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माल-विक्रय अधिनियम, 1930 ( Sale of Goods Act, 1930 )


 

माल-विक्रय अधिनियम, 1930

(1930 का अधिनियम संख्यांक 3)

[15 मार्च, 1930]

माल के विक्रय से संबंधित विधि को परिभाषित और

संशोधित करने के लिए

अधिनियम

माल के विक्रय से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करना समीचीन है, अतः एतद्द्वारा यह निम्नलिखित रूप में अधिनियमित किया जाता है :-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

                1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) यह अधिनियम  *** माल-विक्रय अधिनियम, 1930 कहा जा सकेगा

                 [(2) इसका विस्तार  [जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवायट सम्पूर्ण भारत पर है ]

                (3) यह जुलाई, 1930 के प्रथम दिन को प्रवृत्त होगा

                2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में जब तक कोई बात विषय या संदर्भ में विरुद्ध हो,-

                                (1) “क्रेता" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो माल का क्रय करता है या क्रय करने का करार करता है

                                (2) “परिदान" से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को कब्जे का स्वेच्छया अन्तरण अभिप्रेत है ;

                (3) माल का, परिदेयस्थिति" में होना तब कहा जाता है जबकि वह ऐसी स्थिति में हो कि क्रेता उसका परिदान लेने के लिए संविदा के अधीन आबद्ध हो ;

(4) माल पर हक की दस्तावेज" के अन्तर्गत वहनपत्र, डाक-वारण्ट, भाण्डागारिक प्रमाणपत्र, घाटवाल का प्रमाणपत्र, रेल-रसीद  [,बहुविधि परिवहन दस्तावेज], माल के परिदान के लिए वारण्ट या आदेश और ऐसी अन्य कोई भी दस्तावेज आती है जिसका कारबार के मामूली अनुक्रम में उपयोग माल पर कब्जे या नियंत्रण के सबूत के रूप में किया जाता है या जो उस दस्तावेज पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को वह माल जिसके बारे में वह दस्तावेज है अन्तरित या प्राप्त करने के लिए या तो पृष्ठांकन द्वारा या परिदान द्वारा प्राधिकृत करती है या प्राधिकृत करने वाली तात्पर्यित है ;

                                (5) “कसूर" से सदोष कार्य या व्यतिक्रम अभिप्रेत है ;

(6) “भावी माल" से वह माल अभिप्रेत है जिसे विक्रय की संविदा करने के पश्चात् विक्रेता को विनिर्मित या उत्पादित या अर्जित करना है ;

(7) “माल" से अनुयोज्य दावों और धन से भिन्न हर किस्म की जंगम सम्पत्ति अभिप्रेत है, तथा इसके अन्तर्गत आते हैं स्टाक और अंश, उगती फसलें, घास और भूमि से बद्ध या उसकी भागरूप ऐसी चीजें जिनका विक्रय से पूर्व या विक्रय की संविदा के अधीन भूमि से पृथक् किए जाने का करार किया गया हो ;

(8) वह व्यक्तिदिवालिया" कहलाता है जिसने कारबार के मामूली अनुक्रम में अपने ऋणों का संदाय बन्द कर दिया हो या जो अपने ऋणों का, जैसे-जैसे वे शोध्य होते जाएं संदाय कर सकता हो, चाहे उसने दिवालिएपन का कोई कार्य किया हो या नहीं ;

(9) “वाणिज्यिक अभिकर्ता" से ऐसा वाणिज्यिक अभिकर्ता अभिप्रेत है जो ऐसा अभिप्रेत होने के नाते कारबार के रूढ़िक अनुक्रम में या तो माल के विक्रय का या विक्रय के प्रयोजनों के लिए माल के परेषण का या माल के क्रय या माल की प्रतिभूति पर धन खड़ा करने का प्राधिकार रखता हो ;

(10) “कीमत" से वह प्रतिफल अभिप्रेत है जो माल के विक्रय का धन के रूप में है ;

(11) “सम्पत्ति" से माल में की साधारण सम्पत्ति, कि केवल कोई विशेष सम्पत्ति, अभिप्रेत है ;

(12) “माल की क्वालिटी" के अन्तर्गत उनकी स्थिति या दशा भी आती है ;

(13) “विक्रेता" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो माल का विक्रय करता है या विक्रय करने का करार करता है ;

(14) “विनिर्दिष्ट माल" से वह माल अभिप्रेत है जो उस समय, जब विक्रय की संविदा की जाती है, परिलक्षित ओर करारित किया जाता है ; तथा

(15) उन पदों के जो इस अधिनियम में प्रयुक्त किए गए हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं और भारतीय संविदा                  अधिनियम, 1872 (1872 का 9) में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ हैं जो उन्हें उस अधिनियम में समनुदिष्ट हैं

                3. 1872 के अधिनियम 9 के उपबन्धों का लागू होना-भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनिरसित उपबन्ध, वहां तक के सिवाय जहां तक कि वे इस अधिनियम के अभिव्यक्त उपबन्धों से असंगत हैं, माल के विक्रय की संविदाओं को लागू होते रहेंगे

अध्याय 2

संविदा की विरचना

विक्रय की संविदा

                4. विक्रय और विक्रय करने का करार-(1) माल के विक्रय की संविदा ऐसी संविदा है जिसके द्वारा विक्रेता माल में की सम्पत्ति क्रेता को कीमत पर अन्तरित करता या अन्तरित करने का करार करता है एक भागिक स्वामी और दूसरे भागिक स्वामी के बीच विक्रय की संविदा हो सकेगी

                (2) विक्रय की संविदा आत्यन्तिक या सशर्त हो सकेगी

                (3) जहां कि माल में की सम्पत्ति विक्रेता से क्रेता को विक्रय की संविदा के अधीन अन्तरित होती है वहां संविदा विक्रय कहलाती है, किन्तु जहां कि माल में की सम्पत्ति का अन्तरण किसी आगामी समय में या किसी ऐसी शर्त के अध्यधीन होना है जो तत्पश्चात् पूरी की जानी है वहां संविदा विक्रय करने का करार कहलाती है

                (4) विक्रय करने का करार तब विक्रय हो जाता है जब वह समय बीत जाता है या वे शर्तें पूरी हो जाती हैं जिनके अध्यधीन माल में की सम्पत्ति अन्तरित होनी है

संविदा की प्ररूपिताएं

                5. विक्रय की संविदा कैसे की जाती है-(1) विक्रय की संविदा कीमत पर माल का क्रय या विक्रय करने की प्रस्थापना और इस प्रस्थापना के प्रतिग्रहण द्वारा की जाती है संविदा माल के तुरन्त परिदान के या कीमत के तुरन्त संदाय के या उन दोनों के लिए अथवा किस्तों में परिदान या संदाय के लिए अथवा इस बात के लिए कि परिदान या संदाय या दोनों मुल्तवी रहेंगे, उपबन्ध कर सकेगी

                (2) किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि विक्रय की संविदा लिखित या वाचिक या भागतः लिखित और भागतः वाचिक तौर पर की जा सकेगी अथवा पक्षकारों के आचरण से विवक्षित हो सकेगी  

संविदा की विषय-वस्तु

                6. वर्तमान या भावी माल-(1) वह माल जो विक्रय की संविदा का विषय हो या तो ऐसा वर्तमान माल हो सकेगी जो विक्रेता के स्वामित्व या कब्जे में हो या भावी माल हो सकेगा

                (2) उस माल के विक्रय के लिए संविदा हो सकेगी जिसका क्रेता द्वारा अर्जन ऐसी अनिश्चित घटना पर अलम्बित हो जो घटित हो या हो

                (3) जहां कि विक्रय की संविदा द्वारा विक्रेता का भावी माल का साम्प्रतिक विक्रय करना तात्पर्यित है वहां वह संविदा उस माल का विक्रय करने के करार के रूप में प्रवृत्त होती है

                7. संविदा की जाने के पूर्व माल का नष्ट होना-(1) जहां कि संविदा विनिर्दिष्ट माल के विक्रय के लिए है, वहां यदि विक्रेता के ज्ञान के बिना वह माल उस समय, जब संविदा की गई थी, नष्ट हो गया था या इतना नुकसान ग्रस्त हो गया था कि वह संविदा में के अपने वर्णन के अनुरूप नहीं रह गया था, तो संविदा शून्य है

                8. विक्रय के पूर्व किन्तु विक्रय करने के करार के पश्चात् माल का नष्ट हो जाना-जहां कि करार विनिर्दिष्ट माल के विक्रय का है और तत्पश्चात् इसके पूर्व कि जोखिम क्रेता को संक्रान्त हो वह माल क्रेता या विक्रेता की तरफ के किसी कसूर के बिना नष्ट हो जाता है या इतना नुकसान ग्रस्त हो जाता है कि वह करार में के अपने वर्णन के अनुरूप नहीं रह जाता वहां करार तद्द्वारा शून्य हो जाता है

कीमत

                9. कीमत अभिनिश्चित करना-(1) विक्रय की संविदा में की कीमत उस संविदा द्वारा नियत की जा सकेगी या तद्द्वारा करारित रीति नियत किए जाने के लिए छोड़ी जा सकेगी, या पक्षकारों के बीच की व्यवहार-चर्या द्वारा अवधारित की जा सकेगी

                (2) जहां कि कीमत पूर्वगामी उपबन्धों के अनुसार अवधारित नहीं की गई है, वहां क्रेता को युक्तियुक्त कीमत देगा युक्तियुक्त कीमत क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है जो हर विशिष्ट मामले की परिस्थितियों पर अवलम्बित है

                10. मूल्यांकन पर विक्रय करने का करार-(1) जहां कि इस निबन्धन पर माल का विक्रय करने का करार है कि कीमत किसी पर-व्यक्ति के मूल्यांकन द्वारा नियत की जाती है और ऐसा पर-व्यक्ति मूल्यांकन नहीं कर सकता या नहीं करता, वहां वह करार तद्द्वारा शून्य हो जाता है :

                परन्तु यदि वह माल या उसका कोई भाग क्रेता को परिदत्त कर दिया गया हो और उसके द्वारा विनियोजित कर लिया गया हो, तो वह उसके लिए युक्तियुक्त कीमत देगा

                (2) जहां कि विक्रेता या क्रेता के कसूर से ऐसा पर-व्यक्ति मूल्यांकन करने से निवारित हो जाता है, वहां जिस पक्षकार का कसूर नहीं है वह उस पक्ष के विरुद्ध जिसका कसूर है नुकसानी के लिए वाद ला सकेगा

शर्तें और वारंटियां

                11. समय के बारे में अनुबन्ध-जब तक कि उस संविदा के निबन्धनों से कोई भिन्न आशय प्रतीत हो संदाय के समय के बारे में अनुबन्ध विक्रय की संविदा के मर्म नहीं समझे जाते समय के बारे में कोई अन्य अनुबन्ध उस संविदा का मर्म है या नहीं, यह बात उस संविदा के निबन्धनों पर अवलंबित होती है

                12. शर्त और वारन्टी-(1) विक्रय की संविदा में कोई अनुबन्ध जो उस माल के बारे में हो जो उस संविदा का विषय है शर्त या वारण्टी हो सकेगा

                (2) शर्त संविदा के मुख्य प्रयोजन के लिए मर्मभूत वह अनुबन्ध है जिसका भंग उस संविदा को निराकृत मानने का अधिकार पैदा करता है

                (3) वारण्टी संविदा के मुख्य प्रयोजन का सांपार्श्विक वह अनुबंध है जिसका भंग नुकसानी के लिए दावा पैदा करता है किन्तु माल को प्रतिपेक्षित करने और संविदा को निराकृत मानने का अधिकार पैदा नहीं करता

                (4) विक्रय की संविदा में कोई अनुबन्ध शर्त है या वारण्टी, यह बात हर एक मामले में उस संविदा के अर्थान्वयन पर अवलंबित होती है अनुबन्ध शर्त हो सकता है, यद्यपि संविदा में उसे वारण्टी कहा गया हो

                13. शर्त कब वारन्टी मानी जा सकेगी-(1) जहां कि विक्रय की संविदा किसी ऐसी शर्त के अध्यधीन है जिसकी पूर्ति विक्रेता द्वारा की जानी है, वहां क्रेता उस शर्त का अधित्यजन कर सकेगा अथवा यह निर्वाचन कर सकेगा कि शर्त के भंग को वारण्टी का भंग, कि संविदा को निराकृत मानने का आधार माने

                (2) जहां कि विक्रय की संविदा विभाजनीय नहीं है और क्रेता ने माल को या उसके भाग को प्रतिगृहीत कर लिया है  *** वहां क्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी शर्त का भंग केवल वारण्टी का भंग कि माल को प्रतिक्षेपित करने का और संविदा को निराकृत मानने का आधार, माना जा सकेगा, जब तक कि संविदा में कोई तत्प्रभावी अभिव्यक्त या विवक्षित निबन्धन हो   

                (3) इस धारा की कोई भी बात किसी ऐसी शर्त या वारण्टी के मामले पर प्रभाव डालेगी जिसे पूरा करने से माफी उसकी असंभवता के कारण या अन्यथा विधि द्वारा प्रदत्त हो

                14. हक आदि के बारे में विवक्षित परिवंचना-विक्रय की संविदा में, जब तक कि संविदा की परिस्थितियां ऐसी हों कि भिन्न आशय दर्शित होता है-

() विक्रेता की तरफ से विक्रय की दशा में यह विवक्षित शर्त रहती है उसे माल के विक्रय का अधिकार है और विक्रय करने के करार की दशा में यह विवक्षित शर्त रहती है कि उसे माल के विक्रय का अधिकार उस समय रहेगा जब सम्पत्ति संक्रान्त होनी है ;

() यह विवक्षित वारण्टी रहती है कि क्रेता को उस माल का निर्बाध कब्जा प्राप्त होगा और वह ऐसे कब्जे का                   उपभोग करेगा ;

() वह विवक्षित वारण्टी रहती है कि माल किसी पर-व्यक्ति के पक्ष में किए गए किसी ऐसे भार या विल्लंगम् से मुक्त रहेगा जो क्रेता को संविदा किए जाने के पूर्व या किए जाने के समय घोषित नहीं किया गया था या ज्ञात था

                15. वर्णनानुसार विक्रय-जहां कि संविदा वर्णनानुसार माल के विक्रय के लिए हो वहां यह विवक्षित शर्त रहती है कि माल वर्णन के अनुरूप होगा और यदि विक्रय नमूने और वर्णन दोनों के अनुसार हो तो माल के प्रपुंज का नमूने के अनुरूप होना पर्याप्त नहीं है जब तक कि माल वर्णन के अनुरूप भी हो

                16. क्वालिटी या योग्यता के बारे में विवक्षित शर्तें-इस अधिनियम के और किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि जिस माल का प्रदाय विक्रय की संविदा के अधीन किया गया है उसकी क्वालिटी के बारे में या किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए उसकी योग्यता के बारे में विवक्षित वारण्टी या शर्त निम्नलिखित के सिवाय नहीं रहती है-

(1) जहां कि क्रेता वह विशिष्ट प्रयोजन, जिसके लिए माल अपेक्षित है, विक्रेता को अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से इस प्रकार ज्ञात करा देता है कि उससे यह दर्शित हो कि विक्रेता के कौशल या विवेकबुद्धि पर क्रेता भरोसा कर रहा है और माल उस वर्णन का है, जिस वर्णन के माल का प्रदाय विक्रेता के कारबार के अनुक्रम में है (चाहे विक्रेता उसका विनिर्माता या उत्पादक हो या नहीं), वहां वह विवक्षित शर्त होती है कि माल ऐसे प्रयोजन के लिए युक्तियुक्ततः योग्य होगा :

परन्तु विनिर्दिष्ट चीज के पेटेन्ट-नाम या अन्य व्यापार नाम से विक्रय की संविदा की दशा में उस चीज के किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए योग्य होने के बारे में कोई विवक्षित शर्त नहीं होगी

(2) जहां कि माल का ऐसे विक्रेता से वर्णनानुसार क्रय किया जाता है जो उस वर्णन के माल का व्यापार करता है (चाहे वह उसका विनिर्माता या उत्पादक हो या नहीं), वहां यह विवक्षित शर्त होती है कि माल वाणिज्यिक क्वालिटी का होगा :

परन्तु यदि क्रेता ने माल की परीक्षा कर ली है तो उन त्रुटियों के बारे में जो ऐसी परीक्षा से प्रकट हो जानी चाहए थी कोई विवक्षित शर्त नहीं होगी

(3) क्वालिटी के बारे में या विशिष्ट प्रयोजन के लिए योग्य होने के बारे में विवक्षित वारंटी या शर्त व्यापार की प्रथा द्वारा उपाबद्ध हो सकेगी

(4) अभिव्यक्त वारंटी या शर्त इस अधिनियम द्वारा विवक्षित वारंटी या शर्त का नकार नहीं करती जब तक कि वह उससे असंगत हो  

                17. नमूने के अनुसार विक्रय-(1) विक्रय की संविदा वहां नमूने के अनुसार विक्रय के लिए होती है जहां कि संविदा में तत्प्रभावी अभिव्यक्त या विवक्षित निबंधन हो

                (2) नमूने के अनुसार विक्रय के लिए संविदा की दशा में यह विवक्षित शर्त रहती है-

                                () कि माल का प्रपुंज क्वालिटी में नमूने के सदृश होगा ;

                                () कि क्रेता को माल के प्रपुंज का नमूने से मिलान करने का युक्तियुक्त अवसर प्राप्त होगा ;

                () कि माल उसे अवाणिज्यिक बना देने वाली किसी ऐसी त्रुटि से मुक्त होगा जो नमूने की युक्तियुक्त परीक्षा से प्रकट   होती हो

अध्याय 3

संविदा के प्रभाव

विक्रेता और क्रेता के बीच संपत्ति का अन्तरण

                18. माल को अभिनिश्चित करना होगा-जहां कि संविदा अभिनिश्चित माल के विक्रय के लिए है वहां यदि और जब तक अभिनिश्चित नहीं कर लिया जाता, माल में कोई सम्पत्ति क्रेता को अन्तरित नहीं होगी

                19. सम्पत्ति तब संक्रांत होती है जब उसका संक्रान्त होना आशयित हो-(1) जहां कि संविदा विनिर्दिष्ट या अभिनिश्चित माल के विक्रय के लिए हो वहां उस माल में की सम्पत्ति क्रेता को उस समय अन्तरित होती है जिस समय उसका अन्तरित किया जाना उस संविदा के पक्षकारों द्वारा आशयित हो

                (2) संविदा के निबन्धन, पक्षकारों का आचरण और मामले की परिस्थितियां पक्षकारों के आशय को अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए ध्यान में रखी जाएगी

                (3) जब तक कि भिन्न आशय प्रतीत हो, उस समय के बारे में जिस पर माल में की सम्पत्ति क्रेता को संक्रान्त होनी है, पक्षकारों के आशय के अभिनिश्चयन के लिए नियम वे नियम हैं जो धारा 20 से लेकर 24 तक में अन्तर्विष्ट हैं

                20. परिदेय स्थिति में विनिर्दिष्ट माल-जहां कि संविदा परिदेय स्थिति के विनिर्दिष्ट माल के विक्रय के लिए वहां उस माल में की सम्पत्ति क्रेता को उस समय संक्रान्त होती है जब संविदा की जाती है, और यह तत्वहीन है कि कीमत के संदाय का समय या माल के परिदान का समय या दोनों मुल्तवी कर दिए गए हैं

                21. विनिर्दिष्ट माल का परिदेय स्थिति में लाया जाना-जहां कि संविदा विनिर्दिष्ट माल के विक्रय के लिए है और विक्रेता माल को परिदेय स्थिति में लाने के प्रयोजन से माल के प्रति कुछ करने के लिए आबद्ध है, वहां सम्पत्ति तब तक संक्रान्त नहीं होती जब तक वह कर नहीं दिया जाता और क्रेता को उसकी सूचना नहीं हो जाती

                22. परिदेय स्थिति में विनिर्दिष्ट माल, जब कि उसकी कीमत अभिनिश्चित करने के लिए उसके प्रति विक्रेता को कुछ करना है- जहां कि संविदा परिदेय स्थिति के विनिर्दिष्ट माल के विक्रय के लिए है किन्तु विक्रेता कीमत अभिनिश्चित करने के प्रयोजन से माल को तोलने, मापने, परखने या उसके बारे में कोई अन्य कार्य या बात करने के लिए आबद्ध है वहां सम्पत्ति तब तक संक्रान्त नहीं होती जब तक वह कार्य या बात नहीं कर जाती और क्रेता को उसकी सूचना नहीं हो जाती

                23. अनभिनिश्चित माल का विक्रय और विनियोग-(1) जहां कि अनभिनिश्चित या भावी माल के वर्णनानुसार विक्रय की संविदा है और ऐसा माल जो उस वर्णन का और परिदेय स्थिति में है या तो क्रेता की अनुमति से विक्रेता द्वारा या विक्रेता की अनुमति से क्रेता द्वारा संविदा मद्दे अशर्त विनियोजित कर दिया जाता है वहां तदुपरि माल में की सम्पत्ति क्रेता को संक्रान्त हो जाती है ऐसी अनुमति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकेगी और विनियोग किए जाने के पूर्व या पश्चात् दी जा सकेगी

                वाहक को परिदान-(2) जहां कि संविदा के अनुसरण में विक्रेता क्रेता को अथवा क्रेता को माल परेषित किए जाने के प्रयोजन से वाहक को या अन्य उपनिहिती को (चाहे वह क्रेता द्वारा नामित हो या हो) माल का परिदान कर देता है और व्ययन का अधिकार आरक्षित नहीं रखता वहां यह समझा जाएगा कि उसने संविदा मद्दे उस माल का अशर्त विनियोग कर दिया है

                24. “अनुमोदनार्थ अथवा विक्रय या वापसी के लिए" भेजा गया माल-जब कि क्रेता को माल अनुमोदनार्थ अथवा विक्रय या वापसी के लिए" या ऐसे ही अन्य निबन्धनों पर परिदत्त किया जाता है तब माल में की सम्पत्ति का क्रेता को संक्रमण-

() उस समय होता है जब वह अपना अनुमोदन या प्रतिग्रहण विक्रेता को संज्ञापित करता है या उस संव्यवहार को अंगीकार करने का कोई अन्य कार्य करता है ;

() उस दशा में जब कि वह अपना अनुमोदन या प्रतिग्रहण विक्रेता को संज्ञापित नहीं करता किन्तु प्रतिक्षेप की सूचना दिए बिना माल को प्रतिधारित रखता है, यदि माल की वापसी के लिए कोई समय नियत किया गया हो तो उस समय के अवसान पर होता है, और यदि कोई समय नियत नहीं किया गया हो तो युक्ति-युक्त समय के अवसान पर होता है

                25. व्ययन के अधिकार का आरक्षण-(1) जहां कि संविदा विनिर्दिष्ट माल के विक्रय के लिए है या जहां कि माल संविदा मद्दे तत्पश्चात्, विनियोजित कर दिया जाता है वहां विक्रेता उस माल के व्ययन का अधिकार संविदा या विनियोग के निबन्धनों द्वारा तब तक के लिए आरक्षित रख सकेगा जब तक अमुक शर्तें पूरी नहीं हो जातीं ऐसी दशा में इस बात के होते हुए भी कि माल का परिदान क्रेता को, या क्रेता को उसका परेषण करने के प्रयोजन से वाहक को या अन्य उपनिहिती को, कर दिया गया है, माल में की सम्पत्ति क्रेता को तब तक संक्रान्त नहीं होती जब तक विक्रेता द्वारा लगाई गई शर्तें पूरी नहीं हो जातीं

                 [(2) जहां कि माल पोत द्वारा भेजा जाता है या रेल द्वारा वहन किए जाने के लिए रेल-प्रशासन को परिदत्त किया जाता है और, यथास्थिति, वहन पत्र या रेल-रसीद पर माल विक्रेता के या उसके अभिकर्ता के आदेशानुसार परिदेय है वहां प्रथमदृष्ट्या यह समझा जाता है कि विक्रेता ने व्ययन का अधिकार आरक्षित कर लिया है

                (3) जहां कि माल का विक्रेता क्रेता पर कीमत के लिए विनिमय-पत्र लिखता है और विनिमय-पत्र, यथास्थिति, वहन-पत्र या रेल-रसीद के साथ क्रेता को इस दृष्टि से पारेषित करता है कि विनिमय-पत्र प्रतिगृहीत कर लिया जाए या उसका भुगतान कर दिया जाए वहां यदि क्रेता विनिमय-पत्र का आदरण नहीं करता तो वह उस वहन-पत्र या रेल-रसीद को लौटाने के लिए आबद्ध है और यदि वह उस वहन-पत्र या रेल-रसीद को सदोष प्रतिधारित करता है तो माल में की सम्पत्ति उसको संक्रान्त नहीं होती है

                स्पष्टीकरण-इस धारा में रेल" और रेल-प्रशासन" पदों के वे ही अर्थ होंगे जो भारतीय रेल अधिनियम, 1890 (1890 का 9) में उन्हें क्रमशः समनुदिष्ट हैं ]

                26. जोखिम प्रथमदृष्ट्या सम्पत्ति के साथ संक्रान्त हो जाती है-जब तक कि अन्यथा करारित हो, माल तब तक विक्रेता की जोखिम पर रहता है जब तक उसमें की सम्पत्ति क्रेता को अन्तरित नहीं हो जाती ; किन्तु जब उसमें की सम्पत्ति क्रेता को अन्तरित हो जाती है तब, चाहे परिदान किया गया हो या नहीं, माल क्रेता की जोखिम पर रहता है :

                परन्तु जहां कि परिदान क्रेता या विक्रेता के कसूर से विलम्बित हो गया है वहां माल किसी हानि की बाबत, जो ऐसे कसूर के अभाव में हुई होती, उस पक्षकार की जोखिम पर रहता है जिसका कसूर हो :

                परन्तु यह और भी कि इस धारा की कोई भी बात क्रेता या विक्रेता के उन कर्तव्यों या दायित्वों पर प्रभाव नहीं डालेगी जो दूसरे पक्षकार के माल के उपनिहिती के नाते उसके हैं

हक का अन्तरण

                27. उस व्यक्ति द्वारा विक्रय जो स्वामी नहीं है-इस अधिनियम और किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि जहां कि माल ऐसे व्यक्ति द्वारा बेचा जाता है जो उसका स्वामी नहीं है और जो स्वामी के प्राधिकार के अधीन या सम्मति से उसे नहीं बेचता वहां क्रेता उस माल पर उस हक से, जो विक्रेता का था, बेहतर हक नहीं अर्जित करता, जब तक कि माल का स्वामी विक्रेता के विक्रय-प्राधिकार का प्रत्याखान करने से अपने आचरण द्वारा प्रवारित नहीं हो जाता :

                परन्तु जहां कि वाणिज्यिक अभिकर्ता माल पर या माल पर हक की दस्तावेज पर स्वामी की सम्मति से कब्जा रखता है वहां जब तक वह वाणिज्यिक अभिकर्ता के कारबार के मामूली अनुक्रम में कार्य कर रहा हो, उसके द्वारा किया गया कोई भी विक्रय वैसा ही विधिमान्य होगा मानो माल के स्वामी द्वारा वह ऐसा करने के लिए अभिव्यक्ततः प्राधिकृत हो ; परन्तु यह तब तब कि क्रेता सद्भावपूर्वक कार्य करे और विक्रय की संविदा के समय उसे यह सूचना हो कि विक्रेता को विक्रय-प्राधिकार नहीं है

                28. संयुक्त स्वामियों में से एक द्वारा विक्रय-यदि माल के कई संयुक्त स्वामियों में से एक का उस माल पर एकमात्रिक कब्जा सहस्वामियों की अनुज्ञा से है तो उस माल में की सम्पत्ति ऐसे किसी व्यक्ति को अन्तरित हो जाती है जो ऐसे संयुक्त स्वामी में उसे सद्भावपूर्वक क्रय करे और जिसे विक्रय की संविदा के समय यह सूचना हो कि विक्रेता को विक्रय-प्राधिकार नहीं है

                29. शून्यकरणीय संविदा के अधीन कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा विक्रय-जब कि माल के विक्रेता ने भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 19 या 19 के अधीन शून्यकरणीय संविदा के अधीन उस पर कब्जा अभिप्राप्त किया है किन्तु वह संविदा विक्रय के समय विखण्डित नहीं हो चुकी है, तब क्रेता उस माल पर अच्छा हक अर्जित कर लेता है; परन्तु यह तब जब कि वह उसे सद्भावपूर्वक और विक्रेता के हक की त्रुटि की सूचना के बिना क्रय करे

                30. विक्रय के पश्चात् विक्रेता या क्रेता का कब्जा रहना-(1) जहां कि किसी व्यक्ति के माल का विक्रय कर देने पर भी उस माल पर या उस माल पर हक की दस्तावेजों पर कब्जा बना रहता है या होता है वहां उस व्यक्ति द्वारा या उसके लिए कार्य करने वाले वाणिज्यिक अभिकर्ता द्वारा उस माल का या हक की दस्तावेजों का किसी विक्रय, गिरवी या अन्य व्ययन के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति को किया गया परिदान या अन्तरण जो उसे सद्भावपूर्वक और पूर्वतन विक्रय की सूचना के बिना प्राप्त करता है, वही प्रभाव रखेगा मानो परिदान या अन्तरण करने वाला व्यक्ति माल के स्वामी द्वारा वैसा करने के लिए अभिव्यक्ततः प्राधिकृत था

                (2) जहां कि कोई व्यक्ति माल का क्रय करके या क्रय करने का करार करके उस माल का या उस माल पर हक की दस्तावेजों का कब्जा विक्रेता की सम्मति से अभिप्राप्त करता है वहां उस व्यक्ति द्वारा या उसके लिए कार्य करने वाले वाणिज्यिक अभिकर्ता द्वारा उस माल का या हक की दस्तावेजों का किसी विक्रय, गिरवी या अन्य व्ययन के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति को किया परिदान या अन्तरण, जो उसे सद्भावपूर्वक और माल के बारे में मूल विक्रेता के किसी धारणाधिकार या अन्य अधिकार की सूचना के बिना प्राप्त करता है, ऐसा प्रभाव रखेगा मानो ऐसा धारणाधिकार या अधिकार अस्तित्व में था ही नहीं  

अध्याय 4

संविदा का पालन

                31. विक्रेता और क्रेता के कर्तव्य-विक्रेता का कर्तव्य है कि माल का परिदान और क्रेता का कर्तव्य है कि उसका प्रतिग्रहण और उसके लिए संदाय विक्रय की संविदा के निबन्धनों के अनुसार करे

                32. संदाय और परिदान समवर्ती शर्तें हैं-जब तक कि अन्यथा करार हुआ हो माल का परिदान और कीमत का संदाय समवर्ती शर्तें हैं अर्थात् विक्रेता कीमत के विनिमय में माल का कब्जा क्रेता को देने को तैयार और रजामन्द होगा और क्रेता माल के कब्जे के विनिमय में कीमत देने को तैयार और रजामन्द होगा

                33. परिदान-विक्रीत माल का परिदान ऐसा कोई काम करके किया जा सकेगा जिसके बारे में पक्षकारों में करार हो कि वह परिदान माना जाएगा या जो माल पर क्रेता का या उसकी ओर से धारित करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति का कब्जा करा देने का प्रभाव रखता हो

                34. भागिक परिदान का प्रभाव-सम्पूर्ण माल का परिदान चालू रहने के दौरान में माल के भाग का परिदान ऐसे माल में की सम्पत्ति के संक्रमण के प्रयोजन के लिए वही प्रभाव रखता है जो सम्पूर्ण का परिदान ; किन्तु माल के भाग का ऐसा परिदान, जो उसे सम्पूर्ण से पृथक् करने के आशय से किया जाए शेष के परिदान के रूप में प्रवृत्त नहीं होता

                35. परिदान के लिए क्रेता आवेदन करे-कोई अभिव्यक्त संविदा हो तो, जब तक क्रेता परिदान के लिए आवेदन करे माल का विक्रेता उसका परिदान करने के लिए आबद्ध नहीं है

                36. परिदान विषयक नियम-(1) यह बात कि माल का कब्जा क्रेता को लेना है या माल क्रेता को विक्रेता द्वारा भेजा जाना है हर मामले में पक्षकारों के बीच अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा पर अवलंबित है कोई ऐसी संविदा हो तो विक्रीत माल का परिदान उस स्थान पर जिसमें यह विक्रय के समय हो और विक्रय करने के लिए करारित माल का परिदान उस स्थान पर जिसमें वह विक्रय करने के करार के समय हो या यदि माल तब अस्तित्व में हो तो उस स्थान पर, जिसमें वह विनिर्मित या उत्पादित किया जाता है, किया जाएगा

                (2) जहां कि विक्रय की संविदा के अधीन क्रेता को माल भेजने के लिए विक्रेता आबद्ध हो, किन्तु उसे भेजने के लिए कोई समय नियत हो वहां विक्रेता उसे युक्तियुक्त समय के अन्दर भेजने के लिए आबद्ध है

                (3) जहां कि माल विक्रय के समय किसी पर-व्यक्ति के कब्जे में हो, वहां क्रेता को विक्रेता द्वारा परिदान नहीं होता यदि और जब तक ऐसा पर-व्यक्ति क्रेता से यह अभिस्वीकार कर ले कि वह माल को उसकी ओर से धारित किए हुए है :

                परन्तु इस धारा की कोई भी बात माल पर हक की किसी दस्तावेज के प्रदान या अन्तरण के प्रवर्तन पर प्रभाव डालेगी

                (4) परिदान की मांग या निविदा, जब तक कि वह युक्तियुक्त समय पर की जाए, प्रभावहीन मानी जा सकेगी युक्तियुक्त समय क्या है यह तथ्य का प्रश्न है

                (5) जब तक कि अन्यथा करार हो, माल को परिदेय स्थिति में लाने के और तदनुषंगिक व्यय विक्रेता द्वारा उठाए जाएंगे

                37. गलत परिमाण का परिदान-(1) जहां कि विक्रेता उस परिमाण से, जिसके विक्रय की संविदा उसने की थी, कम परिमाण के माल का परिदान क्रेता को करता है वहां क्रेता उसे प्रतिक्षेपित कर सकेगा, किन्तु यदि क्रेता ऐसे परिदत्त माल को प्रतिगृहीत कर लेता है तो वह संविदा-दर से उसके लिए संदाय करेगा

                (2) जहां कि विक्रेता उस परिमाण से, जिसके विक्रय की संविदा उसने की थी, अधिक परिमाण के माल का परिदान क्रेता को करता है वहां क्रेता उस माल को, जो संविदा के अन्तर्गत है, प्रतिगृहीत कर सकेगा और शेष को प्रतिक्षेपित कर सकेगा अथवा सम्पूर्ण को प्रतिक्षेपित कर सकेगा यदि क्रेता ऐसे परिदत्त समस्त माल को प्रतिगृहीत कर ले तो वह संविदा-दर से उसके लिए संदाय करेगा

                (3) जहां कि विक्रेता उस माल को, जिसके विक्रय की  उसने  संविदा की थी, उससे भिन्न वर्णन के ऐसे माल से, जो संविदा के अन्तर्गत नहीं है, मिश्रित करके परिदत्त करता है वहां क्रेता उस माल को प्रतिगृहीत कर सकेगा जो संविदा के अनुसार है और शेष को प्रतिक्षेपित कर सकेगा, अथवा समस्त को प्रतिक्षेपित कर सकेगा

                (4) इस धारा के उपबन्ध व्यापार की प्रथा अथवा पक्षकारों के बीच के विशेष करार या व्यवहार-चर्या के अध्यधीन है

                38. किस्तों में परिदान-(1) जब तक कि अन्यथा करार हो, माल का क्रेता उसका परिदान किस्तों में प्रतिगृहीत करने के लिए आबद्ध नहीं है

                (2) जहां कि संविदा ऐसे माल के विक्रय के लिए हो जिसका परिदान कथित किस्तों में किया जाना है, जिनके लिए संदाय पृथक्-पृथक् किया जाना है और विक्रेता एक या अधिक किस्तों की बाबत कोई परिदान नहीं करता है या त्रुटियुक्त परिदान करता है अथवा क्रेता एक या अधिक किस्तों का परिदान लेने में उपेक्षा या लेने से इंकार या एक या अधिक किस्तों के लिए संदाय करने में उपेक्षा या संदाय करने से इन्कार करता है वहां यह प्रश्न हर एक मामले में संविदा के निबन्धनों और मामले की परिस्थितियों पर अवलम्बित होगा कि संविदा का भंग सम्पूर्ण संविदा का निराकरण है या वह उसका ऐसा पृथक्करणीय भंग है, जिससे प्रतिकर के लिए दावा तो उद्भूत होता है किन्तु सम्पूर्ण संविदा को निराकृत मानने का अधिकार नहीं

                39. वाहक या घाटवाल को परिदान-(1) जहां कि विक्रय की संविदा के अनुसरण में विक्रेता को यह प्राधिकार है या उससे यह अपेक्षित है कि वह क्रेता को माल भेजे, वहां उस माल का क्रेता के पास पारेषण करने के प्रयोजन से वाहक को परिदान, चाहे वाहक क्रेता द्वारा नामित हो या हो, अथवा घाटवाल को सुरक्षित अभिरक्षा के लिए परिदान प्रथमदृष्ट्या उस माल का क्रेता को परिदान समझा जाता है

                (2) जब तक कि क्रेता द्वारा विक्रेता अन्यथा प्राधिकृत हो, वह क्रेता की ओर से वाहक से या घाटवाल से ऐसी संविदा करेगा, जो माल की प्रकृति और मामले की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए युक्तियुक्त हो यदि विक्रेता ऐसा करने का लोप करता है और माल अभिवहन के अनुक्रम में, अथवा उस समय, जब वह घाटवाल की अभिरक्षा में है, खो जाता है या नुकसानग्रस्त हो जाता है, तो क्रेता, वाहक या घटवाल को किया गया परिदान अपने को किया गया परिदान मानने से इन्कार कर सकेगा या विक्रेता को नुकसानी के लिए उत्तरदायी ठहरा सकेगा

                (3) जब तक अन्यथा करार हो, जहां कि विक्रेता द्वारा क्रेता को ऐसे मार्ग से, जिसमें समुद्र अभिवहन अर्न्तवलित है, ऐसी परिस्थितियों में माल भेजा जाता है, जिसमें प्रायः बीमा कराया जाता है, वहां क्रेता को विक्रेता ऐसी सूचना देगा जिससे क्रेता उसके समुद्र अभिवहन के दौरान के लिए उसका बीमा कराने को समर्थ हो सके और यदि विक्रेता ऐसा करने में असफल रहता है तो माल ऐसे समुद्र अभिवहन के दौरान में उसकी जोखिम पर समझा जाएगा

                40. जोखिम, जहां कि माल का परिदान दूर के स्थान पर किया जाता है-जहां कि माल का विक्रेता अपनी ही जोखिम पर उसका परिदान उस स्थान से भिन्न स्थान पर करने का करार करता है जहां वह माल विक्रय के समय है, वहां, ऐसा होते हुए भी क्रेता, जब तक कि अन्यथा करार हो, उस माल में ऐसे क्षय की जोखिम उठाएगा जो अभिवहन के अनुक्रम में अवश्यमेव हुआ करता है

                41. माल की परीक्षा करने का क्रेता का अधिकार-(1) जहां कि क्रेता को ऐसा माल परिदत्त किया जाता है जिसकी परीक्षा उसने तत्पूर्व नहीं की है, वहां यह समझा जाएगा कि उसने उसका प्रतिग्रहण कर लिया है यदि और जब तक उसे यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन से कि वह संविदा के अनुरूप है या नहीं, उसकी परीक्षा करने का युक्तियुक्त अवसर मिल गया हो

                (2) यदि अन्यथा करार हो, तो जब विक्रेता माल का परिदान क्रेता को निविदत्त करता है तब वह इस बात के लिए आबद्ध है कि यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन से कि माल संविदा के अनुरूप है या नहीं, माल की परीक्षा करने का युक्तियुक्त अवसर, प्रार्थना किए जाने पर, क्रेता को दे

                42. प्रतिग्रहण-क्रेता ने माल को प्रतिगृहीत कर लिया है, यह तब समझा जाता है, जब वह विक्रेता को यह प्रज्ञापित कर देता है उसने वह माल प्रतिगृहीत कर लिया है, या जब माल क्रेता को परिदत्त कर दिया गया है और उसने उसके संबंध में ऐसा कोई कार्य किया है जो विक्रेता के स्वामित्व से असंगत है या जब युक्तियुक्त समय के बीत जाने पर भी वह विक्रेता को अपना प्रतिक्षेपण प्रज्ञापित किए बिना माल को प्रतिधारित किए रहता है

                43. क्रेता प्रतिक्षेपित माल को वापस करने के लिए आबद्ध नहीं है-जब तक कि अन्यथा करार हो, जहां कि क्रेता को माल परिदत्त किया जाता है और वह उसका प्रतिग्रहण करने से इन्कार ऐसा करने का अधिकार रखते हुए, करता है वहां वह उसे विक्रेता को  वापस करने के लिए आबद्ध नहीं है, किन्तु यह पर्याप्त होगा कि वह विक्रेता को प्रतिज्ञापित कर दे कि वह उसका प्रतिग्रहण करने से इन्कार करता है

                44. माल का परिदान लेने में उपेक्षा या लेने से इन्कार करने के लिए क्रेता का दायित्व-जब कि विक्रेता माल का परिदान करने को तैयार और रजामन्द है और क्रेता से परिदान लेने की प्रार्थना करता है और क्रेता ऐसी प्रार्थना के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अन्दर उस माल का परिदान नहीं लेता है तब वह विक्रेता के प्रति ऐसी किसी हानि के लिए, जो परिदान लेने में क्रेता द्वारा की गई उपेक्षा या इन्कार से हुई है, और माल की देख-रेख और अभिरक्षा के युक्तियुक्त प्रभार के लिए भी दायी है :

                परन्तु जहां कि परिदान लेने में क्रेता द्वारा की गई उपेक्षा या इन्कार संविदा के निराकरण की कोटि में आता है वहां इस धारा की कोई भी बात विक्रेता के अधिकारों पर प्रभाव डालेगी  

अध्याय 5

माल पर असंदत्त विक्रेता के अधिकार

                45. असंदत्त विक्रेता" की परिभाषा-(1) माल का विक्रेता इस अधिनियम के अर्थ के अन्दर असंदत्त विक्रेता" तब समझा जाता है-

                                () जब कि पूरी कीमत संदत्त या निविदत्त की गई हो ;

                () जब कि विनिमय-पत्र या अन्य परक्राम्य लिखत सशर्त संदाय के रूप में प्राप्त हुई हो और जिस शर्त पर वह प्राप्त हुई थी वह लिखत के अनादरण के कारण या अन्यथा पूरी हुई हो

                (2) इस अध्याय में विक्रेता" पद के अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो विक्रेता की स्थिति में हो, उदारणार्थ विक्रेता का वह अभिकर्ता जिसे वहन-पत्र पृष्ठांकित कर दिया गया है या वह परेषक या अभिकर्ता जिसने कीमत स्वयं दे दी है या जो कीमत के लिए सीधे उत्तरदायी है

                46. असंदत्त विक्रेता के अधिकार-(1) इस अधिनियम के और किसी तत्समय प्रवृत विधि के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि इस बात के होते हुए भी कि माल में की सम्पत्ति क्रेता को संक्रान्त हो गई हो, माल के असंदत्त विक्रेता को उस नाते विधि की विवक्षा से निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है-

                                () माल पर कीमत लेखे तब तक धारणाधिकार जब तक उसका उस पर कब्जा रहता है ;

                () क्रेता के दिवालिया हो जाने की दशा में, माल अपने कब्जे से अलग कर देने के पश्चात् उसे अभिवहन में रोक देने का                    अधिकार ;

                                () पुनर्विक्रय का अधिकार, जैसा इस अधिनियम द्वारा परिसीमित है

                (2) जहां कि माल में की सम्पत्ति क्रेता को संक्रान्त नहीं हुई है वहां असंदत्त विक्रेता को अपने अन्य उपचारों के अतिरिक्त परिदान के विधारण का ऐसा अधिकार प्राप्त है, जो विक्रेता के उस धारणाधिकार और अभिवहन में रोकने के अधिकार के समान और समविस्तीर्ण है जो उसे उस दशा में प्राप्त होता है जब क्रेता को सम्पत्ति संक्रान्त हो जाती है

असंदत्त विक्रेता का धारणाधिकार

                47. विक्रेता का धारणाधिकार-(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि माल का असंदत्त विक्रेता, जिसका कब्जा माल पर है, उस पर निम्नलिखित दशाओं में तब तक कब्जा प्रतिधारित रखने का हकदार है, जब तक कीमत संदत्त या निविदत्त नहीं कर दी जाती, अर्थात् :-

                                () जहां कि माल का विक्रय उधार के बारे में किसी अनुबन्ध के बिना किया गया है ;

                                () जहां कि माल का विक्रय उधार पर किया गया है किन्तु उधार की अवधि का अवसान हो गया है ;

                                () जहां कि क्रेता दिवालिया हो जाता है

                (2) विक्रेता अपने धारणाधिकार का प्रयोग इस बात के होते हुए भी कर सकेगा कि माल पर उसका कब्जा क्रेता के अभिकर्ता या उपनिहिती के रूप में है

                48. भागिक परिदान-जहां कि असंदत्त विक्रेता ने माल का भागिक परिदान कर दिया है वहां वह अपने धारणाधिकार का प्रयोग शेष पर कर सकेगा, जब तक कि ऐसा परिदान ऐसी परिस्थितियों में किया गया हो जो धारणाधिकार के अधित्यजन का करार दर्शित करती हों

                49. धारणाधिकार का पर्यवसान-(1) माल का असंदत्त विक्रेता माल पर अपना धारणाधिकार खो देता है-

() जब वह क्रेता के पास पारेषित किए जाने के प्रयोजन से माल को, उसके व्ययन का अधिकार आरक्षित किए बिना, वाहक या अन्य उपनिहिती को परिदत्त कर देता है ;

                                () जब क्रेता या उसका अभिकर्ता माल पर कब्जा विधिपूर्वक अभिप्राप्त कर लेता है ;

                                () उसके अधित्यजन द्वारा

                (2) माल का असंदत्त विक्रेता, जिसका उस पर धारणाधिकार है, अपना धारणाधिकार केवल इस कारण नहीं खो देता कि उस माल की कीमत के लिए उसने डिक्री अभिप्राप्त कर ली है

अभिवहन में रोकना

                50. अभिवहन में रोकने का अधिकार-इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि जब कि माल का क्रेता दिवालिया हो जाए तब असंदत्त विक्रेता, जिसने माल अपने कब्जे से अलग कर दिया है, माल को अभिवहन से रोक देने का अधिकार रखता है, अर्थात् जब तक माल अभिवहन में रहे वह उस पर फिर कब्जा कर सकेगा और उसे तब तक प्रतिधारित रख सकेगा जब तक कीमत संदत्त या निविदत्त कर ली जाए

                51. अभिवहन की कालावधि-(1) उस समय से, जब विक्रेता के पास पारेषित किए जाने के प्रयोजन से माल वाहक को या अन्य उपनिहिती को परिदत्त किया जाता है, उस समय तक, जब क्रेता या उसका तन्निमित्त अभिकर्ता उसका परिदान ऐसे वाहक या अन्य उपनिहिती से ले लेता है, माल अभिवहन के अनुक्रम में समझा जाता है

                (2) यदि क्रेता या उसका तन्निमित्त अभिकर्ता उस माल का परिदान उसके नियत गन्तव्य स्थान पर पहुंचने से पूर्व अभिप्राप्त कर लेता है, तो अभिवहन का अन्त हो जाता है

                (3) यदि नियत गन्तव्य स्थान पर माल के पहुंचने के पश्चात् वाहक या अन्य उपनिहिती यह बात क्रेता से या उसके अभिकर्ता से अभिस्वीकृत कर ले कि वह माल को क्रेता या उसके अभिकर्ता की ओर से धारण किए हुए है और क्रेता या उसके अभिकर्ता की ओर से उपनिहिती के रूप में उस पर कब्जा बनाए रखे तो अभिवहन का अन्त हो जाता है और यह तत्वहीन है कि क्रेता द्वारा माल के लिए आगे का गन्तव्य स्थान उपदर्शित किया गया हो

                (4) यदि क्रेता ने माल को प्रतिक्षेषित कर दिया हो, और वाहक या अन्य उपनिहिती उस पर अपना कब्जा बनाए रखे तो, यद्यपि विक्रेता ने उसे वापस लेने से इन्कार कर दिया हो, यह नहीं समझा जाता कि अभिवहन का अंत हो गया है

                (5) जबकि माल का परिदान क्रेता द्वारा भाड़े पर लिए गए पोत को किया जाता है तब यह बात कि माल मास्टर के कब्जे में वाहक के रूप में है या क्रेता के अभिकर्ता के रूप में, एक ऐसा प्रश्न है जो उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों पर अवलम्बित रहता है

                (6) जहां कि वाहक या अन्य उपनिहिती माल का परिदान क्रेता को या उसके तन्निमित्त अभिकर्ता को करने से इंकार सदोष करता है वहां अभिवहन का अन्त हुआ समझा जाता है

                (7) जहां कि क्रेता को या उसके तन्निमित्त अभिकर्ता को माल का भागिक परिदान कर दिया गया है वहां शेष माल अभिवहन में रोका जा सकेगा, जब तक कि ऐसा भागिक परिदान ऐसी परिस्थितियों में किया गया हो जिनसे यह दर्शित होता हो कि सारे माल पर कब्जा छोड़ देने का करार है

                52. अभिवहन में रोका कैसे जाता है-(1) असंदत्त विक्रेता अभिवहन में रोकने के अपने अधिकार का प्रयोग या तो माल पर वास्तविक कब्जा करके या जिस वाहक या अन्य उपनिहिती के कब्जे में माल है उसे अपने दावे की सूचना देकर कर सकेगा ऐसी सूचना या तो उस व्यक्ति को, जिसका उस माल पर वास्तविक कब्जा है, या उसके मालिक को दी जा सकेगी पश्चात्कथित दशा में सूचना प्रभावी होने के लिए ऐसे समय पर और ऐसी परिस्थितियों में दी जाएगी कि मालिक युक्तियुक्त तत्परता के प्रयोग द्वारा उसे अपने सेवक या अभिकर्ता को इतना समय रहते संसूचित कर सके कि क्रेता को परिदान निवारित किया जा सके

                (2) जब कि माल को अभिवहन में रोकने की सूचना माल के वाहक या उस पर कब्जा रखने वाले अन्य उपनिहिती को विक्रेता द्वारा दी जाती है तब वह माल का प्रतिपरिदान विक्रेता को या उसके निदेशानुसार करेगा ऐसे प्रतिपरिदान के व्यय विक्रेता द्वारा उठाए जाएंगे

क्रेता और विक्रेता द्वारा अन्तरण

                53. क्रेता द्वारा अनुविक्रय या गिरवी का प्रभाव-(1) इस अभिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि माल का कोई भी विक्रय या अन्य व्ययन, जो क्रेता ने किया हो, असंदत्त विक्रेता के धारणाधिकार या अभिवहन में रोकने के अधिकार पर प्रभाव नहीं डालता, जब तक कि विक्रेता ने उसके लिए अपनी अनुमति दे दी हो :

                परन्तु जहां कि माल पर हक की दस्तावेज किसी व्यक्ति को उस माल का क्रेता या स्वामी होने के नाते दी गई है या विधिपूर्वक अन्तरित की गई है और वह व्यक्ति उस दस्तावेज को किसी ऐसे व्यक्ति को अन्तरित कर देता है, तो उस दस्तावेज को सद्भावपूर्वक और प्रतिफलेन लेता है, वहां यदि ऐसा अन्तिम वर्णित अन्तरण विक्रय के रूप में था तो असंदत्त विक्रेता का धारणाधिकार या अभिवहन में रोकने का अधिकार विफल हो जाता है और यदि ऐसा अन्तिम वर्णित अन्तरण गिरवी या अन्य मूल्यार्थ व्ययन के रूप में था तो असंदत्त विक्रेता के धारणाधिकार या अभिवहन में रोकने के अधिकार का प्रयोग उस अन्तरिती के अधिकारों के अध्यधीन ही किया जा सकता है

                (2) जहां कि अन्तरण गिरवी के रूप में है वहां असंदत्त विक्रेता गिरवीदार से यह अपेक्षा कर सकेगा कि यावत्सम्भव वह गिरवी द्वारा प्रतिभूत रकम की तुष्टि प्रथमतः क्रेता के ऐसे किसी अन्य माल या प्रतिभूतियों से कराए जो गिरवीदार के हाथों में हो और क्रेता के विरुद्ध काम में लाई जा सकती हो

                54. धारणाधिकार से या अभिवहन में रोकने से विक्रय का विखंडन साधारणतः नहीं होता-(1) इस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि असंदत्त विक्रेता द्वारा अपने धारणाधिकार या अभिवहन में रोकने के अधिकार के प्रयोग मात्र से विक्रय की संविदा का विखण्डन नहीं होता

                (2) जहां कि माल विनश्वर प्रकृति का है या जहां कि असंदत्त विक्रेता, जिसने अपने धारणाधिकार या अभिवहन में रोकने के अधिकार का प्रयोग किया है, पुनर्विक्रय करने के अपने आशय की सूचना क्रेता को देता है वहां यदि क्रेता युक्तियुक्त समय के अन्दर कीमत संदत्त या निविदत्त नहीं कर देता तो असंदत्त विक्रेता युक्तियुक्त समय के अन्दर माल का पुनर्विक्रय कर सकेगा और उसके संविदा भंग से कारित हानि के लिए मूल विक्रेता से नुकसानी वसूल कर सकेगा, किन्तु क्रेता उस लाभ का हकदार होगा जो पुनर्विकय से हो यदि ऐसी सूचना नहीं दी जाती है तो असंदत्त विक्रेता ऐसी नुकसानी वसूल करने का हकदार होगा और क्रेता पुनर्विक्रय पर हुए लाभ का, यदि कोई हो, हकदार होगा

                (3) जहां कि असंदत्त विक्रेता, जिसने अपने धारणाधिकार का या अभिवहन में रोकने के अधिकार का प्रयोग किया है, माल का पुनर्विक्रय करता है वहां क्रेता, उस पर मूल क्रेता के विरुद्ध अच्छा हक इस बात के होते हुए भी अर्जित कर लेता है कि मूल क्रेता को पुनर्विक्रय की कोई सूचना नहीं दी गई है

                (4) जहां कि विक्रेता यह अधिकार अभिव्यक्ततः आरक्षित कर लेता है कि यदि क्रेता व्यतिक्रम करे तो पुनर्विक्रय किया जा सकेगा और क्रेता के व्यतिक्रम करने पर माल का पुनर्विक्रय कर देता है वहां मूल विक्रय संविदा का तद्द्वारा विखंडन हो जाता है किन्तु उससे विक्रेता के किसी ऐसे दावे पर, जो वह नुकसानी के लिए रखता हो, प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता

अध्याय 6

संविदा-भंग के लिए वाद

                55. कीमत के लिए वाद-(1) जहां कि विक्रय की संविदा के अधीन माल में की सम्पत्ति क्रेता को संक्रान्त हो गई है और क्रेता संविदा के निबन्धनों के अनुसार उस माल का संदाय करने की उपेक्षा या करने से इंकार सदोष करता है वहां विक्रेता माल की कीमत के लिए उसके विरुद्ध वाद ला सकेगा

                (2) जहां कि विक्रय की संविदा के अधीन कीमत, इस बात को दृष्टि में लाए बिना कि परिदान हुआ है या नहीं, किसी निश्चित दिन को देय हो, और क्रेता ऐसी कीमत का संदाय करने की उपेक्षा या करने से इंकार सदोष करता है वहां विक्रेता कीमत के लिए उसके विरुद्ध वाद ला सकेगा, यद्यपि माल में की संपत्ति संक्रान्त हुई हो और वह माल संविदा मद्धे विनियोजित किया गया हो

                56. अप्रतिग्रहण के लिए नुकसानी-जहां कि क्रेता माल का प्रतिग्रहण और उसके लिए संदाय करने की उपेक्षा या करने से इंकार सदोष करता है वहां विक्रेता अप्रतिग्रहण के लिए नुकसानी का वाद उसके विरुद्ध ला सकेगा

                57. अपरिदान के लिए नुकसानी-जहां कि विक्रेता माल का परिदान क्रेता को करने की उपेक्षा या करने से इंकार सदोष करता है वहां क्रेता अपरिदान के लिए नुकसानी का वाद विक्रेता के विरुद्ध ला सकेगा

                58. विनिर्दिष्ट पालन-विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 (1877 का 1) के अध्याय 2 के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि विनिर्दिष्ट या अभिनिश्चित माल के परिदान की संविदा के भंग के किसी वाद में न्यायालय यदि वह ठीक समझे, वादी के आवेदन पर अपनी डिक्री द्वारा प्रतिवादी को यह विकल्प दिए बिना कि वह नुकसानी देकर माल को प्रतिधारित रखे, यह निदेश दे सकेगा कि संविदा का पालन विनिर्दिष्टतः किया जाए डिक्री अशर्त हो सकेगी अथवा नुकसानी या कीमत के संदाय विषयक या अन्यथा ऐसे निबन्धनों और शर्तों सहित हो सकेगी जिन्हें न्यायालय न्यायसंगत समझे, और वादी द्वारा आवेदन डिक्री से पूर्व किसी समय भी किया जा सकेगा

                59. वारंटी के भंग का उपचार-(1) जहां कि वारंटी का भंग विक्रेता द्वारा किया जाता है या जहां कि क्रेता यह निर्वाचन करता है या ऐसा मानने के लिए विवश हो जाता है कि विक्रेता पक्ष से जो शर्त का भंग हुआ है वह वारण्टी का भंग है, वहां क्रेता वारण्टी के ऐसे भंग के कारण ही उस माल को प्रतिक्षेपित करने का हकादार नहीं हो जाता, किन्तु वह-

                                () वारण्टी के भंग की कीमत कम या निर्वापित कराने में विक्रेता के विरुद्ध रख सकेगा ; अथवा

                                () वारण्टी के भंग के लिए विक्रेता के विरुद्ध नुकसानी का वाद ला सकेगा

                (2) यह तथ्य कि क्रेता ने वारण्टी के भंग को कीमत कम या निर्वापित कराने में रखा है वारण्टी के उसी भंग के लिए वाद लाने से निवारित नहीं करता यदि उसे अतिरिक्त नुकसान उठाना पड़ा हो

                60. सम्यक् तारीख से पूर्व संविदा का निराकरण-जहां कि विक्रय की संविदा के पक्षकारों में से कोई सा भी पक्षकार परिदान की तारीख से पूर्व उस संविदा का निराकरण कर देता है वहां दूसरा पक्षकार या तो यह मान सकेगा या संविदा अस्तित्व में बनी हुई है और परिदान की तारीख तक प्रतीक्षा कर सकेगा या संविदा को विखंडित मान सकेगा और उसे भंग के लिए वाद ला सकेगा

                61. नुकसानी के तौर पर ब्याज और विशेष नुकसानी-(1) उस दशा में, जिसमें ब्याज या विशेष नुकसानी विधि द्वारा वसूलीय हो, ब्याज या विशेष नुकसानी को, अथवा जहां कि धन के संदाय का जो प्रतिफल था वह निष्फल हो गया है, दिए हुए धन को, वसूल करने के विक्रेता या क्रेता के अधिकार पर इस अधिनियम की कोई भी बात प्रभाव डालेगी

                (2) तत्प्रतिकूल संविदा के अभाव में न्यायालय कीमत की रकम पर ऐसी दर से जिसे वह ठीक समझे ब्याज-

() विक्रेता को उस वाद में, जो उसने कीमत के लिए किया है माल की निविदा की तारीख से या उस तारीख से जिस तारीख को कीमत संदेय थी, अधिनिर्णीत कर सकेगा ;

() क्रेता को उस वाद में, जो उसने विक्रेता की तरफ से संविदा-भंग की दशा में कीमत के प्रतिदान के लिए किया है उस तारीख से अधिनिर्णीत कर सकेगा जिस तारीख को कीमत का संदाय किया गया था

अध्याय 7

प्रकीर्ण

                62. विवक्षित निबन्धनों और शर्तों का अपवर्जन-जहां कि विधि की विवक्षा से कोई अधिकार, कर्तव्य या दायित्व विक्रय की संविदा के अधीन उद्भूत होता हो वहां अभिव्यक्त करार द्वारा या पक्षकारों के बीच की व्यवहार-चर्या द्वारा या प्रथा द्वारा, यदि प्रथा ऐसी हो जो संविदा के दोनों पक्षकारों पर आबद्धकर हो, उसका नकार या उसमें फेरफार किया जा सकेगा

                63. युक्तियुक्त समय तथ्य का प्रश्न है-जहां कि इस अधिनियम में युक्तियुक्त समय के प्रति कोई निर्देश किया गया है वहां युक्तियुक्त समय क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है

                64. नीलाम विक्रय-नीलाम द्वारा विक्रय की दशा में-

(1) जहां कि माल लाटों में विक्रय के लिए रखा जाता है वहां हर एक लाट के बारे में प्रथमदृष्ट्या यह समझा जाता है कि वह विक्रय की एक पृथक् संविदा का विषय है ;

(2) वह विक्रय तब पूर्ण हो जाता है जब नीलामकर्ता उसका पूर्ण होना धनपात द्वारा या अन्य रूढ़िक प्रकार से आख्यापित करता है और जब तक ऐसा आख्यापन किया जाए कोई भी बोली लगाने वाला अपनी बोली वापस ले सकेगा ;  

(3) बोली लगाने का अधिकार विक्रेता द्वारा या उसकी ओर से अभिव्यक्ततः आरक्षित रखा जा सकेगा और जहां कि ऐसा अधिकार अभिव्यक्ततः आरक्षित रखा जाता है, किन्तु अन्यथा नहीं, विक्रेता या उसकी ओर से कोई एक व्यक्ति नीलाम में बोली एतस्मिन्पश्चात् अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अध्यधीन लगा सकेगा ;

(4) जहां कि विक्रय का विक्रेता की ओर से बोली लगाने के अधिकार के अध्यधीन होना अधिसूचित नहीं है वहां ऐसे विक्रय में स्वयं बोली लगाना या किसी व्यक्ति को बोली लगाने के लिए नियोजित करना विक्रेता के लिए विधिपूर्ण होगा, और नीलामकर्ता के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह विक्रेता से या ऐसे किसी व्यक्ति से कोई बोली जानते हुए ले, और इस नियम के उल्लंघनकारी विक्रय को क्रेता कपटपूर्ण मान सकेगा ;

                                (5) विक्रय का किसी आरक्षित कीमत या अपसेट कीमत के अध्यधीन होना अधिसूचित किया जा सकेगा ;

                                (6) यदि विक्रेता अपदेशी बोली का प्रयोग कीमत बढ़ाने के लिए करता है तो विक्रय क्रेता के विकल्प पर शून्यकरणीय है

                 [64. वर्धित या कम किए गए करों की रकम का विक्रय की संविदाओं में जोड़ा या घटाया जाना-(1) जब तक कि संविदा के निबन्धनों से भिन्न आशय प्रतीत हो, किसी माल की बाबत उपधारा (2) में वर्णित प्रकृति का कोई कर ऐसे माल के विक्रय या क्रय के लिए, वहां पर जहां कि संविदा के किए जाने के समय कर प्रभार्य नहीं था, कर के संदाय के बारे में किसी अनुबन्ध के बिना, या वहां पर जहां कि उस समय कर प्रभार्य था, ऐसे माल के दत्त-कर विक्रय या क्रय के लिए, कोई संविदा की जाने के पश्चात् अधिरोपित, वर्धित, कम या परिहृत किए जाने की दशा में-

() यदि ऐसा अधिरोपण या वर्धन इस प्रकार प्रभाव में आता है कि, यथास्थिति, कर या वर्धित कर या ऐसे कर का कोई भाग संदत्त किया जाता है या संदेय है तो विक्रेता संविदा-कीमत में उतनी रकम जोड़ सकेगा जितनी ऐसे कर या कर की वृद्धि की बाबत संदत्त या संदेय रकम के बराबर हो, और ऐसी जोड़ी गई रकम अपने को संदत्त किए जाने का तथा वह उस रकम के लिए वाद लाने और उसे वसूल करने का हकदार होगा ; तथा

() यदि ऐसी कमी या परिहार इस प्रकार प्रभाव में आता है कि, यथास्थिति, केवल कम किया गया कर संदत्त किया जाता है या संदेय है या कोई भी कर संदत्त किया गया है, संदेय है तो क्रेता संविदा कीमत में से उतनी रकम काट सकेगा जितनी कर की कमी या परिहृत कर के बराबर हो और ऐसी कटौती के लिए या की बाबत संदाय करने का वह दायी होगा और उस पर वाद लाया जा सकेगा

(2) उपधारा (1) के उपबन्ध निम्नलिखित करों को लागू होते हैं, अर्थात् :-

() माल पर कोई भी सीमाशुल्क या उत्पाद-शुल्क ;

() माल के विक्रय या क्रय पर कोई भी कर ]

                65. [निरसन ]-निरसन अधिनियम, 1938 (1938 का 1) की धारा 2 और अनुसूची द्वारा निरसित

                66. व्यावृत्तियां-(1) इस अधिनियम या एतद्द्वारा किए गए किसी भी निरसन में की कोई भी बात निम्नलिखित पर तो प्रभाव डालेगी और प्रभाव डालने वाली समझी जाएगी-

() इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व अर्जित, प्रोद्भूत या उपगत कोई भी अधिकार, हक, हित, बाध्यता या दायित्व ; अथवा

                                () ऐसे किसी अधिकार, हक, हित, बाध्यता या दायित्व के विषय में कोई वैध कार्यवाहियां या उपचार ; अथवा

                                () इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व की गई या सहन की गई कोई भी बात ; अथवा

                () माल के विक्रय से संबंधित ऐसी कोई भी अधिनियमिति, जो इस अधिनियम द्वारा अभिव्यक्ततः निरसित नहीं की गई है ; अथवा

                                () विधि का ऐसा कोई भी नियम जो इस अधिनियम से असंगत नहीं है

                (2) दिवाला विषयक नियम, जो माल के विक्रय की संविदाओं से संबंधित हों इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, उन्हें लागू बने रहेंगे

                (3) विक्रय की संविदाओं से संबंधित इस अधिनियम के उपबन्ध विक्रय की संविदा के रूप के किसी ऐसे संव्यवहार को लागू नहीं हैं जो बन्धक, गिरवी, भार या अन्य प्रतिभूति के तौर पर प्रवर्तित होने के लिए आशयित हों

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