लोक सहायक सेना अधिनियम, 1956
(1956 का अधिनियम संख्यांक 53)
[15 सितम्बर, 1956]
भारत के नागरिकों को सैनिक प्रशिक्षण देने के लिए लोक सहायक
सेना के गठन का उपबन्ध करने हेतु
अधिनियम
भारत गणराज्य के सातवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
1. संक्षिप्त नाम और विस्तार-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम लोक सहायक सेना अधिनियम, 1956 है ।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “शिविर” से धारा 4 के अधीन शिविर के रूप में स्थापित ऐसा स्थान अभिप्रेत है जहां तत्समय स्वयंसेवकों का कोई समूह प्रशिक्षण ले रहा है ;
(ख) “बल” से इस अधिनियम के अधीन गठित लोक सहायक सेना अभिप्रेत है ;
(ग) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(घ) “वरिष्ठ आफिसर” से नियमित सेना या प्रादेशिक सेना का कोई आफिसर, जूनियर कमीशंड आफिसर (कनिष्ठ आयुक्त आफिसर), वारण्ट आफिसर या नान-कमीशंड आफिसर (अनायुक्त आफिसर) अभिप्रेत है ;
(ङ) “स्वयंसेवक” से इस अधिनियम के अधीन बल में भर्ती किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है ;
(च) ऐसे शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46) या प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948 (1948 का 56) में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ होंगे जो उक्त अधिनियमों में हैं ।
3. लोक सहायक सेना का गठन- केंद्रीय सरकार, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से स्वयंसेवकों की भर्ती करके एक बल का, जिसका नाम लोक सहायक सेना होगा, गठन करेगी तथा उसे बनाए रखेगी ।
4. शिविरों की स्थापना- केंद्रीय सरकार बल के प्रयोजनार्थ उतने शिविर स्थापित कर सकेगी जितने वह उचित समझे और ऐसे किन्हीं शिविरों को वह बंद कर सकेगी या पुनः स्थापित कर सकेगी ।
5. भर्ती-भारत का कोई नागरिक जो अट्ठरह वर्ष से नीचे और चालीस वर्ष से ऊपर की आयु का नहीं है, स्वयंसेवक के रूप में भर्ती (अभ्यावेशित) होने के लिए अपने को प्रस्तुत कर सकेगा और यदि वह विहित शर्तें पूरी कर देता है तो विहित प्राधिकारी द्वारा उसे ऐसी अवधि के लिए और ऐसी शर्तों पर, जो विहित की जाएं, विहित रीति से भर्ती किया जा सकेगा ।
6. स्वयंसेवकों के कर्तव्य-केवल स्वयंसेवक होने के आधार पर ही कोई व्यक्ति सैनिक सेवा करने के दायित्वाधीन नहीं होगा, किंतु उसके अधीन रहते हुए किसी स्वयंसेवक से यह अपेक्षा की जा सकेगी कि वह ऐसा प्रशिक्षण ले जो विहित किया जाए, और ऐसा प्रशिक्षण लेते समय वह ऐसे कर्तव्यों का पालन और बाध्यताओं का निर्वहन करेगा, जिन्हें विहित प्राधिकारी, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा, निदिष्ट करे ।
7. उन्मोचन-प्रत्येक स्वयंसेवक उस अवधि की समाप्ति पर, जिसके लिए भर्ती किया गया था, बल से अपने को उन्मोचित कराने का हकदार होग, किन्तु उस अवधि के अवसान के पूर्व उसे ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी शर्तों पर, जो विहित की जाएं, बल से उन्मोचित किया जा सकेगा ।
8. अपराध और शास्तियां-(1) यदि कोई स्वयंसेवक निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात् :-
(i) किसी स्थान पर हाजिर होने की सम्यक् रूप से अपेक्षा की जाने पर बिना पर्याप्त कारण के गैरहाजिर रहेगा; अथवा
(ii) शिविर में ड्यूटी पर रहते हुए-
(क) छुट्टी के बिना शिविर से अनुपस्थित रहेगा ;
(ख) किसी वरिष्ठ आफिसर के प्रति आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या धमकी भरी या अवज्ञापूर्ण भाषा का प्रयोग करेगा या किसी वरिष्ठ आफिसर पर हमला करेगा ;
(ग) किसी वरिष्ठ आफिसर के विधिपूर्ण समादेश की अवज्ञा करेगा ;
(घ) शिविर के कमान आफिसर द्वारा दिए गए किन्हीं स्थायी, सामान्य या अन्य आदेशों की उपेक्षा करेगा ;
(ङ) किसी स्वयंसेवक या व्यक्ति पर, जो सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46) या प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948 (1948 का 56) के अधीन है, आपराधिक बल प्रयोग करेगा या हमला करेगा ;
(च) जानते हुए ऐसा कार्य करेगा जो शिविर में सुव्यवस्था और सैनिक अनुशासन बनाए रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है,
तो वह विहित प्राधिकारी के आदेश से जुर्माने से, जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, और जुर्माना न देने पर, ऐसी अवधि के लिए, जो सात दिन तक की हो सकेगी, बैरिकों में परिरुद्ध किया जा कर, संक्षिप्त प्रक्रिया से दण्डनीय होगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन विहित प्राधिकारी के आदेश से अधिरोपित कोई जुर्माना ऐसे स्थान में, जहां स्वयंसेवक निवास करता है या उसके कारबार का ठिकाना है, अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट को, विहित प्राधिकारी द्वारा इस निमित्त किए गए आवेदन पर, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार वसूल किया जा सकेगा मानो वह जुर्माना उस मजिस्ट्रेट द्वारा ही अधिरोपित किया गया हो ।
9. सरकारी संपत्ति की हानि या नुकसान कारित करने के लिए दायित्व-यदि कोई स्वयंसेवक जानबूझकर या उपेक्षापूर्वक सरकार की संपत्ति की हानि करता है या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो विहित प्राधिकारी, उसे सुनवाई का एक अवसर देने तथा मामले में ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह उचित समझता है, आदेश दे सकेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसे समय के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया गया हो या ऐसे अतिरिक्त समय के भीतर, जो विहित प्राधिकारी द्वारा इस निमित्त अनुज्ञात किया जाए, हानि या नुकसान की पूर्ति करे, और जहां विहित प्राधिकारी द्वारा अवधारित राशि अनुज्ञात समय के भीतर नहीं दे दी जाती वहां उस जिले के कलक्टर को, जिसमें स्वयंसेवक निवास करता है या जिसमें उसके कारबार का ठिकाना है, विहित प्राधिकारी द्वारा दिए गए आवेदन पर, वह राशि उससे उसी रीति से वसूल की जाएगी जिस रीति से भू-राजस्व की बकाया वसूल की जाती है ।
10. कतिपय दस्तोवजों के बारे में उपधारणा-जहां इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अनुसार किसी स्वयंसेवक से यह अपेक्षित है कि वह किसी स्थान में हाजिर हो, वहां ऐसा प्रमाणपत्र, जिसके बारे में यह तात्पर्यित है कि विहित आफिसर ने उस पर यह कथन करते हुए हस्ताक्षर किए हैं कि जिस स्वयंसेवक से इस प्रकार हाजिर होने की अपेक्षा की गई थी वह उस अपेक्षा के अनुसार हाजिर नहीं हुआ, ऐसे आफिसर के हस्ताक्षर या उसकी नियुक्ति के सबूत के बिना, उसमें कथित बातों का साक्ष्य होगा ।
11. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं बातों के बारे में उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-
(क) वे प्राधिकारी जिनके द्वारा, वह रीति, जिससे, वह अवधि, जिसके लिए और वे शर्तें, जिन पर किसी व्यक्ति को स्वयंसेवक के रूप में भर्ती किया जा सकेगा ;
(ख) इस अधिनियम के अधीन किसी स्वयंसेवक द्वारा लिया जाने वाला प्रशिक्षण, अनुपालन किया जाने वाला अनुशासन, पालन किए जाने वाले कर्तव्य या निर्वहन की जाने वाली बाध्यताएं ;
(ग) वे प्राधिकारी, जिनके द्वारा और वे शर्तें, जिन पर किसी स्वयंसेवक को उन्मोचित किया जा सकेगा ;
(घ) वह रीति, जिससे और वे शर्तें, जिन पर किसी स्वयंसेवक को प्रशिक्षण या कर्तव्य पालन के लिए बुलाया जा सकेगा ;
(ङ) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्राधिकारियों का अवधारण ;
(च) वे आफिसर, जिनके द्वारा धारा 10 के अधीन प्रमाणपत्र हस्ताक्षरित किए जा सकेंगे; और
(छ) कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन विहित किया जाना है या विहित किया जा सकता है ।
[(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत जो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाए कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किंतु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
______