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राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 ( Presidential and Vice-Presidential Elections Act, 1952 )


 

राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952

(1952 का अधिनियम संख्यांक 31)

[14 मार्च, 1952]

भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों

के लिए निर्वाचनों से संबद्ध या

संसक्त कतिपय विषयों

को विनियमित

करने के लिए

अधिनियम

 

संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

 

भाग 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम- यह अधिनियम राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 कहा जा सकेगा ।

2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “अनुच्छेद" से संविधान का अनुच्छेद अभिप्रेत है ;

(ख) “निर्वाचन" से राष्ट्रपतीय निर्वाचन या उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अभिप्रेत है ;

(ग) “निर्वाचन आयोग" से राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 324 के अधीन नियुक्त निर्वाचन आयोग अभिप्रेत है ;

(घ) “निर्वाचक" से राष्ट्रपतीय निर्वाचन के संबंध में अनुच्छेद 54 में निर्दिष्ट निर्वाचकगण का सदस्य अभिप्रेत है और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन के संबंध में  [अनुच्छेद 66 में निर्दिष्ट निर्वाचकगण का सदस्य] अभिप्रेत है ;

(ङ) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

(च) “राष्ट्रपतीय निर्वाचन" से भारत के राष्ट्रपति के पद के भरे जाने के लिए निर्वाचन अभिप्रेत है ;

 [(चच) “लोक अवकाश-दिन" से ऐसा दिन अभिप्रेत है जो परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (1881 का 26) की धारा 25 के प्रयोजनों के लिए लोक अवकाश-दिन है;] 

(छ) “रिटर्निंग आफिसर" के अंतर्गत उस किसी कृत्य का पालन करने वाला सहायक रिटर्निंग आफिसर आता है जिसका पालन करने के लिए वह धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन  [सक्षम] है ;

(ज) “उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन" से भारत के उपराष्ट्रपति के पद के भरे जाने के लिए निर्वाचन अभिप्रेत है ।

भाग 2

राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचनों का संचालन

3. रिटर्निंग आफिसर और उसके सहायक-(1) निर्वाचन आयोग हर एक निर्वाचन के प्रयोजन के लिए केंद्रीय सरकार के परामर्श से, एक रिटर्निंग आफिसर नियुक्त करेगा जिसका कार्यालय नई दिल्ली में होगा और एक या अधिक सहायक रिटर्निंग आफिसर भी नियुक्त कर सकेगा ।

(2) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए, हर सहायक रिटर्निंग आफिसर रिटर्निंग आफिसर के सब कृत्यों या उनमें से किसी के पालन के लिए सक्षम होगा ।

4. नामनिर्देशनों आदि के लिए तारीखों का नियत किया जाना- [(1) निर्वाचन आयोग, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, हर निर्वाचन के लिए- 

(क) नामनिर्देशन करने की अंतिम तारीख नियत करेगा, जो इस उपधारा के अधीन अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख के पश्चात् चौदहवें दिन की तारीख होगी, या यदि वह दिन लोक अवकाश-दिन है, तो उसके ठीक अगले दिन की तारीख होगी जो लोक अवकाश-दिन न हो ;

(ख) नामनिर्देशन की संवीक्षा की तारीख नियत करेगा, जो नामनिर्देशन करने की अंतिम तारीख के ठीक बाद के दिन की, या यदि वह दिन लोक अवकाश-दिन है, तो उसके ठीक अगले दिन की तारीख होगी जो लोक अवकाश-दिन न हो ;

(ग) अभ्यर्थिता वापस लेने की अंतिम तारीख नियत करेगा, जो नामनिर्देशनों की संवीक्षा की तारीख के पश्चात् दूसरे दिन की, या यदि वह दिन लोक अवकाश-दिन है, तो उसके ठीक अगले दिन की तारीख होगी जो लोक अवकाश-दिन न हो ;

(घ) वह तारीख नियत करेगा जिसको मतदान, यदि आवश्यक हो तो, होगा और जो ऐसी तारीख होगी जो अभ्यर्थिता वापस लेने की अंतिम तारीख के पश्चात् पंद्रहवें दिन से पहले की तारीख न होगी ।]

(2) प्रथम राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचनों की दशा में, उपधारा (1) के अधीन की अधिसूचनाएं संसद् के दोनों सदनों के गठन के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र निकाली जाएंगी ।

(3) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की पदावधि के अवसान से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन की दशा में, उपधारा (1) के अधीन की अधिसूचना, यथास्थिति, पदावरोही राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की पदावधि के अवसान से पूर्व के साठवें दिन को या उसके पश्चात् सुविधापूर्वक जितनी शीघ्र निकाली जा सके निकाली जाएगी और उक्त उपधारा के अधीन तारीख ऐसे नियत की जाएगी कि निर्वाचन ऐसे समय में पूरा हो जाए कि तद्द्वारा निर्वाचित राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति अपना पदग्रहण, यथास्थिति, पदावरोही राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की पदावधि के अवसान के अगले दिन को कर सके ।

(4) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने अथवा अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्ति के भरे जाने के लिए निर्वाचन की दशा में, उपधारा (1) के अधीन की अधिसूचना ऐसी रिक्ति के होने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र निकाली जाएगी ।

 [5. निर्वाचन की लोक सूचना-धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना के जारी किए जाने पर निर्वाचन का रिटर्निंग आफिसर आशयित निर्वाचन की, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से जिसे विहित किया जाए, लोक सूचना देगा, जिसमें ऐसे निर्वाचन के लिए अभ्यर्थियों के नामनिर्देशन आमंत्रित किए जाएंगे और वह स्थान विनिर्दिष्ट किया जाएगा जहां पर नामनिर्देशन पत्र परिदत्त किए जाने हैं ।

5क. अभ्यर्थियों का नामनिर्देशन-कोई भी व्यक्ति, जो राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद के लिए निर्वाचित होने के लिए संविधान के अधीन अर्हित है, उस पद के निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया जा सकेगा ।

5ख. नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत करना और विधिमान्य नामनिर्देशन के लिए अपेक्षाएं- (1) धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन नियत की गई तारीख को या उसके पूर्व, प्रत्येक अभ्यर्थी, या तो स्वयं या अपने प्रस्थापकों अथवा समर्थकों में से किसी के द्वारा, रिटर्निंग आफिसर को, धारा 5 के अधीन जारी की गई लोक सूचना में विनिर्दिष्ट स्थान पर, पूर्वाह्न ग्यारह बजे और अपराह्न तीन बजे के बीच, विहित प्ररूप में भरा गया नामनिर्देशन पत्र परिदत्त करेगा जिस पर अभ्यर्थी के नामनिर्देशन की अनुमति देते हुए हस्ताक्षर होंगे तथा,-

(क) राष्ट्रपतीय निर्वाचन की दशा में, कम से कम  [पचास निर्वाचकों] के प्रस्थापकों के रूप में और कम से कम                 3[पचास निर्वाचकों] के समर्थकों के रूप में भी हस्ताक्षर होंगे ;

(ख) उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन की दशा में, कम से कम  [बीस निर्वाचकों] के प्रस्थापकों के रूप में और कम से कम               4[बीस निर्वाचकों] के समर्थकों के रूप में भी हस्ताक्षर होंगे :

परंतु कोई भी नामनिर्देशन पत्र रिटर्निंग आफिसर को किसी ऐसे दिन प्रस्तुत नहीं किया जाएगा जो लोक अवकाश-दिन है ।

(2) प्रत्येक नामनिर्देशन पत्र के साथ उस संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र की, जिसमें अभ्यर्थी निर्वाचक के रूप में रजिस्ट्रीकृत है, निर्वाचक नामावली में अभ्यर्थी से संबंधित प्रविष्टि की एक प्रमाणित प्रति होगी ।

(3) रिटर्निंग आफिसर किसी ऐसे नामनिर्देशन पत्र को स्वीकार नहीं करेगा जो किसी दिन पूर्वाह्न ग्यारह बजे से पहले और अपराह्न तीन बजे के पश्चात् प्रस्तुत किया   जाए ।

(4) जो नामनिर्देशन पत्र धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन नियत की गई अंतिम तारीख को अपराह्न तीन बजे के पहले प्राप्त नहीं होता है या जिसके साथ इस धारा की उपधारा (2) में निर्दिष्ट प्रमाणित प्रति संलग्न नहीं है, वह नामंजूर कर दिया जाएगा और ऐसी नामंजूरी से संबंधित एक संक्षिप्त टिप्पण उस नामनिर्देशन पत्र पर ही अभिलिखित किया  जाएगा ।

(5) कोई निर्वाचक उसी निर्वाचन में, चाहे प्रस्थापक के रूप में या समर्थक के रूप में, एक से अधिक नामनिर्देशन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेगा और यदि वह एक से अधिक नामनिर्देशन पत्र पर हस्ताक्षर करता है तो प्रथम परिदत्त नामनिर्देशन पत्र से भिन्न किसी भी नामनिर्देशन पत्र पर उसका हस्ताक्षर निष्प्रभाव होगा ।

(6) इस धारा की कोई बात किसी अभ्यर्थी के एक ही निर्वाचन के लिए एक से अधिक नामनिर्देशन पत्रों द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने को नहीं रोकेगी :

परंतु किसी अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से चार से अधिक नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत नहीं किए जाएंगे या रिटर्निंग आफिसर द्वारा स्वीकार नहीं किए जाएंगे ।

5ग. निक्षेप-(1) किसी अभ्यर्थी को निर्वाचन के लिए तब तक सम्यक्तः नामनिर्दिष्ट नहीं समझा जाएगा जब तक वह                [पंद्रह हजार रुपए] की राशि निक्षिप्त नहीं करता या कराता है :

परंतु जहां एक ही निर्वाचन में कोई अभ्यर्थी एक से अधिक नामनिर्देशन पत्रों द्वारा नामनिर्दिष्ट किया गया है, वहां इस उपधारा के अधीन उससे एक से अधिक निक्षेप की अपेक्षा नहीं की जाएगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन निक्षिप्त किए जाने के लिए अपेक्षित राशि के बारे में तब तक यह नहीं समझा जाएगा कि वह उस उपधारा के अधीन निक्षिप्त की गई है, जब तक कि अभ्यर्थी ने धारा 5ख की उपधारा (1) के अधीन नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत करने के समय, वह राशि रिटर्निंग आफिसर के पास नकद निक्षिप्त न कर दी हो या निक्षिप्त न करा दी हो अथवा नामनिर्देशन पत्र के साथ एक रसीद संलग्न न कर दी हो, जिसमें यह दर्शित किया गया हो कि उक्त राशि भारतीय रिजर्व बैंक में या किसी सरकारी खजाने में उसके द्वारा या उसकी ओर से निक्षिप्त कर दी गई है ।

5घ. नामनिर्देशनों की सूचना और उनकी संवीक्षा का समय और स्थान-नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत किए जाने पर रिटर्निंग आफिसर-

(क) उसमें नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत किए जाने की तारीख और समय का कथन अपने हस्तलेख से प्रमाणित करेगा तथा उस पर उसका क्रम संख्यांक दर्ज करेगा ;

(ख) नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को नामनिर्देशनों की संवीक्षा के लिए नियत की गई तारीख, समय और स्थान की सूचना देगा ; तथा

(ग) खंड (क) के अधीन यथाप्रमाणित और संख्यांकित नामनिर्देशन पत्र की एक प्रति अपने कार्यालय में किसी सहजदृश्य स्थान पर लगवाएगा ।

5ङ. नामनिर्देशनों की संवीक्षा-(1) धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन नामनिर्देशनों की संवीक्षा के लिए नियत तारीख को हर अभ्यर्थी, प्रत्येक अभ्यर्थी का एक प्रस्थापक या एक समर्थक तथा प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा लिखित रूप से सम्यक्तः प्राधिकृत एक अन्य व्यक्ति, नामनिर्देशनों की संवीक्षा के समय उपस्थित रहने का हकदार होगा किंतु अन्य कोई व्यक्ति नहीं, और रिटर्निंग आफिसर उन्हें सब अभ्यर्थियों के नामनिर्देशन पत्रों की, जो धारा 5ख की उपधारा (4) के अधीन नामंजूर नहीं कर दिए गए हैं, परीक्षा करने के लिए सब उचित सुविधाएं देगा ।

(2) शंकाओं को दूर करने के लिए इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि नामनिर्देशनों की संवीक्षा के लिए नियत तारीख को उन नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा करना आवश्यक नहीं होगा जो धारा 5ख की उपधारा (4) के अधीन पहले ही नामंजूर किए गए हैं ।

(3) तत्पश्चात् रिटर्निंग आफिसर नामनिर्देशन पत्रों की परीक्षा करेगा और ऐसे सब आक्षेपों का विनिश्चय करेगा जो किसी नामनिर्देशन पत्र पर किए जाएं तथा, या तो ऐसे किसी आक्षेप पर या स्वप्रेरणा से, ऐसी किसी संक्षिप्त जांच के पश्चात्, यदि कोई हो, जिसे वह आवश्यक समझे, किसी नामनिर्देशन को निम्नलिखित आधारों में से किसी पर नामंजूर कर सकेगा, अर्थात् :-

(क) यह कि नामनिर्देशनों की संवीक्षा के लिए नियत की गई तारीख को अभ्यर्थी संविधान के अधीन, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद के लिए निर्वाचन का पात्र नहीं है ; अथवा

(ख) यह कि प्रस्थापकों या समर्थकों में से कोई धारा 5ख की उपधारा (1) के अधीन नामनिर्देशन पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए अर्हित नहीं है ; अथवा

(ग) यह कि नामनिर्देशन पत्र पर उतने प्रस्थापकों या समर्थकों ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जितने अपेक्षित हैं ; अथवा

(घ) यह कि अभ्यर्थी के या प्रस्थापकों अथवा समर्थकों में से किसी के हस्ताक्षर असली नहीं हैं या कपट द्वारा लिए गए हैं ; अथवा

(ङ) यह कि धारा 5ख या धारा 5ग के उपबंधों में से किसी का अनुपालन नहीं किया गया है ।

(4) उपधारा (3) के खंड (ख) से (ङ) तक की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को नामनिर्देशन पत्र की बाबत किसी अनियमितता के आधार पर नामंजूर करने के लिए प्राधिकृत करती है यदि अभ्यर्थी किसी अन्य नामनिर्देशन पत्र द्वारा, जिसकी बाबत कोई अनियमितता नहीं हुई है, सम्यक् रूप से नामनिर्दिष्ट कर दिया गया है ।

(5) रिटर्निंग आफिसर किसी नामनिर्देशन पत्र को किसी ऐसी त्रुटि के आधार पर नामंजूर नहीं करेगा जो महत्वपूर्ण नहीं है ।

(6) रिटर्निंग आफिसर धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन संवीक्षा के लिए नियत तारीख को संवीक्षा करेगा और कार्यवाहियों का स्थगन अनुज्ञात तभी करेगा जब ऐसी कार्यवाहियों में बलवे या खुली हिंसा द्वारा या उसके नियंत्रण से बाहर के कारणों द्वारा विघ्न या बाधा डाली जाती है अन्यथा   नहीं :

परंतु यदि रिटर्निंग आफिसर द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई आक्षेप किया जाता है तो संबद्ध अभ्यर्थी को उसका खंडन करने के लिए, संवीक्षा के लिए नियत तारीख से एक दिन छोड़कर अगले दिन से अनधिक समय अनुज्ञात किया जाएगा, तथा रिटर्निंग आफिसर उस तारीख को अपना विनिश्चय अभिलिखित करेगा जिसके लिए कार्यवाहियां स्थगित की गई हैं ।

(7) रिटर्निंग आफिसर प्रत्येक नामनिर्देशन पत्र पर उसे स्वीकार या नामंजूर करने का अपना विनिश्चय पृष्ठांकित करेगा और यदि नामनिर्देशन पत्र नामंजूर कर दिया जाता है, तो ऐसी नामंजूरी के कारणों का एक संक्षिप्त कथन अभिलिखित करेगा ।

(8) तत्समय प्रवृत्त निर्वाचक नामावली में प्रविष्टि की प्रमाणित प्रति इस धारा के प्रयोजनों के लिए, तब तक इस तथ्य का निश्चायक साक्ष्य होगी कि उस प्रविष्टि में निर्दिष्ट व्यक्ति उस निर्वाचन-क्षेत्र के लिए निर्वाचक है, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) की धारा 16 में वर्णित निरर्हताओं में से किसी से ग्रस्त है ।]

6. अभ्यर्थिता वापस लेना-(1) कोई अभ्यर्थी अपनी अभ्यर्थिता विहित प्ररूप की और अपने द्वारा हस्ताक्षरित ऐसी लिखित सूचना द्वारा वापस ले सकेगा जो रिटर्निंग आफिसर को ऐसे अभ्यर्थी द्वारा स्वयं या  [उसके प्रस्थापकों या समर्थकों में से ऐसे किसी भी प्रस्थापक या समर्थक द्वारा] जो ऐसे अभ्यर्थी द्वारा लिखित रूप में इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है, धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन नियत तारीख को तीन बजे अपराह्न से पहले परिदत्त कर दी गई हो ।

(2) जिस व्यक्ति ने अपनी अभ्यर्थिता वापस लेने की सूचना उपधारा (1) के अधीन दी है उसे उस सूचना को रद्द करने के लिए अनुज्ञात न किया जाएगा ।

 [(3) रिटर्निंग आफिसर, अभ्यर्थिता वापस लेने की सूचना के असली होने और उपधारा (1) के अधीन उसे परिदत्त करने वाले व्यक्ति की पहचान के बारे में अपना समाधान हो जाने पर, सूचना को अपने कार्यालय के किसी सहजदृश्य स्थान में लगवाएगा ।]  

7. अभ्यर्थी की मतदान से पूर्व मृत्यु - यदि कोई अभ्यर्थी, जिसका नामनिर्देशन कर दिया गया है और संवीक्षा पर ठीक पाया जाता है, नामनिर्देशन के लिए नियत समय के पश्चात् मर जाता है और उसकी मृत्यु की रिपोर्ट रिटर्निंग आफिसर को मतदान के प्रारंभ होने के पूर्व प्राप्त हो जाती है तो रिटर्निंग आफिसर उस अभ्यर्थी की मृत्यु के तथ्य के संबंध में अपना समाधान हो जाने पर मतदान को प्रत्यादिष्ट कर देगा और तथ्य की रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को देगा और निर्वाचन संबंधी सब कार्यवाहियां हर प्रकार से नए सिरे से प्रारंभ होंगी मानो वे नए निर्वाचन के लिए हों :

परंतु उस अभ्यर्थी की दशा में, जिसका नामनिर्देशन मतदान के प्रत्यादिष्ट किए जाने के समय विधिमान्य था, कोई अतिरिक्त नामनिर्देशन आवश्यक न होगा :

परंतु यह और भी कि जिस व्यक्ति ने मतदान के प्रत्यादिष्ट किए जाने के पूर्व अपनी अभ्यर्थिता की वापसी की सूचना धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन दे दी है वह ऐसे प्रत्यादेश के पश्चात् निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किए जाने का अपात्र न होगा ।

8. सविरोध और अविरोध निर्वाचनों में प्रक्रिया-जिस कालावधि के अंदर धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन अभ्यर्थिता वापस ली जा सकती है उसके अवसान के पश्चात् यदि-

(क) केवल एक अभ्यर्थी है जो विधिमान्य रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया है और जिसने उस उपधारा में विनिर्दिष्ट रीति में और समय के भीतर अपनी अभ्यर्थिता वापस नहीं ली है तो रिटर्निंग आफिसर तत्क्षण यह घोषणा कर देगा कि ऐसा अभ्यर्थी, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद के लिए सम्यक् रूप से निर्वाचित हो गया है ;

(ख) ऐसे अभ्यर्थियों की संख्या, जो सम्यक् रूप से नामनिर्दिष्ट किए गए हैं किंतु जिन्होंने अपनी अभ्यर्थिता वैसे वापस नहीं ली है, एक से अधिक है, तो रिटर्निंग आफिसर अभ्यर्थियों के नामों को वर्णक्रम में और पतों को उस रूप में, जिसमें वे नामनिर्देशन पत्रों में दिए गए हैं, अंतर्विष्ट करने वाली और ऐसी अन्य विशिष्टियों के सहित, जैसी विहित की जाएं, एक सूची ऐसे प्ररूप और रीति में, जैसी विहित की जाए, तत्क्षण प्रकाशित करेगा तथा मतदान होगा ;

(ग) ऐसा कोई अभ्यर्थी नहीं है जिसको सम्यक् रूप से नामनिर्दिष्ट किया गया है और जिसने अपनी अभ्यर्थिता वैसे वापस नहीं ली है तो रिटर्निंग आफिसर उस तथ्य की रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को कर देगा और तत्पश्चात् निर्वाचन संबंधी सब कार्यवाहियां नए सिरे से प्रारंभ होंगी और उस प्रयोजन के लिए निर्वाचन आयोग ऐसे निर्वाचन के संबंध में धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना को रद्द करेगा और ऐसे नए निर्वाचन के प्रयोजनों के लिए उस उपधारा में निर्दिष्ट तारीख नियत करते हुए, उस उपधारा के अधीन दूसरी अधिसूचना निकालेगा ।

9. निर्वाचनों में मतदान की रीति-ऐसे हर निर्वाचन में, जिसमें मतदान होता है, मतपत्रों द्वारा ऐसी रीति में मत दिए जाएंगे जैसी विहित की जाए और कोई मत परोक्षी द्वारा न लिए जाएंगे ।

10. मतों की गणना-ऐसे हर निर्वाचन में, जिसमें मतदान होता है, मतों की गणना रिटर्निंग आफिसर द्वारा या उसके पर्यवेक्षण के अधीन की जाएगी, और हर एक अभ्यर्थी का तथा हर एक अभ्यर्थी के ऐसे एक प्रतिनिधि का, जो अभ्यर्थी द्वारा लिखित रूप में प्राधिकृत हो, अधिकार होगा कि वह गणना के समय उपस्थित रहे ।

11. निर्वाचन परिणामों की घोषणा-जब मतों की गणना समाप्त हो जाए, तब रिटर्निंग आफिसर निर्वाचन का परिणाम इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों द्वारा उपबंधित रीति में तक्षण घोषित करेगा ।

12. निर्वाचन परिणाम की रिपोर्ट-निर्वाचन के परिणाम के घोषित किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र रिटर्निंग आफिसर निर्वाचन परिणाम की रिपोर्ट केंद्रीय सरकार और निर्वाचन आयोग को करेगा और केंद्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में, एक ऐसी घोषणा प्रकाशित कराएगी जिसमें, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित व्यक्ति का नाम अंतर्विष्ट होगा ।

[भाग 3

निर्वाचन संबंधी विवाद

13. परिभाषाएं - इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “अभ्यर्थी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में सम्यक्तः नामनिर्दिष्ट हुआ है या सम्यक्तः नामनिर्दिष्ट होने का दावा करता है ;

(ख) “खर्चे" से निर्वाचन अर्जी के विचारण के या उससे आनुषंगिक सभी खर्चे, प्रभार और व्यय अभिप्रेत हैं ;

(ग) “निर्वाचित अभ्यर्थी" से वह अभ्यर्थी अभिप्रेत है जिसका नाम सम्यक्तः निर्वाचित रूप में धारा 12 के अधीन प्रकाशित किया गया है ।

14. निर्वाचन अर्जियों का निपटारा करने के लिए प्राधिकरण-(1) कोई भी निर्वाचन उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट प्राधिकरण को पेश की गई निर्वाचन अर्जी द्वारा ही प्रश्नगत किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

(2) उच्चतम न्यायालय निर्वाचन अर्जी का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला प्राधिकरण होगा ।

(3) हर निर्वाचन अर्जी ऐसे प्राधिकरण को उस भाग के उपबंधों और उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार पेश की जाएगी ।

14क. अर्जियों का पेश किया जाना-(1) निर्वाचन को प्रश्नगत करने वाली अर्जी धारा 18 की उपधारा (1) में और धारा 19 में विनिर्दिष्ट आधारों में से एक या अधिक आधारों पर ऐसे निर्वाचन के किसी अभ्यर्थी द्वारा, या-

(i) राष्ट्रपतीय निर्वाचन की दशा में, बीस या अधिक निर्वाचकों द्वारा संयुक्त अर्जीदारों के रूप में ;

(ii) उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन की दशा में, दस या अधिक निर्वाचकों द्वारा संयुक्त अर्जीदारों के रूप में,

उच्चतम न्यायालय में पेश की जा सकेगी ।

(2) ऐसी कोई अर्जी उस घोषणा के, जिसमें धारा 12 के अधीन निर्वाचन में निर्वाचित अभ्यर्थी का नाम हो, प्रकाशन की तारीख के पश्चात् किसी भी समय पेश की जा सकेगी किंतु ऐसे प्रकाशन की तारीख से तीस दिनों के पश्चात् पेश नहीं की जा सकेगी ।

15. अर्जियों के प्ररूप, इत्यादि और प्रक्रिया-इस भाग के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियम [चाहे वे राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन (संशोधन) अधिनियम, 1977 के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् बनाए गए हों] निर्वाचन अर्जियों के प्ररूप का, उस रीति का, जिसमें उन्हें पेश किया जाना है, उन व्यक्तियों का, जो इसके पक्षकार बनाए जाने हैं, उससे संबंधित अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का और उन परिस्थितियों का विनियमन कर सकेंगे जिनमें अर्जियों का शमन हो जाएगा या जिनमें वे वापस ली जा सकेंगी और जिनमें नए अर्जीदार प्रतिस्थापित किए जा सकेंगे और वे खर्चे के लिए प्रतिभूति दिए जाने की अपेक्षा कर सकेंगे ।

16. अनुतोष जिसका दावा अर्जीदार कर सकेगा-अर्जीदार निम्नलिखित घोषणाओं में से किसी घोषणा का दावा कर सकेगा,   अर्थात् :-

(क) कि निर्वाचित अभ्यर्थी का निर्वाचन शून्य है ;

(ख) कि निर्वाचित अभ्यर्थी का निर्वाचन शून्य है और वह स्वयं या कोई अन्य अभ्यर्थी सम्यक् रूप से निर्वाचित हुआ है ।

17. उच्चतम न्यायालय के आदेश-(1) निर्वाचन अर्जी के विचारण की समाप्ति पर उच्चतम न्यायालय निम्नलिखित आदेश           करेगा, अर्थात् :-

(क) निर्वाचन अर्जी को खारिज करना ; अथवा

(ख) निर्वाचित अभ्यर्थी के निर्वाचन को शून्य घोषित करना ; अथवा

(ग) निर्वाचित अभ्यर्थी के निर्वाचन को शून्य घोषित करना और अर्जीदार या कोई अन्य अभ्यर्थी सम्यक् रूप से निर्वाचित घोषित करना और यह घोषणा करना कि अर्जीदार या कोई अन्य अभ्यर्थी सम्यक् रूप से निर्वाचित हुआ है ।

(2) उपधारा (1) के अधीन आदेश करते समय, उच्चतम न्यायालय संदेय खर्चे की कुल रकम निश्चित करते हुए और उन व्यक्तियों को विनिर्दिष्ट करते हुए, जिनके द्वारा या जिनको खर्चे दिए जाएंगे, आदेश करेगा ।

18. निर्वाचित अभ्यर्थी के निर्वाचन को शून्य घोषित करने के आधार-(1) यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि-

(क) निर्वाचित अभ्यर्थी या निर्वाचित अभ्यर्थी की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा निर्वाचन में रिश्वत या असम्यक् असर का अपराध किया गया है, अथवा

(ख) निर्वाचन का परिणाम पर-

(i) किसी मत के अनुचित तौर पर लिए जाने या इंकार किए जाने के कारण से, अथवा

(ii) संविधान के या इस अधिनियम के या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों या किए गए आदेशों के उपबंधों का अनुपालन न किए जाने से, अथवा

(iii) इस तथ्य के कारण कि किसी ऐसे अभ्यर्थी का (निर्वाचित अभ्यर्थी से भिन्न) नामनिर्देशन, जिसने अपनी अभ्यर्थिता वापस नहीं ली है, गलत रूप में स्वीकार किया गया है,

तात्त्विक रूप से प्रभाव पड़ा है, अथवा

(ग) किसी अभ्यर्थी का नामनिर्देशन गलत रूप से अस्वीकार किया गया है या निर्वाचित अभ्यर्थी का नामनिर्देशन गलत रूप से स्वीकार किया गया है,

तो उच्चतम न्यायालय यह घोषणा करेगा कि निर्वाचित अभ्यर्थी का निर्वाचन शून्य है ।

(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए निर्वाचन में रिश्वत और असम्यक् असर डालने के अपराध के वही अर्थ हैं जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 9क में हैं ।

19. निर्वाचित अभ्यर्थी से भिन्न अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित किए जाने के आधार-यदि किसी व्यक्ति ने, जिसने निर्वाचन अर्जी पेश की है निर्वाचित अभ्यर्थी के निर्वाचन को प्रश्नगत करने के अतिरिक्त, इस घोषणा के लिए दावा किया है कि वह स्वयं या कोई अन्य अभ्यर्थी सम्यक् रूप से निर्वाचित हुआ है और उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि वास्तव में अर्जीदार या ऐसे अन्य अभ्यर्थी ने विधिमान्य मतों में से बहुसंख्यक मत प्राप्त किए हैं तो उच्चतम न्यायालय निर्वाचित अभ्यर्थी का निर्वाचन शून्य घोषित करने के पश्चात्, यथास्थिति, अर्जीदार या ऐसे अन्य अभ्यर्थी को सम्यक् रूप से निर्वाचित घोषित करेगा :

परंतु यदि यह साबित हो जाता है कि ऐसे अभ्यर्थी का निर्वाचन उस दशा में शून्य होता जिसमें वह निर्वाचित अभ्यर्थी रहता और उसके निर्वाचन को प्रश्नगत करने वाली अर्जी पेश की गई होती तो ऐसे अर्जीदार या अन्य अभ्यर्थी को सम्यक् रूप से निर्वाचित घोषित नहीं किया जाएगा ।

20. केंद्रीय सरकार को आदेशों का भेजा जाना और उनका प्रकाशन-उच्चतम न्यायालय धारा 17 के अधीन आदेशों की घोषणा करने के पश्चात् उनकी एक प्रति केंद्रीय सरकार को भेजेगा और ऐसी प्रति की प्राप्ति पर केंद्रीय सरकार तुरंत उस आदेश को राजपत्र में प्रकाशित कराएगी ।]

भाग 4

प्रकीर्ण

 [20क. अभ्यर्थी के निक्षेप का लौटाया जाना या समपहरण - (1) धारा 5ग के अधीन किया गया निक्षेप इस धारा के उपबंधों के अनुसार या तो निक्षेप करने वाले व्यक्ति को अथवा उसके विधिक प्रतिनिधि को लौटा दिया जाएगा या केंद्रीय सरकार के पक्ष में समपहृत हो जाएगा ।

(2) इस धारा में इसके पश्चात् वर्णित दशाओं के सिवाय, निर्वाचन के परिणाम के घोषित होने के पश्चात् यथासाध्य शीघ्र निक्षेप लौटा दिया जाएगा ।

(3) यदि अभ्यर्थी का नाम धारा 8 के खंड (ख) में निर्दिष्ट सूची में नहीं है, अथवा मतदान के प्रारंभ के पूर्व ही उसकी मृत्यु हो जाती है, तो निक्षेप, यथास्थिति, सूची के प्रकाशन या अभ्यर्थी की मृत्यु के पश्चात् यथासाध्य शीघ्र लौटा दिया जाएगा ।

(4) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यदि उस निर्वाचन में, जिसमें मतदान हो गया है, अभ्यर्थी निर्वाचित नहीं हुआ है, और ऐसे अभ्यर्थी द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की संख्या ऐसे निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक मत संख्या के छठवें भाग से अधिक नहीं है, तो निक्षेप समपहृत हो जाएगा ।]

21. नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम  निर्वाचन आयोग से परामर्श करने के पश्चात् शासकीय राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित बातों या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-

(क) राष्ट्रपतीय निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 54 में निर्दिष्ट निर्वाचकगण के सदस्यों की सूची, उनके अद्यतन शुद्धकृत पतों सहित, बनाए रखना ;

(ख) उपराष्ट्रपतीय निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए  [अनुच्छेद 66 में निर्दिष्ट निर्वाचकगण के सदस्योंट की सूची, उनके अद्यतन शुद्धकृत पतों सहित बनाए रखना ;

 (ग) रिटर्निंग आफिसर की शक्तियां और कर्तव्य और रिटर्निंग आफिसर की सहायता के लिए नियुक्त किसी आफिसर द्वारा रिटर्निंग आफिसर के किसी कर्तव्य का पालन ;

 [(गग) वह प्ररूप और रीति जिससे रिटर्निंग आफिसर द्वारा धारा 5 के अधीन लोक सूचना दी जाएगी ;]

(घ) वह प्ररूप और रीति जिसमें नामनिर्देशन किए जा सकेंगे और नामनिर्देशन पत्रों के उपस्थापन के संबंध में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ;

(ङ) नामनिर्देशनों की संवीक्षा और विशिष्टतः वह रीति जिसमें ऐसी संवीक्षा की जाएगी और वे शर्तें और परिस्थितियां जिनके अधीन कोई व्यक्ति वहां उपस्थित हो सकेगा या आक्षेप कर सकेगा ;

(च) विधिमान्य नामनिर्देशनों की सूची का प्रकाशन ;

 [(छ) मतदान का स्थान और समय, वह रीति जिससे साधारणतः और अशिक्षित मतदाताओं अथवा जिस भाषा में मतपत्र मुद्रित हुए हैं उसका ज्ञान न रखने वाले मतदाताओं या शारीरिक या अन्य निःशक्तता से ग्रस्त मतदाताओं की दशा में, मत दिए जाने हैं, तथा मतदान के संबंध में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ;ट  

(ज) मतों की संवीक्षा और गणना जिनके अंतर्गत वे मामले आते हैं जिनमें निर्वाचन के परिणाम की घोषणा के पूर्व मतों की पुनर्गणना की जा सकेगी ;

(झ) मतपेटियों, मत पत्रों और अन्य निर्वाचन कागज-पत्रों की सुरक्षित अभिरक्षा, वह कालावधि जिस तक ऐसे कागज-पत्र परिरक्षित किए जाएंगे और ऐसे कागज-पत्रों का निरीक्षण और पेश किया जाना ;

(ञ) कोई अन्य ऐसी बात जो इस अधिनियम द्वारा विहित की जाने के लिए अपेक्षित है ।

  [(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किंतु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।ट

22. मतदान की गोपनीयता को बनाए रखना-(1) ऐसा हर आफिसर, लिपिक या अन्य व्यक्ति, जो निर्वाचन में मतों को अभिलिखित करने या उनकी गणना करने के संबंध में किसी कर्तव्य का पालन करता है, मतदान की गोपनीयता को बनाए रखेगा और बनाए रखने में सहायता करेगा और ऐसी गोपनीयता का अतिक्रमण करने के लिए प्रकल्पित कोई जानकारी किसी व्यक्ति को (किसी विधि के द्वारा या अधीन प्राधिकृत किसी प्रयोजन के लिए संसूचित करने के सिवाय) संसूचित न करेगा ।

(2) जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

23. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता वर्जित-भाग 3 में यथा उपबंधित के सिवाय, किसी भी सिविल न्यायालय को यह अधिकारिता न होगी कि वह रिटर्निंग आफिसर या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो इस अधिनियम के अधीन नियुक्त है, निर्वाचन के संबंध में की गई कार्रवाई या दिए गए किसी विनिश्चय की वैधता को प्रश्नगत करे । 

 

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