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भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 ( Building And Other Construction Workers ’(Regulation Of Employment And Conditions Of Service) Act, 1996 )


 

भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन  तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996

(1996 का अधिनियम संख्यांक 27)

[19 अगस्त, 1996]

भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकारों के नियोजन और सेवा की शर्तों का

विनियमन करने तथा उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी

उपायों का और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक

अन्य विषयों का उपबंध

करने के लिए

अधिनियम

                भारत गणराज्य के सैंतालीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारंभ और लागू होना-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 है

                (2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है

                (3) यह 1 मार्च, 1996 को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा

                (4) यह ऐसे प्रत्येक स्थापन को लागू होता है जिसमें किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में दस या अधिक भवन कर्मकार नियोजित हैं या पूर्ववर्ती बारह मास में किसी भी दिन नियोजित थे

                स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, स्थापन में नियोजित भवन कर्मकारों की संख्या की संगणना करने में, नियोजक या ठेकेदार द्वारा किसी दिन विभिन्न टोलियों में नियोजित भवन कर्मकारों को हिसाब में लिया जाएगा

2. परिभाषाएं-(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित हो,-

                                () समुचित सरकार" से अभिप्रेत है-

(i) किसी ऐसे स्थापन के संबंध में (जो भवन कर्मकारों का नियोजन सीधे या किसी ठेकेदार के माध्यम से करता है), जिसकी बाबत औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) के अधीन समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार है, केन्द्रीय सरकार ;

(ii) किसी ऐसे स्थापन के संबंध में, जो ऐसा पब्लिक सेक्टर उपक्रम है, जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, और जो भवन कर्मकारों का नियोजन सीधे या किसी ठेकेदार के माध्यम से करता है, केन्द्रीय सरकार

स्पष्टीकरण-उपखंड (ii) के प्रयोजनों के लिए, पब्लिक सेक्टर उपक्रम" से अभिप्रेत है किसी केन्द्रीय, राज्य या प्रांतीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित कोई निगम या कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में परिभाषित कोई सरकारी कम्पनी जो केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या प्रबंध के अधीन है ;

(iii) किसी ऐसे अन्य स्थापन के संबंध में, जो भवन कर्मकारों का नियोजन सीधे या किसी ठेकेदार के माध्यम से करता है उस राज्य की सरकार, जिसमें वह अन्य स्थापन स्थित है ;

() हिताधिकारी" से धारा 12 के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई भवन कर्मकार अभिप्रेत है ;

() बोर्ड" से धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन गठित भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड  अभिप्रेत है ;

() भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य" से भवनों, मार्गों, सड़कों, रेल पथों, ट्राम-पथों, हवाई मैदानों, सिंचाई, जल निकास, तटबंध और नौपरिवहन संकर्म और बाढ़ नियंत्रण संकर्म (जिनके अन्तर्गत वृष्टि जल निकास संकर्म हैं), विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण, जल संकर्म (जिनके अन्तर्गत जल के वितरण के लिए सरणियां हैं), तेल और गैस प्रतिष्ठानों, विद्युत लाइनों, बेतार, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, तार और विदेश संचार माध्यमों, बांधों, नहरों, जलाशयों, जल सरणियों, सुरंगों, पुलों, सेतुओं, जल सेतुओं, पाइप लाइनों, मीनारों, शीतलन मीनारों, पारेषण मीनारों और ऐसे अन्य कार्य का, जो समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट किए जाएं, या उनके संबंध में सन्निर्माण, परिवर्तन, मरम्मत, अनुरक्षण या गिराया जाना अभिप्रेत है किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसे भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य नहीं हैं जिनको कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) या खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) के उपबंध लागू होते हैं ;

() भवन कर्मकार" से अभिप्रेत है कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के संबंध में भाड़े या पारिश्रमिक के लिए कोई कुशल, अर्द्ध-कुशल या अकुशल, शारीरिक पर्ववेक्षणिक तकनीकी या लिपिकीय कार्य करने के लिए नियोजित है, चाहे नियोजन के निबन्धन प्रकट हों या विवक्षित, किन्तु इसके अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो-

                (i) मुख्यतः किसी प्रबन्धकीय या प्रशासनिक हैसियत में नियोजित हैं ; या

                (ii) किसी पर्यवेक्षी हैसियत में नियोजित होते हुए एक हजार छह सौ रुपए प्रति माह से अधिक मजदूरी लेता है अथवा पद से संबंधित कर्तव्यों की प्रकृति के या अपनी निहित शक्तियों के कारण ऐसे कृत्यों का प्रयोग करता है जो मुख्यतः प्रबन्धकीय प्रकृति के हैं ;

() मुख्य निरीक्षक" से धारा 42 की उपधारा (2) के अधीन नियुक्त किया गया भवन और सन्निर्माण के निरीक्षण के लिए मुख्य निरीक्षक अभिप्रेत है ;

() ठेकेदार" से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी स्थापन को केवल माल या विनिर्माण वस्तुओं का प्रदाय करने से भिन्न कोई निश्चित परिणाम भवन कर्मकारों के नियोजन द्वारा सम्पन्न कराने का जिम्मा अपने ऊपर लेता है या जो उस स्थापन के किसी काम के लिए भवन कर्मकारों का प्रदाय कराता है और इसके अन्तर्गत उप-ठेकेदार है ;

() महानिदेशक" से धारा 42 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त निरीक्षण महानिदेशक अभिप्रेत है ;

() किसी स्थापन के संबंध में, नियोजक" से उसका स्वामी अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत है,-

(i) किसी ठेकेदार के बिना सीधे सरकार के किसी विभाग द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन किए जाने वाले किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के संबंध में, इस निमित्त विनिर्दिष्ट प्राधिकारी, या जहां कोई प्राधिकारी विनिर्दिष्ट नहीं किया जाता है वहां, विभागाध्यक्ष ;

(ii) किसी ठेकेदार के बिना सीधे किसी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य स्थापन द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के संबंध में उस प्राधिकारी या स्थापन का मुख्य कार्यपालक अधिकारी ;

(iii) किसी ठेकेदार द्वारा या उसके माध्यम से अथवा किसी ठेकेदार द्वारा प्रदाय किए गए भवन कर्मकारों के नियोजन द्वारा किए जाने वाले किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के संबंध में, ठेकेदार ;

() स्थापन" से अभिप्रेत है सरकार का या उसके नियंत्रण के अधीन कोई स्थापन, कोई निगमित निकाय या फर्म, कोई व्यष्टि या व्यष्टि संगम या अन्य व्यष्टि-निकाय, जो किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में कर्मकारों को नियोजित करता है और इसके अंतर्गत ठेकेदार का कोई स्थापन है किन्तु इसके अन्तर्गत कोई ऐसा व्यष्टि नहीं है जो ऐसे कर्मकारों को अपने निवास के संबंध में किसी भवन या सन्निर्माण कार्य में नियोजित करता है, ऐसे सन्निर्माण की कुल लागत दस लाख रुपए से अधिक नहीं है ;

() निधि" से धारा 24 की उपधारा (1) के अधीन गठित किसी बोर्ड की भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण निधि अभिप्रेत है ;

() अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है ;

() विहित" से, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

() मजदूरी" का वही अर्थ है जो मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936 (1936 का 4) की धारा 2 के खण्ड (ध्त्) में है

                (2) किसी ऐसी विधि के प्रति जो किसी क्षेत्र में प्रवृत्त नहीं है, इस अधिनियम में किसी निर्देश का, उस क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि के प्रति, यदि कोई हो, निर्देश है

अध्याय 2

सलाहकार समितियां और विशेषज्ञ समितियां

3. केन्द्रीय सलाहकार समिति-(1) केन्द्रीय सरकार यथाशीघ्र, एक समिति का, इस अधिनियम के प्रशासन से उद्भूत होने वाले ऐसे विषयों के संबंध में केन्द्रीय सरकार को सलाह देने के लिए जो उसे निर्दिष्ट किए जाएं, गठन करेगी जिसका नाम केन्द्रीय भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार सलाहकार समिति होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् केन्द्रीय सलाहकार समिति कहा गया है)

(2) केन्द्रीय सलाहकार समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात् :-

                () अध्यक्ष, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ;

                () संसद् के तीन सदस्य, जिनमें से दो लोक सभा द्वारा और एक राज्य सभा द्वारा निर्वाचित किया जाएगा-सदस्य ;

() महानिदेशक-सदस्य, पदेन ;

() तेरह से अनधिक किन्तु नौ से अन्यून उतने अन्य सदस्य जितने केन्द्रीय सरकार नियोजकों, भवन कर्मकारों, वास्तुविदों के संगमों, इंजीनियरों, दुर्घटना बीमा संस्थाओं और किन्हीं अन्य हितों का, जिनका केन्द्रीय सरकार की राय में, केन्द्रीय सलाहकार समिति में प्रतिनिधित्व होना चाहिए, प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित करे

(3) उपधारा (2) के खंड () में विनिर्दिष्ट प्रत्येक प्रवर्ग में से सदस्यों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या, केन्द्रीय सलाहकार समिति के सदस्यों की पदावधि और सेवा की अन्य शर्तें, उनके द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया और उनमें रिक्तियों को भरने की रीति वह होगी, जो विहित की जाए :

परन्तु भवन कर्मकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित सदस्यों की संख्या, नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित सदस्यों की संख्या से कम नहीं होगी

(4) यह घोषित किया जाता है कि केन्द्रीय सलाहकार समिति के सदस्य का पद उसके धारक को संसद् के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए या सदस्य होने के लिए निरर्हित नहीं करेगा

4. राज्य सलाहकार समिति-(1) राज्य सरकार एक समिति का इस अधिनियम के प्रशासन से उद्भूत होने वाले ऐसे विषयों के संबंध में राज्य सरकार को सलाह देने के लिए जो उसे निर्दिष्ट किए जाएं, गठन कर सकेगी जिसका नाम राज्य भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार सलाहकार समिति होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् राज्य सलाहकार समिति कहा गया है)

(2) राज्य सरकार समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात् :-

                () एक अध्यक्ष, जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ;

                () राज्य विधान-मंडल के दो सदस्य, जिनको राज्य विधान-मंडल से निर्वाचित किया जाएगा-सदस्य ;

                () एक सदस्य, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किया जाएगा ;

                () मुख्य निरीक्षक-सदस्य, पदेन ;

                () ग्यारह से अनधिक किन्तु सात से अन्यून उतने अन्य सदस्य, जितने राज्य सरकार नियोजकों, भवन कर्मकारों, वास्तुविदों के संगमों, इंजीनियरों, दुर्घटना बीमा संस्थाओं और किन्हीं अन्य हितों का जिनका राज्य सरकार की राय मे, राज्य सलाहकार समिति में प्रतिनिधित्व होना चाहिए, प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित करे

(3) उपधारा (2) के खंड () में विनिर्दिष्ट प्रत्येक प्रवर्ग में से सदस्यों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या, राज्य सलाहकार समीति के सदस्यों की पदावधि और सेवा की अन्य शर्तें, उनके द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया, उनमें रिक्तियों को भरने की रीति वह होगी जो विहित की जाए :

परन्तु भवन कर्मकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित सदस्यों की संख्या, नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामनिर्देशित सदस्यों की संख्या से कम नहीं होगी

5. विशेषज्ञ समितियां-(1) समुचित सरकार इस अधिनियम के अधीन नियम बनाने के लिए उस सरकार को सलाह देने के लिए एक या अधिक विशेषज्ञ समितियों का गठन कर सकेगी जो भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में विशेष रूप से अर्हित व्यक्तियों से मिलकर बनेगी

(2) विशेषज्ञ समिति के सदस्यों को समिति की बैठकों में उपस्थित होने के लिए ऐसी फीस और भत्तों का संदाय किया जाएगा, जो विहित किए जाएं :

परन्तु किसी ऐसे सदस्य को, जो सरकार का अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगमित निकाय का अधिकारी है, कोई फीस या भत्ता संदेय नहीं होगा

अध्याय 3

स्थापनों का रजिस्ट्रीकरण

6. रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारियों की नियुक्ति-समुचित सरकार, राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा,-

() ऐसे व्यक्तियों को, जो सरकार के राजपत्रित अधिकारी होंगे, और जिन्हें वह ठीक समझे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी नियुक्त कर सकेगी ; और

() उन सीमाओं का परिनिश्चित कर सकेगी जिनके भीतर रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपने को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करेगा

7. स्थापनों का रजिस्ट्रीकरण-(1) प्रत्येक नियोजक,-

() किसी ऐसे स्थापन के संबंध में, जिसको यह अधिनियम इसके प्रारंभ पर लागू होता है, ऐसे प्रारंभ से साठ दिन की अवधि के भीतर ; और

() किसी ऐसे अन्य स्थापन के संबंध में, जिसको यह अधिनियम ऐसे प्रारंभ के पश्चात् किसी समय लागू हो सकेगा, उस तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर जिसको यह अधिनियम ऐसे स्थापन को लागू होता है,

ऐसे स्थापन के रजिस्ट्रीकरण के लिए रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी को आवेदन करेगा :

                परन्तु यदि रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि आवदेक ऐसी अवधि के भीतर आवेदन करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था तो वह पूर्वोक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् भी किसी ऐसे आवेदन को ग्रहण कर सकेगा

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा और उनमें ऐसी विशिष्टियां होंगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो विहित की जाए

(3) उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन के प्राप्त होने के पश्चात्, रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी स्थापन को रजिस्टर करेगा और उसके नियोजक को ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय के भीतर तथा ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा

(4) जहां इस धारा के अधीन किसी स्थापन के रजिस्ट्रीकरण के पश्चात् ऐसे स्थापन के स्वामित्व या प्रबंध में अथवा उसके संबंध में अन्य विहित विशिष्टियों में कोई परिवर्तन होता है वहां ऐसे परिवर्तन से संबंधित विशिष्टियों की सूचना नियोजक द्वारा रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी को ऐसे परिवर्तन के तीस दिन के भीतर ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, दी जाएगी

8. कतिपय मामलों में रजिस्ट्रीकरण का प्रतिसंहरण-यदि रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी का इस निमित्त उसे किए गए निर्देश पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि किसी स्थापन का रजिस्ट्रीकरण दुर्व्यपदेशन द्वारा या किसी तात्त्विक तथ्य को छिपाकर अभिप्राप्त किया गया है या इस अधिनियम के उपबंधों का ऐसे स्थापन द्वारा किए जाने वाले किसी कार्य के संबंध में अनुपालन नहीं किया जा रहा है या किसी अन्य कारण से रजिस्ट्रीकरण निरर्थक या अप्रवर्तनशील हो गया है और इस कारण उसका प्रतिसंहरण किया जाना अपेक्षित है तो वह स्थापन के नियोजक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् रजिस्ट्रीकरण का प्रतिसंहरण कर सकेगा

9. अपील-(1) धारा 8 के अधीन किए गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस तारीख से, जिसको आदेश उसे संसूचित किया जाता है, तीस दिन के भीतर अपील अधिकारी को, जो समुचित सरकार द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित व्यक्ति होगा, अपील   कर सकेगा :

परन्तु यदि अपील अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय से अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था तो वह तीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् ऐसी अपील को ग्रहण कर सकेगा

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी अपील के प्राप्त होने पर, अपील अधिकारी, अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् यथासंभव शीघ्रता के साथ प्रतिसंहरण आदेश की पुष्टि करेगा, उसका उपांतरण करेगा या उसको उलट देगा

10. अरजिस्ट्रीकरण का प्रभाव-ऐसे किसी स्थापन का, जिसको यह अधिनियम लागू होता है, कोई नियोजक,-

() किसी ऐसे स्थापन की दशा में, जिसका धारा 7 के अधीन रजिस्टर किया जाना अपेक्षित है, किन्तु जो उस धारा के अधीन रजिस्टर नहीं किया गया है ;

() किसी ऐसे स्थापन की दशा में, जिसकी बाबत रजिस्ट्रीकरण का प्रतिसंहरण धारा 8 के अधीन किया गया है और धारा 9 के अधीन प्रतिसंहरण के ऐसे आदेश के विरुद्ध कोई अपील, ऐसी अपील करने के लिए विहित अवधि के भीतर नहीं की गई है या जहां कोई अपील इस प्रकार की गई है वहां ऐसी अपील खारिज कर दी गई है,

यथास्थिति, धारा 7 की उपधारा (1) के खंड () या खंड () में निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के पश्चात् या धारा 8 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के प्रतिसंहरण के पश्चात् या धारा 9 के अधीन अपील करने के लिए अवधि की समाप्ति के पश्चात् या अपील के खारिज किए जाने के पश्चात् उस स्थापन में भवन कर्मकारों को नियोजित नहीं करेगा

अध्याय 4

भवन कर्मकारों का हिताधिकारियों के रूप में रजिस्ट्रीकरण

11. निधि के हिताधिकारी-इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन हिताधिकारी के रूप में रजिस्ट्रीकृत प्रत्येक भवन कर्मकार ऐसे फायदों का हकदार होगा जिनका इस अधिनियम के अधीन बोर्ड द्वारा अपनी निधि में से उपबंध किया जाता है

12. भवन कर्मकारों का हिताधिकारियों के रूप में रजिस्ट्रीकरण-(1) प्रत्येक भवन कर्मकार, जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है, किंतु साठ वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और जो पूर्ववर्ती बारह मास के दौरान कम से कम नब्बे दिन तक किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में लगा रहा है, इस अधिनियम के अधीन हिताधिकारी के रूप में रजिस्ट्रीकरण के लिए पात्र होगा

(2) रजिस्ट्रीकरण के लिए कोई आवेदन, ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, बोर्ड द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी को किया जाएगा

(3) उपधारा (2) के अधीन प्रत्येक आवेदन के साथ ऐसे दस्तावेज होंगे और साथ ही पचास रुपए से अनधिक ऐसी फीस होगी, जो विहित की जाए

(4) यदि उपधारा (2) के अधीन बोर्ड द्वारा प्राधिकृत अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि आवेदक ने इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों का अनुपालन कर दिया है तो वह इस अधिनियम के अधीन भवन कर्मकार का नाम हिताधिकारी के रूप में रजिस्टर करेगा:

परंतु रजिस्ट्रीकरण के लिए कोई आवेदन, आवेदक को सुनवाई का अवसर दिए बिना, अस्वीकृत नहीं किया जाएगा

(5) उपधारा (4) के अधीन विनिश्चय से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसे विनिश्चय की तारीख से तीस दिन के भीतर बोर्ड के सचिव या बोर्ड द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किसी अन्य अधिकारी को अपील कर सकेगा और ऐसी अपील के संबंध में सचिव या ऐसे अन्य अधिकारी का विनिश्चय अंतिम होगा :

परन्तु यदि सचिव का या बोर्ड द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किसी अन्य अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि भवन कर्मकार समय पर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था तो वह तीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् ऐसी अपील को ग्रहण कर सकेगा

(6) बोर्ड का सचिव ऐसे रजिस्टर रखवाएगा, जो विहित किए जाएं

13. पहचान पत्र-(1) बोर्ड, प्रत्येक हिताधिकारी को एक पहचान पत्र देगा जिस पर उसका फोटो सम्यक् रूप में चिपका होगा और उसके द्वारा किए गए भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के ब्यौरे प्रविष्टि करने के लिए पर्याप्त स्थान होगा

(2) प्रत्येक नियोजक, पहचान पत्र में हिताधिकारी द्वारा किए गए भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के ब्यौरे प्रविष्ट करेगा और उन्हें अधिप्रमाणित करेगा और उसे हिताधिकारी को वापस करेगा

(3) कोई ऐसा हिताधिकारी जिसे इस अधिनियम के अधीन पहचान पत्र जारी किया गया है, जब कभी सरकार या बोर्ड के किसी अधिकारी, किसी निरीक्षक या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा निरीक्षण के लिए मांग की जाए, उसे प्रस्तुत करेगा

14. हिताधिकारी के रूप में रह जाना-(1) कोई भवन कर्मकार, जिसे इस अधिनियम के अधीन हिताधिकारी के रूप में रजिस्टर किया गया है उस रूप में तब रहेगा जब वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है या वह किसी वर्ष में कम से कम नब्बे दिन तक भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में नहीं लगा रहा है :

परन्तु इस उपधारा के अधीन नब्बे दिन की अवधि की संगणना करने में, भवन या अन्य, सन्निर्माण कार्य से किसी भवन कर्मकार को उसके नियोजन से और उसके दौरान उत्पन्न दुर्घटना से कारित किसी वैयक्तिक क्षति के कारण अनुपस्थिति की कोई अवधि अपवर्जित कर दी जाएगी

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, यदि कोई व्यक्ति साठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के ठीक पूर्व लगातार कम से कम तीन वर्ष तक हिताधिकारी रहा था तो वह ऐसे फायदे प्राप्त करने का पात्र होगा जो विहित किए जाएं

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के अधीन बोर्ड के हिताधिकारी के रूप में तीन वर्ष की अवधि की संगणना करने के लिए, उसमें ऐसी कोई अवधि जोड़ी जाएगी जिसके लिए, कोई व्यक्ति अपने रजिस्ट्रीकरण के ठीक पूर्व किसी अन्य बोर्ड में हिताधिकारी रहा था

15. हिताधिकारियों का रजिस्टर-प्रत्येक नियोजक, ऐसे प्ररूप में जो विहित किया जाए, एक रजिस्टर रखेगा जिसमें उसके द्वारा हाथ में लिए गए भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में नियोजित हिताधिकारियों के नियोजन के ब्यौरे दर्शित किए जाएंगे और उसका बोर्ड के सचिव या बोर्ड द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा किसी पूर्व सूचना के बिना निरीक्षण किया जा सकेगा

16. भवन कर्ममारों का अभिदाय-(1) कोई भवन कर्मकार, जिसे इस अधिनियम के अधीन हिताधिकारी के रूप में रजिस्टर किया गया है, जब तक कि वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है, निधि में प्रतिमास ऐसी दर से जो राज्य सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट की जाए, अभिदाय करेगा और भिन्न-भिन्न वर्गों के भवन कर्मकारों के लिए अभिदाय की भिन्न-भिन्न दरें विनिर्दिष्ट की जा सकेंगी :

परन्तु यदि बोर्ड का यह समाधान हो जाता है कि हिताधिकारी किसी वित्तीय कठिनाई के कारण अपने अभिदाय का संदाय करने में असमर्थ है तो वह अभिदाय के संदाय का एक समय पर तीन मास से अनधिक की अवधि के लिए अधित्यजन कर सकेगा

(2) कोई हिताधिकारी, अपने नियोजक को अपनी मासिक मजदूरी में से अपने अभिदाय की कटौती करने और उसका ऐसी कटौती से पन्द्रह दिन के भीतर बोर्ड को विप्रेषण करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा

17. अभिदाय का संदाय करने का प्रभाव-जब किसी हिताधिकारी ने धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन कम से कम एक वर्ष की निरन्तर अवधि के लिए अपने अभिदाय का संदाय नहीं किया है तो वह हिताधिकारी नहीं रह जाएगा :

परन्तु यदि बोर्ड के सचिव का यह समाधान हो जाता है कि अभिदाय का संदाय किए जाने के लिए उचित आधार था और भवन कर्मकार ऐसी बकाया को जमा करने का इच्छुक है तो वह भवन कर्मकार को बकाया अभिदाय को जमा करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा और ऐसे जमा किए जाने पर भवन कर्मकार का रजिस्ट्रीकरण प्रत्यावर्तित हो जाएगा

अध्याय 5

भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड

18. राज्य कल्याण बोर्डों का गठन-(1) प्रत्येक राज्य सरकार, ऐसी तारीख से, जो वह अधिसूचना द्वारा नियत करे, एक बोर्ड गठित करेगी जिसका नाम (राज्य का नाम) भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड होगा और वह इस अधिनियम के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदेशित कृत्यों का पालन करेगा

                (2) बोर्ड, शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा, तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा

                (3) बोर्ड, एक अध्यक्ष, केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाला एक व्यक्ति, और पन्द्रह से अनधिक उतने अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जो राज्य सरकार द्वारा उसमें नियुक्त किए जाएं :

परन्तु बोर्ड में राज्य सरकार, नियोजकों और भवन कर्मकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य समान संख्या में होंगे और बोर्ड में कम से कम एक सदस्य स्त्री होगी

                (4) बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के निबंधन और शर्तें तथा उनको संदेय वेतन और अन्य भत्ते तथा बोर्ड के सदस्यों की आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति वह होगी, जो विहित की जाए

19. बोर्डों के सचिव और अन्य अधिकारी-(1) बोर्ड, एक सचिव और ऐसे अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी नियुक्त करेगा जो वह इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक समझे

                (2) बोर्ड का सचिव उसका मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा

                (3) बोर्ड के सचिव और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति के निबंधन और शर्तें तथा उनको संदेय वेतन और भत्ते वे होंगे जो विहित किए जाएं

20. बोर्डों के अधिवेशन-(1) बोर्ड का अधिवेशन ऐसे समय और स्थान पर होगा, और वह अपने अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के संबंध में (जिसके अन्तर्गत ऐसे अधिवेशनों में गणपूर्ति है) प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा, जो विहित किए जाएं

                (2) अध्यक्ष या यदि वह किसी कारण से बोर्ड के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो अध्यक्ष द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित कोई सदस्य और ऐसे नामनिर्देशन के अभाव में अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित कोई अन्य सदस्य अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा

                (3) बोर्ड के किसी अधिवेशन में उसके समक्ष आने वाले सभी प्रश्नों का विनिश्चय, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में, अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा

21. रिक्तियों, आदि से बोर्ड की कार्यवाहियों का अविधिमान्य होना-बोर्ड का कोई कार्य या कार्यवाही, केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि-

                                () बोर्ड में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है ; अथवा

                                () बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है ; या

                                () बोर्ड की प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता है जो मामले के गुणागुण पर प्रभाव नहीं डालती है

22. बोर्ड के कृत्य-बोर्ड,-

                                () दुर्घटना की दशा में किसी हिताधिकारी को तुरन्त सहायता उपलब्ध करा सकेगा ;

                                () ऐसे हिताधिकारियों को, जिन्होंने साठ वर्ष की आयु पूरी कर ली है, पेंशन का संदाय कर सकेगा ;

                () किसी हिताधिकारी को गृह निर्माण के लिए उतनी रकम से अनधिक तथा ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर ऋण और अग्रिम मंजूर कर सकेगा जो विहित की जाएं ;

() हिताधिकारियों की सामूहिक बीमा स्कीम के लिए प्रीमियम के संबंध में ऐसी रकम का संदाय कर सकेगा,     जो वह ठीक समझे ;

() हिताधिकारियों के बालकों की शिक्षा के लिए ऐसी वित्तीय सहायता दे सकेगा, जो विहित की जाए ;

() किसी हिताधिकारी की या ऐसे आश्रित की, बड़ी व्याधियों के उपचार के लिए ऐसे चिकित्सीय व्ययों को पूरा कर सकेगा, जो विहित किए जाएं ;

() महिला हिताधिकारियों को प्रसूति-प्रसुविधा के लिए संदाय कर सकेगा ; और

() ऐसे अन्य कल्याणकारी अध्युपायों और सुविधाओं के लिए, जो विहित किए जाएं, व्यवस्था कर सकेगा और उनमें सुधार कर सकेगा

(2) बोर्ड, किसी स्थापन में भवन कर्मकारों के कल्याण से संबंधित प्रयोजन के लिए राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित किसी स्कीम की सहायता के लिए किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी नियोजक को ऋण या साहायिकी मंजूर कर सकेगा

(3) बोर्ड, किसी ऐसे स्थानीय प्राधिकारी या नियोजक को, जो बोर्ड के समाधानप्रद रूप में भवन कर्मकारों और उनके कुटुम्ब के सदस्यों के फायदे के लिए बोर्ड द्वारा विनिर्दिष्ट मानक के कल्याणकारी अध्युपायों और सुविधाओं की व्यवस्था करता है, प्रतिवर्ष सहायता अनुदान का संदाय कर सकेगा, किन्तु किसी स्थानीय प्राधिकारी या नियोजक को सहायता अनुदान के रूप में संदेय रकम-

() राज्य सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा अवधारित कल्याणकारी अध्युपायों और सुविधाओं की व्यवस्था करने में व्यय की गई रकम से ; या

() ऐसी रकम से, जो विहित की जाए,

इनमें से जो भी कम हो, अधिक नहीं होगी :

                परन्तु कोई सहायता अनुदान किसी ऐसे कल्याणकारी अध्युपायों और सुविधाओं के संबंध में संदेय नहीं होगा जहां पूर्वोक्त रूप में अवधारित उन पर व्यय की गई रकम इन निमित्त विहित रकम से कम है

23. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान और ऋण-केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, बोर्ड को ऐसी राशियों का अनुदान और ऋण दे सकेगी जो वह सरकार आवश्यक समझे

24. भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण निधि और उसका उपयोजन-(1) बोर्ड द्वारा एक निधि गठित की जाएगी जिसका नाम भवन और अन्य सन्निर्माण कमर्कार कल्याण निधि होगा और उसमें, निम्नलिखित जमा किए जाएंगे, अर्थात् :-

                                () धारा 23 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बोर्ड को दिए गए कोई अनुदान और ऋण ;

                                () हिताधिकारियों द्वारा किए गए सभी अभिदाय ;

                                () बोर्ड द्वारा ऐसे अन्य स्रोतों से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किए जाएं, प्राप्त सभी राशियां

                (2) निधि का उपयोजन निम्नलिखित की पूर्ति के लिए किया जाएगा, अर्थात् :-

                                () धारा 22 के अधीन बोर्ड के कृत्यों के निर्वहन में बोर्ड के व्यय ;

                                () बोर्ड के सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक ;

                                () इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत उद्देश्यों के संबंध में और प्रयोजनों के लिए व्यय

                (3) कोई बोर्ड, किसी वित्तीय वर्ष में, अपने सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और अन्य पारिश्रमिक मद्धे और अन्य प्रशासनिक व्ययों को पूरा करने के लिए उस वित्तीय वर्ष के दौरान अपने कुल व्ययों के पांच प्रतिशत से अधिक व्यय उपगत नहीं करेगा

25. बजट-बोर्ड, ऐसे प्ररूप में और प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसे समय पर जो विहित किया जाए, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपना बजट तैयार करेगा जिसमें बोर्ड की प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय दर्शित किए जाएंगे और उसे राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार     को भेजेगा

26. वार्षिक रिपोर्ट-बोर्ड, ऐसे प्ररूप में और प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसे समय पर, जो विहित किया जाए, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का पूरा विवरण दिया जाएगा और उसकी एक प्रति राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा

27. लेखा और संपरीक्षा-(1) बोर्ड, उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित किया जाए

(2) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के या इस अधिनियम के अधीन बोर्ड के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के उस संपरीक्षा के संबंध में वे ही अधिकार, विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे जो भारत के  नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में हैं तथा उसे विशिष्ट रूप से बहियां, लेखा, संबंधित वाउचर और अन्य दस्तावेज और कागज-पत्र पेश किए जाने की मांग करने और इस अधिनियम के अधीन बोर्ड के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा

(3) बोर्ड के लेखाओं की वार्षिक संपरीक्षा, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा की जाएगी और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय बोर्ड द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा

(4) बोर्ड, ऐसी तारीख के पूर्व, जो विहित की जाए, अपने लेखाओं की सपंरीक्षित प्रति संपरीक्षक की रिपोर्ट के साथ ही राज्य सरकार को देगा

(5) राज्य सरकार, वार्षिक रिपोर्ट और संपरीक्षक की रिपोर्ट, उनके प्राप्त होने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी

अध्याय 6

भवन कर्मकारों के काम के घंटे, कल्याणकारी अध्युपाय और सेवा की अन्य शर्तें

28. सामान्य कार्य दिवस के लिए घंटों का नियत किया जाना, आदि-(1) समुचित सरकार, नियमों द्वारा,-

() काम के उन घंटों की संख्या नियत कर सकेगी जो भवन कर्मकार के लिए सामान्य कार्य दिवस के रूप में होगी और जिनमें एक या अधिक विनिर्दिष्ट अंतराल होंगे ;

() सात दिन की प्रत्येक अवधि में एक विश्राम दिन का, जो सभी भवन कर्मकारों के लिए अनुज्ञात किया जाएगा और विश्राम के ऐसे दिन के संबंध में पारिश्रमिक के संदाय का उपबंध कर सकेगी ;

() धारा 29 में विनिर्दिष्ट अतिकाल की दर से अन्यून दर पर किसी विश्राम दिन के लिए कार्य के संदाय का उपबंध कर सकेगी

                (2) उपधारा (1) के उपबंध निम्नलिखित वर्ग के भवन कर्मकारों के संबंध में केवल ऐसी सीमा तक और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, लागू होंगे, अर्थात् :-

() अत्यावश्यक कार्य या किसी आपात कार्य में, जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता या जिसे निवारित नहीं किया जा सकता, लगे हुए व्यक्ति ;

() प्रारंभिक या पूरक कार्य की प्रकृति के ऐसे कार्य में जिसे अनिवार्यतः नियमों में अधिकथित काम के सामान्य घंटों के अंतर्गत आने वाले समय में ही किया जाना चाहिए, लगे हुए व्यक्ति ;

() किसी ऐसे कार्य में, जिसे तकनीकी कारणों से दिन समाप्त होने के पूर्व पूरा किया जाना है, लगे हुए व्यक्ति ;

() किसी ऐसे कार्य में लगे हुए व्यक्ति, जिसे कभी कभी ही किया जा सकता है, और जो प्राकृतिक शक्तियों के अनियमित कार्य पर निर्भर है

29. अतिकाल कार्य के लिए मजदूरी-(1) जहां किसी भवन कर्मचार से किसी दिन सामान्य कार्य दिवस के रूप में घंटों की संख्या से अधिक कार्य करने की अपेक्षा की जाती है वहां वह अपनी मजदूरी की मामूली दर से दुगुनी दर पर मजदूरी पाने का हकदार होगा

                (2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, मजदूरी की मामूली दर" से अभिप्रेत है मूल मजदूरी और ऐसे भत्ते जिनका कर्मकार उस समय हकदार है किन्तु इनके अन्तर्गत कोई बोनस नहीं है

30. रजिस्टरों और अभिलेखों का रखा जाना-(1) प्रत्येक नियोजक, ऐसे रजिस्टर और अभिलेख रखेगा जिनमें उसके द्वारा नियोजित भवन कर्मकारों की ऐसी विशिष्टियां, उनके द्वारा किए गए कार्य, काम के उन घंटों की संख्या, जो उनके लिए सामान्य कार्य दिवस के रूप में होंगे, सात दिन की प्रत्येक अवधि में एक विश्राम दिन जो उन्हें अनुज्ञात किया जाएगा, उनको संदत्त मजदूरी, उनके द्वारा दी गई रसीदें और ऐसे प्ररूप में ऐसी अन्य विशिष्टियां दी जाएंगी वे जो विहित की जाएं  

                (2) प्रत्येक नियोजक, विहित विशिष्टियों को अन्तर्विष्ट करते हुए सूचनाओं को विहित प्ररूप में ऐसी रीति से, जो विहित की जाएं, ऐसे स्थान में जहां ऐसे कर्मकार नियोजित किए जाएं, संप्रदर्शित करेगा

(3) समुचित सरकार, किसी स्थापन में नियोजित भवन कर्मकारों के लिए मजदूरी बही या मजदूरी पर्चियां जारी करने के लिए, नियमों द्वारा, उपबंध कर सकेगी और वह रीति विहित कर सकेगी जिससे नियोजक या उसके अभिकर्ता द्वारा ऐसी मजदूरी बहियों या मजदूरी पर्चियों में प्रविष्टियां की जाएंगी और उन्हें अधिप्रमाणित किया जाएगा

31. कतिपय भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में कतिपय व्यक्तियों के नियोजन का प्रतिषेध-ऐसे किसी व्यक्ति से, जिसके बारे में नियोजक को ज्ञान है या उसके पास विश्वास करने का कारण है कि वह बधिर है या उसे दृक्शक्ति की त्रुटि है, या सिर चकराने की प्रवृत्ति है, भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य की किसी ऐसी संक्रिया में कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी या उसे अनुज्ञा नहीं दी जाएगी, जिसमें स्वयं भवन कर्मकार को या किसी अन्य व्यक्ति को किसी दुर्घटना का जोखिम होना संभाव्य हो

32. पीने का जल-(1) नियोजक, ऐसे प्रत्येक स्थान में, जहां भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य चल रहा है, नियोजित सभी व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक रूप से स्थित यथोजित स्थलों पर स्वच्छ पीने के जल के पर्याप्त प्रदाय की व्यवस्था करने और उसे बनाए रखने के लिए प्रभावपूर्ण व्यवस्था करेगा

                (2) ऐसे सभी स्थलों पर ऐसी भाषा में जिसे ऐसे स्थान में नियोजित व्यक्तियों की बहुसंख्या समझती है सुपाठ्य रूप से   पीने का जल" लिखा होगा और ऐसा कोई स्थल, किसी धोने के स्थान, मूत्रालय या शौचालय के छह मीटर के भीतर स्थित नहीं होगा

33. शौचालय और मूत्रालय-नियोजक, ऐसे प्रत्येक स्थान पर, जहां भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य किया जा रहा है, ऐसे प्रकार के जो विहित किए जाएं, पर्याप्त शौचालयों और मूत्रालयों की व्यवस्था करेगा और वे ऐसे सुविधाजनक रूप में स्थित होंगे जिन तक भवन कर्मकारों की, सभी समय जब वे ऐसे स्थान में हों, पहुंच हो सके :

                परन्तु किसी ऐसे स्थान में जहां पचास से कम व्यक्ति नियोजित हैं या जहां शौचालय किसी जल आधारित मलवाही प्रणाली से जुड़े हैं, पृथक्, मूत्रालयों की व्यवस्था करना आवश्यक नहीं होगा

34. वास-सुविधा-(1) नियोजक, अपने द्वारा नियोजित सभी भवन कर्मकारों के लिए ऐसी अवधि के लिए जब तक भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य चल रहा है, निर्माण स्थल पर या उसके उतने निकट जितना संभव हो, अस्थायी वास-सुविधा की निःशुल्क व्यवस्था करेगा

                (2) उपधारा (1) में उपबन्धित अस्थायी वास-सुविधा में पृथक् रसोई  स्थान, स्नान, धुलाई और शौचालय की सुविधाएं   होंगी

                (3) नियोजक, भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के पूरा हो जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित भवन कर्मकारों को वास-सुविधा, रसोई स्थान या अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करने के प्रयोजन के लिए अपने द्वारा निर्मित अस्थायी संरचनाओं को अपनी लागत पर हटवा देगा या ढा देगा और भूमि को अच्छी तरह समतल और साफ दशा में करा देगा

                (4) यदि नियोजक को इस धारा के अधीन भवन कर्मकारों के लिए अस्थायी वास-सुविधा की व्यवस्था करने के प्रयोजनों के लिए नगरपालिका बोर्ड या किसी अन्य स्थानीय प्राधिकारी द्वारा कोई भूमि दी गई है तो वह सन्निर्माण कार्य के पूरा हो जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, ऐसी भूमि का कब्जा वैसी ही दशा में लौटा देगा जिसमें उसने उसे प्राप्त किया था

35. शिशु कक्ष-(1) ऐसे प्रत्येक स्थापन में, जहां पचास से अधिक स्त्री कर्मकार मामूली तौर पर नियोजिति की जाती हैं, ऐसी स्त्री कर्मकारों के छह वर्ष से कम आयु के बालकों के उपयोग के लिए उपयुक्त कमरा या कमरों की व्यवस्था की जाएगी और उन्हें बनाए रखा जाएगा

                (2) ऐसे कमरों में-

                                () पर्याप्त जगह होगी ;

                                () पर्याप्त रोशनी और संवातन होगा ;

                                () वे साफ और स्वच्छ दशा में रखे जाएंगे ;

                                () वे बालकों और शिशुओं की देखरेख में प्रशिक्षित स्त्रियों के भारसाधन में होंगे

36. प्राथमिक उपचार-प्रत्येक नियोजक, ऐसे सभी स्थानों में, जहां भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य किया जाता है, ऐसी प्राथमिक उपचार सुविधाओं की, जो विहित की जाएं, व्यवस्था करेगा

37. केंटीन, आदि-समुचित सरकार, नियमों द्वारा, नियोजक से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह-

() ऐसे प्रत्येक स्थान में, जहां कम से कम दो सौ पचास भवन कर्मकार मामूली तौर पर नियोजित हैं, कर्मकारों के उपयोग के लिए कैंटीन की व्यवस्था करे और उसे बनाए रखे ;

() भवन कर्मकारों की प्रसुविधा के लिए, ऐसे अन्य कल्याणकारी अध्युपायों की, जो विहित किए जाएं, व्यवस्था करे

अध्याय 7

सुरक्षा और स्वास्थ्य अध्युपाय

38. सुरक्षा समिति और सुरक्षा अधिकारी-(1) ऐसे प्रत्येक स्थापन में, जहां पांच सौ या अधिक भवन कर्मकार मामूली तौर पर नियोजित हैं, नियोजक एक सुरक्षा समिति का गठन करेगा, जिसमें नियोजक और भवन कर्मकारों के प्रतिनिधियों की उतनी संख्या होगी, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं :

                परन्तु कर्मकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों की संख्या किसी भी दशा में नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों की संख्या से कम नहीं होगी

                (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक स्थापन में, नियोजक एक सुरक्षा अधिकारी की भी नियुक्ति करेगा जिसके पास ऐसी अर्हताएं होंगी और जो ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा, जो विहित किए जाएं

39. कतिपय दुर्घटनाओं की सूचना-(1) जहां किसी स्थापन में कोई ऐसी दुर्घटना होती है, जिससे मृत्यु कारित होती है या जिससे कोई ऐसी शारीरिक क्षति कारित होती है जिसके कारण क्षतिग्रस्त व्यक्ति दुर्घटना होने के ठीक पश्चात् अड़तीस घंटे या उससे अधिक की अवधि के लिए कार्य करने से निवारित हो जाता है या जो ऐसी प्रकृति की है जो विहित की जाए वहां नियोजक, उसकी सूचना ऐसे प्राधिकारी को ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय के भीतर देगा, जो विहित किया जाए

(2) उपधारा (1) के अधीन सूचनाओं के प्राप्त होने पर, उस उपधारा में निर्दिष्ट प्राधिकारी, ऐसा अन्वेषण या जांच कर सकेगा, जो वह आवश्यक समझे

(3) जहां उपधारा (1) के अधीन दी गई सूचना पांच या अधिक व्यक्तियों की मृत्यु कारित करने वाली किसी दुर्घटना से संबंधित है, वहां ऐसा प्राधिकारी ऐसी दुर्घटना की जांच उसकी सूचना की प्राप्ति के एक मास के भीतर करेगा

40. भवन कर्मकारों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए नियम बानने की समुचित सरकार की शक्ति-(1) समुचित सरकार, भवन कर्मकारों के नियोजन के दौरान उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए किए जाने वाले अध्युपायों और ऐसे नियोजन के दौरान उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए दिए जाने वाले आवश्यक उपस्कर और साधित्रों के संबंध में नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी

(2) विशिष्टितया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

() किसी कार्य स्थल तक पहुंचने का सुरक्षित साधन और उसकी सुरक्षा, जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रक्रमों पर जब कार्य भूतल से या भवन के किसी भाग से या सीढ़ी से या आलंब के किसी अन्य साधन से सुरक्षित रूप से नहीं किया जा   सकता है, उपयुक्त और पर्याप्त पाड़ का उपबंध करना है

() किसी सक्षम व्यक्ति के पर्यवेक्षण के अधीन किसी भवन या अन्य संरचना के पूर्णतः या उसके किसी पर्याप्त भाग को गिराने और किसी भवन या अन्य संरचना को टेकबन्दी करके या अन्यथा तैयार निर्माण या संरचना के किसी भाग को हटाने के दौरान एकाएक गिरने के खतरे से बचाव के संबंध में बरती जाने वाली पूर्वावधानियां ;

() सक्षम व्यक्तियों के नियंत्रण के अधीन विस्फोटक को हथालना या उसका उपयोग जिससे कि विस्फोट से या उड़ने वाली सामग्री से क्षति का कोई जोखिम हो ;

() परिवहन उपस्कर का, जैसे ट्रकों, वैगनों और अन्य यानों तथा ट्रेलरों का निर्माण, संस्थापन, उपयोग और अनुरक्षण तथा ऐसे उपस्कर के चलाने या प्रचालित करने के लिए सक्षम व्यक्तियों की नियुक्ति ;

() उत्तोलकों, उत्थापक साधित्रों और उत्थापक गियर का निर्माण, संस्थापन, उपयोग और अनुरक्षण, जिसके अन्तर्गत कालिक परीक्षण तथा परीक्षा है और जहां आवश्यक हो वहां, ऊष्मोपचार, भार को उठाने या नीचा करने के दौरान बरती जाने वाली पूर्वावधानियां, व्यक्तियों के वहन पर निर्बन्धन तथा उत्तोलकों या अन्य उत्थापक साधित्रों के संबंध में सक्षम व्यक्ति की नियुक्ति ;

() प्रत्येक कार्य स्थल और उसके पहुंच मार्ग पर, ऐसे प्रत्येक स्थान पर, जहां उत्तोलकों, उत्थापक साधित्रों या उत्थापक गियरों का उपयोग करके उठाने या नीचे उतारने की संक्रिया की जा रही है और नियोजित भवन कर्मकारों के लिए खतरनाक सभी खुले स्थानों पर पर्याप्त और उपयुक्त रूप से प्रकाश व्यवस्था ;

() किसी सामग्री के पीसने, साफ करने, छिड़कने या अभिचालन के दौरान धूल, धुएं, गैसों या वाष्पों के अंतःश्वसन का निवारण करने के लिए बरती जाने वाली पूर्वावधानियां और प्रत्येक कार्य के स्थान या परिरुद्ध स्थान से पर्याप्त संवातन सुनिश्चित करने और बनाए रखने के लिए किए जाने वाले उपाय ;

() सामग्री या माल का ढेर लगाने या ढेर लगाने, भराई करने या भराई करने या उसके संबंध में हथालने के दौरान किए जाने वाले अध्युपाय ;

() मशीनरी की सुरक्षा, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक गतिपालक चक्र और मूल गति उत्पादक के प्रत्येक चालक भाग और पारेषण या अन्य मशीनरी के प्रत्येक भाग में बाड़ लगाना है जब तक कि वह ऐसी स्थिति में हो या ऐसे सन्निर्माण की कोटि का हो, कि वह किसी भी संक्रिया में कार्य करने वाले प्रत्येक कर्मकार के लिए सुरक्षित हो और ऐसी कोटि का हो मानो उसमें सुरक्षित रूप से बाड़ लगा हो ;

() संयंत्र का, जिसके अन्तर्गत संपीडित वायु द्वारा प्रचालित औजार और उपस्कर हैं, सुरक्षित रूप से हथालना और उसका उपयोग ;

() अग्नि की दशा में बरती जाने वाली पूर्वावधानियां ;

() कर्मकारों द्वारा उठाए जाने वाले या हटाए जाने वाले भार की सीमाएं ;

() जल द्वारा किसी कार्य स्थल तक या वहां से कर्मकारों का सुरक्षित परिवहन और डूबने से बचाने के लिए साधनों की व्यवस्था ;

() विद्युतमय तार या साधित्र से, जिसके अन्तर्गत विद्युत मशीनरी और औजार हैं तथा सिरोपरि तारों से कर्मकारों को खतरे से बचाने के लिए किए जाने वाले उपाय ;

() सुरक्षा, जालों, सुरक्षा शीटों और सुरक्षा पट्टों को रखना, जहां कार्य की विशेष प्रकृति या परिस्थितियां उन्हें कर्मकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक बनाती हों ;

() पाड़, सीढ़ियों और जीनों, उत्थापक साधित्रों, रस्सियों, जंजीरों और उपसाधनों, मिट्टी हटाने वाले उपस्करों और प्लवमान परिचालन उपस्करों की बाबत अनुपालन किए जाने वाले मानक ;

() स्थूण चालन, कंकरीट कार्य, तप्त एस्फाल्ट, टार या अन्य समरूप वस्तुओं से कार्य, विद्युतरोधन कार्य, भंजन, संक्रियाओं, उत्खनन, भूमिगत सन्निर्माण और सामग्री के हथालने की बाबत बरती जाने वाली पूर्वावधनियां ;

() सुरक्षा नीति, अर्थात्, भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में की जाने वाली संक्रियाओं के लिए नियोजकों और ठेकेदारों द्वारा बनाई जाने वाली भवन कर्मकारों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने, उनके लिए प्रशासनिक व्यवस्था तथा उनसे संबंधित अन्य विषयों के लिए उपायों के संबंध में नीति ;

() भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 (1986 का 63) के अधीन स्थापित भारतीय मानक ब्यूरो को, भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में उस अधिनियम के अधीन आने वाली किसी वस्तु या प्रक्रिया के उपयोग के बारे में दी जाने वाली जानकारी ;

() भवन कर्मकारों के लिए चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था और उसे बनाए रखना ;

() किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में की जा रही किसी संक्रिया में कार्य करने वाले कर्मकारों की सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित कोई अन्य विषय

41. सुरक्षा अध्युपायों के लिए आदर्श नियमों का बनाया जाना-केन्द्रीय सरकार धारा 5 के अधीन गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात्, धारा 40 में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं विषयों की बाबत आदर्श नियम बना सकेगी और जहां किसी ऐसे विषय के संबंध में कोई ऐसे आदर्श नियम बनाए गए हैं वहां समुचित सरकार, धारा 40 के अधीन उस विषय के संबंध में कोई नियम बनाते समय, जहां तक हो सके, ऐसे आदर्श नियमों के अनुरूप कार्य करेगी

अध्याय 8

निरीक्षण कर्मचारिवृंद

42. महानिदेशक, मुख्य निरीक्षक और निरीक्षकों की नियुक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, उस सरकार के किसी राजपत्रित अधिकारी को निरीक्षण महानिदेशक नियुक्त कर सकेगी जो निरीक्षण के मानक अधिकथित करने के लिए उत्तरदायी होगा और ऐसे सभी स्थापनों के संबंध में जिनके लिए केन्द्रीय सरकार समुचित सरकार है, संपूर्ण भारत में निरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग   भी करेगा

                (2) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, उस सरकार के किसी राजपत्रित अधिकारी को भवन और सन्निर्माण के निरीक्षण के लिए मुख्य निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी जो उस राज्य में इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी रूप से कार्यान्वित करने के लिए उत्तरदायी होगा और ऐसे स्थापनों के संबंध में जिनके लिए राज्य सरकार समुचित सरकार है, संपूर्ण राज्य में इस अधिनियम के अधीन निरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग भी करेगा

                (3) समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए इतने अधिकारियों को जितने वह ठीक समझे निरीक्षक नियुक्त कर सकेगी और उन्हें ऐसी स्थानीय सीमाएं, जो वह ठीक समझे, समनुदेशित कर सकेगी

                (4) इस धारा के अधीन नियुक्त किया गया प्रत्येक निरीक्षक, यथास्थिति, महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक के नियंत्रण के अधीन होगा और महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक के साधारण नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग और अपने कृत्यों का पालन करेगा

                (5) महानिदेशक, मुख्य निरीक्षक और प्रत्येक निरीक्षक भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा

43. निरीक्षकों की शक्तियां-(1) इस निमित्त बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, कोई निरीक्षक, उन स्थानीय सीमाओं के भीतर जिनके लिए वह नियुक्त किया गया है,-

() सभी युक्तियुक्त समयों पर ऐसे सभी सहायकों (यदि कोई हों) के साथ, जो सरकार या किसी स्थानीय अथवा अन्य लोक प्राधिकारी की सेवा में के व्यक्ति हों, और जिन्हें वह ठीक समझे, किसी ऐसे परिसर या स्थान में, जहां भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य किया जा रहा है, किसी रजिस्टर या अभिलेख या सूचनाओं की, जो इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन रखे जाने या संप्रदर्शित किए जाने के लिए अपेक्षित हों, परीक्षा करने के प्रयोजन के लिए प्रवेश कर सकेगा और निरीक्षण के लिए उनके पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकेगा ;

() किसी ऐसे व्यक्ति की परीक्षा कर सकेगा जिसे वह किसी ऐसे परिसर या स्थान में पाता है और जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का उचित कारण है कि वह उसमें नियोजित भवन कर्मकार है ;

(किसी भवन कर्मकार को भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य देने वाले व्यक्ति से उन व्यक्तियों के, जिनको और जिनके लिए भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य दिया जाता है या प्राप्त किया जाता है, नामों और पतों के संबंध में और उन संदायों की बाबत जो भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के लिए किए जाने हैं, कोई ऐसी सूचना देने की अपेक्षा कर सकेगा जिसका दिया जाना उसकी शक्ति में है ;

() मजदूरी के ऐसे रजिस्टर, अभिलेख या सूचनाओं अथवा उनके भागों को, जिनको वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के संबंध में सुसंगत समझे, और जिनके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह नियोजक द्वारा किया गया है, अभिगृहीत कर सकेगा या उनकी प्रतियां ले सकेगा ; और

() ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, जो विहित की जाएं

                (2) इस धारा के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक ऐसी अर्हताएं और अनुभव रखने वाले तथा ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो विहित की जाएं, विशेषज्ञों या अभिकरणों को नियोजित कर सकेगा

                (3) उपधारा (1) के अधीन किसी निरीक्षक द्वारा अपेक्षित कोई दस्तावेज पेश करने या कोई सूचना देने के लिए अपेक्षित किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 175 और धारा 176 के अर्थ में ऐसा करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है

                (4) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्ध, जहां तक हो सके, उपधारा (1) के अधीन ऐसी तलाशी या अभिग्रहण को वैसे ही लागू होंगे, जैसे वे उक्त संहिता की धारा 94 के अधीन जारी किए गए किसी वारंट के प्राधिकार के अधीन की गई किसी तालाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं

अध्याय 9

विशेष उपबंध

44. नियोजकों का उत्तरदायित्व-नियोजक, सुरक्षा से संबंधित इस अधिनियम के उपबन्धों का अनुपालन सुनिश्चित करने के बारे में अपने स्थापन में किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में सतत् और यथोचित पर्यवेक्षण की व्यवस्था करने और दुर्घटनाओं का निवारण करने के लिए आवश्यक सभी व्यावहारिक उपाय करने के लिए उत्तरदायी होगा

45. मजदूरी और प्रतिकर के संदाय के लिए उत्तरदायित्व-(1) नियोजक, अपने द्वारा नियोजित प्रत्येक भवन कर्मकार को मजदूरी के संदाय के लिए, उत्तरदायी होगा और ऐसी मजदूरी, ऐसी तारीख को या उसके पूर्व, जो विहित की जाए, संदत्त की जाएगी

                (2) यदि कोई ठेकेदार, अपने द्वारा नियोजित किसी भवन कर्मकार की बाबत प्रतिकर का संदाय, जहां वह देय होने पर ऐसा संदाय करने के लिए दायी है, करने में असफल रहता है या उसका कम संदाय करता है, तो भवन कर्मकार की मृत्यु या उसके अशक्त हो जाने की दशा में, नियोजक उस पूरे प्रतिकर का या देय असंदत्त अतिशेष का कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) के उपबन्धों के अनुसार संदाय करने के लिए और इस प्रकार संदत्त की गई रकम को ठेकेदार से किसी संविदा के अधीन ठेकेदार को संदेय किसी रकम से कटौती करके या  ठेकेदार द्वारा संदेय किसी ऋण के रूप में वसूल करने के लिए दायी होगा

46. भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य प्रारम्भ करने की सूचना-(1) नियोजक, किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य प्रारंभ करने से कम से कम तीस दिन पूर्व उस क्षेत्र में, जहां प्रस्तावित भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य किया जाना है, अधिकारिता रखने वाले निरीक्षक को निम्नलिखित ब्यौरे सहित एक लिखित सूचना भेजेगा या भिजवाएगा, अर्थात् :-

                                () उस स्थान का नाम और अवस्थिति जहां भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य किया जाना प्रस्तावित है ;

                                () उस व्यक्ति का नाम और पता जो भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य करा रहा है ;

                                () वह पता जिस पर भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य से संबंधित संसूचना भेजी जा सकेगी ;

                                () अन्तर्वलित कार्य की प्रकृति और दी गई सुविधाएं जिनके अन्तर्गत कोई संयंत्र और मशीनरी है ;

() भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में उपयोग किए जाने वाले विस्फोटकों के, यदि कोई हों, भंडारण के लिए व्यवस्था

() ऐसे कर्मकारों की संख्या जिनके भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के विभिन्न प्रक्रमों के दौरान नियोजित किए जाने की संभावना है ;

() उस व्यक्ति का नाम और पदनाम जो भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के स्थल का पूर्णतः भारसाधक होगा

() कार्य की अनुमानित अवधि ;

() ऐसे अन्य विषय जो विहित किए जाएं

                (2) जहां उपधारा (1) के अधीन दी गई किसी विशिष्टि में कोई परिवर्तन किया जाना है वहां नियोजक ऐसे परिवर्तन के दो दिन के भीतर निरीक्षक को ऐसे परिवर्तन को सूचना देगा

(3) उपधारा (1) की कोई बात ऐसे वर्ग के भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य की दशा में लागू नहीं होगी जिसे समुचित सरकार, अधिसूचना द्वारा, अत्यावश्यक कार्य के रूप में विनिर्दिष्ट करे

अध्याय 10

शास्तियां और प्रक्रिया

47. सुरक्षा अध्युपायों संबंधी उपबंधों के उल्लंघन के लिए शास्ति-(1) जो कोई धारा 40 के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से और किसी उल्लंघन के जारी रहने की दशा में, अतिरिक्त जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान ऐसा उल्लंघन, ऐसे प्रथम उल्लंघन के लिए दोषसिद्धि के पश्चात् जारी रहता है, एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा

                (2) यदि कोई व्यक्ति, जिसे उपधारा (1) के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है, उसी उपबंध के उल्लंघन या उसके अनुपालन की असफलता को अंतर्वलित करने वाले किसी अपराध के लिए पुनः दोषी पाया जाता है तो वह पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, पांच सौ रुपए से कम का नहीं होगा, किन्तु दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा :

                परन्तु इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, उस अपराध के, जिसके लिए उक्त व्यक्ति को तत्पश्चात् दोषसिद्ध किया गया है, किए जाने के पूर्व दो वर्ष से अधिक की किसी दोषसिद्धि का संज्ञान नहीं किया जाएगा :

                परन्तु यह और कि यदि शास्ति अधिरोपित करने वाले प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए असाधारण परिस्थितियां मौजूद हैं, तो वह, उसके लिए जो कारण हैं उन्हें लेखबद्ध करने के पश्चात्, पांच सौ रुपए से कम की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा

48. भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के प्रारंभ करने की सूचना देने में असफलता के लिए शास्ति-जहां कोई नियोजक, धारा 46 के अधीन भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य के प्रारंभ की सूचना देने में असफल रहेगा वहां वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा

49. बाधाओं के लिए शास्ति-(1) जो कोई, किसी निरीक्षक को इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालेगा या निरीक्षक को किसी स्थापन के संबंध में इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन प्राधिकृत किसी निरीक्षण, परीक्षा, जांच या अन्वेषण करने में कोई युक्तियुक्त सुविधा देने से इन्कार करेगा या जानबूझकर उपेक्षा करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा

                (2) जो कोई, किसी निरीक्षक द्वारा मांग किए जाने पर इस अधिनियम के अनुसरण में रखे गए किसी रजिस्टर या अन्य दस्तावेज को पेश करने से जानबूझकर इन्कार करेगा अथवा निवारित करेगा या निवारित करने का प्रयास करेगा अथवा कोई ऐसी बात करेगा जिसके बारे में उसके पास वह विश्वास करने का कारण है कि उससे किसी व्यक्ति के, इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के अनुसरण में कार्य करने वाले किसी निरीक्षक के समक्ष उपसंजात होने से, या उसके द्वारा परीक्षा किए जाने से निवारित किए जाने की संभावना है, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा

50. अन्य अपराधों के लिए शास्ति-(1) जो कोई, इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध का या इसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों का उल्लंघन करेगा अथवा जो इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध का या इसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों का अनुपालन करने में असफल रहेगा वह, जहां कोई अभिव्यक्त शास्ति ऐसे उल्लंघन या असफलता के लिए अन्यथा उपबंधित नहीं की गई है, यथास्थिति, ऐसे प्रत्येक उल्लंघन या असफलता के लिए जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, और, यथास्थिति, जारी रहने वाले उल्लंघन या असफलता की दशा में, अतिरिक्त जुर्माने से, जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान ऐसा उल्लंघन या असफलता ऐसे प्रथम उल्लंघन या असफलता के लिए दोषसिद्धि के पश्चात् जारी रहती है एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा

                (2) उपधारा (1) के अधीन कोई शास्ति निम्नलिखित द्वारा अधिरोपित की जा सकेगी, अर्थात् :-

() महानिदेशक, जहां उल्लंघन या असफलता किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसके लिए समुचित सरकार केन्द्रीय सरकार है ; और

() मुख्य निरीक्षक, जहां उल्लंघन या असफलता किसी ऐसे विषय से संबंधित है, जिसके लिए समुचित सरकार राज्य सरकार है

                (3) कोई शास्ति तब तक अधिरोपित नहीं की जाएगी, जब तक कि संबंधित व्यक्ति को लिखित सूचना,-

                                () उन आधारों को, जिन पर शास्ति अधिरोपित करने का प्रस्ताव है, जानकारी देते हुए ; और

() उसे ऐसे उचित समय के भीतर, जो उसमें उल्लिखित शास्ति के अधिरोपण के बारे में सूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, लिखित अभ्यावेदन करने का और यदि वह ऐसी वांछा करता है तो उस मामले में उसकी सुनवाई का उचित अवसर देते हुए,

नहीं दे दी जाती है  

                (4) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, महानिदेशक और मुख्य निरीक्षक को निम्नलिखित विषयों की बाबत इस धारा के अधीन किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी, अर्थात् :-

                                () साक्षियों को समन करना और हाजिर कराना ;

                                () किसी दस्तावेज के प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ;

                                () किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना ;

                                () शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ; और

                                () साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना        

                (5) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संबंधित व्यक्ति को, यथास्थिति, इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के, अथवा उस अन्य विधि द्वारा दंडनीय बनाए गए किसी अपराध के लिए इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अधीन अभियोजित किए जाने से अथवा इस अधिनियम या किसी ऐसी विधि के अधीन उस शास्ति या दंड से जो इस धारा द्वारा उस अपराध के लिए उपबंधित है, कोई अन्य या उच्चतर शास्ति के लिए दायी होने से निवारित करती है :

                परन्तु किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जाएगा

51. अपील-(1) धारा 50 के अधीन किसी शास्ति के अधिरोपण से व्यथित कोई व्यक्ति,-

()         जहां शास्ति महानिदेशक द्वारा अधिरोपित की गई है वहां केन्द्रीय सरकार को ;

() जहां शास्ति मुख्य निरीक्षक द्वारा अधिरोपित की गई है वहां राज्य सरकार को,

ऐसी शास्ति के अधिरोपण की संसूचना की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर अपील कर सकेगा :

                परन्तु यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या अन्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी, तीन मास की पूर्वोक्त अवधि के भीतर अपील करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था तो वह तीन मास की अतिरिक्त अवधि के भीतर ऐसी अपील करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगी

                (2) अपील प्राधिकारी, अपीलार्थी को, यदि वह ऐसी वांछा करता है तो सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् और ऐसी अतिरिक्त जांच, यदि कोई हो, जो वह आवश्यक समझे, करने के पश्चात् उस आदेश की, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पुष्टि करने वाला, उपांतरित करने वाला या उलटने वाला ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे या मामले को ऐसे निदेश के साथ जब वह नए विनिश्चय के लिए ठीक समझे, वापस भेज सकेगा  

52. शास्ति की वसूली-जहां धारा 50 के अधीन किसी व्यक्ति पर अधिरोपित किसी शास्ति का संदाय नहीं किया जाता है वहां,-

(i) यथास्थिति, महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक इस प्रकार संदेय रकम की ऐसे व्यक्ति को, जो उसके नियंत्रण के अधीन है, देय किसी रकम से कटौती कर सकेगा ; या

(ii) यथास्थिति, महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक इस प्रकार संदेय रकम को, ऐसे व्यक्ति के, जो उसके नियंत्रण के अधीन है, माल को प्रतिधृत करके या उसका विक्रय करके वसूल कर सकेगा, या

(iii) यदि रकम खंड (i) या खंड (ii) में उपबंधित रीति से ऐसे व्यक्ति से वसूल नहीं की जा सकती है तो, यथास्थिति, महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक ऐसे व्यक्ति से देय रकम को विनिर्दिष्ट करते हुए एक प्रमाणपत्र तैयार कर सकेगा जिस पर उसके हस्ताक्षर होंगे और उसे उस जिले के कलक्टर को जिसमें ऐसा व्यक्ति किसी संपत्ति का स्वामी है या निवास करता है या अपना कारबार करता है, भेजेगा और उक्त कलक्टर ऐसे प्रमाणपत्र के प्राप्त होने पर उसमें विनिर्दिष्ट रकम को ऐसे व्यक्ति से वसूल करने के लिए वैसे ही अग्रसर होगा मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो

53. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है वहां ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे :

परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को किसी दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने के निवारण के लिए सब समयक् तत्परता बरती थी

                (2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा

                स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

() कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम निकाय है ; और

() फर्म के संबंध में निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है

54. अपराधों का संज्ञान-(1) कोई भी न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान,-

                                () महानिदेशक या मुख्य निरीक्षक द्वारा या उसकी लिखित पूर्व अनुज्ञा से ; या

() सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी स्वैच्छिक संगठन के पदाधिकारी द्वारा ; या

                                () व्यवसाय संघ अधिनियम, 1926 (1926 का 16) के अधीन रजिस्ट्रीकृत संबंधित किसी व्यवसाय संघ के किसी पदाधिकारी द्वारा,

किए गए परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं

                (2) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट से अवर कोई भी न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा

55. अभियोजन की परिसीमा-कोई भी न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक कि उसके लिए परिवाद उस तारीख से, जिसको अभिकथित अपराध के किए जाने की जानकारी, यथास्थिति, महानिदेशक, मुख्य निरीक्षक, किसी स्वैच्छिक संगठन के किसी पदाधिकारी या संबंधित किसी व्यवसाय संघ के किसी पदाधिकारी को हुई, तीन मास के भीतर नहीं कर दिया जाता है

 

अध्याय 11

प्रकीर्ण

56. शक्तियों का प्रत्यायोजन-बोर्ड, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, बोर्ड के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को अथवा सचिव या किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी को ऐसी और परिसीमाओं के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों को, जिन्हें वह आवश्यक समझे, प्रत्यायोजित कर सकेगा

57. विवरणियां-प्रत्येक बोर्ड, समय-समय पर, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को ऐसी विवरणियां देगा, जिनकी वे अपेक्षा करें

58. भवन कर्मकारों को 1923 के अधिनियम 8 का लागू होना-कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 के उपबन्ध, जहां तक हो सके, भवन कर्मकारों को वैसे ही लागू होंगे मानो वह नियोजन जिसको यह अधिनियम लागू होता है, उस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में सम्मिलित किया गया हो

59. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-(1) इस अधिनियम अथवा इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए, कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी

(2) इस अधिनियम अथवा इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए किसी आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात से हुए या हो सकने वाले किसी नुकसान के लिए, कोई भी अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, सरकार, किसी बोर्ड या इस अधिनियम के अधीन गठित समितियों या ऐसे बोर्ड या किसी सदस्य या सरकार या बोर्ड के किसी अधिकारी या कर्मचारी या सरकार या किसी बोर्ड या समिति द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी

60. निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, किसी राज्य सरकार या किसी बोर्ड को इस अधिनियम के किसी उपबन्ध को उस राज्य में निष्पादित करने के बारे में निदेश दे सकेगी

61. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न  होती है, तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत हों और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत होते हों :

परंतु ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा   जाएगा

62. नियम बनाने की शक्ति-(1) समुचित सरकार, विशेषज्ञ समिति से परामर्श करने के पश्चात् इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

() यथास्थिति, धारा 3 की उपधारा (3) के अधीन या धारा 4 की उपधारा (3) के अधीन केन्द्रीय सलाहकार समिति और राज्य सलाहकार समिति में भिन्न-भिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या, उनकी पदावधि और सेवा की अन्य शर्तें, उनके कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया और रिक्तियों को भरने की रीति

() ऐसी फीस और भत्ते जो धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन विशेषज्ञ समिति के सदस्यों को उनके अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिए संदत्त किए जा सकेंगे ;

() धारा 7 की उपधारा (2) के अधीन किसी स्थापन के रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन का प्ररूप, उसके लिए फीस का उद्ग्रहण और वे विशिष्टियां जो उसमें होंगी ;

() धारा 7 की उपधारा (3) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का प्ररूप, वह समय जिसके भीतर और वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए ऐसा प्रमाणपत्र जारी किया जा सकेगा ;

() वह प्ररूप जिसमें स्वामित्व या प्रबंध में परिवर्तन या अन्य विशिष्टियों की सूचना, धारा 7 की उपधारा (4) के अधीन रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को दी जाएगी ;

() वह प्ररूप जिसमें धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन हिताधिकारी के रूप में रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन किया जाएगा ;

() वह दस्तावेज और फीस जो धारा 12 की उपधारा (3) के अधीन आवेदन के साथ होगी ;

() वे रजिस्टर जिन्हें बोर्ड का सचिव धारा 12 की उपधारा (6) के अधीन रखवाएगा ;

() वे फायदे जो धारा 14 की उपधारा (2) के अधीन दिए जा सकेंगे ;

() वह प्ररूप जिसमें धारा 15 के अधीन हिताधिकारियों का रजिस्टर रखा जाएगा ;

() धारा 18 की उपधारा (4) के अधीन बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के निबंधन और शर्तें, उनको संदेय वेतन और अन्य भत्ते तथा उनके पदों में आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति ;

() धारा 19 की उपधारा (3) के अधीन बोर्ड के सचिव और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों की सेवा के निबंधन और शर्तें तथा उनको संदेय वेतन और भत्ते ;

() धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन बोर्ड के अधिवेशन का समय और स्थान तथा ऐसे अधिवेशन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के नियम जिनके अन्तर्गत कारबार के संव्यवहार के लिए आवश्यक गणपूर्ति भी है ;

() धारा 22 की उपधारा (1) के खंड () के अधीन गृह निर्माण के लिए ऋण या अग्रिम के रूप में संदेय रकम और ऐसे संदाय के संबंध में निबंधन और शर्तें, खंड () के अधीन शैक्षणिक सहायता, खंड () के अधीन संदेय चिकित्सा संबंधी खर्चे और वे व्यक्ति जो हिताधिकारियों के आश्रित होंगे और अन्य कल्याणकारी अध्युपाय जिनके लिए खंड () के अधीन उपबंध किया जा सकेगा ;

() धारा 22 की उपधारा (3) के उपखंड () के अधीन स्थानीय प्राधिकारियों और कर्मचारियों को संदेय सहायता अनुदान की सीमा ;

() वह प्ररूप जिसमें और वह समय जिसके भीतर धारा 25 के अधीन बोर्ड का बजट तैयार किया जाएगा और सरकार को भेजा जाएगा ;

() वह प्ररूप जिसमें और वह समय जिसके भीतर धारा 26 के अधीन बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत की जाएगी ;

() धारा 27 की उपधारा (1) के अधीन लेखाओं के वार्षिक विवरण का प्ररूप और वह तारीख जिसके पूर्व   उपधारा (4) के अधीन संपरीक्षक की रिपोर्ट के साथ लेखाओं की संपरीक्षित प्रति दी जाएगी ;

() वे विषय जिनका उपबन्ध धारा 28 की उपधारा (1) के अधीन किया जाना अपेक्षित है और वह सीमा जिस तक और वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए, उस उपधारा के उपबन्ध उस धारा की उपधारा (2) के अधीन भवन कर्मकारों को      लागू होंगे ;

() धारा 30 की उपधारा (1) के अधीन वे रजिस्टर और अभिलेख जो नियोजक द्वारा रखे जाएंगे और वह प्ररूप जिसमें ऐसे रजिस्टर और अभिलेख रखे जाएंगे तथा वे विशिष्टियां  जो उनमें सम्मिलित की जाएंगी ;

() धारा 30 की उपधारा (2) के अधीन वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिसमें कोई सूचना संप्रदर्शित की जाएगी और वे विशिष्टियां जो उनमें अन्तर्विष्ट होंगी ;

() धारा 30 की उपधारा (3) के अधीन मजदूरी बहियों या मजदूरी पर्चियों का भवन कर्मकारों को जारी किया जाना और वह रीति जिससे मजदूरी बहियों या मजदूरी पर्चियों में प्रविष्टियां की जाएंगी और अधिप्रमाणित की जाएंगी ;

() मूत्रालयों और शौचालयों के प्रकार जिनकी व्यवस्था धारा 33 के अधीन की जानी अपेक्षित है ;

() प्राथमिक उपचार सुविधाएं जिनकी व्यवस्था धारा 36 के अधीन की जानी हैं ;

() कैंटीन सुविधाएं जिनकी व्यवस्था धारा 37 के खंड () के अधीन की जानी हैं ;

() वे कल्याणकारी अध्युपाय जिनकी व्यवस्था धारा 37 के खंड () के अधीन की जानी है ;

(यक) धारा 38 की उपधारा (1) के अधीन नियोजकों और भवन कर्मकारों के प्रतिनिधियों की संख्या तथा उस धारा की उपधारा (2) के अधीन सुरक्षा अधिकारियों की अर्हताएं और उनके द्वारा पालन किए जाने वाले कर्तव्य ;

(यख) धारा 39 की उपधारा (1) के अधीन दुर्घटना की सूचना का प्ररूप, इस निमित्त उपबंधित किए जाने वाले अन्य विषय और वह समय जिसके भीतर ऐसी सूचना दी जाएगी ;

(यग) धारा 40 के अधीन भवन कर्मकारों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए बनाए जाने वाले नियम ;

(यघ) वे शक्तियां जिनका धारा 43 की उपधारा (1) के खंड () के अधीन किसी निरीक्षक द्वारा प्रयोग किया जा सकेगा तथा वे अर्हताएं और अनुभव जो उस धारा की उपधारा (2) के अधीन नियोजित विशेषज्ञों और अभिकरणों के पास होगा तथा वे निबंधन और शर्तें जिन पर ऐसे विशेषज्ञ या अभिकरण नियोजित किए जा सकेंगे ;

(यङ) वह तारीख जिसको या जिसके पूर्व धारा 45 के अधीन किसी भवन कर्मकार को मजदूरी का संदाय किया जाएगा ;

(यच) वे विषय जो धारा 46 की उपधारा (1) के खंड () के अधीन विहित किए जाने अपेक्षित हैं ;

(यछ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना अपेक्षित है या विहित किया जाए

                (3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे़गा

                (4) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र जहां राज्य विधान-मंडल के दो सदन हैं वहां प्रत्येक सदन के समक्ष, अथवा जहां ऐसे विधान-मंडल का एक सदन है वहां उस सदन के समक्ष,     रखा जाएगा

63. कतिपय विधियों की व्यावृत्ति-इस अधिनियम की किसी बात से ऐसी राज्य कल्याण स्कीमों का उपबन्ध करने वाली किसी तत्स्थानी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं पडे़गा जो भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकारों के लिए उनसे अधिक लाभप्रद है जिनका उपबंध इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन उनके लिए किया गया है

64. निरसन और व्यावृत्ति-(1) भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) तीसरा अध्यादेश, 1996 (1996 का अध्यादेश संख्यांक 25) इसके द्वारा निरसित किया जाता है

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी

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