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विद्युत अधिनियम, 2003 ( Electricity Act, 2003 )


 

विद्युत अधिनियम, 2003

(2003 का अधिनियम संख्यांक 36)

[26 मई, 2003]

विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, व्यापार और उसके उपयोग और साधारणतः

विद्युत उद्योग के विकास, उसमें प्रतिस्पर्धा के संवर्धन, उपभोक्ताओं के हित के

संरक्षण; और सभी क्षेत्रों में विद्युत के प्रदाय, विद्युत टैरिफ को युक्तिसंगत

बनाने, साहायिकियों के बारे में पारदर्शी नीतियां सुनिश्चित करने,

दक्ष और पर्यावरण के लिए हितकर नीतियों के संवर्धन, केन्द्रीय

विद्युत प्राधिकरण, विनियामक आयोगों के गठन और अपील

अधिकरण की स्थापना में सहायक उपाय करने, से

संबंधित विधियों का समेकन करने और उनसे

संबंधित या उनके आनुषंगिक

 विषयों के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के चौवनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

भाग 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम विद्युत अधिनियम, 2003 है ।

(2) इसका विस्तार, जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय, संपूर्ण भारत पर है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे:

परन्तु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और किसी ऐसे उपबंध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबंध के प्रवर्तन में आने के प्रति निर्देश है ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(1) अपील अधिकरण" से धारा 110 के अधीन स्थापित विद्युत अपील अधिकरण अभिप्रेत है;

(2) नियत तारीख" से वह तारीख अभिप्रेत है जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे;

(3) प्रदाय क्षेत्र" से वह क्षेत्र अभिप्रेत है जिसके भीतर कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी अपनी अनुज्ञप्ति द्वारा विद्युत का प्रदाय करने के लिए प्राधिकृत है;

(4) समुचित आयोग" से, यथास्थिति, धारा 76 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट केन्द्रीय विनियामक आयोग या धारा 82 में निर्दिष्ट राज्य विनियामक आयोग या धारा 83 में निर्दिष्ट संयुक्त आयोग अभिप्रेत है;

(5) समुचित सरकार" से, -

(क) (i) ऐसी उत्पादन कंपनी के संबंध में, जो पूर्णतः या भागतः उसके स्वामित्व में हो;

(ii) विद्युत के किसी अन्तरराज्ियक उत्पादन, पारेषण, व्यापार या प्रदाय के संबंध में और किन्हीं खानों, तेल क्षेत्रों, रेलों, राष्ट्रीय राजमार्गों, विमानपत्तनों, तार, प्रसारण केन्द्रों और किसी रक्षा संकर्म, डॉक यार्ड, परमाणुशक्ति संस्थापनों के संबंध में; और

(iii) राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र तथा प्रादेशिक भार प्रेषण केंद्र के संबंध में;

(iv) उसके या उसके नियंत्रणाधीन किसी संकर्म या विद्युत संस्थापन के संबंध में, केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है;

(ख) किसी अन्य दशा में, इस अधिनियम के अधीन अधिकारिता रखने वाली राज्य सरकार अभिप्रेत है;

(6) प्राधिकरण" से धारा 70 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण अभिप्रेत है;

(7) बोर्ड" से इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व, विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) की धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन गठित राज्य विद्युत बोर्ड अभिप्रेत है;

(8) आबद्ध उत्पादन संयंत्र" से किसी व्यक्ति द्वारा प्राथमिक रूप से उसके स्वयं के उपयोग के लिए विद्युत का उत्पादन करने के लिए स्थापित विद्युत संयंत्र अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत किसी सहकारी सोसाइटी या व्यक्ति-संगम द्वारा ऐसी सहकारी सोसाइटी या संगम के सदस्यों के उपयोग के लिए प्राथमिक रूप से विद्युत का उत्पादन करने के लिए स्थापित विद्युत संयंत्र भी है;

(9) केन्द्रीय आयोग" से धारा 76 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग अभिप्रेत है;

(10) केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता" से ऐसी कोई सरकारी कंपनी अभिप्रेत है, जिसे केन्द्रीय सरकार धारा 38 की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचित करे;

(11) अध्यक्ष" से, यथास्थिति, प्राधिकरण या समुचित आयोग या अपील अधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;

(12) सह उत्पादन" से ऐसी प्रक्रिया अभिप्रेत है, जो साथ-साथ दो या अधिक प्रकार की उपयोगी ऊर्जा (जिसके अन्तर्गत विद्युत भी है) उत्पादित करती है;

(13) कंपनी" से कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन बनाई गई और रजिस्ट्रीकृत कंपनी अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम के अधीन कोई निगमित निकाय भी है;

(14) संरक्षण" से विद्युत के प्रदाय और उपयोग में दक्षता में वृद्धि के परिणामस्वरूप विद्युत के उपभोग में कोई कमी अभिप्रेत है;

(15) उपभोक्ता" से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे उसके स्वयं के उपयोग के लिए विद्युत का प्रदाय किसी अनुज्ञप्तिधारी या सरकार अथवा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जनता को विद्युत का प्रदाय करने के कारबार में लगा हुआ है और इसके अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति भी है जिसके परिसरों को विद्युत प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी, सरकार या ऐसे अन्य व्यक्ति के संकर्म के साथ तत्समय संयोजित किया गया है;

(16) समर्पित पारेषण लाइनों" से किसी बिंदु से बिंदु तक पारेषण के लिए कोई विद्युत प्रदाय लाइन अभिप्रेत है, जो, धारा 9 में निर्दिष्ट विद्युत लाइनों या किसी आबद्ध उत्पादन संयंत्र के विद्युत संयंत्रों या धारा 10 में निर्दिष्ट उत्पादन केन्द्र को, यथास्थिति, किन्हीं पारेषण लाइनों या उप-केन्द्रों या उत्पादन केन्द्रों या भार केन्द्रों से संयोजन के प्रयोजन के लिए अपेक्षित है;

(17) वितरण अनुज्ञप्तिधारी" से अपने प्रदाय क्षेत्र में उपभोक्ताओं को विद्युत का प्रदाय करने के लिए वितरण प्रणाली को प्रचालित करने और उसका रखरखाव करने के लिए प्राधिकृत अनुज्ञप्तिधारी अभिप्रेत है;

(18) वितरण मुख्य तार" से, किसी मुख्य तार का वह प्रभाग अभिप्रेत है जिसके साथ कोई सेवा लाइन तुरंत संयोजित की जाती है या होनी आशयित है;

(19) वितरण प्रणाली" से, पारेषण लाइनों या उत्पादन केन्द्र संयोजन पर परिदान बिंदुओं और उपभोक्ताओं के संस्थापन के संयोजन बिन्दु के बीच तारों और सहयुक्त सुविधाओं की प्रणाली अभिप्रेत है;

(20) विद्युत लाइन" से ऐसी कोई लाइन अभिप्रेत है, जिसका उपयोग किसी प्रयोजन के लिए विद्युत ले जाने के लिए किया जाता है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं-

(क) ऐसी किसी लाइन के लिए कोई सहारा अर्थात् कोई संरचना, टावर, खंभा या ऐसी अन्य चीज जिसमें, जिस पर, जिसके द्वारा या जिससे किसी ऐसी लाइन को सहारा मिलता है या वह ले जाई जाती है या निलंबित की जाती है अथवा सहारा मिल सकता है, वह ले जाई जा निलंबित की जा सकती है; और

(ख) विद्युत ले जाने के प्रयोजन के लिए किसी ऐसी लाइन से संयोजित कोई साधित्र;

(21) विद्युत निरीक्षक" से धारा 162 की उपधारा (1) के अधीन समुचित सरकार द्वारा उस रूप में नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत मुख्य विद्युत निरीक्षक भी है;

(22) विद्युत संयंत्र" से ऐसा कोई संयंत्र, उपस्कर, यंत्र या साधित्र अथवा उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिसका उपयोग विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण या प्रदाय के लिए या उससे संबंधित प्रयोजनों के लिए किया जाता है, किन्तु इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं हैं-

(क) कोई विद्युत लाइन; या

(ख) किसी परिसर को प्रदाय की गई विद्युत की मात्रा अभिनिश्चित करने के लिए उपयोग किया गया कोई मीटर; या

(ग) किसी उपभोक्ता के नियंत्रणाधीन कोई विद्युत उपस्कर, यंत्र या साधित्र;

(23) विद्युत" से, -

(क) किसी प्रयेजन के लिए उत्पादित, पारेषित, प्रदाय की गई या व्यापार की गई; या

(ख) किसी संदेश के पारेषण के सिवाय किसी प्रयोजन के लिए उपयोग की गई,

विद्युत ऊर्जा अभिप्रेत है;

(24) विद्युत प्रदाय कोड" से धारा 50 में विनिर्दिष्ट विद्युत प्रदाय कोड अभिप्रेत है;

(25) विद्युत प्रणाली" से, यथास्थिति, किसी उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी के नियंत्रणाधीन कोई प्रणाली अभिप्रेत है और जिसके पास एक या अधिक, -

(क) उत्पादन केन्द्र; या

(ख) पारेषण लाइनें; या

(ग) विद्युत लाइनें और उप-केन्द्र हैं,

और जब इसका उपयोग किसी राज्य या संघ के संदर्भ में किया जाए तो उसके राज्यक्षेत्रों के भीतर संपूर्ण विद्युत प्रणाली अभिप्रेत है;

(26) विद्युत व्यापारी" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे धारा 12 के अधीन विद्युत का व्यापार करने के लिए कोई अनुज्ञप्ति प्रदान की गई है;

(27) विशेषाधिकार प्राप्त" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा उसकी ओर से उसके प्रदाय क्षेत्र के भीतर किसी विशेष क्षेत्र में विद्युत के वितरण के लिए प्राधिकृत किया गया है;

(28) उत्पादन कंपनी" से अभिप्रेत है कोई कंपनी या निगम निकाय या संगम या व्यष्टियों का निकाय, चाहे वह निगमित हो या नहीं, या कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति, जो किसी उत्पादन केन्द्र का स्वामी है या उसे प्रचालित करता है या उसका रखरखाव करता है;

(29) उत्पादन करना" से किसी परिसर को प्रदाय करने या इस प्रकार किए जाने वाले प्रदाय को समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए उत्पादन केन्द्र से विद्युत का उत्पादन करना अभिप्रेत है;

(30) उत्पादन केन्द्र" या केन्द्र" से विद्युत उत्पादन करने के लिए कोई केन्द्र अभिप्रेत है जिसके अंतर्गत उस प्रयोजन के लिए प्रयुक्त स्टैप-अप ट्रांसफार्मर स्विचगियर, स्विच यार्ड केबल या अन्य अनुलग्न उपस्कर सहित, यदि कोई हों, कोई भवन और संयंत्र तथा उनके स्थल; किसी उत्पादन केन्द्र के प्रयोग के लिए आशयित कोई स्थल और कोई भवन जिसका उत्पादन केन्द्र के प्रचालक कर्मचारिवृन्द के आवास के लिए उपयोग किया जाता है और जहां जल शक्ति द्वारा विद्युत उत्पादित की जाती है, जिसके अंतर्गत पेनस्टॉक, आद्योपांत संकर्म, मुख्य और विनियामक जलाशय, बांध और अन्य जल विद्युत संकर्म भी हैं किन्तु किसी भी दशा में, इसके अंतर्गत कोई उप-केन्द्र नहीं है;

(31) सरकारी कंपनी" का वही अर्थ है जो कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में उसका है;

(32) ग्रिड" से अंतःसहयोजित पारेषण लाइनें, उप-केन्द्र और उत्पादन संयंत्रों की उच्च वोल्ट वाली आधार प्रणाली अभिप्रेत है;

(33) ग्रिड कोड" से धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (ज) के अधीन केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट ग्रिड कोड अभिप्रेत है;

(34) ग्रिड मानक" से प्राधिकरण द्वारा धारा 73 के खंड (घ) के अधीन विनिर्दिष्ट ग्रिड मानक अभिप्रेत हैं;

(35) उच्च वोल्टता लाइन" से किसी ऐसी अभिहित वोल्टता की विद्युत लाइन या केबल अभिप्रेत है जो समय-समय पर, प्राधिकरण द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए;

(36) अंतरराज्ियक पारेषण प्रणाली" के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं-

(i) एक राज्य के राज्यक्षेत्र से दूसरे राज्य के राज्यक्षेत्र को मुख्य पारेषण लाइन के माध्यम से विद्युत के प्रवहण के लिए कोई प्रणाली;

(ii) किसी मध्यवर्ती राज्य के राज्यक्षेत्र में से होकर विद्युत का प्रवहण तथा ऐसे राज्य के भीतर प्रवहण जो विद्युत के ऐसे अंतरराज्ियक पारेषण के आनुषंगिक है;

(iii) किसी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता द्वारा निर्मित, उसके स्वामित्वाधीन, उसके द्वारा प्रचालित, अनुरक्षित या नियंत्रित प्रणाली पर विद्युत का पारेषण;

(37) अन्तरराज्ियक पारेषण प्रणाली" से अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली से भिन्न विद्युत के पारेषण के लिए कोई प्रणाली अभिप्रेत है;

(38) अनुज्ञप्ति" से धारा 14 के अधीन प्रदान की गई अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है;

(39) अनुज्ञप्तिधारी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे धारा 14 के अधीन अनुज्ञप्ति प्रदान की गई है;

(40) लाइन" से ऐसा कोई तार, केबल, ट्यूब, पाइप, विद्युत-रोधक, चालक या अन्य वैसी ही चीज (उसकी केसिंग या कोटिंग सहित) अभिप्रेत है जो विद्युत ले जाने में उपयोग के लिए डिजाइन या अनुकूलित की गई है और इसके अंतर्गत ऐसी कोई लाइन भी है जो परिवेष्टित करती है या आलंब देती है या परिवेष्टित की गई है या आलंब दिया गया है अथवा उसके सामीप्य में स्थापित किया गया है या किसी ऐसी लाइन से सहारा दिया गया है या ले जाया गया है या उसके संयोजन में निलंबित किया गया है;

(41) स्थानीय प्राधिकारी" से ऐसी कोई नगर पंचायत, नगर परिषद्, नगर निगम, ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर गठित पंचायत, पत्तन आयुक्तों का निकाय या अन्य प्राधिकरण अभिप्रेत है जो किसी क्षेत्रीय या स्थानीय निधि का नियत्रण या प्रबंध करने के लिए विधितः हकदार है या उसे संघ या किसी राज्य सरकार द्वारा ऐसा नियंत्रण या प्रबंध सौंपा जाता है;

(42) मुख्य तार" से अभिप्रेत है कोई विद्युत प्रदाय लाइन जिसके माध्यम से विद्युत-प्रदाय किया जाता है या किया जाना आशयित है;

(43) सदस्य" से, यथास्थिति, समुचित आयोग या प्राधिकरण या संयुक्त आयोग या अपील अधिकरण का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत ऐसे आयोग या प्राधिकरण या अपील अधिकरण का अध्यक्ष भी है;

(44) राष्ट्रीय विद्युत योजना" से धारा 3 की उपधारा (4) के अधीन अधिसूचित राष्ट्रीय विद्युत योजना अभिप्रेत है;

(45) राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र" से धारा 26 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित केन्द्र अभिप्रेत है;

(46) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है और अधिसूचित करना" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;

(47) निर्बाध पहुंच" से पारेषण लाइनों या वितरण प्रणाली या ऐसी लाइनों या प्रणाली सहित सहयुक्त सुविधाओं के किसी अनुज्ञप्तिधारी या उपभोक्ता या समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट विनियमों के अनुसार उत्पादन में लगे किसी व्यक्ति द्वारा उपयोग की अविभेदकारी व्यवस्था अभिप्रेत है;

(48) शिरोपरि लाइन" से ऐसी विद्युत लाइन अभिप्रेत है जो भूमि के ऊपर और खुली वायु में लगी हुई है किन्तु संकर्षण प्रणाली की विद्युतमय रेलें इसके अंतर्गत नहीं हैं;

(49) व्यक्ति" के अंतर्गत कोई कंपनी, या निगम निकाय या संगम या व्यष्टियों का निकाय, चाहे वह निगमित हो या नहीं, या कृत्रिम विधिक व्यक्ति आता है;

(50) विद्युत प्रणाली" से विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण और प्रदाय के सभी पहलू अभिप्रेत हैं और इसके अंतर्गत निम्नलिखित में से एक या अधिक है-

(क) उत्पादन केन्द्र;

(ख) पारेषण या मुख्य पारेषण लाइनें;

(ग) उप-केन्द्र;

(घ) टाई लाइनें;

(ङ) भार पारेषण क्रियाकलाप;

(च) मुख्य और वितरण मुख्य लाइनें;

(छ) विद्युत प्रदाय लाइनें;

(ज) शिरोपरि लाइनें;

(झ) सेवा लाइनें;

(ञ) संकर्म;

(51) परिसर" के अंतर्गत कोई भूमि, भवन या संरचना है;

(52) विहित" से इस अधिनियम के अधीन समुचित सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(53) सार्वजनिक लैम्प" से ऐसा विद्युत लैम्प अभिप्रेत है जिसका किसी मार्ग पर प्रकाश करने के लिए प्रयोग किया जाता है;

(54) वास्तविक समय प्रचालन" से उसी समय की जाने वाली कार्रवाई अभिप्रेत है जिस समय विद्युत प्रणाली के बारे में कोई सूचना संबंधित पारेषण केन्द्र को उपलब्ध कराई जाती है;

(55) प्रादेशिक विद्युत समिति" से ऐसी समिति अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, संकल्प द्वारा उस क्षेत्र में विद्युत प्रणालियों के एकीकृत प्रचालन को सुकर बनाने के लिए विनिर्दिष्ट क्षेत्र के लिए स्थापित की जाती है;

(56) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र" से धारा 27 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित केन्द्र अभिप्रेत है;

(57) विनियम" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं :

(58) निरसित विधि" से धारा 185 द्वारा निरसित भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9), विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) और विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) अभिप्रेत है;

(59) नियम" से इस अधिनिमय के अधीन बनाए गए नियम अभिप्रेत हैं;

(60) अनुसूची" से, इस अधिनियम की अनुसूची अभिप्रेत है;

(61) सेवा लाइन" से ऐसी कोई विद्युत प्रदाय लाइन अभिप्रेत है जिसके माध्यम से विद्युत का प्रदाय-

(क) एकल उपभोक्ता को या तो वितरण मुख्य लाइन से या सीधे वितरण अनुज्ञप्तिधारी के परिसर से, या

(ख) उपभोक्ता समूह को मुख्य वितरण लाइन से एक ही परिसर पर, अथवा मुख्य वितरण के उसी बिन्दु से प्रदाय किए गए संलग्न परिसर पर, किया जाता है या किया जाना आशयित है;

(62) विनिर्दिष्ट" से इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, समुचित आयोग या प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट अभिप्रेत है;

(63) एकल आधार प्रणाली" से ऐसी विद्युत प्रणाली अभिप्रेत है जो ग्रिड से संयोजन के बिना किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में विद्युत के उत्पादन और वितरण के लिए स्थापित की गई है;

(64) राज्य आयोग" से धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन गठित राज्य विद्युत विनियामक आयोग अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत धारा 83 की उपधारा (1) के अधीन गठित संयुक्त आयोग भी है;

(65) राज्य ग्रिड कोड" से धारा 86 की उपधारा (1) के खंड (ज) के अधीन विनिर्दिष्ट राज्य ग्रिड कोड अभिप्रेत है;

(66) राज्य भार प्रेषण केन्द्र" से धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित केन्द्र अभिप्रेत है;

(67) राज्य पारेषण उपयोगिता" से ऐसा बोर्ड या सरकारी कंपनी अभिप्रेत है जो धारा 39 की उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार द्वारा इस रूप में विनिर्दिष्ट की गई है;

(68) मार्ग" के अंतर्गत कोई रास्ता, सड़क, लेन, चौराहा, आंगन, गली, पगडंडी या खुला स्थान अभिप्रेत है चाहे वह आम रास्ता हो अथवा नहीं, जिस पर जनता को आने-जाने का अधिकार होता है और किसी सार्वजनिक पुल या पुलिया पर कोई सड़क या पैदल रास्ता भी है;

(69) उप-केन्द्र" से विद्युत के पारेषण या उसके वितरण के लिए विद्युत को रूपान्तरित या संपरिवर्तित करने के लिए केन्द्र अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत ट्रांसफार्मर, संपरिवर्तित, स्विचगीयर, कैपेसिटर, तुल्यकालिक कन्डेन्सर, संरचनाएं, केबल और अन्य अनुलग्नक उपस्कर तथा उस प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाने वाला कोई भवन और उसका स्थल भी है;

(70) विद्युत के संबंध में प्रदाय" से, किसी अनुज्ञप्तिधारी या उपभोक्ता को विद्युत का विक्रय अभिप्रेत है;

(71) व्यापार" से पुनर्विक्रय के लिए विद्युत का क्रय किया जाना अभिप्रेत है और व्यापार" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;

(72) पारेषण लाइन" से अभिप्रेत है ऐसी सभी उच्च दाब केबल और शिरोपरि लाइनें (जो किसी अनुज्ञप्तिधारी की वितरण प्रणाली का आवश्यक भाग नहीं है) जो एक उत्पादन केन्द्र से दूसरे उत्पादन केन्द्र को या उप-केन्द्र को विद्युत का पारेषण करती हैं, ऐसी किन्हीं स्टैप-अप और स्टैप-डाउन ट्रांसफार्मरों, स्विचगीयरों और अन्य संकर्मों सहित जो ऐसी केबलों या शिरोपरि लाइनों के नियंत्रण के लिए आवश्यक हैं और प्रयोग किए जाते हैं तथा ऐसे भवनों या उनके भाग सहित जो ऐसे ट्रांसफार्मरों, स्विचगीयरों और अन्य संकर्मों के आवासन के लिए अपेक्षित हैं;

(73) पारेषण अनुज्ञप्तिधारी" से ऐसा अनुज्ञप्तिधारी अभिप्रेत है जो पारेषण लाइनों को स्थापित करने या प्रचालित करने के लिए प्राधिकृत है;

(74) पारेषण करना" से विद्युत का पारेषण लाइनों के माध्यम से प्रवहण अभिप्रेत है और पारेषण" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा;

(75) उपयोगिता" से विद्युत लाइनें या विद्युत संयंत्र अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन उत्पादक कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी के रूप में कार्यरत किसी व्यक्ति की सभी भूमि, भवन, संकर्म और उनसे संलग्न सामग्री है;

(76) चक्रण" से ऐसा प्रचालन अभिप्रेत है जिसके द्वारा, यथास्थिति, पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी की वितरण प्रणाली और सहबद्ध सुविधाओं का उपयोग किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसे प्रभारों के संदाय पर जो धारा 62 के अधीन अवधारित किए जाने हैं, विद्युत के प्रवहण के लिए किया जाना है;

(77) संकर्म" के अंतर्गत ऐसी विद्युत लाइनें और कोई भवन, संयंत्र, मशीनरी, साधित्र और किसी भी प्रकार की ऐसी कोई अन्य चीज जो जनता को विद्युत के पारेषण, वितरण या प्रदाय और इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन प्रदान की गई किसी अनुज्ञप्ति या मंजूरी के उद्देश्यों को प्रभावी करने के लिए अपेक्षित है ।

भाग 2

राष्ट्रीय विद्युत नीति और योजना

3. राष्ट्रीय विद्युत नीति और योजना-(1) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर कोयला, प्राकृतिक गैस, नाभिकीय पदार्थों या सामग्री, जल जैसे संसाधनों के और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के अधिकतम उपयोग पर आधारित विद्युत प्रणाली के विकास के लिए, राज्य सरकारों और प्राधिकरण के परामर्श से, राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति तैयार करेगी ।

(2) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति को, प्रकाशित करेगी ।

(3) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर राज्य सरकारों और प्राधिकरण के परामर्श से, उपधारा (1) में निर्दिष्ट राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति का पुनर्विलोकन या पुनरीक्षण कर सकेगी ।

(4) प्राधिकरण, राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार राष्ट्रीय विद्युत योजना तैयार करेगा और ऐसी योजना को पांच वर्ष में एक बार अधिसूचित करेगा:

परन्तु प्राधिकरण, राष्ट्रीय विद्युत योजना को तैयार करते समय, राष्ट्रीय विद्युत योजना का प्रारूप प्रकाशित करेगा और उस पर अनुज्ञप्तिधारियों, उत्पादन कंपनियों और जनता से सुझाव और आक्षेप, ऐसे समय के भीतर जो विहित किया जाए, आमंत्रित करेगा:

परंतु यह और कि प्राधिकरण, -

(क) केन्द्रीय सरकार का अनुमोदन अभिप्राप्त करने के पश्चात् योजना को अधिसूचित करेगा;

(ख) खंड (क) के अधीन अनुमोदन प्रदान करते समय केन्द्रीय सरकार द्वारा दिए गए निदेशों, यदि कोई हों, को उसमें सम्मिलित करते हुए उस योजना का पुनरीक्षण करेगा ।

(5) प्राधिकरण, राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार राष्ट्रीय विद्युत योजना का, पुनर्विलोकन या पुनरीक्षण कर सकेगा ।

4. ग्रामीण क्षेत्रों और गैर-पारंपरिक ऊर्जा प्रणालियों के लिए एकल आधार प्रणालियों पर आधारित राष्ट्रीय नीति-केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों से परामर्श के पश्चात्, ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, एकल आधार प्रणालियों को अनुज्ञात करते हुए, (जिनके अन्तर्गत वे भी हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और अन्य गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर आधारित हैं) एक राष्ट्रीय नीति तैयार करेगी और उसे अधिसूचित करेगी ।

5. ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण और स्थानीय वितरण संबंधी राष्ट्रीय नीति-केन्द्रीय सरकार, ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए और ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत संस्थाओं, उपयोगकर्ता संगमों, सहकारी सोसाइटियों, गैर-सरकारी संगठनों या विशेषाधिकार प्राप्तकर्ताओं के द्वारा विद्युत के प्रपुंज क्रय और स्थानीय वितरण के प्रबंध के लिए राज्य सरकारों और राज्य आयोगों के परामर्श से, एक राष्ट्रीय नीति भी बनाएगी ।

 [6. ग्रामीण विद्युतीकरण में राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार का संयुक्त उत्तरदायित्व-संबद्ध राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार, सभी क्षेत्रों तक, जिनके अन्तर्गत ग्राम और उपग्राम भी हैं, ग्रामीण विद्युत अवसंरचना और घरों के विद्युतीकरण के माध्यम से विद्युत की पहुंच उपलब्ध कराने का संयुक्त रूप से प्रयास करेंगी ।]

भाग 3

विद्युत का उत्पादन

7. उत्पादन कंपनी और उत्पादन केन्द्र की स्थापना के लिए अपेक्षा-कोई उत्पादन कंपनी यदि वह धारा 73 के खंड (ख) में निर्दिष्ट ग्रिड से संयोजन से संबंधित तकनीकी मानकों को पूरा करती है तो इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति प्राप्त किए बिना किसी उत्पादन केन्द्र की स्थापना, उसका प्रचालन और रखरखाव कर सकती है ।

8. जल विद्युत उत्पादन-(1) धारा 7 में किसी बात के होते हुए भी, कोई उत्पादन कंपनी, जो जल विद्युत उत्पादन केन्द्र स्थापित करने का आशय रखती है, प्राधिकरण की सहमति के लिए, एक स्कीम तैयार और प्रस्तुत करेगी जिसमें ऐसी राशि से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, समय-समय पर, अधिसूचना द्वारा नियत की जाए, अधिक पूंजी व्यय अंतर्वलित होना प्राक्कलित हो ।

(2) प्राधिकरण, उपधारा (1) के अधीन उसे प्रस्तुत की गई किसी स्कीम पर सहमति देने से पूर्व इस बात पर विशेष ध्यान देगा कि उसकी राय में-

(क) प्रस्थापित नदी-संकर्म से पेय जल, सिंचाई, नौचालन, बाढ़ नियंत्रण या अन्य लोक प्रयोजनों की अपेक्षाओं से सुंसगत विद्युत उत्पादन के लिए उक्त नदी या उसकी सहायक नदियों के सर्वोत्तम परम विकास की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या नहीं और इस प्रयोजन के लिए प्राधिकरण, राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार या ऐसे अन्य अभिकरणों से, जिन्हें वह समुचित समझे परामर्श के पश्चात् अपना यह समाधान करेगा कि बांधों और अन्य नदी-संकर्मों की अनुकूलतम अवस्थिति के संबंध में पर्याप्त अध्ययन किया गया है;

(ख) प्रस्थापित स्कीम बांध का डिजाइन और सुरक्षा संबंधित सन्नियमों के अनुसार है या नहीं ।

(3) जहां किसी क्षेत्र में किसी नदी के विकास के लिए कोई बहुप्रयोजन स्कीम प्रवर्तन में है वहां राज्य सरकार और उत्पादन कंपनी अपने क्रियाकलापों का, ऐसी स्कीम के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों के क्रियाकलापों के साथ, जहां तक वे उनसे अंतर्संबंधित हैं, समन्वय करेगी ।

9. आबद्ध उत्पादन-(1) इस अधिनियम में किसी बात के होते भी, कोई व्यक्ति किसी आबद्ध उत्पादन संयंत्र या समर्पित पारेषण लाइनों का सन्निर्माण, अनुरक्षण या प्रचालन कर सकेगा:

परंतु ग्रिड के माध्यम से आबद्ध उत्पादन संयंत्र से विद्युत का प्रदाय किसी उत्पादन कंपनी के उत्पादन केंद्र की भांति ही विनियमित किया जाएगा:

 [परंतु यह और कि किसी अनुज्ञप्तिधारी को, इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों के अनुसार और किसी उपभोक्ता को, धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन बनाए गए विनियमों के अधीन रहते हुए, किसी आबद्ध उत्पादन संयंत्र से उत्पादित विद्युत के प्रदाय के लिए इस अधिनियम के अधीन कोई अनुज्ञप्ति अपेक्षित नहीं होगी ।]

(2) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को, जिसने आबद्ध उत्पादन संयंत्र का सन्निर्माण किया है और ऐसे संयंत्र का अनुरक्षण और प्रचालन करता है, अपने आबद्ध उत्पादन संयंत्र से अपने उपयोग के गंतव्य तक विद्युत ले जाने के प्रयोजनों के लिए निर्बाध पहुंच का अधिकार होगा:

परंतु ऐसी निर्बाध पहुंच पर्याप्त पारेषण सुविधा की उपलभ्यता के अधीन रहते हुए होगी और पारेषण सुविधा की ऐसी उपलभ्यता का, यथास्थिति, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता द्वारा अवधारण किया जाएगा:

परंतु यह और कि पारेषण सुविधा की उपलभ्यता से संबंधित किसी विवाद का न्यायनिर्णयन समुचित आयोग द्वारा किया जाएगा ।

10. उत्पादन कंपनियों के कर्तव्य-(1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी उत्पादन कंपनी के कर्तव्य इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के उपबंधों के अनुसार उत्पादन केन्द्रों, जोड़-लाइनों, उप-केन्द्रों और उनसे संबद्ध समर्पित पारेषण लाइनों की स्थापना करने, उनका प्रचालन और अनुरक्षण करने होंगे ।

(2) कोई उत्पादन कंपनी, इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अनुसार किसी अनुज्ञप्तिधारी को विद्युत का प्रदाय कर सकेगी और धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन बनाए गए विनियमों के अधीन रहते हुए, किसी उपभोक्ता को विद्युत का प्रदाय कर सकेगी ।

(3) प्रत्येक उत्पादन कंपनी-

(क) अपने उत्पादन केंद्रों से संबंधित तकनीकी ब्यौरे, समुचित आयोग और प्राधिकरण को प्रस्तुत करेगी;

(ख) अपने द्वारा उत्पादित विद्युत के पारेषण के लिए, यथास्थिति, केंद्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता से समन्वय करेगी ।

11. उत्पादन कंपनियों को निदेश-(1) समुचित सरकार, यह विनिर्दिष्ट कर सकेगी कि कोई उत्पादन कंपनी, असाधारण परिस्थितियों में, उस सरकार के निदेशों के अनुसार किसी उत्पादन केन्द्र का प्रचालन और अनुरक्षण करेगी ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजन के लिए असाधारण परिस्थिति" पद से ऐसी परिस्थितियां अभिप्रेत हैं जो राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था या किसी प्राकृतिक विपत्ति या लोकहित में उद्भूत अन्य परिस्थितियों से उत्पन्न हों ।

(2) समुचित आयोग, उपधारा (1) में निर्दिष्ट निदेशों के किसी उत्पादन कंपनी पर प्रतिकूल वित्तीय प्रभाव का प्रतिकार ऐसी रीति से कर सकेगा जो वह समुचित समझे ।

भाग 4

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12. प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा विद्युत का पारेषण, प्रदाय, आदि किया जाना-(1) कोई भी व्यक्ति-

(क) विद्युत का पारेषण; या

(ख) विद्युत का वितरण; या

(ग) विद्युत में व्यापार, तब तक नहीं करेगा जब तक कि उसे धारा 14 के अधीन जारी की गई अनुज्ञप्ति द्वारा ऐसा करने के लिए प्राधिकृत नहीं किया जाता है, या धारा 13 के अधीन छूट प्रदान नहीं कर दी जाती है ।

13. छूट देने की शक्ति-समुचित आयोग, समुचित सरकार की सिफारिश पर, धारा 5 के अधीन विरचित राष्ट्रीय नीति के अनुसार और लोकहित में, अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए और ऐसी अवधि या अवधियों के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, धारा 12 के उपबंध किसी स्थानीय प्राधिकारी, पंचायत संस्था, उपयोगकर्ता संगम, सहकारी सोसाइटी, गैर-सरकारी संगठन या विशेषाधिकार प्राप्त को लागू नहीं होंगे ।

14. अनुज्ञप्ति प्रदान किया जाना-समुचित आयोग, धारा 15 के अधीन उसको किए गए आवेदन पर किसी व्यक्ति को, किसी ऐसे क्षेत्र में, जो अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट किया जाए-

(क) पारेषण अनुज्ञप्तिधारी के रूप में विद्युत पारेषित करने के लिए; या

(ख) वितरण अनुज्ञप्तिधारी के रूप में विद्युत वितरित करने के लिए; या

(ग) विद्युत व्यापारी के रूप में विद्युत का व्यापार करने के लिए, अनुज्ञप्ति प्रदान कर सकेगा:

परन्तु नियत तारीख को या उसके पूर्व निरसित विधियों या अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी अधिनियम के उपबंधों के अधीन विद्युत के पारेषण या प्रदाय के कारबार में लगे किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम के अधीन ऐसी अवधि के लिए, जो अनुसूची में विनिर्दिष्ट निरसित विधियों या अधिनियम के अधीन उसे अनुदत्त अनुज्ञप्ति, समाशोधन या अनुमोदन में अनुबंधित किया जाए, अनुज्ञप्तिधारी है और ऐसी अनुज्ञप्ति के संबंध में अनुसूची में विनिर्दिष्ट निरसित विधियों या ऐसे अधिनियम के उपबंध इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से एक वर्ष की अवधि या ऐसी पूर्वतर अवधि के लिए, जो अनुज्ञप्तिधारी के अनुरोध पर समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, लागू होंगे और उसके पश्चात् इस अधिनियम के उपबंध ऐसे कारबार को लागू होंगे :

परन्तु यह और कि केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता को इस अधिनियम के अधीन पारेषण अनुज्ञप्तिधारी समझा जाएगा:

परंतु यह भी कि यदि समुचित सरकार, इस अधिनियम के प्रारंभ या उसके पश्चात् विद्युत का पारेषण करती है या विद्युत का वितरण करती है या विद्युत में व्यापार करती है तो ऐसी सरकार इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तिधारी मानी जाएगी, किन्तु उससे इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी:

परंतु यह भी कि दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 (1948 का 14) की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित दामोदर घाटी निगम इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तिधारी समझा जाएगा, किन्तु उससे इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी और दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 के उपबंध, जहां तक वे इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं हैं, उस निगम को लागू होते रहेंगे:

परन्तु यह भी कि सरकारी कंपनी या इस अधिनियम की धारा 131 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट कंपनी और अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों के अनुसरण में सृजित कंपनी या कंपनियों को इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तिधारी समझा जाएगा:

परंतु यह भी कि समुचित आयोग, एक ही क्षेत्र के भीतर अपनी वितरण प्रणाली के माध्यम से विद्युत के वितरण के लिए दो या अधिक व्यक्तियों को, इन शर्तों के अधीन रहते हुए अनुज्ञप्ति प्रदान कर सकेगा कि एक ही क्षेत्र के भीतर अनुज्ञप्ति प्राप्त करने के लिए आवेदक, इस अधिनियम के अधीन ऐसी अन्य शर्तों या अपेक्षाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना,  [उन अतिरिक्त अपेक्षाओं (पूंजी की पर्याप्तता, उधारपात्रता या आचार-संहिता से संबंधित) को पूरा करेगा] जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, और ऐसे किसी आवेदक को, जो अनुज्ञप्ति प्रदान करने के लिए सभी शर्तों को पूरा करता है इस आधार पर अनुज्ञप्ति प्रदान करने से इनकार नहीं किया जाएगा कि उसी प्रयोजन के लिए उसी क्षेत्र में कोई अनुज्ञप्तिधारी पहले से ही विद्यमान है :

परंतु यह भी कि उस दशा में, जहां कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी अपने प्रदाय क्षेत्र के भीतर विनिर्दिष्ट क्षेत्र के लिए विद्युत का वितरण अन्य व्यक्ति के माध्यम से करने की प्रस्थापना करता है वहां ऐसे व्यक्ति से संबंधित राज्य आयोग से कोई पृथक् अनुज्ञप्ति प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी और ऐसा वितरण अनुज्ञप्तिधारी, उसके प्रदाय क्षेत्र में विद्युत के वितरण के लिए उत्तरदायी होगा:

परंतु यह भी कि जहां कोई व्यक्ति, राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले किसी ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत का उत्पादन और वितरण करने का आशय रखता है वहां ऐसे व्यक्ति से विद्युत के ऐसे उत्पादन और वितरण के लिए किसी अनुज्ञप्ति की अपेक्षा नहीं की जाएगी किन्तु वह ऐसे सभी उपाय करेगा जो धारा 53 के अधीन प्राधिकरण द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं:

परंतु यह भी कि वितरण अनुज्ञप्तिधारी को विद्युत में व्यापार आरंभ करने के लिए किसी अनुज्ञप्ति की अपेक्षा नहीं होगी ।

15. अनुज्ञप्ति प्रदान करने की प्रक्रिया-(1) धारा 14 के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से किया जाएगा जो समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो विहित की जाए ।

(2) कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किया है, ऐसा आवेदन करने के पश्चात् सात दिन के भीतर ऐसी रीति में और ऐसी विशिष्टियों के साथ जो विनिर्दिष्ट की जाएं अपने आवेदन की सूचना प्रकाशित करेगा और अनुज्ञप्ति तब तक प्रदान नहीं की जाएगी-

(i) जब तक कि आवेदन के प्रकाशन के उत्तर में समुचित आयोग द्वारा प्राप्त सभी आक्षेपों पर, यदि कोई हों, उसके द्वारा विचार नहीं कर लिया गया हो:

परंतु किसी आक्षेप पर इस प्रकार विचार तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि वह यथापूर्वोक्त सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन समाप्त होने के पूर्व प्राप्त नहीं हो जाता; और

(ii) जब तक कि किसी ऐसे क्षेत्र के लिए, जिसके अंतर्गत किसी छावनी, हवाई अड्डे, दुर्ग, आयुधशाला, डाकयार्ड या कैंप या रक्षा प्रयोजनों के लिए सरकार के अधिभोग में किसी भवन या स्थान का संपूर्ण या कोई भाग है, अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन की दशा में, समुचित आयोग ने यह अभिनिश्चित न कर लिया हो कि केन्द्रीय सरकार की ओर से अनुज्ञप्ति प्रदान करने पर कोई आक्षेप नहीं है ।

(3) पारेषण अनुज्ञप्तिधारी के रूप में कार्य करने का इच्छुक कोई व्यक्ति, आवेदन करने पर तुरन्त ऐसे आवेदन की प्रति यथास्थिति, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता को अग्रेषित करेगा ।

(4) यथास्थिति, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता, उपधारा (3) में निर्दिष्ट आवेदन की प्रति के प्राप्त होने के पश्चात्, तीस दिन की अवधि के भीतर अपनी सिफारिशें, यदि कोई हों, समुचित आयोग को भेजेगी:

परन्तु ऐसी सिफारिशें आयोग पर आबद्धकर नहीं होंगी ।

(5) समुचित आयोग, धारा 14 के अधीन अनुज्ञप्ति प्रदान करने के पूर्व-

(क) दो ऐसे दैनिक समाचारपत्रों में सूचना प्रकाशित करेगा जिन्हें वह आयोग आवश्यक समझे और उसमें उस व्यक्ति का नाम और पता होगा जिसको उसने अनुज्ञप्ति जारी करने का प्रस्ताव किया है;

(ख) यथास्थिति, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता के सभी सुझावों या आक्षेपों और सिफारिशों, यदि कोई हों, पर विचार करेगा ।

(6) जहां कोई व्यक्ति धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी के रूप में कार्य करने के लिए आवेदन करता है वहां समुचित आयोग, जहां तक साध्य हो, ऐसा आवेदन प्राप्त करने के पश्चात् नब्बे दिन के भीतर, -

(क) इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों तथा विनियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए अनुज्ञप्ति जारी करेगा; या

(ख) आवेदन को, उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यदि ऐसा आवेदन इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अनुरूप न हो तो नामंजूर करेगा:

परन्तु कोई आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि आवेदक को सुनवाई का अवसर न दिया गया हो ।

(7) समुचित आयोग, अनुज्ञप्ति जारी करने के ठीक पश्चात्, अनुज्ञप्ति की एक प्रति समुचित सरकार, प्राधिकरण, स्थानीय प्राधिकरण को और ऐसे अन्य व्यक्ति को, जिसे समुचित आयोग आवश्यक समझे, अग्रेषित करेगा ।

(8) अनुज्ञप्ति पच्चीस वर्ष की अवधि के लिए प्रवर्तन में रहेगी जब तक कि वह प्रतिसंहृत नहीं कर दी जाती ।

16. अनुज्ञप्ति की शर्तें-समुचित आयोग, अनुज्ञप्ति की किन्हीं साधारण या विशेष शर्तों को जो किसी अनुज्ञप्तिधारी को या अनुज्ञप्तिधारियों के किसी वर्ग को लागू होगी, विनिर्दिष्ट कर सकेगा और ऐसी शर्तें अनुज्ञप्ति की शर्तें समझी जाएंगी:

परन्तु समुचित आयोग, नियत तारीख से एक वर्ष के भीतर, धारा 14 के पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें परन्तुकों में निर्दिष्ट अनुज्ञप्तियों को लागू होने वाली अनुज्ञप्ति की किन्हीं साधारण या विनिर्दिष्ट शर्तों को, इस अधिनियम के प्रारंभ से एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात्, विनिर्दिष्ट करेगा ।

17. अनुज्ञप्तिधारी द्वारा कतिपय बातों का किया जाना-(1) कोई भी अनुज्ञप्तिधारी, समुचित आयोग के पूर्व अनुमोदन के बिना, -

(क) किसी अन्य अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिता को क्रय द्वारा या ग्रहण करके या अन्यथा अर्जित करने का कोई संव्यवहार नहीं करेगा; या

(ख) अपनी उपयोगिता का किसी अन्य अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिता के साथ विलयन नहीं करेगा:

परंतु इस उपधारा की कोई बात लागू नहीं होगी यदि अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिता उस राज्य से भिन्न किसी राज्य में स्थित है जिसमें खंड (क) या खण्ड (ख) में निर्दिष्ट उपयोगिता स्थित है ।

(2) प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी, उपधारा (1) के अधीन अनुमोदन अभिप्राप्त करने से पूर्व, ऐसे प्रत्येक अन्य अनुज्ञप्तिधारी को जो ऐसे अनुज्ञप्तिधारी के क्षेत्र में, जो ऐसे अनुमोदन के लिए आवेदन करता है विद्युत का पारेषण या वितरण करता है, एक मास से अन्यून की सूचना देगा ।

(3) कोई अनुज्ञप्तिधारी, किसी भी समय, समुचित आयोग के पूर्व अनुमोदन के बिना, विक्रय, पट्टे, विनिमय द्वारा या अन्यथा अपनी अनुज्ञप्ति को समनुदिष्ट नहीं करेगा या अपनी उपयोगिता या उसके किसी भाग का अंतरण नहीं करेगा ।

(4) उपधारा (1) या उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट किसी संव्यवहार से संबंधित कोई करार जब तक कि वह समुचित आयोग के पूर्व अनुमोदन से न किया गया हो, शून्य होगा ।

18. अनुज्ञप्ति का संशोधन-(1) जहां समुचित आयोग की राय में लोकहित ऐसा अनुज्ञात करता है वहां वह अनुज्ञप्तिधारी के आवेदन पर या अन्यथा, उसकी अनुज्ञप्ति के निबन्धनों और शर्तों में ऐसे परिवर्तन और संशोधन कर सकेगा, जो वह ठीक समझे:

परन्तु ऐसे कोई परिवर्तन या संशोधन अनुज्ञप्तिधारी की सहमति के बिना तब तक नहीं किए जाएंगे जब तक कि ऐसी सहमति, समुचित आयोग की राय में, अनुचित रूप से विधारित न की गई हो ।

(2) इस धारा के अधीन अनुज्ञप्ति में कोई परिवर्तन या संशोधन किए जाने के पूर्व, निम्निलिखित उपबन्ध प्रभावी होंगे, अर्थात्: -

(क) जहां अनुज्ञप्तिधारी ने उपधारा (1) के अधीन अपनी अनुज्ञप्ति में कोई परिवर्तन या उपान्तरण करने का प्रस्ताव करते हुए आवेदन किया है वहां अनुज्ञप्तिधारी, ऐसी रीति से और ऐसी विशिष्टियों के साथ जो विनिर्दिष्ट की जाएं ऐसे आवेदन की सूचना प्रकाशित करेगा;

(ख) किसी छावनी, हवाई अड्डा, दुर्ग, आयुधशाला, डाकयार्ड या कैम्प के या रक्षा प्रयोजनों के लिए सरकार के अधिभोग में के किसी भवन या स्थान के सभी या किसी भाग को समाविष्ट करने वाले प्रदाय के क्षेत्र में परिवर्तन या उपांतरण का प्रस्ताव करने वाले किसी आवेदन की दशा में, समुचित आयोग कोई परिवर्तन या उपांतरण केन्द्रीय सरकार की सहमति के बिना नहीं करेगा;

(ग) जहां किसी अनुज्ञप्ति में कोई परिवर्तन या उपांतरण, अनुज्ञप्तिधारी के आवेदन से अन्यथा करने का प्रस्ताव किया जाता है वहां समुचित आयोग, ऐसी रीति से और ऐसी विशष्टियों के साथ जो विहित की जाएं प्रस्तावित परिवर्तनों या उपांतरणों को प्रकाशित करेगा;

(घ) समुचित आयोग, कोई परिवर्तन या उपांतरण तब तक नहीं करेगा जब तक कि उसने सूचना के प्रथम प्रकाशन की तारीख से तीस दिन के भीतर प्राप्त सभी सुझावों या आक्षेपों पर विचार नहीं कर लिया है ।

19. अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण-(1) यदि समुचित आयोग का, जांच करने के पश्चात् यह समाधान हो जाता है कि लोकहित में ऐसा अपेक्षित है, तो वह निम्नलिखित किसी दशा में किसी अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत कर सकेगा, अर्थात्: -

(क) जहां अनुज्ञप्तिधारी, समुचित आयोग की राय में, इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों द्वारा या उनके अधीन उससे अपेक्षित कोई बात करने में जानबूझकर और विलंबित व्यतिक्रम करता है;

(ख) जहां अनुज्ञप्तिधारी अपनी अनुज्ञप्ति के निबंधनों या शर्तों में से किसी का भंग करता है, जिसका भंग ऐसी अनुज्ञप्ति द्वारा उसे प्रतिसंहरण के लिए दायी बनाने के लिए स्पष्ट रूप से घोषित है;

(ग) जहां अनुज्ञप्तिधारी, अपनी अनुज्ञप्ति द्वारा इस निमित्त नियत अवधि के भीतर या किसी ऐसी दीर्घतर अवधि के भीतर, जो समुचित आयोग ने उसके लिए प्रदान की हो, -

(i) समुचित आयोग के समाधानप्रद रूप में यह दर्शित करने में कि वह अपनी अनुज्ञप्ति द्वारा उस पर अधिरोपित कर्तव्यों और बाध्यताओं का पूर्णतः तथा दक्षतापूर्ण निर्वहन करने की स्थिति में है; या

(ii) अपनी अनुज्ञप्ति द्वारा अपेक्षित प्रतिभूति का निक्षेप करने में या उसे देने में या, फीस या अन्य प्रभारों का संदाय करने में, असफल रहता है;

(घ) जहां समुचित आयोग की राय में अनुज्ञप्तिधारी की वित्तीय स्थिति ऐसी है कि वह अपनी अनुज्ञप्ति द्वारा उस पर अधिरोपित कर्तव्यों और बाध्यताओं का पूर्णतः तथा दक्षतापूर्ण निर्वहन करने में असमर्थ है ।

(2) जहां, समुचित आयोग की राय में, लोकहित में ऐसा अपेक्षित है वहां, वह आवेदन पर य अनुज्ञप्तिधारी की सहमति से, वितरण या पारेषण या व्यापार के उसके समस्त क्षेत्र या किसी भाग के बारे में उसकी अनुज्ञप्ति को ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, प्रतिसंहृत कर सकेगा ।

(3) उपधारा (1) के अधीन कोई अनुज्ञप्ति तब तक प्रतिसंहृत नहीं की जाएगी जब तक कि समुचित आयोग ने अनुज्ञप्तिधारी को कम से कम तीन मास की लिखित सूचना उन आधारों को कथित करते हुए न दी हो जिन पर अनुज्ञप्ति को प्रतिसंहृत करने का प्रस्ताव है और प्रस्तावित प्रतिसंहरण के विरुद्ध उस सूचना की अवधि के भीतर अनुज्ञप्तिधारी द्वारा दर्शाए गए किसी कारण पर विचार न किया हो ।

(4) समुचित आयोग, उपधारा (1) के अधीन किसी अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण करने के स्थान पर, उसे ऐसे अतिरिक्त निबंधनों और शर्तों के अधीन रहते हुए जो वह अधिरोपित करना ठीक समझे, प्रवर्तन में बने रहने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा और इस प्रकार अधिरोपित अतिरिक्त निबंधन और शर्तें अनुज्ञप्तिधारी पर आबद्धकर होंगी तथा उसके द्वारा उनका पालन किया जाएगा और ऐसे निबंधनों और शर्तों का वैसा ही बल और प्रभाव होगा मानो वे अनुज्ञप्ति में अंतर्विष्ट हों ।

(5) जहां आयोग इस धारा के अधीन किसी अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण करता है वहां वह अनुज्ञप्तिधारी पर प्रतिसंहरण की सूचना की तामील करेगा औ वह तारीख नियत करेगा जिसको प्रतिसंहरण प्रभावी होगा ।

(6) जहां समुचित आयोग ने उपधारा (5) के अधीन अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण के लिए सूचना दी है वहां अनुज्ञप्तिधारी, किसी ऐसी शास्ति पर, जो अधिरोपित की जाए या ऐसी अभियोजन कार्यवाही पर, जो इस अधिनियम के अधीन प्रारंभ की जाए, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उस आयोग के पूर्व अनुमोदन के पश्चात् अपनी उपयोगिता का किसी ऐसे व्यक्ति को विक्रय कर सकेगा जो उस आयोग द्वारा अनुज्ञप्ति प्रदान करने के लिए पात्र पाया जाए ।

20. अनुज्ञप्तिधारियों की उपयोगिता का विक्रय-(1) जहां समुचित आयोग धारा 19 के अधीन किसी अनुज्ञप्तिधारी की अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण करता है वहां निम्नलिखित उपबंध लागू होंगे, अर्थात्: -

(क) समुचित आयोग उस अनुज्ञप्तिधारी की, जिसकी अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण किया गया है, उपयोगिता को अर्जित करने के लिए आवेदन आंमत्रित करेगा और मुख्यतः उपयोगिता के लिए प्रस्थापित उच्चतम और सर्वोत्तम कीमत के आधार पर यह अवधारित करेगा कि ऐसे आवेदनों में से किसे स्वीकार किया जाए;

(ख) समुचित आयोग, लिखित सूचना द्वारा, अनुज्ञप्तिधारी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह अपनी उपयोगिता का विक्रय करे और तब अनुज्ञप्तिधारी उस व्यक्ति को (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् क्रेता" कहा गया है), जिसका आवेदन उस आयोग द्वारा स्वीकार किया गया है, उपयोगिता का विक्रय करेगा;

(ग) अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण की तारीख से ही, या उस तारीख से ही, यदि उससे पहले हो, जिसको अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिता का विक्रय क्रेता को किया जाता है, अनुज्ञप्तिधारी के सभी अधिकार, कर्तव्य, बाध्यताएं और दायित्व, सिवाय किन्हीं ऐसे दायित्वों के, जो उस तारीख के पूर्व प्रोद्भूत हुए हों पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएंगे;

(घ) समुचित आयोग उपयोगिता के प्रचालन के संबंध में ऐसी अंतरिम व्यवस्थाएं, जिनके अन्तर्गत प्रशासकों की नियुक्ति भी है, कर सकेगा जो वह उपयुक्त समझे;

(ङ) खंड (घ) के अधीन नियुक्त प्रशासक ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगा जो समुचित आयोग निदेश दे ।

(2) जहां उपधारा (1) के अधीन किसी उपयोगिता का विक्रय किया जाता है वहां क्रेता, तय पाई गई रीति में उपयोगिता की क्रय कीमत अनुज्ञप्तिधारी को संदत्त करेगा ।

(3) जहां समुचित आयोग, उपधारा (1) के अधीन उपयोगिता का विक्रय करने के लिए अनुज्ञप्तिधारी से अपेक्षा करने वाली कोई सूचना जारी करता है, वहां वह ऐसी सूचना द्वारा, अनुज्ञप्तिधारी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उपयोगिता को परिदत्त करे और तब अनुज्ञप्तिधारी सूचना में विनिर्दिष्ट तारीख को उपयोगिता को उसकी क्रय कीमत के संदाय पर अभिहित क्रेता को परिदत्त करेगा ।

(4) जहां अनुज्ञप्तिधारी ने क्रेता को उपधारा (3) में निर्दिष्ट उपयोगिता का परिदान किया है किन्तु उसका विक्रय उस उपधारा के अधीन जारी की गई सूचना में नियत तारीख तक पूरा नहीं किया गया है, वहां समुचित आयोग, यदि वह ठीक समझे, तो आशयित क्रेता को विक्रय पूरा होने तक उपयोगिता प्रणाली को परिचालित और अनुरक्षित करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।

21. क्रेता में उपयोगिता का निहित होना-जहां किसी उपयोगिता का विक्रय धारा 20 या धारा 24 के अधीन किया जाता है वहां, यथास्थिति, विक्रय के पूरा होने पर या उस तारीख को, जिसको उपयोगिता का परिदान आशयित क्रेता को किया जाता है, इनमें से जो भी पहले हो-

(क) उपयोगिता, यथास्थिति, क्रेता या आशयित क्रेता में निहित हो जाएगी, जो अनुज्ञप्तिधारी के या उपयोगिता से संलग्न किसी ऋण, बंधक या समरूप बाध्यता से मुक्त होगी:

परन्तु किसी ऐसे ऋण, बंधक या समरूप बाध्यता को उपयोगिता के स्थान पर क्रय धन से संलग्न कर दिया जाएगा; और

(ख) उसकी अनुज्ञप्ति के अधीन अनुज्ञप्तिधारी के अधिकार, शक्तियां, प्राधिकार, कर्तव्य और बाध्यताएं क्रेता को अन्तरित हो जाएंगे तथा ऐसे क्रेता को अनुज्ञप्तिधारी समझा जाएगा ।

22. जहां कोई क्रय नहीं होता है वहां उपबंध-(1) यदि उपयोगिता का धारा 20 या धारा 24 में उपबंधित रीति से विक्रय नहीं किया जाता है तो, समुचित आयोग, उपभोक्ताओं के हित की रक्षा करने के लिए या लोकहित में, ऐसे निदेश जारी कर सकेगा या ऐसी स्कीम तैयार कर सकेगा जो उसे उपयोगिता के प्रचालन के लिए आवश्यक प्रतीत हों ।

(2) जहां उपधारा (1) के अधीन समुचित आयोग द्वारा कोई निदेश जारी नहीं किए जाते या स्कीम तैयार नहीं की जाती वहां धारा 20 या धारा 24 में निर्दिष्ट अनुज्ञप्तिधारी उपयोगिता का ऐसी रीति से, जिसे वह ठीक समझे, व्ययन कर सकेगा:

परन्तु यदि अनुज्ञप्तिधारी धारा 20 या उपधारा 24 के अधीन प्रतिसंहरण की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर उपयोगिता का व्ययन नहीं करता है तो समुचित आयोग, अनुज्ञप्तिधारी के किसी पथ या सार्वजनिक भूमि में, उसके नीचे, उसके ऊपर, उसके साथ या उसके आर-पार के संकर्म को हटवा सकेगा और ऐसे प्रत्येक पथ या सार्वजनिक भूमि को यथापूर्व कर दिया जाएगा और अनुज्ञप्तिधारी से ऐसे हटाए जाने और यथापूर्व करने की लागत को वसूल किया जाएगा ।

23. अनुज्ञप्तिधारियों को निदेश-यदि समुचित आयोग की राय है कि विद्युत के दक्षतापूर्ण प्रदाय को बनाए रखने, उसका साम्यापूर्ण वितरण सुनिश्िचत करने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो वह, आदेश द्वारा, उसके प्रदाय, वितरण, उपभोग या उपयोग को विनियमित करने के लिए उपबंध कर सकेगा ।

24. वितरण अनुज्ञप्ति का निलंबन और उपयोगिता का विक्रय-(1) यदि समुचित आयोग की किसी तरह यह राय है कि-

(क) वितरण अनुज्ञप्तिधारी उपभोक्ताओं को विद्युत की क्वालिटी के संबंध में मानकों के अनुरूप विद्युत के अबाधित प्रदाय को बनाए रखने में लगातार असफल रहा है; या

(ख) वितरण अनुज्ञप्तिधारी इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या उनके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों का निर्वहन या कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है; या

(ग) वितरण अनुज्ञप्तिधारी ने समुचित आयोग द्वारा इस अधिनियम के अधीन दिए गए किसी निदेश का अनुपालन करने में लगातार व्यतिक्रम किया है; या

(घ) वितरण अनुज्ञप्तिधारी ने अनुज्ञप्ति के निबंधनों और शर्तों को तोड़ा है,

और लोकहित में ऐसा करने के लिए परिस्थितियां विद्यमान हैं, जो उसे उसके लिए आवश्यक बनाती है तो समुचित आयोग, उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए वितरण अनुज्ञप्तिधारी की अनुज्ञप्ति निलंबित कर सकेगा और अनुज्ञप्ति के निबंधनों और शर्तों के अनुसार वितरण अनुज्ञप्तिधारी के कृत्यों का निर्वहन करने के लिए एक प्रशासक नियुक्त कर सकेगा:

परन्तु इस धारा के अधीन अनुज्ञप्ति का निलंबन करने के पूर्व, समुचित आयोग वितरण अनुज्ञप्तिधारी को अनुज्ञप्ति के प्रस्तावित निलम्बन के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उचित अवसर प्रदान करेगा और वितरण अनुज्ञप्तिधारी के अभ्यावेदनों पर, यदि कोई हों, विचार करेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्ति के निलबंन पर, वितरण अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिताएं एक वर्ष से अनधिक अवधि या उस तारीख तक के लिए, जिसको ऐसी उपयोगिता का धारा 20 में अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार विक्रय किया जाता है, जो भी बाद में हो, प्रशासक में निहित हो जाएंगी ।

(3) समुचित आयोग, उपधारा (1) के अधीन प्रशासक की नियुक्ति के एक वर्ष के भीतर, या तो धारा 19 में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार, यथास्थिति, अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण करेगा या अनुज्ञप्ति के निलंबन का प्रतिसंहरण करेगा और उस वितरण अनुज्ञप्तिधारी को उपयोगिता प्रत्यावर्तित करेगा, जिसकी अनुज्ञप्ति निलंबित की गई थी ।

(4) उस दशा में जहां समुचित आयोग, उपधारा (3) के अधीन अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण करता है वहां वितरण अनुज्ञप्तिधारी की उपयोगिता का धारा 20 के उपबंधों के अनुसार अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर विक्रय किया जाएगा और उपयोगिताओं के विक्रय पर प्रशासनिक और अन्य व्ययों की कटौती करने के पश्चात् कीमत, वितरण अनुज्ञप्तिधारी को विप्रेषित की जाएगी ।

भाग 5

विद्युत का पारेषण

अंतरराज्यिक पारेषण

25. अंतरराज्यिक, प्रादेशिक और अंतर-प्रादेशिक पारेषण-इस भाग के प्रयोजनों के लिए, केन्द्रीय सरकार, देश का प्रदेशवार सीमांकन कर सकेगी और समय-समय पर उसमें ऐसे उपांतरण कर सकेगी जो वह विद्युत के दक्षतापूर्ण, मितव्ययी और समेकित पारेषण तथा प्रदाय के लिए, और विशिष्टतया, विद्युत के अंतरराज्यिक, प्रादेशिक और अंतर-प्रादेशिक उत्पादन तथा पारेषण के लिए सुविधाओं के स्वैच्छिक अंतःसंयोजन और समन्वय को सुकर बनाने के लिए आवश्यक समझे ।

26. राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र-(1) केन्द्रीय सरकार प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्रों में विद्युत के अधिकतम निर्धारण और प्रेषण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक केन्द्र स्थापित करेगी, जिसे राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र कहा जाएगा ।

(2) राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र का गठन और कृत्य वे होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं:

परंतु राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत व्यापार के कारबार में नहीं लगेगा ।

(3) राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र का प्रचालन किसी सरकारी कंपनी या किसी केन्द्रीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित या गठित किसी प्राधिकरण या निगम द्वारा, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए, किया जाएगा ।

27. प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र का गठन-(1) केन्द्रीय सरकार, इस भाग के अधीन शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक प्रदेश के लिए एक केन्द्र स्थापित करेगी, जिसे प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र कहा जाएगा, जिसकी राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता वह होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 25 के अनुसार अवधारित की जाए ।

(2) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र का प्रचालन किसी सरकारी कंपनी या किसी केन्द्रीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित या गठित किसी प्राधिकरण या निगम द्वारा, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए, किया जाएगा:

परंतु केन्द्रीय सरकार द्वारा इस उपधारा में निर्दिष्ट सरकारी कंपनी या प्राधिकरण या निगम के अधिसूचित किए जाने तक, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता, प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र का प्रचालन करेगी:

परंतु यह और कि कोई भी प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत उत्पादन या विद्युत व्यापार के कारबार में नहीं लगेगा ।

28. प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र के कृत्य-(1) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र संबद्ध प्रदेश में विद्युत प्रणाली का समाकलित प्रचालन सुनिश्चित करने के लिए शीर्षस्थ निकाय होगा ।

(2) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत के चक्रण और अधिकतम निर्धारण तथा प्रेषण के संबंध में ऐसे सिद्धांतों, मार्गदर्शक सिद्धांतों और पद्धतियों का अनुपालन करेगा जिन्हें केन्द्रीय आयोग, ग्रिड कोड में विनिर्दिष्ट करे ।

(3) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र-

(क) प्रदेश में प्रचालन करने वाले अनुज्ञप्तिधारियों या उत्पादन कंपनियों के साथ की गई संविदाओं के अनुसार प्रदेश के भीतर विद्युत के अधिकतम निर्धारण और प्रेषण के लिए उत्तरदायी होगा;

(ख) ग्रिड संक्रियाओं को मानीटर करेगा;

(ग) प्रादेशिक ग्रिड के माध्यम से पारेषित विद्युत की मात्रा का लेखा रखेगा;

(घ) अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करेगा; और

(ङ) ग्रिड मानकों और ग्रिड कोड के अनुसार प्रादेशिक ग्रिड के सुरक्षित और मितव्ययी प्रचालन के द्वारा प्रदेश के भीतर विद्युत के ग्रिड नियंत्रण और प्रेषण के लिए यथार्थिक समय प्रचालनों के लिए उत्तरदायी होगा ।

(4) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत के अंतरराज्यिक पारेषण में लगी उत्पादन कंपनियों या अनुज्ञप्तिधारियों से ऐसी फीस और प्रभार उद्गृहीत करेगा तथा उनसे संगृहीत कर सकेगा जो केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

29. निदेशों का अनुपालन-(1) प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र, ऐसे निदेश दे सकेगा और ऐसा पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण कर सकेगा जो ग्रिड प्रचालनों के स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए और उसके नियंत्रणाधीन प्रदेश में विद्युत प्रणाली के प्रचालन में अधिकतम मितव्ययिता और दक्षता प्राप्त करने के लिए अपेक्षित हो ।

(2) प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी, उत्पादन कंपनी, उत्पादन केन्द्र, उपकेन्द्र और विद्युत प्रणाली के प्रचालन से जुड़ा कोई अन्य व्यक्ति, प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्रों द्वारा उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए निदेशों का अनुपालन करेगा ।

(3) प्रादेशिक भार प्रषण केन्द्रों द्वारा राज्य पारेषण लाइनों के किसी पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या राज्य के किसी अन्य अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी (उनसे भिन्न जो अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली से जुड़े हुए हैं) या राज्य में उपकेन्द्र को जारी किए जाने वाले सभी निदेश, राज्य भार प्रेषण केन्द्र की मार्फत जारी किए जाएंगे और राज्य भार प्रेषण केन्द्र यह सुनिश्िचत करेंगे कि ऐसे निदेशों का अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी या उपकेन्द्र द्वारा सम्यक् रूप से अनुपालन किया जाता है ।

(4) किसी प्रदेश में प्रादेशिक विद्युत समिति, समय-समय पर उस प्रदेश में समाकलित ग्रिड के स्थायित्व और प्रचालन और विद्युत प्रणाली के प्रचालन में मितव्ययिता तथा दक्षता से संबंधित विषयों पर अपनी सहमति दे सकेगी ।

(5) यदि कोई विवाद, विद्युत की क्वालिटी या प्रादेशिक ग्रिड के सुरक्षित, सुनिश्चित और समाकलित प्रचालन के संदर्भ में या उपधारा (1) के अधीन दिए गए किसी निदेश के संबंध में उत्पन्न होता है, तो उसे केन्द्रीय आयोग को विनिश्िचय के लिए निर्दिष्ट किया जाएगा:

परंतु केन्द्रीय आयोग का विनिश्चय होने तक, प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र के निदेशों का, यथास्थिति, राज्य भार प्रेषण केन्द्र या अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा अनुपालन किया जाएगा ।

(6) यदि कोई अनुज्ञप्तिधारी, उत्पादन कंपनी या कोई अन्य व्यक्ति, उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन जारी किए गए निदेशों का पालन करने में असफल रहता है तो वह पन्द्रह लाख रुपयों से अनधिक की शास्ति का दायी होगा ।

अंतःराज्यिक पारेषण

30. किसी राज्य के भीतर पारेषण-राज्य आयोग, विद्युत के मितव्ययी और दक्षतापूर्ण उपयोग द्वारा विद्युत के पारेषण और प्रदाय के लिए अपनी राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता के भीतर पारेषण, चक्रण और अंतरसंयोजन व्यवस्थाओं को सुकर बनाएगा और उनका संवर्धन करेगा ।

31. राज्य भार प्रेषण केन्द्रों का गठन-(1) राज्य सरकार, इस भाग के अधीन शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजनों के लिए एक केन्द्र स्थापित करेगी, जिसे राज्य भार प्रेषण केन्द्र कहा जाएगा ।

(2) राज्य भार प्रेषण केन्द्र का प्रचालन, किसी सरकारी कंपनी या किसी राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित या गठित किसी प्राधिकरण या निगम द्वारा, जिसे राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए, किया जाएगा:

परंतु राज्य सरकार द्वारा, सरकारी कंपनी या किसी प्राधिकरण या निगम के अधिसूचित किए जाने तक, राज्य पारेषण उपयोगिता, राज्य भार प्रेषण केन्द्र का प्रचालन करेगी:

परंतु यह और कि कोई भी राज्य भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत व्यापार के कारबार में नहीं लगेगा ।

32. राज्य भार प्रेषण केन्द्रों के कृत्य-(1) राज्य भार प्रेषण केन्द्र, राज्य में विद्युत प्रणाली का समाकलित प्रचालन सुनिश्चित करने के लिए शीर्षस्थ निकाय होगा ।

(2) राज्य भार प्रेषण केन्द्र-

(क) राज्य में प्रचालन करने वाले अनुज्ञप्तिधारियों या उत्पादन कंपनियों के साथ की गई संविदाओं के अनुसार राज्य के भीतर विद्युत के अधिकतम निर्धारण और प्रेषण के लिए उत्तरदायी होगा;

(ख) ग्रिड संक्रियाओं को मानीटर करेगा;

(ग) राज्य ग्रिड के माध्यम से पारेषित विद्युत की मात्रा का लेखा रखेगा;

(घ) अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करेगा; और

(ङ) ग्रिड मानकों और राज्य ग्रिड कोड के अनुसार राज्य ग्रिड के सुरक्षित और मितव्ययी प्रचालन के द्वारा राज्य के भीतर विद्युत के ग्रिड नियंत्रण और प्रेषण के लिए यथार्थिक समय प्रचालनों के लिए उत्तरदायी होगा ।

(3) राज्य भार प्रेषण केन्द्र, विद्युत के अंतःराज्यिक पारेषण में लगी उत्पादन कंपनियों और अनुज्ञप्तिधारियों पर ऐसी फीस और प्रभार उद्गृहीत तथा उनसे संगृहीत कर सकेगा जो राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

33. निदेशों का अनुपालन-(1) किसी राज्य में राज्य भार प्रेषण केन्द्र ऐसे निदेश दे सकेगा और ऐसा पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण कर सकेगा जो समाकलित ग्रिड प्रचालन सुनिश्चित करने के लिए और उस राज्य में विद्युत प्रणाली के प्रचालन में अधिकतम मितव्ययिता और दक्षता प्राप्त करने के लिए अपेक्षित हो ।

(2) प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी, उत्पादन कंपनी, उत्पादन केंद्र, उपकेंद्र और विद्युत प्रणाली के प्रचालन से जुड़ा कोई अन्य व्यक्ति, राज्य भार प्रेषण केंद्र द्वारा उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए निदेशों का अनुपालन करेगा ।

(3) राज्य भार प्रेषण केंद्र प्रादेशिक भार प्रेषण केंद्र के निदेशों का अनुपालन करेंगे ।

(4) यदि कोई विवाद, विद्युत की क्वालिटी या राज्य ग्रिड के सुरक्षित, सुनिश्चित और समाकलित प्रचालन के संदर्भ में या उपधारा (1) के अधीन दिए गए किसी निदेश के संबंध में उत्पन्न होता है, तो उसे राज्य आयोग को विनिश्चय के लिए निर्दिष्ट किया जाएगा:

परंतु राज्य आयोग का विनिश्चय होने तक, राज्य भार प्रेषण केंद्र के निदेशों का अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा अनुपालन किया जाएगा ।

(5) यदि कोई अनुज्ञप्तिधारी, उत्पादक कंपनी या कोई अन्य व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए निदेशों का पालन करने में असफल रहेगा तो वह पांच लाख रुपयों से अनधिक की शास्ति का दायी होगा ।

पारेषण से संबंधित अन्य उपबंध

34. ग्रिड मानक-प्रत्येक पारेषण अनुज्ञप्तिधारी, ग्रिड मानकों के अनुसार पारेषण लाइनों के प्रचालन और अनुरक्षण के ऐसे तकनीकी मानकों का अनुपालन करेगा जो प्राधिकरण द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

35. मध्यवर्ती पारेषण सुविधाएं-समुचित आयोग, किसी अनुज्ञप्तिधारी के आवेदन पर, आदेश द्वारा, मध्यवर्ती पारेषण सुविधाओं का स्वामित्व रखने वाले या प्रचालन करने वाले किसी अन्य अनुज्ञप्तिधारी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह, ऐसे अनुज्ञप्तिधारी के पास उपलब्ध अधिशेष क्षमता की सीमा तक ऐसी सुविधाओं के उपयोग की व्यवस्था करे:

परंतु यह कि अनुज्ञप्तिधारी के पास उपलब्ध अधिशेष क्षमता की सीमा से संबंधित किसी विवाद का न्यायनिर्णयन समुचित आयोग द्वारा किया जाएगा ।

36. मध्यवर्ती पारेषण सुविधाओं के लिए प्रभार-(1) प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी धारा 35 के अधीन किसी आदेश के किए जाने पर अपनी मध्यवर्ती पारेषण सुविधाएं ऐसी दरों, प्रभारों और ऐसे निबंधनों तथा शर्तों पर, जो पारस्परिक रूप से तय पाई जाएं, उपलब्ध कराएगा:

परन्तु समुचित आयोग, रेट, प्रभार और निबंधन तथा शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगा यदि ये अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा पारस्परिक रूप से तय न पाई जाएं ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट दरें, प्रभार और निबंधन तथा शर्तें, ऋजु और युक्तियुक्त होंगी और ऐसी सुविधाओं के उपयोग के अनुपात में आबंटित की जा सकेंगी ।

स्पष्टीकरण-धारा 35 और धारा 36 के प्रयोजनों के लिए, मध्यवर्ती पारेषण सुविधा" पद से किसी अनुज्ञप्तिधारी के स्वामित्वाधीन या उसके द्वारा प्रचालित विद्युत लाइनें अभिप्रेत हैं जहां ऐसी विद्युत लाइनों का विद्युत पारेषित करने के लिए किसी अन्य अनुज्ञप्तिधारी के लिए और उसकी ओर से उसके अनुरोध पर और टैरिफ या प्रभार के संदाय पर उपयोग किया जा सकता है ।

37. समुचित सरकार द्वारा निदेश-समुचित सरकार, यथास्थिति, प्रादेशिक भार प्रेषण केंद्रों या राज्य भार प्रेषण केंद्रों को, ऐसे उपाय करने के लिए निदेश जारी कर सकेगी जो किसी प्रदेश या राज्य में विद्युत का निर्बाध और स्थायी पारेषण और प्रदाय बनाए रखने के लिए आवश्यक हों ।

38. केंद्रीय पारेषण उपयोगिता और उसके कृत्य-(1) केंद्रीय सरकार, किसी सरकारी कंपनी को केंद्रीय पारेषण उपयोगिता के रूप में अधिसूचित कर सकेगी:

परंतु केंद्रीय पारेषण उपयोगिता, विद्युत के उत्पादन या विद्युत व्यापार के कारबार में नहीं लगेगी:

परंतु यह और कि केंद्रीय सरकार, ऐसी केंद्रीय पारेषण उपयोगिता के विद्युत के पारेषण से संबंधित किसी संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्व और उसमें अंतर्वलित कार्मिक को कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन निगमित की जाने वाली किसी कंपनी या कंपनियों को, पारेषण अनुज्ञप्तिधारी के रूप में कृत्य करने के लिए भाग 13 के अधीन विनिर्दिष्ट रीति में बनाई गई अंतरण स्कीम द्वारा अंतरित और उनमें निहित कर सकेगी और ऐसी कंपनी या कंपनियां, इस अधिनियम के अधीन पारेषण अनुज्ञप्तिधारी समझी जाएंगी ।

(2) केंद्रीय पारेषण उपयोगिता के कृत्य निम्नलिखित होंगे-

(क) अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली के द्वारा विद्युत का पारेषण करना;

(ख) निम्नलिखित के साथ अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली से संबंधित योजना और समन्वय के सभी कृत्यों का निर्वहन करना-

(i) राज्य पारेषण उपयोगिताएं;

(ii) केंद्रीय सरकार;

(iii) राज्य सरकारें;

(iv) उत्पादन कंपनियां;

(v) प्रादेशिक विद्युत समितियां;

(vi) प्राधिकरण;

(vii) अनुज्ञप्तिधारी;

(viii) केंद्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित कोई अन्य व्यक्ति;

(ग) उत्पादन केंद्रों से भार केंद्रों को विद्युत के निर्बाध प्रवाह के लिए अंतरराज्यिक पारेषण लाइनों की दक्ष, समन्वित और मितव्ययी प्रणाली का विकास सुनिश्चित करना;

(घ) अपनी पारेषण प्रणाली तक अविभेदकारी निर्बाध पहुंच, -

(i) किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा पारेषण प्रभारों के संदाय पर; या

(ii) किसी उपभोक्ता द्वारा जब कभी ऐसी निर्बाध पहुंच धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग द्वारा प्रदान की जाए, पारेषण प्रभारों और उस पर ऐसे अधिभार के संदाय पर जो केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, उपयोग के लिए प्रदान करना:

परंतु, ऐसे अधिभार का उपयोग, करैंट लैवल प्रति-सहायिकी की अपेक्षा को पूरा करने के प्रयोजन के लिए किया जाएगा:

परंतु यह और कि ऐसे अधिभार और प्रति-सहायिकी को ऐसी रीति में [उत्तरोत्तर घटाया जाएगा] जो केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए:

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।

परंतु यह भी कि अधिभार के संदाय और उपयोग की रीति केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएगी:

परंतु यह भी कि ऐसा अधिभार उस दशा में उद्ग्रहणीय नहीं होगा जब किसी ऐसे व्यक्ति को निर्बाध पहुंच प्रदान की जाती है जिसने अपने उपयोग के गंतव्य तक विद्युत ले जाने के लिए कोई आबद्ध उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है ।

39. राज्य पारेषण उपयोगिता और उसके कृत्य-(1) राज्य सरकार, बोर्ड या किसी सरकारी कंपनी को राज्य पारेषण उपयोगिता के रूप में अधिसूचित कर सकेगी:

परंतु राज्य पारेषण उपयोगिता विद्युत व्यापार के कारबार में नहीं होगी:

परंतु यह और कि राज्य सरकार, ऐसी राज्य पारेषण उपयोगिता के विद्युत के पारेषण से संबंधित किसी संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्व और उसमें अंतर्वलित कार्मिक को कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन निगमित की जाने वाली किसी कंपनी या कंपनियों को पारेषण अनुज्ञप्तिधारी के रूप में कृत्य करने के लिए भाग 13 के अधीन विनिर्दिष्ट रीति में बनाई गई अंतरण स्कीम द्वारा अंतरित और उनमें निहित कर सकेगी और ऐसी कंपनी या कंपनियां, इस अधिनियम के अधीन पारेषण अनुज्ञप्तिधारी समझी जाएंगी ।

(2) राज्य पारेषण उपयोगिता के कृत्य निम्नलिखित होंगे-

(क) अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली के द्वारा विद्युत का पारेषण करना;

(ख) निम्नलिखित के साथ अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली से संबंधित योजना और समन्वय के सभी कृत्यों का निर्वहन करना-

(i) केंद्रीय पारेषण उपयोगिता;

(ii) राज्य सरकारें;

(iii) उत्पादन कंपनियां;

(iv) प्रादेशिक विद्युत समितियां;

(v) प्राधिकरण;

(vi) अनुज्ञप्तिधारी;

(vii) राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित कोई अन्य व्यक्ति;

(ग) उत्पादन केन्द्र से भार केन्द्रों को विद्युत के निर्बाध प्रवाह के लिए अंतःराज्यिक पारेषण लाइनों की दक्ष, समन्वित और मितव्ययी प्रणाली का विकास सुनिश्चित करना;

(घ) अपनी पारेषण प्रणाली तक अविभेदकारी निर्बाध पहुंच, -

(i) किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा पारेषण प्रभारों के संदाय पर; या

(ii) किसी उपभोक्ता द्वारा जब कभी ऐसी निर्बाध पहुंच धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग द्वारा प्रदान की जाए, पारेषण प्रभारों और उस पर ऐसे अधिभार के संदाय पर जो राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, उपयोग के लिए प्रदान करना:

परंतु ऐसे अधिभार का उपयोग करैंट लैवल प्रति-सहायिकी की अपेक्षा को पूरा करने के प्रयोजन के लिए किया जाएगा:

परंतु यह और कि ऐसा अधिभार और प्रति-सहायिकी को ऐसी रीति में [उत्तरोत्तर घटाया जाएगा] जो राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए:

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।

परंतु यह भी कि अधिभार के संदाय और उपयोग की रीति राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएगी:

परंतु यह भी कि ऐसा अधिभार उस दशा में उद्ग्रहणीय नहीं होगा जब किसी ऐसे व्यक्ति को निर्बाध पहुंच प्रदान की जाती है जिसने अपने उपयोग के गंतव्य तक विद्युत ले जाने के लिए कोई आबद्ध उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है ।

40. पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों के कर्तव्य-किसी पारेषण अनुज्ञप्तिधारी का यह कर्तव्य होगा कि वह-

(क) यथास्थिति, दक्ष, समन्वित और मितव्ययी अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली या अंतरराज्यिक पारेषण प्रणाली का निर्माण करे, उसका अनुरक्षण करे और उसे प्रचालित करे;

(ख) यथास्थिति, प्रादेशिक भार प्रेषण केन्द्र और राज्य भार प्रेषण केन्द्र के निदेशों का अनुपालन करे;

(ग) अपनी पारेषण प्रणाली तक अविभेदकारी निर्बाध पहुंच, -

(i) किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा पारेषण प्रभारों के संदाय पर; या

(ii) किसी उपभोक्ता द्वारा जब कभी ऐसी निर्बाध पहुंच धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग द्वारा प्रदान की जाए, पारेषण प्रभारों और उस पर ऐसे अधिभार के संदाय पर जो केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, उपयोग के लिए प्रदान करना:

परंतु ऐसे अधिभार का उपयोग करैंट लैवल प्रति-सहायिकी की अपेक्षा को पूरा करने के प्रयोजन के लिए किया जाएगा:

परंतु यह और कि ऐसे अधिभार और प्रति-सहायिकी को ऐसी रीति में [उत्तरोत्तर घटाया जाएगा] जो समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए:

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।             

परंतु यह भी कि अधिभार के संदाय और उपयोग की रीति समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएगी:

परंतु यह भी कि ऐसा अधिभार उस दशा में उद्ग्रहणीय नहीं होगा जब किसी ऐसे व्यक्ति को निर्बाध पहुंच प्रदान की जाती है जिसने अपने उपयोग के गंतव्य तक विद्युत ले जाने के लिए कोई आबद्ध उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है ।

41. पारेषण अनुज्ञप्तिधारी का अन्य कारबार-पारेषण अनुज्ञप्तिधारी, समुचित आयोग को पूर्व सूचना देकर अपनी आस्तियों के अधिकतम उपयोग के लिए किसी कारबार में लग सकेगा:

परंतु ऐसे कारबार से व्युत्पन्न राजस्व का एक भाग समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार पारेषण और चक्रण संबंधी अपने प्रभारों को कम करने के लिए उपयोग में लाया जाएगा:

परंतु यह और कि पारेषण अनुज्ञप्तिधारी प्रत्येक ऐसे कारबार उपक्रम के लिए पृथक् लेखा यह सुनिश्चित करने के लिए रखेगा कि पारेषण कारबार किसी भी रूप में ऐसे कारबार उपक्रम को न तो सहायिकी प्रदान करता है और न ही ऐसे कारबार को किसी भी रूप में सहायता देने के लिए अपनी पारेषण आस्तियों को विल्लंगमित करता है:

परंतु यह भी कि कोई पारेषण अनुज्ञप्तिधारी न तो कोई संविदा करेगा और न ही अन्यथा किसी विद्युत व्यापार के कारबार में लगेगा ।

भाग 6

विद्युत का वितरण

वितरण अनुज्ञप्तिधारियों के बारे में उपबंध

42. वितरण अनुज्ञप्तिधारी के कर्तव्य और निर्बाध पहुंच-(1) किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने प्रदाय क्षेत्र में एक दक्ष, समन्वित और मितव्ययी वितरण विकसित करे और उसका अनुरक्षण करे तथा इस अधिनियम में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार विद्युत का प्रदाय करे ।

(2) राज्य आयोग निर्बाध प्रवेश ऐसे चरणों में और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए (जिसके अंतर्गत प्रति-सहायिकी और अन्य प्रचालन अवरोध भी हैं) आरंभ करेगा जो नियत तारीख से एक वर्ष के भीतर उसके द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं और उत्तरोत्तर चरणों में निर्बाध पहुंच की सीमा को विनिर्दिष्ट करने में और चक्रण के लिए प्रभारों का अवधारण करने में, वह सभी सुसंगत तथ्यों, जिनके अंतर्गत ऐसी प्रति-सहायिकी और अन्य प्रचालन अवरोध भी हैं, सम्यक् रूप से विचार करेगा:

परंतु ऐसी निर्बाध पहुंच राज्य आयोग द्वारा यथा अवधारित चक्रण के लिए प्रभारों के अलावा [किसी अधिभार का संदाय करने पर अनुज्ञात की जाएगी:]

परंतु यह और कि ऐसे अधिभार का उपयोग, वितरण अनुज्ञप्तिधारी के प्रदाय क्षेत्र के भीतर करैंट लैवल की प्रति-सहायिकी की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए किया जाएगा:

परंतु यह भी कि ऐसा अधिभार और प्रति-सहायिकी राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की गई रीति से उत्तरोत्तर घटाई । । । जाएगी ।

परंतु यह भी कि ऐसा अधिभार ऐसे मामले में उद्ग्रहणीय नहीं होगा जहां निर्बाध पहुंच ऐसे व्यक्ति को प्रदान की जाती है जिसने विद्युत को अपने स्वयं के उपयोग के गंतव्य तक ले जाने हेतु आबद्ध उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है:

 [परंतु यह भी कि राज्य आयोग, विद्युत (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारंभ की तारीख से पांच वर्ष के अपश्चात् ऐसे सभी उपभोक्ताओं के लिए, जो विद्युत के प्रदाय की अपेक्षा करते हैं, वहां ऐसे निर्बाध प्रवेश का विनियमों द्वारा उपबंध करेगा जहां किसी समय उपलब्ध कराई जाने वाली अधिकतम विद्युत एक मैगावाट से अधिक है ।]

(3) जहां कोई व्यक्ति, जिसका परिसर किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी के (जो नियत दिन से पूर्व विद्युत के वितरण के कारबार में लगा स्थानीय प्राधिकारी नहीं है) प्रदाय क्षेत्र के भीतर स्थित है, ऐसे वितरण अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी उत्पादन कंपनी या किसी अनुज्ञप्तिधारी से विद्युत के प्रदाय की अपेक्षा करता है वहां ऐसा व्यक्ति, वितरण अनुज्ञप्तिधारी से, सूचना द्वारा, राज्य आयोग द्वारा बनाए गए विनियमों के अनुसार ऐसी विद्युत के चक्रण की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसे प्रदाय की बाबत वितरण अनुज्ञप्तिधारी के ऐसे कर्तव्य होंगे जो किसी ऐसे साधारण वाहक के हैं जो अविभेदकारी निर्बाध पहुंच का उपबंध करते हैं ।

(4) जहां राज्य आयोग किसी उपभोक्ता या उपभोक्ताओं के वर्ग को, अपने प्रदाय क्षेत्र के वितरण अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी व्यक्ति से विद्युत प्रदाय प्राप्त करने के लिए अनुज्ञात करता है वहां ऐसा उपभोक्ता ऐसे वितरण अनुज्ञप्तिधारी की प्रदाय करने की बाध्यता से उद्भूत नियत लागत को पूरा करने के लिए राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट चक्रण प्रभारों पर अतिरिक्त अधिभार का संदाय करने का दायी होगा ।

(5) प्रत्येक वितरण अनुज्ञप्तिधारी, नियत दिन से या अनुज्ञप्ति मंजूर किए जाने की तारीख से, इनमें जो पूर्वतर हो, छह मास के भीतर उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करने के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धान्तों के अनुसार, जो राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं, एक मंच की स्थापना करेगा ।

(6) ऐसा कोई उपभोक्ता, जो उपधारा (5) के अधीन अपनी शिकायतों का प्रतितोष नहीं मिलने के कारण व्यथित है, ऐसे प्राधिकारी को अपनी शिकायतों के प्रतितोष के लिए अभ्यावेदन कर सकेगा जो ओम्बुड्समैन के नाम से ज्ञात हो और जिसे राज्य आयोग द्वारा नियुक्त या पदाभिहित किया जाएगा ।

(7) ओम्बुड्समैन, उपभोक्ता की शिकायतों को ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति से तय करेगा जो राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ।

(8) उपधारा (5), उपधारा (6) और उपधारा (7) के उपबंध ऐसे अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेंगे जो उपभोक्ता को उन उपधाराओं द्वारा उसे प्रदत्त अधिकारों से अलग हों ।

43. अनुरोध पर प्रदाय करने का कर्तव्य- [(1) इस अधिनियम में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक वितरण] अनुज्ञप्तिधारी, किसी परिसर के स्वामी या अधिभोगी द्वारा आवेदन किए जाने पर, ऐसे परिसरों को ऐसे प्रदाय की अपेक्षा करने वाले आवेदन की प्राप्ति की तारीख से एक मास के भीतर, विद्युत का प्रदाय करेगा:

परंतु जहां ऐसे प्रदाय में वितरण मुख्य तारों का विस्तार करना या नए उपकेन्द्र आरंभ करना अपेक्षित है वहां वितरण अनुज्ञप्तिधारी ऐसा विस्तार या आरंभ करने के तुरंत पश्चात् या ऐसी अवधि के भीतर, जो समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे परिसर को विद्युत का प्रदाय करेगा:

परन्तु यह और कि ऐसे ग्राम या उपग्राम या क्षेत्र की दशा में, जिनमें विद्युत प्रदाय के लिए कोई व्यवस्था विद्यमान नहीं है, समुचित आयोग, उक्त अवधि को ऐसी अवधि के लिए विस्तारित कर सकेगा जिसे ऐसे ग्राम या उपग्राम या क्षेत्र के विद्युतीकरण के लिए वह आवश्यक समझे ।

 [स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, आवेदन" से ऐसा आवेदन अभिप्रेत है, जो आवश्यक प्रभारों के संदाय और अन्य अनुपालनों को दर्शाने वाले दस्तावेजों सहित, वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा यथा अपेक्षित समुचित प्ररूप में सभी प्रकार से पूर्ण है ।]

(2) प्रत्येक वितरण अनुज्ञप्तिधारी का, यदि अपेक्षित हो, उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट परिसर में विद्युत उपलब्ध कराने के लिए विद्युत संयंत्र या विद्युत लाइन का उपबंध करने का कर्तव्य होगा:

परन्तु कोई व्यक्ति किसी अनुज्ञप्तिधारी से ऐसे किसी परिसर के लिए जहां पृथक् रूप से प्रदाय किया जाता है, विद्युत प्रदाय की मांग करने या प्राप्त करते रहने का तब तक हकदार नहीं होगा जब तक कि उसने अनुज्ञप्तिधारी के साथ ऐसी कीमत जो समुचित आयोग द्वारा अवधारित की जाए, के संदाय का करार न किया हो ।

(3) यदि कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी, उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर विद्युत प्रदाय करने में असफल रहता है, तो वह ऐसी शास्ति के लिए दायी होगा जो व्यतिक्रम के प्रत्येक दिन के लिए एक हजार रुपए तक हो सकेगी ।

44. विद्युत प्रदाय करने के कर्तव्य के अपवाद-धारा 43 की किसी बात से किसी परिसर को विद्युत का प्रदाय करने के लिए किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी से अपेक्षा नहीं की जाएगी यदि वह ऐसा करने से चक्रवात, बाढ़, तूफान या उसके नियंत्रण से परे अन्य घटनाओं के कारण निवारित हो गया है ।

45. प्रभारों को वसूल करने की शक्ति-(1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, धारा 43 के अनुसरण में उसके वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा विद्युत के प्रदाय के लिए प्रभारित कीमत ऐसे टैरिफ, जो समय-समय पर नियत किया जाए और उसकी अनुज्ञप्ति की शर्तों के अनुसार होगी ।

(2) किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्रदाय की गई विद्युत के प्रभार-

(क) ऐसी पद्धति और सिद्धांतों के अनुसार नियत किए जाएंगे जो संबंधित राज्य द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं;

(ख) ऐसी रीति में प्रकाशित किए जाएंगे जिससे ऐसे प्रभारों और कीमतों को पर्याप्त प्रचार मिले ।

(3) किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्रदाय की गई विद्युत के प्रभारों में निम्नलिखित सम्मिलित हो सकेंगे, -

(क) वास्तविक रूप से प्रदाय की गई विद्युत के लिए प्रभार के अतिरिक्त कोई नियत प्रभार;

(ख) विद्युत अनुज्ञप्तिधारी द्वारा उपलब्ध कराए गए किसी विद्युत मीटर या विद्युत संयंत्र की बाबत कोई किराया या अन्य प्रभार ।

(4) धारा 62 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस धारा के अधीन प्रभार नियत करते समय कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को कोई असम्यक् अधिमान नहीं देगा या पक्षपात नहीं करेगा ।

(5) वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा नियत प्रभार, इस अधिनियम के उपबंधों और सम्बद्ध राज्य आयोग द्वारा इस निमित्त बनाए गए विनियमों के अनुसार होंगे ।

46. व्यय वसूल करने की शक्ति-राज्य आयोग, विनियमों द्वारा, किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी को, धारा 43 के अनुसरण में विद्युत के प्रदाय की अपेक्षा करने वाले व्यक्ति से उस प्रदाय को देने के प्रयोजन के लिए प्रयोग की गई किसी विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र को उपलब्ध कराने में युक्तियुक्त रूप से उपगत किन्हीं व्ययों को प्रभारित करने के लिए, प्राधिकृत कर सकेगा ।

47. प्रतिभूति की अपेक्षा करने की शक्ति-(1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी किसी व्यक्ति से, जो धारा 43 के अनुसरण में विद्युत के प्रदाय की अपेक्षा करता है, उसको ऐसी युक्तियुक्त प्रतिभूति देने की अपेक्षा कर सकेगा जो ऐसे सभी धन के, जो निम्नलिखित के लिए, उसको देय हो जाएं, संदाय के लिए विनियमों द्वारा अवधारित की जाए-

(क) ऐसे व्यक्ति को प्रदाय की गई विद्युत की बाबत; या

(ख) जहां ऐसे व्यक्ति को विद्युत प्रदाय के लिए कोई विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र या विद्युत मीटर उपलब्ध कराया जाना है, वहां ऐसी लाइन या संयंत्र या विद्युत मीटर उपलब्ध कराया जाना है, वहां ऐसी लाइन या संयंत्र या मीटर की बाबत, और यदि वह व्यक्ति ऐसी प्रतिभूति देने में असफल रहता है, तो वितरण अनुज्ञप्तिधारी, यदि वह ठीक समझे, उस अवधि के लिए जिसके दौरान असफलता जारी रहती है, विद्युत का प्रदाय करने से या लाइन या संयंत्र या मीटर उपलब्ध कराने से इंकार कर सकेगा ।

(2) जहां किसी व्यक्ति ने उपधारा (1) में उल्लिखित ऐसी प्रतिभूति नहीं दी है या किसी व्यक्ति द्वारा दी गई प्रतिभूति अविधिमान्य या अपर्याप्त हो गई है, वहां वितरण अनुज्ञप्तिधारी सूचना द्वारा, उस व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह सूचना की तामील से तीस दिन के भीतर ऐसे सभी धन के संदाय के लिए जो विद्युत के प्रदाय या ऐसी लाइन या संयंत्र या मीटर की बाबत उसको देय हो जाएं, उसे युक्तियुक्त प्रतिभूति दे ।

(3) यदि उपधारा (2) में निर्दिष्ट व्यक्ति ऐसी प्रतिभूति देने में असफल रहता है तो वितरण अनुज्ञप्तिधारी, यदि वह ठीक समझे, उस अवधि के लिए जिसके दौरान असफलता जारी रहती है विद्युत के प्रदाय को रोक सकेगा ।

(4) वितरण अनुज्ञप्तिधारी, उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रतिभूति पर बैंक दर के बराबर या उससे अधिक ब्याज का, जैसा संबद्ध राज्य आयोग विनिर्दिष्ट करे, संदाय करेगा और उस व्यक्ति के, जिसने ऐसी प्रतिभूति दी है, अनुरोध पर ऐसी प्रतिभूति लौटा देगा ।

(5) कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी, उपधारा (1) के खंड (क) के अनुसरण में प्रतिभूति की अपेक्षा करने का हकदार नहीं होगा, यदि प्रदाय की अपेक्षा करने वाला व्यक्ति पूर्व संदाय मीटर के माध्यम से प्रदाय लेने के लिए तैयार हो जाता है ।

48. प्रदाय के अतिरिक्त निबंधन-कोई वितरण अनुज्ञप्तिधारी किसी ऐसे व्यक्ति से, जो धारा 43 के अनुसरण में विद्युत के प्रदाय की अपेक्षा करता है, निम्नलिखित को स्वीकार करने की अपेक्षा कर सकेगा -

(क) कोई निर्बंधन, जो वितरण अनुज्ञप्तिधारी को धारा 53 के अधीन बनाए गए विनियमों का अनुपालन करने में समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए अधिरोपित किए जाएं;

(ख) उस व्यक्ति की उपेक्षा के परिणामस्वरूप हुई आर्थिक हानि के लिए जिसे विद्युत प्रदाय की गई है, वितरण अनुज्ञप्तिधारी के किसी दायित्व को निर्बंधित करने वाले कोई निबंधन ।

49. विद्युत के प्रदाय या क्रय की बाबत करार-जहां समुचित आयोग ने धारा 42 के अधीन कतिपय उपभोक्ताओं को निर्बाध पहुंच अनुज्ञात की है वहां ऐसे उपभोक्ता, धारा 62 की उपधारा (1) के खंड (घ) में अंतर्विष्ट उपबंधों के होते हुए भी, विद्युत के ऐसे निबंधनों और शर्तों पर (टैरिफ सहित) जो ऐसे उपभोक्ताओं द्वारा ऐसे व्यक्ति के साथ करार की जाए, प्रदाय या क्रय के लिए किसी व्यक्ति के साथ करार कर सकेगा ।

50. विद्युत प्रदाय कोड- [राज्य आयोग, विद्युत प्रभारों की वसूली, विद्युत प्रभारों के बिलों के अंतरालों, उसके असंदाय के लिए विद्युत के प्रदाय की लाइन को काटने, विद्युत प्रदाय के प्रत्यावर्तन, विद्युत संयंत्र या विद्युत लाइन या मीटर को बिगाड़ने, नुकसान या क्षति को रोकने के लिए उपाय, प्रदाय की लाइन को काटने और मीटर को हटाने के लिए, वितरण अनुज्ञप्तिधारी या उसकी ओर से कार्य कर रहे किसी व्यक्ति के प्रवेश, विद्युत लाइनें या विद्युत संयंत्रों या मीटर को बदलने, परिवर्तित करने या उनके अनुरक्षण के लिए प्रवेश और ऐसे अन्य विषयों का उपबंध करने के लिए एक विद्युत प्रदाय कोड विनिर्दिष्ट करेगा ।]

51. वितरण अनुज्ञप्तिधारियों के अन्य कारबार-वितरण अनुज्ञप्तिधारी, समुचित आयोग को पूर्व प्रज्ञापना देकर अपनी आस्तियों के अधिकतम उपयोग के लिए किसी कारबार में लग सकेगा:

परंतु ऐसे कारबार से व्युत्पन्न राजस्व का एक भाग, संबद्ध राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार, चक्रण संबंधी अपने प्रभारों को कम करने के लिए उपयोग में लाया जाएगा:

परंतु यह और कि वितरण अनुज्ञप्तिधारी, ऐसे प्रत्येक कारबार उपक्रम के लिए पृथक् लेखा यह सुनिश्चित करने के लिए रखेगा कि वितरण कारबार किसी भी रूप में ऐसे कारबार उपक्रम को न तो सहायिकी प्रदान करता है और न ही ऐसे कारबार को किसी भी रूप में सहायता देने के लिए अपनी वितरण आस्तियों को विल्लंगमित करता है:

परंतु यह भी इस धारा की कोई बात, इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व, विद्युत के वितरण के कारबार में लगे किसी स्थानीय प्राधिकरण को लागू नहीं होगी ।

विद्युत व्यापारियों के संबंध में उपबंध

52. विद्युत व्यापारी के संबंध में उपबंध-(1) धारा 12 के खंड (ग) में अंतर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, समुचित आयोग, विद्युत व्यापारी होने के लिए तकनीकी अपेक्षा, पूंजी पर्याप्तता की अपेक्षा और प्रत्यय योग्यता विनिर्दिष्ट कर सकेगा ।

(2) प्रत्येक विद्युत व्यापारी, विद्युत के प्रदाय और व्यापार के संबंध में ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जो समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

साधारणतया प्रदाय के संबंध में उपबंध

53. सुरक्षा और विद्युत प्रदाय से संबंधित उपबंध-प्राधिकरण, राज्य सरकार के परामर्श से, निम्नलिखित के लिए उपयुक्त उपाय विनिर्दिष्ट कर सकेगा-

(क) विद्युत के उत्पादन, पारेषण या वितरण या व्यापार से या प्रदाय की गई विद्युत के उपयोग से या किसी विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र के संस्थापन, रखरखाव या उपयोग से उत्पन्न खतरों से जनता की (जिसके अंतर्गत उत्पादन, पारेषण या वितरण या व्यापार में लगे व्यक्ति भी हैं) संरक्षा करना;

(ख) किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत क्षति के जोखिम या किसी व्यक्ति की संपत्ति को नुकसान या ऐसी सम्पत्ति के उपयोग में हस्तक्षेप को दूर करने या कम करने के लिए;

(ग) ऐसी प्रणाली के माध्यम के सिवाय जो ऐसे विनिर्देशों के अनुरूप हो जो विनिर्दिष्ट किए जाएं, विद्युत के प्रदाय और पारेषण को प्रतिषिद्ध करना;

(घ) दुर्घटनाओं और विद्युत के प्रदायों या पारेषणों की असफलता के बारे में समुचित आयोग और विद्युत निरीक्षक को विनिर्दिष्ट प्ररूप में सूचना देना;

(ङ) विद्युत के प्रदाय या पारेषण से संबंधित मानचित्र, रेखांक और अनुभागों को किसी उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा रखा जाना;

(च) प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा या विद्युत निरीक्षक द्वारा या विनिर्दिष्ट फीस से संदाय पर किसी व्यक्ति द्वारा मानचित्रों, रेखांकों और अनुभागों का निरीक्षण;

(छ) किसी उपभोक्ता के नियंत्रणाधीन किसी विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र या किसी विद्युत साधित्र के संबंध में व्यक्तिगत क्षति के जोखिम या संपत्ति को नुकसान या उसके प्रयोग में हस्तक्षेप को दूर करने या कम करने के प्रयोजन के लिए किए जाने वाली कार्रवाई विनिर्दिष्ट करना ।

54. विद्युत के पारेषण और प्रयोग का नियंत्रण-(1) इस अधिनियम के अधीन अन्यथा छूट प्राप्त के सिवाय, केन्द्रीय पारेषण उपयोगिता या राज्य पारेषण उपयोगिता, या किसी अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी व्यक्ति को, -

(क) किसी मार्ग पर, या

(ख) किसी ऐसे स्थान पर, -

(i) जिसमें 100 या उससे अधिक व्यक्तियों के आमतौर पर जमा होने की संभावना है, या

(ii) जो कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 62) के अर्थान्तर्गत कारखाना है या खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) के अर्थान्तर्गत कोई खान है, या

(iii) जिसको राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस उपधारा के उपबंधों का लागू होना घोषित करे,

पारेषण के आरंभ या विद्युत के प्रयोग के पूर्व, यथास्थिति, विद्युत निरीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त को अपने आशय की लिखित रूप में कम-से-कम सात दिन की सूचना दिए बिना जिसमें विद्युत स्थापन और संयंत्र, यदि कोई हो, की विशिष्टियां, प्रदाय की प्रकृत्ति और प्रयोजन हो और इस अधिनियम के भाग 17 के ऐसे उपबंधों का जो लागू हो सकते हों, पालन करता हो, 250 वाट और 100 वोल्ट से अधिक दर पर विद्युत का पारेषण या उपयोग नहीं करेगा:

परंतु इस धारा की कोई बात, रेल अधिनियम, 1989 (1989 का 24) के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी रेल या ट्राम पर यात्रियों, जीव जन्तुओं या माल के सार्वजनिक वहन के लिए या किसी रेल या ट्राम के चल स्टाक की विद्युत व्यवस्था या संवातन के लिए प्रयुक्त विद्युत को लागू नहीं होगी ।

(2) जहां इस बाबत कोई मतभेद या विवाद उत्पन्न होता है कि कोई स्थान ऐसा है या नहीं जहां 100 या उससे अधिक व्यक्तियों के सामान्य रूप से जमा होने की संभावना है वहां मामला राज्य सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा और उस पर राज्य सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

(3) इस धारा के उपबंध सरकार पर आबद्धकर होंगे ।

55. मीटर का उपयोग, आदि-(1) कोई अनुज्ञप्तिधारी प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त बनाए जाने वाले विनियमों के अनुसार किसी सही मीटर के संस्थापन के माध्यम के सिवाय नियत तारीख से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् विद्युत का प्रदाय नहीं करेगा:

परन्तु अनुज्ञप्तिधारी, उपभोक्ता से मीटर की कीमत के लिए प्रतिभूति देने और उसके किराए के लिए करार करने की अपेक्षा कर सकेगा, जब तक कि उपभोक्ता मीटर का क्रय करने का विकल्प न दे:

परन्तु यह और कि राज्य आयोग, अधिसूचना द्वारा, व्यक्तियों के किसी वर्ग या वर्गों के लिए या ऐसे क्षेत्र के लिए, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, उक्त दो वर्ष की अवधि को बढ़ा सकेगा ।

(2) प्राधिकरण, विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण या व्यापार के उचित लेखा और संपरीक्षा के लिए, उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा विद्युत के उत्पादन, पारेषण या वितरण या व्यापार के ऐसे प्रक्रमों पर और उत्पादन, पारेषण या वितरण या व्यापार के ऐसे स्थानों पर जो वह आवश्यक समझे मीटरों के संस्थापन का निदेश दे सकेगा ।

(3) यदि कोई व्यक्ति इस धारा या उपधारा (1) के अधीन बनाए गए विनियमों में अंतर्विष्ट उपबंधों का अनुपालन करने में व्यतिक्रम करता है तो समुचित आयोग, उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा या किसी कंपनी के किसी अधिकारी द्वारा या अन्य संगम या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो ऐसे व्यतिक्रम के लिए दायी है, किए गए व्यतिक्रम को सुधारने के लिए ऐसे आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

56. संदाय के व्यतिक्रम पर प्रदाय का वियोजन-(1) जहां कोई व्यक्ति विद्युत के लिए किन्हीं प्रभारों या विद्युत के लिए प्रभार से भिन्न किसी राशि को, जो विद्युत के प्रदाय, पारेषण या वितरण या चक्रण के संबंध में अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को उस द्वारा देय हो, संदाय करने में उपेक्षा करता है वहां अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी ऐसे व्यक्ति को पंद्रह पूर्ण दिनों से अन्यून की लिखित सूचना देने के पश्चात् और ऐसे प्रभार या अन्य राशि को वाद द्वारा वसूल करने के उसके अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, विद्युत के प्रदाय को काट सकेगा और उस प्रयोजन के लिए किसी विद्युत प्रदाय लाइन या अन्य संकर्म को, जो ऐसे अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी की संपत्ति है और जिसके माध्यम से विद्युत का प्रदाय, पारेषण या वितरण या चक्रण किया गया हो, वियोजित कर सकेगा या काट सकेगा तथा प्रदाय को, जब तक ऐसे प्रभार या राशि का, प्रदाय को काटने और पुनःसंयोजित करने में उसके द्वारा उपगत व्ययों सहित, संदाय नहीं कर दिया जाता तब तक के लिए बन्द रख सकेगा, किन्तु उससे अधिक के लिए नहीं : परन्तु यदि ऐसा व्यक्ति अभ्यापत्ति सहित-

(क) उससे दावा की गई राशि के बराबर रकम का; या

(ख) पूर्ववर्ती छह मास के दौरान उसके द्वारा संदत्त विद्युत के लिए औसत प्रभार के आधार पर संगणित प्रत्येक मास के लिए उससे शोध्य विद्युत प्रभारों का,

इनमें जो भी कम हो, उसके और अनुज्ञप्तिधारी के बीच किसी विवाद का निपटारा होने तक, निक्षेप कर देता है तो विद्युत प्रदाय बंद नहीं किया जाएगा ।

(2) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस धारा के अधीन किसी उपभोक्ता से शोध्य कोई राशि उस तारीख से दो वर्ष की अवधि के पश्चात् तब तक वसूल नहीं की जाएगी जब ऐसी राशि पहली बार देय हुई थी, जब तक कि ऐसी राशि, प्रदाय की गई विद्युत के प्रभारों के बकाया के रूप में लगातार वसूलनीय दर्शित नहीं की गई हो और अनुज्ञप्तिधारी विद्युत के प्रदाय को नहीं काटेगा ।

उपभोक्ता संरक्षणः निष्पादन के मानक

57. अनुज्ञप्तिधारी के निष्पादन के मानक-(1) समुचित आयोग, अनुज्ञप्तिधारियों और ऐसे व्यक्तियों से जिनके प्रभावित होने की संभावना है, परामर्श करने के पश्चात् किसी अनुज्ञप्तिधारी या अनुज्ञप्तिधारियों के किसी वर्ग के लिए निष्पादन के मानक विनिर्दिष्ट कर सकेगा ।

(2) यदि कोई अनुज्ञप्तिधारी, उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट मानकों को पूरा करने में असफल रहता है तो ऐसी शास्ति, जो अधिरोपित की जाए या ऐसा अभियोजन जो आरंभ किया जाए, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, वह प्रभावित व्यक्ति को ऐसा प्रतिकर देने के लिए दायी होगा जो समुचित आयोग द्वारा अवधारित किया जाए:

परंतु प्रतिकर का अवधारण करने से पूर्व संबद्ध अनुज्ञप्तिधारी को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा ।

(3) उपधारा (2) के अधीन अवधारित प्रतिकर ऐसे अवधारण से नब्बे दिन के भीतर संबद्ध अनुज्ञप्तिधारी द्वारा संदत्त किया जाएगा ।

58. अनुज्ञप्तिधारी द्वारा निष्पादन के भिन्न-भिन्न मानक-समुचित आयोग, अनुज्ञप्तिधारी के किसी वर्ग या वर्गों के लिए धारा 57 की उपधारा (1) के अधीन भिन्न-भिन्न मानक विनिर्दिष्ट कर सकेगा ।

59. निष्पादन के स्तर की बाबत जानकारी-(1) प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर आयोग को निम्नलिखित जानकारी भेजेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 57 की उपधारा (1) के अधीन अभिप्राप्त निष्पादन का स्तर;

(ख) धारा 57 की उपधारा (2) के अधीन उन मामलों की संख्या जिनमें प्रतिकर दिया गया था और प्रतिकर की कुल रकम ।

(2) समुचित आयोग वर्ष में कम-से-कम एक बार उपधारा (1) के अधीन उसे भेजी गई ऐसी जानकारी के, ऐसे प्ररूप और रीति में जो वह समुचित समझे, प्रकाशन की व्यवस्था करेगा ।

60. विपणन आधिपत्य-यदि ऐसा अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी कोई करार करती है या अपनी प्रधान स्थिति का दुरुपयोग करती है या किसी ऐसे समुच्चय में प्रवेश करती है जिससे विद्युत उद्योग में प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो समुचित आयोग, किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को ऐसे निदेश जारी कर सकेगा जो वह समुचित समझे ।

भाग 7

टैरिफ

61. टैरिफ विनियमन-समुचित आयोग, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए टैरिफ के अवधारण के लिए निबंधन और शर्तें विनिर्दिष्ट करेगा और ऐसा करते समय निम्नलिखित से मार्गदर्शित होगा, अर्थात्: -

(क) उत्पादन कंपनियों और पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों को लागू टैरिफ के अवधारण के लिए केंद्रीय आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट सिद्धांत और प्रणाली-विज्ञान;

(ख) विद्युत उत्पादन, पारेषण, वितरण और प्रदाय का वाणिज्यिक सिद्धांतों पर किया जाना;

(ग) वे बातें जो प्रतिस्पर्धा, दक्षता, संसाधनों का मितव्ययी उपयोग, अच्छा कार्य निष्पादन और अधिकतम विनिधान को प्रोत्साहित करें;

(घ) उपभोक्ता हितों के संरक्षण के साथ-साथ युक्तियुक्त रीति से विद्युत लागत की वसूली;

(ङ) निष्पादन में दक्षता को पुरस्कृत करने वाले सिद्धांत;

(च) बहु वर्ष टैरिफ सिद्धांत;

 [(छ) टैरिफ क्रमिक रूप से विद्युत प्रदाय की लागत को प्रतिबिंबित करता है और समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट रीति में, प्रतिसहायिकियों को भी कम करता है;]

(ज) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत के सह-उत्पादन और उत्पादन का संवर्धन;

(झ) राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति:

परंतु विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54), विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) और अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों के अधीन टैरिफ के अवधारण के लिए निबंधन और शर्तें, जैसी वे नियत तारीख के ठीक पूर्व थीं, एक वर्ष की अवधि के लिए या तब तक जब तक कि इस धारा के अधीन टैरिफ के लिए निबंधन और शर्तें विनिर्दिष्ट नहीं की जातीं, इनमें से जो पूर्वतर हो, लागू बनी रहेंगी:

62. टैरिफ का अवधारण-(1) समुचित आयोग, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार निम्नलिखित के लिए टैरिफ का अवधारण करेगा-

(क) उत्पादन कंपनी द्वारा वितरण अनुज्ञप्तिधारी को विद्युत का प्रदाय:

परंतु समुचित आयोग, विद्युत के प्रदाय में कमी की दशा में, उत्पादन कंपनी और किसी अनुज्ञप्तिधारी के बीच या अऩुज्ञप्तिधारियों के बीच किए गए किसी करार के अनुसरण में विद्युत के विक्रय या क्रय के लिए, विद्युत की युक्तियुक्त कीमतें सुनिश्चित करने के लिए एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए टैरिफ की न्यूनतम और अधिकतम सीमा नियत कर सकेगा;

(ख) विद्युत का पारेषण;

(ग) विद्युत का चक्रण;

(घ) विद्युत का खुदरा विक्रय:

परन्तु एक ही क्षेत्र में दो या अधिक वितरण अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा विद्युत के वितरण की दशा में समुचित आयोग, विद्युत अनुज्ञप्तिधारियों के बीच प्रतिस्पर्धा के संवर्धन के लिए विद्युत के फुटकर विक्रय के लिए टैरिफ की केवल अधिकतम सीमा नियत कर सकेगा ।

(2) समुचित आयोग, किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी से ऐसे पृथक् ब्यौरे भेजने की अपेक्षा कर सकेगा जो टैरिफ के अवधारण के लिए उत्पादन, पारेषण और वितरण के संबंध में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(3) समुचित आयोग, इस अधिनियम के अधीन टैरिफ का अवधारण करते समय, विद्युत के किसी उपभोक्ता के प्रति अनुचित अधिमान दर्शित नहीं करेगा किंतु उपभोक्ता के भार कारक, विद्युत कारक, वोल्टता और किसी विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान विद्युत की कुल खपत या वह समय जिसमें प्रदाय अपेक्षित है या किसी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्रदाय की प्रकृति और वह प्रयोजन जिसके लिए प्रदाय अपेक्षित है, के अनुसार भेद कर सकेगा ।

(4) किसी टैरिफ या उसके किसी भाग का साधारणतया किसी वित्तीय वर्ष में एक बार से अधिक संशोधन नहीं किया जाएगा सिवाय ऐसे परिवर्तनों के संबंध में जिन्हें किसी ईंधन अधिभार सूत्र, जो विनिर्दिष्ट किया जाए, के निबंधनों के अधीन अभिव्यक्त रूप से अनुज्ञात किया गया हो ।

(5) आयोग, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह टैरिफ और प्रभारों से प्रत्याशित राजस्व की गणना के लिए, जिन्हें वसूल करने के लिए उसे अनुज्ञात किया गया है, ऐसी प्रक्रिया का जो विनिर्दिष्ट की जाए, पालन करे ।

(6) यदि कोई अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी, इस धारा के अधीन अवधारित टैरिफ से अधिक कीमत या प्रभार वसूल करता है तो अनुज्ञप्तिधारी द्वारा उपगत किसी अन्य दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उस व्यक्ति द्वारा, जिसने ऐसी कीमत या प्रभार का संदाय किया है, बैंक दर के समतुल्य ब्याज सहित अधिक ली गई राशि वसूल की जा सकेगी ।

63. बोली की प्रक्रिया द्वारा टैरिफ का अवधारण-धारा 62 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, समुचित आयोग, टैरिफ को अंगीकार करेगा यदि ऐसा टैरिफ केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार बोली लगाने की पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा अवधारित किया गया है ।

64. टैरिफ आदेश के लिए प्रक्रिया-(1) धारा 62 के अधीन टैरिफ का अवधारण करने के लिए आवेदन, उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा ऐसी रीति में और ऐसी फीस के साथ जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाए, किया जाएगा ।

(2) प्रत्येक आवेदक ऐसे संक्षिप्त रूप और रीति में, जो समुचित आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, आवेदन का प्रकाशन करेगा ।

(3) समुचित आयोग, उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति से एक सौ बीस दिन के भीतर जनता से प्राप्त सभी सुझावों और आक्षेपों पर विचार करने के पश्चात्-

(क) ऐसे उपांतरणों और ऐसी शर्तों के साथ जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, आवेदन को स्वीकार करते हुए टैरिफ आदेश जारी करेगा;

(ख) यदि ऐसा आवेदन इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों तथा विनियमों या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अनुसार नहीं है तो लेखबद्ध किए गए कारणों से आवेदन को नामंजूर करेगा:

परंतु आवेदक को उसका आवेदन नामंजूर करने से पूर्व सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर किया जाएगा ।

(4) समुचित आयोग, आदेश किए जाने के सात दिन के भीतर समुचित सरकार, प्राधिकरण और संबद्ध अनुज्ञप्तिधारियों तथा संबद्ध व्यक्ति को आदेश की प्रति भेजेगा ।

(5) भाग 10 में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, विद्युत के किसी अंतरराज्यिक प्रदाय, पारेषण या चक्रण, जो दो राज्यों के राज्यक्षेत्रों के अंतर्गत हों, ऐसे पक्षकारों द्वारा उसे आवेदन करने पर, जो ऐसे प्रदाय, पारेषण या चक्रण के लिए आशयित हैं, इस धारा के अधीन राज्य आयोग, जिसकी अधिकारिता में वह अनुज्ञप्तिधारी है, जो विद्युत के वितरण और उसके भुगतान का आशय रखता है, अवधारित करेगा ।

(6) कोई टैरिफ आदेश, जब तक संशोधन या प्रतिसंहृत न किया जाए, ऐसी अवधि के लिए प्रवृत्त बना रहेगा जो टैरिफ आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए ।

65. राज्य सरकार द्वारा सहायिकी का उपबंध-यदि राज्य सरकार, धारा 62 के अधीन राज्य आयोग द्वारा अवधारित टैरिफ में किमी उपभोक्ता या उसके वर्ग को कोई सहायिकी मंजूर करने की अपेक्षा करती है तो राज्य सरकार ऐसे किसी निदेश के होते हुए भी, जो धारा 108 के अधीन दिया जाए अग्रिम रूप में और ऐसी रीति से जो विनिर्दिष्ट की जाए, सहायिकी की मंजूरी से प्रभावित व्यक्ति को प्रतिकर की राशि का संदाय ऐसी रीति में करेगी, जैसी राज्य आयोग निदेश दे, जो अनुज्ञप्ति की एक शर्त के रूप में होगी या किसी अन्य संबद्ध व्यक्ति के लिए राज्य सरकार द्वारा उपबंधित सहायिकी को लागू करने के लिए होगी :

परंतु राज्य सरकार का ऐसा कोई निदेश प्रवर्तन में नहीं रहेगा यदि संदाय इस धारा में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार नहीं किया गया है और राज्य आयोग द्वारा नियत टैरिफ इस संबंध में आयोग द्वारा जारी किए गए आदेशों की तारीख से लागू होगा ।

66. बाजार का विकास-समुचित आयोग, विद्युत बाजार (जिसके अंतर्गत व्यापार भी है) के विकास का ऐसी रीति में जो विनिर्दिष्ट की जाए, संवर्धन करने का प्रयास करेगा और इस संबंध में, धारा 3 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय विद्युत नीति से मार्गदर्शित होगा ।

भाग 8

संकर्म

अनुज्ञप्तिधारियों के संकर्म

67. मार्गों, रेलों, आदि को खोलने के संबंध में उपबंध-(1) अनुज्ञप्तिधारी, समय-समय पर किंतु सदैव अपनी अनुज्ञप्ति के निबंधनों और शर्तों के अधीन रहते हुए, प्रदाय और पारेषण के अपने क्षेत्र के भीतर या जब प्रदाय के क्षेत्र के बाहर विद्युत प्रदाय लाइनें बिछाने या रखने के लिए उसकी अनुज्ञप्ति के निबंधनों द्वारा अनुज्ञात किया जाए, अपने क्षेत्र के बाहर, निम्न प्रकार के संकर्म कर सकेगा, -

(क) किसी मार्ग, रेलपथ या ट्रामपथ की भूमि और पटरी को खोदना और काटना;

(ख) किसी मार्ग, रेलपथ या ट्रामपथ में या उसके नीचे किसी सीवर, नाली या सुरंग को खोदना या काटना;

(ग) किन्हीं लाइनों, संकर्मों या पाइपों की स्थिति, जो मुख्य सीवर पाइप से भिन्न हैं, बदलना;

(घ) विद्युत लाइनों, विद्युत संयंत्र और अन्य संकर्मों का बिछाना और स्थित करना;

(ङ) उनकी मरम्मत करना, परिवर्तन करना या हटाना;

(च) विद्युत के पारेषण या प्रदाय के लिए आवश्यक अन्य सभी कार्य करना ।

(2) समुचित सरकार इस निमित्त उसके द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा निम्नलिखित विनिर्दिष्ट कर सकेगी: -

(क) वे दशाएं और परिस्थितियां जिनमें, यथास्थिति, समुचित सरकार, स्थानीय प्राधिकारी, स्वामी या अधिभोगी की लिखित रूप में सहमति, संकर्म चलाने के लिए अपेक्षित होगी;

(ख) वह प्राधिकारी जो उन परिस्थितियों में अनुज्ञा प्रदान कर सकेगा जहां स्वामी या अधिभोगी संकर्म चलाने पर आक्षेप करता है;

(ग) संकर्म चलाने से पूर्व अनुज्ञप्तिधारी द्वारा दी जाने वाली सूचना की प्रकृति और अवधि;

(घ) खंड (ग) में निर्दिष्ट सूचना के अनुसार प्राप्त आक्षेपों और सुझावों पर विचार करने की प्रक्रिया और रीति;

(ङ) इस धारा के अधीन संकर्मों द्वारा प्रभावित व्यक्तियों के लिए प्रतिकर या किराए का अवधारण और संदाय;

(च) जब आपातस्थिति हो तब की जाने वाली मरम्मत और किए जाने वाले संकर्म;

(छ) इस धारा के अधीन कतिपय संकर्मों को करने के लिए स्वामी या अधिभोगी का अधिकार और उसके संबंध में व्ययों का संदाय;

(ज) सीवरों, पाइपों और अन्य विद्युत लाइनों या संकर्मों के निकट अन्य संकर्म करने के लिए प्रक्रिया;

(झ) पाइपों, विद्युत लाइनों, विद्युत संयंत्र, तार लाइनों, सीवर लाइनों, सुरंगों, नालियों, आदि की स्थिति में परिवर्तन के लिए प्रक्रिया;

(ञ) मार्गों, रेल पथों, ट्रामपथों, सीवर, नालियों या सुरंगों पर कार्य करने से संबंधित बाड़ लगाने, रक्षा करने, प्रकाश करने और अन्य सुरक्षा उपायों तथा उनके तुरन्त पुनः स्थापन के लिए प्रक्रिया;

(ट) लोक न्यूसेंस, पर्यावरणीय क्षति और ऐसे संकर्म द्वारा लोक और प्राइवेट संपत्ति के अनावश्यक नुकसान को बचाना;

(ठ) ऐसे संकर्मों को करने की प्रक्रिया जिनकी समुचित सरकार, अनुज्ञप्तिधारी या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा मरम्मत नहीं की जा सकती है;

(ड) किसी रेल पथ, ट्रामपथ, जल मार्ग, आदि के पुनःस्थापन के लिए अपेक्षित रकम जमा करने की रीति;

(ढ) ऐसे संकर्मों द्वारा प्रभावित संपत्ति के पुनःस्थापन की रीति और उनका रखरखाव;

(ण) अनुज्ञप्तिधारी द्वारा संदेय प्रतिकर जमा करने की प्रक्रिया और प्रतिभूति का दिया जाना; और

(त) ऐसे अन्य विषय जो इस धारा के अधीन संकर्मों के विनिर्माण और अनुरक्षण के आनुषंगिक या पारिणामिक हैं ।

(3) अनुज्ञप्तिधारी इस धारा और तद्धीन बनाए गए नियमों द्वारा प्रदत्त शक्तियों में से किसी का प्रयोग करते हुए, कम से कम नुकसान, अहित या असुविधा, कारित करेगा और उसके द्वारा या उसके द्वारा नियोजित किसी व्यक्ति द्वारा कारित किसी नुकसान, अहित या असुविधा का पूरा प्रतिकर देगा ।

(4) जहां इस धारा के अधीन कोई मतभेद या विवाद [जिसमें उपधारा (3) के अधीन प्रतिकर की रकम भी है] उत्पन्न होता है वहां वह मामला समुचित आयोग द्वारा अवधारित किया जाएगा ।

(5) समुचित आयोग, इस धारा के अधीन उद्भूत किसी मतभेद या विवाद का अवधारण करते समय, उपधारा (3) के अधीन किसी प्रतिकर के अतिरिक्त, उस उपधारा के अधीन संदेय प्रतिकर की किसी रकम से अनधिक कोई शास्ति अधिरोपित कर सकेगा ।

शिरोपरि लाइनों के संबंध में उपबंध

68. शिरोपरि लाइनों-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अनुसार समुचित सरकार के पूर्व अनुमोदन से कोई शिरोपरि लाइन भूमि के ऊपर संस्थापित की जाएगी या संस्थापित रखी जाएगी ।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट उपबंध, -

(क) ऐसी विद्युत लाइन के संबंध में जिसकी अंकित वोल्टता ग्यारह किलो वाट से अनधिक है और जिसका उपयोग एकल उपभोक्ता को प्रदाय करने के लिए किया जाता है या उपयोग किए जाने के लिए आशयित है;

(ख) किसी विद्युत लाइन को उस सीमा तक जो उसके संस्थापन के लिए उत्तरदायी व्यक्ति के अधिभोग या नियंत्रण वाले परिसर के भीतर है या होगी; या

(ग) ऐसे अन्य मामलों में, जो विहित किए जाएं, लागू नहीं होंगे ।

(3) समुचित सरकार, उपधारा (1) के अधीन अनुमोदन मंजूर करते समय ऐसी शर्तें (जिनके अंतर्गत लाइन के स्वामित्व और प्रचालन की बाबत शर्तें भी हैं) अधिरोपित कर सकेगी, जो उसे आवश्यक प्रतीत हों ।

(4) समुचित सरकार द्वारा, ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात्, जो उसके द्वारा मंजूर किए गए अनुमोदन में अनुबंधित की जाए, किसी भी समय अनुमोदन परिवर्तित या प्रतिसंहृत किया जा सकेगा ।

(5) जहां किसी शिरोपरि लाइन के निकट खड़े या पड़े कोई वृक्ष या जहां कोई संरचना या अन्य वस्तु जो ऐसी लाइन बिछाने के पश्चात्वर्ती किसी शिरोपरि लाइन के निकट रखी गई या गिर गई है, विद्युत के प्रवहण या पारेषण या किसी संकर्म के पहुंच मार्ग को अवरुद्ध करती है या बाधा डालती है या अवरुद्ध करने या बाधा डालने की संभावना है, वहां कार्यपालक मजिस्ट्रेट या समुचित सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी, अनुज्ञप्तिधारी के आवेदन पर उस वृक्ष, संरचना या वस्तु को हटवा सकेगा या अन्यथा ऐसी कार्रवाई कर सकेगा जो वह उचित समझे ।

(6) उपधारा (5) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय कार्यपालक मजिस्ट्रेट या उस धारा के अधीन विनिर्दिष्ट प्राधिकारी, शिरोपरि लाइन के लगाने के पूर्व विद्यमान किसी वृक्ष की दशा में, उस वृक्ष से हितबद्ध व्यक्ति को उतना प्रतिकर प्रदान करेगा जितना वह उचित समझे और ऐसा व्यक्ति उसे अनुज्ञप्तिधारी से वसूल कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए वृक्ष" पद में कोई झाड़ी, बाड़े, जंगली घास या अन्य पौधे सम्मिलित हैं ।

69. तार प्राधिकारी को सूचना-(1) कोई अनुज्ञप्तिधारी, किसी तार लाइन, विद्युत लाइन, विद्युत संयंत्र या अन्य संकर्मों के जो सेवा लाइन या विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र नहीं हैं, विद्यमान संकर्मों की मरम्मत, नवीकरण या परिवर्तन के लिए जिनके स्वरूप या स्थिति को परिवर्तित नहीं किया जाना है, दस मीटर के भीतर बिछाए जाने या लगाए जाने के पूर्व-

(क) नए संस्थापन की दशा में, केंद्रीय सरकार द्वारा अभिहित प्राधिकारी को प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा और ऐसा प्राधिकारी प्रस्ताव पर तीस दिन के भीतर विनिश्चय करेगा;

(ख) विद्यमान संकर्म की मरम्मत, नवीकरण या परिवर्तन की दशा में तार प्राधिकारी को लिखित रूप में दस दिन से अन्यून की सूचना निम्नलिखित को विनिर्दिष्ट करते हुए देगा, -

(i) प्रस्तावित संकर्म या परिवर्तन का मार्ग;

(ii) वह रीति जिसमें संकर्म का उपयोग किया जाना है;

(iii) पारेषित की जाने वाली विद्युत की मात्रा और प्रकृति;

(iv) वह विस्तार जिस तक और वह रीति जिसमें (यदि किंचित भी हो) भू-प्रत्यावर्तन का उपयोग किया जाना है,

और अनुज्ञप्तिधारी, ऐसी युक्तियुक्त अपेक्षाओं का अनुसरण साधारण या विशेष रूप में करेगा जो उस अवधि के भीतर तार प्राधिकारी द्वारा किसी तार लाइन को ऐसे संकर्म या परिवर्तन के द्वारा क्षतिग्रस्त होने से निवारित करने के लिए अधिकथित की जाए:

परंतु अनुज्ञप्तिधारी की किन्हीं विद्युत लाइनों या विद्युत संयंत्र या अन्य संकर्म में किसी कमी से उद्भूत आपात की दशा में (जिसे अनुज्ञप्तिधारी द्वारा तार प्राधिकारी को लिखित रूप में कथित किया जाएगा), अनुज्ञप्तिधारी से केवल ऐसी सूचना देने की अपेक्षा की जाएगी जो प्रस्तावित नए संकर्म या परिवर्तन की आवश्यकता उद्भूत होने के पश्चात् संभव हो ।

(2) जहां किसी सेवा लाइन के बिछाए या लगाए जाने के संकर्म का निष्पादन किया जाना है, वहां अनुज्ञप्तिधारी कार्य प्रारंभ करने के कम-से-कम अड़तालीस घंटे पूर्व, तार प्राधिकारी पर ऐसे संकर्म को निष्पादित करने के अपने आशय की सूचना की लिखित रूप में तामील करेगा ।

भाग 9

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण

प्राधिकरण का गठन और उसके कृत्य

70. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का गठन, आदि-(1) ऐसे कृत्यों का निर्वहन करने के लिए और कर्तव्यों का अनुपालन करने के लिए जो उसे इस अधिनियम के अधीन सौंपे जाएं, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के नाम से एक निकाय होगा ।

(2) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) की धारा 3 के अधीन स्थापित और नियत तारीख से ठीक पूर्व उस रूप में कार्य कर रहा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण होगा और उसके अध्यक्ष, सदस्य, सचिव और अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किए गए समझे जाएंगे और वे उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर पद पर बने रहेंगे जिन पर वे विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 के अधीन नियुक्त किए गए थे ।

(3) प्राधिकरण में चौदह से अनधिक सदस्य (जिसके अंतर्गत उसका अध्यक्ष भी है) होंगे जिनमें से आठ से अनधिक सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होंगे जिन्हें केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(4) केंद्रीय सरकार, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो प्राधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र है, प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकेगी या पूर्णकालिक सदस्यों में से किसी एक को प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में पदाभिहित कर सकेगी ।

(5) प्राधिकरण के सदस्य योग्यता, सत्यानिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाएंगे जो इंजीनियरी, वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्र या औद्योगिक विषयों से संबंधित समस्याओं का ज्ञान और प्रर्याप्त अनुभव और क्षमता रखने वाले हों और कम से कम एक सदस्य निम्नलिखित प्रवर्गों में से प्रत्येक प्रवर्ग से नियुक्त किया जाएगा, अर्थात्: -

(क)         उत्पादन केंद्रों के डिजाइन, निर्माण, प्रचालन और उसके अनुरक्षण में विशेषज्ञता के साथ इंजीनियरी;

(ख)        विद्युत के पारेषण और प्रदाय में विशेषज्ञता के साथ इंजीनियरी;

(ग)         विद्युत के क्षेत्र में अनुप्रयुक्त गवेषणा;

(घ)         अनुप्रयुक्त अर्थशास्त्र, लेखा, वाणिज्य या वित्त ।

(6) प्राधिकरण के अध्यक्ष और सभी सदस्य केंद्रीय सरकार के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेंगे ।

(7) अध्यक्ष, प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालक होगा ।

(8) प्राधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में होगा ।

(9) प्राधिकरण, मुख्यालय या किसी अन्य स्थान पर ऐसे समय पर, जो अध्यक्ष निदेश दे, अधिवेशन करेगा और अपने अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के संबंध में (जिसके अंतर्गत इसके अधिवेशन में गणपूर्ति भी है) प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे ।

(10) अध्यक्ष या यदि वह प्राधिकरण के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है, तो अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त नामनिर्दिष्ट कोई अन्य सदस्य और ऐसे नामनिर्देशन के अभाव में या जहां कोई अध्यक्ष नहीं है वहां, उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना गया कोई सदस्य अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा ।

(11) ऐसे सभी प्रश्नों का, जो प्राधिकरण के किसी अधिवेशन में उसके समक्ष आते हैं उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा विनिश्चय किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष या अध्यक्षता करने वाले सदस्य को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा ।

(12) प्राधिकरण के सभी आदेशों और विनिश्चयों को सचिव या अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किया जाएगा ।

(13) प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होगी कि प्राधिकरण के गठन में कोई रिक्ति या त्रुटि विद्यमान है ।

(14) प्राधिकरण का अध्यक्ष और अन्य पूर्णकालिक सदस्य ऐसा वेतन और ऐसे भत्ते प्राप्त करेंगे जो केंद्रीय सरकार द्वारा अवधारित किए जाएं और अन्य सदस्य प्राधिकरण के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिए ऐसे भत्ते और फीस प्राप्त करेंगे जो केंद्रीय सरकार विहित करे ।

(15) प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों के सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें जिनमें उपधारा (6) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उनकी पदावधि भी है वह होगी जो केंद्रीय सरकार विहित करे ।

71. सदस्यों के कतिपय हित होना-प्राधिकरण के किसी सदस्य का, किसी ऐसी कंपनी या अन्य निगम निकाय या व्यक्तियों के संगम (चाहे निगमित हो या नहीं) या फर्म में जो विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण और व्यापार या उसके उत्पादन के लिए ईंधन के प्रदाय के कारबार में या विद्युत उपस्कर के विनिर्माण में लगी हुई है, अपने नाम में या अन्यथा कोई शेयर या हित नहीं होगा ।

72. प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारिवृन्द-प्राधिकरण वेतन, पारिश्रमिक, फीस, भत्ते, पेंशन, छुट्टी और उपदान के बारे में ऐसे निबंधनों पर, जो प्राधिकरण केंद्रीय सरकार से परामर्श करके नियत करे, सचिव और उतने अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा, जितने इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के पालन के लिए वह आवश्यक समझे:

परंतु सचिव की नियुक्ति केंद्रीय सरकार के अनुमोदन के अध्यधीन होगी ।

73. प्राधिकरण के कृत्य और कर्तव्य-प्राधिकरण ऐसे कृत्यों और कर्तव्यों का पालन करेगा जो केंद्रीय सरकार विहित करे या निदेश दे और विशेष रूप से, -

(क) राष्ट्रीय विद्युत नीति से संबंधित विषयों पर केंद्रीय सरकार को सलाह देना, विद्युत प्रणाली के विकास के लिए अल्पकालिक और भावी योजनाएं बनाना और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हितसाधन के लिए संसाधनों के अनुकूलतम उपयोजन के लिए योजना अभिकरणों के क्रियाकलापों को समन्वित करना तथा सभी उपभोक्ताओं को विश्वसनीय और क्षमतायोग्य विद्युत उपलब्ध कराना;

(ख) विद्युत संयंत्रों, विद्युत लाइनों और ग्रिड से संयोजकता के सन्निर्माण के लिए तकनीकी मानक विनिर्दिष्ट करना;

(ग) विद्युत संयंत्रों और विद्युत लाइनों के सन्निर्माण, प्रचालन और अनुरक्षण के लिए सुरक्षा अपेक्षाएं विनिर्दिष्ट करना;

(घ) पारेषण लाइनों के प्रचालन और अनुरक्षण के लिए ग्रिड मानक विनिर्दिष्ट करना;

(ङ) विद्युत के पारेषण और प्रदाय के लिए मीटरों के संस्थापन की शर्तें विहित करना;

(च) विद्युत प्रणाली में सुधार लाने और उसके संवर्धन के लिए स्कीमों और परियोजनाओं को समय पर पूरा किए जाने के लिए प्रोत्साहन देना और उसमें सहायता करना;

(छ) विद्युत उद्योग में लगे हुए व्यक्तियों के कौशल को बढ़ाने के उपायों को प्रोत्साहित करना;

(ज) केंद्रीय सरकार को किसी ऐसे विषय पर सलाह देना, जिस पर उसकी सलाह मांगी गई है या किसी विषय पर उस सरकार को सिफारिश करना, यदि प्राधिकरण की राय में ऐसी सिफारिश, विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यापार, वितरण और उपयोग के सुधार में सहायता प्रदान करेगी;

(झ) विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यापार, वितरण और उपयोग से संबंधित आंकड़े एकत्रित करना और अभिलिखित करना तथा लागत, दक्षता, प्रतिस्पर्धा और ऐसे ही विषयों से संबंधित अध्ययन करना;

(ञ) इस अधिनियम के अधीन समय-समय पर जनता को सूचना उपलब्ध कराना और रिपोर्टों तथा अन्वेषणों के प्रकाशन की व्यवस्था करना;

(ट) विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण और व्यापार पर प्रभाव डालने वाले विषयों पर अनुसंधान को आगे बढ़ाना;

(ठ) विद्युत के उत्पादन या पारेषण या वितरण के प्रयोजनों के लिए कोई अन्वेषण करना या कराना;

(ड) किसी राज्य सरकार, अनुज्ञप्तिधारियों या उत्पादन कंपनियों को ऐसे विषयों पर ऐसी सलाह देना, जो उनके स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन विद्युत प्रणाली के उन्नत रीति में प्रचालन और अनुरक्षण के और जहां आवश्यक हो, किसी ऐसी अन्य सरकार, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी के, जिसके स्वामित्व या नियंत्रण में कोई अन्य विद्युत प्रणाली है, समन्वयन को समर्थ बनाएगा;

(ढ) विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण से संबंधित सभी तकनीकी विषयों पर समुचित सरकार और समुचित आयोग को सलाह देना; और

(ण) ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना, जो इस अधिनियम के अधीन उपबंधित हैं ।

कतिपय शक्तियां और निदेश

74. आंकड़ों और विवरणियों की अपेक्षा करने की शक्ति-अपने स्वयं के उपयोग के लिए विद्युत का उत्पादन करने वाले प्रत्येक अनुज्ञप्तिधारी, उत्पादन कंपनी या व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह, विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, व्यापार और उपयोग से संबंधित ऐसे आंकड़े, विवरणियां या अन्य जानकारी जो प्राधिकरण द्वारा अपेक्षित हों, ऐसे समय पर और ऐसे प्ररूप तथा रीति में, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, प्राधिकरण को भेजे ।

75. प्राधिकरण को केंद्रीय सरकार द्वारा निदेश-(1) अपने कृत्यों के निर्वहन में प्राधिकरण, लोकहित से संबंधित नीतिगत विषयों में ऐसे निदेशों द्वारा मार्गदर्शित होगा, जो केंद्रीय सरकार उसे लिखित रूप में दे ।

(2) यदि इस बारे में कोई प्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसा कोई निदेश, लोकहित से संबंधित नीतिगत विषय है या नहीं, तो उस पर केंद्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

भाग 10

विनियामक आयोग

केंद्रीय आयोग का गठन; उसकी शक्तियां और कृत्य

76. केंद्रीय आयोग का गठन-(1) केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग के नाम से ज्ञात एक आयोग इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए और उसे सौंपे गए कृत्यों का निर्वहन करने के लिए होगा ।

(2) विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) की धारा 3 के अधीन स्थापित और नियत तारीख से ठीक पूर्व उस रूप में कार्य कर रहा केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग उस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए केंद्रीय आयोग समझा जाएगा और उसके अध्यक्ष, सदस्य सचिव और अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किए गए समझे जाएंगे और वे उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर पद पर बने रहेंगे जिन पर वे विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) के अधीन नियुक्त किए गए थे:

परंतु इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व, विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) के अधीन नियुक्त केंद्रीय आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन निबंधनों और शर्तों के विकल्प के लिए धारा 78 की उपधारा (1) के अधीन गठित चयन समिति की सिफारिशों पर अनुज्ञात किया जा सकेगा ।

(3) केंद्रीय आयोग, पूर्वोक्त नाम का शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा रखने वाला निगमित निकाय होगा जिसे जंगम और स्थावर, दोनों प्रकार की संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति होगी तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा ।

(4) केंद्रीय आयोग का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा, जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।

(5) केंद्रीय आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात्: -

(क) अध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य;

(ख) प्राधिकरण का अध्यक्ष जो पदेन सदस्य होगा ।

(6) केंद्रीय आयोग का अध्यक्ष और सदस्य, केंद्रीय सरकार द्वारा धारा 78 में निर्दिष्ट चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाएंगे ।

77. केंद्रीय आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हताएं-(1) केंद्रीय आयोग का अध्यक्ष और सदस्य, इंजीनियरी, विधि, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, वित्त या प्रबंध से संबंधित समस्याओं का पर्याप्त ज्ञान, अनुभव और दर्शित क्षमता रखने वाले व्यक्ति होंगे और निम्नलिखित रीति से नियुक्त किए जाएंगे, अर्थात्: -

(क) एक व्यक्ति, जो विद्युत के उत्पादन, पारेषण या वितरण में विशेषज्ञता के साथ इंजीनियरी के क्षेत्र में अर्हताएं और अनुभव रखता हो;

(ख) एक व्यक्ति जो वित्त के क्षेत्र में अर्हता और अनुभव रखता हो;

(ग) दो व्यक्ति जो अर्थशास्त्र, वाणिज्य, विधि या प्रबंध में अर्हताएं और अनुभव रखते हों:

परंतु खंड (ग) के अधीन एक ही प्रवर्ग में से एक से अधिक सदस्य नियुक्त नहीं किए जाएंगे ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, केंद्रीय सरकार ऐसे व्यक्तियों में से किसी व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकेगी जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति है या रहा है:

परंतु इस उपधारा के अधीन कोई नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात् ही की जाएगी ।

(3) केंद्रीय आयोग का अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य कोई अन्य पद धारण नहीं करेगा ।

(4) अध्यक्ष केंद्रीय आयोग का मुख्य कार्यपालक होगा ।

78. सदस्यों की सिफारिश करने के लिए चयन समिति का गठन-(1) केंद्रीय सरकार, अपील अधिकरण के सदस्यों और केंद्रीय आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने के प्रयोजन के लिए निम्नलिखित से मिलकर बनने वाली चयन समिति का गठन करेगी-

(क) विद्युत सेक्टर का भारसाधक योजना आयोग का सदस्य                                                                  ... अध्यक्ष;

(ख) विधि कार्य विभाग से संबंधित केंद्रीय सरकार के मंत्रालय

का भारसाधक सचिव                                                                                                                                         ... सदस्य;

(ग) लोक उद्यम चयन बोर्ड का अध्यक्ष                                                                                                          ... सदस्य;

(घ) एक व्यक्ति जो उपधारा (2) के अनुसार केंद्रीय सरकार

द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा                                                                                                                   ... सदस्य;

(ङ) एक व्यक्ति जो उपधारा (3) के अनुसार केंद्रीय सरकार

द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा                                                                                                                   ... सदस्य;

(च)विद्युत से संबंधित केंद्रीय सरकार के मंत्रालय का

भारसाधक सचिव                                                                                                                                                ... सदस्य । (2) उपधारा (1) के खंड (घ) के प्रयोजनों के लिए, केंद्रीय सरकार ऐसे व्यक्तियों में, से जो कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 4क में विनिर्दिष्ट किसी लोक वित्तीय संस्था में अध्यक्ष या प्रबंध निदेशक का पद, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, धारण करते हों, नामनिर्देशित करेगी ।

(3) उपधारा (1) के खंड (ङ) के प्रयोजनों के लिए केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस प्रयोजन के लिए किसी अनुसंधान, तकनीकी या प्रबंध संस्था के निदेशक या संस्था के अध्यक्ष का पद, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, धारण करने वाले व्यक्तियों में से, नामनिर्देशन करेगी ।

(4) विद्युत से संबंधित केंद्रीय सरकार के मंत्रालय का भारसाधक सचिव चयन समिति का संयोजक होगा ।

(5) केंद्रीय सरकार, अपील अधिकरण के किसी सदस्य या केन्द्रीय आयोग के अध्यक्ष या किसी सदस्य की मृत्यु, त्यागपत्र या उसको हटाए जाने के कारण हुई किसी रिक्ति की तारीख से एक मास के भीतर और अपील अधिकरण के किसी सदस्य या केन्द्रीय आयोग के सदस्य की अधिवर्षिता या पदावधि की समाप्ति से छह मास पूर्व रिक्ति को भरे जाने के लिए चयन समिति को निर्देश करेगी ।

(6) चयन समिति, उस तारीख से, जिसको उसे निर्देश किया गया है, तीन मास के भीतर उपधारा (5) में निर्दिष्ट अध्यक्ष और सदस्यों के चयन को अंतिम रूप देगी ।

(7) चयन समिति उसको निर्दिष्ट प्रत्येक रिक्ति के लिए दो नामों के एक पैनल की सिफारिश करेगी ।

(8) अपील अधिकरण के सदस्य या केंद्रीय आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति की सिफारिश करने से पूर्व चयन समिति अपना यह समाधान करेगी कि ऐसे व्यक्ति का कोई वित्तीय या ऐसा अन्य हित नहीं है जिससे अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है ।

(9) अध्यक्ष या अन्य सदस्य की कोई नियुक्ति चयन समिति में किसी रिक्ति के कारण ही अविधिमान्य नहीं होगी:

परंतु इस धारा की कोई बात केन्द्रीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति को लागू नहीं होगी जहां ऐसा व्यक्ति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति है या रहा है ।

79. केंद्रीय आयोग के कृत्य-(1) केंद्रीय आयोग, निम्नलिखित कृत्यों का निर्वहन करेगा, अर्थात्: -

(क) केंद्रीय सरकार के स्वामित्व वाली या उसके द्वारा नियंत्रित उत्पादन कंपनियों के टैरिफ का विनियमन करना;

(ख) खंड (क) में विनिर्दिष्ट केंद्रीय सरकार के स्वामित्व वाली या उसके द्वारा नियंत्रित उत्पादन कंपनियों से भिन्न उत्पादन कंपनियों के टैरिफ का विनियमन करना, यदि ऐसी उत्पादन कंपनियां एक राज्य से अधिक राज्यों में विद्युत के उत्पादन और विक्रय के लिए कोई संयुक्त स्कीम बनाती हैं या अन्यथा उनकी ऐसी कोई संयुक्त स्कीम है;

(ग) विद्युत के अंतरराज्यिक पारेषण को विनियमित करना;

(घ) विद्युत के अन्तरराज्यिक पारेषण के लिए टैरिफ अवधारित करना;

(ङ) किन्हीं व्यक्तियों को पारेषण अनुज्ञप्तिधारी और उनकी अन्तरराज्यिक संक्रियाओं की बाबत विद्युत व्यापारी के रूप में कृत्य करने के लिए अनुज्ञप्ति जारी करना;

(च) उपर्युक्त खंड (क) से खंड (घ) तक से संसक्त विषयों के संबंध में उत्पादन कंपनियों या पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों को अंतर्वलित करने वाले विवादों का न्यायनिर्णयन करना और माध्यस्थम् के लिए किसी विवाद को   निर्दिष्ट करना;

(छ) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए फीस उद्गृहीत करना;

(ज) ग्रिड मानकों को ध्यान में रखते हुए ग्रिड कोड विनिर्दिष्ट करना;

(झ) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा सेवा की क्वालिटी, निरंतरता और विश्वसनीयता के संबंध में मानकों को विनिर्दिष्ट और प्रवृत्त करना;

(ञ) विद्युत के अंतरराज्यिक व्यापार में, यदि आवश्यक समझा जाए, तो व्यापार अन्तर को नियत करना;

(ट) ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना जो इस अधिनियम के अधीन समनुदेशित किए जाएं ।

(2) केन्द्रीय आयोग, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों पर केन्द्रीय सरकार को सलाह देगा, अर्थात्: -

(i) राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति का बनाना;

(ii) विद्युत उद्योग के क्रियाकलाप में प्रतिस्पर्धा, दक्षता और मितव्ययिता का संवर्द्धन;

(iii) विद्युत उद्योग में विनिधान का संवर्धन;

(iv) सरकार द्वारा केंद्रीय आयोग को निर्दिष्ट कोई अन्य विषय ।

(3) केन्द्रीय आयोग, अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का निर्वहन करते समय पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा ।

(4) केन्द्रीय आयोग, अपने कृत्यों के निर्वहन में, धारा 3 के अधीन प्रकाशित राष्ट्रीय विद्युत नीति, राष्ट्रीय विद्युत योजना और टैरिफ नीति से मार्गदर्शित होगा ।

80. केन्द्रीय सलाहकार समिति-(1) केन्द्रीय आयोग, अधिसूचना द्वारा, उस तारीख से जो वह उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, एक समिति स्थापित करेगा जो केन्द्रीय सलाहकार समिति के नाम से ज्ञात होगी ।

(2) केन्द्रीय सलाहकार समिति में वाणिज्य, उद्योग, परिवहन, कृषि, श्रम, उपभोक्ता, गैर-सरकारी संगठनों और विद्युत सेक्टर में शैक्षणिक और अनुसंधान निकायों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले इकतीस से अनधिक सदस्य होंगे ।

(3) केन्द्रीय आयोग का अध्यक्ष, केन्द्रीय सलाहकार समिति का पदेन अध्यक्ष होगा और उक्त आयोग के सदस्य और उपभोक्ता मामले तथा लोक वितरण प्रणाली मंत्रालय या विभाग का भारसाधक भारत सरकार का सचिव, समिति के पदेन सदस्य होंगे ।

81. केन्द्रीय सलाहकार समिति के उद्देश्य-केन्द्रीय सलाहकार समिति का उद्देश्य केन्द्रीय आयोग को निम्नलिखित पर सलाह देना होगा-

(i) नीति संबंधी मुख्य प्रश्न;

(ii) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा प्रदान की गई सेवा की क्वालिटी, निरंतरता और विस्तार से संबंधित विषय;

(iii) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा उनकी अनुज्ञप्ति की शर्तों और अपेक्षाओं का अनुपालन;

(iv) उपभोक्ता हित का संरक्षण;

(v) विद्युत प्रदाय और उपयोगिताओं द्वारा निष्पादन के समग्र मानदंड ।

राज्य आयोगों का गठन, उनकी शक्तियां और कृत्य

82. राज्य आयोग का गठन-(1) प्रत्येक राज्य सरकार, नियत तारीख से छह मास के भीतर अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य के लिए एक आयोग गठित करेगी जो (राज्य का नाम) विद्युत विनियामक आयोग के रूप में ज्ञात होगा:

परंतु विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) की धारा 17 और अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों के अधीन किसी राज्य सरकार द्वारा स्थापित और नियत तारीख से ठीक पूर्व उस रूप में कार्य कर रहा राज्य विद्युत विनियामक आयोग, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य आयोग होगा और उसके अध्यक्ष, सदस्य, सचिव और अधिकारी तथा अन्य कर्मचारी उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर, जिन पर वे उक्त अधिनियमों के अधीन नियुक्त किए गए थे, अपना पद धारण करते रहेंगे:

परंतु यह और कि विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) के अधीन या अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों के अधीन, इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व, नियुक्त राज्य आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को, संबद्ध राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन निबंधनों और शर्तों को स्वीकार करने के लिए धारा 85 की उपधारा (1) के अधीन गठित चयन समिति की सिफारिशों पर अनुज्ञात किया जा सकेगा ।

(2) राज्य आयोग पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा होगी और जिसे स्थावर और जंगम, दोनों ही संपत्तियों का अर्जन, धारण और व्ययन करने तथा संविदा करने की शक्ति होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगा या उसके विरुद्ध वाद लाया जाएगा ।

(3) राज्य आयोग का प्रधान कार्यालय उस स्थान पर होगा जो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।

(4) राज्य आयोग तीन सदस्यों से अनधिक से मिलकर बनेगा जिसमें अध्यक्ष सम्मिलित है ।

(5) राज्य आयोग का अध्यक्ष और सदस्य, राज्य सरकार द्वारा धारा 85 में निर्दिष्ट चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाएंगे ।

83. संयुक्त आयोग-(1) धारा 82 में अंतर्विष्ट किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, -

(क) दो या अधिक राज्य सरकारों द्वारा; या

(ख) एक या अधिक संघ राज्यक्षेत्रों और एक या अधिक राज्य सरकारों के संबंध में, केन्द्रीय सरकार द्वारा,

किए गए किसी करार द्वारा एक संयुक्त आयोग गठित किया जा सकेगा और वह इतनी अवधि के लिए प्रवृत्त होगा तथा उतनी और अवधि के लिए, यदि कोई हो, नवीकरण के अधीन होगा, जो करार में अनुबन्धित है:

परंतु विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) की धारा 21क के अधीन गठित और नियत दिन से ठीक पूर्व उस रूप में कार्य कर रहा संयुक्त आयोग, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए संयुक्त आयोग होगा और उसके अध्यक्ष, सदस्यों, सचिव और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों को इस अधिनियम के अधीन उस प्रकार नियुक्त किया गया समझा जाएगा तथा वे उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर पद धारण करते रहेंगे जिन पर विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 के अधीन वे नियुक्त किए गए थे ।

(2) संयुक्त आयोग में भाग लेने वाले राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में से प्रत्येक से एक सदस्य होगा और सदस्यों में से अध्यक्ष, सदस्यों के मतैक्य से और वैसा न हो सकने पर चक्रानुक्रम से नियुक्त किया जाएगा ।

(3) उपधारा (1) के अधीन किसी करार में, संयुक्त आयोग के नाम से, उस रीति से जिसमें भाग लेने वाले राज्य संयुक्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में सहयोजित किए जा सकेंगे, सदस्यों की नियुक्ति की रीति और चक्रानुक्रम या सर्वसम्मति द्वारा अध्यक्ष की नियुक्ति से, उन स्थानों से जहां आयोग बैठक करेगा, संयुक्त आयोग से संबंधित व्यय का भाग लेने वाले राज्यों के बीच प्रभाजन से, उस रीति से जिसमें संयुक्त आयोग और संबंद्ध राज्य सरकार के बीच मतवैभिन्य दूर किए जा सकेंगे, संबंधित उपबंध होंगे और इस अधिनियम से संगत ऐसे अन्य अनुपूरक, आनुषंगिक तथा पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे जो करार को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या समीचीन समझे जाएं ।

(4) संयुक्त आयोग, भाग लेने वाले राज्यों या संघ राज्यक्षेत्रों की बाबत टैरिफ का अवधारण पृथक्-पृथक् और स्वतंत्र रूप से करेगा ।

(5) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, यदि उसे सभी भाग लेने वाले राज्यों द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो, तो एक संयुक्त आयोग का गठन कर सकेगी और उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं विषयों की बाबत शक्तियों का और विशेषतः भाग लेने वाले राज्यों द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत शक्तियों का प्रयोग कर सकेगी ।

84. राज्य आयोग के अध्यक्ष, और सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हताएं-(1) राज्य आयोग का अध्यक्ष और सदस्य योग्यता, कर्तव्यनिष्ठा और अनुभव रखने वाले ऐसे व्यक्ति होंगे जिनके पास इंजीनियरी, वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, विधि या प्रबंध से संबंधित समस्याओं के बारे में कार्रवाई करने का पर्याप्त ज्ञान हो और उन्होंने उसमें क्षमता प्रदर्शित की हो ।

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, ऐसे व्यक्तियों में से जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या रहे हैं, किसी व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकेगी:

परंतु इस उपधारा के अधीन कोई नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के साथ परामर्श करने के पश्चात् ही की जाएगी अन्यथा नहीं ।

(3) राज्य आयोग का अध्यक्ष या कोई सदस्य कोई अन्य पद धारण नहीं करेगा ।

(4) अध्यक्ष, राज्य आयोग का मुख्य कार्यपालक होगा । 

85. राज्य आयोग के सदस्यों का चयन करने के लिए चयन समिति का गठन-(1) राज्य सरकार, राज्य आयोग के सदस्यों का चयन करने के प्रयोजनों के लिए, एक चयन समिति का गठन करेगी जिसमें निम्नलिखित होंगे: -

(क) एक व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा है                                                                       -अध्यक्ष;

(ख) संबद्ध राज्य का मुख्य सचिव                                                                                                                 -सदस्य;

(ग) प्राधिकरण का अध्यक्ष या केन्द्रीय आयोग का अध्यक्ष                                                                        -सदस्यः

परंतु इस धारा की कोई बात अध्यक्ष के रूप में किसी ऐसे व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, की नियुक्ति को लागू नहीं होगी ।

(2) राज्य सरकार, किसी अध्यक्ष या सदस्य की मृत्यु, त्यागपत्र या उसके हटाए जाने के कारण हुई किसी रिक्ति की तारीख से एक मास के भीतर और किसी अध्यक्ष या सदस्य की अधिवर्षिता या कालावधि की समाप्ति के छह मास पूर्व, रिक्ति को भरने के लिए चयन समिति को निर्देश करेगी ।

(3) चयन समिति, उसको निर्देश किए जाने की तारीख से तीन मास के भीतर अध्यक्ष और सदस्यों के चयन को अंतिम रूप देगी ।

(4) चयन समिति, उसे निर्देशित प्रत्येक रिक्ति के लिए दो नामों के एक पैनल की सिफारिश करेगी ।

(5) चयन समिति, राज्य आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति की सिफारिश करने से पूर्व अपना यह समाधान करेगी कि ऐसे व्यक्ति का ऐसा कोई वित्तीय या अन्य हित नहीं है जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है ।

(6) अध्यक्ष या अन्य सदस्य की कोई नियुक्ति, केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी की चयन समिति में कोई रिक्ति है ।

86. राज्य आयोग के कृत्य-(1) राज्य आयोग निम्नलिखित कृत्यों का निर्वहन करेगा, अर्थात्: -

(क) राज्य के भीतर, यथास्थिति, थोक, प्रपुंज या फुटकर विद्युत के उत्पादन, प्रदाय, पारेषण और चक्रण के लिए टैरिफ अवधारित करना:

परंतु जहां उपभोक्ताओं के किसी प्रवर्ग के लिए धारा 42 के अधीन निर्बाध पहुंच अनुज्ञात की गई है, वहां राज्य आयोग उपभोक्ताओं के उक्त प्रवर्ग के लिए केवल चक्रण प्रभारों और उस पर अधिभार, यदि कोई हो, का ही अवधारण करेगा;

(ख) वितरण अनुज्ञप्तिधारियों की विद्युत क्रय और उपापन प्रक्रिया को विनियमित करना जिसके अंतर्गत वह कीमत भी है जिस पर विद्युत, राज्य में वितरण और प्रदाय के लिए विद्युत क्रय के करारों के माध्यम से उत्पादन कंपनियों या अनुज्ञप्तिधारियों से या अन्य स्रोतों से उपाप्त की जाएगी;

(ग) विद्युत के अंतःराज्यिक पारेषण और चक्रण को सुकर बनाना;

(घ) ऐसे व्यक्तियों को, जो राज्य में अपनी संक्रियाओं की बाबत पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों, वितरण अनुज्ञप्तिधारियों और विद्युत व्यापारियों के रूप में कार्य करने के इच्छुक हैं, अनुज्ञप्तियां जारी करना;

(ङ) किसी व्यक्ति को, विद्युत की ग्रिड के साथ संयोजकता और उसके विक्रय के लिए उपयुक्त साधन उपलब्ध कराते हुए ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से सहउत्पादन और उत्पादन और ऐसे स्रोतों से विद्युत के क्रय के लिए किसी वितरण अनुज्ञप्तिधारी के क्षेत्र में विद्युत की कुल खपत का प्रतिशत भी विनिर्दिष्ट करना;

(च) अनुज्ञप्तिधारियों और उत्पादन कंपनियों के बीच विवादों पर न्यायानिर्णयन करना और किसी विवाद को माध्यस्थम् के लिए निर्देशित करना;

(छ) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए फीस उद्गृहीत करना;

(ज) धारा 79 की उपधारा (1) के खण्ड (ज) के अधीन विनिर्दिष्ट ग्रिड कोड से संगत राज्य ग्रिड कोड विनिर्दिष्ट करना;

(झ) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा सेवा की क्वालिटी, निरन्तरता और विश्वसनीयता की बाबत मानदंड विनिर्दिष्ट या प्रवर्तित करना;

(ञ) विद्युत के अंतरराज्यिक व्यापार में, यदि आवश्यक समझा जाए, तो व्यापार लाभ मार्जन नियत करना;

(ट) ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना, जो इस अधिनियम के अधीन उसे समनुदेशित किए जाएं ।

(2) राज्य आयोग, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देगा, अर्थात्: -

(i) विद्युत उद्योग के क्रियाकलाप में प्रतिस्पर्धा, दक्षता और मितव्ययिता का संवर्धन;

(ii) विद्युत उद्योग में विनिधान का संवर्धन;

(iii) राज्य में विद्युत उद्योग का पुनर्गठन और पुनःसंरचना;

(iv) विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण और व्यापार से संबंधित विषयों या उस सरकार द्वारा राज्य आयोग को निर्देशित कोई अन्य विषय ।

(3) राज्य आयोग, अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का निर्वहन करते समय पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा ।

(4) राज्य आयोग, अपने कृत्यों के निर्वहन में धारा 3 के अधीन प्रकाशित राष्ट्रीय विद्युत नीति, राष्ट्रीय विद्युत योजना और टैरिफ नीति से मार्गदर्शित होगा ।

87. राज्य सलाहकार समिति-(1) राज्य आयोग, अधिसूचना द्वारा, ऐसी तारीख से जो वह किसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, एक समिति स्थापित करेगा जो, राज्य सलाहकार समिति के नाम से ज्ञात होगी ।

(2) राज्य सलाहकार समिति, वाणिज्य, उद्योग, परिवहन, कृषि, श्रम, उपभोक्ता, गैर-सरकारी संगठनों और विद्युत सेक्टर में शैक्षणिक तथा अनुसंधान निकायों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले इक्कीस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी ।

(3) राज्य आयोग का अध्यक्ष, राज्य सलाहकार समिति का पदेन अध्यक्ष होगा और राज्य आयोग के सदस्य तथा उपभोक्ता मामले तथा लोक वितरण प्रणाली से संबंधित मंत्रालय या विभाग का भारसाधक राज्य सरकार का सचिव, समिति के पदेन सदस्य होंगे ।

88. राज्य सलाहकार समिति के उद्देश्य-राज्य सलाहकार समिति के उद्देश्य निम्नलिखित के संबंध में राज्य आयोग को सलाह देने होंगे-

(i) नीति संबंधी मुख्य प्रश्न;

(ii) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा प्रदान की गई सेवा की क्वालिटी, निरंतरता और विस्तार से संबंधित विषय;

(iii) अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा उनकी अनुज्ञप्तियों की शर्तों और अपेक्षाओं का अनुपालन;

(iv) उपभोक्ता हित का संरक्षण; और

(v) विद्युत प्रदाय और उपयोगिताओं द्वारा निष्पादन के समग्र मानदंड ।

समुचित आयोग - अन्य उपबंध

89. सदस्यों की पदावधि और सेवा-शर्तें-(1) अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य उस तारीख से, जिसको वह पद ग्रहण करता है, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा:

परंतु केंद्रीय आयोग या राज्य आयोग में अध्यक्ष या अन्य सदस्य उस आयोग में अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसी हैसियत में पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा जिसमें वह पहले उस रूप में पद धारित करता था:

परंतु यह और कि कोई अध्यक्ष या सदस्य पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् उस रूप में पद धारण नहीं करेगा ।

(2) अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो समुचित सरकार द्वारा विहित की जाएं:

परन्तु सदस्यों के वेतन, भत्तों और सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में, नियुक्ति के पश्चात् उनके लिए अलाभकर कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।

(3) प्रत्येक सदस्य, अपना पद ग्रहण करने से पूर्व, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से तथा ऐसे प्राधिकारी के समक्ष, जो विहित किया जाए, अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा ।

(4) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, कोई सदस्य-

(क) समुचित सरकार को तीन मास से अन्यून की लिखित सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा; या

(ख) धारा 90 के उपबंधों के अनुसार अपने पद से हटाया जा सकेगा ।

(5) कोई सदस्य, उस रूप में अपने पद पर न रह जाने पर-

(क) उस तारीख से जिसको वह अपने पद पर नहीं रह जाता है, दो वर्ष की अवधि तक कोई वाणिज्यिक नियोजन स्वीकार नहीं करेगा; और

(ख) केन्द्रीय आयोग या किसी राज्य आयोग के समक्ष किसी व्यक्ति का किसी भी रीति से प्रतिनिधित्व नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, वाणिज्यिक नियोजन" से किसी ऐसे संगठन में जो समुचित आयोग के समक्ष किसी कार्यवाही में कोई पक्षकार रहा है, किसी हैसियत में नियोजन या विद्युत उद्योग में व्यापार, वाणिज्यिक, औद्योगिक या वित्तीय कारबार में लगे हुए किसी व्यक्ति के अधीन या उसके अभिकरण में किसी हैसियत में नियोजन अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कंपनी का निदेशक या फर्म का भागीदार या ऐसा व्यक्ति भी है, जो स्वतंत्र रूप से या फर्म के भागीदार के रूप में या किसी सलाहकार या परामर्शी के रूप में व्यवसाय स्थापित कर रहा है ।

90. सदस्य का हटाया जाना-(1) किसी सदस्य को इस धारा के उपबंधों के अनुसार के सिवाय पद से नहीं हटाया जाएगा ।

(2) केन्द्रीय आयोग के सदस्य की दशा में, केंद्रीय सरकार और राज्य आयोग के सदस्य की दशा में राज्य सरकार, आदेश द्वारा किसी सदस्य को पद से हटा सकेगी, यदि वह-

(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है;

(ख) किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसमें, समुचित सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है;

(ग) सदस्य के रूप में कार्य करने में शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हो गया है;

(घ) उसने ऐसा वित्तीय या अन्य हित अर्जित कर लिया है जिससे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है;

(ङ) अपनी स्थिति का ऐसे दुरुपयोग किया है जिससे उसके पद पर बने रहने से लोकहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा; या

(च) वह साबित कदाचार का दोषी रहा है:

परंतु कोई भी सदस्य, खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी आधार पर अपने पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि, अपील अधिकरण के अध्यक्ष ने यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त उसे किए गए निर्देश पर ऐसी जांच के पश्चात्, जो उसके द्वारा केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की गई प्रक्रिया के अनुसार की गई हो, यह रिपोर्ट न दी हो कि उक्त सदस्य को ऐसे आधार या आधारों पर पद से हटा दिया जाना चाहिए ।

(3) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार अपील अधिकरण के अध्यक्ष के परामर्श से समुचित आयोग के किसी ऐसे सदस्य को जिसके संबंध में, अपील अधिकरण के अध्यक्ष को उपधारा (2) के अधीन निर्देश किया गया है जब तक कि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार ने ऐसे निर्देश पर अपील अधिकरण के अध्यक्ष की रिपोर्ट की प्राप्ति पर आदेश पारित न किए हों, अध्यक्ष निलंबित कर सकेगा:

परंतु इस धारा में की कोई बात समुचित आयोग के ऐसे अध्यक्ष को जो अपनी नियुक्ति के समय, उच्चतम न्यायालय का आसीन न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, लागू नहीं होगी ।

समुचित आयोग की कार्यवाहियां और शक्तियां

91. आयोग के सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृंद-(1) समुचित आयोग, ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिए, जो विनिर्दिष्ट किए जाएं, एक सचिव की नियुक्ति कर सकेगा ।(2) समुचित आयोग, समुचित सरकार के अनुमोदन से अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या, प्रकृति और प्रवर्ग विनिर्दिष्ट कर सकेगा ।

(3) सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी जो समुचित सरकार के अनुमोदन से विनिर्दिष्ट की जाएं ।

(4) समुचित आयोग, आयोग की, उसके कृत्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए अपेक्षित परामर्शी को ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो विनिर्दिष्ट की जाएं नियुक्त कर सकेगा ।

92. समुचित आयोग की कार्यवाहियां-(1) समुचित आयोग, प्रधान कार्यालय या किसी अन्य स्थान पर और ऐसे समय पर अधिवेशन करेगा जैसा अध्यक्ष निदेश दे और अपने अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के संबंध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा (जिसमें उसके अधिवेशनों में गणपूर्ति भी है) जो विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(2) अध्यक्ष, या यदि वह समुचित आयोग के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित कोई अन्य सदस्य और ऐसे नामनिर्देशन के अभाव में या जहां कोई अध्यक्ष नहीं है वहां उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना गया कोई सदस्य अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा ।

(3) ऐसे सभी प्रश्नों का जो समुचित आयोग के किसी अधिवेशन के समक्ष आएं, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा विनिश्चय किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में पीठासीन व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा ।

(4) उपधारा (3) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, प्रत्येक सदस्य का एक मत होगा ।

(5) समुचित आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय आयोग के सचिव या किसी अन्य अधिकारी द्वारा, जिसे अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किया जाए, अधिप्रमाणित किए जाएंगे ।

93. रिक्तियों आदि से कार्यवाहियों का अविधिमान्य होना-समुचित आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होगी कि समुचित आयोग के गठन में कोई रिक्ति या त्रुटि है ।

94. समुचित आयोग की शक्तियां-(1) समुचित आयोग को इस अधिनियम के अधीन किसी जांच या कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिए वही शक्तियां प्राप्त होंगी जो निम्नलिखित विषयों के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्: -

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसको हाजिर कराना और उसकी शपथ पर परीक्षा करना;

(ख) साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जाने योग्य किसी दस्तावेज या अन्य सामग्री का प्रकटीकरण और प्रस्तुतीकरण;

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना;

(घ) किसी लोक अभिलेख की अध्यपेक्षा करना;

(ङ) साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

(च) अपने विनिश्चयों, निदेशों और आदेशों का पुनर्विलोकन करना;

(छ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए ।

(2) समुचित आयोग को, समुचित आयोग के समक्ष किसी कार्यवाही सुनवाई या विषय में ऐसा अंतरिम आदेश पारित करने की शक्तियां होंगी जिसे आयोग समुचित समझे ।

(3) समुचित आयोग, अपने समक्ष कार्यवाहियों में उपभोक्ताओं के हित का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकेगा जिसे वह ठीक समझे ।

95. आयोग के समक्ष कार्यवाहियां-समुचित आयोग के समक्ष सभी कार्यवाहियां, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थांतर्गत न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी और समुचित आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973(1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।

96. प्रवेश और अभिग्रहण की शक्तियां-समुचित आयोग या आयोग द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से प्राधिकृत राजपत्रित अधिकारी की पंक्ति से अनिम्न कोई अधिकारी, ऐसे किसी भवन या स्थान में प्रवेश कर सकेगा जहां आयोग के पास यह विश्वास करने का कारण है कि जांच की किसी विषयवस्तु से संबंधित कोई दस्तावेज वहां पर पाया जा सकता है, और ऐसे किसी दस्तावेज को अभिगृहीत कर सकेगा या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 100 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जहां तक वह लागू होती हो, उस दस्तावेज से उद्धरण या उसकी प्रतियां ले सकेगा ।

97. प्रत्यायोजन-समुचित आयोग, साधारण या विशेष लिखित आदेश द्वारा ऐसी शर्तों के अधीन, यदि कोई हों, जो इस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (धारा 79 और धारा 86 के अधीन विवादों के निपटारे और धारा 178 या धारा 181 के अधीन विनियम बनाने की शक्ति को छोड़कर) जो वह आवश्यक समझे, केंद्रीय या राज्य आयोग के किसी सदस्य, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति को, प्रत्यायोजित कर सकेगा ।

अनुदान, निधि, लेखे, लेखा-परीक्षा और रिपोर्ट

98. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान और उधार-केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, केन्द्रीय आयोग को ऐसी धनराशियों के अनुदान और उधार दे सकेगी जो वह सरकार आवश्यक समझे ।

99. केन्द्रीय सरकार द्वारा निधि की स्थापना-(1) केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग निधि के नाम से ज्ञात एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किए जाएंगे: -

(क) धारा 98 के अधीन केन्द्रीय आयोग को दिया गया कोई अनुदान और उधार;

(ख) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय आयोग द्वारा प्राप्त की गई सभी फीसें;

(ग) केन्द्रीय आयोग द्वारा ऐसे अन्य स्रोतों से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किए जाएं, प्राप्त सभी राशियां ।

(2) निधि निम्नलिखित को पूरा करने के लिए उपयोजित की जाएगी-

(क) केन्द्रीय आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों, सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक;

(ख) धारा 79 के अधीन केन्द्रीय आयोग के कृत्यों के निर्वहन के खर्चे;

(ग) इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत उद्देश्यों पर और प्रयोजनों के लिए खर्च ।

(3) केन्द्रीय सरकार, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से, उपधारा (2) के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट व्ययों को पूरा करने के लिए निधि का उपयोजन करने की रीति विहित कर सकेगी ।

100. केन्द्रीय आयोग के लेखे और लेखापरीक्षा-(1) केंद्रीय आयोग, उचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का एक वार्षिक विवरण, ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो केंद्रीय सरकार, भारत के नियंत्रक-महालेखपरीक्षक के परामर्श से, विहित करे ।

(2) केंद्रीय आयोग के लेखाओं की लेखापरीक्षा भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ऐसे अंतरालों पर करेगा जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय, केंद्रीय आयोग द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन केंद्रीय आयोग के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के उस लेखापरीक्षा के संबंध में वही अधिकार, विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे, जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में हैं, और उसे विशिष्टतः केंद्रीय आयोग की बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों और अन्य दस्तावेज तथा कागज-पत्रों को पेश किए जाने की मांग करने और उसके किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।

(4) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित, केंद्रीय आयोग के लेखे, उनकी लेखापरीक्षा रिपोर्ट के साथ वार्षिक रूप से केंद्रीय सरकार को अग्रेषित किए जाएंगे और वह सरकार, उसके प्राप्त होने पर यथाशीघ्र उसे संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

101. केन्द्रीय आयोग की वार्षिक रिपोर्ट-(1) केंद्रीय आयोग, प्रत्येक वर्ष में एक बार ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाए, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें पूर्ववर्ती वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का सारांश होगा और रिपोर्ट की प्रतियां केंद्रीय सरकार को भेजेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्राप्त रिपोर्ट की प्रति, प्राप्ति के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।

102. राज्य सरकार द्वारा अनुदान और उधार-राज्य सरकार, राज्य विधान-मंडल द्वारा इस निमित्त किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, राज्य आयोग को ऐसी राशियों के अनुदान और उधार दे सकेगी जो वह सरकार आवश्यक समझे ।

103. राज्य सरकार द्वारा निधि की स्थापना-(1) राज्य विद्युत विनियामक आयोग निधि के नाम से ज्ञात एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किए जाएंगे: -

(क) धारा 102 के अधीन राज्य सरकार द्वारा राज्य आयोग को दिया गया कोई अनुदान और उधार;

(ख) इस अधिनियम के अधीन राज्य आयोग द्वारा प्राप्त की गई सभी फीसें;

(ग) राज्य आयोग द्वारा ऐसे अन्य स्रोतों से, जो राज्य सरकार द्वारा विनिश्चित किए जाएं, प्राप्त सभी राशियां ।

(2) निधि निम्नलिखित को पूरा करने के लिए उपयोजित की जाएगी-

(क) राज्य आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों, सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक;

(ख) धारा 86 के अधीन राज्य आयोग के कृत्यों के निर्वहन के व्यय;

(ग) इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत उद्देश्यों पर और प्रयोजनों के लिए व्यय ।

(3) राज्य सरकार, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से, उपधारा (2) के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट व्ययों को पूरा करने के लिए निधि का उपयोजन करने की रीति विहित कर सकेगी ।

104. राज्य आयोग के लेखे और लेखापरीक्षा-(1) राज्य आयोग, उचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और वार्षिक लेखा विवरण, ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो राज्य सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाए ।

(2) राज्य आयोग के लेखाओं की, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे समय और अन्तरालों पर, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं, लेखापरीक्षा की जाएगी और ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय, राज्य आयोग द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या इस अधिनियम के अधीन राज्य आयोग के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को ऐसी लेखापरीक्षा के संबंध में वे ही अधिकार, विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे, जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में साधारणतः प्राप्त होते हैं और, विशिष्टतः राज्य आयोग की बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों और अन्य दस्तावेजों तथा कागज-पत्रों को पेश करने की मांग करने और उसके कार्यालयों में से किसी का भी निरीक्षण का अधिकार होगा ।

(4) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किए गए किसी व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित, राज्य आयोग के लेखे, उन पर लेखापरीक्षा की रिपोर्ट के साथ वार्षिक रूप से राज्य सरकार को अग्रेषित किए जाएंगे और वह सरकार, इनके प्राप्त होने पर यथाशीघ्र उसे राज्य विधान-मंडन के समक्ष रखवाएगी ।

105. राज्य आयोग की वार्षिक रिपोर्ट-(1) राज्य आयोग प्रति वर्ष एक बार ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाए, एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूर्ववर्ष के दौरान उसके क्रियाकलाप संक्षेप में होंगे और रिपोर्ट की प्रतियां राज्य सरकार को अग्रेषित की जाएंगी ।

(2) उपधारा (2) के अधीन प्राप्त रिपोर्ट की प्रति, प्राप्ति के पश्चात् यथाशीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखी जाएगी ।

106. समुचित आयोग का बजट-समुचित आयोग, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाए, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपना बजट तैयार करेगा जिसमें उस आयोग की प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय दर्शित होंगे और उसे समुचित सरकार को भेजेगा ।

107. केन्द्रीय सरकार द्वारा निदेश-(1) केंद्रीय आयोग, अपने कृत्यों के निर्वहन नीति संबंधी ऐसे विषयों में जिनमें लोकहित अंतर्वलित है, केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे लिखित में दिए गए निदेशों से मार्गदर्शित होगा ।

(2) यदि इस बाबत कोई प्रश्न उद्भूत होता है कि क्या ऐसा कोई निदेश नीति संबंधी ऐसे विषय से संबंधित है, जिसमें लोकहित अंतर्वलित है, तो उस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

108. राज्य सरकार द्वारा निदेश-(1) राज्य आयोग, अपने कृत्यों के निर्वहन नीति संबंधी ऐसे विषयों में जिनमें लोकहित अंतर्वलित है, राज्य सरकार द्वारा उसे लिखित में दिए गए निदेशों से मार्गदर्शित होगा ।

(2) यदि इस संबंध में कोई प्रश्न उद्भूत होता है कि क्या ऐसा कोई निदेश नीति संबंधी ऐसे विषय से संबंधित है, जिसमें लोकहित अंतर्वलित है, तो उस पर राज्य सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।

109. संयुक्त आयोग को निदेश-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, जहां धारा 83 के अधीन कोई संयुक्त आयोग स्थापित किया जाता है वहां-

(क) उस राज्य की सरकार, जिसके लिए संयुक्त आयोग स्थापित किया गया है, केवल ऐसे मामलों में इस अधिनियम के अधीन कोई निदेश देने के लिए सक्षम होगी जहां ऐसा निदेश राज्य की अनन्य राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता के भीतर आने वाले विषय से संबंधित हो;

(ख) केन्द्रीय सरकार अकेले ही इस अधिनियम के अधीन कोई निदेश देने के लिए समक्ष होगी, जहां ऐसा निदेश दो या अधिक राज्यों की राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता के भीतर आने वाले किसी विषय से या किसी संघ राज्यक्षेत्र से संबंधित है, और भागीदार सरकारें किसी करार पर पहुंचने में असफल रहती हैं या भागीदार राज्य या उनकी बहुसंख्या केन्द्रीय सरकार से ऐसा निदेश देने के लिए अनुरोध करती हैं ।

भाग 11

विद्युत अपील अधिकरण

110. अपील अधिकरण की स्थापना-केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा [इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीनट न्यायनिर्णयन अधिकारी या समुचित आयोग के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए विद्युत अपील अधिकरण के नाम से ज्ञात एक अपील अधिकरण की स्थापना करेगी ।

111. अपील अधिकरण को अपील-(1) न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा (धारा 127 के अधीन के सिवाय) इस अधिनियम के अधीन या समुचित आयोग द्वारा इस अधिनियम के अधीन किए गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति विद्युत अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा:

परंतु यह कि शास्ति उद्गृहीत करने वाले न्यायनिर्णयन अधिकारी के आदेश के विरुद्ध अपील करने वाला कोई व्यक्ति, अपील करते समय, ऐसी शास्ति की रकम जमा करेगा:

परंतु यह और कि जहां किसी विशिष्ट मामले में, अपील अधिकरण की यह राय हो कि ऐसी शास्ति का जमा करवाया जाना ऐसे व्यक्ति के लिए असम्यक् कठिनाई उत्पन्न करेगा, वहां वह शास्ति की वसूली को सुरक्षित करने के लिए जो शर्तें वह अधिरोपित करना उचित समझे, उनके अधीन रहते हुए ऐसे निक्षेप से अभिमुक्ति प्रदान कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अपील, उस तारीख से जिसको न्यायनिर्णयन अधिकारी या समुचित आयोग द्वारा किए गए आदेश की प्रति व्यथित व्यक्ति द्वारा प्राप्त की जाती है, पैंतालीस दिन की अवधि के भीतर फाइल की जाएगी और वह ऐसे प्ररूप में होगी, ऐसी रीति से सत्यापित की जाएगी और उसके साथ उतनी फीस होगी जो विहित की जाए:

परंतु अपील अधिकरण, पैंतालीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् किसी अपील को ग्रहण कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि उक्त अवधि के भीतर फाइल न किए जाने के लिए पर्याप्त कारण था ।

(3) अपील अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन अपील प्राप्त करने पर, अपील के पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् जिस आदेश के विरुद्ध अपील की गई है उसकी पुष्टि करते हुए, उतांतरित करते हुए या अपास्त करते हुए ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

(4) अपील अधिकरण अपने द्वारा किए गए प्रत्येक आदेश की एक प्रति अपील के पक्षकारों को और, यथास्थिति, संबद्ध न्यायनिर्णयन अधिकारी को या समुचित आयोग को भेजेगा ।

(5) उपधारा (1) के अधीन अपील अधिकरण के समक्ष फाइल की गई अपील उसके द्वारा यथासंभवशीघ्र निपटाई जाएगी और अपील प्राप्त किए जाने की तारीख से एक सौ अस्सी दिन के भीतर अपील को अंतिम रूप से निपटाने का प्रयास किया जाएगा:

परंतु जहां कोई अपील एक सौ अस्सी दिन की उक्त अवधि के भीतर नहीं निपटाई जा सके वहां अपील अधिकरण उक्त अवधि के भीतर अपील नहीं निपटाए जाने के लिए कारणों को लेखबद्ध करेगा ।

(6) अपील अधिकरण, इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, न्यायनिर्णयन अधिकारी या समुचित आयोग द्वारा किए गए किसी आदेश की किन्हीं कार्यवाहियों के संबंध में वैधता, औचित्य या शुद्धता की परीक्षा के प्रयोजनार्थ स्वप्रेरणा से या अन्यथा ऐसी कार्यवाहियों के अभिलेख मंगवाएगा और उस मामले में ऐसे आदेश करेगा जो वह ठीक समझे ।

112. अपील अधिकरण की संरचना-(1) अपील अधिकरण में एक अध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे ।

(2) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, -

(क) अपील अधिकरण की अधिकारिता का प्रयोग उसकी न्यायपीठों द्वारा किया जा सकेगा;

(ख) अपील अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा, अपील अधिकरण के दो या अधिक सदस्यों को मिलकर, जैसा अपील अधिकरण का अध्यक्ष ठीक समझे, एक न्यायपीठ का गठन किया जा सकेगा:

परंतु इस खंड के अधीन गठित प्रत्येक न्यायपीठ में कम से कम एक न्यायिक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य होगा;

(ग) अपील अधिकरण की न्यायपीठें साधारणतः दिल्ली में और ऐसे अन्य स्थानों पर अधिविष्ट होंगी, जो केन्द्रीय सरकार, अपील अधिकरण के अध्यक्ष के परामर्श से अधिसूचित करे;

(घ) केन्द्रीय सरकार उन क्षेत्रों को अधिसूचित करेगी जिनके संबंध में अपील अधिकरण की प्रत्येक न्यायपीठ अधिकारिता का प्रयोग कर सकेगी ।

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, अपील अधिकरण का अध्यक्ष, अपील अधिकरण के किसी सदस्य को एक न्यायपीठ से दूसरे न्यायपीठ में स्थानांतरित कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, -

(i) न्यायिक सदस्य" से अपील अधिकरण का ऐसा सदस्य अभिप्रेत है जो धारा 113 की उपधारा (1) के खंड (ख) के उपखंड (i) के अधीन उस रूप में नियुक्त किया गया हो और इसमें अपील अधिकरण का अध्यक्ष भी है;

(ii) तकनीकी सदस्य" से अपील अधिकरण का ऐसा सदस्य अभिप्रेत है जो धारा 113 की उपधारा (1) के खंड (ख) के उपखंड (ii) या उपखंड (iii) के अधीन नियुक्त किया गया हो ।

113. अपील अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति के लिए अर्हताएं-(1) कोई व्यक्ति, अपील अधिकरण के अध्यक्ष या अपील अधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह-

(क) अपील अधिकरण के अध्यक्ष की दशा में उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति हो या रहा हो; और

(ख) अपील अधिकरण के सदस्य की दशा में-

(i) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो या होने के लिए अर्हित हो; या

(ii) केन्द्रीय सरकार के आर्थिक कार्य या विषयों या अवसंरचना में व्यवहार करने वाले मंत्रालय या विभाग में कम से कम एक वर्ष के लिए सचिव हो या रहा हो; या

(iii) ऐसा योग्य और ख्यातिप्राप्त व्यक्ति हो या रहा हो, जिसे विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण तथा विनियमन या अर्थशास्त्र, वाणिज्य, विधि या प्रबंध संबंधी विषयों से संबंधित पर्याप्त ज्ञान और अनुभव हो ।

(2) अपील अधिकरण का अध्यक्ष केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से नियुक्त किया जाएगा ।

(3) अपील अधिकरण के सदस्य, धारा 78 में निर्दिष्ट चयन समिति की सिफारिश पर केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।

(4) केन्द्रीय सरकार, अपील अधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति को नियुक्त करने से पूर्व, अपना यह समाधान करेगी कि ऐसे व्यक्ति का ऐसा कोई वित्तीय या अन्य हित नहीं है जिससे अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है ।

114. पदावधि-अपील अधिकरण का अध्यक्ष या अपील अधिकरण का कोई अन्य सदस्य, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि के लिए उस हैसियत में पद धारण करेगा:

परंतु यह कि ऐसा अध्यक्ष या अन्य सदस्य तीन वर्ष की दूसरी पदावधि के लिए पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा:

परंतु अपील अधिकरण का कोई अध्यक्ष या अपील अधिकरण का अन्य सदस्य, -

(क) अध्यक्ष की दशा में, सत्तर वर्ष; और 

(ख) अन्य सदस्य की दशा में, पैंसठ वर्ष, की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् उस हैसियत में पद धारण नहीं करेगा ।

115. सेवा के निबंधन और शर्तें-अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अपील अधिकरण के अन्य सदस्यों को संदेय वेतन तथा उनकी सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएं:

परन्तु अपील अधिकरण के अध्यक्ष के या अपील अधिकरण के किसी सदस्य के न तो वेतन और भत्तों में और न ही उसकी सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन किया जाएगा ।

116. रिक्तियां-यदि अपील अधिकरण के अध्यक्ष या अपील अधिकरण के किसी सदस्य के पद में, अस्थायी अनुपस्थिति से भिन्न कारण से कोई रिक्ति होती है तो केन्द्रीय सरकार, उस रिक्ति को भरने के लिए इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करेगी और अपील अधिकरण के समक्ष कार्यवाहियां उसी प्रक्रम से जारी रखी जा सकेंगी जिस पर रिक्ति भरी   जाती है ।

117. पद त्याग और हटाया जाना-(1) अपील अधिकरण का अध्यक्ष या अपील अधिकरण का कोई सदस्य, केन्द्रीय सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा:

परंतु अपील अधिकरण का अध्यक्ष या अपील अधिकरण का कोई सदस्य, जब तक कि केन्द्रीय सरकार उसे अपना पद पहले छोड़ने के लिए अनुज्ञात न कर दे, ऐसी सूचना की प्रप्ति की तारीख से तीन मास के समाप्त होने तक या उसके पदोत्तरवर्ती के रूप में सम्यक् रूप से नियुक्त किसी व्यक्ति के अपना पद ग्रहण करने तक या अपनी पदावधि के समाप्त होने तक, इनमें से जो सबसे पहले हो, पद धारण करता रहेगा ।

(2) अपील अधिकरण के अध्यक्ष या अपील अधिकरण के किसी सदस्य को उसके पद से, ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे केंद्रीय सरकार इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, की गई किसी जांच के पश्चात्, जिसमें अपील अधिकरण के संबद्ध अध्यक्ष या अपील अधिकरण के किसी सदस्य को उसके विरुद्ध आरोपों के बारे में सूचित कर दिया गया हो और ऐसे आरोपों के संबंध में सुनवाई का उचित अवसर दे दिया गया हो, साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा किए गए आदेश से हटाया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

118. कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का अध्यक्ष के रूप में कार्य करना-(1) अपील अधिकरण के अध्यक्ष की मृत्यु, पदत्याग या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में अपील अधिकरण का ज्येष्ठतम सदस्य, उस तारीख तक अपील अधिकरण के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार नियुक्त नया अध्यक्ष अपना पद ग्रहण करता है ।

(2) जब अपील अधिकरण का अध्यक्ष अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब अपील अधिकरण का ज्येष्ठतम सदस्य, उस तारीख तक अपील अधिकरण के अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को अपील अधिकरण का अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है ।

119. अपील अधिकरण के अधिकारी और अन्य कर्मचारी-(1) केन्द्रीय सरकार अपील अधिकरण को उतने अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जितने वह ठीक समझे ।

(2) अपील अधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी अपने कृत्यों का निर्वहन, यथास्थिति, अपील अधिकरण के अध्यक्ष के साधारण अधीक्षण के अधीन करेंगे ।

(3) अपील अधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।

120. अपील अधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियां-(1) अपील अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) द्वारा अभिकथित प्रक्रिया से आबद्ध नहीं होगा किंतु नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगा और इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपील अधिकरण को अपनी ही प्रक्रिया विनियमित करने की शक्तियां होंगी ।

(2) अपील अधिकरण को, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजनों के लिए, वही शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों की बाबत किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्: -

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसे हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना;

(ग) शपथपत्रों परा साक्ष्य ग्रहण करना;

(घ) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या दस्तावेज अथवा ऐसे अभिलेख या दस्तावेज की प्रति की अध्यपेक्षा करना;  

(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

(च) अपने विनिश्चयों का पुनर्विलोकन करना;

(छ) व्यतिक्रम में किसी अभ्यावेदन को खारिज करना या उसका एकपक्षीय रूप से विनिश्चय करना;

(ज) व्यतिक्रम में किसी अभ्यावेदन को खारिज करने के किसी आदेश या उसके द्वारा एकपक्षीय रूप से पारित किसी आदेश को अपास्त करना; और

(झ) कोई अन्य विषय, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए ।

(3) अपील अधिकरण द्वारा इस अधिनियम के अधीन किया गया कोई आदेश अपील अधिकरण द्वारा सिविल न्यायालय की डिक्री के रूप में निष्पादनीय होगा और इस प्रयोजन के लिए अपील अधिकरण को सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी ।

(4) उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, अपील अधिकरण अपने द्वारा किए गए किसी आदेश को स्थानीय अधिकारिता रखने वाले किसी ऐसे सिविल न्यायालय को पारेषित कर सकेगा और ऐसा सिविल न्यायालय उस आदेश का इस प्रकार निष्पादन करेगा माने वह उस न्यायालय द्वारा की गई कोई डिक्री हो । 

(5) अपील अधिकरण के समक्ष सभी कार्यवाहियां, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थान्तर्गत न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी और अपील अधिकरण को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 के प्रयोजनार्थ सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।

 [121. अपील अधिकरण की शक्ति-अपील अधिकरण, किसी समुचित आयोग या अन्य हितबद्ध पक्षकार, यदि कोई हो, की सुनवाई के पश्चात्, समय-समय पर, किसी समुचित आयोग को इस अधिनियम के अधीन उसके किन्हीं कृत्यों के अनुपालन के लिए ऐसे आदेश, अनुदेश या निदेश जारी कर सकेगा, जो वह ठीक समझे ।]

122. न्यायपीठों में कारबार का वितरण और मामलों का एक न्यायपीठ से दूसरी न्यायपीठ को अंतरण-(1) जहां न्यायपीठों का गठन किया जाता है वहां अपील अधिकरण का अध्यक्ष, समय-समय पर, अधिसूचना द्वारा, अपील अधिकरण के कार्य के न्यायपीठों में वितरण के बारे में उपबंध कर सकेगा और उन विषयों के लिए भी उपबंध कर सकेगा जिनके बारे में प्रत्येक न्यायपीठ द्वारा कार्यवाही की जा सकेगी ।

(2) किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचना दिए जाने के पश्चात् तथा उनमें से ऐसे पक्षकार की सुनवाई करने के पश्चात् जिसे वह सुने जाने की वांछा करे या ऐसी सूचना के बिना स्वप्रेरणा से, अपील अधिकरण का अध्यक्ष किसी एक न्यायपीठ के समक्ष लंबित किसी मामले को निपटारे के लिए किसी अन्य न्यायपीठ को अन्तरित कर सकेगा ।

123. बहुमत द्वारा विनिश्चय किया जाना-यदि दो सदस्यों से मिलकर बने अपील अधिकरण के किसी न्यायपीठ के सदस्यों की किसी प्रश्न पर राय में भिन्नता है तो वे उस प्रश्न या उन प्रश्नों का कथन करेंगे जिन पर उनका मतभेद है और अपील अधिकरण के अध्यक्ष को निर्देश करेंगे जो या तो उस प्रश्न या उन प्रश्नों की स्वयं सुनवाई करेगा या उस प्रश्न या उन प्रश्नों पर अपील अधिकरण के अन्य सदस्यों में से किसी एक या अधिक सदस्यों द्वारा सुनवाई किए जाने के लिए मामले को निर्देशित करेगा और ऐसे प्रश्न या प्रश्नों का विनिश्चय अपील अधिकरण के उन सदस्यों के बहुमत के अनुसार किया जाएगा जिन्होंने मामले की सुनवाई की है जिनके अन्तर्गत वे सदस्य भी हैं जिन्होंने उसकी प्रथम सुनवाई की थी ।

124. अपीलार्थी का किसी विधि व्यवसायी की सहायता लेने और समुचित आयोग का प्रस्तुतीकरण अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार-(1) इस अधिनियम के अधीन, अपील अधिकरण को अपील करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, अपील अधिकरण के समक्ष अपना मामला उपस्थापित करने के लिए या तो स्वयं उपस्थित हो सकेगा या अपनी पसन्द के किसी विधि व्यवसायी की सहायता ले सकेगा ।

(2) समुचित आयोग एक या अधिक विधि व्यवसायियों को या अपने अधिकारियों में से किसी को उपस्थापक अधिकारियों के रूप में कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और इस प्रकार प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति, यथास्थिति, अपील अधिकरण के समक्ष किसी अपील के संबंध में मामला उपस्थापित कर सकेगा ।

125. उच्चतम न्यायालय को अपील-अपील अधिकरण के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, अपील अधिकरण के विनिश्चय या आदेश की उसे संसूचना प्राप्त होने की तारीख से साठ दिन के भीतर, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 100 में विनिर्दिष्ट किसी एक या अधिक आधारों पर उच्चतम न्यायालय में अपील फाइल कर सकेगा:

परन्तु उच्चतम न्यायालय, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी को उक्त अवधि के भीतर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था तो वह उसे साठ दिन से अनधिक की और अवधि के भीतर अपील का फाइल किया जाना अनुज्ञात कर सकेगा ।

भाग 12

अन्वेषण और प्रवर्तन

126. निर्धारण-(1) यदि किसी स्थान या परिसर के निरीक्षण पर अथवा संयोजित या प्रयुक्त पाए गए उपस्करों, जुगतों, मशीनों, युक्तियों के निरीक्षण पर अथवा किसी व्यक्ति द्वारा अनुरक्षित अभिलेखों के निरीक्षण के पश्चात् निर्धारण अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि वह व्यक्ति विद्युत का अप्राधिकृत उपयोग कर रहा है तो वह अपने सर्वोत्तम निर्णय के अनुसार ऐसे व्यक्ति द्वारा या ऐसे उपयोग से लाभान्वित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संदेय विद्युत प्रभारों का अनंतिम निर्धारण करेगा ।

(2) अनंतिम निर्धारण का आदेश, उस व्यक्ति पर जिसके अधिभोग में या कब्जे में या प्रभाराधीन उक्त स्थान या परिसर है, ऐसी रीति से तामील किया जाएगा जो विहित की जाए ।

 [(3) वह व्यक्ति, जिस पर उपधारा (2) के अधीन आदेश की तामील की गई है, निर्धारण अधिकारी के समक्ष अनंतिम निर्धारण के विरुद्ध आक्षेप, यदि कोई हों, फाइल करने का हकदार होगा, जो उस व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् अनंतिम निर्धारण के ऐसे आदेश की तामील की तारीख से तीस दिन के भीतर ऐसे व्यक्ति द्वारा संदेय विद्युत प्रभारों के निर्धारण का अंतिम आदेश पारित करेगा ।]

(4) ऐसा व्यक्ति जिस पर अनंतिम निर्धारण का आदेश तामील हुआ है, उस निर्धारण को स्वीकार कर सकता है और ऐसे अनंतिम निर्धारण आदेश के उस पर तामील के सात दिन के भीतर अनुज्ञप्तिधारी के पास निर्धारित रकम जमा कर सकता है:

 ।                             ।                              ।                              ।                              ।                              ।                              ।

  [(5) यदि निर्धारण अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि विद्युत का अप्राधिकृत उपयोग हुआ है तो उस पूर्ण अवधि का, जिसके दौरान विद्युत का ऐसा अप्राधिकृत उपयोग हुआ है, निर्धारण किया जाएगा और यदि, उस अवधि को, जिसके दौरान विद्युत का ऐसा अप्राधिकृत उपयोग हुआ है, अभिनिश्चित नहीं किया जा सकता है तो ऐसी अवधि, निरीक्षण की तारीख से ठीक पहले के बारह मास की अवधि तक सीमित होगी ।]

(6) इस धारा के अधीन निर्धारण, उपधारा (5) में विनिर्दिष्ट सेवा के ससंगत प्रवर्ग के लिए लागू टैरिफ दरों के 2[दोगुने] के बराबर किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -

(क) निर्धारण अधिकारी" से, यथास्थिति, राज्य सरकार या बोर्ड या अनुज्ञप्तिधारी का, राज्य सरकार द्वारा इस रूप में पदाभिहित कोई अधिकारी अभिप्रेत है;

(ख) विद्युत का अप्राधिकृत उपयोग" से, -

(i) किन्हीं कृत्रिम साधनों द्वारा; या

(ii) ऐसे साधनों द्वारा, जो संबद्ध व्यक्ति या प्राधिकारी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्राधिकृत नहीं है; या

(iii) छेड़छाड़ किए हुए मीटर के माध्यम से; या

[(iv) उस प्रयोजन से भिन्न प्रयोजन के लिए, जिसके लिए विद्युत का उपयोग प्राधिकृत था; या

(v) उन परिसरों या क्षेत्रों से भिन्न परिसरों या क्षेत्रों के लिए, जिनके लिए विद्युत का प्रदाय प्राधिकृत था,]

विद्युत का उपयोग अभिप्रेत है ।

127. अपील प्राधिकारी को अपील-(1) धारा 126 के अधीन किए गए अंतिम आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उक्त आदेश से तीस दिन के भीतर, ऐसे अपील प्राधिकारी को, जो विहित किया जाए, ऐसे प्ररूप में, ऐसी रीति से सत्यापित और ऐसी फीस के साथ अपील कर सकेगा, जो राज्य आयोग द्वारा विहित की जाए ।

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी निर्धारण आदेश के विरुद्ध कोई अपील, तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक कि [निर्धारित रकम के आधे] के बराबर रकम अनुज्ञप्तिधारी के पास नकद में या बैंक ड्राफ्ट द्वारा जमा न कर दी गई हो और ऐसे निक्षेप का दस्तावेजी साक्ष्य अपील के साथ संलग्न न किया गया हो ।

(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपील प्राधिकारी, पक्षकारों की सुनवाई के पश्चात्, अपील का निपटान करेगा और समुचित आदेश पारित करेगा तथा आदेश की प्रति निर्धारण अधिकारी और अपीलार्थी को भेजेगा ।

(4) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपील प्राधिकारी का उपधारा (3) के अधीन पारित आदेश अंतिम होगा ।

(5) पक्षकारों की सहमति से किए गए अंतिम आदेश के विरुद्ध उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपील प्राधिकारी को कोई अपील नहीं होगी ।

(6) जब कोई व्यक्ति, निर्धारित रकम का संदाय करने में व्यतिक्रम करता है तो वह निर्धारित रकम के अतिरिक्त, निर्धारण आदेश की तारीख से तीस दिन की समाप्ति पर सोलह प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज की रकम का संदाय करने के लिए भी दायी होगा जो प्रत्येक छह मास पर सम्मिश्रित किया जाएगा ।

128. कतिपय विषयों का अन्वेषण-(1) समुचित आयोग, अपना यह समाधान हो जाने पर कि कोई अनुज्ञप्तियधारी, अनुज्ञप्ति की किन्हीं शर्तों का या कोई उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी, इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों या विनियमों के किन्हीं उपबंधों का किसी भी समय अनुपालन करने में असफल रहा है तो वह लिखित आदेश द्वारा आदेश में विनिर्दिष्ट व्यक्ति को    (इस धारा में इसके पश्चात् अन्वेषण प्राधिकारी" के रूप में निर्दिष्ट) किसी उत्पादन कंपनी या अनुज्ञप्तिधारी के मामलों का अन्वेषण करने और ऐसे अन्वेषण प्राधिकारी द्वारा किए गए किसी अन्वेषण पर उस आयोग को रिपोर्ट करने का निदेश दे सकेगा :

परन्तु अन्वेषण प्राधिकारी, जहां आवश्यक हो इस धारा के अधीन किसी अन्वेषण में उसकी सहायता करने के प्रयोजनार्थ किसी लेखापरीक्षक या किसी अन्य व्यक्ति को नियोजित कर सकेगा । 

(2) कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 235 में अंतर्विष्ट किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, अन्वेषण प्राधिकारी, किसी भी समय और समुचित आयोग द्वारा ऐसा करने का निदेश दिए जाने पर, किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी और उसकी लेखा पुस्तकों का अपने एक या अधिक अधिकारियों द्वारा निरीक्षण करवाएगा और, यथास्थिति, अन्वेषण प्राधिकारी, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को ऐसे निरीक्षण की अपनी रिपोर्ट की एक प्रति का प्रदाय करेगा ।

(3) यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी के प्रत्येक प्रबंधक, प्रबंध निदेशक या अन्य अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह उस अन्वेषण प्राधिकारी के समक्ष, जिसे उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण या उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण करने का निदेश दिया गया है, अपनी अभिरक्षा में या शक्ति में की सभी लेखा पुस्तकों, रजिस्टरों और अन्य दस्तावेजों को प्रस्तुत करे और उक्त अन्वेषण प्राधिकारी द्वारा यथापेक्षित अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी के कार्यकलाप से संबंधित किसी विवरण और सूचना को उतने समय के भीतर प्रस्तुत करे जो उक्त अन्वेषण प्राधिकारी निर्दिष्ट करे ।

(4) कोई अन्वेषण प्राधिकारी, जिसे उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण या उपधारा (2) के अधीन निरीक्षण करने का निदेश दिया गया है, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी के किसी प्रबंधक, प्रबंध निदेशक, या अन्य अधिकारी की, उसके कारबार के संबंध में शपथ पर परीक्षा करेगा और तद्नुसार शपथ दिलवाएगा ।

(5) अन्वेषण प्राधिकारी, यदि समुचित आयोग द्वारा उसे निरीक्षण करवाने का निदेश दिया गया हो, और किसी अन्य मामले में भी, समुचित आयोग को, इस धारा के अधीन किए गए निरीक्षण के संबंध में रिपोर्ट करेगा ।

(6) समुचित आयोग, उपधारा (1) या उपधारा (5) के अधीन किसी रिपोर्ट की प्राप्ति पर, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को उक्त रिपोर्ट के संबंध में अभ्यावेदन करने का अवसर देने के पश्चात् जो समुचित आयोग की राय में युक्तियुक्त प्रतीत हो, लिखित आदेश द्वारा-

(क) अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी से, रिपोर्ट से उद्भूत किसी मामले की बाबत ऐसी कार्रवाई करने की अपेक्षा कर सकेगा जो समुचित आयोग ठीक समझे; या

(ख) अनुज्ञप्ति रद्द कर सकेगा; या

(ग) उत्पादन कंपनी को विद्युत के उत्पादन का कारबार बंद करने का निदेश दे सकेगा ।

(7) समुचित आयोग, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को युक्तियुक्त सूचना देने के पश्चात् उपधारा (5) के अधीन अन्वेषण प्राधिकारी द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट या उसके किसी अंश को जो उसे आवश्यक प्रतीत हो प्रकाशित कर सकेगा ।

(8) समुचित आयोग, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा उनकी पुस्तकों में अनुरक्षित की जाने वाली न्यूनतम सूचना, वह रीति जिसमें ऐसी सूचना अनुरक्षित की जाएगी, इस संबंध में अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा अपनाए जाने वाली जांच और अन्य सत्यापन तथा उससे आनुषंगिक ऐसे सभी विषय जो उसकी राय में अन्वेषण प्राधिकारी को इस धारा के अधीन अपने कृत्यों के समाधानप्रद रूप में निर्वहन में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हो विनिर्दिष्ट कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनार्थ, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी" पद में भारत में निगमित किसी अनुज्ञप्तिधारी की दशा में, -

(क) अनन्य रूप से भारत से बाहर विद्युत के उत्पादन या पारेषण या वितरण या व्यापार का कारबार करने के प्रयोजनार्थ विरचित उसकी सभी समनुषंगियां; और

(ख) उसकी सभी शाखाएं, चाहे वे भारत में स्थित हों या भारत से बाहर, आती हैं ।

(9) इस धारा के अधीन किए गए अन्वेषण और उसके अनुषंगी सभी व्ययों की, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा पूर्ति की जाएगी और उन्हें अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा देय ऋणों पर पूर्विकता दी जाएगी और वे भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूलनीय होंगे ।

129. अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आदेश-(1) जहां समुचित आयोग का, अपने कब्जे में की सामग्री के आधार पर, यह समाधान हो जाता है कि अनुज्ञप्तिधारी, अपनी अनुज्ञप्ति में वर्णित किसी शर्त या छूट देने के लिए शर्तों का उल्लंघन कर रहा है या ऐसा किए जाने की संभावना है अथवा अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों का उल्लंघन कर रहा/रही है या ऐसा किए जाने की संभावना है तो वह आदेश द्वारा ऐसे निदेश देगा, जो उस शर्त या उपबंध का अनुपालन सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ आवश्यक हो ।

(2) समुचित आयोग, उपधारा (1) के अधीन निदेश देते समय, उस सीमा का सम्यक् ध्यान रखेगा जिस तक ऐसे उल्लंघन के कारण किसी व्यक्ति को हानि या नुकसान होने की संभावना है ।

130. समुचित आयोग द्वारा निदेश जारी किए जाने के लिए प्रक्रिया-समुचित आयोग, धारा 129 के अधीन कोई निदेश जारी करने से पूर्व-

(क) संबद्ध अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी को विनिर्दिष्ट की जाने वाली रीति से सूचना की तामील करेगा;

(ख) उन व्यक्तियों, जो उससे प्रभावित हों या जिनके प्रभावित होने की संभावना हो, का ध्यान उन विषयों की ओर आकर्षित करने के प्रयोजनार्थ विनिर्दिष्ट की जाने वाली रीति से सूचना प्रकाशित करेगा;    

(ग) संबद्ध अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी और ऐसे व्यक्तियों से, जो उससे प्रभावित हैं या जिनके प्रभावित होने की संभावना है, प्राप्त सुझावों और आक्षेपों पर विचार करेगा ।

भाग 13

बोर्ड का पुनर्गठन

131. बोर्ड की संपत्ति का राज्य सरकार में निहित होना-(1) उस तारीख से जिसको इस अधिनियम के उद्देश्यों और प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई अंतरण स्कीम प्रकाशित की जाती है या ऐसी और तारीख जो राज्य सरकार द्वारा नियत की जाए (जिसे इस भाग में इसके पश्चात् प्रभावी तारीख के रूप में निर्दिष्ट किया गया है), कोई संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्व जो प्रभावी तारीख से ठीक पूर्व राज्य विद्युत बोर्ड, (जिसे इसमें इसके पश्चात् बोर्ड कहा गया है) के थे राज्य सरकार और बोर्ड के बीच करार पाए जाने वाले निबंधनों पर राज्य सरकार में निहित होंगे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार में निहित कोई संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्व राज्य सरकार द्वारा, सरकारी कंपनी या कंपनी या कंपनियों में, इस प्रकार प्रकाशित अंतरण स्कीम के अनुसार, राज्य सरकार की अन्य संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्वों के साथ जो ऐसी स्कीम में अनुबंधित किए जाएं, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो राज्य सरकार और ऐसी कंपनी या कंपनियां जो, यथास्थिति, राज्य पारेषण उपयोगिता या उत्पादक कंपनी या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी है, के बीच करार पाई जाएं, पुनः निहित की जाएंगी :

परंतु इसके अधीन अंतरित किन्हीं आस्तियों का अंतरण मूल्य, जहां तक हो सके, ऐसी आस्तियों की राजस्व उपयोगिता के आधार पर ऐसे निबंधनों और शर्तों पर अवधारित किया जाएगा जो राज्य सरकार और, यथास्थिति, राज्य पारेषण उपयोगिता या उत्पादक कंपनी या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी के बीच करार पाई जाएं ।

(3) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, जहां-

(क) अंतरण स्कीम में किसी ऐसी संपत्ति या ऐसे अधिकारों का किसी व्यक्ति या उपक्रम को अंतरण अंतर्वलित है, जो राज्य सरकार के पूर्ण स्वामित्व में नहीं हैं, वहां स्कीम ऐसे अंतरण को अंतरिती द्वारा राज्य सरकार को संदत्त किए जाने वाले उचित मूल्य के लिए ही प्रभावी करेगी;

(ख) किसी प्रकार का संव्यवहार, अंतरण स्कीम के अनुसरण में किया जाता है वहां तीसरे पक्षकारों सहित सभी व्यक्तियों पर आबद्धकर होगी, भले ही ऐसे व्यक्तियों या तीसरे पक्षकारों ने उस पर अपनी सहमति न दी हो ।

(4) राज्य सरकार, उपधारा (2) में निर्दिष्ट ऐसी सरकारी कंपनी या कंपनी या कंपनियां जो राज्य पारेषण उपयोगिता या उत्पादक कंपनी या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी है, (जिसे इसमें इसके पश्चात् अंतरक कहा गया है) से परामर्श करने के पश्चात् ऐसे अंतरक में, ऐसे किसी अंतरिकी में, जो कोई उत्पादन कंपनी या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी है, ऐसी संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकार और दायित्व के, जो इस धारा के अधीन अंतरक में निहित हैं, अंतरण के लिए एक अंतरण स्कीम बनाने और ऐसी स्कीम को इस अधिनियम के अधीन कानूनी अंतरण स्कीम के रूप में प्रकाशित करने की अपेक्षा कर सकेगी ।

(5) इस धारा के अधीन किसी अंतरण स्कीम में, -

(क) समनुषंगियों, संयुक्त उद्यम कंपनियों के गठन या उनके विभाजन, समामेलन, विलयन, पुनर्गठन या ठहरावों के लिए उपबंध हो सकेंगे जो पारिणामिक इकाई की लाभदायकता और व्यवहार्यता का संवर्धन करेंगे, आर्थिक दक्षता सुनिश्चित करेंगे, प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करेंगे और उपभोक्ता के हितों का संरक्षण करेंगे; 

(ख) संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकारों और दायित्वों को परिभाषित किया जा सकेगा जो-

(i) प्रश्नगत संपत्ति, अधिकारों और दायित्वों को विनिर्दिष्ट करके या उनका वर्णन करके;

(ii) सभी संपत्ति, संपत्ति में हित, अधिकारों और दायित्वों के प्रति निर्देश से जो अंतरक के उपक्रम के वर्णित भाग में समाविष्ट हैं; या 

(iii) भागतः एक रूप से और भागतः दूसरे रूप से, आबंटित किए जाएंगे;

(ग) यह उपबंध किया जा सकेगा कि स्कीम में अनुबंधित या वर्णित कोई अधिकार या दायित्व अंतरक या अंतरिती द्वारा या उसके विरुद्ध प्रवर्तनीय होंगे;

(घ) अंतरक पर, किसी पश्चात्वर्ती अंतरिती के साथ जो स्कीम में अनुबंधित किया जाए, ऐसे लिखित करार करने या उसके पक्ष में ऐसी अन्य लिखतें निष्पादित करने का दायित्व अधिरोपित किया जा सकेगा;

(ङ) अंतरिती के कृत्यों और कर्तव्यों का उल्लेख किया जा सकेगा;

(च) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक उपबंध किए जा सकेंगे जो अंतरक उचित समझे, जिसके अंतर्गत आदेश के प्रभावी होने के बारे में उपबंध भी है; और

(छ) यह उपबंध किया जा सकेगा कि अंतरण नियत अवधि तक अनंतिम होगा ।

(6) बोर्ड द्वारा, बोर्ड के साथ या बोर्ड के लिए या राज्य पारेषण उपयोगिता या उत्पादक कंपनी या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी या वितरण अनुज्ञप्तिधारी द्वारा, इसके साथ या इनके लिए उपगत सभी ऋण और बाध्यताएं, की गई सभी संविदाएं, और निपटाए जाने वाले सभी विषय या बातें, अंतरण स्कीम के प्रभावी होने से पूर्व, सुसंगत अंतरण स्कीम में विनिर्दिष्ट सीमा तक, बोर्ड द्वारा या बोर्ड के साथ अथवा राज्य सरकार या अंतरिती के लिए उपगत किए गए, या की गई समझी जाएंगी और, यथास्थिति, बोर्ड या अंतरक द्वारा या उनके विरुद्ध संस्थित सभी वाद या अन्य विधिक कार्यवाहियां, यथास्थिति, राज्य सरकार या संबद्ध अंतरिती द्वारा या उसके विरुद्ध जारी रह सकेंगी या संस्थित की जा सकेंगी ।

(7) बोर्ड को, प्रभावी तारीख को और उसके पश्चात् किए गए अंतरणों के संबंध में कृत्य और कर्तव्य नहीं सौंपे जाएंगे और वह उनका निष्पादन नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस भाग के प्रयोजनों के लिए, -

(क) सरकारी कंपनी" से कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन विरचित और रजिस्ट्रीकृत सरकारी कंपनी अभिप्रेत है;

(ख) कंपनी" से इस भाग के अधीन स्कीम के अनुसार उत्पादन या पारेषण या वितरण करने के लिए कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन विरचित और रजिस्ट्रीकृत कोई कंपनी अभिप्रेत है ।

132. बोर्ड, आदि के विक्रय या अंतरण के आगमों का उपयोग-उस दशा में जिसमें समुचित सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन कोई बोर्ड या कोई उपयोगिता किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसी रीति में बेचा जाता है या अंतरित किया जाता है जो समुचित सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन नहीं है, तो ऐसे विक्रय या अंतरण के आगमों का, अन्य सभी शोध्यों से पूर्विकता में, निम्नलिखित क्रम में उपयोग किया जाएगा, अर्थात्: -

(क) ऐसे बोर्ड या उपयोगिता के अधिकारियों और कर्मचारियों, जिन पर पूर्वोक्त विक्रय या अंतरण से प्रभाव     पड़ा है, के शोध्य (जिसमें शोध्य सेवानिवृत्ति फायदे भी हैं); और

(ख) अंतरक के ऋण या अन्य दायित्वों को चुकाना जैसा कि विद्यमान उधार प्रसंविदाओं द्वारा अपेक्षित है ।

133. अधिकारियों और कर्मचारियों से संबंधित उपबंध-(1) राज्य सरकार, अंतरण स्कीम द्वारा, धारा 131 में उपबंधित के अनुसार ऐसे अंतरिती में संपत्ति, अधिकारों और दायित्वों के निहित हो जाने पर, अधिकारियों और कर्मचारियों के, अन्तरिती को अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगी ।

(2) अंतरण स्कीम के अधीन ऐसे अंतरण पर, कार्मिक, अंतरिती के अधीन ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो अंतरण स्कीम के अनुसार अवधारित किए जाएं, पद या सेवा धारण करेंगे:

परंतु अंतरण पर ऐसे निबंधन और शर्तें, किसी भी रूप में उन शर्तों से कम लाभकारी नहीं होंगे जो उनको तब लागू होते यदि अंतरण स्कीम के अधीन अंतरक नहीं होता:

परंतु यह और कि उक्त अंतरण नियत अवधि के लिए अनंतिम हो सकता है ।

स्पष्टीकरण-इस धारा और अंतरण स्कीम के प्रयोजनों के लिए, अधिकारियों और कर्मचारियों" पद से ऐसे सभी अधिकारी और कर्मचारी अभिप्रेत हैं जो स्कीम में विनिर्दिष्ट तारीख को, यथास्थिति, बोर्ड या अंतरक के अधिकारी और कर्मचारी हैं ।

134. अंतरण पर प्रतिपूर्ति या नुकसानी का संदाय-औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी और इस अधिनियम में किए गए उपबंधों के सिवाय, धारा 133 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के नियोजन का अंतरण ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को इस अधिनियम या किसी अन्य केन्द्रीय या राज्य विधि के अधीन, अंतरण स्कीम में उपबंधित के सिवाय, किसी प्रतिपर्ति या नुकसानी का हकदार नहीं बनाएगा ।

भाग 14

अपराध और शास्तियां

135. बिजली की चोरी- [(1) जो कोई बेइमानी से, -

(क) यथास्थिति, किसी अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता की शिरोपरि, भूमिगत या जल के अंदर की लाइनों या केबिलों या सर्विस तारों या सर्विस सुविधाओं से कोई टैप करेगा, कनेक्शन करेगा या करवाएगा; या

(ख) मीटर से छेड़छाड़ करेगा, बिगाड़े गए मीटर, धारा प्रत्यावर्ती ट्रांसफार्मर, लूप कनेक्शन या किसी अन्य युक्ति या पद्धति को संस्थापित करेगा या उसका उपयोग करेगा, जिससे विद्युत धारा के ठीक-ठीक या उचित रजिस्ट्रीकरण, अंशांकन या मापने में बाधा पड़ती है या उसका किसी रीति से अन्यथा परिणाम निकलता है, जिससे विद्युत की चोरी होती है या विद्युत बर्बाद होती है; या

(ग) किसी विद्युत मीटर, साधित्र, उपस्कर या तार को नुकसान पहुंचाएगा या उसे नष्ट करेगा अथवा उनमें से किसी को इस प्रकार नुकसान पहुंचवाएगा या नाश करवाएगा या होने देगा, जिससे कि विद्युत के उचित या ठीक-ठीक मापने में बाधा पड़ती है; या

(घ) बिगाड़े गए मीटर के माध्यम से विद्युत का उपयोग करेगा; या

(ङ) उन प्रयोजनों से, जिनके लिए विद्युत का उपयोग प्राधिकृत किया गया था, भिन्न किसी अन्य प्रयोजन के लिए विद्युत का उपयोग करेगा,

जिससे कि विद्युत खिंचती है या उसका उपभोग होता है या उपयोग होता है तो वह, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडनीय होगा:

परंतु जहां खींचा गया, उपभोग किया गया, उपयोग किया गया विद्युत भार या खींचे जाने, उपभोग किए जाने, उपयोग किए जाने के लिए, किए गए प्रयास से विद्युत भार-

(i) 10 किलोवाट से अधिक नहीं होता है, वहां प्रथम दोषसिद्धि पर अधिरोपित जुर्माना, विद्युत की ऐसी चोरी के कारण वित्तीय अभिलाभ के तीन गुना से कम नहीं होगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, अधिरोपित जुर्माना, विद्युत की ऐसी चोरी के कारण वित्तीय अभिलाभ के छह गुना से कम नहीं होगा;

(ii) 10 किलोवाट से अधिक नहीं होता है, वहां प्रथम दोषसिद्धि पर अधिरोपित जुर्माना, विद्युत की ऐसी चोरी के कारण वित्तीय अभिलाभ के तीन गुना से कम नहीं होगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, दंडादेश ऐसे, कारावास का, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं हो सकेगी, किन्तु जो पांच वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी और जुर्माने का होगा, जो विद्युत की ऐसी चोरी के कारण वित्तीय लाभ के छह गुना से कम नहीं होगा: 

परन्तु यह और कि किसी व्यक्ति की द्वितीय और पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, जहां 10 किलोवाट से अधिक का भार, खींचा, उपभोग या उपयोग किया गया है या खींचने का या उपभोग का या उपयोग का प्रयत्न किया गया है, वहां ऐसा व्यक्ति, ऐसी अवधि के लिए, जो तीन मास से कम नहीं होगी, किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, विद्युत के किसी प्रदाय को प्राप्त करने से भी विवर्जित किया जाएगा और वह किसी अन्य स्रोत या उत्पादन केंद्र से उस अवधि के लिए विद्युत प्रदाय प्राप्त करने से भी विवर्जित होगा :

परंतु यह भी कि यदि यह साबित हो जाता है कि उपभोक्ता के पास ऐसे कृत्रिम साधन या साधन, यथास्थिति, बोर्ड या अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता द्वारा प्राधिकृत न किए गए साधन विद्युत के खींचने, उपभोग या उपयोग के लिए विद्यमान हैं तो जब तक प्रतिकूल साबित न हो जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि, विद्युत का खींचना, उपभोग या उपयोग ऐसे उपभोक्ता द्वारा बेईमानीपूर्वक किया गया है ।

(1क) इस अधिनियम के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता, विद्युत की ऐसी चोरी के पता चलने पर विद्युत के प्रदाय को तुरंत रोक सकेगा:

परंतु समुचित आयोग द्वारा, इस प्रयोजन के लिए यथा प्राधिकृत, अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता का केवल ऐसा अधिकारी या इस प्रकार प्राधिकृत पंक्ति से उच्चतर पंक्ति का, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता का कोई अन्य प्राधिकारी ही विद्युत के प्रदाय की लाइन को काटेगा:

परंतु यह और कि, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता का ऐसा अधिकारी, ऐसे काटे जाने के समय से, चौबीस घंटे के भीतर अधिकारिता रखने वाले पुलिस थाने में ऐसे अपराध को किए जाने के संबंध में लिखित रूप में एक शिकायत दाखिल करेगा:

परंतु यह भी कि, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार निर्धारित रकम या विद्युत प्रभारों को जमा करने या उसका संदाय करने पर, इस खंड के दूसरे परंतुक में यथा निर्दिष्ट शिकायत को दाखिल करने की बाध्यता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे जमा या संदाय के अड़तालीस घंटे के भीतर विद्युत की प्रदाय लाइन को प्रत्यावर्तित करेगा ।]

(2) राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त [यथास्थिति, प्राधिकृत अनुज्ञप्तिधारी या प्रदायकर्ता का कोई अधिकारी-]

(क) ऐसे किसी स्थान या परिसर में, जिसमें उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि विद्युत का अप्राधिकृत उपयोग [किया गया है, किया जा रहा है] प्रवेश कर सकेगा, उसका निरीक्षण कर सकेगा, तोड़कर खोल सकेगा, या तलाशी ले सकेगा; या

(ख) ऐसी सभी युक्तियों, यंत्रों, तारों और किसी अन्य सुकारक या वस्तु की जो विद्युत के अप्राधिकृत उपयोग के लिए प्रयोग 1[की गई है, की जा रही है] तलाशी ले सकेगा, उसका अभिग्रहण कर सकेगा और उसे हटा सकेगा;

(ग) ऐसी लेखा पुस्तकों या दस्तावेजों की परीक्षा कर सकेगा या उन्हें अभिगृहीत कर सकेगा जो उसकी राय में उपधारा (1) के अधीन अपराध की बाबत किन्हीं कार्यवाहियों के लिए उपयोगी या सुसंगत होगी और ऐसे व्यक्ति को जिसकी अभिरक्षा से ऐसी लेखा पुस्तकें या दस्तावेज अभिगृहीत किए गए हैं, अपनी उपस्थिति में उनकी प्रतियां बनाने या उनसे उद्धरण लेने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।

(3) तलाशी के स्थान का अधिभोगी या उसकी ओर से कोई व्यक्ति, तलाशी के दौरान उपस्थित रहेगा और ऐसी तलाशी के अनुक्रम में अभिगृहीत सभी वस्तुओं की एक सूची तैयार की जाएगी और ऐसे अधिभोगी या व्यक्ति को परिदत्त की जाएगी जो सूची पर हस्ताक्षर करेगा:

परन्तु यह कि किन्हीं घरेलू स्थानों या घरेलू परिसरों का निरीक्षण, तलाशी और अभिग्रहण सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसे परिसर पर कोई अधिभोगी वयस्क पुरुष उपस्थित न हो ।

(4) तलाशी और अभिग्रहण से संबंधित दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध यथासंभव, इस अधिनियम के अधीन तलाशी और अभिग्रहण को लागू होंगे ।

136. विद्युत लाइनों और सामग्री की चोरी-(1) जो कोई बेईमानी से-

(क) किसी टावर, पोल, किसी अन्य संस्थापन या संस्थापन के स्थान या किसी अन्य स्थान या स्थल, जहां वह अधिकारपूर्वक या विधिपूर्वक भंडारित किया गया, जमा किया गया, रखा गया, स्टाक किया गया, स्थित या अवस्थित हो, जिसके अंतर्गत परिवहन के दौरान अवस्थित करना भी है, यथास्थिति, अनुज्ञप्तिधारी या स्वामी की सहमति के बिना कोई इलेक्ट्रिक लाइन, सामग्री या मीटर काटेगा या हटाएगा, या ले जाएगा या अन्तरित करेगा चाहे वह कार्य लाभ या अभिलाभ के लिए किया गया हो या नहीं; या 

(ख) किसी विद्युत लाइन, सामग्री या मीटर को स्वामी की सहमति के बिना भंडारित करेगा, कब्जे में रखेगा या अन्यथा अपने परिसर में, अभिरक्षा में या नियंत्रण में रखेगा, चाहे वह कार्य लाभ या अभिलाभ के लिए किया गया हो या नहीं; या

(ग) किसी विद्युत लाइन, सामग्री या मीटर को स्वामी की सहमति के बिना लादेगा, ले जाएगा, या एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाएगा, चाहे वह कार्य लाभ या अभिलाभ के लिए किया गया हो या नहीं,

विद्युत लाइनों और सामग्री की चोरी का अपराध किया गया कहा जाएगा और वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति जिसे, उपधारा (1) के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है, उस उपधारा के अधीन दंडनीय किसी अपराध का पुनःदोषी है, तो वह दूसरे और पश्चात्वर्ती अपराध के लिए, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने का भी, जो दस हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दायी होगा ।

137. चुराई गई संपत्ति प्राप्त करने के लिए दंड-जो कोई, किसी चुराई गई विद्युत लाइन या सामग्री को यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुराई गई संपत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

138. अनुज्ञप्तिधारी के मीटरों या संकर्मों से छेड़छाड़-(1) जो कोई-

(क) किसी मीटर, सूचक या साधित्र को किसी ऐसी विद्युत लाइन से जिसके माध्यम से अनुज्ञप्तिधारी द्वारा विद्युत प्रदाय की जाती है, अप्राधिकृत रूप से संयोजित करेगा या उसे ऐसी विद्युत लाइन से वियोजित करेगा; या 

(ख) किसी मीटर, सूचक या साधित्र को, किसी ऐसी विद्युत लाइन या अन्य संकर्म से, जो किसी अनुज्ञप्तिधारी की संपत्ति है, उस समय अप्राधिकृत रूप से पुनः संयोजित करेगा जब उक्त विद्युत लाइन या अन्य संकर्म काट दिया गया है या वियोजित कर दिया गया है; या

(ग) किन्हीं संकर्मों को अनुज्ञप्तिधारी के किन्हीं अन्य संकर्मों के साथ संपर्क के प्रयोजन के लिए लगाएगा या लगवाएगा या संयोजित करेगा;

(घ) अनुज्ञप्तिधारी के किसी मीटर, सूचक या साधित्र को विद्वेषपूर्वक हानि पहुंचाएगा या ऐसे किसी मीटर, सूचक या साधित्र की अनुक्रमणिका में जानबूझकर या कपटपूर्वक परिवर्तन, सूचक या साधित्र सूचकांक को परिवर्तित करेगा या किसी ऐसे मीटर, सूचक या साधित्र को सम्यक्तः रजिस्टर करने से निवारित करेगा,

वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्मान से जो दस हजार रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से और जारी रहने वाले अपराध की दशा में दैनिक जुर्माने से, जो पाचं सौ रुपए तक हो सकेगा, दंडनीय होगा और यदि यह साबित कर दिया जाता है कि ऐसा संयोजन जैसा खंड (क) में निर्दिष्ट है या ऐसा पुनः संयोजन जैसा खंड (ख) में निर्दिष्ट है या ऐसा संपर्क जैसा खंड (ग) में निर्दिष्ट है करने के लिए या ऐसा परिवर्तन या निवारण करने के लिए जैसा खंड (घ) में निर्दिष्ट है साधन विद्यमान है और वह मीटर, सूचक या साधित्र, उपभोक्ता की अभिरक्षा में या उसके नियंत्रण के अधीन है, चाहे वह उसकी संपत्ति हो या न हो, तो जब तक कि प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता यह उपधारणा की जाएगी कि, यथास्थिति, ऐसा संयोजन, पुनः संयोजन, संपर्क, परिवर्तन, निवारण या अनुचित उपयोग ऐसे उपभोक्ता द्वारा जानते हुए और जानबूझकर किया गया है ।

 [139. संकर्मों को उपेक्षापूर्वक तोड़ना या नुकसान पहुंचाना-जो कोई विद्युत के प्रदाय से संयोजित किसी सामग्री को उपेक्षापूर्वक तोड़ेगा, क्षति पहुंचाएगा, नीचे फेंकेगा या नुकसान करेगा वह जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

140. संकर्मों को साशय क्षति पहुंचाने के लिए शास्ति-जो कोई विद्युत के प्रदाय को काटने के आशय से किसी विद्युत प्रदाय लाइन या संकर्मों को काटेगा या क्षति पहुंचाएगा या काटने या क्षति पहुंचाने का प्रयत्न करेगा वह जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।]

141. सार्वजनिक लैम्पों का बुझाना-जो कोई किसी सार्वजनिक लैंप को विद्वेषपूर्वक बुझाएगा, वह जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

142. समुचित आयोग द्वारा दिए गए निदेशों के अननुपालन के लिए दंड-यदि किसी व्यक्ति द्वारा समुचित आयोग के समक्ष कोई शिकायत फाइल की जाती है या यदि उस आयोग का समाधान हो जाता है कि किसी व्यक्ति ने इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के किन्हीं उपबंधों का या आयोग द्वारा जारी किए गए किन्हीं निदेशों का उल्लंघन किया है, तो समुचित आयोग ऐसे व्यक्ति को, मामले में सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, किसी अन्य शास्ति पर जिसके लिए वह इस अधिनियम के अधीन दायी होगा, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, लिखित आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि ऐसा व्यक्ति शास्ति के रूप में प्रत्येक उल्लंघन के लिए ऐसी रकम का संदाय करेगा जो एक लाख रुपए से अधिक नहीं होगी और लगातार असफलता की दशा में ऐसी अतिरिक्त शास्ति का, प्रत्येक ऐसे दिन के लिए, जिसके दौरान ऐसे निदेश के प्रथम उल्लंघन के पश्चात् असफलता बनी रहती है, संदाय करेगा जो छह हजार रुपए तक हो सकेगी ।

143. न्यायनिर्णयन की शक्ति-(1) इस अधिनियम के अधीन न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए, समुचित आयोग, अपने सदस्यों में से किसी को, ऐसी रीति में जांच करने के लिए जैसी समुचित सरकार द्वारा, संबंधित किसी व्यक्ति को, कोई शास्ति अधिरोपित करने के प्रयोजन के लिए सुनवाई का अवसर दिए जाने के पश्चात् विहित की जाए, न्यायनिर्णायक अधिकारी नियुक्त करेगा ।

(2) जांच करते समय न्यायनिर्णायक अधिकारी को ऐसे किसी व्यक्ति को, जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हैं, समन करने और साक्ष्य देने के लिए उसको हाजिर कराने या कोई ऐसी दस्तावेज प्रस्तुत कराने, जो न्यायनिर्णायक अधिकारी की राय में जांच की विषय-वस्तु के लिए उपयोगी या उससे सुसंगत हो सकती है, की शक्ति होगी और यदि ऐसी जांच पर उसका यह समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति, धारा 29 या धारा 33 या धारा 43 के उपबंधों का पालन करने में असफल रहा है तो वह ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा, जो वह उन धाराओं में से किसी के उपबंधों के अनुसार उचित समझे । 

144. न्यायनिर्णायक अधिकारी द्वारा ध्यान में रखी जाने वाली बातें-धारा 29 या धारा 33 या धारा 43 के अधीन शास्ति की मात्रा का न्यायनिर्णयन करते समय, न्यायनिर्णायक अधिकारी, निम्नलिखित कारकों का सम्यक् रूप से ध्यान रखेगा, अर्थात्: -

(क) व्यतिक्रम के परिणामस्वरूप प्राप्त अननुपातिक अभिलाभ या अनुचित फायदों की मात्रा जहां उसकी गणना की जा सकती है;

(ख) व्यतिक्रम का बार-बार किया जाना ।

145. सिविल न्यायालय को अधिकारिता का होना-किसी सिविल न्यायालय को ऐसे किसी विषय की बाबत, जिसका अवधारण करने के लिए धारा 126 में निर्दिष्ट निर्धारण अधिकारी या धारा 127 में निर्दिष्ट अपील प्राधिकारी या इस अधिनियम के अधीन नियुक्त न्यायनिर्णायक अधिकारी को इस अधिनियम द्वारा या के अधीन सशक्त किया गया है, कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्यवाही की बाबत किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा दिया गया कोई व्यादेश अनुदत्त नहीं किया जाएगा ।

146. आदेशों या निदेशों के अननुपालन के लिए दंड-जो कोई इस अधिनियम के अधीन दिए गए किसी आदेश या निदेश का ऐसे समय के भीतर जो उक्त आदेश या निदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, अनुपालन करने में असफल रहेगा या इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या विनियमों के उपबंधों में से किसी का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन करने का प्रयत्न करेगा या दुष्प्रेरण करेगा, वह प्रत्येक अपराध की बाबत ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा और निरंतर असफल रहने की दशा में ऐसे अतिरिक्त जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान ऐसी असफलता ऐसे अपराध के प्रथम सिद्धदोष होने के पश्चात् जारी रहती है, पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा :

 [परंतु यह कि इस धारा की कोई बात धारा 121 के अधीन जारी किए गए आदेशों, अनुदेशों या निदेशों को लागू नहीं होगी ।]

147. शास्तियों का अन्य दायित्वों को प्रभावित करना-इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित शास्तियां, प्रतिकर के संदाय या किसी अनुज्ञप्तिधारी की दशा में उसकी अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण के संबंध में किसी दायित्व के, जो अपराधी ने उपगत किया हो, अतिरिक्त होंगी न कि उसके अल्पीकरण में ।

148. शास्ति जहां संकर्म सरकार का है-इस अधिनियम के उपबंध जहां तक लागू हों, उस दशा में भी लागू समझे जाएंगे जिसमें तद्धीन दंडनीय कार्य समुचित सरकार द्वारा प्रदाय की गई विद्युत या उसके संकर्मों के संबंध में किए जाते हैं ।

149. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है वहां ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक था और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे:

परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सम्मति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी माना जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजन के लिए, -

(क) कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कोई फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; और 

(ख) फर्म के संबंध में निदेशक" से उस फर्म का कोई भागीदार अभिप्रेत है ।

150. दुष्प्रेरण-(1) जो कोई, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा वह भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में किसी बात के होते हुए भी, उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडित किया जाएगा ।

(2) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसी कोई शास्ति या जुर्माना, जो अधिरोपित किया जा सकेगा या ऐसी अभियोजन कार्यवाही, जो आरंभ की जा सकेगी, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि बोर्ड का कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी या अनुज्ञप्तिधारी कोई करार करेगा या किसी करार के करने में मौन सम्मति देगा, ऐसा कोई कार्य या बात करने से प्रविरत रहेगा, अनुज्ञा देगा, छिपाएगा या मौन सहमति देगा जिसके द्वारा विद्युत की कोई चोरी की जाती है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दंडनीय होगा ।

 [(3) धारा 135 की उपधारा (1), धारा 136 की उपधारा (1), धारा 137 और धारा 138 में किसी बात के होते हुए भी,  किसी ऐसे व्यक्ति को, जो विद्युत ठेकेदार, पर्यवेक्षक या कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए, धारा 135 की उपधारा (1), धारा 136 की उपधारा (1), धारा 137 या धारा 138 के अधीन दंडनीय किसी अपराध को करने का दुष्प्रेरण करेगा, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए या बनाए गए समझे गए नियमों के अधीन जारी की गई अनुज्ञप्ति या सक्षमता प्रमाणपत्र या अनुज्ञापत्र या ऐसा अन्य प्राधिकार, ऐसे दुष्प्रेरण के लिए उसकी दोषसिद्धि पर, अनुज्ञापन प्राधिकारी द्वारा रद्द भी किया जा सकेगा :

परंतु ऐसे रद्द किए जाने का कोई आदेश, ऐसे व्यक्ति को सुने जाने का अवसर प्रदान किए बिना, नहीं किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए अनुज्ञापन प्राधिकारी" से ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है, जो तत्समय प्रवृत्त ऐसी अनुज्ञप्ति या सक्षमता प्रमाणपत्र या अनुज्ञापत्र या ऐसा अन्य प्राधिकार जारी या नवीकृत करता है ।]

151. अपराधों का संज्ञान-कोई न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का तब के सिवाय संज्ञान नहीं लेगा जब, यथास्थिति, समुचित सरकार या समुचित आयोग या मुख्य विद्युत निरीक्षक या विद्युत निरीक्षक या अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी ने इस प्रयोजन के लिए लिखित में परिवाद न किया हो:

 [परंतु न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 173 के अधीन फाइल की गई किसी पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट पर भी, संज्ञान ले सकेगा:

परंतु यह और कि धारा 153 के अधीन गठित कोई विशेष न्यायालय, किसी अभियुक्त को विचारण के लिए उसको सुपुर्द किए बिना, किसी अपराध का संज्ञान लेने के लिए सक्षम होगा ।]

 [151क. अन्वेषण करने की पुलिस की शक्ति-इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए, पुलिस अधिकारी को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 12 में यथा उपबंधित सभी शक्तियां होंगी ।

151ख. कतिपय अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा 135 से धारा 140 तक या धारा 150 के अधीन दंडनीय कोई अपराध संज्ञेय और अजमानतीय होगा ।]

152. अपराधों का शमन-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, समुचित सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी, किसी उपभोक्ता या व्यक्ति से, जिसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय विद्युत की चोरी का अपराध किया है या जिसके द्वारा किए जाने का समुचित रूप से संदेह है, अपराध के शमन के रूप में नीचे सारणी में यथा विनिर्दिष्ट धनराशि स्वीकार कर सकेगा: -

सारणी

सेवा की प्रकृति

वह दर, जिस पर शमन के लिए धनराशि निम्न विभव (एल.टी.) प्रदाय के लिए प्रति किलोवाट/अश्वशक्ति या उसके भाग और उच्च विभव (एच.टी.) के लिए संविदा की गई मांग के प्रति किलोवाट एम्पीयर (के वी ए) पर संगृहीत की जानी है ।

 

(1)

(2)

1.

औद्योगिक सेवा    

बीस हजार रुपए

2.

वाणिज्यिक सेवा    

दस हजार रुपए

3.

कृषि सेवा

दो हजार रुपए

4.

अन्य सेवाएं

चार हजार रुपए:

परन्तु समुचित सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऊपर सारणी में विनिर्दिष्ट दरों को संशोधित कर सकेगी ।  

(2) उपधारा (1) के अनुसार धनराशि का संदाय कर दिए जाने पर उस अपराध के संबंध में अभिरक्षा में रह रहे व्यक्ति को निर्मुक्त कर दिया जाएगा और ऐसे उपभोक्ता या व्यक्ति के विरुद्ध किसी दांडिक न्यायालय में कोई कार्यवाहियां संस्थित नहीं की जाएंगी या जारी नहीं रखी जाएंगी ।

(3) उपधारा (1) के अनुसार किसी अपराध का शमन करने के लिए समुचित सरकार या इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी द्वारा धनराशि का ग्रहण किया जाना, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 300 के अर्थान्तर्गत दोषमुक्ति मानी जाएगी ।

(4) उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध का शमन, किसी व्यक्ति या उपभोक्ता के लिए एक ही बार अनुज्ञात किया जाएगा ।

भाग 15

विशेष न्यायालय

153. विशेष न्यायालयों का गठन-(1) राज्य सरकार, [धारा 135 से धारा 140 तक और धारा 150ट में निर्दिष्ट अपराधों के शीघ्र विचारण का उपबंध करने के प्रयोजनों के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उतने विशेष न्यायालयों का, जितने ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए आवश्यक हों और जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, गठन कर सकेगी ।

(2) कोई विशेष न्यायालय एकल न्यायाधीश से मिलकर बनेगा, जो उच्च न्यायालय की सहमति से राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(3) कोई व्यक्ति तब तक विशेष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए अर्हित नहीं होगा, जब तक ऐसी नियुक्ति से ठीक पहले वह अपर जिला और सेशन न्यायाधीश न रहा हो ।

(4) जहां विशेष न्यायालय के न्यायाधीश का पद रिक्त है या ऐसा न्यायाधीश ऐसे विशेष न्यायालय की बैठक के सामान्य स्थान से अनुपस्थित है या वह बीमारी या अन्य कारण से अपने कर्तव्यों के निष्पादन के लिए असमर्थ है वहां विशेष न्यायाल का कोई अत्यावश्यक कार्य-

(क) विशेष न्यायालय की अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी न्यायाधीश द्वारा, यदि कोई हो,

(ख) जहां कोई ऐसा अन्य न्यायाधीश उपलब्ध न हो वहां उपधारा (1) के अधीन यथाअधिसूचित विशेष न्यायालय की बैठक के सामान्य स्थान पर अधिकारिता रखने वाले जिला और सेशन न्यायाधीश के निदेश के अनुसार, निपटाया जाएगा ।

154. विशेष न्यायालय की प्रक्रिया और शक्ति-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, धारा 135 से धारा 139 तक के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध केवल ऐसे विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय होगा जिसकी अधिकारिता के भीतर ऐसा अपराध किया गया था ।

(2) जहां किसी जांच या विचारण के अनुक्रम में, किसी न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि [धारा 135 से धारा 140 तक और धारा 150] के अधीन दंडनीय कोई अपराध किसी ऐसे अपराध की बाबत ऐसा मामला है जो ऐसे क्षेत्र में उद्भूत हुआ है जो इस अधिनियम के अधीन गठित किसी विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह ऐसे मामले को ऐसे विशेष न्यायालय तो अंतरित करेगा और तदुपरि ऐसे मामले का इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार ऐसे विशेष न्यायालय द्वारा विचारण और निपटारा किया जाएगा:

परंतु विशेष न्यायालय के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसे किसी साक्ष्य पर, यदि कोई हो, कार्य करे, जो किसी विशेष न्यायालय को मामले के अंतरण के पूर्व अभियुक्त की उपस्थिति में किसी न्यायालय द्वारा अभिलिखित किया गया हो:

परंतु यह और कि यदि ऐसे विशेष न्यायालय की यह राय है कि ऐसे साक्षी का, जिसका साक्ष्य पहले ही अभिलिखित कर लिया गया हो, न्यायहित में और परीक्षण, प्रति परीक्षण और पुनः परीक्षण अपेक्षित है तो वह ऐसे किसी साक्षी को पुनः समन कर सकेगा और ऐसे अतिरिक्त परीक्षण, प्रति परीक्षण या पुनः परीक्षण, यदि कोई है, करने के पश्चात् जैसा वह अनुज्ञात करे, साक्षी को उन्मोचित किया जाएगा ।

(3) विशेष न्यायालय, दंड प्रकिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 260 की उपधारा (1) या धारा 262 में किसी बात के होते हुए भी, 1[धारा 135 से धारा 140 तक और धारा 150ट में निर्दिष्ट अपराध का, उक्त संहिता में विहित प्रक्रिया के अनुसार संक्षिप्त रूप से विचारण कर सकेगा और उक्त संहिता की धारा 263 से धारा 265 तक के उपबंध, जहां तक हो सके, ऐसे विचारण को लागू होंगे:

परन्तु यह कि जहां इस उपधारा के अधीन संक्षिप्त विचारण के अनुक्रम में, विशेष न्यायालय को यह प्रतीत हो कि मामले की प्रकृति ऐसी है कि ऐसे मामले का संक्षिप्त रूप से विचारण अवांछनीय होगा वहां विशेष न्यायालय, किसी ऐसे साक्षी को पुनः बुलाएगा जिसका परीक्षण हो चुका हो और ऐसे अपराध के विचारण के लिए उक्त संहिता के उपबंधों में उपबंधित रीति से मामले की पुनः सुनवाई करने के लिए अग्रसर होगा:

परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि की दशा में, किसी विशेष न्यायालय के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह पांच वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास का दंडादेश पारित करे ।

(4) कोई विशेष न्यायालय, किसी ऐसे अपराध से, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्बद्ध या संसर्गित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति को, साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से, उस व्यक्ति को, इस शर्त पर क्षमादान दे सकता है कि वह अपराध के संबंध में और उसके किए जाने में या दुष्प्रेरक के रूप में संबद्ध प्रत्येक अन्य व्यक्ति के संबंध में, ऐसी सब परिस्थितियों का, जिनकी उसे जानकारी हो, पूर्ण और सत्य प्रकटन कर दे और इस प्रकार किया गया क्षमादान, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 308 के प्रयोजनों के लिए उसकी धारा 307 के अधीन प्रदान किया गया क्षमादान समझा जाएगा ।

(5) [विशेष न्यायालय, किसी उपभोक्ता या किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऊर्जा की चोरी के लिए धन के रूप में सिविल दायित्व का अवधारण करेगा] जो ऐसी रकम से कम नहीं होगा जो ऊर्जा की चोरी के पता लगने की तारीख से पूर्ववर्ती बारह मास की अवधि के लिए या चोरी की सही अवधि के लिए, यदि अवधारित की जाए, इनमें से जो भी कम हो, लागू टैरिफ दर के दुगुना के बराबर होगी और इस प्रकार अवधारित सिविल दायित्व की रकम उसी प्रकार वसूल की जाएगी मानो वह सिविल न्यायालय की डिक्री हो ।

(6) उस दशा में जहां विशेष न्यायालय द्वारा अंतिम रूप से इस प्रकार अवधारित सिविल दायित्व उस रकम से कम है जो उपभोक्ता या व्यक्ति द्वारा निक्षिप्त की गई है वहां उपभोक्ता या व्यक्ति द्वारा, यथास्थिति, बोर्ड या अनुज्ञप्तिधारी या संबंधित व्यक्ति के पास इस प्रकार निक्षिप्त अधिक रकम, यथास्थिति, बोर्ड या अनुज्ञप्तिधारी या संबंधित व्यक्ति द्वारा विशेष न्यायालय के आदेश की संसूचना की तारीख से चौदह दिन के भीतर, ऐसे निक्षेप की तारीख से संदाय की तारीख तक की अवधि के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की उधार देने की वर्तमान मूल दर से ब्याज के साथ वापस की जाएगी ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, सिविल दायित्व से [धारा 135 से धारा 140 तक और धारा 150] में निर्दिष्ट किसी अपराध के करने के कारण, यथास्थिति, बोर्ड या अनुज्ञप्तिधारी या संबंधित व्यक्ति को उपगत हानि या नुकसान अभिप्रेत है ।

155. विशेष न्यायालय को सेशन न्यायालय की शक्तियां होना-इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) जहां तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को लागू होगी और उक्त अधिनियमितियों के उपबंधों के प्रयोजन के लिए विशेष न्यायालय, सेशन न्यायालय समझा जाएगा और उसे सेशन न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी तथा विशेष न्यायालय के समक्ष अभियोजन का संचालन करने वाले व्यक्ति को लोक अभियोजक समझा जाएगा ।

 156. अपील और पुनरीक्षण-उच्च न्यायालय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 29 और अध्याय 30 द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियों का, जहां तक वे लागू हों, उसी प्रकार प्रयोग करेगा मानो उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर विशेष न्यायालय, उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर मामलों का विचारण करने वाला, यथास्थिति, कोई जिला न्यायालय या सेशन न्यायालय हो ।

157. पुनर्विलोकन-विशेष न्यायालय, किसी याचिका पर या अन्यथा और घोर अन्याय का निवारण करने की दृष्टि से, धारा 154 के अधीन पारित अपने निर्णय या आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगा, किन्तु ऐसी कोई पुनर्विलोकन याचिका ऐसे आधार के सिवाय ग्रहण नहीं की जाएगी कि वह ऐसा आदेश था जो तथ्य की त्रुटि, किसी सारवान्, तथ्य की अनभिज्ञता या अभिलेख के देखने से ही त्रुटिपुर्ण होने के आधार पर पारित किया गया था:

परन्तु यह कि विशेष न्यायालय, प्रभावित पक्षकारों की, सुनवाई के बिना किसी पुनर्विलोकन याचिका को अनुज्ञात नहीं करेगा और अपने पूर्वादेश या निर्णय को अपास्त नहीं करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस भाग के प्रयोजनों के लिए, विशेष न्यायालय" से धारा 153 की उपधारा (1) के अधीन गठित विशेष न्यायालय अभिप्रेत है ।

भाग 16

विवाद समाधान

माध्यस्थम्

158. माध्यस्थम्-जहां इस अधिनियम के द्वारा या अधीन कोई मामला माध्यस्थम् द्वारा अवधारित किए जाने के लिए निदिष्ट है वहां वह मामला, उस दशा के सिवाय जिसमें अनुज्ञप्तिधारी की अनुज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से अन्यथा उपबंधित न हो, ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा अवधारित किया जाएगा जिन्हें दोनों में से किसी भी पक्षकार के आवेदन पर समुचित आयोग इस निमित्त नामनिर्दिष्ट करे; किन्तु माध्यस्थम्, सभी अन्य बातों में माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (1996 का 26) के उपबंधों के अध्यधीन होगा ।

भाग 17

अन्य उपबंध

संरक्षा खंड

159. रेल पथों, राजमार्गों, वायुपत्तनों और नहरों, डाकों, घाटों और वंगसारों की संरक्षा- विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, प्रदाय या प्रयोग में लगा कोई भी व्यक्ति, किसी रेल-पथ, राजमार्ग, वायुपत्तनों, ट्रामपथ, नहर या जलमार्ग अथवा किसी डॉक, घाट या वंगसार को जो किसी स्थानीय प्राधिकारी में निहित हो या उसके द्वारा नियंत्रित हो किसी प्रकार की हानि नहीं पंहुचाएगा अथवा किसी रेल-पथ, वायु मार्ग, ट्रामपथ, नहर या जलमार्ग पर यातायात में विघ्न या बाधा नहीं डालेगा ।

160. तार, टेलीफोन और विद्युत संकेत लाइनों की संरक्षा-(1) विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, प्रदाय या प्रयोग करने वाला प्रत्येक व्यक्ति (इसके पश्चात् इस धारा में, जिसे आपरेटर" कहा गया है) अपनी विद्युत लाइनों, वैद्युत संयंत्रों और अन्य संकर्मों को सन्निर्मित करने, बिछाने और लगाने में तथा अपनी प्रणाली के कार्यकरण में सब युक्तियुक्त पूर्वावधानियां बरतेगा जिससे टेलीग्राफ, टेलीफोन या विद्युत संकेतन संचार के प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किसी तार या लाइन के कार्यचालन में अथवा ऐसे तार या लाइन की करेन्ट में चाहे प्रेषण द्वारा या अन्यथा हानिकर प्रभाव न पड़े ।

(2) जहां आपेरटर और टेलीग्राफ प्राधिकारी के बीच इस बारे में कि क्या आपरेटर ने उपधारा (1) का उल्लंघन करते हुए अपनी विद्युत लाइनों, विद्युत संकर्मों या अन्य संकर्मों को सन्निर्मित किया, बिछाया या लगाया है अथवा अपनी प्रणाली चालित की है अथवा इस बारे में किसी तार, लाइन या करेन्ट के कार्यचालन को उससे हानिकर प्रभाव पड़ा है या नहीं, कोई मतभेद या विवाद उत्पन्न हो जाए तो मामला केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा; और केन्द्रीय सरकार उस दशा के सिवाय जिसमें कि उसकी यह राय है कि ऐसी विद्युत लाइनों, संयंत्र या संकर्मों के सन्निर्माण के पश्चात् तार या लाइन, आपरेटर की विद्युत लाइनों, विद्युत संयंत्र या संकर्मों के अयुक्तियुक्त रूप से निकट लगाई गई है, आपरेटर को निदेश दे सकेगी कि वह अपनी प्रणाली में ऐसे परिवर्तन या परिवर्धन करे जैसे इस धारा के उपबंधों के अनुपालन के लिए आवश्यक हों और आपरेटर तद्नुसार ऐसे परिवर्तन या परिवर्धन करेगा :

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र की मरम्मत, नवीकरण या संशोधन को लागू नहीं होगी जब तक कि उस विद्युत लाइन का मार्ग और उसके द्वारा पारेषित विद्युत का परिमाण और स्वरूप परिवर्तित नहीं हो जाता ।

(3) जहां आपरेटर इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन करने में व्यतिक्रम करता है वहां वह उसके कारण हुई किसी हानि या नुकसान के लिए पूरा प्रतिकर देगा और जहां ऐसे प्रतिकर की रकम के बारे में कोई मतभेद या विवाद उत्पन्न होता है वहां मामला माध्यस्थम् द्वारा अवधारित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए कोई तार-लाइन हानिकर रूप में प्रभावित समझी जाएगी यदि ऐसी लाइन के द्वारा टेलीग्राफ, टेलीफोन या विद्युत संकेतन संचार, चाहे प्रेषण से या अन्यथा किसी विद्युत लाइन या विद्युत संकर्म या अन्य कार्य द्वारा अथवा उसके किसी प्रयोग द्वारा प्रतिकूल रूप में बाधित हुआ हो ।

161. दुर्घटनाओं की सूचना और जांच-(1) यदि विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, प्रदाय या प्रयोग के संबंध में अथवा किसी व्यक्ति की विद्युत लाइनों या वैद्युत संयंत्र के किसी भाग में या उसके संबंध में कोई दुर्घटना होती है और उस दुर्घटना के फलस्वरूप मानव या पशु जीवन को हानि अथवा किसी मनुष्य या पशु को कोई क्षति होती है या होनी संभाव्य है तो ऐसा व्यक्ति उस दुर्घटना के होने की और दुर्घटना से वास्तव में हुई किसी ऐसी हानि या क्षति की ऐसे प्ररूप में और इतने समय के अंदर, जो विहित किया जाए, सूचना विद्युत निरीक्षक या पूर्वोक्त किसी व्यक्ति को और ऐसे अन्य प्राधिकारियों को देगा जिन्हें समुचित सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा निदिष्ट करे ।

(2) समुचित सरकार यदि ठीक समझती है तो किसी विद्युत निरीक्षक या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगी कि वह-

(क) लोक क्षेम को प्रभावित करने वाली किसी ऐसी दुर्घटना की, जो विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, प्रदाय या प्रयोग द्वारा या उसके संबंध में हुई हो जांच करे और रिपोर्ट दे, या

(ख) उस रीति और विस्तार की बाबत जिसमें इस अधिनियम के या तद्धीन बनाए गए नियमों या विनियमों या किसी अनुज्ञप्ति के उपबंधों का जहां तक वे उपबंध किसी व्यक्ति के क्षेम को प्रभावित करते हैं, अनुपालन किया गया है, जांच करे और रिपोर्ट दे ।

(3) उपधारा (2) के अधीन जांच करने वाले प्रत्येक विद्युत निरीक्षक या अन्य व्यक्ति को साक्षियों को हाजिर कराने और दस्तावेजों तथा भौतिक पदार्थों को पेश कराने के प्रयोजन के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायालय की सब शक्तियां प्राप्त होंगी और विद्युत निरीक्षक द्वारा अपेक्षित प्रत्येक व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 176 के अर्थान्तर्गत वैसा करने के लिए विधिपूर्णतया आबद्ध समझा जाएगा ।

162. मुख्य विद्युत निरीक्षक और विद्युत निरीक्षक की नियुक्ति-(1) समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, सम्यक्तः अर्हित व्यक्तियों को मुख्य विद्युत निरीक्षक या विद्युत निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी और इस प्रकार नियुक्त प्रत्येक विद्युत निरीक्षक, इस अधिनियम के अधीन ऐसे क्षेत्रों के भीतर या ऐसे संकर्म तथा विद्युत संस्थापनों के वर्ग के संबंध में और ऐसे निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, जो समुचित सरकार निदेश दे, मुख्य विद्युत निरीक्षक या विद्युत निरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगा या ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करेगा जो विहित किए जाएं ।

(2) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम में तत्प्रतिकूल अभिव्यक्त उपबंध के न होने पर, मुख्य विद्युत निरीक्षक या विद्युत निरीक्षक के विनिश्चय के विरुद्ध अपील, समुचित सरकार को या यदि समुचित सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश दे, तो समुचित आयोग को होगी ।

163. अनुज्ञप्तिधारी की, परिसरों में प्रवेश करने की और अनुज्ञप्तिधारी की फिटिंगों या अन्य साधित्रों को हटाने की शक्ति-(1) अनुज्ञप्तिधारी या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा सम्यक्तः प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, युक्तियुक्त समय पर और अधिभोगी को अपने आशय की सूचना देकर किसी ऐसे परिसर में प्रवेश कर सकेगा जिसको उसके द्वारा विद्युत प्रदाय किया जाता है या किया गया है या किसी परिसर या भूमि, उसके नीचे, उसके ऊपर, उसके साथ-साथ, उसके आर-पार, जिससे या जिस पर निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए उसके द्वारा विद्युत प्रदाय लाइनें या अन्य संकर्म विधिपूर्ण रूप से बिछाए गए या लगाए हैं-

(क) अनुज्ञप्तिधारी के विद्युत प्रदाय के लिए विद्युत प्रदाय लाइनों, मीटरों, फिटिंगों, संकर्म और साधित्र के निरीक्षण, परीक्षण, मरम्मत या बदलाव के लिए; या

(ख) प्रदाय की गई विद्युत की मात्रा या प्रदाय में अंतर्विष्ट विद्युत की मात्रा सुनिश्चित करने के लिए; या

(ग) जहां विद्युत प्रदाय की अब आवश्यकता नहीं है या जहां अनुज्ञप्तिधारी ऐसे प्रदाय को वापस लेने और काटने के लिए प्राधिकृत है, वहां अनुज्ञप्तिधारी की किसी विद्युत प्रदाय लाइनों, मीटरों, फिटिंगों, संकर्म या साधित्र को हटाने के लिए ।

(2) कोई अनुज्ञप्तिधारी या पूर्वोक्त रूप से प्राधिकृत कोई व्यक्ति, कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त किए गए किसी विशेष आदेश के अनुसरण में और अधिभोगी को चौबीस घंटे से अन्यून की लिखित सूचना देने के पश्चात्-

(क) इसमें वर्णित किसी प्रयोजन के लिए उपधारा (1) में निर्दिष्ट किन्हीं परिसरों या भूमि में भी प्रवेश कर सकेगा; 

(ख) किसी ऐसे परिसर में जिसको उसके द्वारा विद्युत प्रदाय की जानी है, उपभोक्ता की विद्युत तार फिटिंगों, संकर्म और विद्युत के प्रयोग के लिए साधित्रों की परीक्षा या परीक्षण के प्रयोजन के लिए भी प्रवेश कर सकेगा ।

(3) जहां उपभोक्ता, किसी अनुज्ञप्तिधारी या यथापूर्वोक्त किसी प्राधिकृत व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंधों के अनुसरण में उसके परिसर या भूमि में प्रवेश की अनुमति देने से इंकार करता है या जब ऐसा अनुज्ञप्तिधारी या व्यक्ति इस प्रकार प्रवेश कर लेता है तब उसे किसी ऐसे कार्य को जिसका निष्पादन करने के लिए वह उक्त उपधाराओं के अधीन प्राधिकृत है, करने की अनुमति देने से इंकार कर देता है या ऐसे प्रवेश या निष्पादन के लिए युक्तियुक्त सुविधाएं प्रदान करने में असफल रहता है वहां अनुज्ञप्तिधारी, उपभोक्ता को लिखित सूचना की तामील के चौबीस घंटे के पर्यवसान के बाद, उपभोक्ता का विद्युत प्रदाय, उस समय तक के लिए काट सकेगा जब तक ऐसा इंकार या असफलता जारी रहती है, किन्तु उससे अधिक नहीं ।

164. कतिपय मामलों में टेलीग्राफ प्राधिकारी की शक्तियों का प्रयोग-समुचित सरकार विद्युत लाइनें बिछाने या विद्युत पारेषण के लिए विद्युत संयंत्र लगाने के लिए या संकर्म के उचित समन्वयन के लिए आवश्यक टेलीफोन या तार संचार के प्रयोजन के लिए लिखित रूप में आदेश द्वारा, किसी लोक अधिकारी, अनुज्ञप्तिधारी या इस अधिनियम के अधीन विद्युत प्रदाय करने के कारबार में लगे किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी शर्तों और निबंधनों के, यदि कोई हों, जो समुचित सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे और भारतीय तार अधिनियम, 1885 (1885 का 13) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सरकार द्वारा टेलीग्राफ के प्रयोजन के लिए स्थापित या अनुरक्षित किया गया हो या इस प्रकार स्थापित या अनुरक्षित किया जाना हो, कोई ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकेगा जो टेलीग्राफ प्राधिकारी को टेलीग्राफ लाइनें बिछाने और खंभे लगाने की बाबत, उस अधिनियम के अधीन प्राप्त हैं ।

165. 1894 के अधिनियम सं० 1 की धारा 40 और धारा 41 का संशोधन-(1) भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 की धारा 40 की उपधारा (1) के खंड (ख) और धारा 41 की उपधारा (5) में शब्द कार्य" में सन्निर्माण किए जाने वाले कार्य के माध्यम से प्रदाय की गई या प्रदाय की जाने वाली विद्युत को भी सम्मिलित समझा जाएगा ।

(2) समुचित सरकार, इस निमित्त समुचित आयोग की सिफारिश पर, यदि वह ठीक समझती है, तो किसी व्यक्ति के आवेदन पर, जो कंपनी नहीं है और जो अपने प्रयोजनों के लिए किसी भूमि को प्राप्त करने की इच्छा रखता है, निदेश दे सकेगी कि वह भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) के उपबंधों के अधीन ऐसी भूमि को उसी रीति और उन्हीं शर्तों पर अर्जित कर सकेगा जिन पर कि वह कंपनी होने पर अर्जित कर सकता था ।

भाग 18

प्रकीर्ण

166. समन्वय मंच-(1) केन्द्रीय सरकार, देश में विद्युत प्रणाली के अबाध और समन्वित विकास के लिए एक समन्वय मंच का गठन करेगी जिसमें केन्द्रीय आयोग का अध्यक्ष, और उसके सदस्य, प्राधिकरण का अध्यक्ष, विद्युत के अंतरराज्यीय पारेषण में लगी उत्पादक कंपनियों और पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों के प्रतिनिधि होंगे ।

(2) केन्द्रीय सरकार एक विनियामक मंच का भी गठन करेगी जिसमें केन्द्रीय आयोग का अध्यक्ष और राज्य आयोगों के अध्यक्ष होंगे । 

(3) केन्द्रीय आयोग का अध्यक्ष, उपधारा (2) में निर्दिष्ट विनियामकों के मंच का अध्यक्ष होगा ।

(4) राज्य सरकार, राज्य में विद्युत प्रणाली के अबाध और समन्वित विकास के लिए एक समन्वय मंच का गठन करेगी जिसमें राज्य आयोग का अध्यक्ष, और उसके सदस्य, उक्त राज्य में विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण में लगी उत्पादक कंपनियों, पारेषण अनुज्ञप्तिधारियों और वितरण अनुज्ञप्तिधारियों के प्रतिनिधि होंगे ।

(5) प्रत्येक जिले में समुचित सरकार द्वारा गठित एक समिति निम्नलिखित के लिए होगी: -

(क) प्रत्येक जिले में विद्युतीकरण के विस्तार का समन्वय और पुनर्विलोकन करना;

(ख) विद्युत प्रदाय की क्वालिटी और उपभोक्ता-संतुष्टि का पुनर्विलोकन करना;

(ग) ऊर्जा दक्षता और उसके संरक्षण का संवर्धन करना ।

167. कतिपय मामलों में विद्युत लाइनों या विद्युत संयंत्रों को कुर्की से छूट-जहां कोई विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र जो अनुज्ञप्तिधारी का है, किसी ऐसे परिसर या भूमि में या उसके ऊपर लगाया गया है जो अनुज्ञप्तिधारी के कब्जे में नहीं है वहां ऐसी विद्युत लाइन या विद्युत संयंत्र किसी सिविल न्यायालय की किसी प्रक्रिया के अधीन निष्पादन में या ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिसके कब्जे में वह है, दिवालियापन की कार्यवाहियों में, लिए जाने के लिए दायी नहीं होगा ।

168. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य कार्यवाही समुचित सरकार या अपील अधिकरण या समुचित आयोग या समुचित सरकार के किसी अधिकारी या अपील अधिकरण के किसी सदस्य, अधिकारी या अन्य कर्मचारी या समुचित आयोग के किसी सदस्य, अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों या निर्धारण अधिकारी या लोक सेवक के विरुद्ध नहीं होगी ।

169. अपील अधिकरण, और समुचित आयोग के सदस्यों, अधिकारियों, आदि का लोक सेवक होना-अपील अधिकरण के अध्यक्ष, अधिकारी और अन्य कर्मचारी और समुचित आयोग के अध्यक्ष, सदस्य, सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारियों तथा धारा 126 में निर्दिष्ट निर्धारण अधिकारी के बारे में जब वे इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों के अनुसरण में कार्य कर रहे हैं या उनका कार्य करना तात्पर्यित है, यह समझा जाएगा कि वे भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ के अन्तर्गत लोक सेवक हैं ।

170. अधिनियम के अधीन संदेय शास्ति की वसूली-इस अधिनियम के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा संदेय कोई शास्ति, यदि उसका संदाय नहीं किया गया है, तो उसी प्रकार वसूल की जा सकेगी मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।

171. सूचनाओं, आदेशों या दस्तावेजों की तामील-(1) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन किसी व्यक्ति को संबोधित किए जाने के लिए अपेक्षित या प्राधिकृत प्रत्येक सूचना, आदेश या दस्तावेज, उसके लिए हस्ताक्षरित अभिस्वीकृति रसीद अभिप्राप्त करने के पश्चात् उसे परिदत्त करके या रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा या परिदान के ऐसे साधन द्वारा, जो विहित किया जाए, -

(क) जहां समुचित सरकार, प्रेषिती हो वहां ऐसे अधिकारी के कार्यालय में, जो समुचित सरकार इस निमित्त विहित करे;

(ख) जहां समुचित आयोग प्रेषिती हो वहां समुचित आयोग के कार्यालय में;

(ग) जहां कोई कंपनी प्रेषिती हो वहां कंपनी के रजिस्ट्रीकृत कार्यालय में या कंपनी का रजिस्ट्रीकृत कार्यालय भारत में न होने की दशा में, भारत में कंपनी के प्रधान कार्यालय में;

(घ) जहां कोई अन्य व्यक्ति प्रेषिती हो वहां उस व्यक्ति के निवास करने या कारबार के प्रायिक या अंतिम ज्ञात स्थान पर, तामील किया जा सकेगा ।

(2) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपेक्षित या प्राधिकृत प्रत्येक सूचना, आदेश या दस्तावेज के बारे में, जो किसी परिसर के स्वामी या अधिभोगी को संबोधित हो, यह समझा जाएगा कि उसे समुचित रूप से संबोधित है यदि उसे परिसर के (परिसर का नाम देते हुए) स्वामी या अधिभोगी का वर्णन देकर संबोधित है तो परिदत्त करके या परिसर में किसी व्यक्ति को उसकी सत्य प्रतिलिपि देकर तामील किया जा सकेगा या यदि परिसर में कोई व्यक्ति नहीं है जिसको उचित तत्परता से परिदत्त किया जा सके तो परिसर के किसी सहज-दृश्य भाग पर चिपका कर उसे तामील किया जा सकता है ।

172. संक्रमणकालीन उपबंध-इस अधिनियम में अंतर्विष्ट तत्प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, -

(क) निरसित विधियों के अधीन गठित किसी राज्य विद्युत बोर्ड को इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन नियत दिन या ऐसी पूर्वतर तारीख से जो राज्य सरकार अधिसूचित करे, एक वर्ष की अवधि के लिए राज्य पारेषण उपयोगिता और अनुज्ञप्तिधारी समझा जाएगा और वह इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों तथा विनियमों के उपबंधों के अनुसार राज्य पारेषण उपयोगिता और अनुज्ञप्तिधारी के कर्तव्यों और कृत्यों का पालन करेगा:

परन्तु राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, राज्य विद्युत बोर्ड को राज्य पारेषण उपयोगिता या अनुज्ञप्तिधारी के रूप में एक वर्ष की उक्त अवधि के पश्चात् ऐसी और अवधि के लिए, जो केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार द्वारा पारस्परिक रूप से विनिश्चित की जाए, कृत्य करते रहने के लिए प्राधिकृत कर सकेगी;

(ख) निरसित विधियों के उपबंधों के अधीन अनुदत्त सभी अनुज्ञप्तियां, प्राधिकार, अनुमोदन, समाशोधन और अनुज्ञाएं नियत तारीख या ऐसी पूर्वतर अवधि से एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए जो समुचित सरकार अधिसूचित करे, प्रवर्तन में बनी रहेंगी, मानो निरसित विधियां, यथास्थिति, ऐसी अनुज्ञप्तियों, प्राधिकारों, अनुमोदनों, समाशोधनों और अनुज्ञाओं की बाबत प्रवृत्त रही हों और तत्पश्चात् ऐसी अनुज्ञप्ति, प्राधिकार, अनुमोदन, समाशोधन और अनुज्ञा के बारे में यह समझा जाएगा कि वे इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तियां, प्राधिकार, अनुमोदन, समाशोधन और अनुज्ञा हैं और इस अधिनियम के सभी उपबंध ऐसी अनुज्ञप्तियों, प्राधिकारों, अनुमोदनों, समाशोधनों और अनुज्ञाओं को तद्नुसार लागू होंगे ;

(ग) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) की धारा 5 के अधीन स्थापित राज्य विद्युत बोर्डों के उपक्रम, खंड (क) में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के पश्चात्, इस अधिनियम के भाग 13 के उपबंधों के अनुसार अंतरित किए जा सकेंगे;

(घ) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकेगी कि इस अधिनियम के कोई या सभी उपबंध उस राज्य में ऐसी अवधि तक जो नियत तारीख से अधिसूचना द्वारा अनुबंधित की जाए, छह मास से अधिक की नहीं होगी, लागू नहीं होंगे ।

173. विधियों में असंगतताएं-इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या विनियम अथवा इस अधिनियम के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में किसी बात के होते हुए भी, नियम या विनियम का, जहां तक वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (1986 का 68) या परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (1962 का 33) या रेल अधिनियम, 1989 (1989 का 24) के किन्हीं अन्य उपबंधों से असंगत है, प्रभाव होगा ।

174. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव-धारा 173 में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में या किसी ऐसी लिखत में जिसका इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि के आधार पर प्रभाव है, अंतर्विष्ट किसी असंगत बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के उपबंधों का प्रभाव होगा ।

175. इस अधिनियम के उपबंधों का अन्य विधियों के अतिरिक्त होना कि उनके अल्पीकरण में-इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अतिरिक्त हैं न कि उनके अल्पीकरण में ।

176. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, नियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध हो सकेगा, अर्थात्: -

(क) वह समय जिसके भीतर प्रारूप राष्ट्रीय विद्युत योजना के संबंध में आक्षेप और सुझाव धारा 3 की उपधारा (4) के परंतुक के अधीन, प्राधिकरण द्वारा आमंत्रित किए जाएंगे; 

(ख) धारा 14 के छठे परंतुक के अधीन [पूंजी पर्याप्तता, उधार पात्रता या आचार संहिता से संबंधित अतिरिक्त अपेक्षाएं;]

(ग) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्ति प्रदान करने के लिए आवेदन की फीस का संदाय;

(घ) धारा 26 की उपधारा (2) के अधीन राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र का गठन और उसके कृत्य;

(ङ) धारा 67 की उपधारा (2) के अधीन स्वामी या अधिभोगी की संपत्ति को प्रभावित करने वाले अनुज्ञप्तिधारियों के संकर्म;

(च) ऐसे अन्य मामले जो धारा 68 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन विहित किए जाएं;

(छ) धारा 70 की उपधारा 14 के अधीन प्राधिकरण के अधिवेशनों में उपास्थित होने के लिए अन्य सदस्यों को संदेय भत्ते और फीस;

(ज) धारा 70 की उपधारा (15) के अधीन प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;

(झ) धारा 73 के अधीन केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के कृत्य और कर्तव्य;

(ञ) धारा 89 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें;

(ट) धारा 89 की उपधारा (3) के अधीन वह प्ररूप और रीति जिसमें और वे प्राधिकारी जिनके समक्ष पद और गोपनीयता की शपथ ली जाएगी;

(ठ) धारा 90 की उपधारा (2) के पंरतुक के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाने वाली प्रक्रिया;

(ड) धारा 94 की उपधारा (1) के खंड (छ) के अधीन विहित किए जाने के लिए अपेक्षित कोई अन्य विषय;

(ढ) वह प्ररूप जिसमें केन्द्रीय आयोग धारा 100 की उपधारा (1) के अधीन अपना वार्षिक लेखा विवरण तैयार करेगा;

(ण) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब केन्द्रीय आयोग धारा 101 की उपधारा (1) के अधीन अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा;

(त) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब केन्द्रीय आयोग धारा 106 के अधीन अपना बजट तैयार करेगा;

(थ) धारा 111 की उपधारा (2) के अधीन अपील फाइल करने का प्ररूप, ऐसे प्ररूप के सत्यापन की रीति और उसकी फीस;

(द) धारा 115 के अधीन अपील अधिकरण के अध्यक्ष और अपील अधिकरण के सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें;

(ध) धारा 119 की उपधारा (3) के अधीन अपील अधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा सेवा की अन्य शर्तें;

(न) वे अतिरिक्त विषय जिनकी बाबत अपील अधिकरण, धारा 120 की उपधारा (2) के खंड (i) के अधीन सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा;

(प) वह प्राधिकारी, जिसको धारा 127 की उपधारा (1) के अधीन अपील की जाएगी;

(फ) धारा 143 की उपधारा (1) के अधीन किसी न्यायनिर्णायक अधिकारी द्वारा जांच करने की रीति;

(ब) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब धारा 161 की उपधारा (1) के अधीन किसी प्रयोजन के लिए किसी व्यक्ति को या केन्द्रीय सरकार को सूचनाओं की तामील की जाएगी;

(भ) धारा 162 की उपधारा (1) के अधीन निरीक्षकों द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियां और पालन किए जाने वाले कृत्य;

(म) धारा 171 की उपधारा (1) के अधीन तामील किए जाने वाली प्रत्येक सूचना, आदेश या दस्तावेज के परिदान की रीति;

(य) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित है या विहित किया जाए ।

177. प्राधिकरण की विनियम बनाने की शक्तियां-(1) प्राधिकरण, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को, साधारणतया कार्यान्वित करने के लिए ऐसे विनियम बना सकेगा, जो इस अधिनियम और नियमों से संगत हों ।

(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे विनियमों में निम्नलिखित किन्हीं या सभी विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्ः- 

(क) धारा 34 के अधीन ग्रिड मानक;

(ख) धारा 53 के अधीन सुरक्षा और विद्युत प्रदाय से संबंधित उचित उपाय;

(ग) धारा 55 के अधीन मीटरों का संस्थापन और प्रचालन;

(घ) धारा 70 की उपधारा (9) के अधीन कारबार के संव्यवहार के लिए प्रक्रिया के नियम;

(ङ) धारा 73 के खंड (ख) के अधीन विद्युत संयंत्रों और विद्युत लाइनों के तथा ग्रिड से संयोजकता के सन्निर्माण के लिए तकनीकी मानक आंकड़े; 

(च) वह प्ररूप और रीति जिसमें और वह समय जब राज्य सरकार और अनुज्ञप्तिधारी, धारा 74 के अधीन आंकड़े, विवरणियां या अन्य जानकारी देंगे; और 

(छ) कोई अन्य विषय जिसे विनिर्दिष्ट किया जाना है या किया जा सकेगा ।

(3) इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण द्वारा बनाए गए सभी विनियम पूर्व प्रकाशन की शर्तों के अध्यधीन होंगे ।

178. केन्द्रीय आयोग की विनियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय आयोग, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को साधारणतया कार्यान्वित करने के लिए इस अधिनियम और नियमों से सुसंगत विनियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों का उपबंध हो सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 14 के प्रथम पंरतुक के अधीन विनिर्दिष्ट की जाने वाली अवधि;

(ख) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन का प्ररूप और रीति;

(ग) धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन सूचना की रीति और विशिष्टियां;

(घ) धारा 16 के अधीन अनुज्ञप्ति की शर्तें;

(ङ) धारा 18 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन सूचना की रीति और विशिष्टियां;

(च) धारा 18 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन अनुज्ञप्ति में किए जाने वाले परिवर्तनों या संशोधनों का प्रकाशन;

(छ) धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन ग्रिड संहिता;

(ज) धारा 28 की उपधारा (4) के अधीन उत्पादन कंपनियों या पारेषण, उपयोगिताओं या अनुज्ञप्तिधारियों से फीस और प्रभार का उद्ग्रहण और संग्रहण; 

(झ) धारा 36 के परंतुक के अधीन मध्यक्षेपी पारेषण प्रसुविधाओं की बाबत दर, प्रभार और निबंधन और शर्तें;

(ञ) धारा 38 की उपधारा (2) के खंड (घ) के उपखंड (ii) के अधीन पारेषण प्रभारों और अधिभार का संदाय;

(ट) धारा 38 की उपधारा (2) खंड (घ) के उपखंड (ii) के दूसरे परन्तुक के अधीन अधिभार और प्रति सहायिकी में कटौती । । ।;

(ठ) धारा 40 के खंड (ग) के उपखंड (ii) के अधीन पारेषण प्रभारों और किसी अधिभार का संदाय;

(ड) धारा 40 के खंड (ग) के उपखंड (ii) के दूसरे परन्तुक के अधीन अधिभार और प्रति सहायिकी में कटौती 1। । ।;

(ढ) धारा 41 के परंतुक के अधीन पारेषण और चक्रण प्रभारों को कम करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले अन्य कारबार से राजस्व का अनुपात;

(ण) धारा 52 की उपधारा (2) के अधीन विद्युत व्यापारी के कर्तव्य;

(त) धारा 57 की उपधारा (1) के अधीन किसी अनुज्ञप्तिधारी या अनुज्ञप्तिधारियों के वर्ग के निष्पादन के मानक;

(थ) वह अवधि जिसके भीतर धारा 59 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी द्वारा जानकारी दी जानी है;

 [(द) धारा 61 के खंड (छ) के अधीन प्रतिसहायिकियां कम करने की रीति;]

(ध) धारा 61 के अधीन टैरिफ के अवधारण के लिए निबंधन और शर्तें;

(न) धारा 62 की उपधारा (2) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा दिए जाने वाले ब्यौरे;

(प) धारा 62 की उपधारा (5) के अधीन टैरिफ और प्रभारों से प्रत्याशित राजस्व की संगणना के लिए प्रक्रियाएं;

(फ) धारा 64 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय आयोग के समक्ष आवेदन करने की रीति और उसके लिए संदेय फीस;

(ब) धारा 64 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन के प्रकाशन की रीति;  

(भ) धारा 64 की उपधारा (4) के अधीन उपांतरणों या शर्तों सहित टैरिफ आदेश, जारी करना;

(म) धारा 66 के अधीन विनिर्दिष्ट वह रीति जिसके द्वारा विद्युत में बाजार का जिसके अंतर्गत व्यापार भी है, विकास किया जाएगा;

(य) धारा 91 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय आयोग के सचिव की शक्तियां और कर्तव्य;

(यक) धारा 91 की उपधारा (3) के अधीन केन्द्रीय आयोग के सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारिवृन्द की सेवा के निबंधन और शर्तें;

(यख) धारा 92 की उपधारा (1) के अधीन कारबार के संव्यवहार के लिए प्रक्रिया के नियम;

(यग) किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा रखी जाने वाली न्यूनतम जानकारी और ऐसी जानकारी रखने की रीति जो धारा 128 की उपधारा (8) के अधीन रखी जानी है;

(यघ) धारा 130 के अधीन सूचना की तामील और प्रकाशन की रीति;

(यङ) कोई अन्य विषय जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाना है या किया जाए ।

(3) केन्द्रीय आयोग द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए सभी विनियम पूर्व प्रकाशन की शर्तों के अध्यधीन होंगे ।

179. नियमों और विनियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना-केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, प्राधिकरण द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम और केन्द्रीय आयोग द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो, जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसा नियम या विनियम, यथास्थिति, तत्पश्चात् केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा, तथापि उस नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

180. राज्य सरकारों की नियम बनाने की शक्तियां-(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित किन्हीं या सभी विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्ति मंजूर करने के लिए आवेदन की फीस का संदाय;

(ख) धारा 67 की उपधारा (2) के अधीन अन्य व्यक्तियों की संपत्ति को प्रभावित करने वाले अनुज्ञप्तिधारियों के संकर्म;

(ग) ऐसे अन्य विषय जो धारा 68 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन विहित किए जा सकेंगे;

(घ) धारा 89 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन, भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें; 

(ङ) वह प्ररूप और रीति जिसमें तथा वह प्राधिकारी जिसके समक्ष धारा 89 की उपधारा (3) के अधीन पद और गोपनीयता की शपथ ली जाएगी; 

(च) कोई अन्य विषय जो धारा 94 की उपधारा (1) के खंड (छ) के अधीन राज्य आयोग द्वारा विहित किया जाना अपेक्षित है;

(छ) धारा 103 की उपधारा (3) के अधीन निधि के उपयोजन की रीति;

(ज) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब राज्य आयोग धारा 104 की उपधारा (1) के अधीन अपना वार्षिक लेखा तैयार करेगा;

(झ) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब राज्य आयोग धारा 105 की उपधारा (1) के अधीन अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा;

(ञ) वह प्ररूप जिसमें और वह समय जब राज्य आयोग धारा 106 के अधीन अपना बजट तैयार करेगा;

(ट) धारा 126 की उपधारा (2) के अधीन निर्धारण के अनन्तिम आदेश की तामील की रीति;

(ठ) धारा 143 की उपधारा (1) के अधीन किसी न्यायनिर्णायक अधिकारी द्वारा जांच करने की रीति;

(ड) वह प्ररूप, जिसमें और वह समय जिस पर धारा 161 की उपधारा (1) के अधीन किसी वैद्युत निरीक्षक को सूचना की तामील की जानी है;

(ढ) धारा 171 की उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक सूचना, आदेश या दस्तावेज के परिदान की रीति; और

(ण) कोई अन्य विषय जो विहित किए जाने के लिए अपेक्षित है या विहित किया जाए ।

181. राज्य आयोगों की विनियम बनाने की शक्तियां-(1) राज्य आयोग, अधिसूचना द्वारा, साधारणतया, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए ऐसे विनियम बना सकेंगे, जो इस अधिनियम और नियमों से संगत हों ।

(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित किन्हीं या सभी विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 14 के प्रथम परंतुक के अधीन विनिर्दिष्ट की जाने वाली अवधि;

(ख) धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन का प्ररूप और रीति;

(ग) धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन प्रकाशित की जाने वाली अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन की रीति और विशिष्टियां;

(घ) धारा 16 के अधीन अनुज्ञप्ति की शर्तें;

(ङ) धारा 18 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन सूचना की रीति और विशिष्टियां;

(च) धारा 18 की उपधारा (2) के खंड (ग) के अधीन अनुज्ञप्ति में किए जाने वाले परिवर्तनों या संशोधनों का प्रकाशन;

(छ) धारा 32 की उपधारा (3) के अधीन उत्पादन कंपनियों या अनुज्ञप्तिधारियों से फीस और प्रभारों का उद्ग्रहण और संग्रहण;

(ज) धारा 36 के पंरतुक के अधीन मध्यक्षेपी पारेषण प्रसुविधाओं की बाबत दर, प्रभार तथा निबंधन और शर्तें;

(झ) धारा 39 की उपधारा (2) के खंड (घ) के उपखंड (ii) के अधीन पारेषण प्रभारों और अधिभार का संदाय;

(ञ) धारा 39 की उपधारा (2) के खंड (घ) के उपखंड (ii) के दूसरे परन्तुक के अधीन अधिभार और प्रतिसहायिकी में कटौती । ।

(ट) धारा 39 की उपधारा (2) के खंड (घ) के उपखंड (ii) के चौथे परंतुक के अधीन अधिभार के संदाय की रीति और उपयोग;

(ठ) धारा 40 के खंड (ग) के उपखंड (ii) के अधीन पारेषण प्रभारों और किसी अधिभार का संदाय;

(ड) धारा 40 के खंड (ग) के उपखंड (ii) के दूसरे परन्तुक के अधीन अधिभार और प्रतिसहायिकी में कटौती 1। । ।

(ढ) धारा 40 के खंड (ग) के उपखंड (ii) के चौथे परंतुक के अधीन अधिभार के संदाय की रीति;

(ण) धारा 41 के परंतुक के अधीन पारेषण और चक्रण प्रभारों को कम करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले अन्य कारबारों से राजस्व का अनुपात;

(त) धारा 42 की उपधारा (2) के तीसरे परंतुक के अधीन अधिभार और प्रतिसहायिकियों में कटौती 1। । ।

(थ) धारा 42 की उपधारा (4) के अधीन चक्रण प्रभारों पर अतिरिक्ति प्रभारों का संदाय;

(द) धारा 42 की उपधारा (5) के अधीन मार्गदर्शक सिद्धांत;

(ध) धारा 42 की उपधारा (7) के अधीन शिकायतों के निपटारे का समय और उसकी रीति;

(न) धारा 43 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए राज्य आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट की जाने   वाली अवधि;

(प) धारा 45 की उपधारा (2) के अधीन वह पद्धति और सिद्धान्त जिसके द्वारा विद्युत के लिए प्रभार नियत      किए जाएंगे;

(फ) धारा 47 की उपधारा (1) के अधीन वितरण अनुज्ञप्तिधारी को संदेय युक्तियुक्त प्रतिभूति;

(ब) धारा 47 की उपधारा (4) के अधीन प्रतिभूति पर ब्याज का संदाय;

(भ) धारा 50 के अधीन विद्युत प्रदाय संहिता;

(म) धारा 51 के परन्तुक के अधीन चक्रण प्रभारों को कम करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले अन्य कारबारों से राजस्व का अनुपात;

(य) धारा 52 की उपधारा (2) के अधीन विद्युत व्यापारी के कर्तव्य;

(यक) धारा 57 की उपधारा (1) के अधीन किसी अनुज्ञप्तिधारी या किसी वर्ग के अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा निष्पादन के मानक;

(यख) वह अवधि जिसके भीतर धारा 59 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी द्वारा जानकारी दी जानी है;

 [(यग) धारा 61 के खंड (छ) के अधीन प्रतिसहायिकियां कम करने की रीति;]

(यघ) धारा 61 के अधीन टैरिफ के अवधारण के लिए निबंधन और शर्तें;

(यङ) धारा 62 की उपधारा (2) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा दिए जाने वाले ब्यौरे;

(यच) धारा 62 की उपधारा (5) के अधीन टैरिफ और प्रभारों से प्रत्याशित राजस्व की संगणना करने के लिए कार्य पद्धतियां और प्रक्रियाएं;

(यछ) धारा 64 की उपधारा (1) के अधीन राज्य आयोग के समक्ष आवेदन करने की रीति और उसके लिए संदेय फीस;

(यज) धारा 64 की उपधारा (3) के अधीन उपान्तरणों या शर्तों के साथ टैरिफ आदेश का जारी करना;

(यझ) धारा 66 के अधीन विनिर्दिष्ट वह रीति जिसके द्वारा विद्युत बाजार, जिसके अंतर्गत व्यापार भी है, का विकास किया जाएगा;

(यञ) धारा 91 की उपधारा (1) के अधीन राज्य आयोग के सचिव की शक्तियां और कर्तव्य; 

(यट) धारा 91 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग के सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारिवृन्द की सेवा के निबंधन और शर्तें;

(यठ) धारा 92 की उपधारा (1) के अधीन कारबार के संव्यवहार की प्रक्रिया के नियम;

(यड) धारा 128 की उपधारा (8) के अधीन किसी अनुज्ञप्तिधारी या उत्पादन कंपनी द्वारा रखी जाने वाली न्यूनतम जानकारी और ऐसी जानकारी रखने की रीति;

(यढ) धारा 130 के अधीन सूचना की तामील और प्रकाशन की रीति;

(यण) धारा 127 की उपधारा (1) के अधीन अपील का प्ररूप तथा वह रीति जिसमें ऐसा प्ररूप सत्यापित किया जाएगा और ऐसी अपील करने के लिए फीस; और

(यत) कोई अन्य विषय जो विनिर्दिष्ट किया जाना है या विहित किया जाए ।

(3) इस अधिनियम के अधीन राज्य आयोग द्वारा बनाए गए सभी विनियम पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन होंगे ।

182. नियमों और विनियमों का राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाना-राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और राज्य आयोग द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, जहां विधान-मंडल दो सदनों से मिलकर बना है वहां प्रत्येक सदन के समक्ष और जहां ऐसे विधान-मंडल में एक सदन है वहां उस सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

183. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध बना सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों:

परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश उसके किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।

184. कतिपय मामलों में अधिनियम के उपबंधों का लागू होना-इस अधिनियम के उपबंध रक्षा, परमाणु ऊर्जा से संव्यवहार करने वाले केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग अथवा ऐसे अन्य समरूप मंत्रालयों या विभागों या उपक्रमों या बोर्डों या संस्थाओं को जो ऐसे मंत्रालयों या विभागों के नियंत्रणाधीन हैं जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाएं, लागू नहीं होंगे ।

185. निरसन और व्यावृत्ति-(1) इस अधिनियम में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) और विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 (1998 का 14) इसके द्वारा निरसित किए जाते हैं ।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, -

(क) निरसित विधियों के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई या किए जाने के लिए तात्पर्यित कोई बात या कार्रवाई, जिसके अन्तर्गत बनाया गया कोई नियम या जारी की गई कोई अधिसूचना या किया गया निरीक्षण, आदेश या निकाली गई सूचना या की गई कोई नियुक्ति, पुष्टि या घोषणा या मंजूर की गई कोई अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा, प्राधिकार या छूट या निष्पादित किया गया कोई दस्तावेज या लिखत या दिया गया कोई निदेश, जहां तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन किया गया समझा जाएगा ;

(ख) भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) की धारा 12 से धारा 18 तक और उनके अधीन बनाए गए नियमों में अंतर्विष्ट उपबंध तब तक प्रभावी रहेंगे जब तक इस अधिनियम की धारा 67 से धारा 69 के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं;

(ग) भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) की धारा 37 के अधीन बनाए गए भारतीय विद्युत नियम, 1956 जैसे कि वे निरसन के पूर्व विद्यमान इस अधिनियम की धारा 53 के अधीन विनियमों के बनाए जाने तक प्रवर्तन में बने रहेंगे;

(घ) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 की धारा 69 की उपधारा (1) के अधीन बनाए गए सभी नियम तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक ऐसे नियमों का, यथास्थिति, विखंडन या उपांतरण नहीं कर दिया जाता है;

(ङ) अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों के अधीन किसी राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व जारी किए गए सभी निदेश उस अवधि के लिए लागू रहेंगे, जिसके लिए राज्य सरकार द्वारा ऐसे निदेश जारी किए गए थे ।

(3) अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों के उपबंध, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं हैं, उन राज्यों को लागू होंगे जिनमें ऐसी अधिनियमितियां लागू हैं ।

(4) केन्द्रीय सरकार, जब कभी आवश्यक समझे, अधिसूचना द्वारा अनुसूची का संशोधन कर सकेगी ।

(5) उपधारा (2) में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, उस धारा में विशिष्ट विषयों के उल्लेख से यह नहीं माना जाएगा कि उससे निरसन के प्रभाव के संबंध में, साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के साधारण रूप में लागू होने पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा या प्रभाव पड़ता है ।

अनुसूची

अधिनियमितियां

[धारा 185 की उपधारा (3) देखिए]

                1. उड़ीसा विद्युत सुधार अधिनियम, 1995 (1995 का उड़ीसा अधिनियम सं० 2)

                2. हरियाणा विद्युत सुधार अधिनियम, 1997 (1997 का हरियाणा अधिनियम सं० 10)

                3. आंध्र प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम, 1998 (1998 का आंध्र प्रदेश अधिनियम सं० 30)

                4. उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम, 1999 (1999 का उत्तर प्रदेश अधिनियम सं० 24)

                5. कर्नाटक विद्युत सुधार अधिनियम, 1999 (1999 का कर्नाटक अधिनियम सं० 25)

                6. राजस्थान विद्युत सुधार अधिनियम, 1999 (1999 का राजस्थान अधिनियम सं० 23)

                7. दिल्ली विद्युत सुधार अधिनियम, 2000 (2001 का दिल्ली अधिनियम सं० 2)

                8. मध्य प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम, 2000 (2001 का मध्य प्रदेश अधिनियम सं० 4)

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