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अनुसंधान और विकास उपकर अधिनियम, 1986 ( Research And Development Cess Act, 1986 (Repealed) )


 

अनुसंधान और विकास उपकर अधिनियम, 1986

(1986 का अधिनियम संख्यांक 32)

[14 अगस्त, 1986]

देश में विकसित प्रौद्योगिकी के वाणिज्यिक प्रयोग को प्रोत्साहित करने

के प्रयोजन के लिए, प्रौद्योगिकी का आयात करने के लिए

और आयातित, प्रौद्योगिकी का देश में विस्तृत रूप से

प्रयोग करने के लिए, अनुकूलन करने के लिए किए

गए सभी संदायो पर उपकर उद्गृहीत और

संगृहीत करने का तथा उससे संबंधित

और उसके आनुषंगिक विषयों का

उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के सैंतीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनुसंधान और विकास उपकर अधिनियम,1986 है ।

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

                 [(क) बोर्ड" से प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 (1995 का 44)के अधीन गठित प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अभिप्रेत है ;

(ख) उपकर" से धारा 3 के अधीन उद्गृहीत उपकर अभिप्रेत है ;]

(घ) किसी प्रौद्योगिकी के संबंध में, आयात" से भारत के बाहर किसी स्थान से ऐसी प्रौद्योगिकी लाना अभिप्रेत है ;

(ङ) औद्योगिक समुत्थान" का वही अर्थ है जत्त्द्म् उसका भारतीय औद्योगिक विकास बैंक अधिनियम, 1964 (1964 का 18) की धारा 2 के खंड (ग) में है और इसके अंतर्गत कोई अन्य व्यक्ति भी है जिसके पक्ष में ऐसा कोई विदेशी सहयोग जिसमें प्रौद्योगिकी का आयात अंतर्वलित है, 1[समय-समय पर प्रवृत्त भारत सरकार की औद्योगिक नीति के अनुसार, अनुमोदित किया जाता है या अपने आप ही अनुमोदित हो जाता है ;]

(च) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(छ) विनिर्दिष्ट अभिकरण" से अभिप्रेत है,-

(i) भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) के अधीन गठित भारतीय रिजर्व बैंक ; या

(ii) भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (1955 का 23) के अधीन गठित भारतीय स्टेट बैंक ; या

(iii) कोई ऐसा अन्य बैंक या संस्था जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट की जाए ;

(ज) प्रौद्योगिकी" से किसी विदेशी सहयोग के अधीन किसी औद्योगिक समुत्थान द्वारा किसी भी प्रयोजन के लिए अपेक्षित कोई विशेष या तकनीकी ज्ञान या कोई विशेष सेवा अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत डिजाइन, रेखांकन, प्रकाशन और तकनीकी कार्मिक भी हैं ।

3. प्रौद्योगिकी के आयात के लिए किए गए संदाय पर उपकर का उद्ग्रहण और संग्रहण-(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रौद्योगिकी के आयात के लिए किए गए सभी संदायों पर पांच प्रतिशत से अनधिक ऐसी दर पर जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, उपकर उद्गृहीत और संगृहीत किया जाएगा ।

(2) उपकर ऐसे औद्योगिक समुत्थान द्वारा जो प्रौद्योगिकी का आयात करता है ऐसे आयात के लिए कोई संदाय करने पर या उसके पूर्व केन्द्रीय सरकार को संदेय होगा और औद्योगिक समुत्थान द्वारा किसी विनिर्दिष्ट अभिकरण को संदत्त किया जाएगा ।

4. उपकर के आगमों का भारत की संचित निधि में जमा किया जाना-धारा 3 के अधीन उद्गृहीत और संगृहीत उपकर के आगम पहले भारत की संचित निधि में जमा किए जाएंगे और केन्द्रीय सरकार, यदि संसद् इस निमित्त विधि द्वारा किए गए विनियोग द्वारा ऐसा उपबंध करती है तो समय-समय पर  [बोर्डट को ऐसे आगमों में से (संग्रहण के खर्च को काटकर) 1[बोर्ड के प्रयोजनों के लिए] उपयोजित किए जाने के लिए ऐसी धनराशियां देगी जो वह ठीक समझे ।

 ।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।

7. केन्द्रीय सरकार की छूट देने की शक्ति-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि लोक हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, यदि कोई हों, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी औद्योगिक समुत्थान को ऐसी प्रौद्योगिकी के आयात के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, इस अधिनियम के अधीन संदेय उपकर के संदाय से छूट दे सकेगी ।

8. जानकारी मांगने की शक्ति- [बोर्ड] किसी औद्योगिक समुत्थान से इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसे आंकड़े और अन्य जानकारी, ऐसे प्ररूप में और ऐसी अवधि के भीतर देने की अपेक्षा कर सकेगा जो विहित की जाए ।

9. उपकर संदाय करने पर शक्ति-(1) यदि किसी औद्योगिक समुत्थान द्वारा संदेय उपकर प्रौद्योगिकी के आयात के लिए संदाय करने पर या उसके पूर्व संदत्त नहीं किया जाता है तो यह समझा जाएगा कि वह बकाया है और वह 3[बोर्ड] द्वारा ऐसी रीति से वसूल किया जाएगा जो विहित की जाए ।

(2) 3[बोर्ड] ऐसी जांच के पश्चात् जो वह ठीक समझे, उस औद्योगिक समुत्थान पर जिस पर उपधारा (1) के अधीन बकाया है, बकाया रकम के दस गुने से अनधिक शास्ति अधिरोपित कर सकेगा :

परन्तु ऐसी शास्ति अधिरोपित करने के पहले ऐसे औद्योगिक समुत्थान को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा, और यदि ऐसी सुनवाई के पश्चात्  3[बोर्ड] का यह समाधान हो जाता है कि व्यतिक्रम अच्छे और पर्याप्त कारणों से था तो इस उपधारा के अधीन कोई शास्ति अधिरोपित नहीं की जाएगी ।

10. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में निम्नलिखित विषयों का उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्-

                (क) वह प्ररूप जिसमें और वह अवधि जिसके भीतर धारा 8 के अधीन जानकारी दी जा सकेगी ;

                (ख) वह रीति जिससे धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन उपकर की बकाया वसूल की जा सकेगी ;

                (ग) कोई अन्य विषय जिसका विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जा सकता है ।

(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात्वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

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