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विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 ( Legal Services Authorities Act, 1987 )


 

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987

(1987 का अधिनियम संख्यांक 39)

[11 अक्तूबर, 1987]

समाज के दुर्बल वर्गों को निःशुल्क और सक्षम विधिक सेवा यह सुनिश्चित

करने हेतु उपलब्ध कराने के लिए कि आर्थिक या अन्य निर्योग्यताओं

के कारण कोई भी नागरिक न्याय पाने के अवसर से वंचित

रह जाए, विधिक सेवा प्राधिकरणों का गठन करने

के लिए और यह सुनिश्चित करने हेतु कि विधिक

पद्धति के प्रवर्तन से समान अवसर के आधार

पर न्याय का संवर्धन हो, लोक अदालतें

संगठित करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के अड़तीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 है ।

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख। को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे तथा इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए और भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और किसी राज्य के संबंध में इस अधिनियम के किसी उपबंध के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का अर्थ यह लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में उस उपबंध के प्रारम्भ के प्रति निर्देश है ।

2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

                 [(क) मामला" के अंतर्गत किसी न्यायालय के समक्ष कोई वाद या कोई कार्यवाही है ;

(कक) केन्द्रीय प्राधिकरण" से धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है ;

(ककक) न्यायालय" से कोई सिविल, दाण्डिक या राजस्व न्यायालय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत न्यायिक या न्यायिककल्प कृत्यों का प्रयोग करने के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन गठित कोई अधिकरण या कोई अन्य प्राधिकरण है ;]

(ख) जिला प्राधिकरण" से धारा 9 के अधीन गठित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है ;

 [(खख) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति" से धारा 8क के अधीन गठित उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है ;]

(ग) विधिक सेवा" के अंतर्गत किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण या अधिकरण के समक्ष किसी मामले या अन्य विधिक कार्यवाही के संचालन में कोई सेवा करना और किसी विधिक विषय के संबंध में सलाह देना भी है ;

(घ) लोक अदालत" से अध्याय 6 के अधीन आयोजित लोक अदालत अभिप्रेत है ;

(ङ) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है ;

(च) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

2[(चच) विनियम" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं ;]

(छ) स्कीम" से केन्द्रीय प्राधिकरण, राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण द्वारा इस अधिनियम के किसी उपबंध को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए बनाई गई कोई स्कीम अभिप्रेत है ;

(ज) राज्य प्राधिकरण" से धारा 6 के अधीन गठित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अभिप्रेत है ;

(झ) राज्य सरकार" के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त किया गया किसी संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक भी है ;

 [(ञ) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति" से धारा 3क के अधीन गठित उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है ;

(ट) तालुक विधिक सेवा समिति" से धारा 11क के अधीन गठित तालुक विधिक सेवा समिति अभिप्रेत है ।]

                (2) इस अधिनियम में किसी अन्य अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति निर्देश का, किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं है, अर्थ यह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि या तत्स्थानी विधि के सुसंगत उपबंध के, यदि कोई हो, प्रति निर्देश है ।

अध्याय 2

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण

 [3. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग या समनुदिष्ट कृत्यों का पालन करने के लिए एक निकाय गठित करेगी जिसे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण कहा जाएगा ।

(2) केन्द्रीय प्राधिकरण निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, -

                (क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, जो मुख्य संरक्षक होगा ;

                (ख) राष्ट्रपति द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, नामनिर्दिष्ट उच्चतम न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जो कार्यकारी अध्यक्ष होगा ; और

(ग) केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, नामनिर्दिष्ट उतने अन्य सदस्य, जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो उस सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(3) केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिए जो उस सरकार द्वारा विहित किए जाएं या जो उस प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा उसे समनुदिष्ट किए जाएं, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्य-सचिव के रूप में एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करेगी जिसके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो उस सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(4) केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्यों और सदस्य-सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

(5) केन्द्रीय प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जितने केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

(6) केन्द्रीय प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

(7) केन्द्रीय प्राधिकरण के प्रशासनिक व्यय, जिनके अन्तर्गत केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्य-सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, भारत की संचित निधि में से अदा किए जाएंगे ।

(8) केन्द्रीय प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्य-सचिव द्वारा या किसी ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे उस प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किया गया हो, अधिप्रमाणित किए जाएंगे ।

(9) केन्द्रीय प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि केन्द्रीय प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ।

3क. उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति-(1) केन्द्रीय प्राधिकरण, ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करने के प्रयोजन के लिए, जो केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित किए जाएं, एक समिति का गठन करेगा जिसे उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति कहा जाएगा ।

(2) यह समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, जिनका नामनिर्देशन भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा किया जाएगा-

                (क) उच्चतम न्यायालय का एक आसीन न्यायाधीश, जो अध्यक्ष होगा ; और

                (ख) उतने अन्य सदस्य, जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(3) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति इस समिति के सचिव के रूप में एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करेगा जिसके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(4) समिति के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें वे होंगी जो केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित की जाएं ।

(5) समिति अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगी जितने केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

(6) समिति के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।]

4. केन्द्रीय प्राधिकरण के कृत्य-केन्द्रीय प्राधिकरण,  । । । निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात् :-

(क) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन विधिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए नीतियां और सिद्धांत अधिकथित करना ;

(ख) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन विधिक सेवाएं उपलब्ध कराने के प्रयोजन के लिए अति प्रभावी और  कम-खर्च वाली स्कीमें बनाना ;

(ग) उसके व्ययनाधीन निधियों का उपयोग करना और राज्य प्राधिकरणों और जिला प्राधिकरणों को निधियों का उपयुक्त आबंटन करना ;

(घ) उपभोक्ता संरक्षण, पर्यावरण सरंक्षण या समाज के दुर्बल वर्गों के विशेष महत्व वाले किसी अन्य विषय के संबंध में सामाजिक न्याय संबंधी मुकदमा के रूप में आवश्यक कदम उठाना और इस प्रयोजन के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को विधि संबंधी कौशल में प्रशिक्षण देना ;

(ङ) विधिक सहायता कैंप, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों, गंदी बस्तियों या श्रमिक कालोनियों में समाज के दुर्बल वर्गों को उनके अधिकारों तथा साथ ही लोक अदालतों के माध्यम से विवादों का निपटारा करने को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षित करने के दोहरे प्रयोजन से आयोजित करना ;

                (च) बातचीत, माध्यस्थम् और सुलह के द्वारा विवादों का निपटारा करने के लिए प्रोत्साहित करना ;

                (छ) विधिक सेवाओं के क्षेत्र में, निर्धनों के बीच ऐसी सेवाओं की आवश्यकता के विशेष संदर्भ में, अनुसंधान करना और उसका संवर्धन करना ;

(ज) संविधान के भाग क के अधीन नागरिकों के मूल कर्तव्यों के प्रति वचनबद्धता सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए सभी आवश्यक बातें करना ;

(झ) कालिक अंतरालों पर विधिक सहायता कार्यक्रम के कार्यान्वयन को मानिटर करना और उसका मूल्यांकन करना तथा इस अधिनियम के अधीन उपबंधित निधियों से पूर्णतः या भागतः क्रियान्वित कार्यक्रमों और स्कीमों के स्वतंत्र मूल्यांकन की व्यवस्था करना ;

 [(ञ) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन विधिक सेवा संबंधी स्कीमों के कार्यान्वयन के लिए उसके व्ययनाधीन रखी गई रकमों में से विभिन्न स्वैच्छिक समाज सेवा संस्थाओं और राज्य तथा जिला प्राधिकरणों को विनिर्दिष्ट स्कीमों के लिए सहायता अनुदान देना ;]

(ट) भारतीय विधिज्ञ परिषद् के परामर्श से नैदानिक विधि शिक्षा के कार्यक्रमों का विकास करना और मार्गदर्शन का संवर्धन करना तथा विश्वविद्यालयों, विधि महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं में, विधिक सेवा क्लिनिकों की स्थापना तथा कार्यकरण का पर्यवेक्षण करना ;

(ठ) लोगों के बीच विधि संबंधी साक्षरता और विधि संबंधी जागरुकता का प्रसार करने के लिए और विशिष्टतया समाज के दुर्बल वर्गों को समाज कल्याण संबंधी विधानों और अन्य अधिनियमितियों द्वारा गारन्टीकृत अधिकारों, फायदों और विशेषाधिकारों के बारे में और प्रशासनिक कार्यक्रमों और उपायों के बारे में शिक्षित करने के लिए उपयुक्त उपाय करना ;

(ड) निचले स्तर पर, विशिष्टतया अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं तथा ग्रामीण और शहरी श्रमिकों के बीच कार्य करने वाली स्वैच्छिक समाज कल्याण संस्थाओं का समर्थन प्राप्त करने के लिए विशेष प्रयास करना ; और

(ढ)  [राज्य प्राधिकरणों, जिला प्राधिकरणों, उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समितियों, तालुक विधिक सेवा समितियों तथा स्वैच्छिक समाज सेवा संस्थाओंट और अन्य विधिक सेवा संगठनों को समन्वित और मानिटर तथा विधिक सेवा कार्यक्रमों के उचित कार्यान्वयन के लिए साधारण निर्देश देना ।

5. केन्द्रीय प्राधिकरण का अन्य अभिकरणों के समन्वय से कार्य करना-केन्द्रीय प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में, जहां भी उपयुक्त हो, अन्य सरकारी और गैर-सरकारी अभिकरणों, विश्वविद्यालयों और निर्धनों के लिए विधिक सेवा के उद्देश्य के संवर्धन के कार्य में लगे हुए अन्य के समन्वय से, कार्य करेगा ।

अध्याय 3

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण

 [6. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन-(1) प्रत्येक राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन राज्य प्राधिकरण को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग या समनुदिष्ट कृत्यों का पालन करने के लिए एक निकाय का गठन करेगी जिसे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण कहा जाएगा ।

(2) राज्य प्राधिकरण निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,-

                (क) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति जो मुख्य संरक्षक होगा ;

                (ख) राज्यपाल द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, नामनिर्दिष्ट उच्च न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जो कार्यकारी अध्यक्ष होगा ; और

(ग) राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से नामनिर्दिष्ट उतने अन्य सदस्य जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो उस सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(3) राज्य सरकार, राज्य प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिए, जो उस सरकार द्वारा विहित किए जाएं या जो उस प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा उसे समनुदिष्ट किए जाएं, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, राज्य उच्चतर न्यायिक सेवा के एक ऐसे व्यक्ति को, जो जिला न्यायाधीश की पंक्ति से नीचे का न हो, राज्य प्राधिकरण का सदस्य-सचिव नियुक्त करेगी :

परंतु राज्य प्राधिकरण के गठन की तारीख के ठीक पूर्व राज्य विधिक सहायता और सलाह बोर्ड के सचिव के रूप में कार्य कर रहा व्यक्ति उस प्राधिकरण के सदस्य-सचिव के रूप में पांच वर्ष से अनधिक अवधि के लिए नियुक्त किया जा सकेगा भले ही वह इस उपधारा के अधीन उस रूप में नियुक्त किए जाने के लिए अर्हित न हो ।

(4) राज्य प्राधिकरण के सदस्यों और सदस्य-सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

(5) राज्य प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जितने राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

(6) राज्य प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

(7) राज्य प्राधिकरण के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत राज्य प्राधिकरण के सदस्य-सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, राज्य की संचित निधि में से अदा किए जाएंगे ।

(8) राज्य प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय, राज्य प्राधिकरण के सदस्य-सचिव या किसी ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे राज्य प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किया गया हो, अधिप्रमाणित किए जाएंगे ।

(9) राज्य प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि राज्य प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ।]

7. राज्य प्राधिकरण के कृत्य-(1) राज्य प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह केन्द्रीय प्राधिकरण की नीति और निदेशों को कार्यान्वित करे ।

(2) राज्य प्राधिकरण, उपधारा (1) में निर्दिष्ट कृत्यों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात्: -

                (क) ऐसे व्यक्तियों को विधिक सेवा देना, जो इस अधिनियम के अधीन अधिकथित मानदंडों की पूर्ति करते हैं;

                (ख) [लोक अदालतों का, जिसके अंतर्गत उच्च न्यायालय के मामलों के लिए लोक अदालतें भी हैं,] संचालन  करना;

                (ग) निवारक और अनुकूल विधिक सहायता कार्यक्रमों का जिम्मा लेना; और

                (घ) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो राज्य प्राधिकरण, 1[केन्द्रीय प्राधिकरण] के परामर्श से, विनियमों द्वारा, नियत करे ।

 [8. राज्य प्राधिकरण का अन्य अभिकरणों, आदि के समन्वय से कार्य करना और केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा दिए गए निदेशों के अधीन होना-राज्य प्राधिकरण, अपने कृत्यों के निर्वहन में, अन्य सरकारी अभिकरणों, गैर-सरकारी स्वैच्छिक समाज सेवा संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और निर्धनों के लिए विधिक सेवा के उद्देश्य के संवर्धन के कार्य में लगे हुए अन्य निकायों के समन्वय से, समुचित रूप से कार्य करेगा और ऐसे निदेशों से भी मार्गदर्शित होगा जो उसे केन्द्रीय प्राधिकरण, लिखित रूप में दे ।

8क. उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति-(1) राज्य प्राधिकरण, ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करने के प्रयोजन के लिए, जो राज्य प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित किए जाएं, प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए एक समिति का गठन करेगा जिसे उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति कहा जाएगा ।

(2) यह समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, जिसका नामनिर्देशन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा किया जाएगा: -

                (क) उच्च न्यायालय का एक आसीन न्यायाधीश, जो अध्यक्ष होगा; और

                (ख) उतने अन्य सदस्य, जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों, जो राज्य प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित की जाएं ।

(3) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति समिति का एक सचिव नियुक्त करेगा जिसके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(4) समिति के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें वे होंगी, जो राज्य प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित की जाएं ।

(5) समिति अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगी जितने राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

(6) समिति के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

9. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण-(1) राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, इस अधिनियम के अधीन जिला प्राधिकरण को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदिष्ट कृत्यों का पालन करने के लिए, राज्य के प्रत्येक जिले के लिए एक निकाय का गठन करेगी जिसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कहा जाएगा ।

(2) जिला प्राधिकरण निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, -

                (क) जिला न्यायाधीश जो उसका अध्यक्ष होगा; और

                (ख) राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, नामनिर्दिष्ट उतने अन्य सदस्य, जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो उस सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

(3) राज्य प्राधिकरण, उस समिति के अध्यक्ष के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिए, जो ऐसे अध्यक्ष द्वारा उसे समनुदिष्ट किए जाएं, जिला प्राधिकरण के अध्यक्ष के परामर्श से, राज्य न्यायिक सेवा के किसी ऐसे व्यक्ति को, जो जिला न्यायपालिका के स्थान में कार्य कर रहे अधीनस्थ न्यायाधीश या सिविल न्यायाधीश की पंक्ति से नीचे का न हो, जिला प्राधिकरण के सचिव के रूप में नियुक्त करेगा ।

(4) जिला प्राधिकरण के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें वे होंगी जो राज्य प्राधिकरण द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित की जाएं ।

(5) जिला प्राधिकरण अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा जितने राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

(6) जिला प्राधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से विहित की जाएं ।

(7) प्रत्येक जिला प्राधिकरण के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत जिला प्राधिकरण के सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, राज्य की संचित निधि में से अदा किए जाएंगे ।

(8) जिला प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय, जिला प्राधिकरण के सचिव या किसी ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे उस प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किया गया हो, अधिप्रमाणित किए जाएंगे ।

(9) जिला प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि जिला प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ।]

10. जिला प्राधिकरण के कृत्य-(1) प्रत्येक जिला प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह जिले में राज्य प्राधिकरण के ऐसे कृत्यों का पालन करे जो राज्य प्राधिकरण द्वारा उसे समय-समय पर प्रत्यायोजित किए जाएं ।

(2) जिला प्राधिकरण, उपधारा (1) में निर्दिष्ट कृत्यों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन कर सकेगा, अर्थात्: -

 [(क) तालुक विधिक सेवा समितियों और जिले में अन्य विधिक सेवाओं के क्रियाकलापों का समन्वय करना;]

                (ख) जिले के भीतर लोक अदालतों का आयोजन करना; और

                (ग) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो राज्य प्राधिकरण, । । । विनियमों द्वारा, नियत करे ।

11. जिला प्राधिकरण का अन्य अभिकरणों के समन्वय से कार्य करना और केन्द्रीय प्राधिकरण, आदि द्वारा दिए गए निदेशों के अधीन होना-प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में, जहां उपयुक्त हो, अन्य सरकारी अभिकरणों, गैर-सरकारी संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और निर्धनों के लिए विधिक सेवा के उद्देश्य के संवर्धन कार्य में लगे हुए अन्य के समन्वय से, कार्य करेगा और ऐसे निदेशों द्वारा मार्गदर्शित होगा जो उसे केन्द्रीय प्राधिकरण या राज्य प्राधिकरण लिखित में दे ।

                 [11क. तालुक विधिक सेवा समिति-(1) राज्य प्राधिकरण प्रत्येक तालुक या मंडल के लिए या तालुकों या मंडलों के समूह के लिए एक समिति का गठन कर सकेगा जिसे तालुक विधिक सेवा समिति कहा जाएगा ।

                (2) यह समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी-

(क) इस समिति की अधिकारिता के भीतर कार्य करने वाला [ज्येष्ठतम न्यायिक अधिकारी] जो पदेन अध्यक्ष होगा ; और

(ख) राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, नामनिर्दिष्ट उतने अन्य सदस्य, जिनके पास ऐसा अनुभव और ऐसी अर्हताएं हों जो उस सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

                (3) समिति अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगी जितने राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित किए जाएं ।

                (4) समिति के अधिकारी और अन्य कर्मचारी ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे और सेवा की ऐसी अन्य शर्तों के अधीन होंगे जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

                (5) समिति के प्रशासनिक व्यय जिला प्राधिकरण द्वारा जिला विधिक सहायता निधि में से अदा किए जाएंगे ।

11ख. तालुक विधिक सेवा समिति के कर्तव्य-तालुक विधिक सेवा समिति, निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन कर सकेगी, अर्थात्: -

                (क) तालुक में विधिक सेवाओं के क्रियाकलापों का समन्वय करना;

                (ख) तालुक के भीतर लोक अदालतों का आयोजन करना; और

                (ग) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो जिला प्राधिकरण उसे समनुदिष्ट करे ।]

अध्याय 4

विधिक सेवाओं के लिए हकदारी

12. विधिक सेवा देने के लिए मानदंड-प्रत्येक व्यक्ति, जिसे कोई मामला फाइल करना है या उसमें प्रतिरक्षा करनी है, इस अधिनियम के अधीन विधिक सेवा का हकदार होगा, यदि ऐसा व्यक्ति, -

                                (क) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है;

                                (ख) संविधान के अनुच्छेद 23 में यथानिर्दिष्ट मानव के दुर्व्यापार या बेगार का शिकार है;

                                (ग) स्त्री या बालक है;

                 [(घ) निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 2 के खंड (न) में परिभाषित निःशक्त व्यक्ति है;]

(ङ) अनर्ह अभाव की दशाओं के अधीन व्यक्ति है, जैसे, बहुविनाश जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़, सूखा, भूकम्प या औद्योगिक संकट का शिकार है; या

                                (च) औद्योगिक कर्मकार है; या

                (छ) अभिरक्षा में है, जिसके अंतर्गत अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (1956 का 104) की धारा 2 के खंड (छ) के अर्थ में किसी संरक्षण गृह में, या किशोर न्याय अधिनियम, 1986 (1986 का 53) की धारा 2 के खंड (ञ) के अर्थ में किसी किशोर गृह में, या मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड (छ) के अर्थ में किसी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय परिचर्या गृह में की अभिरक्षा भी है; या

 [(ज) यदि मामला उच्चतम न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय के समक्ष है तो नौ हजार रुपए से या ऐसी उन्य उच्चतर रकम से, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए, कम और यदि मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है तो बारह हजार रुपए से या ऐसी अन्य उच्चतर रकम से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, कम वार्षिक आय के रूप में प्राप्त कर रहा है ।]

13. विधिक सेवाओं के लिए हकदारी-(1) वे व्यक्ति जो धारा 12 में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं मानदंडों को पूरा करते हैं, विधिक सेवा प्राप्त करने के हकदार होंगे परन्तु यह तब जब कि संबंधित प्राधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि ऐसे व्यक्ति के पास अभियोजन या प्रतिरक्षा करने के लिए प्रथमदृष्ट्या मामला है ।

(2) किसी व्यक्ति द्वारा अपनी आय के बारे में दिया गया शपथ-पत्र इस अधिनियम के अधीन विधिक सेवाओं के लिए हकदार होने के लिए उसे पात्र बनाने के लिए पर्याप्त माना जा सकेगा जब तक कि संबंधित प्राधिकरण के पास ऐसे शपथ-पत्र के प्रति अविश्वास करने का कारण न हो ।

अध्याय 5

वित्त, लेखा और लेखा परीक्षा

14. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान-केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, केन्द्रीय प्राधिकरण को, अनुदान के रूप में उतनी धनराशियां संदत्त करेगी जितनी केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाई जाने के लिए ठीक समझे ।

15. राष्ट्रीय विधिक सहायता निधि-(1) केन्द्रीय प्राधिकरण एक निधि स्थापित करेगा जो राष्ट्रीय विधिक सहायता निधि कहलाएगी और उस निधि में निम्नलिखित जमा किया जाएगा: -

                (क) धारा 14 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान के रूप में दी गई सभी धनराशियां;

                (ख) कोई ऐसे अनुदान या संदान जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा केन्द्रीय प्राधिकरण को दिए जाएं;

                (ग) केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा किसी न्यायालय के आदेशों के अधीन या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त कोई रकम ।

(2) राष्ट्रीय विधिक सहायता निधि का उपयोजन निम्नलिखित को चुकाने के लिए किया जाएगा: -

                (क) इस अधिनियम के अधीन उपबंधित विधिक सेवाओं के खर्चे जिसके अंतर्गत राज्य प्राधिकरणों को दिए गए अनुदान भी हैं;

                 [(ख) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति द्वारा दी गई विधिक सेवाओं का खर्च;

                (ग) कोई अन्य व्यय जिनकी पूर्ति केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा की जाने के लिए अपेक्षित है ।]

16. राज्य विधिक सहायता निधि-(1) राज्य प्राधिकरण एक निधि स्थापित करेगा जो राज्य विधिक सहायता निधि कहलाएगी और इस निधि में निम्नलिखित जमा किया जाएगा: -

                (क) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा उसको संदत्त सभी धनराशियां या दिए गए कोई अनुदान;

                (ख) कोई ऐसे अनुदान या संदान जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य सरकार या किसी व्यक्ति द्वारा राज्य प्राधिकरण को दिए जाएं;

                (ग) राज्य प्राधिकरण द्वारा किसी न्यायालय के आदेशों के अधीन या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त कोई अन्य रकम ।

(2) राज्य विधिक सहायता निधि का उपयोजन निम्नलिखित को चुकाने के लिए किया जाएगा: -

                (क) धारा 7 में निर्दिष्ट कृत्यों के खर्चे;

                 [(ख) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समितियों द्वारा दी गई विधिक सेवाओं का खर्च;

                (ग) कोई अन्य व्यय जिनकी पूर्ति राज्य प्राधिकरण द्वारा की जाने के लिए अपेक्षित है ।]

17. जिला विधिक सहायता निधि-(1) प्रत्येक जिला प्राधिकरण एक निधि स्थापित करेगा जो जिला विधिक सहायता निधि कहलाएगी और इस निधि में निम्नलिखित जमा किया जाएगा: -

                (क) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य प्राधिकरण द्वारा जिला प्राधिकरण को संदत्त सभी धनराशियां या दिए गए कोई अनुदान;

                 [(ख) कोई ऐसे अनुदान या संदान जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए किसी व्यक्ति द्वारा, राज्य प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन से, जिला प्राधिकरण को दिए जाएं;]

                (ग) जिला प्राधिकरण द्वारा किसी न्यायालय के आदेशों के अधीन या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त कोई अन्य रकम ।

(2) जिला विधिक सहायता निधि का उपयोजन निम्नलिखित को चुकाने के लिए किया जाएगा: -

                (क) धारा 10 [और धारा 11ख] में निर्दिष्ट कृत्यों के खर्चे;

                (ख) कोई अन्य व्यय जिनकी पूर्ति जिला प्राधिकरण से अपेक्षित है ।

18. लेखा और लेखा परीक्षा-(1) यथास्थिति, केन्द्रीय प्राधिकरण, राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण (जिन्हें इसके पश्चात् इस धारा में प्राधिकरण कहा गया है) उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा तथा लेखाओं का एक वार्षिक विवरण जिसके अन्तर्गत आय और व्यय लेखा तथा तुलन-पत्र भी हैं, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से, विहित की जाए ।

(2) प्राधिकरणों के लेखे भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अंतरालों पर लेखा परीक्षित किए जाएंगे जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी लेखा परीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय संबंधित प्राधिकरण द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के और इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण के लेखाओं की लेखा परीक्षा करने के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किए गए किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी लेखा परीक्षा के संबंध में वही अधिकार तथा विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे, जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की लेखा परीक्षा करने के संबंध में होते हैं और विशिष्टतया, उसे बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागज-पत्रों के पेश किए जाने की मांग करने का और इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरणों के कार्यालयों में से किसी का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।

(4) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित प्राधिकरणों के लेखे, उनसे संबंधित लेखा परीक्षा रिपोर्ट सहित, प्राधिकरणों द्वारा, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को प्रत्येक वर्ष भेजे जाएंगे ।

 [(5) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (4) के अधीन उसके द्वारा प्राप्त लेखा और लेखा परीक्षा रिपोर्ट, उनके प्राप्त होने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

(6) राज्य सरकार उपधारा (4) के अधीन उसके द्वारा प्राप्त लेखा और लेखा परीक्षा रिपोर्ट, उनके प्राप्त होने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समझ रखवाएगी ।]

अध्याय 6

लोक अदालतें

 [19. लोक अदालतों का आयोजन-(1) यथास्थिति, प्रत्येक राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण या उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति या प्रत्येक उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति या तालुक विधिक सेवा समिति ऐसे अंतरालों और स्थानों पर और ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए तथा ऐसे क्षेत्रों के लिए, जो वह ठीक समझे, लोक अदालतों का आयोजन कर सकेगी ।

                (2) किसी क्षेत्र के लिए आयोजित प्रत्येक लोक अदालत उस क्षेत्र के उतने-

                                (क) सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों; और

                                (ख) अन्य व्यक्तियों,

से मिलकर बनेगी, जितने ऐसी लोक अदालत का आयोजन करने वाले, यथास्थिति, राज्य प्राधिकरण या जिला प्राधिकरण या उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति या उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति या तालुक विधिक सेवा समिति द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

                (3) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति द्वारा आयोजित लोक अदालतों के लिए उपधारा (2) के खंड (ख) में निर्दिष्ट अन्य व्यक्तियों का अनुभव और अर्हताएं वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

                (4) उपधारा (3) में निर्दिष्ट लोक अदालतों से भिन्न लोक अदालतों के लिए उपधारा (2) के खंड (ख) में निर्दिष्ट अन्य व्यक्तियों का अनुभव और अर्हताएं वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, विहित की जाएं ।

                (5) किसी लोक अदालत को, उस न्यायालय के, जिसके लिए लोक अदालत आयोजित की जाती है-

                                (i) समक्ष लम्बित किसी मामले की बाबत; या

                                (ii) किसी ऐसे विषय की बाबत जो उसकी अधिकारिता के भीतर है किंतु वह उसके समक्ष नहीं लाया गया है,

किसी विवाद का अवधारण करने और उसके पक्षकारों के बीच समझौता या परिनिर्धारण करने की अधिकारिता होगी:

                परन्तु लोक अदालत को, किसी ऐसे अपराध से संबंधित, जो किसी विधि के अधीन शमनीय नहीं है, किसी मामले या विषय के बारे में कोई अधिकारिता नहीं होगी ।

20. लोक अदालतों द्वारा मामलों का संज्ञान-(1) जहां धारा 19 की उपधारा (5) के खंड (i) में निर्दिष्ट किसी मामले में, उस मामले को परिनिर्धारण के लिए लोक अदालत को निर्दिष्ट करने के लिए-

                (i) (क) उसके पक्षकार सहमत हैं; या

                (ख) उसका कोई पक्षकार न्यायालय को आवेदन करता है और यदि ऐसे न्यायालय का प्रथमदृष्ट्या समाधान हो जाता है कि ऐसे परिनिर्धारण की संभावनाएं हैं; या

                (ii) न्यायालय का समाधान हो जाता है कि वह मामला लोक अदालत द्वारा संज्ञान किए जाने के लिए समुचित मामला है,

वहां न्यायालय उस मामले को लोक अदालत को निर्दिष्ट करेगा:

                परन्तु ऐसे न्यायालय द्वारा खंड (i) के उपखंड (ख) या खंड (ii) के अधीन कोई मामला लोक अदालत को पक्षकारों की सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात् ही निर्दिष्ट किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

                (3) जहां कोई मामला उपधारा (1) के अधीन लोक अदालत को निर्दिष्ट किया जाता है या जहां उपधारा (2) के अधीन उसको निर्देश किया गया है वहां लोक अदालत ऐसे मामले या विषय के निपटाने की कार्यवाही करेगी और पक्षकारों के बीच समझौता या परिनिर्धारण करेगी ।

                (4) प्रत्येक लोक अदालत, इस अधिनियम के अधीन उसके समक्ष किसी निर्देश का अवधारण करते समय, पक्षकारों के बीच समझौता या परिनिर्धारण करने में यथासाध्य शीघ्रता से कार्य करेगी और न्याय, साम्या, ऋजुता और अन्य विधिक सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगी ।

                (5) जहां लोक अदालत द्वारा इस आधार पर कोई अधिनिर्णय नहीं दिया गया है कि पक्षकारों के बीच कोई समझौता या परिनिर्धारण नहीं हो सका है, वहां उस मामले का अभिलेख उसके द्वारा उस न्यायालय को, जिससे उपधारा (1) के अधीन निर्देश प्राप्त हुआ था, विधि के अनुसार निपटाने के लिए लौटा दिया जाएगा ।

                (6) जहां लोक अदालत द्वारा इस आधार पर कोई अधिनिर्णय नहीं दिया गया है कि पक्षकारों के बीच उपधारा (2) में निर्दिष्ट विषय में कोई समझौता या परिनिर्धारण नहीं हो सका है, वहां वह लोक अदालत पक्षकारों को किसी न्यायालय में उपचार प्राप्त करने की सलाह देगी ।

                (7) जहां मामले का अभिलेख उपधारा (5) के अधीन न्यायालय को लौटाया जाता है वहां, ऐसा न्यायालय, ऐसे मामले पर उस प्रक्रम से कार्यवाही करेगा जिस तक उपधारा (1) के अधीन ऐसा निर्देश करने के पूर्व कार्यवाही की गई थी ।]

21. लोक अदालत का अधिनिर्णय- [(1) लोक अदालत का प्रत्येक अधिनिर्णय, यथास्थिति, सिविल न्यायालय की डिक्री या किसी अन्य न्यायालय का आदेश समझा जाएगा और जहां किसी लोक अदालत द्वारा धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन उसको निर्दिष्ट किसी मामले में समझौता या परिनिर्धारण किया गया है वहां ऐसे मामले में संदत्त न्यायालय फीस, न्यायालय फीस अधिनियम, 1870 (1870 का 7) के अधीन उपबंधित रीति से लौटा दी जाएगी ।]

(2) लोक अदालत द्वारा किया गया प्रत्येक अधिनिर्णय अंतिम और विवाद के सभी पक्षकारों पर आबद्धकर होगा, तथा अधिनिर्णय के विरुद्ध कोई अपील किसी न्यायालय में नहीं होगी ।

22. लोक अदालतों की शक्तियां-(1) [लोक अदालत या स्थायी लोक अदालतट को, इस अधिनियम के अधीन कोई अवधारण करने के प्रयोजन के लिए, वही शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायालय में वाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों के संबंध में निहित होती हैं, अर्थात्: -

                (क) किसी साक्षी को समन करना तथा हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

                (ख) किसी दस्तावेज का प्रकटीकरण और पेश किया जाना;

                (ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;

                (घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या दस्तावेज अथवा ऐसे अभिलेख या दस्तावेज की प्रति की अध्यपेक्षा करना; और

(ङ) ऐसे अन्य विषय जो विहित किए जाएं ।

                (2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, प्रत्येक [लोक अदालत या स्थायी लोक अदालत] को अपने समक्ष आने वाले किसी विवाद के अवधारण के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनिर्दिष्ट करने की अपेक्षित शक्तियां होंगी ।

                (3) 3[लोक अदालत या स्थायी लोक अदालत] के समक्ष सभी कार्यवाहियां भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193, धारा 219 और धारा 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी और प्रत्येक 3[लोक अदालत या स्थायी लोक अदालत] दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजन के लिए सिविल न्यायालय समझी जाएगी ।

[अध्याय 6

मुकदमा-पूर्व सुलह और समझौता

22क. परिभाषाएं-इस अध्याय में और धारा 22 तथा धारा 23 के प्रयोजनों के लिए, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

                (क) स्थायी लोक अदालत" से धारा 22ख की उपधारा (1) के अधीन स्थापित स्थायी लोक अदालत अभिप्रेत है;

(ख) लोक उपयोगी सेवा" से अभिप्रेत है कोई, -

                (i) वायु, सड़क या जलमार्ग द्वारा यात्रियों या माल के वहन के लिए यातायात सेवा; या

                (ii) डाक, तार या टेलीफोन सेवा; या

                (iii) किसी स्थापन द्वारा जनता को विद्युत, प्रकाश या जल का प्रदाय; या

                (iv) सार्वजनिक मल वहन या स्वच्छता प्रणाली; या

                (v) अस्पताल या औषधालय सेवा; या

                (vi) बीमा सेवा,

और इसके अंतर्गत ऐसी कोई सेवा भी है जिसे, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, लोकहित में, अधिसूचना द्वारा, इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए लोक उपयोगी सेवा घोषित करे ।

22ख. स्थायी लोक अदालतों की स्थापना-(1) धारा 19 में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, केन्द्रीय प्राधिकरण या प्रत्येक राज्य प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा, ऐसे स्थानों पर और एक या एक से अधिक लोक उपयोगी सेवाओं की बाबत ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए और ऐसे क्षेत्रों के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, स्थायी लोक अदालतें स्थापित करेगा ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन अधिसूचित क्षेत्र के लिए स्थापित प्रत्येक स्थायी लोक अदालत, यथास्थिति, केन्द्रीय प्राधिकरण या राज्य प्राधिकरण द्वारा ऐसी स्थायी लोक अदालत स्थापित करते हुए नियुक्त किए गए निम्नलिखित व्यक्तियों से मिल कर बनेगी, -

(क) ऐसा व्यक्ति, जो जिला न्यायाधीश या अपर जिला न्यायाधीश है या रहा है या जिला न्यायाधीश की पंक्ति से उच्चतर पंक्ति का न्यायिक पद धारण किए हुए है, स्थायी लोक अदालत का अध्यक्ष होगा; और

(ख) दो अन्य ऐसे व्यक्ति, जिनके पास लोक उपयोगी सेवा का पर्याप्त अनुभव है, और जो, यथास्थिति, केन्द्रीय प्राधिकरण या राज्य प्राधिकरण की सिफारिश पर, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे,

और अध्यक्ष तथा खंड (ख) में निर्दिष्ट अन्य व्यक्तियों की नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्तें ऐसी होंगी, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।

22ग. स्थायी लोक अदालत द्वारा मामलों का संज्ञान-(1) किसी विवाद का कोई पक्षकार, विवाद को किसी न्यायालय के समक्ष लाने से पूर्व, विवाद के निपटारे के लिए स्थायी लोक अदालत को आवेदन कर सकेगा:

                परन्तु स्थायी लोक अदालत को ऐसे अपराध से, जो किसी विधि के अधीन शमनीय नहीं है, संबंधित किसी विषय के संबंध में कोई अधिकारिता नहीं होगी:

                परन्तु यह और कि स्थायी लोक अदालत को ऐसे मामले में भी अधिकारिता नहीं होगी जिसमें वादग्रस्त संपत्ति का मूल्य दस लाख रुपए से अधिक है:

                परन्तु यह भी कि केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, केन्द्रीय प्राधिकरण से परामर्श करके दूसरे परंतुक में विनिर्दिष्ट दस लाख रुपए की सीमा को बढ़ा सकेगी ।

                (2) स्थायी लोक अदालत को उपधारा (1) के अधीन आवेदन किए जाने के पश्चात्, उस आवेदन का कोई पक्षकार उसी विवाद के लिए किसी न्यायालय की अधिकारिता का अवलंब नहीं लेगा ।

                (3) जहां किसी स्थायी लोक अदालत को उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन किया जाता है वहां वह,-

(क) आवेदन के प्रत्येक पक्षकार को उसके समक्ष लिखित कथन फाइल करने का निदेश देगी जिसमें आवेदन के अधीन विवाद के तथ्यों और प्रकृति, ऐसे विवाद के मुद्दों या विवाद्यकों और, यथास्थिति, ऐसे मुद्दों या विवाद्यकों के समर्थन में या उसके विरोध में अवलंबित आधारों का कथन होगा और ऐसा पक्षकार ऐसे कथन की अनुपूर्ति में ऐसा कोई दस्तावेज या अन्य साक्ष्य दे सकेगा जिसे ऐसा पक्षकार ऐसे तथ्यों और आधारों के सबूत में समुचित समझता है और ऐसे कथन की एक प्रति ऐसे दस्तावेज या अन्य साक्ष्य, यदि कोई हो, के साथ आवेदन के प्रत्येक पक्षकार को भेजेगी ;

(ख) आवेदन के किसी पक्षकार से सुलह कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम पर उसके समक्ष अतिरिक्त कथन फाइल करने की अपेक्षा कर सकेगी;

(ग) आवेदन के किसी पक्षकार से, उसे प्राप्त किसी दस्तावेज या कथन को, अन्य पक्षकार को, उसका उत्तर देने के लिए समर्थ बनाने हेतु संसूचित करेगी ।

                (4) जब कोई कथन, अतिरिक्त कथन और उत्तर, यदि कोई हो, उपधारा (3) के अधीन स्थायी लोक अदालत के समाधानप्रद रूप में फाइल किया गया है तब वह आवेदन के पक्षकारों के बीच सुलह कार्यवाहियां ऐसी रीति से करेगी जिसे वह विवाद की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित समझे ।

                (5) स्थायी लोक अदालत उपधारा (4) के अधीन सुलह कार्यवाहियां करने के दौरान पक्षकारों को विवाद के स्वतंत्र और निष्पक्ष रीति में सौहार्द्रपूर्ण समझौते पर पहुंचने के लिए, उनके प्रयास में सहायता करेगी ।

                (6) आवेदन के प्रत्येक पक्षकार का यह कर्तव्य होगा कि वह आवेदन से संबंधित विवाद की सुलह कराने में स्थायी लोक अदालत के साथ सद्भावनापूर्वक सहयोग करे और स्थायी लोक अदालत के, उसके समक्ष साक्ष्य और अन्य संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने के निदेश का अनुपालन करे ।

                (7) जब स्थायी लोक अदालत की पूर्वोक्त सुलह कार्यवाहियों में यह राय है कि ऐसी कार्यवाहियों में समझौते के ऐसे तत्व विद्यमान हैं जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकेंगे, तब वह विवाद के संभाव्य समझौते के निबंधन विरचित कर सकेगी और संबंधित पक्षकार को उनके संप्रेक्षण के लिए देगी और यदि पक्षकार विवाद के समझौते के लिए सहमत हो जाते हैं तो वे समझौता करार पर हस्ताक्षर करेंगे तथा स्थायी लोक अदालत उसके निबंधनानुसार अधिनिर्णय पारित करेगी और उसकी एक-एक प्रति प्रत्येक संबद्ध पक्षकार को देगी ।

                (8) जहां पक्षकार उपधारा (7) के अधीन किसी करार पर पहुंचने में असफल रहते हैं, वहां यदि विवाद किसी अपराध से संबंधित नहीं है तो स्थायी लोक अदालत, विवाद का विनिश्चय कर देगी ।

22घ. स्थायी लोक अदालत की प्रक्रिया-स्थायी लोक अदालत, इस अधिनियम के अधीन सुलह कार्यवाहियां करते समय या विवाद का गुणागुण के आधार पर विनिश्चय करते समय नैसर्गिक न्याय, वस्तु-निष्ठता, निष्पक्षता, साम्या और न्याय के अन्य सिद्धांतों से मार्गदर्शित होगी और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) से आबद्ध नहीं होगी ।

22ङ. स्थायी लोक अदालत के अधिनिर्णय का अंतिम होना-(1) इस अधिनियम के अधीन स्थायी लोक अदालत द्वारा, गुणागुण के आधार पर या समझौता करार के निबंधानानुसार दिया गया प्रत्येक अधिनिर्णय अंतिम होगा और उसके सभी पक्षकारों और उनके अधीन दावा करने वाले व्यक्तियों पर आबद्धकर होगा ।

                (2) इस अधिनियम के अधीन स्थायी लोक अदालत का प्रत्येक अधिनिर्णय सिविल न्यायालय की डिक्री समझा जाएगा ।

                (3) इस अधिनियम के अधीन स्थायी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक अधिनिर्णय स्थायी लोक अदालत का गठन करने वाले व्यक्तियों के बहुमत द्वारा होगा ।

                (4) इस अधिनियम के अधीन स्थायी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक अधिनिर्णय अंतिम होगा और किसी मूल वाद, आवेदन या निष्पादन कार्यवाही में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।

                (5) स्थायी लोक अदालत, उसके द्वारा दिए गए प्रत्येक अधिनिर्णय को स्थानीय अधिकारिता रखने वाले सिविल न्यायालय को भेज सकेगी और ऐसा सिविल न्यायालय अधिनिर्णय को इस प्रकार निष्पादित करेगा मानो यह उस न्यायालय द्वारा की गई डिक्री हो ।]

अध्याय 7

प्रकीर्ण

 [23. प्राधिकरणों, समितियों और लोक अदालतों के सदस्यों और कर्मचारिवृन्द का लोक सेवक होना-केन्द्रीय प्राधिकरण, राज्य प्राधिकरणों, जिला प्राधिकरणों, उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समितियों, तालुक विधिक सेवा समितियों के सदस्य, जिनके अंतर्गत, यथास्थिति, सदस्य-सचिव या सचिव भी है, और ऐसे प्राधिकरणों, समितियों के अधिकारी और अन्य कर्मचारी तथा  [लोक अदालतों के सदस्य या स्थायी लोक अदालत का गठन करने वाले व्यक्ति] भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएंगे ।

24. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या विनियम के उपबंधों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही-

                (क) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार;

                (ख) केन्द्रीय प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक, कार्यकारी अध्यक्ष, सदस्यों या सदस्य-सचिव या अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों;

                (ग) राज्य प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक, कार्यकारी अध्यक्ष, सदस्य, सदस्य-सचिव या अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों;

                (घ) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समितियों, तालुक विधिक सेवा समितियों या जिला प्राधिकरण के अध्यक्ष, सचिव, सदस्यों या अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों; या

                (ङ) उपखंड (ख) से उपखंड (घ) में निर्दिष्ट किसी मुख्य संरक्षक, कार्यकारी अध्यक्ष अध्यक्ष सदस्य, सदस्य-सचिव द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति,

के विरुद्ध नहीं होगी ।]

25. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव होना-इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में या इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

26. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है, तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो:

परन्तु ऐसा कोई आदेश उस तारीख से, जिसको इस अधिनियम पर राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होती है, दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश उसके किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

 [27. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 3 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के अन्य सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

(ख) धारा 3 की उपधारा (3) के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्य-सचिव का अनुभव और अर्हताएं तथा उसकी शक्तियां और कृत्य;

(ग) धारा 3 की उपधारा (4) के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के सदस्यों और सदस्य-सचिव की पदावधि तथा उनसे संबंधित अन्य शर्तें;

                (घ) धारा 3 की उपधारा (5) के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या;

                (ङ) धारा 3 की उपधारा (6) के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा की शर्तें तथा वेतन और भत्ते;

(च) धारा 3क की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

(छ) धारा 3क की उपधारा (3) के अधीन उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के सचिव का अनुभव और अर्हताएं;

(ज) धारा 3क की उपधारा (5) के अधीन उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या और उस धारा की उपधारा (6) के अधीन उनकी सेवा की शर्तें तथा उनको संदेय वेतन और भत्ते;

(झ) यदि मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है तो धारा 12 के खंड (ज) के अधीन विधिक सेवाओं के लिए किसी व्यक्ति को हकदार बनाने के लिए उसकी वार्षिक आय की उच्चतर सीमा;

(ञ) वह रीति जिससे धारा 18 के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण, राज्य प्राधिकण या जिला प्राधिकरण के लेखे रखे जाएंगे;

(ट) धारा 19 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति द्वारा आयोजित लोक अदालतों के अन्य व्यक्तियों का अनुभव और अर्हताएं;

(ठ) धारा 22 की उपधारा (1) के खंड (ङ) के अधीन अन्य विषय;

 [(ठक) धारा 22ख की उपधारा (2) के अधीन अध्यक्ष और अन्य व्यक्तियों की नियुक्ति के लिए अन्य निबंधन और शर्तें;]

(ड) कोई अन्य विषय जिसे विहित किया जाना है या जो विहित किया जाए ।

28. नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति-(1) राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 6 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन राज्य प्राधिकरण के अन्य सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

                (ख) धारा 6 की उपधारा (3) के अधीन राज्य प्राधिकरण के सदस्य-सचिव की शक्तियां और कृत्य;

                (ग) धारा 6 की उपधारा (4) के अधीन राज्य प्राधिकरण के सदस्यों और सदस्य-सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें;

(घ) धारा 6 की उपधारा (5) के अधीन राज्य प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या;

(ङ) धारा 6 की उपधारा (6) के अधीन राज्य प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा की शर्ते तथा वेतन और भत्ते;

                (च) धारा 8क की उपधारा (3) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सचिव का अनुभव और अर्हताएं;

                (छ) धारा 8क की उपधारा (5) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या और उस धारा की उपधारा (6) के अधीन उनकी सेवा की शर्तें तथा उनको संदेय वेतन और भत्ते;

                (ज) धारा 9 की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन जिला प्राधिकरण के सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

                (झ) धारा 9 की उपधारा (5) के अधीन जिला प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या;

                (ञ) धारा 9 की उपधारा (6) के अधीन जिला प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा की शर्तें तथा वेतन और भत्ते;

(ट) धारा 11क की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन तालुक विधिक सेवा समिति के सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

(ठ) धारा 11क की उपधारा (3) के अधीन तालुक विधिक सेवा समिति के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की संख्या;

(ड) धारा 11क की उपधारा (4) के अधीन तालुक विधिक सेवा समिति के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा की शर्तें तथा वेतन और भत्ते;

(ढ) यदि मामला उच्चतम न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय के समक्ष है तो धारा 12 के खंड (ज) के अधीन विधिक सेवाओं के लिए किसी व्यक्ति को हकदार बनाने के लिए उसकी वार्षिक आय की उच्चतर सीमा;

(ण) धारा 19 की उपधारा (4) में निर्दिष्ट लोक अदालतों से भिन्न लोक अदालतों के अन्य व्यक्तियों का अनुभव और अर्हताएं;

                (त) कोई अन्य विषय जिसे विहित किया जाना है या जो विहित किया जाए ।

29. विनियम बनाने की केन्द्रीय प्राधिकरण की शक्ति-(1) केन्द्रीय प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा, ऐसे सभी विषयों का उपबंध करने के लिए, जिनके लिए इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के प्रयोजनों के लिए उपबंध करना आवश्यक या समीचीन है, ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों से असंगत न हों ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) धारा 3क की उपधारा (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति की शक्तियां और कृत्य;

                (ख) धारा 3क की उपधारा (4) के अधीन उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के सदस्यों और सचिव की पदावधि तथा उनसे संबंधित अन्य शर्तें ।

29क. विनियम बनाने की राज्य प्राधिकरण की शक्ति-(1) राज्य प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा, ऐसे सभी विषयों का उपबंध करने के लिए, जिनके लिए इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के प्रयोजनों के लिए उपबंध करना आवश्यक या समीचीन है, ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों से असंगत न हों ।

(2) विशिष्यतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) धारा 7 की उपधारा (2) के खंड (घ) के अधीन राज्य प्राधिकरण द्वारा पालन किए जाने वाले अन्य कृत्य;

                (ख) धारा 8क की उपधारा (1) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति की शक्तियां और कृत्य;

                (ग) धारा 8क की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

(घ) धारा 8क की उपधारा (4) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें;

(ङ) धारा 9 की उपधारा (4) के अधीन जिला प्राधिकरण के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें;

(च) धारा 8क की उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सदस्यों की संख्या, अनुभव और अर्हताएं;

                (छ) धारा 10 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन जिला प्राधिकरण द्वारा पालन किए जाने वाले अन्य कृत्य;

                (ज) धारा 11क की उपधारा (3) के अधीन तालुक विधिक सेवा समिति के सदस्यों और सचिव की पदावधि और उनसे संबंधित अन्य शर्तें ।]

30. नियमों और विनियमों का रखा जाना-(1) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और उसके अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अन्यथा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

(2) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और उसके अधीन राज्य प्राधिकरण द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।

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