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ओषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 ( Drugs and Cosmetics Act, 1940 )


 

ओषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940

(1940 का अधिनियम संख्यांक 23)1

[10 अप्रैल, 1940]

ओषधियों 2[और प्रसाधन सामग्रियों] के आयात, विनिर्माण, वितरण और

विक्रय को विनियमित करने के लिए

अधिनियम

ओषधियों 2[और प्रसाधन समाग्रियों] के 3[आयात, विनिर्माण, वितरण और विक्रय] को विनियमित करना समीचीन है ;

और ऊपर वर्णित ऐसी बातों और उनकी आनुषंगिक बातों के लिए, जो भारत शासन अधिनियम, 1935 (26 जीईओ. 5, सी. 2) की सातवीं अनुसूची की सूची 2 में प्रगणित की गई हैं, सब प्रांतों के विधान-मंडलों ने उक्त अधिनियम की धारा 103 के निबन्धनों के अनुकूल संकल्प पारित कर दिए हैं;

अतः एतद्द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है:

अध्याय 1

प्रारम्भिक

                1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) यह अधिनियम ओषधि 4[और प्रसाधन सामग्री] अधिनियम, 1940 कहा जा सकेगा ।

                (2) इसका विस्तार 5॥। सम्पूर्ण भारत पर है ।

                (3) यह तुरन्त प्रवृत्त होगा, किन्तु अध्याय 3 केवल उस 6तारीख से प्रभावी होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त नियत करे और अध्याय 4 राज्य विशेष में उस ही तारीख6 से प्रभावी होगा जिसे वह राज्य सरकार वैसी ही अधिसूचना द्वारा इस निमित्त नियत करे:

                 1[परन्तु जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अध्याय 3, ओषधि और प्रसाधन सामग्री (संशोधन) अधिनियम, 1972 (1972 का 19) के प्रारम्भ के पश्चात् उसी तारीख से प्रभावी होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे ।]

  1. यह अधिनियम उड़ीसा राज्य में सभी भागतः अपवर्जित क्षेत्रों को लागू, देखिए, उड़ीसा सरकार की अधिसूचना सं० 3358, एल०एस०जी०; तारीख 25 अगस्त, 1941. 
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 2 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  3. विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 3 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  5. 1972 के अधिनियम सं० 19 की धारा 2 द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय शब्दों का लोप किया गया ।
  6. 1 अप्रैल 1947 से, देखिए अधिसूचना सं० का० 28(10)(3) 45-एच(आई), तारीख 2-9-1946; 1946 का भारत का राजपत्र, भाग 1, पृ० 1349 ।

अध्याय 4, दिल्ली, अजमेर और कुर्ग राज्यों में 1 अप्रैल, 1947 से प्रवृत्त हुआ, देखिए पूर्वोक्त, अध्याय 3 और 4 हिमाचल प्रदेश, बिलासपूर, कच्छ, भोपाल, त्रिपुरा, विन्ध प्रदेश और मणिपुर राज्यों में 1 अप्रैल, 1953 से प्रवृत्त हुए, देखिए अधिसूचना सं० का० नि० आ० 663, दिनांक 30-3-1953, भारत का राजपत्र, भाग 2, खण्ड 3, पृ० 451 ।

अध्याय 4, दादरा और नागर हवेली संघ राज्यक्षेत्र में, 1 अगस्त, 1968 से प्रवृत्त हुआ, देखिए अधिसूचना सं० ए० डी० एम०/ला/117(74), तारीख                           20-7-1968, भारत का राजपत्र, भाग 3, खण्ड 3, पृ० 128 ।

इस अधिनियम का विस्तार 1963 के विनियम 6 की धारा 2 और अनुसूच 1 द्वारा दादरा, नागर हवेली पर; 1963 के विनियम 7 की धारा 3 और अनुसूची 1         द्वारा पांडिचेरी पर; 1963 के विनियम 11 के खंड 3 और अनुसूची द्वारा गोवा, दमण और दीव पर, और 1965 के विनियम 8 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा सम्पूर्ण                 लक्षद्वीप संघ राज्यक्षेत्र पर किया गया ।

2. अन्य विधियों के उपयोजन का वर्जित होना-इस अधिनियम के उपबन्ध अनिष्टकर मादक द्रव्य अधिनियम, 1930 (1930 का 2) और तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के परिवर्तन में, न कि उसके अल्पीकरण में, होंगे ।

3. परिभाषाएं-इस अधिनियम में जब तक कि कोई बात विषय या संदर्भ में विरुद्ध न हो,

                 3[(क) “4[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि" के अन्तर्गत वे सब ओषधियां हैं जो मनुष्यों या पशुओं में रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण के लिए अथवा उसमें आन्तरिक या बाह्य उपयोग के लिए आशयित हैं और जो प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट 5[आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी, तिब्ब ओषधि प्रणालियों] की प्रामाणिक पुस्तकों में वर्णित फार्मूलों के अनुसार अनन्य रूप से विनिर्मित है;]

 6[(कक) “बोर्ड" से अभिप्रेत है

(i) 7[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि के संबंध में धारा 33ग के अधीन गठित 1[आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड]; और

(ii) किसी अन्य ओषधि या प्रसाधन सामग्री के संबंध में धारा 5 के अधीन गठित ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड;

 8[9[(ककक)] “प्रसाधन सामग्री" से कोई ऐसी चीज अभिप्रेत है जो साफ करने, सुन्दर बनाने, आकर्षकता बढ़ाने, या छवि परिवर्तित करने के लिए मानव शरीर या उसके किसी भाग में मलने, उडेलने, छिड़कने, फहारने, या समाविष्ट करने या अन्यथा प्रयुक्त करने के लिए आशयित है तथा प्रसाधन सामग्री के संघटक के रूप में प्रयोग करने के लिए आशयित कोई चीज इसके अन्तर्गत है 10[॥॥];]

 11[(ख) “ओषधि" के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं,

 12[(i) मनुष्यों या पशुओं के आंतरिक या बाह्य उपयोग के लिए सब ओषधियां और सब पदार्थ जो मनुष्यों या पशुओं में किसी रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण के लिए या उसमें उपयोग के लिए आशयित हैं, और जिनके अन्तर्गत मच्छरों जैसे कीटों के प्रतिकर्षण के प्रयोजन के लिए मानव शरीर पर लेप की जाने वाली निर्मितियां भी हैं;]

(ii) मानव शरीर की संरचना या किसी क्रिया को प्रभावित करने के लिए आशयित या ऐसे 13[पीड़क जन्तु] अथवा कीटों के, जो मनुष्यों या पशुओं में रोग पैदा करते हैं विनाश के लिए प्रयुक्त किए जाने के लिए आशयित (खाद्य से भिन्न) ऐसे पदार्थ जो केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएंगे;]

 14[(iii) सब पदार्थ जो ओषधि के संघटकों के रूप में उपयोग के लिए आशयित हैं, जिनके अन्तर्गत खाली जिलेटिन कैपसूल भी हैं; तथा]

  1. 1972 के अधिनियम सं० 19 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया ।
  2. 24 अगस्त, 1974, देखिए अधिसूचना सं० का० आ० 2185, तारीख 9 अगस्त, 1974, भारत का राजपत्र 1974, भाग 2, खण्ड 3(त्त्), पृ० 2331.
  3. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) अंतःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) मूल खंड (क) को खंड (कक) के रूप में पुनःअक्षरांकित और प्रतिस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 4 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  9. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) पुनःअक्षरांकित ।
  10. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा कतिपय शब्दों का लोप किया गया ।
  11. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 2 द्वारा खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित । 
  12. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा (1-2-1983 से) उपखण्ड (त्) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  13. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) पीड़क जन्तु शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । 
  14. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा (1-2-1983 से) प्रतिस्थापित ।

(iv) ऐसी युक्तियां जो मनुष्यों या पशुओं में रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण में आंतरिक या बाह्य उपयोग के लिए आशयित हैं, और जो केन्द्रीय सरकार द्वारा बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् राजपत्र में अधिसूचना द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं;]

1[(ग) “सरकारी विश्लेषक" से अभिप्रेत है,

2[(i) आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि के संबंध में धारा 33च के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी विश्लेषक; और

(ii) किसी अन्य ओषधि या प्रसाधन सामग्री के संबंध में धारा 20 के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी विश्लेषक;]

3।                                                           ।                                       ।                                                      ।

4[(ङ) निरीक्षक से अभिप्रेत है

(i) 12[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि के संबंध में, धारा 33छ के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षक; और

(ii) किसी अन्य ओषधि या प्रसाधन सामग्री के संबंध में धारा 21 के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षक;]

5[6[(च)] किसी ओषधि 7[या प्रसाधन] सामग्री के संबंध में “विनिर्माण" के अन्तर्गत किसी ओषधि 3[या प्रसाधन] सामग्री को उसके  8[विक्रय या वितरण] की दृष्टि से निर्मित करने, परिवर्तित करने, अलंकृत करने, तैयार करने, पैक करने, उस पर लेबल लगाने, उसे तोड़ने या अन्यथा व्यवहृत अथवा अनुकूलित करने के लिए कोई प्रक्रिया या प्रक्रिया का भाग भी है किन्तु फुटकर कारबार के मामूली अनुक्रम में किसी ओषधि की मिश्रता या उसका नुस्खा बनाना  9[अथवा किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री को पैक करना] इसके अन्तर्गत नहीं है ; तथा “विनिर्मित करने" का अर्थ तदनुकूल किया जाएगा ;]

10[(छ)] अपने व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित आयात करने" से 11[भारत] में लाना अभिप्रेत है;

 12[6[(ज)] “पेटेंट या सांपत्तिक औषधि" से,

  1. आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी तिब्ब औषधि प्रणालियों के सम्बन्ध में वे सब योग अभिप्रेत हैं जिनमें केवल ऐसे संघटक अन्तर्विष्ट हैं जो प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट आयुर्वेद, सिद्ध या यूनानी तिब्ब औषधि प्रणालियों की प्रामाणिक पुस्तकों में वर्णित फार्मूलों में उल्लिखित हैं, किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसी औषधि नहीं है जो आन्त्रेतर मार्ग से दी जाती है और ऐसा योग भी नहीं है जो खंड (क) में यथा विनिर्दिष्ट प्रामाणिक पुस्तकों में सम्मिलित है;
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) खण्ड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1972 के अधिनियम सं० 19 की धारा 3 द्वारा खण्ड (घ) का लोप किया गया ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 2 द्वारा (15-9-1964 से) खण्ड (ङ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 2 द्वारा खण्ड (खखख) अंतःस्थापित ।
  7. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 2 द्वारा (16-3-1961 से) खण्ड (खखख) को खण्ड (च) के रूप में पुनः अक्षरांकित किया गया ।
  8. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 4 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  9. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा (1-2-1983 से) विक्रय और वितरण के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  10. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 4 द्वारा अथवा किसी ओषधि को पैक करने शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  11. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 2 द्वारा (16-3-1961 से) खण्ड (ग), (घ) और (ङ) क्रमशः खण्ड (छ), (ज) और (झ) के रूप में पुनःअक्षरांकित ।
  12. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  13. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 3 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (ज) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ii) किन्हीं अन्य औषधि प्रणालियों के संबंध में ऐसी औषधि अभिप्रेत है जो ऐसे रूप में प्रस्तुत उपचार या नुस्खा है जो मनुष्यों या पशुओं के आंतरिक या बाह्य सेवन के लिए तैयार है और जो तत्समय भारतीय भेषज कोष या किसी अन्य ऐसे भेषज कोष के संस्करण में सम्मिलित नहीं है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 5 के अधीन गठित ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है;]

1[6[(झ)] “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ।]

 2।                                                          ।                                              ।                                             ।

3[3. जम्मू-कश्मीर राज्य में अप्रवृत्त किसी विधि या अविद्यमान किसी कृत्यकारी के प्रति निर्देशों का अर्थान्वयन -               जम्मू-कश्मीर राज्य में अप्रवृत किसी विधि या अविद्यमान किसी कृत्यकारी के प्रति, इस अधिनियम में किसी निर्देश का, उस राज्य के संबंध में, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में प्रवृत्त तत्समान विधि या विद्यमान तत्समान कृत्यकारी के प्रति निर्देश है ।]

4. विषैले पदार्थों के बारे में उपधारणा-अध्याय 3 या अध्याय4 4[या अध्याय 4क] के अधीन बनाए गए नियम द्वारा विषैले पदार्थ के रूप में विनिर्दिष्ट कोई पदार्थ, यथास्थिति, अध्याय 3 या अध्याय 4 12[या अध्याय 4क] के प्रयोजनों के लिए विषैला पदार्थ समझा जाएगा ।           

अध्याय 2

ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड, केन्द्रीय ओषधि द्रव्य प्रयोगशाला और ओषधि परामर्श समिति

5. ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रशासन से पैदा होने वाले तकनीकी मामलों पर केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को परामर्श देने के लिए और इस अधिनियम द्वारा उसे सौंपे गए अन्य कृत्यों को करने के लिए यथाशक्य शीघ्रता से (ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड कहलाने वाला) एक बोर्ड गठित करेगी ।       

 5[(2) बोर्ड निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात्:

                (i) स्वास्थ्य सेवा-महानिदेशक, पदेन, जो अध्यक्ष होगा;

                (ii) ओषधि नियंत्रक, भारत, पदेन;

                (iii) केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला निदेशक, कलकत्ता, पदेन ;

                (iv) केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान निदेशक, कसौली, पदेन;

                (v) भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, निदेशक, इज्जतनगर, पदेन;

                (vi) भारतीय चिकित्सा परिषद् का अध्यक्ष, पदेन;

                (vii) भारतीय फार्मेसी परिषद् का अध्यक्ष, पदेन;

                (viii) केन्द्रीय ओषधि अनुसंधान संस्थान निदेशक, लखनऊ, पदेन;

(ix) ऐसे व्यक्तियों में से जो राज्यों में ओषधियों के नियंत्रण के भारसाधक हैं; केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले दो व्यक्ति;

  1. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 2 द्वारा मूल खण्ड (ङ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा खण्ड (च) का लोप किया गया ।
  3. 1972 के अधिनियम सं० 19 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित ।
  4. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 3 द्वारा (15-9-1964 से) अंतःस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 4 द्वारा (15-9-1964 से) उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(x) किसी भारतीय विश्वविद्यालय या उससे सम्बद्ध किसी कालेज के कर्मचारिवृन्द में फार्मेर्स या भेषजिक रसायन या भेषज-अभिज्ञान के शिक्षकों में से भारतीय फार्मेसी परिषद् की कार्यपालिका समिति द्वारा निर्वाचित किया जाने वाला          एक व्यक्ति;

(xi) किसी भारतीय विश्वविद्यालय या उससे सम्बद्ध किसी कालेज के कर्मचारिवृन्द में ओषधि या चिकित्सा शास्त्र के शिक्षकों में से भारतीय चिकित्सा परिषद् की कार्यपालिका समिति द्वारा निर्वाचित किया जाने वाला एक व्यक्ति;

(xii) भेषजिक उद्योग से केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाने वाला एक व्यक्ति;

(xiii) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के शासी निकाय द्वारा निर्वाचित किया जाने वाला एक भेषज गुण विज्ञानी; 

                                (xiv) भारतीय चिकित्सा संगम की केन्द्रीय परिषद् द्वारा निर्वाचित किया जाने वाला एक व्यक्ति;

                                (xv) भारतीय भेषजिक संगम की परिषद् द्वारा निर्वाचित किया जाने वाला एक व्यक्ति;

                (xvi) इस अधिनियम के अधीन सरकारी विश्लेषक का पद धारण करने वाले दो व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे ।]

(3) बोर्ड के नामनिर्देशित और निर्वाचित सदस्य अपना पद तीन वर्ष तक धारण करेंगे, किन्तु पुनर्नामनिर्देशन और पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होंगे:

 1[परन्तु उपधारा (2) के खण्ड (ix) या खण्ड (x) या खण्ड (xi) या खण्ड (xvi) के अधीन, यथास्थिति, नामनिर्देशित या निर्वाचित व्यक्ति तब तक पद धारण करता रहेगा, जब तक वह उस पद की नियुक्ति धारण किए रहता है जिसके आधार पर वह बोर्ड में नामनिर्देशित या निर्वाचित किया गया था ।]

(4) केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन रहते हुए बोर्ड, अपनी गणपूर्ति नियत करने वाली और अपनी प्रक्रिया और अपने द्वारा किए जाने वाले सब कामकाज का संचालन विनियमित करने वाली उपविधियां बना सकेगा ।

(5) बोर्ड उपसमितियां गठित कर सकेगा और ऐसी उपसमितियों में तीन वर्ष से अधिक न होने वाली ऐसी कालावधियों के लिए, जैसी वह विनिश्चित करे, या विशिष्ट मामलों के विचारार्थ, अस्थायी रूप में, ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त कर सकेगा, जो बोर्ड के सदस्य नहीं हैं ।

(6) बोर्ड में किसी रिक्तता के होते हुए भी उसके कृत्य किए जा सकेंगे ।

(7) केन्द्रीय सरकार किसी व्यक्ति को बोर्ड का सचिव नियुक्त करेगी और बोर्ड के लिए ऐसे लिपिकीय और अन्य कर्मचारिवृन्द उपलब्ध करेगी जैसे केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझती है ।

6. केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला-(1) केन्द्रीय सरकार अपने द्वारा नियुक्त किए जाने वाले निदेशक के नियंत्रणाधीन एक केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला उन कृत्यों को करने के लिए यथाशक्य शीघ्र स्थापित करेगी जो उसे इस अधिनियम द्वारा या इस अध्याय के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों द्वारा सौंपे गए हैं:

परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार ऐसा विहित करे तो किसी ओषधि या ओषधियों के वर्ग 2[या प्रसाधन सामग्री या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] के लिए केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला के कृत्य केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान, कसौली में या किसी अन्य विहित प्रयोगशाला में किए जाएंगे और ऐसे ओषधि या ओषधियों के वर्ग 2[या प्रसाधन सामग्री या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] के बारे में केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला निदेशक के कृत्य, यथास्थिति, उस संस्था के या उस प्रयोगशाला के निदेशक द्वारा किए जाएंगे ।

  1. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 4 द्वारा (15-9-1964 से) परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 5 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।

(2) केन्द्रय सरकार बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् निम्नलिखित को विहित करने वाले नियम बना सकेगी

                (क) केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला के कृत्य;

 1।                                            ।                                              ।                                              ।                                              ।

(घ) विश्लेषण या परख के लिए ओषधियों 2[या प्रसाधन सामग्रियों] के नमूनों को उक्त प्रयोगशाला को 3[अध्याय 4 या अध्याय 4क के अधीन] भेजने की प्रक्रिया, प्रयोगशाला की तत्सम्बन्धी रिपोर्टों के प्ररूप और ऐसी रिपोर्टों के लिए                       देय फीसें;

(ङ) ऐसी अन्य बातें जो उक्त प्रयोगशाला को अपने कृत्यों को करने के लिए योग्य बनाने के लिए आवश्यक या समीचीन हों;

                (च) उपधारा (1) के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए विहित किए जाने के लिए आवश्यक विषय ।

7. ओषधि परामर्श समिति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रशासन में समस्त 4[भारत] में एकरूपता लाने की प्रवृत्ति रखने वाली किसी बात पर, केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों और ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड को सलाह देने के लिए ओषधि परामर्श समिति" कहलाने वाली एक सलाहकार समिति गठित कर सकेगी ।

(2) ओषधि परामर्श समिति केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले उस सरकार के दो प्रतिनिधियों से और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले प्रत्येक राज्य सरकार के एक-एक प्रतिनिधि से मिलकर गठित होगी ।

(3) ओषधि परामर्श समिति केन्द्रीय सरकार द्वारा अपेक्षित किए जाने पर अधिविष्ट होगी और उसे अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करने की शक्ति होगी ।            

 5[7क. आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधियों को धारा 5 और 7 का लागू न होना-धारा 5 और 7 में अन्तर्विष्ट कोई बात 6[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधियों को लागू नहीं होगी ।

अध्याय 3

7[ओषधियों और प्रसाधन सामग्री का आयात]

8. क्वालिटी के मानक-8[(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए “मानक क्वालिटी" पद से अभिप्रेत है

(क) ओषधि के संबंध में यह कि ओषधि 9[द्वितीय अनुसूची] में उपवर्णित मानक का अनुवर्तन करती है, और

(ख) प्रसाधन सामग्री के संबंध में यह कि प्रसाधन सामग्री ऐसे मानक का अनुवर्तन करती है जैसा विहित किया जाए ।]

  1. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 4 द्वारा खण्ड (ख) और (ग) का लोप किया गया ।
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 5 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  3. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 5 द्वारा (15-9-1964 से) अध्याय 4 के अधीन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 6 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 4 द्वारा (1-2-1983 से) अध्याय 3 के नीचे शीर्षक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 2 द्वारा (27-7-1964 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  9. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 7 द्वारा (15-9-1964 से) अनुसूची के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(2) केन्द्रीय सरकार, इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए 9[द्वितीय अनुसूची] का परिवर्धन या अन्यथा संशोधन, बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् और वैसा करने के आपने आशय की तीन मास से अन्यून की सूचना शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा देकर, वैसी ही अधिसूचना द्वारा कर सकेगी और तब 9[द्वितीय अनुसूची] तद्नुकूल संशोधित समझी जाएगी ।                

 1[9. मिथ्या छाप वाली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी ओषधि को मिथ्या छाप वाली समझा जाएगा

(क) यदि वह इस प्रकार रंजित, विलेपित, चूर्णकृत या पालिश की हुई है कि नुकसान छिप जाता है या यदि वह उससे बेहतर या अधिक चिकित्सीय महत्व की होनी अभिव्यक्त की गई है जितनी कि वह वास्तव में है; या    

(ख) यदि उस पर लेबल विहित रीति से नहीं लगाया जाता है; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र अथवा ओषधि के साथ की किसी चीज पर कोई ऐसा कथन, डिजाइन या युक्ति है जो उस ओषधि के लिए कोई मिथ्या दावा करती है अथवा जो किसी विशिष्टि में मिथ्या या भुलवा देने वाली है ।]

 2[9. अपमिश्रित ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी ओषधि को अपमिश्रित समझा जाएगा,

(क) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी गंदे, गलित या विघटित पदार्थ से बनी है; या

(ख) यदि वह अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार की गई, पैक की गई या भंडार में रखी गई है जिससे वह गंदगी से संदूषित हो गई या जिससे वह स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर हो गई हो; या

(ग) यदि उसका पात्र पूर्णतः या भागतः किसी विषैले या हानिकारक पदार्थ से बना हो जो उसकी अन्तर्वस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर बना दे; या

(घ) यदि केवल रंजन के प्रयोजनों के लिए उसमें ऐसा रंग है या अन्तर्विष्ट है जो विहित रंग से भिन्न है; या

(ङ) यदि उसमें कोई ऐसा हानिकर या विषैला पदार्थ अंतर्विष्ट है जो उसे स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर बना दे; या

(च) यदि उसके साथ कोई ऐसा पदार्थ मिलाया गया हो जिससे उसकी क्वालिटी या सामर्थ्य घट जाए ।

9. नकली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी ओषधि को नकली समझा जाएगा,

                (क) यदि वह ऐसे नाम से आयात की जाती है जो किसी अन्य ओषधि का नाम है; या

                (ख) यदि वह किसी अन्य ओषधि की नकल है या उसके बदले में है या उससे इस प्रकार मिलती-जुलती है कि धोखा हो जाए या उस पर या उसके लेबल अथवा पात्र पर किसी अन्य ओषधि का नाम है, जब तक कि वह साफ और संलक्ष्य रूप से इस प्रकार चिन्हित न हो कि उसका वास्तविक स्वरूप और ऐसी अन्य ओषधि के साथ अनन्यता का अभाव प्रकट हो जाए; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र पर उस ओषधि का विनिर्माता होना तात्पर्यित किसी ऐसे व्यष्टि या कम्पनी का नाम है जो व्यष्टि या कम्पनी काल्पनिक है या अस्तित्व में नहीं है; या

                (घ) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी अन्य ओषधि या पदार्थ से प्रतिस्थापित कर दी गई है; या

                (ङ) यदि उससे ऐसे विनिर्माता का उत्पाद होना तात्पर्यित है जिसका उत्पाद वह वास्तव में नहीं है ।

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 5 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 9 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 6 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 9क और धारा 9ख के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

9. मिथ्या छाप वाली प्रसाधन सामग्रियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी प्रसाधन सामग्री को मिथ्या छाप वाली समझा जाएगा,

(क) यदि उसमें ऐसा रंग है जो विहित नहीं है; या

(ख) यदि उस पर लेबल विहित रीति से नहीं लगाया जाता है; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र अथवा उसके साथ की किसी चीज पर कोई ऐसा कथन है जो किसी विशिष्टि में मिथ्या या भुलावा देने वाला है ।   

9. नकली प्रसाधन सामग्रियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी प्रसाधन सामग्री को नकली समझा जाएगा,                           

(क) यदि वह ऐसे नाम से आयात की जाती है जो किसी अन्य प्रसाधन सामग्री का नाम है; या

(ख) यदि वह किसी अन्य प्रसाधन सामग्री की नकल है या उसके बदले में है या उससे इस प्रकार मिलती-जुलती है कि धोखा हो जाए या उस पर या उसके लेबल अथवा पात्र पर किसी अन्य प्रसाधन सामग्री का नाम है, जब तक कि वह साफ और संलक्ष्य रूप से इस प्रकार चिह्नित न हो कि उसका वास्तविक स्वरूप और ऐसी अन्य प्रसाधन सामग्री के साथ अनन्यता का अभाव प्रकट हो जाए; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र पर उस प्रसाधन सामग्री का विनिर्माता होना तात्पर्यित किसी ऐसे व्यष्टि या कम्पनी का नाम है जो व्यष्टि या कम्पनी काल्पनिक है या अस्तित्व में नहीं है; या                             

(घ) यदि उससे ऐसे विनिर्माता का उत्पाद होना तात्पर्यित है जिसका उत्पाद वह वास्तव में नहीं है ।] 

10. कतिपय ओषधियों या प्रसाधन सामग्रियों के आयात का प्रतिषेध-उस 1तारीख से जो केन्द्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त नियत की जाए, कोई व्यक्ति निम्नलिखित का आयात नहीं करेगा  

                                (क) कोई ऐसी ओषधि 2[या प्रसाधन सामग्री] जो मानक क्वालिटी की नहीं है;

                                 3[(ख) कोई मिथ्या छाप वाली ओषधि 4[या मिथ्या छाप वाली या नकली प्रसाधन सामग्री]; 

                                 5[(खख) कोई 6[अपमिश्रित या नकली ओषधि;]

(ग) कोई ओषधि 2[या प्रसाधन सामग्री] जिसके आयात के लिए अनुज्ञप्ति विहित हैं, ऐसी अनुज्ञप्ति के अधीन और अनुकूल से अन्यथा ;]

 7[(घ) कोई पेटेण्ट या साम्पत्तिक ओषधि, जब तक कि उसके लेबल या पात्र पर विहित रीति से, 8[उसमें अन्तर्विष्ट सक्रिय संघटकों का सही फार्मूला या सूची उनके परिणामों के साथ संप्रदर्शित न हों];

  1. अप्रैल, 1947 खण्ड (क), (ख), (ग), (ङ) और (च) के लिए और 1 अप्रैल, 1947 खण्ड (घ) के लिए देखिए अधिसूचना सं० 18-12/46-डी-1, तारीख 11 फरवरी, 1947, 1947 के भारत के राजपत्र के भाग 1, पृ० 189 जो अधिसूचना सं० एफ०-1-2/448-डी०-(1), तारीख, 29-9-1948 द्वारा यथासंशोधित हुआ । अधिसूचना सं० एस० आर० ओ० 666, तारीख 30-3-1953, 1953 (अंग्रेजी) के भारत के राजपत्र, भाग 2, खण्ड 3, पृ० 451 द्वारा, हिमाचल प्रदेश, बिलासपुर, कच्छ, भोपाल, त्रिपुरा, विन्ध्यप्रदेश और मणिपुर राज्यों के लिए 1 अप्रैल, 1953 । 
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 8 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 8 द्वारा (27-7-1964 से) खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 7 द्वारा (1-2-1983 से) या मिथ्या छाप वाली प्रसाधन सामग्री के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 9 द्वारा (15-9-1964 से) अंतःस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 7 द्वारा (1-2-1983 से) अपमिश्रित ओषधि के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 5 द्वारा खंड (घ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 7 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ङ) कोई ओषधि जो उसके साथ के किसी कथन, परिकल्पना या आकृति से या किसी अन्य साधन से, किसी ऐसे रोग या व्याधि का ठीक करना या उसका शमन करना अथवा कोई ऐसा अन्य प्रभाव जैसा विहित किया जाए रखना तात्पर्यित करती है या उसका दावा करती है;

 2[(ङङ) कोई प्रसाधन सामग्री जिसमें कोई ऐसे संघटक अन्तर्विष्ट हों जो उसे ऐसे निदेशों के अधीन, जो उपदर्शित किए गए हों या जिनकी सिफारिश की गई हो प्रयोग के लिए असुरक्षित या अपहानिकर बनाएं;]

(च) कोई ऐसी ओषधि 2[या प्रसाधन सामग्री] जिसका आयात इस अध्याय के अधीन बनाए गए नियम द्वारा प्रतिषिद्ध है:

परन्तु इस धारा की कोई बात परीक्षा, परख या विश्लेषण के प्रयोजन के लिए या व्यक्तिगत उपयोग के लिए किसी ओषधि के विहित शर्तों के अध्यधीन थोड़े परिमाण में आयात को लागू नहीं होगी:

परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किन्हीं शर्तों के अध्यधीन, मानक क्वालिटी की न होने वाली किसी ओषधि या ओषधियों के वर्ग के आयात की अनुज्ञा दे सकेगी ।

 1।                                                      ।                                                         ।                                                      ।

 2[10. लोकहित में ओषधियों और प्रसाधन सामग्रियों के आयात का प्रतिषेध करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-इस अध्याय के किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के उपयोग से मनुष्यों या पशुओं के लिए कोई जोखिम अन्तवर्लित होने की सम्भाव्यता है अथवा कोई ओषधि उतने चिकित्सीय महत्व की नहीं है जितने का उसकी बाबत दावा किया गया है अथवा उसमें ऐसी ओर इतनी मात्रा में संघटक है जिसके लिए कोई चिकित्सीय औचित्य नहीं है तथा लोकहित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो वह सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के आयात का प्रतिषेध कर सकेगी ।]

11. सागर सीमाशुल्क से संबद्ध विधि का लागू होना और सीमाशुल्क अधिकारियों की शक्तियां-(1) सागर सीमाशुल्कों से और ऐसे मालों से, जिसका आयात सागर सीमाशुल्क अधिनियम, 1878 (1878 का 8)3  की धारा 18 द्वारा प्रतिषिद्ध है, संबद्ध तत्समय प्रवृत्त विधि इस अधिनियम की धारा 13 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उन ओषधियों 4[और प्रसाधन सामग्रियों] के बारे में लागू होगी, जिनका आयात इस अध्याय के अधीन प्रतिषिद्ध किया गया है, और सीमाशुल्क अधिकारियों और ऐसे अधिकारियों की, जो कि तद्द्वारा सीमाशुल्क कलक्टर और  5[सीमाशुल्क आयुक्त] के अन्य अधिकारियों पर अधिरोपित कर्तव्यों के पालन के लिए उस अधिनियम के अधीन सशक्त हैं, शक्तियां ऐसी ओषधियों  [और प्रसाधन सामग्रियों] के बारे में वही होगी, जैसी पूर्वोक्त जैसे मालों के बारे में उनकी तत्समय हैं । 

 7[(2) उपधारा (1) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना  8[सीमाशुल्क आयुक्त] या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत सरकार का कोई अधिकारी ऐसे किसी आयात किए गए पैकेज को निरुद्ध कर सकेगा, जिसके बारे में उसे संदेह है कि उसके भीतर कोई ऐसी ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] अन्तर्विष्ट है, जिसका आयात इस अध्याय के अधीन प्रतिषिद्ध है, और ऐसे निरोध की रिपोर्ट ओषधि नियंत्रक, भारत, को तत्काल करेगा, और यदि आवश्यक हो, तो वह पैकेज या उसमें पाई गई किसी संदेहजनक ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] का नमूना केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला को भेजेगा ।]

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 7 द्वारा (1-2-1983 से) स्पष्टीकरण का लोप किया गया ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 7 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  3. अब सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) देखिए ।
  4. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 9 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  5. 1995 के अधिनियम सं० 22 की धारा 83 द्वारा सीमाशुल्क कलक्टर के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 9 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  7. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 6 द्वारा उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  8. 1995 के अधिनियम सं० 22 की धारा 83 द्वारा सीमाशुल्क कलक्टर के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

12. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार 3[बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात्] या उसकी सिफारिश पर और शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा पूर्व प्रकाशन के पश्चात् इस अध्याय के उपबन्धों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी:

 1[परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जिनसे आवश्यक हो गया है कि बोर्ड के साथ ऐसे परामर्श के बिना नियम बना लिए जाएं तो बोर्ड के साथ परामर्श अभिमोचित किया जा सकेगा, किन्तु ऐसी दशा में नियम बना लेने के छह मास के अन्दर बोर्ड से परामर्श किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार किन्हीं भी ऐसे सुझावों पर, जो बोर्ड उक्त नियमों के संशोधन के संबंध में दे, विचार करेगी ।]

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम

(क) उन ओषधियों या ओषधियों के वर्ग  2[या प्रसाधन सामग्रियों या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] को, जिनके आयात करने के लिए अनुज्ञप्ति है, विनिर्दिष्ट कर सकेंगे  3[और ऐसी अनुज्ञप्तियों के प्ररूप और शर्तें, उनको देने के लिए सशक्त प्राधिकारी और उनके लिए देय फीसें विहित कर सकेंगे तथा किसी ऐसी दशा में, जिसमें इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए नियमों के किसी उपबंध का उल्लंघन किया जाता है या उन शर्तों में से किसी का, जिनके अधीन रहते हुए अनुज्ञप्ति दी गई है, अनुपालन नहीं किया जाता है, ऐसी अनुज्ञप्ति के रद्दकरण या निलम्बन के लिए उपबंध कर सकेंगे ] ;

(ख) यह अवधारण करने में की जाने वाली परख या विश्लेषण के ढंग विहित कर सकेंगे कि क्या कोई ओषधि 5[या प्रसाधन सामग्री] नामक क्वालिटी की है;

(ग) जीवी और अंग-धात्त्विक सम्मिश्रणों के संबंध में मानकीकरण की इकाइयां या ढंग विहित कर सकेंगे;

 4[(गग) 5[धारा 9क] के खण्ड (घ) के अधीन उस रंग या उन रंगों को विहित कर सकेंगे जो रंजन के प्रयोजनों के लिए किसी ओषधि में हों या अन्तर्विष्ट हो सकेंगे;]

(घ) उन रोगों और व्याधियों को जिनका 6[निवारण, ठीक या शमन करना] तात्पर्यित या उसका दावा कोई आयात ओषधि नहीं करती और ऐसे अन्य प्रभावों को जिनका रखना तात्पर्यित या उसका दावा ऐसी ओषधि नहीं करती, विनिर्दिष्ट कर सकेंगे;

(ङ) ऐसी शर्तों को विहित कर सकेंगे, जिनके अधीन रहते हुए उन ओषधियों का, जिनका आयात इस अध्याय के अधीन अन्यथा प्रतिषिद्ध है, परीक्षा, परख या विश्लेषण के लिए या व्यक्तिगत उपयोग के लिए थोड़े परिमाण में आयात किया जा सकेगा;

(च) उन स्थानों को विहित कर सकेंगे जिनमें ओषधियां 7[या प्रसाधन सामग्री] आयात की जा सकेंगी, और किसी अन्य स्थान में उनका आयात प्रतिषिद्ध कर सकेंगे;

(छ) यह अपेक्षित कर सकेंगे कि किसी विनिर्दिष्ट आयात ओषधि या ऐसी ओषधियों के वर्ग के विनिर्माण की तारीख और सशक्तता के अवसान की तारीख उनके लेबल या अन्तर्वेष्टक पर स्पष्टतः और सही रूप में कथित की जाए और उक्त ओषधि या ओषधियों के वर्ग का उसके विनिर्माण की तारीख से किसी विनिर्दिष्ट कालवधि के अवसान के पश्चात् आयात प्रतिषिद्ध कर सकेंगे;

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 9 द्वारा (1-2-1983 से) बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित । 
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 10 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 9 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 10 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 9 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 9ख स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।
  8. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित ।

(ज) ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियों] के, नमूनों का आयातकर्ताओं द्वारा केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला द्वारा परीक्षा, परख या विश्लेषण के लिए भेजा जाना या प्राप्त किया जाना विनियमित कर सकेंगे और ऐसी परीक्षा, परख या विश्लेषण के लिए देय फीसों को, यदि कोई हों, विहित कर सकेंगे;

(झ) उन ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियों] की, जिनका आयात चाहा गया है, क्वालिटी का, चाहे साथ की दस्तावेजों से या अन्यथा दिया जाने वाला साक्ष्य, ऐसे साक्ष्य के बारे में सीमा-शुल्क के अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की प्रक्रिया और प्रवेश लम्बित रहने तक निरुद्ध ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियों] के आयात के स्थानों पर भंडारकरण की रीति, विहित कर सकेंगे;

(ञ) उन ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियों] को, जो भारत में होकर पार जाने के लिए और 2[भारत] से निर्यात के प्रयोजन के लिए ही आयात की गई हैं, इस अध्याय के और तद्धीन बनाए गए नियमों के सब या किन्हीं उपबंधों से सशर्त या अन्यथा छूट देने के लिए उपबन्ध कर सकेंगे;

(ट) आयात ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियों] को बोतलों, पैकेजों या अन्य आधानों में 3[पैक करने में जिसके अन्तर्गत पैक करने की ऐसी सामग्री का उपयोग भी है जो ओषधियों से सीधे संपर्क में आती है, पालनीय शर्तें विहित कर सकेंगे];

(ठ) पैकेजों में विक्रय के लिए आयात की गई ओषधियों 1[या प्रसाधन सामग्रियो] पर लेबल लगाने का तरीका विनियमित कर सकेंगे, और वे बातें विहित कर सकेंगे जो ऐसे लेबलों में हो सकेंगी या नहीं हो सकेंगी;

(ड) ऐसे किसी विषैले पदार्थ के अधिकतम अनुपात को विहित कर सकेंगे, जो किसी आयात ओषधि में मिलाया जा सकेगा या अन्तर्विष्ट किया जा सकेगा, ऐसी किसी ओषधि के आयात को प्रतिषिद्ध कर सकेंगे जिसमें वह अनुपात अधिक हो गया है, और उन पदार्थों को विनिर्दिष्ट कर सकेंगे, जो इस अध्याय और तद्धीन बनाए गए नियमों के प्रयोजनार्थ विषैले समझे जाएंगे;

(ढ) यह अपेक्षित कर सकेंगे कि किसी विनिर्दिष्ट ओषधि का स्वीकृत वैज्ञानिक नाम ऐसी किसी आयात की हुई पेटेन्ट या साम्पत्तिक ओषधि के लेबल या आवेष्टक पर, जिसमें ऐसी ओषधि अन्तर्विष्ट है, विहित रीति में सम्प्रदर्शित किया जाए;

(ण) इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए नियमों के सब या किन्हीं उपबंधों के किसी विनिर्दिष्ट ओषधि या ओषधियों के वर्ग 1[या प्रसाधन सामग्री या प्रसाधन सामग्रियों] के वर्ग को सशर्त या अन्यथा छूट देने के लिए उपबन्ध कर सकेंगे ।

                 4[13. अपराध-(1) जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,

(क) किसी ऐसी ओषधि का आयात करेगा जो धारा 9क के अधीन अपमिश्रित समझी गई है या धारा 9ख के अधीन नकली ओषधि समझी गई है, या किसी ऐसी नकली प्रसाधन सामग्री का जो धारा 9घ में निर्दिष्ट है अथवा किसी ऐसी प्रसाधन सामग्री का जो धारा 10 के खण्ड (ङङ) में निर्दिष्ट प्रकृति की है, आयात करेगा, वह कारावास से जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा;

(ख) खण्ड (क) में निर्दिष्ट ओषधि या प्रसाधन सामग्री से भिन्न किसी ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का आयात करेगा जिसका आयात धारा 10 या इस अध्याय के अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन प्रतिषिद्ध है, कारावास से जो छह मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा;

  1. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 10 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  2. 1951 के अधिनियम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 9 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 10 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 13 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ग) धारा 10क के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना के उपबन्धों के उल्लंघन में किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का आयात करेगा, वह कारावास से जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

                (2) जो कोई किसी अपराध का,

(क) उपधारा (1) के खण्ड (क) या खण्ड (ग) के अधीन सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाता है, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा;

(ख) उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाता है, वह कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

                (3) इस धारा द्वारा उपबन्धित दंड किसी ऐसी शास्ति के अतिरिक्त होगा जिसके लिए अपराधी धारा 11 के उपबंधों के अधीन दायित्वाधीन हो ।]               

14. अधिहरण-जहां धारा 13 के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है, वहां उस ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्रि] का वह परेषित परिमाण जिसके बारे में अपराध किया गया है, अधिहरणीय होगा ।                

15. अधिकारिता- 2[महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट से] अवर कोई न्यायालय धारा 13 के अधीन दंडनीय अपराध का विचारण नहीं करेगा ।

अध्याय 4

3[ओषधियों और प्रसाधन सामग्रियों का] विनिर्माण, विक्रय और वितरण

16. क्वालिटी के मानक- 4[(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए “मानक क्वालिटी" पद से अभिप्रेत है

(क) ओषधि के संबंध में यह कि ओषधि 5[द्वितीय अनुसूची] में उपवर्णित मानक का अनुवर्तन करती है, और

(ख) प्रसाधन सामग्री के संबंध में यह कि प्रसाधन सामग्री ऐसे मानक का अनुवर्तन करती है जैसा विहित किया जाए ।]                (2) 6[केन्द्रीय सरकार,] इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए 5[द्वितीय अनुसूची] का परिवर्धन या अन्यथा संशोधन, बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् और ऐसा करने के अपने आशय की तीन मास से अन्यून की सूचना शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा देकर, वैसी ही अधिसूचना द्वारा कर सकेगी और तब 5[द्वितीय अनुसूची] तद्नुकूल संशोधित समझी जाएगी ।

 7[17. मिथ्या छाप वाली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी ओषधि को मिथ्या छाप वाली समझा जाएगा,

(क) यदि वह इस प्रकार रंजित, विलेपित, चूर्णकृत या पालिश की हुई है कि नुकसान छिप जाता है या यदि वह उससे बेहतर या अधिक चिकित्सीय महत्व की होनी अभिव्यक्त की जाती है जितनी कि वह वास्तव में है; या

(ख) यदि उस पर लेबल विहित रीति से नहीं लगाया जाता है; या

  1. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 11 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 11 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । 
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 12 द्वारा (1-2-1983 से) ओषधियों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 12 द्वारा (27-7-1964 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 11 द्वारा (15-9-1964 से) अनुसूची के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 8 द्वारा राज्य सरकार के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 13 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 17, 17क और 17ख के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र अथवा ओषधि के साथ की किसी चीज पर कोई ऐसा कथन, डिजाइन या युक्ति है जो उस ओषधि की बाबत कोई मिथ्या दावा करती है अथवा जो किसी विशिष्टि में मिथ्या या भुलावा देने वाली है ।

17. अपमिश्रित ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी ओषधि को अपमिश्रित समझा जाएगा,

(क) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी गंदे, गलित या विघटित पदार्थ से बनी है; या

(ख) यदि वह अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार की गई, पैक की गई या भंडार में रखी गई है जिससे वह गंदगी से संदूषित हो गई हो या जिससे वह स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर हो गई हो; या

(ग) यदि उसका पात्र पूर्णतः या भागतः किसी विषैले या हानिकारक पदार्थ से बना हो, जो उसकी अन्तर्वस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर बना दे; या

(घ) यदि केवल रंजन के प्रयोजनों के लिए उसमें ऐसा रंग है या अन्तर्विष्ट है जो विहित रंग से भिन्न है; या

(ङ) यदि उसमें कोई हानिकर या विषैले पदार्थ अन्तर्विष्ट हैं जो उसे स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर बना दें; या

(च) यदि उसके साथ कोई पदार्थ मिलाया गया हो जिससे उसकी क्वालिटी या सामर्थ्य घट जाए ।

17. नकली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए ओषधि को नकली समझा जाएगा,

(क) यदि उसे ऐसे नाम से विनिर्मित किया गया है जो किसी अन्य ओषधि का है; या

(ख) यदि वह किसी अन्य ओषधि की नकल है या उसके बदले में है, या उससे इस प्रकार मिलती-जुलती है कि धोखा हो जाए या उस पर या उसके लेबल अथवा पात्र पर किसी अन्य ओषधि का नाम है, जब तक कि वह साफ और संलक्ष्य रूप से इस प्रकार चिन्हित न हो कि उसका वास्तविक स्वरूप और ऐसी अन्य ओषधि के साथ अनन्यता का अभाव प्रकट हो जाए; या    

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र पर उस ओषधि का विनिर्माता होना तात्पर्यित किसी ऐसे व्यष्टि या कम्पनी का नाम है जो व्यष्टि या कम्पनी काल्पनिक है या अस्तित्व में नहीं है; या

(घ) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी अन्य ओषधि या पदार्थ से प्रतिस्थापित कर दी गई है; या

(ङ) यदि उससे ऐसे विनिर्माता का उत्पाद होना तात्पर्यित है जिसका उत्पाद वह वास्तव में नहीं है ।

17. मिथ्या छाप वाली प्रसाधन सामग्रियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी प्रसाधन सामग्री को मिथ्या छाप वाली समझा जाएगा,

(क) यदि उसमें ऐसा रंग है जो विहित नहीं है; या

(ख) यदि उस पर लेबल विहित से नहीं लगाया जाता है; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र अथवा उसके साथ की किसी चीज पर कोई ऐसा कथन है जो किसी विशिष्टि में मिथ या भुलावा देने वाला है ।

17. नकली प्रसाधन सामग्रियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी प्रसाधन सामग्री को नकली समझा जाएगा,

(क) यदि उसे ऐसे नाम से विनिर्मित किया गया है जो किसी अन्य प्रसाधन सामग्री का है; या

(ख) यदि वह किसी अन्य प्रसाधन सामग्री की नकल है या उसके बदले में है या उससे इस प्रकार मिलती-जुलती है कि धोखा हो जाए या उस पर या उसके लेबल अथवा पात्र पर किसी अन्य प्रसाधन सामग्री का नाम है, जब तक कि वह साफ और संलक्ष्य रूप से इस प्रकार चिन्हित न हो कि उसका वास्तविक स्वरूप और ऐसी अन्य प्रसाधन सामग्री के साथ अनन्यता का अभाव प्रकट हो जाए; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र पर उस प्रसाधन सामग्री का विनिर्माता होना तात्पर्यित किसी ऐसे व्यष्टि या कम्पनी का नाम है जो व्यष्टि या कम्पनी काल्पनिक है या अस्तित्व में नहीं है; या

(घ) यदि उससे ऐसे विनिर्माता का उत्पाद होना तात्पर्यित है जिसका उत्पाद वह वास्तव में नहीं है ।]               

 1[17 अपमिश्रित प्रसाधन सामग्रियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी प्रसाधन सामग्री को अपमिश्रित समझा जाएगा,

(क) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी गंदे, गलित या विघटित पदार्थ से बनी है; या            

(ख) यदि वह अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार की गई, पैक की गई या भंडार में रखी गई है जिससे वह गंदगी से संदूषित हो गई हो या जिससे वह स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो गई हो; या

(ग) यदि उसका पात्र पूर्णतः या भागतः किसी विषैले या हानिकारक पदार्थ से बना हो, जो उसकी अंतर्वस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए हानिकर बना दे; या

(घ) यदि केवल रंजन के प्रयोजनों के लिए उसमें ऐसा रंग है या अंतर्विष्ट है जो विहित रंग से भिन्न है; या                            

(ङ) यदि उसमें कोई ऐसा अपहानिकर या विषैला पदार्थ अंतर्विष्ट है जो उसे स्वास्थ्य के लिए हानिकर बना दे; या

(च) यदि उसके साथ कोई पदार्थ मिलाया गया हो जिससे उसकी क्वालिटी या सामर्थ्य घट जाए ।]

18. कतिपय ओषधियों और प्रसाधन सामग्रियों के विनिर्माण और विक्रय का प्रतिषेध-उस तारीख2 से जो राज्य सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निमित्त नियत की जाए, कोई व्यक्ति स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा

(क) निम्नलिखित को 3[विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्मित नहीं करेगा या विक्रय नहीं करेगा या स्टाक में नहीं रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित या प्रस्थापित नहीं करेगा] या वितरित नहीं करेगा

4[(i) कोई ऐसी ओषधि जो मानक क्वालिटी की नहीं है या मिथ्या छाप वाली, अपमिश्रित या नकली है;

 5[(ii) कोई ऐसी प्रसाधन सामग्री जो मानक क्वालिटी की नहीं है या मिथ्या छाप वाली अपमिश्रित या नकली है;]

 6[(iii) कोई पेटेन्ट या साम्पत्तिक ओषधि, जब तक कि उसके लेबल या आधान पर विहित रीति से, 7[उसमें अन्तर्विष्ट सक्रिय संघटकों का सही फार्मूला या सूची, उनके परिणामों के साथ संप्रर्दिशत न हो;]

  1. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. खंड (क), (ख) और (ग) के उपखंड (i), (ii), (iv) और (v) के लिए 1 अप्रैल, 1947 ; खंड (क) के उपखंड (iii) के लिए 1 अप्रैल, 1949 जहां यह दिल्ली, अजमेर और कुर्ग में प्रभावी होते हैं, देखिए अधिसूचना सं० 18-12/46-डी०-ii, तारीख 11-2-1947, 1947 के भारत के राजपत्र, भाग 1 पृ० 189, जो अधिसूचना सं० एफ० 1-2/48-डी० (ii), तारीख 29-9-1948 द्वारा यथा संशोधित हुआ । अधिसूचना सं० एस० आर० ओ० 664 तारीख 30-3-1953, (अंग्रेजी), 1953 के भारत के राजपत्र, भाग 2, खंड 3, पृष्ठ 451 द्वारा हिमाचल प्रदेश, बिलासपुर, कच्छ, भोपाल, त्रिपुरा, विन्ध्य प्रदेश और मणिपुर राज्यों के लिए 1 अप्रैल, 1953 । 
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 14 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 14 द्वारा (1-2-1983 से) खंड (i), (ii) और (iiक) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  6. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 9 द्वारा उपखंड (iii) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 14 द्वारा (1-2-1983 से) खंड (i), (ii) और (iiक) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(iv) कोई ओषधि जो उसके साथ के किसी कथन, डिजाइन या आकृति से या किसी अन्य साधन से, किसी ऐसे रोग या व्याधि का 1[निवारण करना, ठीक करना या उसका शमन करना] अथवा कोई ऐसा अन्य प्रभाव जैसा विहित किया जाए रखना तात्पर्यित करती है या उसका दावा करती है;

 2[(v) कोई प्रसाधन सामग्री जिसमें कोई ऐसा संघटक अन्तर्विष्ट हो जो उसे ऐसे निदेशों के अधीन, जो उपदर्शित किए गए हों या जिनकी सिफारिश की गई हो, प्रयोग के लिए असुरक्षित या अपहानिकर बनाए;

(vi) इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के उपन्धों में से किसी के उल्लंघन में कोई ओषधि या प्रसाधन सामग्री;]

                (ख) किसी ऐसी ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] का, जो इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्धों में से किसी के उल्लंघन में आयात या विनिर्मित की गई है, 4[विक्रय नहीं करेगा या स्टाक में नहीं रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित या प्रस्थापित नहीं करेगा];

                (ग) किसी ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] को 7[विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्मित या विक्रय या स्टाक या विक्रयार्थ प्रदर्शित या प्रस्थापित] अथवा वितरित इस अध्याय के अधीन ऐसे प्रयोजन के लिए दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसकी शर्तों के अनुसार करने के सिवाय नहीं करेगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात परीक्षा, परख या विश्लेषण के प्रयोजन के लिए किसी ओषधि की विहित शर्तों के अध्यधीन थोड़े परिमाण में विनिर्माण को लागू नहीं होगी:

परन्तु यह और कि 5[केन्द्रीय सरकार] बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किन्ही शर्तों के अधीन, मानक क्वालिटी की न होने वाली किसी ओषधि या ओषधियों के वर्ग के 7[विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण, विक्रय, स्टाक या विक्रयार्थ प्रदर्शन या प्रस्थापन या वितरण की अनुज्ञा दे सकेगी] ।

 6।                                            ।                                              ।                                              ।                                             ।

 7[18. विनिर्माता के नाम आदि का प्रकटन-प्रत्येक व्यक्ति जो किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का विनिर्माता या उसके वितरण के लिए उसका अभिकर्ता नहीं है, अपेक्षा किए जाने पर निरीक्षक को उस व्यक्ति का नाम, पता और अन्य विशिष्टियां प्रकट करेगा जिससे उसने वह ओषधि या प्रसाधन सामग्री अर्जित की ।]

 8[18. अभिलेखों का बनाए रखना और जानकारी का दिया जाना-प्रत्येक व्यक्ति जो धारा 18 के खंड (ग) के अधीन अनुज्ञप्ति धारण करता है, ऐसे अभिलेख, रजिस्टर और अन्य दस्तावेजें, जो विहित की जाएं, रखेगा और बनाए रखेगा तथा किसी ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी को, जो इस अधिनियम के अधीन किसी शक्ति का प्रयोग या किसी कृत्य का निर्वहन कर रहा है, ऐसी जानकारी देगा जो ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए अपेक्षित हो ।]

19. अभिवाक्-(1) इस धारा में इसके पश्चात् यथा उपबंधित के सिवाय, इस अध्याय के अधीन किसी अभियोजन में केवल यह सिद्ध करना कोई प्रतिरक्षा नहीं होगी कि जिस ओषधि 9[या प्रसाधन सामग्री] के बारे में अपराध किया गया है उस ओषधि के प्रकार, पदार्थ या क्वालिटी से या उसके विनिर्माण या आयात की परिस्थितियों से अभियुक्त अनभिज्ञ था, या कि क्रेता पर उस विक्रय द्वारा इसलिए कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि उसने उसे केवल परख या विश्लेषण के लिए खरीदा था ।

  1. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 9 द्वारा निरोग या शमन करने शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 14 द्वारा (27-7-1964 से) उपखंड (v) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 14 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 14 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 9 द्वारा राज्य सरकार शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । 
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 14 द्वारा (1-2-1983 से) स्पष्टीकरण का लोप किया गया ।
  7. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 14 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  8. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 15 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  9. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 15 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।

(2) 1[धारा 18 के प्रयोजनों के लिए किसी ओषधि का मिथ्या छाप वाली या 2[अपमिश्रित या नकली] या मानक क्वालिटी से निम्न होना अथवा किसी प्रसाधन सामग्री का मिथ्या छाप वाली या मानक क्वालिटी से निम्न होना केवल इस बात के कारण न समझा जाएगा कि

(क) उसमें कोई अनपकारी पदार्थ या संघटक इस कारण मिलाया गया है कि वह उस ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] को ऐसी वाणिज्यिक वस्तु के रूप में, जो वहन या उपभोग के लिए उपयुक्त दशा में हो, विनिर्मित या तैयार करने के लिए अपेक्षित है किन्तु जो उस ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] के प्रपुंज वजन या मात्रा को बढ़ाने के लिए अथवा उसकी घटिया क्वालिटी या अन्य त्रुटियों को छिपाने के लिए नहीं है; या

 4।                                                      ।                                                          ।                                                      ।                                         

(ख) विनिर्माण, तैयारी या प्रवहण की प्रक्रिया में कोई बाह्य पदार्थ उसके साथ अपरिहार्य रूप में अन्तर्मिश्रित हो चुका है; परन्तु यह खंड ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] के किसी ऐसे विक्रय या वितरण के बारे में लागू नहीं होगा, जो ऐसे अन्तर्मिश्रण से विक्रेता या वितरणकर्ता के अवगत हो जाने के पश्चात् होता है ।             

 5[(3) कोई व्यक्ति जो किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का विनिर्माता अथवा उसके वितरण के लिए उसका अभिकर्ता नहीं है धारा 18 के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार उस दशा में नहीं होगा जिसमें वह साबित कर देता है

(क) कि उसने उस ओषधि या प्रसाधन सामग्री का अर्जन उसके सम्यक् रूप से अनुज्ञप्त विनिर्माता, वितरक या व्यवहारी से किया है;

(ख) कि वह यह नहीं जानता था और युक्तियुक्त तत्परता से अभिनिश्चित नहीं कर सकता था कि वह ओषधि या प्रसाधन सामग्री किसी प्रकार उस धारा के उपबन्ध का उल्लंघन करती है; और

(ग) कि वह ओषधि या प्रसाधन सामग्री जब उसके कब्जे में थी तब उचित रूप से भंडारकृत थी और उसी दशा में रही जिसमें वह तब थी जब उसने उसका अर्जन किया था ।]

 6[20. सरकारी विश्लेषक-(1) राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विहित अर्हताओं वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझती है, राज्य में ऐसे क्षेत्रों के लिए तथा ऐसी ओषधियों या 7[ओषधियों के वर्गों अथवा ऐसी प्रसाधन सामग्रियों या प्रसाधन सामग्रियों के वर्गों] की बाबत, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हो सरकारी विश्लेषक नियुक्त कर सकेगी ।

(2) केन्द्रीय सरकार भी, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विहित अर्हताओं वाले ऐसे व्यक्तियों को जिन्हें वह ठीक समझती है ऐसी ओषधियों या 7[ओषधियों के वर्गों अथवा ऐसी प्रसाधन सामग्रियों या प्रसाधन सामग्रियों के वर्गों] की बाबत, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हों, सरकारी विश्लेषक नियुक्त कर सकेगी ।

  1. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 15 द्वारा (15-9-1964 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 16 द्वारा (1-2-1983 से) अपमिश्रित के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 15 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  4. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 10 द्वारा अन्तःस्थापित खण्ड (कक) का 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 15 द्वारा (15-9-1964 से) लोप किया गया ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 15 द्वारा (15-9-1964 से) उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 4 द्वारा (16-3-1961 से) मूल धारा 20 और धारा 21 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 16 द्वारा (27-7-1964 से) ओषधियों के वर्गं शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी न तो केन्द्रीय सरकार और न राज्य सरकार ही किसी ऐसे अधिकारी को जो उसके अधीन सेवा न कर रहा हो उस सरकार की, जिसके अधीन वह सेवा कर रहा हो, पूर्व सम्मति के बिना सरकारी विश्लेषक के रूप में नियुक्त करेगी ।

 1[(4) कोई भी व्यक्ति जिसका ओषधियों या प्रसाधन सामग्रियों के आयात, विनिर्माण या विक्रय में कोई वित्तीय हित है, इस धारा की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन सरकारी विश्लेषक नियुक्त नहीं किया जाएगा ।]

21. निरीक्षक-(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विहित अर्हताओं वाले ऐसे व्यक्तियों को जिन्हें वह ठीक समझती है ऐसे क्षेत्रों के लिए जो उन्हें, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा सौंपे जाएं, निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी ।

(2) शक्तियां जो निरीक्षक द्वारा प्रयुक्त की जा सकेंगी और कर्तव्य जिनका उस द्वारा पालन किया जा सकेगा, ओषधि या 2[ओषधियों के वर्ग अथवा प्रसाधन सामग्रियां या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] जिनके संबंध में तथा शर्त, परिसीमाएं या निर्बन्धन जिनके अध्यधीन ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग या पालन किया जा सकेगा ऐसे होंगे जैसे विहित किए जाएं ।

(3) इस धारा के अधीन किसी भी ऐसे व्यक्ति को निरीक्षक नियुक्त नहीं किया जाएगा जिसका 3[ओषधियों या प्रसाधन सामग्रियों के आयात, विनिर्माण या विक्रय में] कोई वित्तीय हित हो ।

(4) प्रत्येक निरीक्षक भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा और 4[विहित अर्हताएं रखने वाले ऐसे प्राधिकारी] का शासकीय रूप से अधीनस्थ होगा जिसे उसे नियुक्त करने वाली सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ।

 5[22. निरीक्षकों की शक्तियां-(1) धारा 23 के और इस निमित्त केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबन्धों के अध्यधीन कोई निरीक्षक उस क्षेत्र की उन स्थानीय सीमाओं के अन्दर, जिनके लिए वह नियुक्त किया गया है

 6[(क) (i) किसी ऐसे परिसर का, जिसमें कोई ओषधि या प्रसाधन सामग्री विनिर्मित की जा रही है, तथा उस ओषधि या प्रसाधन सामग्री के मानकीकरण और परख के लिए काम में लाए जाने वाले साधनों का निरीक्षण कर सकेगा;

(ii) किसी ऐसे परिसर का निरीक्षण कर सकेगा जिसमें किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का विक्रय या स्टाक या विक्रय के लिए प्रदर्शन या प्रस्थापन या वितरण किया जा रहा है;

(ख) ऐसी किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के,

(i) जो विनिर्मित की जा रही है या विक्रय की जा रही है या स्टाक की जा रही है या विक्रयार्थ प्रदर्शित या प्रस्थापित की जा रही है या वितरित की जा रही है;

(ii) किसी ऐसे व्यक्ति से, जो ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री किसी क्रेता या किसी परेषिती को प्रवहित करने, परिदत्त करने या परिदत्त करने की तैयारी के अनुक्रम में है,

                नमूने ले सकेगा:

                                (ग) सब युक्तियुक्त समयों पर ऐसी सहायता के साथ, यदि कोई हो, जिसे वह आवश्यक समझता है,

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 17 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  2. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 17 द्वारा (27-7-1964 से) ओषधियों के वर्ग शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 19 द्वारा (1-2-1964 से) ओषधियों के विनिर्माण, आयात या विक्रय में शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 18 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  5. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 11 द्वारा धारा 22 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियमसं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) खंड (क), (ख) और (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(i) किसी ऐसे व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने किसी ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री को अपने शरीर पर छिपाकर रखा है, जिसकी बाबत इस अध्याय के अधीन अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है; या

(ii) किसी ऐसे स्थान में प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसमें इस अध्याय के अधीन अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है; या

(iii) किसी ऐसे यान, जलयान, या अन्य सवारी को रोक सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा, जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसका किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री को वहन करने के लिए उपयोग किया जा रहा है जिसके बारे में इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है,

तथा उस व्यक्ति को जिसके कब्जे में वह ओषधि या प्रसाधन सामग्री है जिसके बारे में अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है, लिखित आदेश दे सकेगा कि वह ऐसी विनिर्दिष्ट कालावधि तक जो बीस दिन से अधिक की न होगी, ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के किसी स्टाक का व्ययन न करे, अथवा जब तक कि अभिकथित अपराध ऐसा न हो कि वह त्रुटि ओषधि या प्रसाधन सामग्री के कब्जाधारी द्वारा दूर की जा सकती है, ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के स्टाक और ऐसे पदार्थ या वस्तु को अभिगृहीत कर सकेगा, जिसके जरिए वह अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है या जिसे ऐसे अपराध के किए जाने के लिए काम में लाया जाए ; ]

1[(गग) 2[किसी व्यक्ति के पास या किसी स्थान, यान, जलयान या अन्य सवारी में, जो खंड (ग) में निर्दिष्ट है] पाए गए किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या किसी अन्य भौतिक पदार्थ की परीक्षा कर सकेगा और यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकता है तो उसे अभिगृहीत कर सकेगा;]

 3[(गगक) किसी व्यक्ति से किसी ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के, जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि इस अध्याय के अधीन अपराध किया जा चुका है या किया जा रहा है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण, स्टाक रखने, विक्रयार्थ प्रदर्शन, विक्रयार्थ या वितरणार्थ प्रस्थापन से सम्बन्धित कोई अभिलेख, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज पेश करने की अपेक्षा कर सकेगा;]

(घ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, जो इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक हों ।

(2) 4[दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2)] के उपबन्ध इस अध्याय के अधीन किसी तलाशी या अभिग्रहण को यथाशक्य वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उक्त संहिता की 5[धारा 94] के अधीन निकाले गए वारंट के प्राधिकार के अधीन की गई किसी तलाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं ।

  6[(2क) खंड (गग) के अधीन अभिगृहीत या खंड (गगक) के अधीन पेश किया गया प्रत्येक अभिलेख, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज उस व्यक्ति को जिससे वे अभिगृहीत किए गए थे या जिसने उन्हें पेश किया था, उनकी प्रतिलिपियां या उनमें से उद्धरणों के लिए जाने के पश्चात्, जो उस व्यक्ति द्वारा ऐसी रीति से जो विहित की जाए, प्रमाणित कर दिए गए हों, यथास्थिति, ऐसे अभिग्रहण या पेश किए जाने की तारीख के बीस दिन की अवधि के भीतर लौटा दिए जाएंगे ।]

  1. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 5 द्वारा (16-3-1961 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 98 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 19 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।

(3) यदि कोई व्यक्ति इस अध्याय के द्वारा या किसी निरीक्षक को प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में उसका 3[जानबूझकर बाधित करेगा या किसी अभिलेख, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज को पेश करने से तब जब उपधारा (1) के खंड (गगक) के अधीन उससे ऐसा करने की अपेक्षा की गई हो, इन्कार करेगा,] तो वह कारावास से, जो तीन वर्ष का हो सकेगा, जुर्माने से अथवा दोनों से दण्डनीय होगा ।

23. निरीक्षकों की प्रक्रिया-(1) जहां कोई निरीक्षक इस अध्याय के अधीन किसी ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] का नमूना लेता है वहां वह उसकी उचित कीमत निविदत्त करेगा और उसके लिए लिखित अभिस्वीकृति अपेक्षित कर सकेगा ।

(2) जहां उपधारा (1) के अधीन निविदत्त कीमत लेने से इन्कार किया जाता है, या जहां कोई निरीक्षक धारा 22 के खण्ड (ग) के अधीन किसी ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] के स्टाक को अभिगृहीत करता है वहां उसके लिए विहित प्ररूप में पावती का निविदान करेगा ।

(3) जहां कोई निरीक्षक किसी ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] का नमूना, परख या विश्लेषण के लिए लेता है वहां वह ऐसे प्रयोजन को विहित प्ररूप में लिखकर उस व्यक्ति को प्रज्ञापना देगा, जिससे उसको लेता है, और ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में, जब तक कि वह जानबूझकर स्वयं अनुपस्थित नहीं हो जाता, उस नमूने को चार प्रभागों में विभक्त करेगा और उन्हें प्रभावी रूप से मुहरन्द और उपयुक्त रूप से चिन्हित करेगा और ऐसे मुहरबन्द और चिन्हित सब या किन्हीं प्रभागों पर ऐसे व्यक्ति को अपनी मुहर और चिन्ह लगाने देगा :

परन्तु जहां नमूना उस परिसर ले लिया जाता है, जहां ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] विनिर्मित की जा रही है, वहां नमूने को केवल तीन प्रभागों में विभक्त करना आवश्यक होगा:

परन्तु यह और कि जहां ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] छोटे आकार के पात्रों में बनाई गई है, वहां पूर्वोक्त रूप में नमूने को विभक्त करने की बजाय निरीक्षक उक्त पात्रों में से, यथास्थिति, तीन या चार को समुचित रूपेण चिन्हित करके और जहां आवश्यक हो वहां मुहरबन्द करके ले सकेगा और यदि वह ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] ऐसी है कि उच्छन्न रहने से उसके क्षय होने या अन्यथा खराब हो जाने की सम्भाव्यता है, तो लेगा ।

(4) निरीक्षक ऐसे विभक्त किए गए नमूने का, यथास्थिति, एक प्रभाग या एक पात्र उस व्यक्ति को लौटाएगा जिससे वह उसको लेता है, और अवशेष को प्रतिधृत रखेगा, और उसका व्ययन निम्नलिखित रूप में करेगा, अर्थात्:

                (i) एक प्रभाग या पात्र को तुरन्त सरकारी विश्लेषक को परख या विश्लेषण के लिए भेजेगा,

                (ii) दूसरे को वह उस न्यायालय में पेश करेगा, जिसके समक्ष ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] के बारे में कार्यवाहियां, यदि कोई हों, संस्थित की गई हैं, और

 2[(iii) तीसरे को, जहां कि वह लिया गया हो, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, भेजेगा जिसका नाम, पता और अन्य विशिष्टियां धारा 18क के अधीन प्रकट की गई हैं ।]

(5) जहां कोई निरीक्षक धारा 22 के खण्ड (ग) के अधीन कोई कार्रवाई करता है, वहां

(क) वह यह अभिनिश्चित करने के लिए पूरी शीघ्रता से कार्रवाई करेगा कि वह ओषधि 4[या प्रसाधन सामग्री] धारा 18 के उपबंधों में से किसी का उल्लंघन करती है, या नहीं और यदि यह अभिनिश्चित हो गया है कि वह ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] ऐसा उल्लंघन नहीं करती है तो उक्त खंड के अधीन पारित आदेश को तुरन्त प्रतिसंहृत करेगा या, यथास्थिति, ऐसे अभिगृहीत स्टाक की वापसी के लिए कार्रवाई करेगा जैसी आवश्यक हो;

(ख) यदि वह ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] के स्टाक का अभिग्रहण करता है तो वह यथाशक्य शीघ्रता से 4[न्यायिक मजिस्ट्रेटट को उसकी इत्तिला देगा और उसकी अभिरक्षा के सम्बन्ध में उसके आदेश लेगा;

  1. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 15 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 16 द्वारा (15-9-1964 से) खंड (iii) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 15 द्वारा (27-7-1964 से) अंतःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 20 द्वारा (1-2-1983 से) मजिस्ट्रेट के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ग) किसी अभियोजन के संस्थित किए जाने पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि यदि अभिकथित उल्लंघन ऐसा है कि त्रुटि का उपचार ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] के कब्जाधारी द्वारा किया जा सकता है तो वह अपना यह समाधान हो जाने पर कि त्रुटि का वैसा उपचार किया जा चुका है, उक्त खंड के अधीन अपने आदेश का तुरन्त प्रतिसंहरण करेगा ।

                 1[(6) जहां कोई निरीक्षक धारा 22 की उपधारा (1) के खण्ड (गग) के अधीन किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या किसी अन्य भौतिक पदार्थ का अभिग्रहण करता है वहां वह यथाशक्य शीघ्रता से 2[न्यायिक मजिस्ट्रेटट को उसकी इत्तिला देगा और उसकी अभिरक्षा के सम्बन्ध में उसके आदेश लेगा ।]

                24. व्यक्तियों का उस स्थान को प्रकट करने के लिए आबद्ध होना जहां ओषधि या प्रसाधन सामग्रियां विनिर्मित की जाती या रखी जाती हैं-प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जो किन्हीं ऐसे परिसरों का, जिनमें कोई ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] विनिर्मित की जा रही है या विक्रय अथवा वितरण के लिए रखी जाती है, तत्समय के लिए भारसाधक है, निरीक्षक को वह स्थान जहां वह ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री], यथास्थिति, विनिर्मित की जा रही है या विक्रय अथवा वितरण के लिए रखी है, प्रकट करने के लिए उस दशा में वैध रूप से आबद्ध होगा जिसमें वह वैसा करने के लिए निरीक्षक द्वारा अपेक्षित किया जाए ।

                25. सरकारी विश्लेषकों की रिपोर्टें-(1) सरकारी विश्लेषक, जिसे परख या विश्लेषण के लिए किसी ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] का नमूना धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन भेजा गया है, विहित प्ररूप में तीन प्रतियों में एक हस्ताक्षरित रिपोर्ट उस नमूने को भेजने वाले निरीक्षक को परिदत्त करेगा ।

                (2) उसकी प्राप्ति पर निरीक्षक उस रिपोर्ट की एक प्रति उस व्यक्ति को, जिससे नमूना लिया गया था, 2[और दूसरी प्रति ऐसे व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसका नाम, पता और अन्य विशिष्टियां धारा 18क के अधीन प्रकट की गई हैं,] परिदत्त करेगा, और तीसरी प्रति को नमूने के बारे में किसी अभियोजन में उपयोग किए जाने के लिए प्रतिधृत रखेगा ।

                (3) कोई दस्तावेज, जो इस अध्याय के अधीन सरकारी विश्लेषक द्वारा हस्ताक्षरित रिपोर्ट होनी तात्पर्यित है उसमें कथित तथ्यों का साक्ष्य होगी, और ऐसा साक्ष्य निश्चायक होगा जब तक कि उस व्यक्ति  ने, जिससे नमूना लिया गया था,  3[या उस व्यक्ति ने जिसका नाम, पता और अन्य विशिष्टियां धारा 18क के अधीन प्रकट की गई हैं] रिपोर्ट की एक प्रति की प्राप्ति के अट्ठाईस दिन के अन्दर निरीक्षक या न्यायालय को जिसके समक्ष नमूने के बारे में कोई कार्यवाहियां लम्बित हैं लिखकर अधिसूचित न कर दिया हो कि वह रिपोर्ट के प्रतिवाद में साक्ष्य पेश करने का आशय रखता है ।

                (4) उस दशा के सिवाय जिसमें नमूने की परख या उसका विश्लेषण केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला में पहले ही हो गया हो, जहां किसी व्यक्ति ने सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट के प्रतिवाद में साक्ष्य पेश करने का अपना आशय उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित कर दिया है वहां न्यायालय स्वप्रेरणा से या परिवादी अथवा अभियुक्त में से किसी की प्रार्थना पर स्वविवेकानुसार उस ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] के नमूने को जो धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया है उक्त प्रयोगशाला को परख या विश्लेषण के लिए भिजवा सकेगा जो परख या विश्लेषण करेगी और उसके परिणाम की केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित या उसके प्राधिकाराधीन लिखित रिपोर्ट देगी और ऐसी रिपोर्ट उसमें कथित तथ्यों की निश्चायक साक्ष्य होगी ।

                (5) केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई परख या विश्लेषण का खर्चा परिवादी अथवा अभियुक्त द्वारा संदत्त किया जाएगा जैसा भी न्यायालय निर्दिष्ट करे ।

                26. ओषधि या प्रसाधन सामग्री के क्रेता का परख या विश्लेषण कराने के लिए समर्थ होना-कोई भी व्यक्ति अपने  4[या कोई मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संगम, चाहे ऐसा व्यक्ति उस संगम का सदस्य है या नहीं] द्वारा क्रेता किसी ओषधि 1[या प्रसाधन सामग्री] को विहित रीति में आवेदन करके और विहित फीस देकर परख या विश्लेषण के लिए सरकारी विश्लेषक को भेजने का और ऐसी परख या विश्लेषण की सरकारी विश्लेषक द्वारा हस्ताक्षरित रिपोर्ट प्राप्त करने का हकदार होगा ।

  1. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 6 द्वारा (16-3-1961 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 17 द्वारा (15-9-1964 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 17 द्वारा (15-9-1964 से) या उक्त वारण्टर शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1986 के अधिनियम सं० 71 की धारा 2 द्वारा (15-9-1987 से) अन्तःस्थापित ।

6[स्पष्टीकरण-इस धारा और धारा 32 के प्रयोजनों के लिए “मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संगम" से कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत स्वैच्छिक उपभोक्ता संगम अभिप्रेत है ।]

1[26. ओषधि और प्रसाधन सामग्री का लोक हित में विनिर्माण आदि का प्रतिषेध करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-इस अध्याय के किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के उपयोग से मनुष्यों या पशुओं के लिए कोई जोखिम अन्तर्वलित होने की संभाव्यता है अथवा कोई ओषधि उतने चिकित्सीय महत्व के नहीं हैं जितने का उसकी बाबत दावा किया गया है या दावा किया जाना तात्पर्यित है अथवा उसमें ऐसे और इतनी मात्रा में संघटक हैं जिसके लिए कोई चिकित्सीय औचित्य नहीं है तथा लोक हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री के विनिर्माण, विक्रय या 2[वितरण को विनियमित, निर्बंधित या प्रतिषिद्ध कर सकेगी] ।

3[26. लोकहित में ओषधि के विनिर्माण आदि को विनियमित या निर्बंधित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-इस अध्याय के किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि महामारी या प्राकृतिक विपत्तियों के कारण उद्भूत आपातस्थिति की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कोई ओषधि आवश्यक है ओर लोकहित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी ओषधि के विनिर्माण, विक्रय या वितरण को विनियमित या निर्बंधित कर सकेगी ।]

4[27. इस अध्याय के उल्लंघन में ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय आदि के लिए शास्ति-जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,

(क) किसी ओषधि का, जो धारा 17क के अधीन अपमिश्रित या 5[धारा 17ख के अधीन नकली समझी गई है और जिससे] तब जब उसका किसी व्यक्ति द्वारा किसी रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण के लिए उपयोग किया जाता है, उसकी मृत्यु हो जाने की सम्भाव्यता है या उसके शरीर को ऐसी हानि हो जाने की सम्भाव्यता है जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 320 के अर्थ में घोर उपहति की कोटि में केवल इस कारण आएगी कि ऐसी ओषधि, यथास्थिति, अपमिश्रित या नकली है या मानक क्वालिटी की नहीं है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय या वितरण के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरित करेगा, वह 5[कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी दंडनीय होगा और जुर्माने का भी, जो दस लाख रुपए या अधिहृत ओषधि के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा, दायी होगा] :

 6[परन्तु इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया जुर्माना प्रतिकर के रूप में उस व्यक्ति को संदत्त किया जाएगा जिसने इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों का उपयोग किया था:

परन्तु यह और कि जहां इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों के उपयोग से ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, जिसने ऐसी ओषधियों का उपयोग किया था, वहां इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया जुर्माना ऐसे व्यक्ति के नातेदार को संदत्त किया जाएगा जिसकी इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों के उपयोग के कारण मृत्यु हुई थी ।

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 21 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 5 द्वारा अतःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 22 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 27 और 27क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  6. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 6 द्वारा अंतःस्थापित ।

स्पष्टीकरण-दूसरे परन्तुक के प्रयोजनों के लिए, “नातेदार" पद से निम्नलिखित अभिप्रेत है

(i) मृतक व्यक्ति का पति या पत्नी; या

(ii) अवयस्क धर्मज पुत्र और अविवाहित धर्मज पुत्री तथा विधवा माता; या

(iii) अवयस्क पीड़ित व्यक्ति के माता-पिता; या

(iv) मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर पूर्ण रूप से आश्रित ऐसा पुत्र या पुत्री, जिसने अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है; या

(v) निम्नलिखित में से कोई व्यक्ति यदि वह मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर, पूर्णतः या भागतः आश्रित है,

(क) माता-पिता ; या

(ख) अवयस्क भाई या अविवाहित बहन; या

(ग) विधवा पुत्रवधू; या

(घ) विधवा बहन; या

(ङ) पूर्व मृत पुत्र की अवयस्क संतान; या

(च) ऐसी पूर्व मृत पुत्री की अवयस्क संतान जहां संतान के माता-पिता में से कोई जीवित नहीं है; या

(छ) दादा-दादी, यदि ऐसे सदस्य के माता या पिता में से कोई जीवित नहीं है;]

                                (ख) किसी ओषधि का,

                                                (i) जो धारा 17क के अधीन अपमिश्रित समझी गई है किन्तु जो खंड (क) में निर्दिष्ट ओषधि नहीं है; या

1(ii) धारा 18 के खंड (ग) के अधीन यथा अपेक्षित विधिमान्य अनुज्ञप्ति के बिना,

विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा, या वितरण करेगा, वह कारावास से 1[जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम न होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा] दण्डनीय होगा:

                परन्तु न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से 1[तीन वर्ष से कम के कारावास का और एक लाख रुपए से कम के जुर्माने का] दण्ड अधिरोपित कर सकेगा;

(ग) किसी ओषधि का, जो धारा 17ख के अधीन नकली समझी गई है किन्तु जो खंड (क) में निर्दिष्ट ओषधि नहीं है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से 1[जिसकी अवधि सात वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो तीन लाख रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा] दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से 1[सात वर्ष से कम अवधि के कारावास का जो तीन वर्ष से कम अवधि का न हो, और एक लाख रुपए से कम के जुर्माने का दण्ड अधिरोपित कर सकेगा;

  1. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित ।

(घ) किसी ओषधि का, जो खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट ओषधि से भिन्न है, इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के किसी अन्य उपबंध के उल्लंघन में विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम न होगी किन्तु जो दो तक वर्ष की हो सकेगी, 1[और जुर्माने से जो बीस हजार रुपए से कम का न होगा] दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से एक वर्ष से कम के कारावास का दंड अधिरोपित कर सकेगा ।

27. इस अध्याय के उल्लंघन में प्रसाधन सामग्रियों के विनिर्माण, विक्रय आदि के लिए शास्ति-जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,

 1[(i) किसी ऐसी प्रसाधन सामग्री का, जो धारा 17घ के अधीन नकली या धारा 17ङ के अधीन अपमिश्रित समझी गई है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रयार्थ प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो पचास हजार रुपए या अधिहृत प्रसाधन सामग्री के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम न होगा, दंडनीय होगा;

(ii) किसी ऐसी प्रसाधन सामग्री का जो खंड (i) में निर्दिष्ट प्रसाधन सामग्री से भिन्न है, इस अध्याय या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबंधों के उल्लंघन में विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।]

  2[28. विनिर्माता आदि का नाम प्रकट करने के लिए शास्ति-जो कोई धारा 18क 3[या धारा 24] के उपबंधों का उल्लंघन करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या 4[जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए से कम का न होगा या दोनो से,] दण्डनीय होगा ।]

 5[28. दस्तावेजों आदि के रखने तथा जानकारी के प्रकट करने के लिए शास्ति-जो कोई युक्तियुक्त हेतुक या प्रतिहेतु के बिना धारा 18ख के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, 6[जुर्माने से जो बीस हजार रुपए से कम का न होगा या, या दोनों से,] दण्डनीय होगा । 

28. धारा 26 के उल्लंघन में ओषधियों या प्रसाधन सामग्रियों के विनिर्माण आदि के लिए शास्ति-जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, धारा 26क के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना के उपबंधों के उल्लंघन में किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा ।]

29. सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट का विज्ञापन के लिए उपयोग करने के लिए शास्ति-जो कोई केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला द्वारा या सरकारी विश्लेषक द्वारा की गई परख या विश्लेषण की किसी रिपोर्ट का या ऐसी रिपोर्ट के किसी उद्धरण का प्रयोग किसी ओषधि 7[या प्रसाधन सामग्री] के विज्ञापन के प्रयोजन के लिए करेगा वह जुर्माने से, जो 8[पांच हजार रुपए] तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

  1. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 7 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 19 द्वारा (15-9-1964 से) धारा 28 के स्थान पर प्रतिस्थापित 
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 23 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 8 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 24 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  6. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 9 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  7. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 15 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  8. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 10 द्वारा प्रतिस्थापित ।

1[30. पश्चात्वर्ती अपराधों के लिए शास्ति- 2[(1) जो कोई किसी ऐसे अपराध का

(क) धारा 27 के खण्ड (ख) के अधीन सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा, वह कारावास से 3[जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की न होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो दो लाख रुपए से कम का न होगा,] दण्डनीय होगा:

परन्तु न्यायालय, निर्णय में वर्णित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से 7[सात वर्ष से कम अवधि के कारावास का और एक लाख रुपए से कम के जुर्माने का] दण्ड अधिरोपित कर सकेगा;

(ख) धारा 27 के खण्ड (ग) के अधीन सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा, वह कारावास से 7[जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो तीन लाख रुपए से कम का न होगा,] दण्डनीय होगा;

(ग) धारा 27 के खण्ड (घ) के अधीन सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की न होगी किन्तु जो चार वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो 7[पचास हजार रुपए] से कम का न होगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा;]

 4[(1क) जो कोई धारा 27क के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष होने पर उस धारा के अधीन पुनः सिद्धदोष होगा वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो 5[दो हजार रुपए] तक हो सकेगा अथवा दोनों से दण्डनीय होगा ।]

(2) जो कोई 6॥। धारा 29 के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष होने पर उसी धारा के अधीन अपराध या पुनः सिद्धदोष होगा वह कारावास से, 7[जो दो वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए से कम का न होगा अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा ।]

31. अधिहरण- 7[(1)] जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के किसी ऐसे उपबनध के, जो इस निमित्त बनाए गए नियम द्वारा विनिर्दिष्ट हो, उल्लंघन के लिए इस अध्याय के अधीन सिद्धदोष किया गया है वहां उस ओषधि 8[और प्रसाधन सामग्री] का स्टाक जिसके सम्बन्ध में उल्लंघन हुआ है अधिहरणीय होगा 9[और यदि ऐसा उल्लंघन

 10[(i) किसी ऐसी ओषधि के विनिर्माण की बाबत है जो धारा 17 के अधीन मिथ्या छाप वाली, धारा 17क के अधीन अपमिश्रित या धारा 17ख के अधीन नकली समझी जाती है; या]

(ii) धारा 18 के खण्ड (ग) के अधीन यथा अपेक्षित विधिमान्य अनुज्ञप्ति के बिना किसी ओषधि के 11[विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण, विक्रय या विक्रयार्थ भण्डार में रखने, या प्रदर्शित करने या प्रस्थापित करने की बाबत है],

तो ऐसे विनिर्माण, विक्रय या वितरण में प्रयुक्त कोई उपकरण या मशीनरी और कोई ऐसे पात्र, पैकेज या आवेष्टक जिनमें ऐसी ओषधि अन्तर्विष्ट है तथा ऐसी ओषधि के प्रवहण में प्रयुक्त पशु, गाड़ियां, यान या अन्य प्रवहण भी अधिहरणीय होंगे ।]

  1. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 14 द्वारा धारा 30 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 25 द्वारा (1-2-1983 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 11 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 20 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 25 द्वारा (1-2-1983 से) एक हजार रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 20 द्वारा (15-9-1964 से) धारा 28 या शब्दों और अंकों का लोप किया गया ।
  7. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 9 द्वारा (16-3-1961 से) उपधारा (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित । 
  8. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 21 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तः स्थापित ।
  9. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 21 द्वारा (15-9-1964 से) जोड़ा गया ।
  10. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 26 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (i) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  11. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 26 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

1[(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि जहां किसी निरीक्षक के आवेदन पर या अन्यथा तथा ऐसी जांच के पश्चात् जैसी आवश्यक हो न्यायालय का समाधान हो जाता है कि वह ओषधि या प्रसाधन सामग्री मानक क्वालिटी की नहीं है 2[अथवा 1[मिथ्या छाप वाली, अपमिश्रित या नकली ओषधि अथवा मिथ्या छाप वाली या नकली प्रसाधन सामग्री है] वहां, यथास्थिति, ऐसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री अधिहरणीय होगी ।]

 3[31. सरकारी विभागों को उपबंधों का लागू होना-धारा 31 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के सिवाय इस अध्याय के उपबन्ध सरकार के किसी विभाग द्वारा ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय या वितरण के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय या वितरण के सम्बन्ध में लागू होते हैं ।]

32. अपराधों का संज्ञान-(1) 4[इस अध्याय के अधीन कोई अभियोजन निम्नलिखित द्वारा संस्थित किए जाने के सिवाय संस्थित नहीं किया जाएगा

(क) निरीक्षक; या

(ख) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार का कोई ऐसा राजपत्रित अधिकारी जिसे केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा, लिखित रूप में, इस निमित्त उस सरकार द्वारा किए गए साधारण या विशेष आदेश द्वारा, प्राधिकृत किया गया हो; या

(ग) व्यथित व्यक्ति; या

(घ) मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संगम, चाहे ऐसा व्यक्ति उस संगम का सदस्य है या नहीं ।

(2) इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, सेशन न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।]

(3) इस अध्याय में अन्तर्विष्ट कोई बात किसी व्यक्ति का किसी ऐसे कार्य या लोप के लिए, जो इस अध्याय के खिलाफ अपराध बनता है, किसी अन्य विधि के अधीन अभियोजन निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी ।

 5[32. विनिर्माता आदि को अभियोजित करने की न्यायालय की शक्ति-जहां इस अध्याय के अधीन किसी ऐसे अपराध के जिसका किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना अभिकथित है जो किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री का विनिर्माता, अथवा उसके वितरणार्थ उसका अभिकर्ता नहीं है, विचारण के दौरान किसी समय न्यायालय का अपने समक्ष पेश किए गए साक्ष्य पर यह सामाधान हो जाता है कि ऐसा विनिर्माता या अभिकर्ता भी उस अपराध से सम्बद्ध है वहां तब,  6[दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 319 की उपधारा (1), (2) और (3) में] अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय उसके खिलाफ ऐसे कार्यवाही कर सकेगा मानो उसके खिलाफ धारा 32 के अधीन अभियोजन संस्थित किया गया हो] ।

 7[32. कतिपय अपराधों का शमन किया जाना-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1973 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 28 और धारा 28क के अधीन दंडनीय किसी अपराध का (चाहे वह किसी कंपनी या उसके किसी अधिकारी द्वारा किया गया हो), जो केवल कारावास से और जुर्माने से भी, दंडनीय अपराध नहीं है, किसी अभियाजन के संस्थित होने से पूर्व या उसके पश्चात् केन्द्रीय सरकार द्वारा या किसी राज्य सरकार द्वारा या इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा, उस सरकार के खाते में ऐसी रकम के संदाय पर जो वह सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे, शमन किया जा सकेगा :

  1. 1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 93 द्वारा अन्तःस्थापित उपधारा (2) को 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 21 द्वारा (27-7-1964 से) प्रतिस्थापित किया गया ।
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 21 द्वारा (15-9-1964 से) अथवा मिथ्या छाप वाली ओषधि के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 22 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 12 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 23 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 28 द्वारा (1-2-1983 से) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 351 की उपधारा (1) में के स्थान पर प्रस्थापित । 
  7. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 13 द्वारा अंतःस्थापित ।

परन्तु किसी भी दशा में, ऐसी रकम जुर्माने की उस अधिकतम रकम से अधिक नहीं होगी जो इस प्रकार शमन किए गए अपराध के लिए इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित की जा सकेगी:

परन्तु यह और कि पश्चात्वर्ती अपराधों के मामलों में वह अपराध शमनीय नहीं होगा ।

(2) जब किसी अभियुक्त को विचारण के लिए सुपुर्द किया गया है या जब उसे दोषसिद्ध किया गया है और कोई अपील लंबित है, तब अपराध का शमन, यथास्थिति, ऐसे न्यायालय जिसे, वह सुपुर्द किया गया है या जिसके समक्ष अपील सुनी जानी है, की इजाजत के बिना अनुज्ञात नहीं किया जाएगा ।

(3) जहां किसी अपराध का शमन उपधारा (1) के अधीन किया जाता है वहां, यथास्थिति, कोई कार्यवाही या आगे की कार्यवाही इस प्रकार शमन किए गए अपराध की बाबत अपराधी के विरुद्ध नहीं की जाएगी और अपराधी यदि अभिरक्षा में है तो उसे तुरन्त छोड़ दिया जाएगा ।]

33. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति- 1[(1) केन्द्रीय सरकार 2[बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् उसकी सिफारिश पर] और शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा पूर्व प्रकाशन के पश्चात्, इस अध्याय के उपबन्धों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी:

परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जिनसे आवश्यक हो गया है कि बोर्ड के साथ ऐसे परामर्श के बिना नियम बना लिए जाएं तो बोर्ड के साथ परामर्श अभिमोचित किया जा सकेगा, किन्तु ऐसी दशा में नियम बना लेने के छह मास के अन्दर बोर्ड से परामर्श किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार किन्हीं भी ऐसे सुझावों पर, जो बोर्ड उक्त नियमों के संशोधन के सम्बन्ध में दे, विचार करेगी ।]

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम

(क) ओषधियों 3[या प्रसाधन सामग्रियों] की परख और विश्लेषण के लिए प्रयोगशालाओं की स्थापना के वास्ते उपबन्ध कर सकेंगे;

(ख) सरकारी विश्लेषकों की अर्हताएं और कर्तव्य तथा निरीक्षकों की अर्हताएं विहित कर सकेंगे;

(ग) यह अवधारण करने में की जाने वाली परख या विश्लेषण के ढंग विहित कर सकेंगे कि क्या कोई ओषधि 3[या प्रसाधन सामग्री] मानक क्वालिटी की हैं; 

(घ) जीवी और अंग-धात्त्विक सम्मिश्रणों के सम्बन्ध में मानकीकरण की इकाइयां या ढंग विहित कर सकेंगे;

 4[(घघ) 5[धारा 17क] के खण्ड (घ) के अधीन उस रंग या उन रंगों को विहित कर सकेंगे जो रंजन के प्रयोजनों के लिए किसी ओषधि में हों या अन्तर्विष्ट हो सकेंगे;]

 6[(घघक) धारा 17ङ के खंड (घ) के अधीन उस रंग या उन रंगों को विहित कर सकेंगे जो रंजन के प्रयोजनों के लिए किसी प्रसाधन सामग्री में हों या अंतर्विष्ट हो सकेंगे;]

(ङ) ओषधियों या किसी विनिर्दिष्ट ओषधि या ओषधियों के वर्ग 3[अथवा प्रसाधन सामग्रियों या किसी विनिर्दिष्ट प्रसाधन सामग्री या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] के 7[विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण के लिए], विक्रय के लिए और वितरण के लिए अनुज्ञप्तियों के प्ररूप, ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए आवेदन का प्ररूप, वे शर्तें जिनके अधीन ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी,

  1. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 15 द्वारा उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 29 द्वारा (1-2-1983 से) बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 22 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 24 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 29 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 17ख के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 14 द्वारा अंतःस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 29 द्वारा (1-2-1983 से) विक्रयार्थ विनिर्माण के लिए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 उनको देने के लिए सशक्त प्राधिकारी 1[ऐसे प्राधिकारी की अर्हताएं] और उनके लिए देय फीसें विहित कर सकेंगे 8[तथा किसी ऐसी दशा में जहां इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए नियमों के किसी उपबन्ध का उल्लंघन किया जाता है या उन शर्तों में से किसी का, जिनके अधीन रहते हुए वे जारी की गई हैं, अनुपालन नहीं किया जाता है, ऐसी अनुज्ञप्तियों के रद्दकरण या निलम्बन के लिए उपबन्ध कर सकेंगे];

8[(ङङ) वे अभिलेख, रजिस्टर या अन्य दस्तावेजें विहित कर सकेंगे जो धारा 18ख के अधीन रखी और बनाए रखी जाएंगे;

(ङङक) उस परिसर के, जिसमें कोई ओषधि या प्रसाधन सामग्री विनिर्मित की जा रही है या की जानी प्रस्थापित है, (अनुज्ञप्तियों की मंजूरी या नवीकरण के प्रयोजनों के लिए) निरीक्षण के लिए फीस विहित कर सकेंगे;

(ङङख) वह रीति विहित कर सकेंगे जिसमें प्रतिलिपियां धारा 22 की उपधारा (2क) के अधीन प्रमाणित की जाएंगी ।]

(च) उन रोगों और व्याधियों को जिनका 2[निवारण, ठीक या शमन करना] तात्पर्यित या उसका दावा कोई ओषधि नहीं करती और ऐसे अन्य प्रभावों का जिनका रखना तात्पर्यित या उसका दावा ऐसी ओषधि नहीं करती, विनिर्दिष्ट कर सकेंगे;

(छ) ऐसी शर्तों को विहित कर सकेंगे, जिनके अधीन रहते हुए ओषधियों की परीक्षा, परख या विश्लेषण के प्रयोजन के लिए थोड़े परिमाण में विनिर्मित किया जा सकेगा;

(ज) यह अपेक्षित कर सकेंगे कि किसी विनिर्दिष्ट ओषधि या ओषधियों के वर्ग के विनिर्माण की तारीख और शक्तता के अवसान की तारीख उनके लेबल या अन्तर्वेष्टक पर स्पष्टतः और सही रूप में कथित की जाए तथा उक्त ओषधि या ओषधियों के वर्ग का, उसके विनिर्माण की तारीख से एक विनिर्दिष्ट कालावधि के पश्चात् या शक्तता की तारीख के अवसान के पश्चात् विक्रय, विक्रयार्थ भंडारकरण या प्रदर्शन अथवा वितरण प्रतिषिद्ध कर सकेंगे ।

(झ) ओषधियों 3[या प्रसाधन सामग्रियों] को बोतलों, पैकेजों और अन्य आधानों में पैक करने में 4[जिसके अन्तर्गत पैक करने की ऐसी सामग्री का उपयोग भी है जो ओषधियों के सीधे सम्पर्क में आती हैं,] पालनीय शर्तें विहित कर सकेंगे और ऐसी शर्तों के उल्लंघन में पैक की गई ओषधियों या प्रसाधन सामग्रियों का विक्रय, विक्रयार्थ भंडारकरण या प्रदर्शन अथवा वितरण प्रतिषिद्ध कर सकेंगे;

(ञ) पैक की गई ओषधियों 2[या प्रसाधन सामग्रियों] पर लेबल लगाने का तरीका विनियमित कर सकेंगे, और वे बातें विहित कर सकेंगे जो ऐसे लेबलों में हो सकेंगी या नहीं हो सकेंगी;

(ट) ऐसे किसी विषैले पदार्थ के अधिकतम अनुपात को विहित कर सकेंगे, जो किसी ओषधि में मिलाया जा सकेगा या अन्तर्विष्ट किया जा सकेगा, ऐसी किसी ओषधि का, जिसमें वह अनुपात अधिक हो गया है, विनिर्माण, विक्रय या विक्रयार्थ भंडारकरण या प्रदर्शन अथवा वितरण प्रतिषिद्ध कर सकेंगे और उन पदार्थों को विनिर्दिष्ट कर सकेंगे, जो इस अध्याय और तद्धीन बनाए गए नियमों के प्रयोजनार्थ विषैले समझे जाएंगे;

(ठ) यह अपेक्षित कर सकेंगे कि किसी विनिर्दिष्ट ओषधि का स्वीकृत वैज्ञानिक नाम ऐसी किसी पेटेन्ट या साम्पत्तिक ओषधि के लेबल या आवेष्टक पर, जिसमें ऐसी ओषधि अन्तर्विष्ट है, विहित रीति में सम्प्रदर्शित किया जाए;

 5।                                                         ।                                              ।                                              ।                            

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 29 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 15 द्वारा निरोग या शमन करने शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 22 द्वारा (27-7-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 29 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 24 द्वारा (15-9-1964 से) खण्ड (ड) का लोप किया गया ।

1[(ढ) निरीक्षकों की शक्तियां और कर्तव्य 3[तथा उस प्राधिकारी की अर्हताएं जिसके अधीनस्थ ऐसे निरीक्षक होंगे] विहित कर सकेंगे और 2[वे ओषधियां या ओषधियों के वर्ग अथवा प्रसाधन सामग्रियां या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] जिनके सम्बन्ध में और वे शर्तें, परिसीमाएं या निर्बन्धन जिनके अध्यधीन ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग या पालन किया जा सकेगा, विनिर्दिष्ट कर सकेंगे;]  

(ण) सरकारी विश्लेषकों द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट के प्ररूप, और धारा 26 के अधीन परख या विश्लेषण के लिए आवेदन की रीति और उसके लिए देय फीसें विहित कर सकेंगे;

                 3[(त) इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के खिलाफ उन अपराधों को विनिर्दिष्ट कर सकेंगे जिनके सम्बन्ध में धारा 31 के अधीन अधिहरण का आदेश किया जा सकेगा; 4॥।

(थ) इस अध्याय या तद्धीन बनाए गए नियमों के सब या किन्हीं उपबन्धों से किसी विनिर्दिष्ट ओषधि या ओषधियों के वर्ग 2[या प्रसाधन सामग्री या प्रसाधन सामग्रियों के वर्ग] को सशर्त या अन्यथा छूट देने के लिए उपबन्ध कर सकेंगे; 5[और]

                  9[(द) ऐसी राशि का उपबंध कर सकेंगे जो धारा 32ख के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ।]

 6।                                                                ।                                                           ।                                                         ।

 7[33. अध्याय का (सिद्ध सहित) आयुर्वेदिक या यूनानी ओषधियों को लागू होना-इस अधिनियम में यथा अन्यथा उपबन्धित को छोड़कर, इस अध्याय की कोई बात 8[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधियों को लागू नहीं होगी ।]

9[अध्याय 4

2[आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी] ओषधियों से सम्बद्ध उपबन्ध

33. अध्याय 4 का लागू होना-यह अध्याय केवल (सिद्ध सहित) आयुर्वेदिक और यूनानी ओषधियों को लागू होगा ।

33. आयुर्वेदिक और यूनानी ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड-(1) केन्द्रीय सरकार इस अध्याय से पैदा होने वाले तकनीकी मामलों पर केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को परामर्श देने के लिए और इस अध्याय द्वारा उसे सौंपे गए अन्य कृत्यों को करने के लिए शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और ऐसी तारीख से जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए (10[आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड] कहलाने वाला) एक बोर्ड गठित करेगी ।

                (2) बोर्ड निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात्:

                                (i) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, पदेन;

                                (ii) ओषधि नियंत्रक, भारत, पदेन;

                                 11[(iii) स्वास्थ्य मंत्रालय में भारतीय ओषधि प्रणालियों का कार्य करने वाला प्रधान अधिकारी, पदेन;]

1960 के अधिनियम सं० 35 की धारा 10 द्वारा (16-3-1961 से) खण्ड (ढ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1962 के अधिनियम सं० 21 की धारा 22 द्वारा (27-7-1964 से) “ओषधियों या ओषधियों के वर्ग” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 24 द्वारा (15-9-1964 से) खण्ड (त) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 14 द्वारा लोप किया गया ।

  2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 14 द्वारा अंतःस्थापित ।

  1960 के अधिनियम सं० 35 द्वारा अन्तःस्थापित उपधारा (3) का 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 24 द्वारा (15-9-1964 से) लोप किया गया ।

  1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 25 द्वारा (1-2-1969 से) अन्तःस्थापित ।

  1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 26 द्वारा (1-2-1969 से) अन्तःस्थापित ।

  1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 30 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 30 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (iii) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(iv) केन्द्रीय ओषधि प्रयोगशाला निदेशक, कलकत्ता, पदेन;

(v) धारा 33च के अधीन सरकारी विश्लेषक का पद धारण करने वाला एक व्यक्ति जो सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा;

(vi) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाने वाला एक भेषज अभिज्ञानी;

(vii) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाने वाला एक फाइटो-रसायनज्ञ; 

 1[(viii) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले चार व्यक्ति जिनमें आयुर्वेदिक फार्मेकोपिया समिति के सदस्यों में से दो व्यक्ति, यूनानी फार्मेकोपिया समिति के सदस्यों में से एक व्यक्ति तथा सिद्ध फार्मेकोपिया समिति के सदस्यों में से एक व्यक्ति होंगे;]

(ix) द्रव्यगुण और भेषज कल्पना का एक शिक्षक जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा; 

(x) इलमुल अदवियः और तकलीसवा दवासाजी का एक शिक्षक जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा;

 2[(xi) गुणपदम का एक शिक्षक जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा;

(xii) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले तीन व्यक्ति जिनमें आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि उद्योग में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करने वाला एक-एक व्यक्ति होगा;

(xiii) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले तीन व्यक्ति जिनमें आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी तिब्ब ओषधि प्रणालियों के व्यवसायियों में से प्रत्येक का एक-एक व्यक्ति होगा । ]

                (3) केन्द्रीय सरकार बोर्ड के एक सदस्य को उसका अध्यक्ष नियुक्त करेगी ।

                (4) बोर्ड के नामनिर्देशित सदस्य अपना पद तीन वर्ष तक धारण करेंगे किन्तु पुनर्नामनिर्देशन के लिए पात्र होंगे ।

                (5) केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन रहते हुए बोर्ड, अपनी गणपूर्ति नियत करने वाली और अपनी प्रक्रिया और अपने द्वारा किए जाने वाले सब काम-काज का संचालन विनियमित करने वाली उपविधियां बना सकेगा ।

                (6) बोर्ड में किसी रिक्तता के होते हुए भी उसके कृत्य किए जा सकेंगे ।

                (7) केन्द्रीय सरकार किसी व्यक्ति को बोर्ड का सचिव नियुक्त करेगी और बोर्ड के लिए ऐसे लिपिकीय और अन्य कर्मचारिवृन्द उपलब्ध करेगी जैसे केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझती है ।

 3[33. आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि परामर्श समिति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रशासन में, जहां तक कि उसका आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधियों से संबंध है, भारत भर में एकरूपता लाने के प्रयोजन के लिए केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों और आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि तकनीकी सलाहाकार बोर्ड को किसी विषय पर सलाह देने के लिए एक सलाहकार समिति गठित कर सकेगी जो आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि परामर्श समिति कहलाएगी ।

(2) आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि परामर्श समिति में केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधियों के रूप में दो व्यक्ति होंगे जो उस सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे, तथा प्रत्येक राज्य का अधिक से अधिक एक प्रतिनिधि होगा जो संबद्ध राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा ।

(3) आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधि परामर्श समिति का अधिवेशन तब होगा जब केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अपेक्षा की जाए तथा समिति अपनी प्रक्रिया विनियमित करेगी ।

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 30 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (viii) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 30 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (xi) और (xii) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 31 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 33घ और 33ङ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

33 मिथ्या छाप वाली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि को मिथ्या छाप वाली समझा जाएगा,

(क) यदि वह इस प्रकार रंजित, विलेपित, चूर्णकृत या पालिश की हुई है कि नुकसान छिप जाता है या यदि वह उससे बेहतर या अधिक चिकित्सीय महत्व की होनी अभिव्यक्त की जाती है जितनी कि वह वास्तव में है; या

(ख) यदि उस पर लेबल विहित रीति से नहीं लगाया जाता है; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र अथवा उसके साथ की किसी चीज पर कोई ऐसा कथन, डिजाइन या युक्ति है जो उस ओषधि के लिए कोई मिथ्या दावा करती है अथवा जो किसी विशिष्टि में मिथ्या या भुलावा देने वाली है ।

33ङङ. अपमिश्रित ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि को अपमिश्रित समझा जाएगा,

(क) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी गंदे, गलित या विघटित पदार्थ से बनी है; या

(ख) यदि वह अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार की गई, पैक की गई या भंडार में रखी गई है जिससे वह गंदगी से संदूषित हो गई हो या जिससे वह स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो गई हो; या

(ग) यदि उसका पात्र पूर्णतः या भागतः किसी विषैले या हानिकारक पदार्थ से बना हो जो उसकी अर्न्तवस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर बना दे; या

(घ) यदि केवल रंजन के प्रयोजनों के लिए उसमें ऐसा रंग है या अन्तर्विष्ट है जो विहित रंग से भिन्न है; या

(ङ) यदि उसमें कोई हानिकारक या विषैला पदार्थ अंतर्विष्ट है जो उसे स्वास्थ्य के लिए हानिकर बना दे; या

(च) यदि उसके साथ कोई ऐसा पदार्थ मिलाया गया हो जिससे उसकी क्वालिटी या सामर्थ्य घट जाए ।

स्पष्टीकरण-खंड (क) के प्रयोजनों के लिए, किसी ओषधि को पूर्णतः या भागतः किसी विघटित पदार्थ से बना केवल इस बात के कारण नहीं समझा जाएगा कि ऐसा विघटित पदार्थ उस ओषधि के किसी प्राकृतिक विघटन का परिणाम है:

परन्तु यह तब जब कि ऐसा विघटन उस ओषधि के विनिर्माता या उसके व्यौहारी की किसी उपेक्षा के कारण नहीं हुआ है और वह उस ओषधि को स्वास्थ्य के लिए क्षतिकर नहीं बनाता है ।

33ङङक. नकली ओषधियां-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि को नकली समझा जाएगा,

(क) यदि उसका विक्रय या विक्रय के लिए प्रस्थापन या प्रदर्शन ऐसे नाम से किया जाता है जो किसी अन्य ओषधि का है; या

(ख) यदि वह किसी अन्य ओषधि की नकल है या उसके बदले में है या किसी अन्य ओषधि से इस प्रकार मिलती-जुलती है कि धोखा हो जाए या उस पर या उसके लेबल अथवा पात्र पर किसी अन्य ओषधि का नाम है, जब तक कि वह साफ और संलक्ष्य रूप से इस प्रकार चिन्हित न हो कि उसका वास्तविक स्वरूप और ऐसी अन्य ओषधि के साथ अनन्यता का अभाव प्रकट हो जाए; या

(ग) यदि उसके लेबल या पात्र पर उस ओषधि का विनिर्माता होना तात्पर्यित किसी व्यष्टि या कम्पनी का नाम है जो व्यष्टि या कम्पनी काल्पनिक है या अस्तित्व में नहीं है; या

(घ) यदि वह पूर्णतः या भागतः किसी अन्य ओषधि या पदार्थ द्वारा प्रतिस्थापित की जा चुकी है; या

(ङ) यदि उससे ऐसे विनिर्माता का उत्पाद होना तात्पर्यित है जिसका उत्पाद वह वास्तव में नहीं है ।

33ङङख. आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधियों के विक्रयार्थ विनिर्माण का विनियमन-कोई भी व्यक्ति किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण ऐसे मानकों के, यदि कोई हों, जो उस ओषधि के संबंध में विहित किए जाएं, अनुसार ही करेगा, अन्यथा नहीं ।

33ङङग. कतिपय आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी ओषधियों के विनिर्माण और विक्रय का प्रतिषेध-उस तारीख से जो राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, कोई भी व्यक्ति स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,

(क) विक्रय या वितरण के लिए,

(i) किसी मिथ्या छाप वाली, अपमिश्रित या नकली आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विनिर्माण नहीं करेगा;

(ii) किसी पेटेंट या साम्पत्तिक ओषधि का विनिर्माण नहीं करेगा, जब तक कि उसके लेबल या पात्र पर, उसमें अन्तर्विष्ट सब संघटकों की सही सूची विहित रीति से संप्रदर्शित न हो; तथा

(iii) किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्ध के उल्लंघन में विनिर्माण नहीं करेगा;

(ख) किसी ऐसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के किसी उपबन्ध के उल्लंघन में विनिर्मित की गई है, विक्रय, स्टाक या विक्रयार्थ प्रदर्शन या प्रस्थापन नहीं करेगा या वितरण नहीं करेगा;

(ग) किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण ऐसी अनुज्ञप्ति के अधीन और उसकी शर्तो के अनुसार ही करेगा, जो विहित प्राधिकारी द्वारा इस अध्याय के अधीन उस प्रयोजन के लिए जारी की गई है, अन्यथा नहीं:

परन्तु इस धारा की कोई भी बात उन वैद्यों और हकीमों को लागू नहीं होगी जो अपने ही रोगियों के उपयोग के लिए आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विनिर्माण करते हैं:

परन्तु यह और कि इस धारा की कोई भी बात विहित शर्तों के अधीन रहते हुए, परीक्षा, परख या विश्लेषण के प्रयोजनों के लिए किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि के अल्प परिमाणों में विनिर्माण को लागू नहीं होगी ।

33ङङघ. लोक हित में आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विनिर्माण प्रतिषिद्ध करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-इस अध्याय के किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि केन्द्रीय सरकार का अपने समक्ष उपलभ्य किसी साक्ष्य या अन्य सामग्री के आधार पर समाधान हो जाता है कि किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि के उपयोग से मनुष्यों या पशुओं को कोई जोखिम अन्तर्वलित होने की सम्भाव्यता है अथवा कोई ओषधि उतने चिकित्सीय महत्व की नहीं है जितने का उसकी बाबत दावा किया गया है या दावा किया जाना तात्पर्यित है, और लोक हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी ओषधि के विनिर्माण, विक्रय या वितरण का प्रतिषेध कर सकेगी ।}

33. सरकारी विश्लेषक-(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विहित अर्हताओं वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझती है, ऐसे क्षेत्रों के लिए सरकारी विश्लेषक नियुक्त कर सकेगी जैसे, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा उन्हें सौंपे जाएं ।         

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी न तो केन्द्रीय सरकार और न राज्य सरकार ही किसी ऐसे अधिकारी को जो उसके अधीन सेवा न कर रहा हो उस सरकार की, जिसके अधीन वह सेवा कर रहा हो, पूर्व सम्मति के बिना सरकारी विश्लेषक के रूप में नियुक्त करेगी ।

1[(3) कोई भी व्यक्ति जिसका किसी ओषधि के विनिर्माण या विक्रय में कोई वित्तीय हित है, इस धारा के अधीन सरकारी विश्लेषक नियुक्त नहीं किया जाएगा ।]

33. निरीक्षक-(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विहित अर्हताओं वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझती है, ऐसे क्षेत्रों के लिए निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी जो उन्हें, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा सौंपे जाएं ।

                (2) शक्तियां जो निरीक्षक द्वारा प्रयुक्त की जा सकेंगी और कर्तव्य जिनका उस द्वारा पालन किया जा सकेगा, तथा वे शर्तें, परिसीमाएं या निर्बन्धन जिनके अधीन ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग या पालन किया जा सकेगा ऐसे होंगे जैसे विहित किए जाएं ।

                (3) इस धारा के अधीन किसी भी ऐसे व्यक्ति को निरीक्षक नियुक्त नहीं किया जाएगा जिसका किसी ओषधि के विनिर्माण या विक्रय में कोई वित्तीय हित हो ।

                (4) प्रत्येक निरीक्षक भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा और ऐसे प्राधिकारी का शासकीय रूप से अधीनस्थ होगा जिसे नियुक्त करने वाली सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ।

33. धारा 22, 23, 24 और 25 के उपबन्धों का लागू होना-धारा 22, 23, 24 और 25 के उपबन्ध और तद्धीन बनाए गए नियम, यदि कोई हों, इस अध्याय के अधीन नियुक्त निरीक्षक और सरकारी विश्लेषक के सम्बन्ध में इस उपान्तर के अध्यधीन कि उक्त धाराओं में “ओषधि" के प्रति निर्देशों का यह अर्थ किया जाएगा कि वे  2[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि के प्रति निर्देश हैं, यावत्शक्य वैसे ही लागू होंगे जैसे वे अध्याय 4 के अधीन नियुक्त निरीक्षक और सरकारी विश्लेषक के सम्बध में लागू होते हैं ।               

 3[33. इस अध्याय के उल्लंघन में आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि के विनिर्माण, विक्रय आदि के लिए शास्ति-जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,

                (1)  4[(क) किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का

                                (i) जो धारा 33ङ के अधीन मिथ्या छाप वाली समझी गई है,

                                (ii) जो धारा 33ङङ के अधीन अपमिश्रित समझी गई है, या

(iii) धारा 33ङङग के अधीन यथा अपेक्षित विधिमान्य अनुज्ञप्ति के बिना या उसकी किसी शर्त के अतिक्रमण में,

विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का नहीं होगा, दंडनीय होगा;]

(ख) किसी ऐसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का, जो धारा 33ङङक के अधीन नकली समझी गई है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ करेगा, वह कारावास से जो एक वर्ष से कम का न होगा, किन्तु जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से जो 3[पचास हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो] से कम न होगा, दण्डनीय होगा:

परन्तु न्यायालय निर्णय में वर्णित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से, एक वर्ष से कम अवधि के कारावास का और 1[पचास हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो] से कम के जुर्माने का दण्ड अधिरोपित कर सकेगा; या

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 32 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 33 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 33झ और 33ञ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 15 द्वारा प्रतिस्थापित ।

1 [(ग) किसी ऐसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का, जो धारा 33ङङघ के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना के उपबंधों के उल्लंघन में पाई गई है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो पचास हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।]

                (2) इस अध्याय के या धारा 33ज द्वारा यथा लागू धारा 24 के या इस अध्याय के अधीन बनाए गए किसी नियम के किन्हीं अन्य उपबन्धों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से 3[जो छह मास तक का हो सकेगा और जुर्माने से, जो दस हजार रुपए से कम न होगा, दण्डनीय होगा ।]

                33. पश्चात्वर्ती अपराधों के लिए शास्ति-जो कोई

(क) धारा 33झ की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खण्ड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा, वह कारावास से जो दो वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से 2[जो पचास हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना से, इनमें से जो भी अधिक हो, कम का न होगा] दंडनीय होगा:

(ख) धारा 33झ की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस खंड के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा वह कारावास से जो दो वर्ष से कम का न होगा किन्तु जो छह वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से जो 5[एक लाख रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो] से कम का न होगा, दंडनीय होगा:

परन्तु न्यायालय निर्णय में वर्णित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से दो वर्ष से कम के कारावास का और 5[एक लाख रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो] से कम के जुर्माने का दंड अधिरोपित कर सकेगा -

(ग) धारा 33झ की उपधारा (2) के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराए जाने पर, उस धारा के अधीन किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जाएगा, वह कारावास से 3[जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से जो बीस हजार रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम न होगा, दंडनीय होगा ।]

                33. अधिहरण-जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन सिद्धदोष किया गया है वहां उस 4[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि का स्टाक जिसके सम्बन्ध में उल्लंघन हुआ है अधिहरणीय होगा ।

                5[33टक. विनिर्माता, आदि के नाम का प्रकटन-ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि का विनिर्माता या उसके वितरण के लिए उसका अभिकर्ता नहीं है, यदि उससे ऐसी अपेक्षा की जाए, निरीक्षक को उस व्यक्ति का नाम, पता और अन्य विशिष्टियां प्रकट करेगा जिससे उसने वह आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि अर्जित की है ।

                33टख. अभिलेखों का रखा जाना और सूचना का दिया जाना-ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो धारा 33ङङग के खंड (ग) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी है, ऐसे अभिलेख, रजिस्टर और अन्य दस्तावेज रखेगा और उन्हें बनाए रखेगा, जो विहित किए जाएं और इस अधिनियम के अधीन किसी शक्ति का प्रयोग करने वाले या किसी कृत्य का निर्वहन करने वाले किसी अधिकारी या प्राधिकारी को ऐसी सूचना देगा जिसकी इस अधिनियम के प्रयोजनों को पूरा करने के लिए ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा अपेक्षा की जाए ।]               

33. सरकारी विभागों को उपबन्धों का लागू होना-धारा 33ट में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के सिवाय इस अध्याय के उपबन्ध किसी सरकारी विभाग द्वारा किसी 1[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि के विक्रयार्थ विनिर्माण, विक्रय या वितरण के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसी ओषधि के विक्रयार्थ विनिर्माण, विक्रय या वितरण के सम्बनध में लागू होते हैं ।

  1. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 15 द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 16 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 16 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 17 द्वारा अंतःस्थापित ।

33ड. अपराधों का संज्ञान-(1) इस अध्याय के अधीन कोई अभियोजन 2[धारा 33छ की उपधारा (4) के अधीन विनिर्दिष्ट प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी से,] निरीक्षक द्वारा संस्थित किए जाने के सिवाय नहीं किया जाएगा ।               

(2)  3[महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेटट से अवर कोई न्यायालय इस अध्याय के अधीन दण्डनीय अपराध का विचारण नहीं करेगा ।               

33. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार 4[बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् या उसकी सिफारिश पर] और शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा पूर्व प्रकाशन के पश्चात्, इस अध्याय के उपबन्धों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी:               

परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जिनसे आवश्यक हो गया है कि बोर्ड के साथ ऐसे परामर्श के बिना नियम बना लिए जाएं तो बोर्ड के साथ परामर्श अभिमोचित किया जा सकेगा, किन्तु ऐसी दशा में नियम बना लेने के छह मास के अन्दर बोर्ड से परामर्श किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार किन्हीं भी ऐसे सुझावों पर, जो बोर्ड उक्त नियमों के संशोधन के सम्बन्ध में दे, विचार करेगी ।               

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम-

(क) 5[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधियों की परख और विश्लेषण के लिए प्रयोगशालाओं की स्थापना के वास्ते उपबन्ध कर सकेंगे;                               

(ख) सरकारी विश्लेषकों की अर्हताएं आर कर्तव्य तथा निरीक्षकों की अर्हताएं विहित कर सकेंगे;               

(ग) यह अवधारण करने में की जाने वाली परख या विश्लेषण के ढंग विहित कर सकेंगे कि क्या किसी 1[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधि पर उन संघटकों की सही सूची का लेबल लगा हुआ है जिनका उसमें अन्तर्विष्ट होना तात्पर्यित है;

(घ) किसी पदार्थ को विषैले पदार्थ के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेंगे;               

(ङ) 1[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधियों के विक्रयार्थ  6[और प्रसंस्कृत आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधियों के विक्रयार्थ] विनिर्माण के लिए अनुज्ञप्तियों के प्ररूप, ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए आवेदन का प्ररूप, वे शर्तें जिनके अधीन ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी, उनको देने के लिए सशक्त प्राधिकारी और उनके लिए देय फीसें विहित कर सकेंगे [तथा किसी ऐसी दशा में, जहां इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए नियमों के किसी उपबंध का उल्लंघन किया जाता है या उन शर्तों में से किसी का, जिनके अधीन रहते हुए वे जारी की गई हैं, अनुपालन नहीं किया जाता है, ऐसी अनुज्ञप्तियों के रद्दकरण या निलम्बन के लिए उपबंध कर सकेंगे] ;               

 7[(च) ऐसी शर्तें विहित कर सकेंगे जिनका आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधियों के पैक करने में, जिसके अन्तर्गत पैक करने की उस सामग्री का उपयोग भी है जो ओषधियों के सीधे संपर्क में आती हैं, अनुपालन किया जाएगा, पैक की गई ओषधियों पर लेबल लगाने के तरीके का विनियमन कर सकेंगे और वे बातें विहित कर सकेंगे जो ऐसे लेबलों में हो सकेंगी या नहीं हो सकेंगी];

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 34 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 34 द्वारा (1-2-1983 से) प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 35 द्वारा (1-2-1983 से) बोर्ड के साथ परामर्श करने के पश्चात् के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 2 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 35 द्वारा (1-2-1983 से) अंतःस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 35 द्वारा (1-2-1983 से) खण्ड (च) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(छ) ऐसी शर्तों को विहित कर सकेंगे जिनके अध्यधीन 1[आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी] ओषधियों को परीक्षा, परख या विश्लेषण के प्रयोजन के लिए थोड़े परिमाण में विनिर्मित किया जा सकेगा; और

                2[(छछ) धारा 33ङङ के खंड (घ) के अधीन यह या वे रंग विहित कर सकेंगे जो किसी आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधि में रंजन के प्रयोजनों के लिए हो सकेगा या हो सकेंगे या उसमें अंतर्विष्ट हो सकेगा या हो सकेंगे;         

                (छछक) धारा 33ङख के अधीन आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी ओषधियों के मानक विहित कर सकेंगे;]

                1[(छछख) धारा 33टख के अधीन रखे जाने वाले और अनुरक्षित किए जाने वाले अभिलेख, रजिस्टर और दस्तावेज विहित कर सकेंगे; और]

                (ज) कोई अन्य विषय विहित कर सकेंगे जो इस अध्याय के अधीन विहित किया जाना है या किया जाए ।

33. प्रथम अनुसूची को संशोधित करने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए प्रथम अनुसूची में परिवर्धन या अन्यथा संशोधन बोर्ड से परामर्श करने के पश्चात् और वैसा करने के अपने आशय की तीन मास से अन्यून की सूचना शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा देकर वैसी ही अधिसूचना द्वारा कर सकेगी और तब उक्त अनुसूची तद्नुकूल संशोधित समझी जाएगी ।

2[अध्याय 5

प्रकीर्ण               

 3[ 4[33.] निदेश देने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार किसी राज्य सरकार को ऐसे निदेश दे सकेगी जैसे इस अधिनियम के या तद्धीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबन्धों में से किसी का उस राज्य में निष्पादन करने के लिए केन्द्रीय सरकार को आवश्यक प्रतीत हों ।]               

34. कम्पनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गा हो तो प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी उस अपराध के दोषी समझे जाएंगे तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने के भी भागी होंगे:]

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसा अपराध किया जाना निवारित करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा दिया गया हो तथा यह साबित हो कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सम्पति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए

(क) “कम्पनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है, तथा

                (ख) फर्म के सम्बन्ध में “निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

  2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 18 द्वारा अंतःस्थापित ।

  1955 के अधिनियम सं० 11 की धारा 16 द्वारा धारा 34 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1960 के अधिनियम सं० 11 की धारा 16 द्वारा 34 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

  1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 27 द्वारा (15-9-1964 से) धारा 33क, धारा 33त के रूप में पुनः संख्यांकित ।

1[34. सरकारी विभागों द्वारा अपराध-जहां अध्याय 4 या अध्याय 4क के अधीन कोई अपराध सरकार के किसी विभाग द्वारा किया गया है वहां ऐसा प्राधिकारी जो ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय या वितरण का भारसाधक केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया है या जहां ऐसा कोई प्राधिकारी विनिर्दिष्ट नहीं है वहां उस विभाग का अध्यक्ष उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा: 

परन्तु इस धारा की कोई बात किसी ऐसे प्राधिकारी या व्यक्ति को, यथास्थिति, अध्याय 4 या अध्याय 4क में उपबन्धित दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि ऐसा प्राधिकारी या व्यक्ति यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या ऐसे प्राधिकारी या व्यक्ति ने ऐसे अपराध का किया जाना निवारित करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।]

 2[34कक. तंग करने वाली तलाशी या अभिग्रहण के लिए शास्ति-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने वाला कोई निरीक्षक जो

                (क) संदेह के युक्तियुक्त आधार के बिना किसी स्थान, यान, जलयान या अन्य सवारी की तलाशी लेगा; या

                (ख) किसी व्यक्ति की तंग करने वाले रूप में और अनावश्यक रूप से तलाशी लेगा; या

                (ग) तंग करने वाले रूप में और अनावश्यक रूप में किसी ओषधि या प्रसाधन सामग्री या किसी पदार्थ या वस्तु या किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या अन्य भौतिक पदार्थ का अभिग्रहण करेगा; या

(घ) यह विश्वास करने कारण के बिना कि ऐसा कार्य उसके कर्तव्य के निष्पादन के लिए अपेक्षित है, किसी व्यक्ति को क्षति पहुंचाते हुए, ऐसे निरीक्षक के रूप में कोई अन्य कार्य करेगा, वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।]

35. इस अधिनियम के अधीन पारित दण्डादेशों का प्रकाशन-(1) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष होता है तो 3[वह न्यायालय जिसके समक्ष दोषसिद्धि होती है, निरीक्षक द्वारा अपने को किए गए आवेदन पर,] अपराधी के नाम, निवास-स्थान, अपराध जिसका वह सिद्धदोष हुआ है और शास्ति को जो उस पर लगाई गई है, ऐसे व्यक्ति के व्यय पर ऐसे सामाचार पत्रों में ओर ऐसी अन्य रीति में प्रकाशित 3[कराएगा] जैसी वह न्यायालय निदिष्ट करे ।

(2) ऐसे प्रकाशन के व्यय दोषसिद्ध से सम्बद्ध खर्च का भाग समझे जाएंगे और उसी रीति से वसूलीय होंगे जिसमें वे खर्चे वसूलीय होते हैं ।

36. वर्धित शास्तियां अधिरोपित करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति-4[दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2)] 5॥। में किसी बात के होते हुए भी, 6[किसी महानगर मजिस्ट्रेट या किसी प्रथम वर्ग के नयायिक मजिस्ट्रेटट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्ड पारित करे जो उक्त संहिता 5॥। के अधीन उसकी शक्तियों से अधिक हो ।

 7[36. कतिपय अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जाना-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1973 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय, 8[इस अधिनियम के अधीन ऐसे सभी अपराधों का (धारा 36कख के अधीन विशेष न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराधों को छोड़कर)] जो धारा 33झ की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन अपराध से भिन्न हैं, प्रथम वर्ग के उस न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा, जो राज्य सरकार द्वारा इस

  1. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 28 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 36 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तः स्थापित ।
  3. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 37 द्वारा (1-2-1983 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  4. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 38 द्वारा (1-2-1983 से) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 29 द्वारा (15-9-1964 से) की धारा 32 शब्दों और अंकों का लोप किया गया ।
  6. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 38 द्वारा (1-2-1983 से) किसी प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट या किसी प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  7. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 39 द्वारा (1-2-1983 से) अन्तःस्थापित ।
  8. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 19 द्वारा प्रतिस्थापित ।

 निमित्त विशेष रूप से सशक्त किया गया है, या महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जाएगा तथा उक्त संहिता की धारा 262 से 265 तक की धाराओं के (जिसमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित है) उपबन्ध यावत्शक्य किया गया है, या महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा संक्ष्िप्त विचारण किया जाएगा तथा उक्त संहिता की धारा 262 से 265 तक की धाराओं के (जिसमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) उपबन्ध यावत्शक्य ऐसे विचारण को लागू होंगे:

परन्तु इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि की दशा में, मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह एक वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास का दण्डादेश पारित करे:

परन्तु यह और कि जब इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण के प्रारम्भ पर या उसके अनुक्रम में, मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामले की प्रकृति ऐसी है कि एक वर्ष से अधिक के कारावास का दण्डादेश पारित करना पड़ सकता है, अथवा किसी अन्य कारण से यह अवांछनीय है कि मामले का संक्षिप्त विचारण किया जाए, तो मजिस्ट्रेट पक्षकारों को सुनने के पश्चात् उस आशय का आदेश अभिलिखित करेगा, और तत्पश्चात् किसी ऐसे साक्षी को जिनकी परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुला सकेगा और मामले की उक्त संहिता द्वारा उपबन्धित रीति से सुनवाई या पुनः सुनवाई के लिए अग्रसर हो सकेगा ।]

 1[36कख. विशेष न्यायालय-केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से अपमिश्रित ओषधियों या नकली ओषधियों से संबंधित और धारा 13 के खंड (क) और खंड (ख), धारा 22 की उपधारा (3), धारा 27 के खंड (क) और खंड (ग), धारा 28, धारा 28क, धारा 28ख और धारा 30 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन दंडनीय अपराधों और अपमिश्रित ओषधियों या नकली ओषधियों से अन्य अपराधों के विचारण के लिए, अधिसूचना द्वारा एक या एक से अधिक सेशन न्यायालयों को ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों या ऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए विशेष न्यायालय या विशेष न्यायालयों के रूप में अभिहित करेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।]

स्पष्टीकरण-इस उपधारा में, उच्च न्यायालय" से उस राज्य का उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जिसमें विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित सेशन न्यायालय ऐसे अभिहित किए जाने के ठीक पहले कार्य कर रहा था ।

(2) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करते समय, विशेष न्यायालय उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध से भिन्न ऐसे किसी अपराध का विचारण भी करेगा जिससे अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन उसी विचारण में आरोपित किया आप ।

36कग. कतिपय दशाओं में अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी, (क) अपमिश्रित या नकली ओषधियों से संबंधित और धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (क) और खंड (ग), धारा 13 की उपधारा (2) के खण्ड (क), धारा 22 की उपधारा (3), धारा 27 के खंड (क) और खंड (ग), धारा 28, धारा 28क, धारा 28ख और धारा 30 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध तथा अपमिश्रित ओषधियों या नकली ओषधियों से संबंधित अनय अपराध संज्ञेय होंगे ;

(ख) धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (क) और खंड (ग), धारा 13 की उपधारा (2) के खंउ (क), धारा 22 की उपधारा (3), धारा 27 के खंड (क) और खंड (ग), धारा 28, धारा 28क, धारा 28ख और धारा 30 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन दंडनीय अपराध तथा अपमिश्रित ओषधियों या नकली ओषधियों से संबंधित अन्य अपराधों के किसी अभियुक्त व्यक्ति को जमानत पर या उसके स्वयं के बंधपत्र पर तभी छोड़ा जाएगा जब

(i) लोक अभियोजक को ऐसे छोड़े जाने के आवेदन का विरोध करने का अवसर दे दिया गया हो; और

(ii) जहां लोक अभियोजक आवेदन का विरोध करता है, और न्यायालय का यह समाधान हो गया है कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त कारण हैं कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध कारित किए जाने की संभावना नहीं है:

परन्तु ऐसा व्यक्ति जो सोलह वर्ष की आयु से कम का है या स्त्री है या बीमार या अशकत व्यक्ति है, यदि विशेष न्यायालय ऐसा निदेश दे, जमानत पर छोड़ा जा सकेगा ।

  1. 2008 के अधिनियम सं० 26 की धारा 20 द्वारा अन्तःस्थापित ।

(2) जमानत मंजूर करने के लिए उपधारा (1) के खंड (ख) में विनिर्दिष्ट परिसीमा, जमानत मंजूर किए जाने की दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन परिसीमाओं के अतिरिक्त है ।

(3) इस धारा की कोई बात दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 439 के अधीन जमानत के संबंध में उच्च न्यायालय की विशेष शक्तियों को प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी और उच्च न्यायालय उस धारा की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन शक्ति सहित ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा मानो उस धारा में मजिस्ट्रेट" के प्रति निर्देश के अन्तर्गत धारा 36कख के अधीन अभिहित विशेष न्यायालय" के प्रति निर्देश भी है ।

36कघ. विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) का लागू होना-(1) इस अधिनियम के अधीन जैसा अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध (जमानत या बंधपत्रों के बारे में उपबंधों सहित) विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को लागू होंगे ओर उक्त उपबंधों के प्रयोजनों के लिए, विशेष न्यायालय सेशन न्यायालय समझा जाएगा तथा विशेष न्यायालय के समक्ष अभियोजन का संचालन करने वाला व्यक्ति लोक अभियोजक समझा जाएगा:

परन्तु केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी मामले या मामलों के किसी वर्ग या समूह के लिए विशेष लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकेगी ।

(2) कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए तभी अर्हित होगा जब वह संघ या राज्य के अधीन अधिवक्ता के रुप में कम से कम सात वर्ष तक विधि व्यवसाय में रहा है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ।

(3) इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 2 के खंड (प) के अर्थान्तर्गत लोक अभियोजक समझा जाएगा और उस संहिता के उपबंध तदनुसार प्रभावी होंगे । 

36कङ. अपील और पुनरीक्षण-उच्च न्यायालय, जहां तक लागू हो, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 29 या अध्याय 30 द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग इस प्रकार कर सकेगा जैसे कि उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई विशेष न्यायालय उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर मामलों का विचारण करने वाला एक सेशन न्यायालय हो ।]

37. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए परित्राण-कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में जो इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशयित हो किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध न होगी ।

 1[38. नियमों का संसद् के समक्ष रखा जाना-इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व, दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित

रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]

2[प्रथम अनुसूची

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 40 द्वारा (1-2-1983 से) धारा 38 के स्थान पर प्रतिस्थापित, जिसे 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 30 द्वारा (15-9-1964 से) अन्तःस्थापित किया गया था ।
  2. 1964 के अधिनियम सं० 13 की धारा 31 द्वारा अनुसूची के स्थान पर प्रतिस्थापित । प्रथम अनुसूची (1-2-1969 से) और द्वितीय अनुसूची (15-9-1964 से) प्रवृत्त हुई । 

[धारा (3) देखिए]

1[क-आयुर्वेदिक और सिद्ध प्रणालियां]

क्रम संख्या

पुस्तक का नाम

 

क्रम संख्या

पुस्तक का नाम

 

 

 

आयुर्वेद

 

 

1

आरोग्य कल्पद्रुम

 

28

सहस्रयोग

2

अर्क प्रकाश

 

29

सर्वरोग चिकित्सा रत्नम्

3

आर्य भिषक

 

30

सर्वयोग चिकित्सा रत्नम्

4

आष्टांग हृदय

 

31

शार्डधर संहिता

5

आष्टांग संग्रह

 

32

सिद्ध भैषज्य मणिमाला

6

आयुर्वेद कल्पदुम

 

33

सिद्ध योग संग्रह

7

आयुर्वेद प्रकाश

 

34

सुश्रुत संहिता

8

आयुर्वेद संग्रह

 

35

वैद्य चिन्तामणि

9

भेषज्य रत्नावली

 

36

वैद्यक शब्द सिन्धु

10

बृहत भैषज्य रत्नागर

 

37

वैद्यक चिकित्सा सार

11

भाव प्रकाश

 

38

वैद्य जीवन

12

बृहत् निघंटु रत्नागर

 

39

वासव राजीयम्

13

चरक संहिता

 

40

योग रत्नाकर

14

चक्र दत्त

 

41

योग तंरगिणी

15

गद निग्रह

 

42

योग चिन्तामणि

16

कूपी पक्व रसायन

 

43

कश्यप संहिता

17

निघंटु रत्नाकर

 

44

भेल संहिता

18

रस चंदांशु

 

45

विश्वनाथ चिकित्सा

19

रस राज सुन्दर

 

46

वृन्द चिकित्सा

20

रसरत्न समुच्चय

 

47

आयुर्वेद चिन्तामणि

21

रसतंत्र सार सिद्ध प्रयोग संग्रह

 

48

अभिनव चिन्तामणि

22

रस तरंगिणी

 

49

आयुर्वेद-रत्नाकर

23

रस योग सागर

 

50

योगरत्न संग्रह

24

रस योग रत्नाकर

 

51

रसमित्र

25

रस योग संग्रह

 

52

द्रव्यगुणनिघुंट

26

रसेन्द्र सार संग्रह

 

53

रसमंजरी

27

रस प्रदीपिका

 

54

बंग सेन

क्रम संख्या

पुस्तक का नाम

 

क्रम संख्या

पुस्तक का नाम

 

 

आयुर्वेद

 

 

 

 

सिद्ध

 

 

55

सिद्ध वैद्य तिरट्ठ

 

59

पुलिप्पणि

56

तेरयर महा करिसल

 

60

अगस्तियर परिपुराणम् (400)

57

ब्रह्म मुनि क्रूक्कडै (300)

 

61

तेरयर यामगम्

58

भोगर (700)

 

62

अगास्तियर चेन्दुरम् (300)

63

अगस्तियर (1500)

 

74

अगस्तियर वैद्य काव्यम् (1500)

64

आत्मरक्षामृतम्

 

75

बाल वगडम

65

अगस्तियर पिन (80)

 

76

चिमिटू रत्न (रत्न) चुरूक्कम्

66

अगस्तियर रत्न चुरूक्कम

 

77

नागमुनि (200)

67

तेरियर करिसल (300)

 

78

अगस्तियर चिल्लरै कौवे

68

वीरामामुनि नास कण्डम

 

79

चिकिक्चा रत्न दीपम्

69

अगस्तियर (600)

 

80

अगस्तियर नयन विधि

70

अगस्तियर कन्म सूत्रिरम्

 

81

युगि करिसल (151)

71

18 सिद्धर का चिल्लरै कौवे

 

82

अगस्तियर वल्लति (600)

72

योगी वात काव्यम्

 

83

तेरियर तैल वर्कम्

73

तेरियर तरु

 

 

 

1[ख-यूनानी (तिब्ब) प्रणाली]

 

1

क़राबादीन क़ादरी

 

7

क़राबादीन जदीद

2

क़राबादीन कबीर

 

8

कितल्फ-उल-तक़लीस

3

क़राबादीन आज़ान

 

9

सनत-उल-तक़लीस

4

इलाज-उल-अमराज़

 

10

मिफता-उल-ख़जाएन

5

अल क़राबादीन

 

11

मादान-उल-अक्सीर

6

बैज क़बीर जिल्द2

 

12

मखजन-उल-मुरब्बात

द्वितीय अनुसूची

  1. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 41 द्वारा शीर्षक क (सिद्ध सहित) आयुर्वेदिक प्रणाली के स्थान पर (1-2-1983 से) प्रतिस्थापित ।
  2. 1982 के अधिनियम सं० 68 की धारा 41 द्वारा (1-2-1983 से) खयूनानी (तिब्ब) प्रणाली शीर्षक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(धारा 8 और 16 देखिए)

आयात ओषधियों द्वारा और विक्रयार्थ विनिर्मित, विक्रीत, विक्रयार्थ स्टाक में रखें या प्रदर्शित अथवा

वितरित ओषधियों द्वारा अनुवर्तन किए जाने वाले मानक

 

ओषधि का वर्ग

अनुवर्तन किया जाने वाला मानक

1

पेटेन्ट या साम्पत्तिक ओषधियां जो 1[होम्योपैथिक औषधियों से भिन्न हों ।]

लेबल या आधान पर विहित रीति में सम्प्रदर्शित फ़ार्मूला या संघटकों की सूची तथा ऐसे अन्य मानक जो विहित किए जाएं ।

2[2

मानव या पशु चिकित्सीय उपयोग के लिए साधारणतया वैक्सीन, सीरा,] ाक्सिन,] ाक्साइड,] ाक्सिन रोधी और एण्टिजन के रूप में ज्ञात पदार्थ और उसी प्रकार के जैव उत्पाद ।

इंटरनेशनल लेबोरेटरी फार बायोलोजिकल स्टेन्डर्डस, सटैन्टैन्स, सीरम-इंस्टीट्यूट कोपनहेंगन में और सेंट्रल वैटरिनरी लेबोरेटरी, वेब्रिज सुरे, यूनाइटेड किंग्डम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समय-समय पर मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाओं में अनुरक्षित मानक और शक्ति क्वालिटी और शुद्धता के ऐसे अतिरिक्त मानक जो विहित किए जाएं ।

3[3 ।                                           ।                                                   ।                                                         ।

4

(खाद्य से भिन्न) ऐसे पदार्थ जो मानव शरीर की रचना या किसी क्रिया को प्रभावित करने के लिए आशयित हैं या ऐसे पीड़कजन्तुओं या कीटों को जो मनुष्यों या पशुओं में रोग पैदा करते हैं नष्ट करने के लिए प्रयुक्त किए जाने के वास्ते आशयित हैं ।

ऐसे मानक जो विहित किए जाएं ।

4[4क.

होम्योपैथिक औषधियां:

(क) भारतीय होम्योपैथिक ओषध कोष में सम्मिलित ओषधियाँ ।

भारतीय होम्योपैथिक ओषध के संस्करण में विनिर्दिष्ट अनन्यता, शुद्धता और सामर्थ्य के उस समय के मानक और यथाविहित कोई अन्य मानक ।

 

(ख) ऐसी ओषधियां जो भारतीय होम्योपैथिक ओषधि कोष में सम्मिलित नहीं है, किन्तु जो संयुक्त राज्य अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम के होम्योपैथिक ओषध कोष या जर्मन होम्योपैथिक ओषध कोष में सम्मिलित है ।

ऐसे ओषध कोष के संस्करण, जिसमें ओषध के लिए विनिर्दिष्ट अनन्यता, शुद्धता और सामर्थ्य दी गई है, उस अनन्यता और शुद्ध सामर्थ्य के उस समय के मानक और यथाविहित कोई अन्य मानक ।

 

(ग) ऐसी ओषिधियां जो भारतीय या संयुक्त राज्य अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम के होम्योपैथिक ओषध कोष या जर्मन होम्योपैथिक औषध कोष में सम्मिलित नहीं है ।

पात्र के लैबल पर विहित रीति से दर्शित घटकों का सूत्र या सूची और केन्द्रीय सरकार द्वारा यथाविहित कोई अन्य मानक ।]

1[5

अन्य ओषधियां: -

 

 

(क) भारतीय ओषध कोष में दी हुई ओषधियां

अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक जो तत्समय भारतीय ओषध कोष के संस्करण में विनिर्दिष्ट हैं और ऐसे अन्य मानक जैसे विहित किए जाएं ।

यदि ओषधियों की अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक तत्समय प्रवृत्त भारतीय ओषध कोष के संस्करण में विनिर्दिष्ट नहीं है किन्तु तत्काल पूर्ववर्ती भारतीय ओषध कोष के संस्करण में विनिर्दिष्ट है तो अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक वे होंगे जो भारतीय ओषध कोष के उस तत्काल पूर्ववर्ती संस्करण में दिए गए हैं, तथा ऐसे अन्य मानक होंगे जैसे विहित किए जाएं ।

 

 

  1. अधिसूचना सं० का० आ० 887, तारीख 19-3-1966 भारत के राजपत्र, भाग 2, खण्ड 3(त्त्), पृ० 819, द्वारा अंतःस्थापित ।
  2. अधिसूचना सं० सा० का० नि० 299 (अ), तारीख 23-4-1984 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  3. अधिसूचना सं० सा० का० नि० 299(अ), तारीख 23-4-1948 द्वारा लोप किया गया ।
  4. अधिसूचना सं० का० आ० 820, तारीख 6-6-1978 भारत के राजपत्र, भाग 2, खण्ड 3(त्त्), पृ० 1471 द्वारा प्रतिस्थापित ।
  5. अधिसूचना सं० का० आ० 885, तारीख 18-8-1973, भारत के राजपत्र, भाग 2, खण्ड 3(त्), पृ० 1643 द्वारा प्रतिस्थापित ।

                               

 

ओषधि का वर्ग

अनुवर्तन किया जाने वाला मानक

 

(ख) ओषधियां जो भारतीय ओषध कोष में नहीं दी गई हैं किन्तु किसी अन्य देश के किसी ओषध कोष में दी गई हैं ।

अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक जो तत्समय ऐसे ओषध कोष के संस्करण में उन ओषधियों के लिए विनिर्दिष्ट हैं और ऐसे अन्य मानक जैसे विहित किए जाएं ।

यदि ओषधियों की अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक तत्समय प्रवृत्त उस शासकीय ओषध कोष के संस्करण में विनिर्दिष्ट नहीं है किन्तु तत्काल पूर्ववर्ती संस्करण में विनिर्दिष्ट है तो, अनन्यता, शुद्धता और शक्ति के मानक वे होंगे जो उस शासकीय ओषध कोष की उस तत्काल पूर्ववर्ती संस्करण में दिए गए हैं, तथा ऐसे अन्य मानक होंगे जैसे विहित किए जाएं ।]

 

                               

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