चोरबाजारी निवारण और आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम, 1980
(1980 का अधिनियम संख्यांक 7)
[12 फरवरी, 1980]
चोरबाजारी का निवारण करने और समुदाय को आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय बनाए
रखने के प्रयोजन के लिए कुछ मामलों में निरोध का तथा
उससे सम्बद्ध विषयों का उपबन्ध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के इकतीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम चोरबाजारी निवारण और आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम, 1980 है ।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है ।
(3) यह 5 अक्तूबर, 1979 को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा ।
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) समुचित सरकार" से, केन्द्रीय सरकार द्वारा या केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी द्वारा किए गए निरोध-आदेश के सम्बन्ध में या ऐसे आदेश के अधीन निरुद्ध व्यक्ति के सम्बन्ध में, केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा या राज्य सरकार के किसी अधिकारी द्वारा किए गए निरोध-आदेश के सम्बन्ध में या ऐसे आदेश के अधीन निरुद्ध व्यक्ति के सम्बन्ध में, राज्य सरकार अभिप्रेत है ;
(ख) निरोध-आदेश" से धारा 3 के अधीन किया गया आदेश अभिप्रेत है ;
(ग) संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में राज्य सरकार" से उसका प्रशासक अभिप्रेत है ।
3. कुछ व्यक्तियों को निरुद्ध करने का आदेश करने की शक्ति-(1) यदि केन्द्रीय सरकार का या राज्य सरकार का या केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी का, जो उस सरकार के संयुक्त सचिव से निम्न पंक्ति का नहीं है और जो इस धारा के प्रयोजनों के लिए उस सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किया गया है, या राज्य सरकार के किसी अधिकारी का, जो उस सरकार के सचिव से निम्न पंक्ति का नहीं है और जो इस धारा के प्रयोजनों के लिए उस सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किया गया है, किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह समाधान हो जाता है कि समुदाय के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली किसी रीति से कार्य करने से निवारित करने की दृष्टि से उसे निरुद्ध करना आवश्यक है तो वह यह निदेश देते हुए आदेश कर सकेगी या कर सकेगा कि ऐसे व्यक्ति को निरुद्ध कर लिया जाए ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए समुदाय के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली किसी रीति से कार्य करना" पद से अभिप्रेत है,-
(क) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) के अधीन या समुदाय के लिए किसी आवश्यक वस्तु के उत्पादन, प्रदाय या वितरण या व्यापार और वाणिज्य के नियंत्रण से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन, दण्डनीय कोई अपराध करना या किसी व्यक्ति को ऐसा अपराध करने के लिए उकसाना, या
(ख) किसी ऐसी वस्तु में,-
(i) जो आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) में यथा परिभाषित आवश्यक वस्तु है ; या
(ii) जिसके सम्बन्ध में किसी ऐसी अन्य विधि में, जो खण्ड (क) में निर्दिष्ट है, उपबन्ध किए गए हैं,
इस दृष्टि से व्यवहार करना कि किसी ऐसी रीति से अभिलाभ प्राप्त किया जाए जिससे कि उस अधिनियम या उपर्युक्त अन्य विधि के उपबन्ध प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विफल हो जाएं या विफल हो सकते हों ।
(2) उपधारा (1) के उपबन्धों के अनुसार समाधान हो जाने पर निम्नलिखित अधिकारियों में से कोई भी अधिकारी, उक्त उपधारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, अर्थात् :-
(क) जिला मजिस्ट्रेट,
(ख) पुलिस आयुक्त, जहां भी वे नियुक्त किए गए हैं ।
(3) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश उपधारा (2) में वर्णित अधिकारी द्वारा किया जाता है तब वह उस तथ्य की रिपोर्ट उस राज्य सरकार को तुरन्त भेजेगा जिसके वह अधीनस्थ है और साथ ही वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है, और अन्य ऐसी विशिष्टियां, जो उसकी राय में मामले से सम्बन्धित हैं, भी भेजेगा और ऐसा कोई आदेश, उसके किए जाने की तारीख से बारह दिन से अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगा, जब तक कि इस बीच राज्य सरकार उसे अनुमोदित नहीं कर देती है :
परन्तु जहां आदेश करने वाले प्राधिकारी द्वारा निरोध के आधार, निरोध की तारीख से पांच दिन के पश्चात् किन्तु दस दिन के भीतर, धारा 8 के अधीन संसूचित किए जाते हैं वहां यह उपधारा इस उपान्तर के साथ लागू होगी कि बारह दिन" शब्दों के स्थान पर पन्द्रह दिन" शब्द रखे जाएंगे ।
(4) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार द्वारा किया जाता है या अनुमोदित किया जाता है या यदि इस धारा के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार के किसी ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाता है, जो उस सरकार के सचिव से निम्न पंक्ति का नहीं है और जो उपधारा (1) के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया है, तो राज्य सरकार उस तथ्य की रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को सात दिन के भीतर भेजेगी और साथ ही वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है तथा अन्य ऐसी विशिष्टियां जो राज्य सरकार की राय में उस आदेश की आवश्यकता से सम्बन्धित हैं, भी भेजेगी ।
4. निरोध-आदेशों का निष्पादन-निरोध-आदेश का निष्पादन भारत में किसी भी स्थान पर उस रीति से किया जा सकेगा जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में गिरफ्तारी के वारण्टों के निष्पादन के लिए उपबन्धित है ।
5. निरोध के स्थान तथा शर्तों के विनियमन की शक्ति-प्रत्येक व्यक्ति, जिसके विरुद्ध निरोध-आदेश किया गया है,-
(क) ऐसे स्थान पर और ऐसी शर्तों के अधीन जिनके अन्तर्गत भरण-पोषण, अनुशासन तथा अनुशासन-भंग के लिए दण्ड के बारे में शर्तें भी हैं, निरुद्ध किया जा सकेगा जो समुचित सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे ; और
(ख) निरोध के एक स्थान से निरोध के दूसरे स्थान को, चाहे वह उसी राज्य में हो या दूसरे राज्य में, समुचित सरकार के आदेश द्वारा हटाया जा सकेगा :
परन्तु राज्य सरकार, किसी व्यक्ति को एक राज्य से किसी अन्य राज्य को हटाने का खण्ड (ख) के अधीन आदेश, उस अन्य राज्य की सरकार की सहमति के बिना नहीं करेगी ।
6. निरोध-आदेशों का कुछ आधारों पर अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील न होना-कोई निरोध-आदेश केवल इस कारण अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील नहीं होगा कि-
(क) उसके अधीन निरुद्ध किया जाने वाला व्यक्ति, आदेश देने वाली सरकार या अधिकारी की क्षेत्रीय अधिकारिता की सीमाओं के बाहर है, या
(ख) ऐसे व्यक्ति के निरोध का स्थान उक्त सीमाओं के बाहर है ।
7. फरार व्यक्तियों के सम्बन्ध में शक्तियां-(1) [यदि, यथास्थिति, समुचित सरकार या धारा 3 की उपधारा (2) में वर्णित किसी अधिकारीट के पास यह विश्वास करने का कारण है कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में निरोध-आदेश किया गया है वह फरार हो गया है या अपने को इस प्रकार छिपा रहा है कि उस आदेश का निष्पादन नहीं हो सकता है तो वह सरकार [या अधिकारीट-
(क) उस तथ्य की लिखित रिपोर्ट उस महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगी जो उस स्थान पर अधिकारिता रखता है जहां उक्त व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है और तब दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 82, 83, 84 और 85 के उपबन्ध उक्त व्यक्ति और उसकी संपत्ति के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे मानो उसे निरुद्ध करने का आदेश, मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया गिरफ्तारी का वारण्ट हो ;
(ख) राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा उक्त व्यक्ति को निदेश दे सकेगी कि वह ऐसे अधिकारी के समक्ष ऐसे स्थान पर और ऐसी अवधि के भीतर, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, हाजिर हो, और यदि उक्त व्यक्ति ऐसे आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है तो, जब तक कि वह यह साबित नहीं कर देता कि उसका अनुपालन उसके लिए संभव नहीं था और उसने आदेश में वर्णित अधिकारी को उसमें विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर, उस कारण की, जिससे उसका अनुपालन असंभव था, तथा अपने पते-ठिकाने की सूचना दे दी थी, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।
(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा ।
8. आदेश से प्रभावित व्यक्ति को निरोध-आदेश के आधारों का प्रकट किया जाना-(1) जब कोई व्यक्ति किसी निरोध-आदेश के अनुसरण में निरुद्ध है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी, यथाशक्य शीघ्र, किन्तु निरोध की तारीख से मामूली तौर पर पांच दिन के भीतर तथा असाधारण परिस्थितियों में, और ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, दस दिन के भीतर, उसको वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है और समुचित सरकार से उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का उसे शीघ्रतम अवसर देगा ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात प्राधिकारी से यह अपेक्षा न करेगी कि वह ऐसे तथ्य प्रकट करे जिन्हें प्रकट करना वह लोकहित के विरुद्ध समझता है ।
9. सलाहकार बोर्डों का गठन-(1) जब भी आवश्यकता हो, केन्द्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक सलाहकार बोर्ड गठित करेगी ।
[(2) ऐसा प्रत्येक बोर्ड ऐसे तीन व्यक्तियों से मिलकर बनेगा जो किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं, या रह चुके हैं, या उस रूप में नियुक्त किए जाने के लिए अर्ह हैं, तथा ऐसे व्यक्ति समुचित सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।
(3) समुचित सरकार, सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से ऐसे सदस्य को उसका अध्यक्ष नियुक्त करेगी जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रह चुका है, तथा किसी संघ राज्यक्षेत्र की दशा में, किसी ऐसे व्यक्ति की, जो किसी राज्य के उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, सलाहकार बोर्ड में, नियुक्ति संपृक्त राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से की जाएगी ।]
10. सलाहकार बोर्डों को निर्देश-इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय, ऐसे प्रत्येक मामले में, जिसमें इस अधिनियम के अधीन निरोध-आदेश किया गया है, उस आदेश के अधीन किसी व्यक्ति के निरोध की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर समुचित सरकार, धारा 9 के अधीन अपने द्वारा गठित सलाहकार बोर्ड के समक्ष वे आधार, जिन पर वह आदेश किया गया है, और यदि आदेश से प्रभावित व्यक्ति ने कोई अभ्यावेदन किया है तो वह अभ्यावेदन तथा जब आदेश धारा 3 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी अधिकारी द्वारा किया गया है तब उस अधिकारी द्वारा धारा 3 के अधीन दी गई रिपोर्ट भी, रखेगी ।
11. सलाहकार बोर्डों की प्रक्रिया-(1) सलाहकार बोर्ड अपने समक्ष रखी गई सामग्री पर विचार करने के पश्चात् तथा समुचित सरकार से या समुचित सरकार के माध्यम से इस प्रयोजनार्थ बुलाए गए किसी व्यक्ति से या संबद्ध व्यक्ति से, ऐसी अतिरिक्त जानकारी मांगने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे और यदि किसी विशिष्ट मामले में वह ऐसा करना आवश्यक समझता है अथवा यदि संबद्ध व्यक्ति चाहता है कि उसे सुना जाए तो वैयक्तिक रूप से उसे सुनने के पश्चात्, समुचित सरकार को अपनी रिपोर्ट संबद्ध व्यक्ति के निरोध की तारीख से सात सप्ताह के भीतर देगा ।
(2) सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट के एक अलग भाग में उसकी यह राय विनिर्दिष्ट की जाएगी कि संबद्ध व्यक्ति के निरोध के लिए पर्याप्त कारण है या नहीं ।
(3) जब सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में मतभेद हो तब ऐसे सदस्यों की बहुसंख्या की राय को बोर्ड की राय समझा जाएगा ।
(4) इस धारा की कोई बात उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध निरोध-आदेश किया गया है, इस बात का हकदार नहीं बनाएगी कि वह सलाहकार बोर्ड को किए गए निर्देश से संबंधित किसी मामले में विधि-व्यवसायी द्वारा हाजिर हो तथा सलाहकार बोर्ड की कार्यवाही और उसकी रिपोर्ट, उसके उस भाग के सिवाय, जिसमें बोर्ड की राय विनिर्दिष्ट हो, गोपनीय होगी ।
12. सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट पर कार्रवाई-(1) किसी ऐसे मामले में, जिसमें सलाहकार बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि किसी व्यक्ति के निरोध के लिए उसकी राय में पर्याप्त कारण है, समुचित सरकार निरोध-आदेश को पुष्ट कर सकेगी तथा संबद्ध व्यक्ति को उतनी अवधिपर्यन्त निरुद्ध रख सकेगी, जितनी वह ठीक समझे ।
(2) किसी ऐसे मामले में, जिसमें सलाहकार बोर्ड ने रिपोर्ट दी है कि सम्बद्ध व्यक्ति के निरोध के लिए उसकी राय में पर्याप्त कारण नहीं है, समुचित सरकार निरोध-आदेश वापस ले लेगी तथा उस व्यक्ति को तुरन्त छुड़वा देगी ।
13. निरोध की अधिकतम अवधि-धारा 12 के अधीन पुष्ट किए गए किसी निरोध-आदेश के अनुसरण में किसी व्यक्ति को जिस अधिकतम अवधि तक निरुद्ध रखा जा सकेगा वह निरोध की तारीख से छह मास की होगी :
परन्तु इस धारा की कोई बात, निरोध-आदेश को पहले ही किसी समय वापस लेने या उपांतरित करने की समुचित सरकार की शक्ति पर, प्रभाव नहीं डालेगी ।
14. निरोध-आदेश वापस लेना-(1) साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 21 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी निरोध-आदेश को किसी भी समय-
(क) इस बात के होते हुए भी कि आदेश राज्य सरकार के किसी अधिकारी द्वारा किया गया है, उस राज्य सरकार द्वारा या केन्द्रीय सरकार द्वारा ;
(ख) इस बात के होते हुए भी कि आदेश केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी द्वारा या राज्य सरकार द्वारा किया गया है, केन्द्रीय सरकार द्वारा,वापस लिया जा सकेगा या उपांतरित किया जा सकेगा ।
(2) यदि किसी मामले में, निरोध-आदेश के वापस ले लिए जाने या अवसान की तारीख के पश्चात् ऐसे नए तथ्य उत्पन्न हुए हैं जिन पर, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अधिकारी का समाधान हो जाता है कि निरोध-आदेश किया जाना चाहिए तब उसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 3 के अधीन नए निरोध-आदेश का किया जाना, निरोध-आदेश के वापस ले लिए जाने या अवसान के कारण वर्जित नहीं होगा ।
15. निरुद्ध व्यक्तियों को अस्थायी तौर पर छोड़ना-(1) समुचित सरकार, किसी भी समय, निदेश दे सकेगी कि निरोध-आदेश के अनुसरण में निरुद्ध कोई व्यक्ति या तो बिना शर्तों के या निदेश में विनिर्दिष्ट ऐसी शर्तों पर, जिन्हें वह व्यक्ति स्वीकार करे, किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए छोड़ दिया जाए और वह उसका छोड़ा जाना, किसी भी समय, रद्द कर सकेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति के छोड़े जाने का निदेश देते समय समुचित सरकार, उससे अपेक्षा कर सकेगी कि वह निदेश में विनिर्दिष्ट शर्तों के उचित पालन के लिए प्रतिभुओं सहित या उनके बिना एक बंधपत्र निष्पादित करे ।
(3) उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यक्ति स्वयं को उस समय और स्थान पर और उस प्राधिकारी के समक्ष अभ्यर्पित करेगा जो, यथास्थिति, उसके छोड़े जाने का निदेश देने वाले या उसका छोड़ा जाना रद्द करने वाले आदेश में विनिर्दिष्ट हो ।
(4) यदि पर्याप्त कारण के बिना, कोई व्यक्ति, उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति से स्वयं को अभ्यर्पित करने में असफल रहेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।
(5) यदि उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यक्ति, उस पर उक्त उपधारा के अधीन अधिरोपित शर्तों या उसके द्वारा निष्पादित बन्धपत्र की शर्तों में से किसी को पूरा करने में असफल रहेगा तो उस बन्धपत्र का समपहृत किया जाना घोषित कर दिया जाएगा और उसके द्वारा आबद्ध व्यक्ति उसमें लिखी शास्ति के संदाय के लिए दायी होगा ।
16. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई का संरक्षण-इस अधिनियम के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के बारे में कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाही, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध नहीं होगी और न कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी व्यक्ति के विरुद्ध होगी ।
17. निरसन और व्यावृत्ति-(1) चोरबाजारी निवारण और आवश्यक वस्तु प्रदाय अध्यादेश, 1979 (1979 का 10) इसके द्वारा निरसित किया जाता है ।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, इस प्रकार निरसित अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी ।
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