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उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 ( Uttar Pradesh Reorganization Act, 2000 )


 

उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000

(2000 का अधिनियम संख्यांक 29)

[25 अगस्त, 2000]

विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के

पुनर्गठन और उससे संबंधित

विषयों का उपबंध

करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के इक्यावनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

भाग 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 है

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित हो,-

() नियत दिन" से वह दिन अभिप्रेत है जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, नियत करे ;

() अनुच्छेद" से संविधान का कोई अनुच्छेद अभिप्रेत है ;

() सभा निर्वाचन-क्षेत्र", परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र" और संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र" के वही अर्थ हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) में हैं ;

() निर्वाचन आयोग" से राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 324 के अधीन नियुक्त निर्वाचन आयोग अभिप्रेत है ;

() विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य" से नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य अभिप्रेत है ;

() विधि" के अंतर्गत विद्यमान संपूर्ण उत्तर प्रदेश राज्य या उसके किसी भाग में नियत दिन के ठीक पूर्व विधि का बल रखने वाली कोई अधिनियमिति, अध्यादेश, विनियम, आदेश, उपविधि, नियम, स्कीम, अधिसूचना या अन्य लिखत है ;

() अधिसूचित आदेश" से राजपत्र में प्रकाशित कोई आदेश अभिप्रेत है ;

() उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य के संबंध में, जनसंख्या अनुपात" से 1321: 70 का अनुपात अभिप्रेत है ;

() संसद् के किसी सदन या विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के विधान-मंडल के संबंध में, आसीन सदस्य" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो नियत दिन के ठीक पूर्व उस सदन का सदस्य है ;

() विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में, उत्तरवर्ती राज्य" से उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल राज्य अभिप्रेत है ;

() अंतरित राज्यक्षेत्र" से वह राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है जो नियत दिन को विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य से उत्तरांचल राज्य को अंतरित किया गया है ;

() खजाना" के अंतर्गत उपखजाना भी है ; और

() विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के जिले, तहसील या अन्य प्रादेशिक खंड के प्रति किसी निर्देश का अर्थ यह लगाया जाएगा कि वह नियत दिन को उस प्रादेशिक खंड में समाविष्ट क्षेत्र के प्रति निर्देश है

भाग 2

उत्तर प्रदेश राज्य का पुनर्गठन

3. उत्तरांचल राज्य का बनाया जाना-नियत दिन से ही एक नया राज्य बनाया जाएगा जिसका नाम उत्तरांचल राज्य होगा जिसमें विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के निम्नलिखित राज्यक्षेत्र समाविष्ट होंगे, अर्थात् :-

पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, चमोली, देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, ऊधमसिंह नगर, बागेश्वर, चम्पावत, रुद्रप्रयाग और हरिद्वार जिले,

और तदुपरि उक्त राज्यक्षेत्र विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के भाग नहीं रहेंगे

4. उत्तर प्रदेश राज्य और उसके प्रादेशिक खंड-नियत दिन से ही, उत्तर प्रदेश राज्य में धारा 3 में विनिर्दिष्ट राज्यक्षेत्रों से भिन्न विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के राज्यक्षेत्र समाविष्ट होंगे

5. संविधान की पहली अनुसूची का संशोधन-नियत दिन से ही, संविधान की पहली अनुसूची में, I. राज्य" शीर्षक के अन्तर्गत,-

() उत्तर प्रदेश राज्य के राज्यक्षेत्रों से संबंधित पैरा में, बिहार और उत्तर प्रदेश (सीमा-परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 24) की धारा 3 की उपधारा (1) के खंड ()" शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के पश्चात्, निम्नलिखित अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-

तथा उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 3";

() प्रविष्टि 25 के पश्चात्, निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात् :-

26. उत्तरांचल : वे राज्यक्षेत्र जो उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 3 में विनिर्दिष्ट हैं "

6. राज्य सरकारों की व्यावृत्ति शक्तियां-इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल सरकार की, नियत दिन के पश्चात् राज्य के किसी जिले या अन्य प्रादेशिक खंड के नाम, क्षेत्र या सीमाओं में परिवर्तन करने की शक्ति प्रभावित करती है

भाग 3

विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व

राज्य सभा

7. संविधान की चौथी अनुसूची का संशोधन-नियत दिन से ही, संविधान की चौथी अनुसूची की सारणी में,-

() प्रविष्टि 17 से प्रविष्टि 28 तक को क्रमशः प्रविष्टि 18 से प्रविष्टि 29 तक के रूप में पुनःसंख्यांकित किया जाएगा;

() प्रविष्टि 16 में, 34" अंकों के स्थान पर, 31" अंक रखे जाएंगे;

() प्रविष्टि 16 के पश्चात्, निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्ः-

17. उत्तरांचल...................3"

8. आसीन सदस्यों का आबंटन-(1) नियत दिन से ही, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य सभा के चौंतीस आसीन सदस्य इस अधिनियम की पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट रूप में उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य को आबंटित स्थानों को भरने के लिए निर्वाचित किए गए समझे जाएंगे

(2) ऐसे आसीन सदस्यों की पदावधि अपरिवर्तित रहेगी

लोक सभा

9. लोक सभा में प्रतिनिधित्व-नियत दिन से ही, उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश राज्य को 80 स्थान और उत्तरवर्ती उत्तरांचल राज्य को 5 स्थान लोक सभा में आबंटित किए जाएंगे और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) की प्रथम अनुसूची तद्नुसार संशोधित समझी जाएगी

10. संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन-नियत दिन से ही, संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन आदेश, 1976 का इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में निदेशित रूप में संशोधन किया जाएगा

11. आसीन सदस्यों के बारे में उपबंध-(1) उस निर्वाचन-क्षेत्र का, जो नियत दिन को, सीमाओं में परिवर्तन सहित या उसके बिना उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल राज्यों का धारा 10 के उपबंधों के आधार पर आबंटन हो गया है, प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा के प्रत्येक आसीन सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस प्रकार आबंटित उस निर्वाचन-क्षेत्र से लोक सभा के लिए निर्वाचित हो गया है

(2) ऐसे आसीन सदस्यों की पदावधि अपरिवर्तित रहेगी

विधान सभा

12. विधान सभाओं के बारे में उपबंध-(1) नियत दिन को उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों की विधान सभाओं में स्थानों की संख्या क्रमशः चार सौ तीन और सत्तर होगी

(2) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) की द्वितीय अनुसूची में,-

1. राज्य" शीर्ष के नीचे,-

() प्रविष्टि 25 और प्रविष्टि 26 को क्रमशः प्रविष्टि 26 और प्रविष्टि 27 के रूप में पुनः संख्यांकित किया जाएगा;

() प्रविष्टि 24 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अन्तःस्थापित की जाएगी, अर्थात्ः-

25. उत्तरांचल.........70" ;

() इस प्रकार पुनः संख्यांकित प्रविष्टि 26 में, 425" अंकों के स्थान पर 403" अंक रखे जाएंगे

13. आसीन सदस्यों का आबंटन-(1) उस निर्वाचन-क्षेत्र से, जो नियत दिन को धारा 10 के उपबंधों के आधार पर सीमाओं में परिवर्तन सहित या उसके बिना, उत्तरांचल राज्य को आबंटित हो गया है, उस सभा में स्थान भरने के लिए निर्वाचित विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा के प्रत्येक आसीन सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उस दिन से ही उत्तर प्रदेश की विधान सभा का सदस्य नहीं रह गया है और उसे इस प्रकार आबंटित उस निर्वाचन-क्षेत्र से उत्तरांचल की विधान सभा में स्थान को भरने के लिए निर्वाचित किया गया समझा जाएगा

(2) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा के सभी आसीन सदस्य उस राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहेंगे और किसी ऐसे निर्वाचन-क्षेत्र का, जिसके विस्तार या नाम और सीमा का धारा 10 के उपबंधों के आधार पर परिवर्तन हो गया है, प्रतिनिधित्व करने वाले किसी आसीन सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस प्रकार परिवर्तित उस निर्वाचन-क्षेत्र से उत्तर प्रदेश की विधान सभा में निर्वाचित हो गया है

(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल की विधान सभाओं के बारे में यह समझा जाएगा कि वे नियत दिन को सम्यक् रूप से गठित की गई हैं

(4) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा के आसीन सदस्य के बारे में, जिसे अनुच्छेद 333 के अधीन आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस सभा में नामनिर्देशित किया गया है, यह समझा जाएगा कि उसे उस अनुच्छेद के अधीन उत्तरांचल विधान सभा में उक्त समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित किया गया है

14. उत्तरांचल की अनंतिम विधान सभा की संरचना-(1) नियत दिन से ही और जब तक कि उत्तरवर्ती उत्तरांचल राज्य की विधान सभा का सम्यक् रूप से गठन नहीं हो जाता और उसे संविधान के उपबंधों के अधीन प्रथम सत्र के लिए आहूत नहीं कर लिया जाता है तब तक धारा 3 के उपबंधों के आधार पर अंतरित राज्यक्षेत्रों के सभा निर्वाचन-क्षेत्रों या परिषद् निर्वाचन-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा के बाईस आसीन सदस्यों और विधान परिषद् के नौ सदस्यों को मिलाकर उत्तरांचल राज्य की अनंतिम विधान सभा का गठन किया जाएगा

(2) उत्तरांचल राज्य की अनंतिम विधान सभा उस राज्य की विधान सभा को संविधान के उपबंधों द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियों का प्रयोग और सभी कर्तव्यों का पालन करेगी

(3) उत्तरांचल राज्य की अनंतिम विधान सभा के सदस्यों की पदावधि, जब तक कि उक्त विधान सभा का उससे पहले विघटन नहीं कर दिया जाता है उत्तरांचल राज्य की विधान सभा की पहली बैठक के ठीक पूर्व समाप्त हो जाएगी

15. विधान सभाओं की अवधि-अनुच्छेद 172 के खंड (1) में निर्दिष्ट पांच वर्ष की अवधि उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा की दशा में, उस तारीख को प्रारंभ हुई समझी जाएगी, जिसको वह विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा की दशा में वस्तुतः प्रारंभ हुई है

16. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-(1) वे व्यक्ति, जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं, उस दिन से ही उस विधान सभा के क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बने रहेंगे

(2) नियत दिन के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, उत्तरवर्ती उत्तरांचल राज्य की अनंतिम विधान सभा, उस सभा के दो सदस्यों को क्रमशः उसके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी और जब तक उनको इस प्रकार चुना नहीं जाता तब तक अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन उस सभा के ऐसे सदस्य द्वारा किया जाएगा जिसे राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे

17. प्रक्रिया के नियम-नियत दिन के ठीक पूर्व यथाप्रवृत्त उत्तर प्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम, जब तक कि अनुच्छेद 208 के खंड (1) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं, उत्तरांचल की विधान सभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए होंगे, जो उसके अध्यक्ष द्वारा उनमें किए जाएं

उत्तर प्रदेश विधान परिषद्

 [18. उत्तर प्रदेश विधान परिषद्-नियत दिन से ही, उत्तर प्रदेश की विधान परिषद् में एक सौ स्थान होंगे और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) की तृतीय अनुसूची की विद्यमान प्रविष्टि 8 के स्थान पर, निम्नलिखित प्रविष्टि रखी जाएगी, अर्थात्ः-

8. उत्तर प्रदेश.......100        36           8              8              38           10"]

19. परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन आदेश का संशोधन--नियत दिन से ही, परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1951 तीसरी अनुसूची में निदेशित रूप में संशोधित हो जाएगा

20. कतिपय आसीन सदस्यों के बारे में उपबंध-(1) नियत दिन से ही, इस अधिनियम की चौथी अनुसूची में विनिर्दिष्ट विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान परिषद् के आसीन सदस्य उस परिषद् के सदस्य नहीं रहेंगे और वे अनंतिम विधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे

(2) नियत दिन से ही, उपधारा (1) में निर्दिष्ट से भिन्न विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान परिषद् के सभी आसीन सदस्य उस परिषद् के सदस्य बने रहेंगे

(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट सदस्यों की पदावधि अपरिवर्तनीय रहेगी

21. उपसभापति-वह व्यक्ति, जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधान परिषद् का उपसभापति है, उस दिन से ही उस परिषद् का उपसभापति बना रहेगा

निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन

22. निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन-(1) निर्वाचन आयोग धारा 12 के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अवधारित करेगा-

() संविधान के सुसंगत उपबंधों को ध्यान में रखते हुए क्रमशः उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए जाने वाले स्थानों की संख्या ;

() वे सभा निर्वाचन-क्षेत्र, जिनमें खंड () में निर्दिष्ट प्रत्येक राज्य को विभाजित किया जाएगा, ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों में से प्रत्येक का विस्तार और उनमें से प्रत्येक में वे स्थान जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए जाएंगे; और

() खंड () में निर्दिष्ट प्रत्येक राज्य में सीमाओं में समायोजन और संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों के विस्तार का वर्णन जो आवश्यक या समीचीन हो

(2) उपधारा (1) के खंड () और खंड () में निर्दिष्ट विषयों का अवधारण करते समय, निर्वाचन आयोग निम्नलिखित उपबंधों का ध्यान रखेगा, अर्थात् :-

() सभी निर्वाचन-क्षेत्र एक सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र होंगे ;

() सभी निर्वाचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोलिक रूप से संहृत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमन करते समय उनकी भौतिक विशिष्टताओं, प्रशासनिक इकाइयों की विद्यमान सीमाओं, संचार की सुविधाओं और सार्वजनिक सुविधाओं का ध्यान रखना होगा ; और

() वे निर्वाचन-क्षेत्र, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए जाते हैं, यथासाध्य, उन क्षेत्रों में अवस्थित होंगे, जिनमें कुल जनसंख्या के अनुपात में उनकी जनसंख्या सर्वाधिक हो

(3) निर्वाचन आयोग, उपधारा (1) के अधीन अपने कृत्यों के पालन में अपनी सहायता के प्रयोजन के लिए सहयुक्त सदस्यों के रूप में ऐसे पांच व्यक्तियों को अपने साथ सहयुक्त करेगा, जो केंद्रीय सरकार, आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और वे ऐसे व्यक्ति होंगे जो उस राज्य की विधान सभा के या राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा के सदस्य हों :

परंतु सहयुक्त सदस्यों में से किसी को मत देने का या निर्वाचन आयोग के किसी विनिश्चय पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं होगा

(4) यदि सहयुक्त सदस्य का पद मृत्यु या पदत्याग के कारण रिक्त हो जाता है तो वह, जहां तक साध्य हो, उपधारा (3) के उपबंधों के अनुसार भरा जाएगा

(5) निर्वाचन आयोग,-

() निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए अपनी प्रस्थापनाएं, किसी ऐसे सहयुक्त सदस्य की विसम्मत प्रस्थापनाओं सहित, यदि कोई हों, जो उनका प्रकाशन चाहता है, राजपत्र में और ऐसी अन्य रीति से, जिसे आयोग ठीक समझे, प्रकाशित करेगा और साथ ही एक सूचना भी प्रकाशित करेगा जिसमें प्रस्थापनाओं के संबंध में आक्षेप और सुझाव आमंत्रित किए गए हों और वह तारीख विनिर्दिष्ट हो जिसको या जिसके पश्चात् प्रस्थापनाओं पर उसके द्वारा आगे विचार किया जाएगा ;

() उन सभी आक्षेपों और सुझावों पर विचार करेगा जो उसे इस प्रकार विनिर्दिष्ट तारीख के पहले प्राप्त हुए हों ;

() उसे इस प्रकार विनिर्दिष्ट तारीख के पहले प्राप्त सभी आक्षेपों और सुझावों पर विचार करने के पश्चात्, एक या अधिक आदेशों द्वारा, निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन अवधारित करेगा और ऐसे आदेश या आदेशों को राजपत्र में प्रकाशित करवाएगा और ऐसे प्रकाशन पर वह आदेश या वे आदेश विधि का पूर्ण बल रखेंगे और उसे या उन्हें किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा

(6) सभा निर्वाचन-क्षेत्रों से संबंधित ऐसा प्रत्येक आदेश, ऐसे प्रकाशन के पश्चात्, यथाशीघ्र संबंधित राज्य की विधान सभा के समक्ष रखा जाएगा

23. परिसीमन आदेशों को अद्यतन रखने की निर्वाचन आयोग की शक्ति-(1) निर्वाचन आयोग, समय-समय पर, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा,-

() धारा 22 के अधीन किए गए किसी आदेश में किन्हीं मुद्रण संबंधी भूल को या उसमें अनवधानता से हुई भूल या लोप के कारण हुई किसी गलती को ठीक कर सकेगा ;

() जहां ऐसे किसी आदेश या किन्हीं आदेशों में उल्लिखित किसी प्रादेशिक खंड की सीमाओं या नाम में परिवर्तन हो जाए वहां ऐसे संशोधन कर सकेगा जो उसे ऐसे आदेश को अद्यतन करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों

(2) किसी सभा निर्वाचन-क्षेत्र के संबंध में इस धारा के अधीन प्रत्येक अधिसूचना, निकाली जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संबंधित विधान सभा के समक्ष रखी जाएगी

अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां

24. अनुसूचित जातियां आदेश का संशोधन-नियत दिन से ही, संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 का, इस अधिनियम की पांचवीं अनुसूची में निर्दिष्ट रूप में संशोधन हो जाएगा

25. अनुसूचित जनजातियां आदेश का संशोधन-नियत दिन से ही, संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 का इस अधिनियम की छठी अनुसूची में निर्दिष्ट रूप में संशोधन हो जाएगा

भाग 4

उच्च न्यायालय

26. उत्तरांचल उच्च न्यायालय-(1) नियत दिन से ही, उत्तरांचल राज्य के लिए एक पृथक्त उच्च न्यायालय होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् उत्तरांचल उच्च न्यायालय कहा गया है) और इलाहाबाद उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश राज्य के लिए उच्च न्यायालय होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् इलाहाबाद उच्च न्यायालय कहा गया है)

(2) उत्तरांचल उच्च न्यायालय का प्रधान स्थान ऐसे स्थान पर होगा, जिसे राष्ट्रपति, अधिसूचित आदेश द्वारा, नियत करे

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, उत्तरांचल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और खंड न्यायालय उत्तरांचल राज्य में उसके प्रधान स्थान से भिन्न ऐसे अन्य स्थान या स्थानों पर बैठ सकेंगे जिन्हें मुख्य न्यायमूर्ति, उत्तरांचल के राज्यपाल के अनुमोदन से, नियत करे

27. उत्तरांचल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश-(1) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश जो नियत दिन से ठीक पूर्व पद धारण कर रहे हों और राष्ट्रपति द्वारा अवधारित किए जाएं, उस दिन से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं रहेंगे और उत्तरांचल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे

(2) वे व्यक्ति जो उपधारा (1) के कारण उत्तरांचल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाते हैं, उस दशा के सिवाय, जहां ऐसा कोई व्यक्ति उस उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त हो जाता है, उस न्यायालय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में अपनी-अपनी नियुक्तियों की पूर्विकता के अनुसार रैंक धारण करेंगे

28. उत्तरांचल उच्च न्यायालय की अधिकारिता-उत्तरांचल उच्च न्यायालय को, उत्तरांचल राज्य में सम्मिलित राज्यक्षेत्रों के किसी भाग की बाबत, ऐसी सभी अधिकारिता, शक्तियां और प्राधिकार प्राप्त होंगे, जो नियत दिन से ठीक पहले प्रवृत्त विधि के अधीन उक्त राज्यक्षेत्रों के उस भाग की बाबत इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थे

29. विधिज्ञ परिषद् और अधिवक्ताओं के संबंध में विशेष उपबंध-(1) नियत दिन से ही अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (1961 का 25) की धारा 3 की उपधारा (1) के खंड () में, और उत्तर प्रदेश" शब्दों के स्थान पर, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल"      शब्द रखे जाएंगे

(2) ऐसा व्यक्ति, जो नियत दिन से ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अधिवक्ता है और नियत दिन से एक वर्ष के भीतर ऐसे विद्यमान राज्य की विधिज्ञ परिषद् को उत्तरांचल विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अपने नाम को अंतरित किए जाने का लिखित में विकल्प दे सकेगा और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (1961 का 25) और उसके अधीन बनाए गए नियमों में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार दिए गए ऐसे विकल्प पर उसका नाम उत्तरांचल विधिज्ञ परिषद् की नामावली में उक्त अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के प्रयोजनों के लिए इस प्रकार दिए गए विकल्प की तारीख से अंतरित किया गया समझा जाएगा

(3) ऐसे अधिवक्ताओं से भिन्न व्यक्तियों को जो नियत दिन के ठीक पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय या उसके किसी अधीनस्थ न्यायालय में विधि व्यवसाय करने के लिए हकदार हैं, नियत दिन से ही, यथास्थिति, उत्तरांचल उच्च न्यायालय या उसके किसी अधीनस्थ न्यायालय में भी विधि व्यवसाय करने के लिए हकदार व्यक्तियों के रूप में मान्यता दी जाएगी

(4) उत्तरांचल उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार ऐसे सिद्धांतों के अनुसार विनियमित होगा जो नियत दिन से ठीक पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई के अधिकार की बाबत प्रवृत्त हैं

30. उत्तरांचल उच्च न्यायालय में पद्धति और प्रक्रिया-इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पद्धति और प्रक्रिया की बाबत नियत दिन से ठीक पूर्व प्रवृत्त विधि, इस भाग के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आवश्यक उपांतरणों सहित, उत्तरांचल उच्च न्यायालय के संबंध में लागू होगी और तद्नुसार उत्तरांचल उच्च न्यायालय को पद्धति और प्रक्रिया की बाबत नियम बनाने और आदेश करने की ऐसी सभी शक्तियां प्राप्त होंगी जो नियत दिन के ठीक पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य हैं :

परंतु ऐसे कोई नियम या आदेश जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पद्धति और प्रक्रिया की बाबत नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त हैं, जब तक कि उत्तरांचल उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों और आदेशों द्वारा परिवर्तित या प्रतिसंहृत नहीं कर दिए जाते, उत्तरांचल उच्च न्यायालय में पद्धति और प्रक्रिया की बाबत आवश्यक उपांतरणों सहित ऐसे लागू होंगे मानो वे उस न्यायालय द्वारा बनाए गए हों

31. उत्तरांचल उच्च न्यायालय की मुद्रा की अभिरक्षा-इलाहाबाद स्थित उच्च न्यायालय की मुद्रा की अभिरक्षा के संबंध में नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त विधि, आवश्यक उपांतरणों सहित, उत्तरांचल उच्च न्यायालय की मुद्रा की अभिरक्षा के संबंध में लागू   होगी

32. रिटों और अन्य आदेशिकाओं का प्ररूप-इलाहाबाद स्थित उच्च न्यायालय द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली, जारी की जाने वाली या दी जाने वाली रिटों तथा अन्य आदेशिकाओं के प्ररूप की बाबत नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त विधि, आवश्यक उपांतरणों सहित, उत्तरांचल उच्च न्यायालय द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली, जारी की जाने वाली या दी जाने वाली रिटों तथा अन्य आदेशिकाओं के प्ररूप के संबंध में लागू होगी

33. न्यायाधीशों की शक्तियां-इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति, एकल न्यायाधीश और खंड न्यायालयों की शक्तियों के संबंध में तथा उन शक्तियों के प्रयोग के आनुषंगिक सभी विषयों के संबंध में, नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त विधि, आवश्यक उपांतरणों सहित, उत्तरांचल उच्च न्यायालय के संबंध में लागू होगी

34. उच्चतम न्यायालय को अपीलों के बारे में प्रक्रिया-इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा उसके न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों से उच्चतम न्यायालय को अपीलों के संबंध में नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त विधि, आवश्यक उपांतरणों सहित, उत्तरांचल उच्च न्यायालय के संबंध में लागू होगी

35. इलाहाबाद उच्च न्यायालय से उत्तरांचल उच्च न्यायालय को कार्यवाहियों का अंतरण-(1) इसमें इसके पश्चात् जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की, नियत दिन से, अंतरित राज्यक्षेत्र के संबंध में कोई अधिकारिता नहीं होगी

(2) नियत दिन से ठीक पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित ऐसी कार्यवाहियां, जो उस दिन से पूर्व या पश्चात् उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा वादहेतुक उत्पन्न होने के स्थान पर और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऐसी कार्यवाहियों के रूप में प्रमाणित की जाएं जिनकी सुनवाई और उनका विनिश्चय उत्तरांचल उच्च न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए, ऐसे प्रमाणीकरण के पश्चात् यथाशक्य उत्तरांचल उच्च न्यायालय को अंतरित हो जाएंगे

(3) इस धारा की उपधारा (1) और उपधारा (2) या धारा 28 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु इसमें इसके पश्चात् जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अपीलों, उच्चतम न्यायालय को इजाजत के लिए आवेदनों, पुनर्विलोकन और ऐसी अन्य कार्यवाहियों के लिए आवेदनों, जिनमें ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों में नियत दिन से पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित किसी आदेश के संबंध में कोई अनुतोष मांगा गया है, को ग्नहण करने, सुनवाई करने या उनका निपटारा करने की अधिकारिता होगी और उत्तरांचल उच्च न्यायालय को नहीं होगी :

परंतु यदि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा ऐसी कार्यवाहियों को ग्नहण किए जाने के पश्चात् उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति को यह प्रतीत होता है कि उन कार्यवाहियों को उत्तरांचल उच्च न्यायालय को अंतरित किया जाना चाहिए तो वह यह आदेश करेगा कि वे इस प्रकार अंतरित की जाएं और ऐसी कार्यवाहियां उसके पश्चात् तद्नुसार अंतरित हो जाएंगी

(4) इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा, -

() नियत दिन से पूर्व उपधारा (2) के कारण उत्तरांचल उच्च न्यायालय को अंतरित किन्हीं कार्यवाहियों में, या

() ऐसी कार्यवाहियों में, जिनकी बाबत इलाहाबाद उच्च न्यायालय को उपधारा (3) के कारण अधिकारिता रही है,

किया गया कोई आदेश सभी प्रयोजनों के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के रूप में ही प्रभावी नहीं रहेगा बल्कि उत्तरांचल उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के रूप में भी प्रभावी रहेगा

36. उत्तरांचल उच्च न्यायालय को अंतरित कार्यवाहियों में उपसंजात होने या कार्यवाही करने का अधिकार-ऐसे किसी व्यक्ति को, जो नियत दिन के ठीक पूर्व, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विधि व्यवसाय करने के लिए हकदार अधिवक्ता है या उसमें विधि व्यवसाय करने के लिए कोई अन्य हकदार व्यक्ति है और जो धारा 35 के अधीन उस उच्च न्यायालय से उत्तरांचल उच्च न्यायालय को अंतरित कार्यवाहियों में उपसंजात होने के लिए प्राधिकृत था, उन कार्यवाहियों के संबंध में उत्तरांचल उच्च न्यायालय में उपसंजात होने का अधिकार होगा

37. निर्वचन-धारा 35 के प्रयोजनों के लिए,-

() किसी न्यायालय में कार्यवाहियां तब तक लंबित समझी जाएंगी जब तक वह न्यायालय पक्षकारों के बीच सभी विवाद्यकों का, जिनके अंतर्गत कार्यवाहियों के खर्चे के कराधान की बाबत कोई विवाद्यक भी है, निपटाने नहीं कर देता है और उसके अंतर्गत अपीलें, उच्चतम न्यायालय को अपील की इजाजत के लिए आवेदन, पुनर्विलोकन के लिए आवेदन, पुनरीक्षण के लिए अर्जियां और रिट याचिकाएं भी हैं ; और

() किसी उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों का अर्थ यह लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत उसके किसी न्यायाधीश या खंड न्यायालय के प्रति निर्देश हैं और किसी न्यायालय या न्यायाधीश द्वारा किए गए किसी आदेश के प्रति निर्देशों का अर्थ यह लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत उस न्यायालय या न्यायाधीश द्वारा किए गए दंडादेश, पारित निर्णय या डिक्री के प्रति    निर्देश हैं

38. व्यावृत्ति-इस भाग की कोई बात संविधान के किन्हीं उपबंधों के उत्तरांचल उच्च न्यायालय को लागू होने पर प्रभाव नहीं डालेगी और इस भाग का प्रभाव किसी ऐसे उपबंध के अधीन रहते हुए होगा, जो नियत दिन को या उसके पश्चात् उस उच्च न्यायालय की बाबत किसी विधान-मंडल या ऐसा उपबंध करने के लिए शक्ति रखने वाले किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा किया जाए

भाग 5

व्यय का प्राधिकृत किया जाना और राजस्व का वितरण

39. उत्तरांचल राज्य के व्यय का प्राधिकृत किया जाना-उत्तर प्रदेश का राज्यपाल, नियत दिन के पूर्व किसी भी समय, उत्तरांचल राज्य की संचित निधि में से ऐसा व्यय, प्राधिकृत कर सकेगा, जो वह उत्तरांचल राज्य की विधान सभा द्वारा ऐसे व्यय की मंजूरी के लिए लंबित रहने तक, नियत दिन से प्रारंभ होने वाली छह मास से अनधिक की किसी अवधि के लिए आवश्यक समझे :

परंतु उत्तरांचल का राज्यपाल, नियत दिन के पश्चात् किसी अवधि के लिए, जो छह मास की उक्त अवधि के परे की नहीं होगी, उत्तरांचल राज्य की संचित निधि में से ऐसा अतिरिक्त व्यय प्राधिकृत कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे

40. उत्तर प्रदेश राज्य के लेखाओं से संबंधित रिपोर्टें-(1) नियत दिन के पूर्व की किसी अवधि की बाबत अनुच्छेद 151 के     खंड (2) में निर्दिष्ट भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लेखाओं से संबंधित रिपोर्टों को प्रत्येक उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाएगा जो उन्हें उस राज्य के विधान-मंडल के समक्ष   रखवाएंगे

(2) राष्ट्रपति, आदेश द्वारा,-

() वित्तीय वर्ष के दौरान नियत दिन के पूर्व की किसी अवधि की बाबत या किसी पूर्वतर वित्तीय वर्ष की बाबत किसी सेवा पर उत्तर प्रदेश की संचित निधि में से उपगत किसी व्यय को जो उस सेवा के लिए और उस वर्ष के लिए अनुदत्त रकम के आधिक्य में हो और जैसा कि वह उपधारा (1) में निर्दिष्ट रिपोर्टों में प्रकट हो, सम्यक् रूप से प्राधिकृत घोषित कर सकेगा ; और

() उक्त रिपोर्टों से -ूत किसी विषय पर कोई कार्रवाई की जाने के लिए उपबंध कर सकेगा

41. राजस्व का वितरण-राष्ट्रपति, अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग की सिफारिश पर विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य को संदेय कुल रकम में उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य के अंश का अवधारण, आदेश द्वारा, ऐसी रीति से करेंगे जो वह   ठीक समझें

भाग 6

आस्तियों और दायित्वों का प्रभाजन

42. भाग का लागू होना-(1) इस भाग के उपबंध विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की नियत दिन के ठीक पूर्व की आस्तियों और दायित्वों के प्रभाजन के संबंध में लागू होंगे

(2) उत्तरवर्ती राज्य, पूर्ववर्ती राज्य द्वारा किए गए विनिश्चयों से -ूत फायदे प्राप्त करने के हकदार होंगे और उत्तरवर्ती राज्य, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा किए गए विनिश्चयों से -ूत वित्तीय दायित्वों को वहन करने के दायी होंगे

(3) आस्तियों और दायित्वों का प्रभाजन ऐसे वित्तीय समायोजन के अधीन होगा जो उत्तरवर्ती राज्यों के बीच आस्तियों और दायित्वों के न्यायोचित, युक्तियुक्त और साम्यापूर्ण प्रभाजन के लिए आवश्यक हों

(4) वित्तीय आस्तियों और दायित्वों की रकम के संबंध में कोई विवाद आपसी करार से और उसमें असफल रहने पर केंद्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की सलाह पर, आदेश द्वारा, निपटाया जाएगा

43. भूमि और माल-(1) इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के स्वामित्व की सब भूमि और सब सामान, वस्तुएं और अन्य माल, -

() यदि वे अंतरित राज्यक्षेत्र के भीतर हों, तो उत्तरांचल राज्य को संक्रांत हो जाएंगे; अथवा

() किसी अन्य मामले में, उत्तर प्रदेश राज्य की संपत्ति बने रहेंगे :

परंतु जहां केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि किसी माल या किसी वर्ग के माल का वितरण उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच माल के अवस्थान के अनुसार होकर अन्यथा होना चाहिए वहां केन्द्रीय सरकार, माल के न्यायोचित और साम्यापूर्ण वितरण के लिए ऐसे निदेश दे सकेगी जैसे वह उचित समझे और माल उत्तरवर्ती राज्यों को तद्नुसार संक्रांत हो जाएगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन किसी माल या माल के किसी वर्ग के वितरण के संबंध में कोई विवाद उत्पन्न होने की दशा में, केंद्रीय सरकार को ऐसे विवाद को उस प्रयोजन के लिए उत्तरवर्ती राज्यों की सरकारों के बीच हुए पारस्परिक करार के माध्यम से तय करने का प्रयास करेगी, ऐसा करने में असफल होने पर केंद्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों की सरकारों में से किसी के द्वारा किए गए अनुरोध पर, उत्तरवर्ती राज्यों की दोनों सरकारों से परामर्श करने के पश्चात् इस उपधारा के अधीन, यथास्थिति, ऐसे माल या माल के ऐसे वर्ग के वितरण के लिए ऐसा निदेश जारी कर सकेगी जिसे वह उचित समझे

(2) विनिर्दिष्ट प्रयोजनार्थ, जैसे कि विशिष्ट संस्थाओं, कर्मशालाओं या उपक्रमों में या सन्निर्माणाधीन विशेष संकर्मों पर प्रयोग या उपयोग के लिए रखा हुआ सामान उस उत्तरवर्ती राज्य को संक्रान्त हो जाएगा जिसके राज्यक्षेत्र में ऐसी संस्थाएं, कर्मशालाएं, उपक्रम या संकर्म अवस्थित हो  

(3) सचिवालय से और संपूर्ण विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य पर अधिकारिता रखने वाले विभागाध्यक्षों के कार्यालयों से संबंधित सामान उत्तरवर्ती राज्यों में उन निदेशों के अनुसार विभाजित किए जाएंगे जिन्हें केन्द्रीय सरकार, प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य की सरकार से परामर्श के पश्चात्, ऐसे सामान के न्यायोचित और साम्यापूर्ण वितरण के लिए जारी करना ठीक समझे

(4) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य में किसी वर्ग के किसी अन्य अनिर्गमित सामान का विभाजन उत्तरवर्ती राज्यों में उस अनुपात में किया जाएगा जिस अनुपात में नियत दिन से पूर्व तीन वर्ष की अवधि में उस वर्ग का कुल सामान विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के उन राज्यक्षेत्रों के लिए क्रय किया गया था जो उत्तरवर्ती राज्य में क्रमशः सम्मिलित हैः

परन्तु जहां किसी वर्ग के सामान की बाबत ऐसा अनुपात अभिनिश्चत नहीं किया जा सकता या जहां ऐसे किसी वर्ग के सामान का मूल्य दस हजार रुपए से अधिक हो वहां उस वर्ग के सामान का उत्तरवर्ती राज्यों में विभाजन जनसंख्या के अनुपात के अनुसार किया जाएगा

(5) इस धारा में भूमि" पद के अन्तर्गत प्रत्येक प्रकार की स्थावर संपत्ति तथा ऐसी संपत्ति में या उस पर के कोई अधिकार हैं और माल" पद के अन्तर्गत सिक्के, बैंक नोट तथा करेंसी नोट नहीं हैं

44. खजाना और बैंक अतिशेष-नियत दिन के ठीक पूर्व के उत्तर प्रदेश राज्य के सभी खजानों की रोकड़ बाकी और उस राज्य के भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक या किसी अन्य बैंक में की जमा अतिशेषों के योग का उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में विभाजन जनसंख्या के अनुपात के अनुसार किया जाएगा :

परन्तु ऐसे विभाजन के प्रयोजनों के लिए कोई रोकड़ बाकी किसी एक खजाने से दूसरे खजाने को अंतरित नहीं की जाएगी और प्रभाजन भारतीय रिजर्व बैंक की बहियों में नियत दिन को दोनों राज्यों के जमा अतिशेषों के समायोजन द्वारा किया जाएगा :

परन्तु यह और कि यदि नियत दिन को उत्तरांचल राज्य का भारतीय रिजर्व बैंक में कोई खाता हो, तो समायोजन ऐसी रीति से किया जाएगा, जिसका केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, निदेश दे

45. करों का बकाया-संपत्ति पर किसी कर या शुल्क की बकाया को, जिसके अन्तर्गत भू-राजस्व की बकाया भी है, वसूल करने का अधिकार उस उत्तरवर्ती राज्य का होगा जिसके राज्यक्षेत्र में वह संपत्ति स्थित है, और किसी अन्य कर या शुल्क की बकाया की वसूली का अधिकार उस उत्तरवर्ती राज्य का होगा जिसके राज्यक्षेत्र के अन्तर्गत नियत दिन को उस कर या शुल्क के निर्धारण का स्थान हो

46. उधार और अग्रिम को वसूल करने का अधिकार-(1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा उस राज्य के भीतर किसी क्षेत्र में किसी स्थानीय निकाय, सोसाइटी, कृषक या अन्य व्यक्ति को नियत दिन के पूर्व दिए गए किन्हीं उधारों या अग्रिमों की वसूली का अधिकार उस उत्तरवर्ती राज्य का होगा जिस राज्य के अन्तर्गत उस दिन वह क्षेत्र हो

(2) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा उस राज्य द्वारा बाहर के किसी व्यक्ति या संस्था को नियत दिन के पहले दिए गए उधारों या अग्रिमों की वसूली का अधिकार उत्तर प्रदेश राज्य का होगा :

परन्तु किसी ऐसे उधार या अग्रिम की बाबत वसूल की गई किसी राशि का विभाजन उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार किया जाएगा

47. कतिपय निधियों में विनिधान और जमा-(1) सातवीं अनुसूची में यथाविनिर्दिष्ट विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के रोकड़ बाकी विनिधान लेखा या लोक लेखा की किसी निधि से किए गए विनिधानों की बाबत धारित प्रतिभूतियों का प्रभाजन, उत्तरवर्ती राज्यों की जनसंख्या के अनुपात में किया जाएगा :

परन्तु विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य को आपदा राहत निधि में से किए गए विनिधानों में धारित प्रतिभूतियों का विभाजन, उत्तरवर्ती राज्य के अधिभोगाधीन राज्यक्षेत्रों के क्षेत्र के अनुपात में किया जाएगा :

परन्तु यह और कि विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की संचित निधि में से किए गए पूर्णतः विनियोग द्वारा सृजित उत्तर प्रदेश के लोक लेखा में आरक्षित निधियों के अतिशेष का अग्ननयन उस सीमा तक जहां तक अतिशेषों का विनिधान सरकारी लेखा के बाहर नहीं किया गया है, उत्तरवर्ती राज्यों के लोक लेखा में वैसी ही आरक्षित निधियों में नहीं किया जाएगा

(2) नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की किसी ऐसी विशेष निधि में विनिधान, जिसके उद्देश्य किसी स्थानीय क्षेत्र तक सीमित हैं, उस राज्य के होंगे, जिसमें नियत दिन को वह क्षेत्र सम्मिलित किया गया है

(3) किसी प्राइवेट, वाणिज्यिक या औद्योगिक उपक्रम में नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के विनिधान, जहां तक ऐसे विनिधान रोकड़ बाकी विनिधान लेखा से नहीं किए गए हैं या किए गए नहीं समझे गए हैं वहां तक उस राज्य को संक्रांत हो जाएंगे, जिसमें उस उपक्रम के कारबार का प्रधान स्थान अवस्थित है

(4) जहां भाग 2 के उपबंधों के आधार पर, किसी केन्द्रीय अधिनियम, राज्य अधिनियम या प्रांतीय अधिनियम के अधीन विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य या उसके किसी भाग के लिए गठित कोई निगमित निकाय अंतरराज्यिक निगमित निकाय हो जाता है, वहां, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा नियत दिन के पूर्व किसी ऐसे निगमित निकाय में के विनिधानों या उसे दिए गए उधारों या अग्रिमों का विभाजन, इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित के सिवाय उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में  उसी अनुपात में किया जाएगा, जिसमें उस निगमित निकाय की आस्तियों का विभाजन इस भाग के उपबंधों के अधीन किया जाता है  

48. राज्य उपक्रम की आस्तियां और दायित्व-(1) उत्तर प्रदेश राज्य के किसी वाणिज्यिक या औद्योगिक उपक्रम से संबंधित आस्तियां और दायित्व उस राज्य को संक्रांत हो जाएंगे जिसमें वह उपक्रम अवस्थित हो

(2) जहां उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा किसी वाणिज्यिक या औद्योगिक उपक्रम के लिए अवक्षयण आरक्षित निधि रखी गई हो, वहां उस निधि में से किए गए विनिधान की बाबत धारित प्रतिभूतियां, उस राज्य को संक्रांत हो जाएंगी जिसमें वह उपक्रम अवस्थित हो

49. लोक ऋण-(1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लोक ऋण और लोक लेखा मद्धे सभी दायित्व जो नियत दिन के ठीक पूर्व बकाया थे, जब तक कि इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन प्रभाजन का कोई भिन्न ढंग उपबंधित किया गया हो, उत्तरवर्ती राज्यों की जनसंख्या के अनुपात में प्रभाजित किए जाएंगे

(2) उत्तरवर्ती राज्यों को आबंटित किए जाने वाले दायित्वों की विभिन्न मदें और एक उत्तरवर्ती राज्य द्वारा दूसरे उत्तरवर्ती राज्य को किए जाने वाले अपेक्षित अभिदाय की रकम वह होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से, आदेश करे :

परन्तु ऐसे आदेश जारी किए जाने तक विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लोक ऋण और लोक लेखा मद्धे दायित्व उत्तरवर्ती उत्तर  प्रदेश राज्य के दायित्व बने रहेंगे

(3) किसी भी स्रोत से लिए गए उधार और विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा ऐसी इकाइयों को, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं और जिनका प्रचालन क्षेत्र किसी उत्तरवर्ती राज्य तक सीमित है, पुनः उधार देने मद्धे दायित्व उपधारा (4) में यथाविनिर्दिष्ट संबंधित राज्य को न्यागत हो जाएगा  

(4) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का लोक ऋण, जो उन उधारों के कारण माना जा सकता है जो किसी विनिर्दिष्ट संस्था को पुनः उधार देने के अभिव्यक्त प्रयोजनार्थ किसी स्रोत से लिए गए हों और नियत दिन के ठीक पूर्व बकाया हों-

() यदि किसी स्थानीय क्षेत्र में के किसी स्थानीय निकाय, निगमित निकाय या अन्य संस्था को पुनः उधार दिया गया हो तो वह उस राज्य का ऋण होगा जिसमें नियत दिन को वह स्थानीय क्षेत्र सम्मिलित किया गया हो ; अथवा

() यदि दि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, दि उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड, दि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम या उत्तर प्रदेश आवासन बोर्ड को या किसी अन्य ऐसी संस्था को जो नियत दिन को अन्तरराज्यिक संस्था हो जाए, पुनः उधार दिया गया हो तो उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में उसका विभाजन उसी अनुपात में किया जाएगा जिसमें ऐसे निगमित निकाय या ऐसी संस्था की आस्तियों का विभाजन भाग 7 के उपबंधों के अधीन किया गया है

(5) जहां विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य ने कोई निक्षेप निधि या अवक्षयण निधि अपने द्वारा लिए गए किसी उधार के प्रतिसंदाय के लिए रखी हो, वहां उस निधि में से किए गए विनिधानों की बाबत धारित प्रतिभूतियों का उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में विभाजन उसी अनुपात में किया जाएगा जिसमें इस धारा के अधीन दोनों राज्यों के बीच संपूर्ण लोक ऋण का विभाजन किया जाए

(6) इस धारा में, सरकारी प्रतिभूति" पद से कोई ऐसी प्रतिभूति अभिप्रेत है जो लोक-ऋण लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा सृजित और जारी की गई है और जो लोक ऋण अधिनियम, 1944 (1944 का 18) की धारा 2 के खंड (2) में विनिर्दिष्ट या उसके अधीन विहित प्ररूपों में से किसी प्ररूप में है

50. प्लवमान ऋण-किसी वाणिज्यिक उपक्रम के लिए लघु-अवधि के वित्तपोषण का उपबंध करने के लिए किसी प्लवमान ऋण की बाबत उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व, उस राज्य का दायित्व होगा जिसके राज्यक्षेत्र में वह उपक्रम अवस्थित है

51. आधिक्य में संगृहीत करों का वापस किया जाना-आधिक्य में संगृहीत संपत्ति पर कर या शुल्क जिसके अन्तर्गत भू-राजस्व भी है, वापस करने का विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व उस उत्तरवर्ती राज्य का दायित्व होगा, जिसके राज्यक्षेत्र में वह संपत्ति अवस्थित हो, तथा आधिक्य में संगृहीत कोई अन्य कर या शुल्क वापस करने का विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व उस उत्तरवर्ती राज्य का दायित्व होगा जिसके राज्यक्षेत्र में उस कर या शुल्क के निर्धारण का स्थान सम्मिलित किया गया है

52. निक्षेप, आदि-(1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का किसी सिविल निक्षेप या स्थानीय निधि निक्षेप की बाबत दायित्व नियत दिन से उस राज्य का दायित्व होगा जिसके क्षेत्र में निक्षेप किया गया है

(2) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का किसी पूर्त या अन्य विन्यास की बाबत दायित्व नियत दिन से उस राज्य का दायित्व होगा जिसके क्षेत्र में विन्यास का फायदा पाने की हकदार संस्था अवस्थित है या उस राज्य का होगा जिस तक विन्यास के उद्देश्य, उसके निबंधनों के अधीन, सीमित हैं

53. भविष्य निधि-नियत दिन को सेवारत किसी सरकारी सेवक के भविष्य निधि खाते की बाबत विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व, उस दिन से उस राज्य का दायित्व होगा जिसे वह सरकारी सेवक स्थायी रूप से आबंटित किया गया हो

54. पेंशन-पेंशनों की बाबत विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के दायित्व का उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों को संक्रमण या उनमें प्रभाजन इस अधिनियम की आठवीं अनुसूची के उपबंधों के अनुसार होगा

55. संविदाएं-(1) जहां विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य ने अपनी कार्यपालिक शक्ति के प्रयोग में राज्य के किन्हीं प्रयोजनों के लिए कोई संविदा नियत दिन के पूर्व की हो वहां वह संविदा,-

() यदि संविदा के प्रयोजन, नियत दिन से ही, उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में से किसी एक राज्य के अनन्य प्रयोजन हों, तो उस राज्य की कार्यपालिक शक्ति के प्रयोग में,

() किसी अन्य दशा में, उत्तर प्रदेश राज्य की कार्यपालिक शक्ति के प्रयोग में,

की गई समझी जाएगी और वे सब अधिकार तथा दायित्व, जो ऐसी किसी संविदा के अधीन प्रो-ूत हुए हैं या हों, उस सीमा तक, यथास्थिति, उत्तर प्रदेश राज्य या उत्तरांचल राज्य के अधिकार या दायित्व होंगे जिस तक वे विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के अधिकार या दायित्व होते :

परन्तु किसी ऐसी दशा में जो खंड () में निर्दिष्ट है इस उपधारा द्वारा किया गया अधिकारों तथा दायित्वों का प्रारम्भिक आबंटन ऐसे वित्तीय समायोजन के अधीन होगा जो उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच करार पाया जाए या ऐसे करार के अभाव में, जो केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा निदेश दें

(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि ऐसे दायित्वों के अन्तर्गत जो किसी संविदा के अधीन प्रो-ूत हुए हैं या प्रो-ूत हों, निम्नलिखित भी हैं,-

() संविदा से संबंधित कार्यवाहियों में किसी न्यायालय या अन्य अधिकरण द्वारा किए गए किसी आदेश या अधिनिर्णय की तुष्टि करने का कोई दायित्व; और

() किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों में या उनके संबंध में उपगत व्ययों की बाबत कोई दायित्व

(3) यह धारा, उधारों, प्रत्याभूतियों और अन्य वित्तीय बाध्यताओं की बाबत दायित्वों के प्रभाजन से संबंधित इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी; और बैंक अतिशेष और प्रतिभूतियों के विषय में कार्यवाही, उनके संविदात्मक अधिकारों की प्रकृति के होते हुए भी उन अन्य उपबंधों के अधीन की जाएगी

56. अनुयोज्य दोष की बाबत दायित्व-जहां नियत दिन के ठीक पूर्व, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य संविदा भंग से भिन्न किसी अनुयोज्य दोष की बाबत किसी दायित्व के अधीन हैं, वहां वह दायित्व,-

() यदि वाद-हेतुक पूर्णतया उस राज्यक्षेत्र के भीतर उत्पन्न हुआ है जो उस दिन से उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल राज्यों में से किसी का राज्यक्षेत्र है, तो उक्त उत्तरवर्ती राज्य का होगा; और

() किसी अन्य दशा में, प्रारंभिकतः उत्तर प्रदेश राज्य का होगा किन्तु यह ऐसे वित्तीय समायोजन के अधीन होगा जो उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच करार पाया जाए, या ऐसे करार के अभाव में, जो केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, निदेश दे

57. प्रत्याभूतिदाता के रूप में दायित्व-जहां नियत दिन के ठीक पूर्व, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य पर किसी रजिस्ट्रीकृत सहकारी सोसाइटी या अन्य व्यक्ति के किसी दायित्व के बारे में प्रत्याभूतिदाता के रूप में दायित्व हो, वहां विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का वह दायित्व,-

() यदि उस सोसाइटी या व्यक्ति का कार्यक्षेत्र उस राज्यक्षेत्र तक सीमित है जो उस दिन से उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल राज्यों में से किसी का राज्यक्षेत्र है तो उक्त उत्तरवर्ती राज्य का होगा; और

() किसी अन्य दशा में, प्रारंभिकतः उत्तर प्रदेश राज्य का होगा, किन्तु यह ऐसे वित्तीय समायोजन के अधीन रहते हुए होगा जो उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल राज्यों के बीच करार पाया जाए या ऐसे करार के अभाव में, जिसका केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, निदेश दे  

58. उचंत मदें-यदि कोई उचंत मद अंततः इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी में निर्दिष्ट प्रकार की आस्ति या दायित्व पर प्रभाव डालने वाली पाई जाए तो उसके संबंध में उस उपबंध के अनुसार कार्यवाही की जाएगी

59. अवशिष्ट उपबंध-विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की किसी ऐसी आस्ति या दायित्व का, जिसके बारे में इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में व्यवस्था नहीं है, फायदा या भार प्रथमतः उत्तर प्रदेश राज्य को ऐसे वित्तीय समायोजन के अधीन रहते हुए संक्रांत हो जाएगा जो उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच करार पाया जाए, या ऐसे करार के अभाव में, जो केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, निदेश दे

60. आस्तियों या दायित्वों का करार द्वारा प्रभाजन-जहां उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्य करार करते हैं कि किसी विशिष्ट आस्ति या दायित्व के फायदे या भार का उनके बीच प्रभाजन ऐसी रीति से किया जाना चाहिए जो उससे भिन्न है जो इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में दी गई है, वहां उन उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, उस आस्ति या दायित्व के फायदे या भार का प्रभाजन उस रीति से किया जाएगा, जो करार पाई जाए

61. कतिपय मामलों में आबंटन या समायोजन का आदेश करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-जहां उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में से कोई राज्य इस भाग के उपबंधों में से किसी के आधार पर किसी संपत्ति का हकदार हो जाए या कोई फायदा प्राप्त करे या किसी दायित्व के अधीन हो जाए और नियत दिन से तीन वर्ष की अवधि के भीतर दोनों में से किसी राज्य द्वारा निर्देश किए जाने पर केन्द्रीय सरकार की राय हो कि यह न्यायसंगत और साम्यापूर्ण है कि वह संपत्ति या वे फायदे दूसरे उत्तरवर्ती राज्य को अंतरित किए जाने चाहिए या उनमें से उसे अंश मिलना चाहिए या उस दायित्व मद्धे दूसरे उत्तरवर्ती राज्य द्वारा अभिदाय किया जाना चाहिए, वहां उक्त संपत्ति या फायदों का आबंटन दोनों राज्यों के बीच ऐसी रीति से किया जाएगा या दूसरा राज्य, दायित्व के अधीन होने वाले राज्य को उसके बारे में ऐसा अभिदाय करेगा जो केन्द्रीय सरकार दोनों राज्य सरकारों से परामर्श के पश्चात् आदेश द्वारा, अवधारित करे

62. कतिपय व्यय का संचित निधि पर भारित किया जाना-इस अधिनियम के उपबंधों के आधार पर या तो उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा या उत्तरांचल राज्य द्वारा अन्य राज्यों को या केन्द्रीय सरकार द्वारा उन राज्यों में से किसी राज्य को संदेय सब राशियां, यथास्थिति, उस राज्य की संचित निधि पर जिसके द्वारा ऐसी राशियां संदेय हो, या भारत की संचित निधि पर भारित होंगी  

भाग 7

कतिपय निगमों के बारे में उपबंध

63. पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, आदि के बारे में उपबंध-(1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लिए गठित निम्नलिखित निगमित निकाय, अर्थात्ः-

() दि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, दि उत्तर प्रदेश जल-विद्युत निगम लिमिटेड और दि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड;

() उत्तर प्रदेश विद्युत विनियामक आयोग; और

() भाण्डागारण निगम अधिनियम, 1962 (1962 का 58) के अधीन स्थापित राज्य भाण्डागारण निगम,

नियत दिन से ही उन क्षेत्रों में जिनकी बाबत उस दिन के ठीक पूर्व वे कार्य कर रहे थे इस धारा के उपबंधों और ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए, जो समय-समय पर केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए जाएं, कार्य करते रहेंगे

(2) केन्द्रीय सरकार द्वारा उपधारा (1) के अधीन उक्त पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, आयोग या भांडागारण निगम की बाबत जारी किए गए किन्हीं निदेशों के अंतर्गत ऐसा निदेश भी होगा कि वह अधिनियम जिसके अधीन वह पावर कार्पोरेशन, आयोग या वह भाडांगारण निगम गठित हुआ, उक्त पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम को लागू होने में ऐसे अपवादों और उपांतरों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो केन्द्रीय सरकार ठीक समझे  

(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम ऐसी तारीख से जिसे केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा नियत करे, कार्य करना बंद कर देगा और उस तारीख से विघटित समझा जाएगा; तथा ऐसे विघटन पर उसकी आस्तियों, अधिकारों तथा दायित्वों का उत्तरवर्ती उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच प्रभाजन ऐसी रीति से किया जाएगा जो, यथास्थिति, उक्त पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम के विघटन के एक वर्ष के भीतर उनमें करार पाई जाए, या यदि कोई करार हो पाए तो ऐसी रीति से किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा अवधारित करे :

परंतु किसी पब्लिक सेक्टर की कोयला कंपनी द्वारा पावर कार्पोरेशन को प्रदाय किए गए कोयला के असंदत्त शोध्यों की बाबत उपधारा (1) के खंड () में निर्दिष्ट उक्त पावर कार्पोरेशन में से पावर कार्पोरेशन के किन्हीं दायित्वों को विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरवर्ती राज्यों में क्रमशः गठित तत्स्थानी पावर कार्पोरेशनों के बीच अनंतिम रूप से प्रभाजित किया जाएगा या इस उपधारा के अधीन पावर कार्पोरेशन के विघटन के लिए नियत तारीख के पश्चात् ऐसी रीति में जो उत्तरवर्ती राज्यों की सरकारों के बीच करार पाई जाए, ऐसे विघटन से एक मास के भीतर अथवा ऐसा कोई करार नहीं किया जाता है तो ऐसी रीति में प्रभाजित किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, दायित्वों के सामाधान और अन्तिम रूप दिए जाने के अधीन अवधारित करे जो उत्तरवर्ती राज्यों के बीच पारस्परिक करार के द्वारा ऐसे विघटन की तारीख से तीन मास के भीतर पूरा किया जाएगा या ऐसे करार की असफलता की दशा में केन्द्रीय सरकार के निदेश द्वारा प्रभाजित किया जाएगा :

परन्तु यह और कि पब्लिक सेक्टर की कोयला कंपनी द्वारा विद्युत निगम को प्रदाय किए गए कोयला के असंदत्त शोध्यों के बकाया पर दो प्रतिशत की दर से ब्याज, जो रोकड़ जमा ब्याज से उच्चतर है तब तक संदत्त किया जाएगा जब तक कि उत्तरवर्ती राज्यों में इस उपधारा के अधीन पावर कार्पोरेशन के विघटन के लिए नियत तारीख को या उसके पश्चात् गठित संबद्ध तत्स्थानी राज्य पावर कार्पोरेशन द्वारा ऐसे शोध्यों का समापन नहीं कर दिया जाता है          

(4) इस धारा के पूर्ववर्ती उपबंधों की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह, यथास्थिति, उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार या उत्तरांचल राज्य की सरकार को, नियत दिन को या उसके पश्चात् किसी समय राज्य के लिए राज्य पावर कार्पोरेशन, विद्युत विनियामक आयोग या राज्य भाडांगारण निगम से संबंधित, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन उस राज्य के लिए ऐसा पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम गठित करने से निवारित करती है; और यदि इन राज्यों में से किसी में ऐसे पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाण्डागारण निगम का इस प्रकार गठन  उपधारा (1) में निर्दिष्ट पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगाराण निगम के विघटन से पहले किया जाता है तो

() उस राज्य में, विद्यमान पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम से उसके सभी या किन्हीं उपक्रमों, आस्तियों, अधिकारों और दायित्वों को ग्नहण करने के लिए नए पावर कार्पोरेशन, नए आयोग या नए भाडांगारण निगम को समर्थ बनाने के लिए उपबंध केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा किया जा सकेगा; और-

() विद्यमान पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगाराण निगम के विघटन पर, -

(i) कोई आस्ति, अधिकार और दायित्व जो अन्यथा उपधारा (3) के उपबंधों द्वारा या उनके अधीन उस राज्य को संक्रांत हो जाते, उस राज्य की बजाय नए पावर कार्पोरेशन, नए आयोग या नए भाडांगारण निगम को संक्रांत हो जाएंगे

(ii) कोई ऐसा कर्मचारी जो उपधारा (5) के खंड (i) के साथ पठित उपधारा (3) के अधीन उस राज्य को अन्यथा स्थानांतरित या उसके द्वारा पुनःनियोजित किया जाता उस राज्य को अन्यथा या उसके द्वारा स्थानांतरित या उसके द्वारा पुनःनियोजित किए जाने के बजाय नए पावर कार्पोरेशन, नए आयोग या नए भाडांगारण निगम को स्थानांतरित हो जाएगा या उसके द्वारा पुनःनियोजित किया जाएगा  

(5) उत्तरवर्ती राज्यों के बीच उपधारा (3) के अधीन हुए करार में और केन्द्रीय सरकार द्वारा उक्त उपधारा के अधीन अथवा उपधारा (4) के खंड () के अधीन किए गए आदेश में, उपधारा (1) में निर्दिष्ट पावर कार्पोरेशन, आयोग या भाडांगारण निगम के किसी कर्मचारी के,-

(i) उपधारा (2) के अधीन किसी करार या उक्त उपधारा के अधीन किए गए किसी आदेश की दशा में, उत्तरवर्ती राज्यों को या उनके द्वारा;

(ii) उस उपधारा के खंड () के अधीन किए गए किसी आदेश की दशा में, उपधारा (4) के अधीन गठित नए पावर कार्पोरेशन, नए आयोग या नए भाडांगारण निगम को या उनके द्वारा,

स्थानांतरण या पुनः नियोजन के लिए और धारा 68 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ऐसे स्थानांतरण या पुनः नियोजन के पश्चात् ऐसे कर्मचारियों को लागू सेवा के निबंधन और शर्तों के लिए भी उपबंध किया जा सकेगा

64. विद्युत शक्ति के उत्पादन और प्रदाय तथा जल के प्रदाय के बारे में इन्तजाम का बना रहना-यदि केन्द्रीय सरकार को यह प्रतीत हो कि किसी क्षेत्र के लिए विद्युत शक्ति के उत्पादन या प्रदाय या जल-प्रदाय के बारे में या ऐसे उत्पादन या प्रदाय के लिए किसी परियोजना के निष्पादन के बारे में इन्तजाम का उस क्षेत्र के लिए अहितकर उपांतरण इस तथ्य के कारण हो गया है या उपांतरण होने की संभावना है कि वह क्षेत्र भाग 2 के उपबंधों के आधार पर उस राज्य से बाहर हो गया है, जिसमें, यथास्थिति, ऐसी शक्ति के उत्पादन और प्रदाय के लिए विद्युत केन्द्र और अन्य संस्थापन अथवा जल-प्रदाय के लिए जलागम क्षेत्र, जलाशय और अन्य संकर्म स्थित हैं तो केन्द्रीय सरकार, जहां कहीं आवश्यक हो, प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य की सरकार से परामर्श के पश्चात्, पहले वाले इन्तजाम को यावत्साध्य बनाए रखने के लिए ऐसे निदेश, जो वह उचित समझे, राज्य सरकार या अन्य संबद्ध प्राधिकारी को दे सकेगी

65. उत्तर प्रदेश राज्य वित्तीय निगम के बारे में उपबंध-(1) राज्य वित्तीय निगम अधिनियम, 1951 (1951 का 63) के अधीन स्थापित उत्तर प्रदेश राज्य वित्तीय निगम नियत दिन से ही, उन क्षेत्रों में जिनके संबंध में वह उस दिन के ठीक पूर्व कार्य कर रहा था, इस धारा के उपबंधों तथा ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए जाएं, कार्य करता रहेगा

(2) उपधारा (1) के अधीन निगम के बारे में केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए किन्हीं निदेशों के अंतर्गत ऐसा निदेश भी हो सकेगा कि उक्त अधिनियम निगम को लागू होने में, ऐसे अपवादों तथा उपांतरों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो निदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, निगम का निदेशक बोर्ड, केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन से और यदि केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाए तो नियत दिन के पश्चात् किसी समय निगम के, यथास्थिति, पुनर्गठन या पुनर्संगठन या विघटन की स्कीम के संबंध में जिसके अतंर्गत नए निगमों के बनाए जाने और विद्यमान निगम की आस्तियां, अधिकार तथा दायित्व उन्हें अंतरित किए जाने की प्रस्थापनाएं भी हैं, विचारार्थ अधिवेशन बुला सकेगा और यदि ऐसी स्कीम उपस्थित और मत देने वाले शेयरधारकों के बहुमत से साधारण अधिवेशन में पारित संकल्प द्वारा अनुमोदित कर दी जाती है तो वह स्कीम केन्द्रीय सरकार को उसकी मंजूरी के लिए प्रस्तुत की जाएगी

(4) यदि स्कीम केन्द्रीय सरकार द्वारा उपांतरों के बिना या ऐसे उपांतर के सहित जो साधारण अधिवेशन में अनुमोदित हुए हैं, मंजूर कर ली जाती है तो केन्द्रीय सरकार, स्कीम को प्रमाणित करेगी और ऐसे प्रमाणन पर वह स्कीम, किसी तत्समय प्रवृत्त विधि में तत्प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, उस स्कीम द्वारा प्रभावित निगमों पर तथा उनके शेयरधारकों और लेनदारों पर भी आबद्धकर होगी  

(5) यदि स्कीम इस प्रकार अनुमोदित या मंजूर नहीं की जाती है तो केन्द्रीय सरकार स्कीम को उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश को, जो उसके मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित किया जाए, निर्देशित कर सकेगी और उस स्कीम के बारे में न्यायाधीश का विनिश्चय अंतिम होगा और स्कीम द्वारा प्रभावित निगमों पर तथा उनके शेयरधारकों और लेनदारों पर भी आबद्धकर होगा

(6) इस धारा के पूर्ववर्ती उपबंधों की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य की सरकार को नियत दिन को या उसके पश्चात् किसी समय राज्य वित्तीय निगम अधिनियम, 1951 (1951 का 63) के अधीन उस राज्य के लिए किसी राज्य वित्तीय निगम का गठन करने से निवारित करती है

66. कतिपय कम्पनियों के बारे में उपबंध-(1) इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम की नौवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट प्रत्येक कंपनी, नियत दिन से ही और तब तक जब तक कि किसी विधि में या उत्तरवर्ती राज्यों के बीच किसी करार में या केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए किसी निदेश में अन्यथा उपबंधित हो, उन क्षेत्रों में, जिनमें वह उस दिन के ठीक पूर्व कार्य कर रही थी, कार्य करती रहेगी, और केन्द्रीय सरकार, कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में या किसी अन्य विधि में, तत्प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, ऐसे कार्यकरण के संबंध में समय-समय पर ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह ठीक समझे

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी कंपनी के संबंध में उस उपधारा के अधीन जारी किए गए किन्हीं निदेशों में निम्नलिखित के संबंध में निदेश भी हो सकेंगे-

() उत्तर प्रदेश राज्य और उत्तरांचल राज्य के बीच कंपनी के हितों और शेयरों का विभाजन;

() कंपनी के निदेशक बोर्ड के पुनर्गठन की अपेक्षा करने के लिए निदेश, जिससे सभी उत्तरवर्ती राज्यों को यथोचित प्रतिनिधित्व दिया जा सके  

67. कानूनी निगमों के बारे में साधारण उपबंध-(1) इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों द्वारा अभिव्यक्त रूप से जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, जहां विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य या उसके किसी भाग के लिए केन्द्रीय अधिनियम, राज्य अधिनियम या प्रांतीय अधिनियम के अधीन गठित कोई निगमित निकाय, भाग 2 के उपबंधों के आधार पर अंतरराज्यिक निगमित निकाय हो गया है वहां जब तक कि उक्त निगमित निकाय के बारे में विधि द्वारा अन्य उपबंध नहीं कर दिया जाता है, वह, नियत दिन से ही उन क्षेत्रों में जिनकी बाबत उस दिन के ठीक पूर्व कार्य कर रहा था और क्रियाशील था, ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए, जो समय-समय पर केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए जाएं, कार्य करता रहेगा और क्रियाशील बना रहेगा

(2) केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे निगमित निकाय की बाबत उपधारा (1) के अधीन दिए गए किन्हीं निदेशों के अंतर्गत यह निदेश भी होगा कि कोई विधि जिसके द्वारा उक्त निगमित निकाय शासित होता है, उस निगमित निकाय को लागू होने में ऐसे अपवादों और उपांतरों के अधीन प्रभावी होगी जो उस निदेश में विनिर्दिष्ट हों

68. कतिपय विद्यमान सड़क परिवहन अनुज्ञापत्रों के चालू रहने के बारे में अस्थायी उपबंध-(1) मोटर यान अधिनियम, 1988 (1988 का 59) की धारा 88 में किसी बात के होते हुए भी, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के राज्य परिवहन प्राधिकारी या उस राज्य में किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकारी द्वारा, अनुदत्त अनुज्ञापत्र, यदि ऐसा अनुज्ञापत्र नियत दिन के ठीक पूर्व अंतरित राज्यक्षेत्र के किसी क्षेत्र में विधिमान्य और प्रभावी था, उस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए जो तत्समय उस क्षेत्र में प्रवृत्त हों, उस क्षेत्र में उस दिन के पश्चात् विधिमान्य और प्रभावी समझा जाएगा और ऐसे किसी अनुज्ञापत्र पर उस क्षेत्र में उपयोग के लिए उसे विधिमान्य करने के प्रयोजन के लिए उत्तरांचल राज्य परिवहन प्राधिकरण या उत्तरांचल में किसी प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षर किया जाना आवश्यक नहीं होगा

परंतु केन्द्रीय सरकार, उत्तरवर्ती राज्य सरकार या संबद्ध सरकारों से परामर्श के पश्चात् उन शर्तों में, जो अनुज्ञापत्र देने वाले प्राधिकरण द्वारा अनुज्ञापत्र से संलग्न की गई हों, परिवर्धन, संशोधन या परिवर्तन कर सकेगी

(2) किसी ऐसे अनुज्ञापत्र के अधीन उत्तरवर्ती राज्यों में से किसी में कोई परिवहन यान प्रचालित करने के लिए नियत दिन के पश्चात् किसी परिवहन यान की बाबत कोई पथकर, प्रवेश फीस या वैसी ही प्रकृति के अन्य प्रभार उद्गृहीत नहीं किए जाएंगे यदि ऐसे यान को उस दिन के ठीक पूर्व अंतरित राज्यक्षेत्र में प्रचालित करने के लिए ऐसे किसी पथकर, प्रवेश फीस या अन्य प्रभारों के संदाय से छूट प्राप्त थी :

परंतु केन्द्रीय सरकार, संबद्ध राज्य सरकार या सरकारों से परामर्श के पश्चात्, यथास्थिति, पथकर, प्रवेश फीस या अन्य प्रभार के उद्ग्रहरण को प्राधिकृत कर सकेगी:

परन्तु यह और कि इस उपधारा के उपबंध वहां लागू नहीं होंगे जहां ऐसे पथकर, प्रवेश फीस या इसी प्रकार के अन्य प्रभार ऐसी सड़क या पुल के उपयोग के लिए उद्ग्रहणीय हैं जिसका सन्निर्माण या विकास वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए राज्य सरकार, राज्य सरकार के किसी उपक्रम, ऐसे संयुक्त उपक्रम जिसमें राज्य सरकार शेयरधारक है या प्राइवेट सेक्टर द्वारा किया गया है

69. कतिपय मामलों में छंटनी प्रतिकर से संबंधित विशेष उपबंध-जहां केन्द्रीय अधिनियम, राज्य अधिनियम या प्रांतीय अधिनियम के अधीन गठित कोई निगमित निकाय, सहकारी सोसाइटियों से संबंधित किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी सहकारी सोसाइटी या उस राज्य का कोई वाणिज्यिक या औद्योगिक उपक्रम इस अधिनियम के अधीन विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के पुनर्गठन के कारण किसी रीति से पुनर्गठित या पुनर्संगठित किया जाता है या किसी अन्य निगमित निकाय, सहकारी सोसाइटी या उपक्रम में समामेलित किया जाता है या विघटित किया जाता है और ऐसे पुनर्गठन, पुनर्संगठन, समामेलन या विघटन के परिणामस्वरूप ऐसे निगमित निकाय या किसी ऐसी सहकारी सोसाइटी या उपक्रम द्वारा नियोजित किसी कर्मकार को किसी अन्य निगमित निकाय को या किसी अन्य सहकारी सोसाइटी या उपक्रम को अंतरित या उसके द्वारा पुनर्नियोजित किया जाता है वहां औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) की धारा 25, धारा 25चच या धारा 25चचच में  किसी बात के होते हुए भी, ऐसा अंतरण या पुनर्नियोजन उसे उक्त धारा के अधीन किसी प्रतिकर का हकदार नहीं बनाएगा :

परतुं यह तब जब कि-

() ऐसे अंतरण या पुनर्नियोजन के पश्चात् कर्मकार को लागू होने वाले सेवा के निबंधन और शर्तें ऐसे अंतरण या पुनर्नियोजन से ठीक पूर्व उसे लागू होने वाले निबंधनों और सेवा-शर्तों से कम अनुकूल हों ;

() उस निगमित निकाय, सहकारी सोसाइटी या उपक्रम से, जहां कर्मकार अंतरित या पुनर्नियोजित हो, संबंधित नियोजक, करार द्वारा या अन्यथा उस कर्मकार को उसकी छंटनी की दशा में इस आधार पर कि उसकी सेवा चालू रही है और अंतरण या पुनर्नियोजन द्वारा उसमें बाधा नहीं पड़ी है, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) की धारा 25, धारा 25चच या धारा 25चचच के अधीन विधिक रूप से प्रतिकर देने का दायी होगा

70. आय-कर के बारे में विशेष उपबंध-जहां इस भाग के उपबंधों के अधीन कारबार चलाने वाले किसी निगमित निकाय की आस्तियां, अधिकार और दायित्व अन्य निगमित निकायों को अंतरित किए जाते हैं, जो अंतरण के पश्चात् वही कारबार चलाते हों, वहां प्रथम वर्णित निगमित निकाय को हुई हानियां, लाभ या अभिलाभ जो अंतरण होने पर आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के अध्याय 6 के उपबंधों के अनुसार अग्ननीत या मुजरा किए जाते, केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाने वाले नियमों के अनुसार अंतरिती निगमित निकायों में प्रभाजित किए जाएंगे और ऐसे प्रभाजन पर प्रत्येक अंतरिती निगमित निकाय को आबंटित हानि के अंश के संबंध में कार्यवाही उक्त अधिनियम के अध्याय 6 के उपबंधों के अनुसार की जाएगी मानो वे हानियां स्वयं अंतरिती निगमित निकाय को अपने द्वारा किए गए कारबार में उन वर्षों में हुई हों जिनमें वे हानियां हुईं

71. कतिपय राज्य संस्थाओं में सुविधाओं का जारी रहना-(1) यथास्थिति, उत्तर प्रदेश राज्य की या उत्तरांचल राज्य की सरकारें इस अधिनियम की दसवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट संस्थाओं की बाबत जो उस राज्य में अवस्थित हैं ऐसी सुविधाएं अन्य राज्य के लोगों को ऐसी अवधि तक और ऐसे निबंधनों और शर्तों पर प्रदान करती रहेगी जो दोनों राज्य सरकारों के बीच 1 दिसम्बर, 2000 के पूर्व करार पाई जाएं या यदि उक्त तारीख तक कोई करार नहीं किया जाता है तो जो केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा नियत किया जाए और वे किसी भी प्रकार से उन लोगों के लिए उन सुविधाओं से कम अनुकूल नहीं होंगी जो उन्हें नियत दिन के पूर्व दी जा रही थीं

(2) केन्द्रीय सरकार, 1 दिसम्बर, 2000 से पहले किसी भी समय, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों में नियत दिन को विद्यमान किसी अन्य संस्था को उपधारा (1) में निर्दिष्ट दसवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट कर सकेगी और ऐसी अधिसूचना के जारी किए जाने पर यह समझा जाएगा कि ऐसी अनुसूची का संशोधन उक्त संस्था को उसमें सम्मिलित करके किया गया है

भाग 8

सेवाओं के बारे में उपबंध

72. अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित उपबंध-(1) इस धारा में राज्य काडर" पद का-

() भारतीय प्रशासनिक सेवा के संबंध में वही अर्थ है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (काडर) नियम, 1954 में है

() भारतीय पुलिस सेवा के संबंध में वही अर्थ है जो भारतीय पुलिस सेवा (काडर) नियम, 1954 में है ; और

() भारतीय वन सेवा के संबंध में वही अर्थ है जो भारतीय वन सेवा (काडर) नियम, 1966 में है

(2) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के काडरों के स्थान पर, नियत दिन से ही, इन सेवाओं में से प्रत्येक की बाबत दो पृथक् काडर होंगे जिनमें से एक उत्तर प्रदेश राज्य के लिए और दूसरा उत्तरांचल राज्य के लिए होगा

(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट राज्य काडरों की प्रारंभिक सदस्य संख्या और संरचना ऐसी होगी जो केन्द्रीय सरकार नियत दिन से पूर्व आदेश द्वारा, अवधारित करे

(4) उक्त सेवा में से प्रत्येक के ऐसे सदस्य जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश काडर में के थे, उपधारा (2) के अधीन गठित उसी सेवा के राज्य काडरों को ऐसी रीति से और ऐसी तारीख या तारीखों से आबंटित किए जाएंगे जो केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे

(5) इस धारा की कोई बात नियत दिन को या उसके पश्चात् अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 (1951 का 61) या उसके अधीन बनाए गए नियमों के प्रवर्तन पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी

73. अन्य सेवाओं से संबंधित उपबंध-(1) प्रत्येक व्यक्ति जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा कर रहा हो, उस दिन से ही उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में अनंतिम रूप से सेवा करता रहेगा  जब तक केन्द्रीय सरकार के किसी साधारण या विशिष्ट आदेश द्वारा उससे अनंतिम रूप से उत्तरांचल राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने की अपेक्षा की जाए :

परन्तु इस उपधारा के अधीन नियत दिन से एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् जारी प्रत्येक निदेश उत्तरवर्ती राज्यों की सरकारों के परामर्श से जारी किया जाएगा

(2) नियत दिन के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, केन्द्रीय सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, वह उत्तरवर्ती राज्य जिसे उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक व्यक्ति सेवा के लिए अंतिम रूप से आबंटित होगा और वह तारीख जिससे ऐसा आबंटन प्रभावी होगा या प्रभावी हुआ समझा जाएगा, अवधारित करेगी

(3) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन अंतिम रूप से किसी उत्तरवर्ती राज्य को आबंटित किया जाता है, यदि वह पहले से उस राज्य में सेवा नहीं कर रहा है, ऐसी तारीख से जो संबद्ध सरकारों के बीच करार पाई जाए या ऐसे करार के अभाव में, उस तारीख से जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित की जाए, उत्तरवर्ती राज्य में सेवा करने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा

74. सेवाओं से संबंधित अन्य उपबंध-(1) इस धारा या धारा 73 की कोई बात नियत दिन से या उसके पश्चात् संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के अवधारण के संबंध में संविधान के भाग 14 के अध्याय 1 के उपबंधों के प्रवर्तन पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी :

परन्तु ऐसे किसी व्यक्ति की दशा में जिसे धारा 73 के अधीन उत्तर प्रदेश राज्य या उत्तरांचल राज्य को आबंटित समझा गया है, नियत दिन के ठीक पूर्व लागू होने वाली सेवा की शर्तों में उसके लिए अलाभकर परिवर्तन केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना नहीं किया जाएगा

(2) किसी व्यक्ति द्वारा नियत दिन के पूर्व की गई सभी सेवाएं, उसकी सेवा की शर्तों को विनियमित करने वाले नियमों के प्रयोजनों के लिए,-

() यदि उसे धारा 73 के अधीन किसी राज्य को आबंटित किया गया समझा जाए, तो उस राज्य के कार्यकलाप के संबंध में की गई सेवाएं मानी जाएंगी ;

() यदि उसे उत्तरांचल के प्रशासन के संबंध में संघ को आबंटित किया गया समझा जाए, तो संघ के कार्यकलाप के संबंध में की गई सेवाएं माना जाएगा

(3) धारा 73 के उपबंध किसी अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों के संबंध में लागू नहीं होंगे

75. अधिकारियों के उसी पद पर बने रहने के बारे में उपबंध-प्रत्येक व्यक्ति जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में, ऐसे किसी क्षेत्र में जो उस दिन उत्तरवर्ती राज्यों में से किसी में किसी पद या अधिकार पद को धारण करता हो या उसके कर्तव्यों का निर्वहन करता हो, उस उत्तरवर्ती राज्य में वही पद या अधिकार पद धारण करता रहेगा और उस दिन से ही उस उत्तरवर्ती राज्य की सरकार द्वारा या उसके किसी समुचित प्राधिकारी द्वारा उस पद या अधिकारपद पर सम्यक् रूप से नियुक्त किया गया समझा जाएगा :

परन्तु इस धारा की कोई बात किसी सक्षम प्राधिकारी को नियत दिन से ही ऐसे व्यक्ति के संबंध में उसके ऐसे पद या अधिकार पद पर बने रहने पर प्रभाव डालने वाला आदेश पारित करने से निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी

76. सलाहकार समितियां-(1) केन्द्रीय सरकार, निम्नलिखित के संबंध में अपनी सहायता के प्रयोजनार्थ आदेश द्वारा एक या अधिक सलाहकार समितियां स्थापित कर सकेगी-

() इस भाग के अधीन अपने किसी कृत्य का निर्वहन करना ; और

() इस भाग के उपबंधों द्वारा प्रभावित सभी व्यक्तियों के साथ ऋजु और साम्यापूर्ण व्यवहार को सुनिश्चित करना और ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए किन्हीं अभ्यावेदनों पर उचित रूप से विचार करना

77. निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार और उत्तरांचल राज्य की सरकार को ऐसे निदेश दे सकेगी जो उसे इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों और राज्य सरकारें ऐसे निदेशों का अनुपालन करेंगी

78. राज्य लोक सेवा आयोग के बारे में उपबंध-(1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का लोक सेवा आयोग, नियत दिन से ही उत्तर प्रदेश राज्य का लोक सेवा आयोग समझा जाएगा

(2) नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य का पद धारण करने वाला व्यक्ति नियत दिन से उत्तर प्रदेश राज्य के लोक सेवा आयोग का, यथास्थिति, अध्यक्ष या अन्य सदस्य होगा

(3) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो उपधारा (2) के अधीन नियत दिन से उत्तर प्रदेश राज्य के लोक सेवा आयोग का, अध्यक्ष या अन्य सदस्य हो जाए,-

() उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार से सेवा की ऐसी शर्तें प्राप्त करने का हकदार होगा जो उन शर्तों से कम अनुकूल नहीं होंगी, जिन्हें वह उसे लागू होने वाले उपबंधों के अधीन प्राप्त करने का हकदार था ;

() अनुच्छेद 316 के खंड (2) के परन्तुक के अधीन रहते हुए, नियत दिन के ठीक पूर्व उसे लागू होने वाले उपबंधों के अधीन यथा अवधारित उसकी पदावधि का जब तक अवसान हो, तब तक पद धारण करेगा या धारण किए रहेगा

 (4) उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नियत दिन से पूर्व किसी अवधि की बाबत किए गए कार्य के बारे में आयोग की रिपोर्ट अनुच्छेद 323 के खंड (2) के अधीन उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के राज्यपालों को प्रस्तुत की जाएगी और उत्तर प्रदेश राज्य का राज्यपाल ऐसी रिपोर्ट की प्राप्ति पर, जहां तक संभव हो, उन दशाओं के संबंध में, यदि कोई हों, जहां आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, दिए गए स्पष्टीकरण के ज्ञापन और इस प्रकार स्वीकार किए जाने के लिए कारणों के साथ उस रिपोर्ट की प्रति उत्तर प्रदेश राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उत्तरांचल राज्य की विधान सभा के समक्ष ऐसी रिपोर्ट या किसी ऐसे ज्ञापन को रखवाना आवश्यक नहीं होगा

भाग 9

जल स्रोतों का प्रबंध और विकास

79. जल स्रोतों का विकास और प्रबंध-(1) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु धारा 80 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के-

(i) ओखला तक अपर यमुना नदी को छोड़कर उत्तरवर्ती राज्यों में गंगा और इसकी सहायक नदियां बहने ; और

(ii) ओखला तक अपर यमुना नदी और इसकी सहायक नदियों, से संबंधित जल स्रोत परियोजना की बाबत सब अधिकार और दायित्व, नियत दिन को ऐसे अनुपात में जो निश्चित किए जाए और ऐसे समायोजनों के अधीन रहते हुए जो उक्त राज्यों द्वारा केन्द्रीय सरकार से परामर्श के पश्चात् किए गए करार द्वारा किए जाएं या यदि नियत दिन से दो वर्ष के भीतर ऐसा कोई करार हो तो केन्द्रीय सरकार परियोजना के प्रयोजनों को ध्यान में रखते हुए, आदेश द्वारा, एक वर्ष के भीतर अवधारित करे, उत्तरवर्ती राज्यों के अधिकार और दायित्व होंगे :

परन्तु केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रकार किए गए आदेश में केन्द्रीय सरकार से परामर्श के पश्चात् उत्तरवर्ती राज्यों द्वारा किए गए किसी पश्चात्वर्ती करार द्वारा परिवर्तन किया जा सकेगा

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई ऐसा करार या आदेश जिसमें उस उपधारा में निर्दिष्ट परियोजनाओं में से किसी परियोजना का नियत दिन के पश्चात् विस्तार या अतिरिक्त विकास किया गया है, ऐसे विस्तार या अतिरिक्त विकास के बारे में उत्तरवर्ती राज्यों के अधिकार और दायित्व होंगे

(3) उपधारा (1) और (2) में निर्दिष्ट अधिकारों और दायित्वों के अन्तर्गत-

() परियोजनाओं के परिणामस्वरूप वितरण के लिए उपलभ्य जल को प्राप्त करने तथा उसका उपयोग करने का अधिकार ; और

() परियोजनाओं के, परिणामस्वरूप उत्पादित विद्युत को प्राप्त करने तथा उसका उपयोग करने का अधिकार,

भी होगा किन्तु नियत दिन के पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार द्वारा सरकार से भिन्न किसी व्यक्ति या प्राधिकारी के साथ की गई किसी संविदा के अधीन के अधिकार तथा दायित्व इसके अंतर्गत नहीं होंगे

80. गंगा प्रबन्ध बोर्ड का गठन और उसके कृत्य-(1) केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित प्रयोजनों में से किसी एक या उनके समुच्चय के लिए धारा 79 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के प्रशासन, सन्निर्माण, अनुरक्षण और प्रचालन के लिए नदी बोर्ड का गठन करेगी जिसका नाम गंगा प्रबन्ध बोर्ड होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् बोर्ड कहा गया है), अर्थात् :-

(i) सिंचाई ;

(ii) ग्रामीण और शहरी जल प्रदाय ;

(iii) जल-विद्युत उत्पादन ;

(iv) नौचालन ;

(v) उद्योग ; और

(vi) कोई अन्य प्रयोजन, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे

(2) बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा :-

() एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उत्तरवर्ती राज्यों के परामर्श से नियुक्त किया जाएगा ;

() दो पूर्णकालिक सदस्य, जिनमें से एक-एक प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्यों में से, संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे ;

() चार अंशकालिक सदस्य, जिनमें से दो-दो प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्यों में से, संबंधित राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे ;

() केन्द्रीय सरकार के दो प्रतिनिधि, जो उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे

(3) बोर्ड के कृत्यों के अंतर्गत निम्नलिखित होंगे-

() उत्तरवर्ती राज्यों को, निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुए, धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (i) में निर्दिष्ट परियोजनाओं से जल प्रदाय का विनियमन-

(i)  विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्यक्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव ; और

(ii) धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश ;

() धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (i) में निर्दिष्ट परियोजनाओं में उत्पादित विद्युत के किसी विद्युत बोर्ड या विद्युत के वितरण के भारसाधक अन्य प्राधिकारी को निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुए प्रदाय का विनियमन-

(i)  विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्यक्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव ; और

(ii) धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश ;

() नदियों और उनकी सहायक नदियों से संबंधित जल स्रोतों की परियोजनाओं के विकास से संबंधित ऐसे शेष चालू या नए संकर्मों का निर्माण जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे ;

() ऐसे अन्य कृत्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों से परामर्श के पश्चात् उसे सौंप दे

81. प्रबंध बोर्ड के कर्मचारिवृन्द-(1) बोर्ड ऐसे कर्मचारिवृन्द नियोजित कर सकेगा जो वह इस अधिनियम के अधीन उनके कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक समझे ऐसे कर्मचारिवृन्द पहली बार उत्तरवर्ती राज्य से प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त किए जाएंगे, जिसके होने पर किसी अन्य रीति से नियुक्त किए जाएंगे:

परन्तु प्रत्येक व्यक्ति, जो उक्त बोर्ड के गठन के ठीक पहले धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (i) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के संबंध में संकर्मों के सन्निर्माण, अनुरक्षण, या प्रचालन में लगा हुआ था, बोर्ड के अधीन उक्त संकर्मों के संबंध में सेवा के उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर जो उसे ऐसे गठन से पहले लागू थी, तब तक इस प्रकार नियोजित बना रहेगा जब तक केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे :

परन्तु यह और भी कि उक्त बोर्ड उत्तरवर्ती राज्य की सरकार या संबद्ध विद्युत बोर्ड से परामर्श करके और केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन से ऐसे किसी व्यक्ति को उस राज्य सरकार या बोर्ड के अधीन सेवा के लिए प्रतिधारित कर सकेगा

(2) उत्तरवर्ती राज्यों की सरकारें सब समयों पर बोर्ड को उसके कृत्यों के निर्वहन के लिए अपेक्षित सब व्यय को (जिसके अन्तर्गत कर्मचारिवृन्द के वेतन तथा भत्ते भी हैं) पूरा करने के लिए आवश्यक निधियों का उपबन्ध करेंगी और ऐसी रकमों को सम्बद्ध राज्यों में ऐसे अनुपात में प्रभाजित किया जाएगा जैसा केन्द्रीय सरकार उक्त राज्यों में से प्रत्येक को होने वाले फायदों को ध्यान में रखते हुए विनिर्दिष्ट करे

(3) बोर्ड केन्द्रीय सरकार के नियंत्रणाधीन होगा और ऐसे निदेशों का अनुपालन करेगा, जो समय-समय पर उसे उस सरकार द्वारा दिए जाएं

(4) बोर्ड, अपनी ऐसी शक्तियां, कृत्य या कर्तव्य, जैसे वह ठीक समझे, उक्त बोर्ड के अध्यक्ष या बोर्ड के किसी अधीनस्थ अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगा

(5) केन्द्रीय सरकार, बोर्ड को दक्ष रूप से कार्य करने में समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ संबद्ध राज्यों की सरकारों या किसी अन्य प्राधिकारी को निदेश जारी कर सकेगी और राज्य सरकारें या अन्य प्राधिकारी ऐसे निदेशों का अनुपालन करेंगे  

82. बोर्ड की अधिकारिता-(1) बोर्ड साधारणतया संबद्ध राज्यों को जल या विद्युत का प्रदाय करने के लिए आवश्यक जल शीर्ष तंत्र (बैराज, बांध, जलाशय, विनियामक संरचना), नहरी नेटवर्क के भाग और पारेषण लाइनों पर धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (i) में निर्दिष्ट परियोजनाओं में से किसी के बारे में अधिकारिता का प्रयोग करेगा

(2) यदि इस बारे में कोई प्रश्न -ूत होता है कि उपधारा (1) के अधीन उसमें निर्दिष्ट किसी परियोजना पर बोर्ड की अधिकारिता है अथवा नहीं, तो उसे केन्द्रीय सरकार को उस पर विनिश्चय के लिए निर्दिष्ट किया जाएगा

83. विनियम बनाने की बोर्ड की शक्ति-बोर्ड, निम्नलिखित का उपबन्ध करने के लिए ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों से संगत हों-

() बोर्ड के अधिवेशनों के समय और स्थान का तथा ऐसे अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया का विनियमन ;

() बोर्ड के अध्यक्ष या किसी अधिकारी को शक्तियों तथा कर्तव्यों का प्रत्यायोजन ;

() बोर्ड के अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारिवृन्द की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तों का विनियमन ;

() कोई अन्य विषय जिसके लिए विनियम बोर्ड द्वारा आवश्यक समझे जाएं

84. यमुना नदी के जल संसाधनों का आबंटन-(1) तारीख 12 मई, 1994 को वचनबंध ज्ञापन के अधीन विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य को नियत दिन से पूर्व यथाआबंटित ओखला तक यमुना नदी के उपयोग करने योग्य जल संसाधनों का उत्तरवर्ती राज्यों के बीच दो वर्ष की अवधि के भीतर पारस्परिक करार द्वारा और आबंटन किया जाएगा जिसके होने पर केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, उत्तरवर्ती राज्यों के बीच एक वर्ष की और अवधि के भीतर ऐसे जल संसाधनों के आबंटन का अवधारण करेगी

(2) उत्तरांचल राज्य को नियत दिन से ही उपधारा (1) में निर्दिष्ट वचनबंध ज्ञापन के क्रियान्वयन के लिए गठित अपर यमुना बोर्ड के सदस्य के रूप में सम्मिलित किया जाएगा

भाग 10

विधिक और प्रकीर्ण उपबंध

85. 1956 के अधिनियम 37 की धारा 15 का संशोधन-राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 15 में नियत दिन से ही खंड () में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश" शब्दों के स्थान पर, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और मध्य प्रदेश" शब्द रखे जाएंगे

86. विधियों का राज्य क्षेत्रीय विस्तार-भाग 2 के उपबंधों की बाबत यह नहीं समझा जाएगा कि उनसे उन राज्यक्षेत्रों में, जिन पर नियत दिन के ठीक पूर्व प्रवृत्त उत्तर प्रदेश अधिकतम जोत सीमा अधिरोपण अधिनियम, 1961 (1961 का उ० प्र० अधिनियम 9) और कोई विधि विस्तारित होती है या लागू होती है, कोई परिवर्तन हुआ है और ऐसी किसी विधि में उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में राज्यक्षेत्रीय निर्देशों का, जब तक कि सक्षम विधान-मंडल या अन्य समक्ष प्राधिकारी द्वारा अन्यथा उपबंधित कर दिया जाए, तब तक वही अर्थ लगाया जाएगा मानो वे नियत दिन के पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर हैं

 -नियत दिन के पूर्व बनाई गई किसी विधि के उत्तर प्रदेश राज्य या उत्तरांचल राज्य के संबंध में लागू होने को सुकर बनाने के प्रयोजनार्थ समुचित सरकार उस दिन से दो वर्ष की समाप्ति के पूर्व आदेश द्वारा विधि के ऐसे अनुकूलन तथा उपांतर चाहे वे निरसन के रूप में हों या संशोधन के रूप में हों, जैसा आवश्यक या समीचीन हो, कर सकेगी और तब ऐसी प्रत्येक विधि, जब तक सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा परिवर्तित, निरसित या संशोधित कर दी जाए, तब तक इस प्रकार किए गए अनुकूलनों या उपांतरों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी

स्पष्टीकरण-इस धारा में समुचित सरकार" पद से अभिप्रेत है संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित किसी विधि के बारे में केन्द्रीय सरकार, और किसी अन्य विधि के बारे में उसके किसी राज्य को लागू होने की दशा में, राज्य सरकार  

88. विधियों के अर्थान्वयन की शक्ति-इस बात के होते हुए भी कि नियत दिन के पूर्व बनाई गई किसी विधि के अनुकूलन के लिए धारा 87 के अधीन कोई उपबंध नहीं किया गया है या अपर्याप्त उपबंध किया गया है, ऐसी विधि को प्रवर्तित करने के लिए अपेक्षित या सशक्त किया गया कोई न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी, उत्तर प्रदेश राज्य अथवा उत्तरांचल राज्य के संबंध में उसके लागू होने को सुकर बनाने के प्रयोजनार्थ, उस विधि का अर्थान्वयन, सार पर प्रभाव डाले बिना ऐसी रीति से कर सकेगा, जो, यथास्थिति, उस न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष मामले की बाबत आवश्यक या उचित हो  

89. कानूनी कृत्यों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकारियों, आदि को नामित करने की शक्ति-उत्तरांचल राज्य की सरकार अन्तरित राज्यक्षेत्र की बाबत, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसा प्राधिकारी, अधिकारी या व्यक्ति विनिर्दिष्ट कर सकेगी जो नियत दिन को या उसके पश्चात् उस दिन प्रवृत्त किसी विधि के अधीन ऐसे प्रयोक्तव्य कृत्यों का प्रयोग करने के लिए जो उस अधिसूचना में वर्णित हों, सक्षम होगा और ऐसी विधि तद्नुसार प्रभावी होगी

90. विधिक कार्यवाहियां-जहां नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य इस अधिनियम के अधीन उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों के बीच प्रभाजनाधीन किसी सम्पत्ति, अधिकारों या दायित्वों की बाबत किन्हीं विधिक कार्यवाहियों का पक्षकार हो, वहां उत्तर प्रदेश राज्य या उत्तरांचल राज्य जो इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के आधार पर उस सम्पत्ति या उन अधिकारों या दायित्वों का उत्तरवर्ती हो या उसमें कोई भाग अर्जित करता हो, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया या उन कार्यवाहियों में पक्षकार के रूप में जोड़ा गया समझा जाएगा और कार्यवाहियां तद्नुसार चालू रखी जा सकेंगी

91. लम्बित कार्यवाहियों का अन्तरण-(1) नियत दिन के ठीक पूर्व किसी ऐसे क्षेत्र में जो उस दिन उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर आता हो किसी न्यायालय (उच्च न्यायालय से भिन्न), अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी के समक्ष लंबित प्रत्येक कार्यवाही, यदि वह कार्यवाही अनन्यतः उस राज्यक्षेत्र से संबंधित है, जो उस दिन से उत्तरांचल राज्य का राज्यक्षेत्र है तो वह उस राज्य के तत्स्थानी न्यायालय, अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी को अंतरित हो जाएगी

(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या उपधारा (1) के अधीन कोई कार्यवाही अंतरित हो जानी चाहिए तो वह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा और उस उच्च न्यायालय का विनिश्चय अन्तिम होगा

(3) इस धारा में,-

() कार्यवाही" के अन्तर्गत कोई वाद, मामला या अपील है ; और

() उत्तरांचल राज्य में तत्स्थानी न्यायालय, अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी" से अभिप्रेत है-

(i) वह न्यायालय, अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी जिसमें या जिसके समक्ष वह कार्यवाही, संस्थित की जाती यदि वह नियत दिन के पश्चात् की गई होती ; या

(ii) शंका की दशा में उस राज्य का ऐसा न्यायालय, अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी, जो नियत दिन के पश्चात्, यथास्थिति, उत्तरांचल राज्य की सरकार या केन्द्रीय सरकार द्वारा या नियत दिन के पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य की सरकार द्वारा तत्स्थानी न्यायालय, अधिकरण, प्राधिकारी या अधिकारी के रूप में अवधारित किया जाए

92. कतिपय मामलों में प्लीडरों का विधि-व्यवसाय करने का अधिकार-कोई व्यक्ति, जो नियत दिन के ठीक पूर्व विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य में किन्हीं अधीनस्थ न्यायालयों में विधि-व्यवसाय करने के लिए हकदार प्लीडर के रूप में नामावलीगत है, उस दिन से एक वर्ष की अवधि के लिए, इस बात के होते हुए भी, कि उन न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसका कोई भाग उत्तरांचल राज्य को अन्तरित कर दिया यगा है, उन न्यायालयों में विधि व्यवसाय करने का हकदार बना रहेगा

93. अन्य विधियों से असंगत अधिनियम के उपबंधों का प्रभाव-इस अधिनियम के उपबंध किसी अन्य विधि में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे

94. कठिनाइयां दूर करने की शक्ति- (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है, तो राष्ट्रपति, ऐसे आदेश द्वारा, ऐसी कोई भी बात कर सकेंगे, जो ऐसे उपबंधों से असंगत हो और जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उन्हें आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो :

परंतु ऐसा कोई आदेश, नियत दिन से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा

पहली अनुसूची

(धारा 8 दखिए)

(1) ग्यारह आसीन सदस्यों, अर्थात् श्री नरेन्द्र मोहन, श्री राज नाथ सिंह, श्री चौधरी चुन्नी लाल, श्री देवी प्रसाद सिंह, श्री मनोहर कान्त ध्यानी, श्री अमर सिंह, श्री मोहम्मद आजम खां, श्री आर० एन० आर्य, श्री गांधी आजाद, श्री अखिलेश दास और श्री बलवंत सिंह रामूवालिया, जिनकी पदावधि नवम्बर, 2002 को समाप्त हो जाएगी, में से श्री मनोहर कान्त ध्यानी उत्तरांचल राज्य को आबंटित तीन स्थानों में से एक स्थान को भरने के लिए निर्वाचित समझा जाएगा और अन्य दस आसीन सदस्य उत्तर प्रदेश राज्य को आबंटित स्थानों में से दस स्थानों को भरने के लिए निर्वाचित समझे जाएंगे

(ii) बारह आसीन सदस्यों, अर्थात् श्री अरुण शौरी, श्री टी० एन० चतुर्वेदी, श्री बी० पी० सिंघल, श्री धर्मपाल यादव, श्री दीनानाथ मिश्र, श्री रामगोपाल यादव, श्री कांशी राम, श्री संघ प्रिय गौतम, श्री मुनव्वर हसन, श्री खान गुफरान जहीदी, श्री सैय्यद अख्तर हसन रिजवी, श्री रमा शंकर कौशिक, जिनकी पदावधि जुलाई, 2004 को समाप्त हो जाएगी, में से ऐसा एक सदस्य, जिसे राज्य सभा का सभापति लाट निकालकर अवधारित करे, उत्तरांचल राज्य को आबंटित स्थानों में से एक स्थान को भरने के लिए निर्वाचित समझा जाएगा और अन्य ग्यारह आसीन सदस्य उत्तर प्रदेश राज्य को आबंटित स्थानों में से ग्यारह स्थानों को भरने के लिए निर्वाचित समझे जाएंगे

(iii) उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्यारह आसीन सदस्यों जिनकी पदावधि 2 अप्रैल, 2006 को समाप्त हो जाएगी, में से ऐसा एक सदस्य, जिसे राज्य सभा का सभापति लाट निकाल कर अवधारित करे, उत्तरांचल राज्य को आबंटित स्थानों में से एक स्थान को भरने के लिए निर्वाचित किया गया समझा जाएगा

दूसरी अनुसूची

(धारा 10 देखिए)

संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन आदेश, 1976 का संशोधन

संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन आदेश, 1976 में,-

1. अनुसूची 22 में,-

(i) भाग में-संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र में,-

() क्रम संख्यांक 1, 2, 3, 4 और 85 तथा उनसे संबंधित प्रविष्टियों का लोप किया जाएगा ;

() क्रम संख्या 12 के अंत में, निम्नलिखित अंक और शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात् :- 56-बहेड़ी" ;

() क्रम संख्यांक 82 के अंत में, निम्नलिखित अंक और शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात् :416....देवबंद"-

() क्रम संख्यांक 84 के अंत में, निम्नलिखित अंक, शब्द और अक्षर अंतःस्थापित किए जाएंगे,-415....नागल (अ०जा०)"

(ii) भाग में-सभा निर्वाचन-क्षेत्र,-

क्रम संख्यांक 1 से 16 (जिनमें दोनों सम्मिलित हैं) और क्रम संख्यांक 420 से 425 (जिनमें दोनों सम्मिलित हैं) तथा उनसे संबंधित प्रविष्टियों का लोप किया जाएगा

 अनुसूची 22 के पश्चात् निम्नलिखित अन्तः स्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-

अनुसूची 22

उत्तरांचल

भाग -संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र

क्रम सं०

सभा निर्वाचन-क्षेत्र के रूप में नाम और विस्तार

1.

टिहरी गढ़वाल-1-उत्तरकाशी (अ०जा०) 2-टिहरी, 3-देवप्रयाग, 4-मसूरी और 5-चकराता (अ०ज०जा०)

2.

गढ़वाल-6-लैंसडाउन, 7-पौड़ी, 8-कर्णप्रयाग, 9-बद्री केदार और 10-देहरादून

3.

अल्मोड़ा-11-डीडीहाट, 12-पिथौरागढ़, 13-अल्मोड़ा, 14-बागेश्वर (अ०जा०), 15-रानीखेत

4.

नैनीताल-16-नैनीताल, 17-खटिमा (अ०जा०), 18-हलद्वानी और 19-काशीपुर

5.

हरिद्वार (अ०जा०)-20-रूड़की, 21-लक्सर और 22-हरिद्वार"

 

भाग -सभा निर्वाचन-क्षेत्र

क्रम सं०

निर्वाचन-क्षेत्र का नाम और विस्तार

 

उत्तरांचल राज्य में प्रत्येक जिले में निर्वाचन-क्षेत्रों के नाम और विस्तार के बारे में विस्तृत विवरण निर्वाचन आयोग द्वारा परिसीमित रूप में होंगे

तीसरी अनुसूची

(धारा 19 देखिए)

परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1951 में उपांतरण

परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1951 से संलग्न सारणी के स्थान पर निम्नलिखित सारणी रखी जाएगी, अर्थात् :-

सारणी

निर्वाचन-क्षेत्र का नाम

निर्वाचन-क्षेत्र का विस्तार

स्थानों की संख्या

1

2

3

 

स्नातक निर्वाचन-क्षेत्र

 

1.

बरेली-मुरादाबाद मण्डल स्नातक

बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, ज्योतिबाफूले नगर और बिजनौर जिले

1

2.

लखनऊ मण्डल स्नातक   

लखनऊ, हरदोई, खीरी, सीतापुर, बाराबंकी, रायबरेली और प्रतापगढ़ जिले

1

3.

गोरखपुर-फैजाबाद मण्डल स्नातक

बहराईच, श्रावस्ती, गौंडा, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, संतकबीर नगर, गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, सुल्तानपुर, फैजाबाद और अम्बेडकर नगर जिले

1

4.

वाराणसी मण्डल

स्नातक बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, चंदौली, सन्त रविदास नगर, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले

1

5.

इलाहाबाद-झांसी मण्डल स्नातक

इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी और ललितपुर जिले

1

6.

कानपुर स्नातक

कानपुर नगर और कानपुर देहात तथा उन्नाव जिले

1

7.

आगरा मण्डल स्नातक

आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, एटा, मैनपुरी, इटावा, कन्नोंज, औरेया और फर्रुखाबाद जिले

1

8.

मेरठ मण्डल स्नातक

बुलन्दशहर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिले

1

 

1

2

3

 

 

अध्यापक निर्वाचन-क्षेत्र

 

1.

बरेली-मुरादाबाद मण्डल अध्यापक

बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, ज्योतिबाफूले नगर और बिजनौर जिले

1

2.

लखनऊ मण्डल अध्यापक

लखनऊ, हरदोई, खीरी, सीतापुर, बाराबंकी, रायबरेली और प्रतापगढ़ जिले

1

3.

गोरखपुर-फैजाबाद मण्डल अध्यापक

बहराईच, श्रावस्ती, गौंडा, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, सुल्तानपुर, फैजाबाद और अम्बेडकर नगर जिले

1

4.

वाराणसी मण्डल अध्यापक

बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, चन्दौली, संत रविदास नगर, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले

1

5.

इलाहाबाद-झांसी मण्डल अध्यापक

इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी और ललितपुर जिले

1

6.

कानपुर अध्यापक

कानपुर नगर और कानपुर देहात और उन्नाव जिले

1

7.

आगरा मण्डल अध्यापक

आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, एटा, मैनपुरी, इटावा, कन्नोंज, औरेया और फर्रुखाबाद जिले

1

8.

मेरठ मण्डल अध्यापक

बुलन्दशहर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिले

1

 

 

स्थानीय प्राधिकरण निर्वाचन-क्षेत्र

 

1.

मुरादाबाद-बिजनौर स्थानीय प्राधिकरण

मुरादाबाद, ज्योतिबाफूले नगर और बिजनौर जिले

1

2.

रामपुर-बरेली स्थानीय प्राधिकरण

रामपुर और बरेली जिले

1

3.

बदायूं स्थानीय प्राधिकरण

बदायूं जिला

1

4.

पीलीभीत-शाहजहांपुर स्थानीय प्राधिकरण

पीलीभीत और शाहजहांपुर जिले

1

5.

हरदोई स्थानीय प्राधिकरण

हरदोई जिला

1

6.

खीरी स्थानीय प्राधिकरण

खीरी जिला

1

7.

सीतापुर स्थानीय प्राधिकरण

सीतापुर जिला

1

8.

लखनऊ-उन्नाव स्थानीय प्राधिकरण

लखनऊ और उन्नाव जिले

1

9.

रायबरेली स्थानीय प्राधिकरण

रायबरेली जिला

1

10.

प्रतापगढ़ स्थानीय प्राधिकरण

प्रतापगढ़ जिला

1

11.

सुल्तानपुर स्थानीय प्राधिकरण

सुल्तानपुर जिला

1

12.

बाराबंकी स्थानीय प्राधिकरण

बाराबंकी जिला

1

 

1

2

3

13.

बहराईच स्थानीय प्राधिकरण

बहराईच और श्रावस्ती जिले

1

14.

गोंडा स्थानीय प्राधिकरण 

गोंडा जिला

1

15.

फैजाबाद स्थानीय प्राधिकरण

फैजाबाद और अम्बेडकर नगर जिले

1

16.

बस्ती-सिद्धार्थ नगर स्थानीय प्राधिकरण

बस्ती, संतकबीर नगर और सिद्धार्थ नगर जिले

1

17.

गोरखपुर-महाराजगंज स्थानीय प्राधिकरण

गोरखपुर और महाराजगंज जिले

1

18.

देवरिया स्थानीय प्राधिकरण

देवरिया और कुशीनगर जिले

1

19.

आजमगढ़-मऊ स्थानीय प्राधिकरण

आजमगढ़ और मऊ जिले

1

20.

बलिया स्थानीय प्राधिकरण

बलिया जिला

1

21.

गाजीपुर स्थानीय प्राधिकरण

गाजीपुर जिला

1

22.

जौनपुर स्थानीय प्राधिकरण

जौनपुर जिला

1

23.

वाराणसी स्थानीय प्राधिकरण

वाराणसी, चन्दौली और संत रविदासनगर जिले

1

24.

मिर्जापुर-सोनभद्र स्थानीय प्राधिकरण

मिर्जापुर और सोनभद्र जिले

1

25.

इलाहाबाद स्थानीय प्राधिकरण

इलाहाबाद और कौशाम्बी जिले

1

26.

बांदा-हमीरपुर स्थानीय प्राधिकरण

बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा जिले

1

27.

झांसी-जालौन-ललितपुर स्थानीय प्राधिकरण

जालौन, झांसी और ललितपुर जिले

1

28.

कानपुर-फतेहपुर स्थानीय प्राधिकरण

कानपुर नगर और कानपुर देहात तथा फतेहपुर जिले

1

29.

इटावा-फर्रुखाबाद स्थानीय प्राधिकरण

इटावा-फर्रुखाबाद, कन्नोंज और औरेया जिले

1

30.

आगरा-फिरोजाबाद स्थानीय प्राधिकरण

आगरा और फिरोजाबाद जिले

1

31.

मथुरा-एटा-मैनपुरी स्थानीय प्राधिकरण

मथुरा, एटा और मैनपुरी जिले

2

32.

अलीगढ़ स्थानीय प्राधिकरण

अलीगढ़ और हाथरस जिले

1

33.

बुलन्दशहर स्थानीय प्राधिकरण

बुलन्दशहर और गौतमबुद्ध नगर जिले

1

 

1

2

3

34.

मेरठ-गाजियाबाद स्थानीय प्राधिकरण

मेरठ, बागपत और गाजियाबाद जिले

1

35.

मुजफ्फरनगर-सहारनपुर स्थानीय प्राधिकरण

मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिले

1

चौथी अनुसूची

(धारा 20 देखिए)

                उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के ऐसे सदस्यों की सूची जो नियत दिन को ऐसे सदस्य नहीं रहेंगे और अनन्तिम विधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे-

1. श्री नित्यानन्द स्वामी

2. डा० (श्रीमती) इंदिरा हृदयेश

3. श्री नारायण सिंह राणा

4. श्री तीर्थ सिंह रावत

5. श्री श्रीप्रकाश पन्त

6. श्री देवेन्द्र शास्त्री

7. श्रीमती निरूपमा गौड़

8. श्री भगत सिंह कोश्यारी

9. श्री ईशम सिंह

पांचवीं अनुसूची

(धारा 24 देखिए)

संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 का संशोधन

संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में,-

() पैरा 2 में, 23" अंकों के स्थान पर, 24" अंक रखे जाएंगे ;

() अनुसूची में, भाग 23 के पश्चात् निम्नलिखित अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-

भाग 24-उत्तरांचल

1. अगरिया

2. बधिक

3. बादी

4. बहेलिया

5. बैगा

6. बैसवार

7. बजनिया

8. बाजगी

9. बलहर

10. बलाई

11. बाल्मीकि

12. बंगाली

13. बनमानुष

14. बांसफोड़

15. बरवार

16. बसोर

17. बावरिया

18. बेलदार

19. बेरिया

20. भंतू

21. भईया

22. भुइयार

23. बोरिया

24. चमार, धुसिया, झुसिया, जाटव

25. चेरो

26. दबगर

27. धागंड़

28. धानुक

29. धरकार

30. धोबी

31. डोम

32. डोमर

33. दुसाध

34. धरमी

35.  धारिया

36. गोंड

37. ग्वाल

38. हबूड़ा

39. हरी

40. हेला

41. कलाबाज

42. कंजड़

43. कपड़िया

44. करवल

45. खरैता

46. खरवार (बनबासी को छोड़कर)

47. खटीक

48. खरोट

49. कोल

50. कोरी

51. कोरवा

52. लालबेगी

53. मझवार

54. मजहबी

55. मुसहर

56. नट

57. पंखा

58. परहिया

59. पासी, तरमाली

60. पतरी

61. सहरिया

62. सनोरिया

63. सांसिया

64. शिल्पकार

65. तुरैहा "

छठी अनुसूची

(धारा 25 देखिए)

संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 का संशोधन

संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 में,-

() पैरा 2 में, 20" अंकों के स्थान पर 21" अंक रखे जाएंगे;

() अनुसूची में, भाग 20 के पश्चात् निम्नलिखित भाग अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-

भाग 21-उत्तरांचल

1. भोटिया

2. बुक्सा

3. जन्नासरी

4. राजी

5. थारू "

सातवीं अनुसूची

(धारा 47 देखिए)

निधियों की सूची

1. अवमूल्यन रक्षित निधि-सिंचाई

2. अवमूल्यन रक्षित निधि-राजकीय मुद्रणालय

3. अवमूल्यन रक्षित निधि-सूक्ष्म उपयंत्र निर्माणशाला

4. ग्राम्य विकास निधि

5. अकाल राहत निधि

6. शक्कर शोध और श्रमिक आवास व्यवस्था निधि

7. जमींदारी उन्मूलन निधि

8. उत्तर प्रदेश सड़क निधि

9. अस्पताल निधि

10. अध्यापक आनुतोषिक निधि

11. राज्य पुल निधि

12. सामान्य बीमा निधि

13. नजूल निधि

14. राज्य सहकारिता विकास निधि

15. कृषि उधार सहायता और प्रत्याभूति निधि

16. किसान सहायता निधि

17. मूल्य ह्रास आरक्षित निधि-बिजली

18. आकस्मिकता आरक्षित निधि-बिजली

19. शक्कर फैक्ट्री पुनर्स्थापन, आधुनिकीकरण तथा स्थापना निधि

20. गन्ना अनुसंधान और विकास निधि

21. राज्य विकास ऋणों एवं जमींदारी विनाश प्रतिकर बंध के विमोचन से संबंधित समेकित ऋणशोधन निधियां

22. पुलिस गृह निर्माण निधि

23. चतुर्थ श्रेणी गृह निर्माण निधि

24. सरकारी कर्मचारी आवास निधि

25. संतुलित क्षेत्रीय विकास निधि

26. उत्तर प्रदेश युवा कल्याण निधि

27. उत्तर प्रदेश छात्र कल्याण निधि

28. भाषा निधि

29. पुलिस कल्याण निधि

30. आचार्य नरेन्द्र देव निधि

31. आपदा राहत निधि

32. पूर्वांचल विकास निधि

33. बुंदेलखंड विकास निधि

34. गन्ना कीमत के संदाय के लिए ऋण सहायता निधि

35. रुग्ण औद्योगिक इकाइयों के उत्पादकता शोध एवं आधुनिकीकरण राहत निधि

36. सचिवालय निधि

37. विधायक निधि

आठवीं अनुसूची

(धारा 54 देखिए)

पेंशनों की बाबत दायित्व का प्रभाजन

1. पैरा 3 में वर्णित समायोजनों के अधीन रहते हुए, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा नियत दिन के पूर्व अनुदत्त पेंशनों की बाबत प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य अपने-अपने खजानों में से दी जाने वाली पेंशनें संदत्त करेगा

2. उक्त समायोजनों के अधीन रहते हुए विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलापों के संबंध में सेवा करने वाले उन अधिकारियों की पेंशनों के बारे में दायित्व, जो नियत दिन के पूर्व सेवानिवृत्त होते हैं या सेवानिवृत्ति पूर्व छुट्टी पर चले जाते हैं किन्तु पेशनों के लिए जिनके दावे उस दिन के ठीक पूर्व बकाया हैं, उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व होगा

3. नियत दिन से आंरभ होने वाली और नियत दिन के पश्चात् ऐसी तारीख को जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत की जाए, समाप्त होने वाली अवधि की बाबत तथा प्रत्येक पश्चात्वर्ती वित्तीय वर्ष की बाबत पैरा 1 और 2 में निर्दिष्ट पेंशनों के बारे में सब उत्तरवर्ती राज्यों को किए गए कुल संदायों को संगणना में लिया जाएगा पेंशनों की बाबत विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कुल दायित्व का उत्तरवर्ती राज्यों के बीज प्रभाजन जनसंख्या के अनुपात में किया जाएगा और अपने द्वारा देय अंश से अधिक का संदाय करने वाले किसी उत्तरवर्ती राज्य की आधिक्य रकम की प्रतिपूर्ति उत्तरवर्ती राज्य या कम संदाय करने वाले राज्य द्वारा की जाएगी

4. नियत दिन के पूर्व अनुदत्त की गई और विद्यमान राज्य के राज्यक्षेत्र से बाहर किसी भी क्षेत्र में दी जाने वाली पेंशनों के बारे में विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व, पैरा 3 के अनुसार किए जाने वाले समायोजनों के अधीन रहते हुए उत्तर प्रदेश राज्य का दायित्व होगा, मानो ऐसी पेंशनें पैरा 1 के अधीन उत्तर प्रदेश राज्य के किसी खजाने से ली गई हों

5. (1) विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में नियत दिन के ठीक पूर्व सेवा करने वाले और उस दिन या उसके पश्चात् सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी की पेंशन के बारे में दायित्व उसे पेंशन अनुदत्त करने वाले उत्तरवर्ती राज्य का दायित्व होगा, किंतु किसी ऐसे अधिकारी को विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा के कारण तात्पर्यित पेंशन का उत्तरवर्ती राज्यों में जनसंख्या के अनुपात में आंबटित किया जाएगा और पेंशन अनुदत्त करने वाली सरकार, अन्य उत्तरवर्ती राज्यों में से प्रत्येक राज्य से इस दायित्व का उसका अंश प्राप्त करने की हकदार होगी

(2) यदि ऐसा कोई अधिकारी नियत दिन के पश्चात् पेंशन अनुदत्त करने वाले राज्य से भिन्न एक से अधिक उत्तरवर्ती राज्य के कार्यकलापों के संबंध में सेवा करता रहा हो, तो पेंशन अनुदत्त करने वाला राज्य उस सरकार को ऐसी रकम की प्रतिपूर्ति करेगा जिसके द्वारा पेंशन की रकम अनुदत्त की गई है, जिसको नियत दिन के पश्चात् की उसकी सेवा के कारण तात्पर्यित पेंशन के भाग का वही अनुपात हो, जो प्रतिपूर्ति करने वाले राज्य के अधीन नियत दिन के पश्चात् की उसकी अर्हक सेवा का उस अधिकारी को उसकी पेंशन के प्रयोजनार्थ परिकलित नियत दिन के पश्चात् की कुल सेवा का है

6. इस अनुसूची में पेंशन के प्रति निर्देश का अर्थ इस प्रकार लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत पेंशन संराशीकृत मूल्य के प्रति निर्देश भी है

नौवीं अनुसूची

(धारा 66 देखिए)

सरकारी कंपनियों की सूची

क्र० सं०

सरकारी कम्पनी का नाम

पता

(1)

(2)

(3)

1.

उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम लिमिटेड

भूमित्र भवन, 19-बी विभूति खंड, गोमती नगर, लखनऊ

2.

उत्तर प्रदेश कृषि औद्योगिक निगम लिमिटेड

22, विधान सभा मार्ग, लखनऊ

3.

उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्तीय निगम लिमिटेड

सातवां तल, जवाहर भवन, लखनऊ

4.

उत्तर प्रदेश इलैक्ट्रोनिक निगम लिमिटेड

नवचेतना केन्द्र, अशोक मार्ग, लखनऊ

5.

उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड

12वां तल, विकास दीप, स्टेशन रोड़, लखनऊ

6.

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड

4-बी, गोखले मार्ग लखनऊ

7.

उत्तर प्रदेश चर्म विकास और विपणन निगम लिमिटेड

16/58-सदर भट्टी, आगरा

8.

उत्तर प्रदेश निर्यात निगम लिमिटेड

2, राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ

9.

उत्तर प्रदेश राज्य खाद्य और आवश्यक वस्तु निगम लिमिटेड

17, गोखले मार्ग, लखनऊ

10.

उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड

110-इन्डस्ट्रियल ऐस्टेट, फजलगंज, कानपुर

11.

उत्तर प्रदेश राज्य हथकरघा निगम लिमिटेड

हथकरघा भवन, जी० टी० रोड़, कानपुर

12.

उत्तर प्रदेश पुलिस आवास निगम लिमिटेड   

-81, विजय खंड 2, गोमती नगर,लखनऊ

13.

उत्तर प्रदेश प्रांतीय औद्योगिक विनिधान (पिकप) निगम लिमिटेड

पिकप भवन, गोमती नगर, लखनऊ

14.

दि इंडियन टरपेनटाइन एण्ड रोज़िन कम्पनी लिमिटेड

क्लक्टर बक गंज, बरेली

15.

उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम लिमिटेड

चुर्क, सोनभद्र

16.

उत्तर प्रदेश राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड

कपूरथला काम्पलेक्स, अलीगंज, लखनऊ

17.

उत्तर प्रदेश राज्य वस्त्र निगम लिमिटेड

वस्त्र भवन, शारदा नगर, कानपुर

18.

उत्तर प्रदेश राज्य उद्योग विकास निगम लिमिटेड

-1/4, लखनपुर पो० बा० नं० 1150, कानपुर

(1)

(2)

(3)

19.

उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट एण्ड ट्यूबवेल्स कार्पोरेशन लिमिटेड

लैफ्ट बैंक, गोमती बैराज, गोमती नगर, लखनऊ

20.

उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम लिमिटेड

बी-2/5, विकास खंड, गोमती नगर, लखनऊ

21.

उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लिमिटेड

4/13-14, विवेक खंड, गोमती नगर, लखनऊ

22.

उत्तर प्रदेश पंचायती राज वित्त निगम लिमिटेड

सी-232, निराला नगर, लखनऊ

23.

उत्तर प्रदेश पशु-धन उद्योग निगम लिमिटेड

सेंट्रल डेरी फार्म, अलीगढ़

24.

उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड

पी सी एफ बिल्डिंग, चतुर्थ तल, स्टेशन रोड, लखनऊ

25.

उत्तर प्रदेश पाल्ट्री एण्ड लाइवस्टाकस्पेशियलिटीज लिमिटेड

कैम्पस ऐनिमल हसबेंडरी, बादशाहबाग, लखनऊ

26.

उत्तर प्रदेश विकास प्रणाली निगम लिमिटेड

9, सरोजनी नायडू मार्ग, लखनऊ

27.

उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम लिमिटेड

16, मदन मोहन मालवीय मार्ग, लखनऊ

28.

उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड

विश्वसरैया भवन, गोमती नगर, लखनऊ

29.

उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति/जनजाति विकास निगम लिमिटेड

बी-912, सेक्टर-सी, महानगर, लखनऊ

30.

उत्तर प्रदेश समाज कल्याण निर्माण निगम लिमिटेड

लेखराज मार्केट, इन्द्रा नगर, लखनऊ

31.

उत्तर प्रदेश भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड

54 एक्स, जोप्लिंग रोड, लखनऊ

32.

उत्तर प्रदेश (मध्य) गन्ना बीज विकास निगम लिमिटेड

न्यू वेरीरोड़, गन्ना आयुक्त के कार्यालय के पास, लखनऊ

33.

उत्तर प्रदेश (पश्चिम) गन्ना बीज विकास निगम लिमिटेड

सरकुलर रोड, गन्ना किसान संस्थान के पास, मुजफ्फरनगर

34.

उत्तर प्रदेश (पूर्व) गन्ना बीज विकास निगम लिमिटेड

एचआइजी-वी-I, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल नगर, देवरिया

35.

उत्तर प्रदेश (रुहेलखंड तराई) गन्ना बीज विकास निगम लिमिटेड

26, 27 बी० डी० ए० कालोनी, शाहमतगंज, बरेली

36.

उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड

विपिन खंड, ताज होटल के पास, गोमती नगर, लखनऊ

37.

उत्तर प्रदेश पर्यटन निगम लिमिटेड 

चित्राहार-3, नवल किशोर रोड, लखनऊ

38.

गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड

74, राजपुर रोड, देहरादून

39.

कुमायूं मंडल विकास निगम लिमिटेड

ओकपार्क हाउस, मल्ली ताल, नैनीताल

(1)

(2)

(3)

40.

उत्तर प्रदेश पर्वतीय इलैक्ट्रानिक निगम लिमिटेड

बी-2/140, विशाल खंड, गोमती नगर, लखनऊ

41.

उत्तर प्रदेश वक्फ विकास निगम लिमिटेड

प्रथम तल 118, जवाहर भवन, लखनऊ

42.

उत्तर प्रदेश बीज और तराई डवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड

हल्दी पंत नगर, ऊधम सिंह नगर

43.

कुमायूं अनुसूचित जनजाति विकास निगम लिमिटेड

राजमहल होटल परिसर, मल्लीताल, नैनीताल

44.

गढ़वाल अनुसूचित जनजाति विकास निगम लिमिटेड

74, राजपुर रोड, देहरादून

दसवीं अनुसूची

(धारा 71 देखिए)

कतिपय राज्य संस्थाओं में सुविधाओं का जारी रहना

प्रशिक्षण संस्थाओं/केन्द्रों की सूची

1. उत्तर प्रदेश प्रशासन अकादमी, नैनीताल  

2. उत्तर प्रदेश राज्य प्रेक्षणालय, नैनीताल

3. उत्तर प्रदेश प्रबंध विकास संस्थान, लखनऊ

4. न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, लखनऊ

5. डा० बी० आर० अम्बेडकर पुलिस अकादमी, मुरादाबाद

6. पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय-2, मुरादाबाद

7. पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय-3, गोरखपुर  

8. सशस्त्र प्रशिक्षण केन्द्र, सीतापुर

9. पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, मुरादाबाद

10. पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, गोरखपुर

11. रंगरूट प्रशिक्षण केन्द्र, चुनार, मिर्जापुर

12. पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, उन्नाव

13. संपूर्णानन्द कारागार प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ

14. सचिवालय प्रशिक्षण और प्रबंध संस्थान, लखनऊ

15. राजा टोडरमल सर्वेक्षण और भूमि अभिलेख संस्थान, हरदोई

16. भू-चकबन्दी प्रशिक्षण महाविद्यालय, अयोध्या, फैजाबाद

17. प्रदेशीय अभियन्ता प्रशिक्षण संस्थान, कालागढ़

18. उत्तर प्रदेश जल और भूमि प्रबंध संस्थान, लखनऊ

19. वित्तीय प्रबंध प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, लखनऊ

20. सहकारी और पंचायत लेखापरीक्षक प्रशिक्षण केन्द्र, अयोध्या, फैजाबाद  

21. स्थानीय निधि लेखा और लेखापरीक्षा प्रशिक्षण संस्थान, इलाहाबाद

22. व्यापार कर अधिकारी प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ   

23. राज्य विद्युत बोर्ड प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून

24. उ० प्र० राज्य विद्युत बोर्ड कर्मचारिवृन्द महाविद्यालय, देहरादून  

25. तापीय विद्युत प्रशिक्षण संस्थान, उ०प्र० रा० वि० बी०, ओबरा, (सोनभद्र)

26. केन्द्रीय नागरिक सुरक्षा प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ

27. दीन दयाल उपाध्याय राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, बक्शी का तालाब, लखनऊ  

28. लघु-सिंचाई प्रबंध और जल प्रबंध प्रशिक्षण केन्द्र, बक्शी का तालाब, लखनऊ   

29. श्रीमती इंदिरा गांधी सहकारी संस्थान, लखनऊ   

30. सहकारी प्रशिक्षण महाविद्यालय, देहरादून  

31. कृषि सहकारी कर्मचारिवृन्द प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ

32. सहकारी, निगमित प्रबंध शोध और प्रशिक्षण संस्थान, इंद्रा नगर, लखनऊ  

33. उत्तर प्रदेश गन्ना विकास संस्थान, लखनऊ

34. उत्तर प्रदेश परिवहन निगम प्रशिक्षण संस्थान, कानपुर

35. उत्तर प्रदेश राज्य शिक्षा शोध और प्रशिक्षण बोर्ड, इलाहाबाद

36. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति शोध और प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ

37. होटल प्रबंध और खान-पान संस्थान, देहरादून

38. शोध, विकास और प्रशिक्षण संस्थान, कानपुर

39. उत्तर प्रदेश आबकारी प्रशिक्षण संस्थान, राय बरेली  

40. केन्द्रीय कर्मकार शिक्षा बोर्ड, कानपुर

41. राज्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान, इंदिरा नगर, लखनऊ

42. अधिकारियों के निरीक्षक का कार्यालय, इलाहाबाद

43. राज्य योजना संस्थान, प्रशिक्षण खंड, कालाकंकर हाउस, ओल्ड हैदराबाद, लखनऊ

44. उद्यम विकास संस्थान, लखनऊ

45. होटल प्रबन्ध एवं खानपान संस्थान, अल्मोड़ा

46. मोती लाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालेज, इलाहाबाद

47. राज्य वास्तुकला महाविद्यालय, लखनऊ

48. केन्द्रीय टेक्सटाइल संस्थान, कानपुर

49. इंजीनियरी और ग्रामीण प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद

50. उत्तर क्षेत्रीय प्रिटिंग प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद

51. खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, 8, तिलक मार्ग, लखनऊ

52. डा० अम्बेडकर विकलांग प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर

53. राजकीय चमड़ा संस्थान, आगरा

54. राजकीय चमड़ा संस्थान, कानपुर

55. संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद्, लखनऊ

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