परमाणुवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम, 2010
(2010 का अधिनियम संख्यांक 38)
[21 सितम्बर, 2010]
परमाणुवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व और त्रुटिरहित दायित्व व्यवस्था के
माध्यम से किसी परमाणुवीय घटना के पीड़ितों को शीघ्र प्रतिकर का संदाय,
प्रचालक को दायित्व निर्दिष्ट करने, दावा आयुक्त की नियुक्ति,
परमाणुवीय नुकसान दावा आयोग की स्थापना और
उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक
विषयों का उपबंध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के इकसठवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: -
अध्याय 1
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार, लागू होना और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम परमाणुवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 है ।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है ।
(3) यह, -
(क) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर खंड से बाहर के समुद्री क्षेत्रों में या पर;
(ख) राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम,1976 (1976 का 80) की धारा 7 में यथानिर्दिष्ट भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में या पर;
(ग) वाणिज्य पोत अधिनियम, 1958 (1958 का 44) की धारा 22 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत के फलक पर या उसके द्वारा;
(घ) वायुयान अधिनियम, 1934 (1934 का 22) की धारा 5 की उपधारा (2) के खंड (घ) के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी वायुयान के फलक पर या उसके द्वारा;
(ङ) भारत की अधिकारिता के अधीन किसी कृत्रिम द्वीप, संस्थापन या संरचना पर या उसके द्वारा,
हुए परमाणुवीय नुकसान को भी लागू होता है ।
(4) यह केवल उस परमाणुवीय संस्थापन पर लागू होता है, जो केन्द्रीय सरकार के स्वयं के या किसी प्राधिकरण या इसके द्वारा स्थापित किसी निगम या किसी सरकारी कंपनी के स्वामित्व या नियंत्रण में है ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, सरकारी कम्पनी" का वही अर्थ है जो परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (1962 का 33) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (खख) में है ।
(5) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे; और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबंध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबंध के प्रवृत्त होने के प्रति-निर्देश है ।
2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -
(क) अध्यक्ष" से धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त आयोग का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ख) दावा आयुक्त" से धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन नियुक्त दावा आयुक्त अभिप्रेत है;
(ग) आयोग" से धारा 19 के अधीन स्थापित परमाणुवीय नुकसान दावा आयोग अभिप्रेत है;
(घ) पर्यावरण" का वही अर्थ है जो पर्यावरण (सरंक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) की धारा 2 के खंड (क) में है;
(ङ) सदस्य" से धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त आयोग का सदस्य अभिप्रेत है;
(च) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है और अधिसूचित" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;
(छ) परमाणुवीय नुकसान" से किसी परमाणुवीय घटना द्वारा कारित या उससे उद्भूत, -
(i) किसी व्यक्ति की जीवन हानि अथवा वैयक्तिक क्षति (जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य पर तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव भी है); अथवा
(ii) संपत्ति की हानि या नुकसान,
अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित सीमा तक निम्नलिखित में से प्रत्येक भी है;
(iii) उपखंड (i) या उपखंड (ii) में निर्दिष्ट हानि या नुकसान से उद्भूत और यदि ऐसी हानि या नुकसान का दावा करने के लिए हकदार किसी व्यक्ति द्वारा उपगत किया गया है, उन उपखंडों के अधीन किए गए दावों में सम्मिलित न की गई कोई आर्थिक हानि;
(iv) किसी परमाणुवीय घटना द्वारा हुए ह्रासित पर्यावरण के पुनःस्थापन के उपायों का खर्च, जब तक ऐसा ह्रास महत्वहीन न हो, यदि ऐसे उपाय वास्तव में किए गए हैं या किए जाने हैं और उन्हें उपखंड (ii) के अधीन किए गए दावों में सम्मिलित नहीं किया गया है;
(v) पर्यावरण के किसी उपयोग या उपभोग में आर्थिक हित से व्युत्पन्न होने वाली आय की हानि, जो परमाणुवीय घटना द्वारा हुए पर्यावरण के महत्वपूर्ण ह्रास के परिणामस्वरूप उपगत हुई है और जिसे उपखंड (ii) के अधीन किए गए दावों में सम्मिलित नहीं किया गया है;
(vi) निवारक उपायों के खर्चे और ऐसे उपायों के कारण हुई और हानि तथा नुकसान;
(vii) उपखंड (iv) और उपखंड (v) में निर्दिष्ट पर्यावरण के ह्रास द्वारा हुई आर्थिक हानि से भिन्न कोई अन्य आर्थिक हानि, जहां तक उसे भारत में प्रवृत्त सिविल दायित्व संबंधी साधारण विधि द्वारा अनुज्ञात किया गया है और किसी ऐसी विधि के अधीन दावा नहीं किया गया है,
ऊपर उपखंड (i) से उपखंड (v) और उपखंड (vii) की दशा में, उस सीमा तक जहां तक ऐसी हानि या नुकसान किसी परमाणुवीय संस्थान के भीतर विकिरण के किसी स्रोत द्वारा उत्सर्जित या परमाणुवीय ईंधन या किसी परमाणुवीय संस्थापन से आने वाली, या उसमें उत्सर्जित होने वाली या उसमें भेजे गए परमाणुवीय पदार्थ में या के रेडियोधर्मी उत्पादों या अपशिष्ट से उत्सर्जित आयनित विकिरण से या उसके परिणामस्वरूप उद्भूत होता है, चाहे वह ऐसे पदार्थ के रेडियोधर्मी गुणधर्मों से या ऐसे पदार्थ के विषैले, विध्वंसक या अन्य परिसंकटमय गुणधर्मों के साथ रेडियोधर्मी गुणधर्मों के संयोजन से उत्पन्न होता है;
(ज) परमाणुवीय ईंधन" से ऐसा कोई पदार्थ अभिप्रेत है, जो परमाणुवीय विखंडन की स्वतः अविरत श्रृंखला प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पादित करने में समर्थ है;
(झ) परमाणुवीय घटना" से ऐसी कोई घटना या घटनाओं की श्रृंखला अभिप्रेत है, जिसका उद्गम स्रोत वही है जो परमाणुवीय नुकसान या निवारक उपायों के अभाव में ऐसा नुकसान करने की गंभीर और आसन्न आशंका पैदा करता है;
(ञ) परमाणुवीय संस्थापन" से निम्नलिखित अभिप्रेत है, -
(अ) कोई परमाणुवीय रिएक्टर, उससे भिन्न, जिससे परिवहन का साधन विद्युत के स्रोत के रूप में उपयोग के लिए, चाहे उसके नोदन के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए सज्जित है;
(आ) परमाणुवीय पदार्थ के उत्पादन के लिए परमाणुवीय ईंधन का उपयोग करने की कोई सुविधा या परमाणुवीय पदार्थ के प्रसंस्करण के लिए कोई सुविधा, जिसके अंतर्गत विकिरणित परमाणुवीय ईंधन का पुनःसंस्करण भी है; और
(इ) ऐसी कोई सुविधा, जहां परमाणुवीय पदार्थ भंडारित किया जाता है (ऐसे पदार्थ के वहन से आनुषंगिक भंडारण से भिन्न) ।
स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजन के लिए, एक प्रचालक के अनेक परमाणुवीय संस्थापनों को, जो एक ही स्थल पर अवस्थित है, एकल परमाणुवीय संस्थापन समझा जाएगा;
(ट) परमाणुवीय पदार्थ" से निम्नलिखित अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, -
(i) ऐसा परमाणुवीय ईंधन (प्राकृतिक यूरेनियम या निःशेषित यूरेनियम से भिन्न), जो परमाणुवीय रिएक्टर के बाहर स्वतः या कुछ अन्य पदार्थों के संयोजन से परमाणुवीय विखंडन की स्वतः अवरित श्रृंखला प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पादित करने में समर्थ है;
(ii) रेडियोधर्मी उत्पाद या अपशिष्ट;
(ठ) परमाणुवीय रिएक्टर" से ऐसे क्रम में परमाणुवीय ईंधन वाली कोई संरचना अभिप्रेत है, जिससे उसमें न्यूट्रान के अतिरिक्त स्रोत के बिना परमाणुवीय विखंडन की स्वतः अविरत प्रक्रिया हो सकती है;
(ड) किसी परमाणुवीय संस्थापन के संबंध में, प्रचालक" से केन्द्रीय सरकार या उसके द्वारा स्थापित कोई प्राधिकरण या निगम अथवा कोई सरकारी कंपनी अभिप्रेत है; जिसे परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (1962 का 33) के अनुसरण में उस संस्थापन के प्रचालन के लिए अनुज्ञप्ति दी गई है;
(ढ) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ण) निवारक उपाय" से किसी परमाणुवीय घटना के होने के पश्चात् किसी व्यक्ति द्वारा खंड (छ) के उपखंड (i) से उपखंड (v) और उपखंड (vii) में निर्दिष्ट नुकसान को रोकने या कम करने के लिए केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन के अधीन रहते हुए, किए गए युक्तियुक्त उपाय अभिप्रेत हैं;
(त) रेडियोधर्मी उत्पाद या अपशिष्ट" से परमाणुवीय ईंधन के उत्पाद या उपयोग से आनुषंगिक विकिरण में उत्पादित कोई रेडियोधर्मी पदार्थ या उसके अनावरण द्वारा रेडियोधर्मी बनाया गया कोई पदार्थ अभिप्रेत है, किन्तु इसके अंतर्गत रेडियोसोटोपस नहीं है, जो निर्माण के अंतिम चरण में पहुंच गया है, जिससे कि किसी वैज्ञानिक, चिकित्सीय, कृषि, वाणिज्ियक या औद्योगिक प्रयोजन के लिए उपयोज्य हो सके;
(थ) विशेष आहरण अधिकार" से अंतर्राष्ट्रीय धनीय निधि द्वारा यथा अवधारित विशेष आहरण अधिकार अभिप्रेत है ।
अध्याय 2
परमाणुवीय नुकसान के लिए दायित्व
3. परमाणुवीय घटना का परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड द्वारा अधिसूचित किया जाना-(1) परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (1962 का 33) के अधीन गठित परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड, परमाणुवीय घटना के होने की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर उस परमाणुवीय घटना को अधिसूचित करेगाः
परंतु जहां परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड का यह समाधान हो जाता है कि किसी परमाणुवीय घटना में अंतर्वलित आशंका और जोखिम की गंभीरता महत्वहीन है, वहां उस परमाणुवीय घटना को अधिसूचित करना अपेक्षित नहीं होगा ।
(2) परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड, उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी किए जाने के ठीक पश्चात् उस परमाणुवीय घटना के होने के बारे में ऐसी रीति में, जो वह ठीक समझे, व्यापक प्रचार कराएगा ।
4. प्रचालक का दायित्व-(1) परमाणुवीय संस्थापन का प्रचालक, -
(क) उस परमाणुवीय संस्थापन में; या
(ख) उस परमाणुवीय संस्थापन से या उसमें उत्पन्न होने वाले परमाणुवीय पदार्थ वाले; और-
(i) ऐसी परमाणुवीय घटना के लिए, जिसमें ऐसा परमाणुवीय पदार्थ अंतर्वलित है, किसी दूसरे प्रचालक द्वारा लिखित करार के अनुसरण में दायित्व ग्रहण किया गया है; या
(ii) दूसरे प्रचालक द्वारा ऐसे परमाणुवीय पदार्थ का भार ग्रहण किया गया है; या
(iii) परमाणुवीय रिएक्टर का प्रचालन करने के लिए सम्यक् रूप से प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा उस रिएक्टर में, जिसके साथ परिवहन के साधन शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग के लिए सज्जित हैं, चाहे उनके नोदन के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किए जाने के लिए, आशयित परमाणुवीय पदार्थ का भार ग्रहण किया गया है; या
(iv) ऐसे परमाणुवीय पदार्थ को उस परिवहन के साधन से उतारा गया है, जिससे उसे किसी विदेशी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी व्यक्ति को भेजा गया था,
से पूर्व होने वाले; या
(ग) ऐसे परमाणुवीय संस्थापन को भेजे गए परमाणुवीय पदार्थ वाले; और-
(i) उस प्रचालक को किसी दूसरे परमाणुवीय संस्थापन के प्रचालक द्वारा लिखित करार के अनुसरण में अंतरित किए गए ऐसे परमाणुवीय पदार्थ वाले परमाणुवीय घटना के दायित्व अंतरित किए जाने; या
(ii) उस प्रचालक द्वारा ऐसे परमाणुवीय पदार्थ का भार ग्रहण किए जाने;
(iii) उस प्रचालक द्वारा परमाणुवीय रिएक्टर का प्रचालन करने के लिए सम्यक् रूप से प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा उस रिएक्टर में, जिसके साथ परिवहन के साधन शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग के लिए सज्जित हैं, चाहे उनके नोदन के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किए जाने के लिए, आशयित परमाणुवीय पदार्थ का भार ग्रहण किए जाने; या
(iv) ऐसे परमाणुवीय पदार्थ के उस प्रचालक की लिखित सहमति से उस परिवहन के साधन पर लदाई, जिससे उसे किसी विदेशी राज्य के राज्यक्षेत्र से वहन किया जाना है, के पश्चात् होने वाली परमाणुवीय घटना द्वारा हुए परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी होगा ।
(2) जहां एक से अधिक प्रचालक परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी हैं, वहां इस प्रकार अंतर्वलित प्रचालकों का दायित्व जहां तक प्रत्येक प्रचालक द्वारा माना गया नुकसान पृथक्करणीय नहीं है, संयुक्त और पृथक् होगाः
परंतु ऐसे प्रचालकों का कुल दायित्व धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट दायित्व की सीमा से अधिक नहीं होगा ।
(3) जहां किसी परमाणुवीय घटना में एक ही प्रचालक के अनेक परमाणुवीय संस्थापन अंतर्वलित हैं, वहां ऐसा प्रचालक प्रत्येक ऐसे परमाणुवीय संस्थापन के संबंध में धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट दायित्व की सीमा तक दायी होगा ।
(4) परमाणुवीय संस्थापन के प्रचालक का दायित्व कठोर और त्रुटिरहित दायित्व के सिद्धांत पर आधारित होगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -
(क) जहां परमाणुवीय नुकसान किसी परमाणुवीय संस्थापन में ऐसे संस्थापन में अभिवहन में पदार्थ के अस्थायी भंडारण के कारण होने वाली परमाणुवीय घटना द्वारा हुआ है, वहां ऐसे पदार्थ के अभिवहन के लिए उत्तरदायी व्यक्ति को प्रचालक समझा जाएगा;
(ख) जहां परमाणुवीय नुकसान किसी परमाणुवीय पदार्थ के परिवहन के दौरान परमाणुवीय घटना के परिणामस्वरूप हुआ है, वहां परेषक को प्रचालक समझा जाएगा;
(ग) जहां परमाणुवीय पदार्थ के, यथास्थिति, परेषक और परेषिती या पारेषक और वाहक के बीच कोई लिखित करार किया गया है, वहां ऐसे करार के अधीन किसी परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी व्यक्ति को प्रचालक समझा जाएगा;
(घ) जहां परमाणुवीय नुकसान और परमाणुवीय नुकसान से भिन्न नुकसान किसी परमाणुवीय घटना द्वारा या किसी परमाणुवीय घटना और एक या अधिक अन्य घटनाओं द्वारा संयुक्त रूप से हुआ है, वहां ऐसे अन्य नुकसान को, उस सीमा तक, जहां तक वह परमाणुवीय नुकसान से पृथक्करणीय नहीं है, उस परमाणुवीय घटना द्वारा हुआ परमाणुवीय नुकसान समझा जाएगा ।
5. कतिपय परिस्थितियों में प्रचालक का दायी न होना-(1) कोई प्रचालक ऐसे किसी परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी नहीं होगा, जहां ऐसा नुकसान निम्नलिखित कारण से परमाणुवीय घटना द्वारा सीधे हुआ है, -
(i) आपवादिक प्रकृति की किसी गंभीर प्राकृतिक आपदा; या
(ii) सशस्त्र संघर्ष, सिविल युद्ध, विपल्व या आतंकवाद के कार्य ।
(2) कोई प्रचालक निम्नलिखित कारण से हुए किसी परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी नहीं होगा, -
(i) स्वतः परमाणुवीय संस्थापन और ऐसे स्थल पर, जहां संस्थापन अवस्थित है, निर्माणाधीन परमाणुवीय संस्थापन सहित कोई अन्य परमाणुवीय संस्थापन; और
(ii) उसी स्थल पर जिसका ऐसे संस्थापन के संबंध में उपयोग किया गया है या उपयोग किया जाना है, कोई संपत्ति; या
(iii) उस परिवहन के साधन के, जिसमें परमाणुवीय घटना के समय अंतर्वलित परमाणुवीय पदार्थ वहन किया गया थाः
परंतु किसी परमाणुवीय नुकसान के लिए चालक द्वारा संदत्त किए जाने के लिए दायी किसी प्रतिकर का तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन नुकसान के लिए किसी अन्य दावे के संबंध में उसके दायित्व की रकम को कम करने का प्रभाव नहीं होगा ।
(3) जहां किसी व्यक्ति द्वारा कोई परमाणुवीय नुकसान उसकी अपनी उपेक्षा या उसके कार्य किए जाने या कार्य का लोप किए जाने से उठाया गया है, वहां प्रचालक ऐसे व्यक्ित के प्रति दायी नहीं होगा ।
6. दायित्व की सीमाएं-(1) प्रत्येक परमाणुवीय घटना के संबंध में दायित्व की अधिकतम रकम, तीन सौ मिलियन विशेष आहरण अधिकारों के समतुल्य रुपए में अथवा ऐसी उच्चतर राशि जो केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट करे, होगीः
परंतु यदि इस अधिनियम के अधीन दिया जाने वाला प्रतिकर इस उपधारा के अधीन विनिर्दिष्ट राशि से अधिक हो तो केन्द्रीय सरकार, जहां आवश्यक हो, अतिरिक्त उपाय कर सकेगी ।
(2) प्रत्येक परमाणुवीय घटना के लिए प्रचालक का दायित्व निम्नानुसार होगा-
(क) 10 मेगावाट के बराबर अथवा उससे अधिक तापीय विद्युत क्षमता वाले परमाणुवीय रिएक्टरों के मामले में एक हजार पांच सौ करोड़ रुपए;
(ख) भुक्तशेष ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्रों के मामले में, तीन सौ करोड़ रुपए;
(ग) 10 मेगावट से कम तापीय विद्युत क्षमता वाले अनुसंधान रिएक्टरों, भुक्तशेष ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्रों से भिन्न ईंधन चक्र सुविधाओं और परमाणुवीय सामग्री के परिवहन के मामले में, एक सौ करोड़ रुपएः
परंतु यह कि केन्द्रीय सरकार समय-समय पर प्रचालक के दायित्व की राशि की पुनरीक्षा करेगी और अधिसूचना द्वारा इस उपधारा के अधीन अपेक्षाकृत अधिक राशि निर्धारित कर सकेगीः
परंतु यह और कि दायित्व की राशि में कोई ब्याज अथवा कार्यवाहियों के खर्चे शामिल नहीं होंगे ।
7. केन्द्रीय सरकार का दायित्व-(1) केंद्रीय सरकार, ऐसी किसी परमाणुवीय घटना के संबंध में परमाणुवीय नुकसान के लिए दायी होगा, -
(क) जहां दायित्व धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट प्रचालक के दायित्व की रकम से अधिक है, वहां उस सीमा तक जहां तक ऐसा दायित्व प्रचालक के दायित्व से अधिक है;
(ख) उसके स्वामित्वाधीन परमाणुवीय संस्थापन में होने वाली; और
(ग) धारा 5 की उपधारा (1) के खंड (i) और खंड (ii) में विनिर्दिष्ट कारणों से होने वालीः
परंतु केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा उसके द्वारा प्रचालित नहीं किए गए परमाणुवीय संस्थापन के लिए पूर्ण दायित्व ले सकेगी, यदि उसकी राय में जनहित में ऐसा करना आवश्यक हो ।
(2) उपधारा (1) के खंड (क) अथवा खंड (ग) के अधीन अपने दायित्व के भाग को पूरा करने के प्रयोजन से केन्द्रीय सरकार, प्रचालकों से ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, शुल्क प्रभारित करके एक निधि की स्थापना कर सकेगी जिसे परमाणुवीय दायित्व निधि कहा जाएगा ।
8. प्रचालक द्वारा बीमा या वित्तीय प्रतिभूति बनाए रखना-(1) प्रचालक, अपने परमाणुवीय संस्थापन का प्रचालन प्रांरभ करने से पूर्व, धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन उसके दायित्व को सम्मिलित करने वाली बीमा पालिसी या ऐसी अन्य वित्तीय प्रतिभूति या दोनों का संयोजन, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, लेगा ।
(2) प्रचालक, समय-समय पर उपधारा (1) में निर्दिष्ट बीमा पालिसी या अन्य वित्तीय प्रतिभूति का उसकी विधिमान्यता की अवधि की समाप्ति से पूर्व नवीकरण कराएगा ।
(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबंध केंद्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन किसी परमाणुवीय संस्थापन को लागू नहीं होंगे ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए वित्तीय प्रतिभूति" से, क्षतिपूरित संविदा अथवा गारंटी, अथवा शेयर अथवा बांड अथवा ऐसे लिखत जो विहित किए जाएं अथवा उनका कोई संयोजन ।
अध्याय 3
दावा आयुक्त
9. परमाणुवीय नुकसान के लिए प्रतिकर और उसका न्यायनिर्णयन-(1) जो कोई परमाणुवीय नुकसान उठाता है, वह इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार प्रतिकर का दावा करने के लिए हकदार होगा ।
(2) परमाणुवीय नुकसान के संबंध में प्रतिकर के लिए दावों का न्यायनिर्णयन करने के प्रयोजन के लिए केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, ऐसे क्षेत्र के लिए, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, एक या अधिक दावा आयुक्तों की नियुक्ति करेगी ।
10. दावा आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए अर्हताएं-कोई व्यक्ति दावा आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह-
(क) जिला न्यायाधीश है या रहा है; या
(ख) केंद्रीय सरकार की सेवा में हो और भारत सरकार में अपर सचिव या केंद्रीय सरकार में किसी अन्य समतुल्य पंक्ति से नीचे का पद धारण न किया हो ।
11. दावा आयुक्त का वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन तथा शर्तें-दावा आयुक्त को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएं ।
12. न्यायनिर्णयन की प्रक्रिया और दावा आयुक्त की शक्तियां-(1) इस अधिनियम के अधीन दावों के न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए दावा आयुक्त ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगा, जो विहित की जाए ।
(2) जांच करने के प्रयोजन के लिए, दावा आयुक्त अपने साथ ऐसे व्यक्तियों को, जिनके पास परमाणुवीय क्षेत्र में विशेषज्ञता है या ऐसे अन्य व्यक्तियों को, और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, सहयोजित कर सकेगा ।
(3) जहां किसी व्यक्ति को उपधारा (2) के अधीन सहयोजित किया जाता है, वहां उसे ऐसे पारिश्रमिक, फीस या भत्ते का संदाय किया जाएगा, जो विहित किया जाए ।
(4) दावा आयुक्त को, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिए वही शक्तियां होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के संबंध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्ः-
(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसे हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेजों का प्रकटीकरण और पेश किया जाना;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियों की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) किसी साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
(च) ऐसा कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए ।
(5) दावा आयुक्त को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।
अध्याय 4
दावे और अधिनिर्णय
13. दावा आयुक्त द्वारा दावों के लिए आवेदन आमंत्रित करना-धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन परमाणुवीय घटना की अधिसूचना के पश्चात्, क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाला दावा आयुक्त परमाणुवीय नुकसान के लिए प्रतिकर का दावा करने के संबंध में आवेदन आमंत्रित करने के बारे में ऐसी रीति में, जो वह ठीक समझे, व्यापक प्रचार कराएगा ।
14. परमाणुवीय नुकसान के लिए आवेदन करने का हकदार व्यक्ति-परमाणुवीय नुकसान के संबंध में, यथास्थिति, दावा आयुक्त या आयोग के समक्ष प्रतिकर के लिए आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया जा सकेगा, -
(क) ऐसा व्यक्ति, जिसे क्षति पहुंची है; या
(ख) ऐसी संपत्ति का स्वामी, जिसको नुकसान हुआ है; या
(ग) मृतक के विधिक प्रतिनिधि; या
(घ) ऐसे व्यक्ति या स्वामी या विधिक प्रतिनिधियों द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत कोई अभिकर्ता ।
15. दावा आयुक्त के समक्ष आवेदन करने के लिए प्रक्रिया-(1) परमाणुवीय नुकसान के लिए दावा आयुक्त के समक्ष प्रतिकर के लिए प्रत्येक आवेदन, ऐसे प्ररूप में, ऐसी विशिष्टियां अंतर्विष्ट हुए, ऐसे दस्तावेजों के साथ किया जाएगा, जो विहित किए जाएं ।
(2) धारा 18 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन, ऐसे नुकसान को उठाने वाले व्यक्ति द्वारा परमाणुवीय नुकसान की जानकारी की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के भीतर किया जाएगा ।
16. दावा आयुक्त द्वारा अधिनिर्णय-(1) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन प्राप्त होने पर, दावा आयुक्त प्रचालक को ऐसे आवेदन की सूचना देने और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात् ऐसी प्राप्ति की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर आवेदन का निपटारा करेगा और तदनुसार अधिनिर्णय देगा ।
(2) इस धारा के अधीन अधिनिर्णय करते समय, दावा आयुक्त आवेदन द्वारा अपने कुटुंब के सदस्यों के लिए की गई बीमा की संविदा के अनुसरण में या अन्यथा प्राप्त किसी फायदे, प्रतिपूर्ति या रकम को विचार में नहीं लेगा ।
(3) जहां किसी प्रचालक द्वारा अधिनिर्णय की रकम के उसके द्वारा संदाय से बचने के उद्देश्य से अपनी संपत्ति को हटाने या व्ययन करने की संभावना है, वहां दावा आयुक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की पहली अनुसूची के आदेश 39 के नियम 1 से नियम 4 के उपबंधों के अनुसार ऐसे कार्य को अवरुद्ध करने के लिए अस्थायी व्यादेश अनुदत्त कर सकेगा ।
(4) दावा आयुक्त, अधिनिर्णय की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर पक्षकारों को अधिनिर्णय की प्रतियां परिदत्त करने की व्यवस्था करेगा ।
(5) उपधारा (1) के अधीन किया गया प्रत्येक अधिनिर्णय अंतिम होगा ।
17. प्रचालक का अवलंबन का अधिकार-किसी परमाणुवीय संस्थापन के प्रचालक को, धारा 6 के अनुसार परमाणुवीय नुकसान के लिए प्रतिकर का संदाय करने के पश्चात्, अवलंबन का अधिकार होगा, जबकि-
(क) ऐसा अधिकार लिखित संविदा में स्पष्ट रूप से उपबंधित किया गया हो;
(ख) परमाणुवीय घटना आपूर्तिकर्ता अथवा उसके कर्मचारी के कार्य, जिसमें प्रकट अथवा अप्रकट खराबी वाले उपस्कर अथवा पदार्थ अथवा अवमानक सेवाओं की आपूर्ति शामिल है, के परिणामस्वरूप घटित हुई हो;
(ग) परमाणुवीय घटना, परमाणुवीय नुकसान पहुंचाने के आशय से किसी व्यक्ति द्वारा कार्य करने या उसके लोप के परिणामस्वरूप घटित हुई हो ।
18. दावा करने के अधिकारों का निर्वापन-किसी परमाणुवीय नुकसान के लिए प्रतिकर का दावा करने का अधिकार समाप्त होगा, यदि ऐसा दावा धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन यथा अधिसूचित घटना के घटित होने की तारीख से-
(क) संपत्ति के नुकसान के मामले में दस वर्ष;
(ख) व्यक्ति को व्यक्तिगत क्षति की दशा में बीस वर्ष की अवधि के भीतर नहीं किया जाता हैः
परंतु जहां किसी परमाणुवीय घटना द्वारा हुए परमाणुवीय नुकसान को, जिसमें परमाणुवीय पदार्थ अंतर्वलित है, ऐसी परमाणुवीय घटना से पूर्व चुराया गया है, या वह खो गया है या माल का प्रक्षेपण या उसका परित्याग किया गया है तो दस वर्ष की उक्त अवधि की गणना ऐसी परमाणुवीय घटना की तारीख से की जाएगी, किंतु किसी भी दशा में, वह ऐसी चोरी, हानि, माल प्रक्षेपण या परित्याग की तारीख से बीस वर्ष की अवधि से अधिक नहीं होगी ।
अध्याय 5
परमाणुवीय नुकसान दावा आयोग
19. परमाणुवीय नुकसान दावा आयोग की स्थापना-जहां परमाणुवीय घटना से हुई क्षति अथवा नुकसान को देखते हुए केन्द्रीय सरकार की राय में लोकहित में यह समीचीन है कि ऐसे नुकसान के लिए ऐसे दावों का न्यायनिर्णयन दावा आयुक्त के स्थान पर आयोग द्वारा किया जाए, वहां वह अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए आयोग की स्थापना कर सकेगी ।
20. आयोग की संरचना-(1) आयोग एक अध्यक्ष और छह से अनधिक उतने अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जितने केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा नियुक्त करे ।
(2) आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी, जिसमें परमाणुवीय विज्ञान में कम से कम तीस वर्ष का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से तीन विशेषज्ञ और उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे ।
(3) कोई व्यक्ति आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब उसने पचपन वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है और वह उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है या उसके लिए अर्हित हैः
परंतु किसी आसीन न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श के सिवाय नहीं की जाएगी ।
(4) कोई व्यक्ति सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब उसने पचपन वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है और, -
(क) उसने भारत सरकार के अपर सचिव का पद या केंद्रीय सरकार में कोई अन्य समतुल्य पद धारण किया है या धारण कर रहा है या धारण करने के लिए अर्हित है और उसके पास परमाणुवीय घटना से उद्भूत होने वाले परमाणुवीय दायित्व से संबंधित विधि में विशेष ज्ञान है; या
(ख) पांच वर्ष के लिए दावा आयुक्त रहा है ।
21. पदावधि-यथास्थिति, अध्यक्ष या कोई सदस्य, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि के लिए उस रूप में पद धारण करेगा और तीन वर्ष की और अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति का पात्र होगाः
परंतु कोई व्यक्ति उसके सड़सठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् ऐसे अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद धारण नहीं करेगा
22. अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें-अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें, जिनके अंतर्गत पेंशन, उपदान और अन्य सेवानिवृत्ति फायदे भी हैं, वे होंगी, जो विहित की जाएंःपरंतु अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन, भत्तों और उनकी सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् उनके लिए अलाभप्रद रूप में परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।
23. रिक्तियों का भरा जाना-यदि, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य के पद में अस्थायी अनुपस्थिति से भिन्न किन्हीं कारणों से कोई रिक्ति हो जाती है तो केंद्रीय सरकार, उस रिक्ति को भरने के लिए इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करेगी और आयोग के समक्ष कार्यवाहियां उस प्रकम से जारी रखी जा सकेंगी, जिस पर रिक्ति भरे जाने से पूर्व वह थी ।
24. पद त्याग और हटाया जाना-(1) अध्यक्ष या सदस्य, केंद्रीय सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगाः
परंतु अध्यक्ष या सदस्य, शीघ्र अपना पद त्याग करने के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा अनुज्ञात किए जाने तक, उस सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीन मास की समाप्ति तक या उसके उत्तरवर्ती के रूप में सम्यक् रूप से नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा अपना पद ग्रहण करने तक या अपनी पदावधि की समाप्ति तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, पद धारण करता रहेगा ।
(2) केंद्रीय सरकार, ऐसे अध्यक्ष या किसी सदस्य को जो, -
(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है;
(ख) ऐसे किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जिसमें केंद्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अंतर्वलित है;
(ग) शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से सदस्य के रूप में कार्य करने में असमर्थ हो गया है;
(घ) जिसने ऐसे वित्तीय या अन्य हित अर्जित किए हैं, जिनसे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है;
(ङ) जिसने अपनी हैसियत का इस प्रकार दुरुपयोग किया है जिससे उसका पद पर बने रहना लोक-हित के प्रतिकूल हो गया हैःपरंतु किसी सदस्य को खंड (घ) या खंड (ङ) के अधीन उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उसे मामले में सुनवाई का अवसर न दे दिया गया हो ।
25. अध्यक्ष या सदस्य को सेवा से निवृत्त समझा जाना-ऐसा कोई व्यक्ति, जो अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद ग्रहण करने की तारीख से ठीक पूर्व सरकार की सेवा में था, उस तारीख को, जिसको वह उस रूप में पद ग्रहण करता है, सेवा से निवृत्त हुआ समझा जाएगा, किंतु अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसकी पश्चात्वर्ती सेवा की संगणना उस सेवा में, जिससे वह संबंधित है, पेंशन के लिए गणना की गई निरंतर अनुमोदित सेवा के रूप में की जाएगी ।
26. पेंशन का निलंबन-यदि कोई व्यक्ति, जो अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद ग्रहण करने के ठीक पूर्व, केंद्रीय सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के संबंध में निःशक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न कोई पेंशन प्राप्त कर रहा था या जिसने ऐसा करने के लिए पात्र होते हुए उसे लेने का विकल्प दिया था, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से, -
(क) उस पेंशन की रकम; और
(ख) यदि वह पद ग्रहण करने से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में उसकी देय पेंशन के एक भाग के रूप में उसके संराशित मूल्य को प्राप्त कर रहा था, तो पेंशन के उस भाग की रकम को, घटा दिया जाएगा ।
27. मध्यस्थ के रूप में कार्य करने का प्रतिषेध-कोई व्यक्ति, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद धारण करते समय, किसी मामले में मध्यस्थ के रूप में कार्य नहीं करेगा ।
28. व्यवसाय करने का प्रतिषेध-अध्यक्ष या कोई सदस्य पद धारण न करने पर आयोग के समक्ष उपसंजात नहीं होगा, कार्य या अभिवाक् नहीं करेगा ।
29. अध्यक्ष की शक्ितयां-अध्यक्ष को आयोग के साधारण प्रशासन के अधीक्षण की शक्ति होगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा, जो विहित की जाएं ।
30. आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी-(1) केंद्रीय सरकार, आयोग को उतने अधिकारी तथा अन्य कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जितने वह ठीक समझे ।
(2) आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।
31. आयोग के समक्ष प्रतिकर के लिए आवेदन-(1) परमाणुवीय नुकसान के लिए आयोग के समक्ष प्रतिकर के लिए प्रत्येक आवेदन, ऐसे प्ररूप में, ऐसी विशिष्टियां अंतर्विष्ट करते हुए और ऐसे दस्तावेजों के साथ किया जाएगा, जो विहित किए जाएं ।
(2) धारा 18 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन, ऐसे नुकसान को उठाने वाले व्यक्ति द्वारा परमाणुवीय नुकसान की जानकारी की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के भीतर किया जाएगा ।
32. आयोग की न्यायनिर्णयन प्रक्रिया और शक्तियां-(1) आयोग को, यथास्थिति, धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन उसके समक्ष फाइल किए गए या धारा 33 के अधीन उसे अंतरित किए गए प्रत्येक आवेदन पर अधिनिर्णय करने की मूल अधिकारिता होगी ।
(2) धारा 33 के अधीन आयोग को मामलों के अंतरण पर, आयोग ऐसे आवेदनों की उस प्रक्रम से सुनवाई करेगा, जिस पर वह ऐसे अंतरण से पूर्व था ।
(3) अध्यक्ष दावों की सुनवाई के प्रयोजन के लिए आयोग के तीन से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनने वाली न्यायपीठों का गठन कर सकेगा और उस पर कोई विनिश्चय ऐसे दावों की सुनवाई करने वाले सदस्यों के बहुमत से दिया जाएगा ।
(4) आयोग सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) में अधिकथित प्रक्रिया से आबद्ध नहीं होगा, किंतु नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगा और इस अधिनियम के अन्य उपबंधों तथा उनके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए, आयोग को उन स्थानों और समय सहित, जहां पर वह अपनी बैठकें करेगा, अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी ।
(5) आयोग को इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजनों के लिए वही शक्तियां होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के संबंध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्ः-
(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसे हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेजों का प्रकटीकरण और पेश किया जाना;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियों की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) किसी साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
(च) ऐसा कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए ।
(6) आयोग, प्रचालक को ऐसे आवेदन की सूचना देने और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात् ऐसी प्राप्ति की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर आवेदन का निपटारा करेगा और तद्नुसार अधिनिर्णय देगा ।
(7) इस धारा के अधीन अधिनिर्णय देते समय, आयोग आवेदक द्वारा बीमा की संविदा के अनुसरण में या अन्यथा प्राप्त किसी फायदे, प्रतिपूर्ति या रकम को विचार में नहीं लेगा ।
(8) जहां किसी प्रचालक द्वारा अधिनिर्णय की रकम के उसके द्वारा संदाय से बचने के उद्देश्य से अपनी संपत्ति को हटाने या व्ययन करने की संभावना है, वहां दावा आयुक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की पहली अनुसूची के आदेश 39 के नियम 1 से नियम 4 के उपबंधों के अनुसार ऐसे कार्य को अवरुद्ध करने के लिए अस्थायी व्यादेश अनुदत्त कर सकेगा ।
(9) दावा आयुक्त, अधिनिर्णय की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर पक्षकारों को अधिनिर्णय की प्रतियां परिदत्त करने की व्यवस्था करेगा ।
(10) उपधारा (6) के अधीन किया गया प्रत्येक अधिनिर्णय अंतिम होगा ।
33. लंबित मामलों का आयोग को अंतरण-धारा 19 के अधीन आयोग की स्थापना की तारीख से ठीक पूर्व दावा आयुक्त के समक्ष प्रतिकर के लिए लंबित प्रत्येक आवेदन उस तारीख को आयोग को अंतरित हो जाएगा ।
34. दावा आयुक्त या आयोग के समक्ष कार्यवाहियों का न्यायिक कार्यवाहियां होना-इस अधिनियम के अधीन दावा आयुक्त या आयोग के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193, धारा 219 और धारा 228 के अर्थ के भीतर और धारा 196 के प्रयोजनों के लिए न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी ।
35. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता का अपवर्जन-धारा 46 में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय किसी सिविल न्यायालय (संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 227 के अधीन अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के सिवाय) को ऐसे किसी मामले की बाबत कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी, जिसका अधिनिर्णय इस अधिनियम के अधीन करने के लिए, यथास्थिति, दावा आयुक्त या आयोग सशक्त है और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्यवाही की बाबत किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा कोई व्यादेश नहीं दिया जाएगा ।
36. अधिनिर्णयों का प्रवर्तन-(1) जब धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन या धारा 32 की उपधारा (6) के अधीन कोई अधिनर्णय दिया जाता है तब, -
(क) यथास्थिति, बीमांकक या कोई व्यक्ति, जो धारा 8 के अधीन बीमा की संविदा या वित्तीय प्रतिभूति के अधीन ऐसे अधिनिर्णय के निबंधनानुसार किसी रकम का संदाय करने के लिए अपेक्षित है और ऐसी संविदा के अधीन अपने दायित्व की सीमा तक ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति में, जो, यथास्थिति, दावा आयुक्त या आयोग निदेश दे, वह रकम जमा करेगा; और
(ख) प्रचालक धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट अधिकतम दायित्व के अधीन रहते हुए, शेष ऐसी रकम जमा करेगा, जिससे ऐसा अधिनिर्णय खंड (क) के अधीन जमा की गई रकम से अधिक है ।
(2) जहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति अधिनिर्णय में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर अधिनिर्णय की रकम जमा कराने में असफल रहता है, वहां ऐसी रकम ऐसे व्यक्ति से भू-राजस्व के बकायों के रूप में वसूलनीय होगी ।
(3) उपधारा (1) के अधीन जमा की गई रकम ऐसे व्यक्ति को, ऐसे जमा किए जाने की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर अधिनिर्णय में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार संवितरित की जाएगी ।
37. वार्षिक रिपोर्ट-आयोग प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किए जाएं, उस वित्तीय वर्ष के दौरान अपने कार्यकलापों का पूरा लेखा देते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसकी एक प्रति केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा जो उसे संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।
38. कतिपय परिस्थितियों में आयोग का विघटन-(1) जहां केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो गया है कि वह प्रयोजन, जिसके लिए धारा 19 के अधीन आयोग स्थापित किया गया था, पूरा हो गया है या जहां ऐसे आयोग के समक्ष लंबित मामलों की संख्या इतनी कम है कि वह उसके निरंतर कार्य करने के खर्च को न्यायोचित नहीं ठहराएगी या जहां वह ऐसा करना आवश्यक और समीचीन समझती है, वहां केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा आयोग को विघटित कर सकेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन आयोग के विघटन की अधिसूचना की तारीख से, -
(क) ऐसी अधिसूचना की तारीख को आयोग के समक्ष लंबित कार्यवाही, यदि कोई हो, धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले दावा आयुक्त को अंतरित हो जाएगी;
(ख) आयोग के अध्यक्ष और सभी सदस्यों द्वारा उस रूप में अपने पद रिक्त कर दिए गए समझे जाएंगे और वे अपने पद के समयपूर्व पर्यवसान के लिए किसी प्रतिकर के हकदार नहीं होंगे;
(ग) आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी केन्द्रीय सरकार के ऐसे अन्य प्राधिकरण या कार्यालयों में, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, स्थानान्तरित कर दिए जाएंगेः
परंतु इस प्रकार स्थानांतरित अधिकारी और अन्य कर्मचारी सेवा के उन्हीं निबंधनों और शर्तों के हकदार होंगे, जो आयोग में उनके द्वारा धारित किए गए होतेः
परंतु यह और कि जहां आयोग का कोई अधिकारी या कर्मचारी ऐसे अन्य प्राधिकरण या कार्यालय में सेवा ग्रहण करने से इंकार करता है तो उसके बारे में अपने पद का त्याग किया गया समझा जाएगा और वह सेवा की संविदा के समयपूर्ण पर्यवसान के लिए किसी प्रतिकर का हकदार नहीं होगा;
(घ) आयोग की सभी आस्तियां और दायित्व केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएंगे ।
(3) उपधारा (1) के अधीन आयोग के विघटन के होते हुए भी, ऐसे विघटन से पूर्व की गई कोई बात या की गई या किए जाने के लिए तात्पर्यित कोई कार्रवाई, जिसके अंतर्गत ऐसे विघटन से पूर्व आयोग द्वारा किया गया कोई आदेश या जारी की गई कोई सूचना या की गई कोई नियुक्ति, पुष्टि या घोषणा या निष्पादित किया गया कोई दस्तावेज या लिखत या दिया गया कोई निदेश विधिमान्य रूप से की गई या किया गया या दिया गया समझा जाएगा ।
(4) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह केन्द्रीय सरकार को इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार आयोग के विघटन के पश्चात् आयोग की स्थापना करने से निवारित करती है ।
अध्याय 6
अपराध और शास्तियां
39. अपराध और शास्तियां-(1) जो कोई, -
(क) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम या जारी किए गए किसी निदेश का उल्लंघन करता है; या
(ख) धारा 8 के उपबंधों का अनुपालन करने में असफल रहता है; या
(ग) धारा 36 के अधीन राशि को जमा करने में असफल रहता है,
वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।
(2) जो कोई धारा 43 के अधीन जारी किए गए किसी निदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है या इस अधिनियम के अधीन उसकी शक्तियों का प्रयोग करने में किसी प्राधिकारी या व्यक्ति को बाधा पहुंचाता है वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।
40. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) जहां किसी कंपनी द्वारा इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है, वहां प्रत्येक व्यक्ति, जो उस समय जब अपराध किया गया था, कंपनी के कारबार के संचालन के लिए कंपनी का सीधे ही भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगेः
परंतु इस उपधारा की कोई बात, किसी ऐसे व्यक्ति को, इस अधिनियम के अधीन किसी दंड का भागी नहीं बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -
(क)कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम है; और
(ख)फर्म के संबंध में, निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।
41. सरकारी विभागों द्वारा अपराध-जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध सरकार के किसी विभाग द्वारा किया गया है, वहां विभाग का प्रधान अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगाः
परंतु इस धारा की कोई बात विभाग के ऐसे प्रधान को किसी दंड का भागी नहीं बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
42. अपराधों का संज्ञान-महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगाः
परंतु ऐसे अपराध का केन्द्रीय सरकार या उस सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी प्राधिकारी या अधिकारी द्वारा किए गए परिवाद के सिवाय संज्ञान नहीं लिया जाएगा ।
अध्याय 7
प्रकीर्ण
43. निदेश देने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का पालन करने के लिए किसी प्रचालक, व्यक्ति, अधिकारी, प्राधिकारी या निकाय को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसे निदेश जारी कर सकेगी, जो वह ठीक समझे और ऐसा प्रचालक, व्यक्ति, अधिकारी, प्राधिकारी या निकाय उन निदेशों का अनुपालन करने के लिए आबद्ध होगा ।
44. जानकारी मांगने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, किसी प्रचालक से ऐसी जानकारी मांग सकेगी, जो वह आवश्यक समझे ।
45. इस अधिनियम के लागू होने से छूट-केन्द्रीय सरकार, जहां परमाणुवीय पदार्थ की कम मात्रा को ध्यान में रखते हुए उसकी यह राय है कि अंतर्वलित जोखिम महत्वहीन है, वहां, अधिसूचना द्वारा, किसी परमाणुवीय संस्थापन को इस अधिनियम के लागू होने से छूट दे सकेगी ।
46. अधिनियम का किसी अन्य विधि के अतिरिक्त होना-इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे, न कि उनके अल्पीकरण में, और इसमें अंतर्विष्ट कोई बात प्रचालक को ऐसी किसी कार्यवाही से छूट प्रदान नहीं करेगी, जो इस अधिनियम के अतिरिक्त, ऐस प्रचालक के विरुद्ध संस्थित की गई हो ।
47. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए आदेश या जारी किए गए निदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के लिए कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या किसी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकारी के विरुद्ध नहीं होगी ।
48. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम, निम्नलिखित के लिए उपबंध कर सकेंगेः-
(क) धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन अन्य वित्तीय प्रतिभूति और उसकी रीति;
(ख) धारा 11 के अधीन दावा आयुक्त को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;
(ग) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन दावा आयुक्त द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;
(घ) धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन दावा आयुक्त द्वारा किसी व्यक्ति को सहयोजित किया जाना और उसकी रीति;
(ङ) धारा 12 की उपधारा (3) के अधीन सहयोजित व्यक्ति के पारिश्रमिक, फीस या भत्ते;
(च) धारा 12 की उपधारा (4) के खंड (च) के अधीन कोई अन्य विषय;
(छ) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन का प्ररूप, वे विशिष्टियां, जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी और दस्तावेज, जो उसके साथ दिए जाएंगे;
(ज) धारा 22 के अधीन अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;
(झ) धारा 29 के अधीन अध्यक्ष की शक्तियां;
(ञ) धारा 30 की उपधारा (2) के अधीन आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के निबंधन और अन्य शर्तें;
(ट) धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन का प्ररूप, वे विशिष्टियां, जो उसमें अंतर्विष्ट होंगी और दस्तावेज, जो उसके साथ दिए जाएंगे;
(ठ) धारा 32 की उपधारा (5) के खंड (च) के अधीन कोई अन्य विषय;
(ड) धारा 37 के अधीन आयोग द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने का प्ररूप और समय;
(ढ) धारा 38 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के स्थानांतरण की रीति ।
(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, उसके बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह नियम निष्प्रभाव हो जाएगा । किंतु नियम के इस प्रकार परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्तया पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
49. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत होः
परंतु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।
______