन या अन्यथा,  1[कर्मचारी] को दी गई है, आधी से अधिक रकम काट लेने के लिए, धारा 4 की उपधारा (1) के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी हकदार नहीं होगा ।

30. अपीलें - (1) आयुक्त के निम्नलिखित आदेशों से अपील उच्च न्यायालय में होगी, अर्थात्ः

(क) प्रतिकर के रूप में एकमुश्त राशि को चाहे अर्धमासिक संदाय से मोचन के तौर पर या अन्यथा, अधिनिर्णीत करने वाला या एकमुश्त राशि के दावे को पूर्णतः या भागतः अननुज्ञात करने वाला आदेश;

            2[(कक) धारा 4क के अधीन ब्याज या शास्ति अधिनिर्णीत करने वाला आदेश;]

            (ख) अर्धमासिक संदाय से मोचन अनुज्ञात करने से इन्कार करने वाला आदेश;

            (ग) मृत 7[कर्मचारी] के आश्रितों के बीच प्रतिकर के वितरण का उपबन्ध करने वाला आदेश या किसी ऐसे व्यक्ति के दावे को जो यह अभिकथन करता हो कि वह ऐसा आश्रित है, अनुज्ञात करने वाला आदेश;

(घ) धारा 12 की उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन क्षतिपूर्ति की रकम के किसी दावे को अनुज्ञात या अननुज्ञात करने वाला आदेश; अथवा

(ङ) करार के ज्ञापन को रजिस्ट्रीकृत करने से इंकार करने वाला या उसे रजिस्ट्रीकृत करने वाला या यह उपबन्ध करने वाला कि उसका रजिस्ट्रीकरण शर्तों के अधीन होगा, आदेशः

परन्तु जब तक कि अपील में सारवान् विधि-प्रश्न अन्तर्वलित न हो, और खण्ड (ख) में यथानिर्दिष्ट आदेश से भिन्न आदेश की दशा में जब तक कि अपील में विवादग्रस्त रकम 3[दस हजार रुपए या ऐसी उच्चतर रकम जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे] से अन्यून न हो, आदेश के विरुद्ध कोई भी अपील नहीं होगीः

परन्तु यह और कि किसी ऐसे मामले में, जिसमें पक्षकारों ने आयुक्त के विनिश्चय का पालन करने के लिए कोई करार कर लिया है या जिसमें आयुक्त का आदेश पक्षकारों में हुए करार को प्रभावशाली करता है, कोई भी अपील नहीं होगीः

4[परन्तु यह और कि जब तक कि अपील के ज्ञापन के साथ आयुक्त द्वारा दिया गया इस भाव का प्रमाणपत्र न हो कि अपीलार्थी ने उसके पास वह रकम निक्षिप्त कर दी है जो उस आदेश के अधीन संदेय है जिसके विरुद्ध अपील की गई है, नियोजक द्वारा खण्ड (क) के अधीन कोई भी अपील नहीं होगी]

(2) इस धारा के अधीन अपील के लिए परिसीमाकाल साठ दिन का होगा ।

(3) 5[परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963 का 36)] की धारा 5 के उपबन्ध इस धारा के अधीन की अपीलों को लागू होंगे ।

 6।                                             ।                                               ।                                               ।

31. वसूली - आयुक्त किसी ऐसी रकम को, जो प्रतिकर के संदाय के किसी करार के अधीन या अन्यथा किसी व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के अधीन संदेय हो, भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूल कर सकेगा और आयुक्त राजस्व वसूली अधिनियम, 1890 (1890 का 1)1 की धारा 5 के अर्थ के अन्दर लोक अधिकारी समझा जाएगा ।

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 15 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।
  3. 2017 के अधिनियम सं० 11 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 17 द्वारा अंतःस्थापित ।
  5. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 13 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 2017 के अधिनियम सं० 11 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया ।

 

 

 

 

 

 

 

अध्याय 4

नियम

32. नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति - (1) 2[राज्य सरकार] इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम3 बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों के लिए या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्

(क) उन अन्तरालों और शर्तों को विहित करना जिन पर पुनर्विलोकन के लिए आवेदन धारा 6 के अधीन किया जा सकेगा, यदि उसके साथ चिकित्सीय-प्रमाणपत्र न हो;

(ख) उन अन्तरालों और शर्तों को विहित करना, जिन पर कोई 4[कर्मचारी] चिकित्सीय परीक्षा कराने के लिए धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन अपने को प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित किया जा सकेगा;

(ग) वह प्रक्रिया विहित करना जिसका अनुसरण इस अधिनियम के अधीन मामलों को निपटाने में आयुक्त द्वारा और ऐसे मामलों में पक्षकारों द्वारा किया जाना है;

(घ) एक आयुक्त से दूसरे को विषयों और मामलों के अन्तरण को और ऐसे मामलों में धन के अन्तरण को विनियमित करना;

(ङ) वह रीति विहित करना, जिसमें आयुक्त के पास के धन को किसी मृत 7[कर्मचारी] के आश्रितों के फायदे के लिए विनिहित किया जा सकेगा, और इस प्रकार विनिहित धन एक आयुक्त से किसी अन्य आयुक्त को अन्तरित करना;

(च) आयुक्तों के समक्ष की कार्यवाहियों में ऐसे पक्षकारों का प्रतिनिधित्व जो अप्राप्तवय है या हाजिर होने में              असमर्थ है;

(छ) वह प्ररूप और रीति विहित करना जिसमें करारों के ज्ञापन उपस्थित किए जाएंगे और रजिस्ट्रीकृत किए जाएंगे;

(ज) अर्धमासिक संदायों के पुनर्विलोकन के आवेदनों पर विनिश्चय होने तक उन संदायों का आयुक्त द्वारा पूर्णतः या भागतः विधारित रखा जाना, 6॥।

            1।                                              ।                                               ।                                   ।

            1[(झ) इस अधिनियम के अधीन की कार्यवाहियों में जो खर्च अनुज्ञात किए जा सकेंगे उनके मापमान विनियमित करना;

(ञ) इस अधिनियम के अधीन आयुक्त के समक्ष की कार्यवाहियों के संबंध में देय फीसों की रकम विहित और अवधारित करना;

(ट) आयुक्तों द्वारा अपने समक्ष की कार्यवाहियों के रजिस्टरों और अभिलेखों का रखा जाना;

  1. बंगाल टाउट्स ऐक्ट, 1942 (1942 के बंगाल अधिनियम 5) की धारा 18 द्वारा नई धारा 31क को इस अधिनियम को बंगाल में लागू करने के लिए अंतःस्थापित किया गया ।
  2. विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा सपरिषद् गवर्नर जनरल के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. कर्मकार प्रतिकर नियम, 1924 के लिए देखिए, भारत का राजपत्र, 1924, भाग 1, पृष्ठ 586 ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1942 के अधिनियम सं० 6 की धारा 5 द्वारा नए खण्ड (चच), (चच1) और (चच2) को इस अधिनियम को बंगाल में लागू करने के लिए अंतःस्थापित किया गया ।
  6. विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा खण्ड (ज) के अन्त में और शब्द तथा मूल खण्ड (झ) का लोप किया गया तथा धारा 33 के खण्ड (क) से (च) तक को खण्ड (झ) से (ढ) के रूप में पुनःअक्षरांकित और अंतःस्थापित किया गया ।

 

 

 

 

 

 

 

 

(ठ) उन नियोजकों के वर्ग जो धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन सूचना-पुस्तकें रखेंगे और ऐसी सूचना-पुस्तकों के प्ररूप विहित करना;

 

(ड) नियोजकों द्वारा धारा 10क के अधीन निवेदित किए जाने वाले विवरण का प्ररूप विहित करना; 1॥।

 

(ढ) उन मामलों को विहित करना, जिनमें धारा 10ख में निर्दिष्ट रिपोर्ट आयुक्त से भिन्न प्राधिकारी को भेजी जा सकेगी;]

 

2[(ण) इस अधिनियम की संक्षिप्तियां विहित करना और ऐसी संक्षिप्तियों को अन्तर्विष्ट करने वाली सूचनाएं संप्रदर्शित करने की नियोजकों से अपेक्षा करना;

 

(त) वह रीति विहित करना जिसमें उपजीविकाजन्य रोगों के रूप में विनिर्दिष्ट किए गए रोगों का निदान किया जा सकेगा;

 

(थ) वह रीति विहित करना जिसमें रोगों को इस अधिनियम के प्रयोजनों में से किसी के लिए प्रमाणित किया जा सकेगा;

 

(द) वह रीति विहित करना जिसमें और वे मानक जिनके अनुसार असामर्थ्य का निर्धारण किया जा सकेगा]

 

3[(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा]

 

33.[स्थानीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति] - भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा निरसित ।

 

34. नियमों का प्रकाशन - (1) 4[धारा 32] द्वारा प्रदत्त नियम बनाने की शक्ति इस शर्त के अध्यधीन होगी कि नियम पूर्व प्रकाशन के पश्चात् बनाए जाएं ।

(2) साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 23 के खण्ड (3) के अनुसार विनिर्दिष्ट की जाने वाली वह तारीख, जिसके पश्चात् उन नियमों के प्रारूप पर विचार किया जाएगा जो धारा 32 5॥। के अधीन बनाए जाने के लिए प्रस्थापित हों, उस तारीख से तीन मास कम की न होगी जिसको प्रस्थापित विनियमों का प्रारूप सर्वसाधारण की जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया था ।

(3) इस प्रकार बनाए गए नियम 6॥। 7॥। शासकीय राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन पर ऐसा प्रभाव रखेंगे मानो वे इस अधिनियम में अधिनियमित हों ।

 

8[35. प्रतिकर के रूप में दिए गए धन के अन्तरण के लिए अन्य देशों के साथ किए गए ठहरावों को क्रियान्वित करने के लिए नियम – 9[(1)] केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के अधीन आयुक्त के 10[पास निक्षिप्त] ऐसे धन को, 11[जो ऐसे व्यक्ति

 

  1. 1960 के अधिनियम सं० 58 की धारा 3 द्वारा और शब्द का लोप किया गया ।
  2. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 16 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।
  3. 1986 के अधिनियम सं० 4 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा (15-5-1986 से) अन्तःस्थापित ।
  4. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा धारा 32 और धारा 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा या धारा 33शब्दों और अंकों का निरसन किया गया ।
  6. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा यथास्थिति शब्द का निरसन किया गया ।
  7. भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा भारत का राजपत्र या शब्दों को निरसित किया गया ।
  8. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 20 द्वारा अंतःस्थापित ।
  9. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा धारा 35 को उस धारा की उपधारा (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।
  10. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा संदत्त के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  11. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा के फायदे के लिए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

को अधिनिर्णीत हुआ हो या शोध्य हो] जो  1॥।2 [किसी विदेश में] निवास करता है या करने जा रहा है, 3[ऐसे विदेश में] अन्तरित को क्रियान्वित करने के लिए नियम अंतरित करने के लिए, और 4[कर्मचारियों] के प्रतिकर से सम्बन्धित विधि के अधीन  5॥।  6॥।  7॥। 7[निक्षिप्त] किसी ऐसे धन की, 8[जो किसी ऐसे व्यक्ति को अधिनिर्णीत हुआ हो, या शोध्य हो] जो 9[किसी राज्य] में निवास करता है या करने जा रहा है, 9[किसी राज्य] में प्राप्ति 10[वितरण] और प्रशासन के लिए नियम, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी];]

10[परन्तु प्राणान्तक दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में इस अधिनियम के अधीन निक्षिप्त कोई भी राशि, संपृक्त नियोजक की सम्मति के बिना, तब तक ऐसे अन्तरित न की जाएगी जब तक राशि प्राप्त करने वाले आयुक्त ने धारा 8 की उपधाराओं (4) और (5) के उपबन्धों के अधीन उसके वितरण और प्रभाजन को अवधारित करने वाला आदेश पारित न कर दिया हो ।

(2) जहां कि आयुक्त के पास निक्षिप्त धन, इस धारा के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार इस प्रकार अन्तरित कर दिया गया है वहां, आयुक्त के पास निक्षिप्त प्रतिकर के स्वयं उसके द्वारा वितरण के सम्बन्ध में इस अधिनियम में अन्यत्र अंतर्विष्ट उपबंध ऐसे किसी धन के विषय में लागू रह जाएंगे ।

11[36. केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना - इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा 12[दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी]  यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा]

13[अनुसूची 1

[धारा 2(1) और 4 देखिए]

14[भाग 1

उन क्षतियों की सूची जिनके बारे में समझा जाता है कि उनके परिणामस्वरूप

स्थायी पूर्ण आंशिक निःशक्तता हुई हैं]

 

  1. विधि अनुकूलन आदेश, 1948 द्वारा अंतःस्थापित किसी भाग ख राज्य को या शब्द और अक्षरों का 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा लोप                 किया गया ।
  2. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 5 द्वारा (1-7-1984 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 5 द्वारा (1-7-1984 से) ऐसे भाग या देश में के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा किसी भाग ख राज्यों में या अंतःस्थापित शब्दों में से किसी भाग ख राज्य में शब्दों और अक्षरों का 1951 के अधिनियम सं० 3                 की धारा 3 और अनुसूची 2 द्वारा और या शब्द का 1957 के अधिनियम 36 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा लोप किया गया ।
  6. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 5 द्वारा (1-7-1984 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा अधिनिर्णीत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा जो किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए उपयोज्य है के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  9. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा भाग क राज्य या भाग ग राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  10. 1937 के अधिनियम सं० 7 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित ।
  11. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 8 द्वारा (1-2-1963 से) अंतःस्थापित ।
  12. 1976 के अधिनियम सं० 65 की धारा 3 द्वारा (21-5-1976 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  13. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 17 द्वारा (1-6-1959 से) पूर्ववर्ती अनुसूची 1 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  14. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 9 द्वारा (1-2-1963 से) पूर्ववर्ती शीर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

क्रम संख्यांक

क्षति का वर्णन

उपार्जन सामर्थ्य की हानि का प्रतिशत

1

दोनों हाथों की हानि या उच्चतर स्थानों पर विच्छेदन

100

2

एक हाथ और एक पाद की हानि

100

3

टांग या ऊरु से दोहरा विच्छेदन, या एक ओर टांग या उरु से विच्छेदन और दूसरे पाद की हानि

100

4

दृक् शक्ति की इस विस्तार तक हानि कि दावेदार ऐसा कोई काम करने में असमर्थ हो जाता है जिसके लिए दृक् शक्ति आवश्यक है

100

5

चेहरे की बहुत गम्भीर विद्रूपता

100

6

पूर्ण बधिरता

100

 

 

 

 

क्रम संख्यांक

क्षति का वर्णन

उपार्जन सामर्थ्य की हानि का प्रतिशत

 

1[भाग 2 उन क्षतियों की सूची जिनके बारे में समझा जाता है कि उनके परिणामस्वरूप स्थायी पूर्ण आंशिक निःशक्तता हुई है]          

 

 

 

विच्छेदन के मामले-ऊर्ध्व शाखा (कोई भी भुजा)

 

2[1]

स्कन्ध संधि से विच्छेदन

90

2[2]

स्कन्ध से नीचे विच्छेदन, जब कि स्थूणक अंसकूट के सिरे के 3[20.32 से०मी०] से कम हो

80

2[3]

अंसकूट के सिरे से 4[20.32 से०मी०] से कूर्पर के सिरे के नीचे 4[11.43 से०मी०] से कम तक विच्छेदन

70

2[4]

एक हाथ की या एक हाथ के अंगूठे और चारों अंगुलियों की हानि, या कूर्पर के सिरे से 4[11.43 से०मी०] से नीचे विच्छेदन

60

2[5]

अंगूठे की हानि

30

 

 

 

 

 

           

  1. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 9 द्वारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 9 द्वारा (1-2-1963 से) प्रविष्ट सं० 7 से 54 तक को क्रमशः 1 से 48 तक के रूप में पुनःस्थापित किया गया ।
  3. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 14 द्वारा (15-9-1995 से) 8 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 14 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

                       

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2[6]

अंगूठे की और उसकी करभ-अस्थि की हानि

40

2[7]

एक हाथ की चार अंगुलियों की हानि

50

2[8]

एक हाथ की तीन अंगुलियों की हानि

30

2[9]

एक हाथ की दो अंगुलियों की हानि

20

2[10]

अंगूठे की अन्तिम अंगुलि-अस्थि की हानि

20

1[10क]

अस्थि की हानि के बिना अंगूठे के सिरे का गिलोटिन विच्छेदन

10

 

विच्छेदन के मामले--अधःशाखा

 

2[11]

दोनों पादों का विच्छेदन जिसके परिणामस्वरूप अन्तांग मात्र रह जाए

90

2[12]

प्रपदानगुलि-अस्थि संधि से दोनों पादों की सब अंगुलियों की हानि

80

2[13]

प्रपंदागुलि-अस्थि संधि से दोनों पादों की सब अंगुलियों की हानि

40

2[14]

निकटस्थ अन्तरांगुलि-अस्थि संधि के निकट दोनों पादों की सब अंगुलियों की हानि

30

2[15]

निकटस्थ अंतरांगुलि-अस्थि संधि से दूर दोनों पादों की सब अंगुलियों की हानि

20

2[16]

नितम्ब पर विच्छेदन

90

2[17]

नितम्ब से नीचे विच्छेदन, जब कि स्थूणक बृहत् उरु-अस्थि के सिरे से नापे जाने पर 4[12.70 से०मी०] से अधिक लम्बा न हो

80

2[18]

नितम्ब से नीचे विच्छेदन, जब कि स्थूणक वृह्त उरु-अस्थि के सिरे से नापे जाने पर 4[8.89 से०मी०] से अधिक लम्बा हो, किन्तु मध्योरु से आगे न हो

70

2[19]

मध्योरु के नीचे से घुटने के 4[8.89 से०मी०] नीचे तक विच्छेदन.

60

2[20]

घुटने से नीचे विच्छेदन, जब कि स्थूणक 4[8.89 से०मी०] से अधिक हो, किन्तु 5” से अधिक न हो.

50

 

 

 

 

  1. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 14 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।

 

 

क्रम संख्यांक

क्षति का वर्णन

उपार्जन सामर्थ्य की हानि का प्रतिशत

1[21]

घुटने से नीचे विच्छेदन, जब कि स्थूणक 2[12.70 से०मी०] से अधिक हो

2[50]

1[22]

एक पाद का विच्छेदन जिसके परिणामस्वरूप अन्तांग-मात्र रह जाए

2[50]

1[23]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि के निकट से एक पाद का विच्छेदन

2[50]

1[24]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से एक पद की सब अंगुलियों की हानि

20

 

अन्य क्षतियां

 

1[25]

एक नेत्र की हानि, जब कि कोई अन्य उपद्रव न हो और दूसरा नेत्र प्रसामान्य हो

40

1[26]

एक नेत्र की दृष्टि की हानि, जब कि नेत्रगोलक में उपद्रव या विद्रूपता न हो और दूसरा नेत्र प्रसामान्य हो

30

3[26क]

एक नेत्र की आंशिक दृष्टि की हानि

10

निम्नलिखित की हानि--

 

 

-दाएं या बाएं हाथ की अंगुलियां तर्जनी

 

 

1[27]

सम्पूर्ण

14

1[28]

दो अंगुलि-अस्थियां

11

1[29]

एक अंगुलि-अस्थि

9

1[30]

अस्थि की हानि के बिना सिरे का गिलोटिन विच्छेदन

5

 

मध्यमा

 

1[31]

सम्पूर्ण

12

1[32]

दो अंगुली-अस्थियां

9

1[33]

एक अंगुलि-अस्थि

7

1[34]

अस्थि की हानि के बिना सिरे का गिलोटिन विच्छेदन

2

 

  1. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 9 द्वारा (1-2-1963 से) प्रविष्ट सं० 7 से 54 तक को क्रमशः 1 से 48 तक के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।
  2. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 14 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 14 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।

 

 

 

 

अनामिका या कनिष्ठिका

 

1[35]

सम्पूर्ण

7

1[36]

दो अंगुली-अस्थियां

6

1[37]

एक अंगुलि-अस्थि

5

1[38]

अस्थि की हानि के बिना सिरे का गिलोटिन विच्छेदन

2

 

ख-दाएं या बाएं पाद की अंगुलियां अंगूठा

 

1[39]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से

14

1[40]

उसका भाग, कुछ अस्थि की हानि सहित

3

 

क्रम संख्यांक

क्षति का वर्णन

उपार्जन सामर्थ्य की हानि का प्रतिशत

 

कोई अन्य अंगुलि

 

1[41]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से

3

1[42]

उसका भाग, कुछ अस्थि की हानि सहित

1

 

अंगूठे को छोड़कर एक पाद की दो अंगुलियां

 

1[43]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से

5

1[44]

उसका भाग, कुछ अस्थि की हानि सहित

2

 

अंगूठे को छोड़कर एक पाद की तीन अंगुलियां

 

1[45]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से

6

1[46]

उसका भाग, कुछ अस्थि की हानि सहित

3

 

अंगूठे को छोड़कर एक पाद की चार अंगुलियां

 

1[47]

प्रपदांगुलि-अस्थि संधि से

9

1[48]

उसका भाग, कुछ अस्थि की हानि सहित

3

 

1[टिप्पणी - इस अनुसूची में निर्दिष्ट किसी अंग या अवयव के उपयोग की पूर्ण तथा स्थायी हानि या उस अंग या अवयव की हानि के समतुल्य समझी जाएगी]

                       

  1. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 9 द्वारा (1-2-1963 से) प्रविष्ट सं० 7 से 54 तक को क्रमशः 1 से 48 तक के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।

अनुसूची 2

[2[धारा 2(1) (घघ)] देखिए]

उन व्यक्तियों की सूची, जो 3[कर्मचारी] की परिभाषा के अन्तर्गत 3[धारा 2(1) (घघ)] के उपबन्धों के अध्यधीन

रहते हुए आते हैं

निम्नलिखित व्यक्ति, 3[धारा (2) (1) (घघ)] के अर्थ के अन्दर और उस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए 4[कर्मचारी] हैं, अर्थात् कोई व्यक्ति जो-

4[5[(i)3[रेल में नियोजित] किसी लिफ्ट या वाष्प या अन्य यांत्रिक शक्ति या विद्युत द्वारा नोदित यान को चलाने 6[उसकी मरम्मत करने] या उसके अनुरक्षण के संबंध में या ऐसे किसी यान पर लदाई या उस पर से उतराई के संबंध में नियोजित है; अथवा

(ii) उस परिसर में जिसमें या जिसकी प्रसीमाओं के अन्दर कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) की धारा 2 के खंड (ट) में यथापरिभाषित विनिर्माण-प्रक्रिया चलाई जा रही है, या ऐसे किसी भी प्रकार के ऐसे काम में, जो ऐसी किसी विनिर्माण-प्रक्रिया या निर्मित वस्तु का आनुषंगिक या उससे संबद्ध है और जिसमें वाष्प, जल या अन्य यांत्रिक शक्ति या विद्युत् शक्ति प्रयुक्त होती है, 7॥। नियोजित है चाहे ऐसे किसी काम में नियोजन ऐसे परिसर में या प्रसीमाओं के अन्दर हो या न हो; अथवा

(iii) वस्तु या किसी वस्तु के भाग के निर्माण, परिवर्तन, मरम्मत, अलंकरण, परिरूपण के प्रयोजन के लिए, अथवा उपयोग, परिवहन या विक्रय के लिए उसे अन्यथा अनुकूलित करने के प्रयोजन के लिए किसी ऐसे परिसर में नियोजित है 8॥।; 9॥। 

9[स्पष्टीकरण-ऐसे परिसर या प्रसीमाओं के बाहर, किन्तु ऐसे किसी कार्य में, जो किसी वस्तु या किसी वस्तु के भाग के निर्माण, परिवर्तन, मरम्मत, अलंकरण या परिरूपण से, अथवा उपयोग, परिवहन या विक्रय के लिए उसे अन्यथा अनुकूलित करने से संबंधित किसी कार्य का आनुषंगिक या उससे संबंधित है, नियोजित व्यति इस खंड के प्रयोजनों के लिए ऐसे परिसर या प्रसीमाओं के अंदर नियोजित समझे जाएंगे; अथवा]

 

  1. 1960 के अधिनियम सं० 58 की धारा 3 और अनुसूची 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 द्वारा द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1933 के अधिनियम सं० 15 की धारा 21 द्वारा खण्ड (त्) से (न्त्त्त्) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 18 द्वारा (1-6-1959 से) खण्ड (त्) से (त्न्) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 15 द्वारा (15-9-1995 से) अन्तःस्थापित ।
  7. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 द्वारा लोप किया गया ।
  8. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 10 द्वारा (1-3-1963 से) अन्तःस्थापित ।
  9. 1962 के अधिनियम सं० 64 की धारा 10 द्वारा (1-2-1963 से) “या” शब्द का लोप किया गया ।

 

 

 

(iv) नियोजक के व्यवसाय या कारबार के संबंध में विस्फोटकों के विनिर्माण या हथालने में नियोजित हैं; अथवा

                (v) खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) की धारा 2 के खंड (ञ) में यथापरिभाषित किसी खान में किसी खनन संक्रिया में अथवा किसी खनन संक्रिया के या अभिप्राप्त खनिज के आनुषंगिक या उससे संसक्त किसी प्रकार के काम में, 1॥। या भूमि के नीचे किसी भी प्रकार के काम में नियोजित है; अथवा]

(vi) (क) पूर्णतः या भागतः वाष्प द्वारा या अन्य यांत्रिक शक्ति या विद्युत द्वारा नोदित पोत के, या ऐसे पोत के, जो इस प्रकार नोदित पोत द्वारा अनुकर्षित किया जाता है, या जिसका ऐसे अनुकर्षित किया जाना आशयित है, अथवा

                1।                                                             ।                                                              ।                                              ।

                (ग) उपखंड (क) 1॥। के अन्तर्गत न आने वाले किसी ऐसे समुद्रगामी पोत के, जिसके लिए केवल पालों द्वारा नौचालन के लिए पर्याप्त क्षेत्र उपबन्धित है,

मास्टर या नाविक के रूप में नियोजित है; अथवा

(vii) (क) किसी ऐसे पोत पर, जिसका वह मास्टर या कर्मीदल का सदस्य नहीं है, लदाई, उससे उतराई, उसमें ईंधन डालने, उसका सन्निर्माण करने, उसकी मरम्मत करने, उसे तोड़ डालने, साफ करने या उसका रंग-रोगन करने के प्रयोजन के लिए, या जो माल किसी जलयान से उतारा गया है, या किसी जलयान में लादा जाना है, उस माल को,  2पत्तन अधिनियम, 1908 (1908 का 15) या महापत्तन न्यास अधिनियम, 1963 (1963 का 36) के अध्यधीन रहते हुए, किसी पत्तन की सीमाओं के अन्दर हथालने या उसका परिवहन करने के प्रयोजन के लिए, अथवा

(ख) पोत को जलबन्ध से होकर खींचने के प्रयोजन के लिए, अथवा

(ग) बन्दरगाह भित्तिबर्थों पर या प्रस्तंभों में पोतों के लंगर डालने या उठाने के प्रयोजनों के लिए, अथवा

(घ) जब जलयान सूखे डॉक में प्रवेश करे या उसे छोड़े तब सूखे डॉक के केसूनों को हटाने या पुनः रखने के प्रयोजन के लिए, अथवा

(ङ) किसी जलयान को आपात की दशा में डॉक में लाने या वहां से ले जाने के प्रयोजन के लिए, अथवा

(च) कयर की पलास रसियां और रोक-तार तैयार करने, जलबन्धों पर गहराई चिह्न रंगने, जब कभी आवश्यक हो तब चपलानों को हटाने या पुनः रखने, सीढ़ियां लगाने, मानक पर्यन्त रक्षाबोयों या तद्रूप किसी अन्य अनुरक्षण-संकर्म को बनाए रखने के प्रयोजन के लिए, अथवा

(छ) पोत की रस्सी को घाट तक लाने के लिए डोंगियों पर किसी काम के प्रयोजन के लिए नियोजित है;

(ध्त्त्त्) (क) किसी ऐसे भवन के, जो भूमि के ऊपर ऊंचाई में एक मंजिल से अधिक या भूमि तल से लेकर छत के शिखाग्र तक बारह फुट या उससे अधिक होने के लिए परिकल्पित है या रहा है, अथवा

(ख) किसी ऐसे बांध या तटबन्ध के, जो अपने निम्नतम बिन्दु से लेकर उच्चतम बिन्दु तक ऊंचाई में बारह फुट या उससे अधिक है, अथवा

(ग) किसी सड़क, पुल, सुरंग या नहर के, अथवा

(घ) किसी घाट, पोतघाट, समुद्र-भित्ति या अन्य समुद्री संकर्म के, जिसके अन्तर्गत पोतों के लंगर डालने का स्थान आता है, सन्निर्माण, अनुरक्षण, मरम्मत या तोड़ने में नियोजित है; अथवा

  1. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 द्वारा लोप किया गया ।
  2. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 15 द्वारा (15-9-1995 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

(ix) किसी टेलीग्राफ टेलिफोन लाइन या उसके खम्बे या किसी शिरोपरि विद्युत लाइन या केबिल या खम्बे या दण्ड या उनके लिए फिटिंग और फिक्सचर को स्थापित करने, अनुरक्षित रखने, उनकी मरम्मत करने, या उतार लेने में नियोजित है; अथवा

(x) किसी आकाशी रज्जु-मार्ग, नहर, पाइप लाइन या मलनाली के सन्निर्माण, उसको क्रियाशील रखने, उसकी मरम्मत करने, या उसे तोड़ने में, 1॥। नियोजित है; अथवा

(xi) किसी अग्नि-शामक दल की सेवा में नियोजित है; अथवा

(xii) 2[रेल अधिनियम, 1989 (1989 का 24) की धारा 2 के खंड (31) और धारा 197 की उपधारा (1)] में यथापरिभाषित रेल में ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो रेल प्रशासन के साथ किसी संविदा की पूर्ति कर रहा है, सीधे या किसी उप ठेकेदार के माध्यम से नियोजित है; अथवा

(xiii) निरीक्षक, डाक-रक्षक, डाक छांटने वाले या वैन पियन के रूप में रेल डाक-सेवा में 1[या तार संकेतक के रूप में या डाक या रेल के सिर-नेलर के रूप में] नियोजित है, या भारतीय डाक और तार विभाग में किसी ऐसी उपजीविका में, जिसमें मामूली तौर पर बाहर का काम अन्तर्वलित हो, नियोजित है;] अथवा

(xiv) प्राकृतिक पैट्रोलियम या प्राकृतिक गैस निकालने की क्रियाओं के सम्बन्ध में, 2॥। नियोजित है; अथवा

(xv) ऐसी किसी उपजीविका में, जिसमें विस्फोटक संक्रियाएं अन्तर्वलित हों, नियोजित है; अथवा

(xvi) ऐसे उत्खन्न करने में नियोजित है, 2॥। या विस्फोटक प्रयुक्त किए गए हैं या जिसकी गहराई उसके उच्चतम बिन्दु से लेकर निम्नतर बिन्दु तक 3[बारह] फुट से अधिक हैं; अथवा

(xvii) दस व्यक्तियों से अधिक को वहन करने योग्य पार नौका चलाने में नियोजित है; या

4[(xviii) किसी भू-संपदा में नियोजित, जिसका अनुरक्षण इलायची, सिनकोना, कॉफी, रबड़ या चाय उगाने के प्रयोजन के लिए किया जाता है; या

5[(xix) विद्युत ऊर्जा के उत्पादन, रूपान्तरण, पारेषण या वितरण में अथवा गैस के उत्पादन या प्रदाय में 2॥। नियोजित है; अथवा

(xx) भारतीय दीपस्तंभ अधिनियम, 1927 (1927 का 17) की धारा 2 के खण्ड (ध) में यथापरिभाषित दीपस्तंभ में नियोजित है; अथवा

(xxi) लोक-प्रदर्शन के लिए आशयित चलचित्रों के निर्माण में, या ऐसे चित्रों को प्रदर्शित करने में नियोजित है; अथवा

(xxii) हाथियों या जंगली जीव-जन्तुओं के प्रशिक्षण, पालने या उनसे काम लेने में, नियोजित है; अथवा

6[(xxiii) ताड़ के पेडों से रस निकालने या वृक्षों को गिराने या उनसे लट्ठे बनाने में या अन्तर्देशीय जल द्वारा काष्ठ के परिवहन में, या दावानल के नियंत्रण या बुझाने में नियोजित हैं; अथवा

(xxiv) हाथियों या अन्य जंगली जीव-जन्तुओं को पकड़ने या उनका शिकार करने की संक्रियाओं में नियोजित है; अथवा]

  1. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 18 द्वारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 का लोप किया गया ।
  3. 1959 के अधिनियम सं० 8 की धारा 18 द्वारा (1-6-1959 से) बीसञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 15 द्वारा (15-9-1995 से) मद (न्त्न्) और खेती करने में नियोजित हैञ्ज् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  1. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 11 द्वारा अन्तःस्थापित ।

 

 

 

 

 

1[(xxv)] गोताखोर के रूप से नियोजित है; 5[अथवा

(xxvi) (क) किसी ऐसे भाण्डागार या अन्य स्थान की, जिसमें माल भंडारित किया जाता है; 2॥। अथवा

(ख) किसी ऐसे बाजार की, 2॥। प्रसीमाओं में, या के अन्दर माल हथालने या उसका परिवहन करने में नियोजित है; अथवा

(xxvii) किसी ऐसी उपजीविका में, जिसमें रेडियम या एक्स-रे साधित्र को हथालाना या उसका अभिचालन या रेडियों ऐक्टिव पदार्थों का संस्पर्श अन्तर्वलित है, नियोजित है; 1[अथवा]

1(xxviii) भारतीय वायुयान अधिनियम, 1934 (1934 का 22) की धारा 2 में यथापरिभाषित वायुयान के सन्निर्माण, बनाने, खोल डालने, चालन या अनुरक्षण में या उसके संबंध में नियोजित है; अथवा

(xxix) ट्रेक्टरों या अन्य यंत्रों द्वारा, जो वाष्प या अन्य यांत्रिक शक्ति द्वारा या विद्युत द्वारा चलते हैं, 5[उद्यान-कृषि संक्रियाओं, बनोद्योग, मधुमक्खी पालन या खेती करने में नियोजित है;] अथवा

(xxx) नलकूप के निर्माण, चालन, मरम्मत या अनुरक्षण में, 2॥। नियोजित है; अथवा

(xxxi) किसी भवन में विद्युत फिटिंग के अनुरक्षण, मरम्मत या नवीकरण में नियोजित है; अथवा

(xxxii) सरकस में नियोजित है ]

 

 

2[(xxxiii) किसी कारखाने या स्थापन में चौकीदार के रूप में नियोजित है; अथवा

(xxxiv) समुद्र में मछली पकड़ने की किसी संक्रिया में नियोजित है; अथवा

(xxxv) किसी ऐसे रोजगार में नियोजित है जिसमें विष निकालने के प्रयोजन के लिए या सांपों की देखभाल करने के प्रयोजन के लिए सांपों को हथालने अथवा किसी विषैले जीव-जन्तु या कीट को हथालने की अपेक्षा की जाती है; अथवा

(xxxvi) घोड़ों, खच्चरों और सांड जैसे जीव-जन्तुओं के हथालने संबंधी काम में नियोजित है; अथवा

(xxxvii) किसी यंत्रनोदित यान में लदाई या उससे उतराई के प्रयोजन के लिए अथवा ऐसे माल की, जिसकी ऐसे यानों में लादाई की गई है, उठाई-धराई करने में या उसका परिवहन करने में नियोजित है; अथवा

(xxxviii) किसी स्थानीय प्राधिकारी की सीमाओं के भीतर मल नालियों या सेप्टिक टैंकों की सफाई में नियोजित है; अथवा

(xxxix) सर्वेक्षण और अन्वेषण, खोज अथवा नदियों के मापन या निस्सारण प्रेक्षण में नियोजित है, जिसके अंतर्गत संवर्धन संक्रियाएं, जल विज्ञानीय प्रेक्षण तथा बाढ़ पूर्वानुमान क्रियाकलाप भूगर्भ-जल सर्वेक्षण और खोज हैं;

(xl) ऐसे जंगलों के साफ करने में अथवा भूमि या तालाबों के ठीक करने में नियोजित है; 3॥।

(xli) ऐसी भूमि पर खेती करने में या पशु धन के पालन-पोषण तथा अनुरक्षण या वन संक्रियाओं या मछली पकड़ने में नियोजित है; 2॥।

(xlii) कूपों, नलकूपों, तालाबों, झीलों, जल धाराओं तथा वैसे ही स्त्रोतों से जल उत्थापन के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पंपिंग उपस्कर के संस्थापन, अनुरक्षण या मरम्मत में नियोजित हैं;

 

  1. 1938 के अधिनियम सं० 9 की धारा 11 द्वारा मूल खण्ड (न्न्त्त्त्) को (न्न्ध्) के रूप में पुनः संख्यांकित किया गया ।
  2. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 15 द्वारा (15-9-1995 से) अन्तःस्थापित ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 10 द्वारा लोप किया गया ।

 

 

 

(xliii) किसी खुले कूप या खोदे गए कूप, बोर कूप, बोर तथा खोदे गए बूथ फिल्टर पाइंट और वैसे ही बोरिंग संन्निर्माण, या उन्हें गहरा करने में नियोजित हैं;

(xliv) कृषि संक्रियाओं या बागानों में कीटनाशी या नाशक जीव मार के फुहारन करने और उसके धूल झाड़न में नियोजित हैं;

(xlv) यांत्रिक फसल कटाई और गहाई संक्रियाओं में नियोजित हैं;

(xlvi) बुलडोजरों, ट्रेक्टरों, पावर टिलरों तथा वैसी ही मशीनों के चालन या मरम्मत या अनुरक्षण में नियोजित हैं;

(xlvii) भूमि तल से 3.66 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई पर विज्ञापन बोर्डों पर चित्र बनाने के लिए कलाकार के रूप में नियोजित हैं;

(xlviii) श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम, 1955 (1955 का 45) में परिभाषित किसी समाचारपत्र स्थापन में नियोजित हैं और बाह्य कार्य में लगे हैं;

1[(xlix) पानी के भीतर कार्य के लिए गोताखोरों के रूप में नियोजित]  

2।                                                             ।                                                              ।                                              ।

2[अनुसूची 3

(धारा 3 देखिए)

उपजीविकाजन्य रोगों की सूची

क्र.सं.

उपजीविकाजन्य रोग

नियोजन

 

(1)

(2)

(3)

भाग

1

संक्रामक और परजीवी रोग, जो उस उपजीविका से हुआ हो जहां संदूषण की विशिष्ट जोखिम हो ।

(क) सभी कार्य जो स्वास्थ्य या प्रयोगशाला कार्य के लिए उच्छन्न करते हों;

 

 

 

क्र.सं.

उपजीविकाजन्य रोग

नियोजन

(1)

(2)

(3)

 

 

(ख) सभी कार्य जो पशु-चिकित्सा कार्य के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

 

(ग) जीव-जन्तुओं, जीव-जन्तु शवों, ऐसे शवों के भागों या व्यापारिक माल के; जो जीव-जन्तुओं या जीव-जन्तु शवों द्वारा संदूषित हो गया हो, हथालने से संबंधित कार्य;

 

 

(घ) अन्य कार्य जिसमें संदूषण की विशिष्ट जोखिम हो ।

2.

संपीड़ित वायु में कार्य द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

  1. सा.का.नि. 381, तारीख 3-11-1997 द्वारा जोड़ा गया ।
  2. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 6 द्वारा (1-7-1984 से) अनुसूची 3 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

3.

सीसा या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

4.

नाइट्रस धूमों द्वारा विषाक्तता ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

5.

कार्बनिक फास्फोरस सम्मिश्रणों द्वारा विषाक्तता ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

भाग

1.

फास्फोरस या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

2.

पारद या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

3.

बैंनजीन या उसके विषैले समजातों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

4.

नाइट्रो और बैंनजीन के एमिडो विषैले व्युत्पन्नों या उसके समजातों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

5.

क्रोमियम या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

6.

संखिया या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

7.

रेडियो एक्टिव पदार्थों और आयनकारी विकिरणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो रोडियोएक्टिव पदार्थों या आयतकारी विकिरणों के लिए उच्छन्न करते हों ।

8.

तारकोल, डामर, बिटूमेन, खनिज तेल, एन्थ्रसीन या इन पदार्थों के सम्मिश्रणों; उत्पादों या अवशेषों द्वारा कारित त्वचा का प्राथमिक उपकला-बुंदयुक्त कैंसर ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

9.

(ऐलिफैटिक एनडेरोमेटिक आवलियों के) हाइड्रोकार्बनों के विषैले हैलोजेन व्युत्पन्नों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

10

कार्बन डाइसल्फाइड द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

11.

अवरक्त विकिरणों से उत्पन्न उपजीविका जन्य मोतियाबिन्द ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

12.

मैंगनीज या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

13.

शारीरिक, रासायनिक या जैविक कारकों द्वारा, जो अन्य मदों में सम्मिलित नहीं हैं; कारित त्वचा रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

14.

शोर द्वारा कारित श्रवण हानि ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

15.

प्रतिस्थापी डाइनाट्रोफीनॉल या ऐसे पदार्थों के लवणों द्वारा विषाक्तता ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

16.

बेरिलियम या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

बेरिलियम या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

17.

कैडिमियम या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

क्र.सं.

उपजीविकाजन्य रोग

नियोजन

(1)

(2)

(3)

18.

कार्य प्रक्रिया में अन्तर्विष्ट मान्यताप्राप्त सुग्राही कारकों द्वारा कारित उजीविका-जन्य दमा ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

19.

फ्लुओरी या उसके विषैले सम्मिश्रणों द्वारा कारित   रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

20.

नाइट्रोग्लिसरीन या अन्य नाइट्रोएसिड ऐस्टरों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

21.

एलकोहॉलों और कीटोनों द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

22.

श्वासरोध, कार्बनमोनोक्साइड और उसके विषैले व्युत्पन्नों, हाईड्रोजन सल्फाइड द्वारा कारित रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

23.

एस्बैस्टॉस द्वारा कारित फेफड़ा कैंसर और मीजिथीलिओमा ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

24.

मू्त्राशय या वृक्क या मूत्रवाहिनी की एपिथिलिअल लाइनिंग का प्राथमिक अर्बुद ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

1[25.

बरफ से घिरे क्षेत्रों में हिमांधता ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

26.

अत्यंत गरम जलवायु में गर्मी के प्रभाव से उत्पन्न रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

27.

अत्यंत ठंडी जलवायु में ठंड के प्रभाव से उत्पन्न रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों

भाग

1.

स्क्लेरोजेनिक खनिज धूल (सिलिकोसिस एन्थ्रासिलिकोसिस एस्बेस्टौसिस) द्वारा कारित फुफ्फुस-धूलिमयता और सिकता यक्षमा परन्तु यह कि सिकतामयता परिणामी निर्योग्यता या मृत्यु कारित करने में आवश्यक घटक हो ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

2.

इक्षुधूलिमयता ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

  1. 1995 के अधिनियम सं० 30 की धारा 16 द्वारा (15-9-1995 से) अंतःस्थापित ।

 

 

 

 

 

 

3.

रूई, फ्लैक्स हैम्प और सीसल धूलि (बिसिनोसिस) द्वारा कारित श्वासनी फुफ्फुस रोग ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

 

4.

कार्बनिक धूल के अभिश्वसन द्वारा कारित बहिरस्थ एलर्जी एल्बियोलाइटीज

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

5.

कठोर धातुओं द्वारा कारित श्वसनी-फुफ्फुस ।

सभी कार्य जो संबंधित जोखिम के लिए उच्छन्न करते हों ।

                                 

1[अनुसूची 4]

(धारा 4 देखिए)

स्थायी निःशक्तता और मृत्यु की दशा में प्रतिकर को रकम के एक मूक्ता समतुल्य रकम निकालने के लिए

गुणक

2[कर्मचारी] को प्रतिकर देय होने की तारीख के ठीक पूर्ववर्ती उसके अन्तिम जन्म दिवस को पूर्ण हुए वर्षों की संख्या

गुणक

(1)

(2)

16 से अधिक नहीं

228.54

 

3[कर्मचारी] को प्रतिकर देय होने की तारीख के ठीक पूर्ववर्ती उसके अन्तिम जन्म दिवस को पूर्ण हुए वर्षों की संख्या

गुणक

17. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. .

227.49

18. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ....  

226.38

19. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

225.22

20. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

224.00

21. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

222.71

22. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

221.37

23. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

219.95

24. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

218.47

25. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

216.91

26. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

215.28

27. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

213.57

इससे अधिक नहीं 28. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

211.79

29. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

209.92

30. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

207.98

31. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

205.95

32. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

203.85

33. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

201.66

34. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

199.40

35. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

197.06

36. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

194.64

37. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

192.14

38. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

189.56

39. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

186.90

40. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

184.17

41. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

181.37

42. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

            178.49

43. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

175.54

44. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. .

172.52

45. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

169.44

46. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

166.29

47. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

163.07

48. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

159.80

49. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

156.47

50. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

153.09

51. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

149.67

52. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

146.20

1[कर्मचारी] को प्रतिकर देय होने की तारीख के ठीक पूर्ववर्ती

उसके अन्तिम जन्म दिवस को पूर्ण हुए वर्षों की संख्या

गुणक

(1)

(2)

53. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

142.68

54. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

139.13

 

 

55. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

135.56

56. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

131.95

57. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

128.33

58. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

124.70

59. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

121.05

60. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

117.41

61. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

113.77

62. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

110.14

63. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

106.52

64. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

102.93

65 या अधिक. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

99.37]

 

  1. 1984 के अधिनियम सं० 22 की धारा 7 द्वारा (1-7-1984 से) अनुसूची 4 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 2009 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।

 

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