विवाह के विरुद्ध अपराधों के लिए अभियोजन-(1) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 20 के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति द्वारा किए गए परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं :
परंतु-
(क) जहां ऐसा व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का है अथवा जड़ या पागल है अथवा रोग या अंग-शैथिल्य के कारण परिवाद करने के लिए असमर्थ है, या ऐसी स्त्री है जो स्थानीय रूढ़ियों और रीतियों के अनुसार लोगों के सामने आने के लिए विवश नहीं की जानी चाहिए, वहां उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है ;
(ख) जहां ऐसा व्यक्ति पति है, और संघ के सशस्त्र बलों में से किसी में से ऐसी परिस्थितियों में सेवा कर रहा है जिनके बारे में उसके कमान आफिसर ने यह प्रमाणित किया है कि उनके कारण उसे परिवाद कर सकने के लिए अनुपस्थिति छुट्टी प्राप्त नहीं हो सकती, वहां उपधारा (4) के उपबंधों के अनुसार पति द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से परिवाद कर सकता है ;
(ग) जहां भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की [ धारा 494 या धारा 495ट के अधीन दंडनीय अपराध से व्यथित व्यक्ति पत्नी है वहां उसकी ओर से उसके पिता, माता, भाई, बहिन, पुत्र या पुत्री या उसके पिता या माता के भाई या बहिन द्वारा [ या न्यायालय की इजाजत से, किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जो उससे रक्त, विवाह या दत्तक द्वारा संबंधित है,] परिवाद किया जा सकता है ।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, स्त्री के पति से भिन्न कोई व्यक्ति उक्त संहिता की धारा 497 या धारा 498 के अधीन दंडनीय अपराध से व्यथित नहीं समझा जाएगा :
परंतु पति की अनुपस्थिति में, कोई ऐसा व्यक्ति, जो उस समय जब ऐसा अपराध किया गया था ऐसी स्त्री के पति की ओर से उसकी देख-रेख कर रहा था उसकी ओर से न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है ।
(3) जब उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन आने वाले किसी मामले में अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या पागल व्यक्ति की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा परिवाद किया जाना है, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवयस्क या पागल के शरीर का संरक्षक नियुक्त या घोषित नहीं किया गया है, और न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा कोई संरक्षक जो ऐसे नियुक्त या घोषित किया गया है तब न्यायालय इजाजत के लिए आवेदन मंजूर करने के पूर्व, ऐसे संरक्षक को सूचना दिलवाएगा और सुनवाई का उचित अवसर देगा ।
(4) उपधारा (1) के परंतुक के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्राधिकार लिखित रूप में दिया जाएगा और, वह पति द्वारा हस्ताक्षरित या अन्यथा अनुप्रमाणित होगा, उसमें इस भाव का कथन होगा कि उसे उन अभिकथनों की जानकारी दे दी गई है जिनके आधार पर परिवाद किया जाना है और वह उसके कमान आफिसर द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित होगा, तथा उसके साथ उस आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित इस भाव का प्रमाणपत्र होगा कि पति को स्वयं परिवाद करने के प्रयोजन के लिए अनुपस्थिति छुट्टी उस समय नहीं दी जा सकती है ।
(5) किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका ऐसा प्राधिकार होना तात्पर्यित है और जिससे उपधारा (4) के उपबंधों की पूर्ति होती है और किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका उस उपधारा द्वारा अपेक्षित प्रमाणपत्र होना तात्पर्यित है, जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि वह असली है और उसे साक्ष्य में ग्रहण किया जाएगा ।
(6) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 376 के अधीन अपराध का संज्ञान, जहां ऐसा अपराध किसी पुरुष द्वारा [अठारह वर्ष से कम आयु की] अपनी ही पत्नी के साथ मैथुन करता है, उस दशा में न करेगा जब उस अपराध के किए जाने की तारीख से एक वर्ष से अधिक व्यतीत हो चुका है ।
(7) इस धारा के उपबंध किसी अपराध के दुष्प्रेरण या अपराध करने के प्रयत्न को ऐसे लागू होंगे, जैसे वे अपराध को लागू होते हैं ।