विमानवहन अधिनियम, 1972
(1972 का अधिनियम संख्यांक 69)
[19 दिसम्बर, 1972]
अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन से सम्बन्धित कतिपय नियमों के एकीकरण के लिए 1929 के अक्तूबर
के बारहवें दिन वारसा में हस्ताक्षरित कन्वेंशन को तथा 1955 के सितम्बर के अट्ठाईसवें दिन
हेग प्रोटोकाल द्वारा यथासंशोधित [उक्त कन्वेंशन को और 28 मई, 1999 को
हस्ताक्षरित मोंट्रियल कन्वेंशन को भी] प्रभावी करने के लिए और उक्त
कन्वेंशन के मूल तथा संशोधित नियम (अपवादों, अनुकूलनों और
उपान्तरों के अधीन रहते हुए) ऐसे विमानवहन पर, जो
अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन नहीं है, लागू
करने और उनसे सम्बन्धित
विषयों का उपबंध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम विमानवहन अधिनियम, 1972 है ।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(i) संशोधित कन्वेंशन" से 1955 के सितम्बर के अट्ठाइसवें दिन हेग प्रोटोकाल द्वारा यथासंशोधित कन्वेंशन अभिप्रेत है;
(ii) कन्वेंशन" से अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन से सम्बन्धित कतिपय नियमों के एकीकरण के लिए 1929 के अक्तूबर के बारहवें दिन वारसा के हस्ताक्षरित कन्वेशन अभिप्रेत है;
[(iii) मोंट्रियल कन्वेंशन" से मोंट्रियल में 28 मई, 1999 को हस्ताक्षरित अंतरराष्ट्रीय विमानवहन के लिए कतिपय नियमों का एकीकरण करने के लिए कन्वेंशन अभिप्रेत है;
(iv) उपाबंध" से इस अधिनियम से उपाबद्ध उपाबंध अभिप्रेत है ।]
3. कन्वेंशन का भारत को लागू होना-(1) प्रथम अनुसूची के नियम, जो वाहकों, यात्रियों, परेषकों, परेषितियों और अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों से सम्बन्धित कन्वेंशन के उपबन्ध हैं, इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी विमानवहन के सम्बन्ध में, जिसको वे नियम लागू होते हैं, वहन करने वाले वायुयान की राष्ट्रिकता, को विचार में लाए बिना, भारत में विधि का बल रखेंगे ।
[(2) इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए, कन्वेंशन के उच्च संविदाकारी पक्षकार और उक्त कन्वेंशन के प्रवर्तन की तारीख वह होगी जो उपाबंध के भाग 1 में सम्मिलित है ।]
(3) प्रथम अनुसूची में कन्वेंशन के किसी उच्च संविदाकारी प्रक्षकार के राज्यक्षेत्र के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उन सब राज्यक्षेत्रों के प्रति निर्देश है जिनका वह पक्षकार है ।
(4) प्रथम अनुसूची में वाहक के अभिकर्ताओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत वाहक के कर्मचारियों के प्रति निर्देश भी है ।
4[(5) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए और यदि वह ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपाबंध के भाग 1 में किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार को, यथास्थिति, जोड़ सकेगी या उससे उसका लोप कर सकेगी और, यथास्थिति, ऐसे जोडे़ जाने या लोप करने पर, ऐसा उच्च संविदाकारी पक्षकार, उच्च संविदाकारी पक्षकार होगा या उच्च संविदाकारी पक्षकार नहीं रहेगा ।]
4. संशोधित कन्वेंशन का भारत को लागू होना-(1) द्वितीय अनुसूची के नियम, जो वाहकों, यात्रियों, परेषकों, परेषितियों, और अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों से सम्बन्धित कन्वेंशन के उपबन्ध हैं, इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी विमानवहन के सम्बन्ध में, जिसको वे नियम लागू होते हैं, वहन करने वाले वायुयान की राष्ट्रिकता को विचार में लाए बिना, भारत में विधि का बल रखेंगे ।
[(2) इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए, संशोधित कन्वेंशन के उच्च संविदाकारी पक्षकार और उक्त संशोधित कन्वेंशन के प्रवर्तन की तारीख वह होगी जो उपाबंध के भाग 2 में सम्मिलित है ।
(2क) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए और यदि वह ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपाबंध के भाग 2 में किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार को यथास्थिति, जोड़ सकेगी या उससे उसका लोप कर सकेगी और यथास्थिति, ऐसे जोड़े जाने या लोप करने पर, ऐसा उच्च संविदाकारी पक्षकार, उच्च संविदाकारी पक्षकार होगा या उच्च संविदाकारी पक्षकार नहीं रहेगा ।]
(3) द्वितीय अनुसूची में कन्वेंशन के किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उन सब राज्यक्षेत्रों के प्रति निर्देश है जिनका वह पक्षकार है ।
(4) द्वितीय अनुसूची में वाहक के अभिकर्ताओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत वाहक के कर्मचारियों के प्रति निर्देश भी है ।
[4क. मोंट्रियल कन्वेंशन का भारत को लागू होना-(1) तृतीय अनुसूची के नियम, जो वाहकों, यात्रियों, परेषकों, परेषितियों और अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और दायित्वों से संबंधित मोंट्रियल कन्वेंशन के उपबंध हैं, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए भी, किसी विमानवहन के सबंध में, जिसको वे नियम लागू होते हैं, वहन करने वाले वायुयान की राष्ट्रिकता को विचार में लाए बिना, भारत में विधि का बल रखेंगे ।
(2) इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए, मोंट्रियल कन्वेंशन के राज्य पक्षकार और उक्त राज्य मोंट्रियल कन्वेंशन के प्रवर्तन की तारीख वह होगी जो उपाबंध के भाग 3 में सम्मिलित है ।
(3) तृतीय अनुसूची में मोंट्रियल कन्वेंशन के किसी राज्य पक्षकार के राज्यक्षेत्र के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उन सभी राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिर्देश है, जिनका वह पक्षकार है ।
(4) तृतीय अनुसूची में वाहक के अभिकर्ताओं के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत वाहक के सेवकों के प्रतिनिर्देश भी है ।
(5) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, और यदि वह ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उपाबंध के भाग 3 में किसी राज्य पक्षकार को, यथास्थिति, जोड़ सकेगी या उससे उसका लोप कर सकेगी और, यथास्थिति, ऐसे जोडे़ जाने या लोप करने पर, ऐसा राज्य पक्षकार, राज्य पक्षकार होगा या राज्य पक्षकार नहीं रहेगा ।]
[(6) केन्द्रीय सरकार, अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए और यदि वह ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अध्याय 3 के नियम 24 के अधीन निक्षेपागार द्वारा पुनरीक्षित दायित्वों की सीमाओं को, उस अनुसूची के उक्त अध्याय के अधीन वाहकों के दायित्वों और नुकसानी के लिए प्रतिकर की सीमा का अवधारण करने के प्रयोजनों के लिए प्रभावी कर सकेगी ।]
5. मृत्यु हो जाने पर दायित्व-(1) घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 (1855 का 13) या भारत के किसी भाग में प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमिति या विधि के नियम में किसी बात के होते हुए भी, [प्रथम अनुसूची, द्वितीय अनुसूची और तृतीय अनुसूची] के नियम, उन सभी मामलों में, जिनको वे लागू होते हैं, यात्री की मृत्यु के सम्बन्ध में वाहक की जिम्मेदारी का अवधारण करेंगे ।
(2) यह जिम्मेदारी यात्री के कुटुम्ब के ऐसे सदस्यों के फायदे के लिए प्रवर्तनीय होगी जिनका उसकी मृत्यु के कारण नुकसान हुआ है ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा में कुटुम्ब के सदस्य" से पति या पत्नी, माता-पिता, सौतेले माता-पिता, पितामह-पितामही, मातामह-मातामही, भाई, बहिन, सौतेला भाई, सौतेली बहिन, संतान, सौतेली संतान, पौत्र-पौत्री और दौहित्र-दौहित्री अभिप्रेत है :
परन्तु यथापूर्वोक्त किसी नातेदारी का निर्णय करने में यह माना जाएगा कि कोई अधर्मज व्यक्ति और कोई दत्तक व्यक्ति अपनी माता तथा अपने तथाकथित पिता की या, यथास्थिति, दत्तक गृहीताओं की धर्मज संतान है या रहा था ।
(3) जिम्मेदारी पूरी कराने के लिए कार्रवाई यात्री के वैयक्तिक प्रतिनिधि द्वारा या ऐसे किसी भी व्यक्ति द्वारा की जा सकती है, जिसके फायदे के लिए उपधारा (2) के अधीन जिम्मेदारी प्रवर्तनीय है, किन्तु किसी एक यात्री की मृत्यु के बारे में भारत में केवल एक कार्रवाई की जा सकती है, और ऐसी प्रत्येक कार्रवाई चाहे वह किसी के भी द्वारा की गई हो, यथापूर्वोक्त रूप में हकदार ऐसे सभी व्यक्तियों के फायदे के लिए होगी, जो भारत में अधिवसित हैं, या भारत में अधिवसित नहीं हैं और जो कार्रवाई का फायदा उठाने की वांछा अभिव्यक्त करते हैं ।
(4) उपधारा (5) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, ऐसी किसी कार्रवाई में वसूल की गई रकम, प्रतिवादी से वसूल न किए गए किन्हीं खर्चों की कटौती करने के पश्चात्, हकदार व्यक्तियों के बीच ऐसे अनुपात में विभाजित की जाएगी जो न्यायालय निदेश करे ।
(5) वह न्यायालय, जिसके समक्ष ऐसी कोई कार्रवाई की जाती है, कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम पर, इस अधिनियम की, यथास्थिति, [प्रथम अनुसूची या द्वितीय अनुसूची या तृतीय अनुसूची] के उन उपबन्धों की दृष्टि से, जो वाहक की जिम्मेदारी को परिसीमित करते हैं और ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों की दृष्टि से, जो प्रश्नगत यात्री की मृत्यु के बारे में भारत के बाहर प्रारम्भ हो गई हैं या प्रारम्भ होने वाली हैं, ऐसे आदेश कर सकेगा जो न्यायालय को न्यायसंगत और साम्यापूर्ण प्रतीत हों ।
6. फ्रैंक का संपरिवर्तन-यथास्थिति, प्रथम अनुसूची या द्वितीय अनुसूची के नियम 22 में वर्णित फ्रैंक में कोई राशि, किसी वाहक के विरुद्ध किसी कार्रवाई के प्रयोजन के लिए उस तारीख को प्रचलित विनिमय की दर से रुपयों में संपरिवर्तित की जाएगी जिसको न्यायालय ने वाहक द्वारा संदाय की जाने वाली नुकसानी की रकम अभिनिश्चित की है ।
[6क. विशेष आहरण अधिकारों का संपरिवर्तन-तृतीय अनुसूची के नियम 21 और नियम 22 में उल्लिखित विशेष आहरण अधिकारों में कोई राशि, किसी वाहक के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने के प्रयोजन के लिए, उस तारीख को, जो उक्त तृतीय अनुसूची के नियम 23 के उपबंधों के अनुसार न्यायालय द्वारा, वाहक द्वारा संदत्त की जाने वाली नुकसानी की राशि अभिनिश्चित की जाती है, प्रचलित विनिमय दर से रुपयों में संपरिवर्तित की जाएगी ।]
7. विमानवहन की जिम्मा लेने वाले उच्च संविदाकारी पक्षकार के विरुद्ध वाद के बारे में उपबन्ध-(1) यथास्थिति, कन्वेंशन या संशोधित कन्वेंशन के ऐसे प्रत्येक उच्च संविदाकारी पक्षकार के बारे में, जिसने उसके अतिरिक्त प्रोटोकाल के उपबन्धों का लाभ नहीं उठाया है, यथास्थिति, प्रथम अनुसूची के नियम 28 के या द्वितीय अनुसूची के उपबन्धों के अनुसार भारत में किसी न्यायालय में किसी उस वहन की बाबत, जिसका उसने जिम्मा लिया है, कोई दावा प्रवर्तित कराने के लिए लाए गए किसी वाद के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि उसने अपने को उस न्यायालय की अधिकारिता के अधीन समर्पित कर दिया है और वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के प्रयोजनों के लिए एक व्यक्ति है ।
(2) उच्च न्यायालय उन सब विषयों के लिए, जो ऐसे वादों को संस्थित करने और चलाने के लिए सीमचीन हैं, उपबन्ध करने वाले प्रक्रिया के नियम बना सकेगा ।
(3) इस धारा की कोई भी बात किसी भी न्यायालय को कन्वेंशन या संशोधित कन्वेंशन के किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार की कोई सम्पत्ति कुर्क या विक्रय करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी ।
8. जो विमानवहन अन्तरराष्ट्रीय नहीं है उसको अधिनियम का लागू होना-(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे विमानवहन को, जो प्रथम अनुसूची में यथापरिभाषित अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन नहीं है और जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, प्रथम अनुसूची के नियम और धारा 3 या धारा 5 या धारा 6 का कोई उपबन्ध लागू कर सकेगी किन्तु ये ऐसे अपवादों, अनुकूलनों और उपान्तरों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए लागू होंगे, जो उस रूप में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
(2) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसे विमानवहन को, जो द्वितीय अनुसूची में यथापरिभाषित अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन है और जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, द्वितीय अनुसूची के नियम तथा धारा 4 या धारा 5 या धारा 6 का कोई उपबन्ध लागू कर सकेगी, किन्तु ये ऐसे अपवादों, अनुकूलनों और उपान्तरों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए लागू होंगे, जो उस रूप में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
[(3) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, तृतीय अनुसूची में अंतर्विष्ट नियमों और धारा 4क या धारा 5 या धारा 6क के किसी उपबंध को, ऐसे विमानवहन को, जो तृतीय अनुसूची में यथापरिभाषित अंतरराष्ट्रीय विमानवहन नहीं है, और जिसे अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, तथापि, ऐसे अपवादों, अनुकूलनों और उपांतरणों सहित, यदि कोई हों, जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट किए जाएं, लागू कर सकेगी ।]
[8क. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी ।
(2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना बनाए जाने और जारी किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए या अधिसूचना जारी नहीं की जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी । किन्तु नियम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
9. [निरसन ।]-निरसन और संशोधन अधिनियम, 1978 (1978 का 38) की धारा 2 और अनुसूची द्वारा निरसित ।
प्रथम अनुसूची
(धारा 3 देखिए)
नियम
अध्याय 1
परिधि-परिभाषाएं
1. (1) ये नियम वायुयान द्वारा पारिश्रमिक के लिए व्यक्तियों, सामान या माल के सब अन्तरराष्ट्रीय वहन को लागू होते हैं । ये ऐसे वहन को भी लागू होते हैं जो बिना प्रतिफल के किसी वायु परिवहन उपक्रम द्वारा किया जाता है ।
(2) इन नियमों में उच्च संविदाकारी पक्षकार" से कन्वेंशन का उच्च संविदाकारी पक्षकार अभिप्रेत है ।
(3) इन नियमों के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय वहन" पद से ऐसा कोई वहन अभिप्रेत है, जिसमें पक्षकारों द्वारा की गई संविदा के अनुसार प्रस्थान का स्थान और गंतव्य स्थान, चाहे वहन में यात्रा विराम या यानान्तरण हो या न हो, दो उच्च संविदाकारी पक्षकारों के राज्यक्षेत्रों के भीतर स्थित हैं या जब किसी एक ही उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र में स्थित है तब वहन में रुकने का कोई ऐसा स्थान जिसके बारे में करार किया गया है, किसी अन्य शक्ति की प्रभुता, अधिराजत्व, अधिदेश या प्राधिकार के अधीन किसी राज्यक्षेत्र के भीतर स्थित है, भले ही वह शक्ति कन्वेंशन का पक्षकार नहीं है, एक ही उच्च संविदाकारी पक्षकार की प्रभुता, अधिराजत्व, अधिदेश या प्राधिकार के अधीन राज्यक्षेत्रों के बीच ऐसे वहन को, जिसमें कोई ऐसा रुकने का स्थान नहीं है जिसके बारे में करार किया गया हो, इन नियमों के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय नहीं समझा जाता है ।
(4) अनेक आनुक्रमिक विमानवाहकों द्वारा किया जाने वाला वहन इन नियमों के प्रयोजनों के लिए एक अविभक्त वहन तब समझा जाएगा जब उसे पक्षकारों ने एक संक्रिया के रूप में मान लिया हो, चाहे उसके बारे में एक संविदा या संविदाओं की आवलि के रूप में करार किया गया हो और वह अपना अंतरराष्ट्रीय स्वरूप केवल इस कारण से नहीं खोता है कि एक संविदा या संविदाओं की आवलि का पूर्णतः पालन उसी उच्च संविदाकारी पक्षकार की प्रभुता, अधिराजत्व, अधिदेश या प्राधिकार के अधीन राज्यक्षेत्र के भीतर किया जाना है ।
2. (1) ये नियम राज्य द्वारा या वैध रूप से गठित लोक निकाय द्वारा किए जाने वाले वहन को लागू होंगे परन्तु यह तब जब कि वह नियम 1 में अधिकथित शर्तों के भीतर आता हो ।
(2) ये नियम किसी अंतरराष्ट्रीय डाक कन्वेंशन के निबन्धनों के अधीन किए जाने वाले वहन को लागू नहीं होते हैं ।
अध्याय 2
वहन के दस्तावेज
भाग 1-यात्री टिकट
3. (1) यात्रियों का वहन करने के लिए वाहक एक यात्री टिकट अवश्य देगा जिसमें निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी-
(क) जारी किए जाने का स्थान और तारीख;
(ख) प्रस्थान और गंतव्य स्थान;
(ग) रुकने के ऐसे स्थान जिनके बारे में करार किया गया हो, परन्तु यह तब जब कि वाहक आवश्यकता पड़ने पर रुकने के स्थानों में परिवर्तन करने का अधिकार आरक्षित करे और यदि वह उस अधिकार का प्रयोग करता है तो ऐसे परिवर्तन का प्रभाव वहन को उसके अंतरराष्ट्रीय स्वरूप से वंचित करना नहीं होगा;
(घ) वाहक या वाहकों के नाम और पते;
(ङ) यह कथन कि वहन इस अनुसूची में जिम्मेदारी से संबंधित नियमों के अधीन है ।
(2) यात्री टिकट के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर प्रभाव नहीं पडे़गा, फिर भी वह इन नियमों के अधीन रहेगा । किन्तु यदि कोई वाहक किसी यात्री को यात्री टिकट दिए बिना उसे स्वीकार करता है तो वह इस अनुसूची के उन उपबंधों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा जो उसकी जिम्मेदारी को अपवर्जित या परिसीमित करते हैं ।
भाग 2-सामान टिकट
4. (1) यात्री जिन वैयक्तिक छोटी वस्तुओं को अपने पास रखता है, उनसे भिन्न सामान के वहन के लिए वाहक सामान टिकट अवश्य देगा ।
(2) सामान टिकट दो प्रतियों में बनाया जाएगा, एक भाग यात्री के लिए और दूसरा वाहक के लिए ।
(3) सामान टिकट में निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी-
(क) जारी किए जाने का स्थान और तारीख;
(ख) प्रस्थान और गंतत्वय स्थान;
(ग) वाहक या वाहकों के नाम और पते;
(घ) यात्री टिकट का संख्यांक;
(ङ) यह कथन कि सामान का परिदान सामान टिकट के वाहक को किया जाएगा;
(च) पैकेजों की संख्या और भार;
(छ) नियम 22(2) के अनुसार घोषित मूल्य की रकम;
(ज) यह कथन कि वहन इस अनुसूची में जिम्मेदारी से संबंधित नियमों के अधीन है ।
(4) सामान टिकट के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर कोई पभव नहीं पडे़गा, फिर भी वह इन नियमों के अधीन रहेगी । किन्तु यदि कोई वाहक सामान टिकट दिए बिना सामान का प्रतिग्रहण करता है या यदि उपनियम (3) के खंड (घ), (च) और (ज) में उपवर्णित विशिष्टियां सामान टिकट में नहीं हैं, तो वह इस अनुसूची के उन उपबंधों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा जो उसकी जिम्मेदारी को अपवर्जित या परिसीमित करते हैं ।
भाग 3-विमान परेषण पत्र
5. (1) माल के प्रत्येक वाहक को यह अधिकार है कि वह परेषक से विमान परेषण पत्र" कही जाने वाली दस्तावेज बनाने और उसे वह दस्तावेज देने की अपेक्षा करे; प्रत्येक परेषक को यह अधिकार है कि वह वाहक से इस दस्तावेज का प्रतिग्रहण करने की अपेक्षा करे ।
(2) इस दस्तावेज के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर प्रभाव नहीं पडे़गा, फिर भी उस संविदा को नियम 9 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ये नियम लागू होंगे ।
6. (1) परेषक विमान परेषण पत्र तीन मूल भागों में बनाएगा और वह माल के साथ दिया जाएगा ।
(2) प्रथम भाग वाहक के लिए" चिह्नित होगा और परेषक द्वारा हस्ताक्षरित होगा । दूसरा भाग परेषिती के लिए" चिह्नित होगा और परेषक तथा वाहक द्वारा हस्ताक्षरित होगा और माल के साथ रहेगा । तीसरा भाग वाहक द्वारा हस्ताक्षरित होगा और वह माल के प्रतिग्रहण के पश्चात् उसके द्वारा परेषक को दिया जाएगा ।
(3) वाहक माल के प्रतिग्रहण के लिए हस्ताक्षर करेगा ।
(4) वाहक के हस्ताक्षर स्टाम्पित किए जा सकते हैं; परेषक के हस्ताक्षर मुद्रित या स्टाम्पित किए जा सकते हैं ।
(5) यदि वाहक, परेषक के अनुरोध पर, विमान परेषण पत्र बनाता है, तो इसके प्रतिकूल सबूत न होने पर यह समझा जाएगा कि उसने परेषिती की ओर से ऐसा किया है ।
7. जब एक से अधिक पैकेज हों तो माल के वाहक को यह अधिकार है कि वह परेषक से अलग-अलग परेषण पत्र बनाने की अपेक्षा करे ।
8. विमान परेषण पत्र में निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी-
(क) उसके निष्पादन का स्थान और तारीख;
(ख) प्रस्थान और गंतव्य स्थान;
(ग) रुकने के ऐसे स्थान, जिनके बारे में करार किया गया हो, परन्तु यह तब जब कि वाहक आवश्यकता पड़ने पर रुकने के स्थानों में परिवर्तन करने का अधिकार आरक्षित करे और यदि वह उस अधिकार का प्रयोग करता है तो ऐसे परिवर्तन का प्रभाव वहन को उसके अंतरराष्ट्रीय स्वरूप से वंचित करना नहीं होगा;
(घ) परेषक का नाम और पता;
(ङ) प्रथम वाहक का नाम और पता;
(च) यदि ऐसा अपेक्षित है तो परेषिती का नाम और पता;
(छ) माल की प्रकृति;
(ज) पैकेजों की संख्या, पैकिंग का तरीका और उन पर विशिष्ट चिह्न या संख्यांक;
(झ) माल का भार, मात्रा और आयतन या परिमाप;
(ञ) माल और पैकिंग की प्रकट दशा;
(ट) यदि ढुलाई का करार किया गया है, तो उसके संदाय की तारीख और स्थान और वह व्यक्ति जो उसका संदाय करेगा;
(ठ) यदि माल को इस शर्त पर भेजा गया है कि परिदान होते ही संदाय किया जाएगा तो, माल की कीमत, और यदि ऐसा अपेक्षित है तो उपगत व्ययों की रकम;
(ड) नियम 22(2) के अनुसार घोषित मूल्य की रकम;
(ढ) विमान परेषण पत्र के भागों की संख्या;
(ण) विमान परेषण पत्र के साथ रखे जाने के लिए वाहक को दी गई दस्तावेजें;
(त) वहन के पूरा होने के लिए नियत समय और उस रास्ते के बारे में संक्षिप्त टिप्पण, जिससे होकर वहन किया जाएगा, यदि इन विषयों पर करार किया गया है;
(थ) यह कथन कि वहन इस अनुसूची में जिम्मेदारी से संबंधित नियमों के अधीन है ।
9. यदि वाहक विमान परेषण पत्र बनाए बिना माल का प्रतिग्रहण करता है या यदि विमान परेषण पत्र में नियम 8(क) से (झ) तक, जिसमें (झ) भी सम्मिलित है तथा (थ) में उपवर्णित सब विशिष्टियां नहीं हैं, तो वाहक इस अनुसूची के उन उपबंधों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा जो उसकी जिम्मेदारी को अपवर्जित या परिसीमित करते हैं ।
10. (1) परेषक माल से संबंधित उन विशिष्टियों और कथनों की शुद्धता के लिए उत्तरदायी है जो वह विमान परेषण पत्र में भरता है ।
(2) उक्त विशिष्टियों और कथनों की अनियमितता या अशुद्धता या अपूर्णता के कारण वाहक या किसी अन्य व्यक्ति को हुए सब नुकसान के लिए परेषक जिम्मेदार होगा ।
11. (1) विमान परेषण पत्र संविदा के हो जाने, माल की प्राप्ति और वहन की शर्तों का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य है ।
(2) विमान परेषण पत्र में माल के भार, परिमाप और पैकिंग से संबंधित कथन तथा पैकेजों की संख्या से संबंधित कथन उन तथ्यों के प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य हैं जिनका कथन किया गया है । वे कथन, जो माल की मात्रा, आयतन और दशा के संबंध में हैं, वाहक के विरुद्ध साक्ष्य नहीं हैं, किन्तु वे इस बात के साक्ष्य हैं कि वाहक ने माल और पैकेजों की जांच-पड़ताल परेषक की उपस्थिति में कर ली है और विमान परेषण पत्र में ऐसा कर लेने का कथन है या वे माल की प्रकट दशा के सम्बन्ध में हैं ।
12. (1) परेषक को वहन की संविदा के अधीन अपनी समस्त बाध्यताएं निभाने की अपनी जिम्मेदारी के अधीन रहते हुए यह अधिकार है कि वह प्रस्थान के या गंतव्य विमानक्षेत्र पर माल वापस लेकर या किसी उतरने के स्थान पर यात्रा के दौरान उसे रोक कर या विमान परेषण पत्र में नामित व्यक्ति के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को गंतव्य स्थान पर या यात्रा के दौरान माल का परिदान करने की मांग करके या प्रस्थान के विमानक्षेत्र पर उसे वापस भिजवाने की अपेक्षा करके उस माल का व्ययन कर सकता है । वह व्ययन करने के इस अधिकार का प्रयोग इस प्रकार नहीं करेगा जिससे कि वाहक या अन्य परेषकों पर प्रतिकूल प्रभाव पडे़ और वह इस अधिकार के प्रयोग के कारण हुए किन्हीं खर्चों का प्रतिसंदाय अवश्य करेगा ।
(2) यदि परेषक के आदेशों का पालन करना असंभव है, तो वाहक उसे तुरन्त सूचित करेगा ।
(3) यदि वाहक माल का व्ययन करने के लिए परेषक के आदेशों का पालन परेषक को दिए गए विमान परेषण पत्र का भाग प्रस्तुत प्रस्तुत करने की अपेक्षा किए बिना करता है, तो वह परेषक से वसूल करने के अपने अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी भी ऐसे नुकसान के लिए जिम्मेदार होगा, जो उसके द्वारा किसी भी ऐसे व्यक्ति को हो जिसके विधिपूर्वक कब्जे में विमान परेषण पत्र का भाग है ।
(4) परेषक को प्रदत्त अधिकार उस क्षण समाप्त हो जाता है जब नियम 13 के अनुसार परेषिती का अधिकार प्रारम्भ होता है, किन्तु यदि परेषिती परेषण पत्र या माल का प्रतिग्रहण करने से इंकार करता है या यदि उससे सम्पर्क नहीं किया जा सकता है तो, परेषक को व्ययन के अपने अधिकार पुनः प्राप्त हो जाते हैं ।
13. (1) नियम 12 में उपवर्णित परिस्थतियों को छोड़कर परेषिती गंतव्य स्थान पर माल के आने पर शोध्य प्रभारों का संदाय करके और विमान परेषण पत्र में उपवर्णित वहन की शर्तों का पालन करके, वाहक से उसे विमान परेषण पत्र देने और माल का परिदान करने की अपेक्षा करने का हकदार है ।
(2) जब तक कि अन्यथा करार नहीं किया गया है, वाहक का यह कर्तव्य है कि वह जैसे ही माल आता है परेषिती को सूचना दे
(3) यदि वाहक माल का खो जाना स्वीकार करता है या यदि माल उस तारीख के, जिसको उसे पहुंचना चाहिए था, अवसान के सात दिन के पश्चात् नहीं पहुंचा हैं, तो परेषिती वाहक के विरुद्ध उन अधिकारों को प्रवर्तित कराने का हकदार है जो वहन की संविदा से उद्भूत होते हैं ।
14. परेषक और परेषिती नियम 12 और 13 द्वारा उन्हें दिए गए सब अधिकारों को अपने-अपने नाम से प्रवर्तित करा सकते हैं, चाहे वे अपने हित में या किसी अन्य के हित में कार्य कर रहे हों, परन्तु यह तब जब कि वे संविदा द्वारा अधिरोपित बाध्यताओं को निभाते हैं ।
15. (1) नियम 12, 13 और 14 परेषक या परेषिती के एक दूसरे से संबंधों को या अन्य पक्षकारों के, जिनका अधिकार परेषक या परेषिती से व्युत्पन्न होता है, पारस्परिक संबंधों को प्रभावित नहीं करते हैं ।
(2) नियम 12, 13 और 14 के उपबन्धों में परिवर्तन विमान परेषण पत्र में अभिव्यक्त उपबन्ध द्वारा ही किया जा सकता है ।
16. (1) परेषक ऐसी जानकारी देगा और विमानपरेषण पत्र के साथ ऐसी दस्तावेजें संलग्न करेगा जो परेषिती को माल का परिदान कर सकने के पूर्व सीमाशुल्क, चुंगी या पुलिस की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं । परेषक, किसी ऐसी जानकारी या दस्तावेज के न होने या उसकी अपर्याप्तता या अनियमितता के कारण हुए किसी नुकसान के लिए वाहक के प्रति जिम्मेदार होगा किन्तु तब नहीं जब वाहक या उसके अभिकर्ताओं की त्रुटि के कारण नुकसान हुआ हो ।
(2) वाहक ऐसी जानकारी या दस्तावेजों की शुद्धता या पर्याप्तता के बारे में पूछताछ करने के लिए बाध्य नहीं है । अध्याय 3
वाहक की जिम्मेदारी
17. यदि वह घटना, जिसके कारण ऐसा नुकसान हुआ है, वायुयान पर अथवा चढ़ने या उतरने की किसी क्रिया के दौरान हुई है तो वाहक किसी यात्री की मृत्यु या उसके आहत होने या यात्री को हुई किसी अन्य शारीरिक क्षति की दशा में हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार होगा ।
18. (1) यदि वह घटना, जिसके कारण ऐसा नुकसान हुआ है, विमानवहन के दौरान हुई है तो वाहक किसी रजिस्ट्रीकृत सामान या किसी माल के नाश या खो जाने या उसे हुए नुकसान की दशा में नुकसान के लिए जिम्मेदार है ।
(2) उपनियम (1) के अर्थान्तर्गत विमानवहन में ऐसी अवधि भी सम्मिलित है जिसके दौरान सामान या माल चाहे किसी विमानक्षेत्र में या वायुयान पर या विमानक्षेत्र के बाहर उतरने की दशा में किसी भी स्थान पर, वाहक के भारसाधन में है ।
(3) विमानवहन की अवधि में विमानक्षेत्र के बाहर भूमि, समुद्र या नदी मार्ग द्वारा किए गए किसी वहन की अवधि सम्मिलित नहीं है, किन्तु यदि ऐसा वहन विमानवहन की संविदा के पालन में लदान, परिदान या यानान्तरण के प्रयोजन के लिए होता है तो, जब तक प्रतिकूल साबित न हो, यह उपधारणा की जाती है कि विमानवहन के दौरान हुई घटना के परिणामस्वरूप नुकसान हुआ है ।
19. यात्रियों या सामान या माल को विमानवहन में विलम्ब के कारण हुए नुकसान के लिए वाहक जिम्मेदार है ।
20. (1) यदि वाहक यह साबित कर देता है कि उसने और उसके अभिकर्ताओं ने नुकसान से बचने के लिए सब आवश्यक उपाय किए हैं या उसके या उनके लिए ऐसे उपाय करना असंभव था तो वह जिम्मेदार नहीं है ।
(2) यदि वाहक यह साबित कर देता है कि नुकसान उपेक्षापूर्वक विमानचालन से अथवा वायुयान के उपयोग में या दिक्चालन में उपेक्षा के कारण हुआ है और अन्य सब बातों में उसने और उसके अभिकर्ताओं ने नुकसान से बचने के समस्त आवश्यक उपाय किए हैं तो माल और सामान के वहन में वाहक जिम्मेदार नहीं है ।
21. यदि वाहक यह साबित कर देता है कि नुकसान क्षतिग्रस्त व्यक्ति की उपेक्षा के कारण या योगदान से हुआ है, तो न्यायालय वाहक को उसकी जिम्मेदारी से पूर्णतः या भागतः विमुक्त कर सकेगा ।
22. (1) यात्रियों के वहन में प्रत्येक यात्री के लिए वाहक की जिम्मेदारी 1,25,000 फ्रैंक की राशि तक परिसीमित है । जहां नुकसानी कालिक संदाय के रूप में अधिनिर्णित की जा सकती है, वहां उक्त संदायों का समतुल्य पूंजीमूल्य 1,25,000 फ्रैंक से अधिक नहीं होगा, किन्तु वाहक और यात्री विशेष संविदा द्वारा जिम्मेदारी की उच्चतर परिसीमा का करार कर सकते हैं ।
(2) रजिस्ट्रीकृत सामान और माल के वहन में, वाहक की जिम्मेदारी 250 फ्रैंक प्रति किलोग्राम की राशि तक परिसीमित है, किन्तु तब नहीं जब परेषक ने वाहक को पैकेज सौंपने के समय परिदान पर मूल्य की विशेष घोषणा की हो और मामले में अपेक्षित होने पर अनुपूरक राशि का संदाय किया हो । उस दशा में वाहक घोषित राशि से अनधिक राशि का संदाय करने के लिए जिम्मेदार होगा, किन्तु तब नहीं जब वह यह साबित कर देता है कि वह राशि परिदान के समय परेषक के लिए वास्तविक मूल्य से अधिक है ।
(3) यात्री अपने पास जिन पदार्थों को रखता है उनके बारे में वाहक की जिम्मेदारी 5,000 फ्रैंक प्रति यात्री तक परिसीमित है ।
(4) इस अधिनियम में वर्णित राशियां ऐसे फ्रेंच फ्रैंक के प्रति निर्देश करने वाली समझी जाएगी जो कि पैंसठ सही एक बटा दो मिलीग्राम ऐसे सोने से बना होगा जिसके एक हजार भाग में से नौ सौ भाग शुद्ध हैं ।
23. वाहक को जिम्मेदारी से मुक्त करने वाला या इन नियमों में अधिकथित परिसीमा से निम्न परिसीमा नियत करने वाला कोई उपबन्ध अकृत और शून्य होगा किन्तु ऐसे किसी उपबन्ध की अकृतता से संपूर्ण संविदा, अकृत नहीं होगी और वह इस अनुसूची के उपबन्धों के अधीन बनी रहेगी ।
24. (1) नियम 18 और 19 के अन्तर्गत आने वाले मामलों में नुकसानी के लिए कोई कार्रवाई, चाहे वह किसी भी आधार पर हो, इस अनुसूची में उपवर्णित शर्तों और परिसीमाओं के अधीन ही की जा सकती है ।
(2) नियम 17 के अन्तर्गत आने वाले मामलों में उपनियम (1) के उपबन्ध भी, इन प्रश्नों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना लागू होते हैं कि वे व्यक्ति कौन हैं, जिन्हें वाद लाने का अधिकार है और उनके अपने-अपने क्या अधिकार हैं ।
25. (1) यदि वाहक के जानबूझकर किए गए अवचार या उसकी ऐसी त्रुटि के कारण नुकसान हुआ है जो न्यायालय की राय में जानबूझकर अवचार के समतुल्य है तो वाहक इस अनुसूची के उन उपबन्धों का फायदा उठाने का हकदार नहीं होगा जो उसकी जिम्मेदारी को अपवर्जित या परिसीमित करते हैं ।
(2) इसी प्रकार यदि नुकसान वाहक के किसी अभिकर्ता द्वारा अपने नियोजन की परिधि के अन्दर कार्य करते हुए यथापूर्वोक्त रूप में किया गया है तो वाहक उक्त उपबन्धों का फायदा उठाने का हकदार नहीं होगा ।
26. (1) सामान या माल के परिदान के लिए हकदार व्यक्ति द्वारा बिना शिकायत वाली प्राप्ति, इस बात की प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य है कि सामान या माल का परिदान अच्छी दशा में और वहन के दस्तावेज के अनुसार किया गया है ।
(2) नुकसान की दशा में, परिदान के लिए हकदार व्यक्ति नुकसान का पता चलने के पश्चात् तुरन्त और सामान की दशा में उसकी प्राप्ति की तारीख से अधिक से अधिक तीन दिन के भीतर और माल की दशा में उसकी प्राप्ति की तारीख से सात दिन के भीतर वाहक से शिकायत करेगा । विलम्ब की दशा में शिकायत, सामान या माल उसके व्ययनाधीन रखे जाने की तारीख से अधिक से अधिक चौदह दिन के भीतर की जाएगी ।
(3) प्रत्येक शिकायत वहन के दस्तावेज पर लिखित रूप में या उपर्युक्त समय के भीतर भेजी गई पृथक् लिखित सूचना द्वारा की जाएगी ।
(4) उपर्युक्त समय के भीतर शिकायत न होने पर वाहक के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई तभी की जाएगी जब उसकी ओर से कपट किया गया हो, अन्यथा नहीं ।
27. नुकसानी के लिए इन नियमों के अनुसार कार्रवाई, जिम्मेदार व्यक्ति की मृत्यु की दशा में, उसकी सम्पदा का वैध रूप से प्रतिनिधित्व करने वालों के विरुद्ध की जा सकती है ।
28. नुकसानी के लिए कोई भी कार्रवाई, वादी के विकल्प पर उस स्थान पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय के समक्ष, जहां वाहक सामान्यतया निवास करता है या उसके कारबार का मुख्य स्थान है या उसका वह स्थापन है जहां संविदा की गई है या गंतव्य स्थान पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय के समक्ष, की जाएगी ।
29. गंतव्य स्थान पर पहुंचने की तारीख से या उस तारीख से, जिसको वायुयान आ जाना चाहिए था या उस तारीख से जिसको वहन रुक गया था, गणना करके दो वर्षों के भीतर यदि कार्रवाई नहीं की जाती है तो नुकसानी का अधिकार समाप्त हो जाएगा ।
30. (1) विभिन्न आनुक्रमिक वाहकों द्वारा किए जाने वाले और नियम 1 के उपनियम (4) में उपवर्णित परिभाषा के अन्तर्गत आने वाले वहन की दशा में, प्रत्येक वाहक, जो यात्रियों को स्वीकार करता है अथवा सामान या माल का प्रतिग्रहण करता है, इस अनुसूची में उपवर्णित नियमों के अधीन है और जहां तक संविदा का सम्बन्ध वहन के उस भाग से है जो उसके पर्यवेक्षण के अधीन किया जाता है वहां तक उसे वहन की संविदा के संविदाकारी पक्षकारों में से एक समझा जाता है ।
(2) इस प्रकार के वहन की दशा में, यात्री या उसका प्रतिनिधि केवल उसी वाहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है जिसने वह वहन किया है जिसके दौरान घटना या विलम्ब हुआ है, किन्तु उस दशा में नहीं जिसमें प्रथम वाहक ने अभिव्यक्त करार द्वारा संपूर्ण यात्रा की जिम्मेदारी ग्रहण की है ।
(3) सामान या माल के विषय में, यात्री या परेषक को प्रथम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और यात्री या परेषिती को, जो परिदान के लिए हकदार है, अन्तिम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और इसके अतिरिक्त प्रत्येक यात्री या परेषिती उस वाहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है जिसने वह वहन किया है जिसके दौरान नाश, खोना, नुकसान या विलम्ब हुआ है । ये वाहक यात्री या परेषक या परेषिती के प्रति संयुक्ततः और पृथक्तःः जिम्मेदार होंगे ।
अध्याय 4
संयुक्त वहन से सम्बन्धित उपबन्ध
31. (1) भागतः विमान द्वारा और भागतः किसी अन्य प्रकार से किए गए किसी संयुक्त वहन की दशा में, इस अनुसूची के उपबन्ध केवल विमानवहन को लागू होते हैं परन्तु यह तब जब कि विमानवहन नियम 1 के निबंधनों के अन्तर्गत आता हो ।
(2) इस अनुसूची की कोई भी बात, संयुक्त वहन की दशा में पक्षकारों को अन्य प्रकार के वहन से संबंधित शर्तें विमानवहन के दस्तावेज में अन्तःस्थापित करने से निवारित नहीं करेगी परन्तु यह तब जब कि विमानवहन के सम्बन्ध में इस अनुसूची के उपबन्धों का अनुपालन किया जा रहा हो ।
अध्याय 5
साधारण और अन्तिम उपबन्ध
32. संविदा का कोई खण्ड और नुकसान होने के पहले किए गए सभी विशेष करार, जिसके या जिनके द्वारा पक्षकारों का तात्पर्य इस अनुसूची द्वारा अधिकथित नियमों का अतिलंघन करना है, चाहे वह अतिलंघन लागू होने वाली विधि का विनिश्चय करने से या अधिकारिता के बारे में नियमों में परिवर्तन करने से हो, अकृत और शून्य होंगे । तथापि, माल के वहन के लिए, माध्यस्थम् खण्ड इन नियमों के अधीन रहते हुए उस दशा में अनुज्ञात किए जाते हैं जब माध्यस्थम् किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र में नियम 28 में निर्दिष्ट किसी अधिकारिता के भीतर होने वाला है ।
33. इस अनुसूची की कोई भी बात, वाहक को वहन की ऐसी कोई संविदा करने से इंकार करने से या ऐसे विनियम बनाने से निवारित नहीं करती है जो इस अनुसूची के उपबंधों के प्रतिकूल न हों ।
34. यह अनुसूची विमान चालन उपक्रमों द्वारा नियमित विमान सेवा की स्थापना करने की दृष्टि से प्रायोगिक परीक्षण के रूप में किए गए अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन को लागू नहीं होती है और न ही यह विमान वाहक के कारबार को सामान्य परिधि से बाहर असाधारण परिस्थितियों में किए गए किसी वहन को लागू होती है ।
35. जहां इन नियमों में दिन" शब्द का प्रयोग किया गया है वहां उससे साधारण दिन अभिप्रेत है, न कि कार्य दिवस ।
36. जब किसी उच्च संविदाकारी पक्षकार ने कन्वेंशन के अनुसमर्थन या अनुवृद्धि के समय यह घोषणा की हो कि इन नियमों के नियम 2 का उपनियम (1) किसी राज्य, उसके उपनिवेशों, संरक्षित राज्यों या अधिदेशाधीन राज्यक्षेत्रों या उसकी प्रभुता, अधिराजत्व या प्राधिकार के अधीन किसी अन्य राज्यक्षेत्र द्वारा सीधे किए गए अन्तरराष्ट्रीय वहन को लागू नहीं होगा, तब ये नियम इस प्रकार किए गए अन्तरराष्ट्रीय विमानवहन को लागू नहीं होंगे ।
द्वितीय अनुसूची
(धारा 4 देखिए)
अध्याय 1
परिधि-परिभाषाएं
1. (1) ये नियम वायुयान द्वारा पारिश्रमिक के लिए व्यक्तियों, सामान या स्थोरा के सब अन्तरराष्ट्रीय वहन को लागू होते हैं । ये वायुयान द्वारा किए गए ऐसे वहन को भी लागू होते हैं जो बिना प्रतिफल के किसी वायु परिवहन उपक्रम द्वारा किया जाता है ।
(2) इन नियमों में उच्च संविदाकारी पक्षकार" से संशोधित कन्वेंशन का उच्च संविदाकारी पक्षकार अभिप्रेत है ।
(3) इन नियमों के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय वहन" पद से ऐसा कोई वहन अभिप्रेत है जिसमें पक्षकारों के बीच हुए करार के अनुसार प्रस्थान का स्थान और गंतव्य स्थान, चाहे वहन में यात्रा विराम या यानान्तरण हो या न हो, दो उच्च संविदाकारी पक्षकारों के राज्यक्षेत्रों के भीतर स्थित हैं या जब किसी एक ही उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थित हैं तब वहन में रुकने का कोई ऐसा स्थान, जिसके बारे में करार किया गया है, किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र में स्थित है, भले ही वह राज्य कन्वेंशन का पक्षकार नहीं है । किसी एक ही उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर दो स्थानों के बीच ऐसा वहन, जिसमें कोई ऐसा रुकने का स्थान, जिसके बारे में करार किया गया हो, किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थित नहीं है, इन नियमों के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय नहीं है ।
(4) अनेक आनुक्रमिक विमानवाहकों द्वारा किया जाने वाला वहन, इन नियमों के प्रयोजनों के लिए, एक अविभक्त वहन तब समझा जाएगा जब उसे पक्षकरों ने एक संक्रिया के रूप में मान लिया हो, चाहे उसके बारे में एक संविदा या संविदाओं की आवलि के रूप में करार किया गया हो और वह अपना अंतरराष्ट्रीय स्वरूप केवल इस कारण से नहीं खोता है कि एक संविदा या संविदाओं की आवलि का पूर्णतः पालन उसी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर किया जाना है ।
2. (1) ये नियम राज्य द्वारा या वैध रूप से गठित लोक निकाय द्वारा किए जाने वाले वहन को लागू होंगे परन्तु यह तब जब कि वह नियम 1 में अधिकथित शर्तों के भीतर आता हो ।
(2) ये नियम डाक और डाक के पैकेजों के वहन को लागू नहीं होंगे ।
अध्याय 2
वहन के दस्तावेज
भाग 1-यात्री टिकट
3. (1) यात्रियों के वहन के सम्बन्ध में एक टिकट दिया जाएगा जिसमें निम्नलिखित बातें होंगी-
(क) प्रस्थान और गन्तव्य स्थानों का उपदर्शन;
(ख) यदि प्रस्थान और गन्तव्य स्थान किसी एक उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं और रुकने के एक या अधिक ऐसे स्थान, जिनके बारे में करार किए गए हों, किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं तो, ऐसे रुकने के कम से कम एक स्थान का उपदर्शन;
(ग) इस आशय की सूचना कि यदि किसी यात्री की यात्रा के अन्तर्गत प्रस्थान के देश से भिन्न किसी देश में अन्तिम गन्तव्य स्थान या रुकना आता है तो संशोधित कन्वेंशन लागू हो सकेगा और मृत्यु या वैयक्तिक क्षति की बाबत और सामान के खो जाने या उसे नुकसान की बाबत वाहकों की जिम्मेदारी संशोधित कन्वेंशन द्वारा शासित होती है और उससे अधिकांश मामलों में परिसीमित होती है ।
(2) यात्री टिकट वहन की संविदा हो जाने और उसकी शर्तों का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य होगा । यात्री टिकट के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा, फिर भी वह इन नियमों के अधीन रहेगी । किन्तु यदि कोई यात्री वाहक की सहमति से यात्री टिकट दिए बिना चढ़ जाता है या यदि टिकट में इस नियम के उपनियम (1) (ग) द्वारा अपेक्षित सूचना सम्मिलित नहीं है तो वाहक नियम 22 के उपबन्धों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा ।
भाग 2-यात्री सामान पत्र
4. (1) रजिस्ट्रीकृत यात्री सामान के वहन की बाबत एक यात्री सामान पत्र दिया जाएगा जिसमें निम्नलिखित बातें होंगी, किन्तु तब नहीं होंगी जब वह उस यात्री टिकट से, जो नियम 3 के उपनियम (1) के उपबन्धों के अनुपालन में हो, मिला दिया गया हो या उसमें सम्मिलित कर लिया गया हो :-
(क) प्रस्थान और गन्तव्य स्थानों का उपदर्शन;
(ख) यदि प्रस्थान और गन्तव्य स्थान किसी एक उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं, और रुकने के एक या अधिक स्थान किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं तो, ऐसे रुकने के कम से कम एक स्थान का उपदर्शन;
(ग) यह सूचना कि यदि वहन के अन्तर्गत प्रस्थान के देश से भिन्न किसी देश में अन्तिम गन्तव्य स्थान या रुकना आता है तो संशोधित कन्वेंशन लागू हो सकेगा और सामान के खो जाने या उसके नुकसान की बाबत वाहकों की जिम्मेदारी संशोधित कन्वेशन द्वारा शासित होती है और उससे अधिकांश मामलों में परिसीमित होती है ।
(2) यात्री सामान पत्र, यात्री सामान के रजिस्ट्रीकरण और वहन की संविदा की शर्तों का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य होगा । यात्री सामान पत्र के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा, फिर भी वह इन नियमों के अधीन रहेगी । किन्तु यदि कोई वाहक यात्री सामान पत्र दिए बिना सामान अपने पास रखता है या यदि यात्री सामान पत्र में [जब तक वह यात्री टिकट से, जो कि नियम 3 के उपनियम (1) (ग) के उपबन्धों के अनुपालन में हो, मिला न दिया गया हो या उसमें सम्मिलित न कर लिया गया होट इस नियम के उपनियम (1) (ग) द्वारा अपेक्षित सूचना सम्मिलित नहीं है तो वाहक नियम 22 के उपनियम (2) के उपबन्धों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा ।
भाग 3-विमान मार्ग पत्र
5. (1) स्थोरा के प्रत्येक वाहक को यह अधिकार है कि वह परेषक से विमान मार्ग पत्र" कही जाने वाली दस्तावेज बनाने और उसे वह दस्तावेज देने की अपेक्षा करे; प्रत्येक परेषक को अधिकार है कि वह वाहक से इस दस्तावेज का प्रतिग्रहण करने की अपेक्षा करे ।
(2) इस दस्तावेज के न होने से या उसमें अनियमितता या उसके खो जाने से वहन की संविदा के अस्तित्व या उसकी वैधता पर प्रभाव नहीं पडे़गा, फिर भी उस संविदा को नियम 9 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ये नियम लागू होंगे ।
6. (1) परेषक, विमान मार्ग पत्र तीन मूल भागों में बनाएगा और वह स्थोरा के साथ दिया जाएगा ।
(2) प्रथम भाग वाहक के लिए" चिह्नित होगा और परेषक द्वारा हस्ताक्षरित होगा । दूसरा भाग परेषिती के लिए" चिह्नित होगा और परेषक तथा वाहक द्वारा हस्ताक्षरित होगा और स्थोरा के साथ रहेगा । तीसरा भाग वाहक द्वारा हस्ताक्षरित होगा और स्थोरा के प्रतिग्रहण के पश्चात् उसके द्वारा परेषक को दिया जाएगा ।
(3) वाहक, स्थोरा की विमान पर लदान के पूर्व, हस्ताक्षर करेगा ।
(4) वाहक के हस्ताक्षर स्टाम्पित किए जा सकते हैं; परेषक के हस्ताक्षर मुद्रित या स्टाम्पित किए जा सकते हैं ।
(5) यदि वाहक, परेषक के अनुरोध पर, विमान मार्ग पत्र बनाता है, तो इसके प्रतिकूल सबूत न होने पर यह समझा जाएगा कि उसने परेषिती की ओर से ऐसा किया है ।
7. जब एक से अधिक पैकेज हों तो स्थोरा के वाहक को यह अधिकार है कि वह परेषक से अलग-अलग मार्ग पत्र बनाने की अपेक्षा करे ।
8. विमान मार्ग पत्र में निम्नलिखित बातें होंगी : -
(क) प्रस्थान और गंतव्य स्थानों का उपदर्शन;
(ख) यदि प्रस्थान तथा गंतव्य स्थान किसी एक उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं और रुकने के एक या अधिक स्थान किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं, तो ऐसे रुकने के कम से कम एक स्थान का उपदर्शन;
(ग) परेषक को यह सूचना कि यदि वहन के अंतर्गत प्रस्थान के देश से भिन्न देश में अंतिम गंतव्य स्थान या रुकना आता है तो संशोधित कन्वेंशन लागू हो सकेगा और स्थोरा के खो जाने या उसके नुकसान की बाबत वाहकों की जिम्मेदारी संशोधित कन्वेंशन द्वारा शासित होती है और उससे अधिकांश मामलों में परिसीमित होती है ।
9. यदि वाहक की सहमति से, स्थोरा वायुयान के फलक पर विमान मार्ग पत्र तैयार किए बिना लाद लिया जाता है, या यदि विमान मार्ग पत्र में, नियम 8(ग) द्वारा अपेक्षित सूचना सम्मिलित नहीं है तो, वाहक नियम 22 के उपनियम (2) के उपबन्धों का लाभ उठाने का हकदार नहीं होगा ।
10. (1) परेषक स्थोरा से सम्बन्धित उन विशिष्टियों और कथनों की शुद्धता के लिए उत्तरदायी है जो वह विमान मार्ग पत्र में भरता है ।
(2) परेषक द्वारा दी गई विशिष्टियों और कथनों की अनियमितता या अशुद्धता या अपूर्णता के कारण वाहक या किसी अन्य व्यक्ति को, जिसके प्रति वाहक जिम्मेदार हो, हुए सब नुकसान के लिए परेषक वाहक की क्षतिपूर्ति करेगा ।
11. (1) विमान मार्ग पत्र संविदा के हो जाने, स्थोरा की प्राप्ति और वहन की शर्तों का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य है ।
(2) विमान मार्ग पत्र में स्थोरा के भार, परिमाप और पैकिंग से संबंधित कथन तथा पैकेजों की संख्या से संबंधित कथन उन तथ्यों के प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य हैं जिनका कथन किया गया है; वे कथन, जो स्थोरा की मात्रा, आयतन और दशा के सम्बन्ध में हैं, वाहक के विरुद्ध साक्ष्य नहीं हैं किन्तु वे इस बात के साक्ष्य हैं कि वाहक ने स्थोरा और पैकेजों की जांच-पड़ताल परेषक की उपस्थिति में कर ली है और विमान मार्ग पत्र में ऐसा कर लेने का कथन है या वे स्थोरा की प्रकट दशा के सम्बन्ध में हैं ।
12. (1) परेषक को वहन की संविदा के अधीन अपनी समस्त बाध्यताएं निभाने की अपनी जिम्मेदारी के अधीन रहते हुए यह अधिकार है कि वह प्रस्थान के या गंतव्य विमान क्षेत्र पर स्थोरा वापस लेकर या किसी उतरने के स्थान पर यात्रा के दौरान उसे रोक कर या विमान मार्ग पत्र में नामित व्यक्ति के अतिरिक्ति किसी अन्य व्यक्ति को गंतव्य स्थान पर या यात्रा के दौरान स्थोरा का परिदान करने की मांग करके या प्रस्थान के विमानक्षेत्र पर उसे वापस भिजवाने की अपेक्षा करके उस स्थोरा का व्ययन कर सकता है । वह व्ययन करने के इस अधिकार का प्रयोग इस प्रकार नहीं करेगा जिससे कि वाहक या अन्य परेषकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े और वह इस अधिकार के प्रयोग के कारण हुए किन्हीं खर्चों का प्रतिसंदाय अवश्य करेगा ।
(2) यदि परेषक के आदेशों का पालन करना असंभव है तो वाहक उसे तुरन्त सूचित करेगा ।
(3) यदि वाहक स्थोरा का व्ययन करने के लिए परेषक के आदेशों का पालन परेषक को दिए गए विमान मार्ग पत्र का भाग प्रस्तुत करने की अपेक्षा किए बिना करता है, तो वह परेषक से वसूल करने के अपने अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी भी ऐसे नुकसान के लिए जिम्मेदार होगा, जो उसके द्वारा किसी भी ऐसे व्यक्ति को हो जिसके विधिपूर्वक कब्जे में विमान मार्ग पत्र का भाग है ।
(4) परेषक को प्रदत्त अधिकार उस क्षण समाप्त हो जाता है जब नियम 13 के अनुसार परेषिती का अधिकार प्रारम्भ होता है, किन्तु यदि परेषिती मार्ग पत्र या स्थोरा का प्रतिग्रहण करने से इंकार करता है, या यदि उससे सम्पर्क नहीं किया जा सकता है तो, परेषक को व्ययन के अपने अधिकार पुनः प्राप्त हो जाते हैं ।
13. (1) पूर्ववर्ती नियम में उपवर्णित परिस्थितियों को छोड़कर परेषिती गंतव्य स्थान पर स्थोरा के आने पर शोध्य प्रभारों का संदाय करके और विमान मार्ग पत्र में उपवर्णित वहन की शर्तों का पालन करके, वाहक से उसे विमान मार्ग पत्र देने और माल का परिदान करने की अपेक्षा करने का हकदार है ।
(2) जब तक कि अन्यथा करार नहीं किया गया है, वाहक का यह कर्तव्य है कि वह जैसे ही स्थोरा आता है परेषिती को सूचना दे ।
(3) यदि वाहक स्थोरा का खो जाना स्वीकार करता है, या यदि स्थोरा उस तारीख के, जिसको उसे पहुंचाना चाहिए था, अवसान के सात दिन के पश्चात् नहीं पहुंचा है तो परेषिती वाहक के विरुद्ध उन अधिकारों को प्रवर्तित कराने का हकदार है जो वहन की संविदा से उद्भूत होते हैं ।
14. परेषक और परेषिती नियम 12 और 13 द्वारा उन्हें दिए गए सब अधिकारों को अपने-अपने नाम से प्रवर्तित करा सकते हैं, चाहे वे अपने हित में या किसी अन्य के हित में कार्य कर रहे हों, परन्तु यह तब जब कि वे संविदा द्वारा अधिरोपित बाध्यताओं को निभाते हैं ।
15. (1) नियम 12, 13 और 14 परेषक या परेषिती के एक दूसरे के संबंधों को या अन्य पक्षकारों के, जिनका अधिकार परेषक या परेषिती से व्युत्पन्न होता है, पारस्परिक संबंधों को प्रभावित नहीं करते हैं ।
(2) नियम 12, 13 और 14 के उपबंधों में परिवर्तन विमान मार्ग पत्र में अभिव्यक्त उपबन्ध द्वारा ही किया जा सकता है ।
(3) इन नियमों की कोई बात परक्राम्य विमान मार्ग पत्र के जारी किए जाने को निवारित नहीं करती है ।
16. (1) परेषक ऐसी जानकारी देगा और विमान मार्ग पत्र के साथ ऐसी दस्तावेजें संलग्न करेगा जो परेषिती को स्थोरा का परिदान कर सकने के पूर्व सीमाशुल्क, चुंगी या पुलिस की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं । परेषक, किसी ऐसी जानकारी या दस्तावेज के न होने या उसकी अपर्याप्तता या अनियमितता के कारण हुए किसी नुकसान के लिए वाहक के प्रति जिम्मेदार होगा, किन्तु तब नहीं जब वाहक या उसके सेवकों या अभिकर्ताओं की त्रुटि के कारण नुकसान हुआ हो ।
(2) वाहक ऐसी जानकारी या दस्तावेजों की शुद्धता या पर्याप्तता के बारे में पूछताछ करने के लिए बाध्य नहीं है ।
अध्याय 3
वाहक की जिम्मेदारी
17. यदि वह घटना, जिसके कारण ऐसा नुकसान हुआ है, वायुयान पर अथवा चढ़ने या उतरने की किसी क्रिया के दौरान हुई है तो वाहक किसी यात्री की मृत्यु या उसके आहत होने या यात्री को हुई किसी अन्य शारीरिक क्षति की दशा में हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार होगा ।
18. (1) यदि वह घटना, जिसके कारण ऐसा नुकसान हुआ है, विमानवहन के दौरान हुई है तो वाहक किसी रजिस्ट्रीकृत यात्री सामान या किसी स्थोरा के नाश या खो जाने या उसे हुए नुकसान की दशा में नुकसान के लिए जिम्मेदार है ।
(2) पूर्ववर्ती उपनियम के अर्थान्तर्गत विमानवहन में ऐसी अवधि भी सम्मिलित है जिसके दौरान यात्री सामान या स्थोरा, चाहे किसी विमानक्षेत्र में या वायुयान पर या विमानक्षेत्र के बाहर उतरने की दशा में किसी भी स्थान पर वाहक के भारसाधन में है ।
(3) विमानवहन की अवधि में विमानक्षेत्र के बाहर भूमि, समुद्र या नदी मार्ग द्वारा किए किए किसी वहन की अवधि सम्मिलित नहीं है, किन्तु यदि ऐसा वहन विमानवहन की संविदा के पालन में लदान, परिदान या यानान्तरण के प्रयोजन के लिए होता है तो, जब तक प्रतिकूल साबित न हो, यह उपधारण की जाती है कि विमानवहन के दौरान हुई घटना के परिणामस्वरूप नुकसान हुआ है ।
19. यात्रियों या यात्री-सामान या स्थोरा को विमानवहन में विलम्ब के कारण हुए नुकसान के लिए वाहक जिम्मेदार है ।
20. यदि वाहक यह साबित कर देता है कि उसने और उसके सेवकों या अभिकर्ताओं ने नुकसान से बचने के लिए सब आवश्यक उपाय किए हैं या उसके या उनके लिए ऐसे उपाय करना असंभव था तो वह जिम्मेदार नहीं है ।
21. यदि वाहक यह साबित कर देता है कि नुकसान क्षतिग्रस्त व्यक्ति की उपेक्षा के कारण या योगदान से हुआ है तो न्यायालय अपनी विधि के उपबन्धों के अनुसार वाहक को उसकी जिम्मेदारी से पूर्णतः या भागतः विमुक्त कर सकेगा ।
22. (1) व्यक्तियों के वहन में प्रत्येक यात्री के लिए वाहक की जिम्मेदारी 2,25,000 फ्रैंक की राशि तक परिसीमित है । जहां उस न्यायालय की, जिसमें मामला विचाराधीन है, विधि के अनुसार नुकसानी कालिक संदाय के रूप में अधिनिर्णीत की जा सकती है, वहां उक्त संदायों का समतुल्य पूंजी-मूल्य 2,25,000 फ्रैंक से अधिक नहीं होगा, किन्तु वाहक और यात्री विशेष संविदा द्वारा जिम्मेदारी की उच्चतर परिसीमा का करार कर सकते हैं ।
(2) (क) रजिस्ट्रीकृत यात्री सामान और स्थोरा के वहन में वाहक की जिम्मेदारी 250 फ्रैंक प्रति किलोग्राम की राशि तक परिसीमित है, किन्तु तब नहीं जब यात्री या परेषक ने वाहक को पैकेज सौंपने के समय गन्तव्य स्थान पर परिदान में हित की विशेष घोषणा की हो और मामले में अपेक्षित होने पर अनुपूरक राशि का संदाय किया हो । उस दशा में वाहक घोषित राशि से अनधिक राशि का संदाय करने के लिए जिम्मेदार होगा, किन्तु तब नहीं जब वह यह साबित कर देता है कि वह राशि गन्तव्य स्थान पर परिदान में यात्री या परेषक के वास्तविक हित से अधिक है ।
(ख) रजिस्ट्रीकृत यात्री सामान या स्थोरा के किसी भाग के या उसमें की किसी वस्तु के खो जाने, या उसे नुकसान या उसमें विलम्ब होने की दशा में; उस रकम का अवधारण करने में, जिस तक वाहक की जिम्मेदारी परिसीमित है, गणना में लिया जाने वाला भार केवल सम्बद्ध पैकेज या पैकेजों का कुल भार होगा । ऐसा होने पर भी, जब रजिस्ट्रीकृत यात्री सामान या स्थोरा के किसी भाग के या उसमें की किसी वस्तु के खो जाने से या उसे नुकसान या उसमें विलम्ब होने से, उसी यात्री सामान पत्र या उसी विमान मार्ग पत्र के अन्तर्गत आने वाले पैकेजों के मूल्य पर प्रभाव पड़ता है, तब जिम्मेदारी की परिसीमा का अवधारण करने में ऐसे पैकेज या पैकेजों का कुल भार भी गणना में लिया जाएगा ।
(3) यात्री अपने पास जिन पदार्थों को रखता है उनके बारे में वाहक की जिम्मेदारी 5,000 फ्रैंक प्रति यात्री तक परिसीमित है ।
(4) इस नियम में विहित परिसीमाएं न्यायालय को, इसके अतिरिक्त, उसकी अपनी विधि के अनुसार पूर्णतः या भागतः न्यायालय के खर्चे और वादी द्वारा उपगत मुकदमे के अन्य खर्चों अधिनिर्णीत करने से निवारित नहीं करेगी । पूर्वगामी उपबन्ध उस दशा में लागू नहीं होगा जब न्यायालय के खर्चों और अन्य खर्चें को अपवर्जित करके, अधिनिर्णीत नुकसानी की रकम उस राशि से अधिक न हो जिसकी वाहक ने, नुकसान करने वाली घटना की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर या कार्रवाई के प्रारम्भ के पूर्व, यदि वह पश्चात्वर्ती हो, वादी को देने के लिए लिखित रूप में प्रस्थापना की हो ।
(5) इस नियम में फ्रैंकों में वर्णित राशियां ऐसी करेंसी-इकाई के प्रति निर्देश करने वाली समझी जाएंगी जो कि साढे़ पैंसठ मिलीग्राम ऐसे सोने से बना होगा जिसके एक हजार भाग में से नौ सौ भाग शुद्ध हैं । ये राशियां राष्ट्रीय करेंसियों में पूर्णांकों में संपरिवर्तित की जा सकेंगी । स्वर्ण से भिन्न राष्ट्रीय करेंसियों में राशियों का संपरिवर्तन, न्यायिक कार्यवाहियों की दशा में, निर्णय की तारीख को ऐसी करेंसियों के स्वर्ण मूल्य के अनुसार किया जाएगा ।
23. (1) वाहक को जिम्मेदारी से मुक्त करने वाला या इन नियमों में अधिकथित परिसीमा से निम्न परिसीमा नियत करने वाला कोई उपबन्ध अकृत और शून्य होगा, किन्तु ऐसे किसी उपबन्ध की अकृतता से संपूर्ण संविदा अकृत नहीं होगी और वह इन नियमों के उपबन्धों के अधीन बनी रहेगी ।
(2) इस नियम का उपनियम (1) ले जाए गए स्थोरे की अन्तर्निहित त्रुटि, क्वालिटी या दोष के परिणामस्वरूप होने वाली हानि या नुकसन को शासित करने वाले उपबन्धों को लागू नहीं होगा ।
24. (1) नियम 18 और 19 के अन्तर्गत आने वाले मामलों में नुकसानी के लिए कोई कार्रवाई, चाहे वह किसी भी आधार पर हो, इन नियमों में उपवर्णित शर्तों और परिसीमाओं के अधीन ही की जा सकती है ।
(2) नियम 17 के अन्तर्गत आने वाले मामलों में पूर्ववर्ती उपनियम के उपबन्ध भी, इन प्रश्नों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना लागू होते हैं कि वे व्यक्ति कौन हैं, जिन्हें वाद लाने का अधिकार है और उनके अपने-अपने अधिकार क्या हैं ।
25. नियम 22 में विनिर्दिष्ट जिम्मेदारी की परिसीमाएं उस दशा में लागू नहीं होंगी जिसमें यह साबित हो जाता है कि नुकसान वाहक, उसके सेवकों या अभिकर्ताओं के किसी ऐसे कार्य या लोप के परिणामस्वरूप हुआ था जो नुकसान करने के आशय से या असावधानी से और यह जानते हुए किया गया है कि नुकसान होना अधिसम्भाव्य है; परन्तु यह तब जब कि किसी सेवक या अभिकर्ता के ऐसे कार्य या लोप की दशा में यह भी साबित हो जाए कि वह अपने नियोजन की परिधि के अन्दर कार्य कर रहा था ।
26. (1) यदि किसी ऐसे नुकसान से, जिससे ये नियम सम्बन्धित हैं, उत्पन्न होने वाली कोई कार्रवाई वाहक के किसी सेवक या अभिकर्ता के विरुद्ध की जाती है तो वह सेवक या अभिकर्ता, उस दशा में, जिसमें वह यह साबित कर देता है कि उसने अपने नियोजन की परिधि के अन्दर कार्य किया है, जिम्मेदारी की उन परिसीमाओं का लाभ उठाने का हकदार होगा जिनका नियम 22 के अधीन आश्रय लेने का स्वयं वाहक हकदार है ।
(2) उस दशा में वाहक, उसके सेवकों और अभिकर्ताओं से वसूल की जा सकने वाली रकम का योग उक्त परिसीमाओं से अधिक नहीं होगा ।
(3) इस नियम के उपनियम (1) और (2) के उपबन्ध उस दशा में लागू नहीं होंगे जिसमें यह साबित हो जाता है कि नुकसान सेवक या अभिकर्ता के ऐसे कार्य या लोप के परिणामस्वरूप हुआ था जो नुकसान करने के आशय से या असावधानी से और यह जानते हुए किया गया है कि नुकसान होना अधिसम्भाव्य है ।
27. (1) यात्री-सामान या स्थोरा के परिदान के लिए हकदार व्यक्ति द्वारा बिना शिकायत वाली प्राप्ति, इस बात की प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य है कि यात्री-सामान या स्थोरा का परिदान अच्छी दशा में और वहन के दस्तावेज के अनुसार किया गया है ।
(2) नुकसान की दशा में, परिदान के लिए हकदार व्यक्ति नुकसान का पता चलने के पश्चात् तुरन्त और यात्री-सामान की दशा में उसकी प्राप्ति की तारीख से अधिक से अधिक सात दिन के भीतर और स्थोरा की दशा में उसकी प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन के भीतर वाहक से शिकायत करेगा । विलम्ब की दशा में शिकायत, यात्री-सामान या स्थोरा उसके व्ययनाधीन रखे जाने की तारीख से अधिक से अधिक इक्कीस दिन के भीतर की जाएगी ।
(3) प्रत्येक शिकायत वहन के दस्तावेज पर लिखित रूप में या उपर्युक्त समय के भीतर भेजी गई पृथक् लिखित सूचना द्वारा की जाएगी ।
(4) उपर्युक्त समय के भीतर शिकायत के न होने पर वाहक के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई तभी की जाएगी जब उसकी ओर से कपट किया गया हो, अन्यथा नहीं ।
28. नुकसानी के लिए इन नियमों के अनुसार कार्रवाई, जिम्मेदार व्यक्ति की मुत्यु की दशा में, उसकी सम्पदा का वैध रूप से प्रतिनिधित्व करने वालों के विरुद्ध की जा सकती है ।
29. (1) नुकसानी के लिए कार्रवाई, वादी के विकल्प पर, किसी एक उच्च संविदाकारी पक्षकार के राज्यक्षेत्र में उस स्थान पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय के समक्ष, जहां वाहक सामान्यतया निवास करता है या उसके कारबार का मुख्य स्थान है या उसका वह स्थापन है जहां संविदा की गई है या गंतव्य स्थान पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय के समक्ष, की जाएगी ।
(2) प्रक्रिया सम्बन्धी प्रश्न उस न्यायालय की विधि द्वारा शासित होंगे जिसमें मामला विचाराधीन हो ।
30. (1) गंतव्य स्थान पर पहुंचने की तारीख से या उस तारीख से जिसको वायुयान आ जाना चाहिए था या उस तारीख से जिसको वहन रुक गया था, गणना करके दो वर्षों के भीतर यदि कार्रवाई नहीं की जाती है तो नुकसानी का अधिकार समाप्त हो जाएगा ।
(2) परिसीमा काल की संगणना करने का ढंग उस न्यायालय की विधि द्वारा अवधारित होगा जिसमें मामला विचाराधीन है ।
31. (1) विभिन्न आनुक्रमिक वाहकों द्वारा किए जाने वाले और नियम 1 के उपनियम (3) में उपवर्णित परिभाषा के अन्तर्गत आने वाले वहन की दशा में, प्रत्येक वाहक, जो यात्रियों को स्वीकार करता है अथवा यात्री-सामान या स्थोरा का प्रतिग्रहण करता है, इस अनुसूची में उपवर्णित नियमों के अधीन है और जहां तक संविदा का संबंध वहन के उस भाग से है जो उसके पर्यवेक्षण के अधीन किया जाता है वहां तक उसे वहन की संविदा के संविदाकारी पक्षकारों में से एक समझा जाता है ।
(2) इस प्रकार के वहन की दशा में, यात्री या उसका अभिकर्ता केवल उसी वाहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है जिसने वह वहन किया है जिसके दौरान घटना या विलम्ब हुआ है किन्तु उस दशा में नहीं जिसमें प्रथम वाहक ने अभिव्यक्त करार द्वारा संपूर्ण यात्रा की जिम्मेदारी ग्रहण की है ।
(3) यात्री-सामान या स्थोरा के विषय में, यात्री या परेषक को प्रथम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और यात्री या परेषिती को, जो परिदान के लिए हकदार है, अन्तिम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और इसके अतिरिक्त प्रत्येक यात्री या परेषिती उस वाहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है जिसने वह वहन किया है जिसे दौरान नाश, खोना, नुकसान या विलम्ब हुआ है । ये वाहक यात्री या परेषक या परेषिती के प्रति संयुक्ततः और पृथक्तः जिम्मेदार होंगे ।
अध्याय 4
संयुक्त वहन से सम्बन्धित उपबन्ध
32. (1) भागतः विमान द्वारा और भागतः किसी अन्य प्रकार से किए गए किसी संयुक्त वहन की दशा में, उस अनुसूची के उपबंध केवल विमानवहन को लागू होते हैं परन्तु यह तब जब कि विमानवहन नियम 1 के निबंधनों के अन्तर्गत आता हो ।
(2) केवल अनुसूची की कोई भी बात, संयुक्त वहन की दशा में पक्षकारों को अन्य प्रकार के वहन से संबंधित शर्तें विमानवहन के दस्तावेज में अन्तःस्थापित करने से निवारित नहीं करेगी परन्तु यह तब जब कि विमानवहन के संबंध में इस अनुसूची के उपबंधों का अनुपालन किया जा रहा हो ।
अध्याय 5
साधारण और अन्तिम उपबंध
33. संविदा का कोई, खण्ड और नुकसान होने के पहले किए गए सभी विशेष करार, जिसके या जिनके द्वारा पक्षकारों का तात्पर्य इस अनुसूची द्वारा अधिकथित नियमों का अतिलंघन करना है, चाहे वह अतिलंघन लागू होने वाली विधि का विनिश्चय करने से या अधिकारिता के बारे में नियमों में परिवर्तन करने से हो, अकृत और शून्य होंगे । तथापि, स्थोरा के वहन के लिए, माध्यस्थम् खण्ड इन नियमों के अधीन रहते हुए इस दशा में अनुज्ञात किए जाते हैं जब नियम 29 के उपनियम (1) में विनिर्दिष्ट किसी अधिकारिता के भीतर माध्यस्थम् होने वाला है ।
34. इस अनुसूची की कोई भी बात, वाहक को वहन की ऐसी कोई संविदा करने से इंकार करने से या ऐसे विनियम बनाने से निवारित नहीं करती है जो इस अनुसूची के उपबंधों के प्रतिकूल न हों ।
35. वहन की दस्तावेज से संबंधित नियम 3 से नियम 9 तक के नियमों के उपबंध विमानवाहक के कारबार की सामान्य परिधि के बाहर असाधारण परिस्थितियों में किए गए वहन की दशा में लागू नहीं होंगी ।
36. जहां इन नियमों में दिन" शब्द का प्रयोग किया गया है वहां उससे साधारण दिन अभिप्रेत है, न कि कार्य दिवस ।
[तृतीय अनुसूची
( नियम 4क देखिए)
नियम
अध्याय 1
लागू होने का विस्तार
1. (1) ये नियम, वायुयान द्वारा पारिश्रमिक के लिए किए गए व्यक्तियों, यात्री सामान या स्थोरा के सभी अन्तरराष्ट्रीय वहन को लागू होंगे । ये, ऐसे वहन को भी, लागू होंगे जब उसे किसी वायुयान परिवहन उपक्रम द्वारा निःशुल्क किया जाता है ।
(2) इन नियमों में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) यात्री सामान" से जांच किया गया यात्री सामान और जांच न किया गया यात्री सामान, दोनों अभिप्रेत हैं;
(ख) दिन" से कलेण्डर दिन अभिप्रेत है न कि कार्य दिन;
(ग) निक्षेपागार" से अंतरराष्ट्रीय नागर विमान संगठन अभिप्रेत है;
(घ) राज्य पक्षकार" से, मोंट्रियल कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता या अंगीकार करने वाला राज्य अभिप्रेत है, जिसकी अनुसमर्थन या अंगीकार करने की लिखित निक्षेपागार के पास निक्षिप्त की गई है ।
(3) इन नियमों के प्रयोजनों के लिए, अंतरराष्ट्रीय वहन" पद से ऐसा कोई वहन अभिप्रेत है जिसमें पक्षकारों के बीच की गई संविदा के अनुसार प्रस्थान का स्थान और गंतव्य स्थान चाहे वहन में यात्रा विराम या कोई यानान्तरण हो या न हो, दो राज्य पक्षकारों के राज्यक्षेत्रों के भीतर या किसी एक ही राज्य पक्षकार के भीतर स्थित है, यदि अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर रुकने का कोई ऐसा स्थान है, जिसके बारे में करार किया गया है, भले ही वह राज्य कोई राज्य पक्षकार न हो । किसी एक ही राज्य पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर दो स्थलों के बीच, अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर रुकने के स्थान पर करार किए बिना वहन को, इन नियमों के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय वहन नहीं समझा जाएगा ।
(4) अनेक उत्तरवर्ती विमानवाहकों द्वारा किया जाने वाला वहन इन नियमों के प्रयोजनों के लिए एक अविभक्त वहन तब समझा जाएगा जब उसे पक्षकारों द्वारा एक संक्रिया के रूप में माना गया हो, चाहे उसके बारे में एक संविदा या संविदाओं की आवलि के रूप में करार किया गया हो और वह अपना अंतरराष्ट्रीय स्वरूप केवल इस कारण से नहीं खो देगा कि एक संविदा या संविदाओं की आवलि का पूर्णतः पालन उसी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर किया जाना है ।
(5) ये नियम, इसमें अंतर्विष्ट निबंधनों के अधीन रहते हुए, अध्याय 5 में यथाउपवर्णित वहन को भी लागू होंगे ।
2. (1) ये नियम, राज्य द्वारा या विधिक रूप से गठित लोक निकायों द्वारा किए गए वहन को लागू होंगे परन्तु यह तब जब यह नियम 1 में अधिकथित शर्तों के अंतर्गत आता हो ।
(2) डाकीय मदों के वहन में, वाहक, केवल वाहकों और डाकीय प्रशासन के बीच संबंधों को लागू नियमों के अनुसार सुसंगत डाकीय प्रशासन के लिए दायी होगा ।
(3) उपनियम (2) में यथाउपबंधित के सिवाय, ये नियम डाकीय मदों के वहन को लागू नहीं होंगे ।
अध्याय 2
यात्रियों, यात्री सामान और स्थोरा के वहन से संबंधित पक्षकारों के
दस्तावेज और कर्तव्य
3. (1) यात्रियों के वहन के संबंध में, कोई व्यष्टि या सामूहिक वहन दस्तावेज परिदत्त किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित अंतर्विष्ट होंगे-
(क) प्रस्थान और गंतव्य स्थानों का उपदर्शनः
(ख) यदि प्रस्थान और गंतव्य स्थान एक ही राज्य पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं और तय किए गए रुकने के एक या अधिक स्थान किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं तो ऐसे रुकने के स्थानों में से कम से कम एक का उपदर्शन ।
(2) कोई अन्य साधन, जो उपनियम (1) में उपदर्शित सूचना को संरक्षित रखते हैं, उस उपनियम में निर्दिष्ट दस्तावेज के परिदान के स्थान पर रखे जा सकेंगे । यदि किसी ऐसे अन्य साधन का उपयोग किया जाता है तो वाहक इस प्रकार सरंक्षित सूचना का एक लिखित कथन यात्रियों को परिदत्त करने की प्रस्थापना करेगा ।
(3) वाहक, जांच किए गए यात्री सामान के प्रत्येक नग के लिए यात्री को यात्री सामान पहचान टैग परिदत्त करेगा ।
(4) यात्रियों को इस प्रभाव की लिखित सूचना दी जाएगी कि जहां ये नियम लागू होते हैं, वहां ये मृत्यु या क्षति के संबंध में तथा यात्री सामान के नष्ट होने या खो जाने या नुकसानी के लिए या विलंब के लिए वाहकों के दायित्व को शासित करते हैं और सीमित कर सकते हैं ।
(5) उपनियम (1), उपनियम (2) और उपनियम (3) के उपबंधों का अननुपालन, वहन की संविदा की विद्यमानता या विधिमान्यता को प्रभावित नहीं करेगा जो फिर भी इन नियमों के अध्यधीन होगा जिसके अंतर्गत वे नियम भी हैं जो दायित्व की सीमा से संबंधित हैं ।
4. (1) स्थोरा वहन के संबंध में, वायुमार्ग पत्र परिदत्त किया जाएगा ।
(2) कोई अन्य साधन, जो किए जाने वाले वहन का अभिलेख संरक्षित रखते हैं, किसी वायुमार्ग पत्र के परिदान के स्थान पर रखे जा सकेंगे । यदि ऐसे कोई साधन उपयोग किए जाते हैं, तो वाहक यदि परेषिती द्वारा इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, परेषण की पहचान और ऐसे अन्य साधनों द्वारा संरक्षित अभिलेख में अंतर्विष्ट सूचना तक पहुंच को अनुज्ञात करते हुए, परेषिती को स्थोरा रसीद परिदत्त की जाएगी ।
5. वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे-
(क) प्रस्थान और गंतव्य स्थानों का उपदर्शन;
(ख) यदि प्रस्थान और गंतव्य स्थान एक ही राज्य पक्षकार के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं और तय किए गए रुकने के एक या अधिक स्थान किसी अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर हैं तो ऐसे ठहरने के स्थानों में से कम से कम एक का उपदर्शन;
(ग) परेषण के भार का उपदर्शन ।
6. परेषिती से, यदि सीमाशुल्क, पुलिस और वैसे ही लोक प्राधिकारियों की औपचारिकताओं का पूरा करना आवश्यक है, तो स्थोरा की प्रकृति का उपदर्शन करते हुए एक दस्तावेज परिदत्त करने की अपेक्षा की जा सकेगी । यह उपबंध वाहक के लिए किसी शुल्क, बाध्यता या उसके परिणामस्वरूप दायित्व का सृजन नहीं करेगा ।
7. (1) वायुमार्ग पत्र परेषिती द्वारा तीन मूल भागों में तैयार किया जाएगा । पहले भाग को वाहक के लिए" चिह्नित किया जाएगा और इसे परेषिती द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा । दूसरे भाग को परेषिती के लिए" चिह्नित किया जाएगा और इसे परेषक और वाहक द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा । तीसरे भाग को वाहक द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा जो उसे परेषिती को, स्थोरा के स्वीकार करने के पश्चात् सौंपा जाएगा ।
(2) वाहक और परेषिती के हस्ताक्षर को मुद्रित या स्टाम्पित किया जा सकेगा ।
(3) यदि परेषक के अनुरोध पर, वाहक, वायुमार्ग पत्र तैयार करता है तो वाहक द्वारा प्रतिकूल के सबूत के अधीन रहते हुए परेषिती की ओर से इस प्रकार किया गया समझा जाएगा ।
8. जब एक से अधिक पैकेज हों तब,-
(क) वाहक को परेषक से पृथक् वायुमार्ग पत्र तैयार करने की अपेक्षा करने का अधिकार है;
(ख) जब नियम 4 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट अन्य साधनों का उपयोग किया जाता है तब परेषक को वाहक से पृथक् स्थोरा रसीदें देने की अपेक्षा करने का अधिकार है ।
9. नियम 4, नियम 5, नियम 6, नियम 7 और नियम 8 के उपबंधों का अननुपालन, वहन की संविदा की विद्यमानता या विधिमान्यता को प्रभावित नहीं करेगा जो फिर भी इन नियमों के अध्यधीन होगा, जिसके अंतर्गत वे नियम भी हैं, जो दायित्व की सीमा से संबंधित हैं ।
10. (1) परेषक, वायुमार्ग में उसके द्वारा या उसकी ओर से अंतःस्थापित की गई या स्थोरा रसीद में अंतःस्थापन के लिए अथवा नियम 4 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट अन्य साधनों द्वारा संरक्षित अभिलेख में अंतःस्थापन के लिए वाहक द्वारा या उसकी ओर से दी गई स्थोरा से संबंधित विशिष्टियों और विवरणों की शुद्धता के लिए उत्तरदायी है । पूर्वगामी उपबंध वहां भी लागू होंगे, जहां परेषिती की ओर से कार्य करने वाला व्यक्ति वाहक का अभिकर्ता भी है ।
(2) परेषक, वाहक द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसके प्रति वाहक उत्तरदायी है, परेषक द्वारा या उसकी ओर से दी गई विशिष्टियों और विवरणों की अनियमितता, अशुद्धता या अपूर्णता के कारण उठाई गई सभी नुकसानियों के संबंध में उसकी क्षतिपूर्ति करेगा ।
(3) उपनियम (1) और उपनियम (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, वाहक परेषिती द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसके प्रति परेषिती उत्तरदायी है, स्थोरा रसीद में या नियम 4 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट अन्य साधनों द्वारा संरक्षित अभिलेख में, वाहक द्वारा या उसकी ओर से अंतःस्थापित विशिष्टियों और विवरणों की अनियमितता, अशुद्धता या अपूर्णता के कारण उठाई गई सभी नुकसानियों के संबंध में उसकी क्षतिपूर्ति करेगा ।
11. (1) वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद, संविदा के समापन, स्थोरा के प्रतिग्रहण और उसमें उल्लिखित वहन की शर्तों का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य होगी ।
(2) वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद में स्थोरा के भार, विमाओं और पैकिंग के संबंध में कोई विवरण और पैकेजों की संख्या से संबंधित विवरण उसमें कथित तथ्यों के प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य हैं, स्थोरा की मात्रा, आयतन और दशा से संबंधित विवरण, जहां तक उनके बारे में वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद में यह कथन किया गया है कि वे उसके द्वारा परेषक की उपस्थिति में जांचे गए हैं या स्थोरा की स्पष्ट दशा से संबंधित हैं, उसके सिवाय, वे दोनों ही वाहक के विरुद्ध साक्ष्य का गठन नहीं करते हैं ।
12. (1) वहन की संविदा के अधीन अपनी सभी बाध्यताओं को कार्यान्वित करने के अपने दायित्व के अधीन रहते हुए, परेषक को, प्रस्थान या गंतव्य के विमानपत्तन पर स्थोरा को वापस लेकर या उसके उतरने पर यात्रा के अनुक्रम में उसे रोककर या गंतव्य स्थान पर या यात्रा के दौरान मूल रूप से अभिहित परेषिती से भिन्न किसी व्यक्ति को परिदान करने की मांग करके या प्रस्थान के विमानपत्तन पर लौटाए जाने की अपेक्षा करके स्थोरा के व्ययन का अधिकार है । परेषक व्ययन के इस अधिकार का इस प्रकार प्रयोग नहीं करेगा जो वाहक या अन्य परेषकों के प्रतिकूल हो और इस अधिकार के प्रयोग से हुए किसी व्यय की प्रतिपूर्ति करेगा ।
(2) यदि परेषक के अनुदेशों को कार्यान्वित करना असंभव है तो वाहक तुरंत परेषक को इस बारे में सूचित करेगा ।
(3) यदि वाहक, परेषिती को परिदत्त वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद के किसी भाग को प्रस्तुत करने की अपेक्षा किए बिना स्थोरा के व्ययन के लिए पश्चात्वर्ती के अनुदेशों को कार्यान्वित करता है, तो वाहक किसी ऐसी नुकसानी के लिए, जो उसके द्वारा किसी व्यक्ति को होती है, जिसके विधिपूर्ण कब्जे में वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद का वह भाग है, परेषिती से वसूली करने के अपने अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना दायी होगा ।
(4) परेषक को प्रदत्त अधिकार उसी समय समाप्त होता है, जब परेषिती के अधिकार नियम 13 के अनुसार आरंभ हो जाते हैं । फिर भी यदि परेषिती स्थोरा को स्वीकार करने से इंकार करता है या संसूचित नहीं किया जा सकता है तो परेषक व्ययन के अपने अधिकार को प्राप्त कर लेगा ।
13. (1) उसके सिवाय जब परेषक ने नियम 12 के अधीन अपने अधिकार का प्रयोग कर लिया है, परेषिती गंतव्य स्थान पर स्थोरा के पहुंचने पर वाहक से देय प्रभारों के संदाय पर और वहन की शर्तों का अनुपालन करने पर, उसे स्थोरा का परिदान करने के लिए अपेक्षा करने का हकदार होगा ।
(2) जब तक अन्यथा करार नहीं किया जाता है, वाहक का यह कर्तव्य होगा कि वह स्थोरा के पहुंचने पर यथाशीघ्र परेषिती को सूचना देगा ।
(3) यदि वाहक, स्थोरा की हानि को स्वीकार करता है या यदि स्थोरा उस तारीख के पश्चात्, जिसको उसे पहुंच जाना चाहिए था, सात दिनों के अवसान पर नहीं पहुंचा है तो परेषिती, वाहक के विरुद्ध उन अधिकारों को, प्रवृत्त करने का हकदार होगा जो वहन की संविदा से निकलते हैं ।
14. परेषक और परेषिती क्रमशः नियम 12 और नियम 13 द्वारा उन्हें दिए गए सभी अधिकारों को, प्रत्येक अपने नाम से प्रवृत्त कर सकेंगे चाहे वह अपने हित में या किसी अन्य के हित में कार्य कर रहे हों, परन्तु यह तब जब कि वह वहन की संविदा द्वारा अधिरोपित बाध्यताओं को कार्यान्वित करता है ।
15. (1) नियम 12, नियम 13 और नियम 14 के उपबंध परेषक और परेषिती दोनों, के एक-दूसरे के साथ संबंधों को, या पर पक्षकार के पारस्परिक संबंधों को, जिनके अधिकार परेषक से या परेषिती से व्युत्पन्न होते हैं, प्रभावित नहीं करेंगे ।
(2) नियम 12, नियम 13 और नियम 14 के उपबंधों में, केवल वायुमार्ग पत्र या स्थोरा रसीद में अभिव्यक्त उपबंधों द्वारा फेरफार किया जाएगा ।
16. (1) परेषक, ऐसी सूचना और ऐसे दस्तावेज पेश करेगा जो परेषिती को स्थोरा को परिदत्त करने से पूर्व सीमाशुल्क, पुलिस और अन्य लोक प्राधिकारियों की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हों । परेषक, जब तक नुकसानी वाहक, उसके सेवकों या अभिकर्ताओं की गलती के कारण न हों, किसी ऐसी सूचना या दस्तावेजों की अनुपस्थिति, अपर्याप्तता या अनियमितता के कारण हुई किसी नुकसानी के लिए वाहक के प्रति दायी होगा ।
(2) वाहक, ऐसी सूचना या दस्तावेजों की शुद्धता या पर्याप्तता के बारे में जांच करने की किसी बाध्यता के अधीन नहीं होगा
अध्याय 3
वाहक का दायित्व और नुकसानी के लिए प्रतिकर की सीमा
17. (1) वाहक, किसी यात्री की मृत्यु या शारीरिक क्षति की दशा में हुई नुकसानी के लिए केवल इस शर्त पर दायी होगा कि वह दुर्घटना जिससे मृत्यु या क्षति कारित हुई है, वायुयान के फलक पर या तटबंध अथवा गैर-तटबंध के किसी प्रचालन के दौरान हुई हो ।
(2) वाहक जांच किए गए सामान के नाश होने या हानि या नुकसानी की दशा में हुए नुकसान के लिए केवल इस शर्त पर दायी होगा कि वह घटना जिससे नाश, हानि या नुकसानी कारित हुई है, वह वायुयान के फलक पर या ऐसी किसी अवधि के दौरान घटित हुई है जिसके भीतर जांच किया गया सामान वाहक के भारसाधन में था । तथापि, वाहक तब और उस सीमा तक दायी नहीं होगा यदि नुकसानी सामान में अन्तर्निहित त्रुटि, क्वालिटी या कमी के परिणामस्वरूप हुई है । जांच न किए गए सामान की दशा में जिसके अन्तर्गत वैयक्तिक मदें भी हैं, वाहक तभी दायी है यदि नुकसानी उसकी या उसके सेवक या अभिकर्ता के दोष के परिणामस्वरूप हुई हो ।
(3) यदि वाहक जांच किए गए सामान की हानि को स्वीकार करता है या यदि जांच किया गया सामान उस तारीख से इक्कीस दिन की समाप्ति पर नहीं पहुंचा है जिसको उसे पहुंचना चाहिए था तो यात्री वाहक के विरुद्ध उन अधिकारों को प्रवृत्त करने का हकदार होगा जो वहन की संविदा से निकलते हैं ।
18. (1) वाहक स्थोरा पर हुए नाश या हानि या नुकसानी की दशा में हुई नुकसानी के लिए केवल इस शर्त पर दायी होगा कि वह घटना जिससे इस प्रकार नुकसानी कारित हुई है, वायु अभिवहन के दौरान हुई थी ।
(2) तथापि, वाहक तब और उस सीमा तक दायी नहीं होगा, जब वह यह साबित कर देता है कि स्थोरा पर नाश या हानि या नुकसानी निम्नलिखित में से एक या अधिक के परिणामस्वरूप हुई थीः-
(क) उस स्थोरा में अन्तर्निहित त्रुटि, क्वालिटी या कमी;
(ख) वाहक या उसके सेवकों या अभिकर्ताओं से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा की गई उस स्थोरा की त्रुटिपूर्ण पैकिंग;
(ग) युद्ध या सशस्त्र संघर्ष का कोई कार्य;
(घ) स्थोरा के प्रवेश, निर्गम या अभिवहन के संबंध में किया गया लोक प्राधिकारी का कोई कार्य ।
(3) उपनियम (1) के अर्थान्तर्गत विमानवहन उस अवधि को समाविष्ट करता है, जिसके दौरान स्थोरा वाहक के भारसाधन में है ।
(4) विमानवहन की अवधि किसी वायुपत्तन से बाहर भूमि द्वारा, समुद्र द्वारा या अंतर्देशीय जलमार्ग द्वारा निष्पादित किए गए किसी वहन की अवधि से अधिक नहीं होगी । तथापि, यदि ऐसा वहन लदाई, परिदान या जलावतरण के प्रयोजन के लिए वायुयान द्वारा वहन के लिए किसी संविदा के निष्पादन में किया जाता है, तो किसी नुकसानी के बारे में, प्रतिकूल सबूत के अधीन रहते हुए यह अवधारणा की जाती है कि वह ऐसी किसी घटना का परिणाम है, जो विमानवहन के दौरान हुई थी । यदि वाहक, परेषिती की सहमति के बिना वायु द्वारा ऐसे वहन किए जाने के लिए पक्षकारों के बीच हुए करार द्वारा आशयित संपूर्ण वहन या उसके भाग के स्थान पर परिवहन के किसी अन्य साधन द्वारा वहन किए जाने के लिए प्रतिस्थापित करता है तो परिवहन के किसी अन्य साधन द्वारा ऐसा वहन विमानवहन की अवधि के भीतर समझा जाता है ।
19. वाहक यात्रियों, सामान या स्थोरा के विमानवहन में विलंब के कारण हुई नुकसानी के लिए दायी होगा । फिर भी, वाहक विलंब के कारण हुई नुकसानी के लिए दायी नहीं होगा यदि वह यह साबित कर देता है कि उसने और उसके सेवकों तथा अभिकर्ताओं ने वे सभी उपाय किए थे जो नुकसानी से बचने के लिए युक्तियुक्त रूप से अपेक्षित हो सकते थे या यह कि उसके लिए या उनके लिए ऐसे उपाय करना असंभव था ।
20. यदि वाहक यह साबित कर देता है कि नुकसानी प्रतिकर का दावा करने वाले व्यक्ति या उस व्यक्ति की, जिससे वह अपने अधिकारों को प्राप्त करता या करती है, उपेक्षा या अन्य दोषपूर्ण कृत्य या लोप के कारण हुई थी या उसमें वह सहयोगी थे तो वाहक को दावेदार के प्रति उसके दायित्व से उस सीमा तक पूर्णतः या भागतः माफी दी जाएगी जिस तक ऐसी उपेक्षा या दोषपूर्ण कार्य का लोप के करण ऐसी नुकसानी हुई थी या उसमें सहायक थी । जब यात्री की मृत्यु या क्षति के कारण प्रतिकर का यात्री से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दावा किया जाता है तब वाहक उसी प्रकार पूर्णतः या भागतः अपने दायित्व से उस सीमा तक निर्मुक्त हो जाएगा जिस तक वह यह साबित कर देता है कि नुकसानी उस यात्री की उपेक्षा या अन्य दोषपूर्ण कृत्य या लोप के कारण हुई थी या उसमें सहायक थी । यह नियम इन नियमों के दायित्व संबंधी सभी उपबन्धों को जिसके अन्तर्गत नियम 21 के उपनियम (1) के उपबंध भी हैं, लागू होता है ।
21. (1) नियम 17 के उपनियम (1) के अधीन उद्भूत प्रत्येक यात्री के लिए एक लाख से अनधिक विशेष आहरण अधिकार की नुकसानियों के लिए, वाहक अपने दायित्व को अपवर्जित करने या उसे सीमित करने में समर्थ नहीं होगा ।
(2) वाहक, नियम 17 के उपनियम (1) के अधीन उद्भूत नुकसानियों के लिए उस सीमा तक दायी नहीं होगा कि वे प्रत्येक यात्री के लिए एक लाख विशेष आहरण अधिकारों से अधिक हैं, यदि वाहक यह साबित कर देता है कि-
(क) ऐसी नुकसानी वाहक या उसके सेवकों या अभिकर्ताओं की उपेक्षा या अन्य दोषपूर्ण कार्य या लोप के कारण नहीं हुई थी;
(ख) ऐसी नुकसानी तृतीय पक्षकार की उपेक्षा या अन्य दोषपूर्ण कृत्य या लोप के कारण हुई थी ।
22. (1) व्यक्तियों के वहन में नियम 19 में यथा विनिर्दिष्ट विलंब के कारण हुई नुकसानी की दशा में, प्रत्येक यात्री के लिए वाहक का दायित्व चार हजार एक सौ पचास विशेष आहरण अधिकारों तक सीमित है ।
(2) यात्री सामान के वहन में, नाश, हानि, नुकसानी या विलंब की दशा में वाहक का दायित्व प्रत्येक यात्री के लिए एक हजार विशेष आहरण अधिकार तक सीमित होगा जब तक कि यात्री ने उस समय जब जांच किया गया सामान वाहक को सौंपा गया था, गंतव्य स्थान पर परिदान के हित में विशेष घोषणा न की हो और किसी अनुपूरक रकम का, यदि ऐसा अपेक्षित हो, संदाय न कर दिया हो । उस दशा में वाहक घोषित रकम से अनधिक रकम का संदाय करने के लिए दायी होगा जब तक यह साबित नहीं हो जाता है कि रकम गंतव्य स्थान पर परिदान में यात्री के वास्तविक हित से अधिक है ।
(3) स्थोरा के वहन में नाश, हानि, नुकसानी या विलंब की दशा में वाहक का दायित्व प्रति किलोग्राम सत्रह विशेष आहरण अधिकारों तक की रकम तक सीमित है जब तक कि परेषिती ने उस समय जब पैकेज वाहक को सौंपा गया था, गंतव्य स्थान पर परिदान में हित की विशेष घोषणा न कर दी हो और किसी अनुपूरक रकम का, यदि ऐसा अपेक्षित हो, संदाय न कर दिया हो । उस दशा में, वाहक घोषित रकम से अनधिक रकम का संदाय करने के लिए दायी होगा जब तक वह यह साबित नहीं कर देता है कि रकम गंतव्य स्थान पर परिदान में परेषिती के वास्तिवक हित से अधिक है ।
(4) स्थोरा के भाग या उसमें अन्तर्विष्ट किसी वस्तु के विलंब, नाश, हानि या नुकसानी की दशा में उस रकम का अवधारण करने में विचार किए जाने वाला भार, जिस तक वाहक का दायित्व सीमित है, केवल संबंधित पैकेज या पैकेजों का कुल भार होगा । फिर भी, जब स्थोरा के भाग या उसमें अन्तर्विष्ट किसी वस्तु के विलंब, नाश, हानि या नुकसानी उसी वायुमार्ग के बिल के अन्तर्गत आने वाले अन्य पैकेजों के मूल्य, या उसी रसीद को प्रभावित करता है या यदि वे नियम 4 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट अन्य साधनों द्वारा संरक्षित उसी अभिलेख द्वारा जारी नहीं किए गए थे तो ऐसे पैकेज या पैकेजों के कुल भार को भी दायित्व की सीमा का अवधारण करने के लिए विचार में रखा जाएगा ।
(5) उपनियम (1) और उपनियम (2) के उपबंध लागू नहीं होंगे यदि यह साबित कर दिया जाता है कि नुकसानी वाहक, उसके सेवकों या अभिकर्ताओं द्वारा नुकसान कारित करने के आशय से या असावधानीपूर्वक और यह जानते हुए कि नुकसान होना संभाव्य है, किए गए किसी कार्य या लोप के परिणामस्वरूप हुआ हैः
परन्तु किसी सेवक या अभिकर्ता के ऐसे कार्य या लोप की दशा में यह भी साबित किया जाता है कि ऐसा सेवक या अभिकर्ता अपने नियोजन की परिधि के भीतर कार्य कर रहा था ।
(6) नियम 21 और इस नियम में विहित सीमाएं न्यायालय को, उसकी स्वयं की विधि के अनुसार, संपूर्ण न्यायालय खर्च या उसके भाग के अतिरिक्त और वादी द्वारा उपगत मुकदमेबाजी के अन्य व्ययों जिसके अन्तर्गत ब्याज भी है, देने से निवारित नहीं करेगी । पूर्वगामी उपबंध लागू नहीं होंगे यदि अधिनिर्णीत नुकसानियों की रकम, जिसके अन्तर्गत न्यायालय खर्चे और मुदकमे के अन्य व्यय नहीं हैं, उस रकम से अधिक नहीं होती है, जिसका वाहक ने लिखित में वादी को नुकसानी कारित करने की घटना की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर या कार्रवाई के प्रारंभ से पूर्व, यदि वह पश्चात्वर्ती है प्रस्ताव किया है ।
23. इन नियमों में विशेष आहरण अधिकार के निबन्धनानुसार वर्णित रकमें, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा निधि द्वारा यथा परिभाषित विशेष आहरण अधिकार के प्रतिनिर्देश समझी जाएंगी और राष्ट्रीय मुद्राओं में इसका संपरिवर्तन, न्यायिक कार्यवाहियों की दशा में निर्णय की तारीख को प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा निधि द्वारा लागू मूल्यांकन की पद्धति के अनुसार उसके प्रचालन और संव्यवहार के लिए किया जाएगा ।
24. (1) नियम 25 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना और उपनियम (2) के अधीन रहते हुए, नियम 21, नियम 22 और नियम 23 में विहित दायित्व की सीमाओं का निक्षेपागार द्वारा पांच वर्ष के अन्तरालों पर पुनर्विलोकन किया जाएगा, ऐसा प्रथम पुनर्विलोकन इन नियमों के प्रवृत्त होने की तारीख के पश्चात्वर्ती पांच वर्ष के अंत में किया जाएगा । मुद्रास्फीति कारक का अवधारण करने में प्रयोग की जाने वाली मुद्रास्फीति दर का मूल्यांकन उन राज्यों के जिनकी मुद्राएं नियम 23 में वर्णित विशेष आहरण अधिकार समाविष्ट करती हैं, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में वृद्धि या कमी की वार्षिक दर के औसत के आधार पर किया जाएगा ।
(2) यदि उपनियम (1) में निर्दिष्ट पुनर्विलोकन का यह निष्कर्ष निकलता है कि मुद्रास्फीति कारक दस प्रतिशत से अधिक हो गया है, तो निक्षेपागार दायित्व की सीमाओं के पुनरीक्षण के राज्य पक्षकारों को अधिसूचित करेगा । कोई ऐसा पुनरीक्षण राज्य पक्षकारों को ऐसी अधिसूचना के छह मास पश्चात् प्रभावी हो जाएगा, यदि राज्य पक्षकारों की उसकी अधिसूचना के तीन मास के भीतर राज्य पक्षकारों का बहुमत अपना अननुमोदन रजिस्टर करते हैं तो पुनरीक्षण प्रभावी नहीं होगा और निक्षेपागार इस विषय को राज्य पक्षकारों के अधिवेशन को निर्दिष्ट करेगा । निक्षेपागार किसी पुनरीक्षण के प्रवृत्त होने के बारे में सभी राज्य सरकारों को तुरन्त अधिसूचित करेगा ।
(3) उपनियम (1) में किसी बात के होते हुए भी, उपनियम (2) में निर्दिष्ट प्रक्रिया किसी भी समय लागू होगी, परन्तु यह तब जबकि एक तिहाई राज्य पक्षकार उस आशय की और इस शर्त पर इच्छा प्रकट करते हैं कि उपनियम (1) में निर्दिष्ट मुद्रास्फीति कारक पूर्व पुनरीक्षण से या यदि पहले कोई पुनरीक्षण नहीं किया गया है तो मोंट्रियल कन्वेंशन के प्रवृत्त होने की तारीख से तीस प्रतिशत से अधिक हो गया है । उपनियम (1) में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का प्रयोग करते हुए पश्चात्वर्ती पुनर्विलोकन इस उपनियम के उपबंधों के अधीन पुनर्विलोकन की तारीख के पश्चात्वर्ती पांचवें वर्ष के अंत से आरंभ होने वाले पांच वर्ष के अन्तरालों पर किए जाएंगे ।
25. वाहक यह अनुबंध कर सकेगा कि वहन की संविदा दायित्व की उस सीमा से भिन्न उच्चतर सीमाओं के अधीन होगी जो इन नियमों में उपबन्धित की गई हैं या जिनके लिए कोई दायित्व की सीमा नहीं है, जो भी हो ।
26. ऐसा कोई उपबंध जो वाहक को दायित्व से मुक्त करता है या उससे निम्नतर सीमा नियत करता है जो इन नियमों में अधिकथित है, अकृत और शून्य होगा किन्तु ऐसे प्रत्येक उपबंध की अकृतता में संपूर्ण संविदा की अकृतता अंतर्वलित नहीं है जो इन नियमों के उपबन्धों के अधीन रहेगी ।
27. इन नियमों की कोई बात वाहक को वहन की कोई संविदा करने, इन नियमों में उपलब्ध किसी प्रतिरक्षा को समाप्त करने या ऐसी शर्तें अधिकथित करने से निवारित नहीं करेगी जो इन नियमों के उपबन्धों के प्रतिकूल नहीं हैं ।
28. तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, जहां वायुयान दुर्घटना के कारण यात्रियों की मृत्यु या क्षति होती है वहां वाहक प्रकृत व्यक्ति या उन व्यक्तियों को, जो ऐसे व्यक्ति की तुरन्त आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिकर का दावा करने के हकदार हैं, अविलंब अग्रिम संदाय करेगा । ऐसे अग्रिम संदाय दायित्व की मान्यता को गठित नहीं करेंगे और वाहक द्वारा नुकसानियों के रूप में बाद में संदत्त किन्हीं रकमों के विरुद्ध मुजरा किए जा सकेंगे ।
29. तथापि यात्रियों, यात्री सामान और स्थोरा के वहन में नुकसानियों के लिए कोई कार्रवाई चाहे इन नियमों के अधीन या संविदा में या दुष्कृति में या अन्यथा स्थापित की गई हो, केवल दायित्व की ऐसी शर्तों और ऐसी सीमाओं के अधीन रहते हुए अग्रेषित की जा सकेगी । जो इन नियमों में इस प्रश्न पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना कि वे व्यक्ति जो वाद लाने का प्राधिकार रखते हैं और उनके अपने-अपने क्या अधिकार हैं, उपवर्णित किए गए हैं । ऐसी किसी कार्रवाई में, दंडात्मक, अनुकरणीय या किसी अन्य अप्रतिकारात्मक नुकसानी वसूलनीय नहीं होगी ।
30. (1) यदि वाहक के सेवक या अभिकर्ता के विरुद्ध ऐसी नुकसानी से उत्पन्न कोई कार्रवाई की जाती है, जिससे ये नियम संबंधित हैं, तो ऐसा सेवक या अभिकर्ता, यदि वे यह साबित करते हैं कि उन्होंने अपने नियोजन की परिधि के भीतर कार्य किया है तो वे दायित्व की ऐसी शर्तों और सीमाओं के लिए स्वयं दावा करने के हकदार होंगे, जिनका वाहक स्वयं इन नियमों के अधीन अवलंब लेने के लिए हकदार हैं ।
(2) उस दशा में वाहक, उसके सेवकों और अभिकर्ताओं से वसूलनीय रकमों का योग उक्त सीमाओं से अधिक नहीं होगा ।
(3) उपनियम (1) और उपनियम (2) के उपबंध स्थोरा के वहन के सिवाय, लागू नहीं होंगे यदि वह साबित कर दिया जाता है कि नुकसानी सेवक या अभिकर्ता के ऐसे कार्य या लोप के परिणामस्वरूप हुई है, जो नुकसानी कारित करने के आशय से या असावधानीपूर्वक और इस जानकारी के साथ किया गया था कि नुकसानी होनी संभाव्य है ।
31. (1) जांच किए गए यात्री सामान या स्थोरा के परिदान के हकादार व्यक्ति द्वारा शिकायत के बिना प्राप्ति इस बात का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य है कि उसका परिदान अच्छी स्थिति में और वहन के दस्तावेजों के अनुसार या नियम 3 के उपनियम (2) और नियम 4 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट अन्य साधनों द्वारा संरक्षित अभिलेख के अनुसार किया गया है ।
(2) नुकसानी की दशा में परिदान के लिए हकदार व्यक्ति नुकसानी का पता लगने के पश्चात् तुरन्त और अधिक से अधिक, जांच किए गए यात्री सामान की दशा में प्राप्ति की तारीख से सात दिन के भीतर और स्थोरा की दशा में प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन के भीतर वाहक को शिकायत करेगा । विलंब की दशा में, शिकायत, उस तारीख से अधिक से अधिक इक्कीस दिन के भीतर की जाएगी जिसको यात्री सामान या स्थोरा उसके निपटान के लिए प्रस्तुत किया गया है ।
(3) प्रत्येक शिकायत लिखित में की जाएगी और उपनियम (2) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर दी जाएगी या भेजी जाएगी ।
(4) यदि उपनियम (2) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर कोई शिकायत नहीं की जाती है तो वाहक के विरुद्ध वाहक द्वारा किए गए कपट के मामले के सिवाय कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी ।
32. दायी व्यक्ति की मृत्यु की दशा में नुकसानी के लिए कार्रवाई इन नियमों के अनुसार उसकी संपदा का विधिक रूप से प्रतिनिधित्व कर रहे व्यक्तियों के विरुद्ध की जाएगी ।
33. (1) नुकसानी के लिए कोई कार्रवाई, नुकसानी के दावेदार के विकल्प पर, राज्य पक्षकारों में से किसी एक के राज्यक्षेत्र में, वाहक के अधिवास या उसके कारबार के प्रधान स्थान पर या जहां उसका कारबार का वह स्थान है जिसके माध्यम से संविदा की गई है, न्यायालय के समक्ष या गंतव्य स्थान पर न्यायालय के समक्ष की जाएगी ।
(2) यात्री की मृत्यु या क्षति के परिणामस्वरूप हुई नुकसानी के संबंधमें कोई कार्रवाई उपनियम (1) में वर्णित न्यायालयों में से किसी एक न्यायालय के समक्ष या किसी राज्य पक्षकार के उस राज्यक्षेत्र में, जिसमें दुर्घटना के समय यात्री का प्रधान और स्थायी निवास है और जहां के लिए या से वाहक या तो अपने स्वयं के वायुयान पर वाणिज्यिक करार के अनुसरण में किसी अन्य वाहक के वायुयान पर यात्रियों के वहन के लिए सेवाएं प्रचालित करता है और जिसमें वह वाहक पट्टाधृत परिसरों से या अपने स्वामित्वाधीन परिसर से या ऐसे किसी अन्य वाहक के साथ जिसके साथ उसका वाणिज्यिक करार है, वायुयान द्वारा यात्रियों के वहन का कारबार का संचालन करता है, कार्रवाई की जा सकेगी ।
(3) उपनियम (2) के प्रयोजनों के लिए,-
(क) वाणिज्यिक करार" से वायुयान द्वारा यात्रियों के वहन के लिए वाहकों के बीच और उनकी संयुक्त सेवाओं के उपबंध के संबध में किया गया किसी अभिकरण करार से भिन्न, कोई करार अभिप्रेत है;
(ख) प्रधान और स्थायी निवास" से दुर्घटना के समय यात्री का एक नियत और स्थायी निवास-स्थान अभिप्रेत है,
यात्री की राष्ट्रीयता इस संबंध में अवधारक कारक नहीं होगी ।
(4) प्रक्रिया के प्रश्न न्यायालय की विधि द्वारा शासित होंगे ।
34. (1) इस नियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, स्थोरा के लिए वहन की संविदा के पक्षकार यह अनुबंध कर सकेंगे कि इन नियमों के अधीन वाहक के दायित्व से संबंधित कोई विवाद माध्यस्थम् द्वारा निपटाया जाएगा । ऐसा करार लिखित में होगा ।
(2) माध्यस्थम् कार्यवाहियां दावेदार के विकल्प पर नियम 33 में निर्दिष्ट अधिकारिताओं में से किसी एक के भीतर होगी ।
(3) मध्यस्थ या माध्यस्थम् अधिकरण इन नियमों के उपबन्घों को लागू करेगा ।
(4) उपनियम (2) और उपनियम (3) के उपबंध प्रत्येक माध्यस्थम् खंड या करार के भाग समझे जाएंगे और ऐसे खंड या करार का कोई निबन्धन, जो उससे असंगत है, अकृत और शून्य होगा ।
35. (1) नुकसानियों का अधिकार समाप्त हो जाएगा यदि कोई कार्रवाई दो वर्ष की अवधि के भीतर नहीं की जाती है, जिसकी गणना गंतव्य स्थान पर पहुंचने की तारीख से या उस तारीख से जिसको वायुयान पहुंचना चाहिए था या उस तारीख से जिसको वहन समाप्त हुआ होगा, की जाएगी ।
(2) उस अवधि की संगणना करने की पद्धति, मामले से संबंधित न्यायालय की विधि द्वारा अवधारित की जाएगी ।
36. (1) विभिन्न उत्तरवर्ती वाहकों द्वारा निष्पादित किए जाने वाले और नियम 1 के उपनियम (4) में दी गई परिभाषा के अंतर्गत आने वाले वहन की दशा में प्रत्येक वाहक, जो यात्रियों, यात्री सामान या स्थोरा को स्वीकार करता है, इन नियमों के उपबन्धों के अध्यधीन होगा और जहां तक संविदा वहन के उस भाग से संबद्ध है जो उसके पर्यवेक्षण में निष्पादित किया जाता है, उसे वहन की संविदा के पक्षकारों में से एक समझा जाएगा ।
(2) इस प्रकृति के वहन की दशा में, प्रतिकर के लिए हकदार यात्री या कोई व्यक्ति केवल उस वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का हकदार होगा, जिसने उस वहन का निष्पादन किया है जिसके दौरान दुर्घटना या विलंब हुआ है, वहां के सिवाय प्रथम वाहक ने, जहां स्पष्ट करार द्वारा संपूर्ण यात्रा के लिए दायित्व को स्वीकार किया है ।
(3) यात्री सामान या स्थोरा के संबंध में यात्री या परेषिती को प्रथम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और यात्री या परेषिती, जो परिदान का हकदार है, को अन्तिम वाहक के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार होगा और इसके अतिरिक्त, प्रत्येक उस वाहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकेगा जिसने ऐसे वहन का निष्पादन किया है जिसके दौरान विलंब, नाश, हानि या नुकसानी हुई । ये वाहक संयुक्त रूप से और पृथक् रूप से यात्री या परेषिती या परेषक के प्रति दायी होंगे ।
37. इन नियमों की कोई बात, किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई करने के ऐसे व्यक्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी, जो नुकसानी के लिए दायी है ।
अध्याय 4
संयुक्त वहन
38. (1) भागतः वायुयान द्वारा और भागतः वहन के किसी अन्य ढंग द्वारा निष्पादित संयुक्त वहन की दशा में इन नियमों के उपबंध नियम 18 के उपनियम (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, केवल विमानवहन को लागू होंगे, परन्तु यह तब जब विमानवहन नियम 1 के अर्थान्तर्गत आता हो ।
(2) इन नियमों की कोई बात संयुक्त वहन की दशा में पक्षकारों को वहन के अन्य ढंगों से संबंधित विमानवहन की शर्तों के दस्तावेज में अन्तःस्थापन करने से निवारित नहीं करेगी, परन्तु यह तब जब इन नियमों के उपबंधों का विमानवहन के संबंध में अनुपालन किया जाता हो ।
अध्याय 5
संविदाकारी वाहक से भिन्न व्यक्ति द्वारा निष्पादित विमानवहन
39. इस अध्याय के उपबन्ध तब लागू होंगे जब कोई व्यक्ति (जिसे इसमें इसके पश्चात् संविदाकारी वाहक कहा गया है) प्रधान के रूप में इन नियमों के अधीन किसी यात्री या परेषिती के साथ या यात्री या परेषिती की ओर से कार्य कर रहे व्यक्ति के साथ वहन की संविदा करता है और कोई अन्य व्यक्ति (जिसे इसमें इसके पश्चात् वास्तविक वाहक कहा गया है) संविदाकारी वाहक से प्राधिकार के कारण वहन का संपूर्ण या भागतः किन्तु उस भाग के संबंध में नहीं, जो इन नियमों के अर्थान्तर्गत एक उत्तरवर्ती वाहक है । ऐसा प्राधिकारी उसके विरुद्ध सबूत के अभाव में प्राधिकारी समझा जाएगा ।
40. यदि कोई वास्तिवक वाहक ऐसे वहन का पूर्णतः या भागतः निष्पादन करता है जो नियम 39 में निर्दिष्ट संविदा के अनुसार इन नियमों द्वारा शासित होता है, संविदाकारी वाहक और वास्तविक वाहक, दोनों, इस अध्याय में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इन नियमों के उपबन्धों के अधीन होंगे, पूर्ववर्ती संविदा में अनुध्याय संपूर्ण वहन के लिए और पश्चात्वर्ती एकमात्र उस वहन के लिए जिसे वह निष्पादित करता है, होंगे ।
41. (1) वास्तविक वाहक और उसके सेवकों और उसके अभिकर्ताओं, जो अपने नियोजन की परिधि के भीतर कार्य कर रहे हैं, के कृत्यों और लोपों को वास्तविक वाहक द्वारा निष्पादित किए गए वहन के संबंध में संविदाकारी वाहक के लिए भी समझा जाएगा ।
(2) संविदाकारी वाहक और उसके सेवकों और अभिकर्ताओं, जो अपने नियोजन की परिधि के भीतर कार्य कर रहे हैं, के कृत्यों और लोपों को वास्तविक वाहक द्वारा निष्पादित किए गए वहन के संबंध में वास्तविक वाहक के लिए भी समझा जाएगा । फिर भी ऐसा कोई कृत्य और लोप वास्तविक वाहक को नियम 21, नियम 22, नियम 23 और नियम 24 में निर्दिष्ट रकम से अधिक रकम के दायित्वाधीन नहीं करेगा । कोई विशेष करार जिसके अधीन संविदाकारी वाहक इन नियमों के उपबंधों द्वारा अधिरोपित न की गई बाध्यताओं को स्वीकार करता है या इन नियमों के अधीन उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों या प्रतिरक्षाओं का कोई अधित्यजन और नियम 22 में अनुध्यात गंतव्य स्थान पर परिदान में हित की कोई विशेष घोषणा वास्तविक वाहक को तब तक प्रभावित नहीं करेगी जब तक कि उसके द्वारा सहमति न दे दी गई हो ।
42. इन नियमों के उपबंधों के अधीन वाहक को किए जाने वाला कोई परिवाद या दिए जाने वाले अनुदेश का वही प्रभाव होगा चाहे वे संविदाकारी वाहक या वास्तविक वाहक को संबोधित किए गए हों या नहीं । फिर भी, नियम 12 में निर्दिष्ट अनुदेश केवल तभी प्रभावी होंगे यदि वे संविदाकारी वाहक को संबोधित हों ।
43. वास्तविक वाहक द्वारा निष्पादित वहन के संबंध में उस वाहक या संविदाकारी वाहक का कोई सेवक या अभिकर्ता, यदि वे यह साबित कर देते हैं कि उन्होंने अपने नियोजन की परिधि के भीतर कार्य किया है तो वे स्वयं के लिए दायित्व की उन शर्तों और सीमाओं को प्राप्त करने के हकदार होंगे जो इन नियमों के उपबंधों के अधीन उस वाहक को लागू होते हैं जिसके वे सेवक या अभिकर्ता हैं, जब तक कि यह साबित नहीं कर दिया जाता है कि उन्होंने ऐसी रीति में कार्य किया है जो इन नियमों के उपबंधों के अनुसार दायित्वों की सीमाओं का अवलंब लेने से निवारित करते हैं ।
44. वास्तविक वाहक द्वारा निष्पादित वहन के संबंध में, उस वाहक और संविदाकारी वाहक और उनके नियोजन की परिधि के भीतर कार्यरत उनके सेवकों और अभिकर्ताओं से वसूलनीय रकमों का योग उस अधिकतम रकम से अधिक नहीं होगा जो इन नियमों के उपबन्धों के अधीन संविदाकारी वाहक या वास्तविक वाहक के संबंध में अधिनिर्णीत की गई हो, किन्तु ऊपर वर्णित व्यक्तियों में से कोई भी व्यक्ति, उस व्यक्ति को लागू सीमा से अधिक रकम के लिए दायी नहीं होगा ।
45. वास्तविक वाहक द्वारा निष्पादित वहन के संबंध में नुकसानी के लिए कोई कार्रवाई, परिवादी के विकल्प पर, वाहक या संविदाकारी वाहक के विरुद्ध या दोनों के विरुद्ध एक साथ या पृथक् रूप से की जा सकेगी । यदि कार्रवाई इन वाहकों में से केवल एक के विरुद्ध की जाती है तो उस वाहक को कार्यवाहियों में अन्य वाहक को सम्मिलित कराने की अपेक्षा करने की, प्रक्रिया और उसके प्रभाव मामले के न्यायालय की विधि द्वारा शासित होते हैं ।
46. नियम 45 में अनुध्याय नुकसानी के लिए कोई कार्रवाई, परिवादी के विकल्प पर, राज्य पक्षकारों में से किसी एक के राज्यक्षेत्र में या तो उस न्यायालय के समक्ष, जिसमें नियम 33 के अधीन यथा उपबन्धित संविदाकारी वाहक के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकेगी या उस न्यायालय के समक्ष जिसकी अधिकारिता उस स्थान पर है, जहां वास्तविक वाहक का अधिवास या उसके कारबार का मूल स्थान है, की जा सकेगी ।
47. इस अध्याय के अधीन संविदाकारी वाहक या वास्तविक वाहक को मुक्त करने के लिए या उस सीमा से कम सीमा नियत करने के लिए, जो इस अध्याय के अनुसार लागू होता है, आशयित कोई संविदात्मक उपबंध अकृत और शून्य होगा किन्तु ऐसे किसी उपबंध की अकृतता में संपूर्ण संविदा की अकृतता अंतर्वलित नहीं है, जो इस अध्याय के उपबन्धों के अधीन रहेगी ।
48. नियम 45 में यथा उपबंधित के सिवाय, इस अध्याय की कोई बात वाहकों के बीच उनके अधिकारों और बाध्यताओं को, जिनके अन्तर्गत अवलंब या क्षतिपूर्ति का कोई अधिकार भी है, प्रभावित नहीं करेगी ।
अध्याय 6
साधारण और अन्तिम उपबन्ध
49. वहन की संविदा में अन्तर्विष्ट कोई खंड और उस नुकसानी के होने से पूर्व किए गए सभी विशेष करार, जिसके द्वारा पक्षकार इन नियमों द्वारा अधिकथित नियमों का उल्लंघन करने के लिए तात्पर्यित हैं, चाहे वे लागू किए जाने वाली विधि का विनिश्चय करके या अधिकारिता के संबंध में नियमों में परिवर्तन करके हों, अकृत और शून्य होंगे ।
50. राज्य पक्षकार अपने वाहकों से यह अपेक्षा करेंगे कि वे इन नियमों के उपबन्घों के अधीन अपने दायित्व को समाविष्ट करते हुए समुचित बीमा कराएं । किसी वाहक से यह साक्ष्य प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जा सकेगी कि वह इन नियमों के उपबन्घों के अधीन अपने दायित्व को समाविष्ट करने वाला समुचित बीमा कराते हैं ।
51. वहन के दस्तावेजीकरण से संबंधित नियम 3, नियम 4, नियम 5, नियम 7 और नियम 8 के उपबंध किसी वाहक के कारबार की सामान्य परिधि से बाहर असाधारण परिस्थितियों में निष्पादित वहन की दशा में लागू नहीं होंगे ।
52. इस अनुसूची में प्रयुक्त दिनों" पद से कलैंडर दिन अभिप्रेत है न कि कार्य दिवस ।
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