बंबई उच्च न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में 2014 में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती नहीं देने के सीबीआई के फैसले के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि अदालत याचिका पर कोई राहत देने की इच्छुक नहीं है।बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में मामले में शाह को आरोप मुक्त किये जाने को चुनौती नहीं देने के सीबीआई के फैसले पर सवाल उठाया गया था।

अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘हम याचिका खारिज कर रहे हैं। हम कोई राहत नहीं देना चाहते हैं... खासकर तब जब याचिकाकर्ता एक संगठन है और उसका मामले से कोई वास्ता नहीं है।’’

सीबीआई की विशेष अदालत ने 2014 में इस मामले में शाह को आरोप मुक्त कर दिया था।

सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी 2005 में गुजरात पुलिस की कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गये थे।

शेख का सहयोगी तुलसी प्रजापति भी 2006 में गुजरात एवं राजस्थान पुलिस के साथ एक अन्य मुठभेड़ में मारा गया था।

मामले में सीबीआई ने जिन 38 लोगों को आरोपी बनाया था उनमें शाह सहित 16 आरोपियों में गुजरात एवं राजस्थान पुलिस के सभी वरिष्ठ अधिकारी थे। इन सभी निचली अदालत और बंबई उच्च न्यायालय ने आरोपमुक्त कर दिया था।

इस मामले में सुनवाई के दौरान एसोसिएशन के वकील दुष्यंत दवे ने दलील दी थी कि 2014 में केन्द्र में सरकार बदलने के बाद सीबीआई ने शाह पर अपना रुख बदल दिया।

याचिका में मामले में दो अन्य आरोपियों को आरोपमुक्त करने के खिलाफ पुनरीक्षण आवेदन दायर करने जबकि शाह की आरोपमुक्ति को चुनौती नहीं देने के जांच एजेंसी के फैसले पर सवाल उठाया गया था।

सीबीआई ने याचिका का विरोध किया और कहा कि उसका फैसला उचित कदम है। याचिका को ‘‘राजनीति से प्रेरित’’ और ‘‘प्रचार पाने का हथकंडा’’ बताते हुए जांच एजेंसी ने इसे खारिज करने का अनुरोध किया था।

सीबीआई की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत में कहा था कि जांच एजेंसी ने शाह को आरोपमुक्त करने के संबंध में निचली अदालत के आदेश का अध्ययन किया है। इसके अलावा उसने इस फैसले को बरकरार रखने की अपीलीय अदालतों के फैसले पर भी गौर किया।

सिंह ने कहा, ‘‘इन आदेशों (निचली अदालत एवं अपीलीय अदालतों के फैसलों) पर गौर करने के बाद हमने फैसला किया कि आरोपमुक्ति के फैसले में किसी न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं है और इसलिए हमने मामले से शाह की आरोपमुक्ति को चुनौती देने वाली अपील दायर नहीं करने का फैसला किया था।’’

दवे ने दलील दी थी कि शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और प्रजापति की हत्या मामले में उच्चतम न्यायालय ने जांच का जिम्मा सीबीआई को इसलिए सौंपा क्योंकि उसे ‘‘स्वतंत्र’’ जांच एजेंसी में भरोसा है।

दवे ने सवाल किया था , ‘‘सीबीआई को तटस्थ रहना चाहिए और मामले में सभी आरोपियों के साथ समान बर्ताव करना चाहिए। ऐसे में उसने पुलिस अधिकारियों एन. के. अमीन और दलपत सिंह राठौड़ की आरोपमुक्ति को चुनौती क्यों दी जबकि शाह के मामले में चुप्पी साधे रही।’’

 

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