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प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 ( Maternity Benefit Act, 1961 )


 

संसद के अधिनियम

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961

(1961 का अधिनियम संख्यांक 53)

12 दिसंबर, 1961

कतिपय स्थाफनों में शिशु जन्म के पूर्व और पश्चात की कतिपय

कालावधियों में स्त्रियों के नियोजन को विनियमित करने

तथा प्रसूति प्रसुविधा और कतिपय अन्य प्रसुविधाओं

का उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के बारहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: –

 

 (1) संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभयह अधिनियम प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 कहा जा सकेगा

(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर हैं

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो

[() खानों के संबंध में और किसी ऐसे अन्य स्थापन के संबंध में, जिसमें लोगों को घुड़सवारी, कलाबाजी और अन्य करतबों के प्रदर्शन के लिए नियोजित किया जाता है, केन्द्रीय सरकार द्वारा, तथा]

 () किसी राज्य के अन्य स्थापनो के संबंध में, उस राज्य सरकार द्वारा, शासकीय राजपत्र में इस निमित्त अधिसूचित की जाए

 

 

2. अधिनियम का लागू होना – [(1) यह प्रथमतः: –

() हर ऐसे स्थापन को जो कारखाना, खान या बागान हैं, जिसके अन्तर्गत सरकार का ऐसा कोई स्थापन भी हैं और प्रत्येक ऐसे

 

 

 

  1. 1970 के अधिनियम संख्यांक 51 की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा (1.9.1971 से) “जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवायशब्दों का लोप किया गया ।
  2. 1 नवम्बर, 1963; देखिए अधिसूचना संख्यांक आ. का. 2920, तारीख 5 अक्तूबर, 1963, भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), भाग 2, अनुभाग 3(2), पृष्ठ 3735.
  3. 1973 के अधिनियम संख्यांक 52 की धारा 2 द्वारा (1.3.1975 से) खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 2 द्वारा (10.1.1989 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

 

स्थापन को लागू होता हैं जिसमें लोगों को घुड़सवारी, कलाबाजी और अन्य करतबों के प्रदर्शन के लिए नियोजित किया जाता हैं;

 

 (ख) किसी राज्य में दुकानों और स्थापनो के संबंध में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अर्थ के अन्तर्गत ऐसी प्रत्येक दुकान या स्थापन को लागू होता हैं जिसमें दस या अधिक व्यक्ति नियोजित हैं या पूर्ववर्ती बारह मास के किसी दिन नियोजित थे:]

परन्तु राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, ऐसा करने के अपने आशय की दो मास से अन्यून की सूचना देने के पश्चात राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, घोषित कर सकेगी कि इस अधिनियम के सब या कोई उपबंध औद्योगिक, वाणिज्यिक, कृषिक या अन्य प्रकार के किसी अन्य स्थापन या स्थाफनों के वर्ग को भी लागू होंगे ।]

 

 (2) [धारा 5क और धारा 5ख] में जैसा अन्यथा उपबंधित हैं उसके सिवाय इस अधिनियम में अंतर्विष्ट कोई भी बात] किसी ऐसे कारखाने या अन्य स्थापन को लागू न होगी जिसे कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के उपबंध तत्समय लागू होते हों ।

 

 

 

 

3. परिभाषाए – इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,

(क) “समुचित सरकारसे ऐसे स्थापन के संबंध में, जो खान हैं [ऐसा स्थापन हैं जिसमें लोगों को घुड़सवारी, कलाबाजी और अन्य करतबों के प्रदर्शन के लिए नियोजित किया जाता हैं, केन्द्रीय सरकार और किसी अन्य स्थापन के संबंध में राज्य सरकार अभिप्रेत हैं;]

 (ख) “शिशुके अंतर्गत मॄतजात शिशु भी हैं;

 (ग) “प्रसवसे शिशु का जन्म अभिप्रेत हैं;

 (घ) “नियोजकसे –

(1) किसी ऐसे स्थापन के संबंध में जो सरकार के नियंत्रण के अधीन हैं, कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  1. 1972 के अधिनियम संख्यांक 21 की धारा 2 द्वारा “इस अधिनियम में अंतर्विष्ट कोई भी बातके स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1976 के अधिनियम संख्यांक 53 की धारा 2 द्वारा (1.5.1976 से) “धारा 5क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1973 के अधिनियम संख्यांक 52 की धारा 4 द्वारा (1.3.1975 से) अंत: स्थापित ।

 

 

नियुक्त व्यक्ति या प्राधिकारी, या जहां कोई भी व्यक्ति या प्राधिकारी ऐसे नियुक्त नहीं हैं वहां विभागाध्यक्ष, अभिप्रेत हैं;

 

 (2) किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन के स्थापन के संबंध में, कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए ऐसे प्राधिकारी द्वारा नियुक्त व्यक्ति या जहां कोई भी व्यक्ति ऐसे नियुक्त नहीं हैं, वहां उस स्थानीय प्राधिकारी का मुख्य कार्यपालक आफिसर अभिप्रेत हैं;

 

(3) किसी अन्य दशा में, वह व्यक्ति या वह प्राधिकारी जो स्थापन के कार्यकलाप पर अंतिम नियंत्रण रखता हैं और जहां उक्त कार्यकलाप किसी अन्य व्यक्ति को सौंपा गया हैं, चाहे वह प्रबंधक, प्रबंध-निदेशक, प्रबंध-अभिकर्ता कहलाता हैं या किसी अन्य नाम से पुकारा जाता हैं, वहां ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत हैं;

 

(4) “स्थापनसे निम्नलिखित अभिप्रेत हैं –

  1.  कोई कारखाना;
  2.  कोई खान;
  3.  कोई बागान;
  4.  कोई ऐसा स्थापन जिसमें लोगों को घुड़सवारी, कलाबाजी, और अन्य करतबों के प्रदर्शन के लिए नियोजित किया जाता हैं;

 कोई दुकान या स्थापन; या

(5) कोई ऐसा स्थापन जिसे इस अधिनियम के उपबंध धारा 2 की उपधारा (1) के अधीन लागू घोषित किए गए हैं;

 

 (6) “कारखानासे कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) की धारा 2 के खंड (ड) में यथापरिभाषित कारखाना अभिप्रेत हैं;

 

 (7) “निरीक्षकसे धारा 14 के अधीन नियुक्त निरीक्षक अभिप्रेत हैं;

 

 

 

 

  1. 1973 के अधिनियम संख्यांक 52 की धारा 4 द्वारा (1.3.1975 से) खंड (ङ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 2 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 3 द्वारा (10.1.1989 से) “याशब्द का लोप किया गया ।
  3. 3 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 3 द्वारा (10.1.1989 से) अंत: स्थापित ।

 

 

(8) “प्रसूति प्रसुविधासे धारा 5 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट संदाय अभिप्रेत हैं;

[(जक) “गर्भ का चिकित्सीय समापनसे गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 (1971 का 34) के उपबन्धों के अधीन अनुज्ञेय गर्भ का समापन अभिप्रेत हैं;]

 

(9) “खानसे खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) की धारा 2 के खंड (ञ) में यथापरिभाषित खान अभिप्रेत हैं;

 

(10) “गर्भपातसे गर्भावस्था के छब्बीसवें सप्ताह के पूर्व या दौरान की किसी कालावधि में सगर्भ गर्भाशय की अंतर्वस्तुओं का निष्कासन अभिप्रेत हैं, किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा गर्भपात नहीं आता हैं जिसका कारित किया जाना भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दंडनीय हैं;

 

(11) “बागानसे बागान श्रम अधिनियम, 1951 (1951 का 69) की धारा 2 के खंड (च) में यथापरिभाषित बागान अभिप्रेत हैं;

 

(12) “विहितसे इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत हैं ;

 

(13) “राज्य सरकारसे किसी संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में उसका प्रशासक अभिप्रेत हैं;

(14) “मजदूरीसे वह सब पारिश्रमिक अभिप्रेत हैं जो किसी स्त्री को, नकदी में संदत्त किया गया या यदि नियोजन की संविदा के अभिव्यक्त या विवक्षित निबंधनों की पूर्ति हो गई होती तो संदेय होता और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी आते हैं –

  1. ऐसे नकद भत्ते (जिनके अंतर्गत मंहगाई भत्ता और गृह भाटक भत्ता भी हैं) जिनकी कोई स्त्री तत्समय हकदार हो;
  2. प्रोत्साहन बोनस; तथा
  3. खाद्यान्नों या अन्य वस्तुओं के रियायती प्रदाय का धन मूल्य,

किन्तु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं –

 

 

 

  1. 1995 के अधिनियम संख्यांक 29 की धारा 2 द्वारा (1.2.1996 से) अंत: स्थापित ।

 

 

  1. प्रोत्साहन बोनस से भिन्न कोई बोनस;
  2. अतिकालिक उपार्जन और जुर्मानों के लिए की गई कोई कटौती या संदाय;
  3. किसी पेंशन निधि या भविष्य निधि में या उस स्त्री की प्रसुविधा के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन नियोजक द्वारा संदत्त या संदेय कोई अभिदाय; तथा
  4. सेवा के पर्यवसान फर संदेय कोई उपदान;

(ण) “स्त्रीसे किसी स्थापन में मजदूरी पर नियोजित स्त्री अभिप्रेत हैं चाहे वह सीधे नियोजित हो या किसी अभिकरण के माध्यम से ।

 

 

 

 

4. कतिपय कालावधियों के दौरान स्त्रियों का नियोजन या उनके द्वारा काम का किया जाना प्रतिषिद्ध – (1) कोई भी नियोजक किसी स्त्री को उसके प्रसव गर्भपात या गर्भ के चिकित्सीय समापन के दिन के अव्यवहित पस्च्यातवर्ती छह सप्ताह के दौरान किसी स्थापन में जानते हुए नियोजित न करेगा ।

 

 

(2) कोई भी स्त्री अपने प्रसव गर्भपात या गर्भ के चिकित्सीय समापन के दिन के अव्यवहित पस्च्यातवर्ती छह सप्ताह के दौरान किसी स्थापन में काम नहीं करेगी ।

 

 

(3) धारा 6 के उपबन्धों पर  प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह हैं कि किसी भी गर्भवती स्त्री से इस निमित्त उसके द्वारा प्रार्थना की जाने पर उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट कालावधि के दौरान उसके नियोजक द्वारा कोई ऐसा काम करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी जो कठिन प्रकृति का हो या जिसमें दीर्घकाल तक खड़ा रहना अपेक्षित हो या जिससे उसके गर्भवतित्व में या भ्रूण के प्रसामान्य विकास में किसी भी प्रकार    विघ्न होना संभाव्य हो या जिससे उसका गर्भपात कारित होना या अन्यथा उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना संभाव्य हो ।

 

(4) उपधारा (3) में निर्दिष्ट कालावधि निम्नलिखित होगी –

 

(क) उसके प्रत्याशित प्रसव की तारीख के पूर्व के छह सप्ताह

 

 

 

 

 

  1. 1995 के अधिनियम संख्यांक 29 की धारा 3 द्वारा (1.2.1996 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

की कालावधि के अव्यवहित पूर्ववर्ती एक मास की कालावधि;

 

(ख) उक्त छह सप्ताह की कालावधि के दौरान की कोई कालावधि जिसके लिए वह गर्भवती स्त्री अनुपस्थिति की छुट्टी का उपभोग धारा 6 के अधीन नहीं करती ।

 

5. प्रसूति प्रसुविधा के संदाय के लिए अधिकार – [(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, हर स्त्री अपनी वास्तविक अनुपस्थिति की कालावधि, अर्थात अपने प्रसव के दिन के अव्यवहित पूर्ववर्ती कालावधि, अपने प्रसव के वास्तविक दिन और उस दिन की अव्यवहित पस्च्यातवर्ती किसी कालावधि के लिए औसत दैनिक मजदूरी की दर पर प्रसूति प्रसुविधा के संदाय की हकदार होगी और उसका नियोजक उसके लिए दायी होगा ।]

 

 स्पष्टीकरण – इस उपधारा के प्रयोजन के लिए औसत दैनिक मजदूरी से उस तारीख के, जिससे वह स्त्री प्रसूति के कारण अनुपस्थित होती हैं, अव्यवहित पूर्ववर्ती तीन कलैंडर मासों की कालावधि के दौरान के उन दिनों के लिए जिन दिनों उसने काम किया हैं उसको संदेय उसकी मजदूरी का औसत [मजदूरी संदाय अधिनियम, 1948 (1948 का 11) के अधीन नियत या पुनरीक्षित मजदूरी की न्यूनतम दर या दस रुपए प्रतिदिन, जो भी अधिक हों] ।

 

(2) कोई भी स्त्री प्रसूति प्रसुविधा की तब तक हकदार न होगी, जब तक उसने अपने प्रत्याशित प्रसव की तारीख के अव्यवहित पूर्ववर्ती बारह मासों में [अस्सी दिन] से अन्यून दिन की कालावधि पर्यत उस नियोजक के जिससे प्रसुविधा का वह दावा करती है किसी स्थापन में वस्तुतः काम न किया हो:

 

परंतु पूर्वोक्त [अस्सी दिन] की अर्हक कालावधि उस स्त्री को लागू न होगी जिसने असम राज्य में अप्रवास किया हो और अप्रवास के समय गर्भवती रही हो ।

 

स्पष्टीकरण – इस उपधारा के अधीन उन दिनों की जिन दिनों स्त्री

 

 

 

  1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 4 द्वारा (10.1.1989 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 4 द्वारा (10.1.1989 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

ने स्थापन में वस्तुतः काम किया संगणना करने के प्रयोजनार्थ, उन दिनों को गणना में लिया जाएगा जिन दिनों उसके प्रत्याशित प्रसव की तारीख के अव्यवहित पूर्ववर्ती बारह मास की कालावधि के दौरान [उसकी कामबंदी की गई हो या वह ऐसे अवकाश पर हो जिसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मजदूरी सहित अवकाश घोषित किया गया हो] ।

 

[(3) वह अधिकतम कालावधि, जिसके लिए कोई स्त्री प्रसूति प्रसुविधा की हकदार होगी, बारह सप्ताह होगी, जिसमें से छह सप्ताह से अनधिक उसके प्रसव की प्रत्याशित तारीख से पूर्व होंगी:]

 

परंतु जहां कि कोई स्त्री इस कालावधि के दौरान मर जाए, वहां प्रसूति प्रसुविधा उसकी मृत्यु के दिन तक के लिए ही, जिसके अंतर्गत वह दिन भी सम्मिलित होगा, संदेय होगी:

 

[परन्तु यह और भी कि जहां कोई स्त्री शिशु को जन्म देकर अपने प्रसव के दौरान या अपने प्रसव की तारीख के अव्यवहित पस्च्यातवर्ती उस कालावधि के दौरान, जिसके लिए वह प्रसूति प्रसुविधा के लिए हकदार हैं, इन दोनों दशाओं में से किसी भी दशा में उस शिशु को छोड़कर मर जाती हैं, वहां नियोजक उस संपूर्ण कालावधि के लिए, यदि शिशु भी उक्त कालावधि के दौरान मर जाए तो शिशु की मृत्यु के दिन तक की, जिसमें वह दिन भी सम्मिलित होगा, कालावधि के लिए, प्रसूति प्रसुविधा का दायी होगा ।]

 

[5क. कुछ दशाओं में प्रसूति प्रसुविधा का बना रहना – इस अधिनियम के अधीन प्रसूति प्रसुविधा पाने की हकदार हर स्त्री, उस कारखाने या अन्य स्थापन को जिसमें वह नियोजित हैं, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के लागू होते हुए भी, तब तक पूर्ववत हकदार बनी रहेगी जब तक वह उस अधिनियम की धारा 50 के अधीन प्रसूति प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित न हो जाए ।]

 

[5ख. कतिपय दशाओं में प्रसूति प्रसुविधा का संदाय – प्रत्येक स्त्री –

 

  • जो किसी ऐसे कारखाने अथवा अन्य स्थापन में नियोजित

 

 

 

1 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 4 द्वारा (10.1.1989 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2 1972 के अधिनियम संख्यांक 21 की धारा 3 द्वारा (1.6.1972 से) अंत: स्थापित ।

3 1976 के अधिनियम संख्यांक 53 की धारा 3 द्वारा (1.5.1976 से) अंत: स्थापित ।

 

 

हैं जिसे कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के उपबंध लागू होते हैं;

                                     

  • जिसकी मजदूरी (अतिकाल काम के लिए पारिश्रमिक को छोड़कर) एक मास के लिए उस अधिनियम की धारा 2 के खंड (ख) के उपखंड में विनिर्दिष्ट रकम से अधिक हैं; और

 

(ग) जो धारा 5 की उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट शर्तें की पूर्ति करती हैं,

इस अधिनियम के अधीन प्रसूति प्रसुविधा के संदाय की हकदार होगी ।]

 

6. प्रसूति प्रसुविधा के दावे की सूचना और उसका संदाय – (1) किसी स्थापन में नियोजित और इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन प्रसूति प्रसुविधा की हकदार स्त्री अपने नियोजक को ऐसे प्रारूप में जो विहित किया जाए, यह कथन करते हुए लिखित सूचना दे सकेगी कि उसकी प्रसूति प्रसुविधा और कोई अन्य रकम, जिसकी वह इस अधिनियम के अधीन हकदार हो, उसे या उस व्यक्ति को, जिसे वह सूचना में नामनिर्देशित करे संदत्त की जाए और यह कि वह उस कालावधि के दौरान जिसके लिए वह प्रसूति प्रसुविधा प्राप्त करती हैं किसी स्थापन में कार्य नहीं करेगी ।

 

(2)  ऐसी स्त्री की दशा में जो गर्भवती हैं ऐसी सूचना में वह तारीख कथित होगी जिससे वह काम से अनुपस्थित रहेगी और वह तारीख उसके प्रत्याशित प्रसव की तारीख से छह सप्ताह के पूर्वतर की नहीं होगी;

 

(3) कोई स्त्री जिसने तब सूचना न दी हो जब वह गर्भवती थी प्रसव के पश्चात यथासंभव शीघ्र ऐसी सूचना दे सकेगी ।

 

[(4) उस सूचना की प्राप्ति पर नियोजक उस स्त्री को यह अनुज्ञा देगा कि वह उस कालावधि के दौरान, जिसके लिए वह प्रसूति प्रसुविधा प्राप्त करती हैं स्थापन से अनुपस्थित रहे ।]

 

(5) किसी स्त्री के प्रत्याशित प्रसव की तारीख की पूर्ववर्ती कालावधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा की रकम, इस बात के कि वह स्त्री गर्भवती हैं ऐसे सबूत के जैसा विहित किया जाए, पेश किए जाने पर, उस स्त्री को नियोजक द्वारा अग्रिम दी जाएगी, और पश्चात्वर्ती कालावधि के लिए देय

 

 

 

  1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 5 द्वारा (10.1.1989 से) उपधारा (4) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

रकम, इस बात के कि उस स्त्री ने शिशु का प्रसव किया हैं ऐसे सबूत के जैसा विहित किया जाए, पेश किए जाने के अड़तालिश घंटों के अंदर उस स्त्री को नियोजक द्वारा संदत्त की जाएगी ।

 

(6) इस धारा के अधीन सूचना न दे पाना किसी स्त्री को इस अधिनियम के अधीन प्रसूति प्रसुविधा या किसी अन्य रकम के हक से वंचित न करेगा यदि वह ऐसी प्रसुविधा या रकम के लिए अन्यथा हकदार हो और ऐसे किसी मामले में निरीक्षक या तो स्वप्रेरणा से या उसको उस स्त्री द्वारा आवेदन किए जाने पर ऐसी प्रसुविधा या रकम का संदाय ऐसी कालावधि के अंदर करने का आदेश दे सकता जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट हो ।

 

 

7. किसी स्त्री की मृत्यु की दशा में प्रसूति प्रसुविधा का संदाय – यदि इस अधिनियम के अधीन प्रसूति प्रसुविधा या किसी अन्य रकम की हकदार कोई स्त्री ऐसी प्रसूति प्रसुविधा या रकम को प्राप्त करने से पूर्व मर जाए तो, या जहां नियोजक धारा 5 की उपधारा (3) के द्वितीय परंतुक के अधीन प्रसूति प्रसुविधा का दायी हो वहां नियोजक ऐसी प्रसुविधा या रकम धारा 6 के अधीन दी गई सूचना में स्त्री द्वारा नामनिर्देशित व्यक्ति को, और उस दशा में जबकि कोई ऐसा नामनिर्देशिती न हो उसके विधिक प्रतिनिधि को, संदत्त करेगा ।

 

 [8. चिकित्सीय बोनस का संदाय – (1) यदि नियोजक द्वारा प्रसवपूर्व रखने और प्रसवोत्तर देखरेख की कोई भी व्यवस्था निःशुल्क प्रदान की गई हो तो इस अधिनियम के अधीन प्रसूति प्रसुविधा की हकदार हर स्त्री अपने नियोजक से एक हजार रुपए का चिकित्सीय बोनस भी पाने की हकदार होगी ।

 

(2) केन्द्रीय सरकार प्रत्येक तीन वर्ष के पूर्व, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, चिकित्सीय बोनस की रकम को, बीस हजार रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए, बढ़ा सकेगी ।]

 

 [9. गर्भपात, आदि की दशा में छुट्टी – गर्भपात या गर्भ के चिकित्सीय समापन की दशा में, कोई स्त्री, ऐसा सबूत पेश करने पर, जैसा विहित किया जाए, यथाास्थिति, अपने गर्भपात या अपने गर्भ के चिकित्सीय

 

 

 

 

  1. 2008 के अधिनियम संख्यांक 15 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 1995 के अधिनियम संख्यांक 29 की धारा 4 द्वारा (1.2.1996 से) धारा 9 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

 

समापन के दिन के अव्यवहित पस्च्यातवर्ती छह सप्ताह की कालावधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा की दर पर मजदूरी सहित छुट्टी की हकदार होगी ।]

 

 [9क. ट्यूबेक्टामी शल्य-क्रिया के लिए मजदूरी सहित छुट्टी ट्यूबेक्टामी शल्य-क्रिया की दशा में, कोई स्त्री, ऐसा सबूत पेश करने पर, जैसा विहित किया जाए, अपनी ट्यूबेक्टामी शल्य-क्रिया के दिन के अव्यवहित पस्च्यातवर्ती दो सप्ताह की कालावधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा की दर पर मजदूरी सहित छुट्टी की हकदार होगी ।]

 

 10. गर्भावस्था, प्रसव, समयपूर्व शिशु जन्म, या गर्भपात से पैदा होने वाली रुग्णता के लिए छुट्टी – गर्भावस्था, प्रसव, समयपूर्व शिशु जन्म, [गर्भपात, गर्भ के चिकित्सीय समापन या ट्यूबेक्टामी शल्य-क्रिया से पैदा होने वाली रुग्णता से पीड़ित स्त्री, ऐसा सबूत पेश करने पर, जैसा विहित किया जाए, यथस्थिति, धारा 6 या धारा 9 के अधीन उसे अनुज्ञात अनुपस्थिति कालावधि के अतिरिक्त, प्रसूति प्रसुविधा की दर पर मजदूरी सहित अधिकतम एक मास की कालावधि की छुट्टी की हकदार होगी ।

 

 11. पोषणार्थ विराम – हर प्रसूता स्त्री को जो प्रसव के पश्चात काम पर वापस आती हैं उसे विश्रामार्थ अंतराल के अतिरिक्त जो उसे अनुज्ञात हैं अपने दैनिक काम की चर्या में विहित कालावधि के दो विराम शिशु के पोषण के लिए तब तक अनुज्ञात होंगे, जब तक वह शिशु पंद्रह मास की आयु पूरी न कर ले ।

 

 

12. गर्भावस्था के कारण अनुपस्थिति के दौरान पदच्युति – (1) जब कोई स्त्री काम पर से इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार अनुपस्थित रहती हैं तब उसके नियोजक के लिए यह विधिविरुद्ध होगा कि वह उसे ऐसी अनुपस्थिति के दौरान या कारण उन्मोचित या पदच्युत करे या उसे उन्मोचन या पदच्युति की सूचना ऐसे दिन दे कि वह सूचना ऐसी अनुपस्थिति के दौरान अवसित हो, या उसकी सेवा की शर्तों में से किसी में उसके लिए अहितकर फेरफार करे ।

 

 

(2)(क) किसी स्त्री का, उसकी गर्भावस्था के दौरान किसी समय उन्मोचन या पदच्युति का प्रभाव उसे प्रसुविधा या चिकित्सीय बोनस से वंचित करना न होगा, यदि वह स्त्री ऐसे उन्मोचन या पदच्युति के अभाव

 

 

  1. 1995 के अधिनियम संख्यांक 29 की धारा 5 द्वारा (1.2.1996 से) अंत: स्थापित ।
  2. 1995 के अधिनियम संख्यांक 29 की धारा 6 द्वारा (1.2.1996 से) प्रतिस्थापित ।

 

 

 

में, धारा 8 में निर्दिष्ट प्रसूति प्रसुविधा या चिकित्सीय बोनस की हकदार होती:

 

परंतु जहां कि पदच्युति किसी विहित घोर अवचार के कारण हो वहां नियोजक स्त्री को संसूचित लिखित आदेश द्वारा उसे प्रसूति प्रसुविधा या चिकित्सीय बोनस या दोनों से वंचित कर सकेगा ।

 

[(ख) प्रसूति प्रसुविधा, या चिकित्सीय बोनस, या दोनों से, वंचित या इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार काम से अपनी अनुपस्थिति के दौरान या उसके कारण सेवोन्मुक़्त या पदच्युत स्त्री, उस तारीख से, साठ दिन के भीतर जिसको ऐसे वंचित या सेवोन्मुक़्त या पदच्युत किए जाने का आदेश उसे संसूचित किया गया हो, ऐसे प्राधिकारी को, जो विहित किया जाए, अपील कर सकेगी और ऐसी अपील पर उस प्राधिकारी का यह विनिश्चय अंतिम होगा कि स्त्री को प्रसूति प्रसुविधा या चिकित्सीय बोनस, या दोनों से, वंचित या सेवोन्मुक़्त या पदच्युत किया जाना चाहिए या नहीं ।]

 

  • इस उपधारा में अंतर्विष्ट कोई भी बात उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबन्धों पर प्रभाव न डालेगी ।

 

13. कतिपय मामलों में मजदूरी में से कटौती का न किया जाना – इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन प्रसूति प्रसुविधा की हकदार स्त्री की प्रसामान्य और प्रायिक दैनिक मजदूरी में से केवल –

 

  • धारा 4 की उपधारा (3) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के आधार पर उसे समनुदिष्ट काम की प्रकृति; अथवा

 

(ख) धारा 11 के उपबन्धों के अधीन उसे शिशु के पोषण के लिए अनुज्ञात विरामों, के ही कारण कोई भी कटौती नहीं की जाएगी ।

 

14. निरीक्षकों की नियुक्ति – समुचित सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे आफिसरों को, जिन्हें वह ठीक समझे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी और अधिकारिता की वे स्थानीय सीमाएं परिनिश्चित कर सकेगी जिनके अन्दर वे इस अधिनियम के अधीन के अपने कॄत्यों का प्रयोग करेंगे ।

 

15. निरीक्षकों की शक्ति और कर्तव्य – निरीक्षक, ऐसे निर्बन्धनों या शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, निम्नलिखित सब

 

 

 

 

  1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 7 द्वारा (10.1.1989 से) प्रतिस्थापित ।

शक्तियों का या उनमें से किसी का भी प्रयोग कर सकेगा, अर्थात –

 

 

  • ऐसे सहायकों के साथ, यदि कोई हों, जो सरकार की या किसी स्थानीय या अन्य लोक प्राधिकारी की सेवा में के व्यक्ति हों, और जिन्हें वह ठीक समझे, किसी भी ऐसे परिसर या स्थानों में जहां स्थापन में स्त्रियों को नियोजित किया जाता हैं, या काम दिया जाता हैं, किन्हीं ऐसे रजिस्टरों, अभिलेखों और सूचनाओं की जो इस अधिनियम के द्वारा या अधीन रखे या प्रदर्शित किए जाने के लिए अपेक्षित हैं, परीक्षा करने के प्रयोजन के लिए सभी युक्तियुक्त समयों पर प्रवेश करना और उन्हें निरीक्षण के लिए पेश करने की अपेक्षा करना ;

 

 

(ख) किसी ऐसे व्यक्ति की परीक्षा करना, जिसे वह किसी ऐसे परिसर या स्थान में पाए और जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का युक्तियुक्त हेतुक हो कि वह उस स्थापन में नियोजित हैं:

परन्तु किसी भी व्यक्ति को इस धारा के अधीन ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिए या ऐसा साक्ष्य देने के लिए विवश नहीं किया जाएगा, जिसकी प्रवृत्ति स्वयं उसे अपराध में फंसाने की हो;

 

 

(ग) नियोजक से यह अपेक्षा करना कि वह नियोजित स्त्रियों के नामों और पतों, उन्हें किए गए संदायों और इस अधिनियम के अधीन उनसे प्राप्त आवेदनों या सूचनाओं के बारे में जानकारी दे; तथा

 

 

(घ) किन्हीं रजिस्टरों और अभिलेखों या सूचनाओं या उनके किन्हीं प्रभागों की प्रतिलिपियां लेना ।

 

 

16. निरीक्षकों का लोक सेवक होना – इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किया गया हर निरीक्षक भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ के अन्दर लोक सेवक समझा जाएगा ।

 

 

 17. संदाय किए जाने का निदेश देने की निरीक्षक की शक्ति – [(1) इस बात का दावा करने वाली कोई भी स्त्री कि –

 

 

(क) प्रसूति प्रसुविधा या कोई अन्य रकम, जिसकी वह इस अधिनियम के अधीन हकदार हैं, अनुचित रूप से विधारित की गई है,

 

 

 

 

 

    1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 8 द्वारा (10.1.1989 से) उपधारा (1) और उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

और इस बात का दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति कि वह संदाय, जो धारा 7 के अधीन शोध्य हैं, अनुचित रूप से विधारित किया गया हैं;

  • उसके नियोजक ने इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार, काम से उसकी अनुपस्थिति के दौरान या उसके कारण, उसको सेवोन्मुक़्त या पदच्युत कर दिया हैं,

 

निरीक्षक को परिवाद कर सकेगी ।

 

(2) निरीक्षक, स्वप्रेरणा से या उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिवाद की प्राप्ति पर, जांच कर सकेगा या करा सकेगा और यदि उसका यह समाधान हो जाता हैं कि –

(क) संदाय सदोषतः विधारित किया गया हैं, तो वह अपने आदेशों के अनुसार संदाय किए जाने का निदेश दे सकेगा;

(ख) स्त्री को इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार, काम से उसकी अनुपस्थिति के दौरान या उसके कारण सेवोन्मुक़्त या पद- च्युत किया गया हैं, तो वह ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो मामले की परिस्थितियों के अनुसार न्यायसंगत और उचित हों ।]

 

 (3) निरीक्षक के उपधारा (2) के अधीन के विनिश्चय से व्यथित कोई भी व्यक्ति, उस तारीख से, जिसको ऐसा विनिश्चय ऐसे व्यक्ति को संसूचित किया जाए, तीस दिन के भीतर अपील विहित प्राधिकारी को कर सकेगा ।

 

(4) जहां उपधारा (3) के अधीन कोई अपील विहित प्राधिकारी को की गई हो, वहां उसका, और जहां ऐसी अपील न की गई हो, वहां निरीक्षक का विनिश्चय अंतिम होगा ।

 

[(5) इस धारा के अधीन संदाय रकम कलक्टर द्वारा, निरीक्षक द्वारा उस रकम के लिए जारी किए गए प्रमाणपत्र पर, भू-राजस्व की बकाया की भांति वसूलीय होगी ।]

 

18. प्रसूति प्रसुविधा का समपहरण – यदि कोई स्त्री, अपने नियोजक द्वारा धारा 6 के उपबन्धों के अधीन अनुपस्थित रहने के लिए अनुज्ञात किए

 

 

 

  1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 8 द्वारा (10.1.1989 से) उपधारा (5) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

जाने के पश्चात ऐसी प्राधिकृत अनुपस्थिति के दौरान किसी कालावधि में किसी स्थापन में काम करेगी, तो ऐसी कालावधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा का उसका दावा समफहृत हो जाएगा ।

 

19. अधिनियम और तदधीन नियमों की संक्षिप्ति का प्रदर्शित किया जाना – इस अधिनियम और तदधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों की उस परिक्षेत्र की भाषा या भाषाओं में संक्षिप्ति स्थापन के हर ऐसे भाग में, जिसमें स्त्रीयां नियोजित हों, किसी सहजदृशय स्थान में नियोजक द्वारा प्रदर्शित की जाएगी ।

 

20. रजिस्टर, आदि – हर नियोजक ऐसे रजिस्टर, अभिलेख और मस्टर रोल, जैसे और ऐसी रीति में, जैसी विहित की जाए, तैयार करेगा और रखेगा ।

 

[21. नियोजक द्वारा अधिनियम के उल्लंघन के लिए शास्ति – (1) यदि कोई नियोजक, इस अधिनियम के अधीन हकदार किसी स्त्री की प्रसूति प्रसुविधा की किसी रकम का संदाय करने में असफल रहेगा या इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार काम से अनुपस्थित रहने के दौरान या उसके कारण ऐसी स्त्री को सेवोन्मुक़्त या पदच्युत करेगा, तो वह कारावास से, जो तीन मास से कम का नहीं होगा किंतु जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा :

 

 

परंतु न्यायालय, पर्याप्त कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, और कम अवधि के कारावास का या कारावास के बजाय जुर्माने का दंडादेश, अधिरोपित कर सकेगा ।

 

 

(2) यदि कोई नियोजक इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा तो वह, यदि ऐसे उल्लंघन के लिए इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अन्यत्र कोई अन्य शास्ति उपबंधित नहीं की गई हैं, ऐसे कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा:

 

परंतु जहां उल्लंघन प्रसूति प्रसुविधा के बारे में या किसी अन्य रकम के

 

 

  1. 1988 का अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 9 द्वारा (10.1.1989 से) धारा 21 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

संदाय के बारे में किसी उपबंध का हो और ऐसी प्रसूति प्रसुविधा या रकम पहले ही वसूल नहीं कर ली गई हो वहां, न्यायालय, उसके अतिरिक्त, ऐसी प्रसूति प्रसुविधा या रकम ऐसे वसूल करेगा, मानो वह जुर्माना हो और उसे उसके हकदार व्यक्ति को संदत्त करेगा ।]

 

22. निरीक्षक को बाधा पहुंचाने के लिए शास्ति – जो कोई इस अधिनियम या तदधीन बनाए गए नियमों के अनुसरण में रखे गए अपनी अभिरक्षा में के किसी रजिस्टर या दस्तावेज को निरीक्षक द्वारा मांगे जाने पर पेश करने में असफल रहेगा या किसी व्यक्ति को, निरीक्षक के समक्ष उफसंजात होने से या उसके द्वारा परीक्षित किए जाने से, निवारित करेगा, या उसे छिपायेगा, वह कारावास से, [जो एक वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा,] या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

 

 

 [23. अपराधों का संज्ञान  – (1) कोई व्यथित स्त्री, व्यवसाय संघ अधिनियम, 1926 (1926 का 16) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी ऐसे व्यवसाय संघ का, जिसकी ऐसी स्त्री सदस्य हैं, कोई पदाधिकारी या सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई स्वैच्छिक संगठन या कोई निरीक्षक इस अधिनियम के अधीन अपराध के किए जाने की बाबत सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय में परिवाद फाइल कर सकेगा और ऐसा कोई परिवाद उस तारीख से, जिसको अपराध का किया जाना अभिकथित हैं, एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा ।

 

(2) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।]

 

 

24. सद्भावपूर्वक किए गए कार्य के लिए परित्राण – किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी ऐसी बात के लिए नहीं होगी, जो इस अधिनियम या तदधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई

 

 

 

    1. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 10 द्वारा (10.1.1989 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
    2. 1988 के अधिनियम संख्यांक 61 की धारा 11 द्वारा (10.1.1989 से) धारा 23 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

 

 

या की जाने के लिए आशयित हो ।

 

 

25. केन्द्रीय सरकार की निदेश देने की शक्ति – केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार को इस अधिनियम के उपबन्धों का निष्पादन करने के संबंध में ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह आवश्यक समझे और राज्य सरकार ऐसे निदेशों का पालन करेगी ।

 

 

26. स्थापनों को छूट देने की शक्ति – यदि समुचित सरकार का समाधान हो जाए कि ऐसी प्रसुविधाओं के, जो इस अधिनियम में उपबंधित प्रसुविधाओं से कम अनुकूल न हों, अनुदान का उपबन्ध करने वाले किसी स्थापन को या स्थापनों के वर्गों को ध्यान में रखते हुए ऐसा करना आवश्यक हैं तो वह शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस स्थापन को या स्थापनों के वर्ग को इस अधिनियम के या तदधीन बनाए गए किसी नियम के सभी या किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन से ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के, यदि कोई हों, अध्यधीन, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, छूट दे सकेगी ।

 

 

27. इस अधिनियम से असंगत विधियों और करारों का प्रभाव – (1) इस अधिनियम के उपबन्ध उनसे असंगत किसी बात के किसी अन्य विधि में या किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा-संविदा के निबन्धनों में, चाहे वह इस अधिनियम के प्रवर्तन में आने के पूर्व चाहे पश्चात बनाई गई, किया गया या की गई हो, अन्तर्विष्ट होते हुए भी प्रभावी होंगे:

 

 

परंतु जहां किसी ऐसे अधिनिर्णय, करार, सेवा-संविदा के अधीन या अन्यथा कोई स्त्री किसी बात के बारे में ऐसी प्रसुविधाओं की हकदार हो, जो उसके लिए उन प्रसुविधाओं से अधिक अनुकूल हों जिनकी वह इस अधिनियम के अधीन हकदार होती, वहां वह स्त्री उस बात के बारे में अधिक अनुकूल प्रसुविधाओं की हकदार इस बात के होते हुए भी बनी रहेगी कि वह स्त्री अन्य बातों के बारे में, इस अधिनियम के अधीन प्रसुविधाऐ प्राप्त करने की हकदार हैं ।

 

 

(2) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात का ऐसा अर्थ नहीं लगाया जाएगा, जो किसी स्त्री को इस बात से प्रवारित करे कि वह अपने नियोजक से ऐसे अधिकारों और विशेषाधिकारों के अनुदान के लिए करार करे जो उसे उनसे अधिक अनुकूल हों, जिनकी वह इस अधिनियम के अधीन हकदार होती ।

 

 

28. नियम बनाने की शक्ति – (1) समुचित सरकार पूर्व प्रकाशन

की शर्त के अध्यधीन रहते हुए और इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

 

(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए उपबन्ध कर सकेंगे –

 

(क) रजिस्टरों, अभिलेखों और मस्टर रोलों को तैयार करना और बनाए रखना;

 

(ख) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए निरीक्षकों द्वारा शक्तियों का (जिनके अन्तर्गत स्थापनों का निरीक्षण आता हैं) प्रयोग और कर्तव्यों का पालन;

 

(ग) प्रसूति प्रसुविधा और इस अधिनियम के अधीन की अन्य प्रसुविधाओं के संदाय का ढंग, वहां तक जहां तक उसके लिए इस अधिनियम में उपबंध किया गया हैं;

 

(घ) धारा 6 के अधीन की सूचनाओं का प्ररुप;

 

(ङ) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अपेक्षित सबूत की प्रकृति;

 

(च) धारा 11 में विनिर्दिष्ट पोषणार्थ विरामों की कालावधि;

 

(छ) वे कार्य, जो धारा 12 के प्रयोजनों के लिए घोर अवचार गठित करें;

 

(ज) वह प्राधिकारी, जिसको धारा 12 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) के अधीन अपील होगी; वह प्ररुप और रीति, जिसमें ऐसी अपील की जा सकेगी और वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण उसे निपटाने में किया जाना हैं;

 

(झ) वह प्राधिकारी, जिसको धारा 17 के अधीन निरीक्षक के विनिश्चय के विरुद्ध अपील होगी; वह प्ररुप और रीति जिसमें ऐसी अपील की जा सकेगी और वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण उसे निपटाने में किया जाना हैं;

 

(ञ) वह प्ररुप और रीति, जिसमें धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन निरीक्षक से परिवाद किए जा सकेंगे और वह प्रक्रिया, जिसका अनुसरण उस धारा की उपधारा (2) के अधीन जांच करने या कराने में उनके द्वारा किया जाना हैं;

 

(ट) कोई अन्य बात, जो विहित की जानी हैं या की जाए ।

[(3) इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए, तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

29. 1951 के अधिनियम 69 का संशोधन – बागान श्रम अधिनियम, 1951 की धारा 32 में, –

(क) उपधारा (1) में, शब्द “अर्हित चिकित्सा-व्यवसायीके पूर्व कोष्ठक और अक्षर “(क)”, शब्द “रूग्णता भत्ता, के पश्चात के शब्द “तथा, और खण्ड (ख) लुप्त कर दिए जाएंगे ;

(ख) उपधारा (2) में शब्द  “या प्रसूतिलुप्त कर दिए जाएंगे ।

30. निरसन – इस अधिनियम के –

(i) खानों को लागू होने पर, दि माइन्स मेटर्निटी बेनिफिट एक्ट, 1941 (1941 का 19); तथा

(ii) दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र में स्थित कारखानों को लागू होने पर बाम्बे मेटर्निटी बेनिफिट एक्ट, 1929 (1929 का मुम्बई अधिनियम सं. 7) जैसा वह उस राज्यक्षेत्र में प्रवॄत्त है, निरसित हो जाएगा ।

                                                  --------------------

    1. 1973 के अधिनियम संख्यांक 52 की धारा 5 द्वारा (1.3.1975 से) प्रतिस्थापित ।

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