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उपदान संदाय अधिनियम, 1972 ( Payment of Gratuity Act, 1972 )


 

उपदान संदाय अधिनियम, 1972

(1972 का अधिनियम संख्यांक 39)

[21 अगस्त, 1972]

कारखानों, खानों, तेलक्षेत्रों, बागानों, पत्तनों, रेल कम्पनियों, दुकानों अथवा

अन्य स्थापनों में लगे हुए कर्मचारियों को उपदान के संदाय के लिए

एक स्कीम का तथा उससे सम्बन्धित या आनुषंगिक

विषयों का उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष के संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार, लागू होना तथा प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उपदान संदाय अधिनियम,1972 है ।

(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है :

परन्तु जहां तक इसका सम्बन्ध बागानों या पत्तनों से है, इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य पर नहीं होगा ।

(3) यह अधिनियम-

(क) प्रत्येक कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन और रेल कम्पनी को ;

() किसी राज्य में दुकानों और स्थापनों के सम्बन्ध में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अर्थ में, प्रत्येक ऐसी दुकान अथवा स्थापन को, जिसमें पूर्ववर्ती बारह मास में किसी दिन दस या अधिक व्यक्ति नियोजित हों अथवा नियोजित थे ;

() ऐसे अन्य स्थापनों अथवा स्थापनों के वर्ग को जिसमें पूर्ववर्ती बारह मास में किसी दिन, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, दस या अधिक कर्मचारी नियोजित हों अथवा नियोजित थे,

लागू होगा ।

 [(3क) कोई दुकान यह स्थापन, जिसको या अधिनियम लागू नहीं हो गया है, इस अधिनियम द्वारा इस बात के होते हुए भी शासित होता रहेगा कि उसमें नियोजित व्यक्तियों की संख्या, इस अधिनियम के इस प्रकार लागू हो जाने के पश्चात् किसी समय दस के कम हो जाती है ।]

                (4) यह उस तारीख  को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) समुचित सरकार" से अभिप्रेत है-

(i) निम्नलिखित स्थापनों के सम्बन्ध में, केन्द्रीय सरकार, अर्थात् :-

(क) केन्द्रीय सरकार के, अथवा उसके नियंत्रणाधीन स्थापन,

(ख) ऐसे स्थापन जिनकी एक से अधिक राज्य में शाखाएं हों,

(ग) केन्द्रीय सरकार के, अथवा उसके नियंत्रणाधीन कारखाने के स्थापन,

(घ) किसी महापत्तन, खान, तेलक्षेत्र अथवा रेल कम्पनी के स्थापन, और

(ii) किसी अन्य दशा में, राज्य सरकार ;

(ख) सेवा का सम्पूरित वर्ष" से एक वर्ष की निरन्तर सेवा अभिप्रेत है ;

 [(ग) निरन्तर सेवा" से धारा 2क में परिभाषित निरन्तर सेवा अभिप्रेत हैट ;

(घ) नियंत्रक प्राधिकारी" से समुचित सरकार द्वारा धारा 3 के अधीन नियुक्त प्राधिकारी अभिप्रेत है ;

 

 

 [(ङ) कर्मचारी" से ऐसा कोई व्यक्ति (शिक्षु से भिन्न) अभिप्रेत है जो किसी कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कंपनी, दुकान या अन्य स्थापन के, जिनको यह अधिनियम लागू होता है कार्य में या कार्य के संबंध में शारीरिक या अन्यथा किसी प्रकार के कार्य में मजदूरी पर नियोजित है, चाहे ऐसे नियोजन के निबंधन अभिव्यक्त हैं अथवा विवक्षित हैं किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है और किसी ऐसे अन्य अधिनियम या किन्हीं ऐसे नियमों द्वारा शासित होता है, जिसमें उपदान के संदाय का उपबंध है ;]

 ।                                             ।                                              ।                                              ।

() नियोजक" से, किसी ऐसे स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी अथवा दुकान के सम्बन्ध में-

(i) जो केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार की है, अथवा उसके नियंत्रणाधीन है, समुचित सरकार द्वारा कर्मचारियों के पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति, अथवा प्राधिकारी अभिप्रेत है, अथवा जहां कोई व्यक्ति या प्राधिकारी इस प्रकार नियुक्त नहीं किया गया है वहां सम्बद्ध मंत्रालय अथवा विभाग का प्रधान अभिप्रेत है,

(ii) जो किसी स्थानीय प्राधिकारी की है अथवा उसे नियंत्रणाधीन है, ऐसे प्राधिकारी द्वारा कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है अथवा जहां कोई व्यक्ति इस प्रकार नियुक्त नहीं किया गया है वहां स्थानीय प्राधिकारी का मुख्य कार्यपालक अधिकारी अभिप्रेत है,

(iii) किसी अन्य दशा में, वह व्यक्ति या प्राधिकारी अभिप्रेत है जिसका स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी अथवा दुकान के कार्यकलाप पर अंतिम नियंत्रण है, तथा जहां उक्त कार्यकलाप किसी अन्य व्यक्ति को सौंपे गए हैं, चाहे वह प्रबन्धक, प्रबन्ध निदेशक अथवा किसी अन्य नाम से ज्ञात हो, वहां वह व्यक्ति अभिप्रेत है ;

(छ) कारखाना" का वही अर्थ है जो कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) धारा 2 के खण्ड (ड) में है ;

(ज) किसी कर्मचारी के सम्बन्ध में, कुटुम्ब" में निम्नलिखित सम्मिलित समझे जाएंगे, अर्थात् :-

(i) पुरुष कर्मचारी की दशा में, वह स्वयं, उसकी पत्नी, उसकी विवाहित या अविवाहित संतान,  [उसके आश्रित माता-पिता और उसकी पत्नी के आश्रित माता-पिताट तथा उसके पूर्व-मृत पुत्र, यदि कोई रहा हो, की विधवा और संतान,

(ii) महिला कर्मचारी की दशा में, वह स्वयं, उसका पति, उस की विवाहित या अविवाहित संतान, उसके आश्रित माता-पिता और उसके पति के आश्रित माता-पिता तथा उसके पूर्व-मृत पुत्र, यदि कोई रहा हो, की विधवा और संतान :

 ।                                             ।                                              ।                                              ।

स्पष्टीकरण-जहां कर्मचारी की स्वीय विधि के अधीन उसके द्वारा संतान का दत्तक ग्रहण अनुज्ञात है वहां उसके द्वारा विधिपूर्वक दत्तक गृहीत संतान उसके कुटुम्ब में सम्मिलित समझी जाएगी, और जहां किसी कर्मचारी की संतान किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दत्तक ग्रहण कर ली गई है और ऐसा दत्तक ग्रहण, ऐसा दत्तक ग्रहण करने वाले व्यक्ति की स्वीय विधि के अधीन, वैध है वहां ऐसी संतान कर्मचारी के कुटुम्ब से अपवर्जित समझी जाएगी ;

(झ) महापत्तन" का वही अर्थ है जो भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 (1908 का 15) की धारा 3 के खण्ड (8) में है ;

() खान" का वही अर्थ है जो खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड () में है ;

(ट) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है ;

(ठ) तेलक्षेत्र" का वही अर्थ है जो तेलक्षेत्र (विनियमन तथा विकास) अधिनियम, 1948 (1948 का 53) की धारा 3 के खण्ड (ङ) में है ;

(ड) बागान" का वही अर्थ है जो बागान श्रम अधिनियम, 1951 (1951 का 69) की धारा 2 के खण्ड (च) में है ;

(ढ) पत्तन" का वही अर्थ है जो भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 (1908 का 15) की धारा 3 के खण्ड (4) में है ;

(ण) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

(त) रेल कम्पनी" का वही अर्थ है जो भारतीय रेल अधिनियम,  1890 (1890 का 9) की धारा 3 के खण्ड (5) में है ;

(थ) निवृत्ति" से कर्मचारी की सेवा का, अधिवर्षिता पर से भिन्न रूप में, पर्यवसान अभिप्रेत है ;

 [() किसी कर्मचारी के संबंध में अधिवर्षिता" से कर्मचारी द्वारा उस आयु की प्राप्ति अभिप्रेत है जो सेवा की संविदा अथवा शर्तों में ऐसी आयु के रूप में नियत की गई है जिसकी प्राप्ति पर कर्मचारी नियोजन रिक्त कर देगा ;]

(ध) मजदूरी" से वे सब उपलब्धियां अभिप्रेत हैं जो किसी कर्मचारी द्वारा अपने नियोजन के निबन्धनों और शर्तों के अनुसार कर्तव्यारूढ़ होने अथवा छुट्टी पर होने की दशा में अर्जित की जाती हैं तथा जो उसे नकद संदत्त की जाती हैं अथवा संदेय हैं तथा इसके अन्तर्गत महंगाई भत्ता है किन्तु इसके अन्तर्गत कोई बोनस, कमीशन, गृह-किराया भत्ता, अतिकाल मजदूरी और कोई अन्य भत्ता नहीं है ।

 [2क. निरन्तर सेवा-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए,-

(1) किसी कर्मचारी के बारे में यह समझा जाएगा कि वह किसी कालावधि के लिए निरन्तर सेवा में है यदि वह उस कालावधि के लिए अविच्छिन्न सेवा में रहा है, जिसके अन्तर्गत वह सेवा है जो बीमारी, दुर्घटना, छुट्टी, छुट्टी के बिना कर्तव्य से अनुपस्थिति (जो ऐसी अनुपस्थिति नहीं है जिसके संबंध में स्थापन के कर्मचारियों को शासित करने वाले स्थायी आदेशों, नियमों या विनियमों के अनुसार  ॥। अनुपस्थिति को सेवा में भंग के रूप में मानने वाला कोई आदेश पारित किया गया है), कामबंदी, हड़ताल या तालाबंदी अथवा ऐसे कार्यावरोध, जो कर्मचारी की किसी त्रुटि के कारण न हो, से विच्छिन्न हुई हो, चाहे ऐसी अविच्छिन्न या विच्छिन्न सेवा इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व या उसके पश्चात् की गई हो ;

(2) जहां कोई कर्मचारी (जो किसी मौसमी स्थापन में नियोजित कर्मचारी नहीं है) एक वर्ष या छह मास की किसी कालावधि के लिए खंड (1) के अर्थ में निरन्तर सेवा में नहीं है वहां उसके बारे में यह समझा जाएगा कि वह नियोजक के अधीन-

(क) एक वर्ष की उक्त कालावधि के लिए निरन्तर सेवा में है यदि उस कर्मचारी ने उस तारीख के, जिसके प्रति निर्देश से संगणना को जानी है, पूर्ववर्ती बारह कैलेंडर मास की कालावधि के दौरान नियोजक के अधीन-

(i) उस कर्मचारी की दशा में, जो किसी खान में भूमि के नीचे या किसी ऐसे स्थापन में नियोजित है, जो एक सप्ताह में छह दिन से कम के लिए कार्य करता है, कम से कम एक सौ नब्बे दिन के लिए ; और

(ii) किसी अन्य दशा में, कम से कम दो सौ चालीस दिन के लिए,वास्तव में कार्य किया है ;

(ख) छह मास की उक्त कालावधि के लिए निरन्तर सेवा में है यदि उस कर्मचारी ने उस तारीख के, जिसके प्रति निर्देश से संगणना की जानी है, पूर्ववर्ती छह कैलेंडर मास की कालावधि के दौरान नियोजक के अधीन-

(i) उस कर्मचारी की दशा में, जो किसी खान में भूमि के नीचे या किसी ऐसे स्थापन में नियोजित है, जो एक सप्ताह में छह दिन से कम के लिए कार्य करता है कम से कम पचानवे दिन के लिए ; और

(ii) किसी अन्य दशा में, कम से कम एक सौ बीस दिन के लिए, वास्तव में कार्य किया है ;

(3) जहां कोई कर्मचारी, जो मौसमी स्थापन में नियोजित है, एक वर्ष या छह मास की किसी कालावधि के लिए खंड (1) के अर्थ में निरन्तर सेवा में नहीं है वहां वह नियोजक के अधीन ऐसी कालावधि के लिए निरन्तर सेवा में समझा जाएगा यदि उसने उन दिनों के, जिनमें स्थापन ऐसी कालावधि के दौरान चालू था, कम से कम पचहत्तर प्रतिशत दिन वास्तव में कार्य किया है ।]

 [स्पष्टीकरण-खण्ड (2) के प्रयोजनों के लिए उन दिनों की संख्या में, जिनमें किसी कर्मचारी ने नियोजक के अधीन वास्तव में कार्य किया है, वे दिन भी सम्मिलित होंगे जिनमें-

(i) वह किसी करार के अधीन या औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 (1946 का 20) के अधीन बनाए गए स्थायी आदेशों द्वारा यथा अनुज्ञात, या औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) के अधीन, या स्थापन को लागू किसी अन्य विधि के अधीन कामबन्दी पर रहा है ;

(ii) वह, पूर्ववर्ष में अर्जित, पूर्ण मजदूरी सहित छुट्टी पर रहा है ;

(iii) वह उसके नियोजन से और उसके अनुक्रम में होने वाली दुर्घटना से कारित अस्थायी निःशक्तता के कारण अनुपस्थित रहा है ; और

(iv) किसी महिला की दशा में, वह प्रसूति छुट्टी पर रही है, किन्तु ऐसा तब जब प्रसूति छुट्टी की कुल कालावधि बारह सप्ताह से अधिक नहीं है ।]

3. नियंत्रक प्राधिकारी-समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी अधिकारी को नियंत्रक प्राधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकेगी, जो इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी होगा तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए विभिन्न नियंत्रक प्राधिकारी नियुक्त किए जा सकेंगे ।

4. उपदान का संदाय-(1) कम से कम पांच वर्ष की निरन्तर सेवा कर लेने के पश्चात् कर्मचारी के नियोजन के पर्यवसान    पर उसको-

(क) उसकी अधिवर्षिता पर, अथवा

(ख) उसकी निवृत्ति या पद त्याग पर, अथवा

(ग) किसी दुर्घटना अथवा रोग के कारण उसकी मृत्यु अथवा निःशक्तता पर, उपदान संदेय होगा :

परन्तु पांच वर्ष की निरन्तर सेवा का पूरा होना उस दशा में आवश्यक न होगा जहां किसी कर्मचारी के नियोजन के पर्यवसान का कारण उसकी मृत्यु या निःशक्तता है :

 [परन्तु यह और कि किसी कर्मचारी की मृत्यु की दशा में, उसे संदेय उपदान उसके नामनिर्देशिती को या, यदि कोई नामनिर्देशन नहीं किया गया है तो, उसके वारिसों को दिया जाएगा, और जहां कोई ऐसा नामनिर्देशिती या वारिस अवयस्क है वहां ऐसे अवयस्क का अंश नियंत्रक प्राधिकारी के पास जमा कर दिया जाएगा जो उसे ऐसे अवयस्क के फायदे के लिए किसी ऐसे बैंक या अन्य वित्तीय संस्था में, जो विहित की जाए, उस अवयस्क के वयस्कता प्राप्त करने तक, विनिहित करेगा ।]

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, निःशक्तता से ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है जो किसी कर्मचारी को उस कार्य के लिए असमर्थ बना देती है जिसे वह उस दुर्घटना या रोग के पूर्व, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी निःशक्तता हुई है, करने के लिए समर्थ था ।

(2) नियोजक कर्मचारी को, सेवा के प्रत्येक सम्पूरित वर्ष के लिए अथवा छह मास से अधिक के उसके भाग के लिए, सम्बद्ध कर्मचारी द्वारा सबसे अन्त में प्राप्त की गई मजदूरी की दर पर आधारित पन्द्रह दिनों की मजदूरी की दर से उपदान देगा :

परन्तु मात्रानुपाती दर से मजदूरी प्राप्त करने वाले कर्मचारी की दशा में, दैनिक मजदूरी उसके नियोजन के पर्यवसान के ठीक पूर्ववर्ती तीन मास की कालावधि के लिए उसके द्वारा प्राप्त कुल मजदूरी की औसत पर संगणित की जाएगी और इस प्रयोजन के लिए, किसी अतिकालिक कार्य के लिए संदत्त मजदूरी गणना में नहीं ली जाएगी :

परन्तु यह और कि  [ऐसे कर्मचारी की दशा में जो मौसमी स्थापन में नियोजित है और जो वर्ष भर ऐसे नियोजित नहीं है,] नियोजक प्रत्येक मौसम के लिए सात दिन की मजदूरी की दर से उपदान का संदाय करेगा ।

 [स्पष्टीकरण-मासिक दर से मजदूरी प्राप्त करने वाले कर्मचारी की दशा में, पन्द्रह दिनों की मजदूरी सब से अन्त में उसके द्वारा प्राप्त मजदूरी की मासिक दर को, छब्बीस से भाग करके और भागफल को पन्द्रह से गुणा करके परिकलित की जाएगी ।]

                (3) कर्मचारी को संदेय उपदान की रकम  [दस लाख रुपए] से अधिक नहीं होगी ।

                (4) किसी ऐसे कर्मचारी को संदेय उपदान की संगणना के प्रयोजन के लिए जो अपनी निःशक्तता के पश्चात्, घटी हुई मजदूरी पर, नियोजित किया गया है, उसकी निःशक्तता के पूर्व की कालावधि के लिए उसकी मजदूरी उसके द्वारा उस कालावधि के दौरान प्राप्त की गई मजदूरी मानी जाएगी और उसकी निःशक्तता के पश्चात् की कालावधि के लिए उसकी मजदूरी इस प्रकार घटी हुई मजदूरी मानी जाएगी ।

                (5) इस धारा की कोई बात किसी पंचाट अथवा नियोजक के साथ करार या संविदा के अधीन उपदान के और अच्छे निबन्धन प्राप्त करने के कर्मचारी के अधिकार पर प्रभाव नहीं डालेगी ।

                (6) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी,-

(क) जिस कर्मचारी की सेवाएं उसके किसी ऐसे कार्य या जानबूझकर किए गए ऐसे लोप अथवा उपेक्षा के कारण, जिनसे कि नियोजक की सम्पत्ति की हानि, नुकसान अथवा विनाश हुआ है, समाप्त कर दी गई है, उसका उपदान इस प्रकार हुए नुकसान या हानि की मात्रा तक समपहृत कर लिया जाएगा ;

(ख) कर्मचारी को संदेय उपदान  [पूर्णतः या भागतः समपहृत किया जा सकेगा-]

(i) यदि ऐसे कर्मचारी की सेवाएं उसके बलवात्मक अथवा उपद्रवी आचरण अथवा उसकी ओर से किए गए किसी अन्य हिंसात्मक कार्य के कारण समाप्त कर दी गई हैं, अथवा

(ii) यदि ऐसे कर्मचारी की सेवाएं किसी ऐसे कार्य के कारण समाप्त कर दी गई हैं जो नैतिक अधमता वाला अपराध है, परन्तु यह तब जब कि उसके द्वारा ऐसा अपराध अपने नियोजन के दौरान किया जाता है ।

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।

 [4क. अनिवार्य बीमा-(1) ऐसी तारीख से जो समुचित सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित की जाए, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के, या उसके नियंत्रणाधीन, किसी नियोजक या स्थापन से भिन्न, प्रत्येक नियोजक, उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 (1956 का 31) के अधीन स्थापित भारतीय जीवन बीमा निगम या किसी अन्य विहित बीमाकर्ता से इस अधिनियम के अधीन उपदान के मद्धे संदाय के लिए अपने दायित्व के लिए विहित रीति में बीमा कराएगा :

परन्तु भिन्न-भिन्न स्थापनों या स्थापनों के वर्ग के लिए अथवा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी ।

(2) समुचित सरकार, ऐसी शर्तों के, जो विहित की जाएं, अधीन रहते हुए, ऐसे प्रत्येक नियोजक को, जिसने अपने कर्मचारियों की बाबत पहले ही अनुमोदित उपदान निधि की स्थापना कर ली हो और जो ऐसी व्यवस्था चालू रखना चाहता है, और ऐसे प्रत्येक नियोजक को, जिसने पांच सौ या उससे अधिक व्यक्ति नियोजित किए हैं, जो विहित रीति में अनुमोदित उपदान निधि की स्थापना करता है, उपधारा (1) के उपबंधों से छूट दे सकेगी ।

(3) इस धारा के उपबंधों के प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए, प्रत्येक नियोजक, उतने समय के भीतर जो विहित किया जाए, अपने स्थापन को विहित रीति में नियंत्रक प्राधिकारी के पास रजिस्टर कराएगा और किसी भी नियोजक को इस धारा के उपबंधों के अधीन तब तक रजिस्टर नहीं किया जाएगा जब तक कि उसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट बीमा करा लिया हो या उपधारा (2) में निर्दिष्ट अनुमोदित उपदान निधि की स्थापना कर ली हो

(4) समुचित सरकार, इस धारा के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी और ऐसे नियमों में अनुमोदित उपदान निधि के न्यासी बोर्ड की संरचना के लिए और भारतीय जीवन बीमा निगम या किसी अन्य बीमाकर्ता से, जिससे उपधारा (1) के अधीन बीमा कराया गया है, या अनुमोदित उपदान निधि के न्यासी बोर्ड से, किसी कर्मचारी को देय उपदान की रकम की नियंत्रक प्राधिकारी द्वारा वसूली किए जाने के लिए उपबंध किया जा सकेगा ।

(5) जहां कोई नियोजक उपधारा (1) में निर्दिष्ट बीमा के प्रीमियम के रूप में या उपधारा (2) में निर्दिष्ट अनुमोदित उपदान निधि के अभिदाय के रूप में कोई संदाय करने में असफल रहेगा, तो वह इस अधिनियम के अधीन देय उपदान की रकम (जिसके अन्तर्गत विलंबित संदाय के लिए ब्याज, यदि कोई है, भी है) तुरन्त नियंत्रक प्राधिकारी को संदाय करने के दायित्वाधीन होगा ।

(6) जो कोई उपधारा (5) के उपबंधों का उल्लघंन करेगा वह जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, और अपराध चालू रहने की दशा में, ऐसे और जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान अपराध चालू रहता है, एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा में अनुमोदित उपदान निधि" का वही अर्थ है जो आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 2 के खंड (5) में है ।]

5. छूट देने की शक्ति- [(1)] समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, और ऐसी शर्तों के अधीन जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी अथवा दुकान को, जिसे यह अधिनियम लागू होता है, इस अधिनियम के उपबन्धों के प्रवर्तन से छूट दे सकेगी, यदि समुचित सरकार की राय में ऐसे स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी अथवा दुकान के कर्मचारियों को उपदान या पेंशन संबंधी ऐसे फायदे प्राप्त हो रहे हैं जो इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त फायदों से कम अनुकूल नहीं हैं

 [(2) समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी अथवा दुकान में, जिसको यह अधिनियम लागू होता है, नियोजित किसी कर्मचारी या किसी वर्ग के कर्मचारियों को छूट दे सकेगी, यदि समुचित सरकारी की राय में ऐसा कर्मचारी या ऐसे वर्ग के कर्मचारियों को ऐसा उपदान या पेंशन सम्बन्धी ऐसे फायदे प्राप्त हो रहे हैं, जो इस अधिनियम के अधीन प्रदत्त फायदों से कम अनुकूल नहीं हैं ।]

 [(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जारी की गई अधिसूचना ऐसी तारीख से, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से पूर्वतर न हो, भूतलक्षी प्रभाव से जारी की जा सकेगी, किन्तु ऐसी कोई अधिसूचना इस प्रकारी जारी नहीं की जाएगी कि उसका किसी व्यक्ति के हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।]

6. नामनिर्देशन-(1) प्रत्येक कर्मचारी जिसने सेवा का एक वर्ष पूरा कर लिया है, ऐसे समय के भीतर, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, धारा 4 की उपधारा (1) के द्वितीय परन्तुक के प्रयोजनार्थ नामनिर्देशन करेगा

(2) कर्मचारी अपने नामनिर्देशन में, इस अधिनियम के अधीन उसे संदेय उपदान की रकम, एक से अधिक नामनिर्देशिती के बीच वितरित कर सकेगा ।

(3) यदि नामनिर्देशन करने के समय कर्मचारी का कोई कुटुम्ब है तो नामनिर्देशन कुटुम्ब के एक अथवा अधिक सदस्यों के पक्ष में किया जाएगा, तथा ऐसे कर्मचारी द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में किया गया नामनिर्देशन, जो उसके कुटुम्ब का सदस्य नहीं है, शून्य होगा ।

(4) यदि नामनिर्देशन करने के समय कर्मचारी का कोई कुटुम्ब नहीं है तो नामनिर्देशन किसी भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के पक्ष में किया जा सकेगा किन्तु यदि तत्पश्चात् कर्मचारी का कोई कुटुम्ब हो जाता है, तो ऐसा नामनिर्देशन तत्काल अविधिमान्य हो जाएगा और कर्मचारी, उतने समय के भीतर, जो विहित किया जाए, अपने कुटुम्ब के एक अथवा अधिक सदस्यों के पक्ष में नया नामनिर्देशन करेगा ।

(5) उपधारा (3) तथा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, नामनिर्देशन का उपांतरण, कर्मचारी द्वारा किसी भी समय, नियोजक को ऐसा करने के अपने आशय की लिखित सूचना, ऐसे प्ररूप में और रीति से, जो विहित की जाए, देने के पश्चात् किया जा सकेगा ।

(6) यदि नामनिर्देशिती की मृत्यु कर्मचारी से पहले हो जाती है तो नामनिर्देशिती का हित कर्मचारी को प्रतिवर्तित हो जाएगा और कर्मचारी ऐसे हित के सम्बन्ध में, विहित प्ररूप में, नया नामनिर्देशन करेगा ।

(7) यथास्थिति, प्रत्येक नामनिर्देशन, नया नामनिर्देशन अथवा नामनिर्देशन में परिवर्तन, कर्मचारी द्वारा अपने नियोजक को भेजा जाएगा जो उसे अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा ।

7. उपदान की रकम का अवधारण-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन उपदान का संदाय प्राप्त करने का पात्र है अथवा उसकी ओर से कार्य करने के लिए लिखित रूप में प्राधिकृत कोई व्यक्ति, नियोजक को, ऐसे उपदान के संदाय के लिए उतने समय के भीतर और ऐसे प्ररूप में जो विहित किया जाए, लिखित आवेदन भेजेगा

(2) जैसे ही उपदान संदेय हो जाता है नियोजक, चाहे उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन किया गया है अथवा नहीं, उपदान की रकम अवधारित करेगा और उस व्यक्ति को जिसे उपदान संदेय है, तथा नियंत्रक प्राधिकारी को भी इस प्रकार अवधारित उपदान की रकम विनिर्दिष्ट करते हुए लिखित सूचना देगा ।

 [(3) नियोजक उपदान की रकम उस व्यक्ति को जिसको उपदान देय है, उपदान देय होने की तारीख से तीस दिन की कालावधि के भीतर संदाय करने की व्यवस्था करेगा ।

(3क) यदि उपधारा (3) के अधीन देया उपदान की रकम, उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर नियोजक द्वारा नहीं दी जाती है तो नियोजक, उस तारीख से जिसको उपदान देय होता है उस तारीख तक जिसको वह दिया जाता है, केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर दीर्घकालीन निक्षेपों के प्रतिसंदाय के लिए अधिसूचित दर से अनधिक ऐसी दर से, जो वह सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, साधारण ब्याज का संदाय करेगा :

परन्तु ऐसा कोई ब्याज देय नहीं होगा यदि संदाय में विलम्ब कर्मचारी की त्रुटि के कारण हुआ है और नियोजक ने इस आधार पर विलंबित संदाय के लिए नियंत्रक प्राधिकारी से लिखित अनुज्ञा अभिप्राप्त कर ली है ।]

(4) (क) यदि इस अधिनियम के अधीन किसी कर्मचारी को संदेय उपदान की रकम के बारे में अथवा उपदान के संदाय के लिए किसी कर्मचारी के दावे की अनुज्ञेयता के बारे में अथवा उसके सम्बन्ध में, अथवा उपदान प्राप्त करने के हकदार व्यक्ति के बारे में कोई विवाद है तो नियोजक, उतनी रकम जितनी कि वह उपदान के रूप में अपनी ओर से संदेय स्वीकार करता है, नियंत्रक प्राधिकारी के पास जमा कर देगा ।

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।

 [() जहां खंड () में निर्दिष्ट किसी विषय या किन्हीं विषयों के बारे में कोई विवाद है वहां नियोजक या कर्मचारी या विवाद उठाने वाला कोई अन्य व्यक्ति नियंत्रक प्राधिकारी को विवाद का विनिश्चय करने के लिए आवेदन कर सकेगा ]

 [ [(ग)] नियंत्रक प्राधिकारी, सम्यक् जांच के पश्चात् तथा विवाद के पक्षकारों को सुनवाई को युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात्, विवादग्रस्त विषय या विषयों का अवधारण करेगा, तथा यदि ऐसी जांच के परिणामस्वरूप कोई रकम कर्मचारी को संदेय पाई जाती है तो नियंत्रक प्राधिकारी नियोजक को, यथास्थिति, उतनी रकम का संदाय करने अथवा उतनी रकम का, जितनी नियोजक द्वारा पहले ही जमा की गई रकम को घटा कर आए, संदाय करने का निदेश देगा ।]

 4[(घ)] नियंत्रक प्राधिकारी जमा की गई रकम, जिसे अन्तर्गत नियोजक द्वारा जमा की गई अधिक रकम, यदि कोई हो, भी है, उसके हकदार व्यक्ति को देगा ।

4[()] खण्ड () के अधीन रकम जमा किए जाने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र, नियंत्रक प्राधिकारी उस जमा रकम का संदाय-

(i) यदि आवेदक स्वयं कर्मचारी है तो उसी को, अथवा

(ii) यदि आवेदक स्वयं कर्मचारी नहीं है तो, यदि नियंत्रक प्राधिकारी का समाधान हो जाए कि आवेदक के उपदान की रकम प्राप्त करने के अधिकार के बारे में कोई विवाद नहीं है, कर्मचारी 3[के, यथास्थिति, नामनिर्देशिती या ऐसे नामनिर्देशिती के सरंक्षक याट वारिस को,करेगा ।

                (5) उपधारा (4) के अधीन जांच करने के प्रयोजनार्थ, नियंत्रक प्राधिकारी को, निम्नलिखित विषयों की बाबत वही शक्तियां होंगी जो न्यायालय को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन वाद का विचारण करते समय होती हैं, अर्थात् :-

(क) किसी व्यक्ति को हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;

(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना ;

(ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना ;

(घ) साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ।

                (6) इस धारा के अधीन कोई जांच भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और 228 के अर्थ में, तथा धारा के प्रयोजनार्थ, न्यायिक कार्यवाही होगी । 

(7) उपधारा (4) के अधीन आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति आदेश की प्राप्ति की तारीख से साठ दिन के भीतर, समुचित सरकार को, अथवा ऐसे अन्य प्राधिकारी को जो समुचित सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, अपील कर सकेगा :

परन्तु यदि, यथास्थिति, समुचित सरकार अथवा अपील प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी पर्याप्त कारणों से साठ दिन की उक्त अवधि के भीतर अपील नहीं कर सका था, तो उक्त सरकार या प्राधिकारी उक्त अवधि को साठ दिन की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ा सकेगा :

2[परन्तु यह और भी कि नियोजक की कोई भी अपील तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी, जब तक अपील करने के समय अपीलार्थी या तो नियंत्रक प्राधिकारी का इस भाव का प्रमाणपत्र पेश न करे कि अपीलार्थी ने उसके जास इतनी रकम जमा कर दी है जो उपधारा (4) के अधीन जमा की जाने के लिए अपेक्षित उपदान की रकम के बराबर है, अथवा जब तक वह अपील प्राधिकारी के पास ऐसी रकम जमा नहीं कर देता ।]

(8) यथास्थिति, समुचित सरकार अथवा अपील प्राधिकारी, अपील के पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात्, नियंत्रक प्राधिकारी के विनिश्चय को पुष्ट या उपान्तरित कर सकेगा अथवा उलट सकेगा

 [7क. निरीक्षक-(1) समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उतने निरीक्षक जितने वह ठीक समझे, नियुक्त कर सकेगी ।

(2) समुचित सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, वह क्षेत्र परिनिश्चित कर सकेगी जिस पर इस प्रकार नियुक्त निरीक्षक के प्राधिकार का विस्तार होगा तथा जहां एक ही क्षेत्र के लिए दो या अधिक निरीक्षक नियुक्त किए जाते हैं वहां ऐसे आदेश द्वारा उस काम के वितरण या आबंटन के लिए भी, जिसका इस अधिनियम के अधीन उनके द्वारा पालन किया जाना है, उपबन्ध कर सकेगी ।

(3) प्रत्येक निरीक्षक को भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा ।

7ख. निरीक्षकों की शक्तियां-(1) समुचित सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए, निरीक्षक, यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी का अथवा उसके अधीन दी गई किसी छूट की शर्तों का, यदि कोई हों, अनुपालन किया गया है या नहीं, निम्नलिखित सभी शक्तियों या उनमें से किसी का प्रयोग कर सकेगा, अर्थात् :-

(क) नियोजक से ऐसी जानकारी देने की अपेक्षा कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे ;

(ख) किसी ऐसे कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी, दुकान या अन्य स्थापन में, जिसको यह अधिनियम लागू है, किसी ऐसे रजिस्टर, अभिलेख या सूचना या अन्य दस्तावेज की परीक्षा करने के प्रयोजन के लिए, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन रखी जाने या प्रदर्शित की जाने के लिए अपेक्षित है, अथवा किसी व्यक्ति के नियोजन या कर्मचारियों को उपदान के संदाय के संबंध में अन्यथा रखी या प्रदर्शित की गई है, सभी युक्तियुक्त समयों पर ऐसे सहायकों (यदि कोई हों) के साथ, जो सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या किसी लोक प्राधिकरण की सेवा के व्यक्ति हैं और जैसे वह ठीक समझे, प्रवेश और निरीक्षण कर सकेगा तथा निरीक्षण के लिए उसके पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकेगा ;

(ग) पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी से सुसंगत किसी विषय के संबंध में, नियोजक या किसी ऐसे व्यक्ति की, जिसे वह परिसर या स्थान पर पाता है तथा जिसकी बाबत उसे यह विश्वास करने का कारण है कि वह उसमें नियोजित कर्मचारी है, परीक्षा कर सकेगा ;

(घ) किसी रजिस्टर, अभिलेख, सूचना या अन्य दस्तावेज की, जिसे वह सुसंगत समझे, प्रतिलिपियां तैयार कर सकेगा या उसमें से उद्धरण ले सकेगा, तथा जहां उसे यह विश्वास करने का कारण है कि किसी नियोजक द्वारा इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है, वहां ऐसे रजिस्टर, अभिलेख, सूचना या अन्य दस्तावेज की, जिसे वह उस अपराध की बाबत सुसंगत समझे, ऐसे सहायकों के साथ जिन्हें वह ठीक समझे, तलाशी ले सकेगा और उसका अभिग्रहण कर सकेगा ;

(ङ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो विहित की जाएं ।

(2) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे किसी निरीक्षक द्वारा उपधारा (1) के अधीन कोई रजिस्टर, अभिलेख, सूचना या अन्य दस्तावेज पेश करने या कोई जानकारी देने की अपेक्षा की गई है, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 175 और 176 के अर्थ में ऐसा करने के लिए वैध रूप से आबद्ध समझा जाएगा ।

(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्ध, जहां तक हो सके, इस धारा के अधीन किसी ऐसी तलाशी या अभिग्रहण को उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उस संहिता की धारा 94 के अधीन जारी किए गए वारंट के प्राधिकार के अधीन की गई किसी तलाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं ।]

8. उपदान की वसूली-यदि इस अधिनियम के अधीन संदेय उपदान की रकम नियोजक द्वारा, विहित समय के भीतर, उसके हकदार व्यक्ति के संदत्त नहीं की जाती है तो नियंत्रक प्राधिकारी, व्यथित व्यक्ति द्वारा उसे इस निमित्त आवेदन किए जाने पर, कलक्टर को उस रकम के लिए एक प्रमाणपत्र जारी करेगा, जो, विहित समय के अवसान की तारीख से उस पर  [ऐसी दर से, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे,] चक्रवृद्धि ब्याज सहित उसकी वसूली भू-राजस्व के बकाया के रूप में करेगा तथा उसे उसके हकदार व्यक्ति को संदत्त करेगा :

 [परन्तु नियंत्रक प्राधिकारी, इस धारा के अधीन प्रमाणपत्र जारी करने से पूर्व, ऐसे प्रमाणपत्र के जारी किए जाने के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने का नियोजक को युक्तियुक्त अवसर देगा :

परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन देय ब्याज की रकम, किसी भी दशा में इस अधिनियम के अधीन देय उपदान की रकम से अधिक नहीं होगी ।]

9. शास्तियां-(1) जो कोई, किसी ऐसे संदाय से बचने के प्रयोजनार्थ जो उसे इस अधिनियम के अधीन करना है अथवा किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा संदाय करने से बचने के लिए समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ, जानबूझकर कोई मिथ्या कथन अथवा मिथ्या व्यपदेशन करेगा अथवा कराएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, अथवा जुर्माने से, जो  [दस हजार रुपए] तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।

(2) वह नियोजक जो इस अधिनियम के उपबन्धों अथवा उसके अधीन बनाए गए किसी नियम अथवा आदेश का उल्लंघन करेगा, अथवा उसके अनुपालन में व्यतिक्रम करेगा वह कारावास से, 1[जिसकी अवधि तीन मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो एक वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा जुर्माने से, जो दस हजार रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु जो बीस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों सेट दण्डनीय होगा :

परन्तु जहां अपराध इस अधिनियम के अधीन संदेय उपदान के असंदाय से संबंधित है वहां नियोजक कारावास से, जिसकी अवधि 1[छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगीट दण्डनीय होगा, सिवाय तब के जब अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय, उन कारणों से, जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाएंगे, इस राय का हो कि कम अवधि के कारावास से या जुर्माने के अधिरोपण से न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाएगी ।

10. नियोजक को कतिपय मामलों में दायित्व से छूट-जहां कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध से आरोपित है वहां वह, उसके द्वारा सम्यक् रूप से किए गए परिवाद पर और परिवादी को ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन पूर्ण दिनों की लिखित सूचना देने पर, इस बात का हकदार होगा कि किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को जिसे वह वास्तविक अपराधी के रूप में आरोपित करता है, उस आरोप की सुनवाई के लिए नियत किए गए समय पर, न्यायालय के समक्ष लाया जाए ; और यदि अपराध का किया जाना साबित हो जाने के पश्चात्, नियोजक न्यायालय को समाधानप्रद रूप में यह साबित कर देता है-

(क) कि उसने इस अधिनियम का निष्पादन कराने के लिए सम्यक् तत्परता बरती है, तथा

(ख) कि उक्त अन्य व्यक्ति ने उसकी जानकारी, सहमति या मौनानुकूलता के बिना अपराध किया है,

तो वह अन्य व्यक्ति उस अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाएगा और उसी प्रकार के दण्ड का भागी होगा मानो वह नियोजक हो, और नियोजक और ऐसे अपराध की बाबत इस अधिनियम के अधीन हर दायित्व से उन्मोचित हो जाएगा :

                परन्तु यथापूर्वोक्त बात को साबित करने में नियोजक की शपथ पर परीक्षा की जा सकेगी और उसके तथा किसी ऐसे साक्षी के, जिसे वह अपने समर्थन में बुलाता है, साक्ष्य की, उस व्यक्ति की ओर से जिसे वह वास्तविक अपराधी के रूप में आरोपित करता है तथा अभियोजक द्वारा, प्रतिपरीक्षा की जाएगी :

                परन्तु यह और कि यदि नियोजक द्वारा वास्तविक अपराधी के रूप में आरोपित व्यक्ति आरोप की सुनवाई के लिए नियत किए गए समय पर न्यायालय के समक्ष नहीं लाया जा सकता है तो न्यायालय सुनवाई को, समय-समय पर, तीन मास से अनधिक की कालावधि के लिए, स्थगित कर देगा और यदि वास्तविक अपराधी के रूप में आरोपित व्यक्ति उक्त कालावधि की समाप्ति तक भी न्यायालय के समक्ष नहीं लाया जा सकता है तो न्यायालय नियोजक के विरुद्ध आरोप की सुनवाई के लिए अग्रसर होगा और, यदि अपराध साबित हो जाए तो, नियोजक को दोषसिद्ध करेगा ।

11. अपराधों का संज्ञान-(1) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान समुचित सरकार द्वारा अथवा उसके प्राधिकार के अधीन किए गए परिवाद पर के सिवाय नहीं करेगा :

                परन्तु जहां उपदान की रकम का संदाय या उसकी वसूली विहित समय के अवसान से छह मास के भीतर नहीं की गई है वहां समुचित सरकार नियंत्रक प्राधिकारी को इस बात के लिए प्राधिकृत करेगी कि वह नियोजक के विरुद्ध परिवाद करे और तब नियंत्रक प्राधिकारी, ऐसे प्राधिकरण की तारीख  से पन्द्रह दिन के भीतर, उस अपराध का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को ऐसा परिवाद करेगा ।

                (2) इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण  [महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटट के न्यायालय से अवर न्यायालय नहीं करेगा ।

12. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम अथवा उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के अधीन सद्भावूपर्वक की गई अथवा किए जाने के लिए आशयित किसी बात के सम्बन्ध में कोई वाद अथवा अन्य विधिक कार्यवाही नियंत्रक प्राधिकारी अथवा किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध न होगी ।

13. उपदान का संरक्षण-इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई उपदान  [तथा किसी ऐसे स्थापन, कारखाने, खान, तेलक्षेत्र, बागान, पत्तन, रेल कम्पनी या दुकान में, जो धारा के अधीन छूट प्राप्त है, नियोजित किसी कर्मचारी को संदेय कोई उपदान] किसी सिविल, राजस्व या दण्ड न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में कुर्क किए जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा ।

 [13क. उपदान के संदाय का विधिमान्यकरण-किसी न्यायालय के किसी निर्णय, ड्रिकी या आदेश में किसी बात के होते हुए भी, 3 अप्रैल, 1997 से ही प्रारंभ होने वाली और उस दिन को, जिसको उपदान संदाय (संशोधन) अधिनियम, 2009 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, समाप्त होने वाली अवधि के लिए कोई उपदान, भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय की अधिसूचना संख्यांक का०आ० 1080, तारीख 3 अप्रैल, 1997 के अनुसरण में किसी कर्मचारी को संदेय होगा और उक्त अधिसूचना विधिमान्य होगी तथा सदैव इस प्रकार विधिमान्य समझी जाएगी मानो उपदान संदाय (संशोधन) अधिनियम, 2009 सभी तात्त्विक समयों पर प्रवृत्त रहा था और उपदान तद्नुसार संदेय होगा :

परन्तु, इस धारा की कोई बात किसी व्यक्ति पर, इस धारा में विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान उसके द्वारा उपदान का, जो उक्त अधिसूचना के अनुसरण में देय होगा, संदाय न किए जाने के कारण किसी प्रकार के किसी दंड या शास्ति को प्रभावी करने के लिए विस्तारित नहीं होगी या उसके विस्तारित होने का अर्थ नहीं लगाया जाएगा ।]

14. अधिनियम का अन्य अधिनियमितियों आदि पर अध्यारोही होना-इन अधिनियम अथवा उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्ध, इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति में अथवा इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति के आधार पर प्रभावी किसी लिखत अथवा संविदा में किसी असंगत बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे

15. नियम बनाने की शक्ति-(1) समुचित सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों के क्रियान्वित करने के प्रयोजनार्थ, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी ।

(2) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

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